मेरे प्रियतम, तुम निराकार हो, तथापि तत्पश्चात सहस्रों रूपों में तुम स्वयं को व्याप्त कर लेते हो। हे प्रेमपुंज, तर्कों के जाल में न उलझो, आगे बढ़कर उसे सर्वत्र देखो। वह प्रेम और तड़प की जटिल गाथा को बुनने वाला अदृश्य तंतु है, जो वायु की वाणी, पत्तों की सरसराहट, और आत्मा के तट पर तरंगों की मृदु लहरी है।
वह एक कुशल शिल्पकार है, जो सहस्रों रूपों में स्वयं को ढालता है - प्रकाशमय सूर्य, मृदु चंद्रमा, और रात के मखमली आकाश में चमकते हीरे जैसे तारे - वह सब है। वह गुलाब की सुगंध, मधु की मिठास, और ग्रीष्म की हवा का कोमल स्पर्श है। वन के केंद्र में, वह प्राचीन वृक्ष है, जिसकी जड़ें भूमि में गहराई तक जाती हैं, और शाखाएँ आकाश की ओर बढ़ती हैं।
उसकी वाणी मधुमक्षिका की गुंजार, पक्षी की मृदु चहचहाहट है। तुम उसे तर्क के दर्पण में न ढूंढो, क्योंकि वह प्रतिबिंब की सीमा से परे निवास करता है। उसका निवास हृदय में है, जहाँ प्रेम उसकी उपस्थिति को खोलने वाली कुंजी है।
हे प्रिय, रहस्य में समर्पित हो जाओ, और अपनी आत्मा की गहराइयों में उसे खोजो। उसके प्रेम के अनंत विस्तार में, तुम कमल हो, जो खिलता है, नदी हो, जो बहती है, और समुद्र हो, जो आनंद से उबल पड़ता है। मौन में, उसकी सुगंभीर वाणी सुनो, "मैं सर्वत्र हूँ, और तुम मेरे हो"।
जब जगत का शोर और ध्वनि शांत हो जाए, तुम उसके प्रेम की मधुर लहरी सुनोगे, जो तुम्हें अनंत के तट पर आदिकाल से बुला रही है, जहाँ विभाजन की तरंगें एकता के समुद्र में विलीन हो जाती हैं। तब, हे प्रिय, तुम जानोगे कि वह केवल प्रियतम नहीं, बल्कि तुम्हारे अस्तित्व का सार है - तुम्हारी साँस, तुम्हारी धड़कन, और है तुम्हारी आत्मा।
अध्यात्म सिंह
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