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Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

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Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) (English)

Welcome to the Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) Telegram channel, also known as "bhagwat_geetakrishn". This channel is dedicated to providing a platform for Hindu devotion and spiritual teachings. The Bhagavad Gita is a sacred scripture of the Hindu religion, containing a conversation between Prince Arjuna and Lord Krishna on the battlefield of Kurukshetra. It is considered one of the most important texts in Hindu philosophy and spirituality, offering timeless wisdom and guidance to those who seek enlightenment

The channel features daily quotes, verses, and explanations from the Bhagavad Gita, allowing followers to deepen their understanding of the teachings within. Whether you are a devoted follower of Hinduism or simply curious about the ancient wisdom contained in the scriptures, this channel is a valuable resource for anyone seeking spiritual enlightenment. Join us on this journey of self-discovery and divine knowledge as we explore the profound teachings of the Bhagavad Gita together. Let the wisdom of Lord Krishna guide you on your spiritual path and illuminate your soul with the light of divine truth. Subscribe to our channel today and embark on a journey of spiritual growth and enlightenment.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

23 Jan, 03:03


Never think there is anything impossible for the soul. It is the greatest heresy to think so. If there is sin, this is the only sin; to say that you are weak, or others are weak.

कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है. अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

23 Jan, 02:59


प्रेम ही परमधाम का मार्ग है ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

23 Jan, 02:42


Either you run the day or the day runs you.

या तो आप दिन को चलते हैं या दिन आपको.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

22 Jan, 12:21


शिव

भगवान शिव के जीवन में ज्ञान का सागर छिपा है. शिवजी विवाह के लिए बैल पर सवार होकर गए. पंचामृत उनका प्रिय प्रसाद है.इन दोनों के महत्व को समझेंगे.

आमजन विवाह के लिए घोड़ी पर जाते हैं. घोड़ी सर्वाधिक कामुक जीव है. उसपर सवार होकर जाने में संदेश है कि दूल्हा काम के वश में होने के लिए नहीं बल्कि घोड़ी रूपी कामवासना को अपने वश में करने के लिए विवाह बंधन में बंधने जा रहा है.

शिवजी ने काम को भस्म किया था. काम उनके जीवन में महत्वहीन है. इसलिए वह विवाह के लिए धर्म रूपी बैल पर सवार होकर गए. इससे शिक्षा मिलती है कि विवाह का पवित्र बंधन नवदंपती को धर्म के मार्ग पर अग्रसर करता है.

सावन में कामदेव की सेना वर्षा की बौछारें व सुगंधित पवन कामवासना जागृत करती है. सावन में शिव की पूजा का विशेष महत्व इसलिए हो जाता हैं क्योंकि शिव काम की प्रबलता का नाश करके पतन से बचाते हैं.

शिवजी को चढ़ने वाले पंचामृत में भी एक गूढ़ संदेश है. पंचामृत दूध, दही, शहद व घी को गंगाजल में मिलाकर बनता है.

दूधः जब तक बछड़ा पास न हो गाय दूध नहीं देती. बछड़ा मर जाए तो उसका प्रारूप खड़ा किए बिना दूध नहीं देती. दूध मोह का प्रतीक है.

शहदः मधुमक्खी कण-कण भरने के लिए शहद संग्रह करती है. इसे लोभ का प्रतीक माना गया है.

दहीः इसका तासीर गर्म होता है.क्रोध का प्रतीक है.

घीः यह समृद्धि के साथ आने वाला है और अहंकार का प्रतीक है.

गंगाजलः भगीरथ के पूर्वजों ने पितरों की मुक्ति के लिए शिवजी की उपासना की और गंगाजल को पृथ्वी पर लेकर आए. यह मुक्ति का प्रतीक है. गंगाजल मोह, लोभ, क्रोध और अहंकार को समेटकर शांत करता है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

22 Jan, 12:06


कामना एवं प्रेम

कामना ' प्रेम ' का विरोधी तत्व है । लेने - देने का नाम व्यापार है । जिसमें प्रेमास्पद से कुछ याचना की भावना हो , वह प्रेम नहीं है । जिसमें सब कुछ देने पर भी तृप्ति न हो , वही प्रेम है । संसार में कोई व्यक्ति किसी से इसलिये प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक जीव स्वार्थी है वह आनन्द चाहता है , अस्तु लेने - लेने की भावना रखता है । जब दोनों पक्ष लेने- लेने की घात में हैं तो मैत्री कितने क्षण चलेगी ? तभी तो स्त्री - पति , बाप - बेटे में दिन में दस बार टक्कर हो जाती है । जहाँ दोनों लेने - लेने के चक्कर में हैं , वहाँ टक्कर होना स्वाभाविक ही है और जहाँ टक्कर हुई , वहीं वह नाटकीय स्वार्थजन्य प्रेम समाप्त हो जाता है । वास्तव में कामनायुक्त प्रेम प्रतिक्षण घटमान होता है ,जबकि - दिव्य प्रेम प्रतिक्षण वर्द्धमान होता है । कामना अन्धकार - स्वरुप है , प्रेम - प्रकाश स्वरुप है ...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

22 Jan, 03:33


Begin to be now what you will be hereafter.

अभी से वो होना शुरू कीजिये जो आप भविष्य में होंगे.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Jan, 04:20


प्रश्न‒रोटी-कपड़ा लोगोंकी आवश्यकता है; परन्तु यह बहुत-से लोगोंको सुलभ नहीं है ?

उत्तर‒भूखा तो लखपति और करोड़पतिको भी रहना पड़ सकता है । वैद्य, डॉक्टर मना कर दें तो करोड़ों रुपये पासमें होनेपर भी रोटी नहीं खा सकते । अतः रोटी-कपड़ा नहीं मिलता तो वहाँ आवश्यकता नहीं है । आवश्यकतावाली चीज तो मिलेगी ही । साफ कहा है‒‘यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम्’ अर्थात् जो चीज हमें मिलनेवाली है, वह दूसरोंको नहीं मिल सकती । जो हमारी चीज है, वह हमारेसे अलग कैसे रहेगी ? उसको मिलना पड़ेगा । कोई भूखा मरनेवाला हो, उसको भूखा ही मरना पड़ेगा । यह आवश्यक नहीं है कि अन्न-जल ही मिले । यह तो मैंने संसारकी रीतिमें दो चीज समझनेके लिये बतायी है कि भूख-प्यासकी आवश्यकता है और स्वादकी इच्छा है । वास्तवमें आवश्यकता है परमात्माकी और इच्छा है संसारकी । संसारकी इच्छा किसी भी तरहकी हो, वह सब कामना ही है, जो कभी पूरी होगी ही नहीं । परमात्माकी आवश्यकता कभी मिटेगी नहीं, आप जानें चाहे न जानें, मानें चाहे न मानें । आप नास्तिक हो जायँ तो भी भीतरसे परमात्माकी इच्छा नहीं मिटेगी । कारण कि जो ईश्वरको, परमात्माको बिलकुल नहीं मानते, वे भी हरदम रहना चाहते हैं, ज्ञान चाहते हैं,सुख-शान्ति चाहते हैं । उनकी यह इच्छा सच्चिदानन्दघन परमात्माकी है । रहना (जीना) चाहते हैं‒यह ‘सत्‌’ की इच्छा हुई । ज्ञान चाहते हैं‒यह ‘चित्’ की इच्छा हुई । सुख चाहते हैं‒यह ‘आनन्द’ की इच्छा हुई । जो ईश्वरका खण्डन करता है, दुनियासे ईश्वरका नाम उठा देना चाहता है, ऐसे नास्तिक-से-नास्तिक आदमीके भीतर भी ईश्वर-प्राप्तिकी इच्छा रहती है । क्या वह जीना नहीं चाहता ? क्या वह ज्ञान नहीं चाहता ? क्या वह सुख नहीं चाहता ? चाहता है तो सच्चिदानन्द परमात्माकी इच्छा है । इस चाहको कोई मिटा नहीं सकता; क्योंकि यह हमारी असली चाह है असली जिज्ञासा है, असली भूख है । यह कभी मिटनेवाली नहीं है,प्रत्युत पूरी होनेवाली ही है। संसारकी इच्छा कभी किसीकी पूरी नहीं हुई, होगी नहीं, हो सकती नहीं।आपने भी देख लिया कि जीवनमें कभी इच्छा पूरी नहीं हुई।अब उसको छोड़नेमें क्या बाधा है ?

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Jan, 04:00


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्षीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥

भावार्थ
जैसे देहधारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था और वृद्धावस्था की ओर निरन्तर अग्रसर होती है, वैसे ही मृत्यु के समय आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है। बुद्धिमान मनुष्य ऐसे परिवर्तन से मोहित नहीं होते।

व्याख्या
श्रीकृष्ण सटीक तर्क के साथ आत्मा के एक जन्म से दूसरे जन्म में देहान्तरण के सिद्धान्त को सिद्ध करते हैं। वे यह समझा रहे हैं कि किसी भी मनुष्य के जीवन में उसका शरीर बाल्यावस्था से युवावस्था, प्रौढ़ता और बाद में वृद्धावस्था में परिवर्तित होता रहता है। आधुनिक विज्ञान से भी यह जानकारी मिलती है कि हमारी शरीर की कोशिकाएँ पुनरूज्जीवित होती रहती हैं। पुरानी कोशिकाएँ जब नष्ट हो जाती हैं तो नयी कोशिकाएँ उनका स्थान ले लेती हैं।

एक अनुमान के अनुसार सात वर्षों में हमारे शरीर की सभी कोशिकाएँ प्राकृतिक रूप से परिवर्तित होती हैं। इसके अतिरिक्त कोशिकाओं के भीतर के अणु और अधिक शीघ्रता से परिवर्तित होते हैं। हमारे द्वारा ली जाने वाली प्रत्येक श्वास के साथ ऑक्सीजन के अणु उपापचय प्रक्रिया द्वारा हमारी कोशिकाओं में मिल जाते हैं और वे अणु जो अब तक हमारी कोशिकाओं के भीतर फंसे थे, वे कार्बन डाईआक्साइड के रूप में बाहर निकल जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार एक वर्ष के दौरान हमारे शरीर के लगभग 98 प्रतिशत अणु परिवर्तित होते हैं और फिर भी शरीर के क्रमिक विकास के पश्चात हम स्वयं को वही व्यक्ति समझते हैं। क्योंकि हम भौतिक शरीर नहीं हैं अपितु इसमें दिव्य आत्मा निवास करती है।

इस श्लोक में देहे का अर्थ 'शरीर' और देहि का अर्थ 'शरीर का स्वामी' या आत्मा है। श्रीकृष्ण अर्जुन का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित करते हुए अवगत कराते हैं कि शरीर में केवल एक ही जीवन तक क्रमिक परिर्वतन होता रहता है जबकि आत्मा कई शरीरों में प्रवेश करती रहती है। समान रूप से मृत्यु के समय यह दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। वास्तव में जिसे हम लौकिक शब्दों में मृत्यु कहते हैं, वह केवल आत्मा का अपने पुराने दुष्क्रियाशील शरीर से अलग होना है और जिसे हम 'जन्म' कहते हैं, वह आत्मा का कहीं पर भी किसी नये शरीर में प्रविष्ट होना है। यही पुनर्जन्म का सिद्धान्त है। आधुनिक युग के अधिकतर दर्शन भी पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकार करते हैं। यह हिन्दू, जैन, और सिख धर्म का अभिन्न अंग है। बौद्ध ध म में महात्मा बुद्ध ने अपने पूर्वजन्मों की बार-बार चर्चा की है। अधिकतर लोग नहीं जानते है कि पुनर्जन्म पाश्चात्य दर्शन की आस्था पद्धति का भी बृहत अंश था।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Jan, 03:43


Be gentle to all and stern with yourself.

सभी के साथ सौम्य और अपने लिए कठोर रहिये .

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Jan, 03:40


हे राम....आशीर्वाद दो,
कि वो दिन कभी ना आए ....
कि मुझे अभिमान हो जाए ....
बस ऐसा स्वभाव देना प्रभू,
कि हर उठा हुआ हाथ आशीष बन जाए.....

जय श्री राधेकृष्ण
जय श्री सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Jan, 03:39


अनाज का अकाल होने से मानव मरता है.... .......
किन्तु संस्कारों का अकाल होने पर मानवता ही मर जाती है

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

20 Jan, 17:57


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥12॥

भावार्थ
ऐसा कोई समय नहीं था कि जब मैं नहीं था या तुम नहीं थे और ये सभी राजा न रहे हों और ऐसा भी नहीं है कि भविष्य में हम सब नहीं रहेंगे।

व्याख्या
डेल्फी स्थित अपोलो मंदिर के द्वार पर 'ग्नोथी सीटन' या 'स्वयं को जानो' शब्द उत्कीर्ण है। एथेंस के विद्वान सुकरात को लोगों को अपने भीतर की प्रकृति को खोजने की प्रेरणा देना प्रिय लगता था। वहाँ की एक स्थानीय दन्तकथा इस प्रकार है कि एक बार सुकरात किसी मार्ग से जा रहा था। अपने गहन दार्शनिक चिन्तन में मगन सुकरात जब अचानक किसी से टकराया तब वह व्यक्ति क्रोध में बड़बड़ाया, “तुम देख नहीं सकते कि तुम कहाँ चल रहे हो, तुम कौन हो?" सुकरात परिहास करते हुए उत्तर देता है-“मेरे प्रिय मित्र, मैं गत चालीस वर्षों से इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहा हूँ। यदि तुम्हें इसका उत्तर ज्ञात है कि "मैं कौन हूँ, तो कृपया मुझे बताएँ।" वैदिक परम्परा में भी जब ईश्वरीय ज्ञान की शिक्षा दी जाती है तो प्रायः उसका प्रारम्भ आत्म-ज्ञान की शिक्षा से होता है। श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में भी इसी दृष्टिकोण को प्रसारित किया है। उनका निम्न संक्षिप्त संदेश सुकरात के हृदय को भी छू लेता। श्रीकृष्ण अपने दिव्य उपदेश के प्रारम्भ में यह वर्णन कर रहे हैं कि जिस अस्तित्व को हम 'स्वयं' कहते हैं, वह आत्मा है न कि भौतिक शरीर और यह भगवान के समान नित्य है। श्वेताश्वतरोपनिषद् में वर्णन मिलता है।

ज्ञाज्ञौ द्वावजावीशनीशावजा ह्येका भोक्तृभोग्यार्थयुक्ता।

अनन्तश्चात्मा विश्वरूपो ह्यकर्तात्रयं यदा विन्दते ब्रह्ममेतत् ।।

उपर्युक्त श्लोक में यह वर्णन किया गया है कि सृष्टि की रचना तीन तत्त्वों के मिश्रण से हुई है-परमात्मा, आत्मा और माया। ये सभी तीनों तत्त्व नित्य हैं। अगर हम विश्वास करते हैं कि आत्मा अमर है तब यह मानना तर्कसंगत होगा कि भौतिक शरीर की मृत्यु के पश्चात भी जीवन है। श्रीकृष्ण इसकी व्याख्या अगले श्लोक में करेंगे।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

20 Jan, 05:22


प्रेम और चाहत

किसी को चाहना और प्रेम करना...
दो अलग अलग चीज है...
प्रेम करना किसी को इतना आसान है क्या...
बोल देने से नहीं होता कि प्रेम है तुमसे...
प्रेम की गहराई को समझने के लिए...
दिल की गहराइयों में उतरना पड़ता है...
चाहत और प्रेम में बहुत बड़ा अंतर है...
चाहत तो हर कोई कर सकता है...
लेकिन प्रेम करना...
हर किसी के बस की बात नहीं है...
प्रेम की सच्चाई को समझने के लिए...
दिल की सच्चाई को समझना पड़ता है...
प्रेम तो वो हैं...
जब आप किसी की आत्मा को छू ले...

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

20 Jan, 03:57


A creative man is motivated by the desire to achieve, not by the desire to beat others.

एक रचनाशील व्यक्ति कुछ पाने की इच्छा से प्रेरित होता है ना कि औरों को हारने की.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 19:38


एक न एक दिन हासिल कर ही लूंगा अपनी
मंजिल,
ठोकरे जहर तो नही जो खाकर मर जाऊंगा।।

।।जय श्री राम।।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 19:37


इस कड़वी सी जिंदगी में
बस

मीठा सा कुछ है तो मेरे "राम" का नाम है

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 19:13


बैठा है शमशान में,और गले में कपाल है
हाथ में त्रिशूल लिए है,और जटा बड़ी विशाल है
भैरव, गोरख,अघोर,नागा,और पूजे तुझे चांडाल है

सबको साधे, सबको तारे, मेरा योगी ही "महाकाल" है
1 तु ही भोलेनाथ

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 19:12


कोई तुम्हारे पास ३ कारणों से आता है..
भाव में,अभाव में या प्रभाव में।
भाव में आया है तो प्रेम दो,अभाव में आया तो मदद करो,प्रभाव में आया तो प्रसन्न होओ कि प्रभुने तुम्हे क्षमता दी है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 18:57


All the powers in the universe are already ours. It is we who have put our hands before our eyes and cry that it is dark.

ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं. वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है

सिताराम_राधेकृष्ण_हर_हर_महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 18:47


एक सुखद जीवन
के लिए,
मस्तिष्क में सत्यता।

होठों पर प्रसन्नता और
हृदय में पवित्रता जरूरी हैं।

हर हर महादेव 😊😊

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

19 Jan, 05:37


Come up, O lions, and shake off the delusion that you are sheep; you are souls immortal, spirits free, blessed and eternal; ye are not matter, ye are not bodies; matter is your servant, not you the servant of matter.

उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो.

सिताराम_राधेकृष्ण_हर_हर_महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

18 Jan, 08:18


प्रेम से बढ़कर ना कोई शास्त्र था, ना हैं, ना रहेगा,
बस हम लोगों ने पढा ही गलत तरीके से है,
समझा भी गलत नियत से है,,
और देखा भी ग़लत भावना से हैं,,,
इसलिए आज प्रेम को इतनी गलत नज़र से
देखा जाता है,,,
मेरे लिए भगवान के बाद इस दुनिया में
कोई पवित्र चीज़ है
तो वो है प्रिती, वो है प्रेम...
मुझे कण_कण से प्रिती की खुश्बु आती हैं,,,,
जिधर देखूं उधर जर्रे_जर्रे में प्रेम नजर आता है,,,
जब भी धड़कनें स्पंदन करती है
प्रीति कस्तुरी बन मन को महकाती है,,
ना कोई छल, ना कोई प्रपंच, ना कोई स्वार्थ
निस्वार्थ प्रेम करके देखो
रोम_रोम में निखार आता है....!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

18 Jan, 08:13


कभी सोचा है…हम कौन हैं
क्या हैं, किधर हैं, क्यूँ हैं

हर वक़्त भाग रहे हैं हम
किसी और के जैसा बनने के लिए

अपने जैसा बनने में
अपने दिल की सुनने में
पता नहीं कौन सा डर है हमें

जिसके साथ ख़ुश हैं
उसके साथ होते नहीं
जो पाना चाहते हैं
वो मिलता नहीं
हर वक़्त ख़ुद से जाने
कितने समझौते
करते हुए जिये जा रहे हैं

अपने ही भीतर की
आवाज़ को
अनसुनी कर
बाहर के शोर में
ख़ुद को
खोते चले जा रहे हम
सबके लिए और
सबके हिसाब से जीते जी
सबके जैसे बनने की
होड़ में ख़ुद को ही
मारते जा रहे हम

कौन है हम वास्तव में
क्या चाहते हैं हम ?
क्या ये सवाल ख़ुद से
कभी करते हैं हम ?

शायद नहीं…
क्यूँकि ख़ुद के भीतर
झांक कर देखना ही
नहीं चाहते हम
अपनी ही सच्चाई से डरते हैं हम
दुनिया के इस बने बनाए ढाँचे में
ख़ुद को कैसे भी करके फ़िट करते हम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

18 Jan, 05:01


With realization of one’s own potential and self-confidence in one’s ability, one can build a better world.

अपनी क्षमताओं को जान कर और उनमे यकीन करके ही हम एक बेहतर विश्व का नित्मान कर सकते हैं.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 18:44


उदास नहीं होना, क्योंकि मैं साथ हूँ!
सामने न सही पर आस-पास हूँ!
पल्को को बंद कर जब भी दिल में देखोगे!
मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ!
में वही रावण वध करने वाला दशरथ पुत्र राम हूँ

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 18:43


"मेरे राम"

मुक्ति को पाकर मै ना खुश रह पाऊँगा।

ऐसे ही करने दो अपना स्मरण मुक्त हो कर नहीं तुझे भज पाऊँगा।।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 18:41


समझदार लोग इज्जत को बचाने के लिये मॉफ़ी मांग कर मामला रफ़ा दफ़ा कर लेते हैं...

नासमझ को क्या पता इज्जत क्या होता है..

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 18:34


जो ज्ञानी होता है उसे समझाया
जा सकता हैं, जो अज्ञानी होता है
उसे भी समझाया जा सकता हैं पर
जो अभिमानी होता है उसे कोई नहीं
समझा सकता, उसे सिर्फ़ वक्त समझाता हैं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 18:00


क्रोध अग्नि घर घर बढ़ी, जलै सकल संसार

दीन लीन निज भक्त जो तिनके निकट उबार।

अर्थ-- घर-घर क्रोध की अग्नि से सम्पूर्ण संसार जल रहा है। परंतु ईश्वर को समर्पित भक्त इस क्रोध की आग से अपने को शीतल कर लेता है। वह सांसरिक तनावों एंव कष्ठों से मुक्त हो जाता है।

जय गणेश • जय कार्तिकेय

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 15:24


छोटी सी जिंदगी है हंस कर जियो
लौटकर सिर्फ यादे आती है वक्त नहीं

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 15:15


जब आप दूसरे के लिए कुछ अच्छा चाहते हो, तो वही अच्छी चीज आपके जीवन में लौट कर वापस आती हैं प्रकति का यही नियम हैं

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Jan, 07:04


बुरी आदत

एक अमीर आदमी अपने बेटे की किसी बुरी आदत से बहुत परेशान था. वह जब भी बेटे से आदत छोड़ने को कहते तो एक ही जवाब मिलता , ” अभी मैं इतना छोटा हूँ..धीरे-धीरे ये आदत छोड़ दूंगा !” पर वह कभी भी आदत छोड़ने का प्रयास नहीं करता. उन्ही दिनों एक महात्मा गाँव में पधारे हुए थे, जब आदमी को उनकी ख्याति के बारे में पता चला तो वह तुरंत उनके पास पहुँचा और अपनी समस्या बताने लगा. महात्मा जी ने उसकी बात सुनी और कहा , ” ठीक है , आप अपने बेटे को कल सुबह बागीचे में लेकर आइये, वहीँ मैं आपको उपाय बताऊंगा. “

अगले दिन सुबह पिता-पुत्र बागीचे में पहुंचे.

महात्मा जी बेटे से बोले , ” आइये हम दोनों बागीचे की सैर करते हैं.” , और वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे .

चलते-चलते ही महात्मा जी अचानक रुके और बेटे से कहा, ” क्या तुम इस छोटे से पौधे को उखाड़ सकते हो ?”

” जी हाँ, इसमें कौन सी बड़ी बात है .”, और ऐसा कहते हुए बेटे ने आसानी से पौधे को उखाड़ दिया

फिर वे आगे बढ़ गए और थोड़ी देर बाद महात्मा जी ने थोड़े बड़े पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ” क्या तुम इसे भी उखाड़ सकते हो?”

बेटे को तो मानो इन सब में कितना मजा आ रहा हो, वह तुरंत पौधा उखाड़ने में लग गया. इस बार उसे थोड़ी मेहनत लगी पर काफी प्रयत्न के बाद उसने इसे भी उखाड़ दिया .

वे फिर आगे बढ़ गए और कुछ देर बाद पुनः महात्मा जी ने एक गुडहल के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए बेटे से इसे उखाड़ने के लिए कहा.

बेटे ने पेड़ का ताना पकड़ा और उसे जोर-जोर से खींचने लगा. पर पेड़ तो हिलने का भी नाम नहीं ले रहा था. जब बहुत प्रयास करने के बाद भी पेड़ टस से मस नहीं हुआ तो बेटा बोला , ” अरे ! ये तो बहुत मजबूत है इसे उखाड़ना असंभव है .”

महात्मा जी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा , ” बेटा, ठीक ऐसा ही बुरी आदतों के साथ होता है , जब वे नयी होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, पर वे जैसे जैसे पुरानी होती जाती हैं इन्हें छोड़ना मुशिकल होता जाता है .”

बेटा उनकी बात समझ गया और उसने मन ही मन आज से ही आदत छोड़ने का निश्चय किया.

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@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 17:16


कर्तव्य बोध

आप अपने अधिकारों के प्रति सजग रहते हैं, ये अच्छी बात है लेकिन आपको अपने कर्तव्यों का बोध भी अवश्य होना चाहिए। यदि आप एक बेटे हैं तो आपको अपने माँ-बाप के प्रति, आप एक पिता हैं तो आपको अपने बच्चों के प्रति, आप एक पति हैं तो आपको अपनी पत्नी के प्रति, आप एक भाई हैं तो आपको अपने भाई-बहनों के प्रति, आप एक पत्नी हैं तो आपको अपने पति के प्रति और यदि आप एक बहु हैं तो आपको अपने सास-ससुर के प्रति अपने अधिकारों से अधिक अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए।

जिस घर के लोग अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हैं, उस घर में निश्चित ही स्वर्ग उतर आता है। अपने कर्तव्यों का भान प्रत्येक व्यक्ति को हर स्थिति में होना ही चाहिए, चाहे उसका पद और कद कितना भी बड़ा क्यों न हो। जिस दिन आपको अधिकारों से पहले अपने कर्तव्यों का बोध हो जाएगा उसी दिन आपके द्वारा एक सुखमय एवं आनंदमय जीवन की आधारशिला भी रख ली जाती है।

जय श्री राधे कृष्ण

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Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 11:37


मेरी उम्र कितनी है
मैं कैसा दिखता हूं
मेरी शक्ल कैसी है
ये चीजें कोई मायने नहीं रखती

आपके जीवन में कोई बदलाव आए बस मेरे लिखने का मकसद
पूरा हो जाएगा..

सीताराम

❤️🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 11:08


एक बहुत अमीर धनपति था। वह नित्य ही एक घी का दीप जलाकर मंदिर में रख आता था। एक निर्धन व्यक्ति था,वह सरसों के तेल का एक दीपक जलाकर नित्य गली में रख देता था।वह अंधेरी गली थी।

दोनों मरकर यमलोक पहुँचे तो धनकुबेर उस अमीर को निम्न स्थिति की सुविधाएँ दी गई,और उस निर्धन को उच्चश्रेणी की।

यह व्यवस्था देखी तो धनकुबेर ने धर्मराज से पूछा- यह भेद क्यों,जबकि मैं भगवान के मंदिर में दीपक जलाता था,वह भी घी का।

धर्मराज मुस्कुराएँ और बोले- पुण्य की महत्ता मूल्य के आधार पर नहीं, कार्य की उपयोगिता के आधार पर होती है।

जहां तुमने घी के दिए जलाए वो मंदिर तो पहले से ही प्रकाशवान था, पर उस निर्धन व्यक्ति ने ऐसे स्थान पर प्रकाश फैलाया, जो गली अंधेरी थी..उसके दीपक के प्रकाश में हजारों व्यक्तियों ने लाभ उठाया।

मित्रों...ईश्वर आपके कार्य से मानव मात्र को प्राप्त होने वाली उपयोगिता पर प्रसन्न होते हैं ना कि धन या दिखावे पर..!!

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 11:04


अपनी प्रतियोगिता
हमेशा अपने से ज़्यादा ताक़तवर
लोगों के साथ करनी चाहिए ।
जीते तो महारथी
हारे तो नयी सीख मिलेगी ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 08:16


नामापराध

जब हम नाम-जप करते हैं तो हमारे लिये वेदोंके पठन-पाठनकी क्या आवश्यकता है ? वैदिक कर्मोंकी क्या आवश्यकता है । इस प्रकार वेदोंपर अश्रद्धा करना नामापराध है।

शास्त्रोंने बहुत कुछ कहा है। कोई शास्त्र कुछ कहता है तो कोई कुछ कहता है। उनकी आपसमें सम्मति नहीं मिलती। ऐसे शास्त्रोंको पढ़नेसे क्या फायदा है ? उनको पढ़ना तो नाहक वाद-विवादमें पड़ना है। इस वास्ते नाम-प्रेमीको शास्त्रोंका पठन-पाठन नहीं करना चाहिये, इस प्रकार शास्त्रोंमें अश्रद्धा करना नामापराध है।

जब हम नाम-जप करते हैं तो गुरु-सेवा करनेकी क्या आवश्यकता है ? गुरुकी आज्ञापालन करनेकी क्या जरूरत है ? नाम-जप इतना कमजोर है क्या ? नाम-जपको गुरु-सेवा आदिसे बल मिलता है क्या ? नाम-जप उनके सहारे है क्या ? नाम-जपमें इतनी सामर्थ्य नहीं है जो कि गुरुकी सेवा करनी पड़े ? सहारा लेना पड़े ? इस प्रकार गुरुमें अश्रद्धा करना नामापराध है ।

वेदोंमें अश्रद्धा करनेवालेपर भी नाम महाराज प्रसन्न नहीं होते। वे तो श्रुति हैं, सबकी माँ-बाप हैं। सबको रास्ता बतानेवाली हैं। इस वास्ते वेदोंमें अश्रद्धा न करे। ऐसे शास्त्रोंमें-पुराण, शास्त्र, इतिहासमें भी अश्रद्धा न करे,तिरस्कार-अपमान न करे। सबका आदर करे। शास्त्रोंमें,पुराणोंमें, वेदोंमें, सन्तोंकी वाणीमें, भगवान्‌के नामकी महिमा भरी पड़ी है ।

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@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 07:55


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्य-
च्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।
अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥8॥

भावार्थ
मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं सूझता जो मेरी इन्द्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके। यदि मैं धन सम्पदा से भरपूर इस पृथ्वी पर निष्कंटक राज्य प्राप्त कर लेता हूँ या देवताओं जैसा प्रभुत्व प्राप्त कर लेता हूँ तब भी मैं इस शोक को दूर करने में समर्थ नहीं हो पाऊँगा।

व्याख्या
जब हम किसी विपत्ति मे फंस जाते हैं तब हमारी बुद्धि उस विपत्ति के कारणों का विश्लेषण करने लगती है। जब आगे कोई उपाय नहीं सूझता और सब रास्ते बंद हो जाते है तब विषाद उत्पन्न होता है। क्योंकि अर्जुन की यह समस्या उसकी मंद बुद्धि की क्षमता से अधिक बड़ी है

और उसका लौकिक ज्ञान उसे दुख के महासागर में से जिसमें वह स्वयं को डूबा हुआ पाता है से निकालने के लिए अपर्याप्त है।

श्रीकृष्ण को गुरु के रूप में स्वीकार कर अर्जुन अब अपनी दयनीय दशा प्रकट करने के लिए अपना हृदय उनके सम्मुख उड़ेल देता है। अर्जुन की इस दशा को उत्तम नहीं कहा जा सकता। कभी-कभी हमें भी अपनी जीवन यात्रा में निरंतर ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। जब हम सुख की कामना करते हैं तब हमें दुख मिलता है।

हम ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं किन्तु हम अज्ञान के अंधकार को दूर करने में समर्थ नहीं हो पाते। हम सच्चा प्रेम पाने के लिए तरसते हैं किन्तु हमें बार-बार निराशा मिलती है। हमारे कॉलेज की डिग्रियाँ, अर्जित ज्ञान और सांसारिक छात्रवृत्तियाँ हमारे जीवन की इन जटिलताओं का समाधान नहीं कर सकतीं। हमें जीवन की उलझनों का समाधान करने के लिए दिव्य ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। दिव्य ज्ञान का कोष हमें तभी मिलता है जब हम सच्चे गुरु को खोज लेते हैं जो सदैव इन्द्रियातीत रहता है, केवल हमें विनम्रतापूर्वक उससे ज्ञान प्राप्त करने के लिए उद्यत हों। अर्जुन इसी मार्ग का अनुसरण करने का निर्णय करता है।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Jan, 04:05


It is very important to generate a good attitude, a good heart, as much as possible. From this, happiness in both the short term and the long term for both yourself and others will come.

यह ज़रूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण और ह्रदय जितना संभव हो अच्छा करें. इसी से हमारे और अन्य लोगों के जीवन में, अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में ही खुशियाँ आयंगी.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 20:05


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः।
यच्छ्रेयः स्यानिश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥7॥

भावार्थ
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया हूँ और गहन चिन्ता में डूब कर कायरता दिखा रहा हूँ। मैं आपका शिष्य हूँ और आपके शरणागत हूँ। कृपया मुझे निश्चय ही यह उपदेश दें कि मेरा हित किसमें है।

व्याख्या
भगवद्गीता का यह क्षण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जब प्रथम बार अर्जुन, जो श्रीकृष्ण का परम मित्र और चचेरा भाई था, भगवान श्रीकृष्ण को अपना गुरु बनने की प्रार्थना करता है। अर्जुन श्रीकृष्ण के सम्मुख यह स्वीकार करता है कि उस पर 'कार्पण्यदोष' हावी हो गया है या उसका आचरण कायरों जैसा हो गया है और इसलिए वह श्रीकृष्ण को अपना गुरु बनने और उसे धर्म के पथ पर चलने का उपदेश देने के लिए निवेदन करता है। सभी वैदिक ग्रन्थ एक स्वर से घोषणा करते हैं कि आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से हमें अपने आत्मकल्याण के लिए दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है।

तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।।

(मुण्डकोपनिषद्-1.2.12)

"परम सत्य को जानने के लिए गुरु की खोज करनी होगी, जो धर्मग्रन्थों का ज्ञाता हो और जो व्यावहारिक रूप से परब्रह्म में स्थित हो चुका हो।"

तस्माद् गुरुं प्रपद्येत जिज्ञासुः श्रेय उत्तमम्।

शाब्दे पर च निष्णातं ब्रह्मण्युपशमाश्रयम्।।

(श्रीमद्भागवतम्-11:3:21)

"सत्य की खोज करने वालों को अध्यात्मिक गुरु के प्रति पूर्ण शरणागत होना चाहिए जो वैदिक ग्रन्थों के सार को भलीभांति समझता है और भौतिक संसार की उपेक्षा कर भगवान के पूर्ण शरणागत होता है" रामचरितमानस में वर्णन किया गया है:

गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई।
जौं बिरंचि संकर सम होई।

"यहाँ तक कि आध्यात्मिक ज्ञान में उन्नत साधक भी बिना गुरु की कृपा के इस मायारूपी संसार के भवसागर को पार नहीं कर सकते।" श्रीकृष्ण ने स्वयं गीता के श्लोक संख्या 4:34 में वर्णन किया है-"सत्य को जानने के लिए गुरु की शरण में जाओ, श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करो और उनसे तत्त्व ज्ञान सीखो। ऐसा सिद्ध संत महापुरुष आपको ज्ञान देगा क्योंकि वह यर्थाथ को जानता है।" ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की शरण में जाने की अनिवार्यता सिद्ध करने के लिए श्रीकृष्ण भी गुरु की शरण में गए थे। अपनी युवावस्था में श्रीकृष्ण चौसठ कलाओं की विद्या प्राप्त करने के लिए सांदीपनी गुरु के आश्रम में रहे। श्रीकृष्ण के सहपाठी सुदामा ने इस विषय पर निम्न प्रकार से टिप्पणी की है।

यस्यच्छन्दोमयं ब्रह्म देह आवपनं विभो।
श्रेयसां तस्य गुरुषु वासोऽत्यन्तविडम्बनम्।।

(श्रीमद्भागवतम् 10:80:45)

"हे श्रीकृष्ण! वेद आपके शरीर के समान हैं, इनमें प्रकट ज्ञान आप ही हैं। इसलिए आपको गुरु बनाने की क्या आवश्यकता पड़ी, फिर भी यदि आप गुरु से शिक्षा प्राप्त करने का अभिनय कर रहे हो तो यह केवल आपकी दिव्य लीला है।" वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण जगत के आदि गुरु हैं क्योंकि वे भौतिक संसार के सबसे पहले जन्मे ब्रह्मा के भी गुरु हैं। उन्होंने हमारे कल्याण के लिए यह लीला रची और अपने इस दृष्टांत द्वारा हमें शिक्षित किया कि हमारी आत्मा पर माया हावी है और अज्ञान को दूर करने के लिए हमें गुरु की आवश्यकता है। इस श्लोक मे अर्जुन एक शिष्य के रूप में श्रीकृष्ण के समक्ष आत्मसर्मपण कर उन्हें अपना गुरु स्वीकार करते हुए उसे उचित मार्ग दिखाने के लिए ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना करता है।

जय श्री कृष्ण

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 19:50


जय श्री राधेकृष्ण.........
"समय और स्थिति कभी भी बदल सकते हैं। कभी किसी का अपमान मत करो व कभी किसी को कम मत समझो। आप शक्तिशाली हो पर समय आपसे भी अधिक शक्तिशाली है...!!!"

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:38


हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए |

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं | इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं. उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता |

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बाईं और जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ |

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ |

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की शरण लेता हूँ |

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ |

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥
मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं |
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥
‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ | हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें |

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(शिव पार्वती से बोले –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं | मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ |

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:37


खोलते हुए पानी मे जिस तरह प्रतिबिंब नहीं देखा जा सकता उसी तरह क्रोध में सच दिखाई नहीं देता

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:36


इंसान को इंसान धोखा नहीं देता;
बल्कि इंसान को उसकी उम्मीदें धोखा देती है, जो वो दूसरों से रखता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:36


मुश्किलों के अगल-बगल ही मदद छिपी होती है जैसे काँटों की बगल में थोड़ी सी जगह उन्हें थामने के लिये।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:36


अच्छे लोग थोड़ी सी मदद पाकर कृतज्ञता प्रकट करने लगते हैं, जबकि बुरे मदद पाकर कृतघ्न हो जाते हैं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:35


पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 05:35


गले पर गिरधारी लिख दो ,
मुख पर मुरली वाला श्याम ,,
लिख दो मारे रोम रोम में राम नाम ,
रमापति लिख दो जय श्री राम ...!!

जय श्री राम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Jan, 02:44


If you can, help others; if you cannot do that, at least do not harm them.

यदि आप दूसरों की मदद कर सकते हैं, तो अवश्य करें; यदि नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उन्हें नुकसान नही पहुचाइए.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Jan, 18:09


हर इंसान दुर्योधन है

लगभग सभी इंसान भगवान की पूजा अपने स्वार्थ के लिए कर रहा है कोई भगवान से GF मांग रहा है तो कोई भगवान से BF कोई पति मांग रहा तो कोई अपने लिए पत्नी किसीको सरकारी नौकरी चाहिए तो किसीको बंगला गाड़ी।

हमने भगवान से भगवान को मांगा ही नहीं कभी। हमने भगवान से भोग की वस्तुओं को मांगा है सिर्फ

यहां लोगो को समझना होगा आपको जो मिल रहा है या जो मिलेगा और जो मिला है सब आपके पूर्व जन्म के पाप और पुण्य के हिसाब से मिलेगा। और आज जो आप पूजा पाठ यज्ञ हवन कर रहे होंगे उसका फल आपको पुराना पाप नष्ट होने पर ही मिलेगा।

मनुष्य के अंदर सब्र नहीं है वो अर्जुन की तरह कृष्ण को नहीं चाहता वह दुर्योधन की तरह सिर्फ अपना स्वार्थ चाहत है और यदि उसका स्वार्थ पूरा नहीं होता वह भगवान बदल देता है या भगवान को कोसता है।

माता पार्वती ने शिव को को पाने के लिए ३००० वर्ष तक तपस्या की थी यहां ३ महीने पहले किसीको BF मिल गया या ३ साल पहले तो सामने वाली खुदको पार्वती बनने लगेगी और यह कहना शुरू कर देगी मुझे वो क्यों नहीं मिला भगवान में मेरे साथ बुरा क्यों किया भगवान मुझे इससे क्यों मिलाया पर अपना कर्म नहीं दिखेगा किसीको।

भगवान को दोष देने से पहले इंसान को खुदके अंदर झांकना होगा।

और भगवान तुमको संसार देने के लिए नहीं बैठे है भगवान तुमको परमधाम देने के लिए है।

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Jan, 04:12


उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गये, दो इन्तिज़ार में...

ऐसी ही कहानी है हम इन्सानों की
ज़िन्दगी में कुछ हाथ आता नहीं
आशाएँ बहुत हैं,
सपने बहुत हैं
लेकिन हाथ में सिर्फ़ राख ही लगती है
आशाओं की,
सपनों की धूल ही लगती है
औऱ जाते वक़्त ज़फर के शब्द
अधिकाँशतः सबके लिए सही सिद्ध होते हैं
चार दिन मिले थे ज़िन्दगी के ;
दो आकाँक्षाओं में बीत गये,
दो उनकी पूर्ति की प्रतीक्षा में
न तो कभी कुछ पूरा होता है,
न कहीं पहुँचते हैं
जीवन ऐसे ही बीत जाता है ---
व्यर्थ में,
असार में

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Jan, 03:33


Happiness is not something ready made. It comes from your own actions.

प्रसन्नता पहले से निर्मित कोई चीज नहीं है..ये आप ही के कर्मों से आती है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Jan, 17:39


बहुत जरूरी है जिंदगी में अकेलापन भी, क्योंकि यही वो समय है जहां हमारी मुलाक़ात खुद से होती है…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Jan, 16:23


तू रामजी का होकर रामजी को पुकार..

नाम-जपकी खास विधि है-भगवान्‌का होकर भगवान्‌का नाम लें। केवल भगवान् ही हमारे हैं और 'हम भगवान्‌के ही हैं; संसार हमारा नहीं है और हम संसारके नहीं हैं- यह अगर पक्का विचार हो जाय तो तत्काल लाभ होता है। गोस्वामीजी महाराजने कहा है-
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु।
होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥

अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई बात आज सुधर जाय और आज भी अभी-अभी, इसी क्षण सुधर जाय। कैसे सुधर जाय ? तो कहते हैं कि तू रामजीका होकर रामजीको पुकार। परन्तु हमारेसे भूल यह होती है कि हम संसारके होकर भगवान्‌को पुकारते हैं। संसारके काम-धन्धोंके कारण वक्त नहीं मिलता, हम तो संसारी आदमी हैं, कलियुगी जीव हैं- इस प्रकार अपने- आपको संसारी और कलियुगी मानोगे तो आपपर संसारका और कलियुगका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा; क्योंकि उनके साथ आपने सम्बन्ध जोड़ लिया। बिजलीके तारसे सम्बन्ध जुड़ जाता है तो करेण्ट आ जाता है, ऐसे ही संसार और कलियुगसे सम्बन्ध जोड़ेंगे तो उनका असर जरूर आयेगा। कहते हैं, महाराज ! हम तो खाली राम-राम करते हैं, तो ठोस भरा हुआ क्यों नहीं करते भाई ? मानो भगवान्‌के नाममें तो खालीपना है और सम्बन्ध हमारा संसार और कलियुगसे है! यह बहुत बड़ी गलती है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Jan, 04:04


दर्पण जब चेहरे का दाग दिखाता है तब हम दर्पण नहीं तोड़ते बल्कि चेहरे पर लगे दाग को साफ करते हैं। उसी प्रकार हमारी कमी बताने वाले पर क्रोध करने के बजाय हमें अपनी कमी दूर करनी चाहिए।

आज से हम अपनी कमियों को दूर करते चले...

When the mirror shows dirt on our face, we don't break the mirror, instead we clean our face...In the same way, we should not get angry with those who point out our flaws, instead we should rectify our flaws...!

TODAY ONWARDS LET'S keep rectifying our shortcomings.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Jan, 03:35


श्रीकृष्ण कहते हैं -- राधा मुझे इतनी अधिक प्रिय हैं
कि --

राधा से भी लगता मुझको अधिक
मधुर प्रिय
राधा-नाम !
'राधा' शब्द कान में पड़ते ही खिल उठती हिय-
कली तमाम !!
मूल्य नित्य निश्चित है मेरा प्रेम-प्रपूरित राधा-
नाम !
चाहे जो खरीद ले, ऐसा, मुझे सुना कर
राधा नाम !!
नारायण, शिव, ब्रह्मा, लक्ष्मी, दुर्गा, वाणी मेरे
रूप !
प्राण-समान सभी प्रिय मेरे, सबका मुझमें भाव
अनूप !!
पर राधा प्राण प्राणाधिक मेरी अतिशय, प्रिय
प्रियजन सिरमौर !
राधा-सा कोइ ना कहीं है मेरा प्राणाधिक
प्रिय और !!
!! जय जय श्री राधे !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Jan, 03:00


मैं उस गुरु के लिए न्योछावर हूँ, जो भगवान के उपदेशों का पाठ करता है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Jan, 18:13


शिव राम

भगवान् शंकर और विष्णु इन दोनोंका आपसमें बड़ा प्रेम है । गुणोंके कारणसे देखा जाय तो भगवान् विष्णुका सफेद रूप होना चाहिये और भगवान् शंकरका काला रूप होना चाहिये; परन्तु भगवान् विष्णुका श्याम वर्ण है और भगवान् शंकरका गौर वर्ण है, बात क्या है । भगवान् शंकर ध्यान करते हैं भगवान् विष्णुका और भगवान् विष्णु ध्यान करते हैं भगवान् शंकरका । ध्यान करते हुए दोनोंका रंग बदल गया । विष्णु तो श्यामरूप हो गये और शंकर गौर वर्णवाले हो गये‒‘कर्पूरगौरं करुणावतारम् ।’

अपने ललाटपर भगवान् रामके धनुषका तिलक करते हैं शंकर और शंकरके त्रिशूलका तिलक करते हैं रामजी । ये दोनों आपसमें एक-एकके इष्ट हैं । इस वास्ते इनमें भेद-बुद्धि करना, तिरस्कार करना, अपमान करना बड़ी गलती है । इससे भगवन्नाम महाराज रुष्ट हो जायँगे । इस वास्ते भाई,भगवान्‌के नामसे लाभ लेना चाहते हो तो भगवान् विष्णुमें और शंकरमें भेद मत करो।

कई लोग बड़ी-बड़ी भेद-बुद्धि करते हैं । जो भगवान् कृष्णके भक्त हैं, भगवान् विष्णुके भक्त हैं, वे कहते हैं कि हम शंकरका दर्शन ही नहीं करेंगे । यह गलतीकी बात है । अपने तो दोनोंका आदर करना है । दोनों एक ही हैं । ये दो रूपसे प्रकट होते हैं‒‘सेवक स्वामि सखा सिय पी के ।’

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 12:00


नकारात्मक लोगो से हमेशा दूर रहना चाहिए,


क्योंकि उनके पास हर समाधान के लिए,
एक नया परेशानी रहता है। 

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 09:42


अगर मुस्कुराहटों के लिए ईश्वर को धन्यवाद नहीं दिया तो आंखो में आए आंसुओ के लिए शिकायत का हक कैसे जता सकते हैं जब सब अच्छा हो रहा होता है तो कितनी शान से कहते हैं कि यह "मैंने" किया है जब कोई परेशानी आती है तो भगवान को दोष क्यों देना कि तुमने यह क्या किया जब अच्छे के लिए धन्यवाद नहीं तो फिर बुरे के लिए शिकायत क्यों अन्धा वह नहीं है जिसकी आँख में ज्योति नहीं बल्कि अन्धा तो वह है जिसकी अभिमान के कारण अपने दोषों पर दृष्टि ही नहीं जाती जीवन में गलत रास्ते गलत लोग गलत परिस्थितियां गलत अनुभव भी जरूरी होते हैं यही हमें बतातें है कि हमारे लिए सही क्या है किसी भी क्लास में नहीं पढ़ाया जाता है कि कैसे बोलना चाहिए लेकिन जिस प्रकार से हम बोलते हैं वह तय कर देता है कि हम किस क्लास के हैं

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 08:18


जब हम जन्म लेते हैं
तो हमारे पास साँसें तो होती हैं
पर कोई नाम नहीं होता है
औऱ जब हमारी मृत्यु होती है
तो हमारे पास नाम तो होता है
पर साँसें नहीं होतीं !
इस साँस औऱ नाम के बीच की
यात्रा को जीवन कहते हैं !

अतः

न किसी के अभाव में जियें
न किसी के प्रभाव में जियें
यह ज़िन्दगी है हमारी
अपने स्वभाव से जियें !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 08:00


इच्छा

एक बहुत श्रेष्ठ, बड़ी सुगम, बड़ी सरल बात है । वह यह है कि किसी तरहकी कोई इच्छा मत रखो । न परमात्माकी, न आत्माकी, न संसारकी, न मुक्तिकी, न कल्याणकी, कुछ भी इच्छा मत करो और चुप हो जाओ । शान्त हो जाओ । कारण कि परमात्मा सब जगह शान्तरूपसे परिपूर्ण है । स्वतः-स्वाभाविक सब जगह परिपूर्ण है । कोई इच्छा न रहे, किसी तरहकी कोई कामना न रहे तो एकदम परमात्माकी प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान हो जाय, पूर्णता हो जाय !

यह सबका अनुभव है कि कोई इच्छा पूरी होती है, कोई नहीं होती । सब इच्छाएँ पूरी हो जायँ यह नियम नहीं है । इच्छाओं का पूरा करना हमारे वशकी बात नहीं है, पर इच्छाओं का त्याग करना हमारे वशकी बात है । कोई भी इच्छा, चाहना नहीं रहेगी तो आपकी स्थिति स्वतः परमात्मामें होगी । आपको परमात्मतत्त्व का अनुभव हो जायगा । कुछ चाहना नहीं, कुछ करना नहीं, कहीं जान नहीं, कहीं आना नहीं, कोई अभ्यास नहीं । बस, इतनी ही बात है । इतनेमें ही पूरी बात हो गयी ! इच्छा करनेसे ही हम संसारमें बँधे हैं । इच्छा सर्वथा छोड़ते ही सर्वत्र परिपूर्ण परमात्मामें स्वतः-स्वाभाविक स्थिति है ।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 07:51


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥3॥

भावार्थ
हे पार्थ! अपने भीतर इस प्रकार की नपुंसकता का भाव लाना तुम्हें शोभा नहीं देता। हे शत्रु विजेता! हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो और युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।

व्याख्या
ज्ञानोदय के मार्ग पर सफलतापूर्वक कदम रखने के लिए उच्च आत्मबल और नैतिकता का होना आवश्यक है। जिसके लिए किसी मनुष्य को आशावान, उमंगी और ऊर्जावान बनकर आलस्य, स्वछन्दता की प्रवृत्ति, अज्ञान और आसक्ति जैसी लौकिक मानसिकता पर विजय प्राप्त करना आवश्यक होता है। श्रीकृष्ण एक योग्य गुरु हैं और इसलिए अर्जुन को फटकारते हुए वे अब उसे परिस्थितियों का सामना करने के लिए प्रोत्साहित कर उसके आत्मबल को बढ़ाते हैं। अर्जुन को पृथा पुत्र (कुन्ती का दूसरा नाम) के नाम से संबोधित करते हुए श्रीकृष्ण उसे अपनी माता कुन्ती का स्मरण करने का आग्रह करते हैं। कुन्ती ने स्वर्ग के देवताओं के राजा इन्द्र की उपासना की थी और इन्द्र के आशीर्वाद से अर्जुन का जन्म हुआ था इसलिए वह इन्द्र के समान असाधारण बल और पराक्रम से सम्पन्न था। श्रीकृष्ण उसे इन सबका स्मरण करवाते हुए प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह ऐसी दुर्बलता को स्वीकार न करे जो उसके यशस्वी पूर्वजों के अनुरूप नहीं है। श्रीकृष्ण अर्जुन को पुनः परन्तप अर्थात 'शत्रुओं का विजेता' के संबोधन द्वारा उसे क्षत्रिय धर्म या महायोद्धा के कर्तव्यों का पालन करने की इच्छा का त्याग करने वाले अपने भीतर उत्पन्न हुए शत्रु का दमन करने की प्रेरणा देते हैं।श्रीकृष्ण यह स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि अर्जुन जिस प्रकार का मनोभाव व्यक्त कर रहा है वह न तो नैतिक कर्तव्य है और न ही वास्तविक संवेदना है, अपितु यह विलाप और मोह है। दुर्बल मानसिकता ही इसकी जड़े हैं। यदि अर्जुन का आचरण वास्तव में ज्ञान और करुणा पर आधारित था तब उसे न तो किसी प्रकार की व्यथा और न ही शोक की अनुभूति होनी चाहिए।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 07:39


प्रभु के आश्रय

एक बार एक राजा नगर भ्रमण को गया तो रास्ते में क्या देखता है कि एक छोटा बच्चा माटी के खिलौनो को कान में कुछ कहता फिर तोड कर माटी में मिला रहा है। राजा को बडा अचरज हुआ तो उसने बच्चे से पूछा-'तुम ये सब क्या कर रहे हो ?'

बच्चे ने जवाब दिया-'मैं इन से पूछता हूँ, कभी राम नाम जपा ? और माटी को माटी में मिला रहा हूँ।' राजा ने सोचा इतना छोटा सा बच्चा इतनी ज्ञान की बात। राजा ने बच्चे से पूछा- 'तुम मेरे साथ मेरे राजमहल में रहोगे ?'

बच्चे ने कहा-'जरूर रहूँगा पर मेरी चार शर्त हैं-'जब मैं सोऊँ तब तुम्हें जागना पडेगा। जब मैं भोजन करूँगा तुम्हें भूखा रहना पडेगा, मैं कपड़े पहनूँगा मगर तुम्हें नग्न रहना पडेगा और जब मैं कभी मुसीबत में होऊ तो तुम्हें अपने सारे काम छोड़ कर मेरे पास आना पड़ेगा। अगर आपको ये शर्तें मंजूर हैं तो मैं आपके राजमहल में चलने को तैयार हूँ।' राजा ने कहा-'ये तो असम्भव है।'

बच्चे ने कहा-'राजन तो मैं उस परमात्मा का आसरा छोड़

कर आपके आसरे क्यों रहूँ, जो खुद नग्न रह कर मुझे पहनाता है। खुद भूखा रह कर मुझे खिलाता है। खुद जागता है और मैं निश्चिंत सोता हूँ, और जब मैं किसी मुश्किल में होता हूँ तो वो बिना बुलाए मेरे लिए अपने सारे काम छोड़ कर दौडा आता है।'

कथा का भाव केवल इतना ही है कि हम लोग सब कुछ जानते समझते हुए भी बेकार के विषय विकारो में उलझ कर परमात्मा को भुलाए बैठे हैं जो हमारी पल-पल सम्भाल कर रहे हैं उस प्यारे के नाम को भूलाए बैठे हैं।

सीताराम

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Jan, 05:15


सबसे महान सुख और स्थायी शांति तब प्राप्त होती है जब कोई अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देता है.

@bhagwat_geetakrishn

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Jan, 18:47


आँखो का नूर ना सही पर किसीकी आँखों का आँसू ना बनो

क्योंकि
जितना दुआ मे असर होता है उतना ही बद्दुआ में कहर
ऊपर वालेकी लाठी मे देर है अंधेर नही

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Jan, 18:45


हाथ छुडाए जात हो,,,निबल जान के मोए......!

हृदय से जब जाओ तो,,,सबल मैं जानू तोय...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Jan, 18:43


गंगा जी मे वही पाप धुलते है जो गलती में हो जाए


योजना बना कर किए गए पाप तो यमराज के लठ से ही धुलेंगे
🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Jan, 18:40


ईश्वर को अपना वकील,
बनाने वाला व्यक्ति जिंदगी,
का हर मुकदमा जरूर जीतता है,
वो भी मुफ्त में😎

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Jan, 11:30


नारी का भी समान अधिकार है

सप्तऋषियों में एक ऋषि भृगु थे, वो स्त्रियों को तुच्छ समझते थे। वो शिवजी को गुरुतुल्य मानते थे, किन्तु माँ पार्वती को वो अनदेखा करते थे।एक तरह से वो माँ को भी आम स्त्रियों की तरह साधारण और तुच्छ ही समझते थे।

महादेव भृगु के इस स्वभाव से चिंतित और खिन्न थे। एक दिन शिव जी ने माता से कहा, आज ज्ञान सभा में आप भी चले।

माँ शिव जी के इस प्रस्ताव को स्वीकार की और ज्ञान सभा में शिव जी के साथ विराजमान हो गई।

सभी ऋषिगण और देवताओ ने माँ और परमपिता को नमन किया और उनकी प्रदक्षिणा की और अपना अपना स्थान ग्रहण किआ किन्तु भृगु माँ और शिव जी को साथ देख कर थोड़े चिंतित थे, उन्हें समझ नही आ रहा था कि वो शिव जी की प्रदक्षिणा कैसे करे।

बहुत विचारने के बाद भृगु ने महादेव जी से कहा कि वो पृथक खड़े हो जाये। शिव जी जानते थे भृगु के मन की बात।

वो माँ को देखे, माता उनके मन की बात पढ़ ली और वो शिव जी के आधे अंग से जुड़ गई और अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हो गई।

अब तो भृगु और परेशान, कुछ पल सोचने के बाद भृगु ने एक राह निकाली। भवरें का रूप लेकर शिवजी के जटा की परिक्रमा की और अपने स्थान पर खड़े हो गए।

माता को भृगु के ओछी सोच पे क्रोध आ गया। उन्होंने भृगु से कहा- भृगु तुम्हे स्त्रियों से इतना ही परहेज है तो क्यूँ न तुम्हारे में से स्त्री शक्ति को पृथक कर दिया जाये, और माँ ने भृगु से स्त्रीत्व को अलग कर दिया।

अब भृगु न तो जीवितों में थे न मृत थे। उन्हें आपार पीड़ा हो रही थी, वो माँ से क्षमा याचना करने लगे, तब शिव जी ने माँ से भृगु को क्षमा करने को कहा।

माँ ने उन्हें क्षमा किया और बोली - संसार में स्त्री शक्ति के बिना कुछ भी नही। बिना स्त्री के प्रकृति भी नही पुरुष भी नही। दोनों का होना अनिवार्य है और जो स्त्रियों को सम्मान नही देता वो जीने का अधिकारी नही।

आज संसार में अनेकों ऐसे सोच वाले लोग हैं। उन्हें इस प्रसंग से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। वो स्त्रियों से उनका सम्मान न छीने। खुद जिए और स्त्रियों के लिए भी सुखद संसार की व्यवस्था बनाए रखने में योगदान दें।

जय श्री सीता

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Jan, 11:26


लोग बस इतना ही सोचते हैं, धन कमाना, खाना पीना और सो जाना । कोई यह नहीं सोचता, कि हमारा अगला जन्म भी होगा । हमें हमारे कर्मों का हिसाब भी ईश्वर को देना पडेगा । ऐसा भी सोचें । आपके कर्मों में सुधार आएगा । आपका भविष्य अच्छा बनेगा ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 18:00


हे ईश्वर मुझे आशीर्वाद दें कि मैं कभी अच्छे कर्म करने में संकोच ना करूँ.

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Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 17:02


!! ग्वालन की शिक्षा !!

एक बार एक ग्वालन दूध बेच रही थी और सबको दूध नाप नाप कर दे रही थी। उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो ग्वालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बर्तन दूध से भर दिया।

वहीं थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला लेकर मनको को गिन गिन कर माला फेर रहा था। तभी उसकी नजर ग्वालन पर पड़ी और उसने ये सब देखा और पास ही बैठे व्यक्ति से सारी बात बताकर इसका कारण पूछा।

उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस ग्वालन ने बिना नाप के दूध दिया है वह उस नौजवान से प्रेम करती है। इसलिए उसने उसे बिना नाप के दूध दे दिया। यह बात साधु के दिल को छू गयी और उसने सोचा कि एक दूध बेचने वाली ग्वालन जिससे प्रेम करती है तो उसका हिसाब नहीं रखती और मैं अपने जिस ईश्वर से प्रेम करता हूँ, उसके लिए सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेरता हूँ। मुझसे तो अच्छी यह ग्वालन ही है और उसने माला तोड़कर फेंक दिया।

शिक्षा:-
जीवन भी ऐसा ही है। जहाँ प्रेम होता है वहाँ हिसाब किताब नहीं होता है और जहाँ हिसाब किताब होता है वहाँ प्रेम नहीं होता है, सिर्फ व्यापार होता है..!!

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 16:43


प्रश्न‒भूत-प्रेतकी बाधाको दूर करनेके क्या उपाय हैं?

उत्तर‒प्रेतबाधाको दूर करनेके अनेक उपाय हैं; जैसे‒

(१) शुद्ध पवित्र होकर, सामने धूप जलाकर पवित्र आसनपर बैठ जाय और हाथमें जलका लोटा लेकर‘नारायणकवच’ (श्रीमद्भागव, स्कन्ध ६, अध्याय ८ में आये) का पूरा पाठ करके लोटेपर फूँक मारे । इस तरह कम-से-कम इक्कीस पाठ करे और प्रत्येक पाठके अन्तमें लोटेपर फूँक मारता रहे । फिर उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे और कुछ जल उसके शरीरपर छिड़क दे ।

(२) गीताप्रेससे प्रकाशित ‘रामरक्षास्तोत्र’ को उसमें दी हुई विधिसे सिद्ध कर ले । फिर रामरक्षास्तोत्रका पाठ करते हुए प्रेतबाधावाले व्यक्तिको मोरपंखोंसे झाड़ा दे ।

(३) शुद्ध-पवित्र होकर ‘हनुमानचालीसा’ के सात,इक्कीस या एक सौ आठ बार पाठ करके जलको अभिमन्त्रित करे । फिर उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे ।

(४) गीताके ‘स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या....’ (११ । ३६)‒इस श्लोकके एक सौ आठ पाठोंसे अभिमन्त्रित जलको भूतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे ।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 16:40


प्रश्न रास्ते में अर्थी का दिखना शुभ या अशुभ


• रास्ते में अर्थी का दिखना बहुत शुभ संकेत होता है।

• अर्थी दिखे तो रुककर हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए ।

• मान्यता है की मरने वाला व्यक्ति आपके सारे दुख अपने साथ ले जाता है।

• कहते है की शिवजी की बारात निकलने से पहले एक अर्थी निकली थी।

• इसलिए जिस कार्य से आप जा रहे है वह कार्य सफल हो जायेगा

वैसे भी भगवान की ओर जाने वाली अंतिम यात्रा भला अशुभ कैसे हो सकता है।

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 16:35


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

श्रीभगवानुवाच।
कुतस्तवा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टमस्वय॑मकीर्तिकरमर्जुन॥2॥

भावार्थ
परमात्मा श्रीकृष्ण ने कहाः मेरे प्रिय अर्जुन! इस संकट की घड़ी में तुम्हारे भीतर यह विमोह कैसे उत्पन्न हुआ? यह सम्माननीय लोगों के अनुकूल नहीं है। इससे उच्च लोकों की प्राप्ति नहीं होती अपितु अपयश प्राप्त होता है।

व्याख्या
हमारे पवित्र ग्रन्थों में 'आर्य' शब्द का प्रयोग किसी प्रजाति या जाति समूह के लिए नहीं किया गया है। मनु स्मृति में आर्य शब्द की परिभाषा एक परिपक्व और सभ्य मानव के रूप में की गई है। 'आर्यन' 'भद्र पुरूष' जैसा संबोधन सबके कल्याण की भावना की ओर संकेत करता है। वैदिक धर्म ग्रन्थों का उद्देश्य मानव को सभी प्रकार से श्रेष्ठ 'आर्य' बनने का उपदेश देना है। श्रीकृष्ण अर्जुन की वर्तमान मानसिक स्थिति को इन आदर्शों के प्रतिकूल पाते हैं और इसलिए उसकी व्याकुलता को ध्यान में रखते हुए वह उसे फटकारते हुए समझाते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में इस आदर्शवादी अवस्था में कैसे रहा जा सकता है। भगवद्गीता या 'भगवान की दिव्य वाणी' वास्तव में यहीं से आरम्भ होती है क्योंकि श्रीकृष्ण, जो अभी तक शांत थे, अब इस श्लोक से बोलना आरम्भ करते हैं। परमात्मा पहले अर्जुन के भीतर ज्ञान प्राप्त करने की क्षुधा उत्पन्न करते हैं। ऐसा करने के लिए वह यह तर्क देते हैं कि उत्तम पुरुष के लिए इस प्रकार के भ्रम की स्थिति में रहना अपमानजनक और सर्वथा अनुचित है। इसके बाद वे अर्जुन को अवगत करवाते हैं कि मिथ्या-मोह के परिणामों से पीड़ा, अपयश तथा जीवन में असफलता मिलती है और आत्मा का पतन होता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सांत्वना देने के बजाय उसकी वर्तमान मनोदशा को देखते हुए उसे और अधिक व्याकुल करना चाह रहे हैं। जब हम व्याकुल होते हैं तब हमें दुख की अनुभूति होती है क्योंकि यह आत्मा की वास्तविक स्थिति नहीं है। इस असंतोष की अनुभूति यदि उचित दिशा की अग्रसर होती है तब वह वास्तविक ज्ञान की खोज में प्रेरक शक्ति बन कर उभरती है। संदेह का उचित निवारण मनुष्य को पहले से अधिक गूढ ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करता है। इसलिए भगवान कभी-कभी जानबूझकर मनुष्य को कठिनाई में डालते हैं ताकि वह अपनी उलझन को सुलझाने के लिए ज्ञान की खोज करने में विवश हो जाए और जब उसके संदेह का पूरी तरह से निवारण हो जाता है तब वह मनुष्य ज्ञान की उच्चावस्था को प्राप्त कर लेता है।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 11:54


गुस्से की दवा

एक स्त्री थी। उसे बात बात पर गुस्सा आ जाता था। उसकी इस आदत से पूरा परिवार परेशान था। उसकी वजह से परिवार में कलह का माहौल बना रहता था। एक दिन उस महिला के दरवाजे एक साधू आया। महिला ने साधू को अपनी समस्या बताई। उसने कहा, “महाराज! मुझे बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। मैं चाहकर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाती। कोई उपाय बताइये।”
साधू ने अपने झोले से एक दवा की शीशी निकालकर उसे दी और बताया कि जब भी गुस्सा आये।इसमें से चार बूंद दवा अपनी जीभ पर डाल लेना। 10 मिनट तक दवा को मुंह में ही रखना है। 10 मिनट तक मुंह नहीं खोलना है, नहीं तो दवा असर नहीं करेगी।” महिला ने साधू के बताए अनुसार दवा का प्रयोग शुरू किया। सात दिन में ही उसकी गुस्सा करने की आदत छूट गयी। सात दिन बाद वह साधू फिर उसके दरवाजे आया तो महिला उसके पैरों में गिर पड़ी। उसने कहा, “महाराज! आपकी दवा से मेरा क्रोध गायब हो गया। अब मुझे गुस्सा नहीं आता और मेरे परिवार में शांति का माहौल रहता है।”
तब साधू महाराज ने उसे बताया कि वह कोई दवा नहीं थी। उस शीशी में केवल पानी भरा था।

शिक्षा:-

गुस्से का इलाज केवल चुप रहकर ही किया जा सकता है। क्योंकि गुस्से में व्यक्ति उल्टा सीधा बोलता है, जिससे विवाद बढ़ता है। इसलिए क्रोध का इलाज केवल मौन है।

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Jan, 03:42


मामूली बातों में अपना समय बर्बाद न करो, लेकिन जियो, गाओ, नाचो,प्यार करो पूर्णता और अधिकाधिक छलकते हुए जितना कि तुम सक्षम हो।

कोई डर हस्तक्षेप नहीं करेगा और तुम चिंतित नहीं होगे कि कल क्या होगा। आज अपने आप में पर्याप्त है। उसे जीया जाए तो यह इतना भरपूर है;

किसी और चीज के बारे में सोचने के लिये जगह नहीं बचती। न जीयी गयी जिंदगी में, परेशानियां आती हैं और डर आते हैं। सिर्फ जीओ, प्यार करो,और हर पल को परमानंद बनाओ। सभी डर गायब हो सकते हैं।

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 21:24


मानव मन की हमेशा चाहत होती है उसके जीवन में सुख, प्रसन्नता के अवसर मिलते रहे। लेकिन वही अवसर किसी के जीवन से खिलवाड़ कर मिले तो क्या उन्हें स्वस्थ मनोरंजन कहा जा सकता है? संसार के प्रत्येक प्राणी को अपना जीवन जीने का हक मिला हुआ है। "विधि" का न्याय भी इसी का समर्थन करता है। कुछ व्यक्तियों का अति उत्साह या नासमझी प्राणियों के विघात का कारण बनता है तो क्या यह विधि सम्मत न्याय का उल्लंघन नहीं है.....

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 18:46


मैंने कहा गुनहगार हूँ मैं....
श्री राम ने कहा बख्श दूँगा ....
मैंने कहा परेशान हूँ मैं....
श्री राम ने कहा संभाल लूँगा।।
मैने कहा अकेला हूँ मैं ....
श्री राम ने कहा साथ हूँ मैं ....
और मेने कहा आज बहुत उदास हूँ मै.....
श्री राम ने कहा नजर उठा के देख कितने पास हूँ मै ...

👀👀 जय श्री राम💚

🌺🌺 जय श्री राम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 18:44


"राम और कृष्ण का एक ही उद्देश्य है धर्म की रक्षा करना है "
मानव जीवन अनमोल है जो कि मुश्किल से मिलता है | इसे सत्मार्ग में लगाएं | हर दिन लोगो को भक्ति करनी चाहिए और अभिभावकों बच्चो में संस्कार डालने चाहिए |
मीरा साधारण नहीं थी वह राजकुमारी थी | मीरा की माँ मीरा को कम उम्र में ही सत्संग में ले जाती थी | मीरा ने अपने जीवन को बर्बाद नहीं आबाद किया है |
आज के युग में जो लोग छोटे - छोटे वस्त्रो को पहन कर अपने आप को मॉडर्न समझते है | वो मॉडर्न नहीं है बल्कि गंदे परिवेश की ओर आगे बढे रहे है |
संचार क्रांति के इस युग में लोग इंटरनेट और मोबाइल के चक्कर में भटक गए है | जबकि कलयुग में भगवान का नाम मात्र लेने से ही कल्याण संभव है |
मोक्ष का मार्ग पाने के लिए भक्ति के शरण में जाना अति आवश्यक है
मीरा ने कृष्ण की भक्ति में जितना समय लगा था उसका अंश मात्र भक्ति भाव रखने से ही बेड़ा पार हो जायेगा |

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 18:43


किसी को भी इतना कमतर न आंकिये !!!

देखिये दिनों ने मिलके पूरा साल ही खत्म कर दिया.!!
🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 17:29


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग


सञ्जय उवाच।
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥1॥

भावार्थ
संजय ने कहा-करुणा से अभिभूत, मन से शोकाकुल और अश्रुओं से भरे नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर श्रीकृष्ण ने निम्नवर्णित शब्द कहे।

व्याख्या
अर्जुन की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए संजय ने 'कृपया' शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ करुणा या संवेदना है। यह संवेदना दो प्रकार की होती है। एक दैवीय संवेदना होती है जिसका अनुभव भगवान और संत भौतिक जगत में भगवान से विमुखता के कारण कष्ट सह रही मानवीय आत्माओं को देखकर करते हैं। दूसरी दैहिक संवेदना वह होती है जिसका अनुभव हम दूसरों के शारीरिक कष्टों को देखकर करते हैं। लौकिक संवेदना एक श्रेष्ठ मनोभाव है किन्तु यह पूर्ण रूप से निर्देशित नहीं होती। यह किसी वाहन को चला रहे भूख से व्याकुल चालक की ओर ध्यान न देकर वाहन की देख-रेख की चिन्ता करने जैसा है। अर्जुन दूसरी प्रकार की संवेदना का अनुभव कर रहा है। वह युद्ध के लिए एकत्रित अपने शत्रुओं के प्रति लौकिक करुणा से अभिभूत है। गहन शोक से संतप्त अर्जुन की निराशा यह दर्शाती है कि स्वयं उसे संवेदना की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए अन्य लोगों पर करुणा करने का उसका विचार निरर्थक प्रतीत होता है। इस श्लोक में श्रीकृष्ण को मधुसूदन कह कर संबोधित किया गया है क्योंकि उन्होंने मधु नाम के राक्षस का संहार किया था और इसलिए उनका नाम 'मधुसूदन' या 'मधु राक्षस का दमन करने वाला' पड़ गया। यहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन के मन में उत्पन्न संदेह रूपी राक्षस को मारना चाहते हैं जो उसे अपने युद्ध धर्म का पालन करने से रोक रहा है।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 07:36


तुलसीदास और प्रेत

तुलसीदासजी महाराज को भगवद्दर्शन की लगन लगी हुई थी; अतः उन्होंने कहा‒मेरे को भगवान् रामके दर्शन करा दो ! प्रेत ने कहा‒दर्शन तो मैं नहीं करा सकता, पर दर्शन का उपाय बता सकता हूँ । तुलसीदासजी ने कहा‒उपाय ही सही,बता दो । उसने कहा‒अमुक स्थान पर रात में रामायण की कथा होती है । वहाँ पर कथा को सुनने के लिये हनुमान्‌जी आया करते हैं । तुम उनके पैर पकड़ लेना, वे तुमको भगवान्‌ के दर्शन करा देंगे । तुलसीदासजी ने कहा‒वहाँ तो बहुत-से लोग आते होंगे, उनमें से मैं हनुमान्‌जी को कैसे पहचानूँ ? प्रेतने कहा‒हनुमान्‌जी कोढ़ी का रूप धारण करके और मैले-कुचैले कपड़े पहनकर आते हैं तथा कथा समाप्त होनेपर सबके चले जानेके बाद जाते हैं । तुलसीदासजी महाराज ने वैसा ही किया तो उनको हनुमान्‌जीके दर्शन हुए और हनुमान्‌जीने उनको भगवान् रामके दर्शन करा दिये‒
तुलसी नफा पिछानिये, भला बुरा क्या काम ।
प्रेतसे हनुमत मिले, हनुमत से श्री राम ॥

प्रेतोंके नामसे पिण्ड-पानी दिया जाय, ब्राह्मणों को छाता आदि दिया जाय तो वे वस्तुएँ प्रेतों को मिल जाती हैं । परन्तु जिसके नाम से छाता आदि दिया जाय, उसके साथी प्रेत अगर प्रबल होते हैं, तो वे बीचमें ही छाता आदि छीन लेते हैं, उसको मिलने ही नहीं देते । अतः बड़ी सावधानी से,उसके नाम से ही उसके निमित्त ही पिण्ड-पानी आदि दे तो वह सामग्री उसको मिल जाती है ।

सीताराम

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Jan, 07:01


श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

इस अध्याय में अर्जुन अपने सम्मुख उत्पन्न स्थिति का सामना करने में स्पष्ट रूप से अपनी असमर्थता को दोहराता है और युद्ध करने के अपने कर्तव्य का पालन करने से मना कर देता है। तत्पश्चात वह औपचारिक रूप से श्रीकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाने और जिस स्थिति में वह स्वयं को पाता है, उसका सामना करने के लिए उचित मार्गदर्शन प्रदान करने की प्रार्थना करता है। परम प्रभु उससे कहते हैं कि आत्मा, जो शरीर के नष्ट होने पर भी नहीं मरती, के अमरत्व की शिक्षा देकर दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं। आत्मा एक जन्म से दूसरे जन्म में उसी प्रकार से शरीर परिवर्तित करती है जिस प्रकार से मनुष्य पुराने वस्त्र त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है। इसके पश्चात श्रीकृष्ण सामाजिक दायित्त्वों के विषय की ओर आगे बढ़ते हैं। वे अर्जुन को स्मरण कराते हैं कि धर्म की मर्यादा हेतु योद्धा के रूप में युद्ध लड़ना उसका कर्त्तव्य है। वे स्पष्ट करते हैं कि किसी के द्वारा अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करना एक पुण्य का कार्य है जो स्वर्ग जाने का द्वार खोलेगा किन्तु कर्त्तव्यों से विमुख होने से केवल तिरस्कार और अपयश प्राप्त होगा।

लौकिक स्तर पर अर्जुन को प्रेरित करने के पश्चात श्रीकृष्ण गहनता के साथ कर्मयोग के ज्ञान पर प्रकाश डालते हैं। वे अर्जुन को फल की आसक्ति के बिना निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देते हैं। फल की कामना से रहित कर्म करने के विज्ञान को वे 'बुद्धियोग' या 'बुद्धि का योग' नाम देते हैं। बुद्धि का प्रयोग मन को कर्मफल की लालसा करने से रोकने के लिए करना चाहिए। इस चेतना के साथ सम्पन्न किए गए कर्म 'बंधनयुक्त कर्मों' से 'बंधन मुक्त कर्मों' में परिवर्तित हो जाते हैं। अर्जुन दिव्य चेतना में स्थित मनुष्य के लक्षणों के संबंध में जानना चाहता है। श्रीकृष्ण उसे बताते हैं कि किस प्रकार से दिव्य चेतना में स्थित होकर मनुष्य आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त हो जाता है और सभी परिस्थितियों में उसकी इन्द्रियाँ उसके वश में हो जाती हैं और उसका मन सदा के लिए भगवान की भक्ति में तल्लीन हो जाता है। अब वे क्रमानुसार स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार से मानसिक संताप, काम-वासना और लोभ विकसित होता है और किस प्रकार से इनका उन्मूलन किया जा सकता है।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 18:41


श्रीहरिः

बादल बरसने से पहले ये नही सोचता की कहाँ बरसूँ, कहाँ नही?
वह तो सर्वत्र जल वर्षा से भूमि प्लावित करता है।
इसी प्रकार एक प्रेम भरा ह्रदय यह नहीँ सोचता की किसे प्रेम दूँ किसे नही।
वो तो भर भर के उन सब पर प्रेम वर्षा करता है जो उसके संपर्क
में आते है!
ऐसे सुहृदय प्रेमी धन्य है और ऐसे भगवद प्रेमियों की सान्निधय जिन्हें प्राप्त है वो भी धन्य हैं।

जय जय श्री राधे

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 18:33


ये साल 2024 जो खत्म हुआ हैं इससे बहुत लोग़ो की शिकायतें होंगी किसी क़ो किसी शख़्स से शिकायत होगी तो किसी क़ो अपने भगवान से शिकायतें होंगी ।।

ये साल किसी के जीवन में अत्यंत ख़ुशियाँ लाया होगा तो किसी के जीवन में असहनीय पीड़ा ।।

कोई इस वर्ष को ताउम्र याद रखना चाहेगा तो कोई इस वर्ष को अपने जीवन से ऐसे डिलीट करना चाहेगा जैसे मोबाईल फोन को reset किया जाता हैं ।।

कुल मिलाकर कहना यही हैं की हर वक़्त एक जैसा नही होता आज ग़म हैं तो कल ख़ुशियों को सौग़ात भी आयेंगी । पुराने वर्ष में जो तुमने खोया हैं शायद उससे भी बढ़िया तुम्हे इस वर्ष 2025 में मिलेगा ।।

बीती हुई बातों का मलाल छोड़ इस वर्ष में एक नई शुरुआत करने की ज़रूरत होती हैं ।।

खैर 2024 को अब धन्यवाद कहिये और 2025 की नई उम्मीदों के साथ शुरुआत कीजिये ..❤️😊

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 17:52


गुज़रते हुए जीवन का,
एक साल और बीत रहा है,
इसे हंसते हंसते विदा करो,
अच्छा या बुरा जैसा भी था,
पर बीत ही गया आखिर,
जो मिलना था वो मिला,
जो खोना था सो खो दिया,
जिसे जाना था वो चला गया,
जिसे जुड़ना था जुड़ गया,
कोई ऐसा भी बिछड़ा गर,
जो लौटकर ना आएगा कभी,
तो दिल में छुपा लो यादें उसकी,
और समझा लो खुद को,
खोना पाना, मिलना बिछड़ना,
बस यही तो है ज़िंदगी,
इसलिए मन भारी मत करो,
२०२५ की तैयारी करो,
और बीतते हुए २०२४ को,
हंसते हंसते विदा करो..!!

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 17:02


कुदरत के दो रास्ते

एक बच्चा दोपहर में नंगे पैर फूल बेच रहा था। लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन ने उसके पैर देखे; बहुत दुःख हुआ। वह भागकर गया, पास ही की एक दुकान से बूट लेकर के आया और कहा-बेटा ! बूट पहन ले। लड़के ने फटाफट बूट पहने, बड़ा खुश हुआ और उस आदमी का हाथ पकड़ के कहने लगा-आप भगवान हो। वह आदमी घबराकर बोला- नहीं... नहीं... बेटा ! मैं भगवान नहीं। फिर लड़का बोला-जरूर आप भगवान के दोस्त होंगे, क्योंकि मैंने कल रात ही भगवान को अरदास की थी कि भगवानजी, मेरे पैर बहुत जलते हैं। मुझे बूट लेकर के दो। वह आदमी आंखों में पानी लिये मुस्कराता हुआ चला गया, पर वो जान गया था कि भगवान का दोस्त बनना ज्यादा मुश्किल नहीं है। कुदरत ने दो रास्ते बनाए हैं-

देकर जाओ या

छोड़कर जाओ

साथ लेकर के जाने की कोई व्यवस्था नहीं।

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 15:38


प्रश्न‒भूत-प्रेत किन लोगोंके पास नहीं आते ?

उत्तर‒ भूत-प्रेतोंका बल उन्हीं मनुष्यों पर चलता है,जिनके साथ पूर्वजन्म का कोई लेन-देन का सम्बन्ध रहा है अथवा जिनका प्रारब्ध खराब आ गया है अथवा जो भगवान्‌के (पारमार्थिक) मार्ग में नहीं लगे हैं अथवा जिनका खान-पान अशुद्ध है और जो शौच-खान आदि में शुद्धि नहीं रखते अथवा जिसके आचरण खराब हैं । जो भगवान्‌के परायण हैं, भगवन्नामका जप-कीर्तन करते हैं, भगवत्कथा सुनते हैं, खान-पान, शौच-खान आदिमें शुद्धि रखते हैं,जिनके आचरण शुद्ध हैं, उनके पास भूत-प्रेत प्रायः नहीं आ सकते।

जो नित्यप्रति श्रद्धासे गीता, भागवत, रामायण आदि सद्‌ग्रन्थोका पाठ करते हैं, उनके पास भी भूत-प्रेत नहीं जाते । परन्तु कई भूत-प्रेत ऐसे होते हैं, जो स्वयं गीता, रामायण आदिका पाठ करते हैं । ऐसे भूत-प्रेत पाठ करनेवालोंके पास जा सकते हैं, पर उनको दुःख नहीं दे सकते । अगर ऐसे भूत-प्रेत गीता आदिका पाठ करनेवालोंके पास आ जायँ तो उनका निरादर नहीं करना चाहिये; क्योंकि निरादर करनेसे वे चिढ़ जाते हैं ।

जो रोज गंगाजलका चरणामृत लेता है, उसके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते । हनुमानचालीसा अथवा विष्णुसहस्र-नामका पाठ करनेवालेके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते । एक बार दो सज्जन बैलगाड़ीपर बैठकर दूसरे गाँव जा रहे थे । रास्तेमें गाड़ीके पीछे एक पिशाच (प्रेत) लग गया । उसको देखकर वे दोनों सज्जन डर गये । उनमेंसे एक सज्जनने विष्णुसहस्रनामका पाठ शुरू कर दिया । जबतक दूसरे गाँवकी सीमा नहीं आयी, तबतक वह पिशाच गाड़ीके पीछे-पीछे ही चलता रहा । सीमा आते ही वह अदृश्य हो गया । इस तरह विष्णुसहस्रनामके प्रभावसे वह गाडीपर आक्रमण नहीं कर सका ।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 15:30


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक 47

सञ्जय उवाच।

एवमुक्त्वार्जुनः सङ्खये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥47॥

भावार्थ
संजय ने कहा-इस प्रकार यह कह कर अर्जुन ने अपना धनुष और बाणों को एक ओर रख दिया और शोकाकुल चित्त से अपने रथ के आसन पर बैठ गया, उसका मन व्यथा और दुख से भर गया।

व्याख्या
वार्तालाप करते समय मनुष्य प्रायः भावनाओं में बह जाता है और इस प्रकार से अर्जुन ने इस अध्याय के 28वें श्लोक में जिस विषाद को प्रकट किया था, वह अब अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। अर्जुन ने निराशाजनक आत्म समर्पण करते हुए अपने धार्मिक कर्त्तव्य का निर्वहन करने के लिए युद्ध करने के निर्णय को त्याग दिया जोकि आत्म ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति हेतु भगवान के प्रति समर्पण करने की मनोभावना के सर्वथा विपरीत है।

यहाँ इस बिन्दु को स्पष्ट करना उचित होगा कि अर्जुन किसी नवदीक्षित की भांति अध्यात्मिक ज्ञान से वंचित नहीं था। वह स्वर्गलोक में भी रह चुका था और उसने अपने पिता स्वर्ग के सम्राट इन्द्र से शिक्षा प्राप्त की थी। वास्तव में वह पूर्व जन्म में 'नर' था और इसलिए वह अलौकिक ज्ञान से परिपूर्ण था। नर-नारायण एक ही वंश के थे। नर एक शुद्ध आत्मा और नारायण परमात्मा थे। इस तथ्य का प्रमाण महाभारत के युद्ध के पूर्व की इस घटना से मिलता है, जब अर्जुन ने युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को अपने पक्ष के लिए चुना और यादवों की समस्त सेना का त्याग दुर्योधन के लिए किया। उसका दृढ़ विश्वास था कि यदि युद्ध क्षेत्र में भगवान उसके पक्ष की ओर होंगे तो वह कभी पराजित नहीं होगा। भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि वे भावी पीढ़ियों के कल्याणार्थ संसार को भगवद्गीता के दिव्य ज्ञान का उपदेश दें। इसलिए अब इस अनुकूल अवसर को देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने जान बूझकर अर्जुन के मन में व्याकुलता उत्पन्न की।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 15:11


कच्चे कान,शक्की नजर और कमज़ोर मन, सुखी इंसान का जीवन भी नरक बना देता है..

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 15:10


पिता अपने बेटे के साथ पांच-सितारा होटल में प्रोग्राम अटेंड करके कार से वापस जा रहे थे। रास्ते में ट्रेफिक पुलिस हवलदार ने सीट बैल्ट नहीं लगाने पर रोका और चालान बनाने लगे।
पिता ने सचिवालय में अधिकारी होने का परिचय देते हुए रौब झाड़ना चाहा तो हवलदार जी ने कड़े शब्दों में आगे से सीट बैल्ट लगाने की नसीहत देते हुए छोड़ दिया। बेटा चुपचाप सब देख रहा था।
रास्ते में पिता "अरे मैं आइएएस लेवल के पद वाला अधिकारी हूं और कहां वो मामूली हवलदार मुझे सिखा रहा था, मैं क्या जानता नहीं क्या जरुरी है क्या नहीं, बडे अधिकारियों से बात करना तक नहीं आता, आखिर हम भी जिम्मेदारी वाले बड़े पद पर हैं भई !!" बेटे ने खिड़की से बगल में लहर जैसे चलती गाडियों का काफिला देखा, तभी अचानक तेज ब्रेक लगने और धमाके की आवाज आई।

पिता ने कार रोकी, तो देखा सामने सड़क पर आगे चलती मोटरसाइकिल वाले प्रोढ़ को कोई तेज रफ्तार कार वाला टक्कर मारकर भाग गया था। मौके पर एक अकेला पुलिस का हवलदार उसे संभालकर साइड में बैठा रहा था।

खून ज्यादा बह रहा था, हवलदार ने पिता को कहा "खून ज्यादा बह रहा है मैं ड्यूटि से ऑफ होकर घर जा रहा हूं और मेरे पास बाईक नहीं है, आपकी कार से इसे जल्दी अस्पताल ले चलते हैं, शायद बच जाए।"
बेटा घबराया हुआ चुपचाप देख रहा था। पिता ने तुरंत घर पर इमरजेंसी का बहाना बनाया और जल्दी से बेटे को खींचकर कार में बिठाकर चल पड़ा।

बेटा अचंभित सा चुपचाप सोच रहा था कि बड़ा पद वास्तव में कौन सा है !! पिता का प्रशासनिक पद या पुलिस वाले हवलदार का पद जो अभी भी उस घायल की चिंता में वहां बैठा है...

अगले दिन अखबार के एक कोने में दुर्घटना में घायल को गोद में उठाकर 700 मीटर दूर अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाने वाले हवलदार की फोटो सहित खबर व प्रशंसा छपी थी। बेटे के होठों पर सुकुन भरी मुस्कुराहट थी, उसे अपना जवाब मिल गया था।

शिक्षा: इंसानियत का मतलब सिर्फ खुशियां बांटना नहीं होता… बड़े पद का असली मतलब अपने पास आई चुनौतियों का उस समय तक सामना करना होता है, जब तक उसका समाधान नहीं हो जाता। उस समय तक साथ देना होता है जब वो मुसीबत में हो,जब उसे हमारी सबसे ज्यादा ज़रुरत हो… इसलिए हमें कभी भी अपने पद का घमंड नहीं करना चाहिए,हर समय मदद के लिए तैयार होकर अपने पद की गरिमा बनानी चाहिए..!!

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 15:02


संतान को संस्कार दिए बिना ही,

सुविधाएं देना पतन का सबसे बड़ा कारण है...

❤️

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 07:37


2024 के आखिरी दिन....... धन्यवाद्....!!
उन लोगो का जो मुझसे नफरत करते है
क्यों की उन्होंने मुझे मजबुत बनाया...!!

धन्यवाद् उन लोगो का जो मुझसे प्यार करते है क्यों की उन्होंने मेरा दिल बड़ा कर दीया....!!

धन्यवाद् उन लोगो का जो मेरे लिए परेशान हुए... और मुझे बताया की दरअसल वो मेरा बहुत ख्याल रखते है...!!

धन्यवाद् उन लोगो का जिन्होंने मुझे अपना बना के छोड़ दिया और मुझे एहसास दिलाया की दुनिया में हर चीज आखिरी नही होती...!!

धन्यवाद् उन लोगो का जो मेरी जिंदगी में शामिल हुए और बना दीया ऐसा जैसा मैंने सोचा भी नही था...!!

धन्यवाद् मेरे भगवान का जिन्होंने मुझे इन सभी हालातो का सामना करने की हिम्मत दी.

जय_श्री_राम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Dec, 04:25


जब आप अपने अन्दर से अहंकार मिटा देंगे तभी आपको वास्तविक शांति प्राप्त होगी.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Dec, 19:14


आपका कम खर्चा भी
आपकी एक कमाई है
राम राम कहिए
मस्त रहिये 🙏🏻

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Dec, 19:14


हमारे और....ईश्वर के मध्य रिक्त स्थान की पूर्णता है....प्रेम
और
हमारे....ईश्वर.... प्रेम के मध्य के रिक्त स्थान को पूर्ण करते है
पीड़ा....और.....प्रतीक्षा

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Dec, 04:37


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक 20

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥20॥

भावार्थ :
उस समय हनुमान के चिह्न की ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डु पुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर बाण चलाने के लिए उद्यत दिखाई दिया। हे राजन! आपके पुत्रों को अपने विरूद्ध व्यूह रचना में खड़े देख कर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह वचन कहे।

व्याख्या:
इस श्लोक में अर्जुन को कपि-ध्वज कह कर संबोधित किया गया है क्योंकि उसके रथ पर महावीर हनुमान के चिन्ह की ध्वजा प्रदर्शित हो रही थी। इसकी पृष्ठभूमि में एक कथा इस प्रकार है। अर्जुन को एक बार अपनी धनुर्विद्या पर घमण्ड हो गया था और उसने श्रीकृष्ण से कहा कि भगवान श्रीराम के समय वानरों ने भारत से लंका के बीच समुद्र में सेतु बनाने में व्यर्थ ही इतना परिश्रम क्यों किया? यदि वह वहाँ उपस्थित होता तो वह बाणों से सेतु का निर्माण कर देता। श्रीकृष्ण ने उसे इसका प्रदर्शन करने को कहा। अर्जुन ने अपने धनुष से चलाये गये बाणों की बौछार से एक सेतु का निर्माण कर दिया। श्रीकृष्ण ने वीर हनुमान को बुलाया और उन्हें उस सेतु का परीक्षण करने को कहा। जब वीर हनुमान ने उस सेतु पर चलना आरंभ किया तो वह टूटने लगा। तब अर्जुन ने अनुभव किया कि उसके बाणों द्वारा बनाया गया सेतु कभी भी भगवान श्रीराम की सेना के भार को सहने के लिए उपयुक्त नहीं होता और उसने अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। तब वीर हनुमान ने अर्जुन को शिक्षा दी कि कभी भी अपने बल और कौशल का घमंड नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपनी इच्छा से अर्जुन को यह वरदान दिया कि महाभारत के युद्ध के दौरान वह उसके रथ पर आसीन रहेंगे। इसलिए अर्जुन के रथ पर हनुमान के चित्र से अंकित ध्वजा लगाई गई थी जिसके कारण उसका नाम 'कपि-ध्वज' या 'वानर-ध्वज' पड़ गया।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Dec, 03:26


उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया
१. जिसका पुत्र आज्ञाकारी है.
२. जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती है.
३. जिसे अपने धन पर संतोष है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 16:35


अपने मन को इतना काबू कीजिए की
15 घंटे भी लगातार पढ़ना या काम करना
पड़े तो, मन आपको रोक ना पाए.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 06:40


जीवन संतोष

अपने केंद्र को खोजे बिना, यहां किसी प्रकार की संतुष्टि संभव नहीं है। तुम खोजे चले जा सकते हो और जीवन में तुम बहुत कुछ प्राप्त कर लोगे, लेकिन कुछ भी संतुष्ट नहीं करेगा। जब कोई इच्छा पूरी होती है तब क्षण भर के लिए भ्रम होता है। क्षण भर के लिए तुम्हें अच्छा लगता है, लेकिन क्षण भर के लिए। जैसे ही कोई इच्छा पूरी होती है, दस इच्छाएं उसकी जगह ले लेती हैं । फिर से सारी बैचेनी शुरू हो जाती है, फिर से सारा जंजाल शुरू हो जाता है। और यह कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है।

सिर्फ अपने केंद्र को पा लेने पर ही यह प्रक्रिया रुकती है, तब फिर चक्र नहीं चलता। अपने केंद्र पर, घर आ जाने पर, सारी वासनाएं विदा हो जाती हैं--तुम पूरी तरह से, और हमेशा के लिए संतुष्ट हो जाते हो। यह एक क्षणिक संतुष्टि नहीं होती। यह संतोष है, परम संतोष। अपने भीतर घर आ जाना संतुष्ट करता है, वास्तव में संतुष्ट करता है।

जीवन में सभी चीजें वादे हैं, लेकिन झूठे वादे। कभी कुछ मिलता नहीं। धन वादे करता है कि यदि तुम्हारे पास यह होगा तुम्हें मदद मिलेगी। लेकिन लोग धनी से धनी होते चले जाते हैं और प्रसन्नता कभी भी नहीं आती। यह हमेशा क्षितिज की तरह होती है--बहुत भ्रामक। रिश्ते यह भ्रम देते हैं कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और तुम्हारा सारा जीवन आनंदित हो जाएगा, लेकिन ऐसा कभी होता नहीं।

केवल अपने केंद्र को पा लेने के साथ, संतोष होता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 06:37


प्रश्न‒देवोपासना करनेसे क्या लाभ है ?

उत्तर‒ निष्कामभावसे देवताओंका पूजन करनेसे अन्तःकरणकी शुद्धि होती है और वे देवता यज्ञ (कर्तव्यकर्म) की सामग्री भी देते हैं। उस सामग्रीका सदुपयोग करके मनुष्य मनोऽभिलषित वस्तुकी प्राप्ति कर सकते हैं ।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 06:34


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक 19

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥19॥

भावार्थ :
हे धृतराष्ट्र! इन शंखों से उत्पन्न ध्वनि द्वारा आकाश और धरती के बीच हुई गर्जना ने आपके पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण कर दिया।

व्याख्या:
आपके पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण कर दिया। पाण्डव सेना द्वारा बजाए गए विविध प्रकार के शंखों से उत्पन्न भयंकर ध्वनि से कौरव सेना के सैनिकों के हृदय विदीर्ण हो गये जबकि कौरवों की सेना ने जब शंखनाद किया था तब पाण्डवों की सेना पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ा क्योंकि पाण्डवों को भगवान श्रीकृष्ण का आश्रय प्राप्त था। इसलिए उन्हें अपनी सुरक्षा का पूरा भरोसा था। दूसरी ओर कौरवों को केवल अपनी स्वयं की शक्ति और सामर्थ्य पर भरोसा था और अपने अत्याचारों के अपराध बोध की कसक से उनके भीतर पराजित होने का भय व्याप्त हो गया था।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 06:05


इंसान के कपड़े मैले हों तो चलता है पर उसका चरित्र मैला नहीं होना चाहिए

जय_श्री_राम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 05:55


अगर आपके पास ...

प्यार करने वाली फैमिली,
कुछ ख़ास दोस्त,

आपका पसन्दीदा खाना और
सर पर छत है

तो यकीन मानिए जितना आप सोचते हैं,
उससे ज़्यादा अमीर है..

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 05:53


शब्दों से ही लोगों के दिलों पे राज किया जाता है,

चेहरे का क्या, वो तो किसी भी हादसे मे बदल सकता है…

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 05:51


There is no austerity equal to a balanced mind, and there is no happiness equal to contentment; there is no disease like covetousness, and no virtue like mercy.

संतुलित दिमाग जैसी कोई सादगी नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं है, लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं है, और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है.

सीताराम राधेकृष्ण हर हर महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 05:51


भोजन के योग्य पदार्थ और भोजन करने की क्षमता, सुन्दर स्त्री और उसे भोगने के लिए काम शक्ति, पर्याप्त धनराशी तथा दान देने की भावना – ऐसे संयोगों का होना सामान्य तप का फल नहीं है .

सिताराम_राधेकृष्ण_हर_हर_महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Dec, 05:22


लोभ वो अवगुण है, जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 17:34


प्रश्न‒क्या देवोपासना सबके लिये आवश्यक है ?

उत्तर‒जैसे प्राणिमात्रको ईश्वरका स्वरूप मानकर आदर-सत्कार करना चाहिये, ऐसे ही देवताओंको ईश्वरका स्वरूप मानकर उनकी तिथिके अनुसार उनका पूजन करना गृहस्थ और वानप्रस्थके लिये आवश्यक है । परन्तु उनका पूजन कोई भी कामना न रखकर, केवल भगवान् और शास्त्रकी आज्ञा मानकर ही किया जाना चाहिये ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 11:48


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक (16-18)

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥17॥
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्॥18॥

भावार्थ :
हे पृथ्वीपति राजन्! राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्त विजय नाम का शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुर्धर काशीराज, महा योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्रों तथा सुभद्रा के महाबलशाली पुत्र वीर अभिमन्यु आदि सबने अपने-अपने अलग-अलग शंख बजाये।

व्याख्या:
युधिष्ठिर पाण्डवों के सबसे बड़े भाई थे। यहाँ उन्हें राजा कहकर संबोधित किया गया है। उन्होंने 'राजा' कहलाने की उपाधि राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान कर अन्य राजाओं से उपहार एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करने के पश्चात पायी थी। उनके आचरण में राजसी गरिमा और उदारता सदैव टपकती रहती थी फिर चाहे जब वह महलों में रहते थे या अपने निर्वासन काल के दौरान वनों मे रहे।

धृतराष्ट्र को संजय द्वारा 'पृथ्वी का राजा' कहा गया है। देश की रक्षा करना या उसे विनाशकारी युद्धों में उलझाए रखना यह सब राजा के हाथों में होता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से संजय के इस संबोधन का तात्पर्य यह है-"सेनाएं युद्ध की ओर बढ़ रही हैं, हे राजा धृतराष्ट्र केवल आप ही उसे वापिस बुला सकते हैं। आप क्या निर्णय करना चाह रहे हैं?"

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 07:12


भगवान कहते है कि :- मै प्रत्येक जीव के हृदय मे आसीन हूँ और मुझसे ही स्मृति ज्ञान तथा विस्मृति होती है। मे ही वेदो के द्वारा जानने योग्य हूँ। निःसन्देह मे वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदो को जानने वाला हूँ।

जय श्री कृष्णा
जय श्री राधे

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 07:10


बीज राम गुन गन नयन, जल अंकुर पुलकालि। सुकृति सुतन सुखेत बर, बिलसत तुलसी सालि।।

भावार्थ ----- जब परम पुण्यात्मा पुरुष के [पापरहित] निर्मल तनुरूपी सुन्दर और श्रेष्ठ खेत में श्रीरामचन्द्र जी के गुण समूह रूपी बीज बोये जायँ और प्रेमाश्रुओं के [पवित्र] जल से। उन्हें सींचा जाय, तुलसीदास जी कहते हैं कि तब उनमें से [आनन्दातिरेक के कारण] पुलकावलिरूपी [शुभ] अंकुर उत्पन्न होते हैं और तभी उसमें [भगवत्प्रेमरूपी] धान की खेती लहराती है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 07:08


किस्मत में जिसके " राम "हो
उसे जिन्दगी से क्या चाहिए ...
धड़कन मे जिसके"राम" हो
उसे दुनिया से क्या चाहिए....
हम तो जीते है "राम" के गुणगान के लिए..... वरना इन सांसो से हमे क्या चाहिए .....॥

जय श्री राम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 07:06


युद्धक्षेत्र में वह कभी नहीं हारता जो लड़ा ही नहीं।
हारता भी वही है जो युद्ध लड़ने का साहस रखता है।
सफलता और असफलता भी ऐसे ही हैं।
असफल भी तो वही होता है जो सफलता की मंजिल को पाने के लिए आगे बढ़ता है। जो बढ़ ही नही रहा वह क्या असफल होगा।
व्यक्ति को कभी भी असफलता से नही घबराना चाहिए,अपितु असफलता से सीख मिलती है कि आप कहाँ चूके।
संसार में ऐसा कोई सफल व्यक्ति नहीं जो अपने जीवन में कभी न कभी असफल न हुआ हो; इसलिए असफलता का भय त्याग सफलता प्राप्ति के पथ पर दृढ़संकल्प के साथ बढ़ चलो और मत रुको जब तक मंजिल यानि सफलता मिल नही जाती...

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Dec, 07:02


कोई भी व्यक्ति हमारा मित्र या शत्रु बनकर संसार में नही आता।

हमारा व्यवहार और शब्द ही लोगो को मित्र और शत्रु बनाते है..

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 12:26


धन और प्रारब्ध

अगर धनका प्रारब्ध नहीं है तो चोरी करनेपर भी धन नहीं मिलेगा, प्रत्युत चोरी किसी प्रकारसे प्रकट हो जायगी तो बचा हुआ धन भी चला जायगा तथा दण्ड और मिलेगा । यहाँ दण्ड मिले या न मिले, पर परलोकमें तो दण्ड जरूर मिलेगा । उससे वह बच नहीं सकेगा । अगर प्रारब्धवश चोरी करनेसे धन मिल भी जाय तो भी उस धनका उपभोग नहीं हो सकेगा । वह धन बीमारीमें, चोरीमें, डाकेमें,मुकदमेमें, ठगाईमें चला जायगा । तात्पर्य यह कि वह धन जितने दिन टिकनेवाला है, उतने ही दिन टिकेगा और फिर नष्ट हो जायगा । इतना ही नहीं, इन्कम-टैक्स आदिकी चोरी करनेके जो संस्कार भीतर पड़े हैं, वे संस्कार जन्म-जन्मान्तरतक उसे चोरी करनेके लिये उकसाते रहेंगे और वह उनके कारण दण्ड पाता रहेगा ।

अगर धनका प्रारब्ध है तो कोई गोद ले लेगा अथवा मरता हुआ कोई व्यक्ति उसके नामसे वसीयतनामा लिख देगा अथवा मकान बनाते समय नींव खोदते ही जमीनमें गड़ा हुआ धन मिल जायगा, आदि-आदि । इस प्रकार प्रारब्धके अनुसार जो धन मिलनेवाला है, वह किसी-न-किसी कारणसे मिलेगा ही।

परन्तु मनुष्य प्रारब्धपर तो विश्वास करता नहीं, कम-से-कम अपने पुरुषार्थपर भी विश्वास नहीं करता कि हम मेहनतसे कमाकर खा लेंगे । इसी कारण उसकी चोरी आदि दुष्कर्मोंमें प्रवृत्ति हो जाती है, जिससे हृदयमें जलन रहती है,दूसरोंसे छिपाव करना पड़ता है, पकड़े जानेपर दण्ड पाना पड़ता है, आदि-आदि । अगर मनुष्य विश्वास और सन्तोष रखे तो हृदयमें महान् शान्ति, आनन्द, प्रसन्नता रहती है तथा आनेवाला धन भी आ जाता है और जितना जीनेका प्रारब्ध है, उतनी जीवन-निर्वाहकी सामग्री भी किसी-न-किसी तरह मिलती ही रहती है ।

जैसे व्यापारमें घाटा लगना, घरमें किसीकी मृत्यु होना, बिना कारण अपयश और अपमान होना आदि प्रतिकूल परिस्थितिको कोई भी नहीं चाहता पर फिर भी वह आती ही है, ऐसे ही अनुकूल परिस्थिति भी आती ही है,उसको कोई रोक नहीं सकता । भागवतमें आया है
सुखमैन्द्रियकं राजन् स्वर्गे नरक एव च ।
देहिनां यद् यथा दुःखं तस्मान्नेच्छेत तद् बुधः ॥

‘राजन् ! प्राणियोंको जैसे इच्छाके बिना प्रारब्धानुसार दुःख प्राप्त होते हैं, ऐसे ही इन्द्रियजन्य सुख स्वर्गमें और नरकमें भी प्राप्त होते हैं । अतः बुद्धिमान् पुरुषको चाहिये कि वह उन सुखोंकी इच्छा न करे ।

प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यो दैवोऽपि तं लङ्घयितुं न शक्तः ।
तस्मान्न शोचामि न विस्मयो मे यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम् ॥

‘प्राप्त होनेवाला धन मनुष्यको मिलता ही है, दैव भी उसका उल्लंघन नहीं कर सकता । इसलिये न तो मैं शोक करता हूँ और न मुझे विस्मय ही होता है; क्योंकि जो हमारा है वह दूसरोंका नहीं हो सकता ।’

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 11:58


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक 15

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्ख भीमकर्मा वृकोदरः॥15॥

भावार्थ :
ऋषीकेश भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्चजन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अति दुष्कर कार्य करने वाले भीम ने पौण्डू नामक भीषण शंख बजाया।

व्याख्या:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण के लिए "ऋषीकेश" शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ मन और इन्द्रियों का स्वामी है। श्रीकृष्ण स्वयं अपनी और समस्त प्राणियों के मन और इन्द्रियों के परम स्वामी हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर अपनी अद्भुत लीलाएं करते समय भी अपने मन और इन्द्रियों को पूर्ण नियंत्रण में रखा।।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 07:10


संजीवक

दुनिया में प्रेम बहुत शक्तिशाली संजीवनी है; प्रेम से अधिक कुछ भी गहरा नहीं जाता। यह सिर्फ शरीर का ही उपचार नहीं करता, सिर्फ मन का ही नहीं, बल्कि आत्मा का भी उपचार करता है। यदि कोई प्रेम कर सके तो उसके सभी घाव विदा हो जाएंगे। तब तुम पूर्ण हो जाते हो--और पूर्ण होना पवित्र होना है।

जब तक कि तुम पूर्ण नहीं हो, तुम पवित्र नहीं हो। शारीरिक स्वास्थ्य सतही घटना है। यह दवाई के द्वारा भी सकता है, यह विज्ञान के द्वारा भी हो सकता है। लेकिन किसी का आत्यंतिक मर्म प्रेम से ही स्वस्थ हो सकता है। वे जो प्रेम का रहस्य जानते हैं वे जीवन का महानतम रहस्य जानते हैं। उनके लिए कोई दुख नहीं बचता, कोई बुढ़ापा नहीं, कोई मृत्यु नहीं। निश्चित ही शरीर बूढ़ा होगा और शरीर मरेगा, लेकिन प्रेम यह सत्य तुम पर प्रगट करता है कि तुम शरीर नहीं हो। तुम शुद्ध चेतना हो, तुम्हारा कोई जन्म नहीं है, कोई मृत्यु नहीं है। और उस शुद्ध चेतना में जीना जीवन की संगति में जीना है। जीवन की संगति में जीने का उप-उत्पाद आनंद है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 06:56


दुख

आधे से ज्यादा लोग तो सिर्फ इसलिए दुःखी है उन लोगों ने प्रेम को समझा ही नहीं।

उन लोग ने जाना ही नहीं प्रेम को प्रेम कोई करने की चीज नहीं है वह होने के चीज है।

फिल्मों को देखकर किसी दोस्त सहेली को देखकर आस पास के लोग को देखकर हम भी लग गए प्रेम करने में फिर किसीके रूप को देखकर यश वैभव को देखकर आकर्षि हुए उसको प्रेम का नाम दे दिया कुछ समय बाद दोनों में से किसी एक का आकर्षण खत्म हुआ किसी एक ने किसी का शोषण किया चाहे धन का यश का वैभव का या शरीर का और छोड़ दिया फिर हमने भगवान को दोष देना शुरू कर दिया। भगवान ने हमें उससे क्यों मिलाया भगवान ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया सारा दोष भगवान का होगया।

भगवान की कोई गलती नहीं थी तुम्हे किसी ने बताया ही नहीं प्रेम करने की चीज नहीं थी और तुम करने लगे प्रेम तो अपने आप हो जाती है किसी के बात से स्वभाव से परवाह से उसके विचारों से।

माता पार्वती ने जब शिव को पाने के लिए तपस्या की थी उन्होंने ने शिव को देखा नहीं था शिव तो बाघ और हाथी का छाल लपेट कर रहते थे । भस्म रमा कर रखते थे। आस पास भूत प्रेत रहते थे पार्वती महलों की राजकुमारी थी शिव के पास कोई घर नहीं वह तो हिमालय में रहते थे।

रुक्मिणी ने जब श्रीकृष्ण से प्रेम का प्रस्ताव रखा था श्रीकृष्ण कोई बड़े राजा नहीं थे।

माता सीता ने श्रीराम के साथ वनों में रहना स्वीकार किया था चाहती तो महल में १४ वर्ष रह सकती थी।

प्रेम त्याग होता है पाने और करने की चीज नहीं होती है।

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:22


क्या लिखूं .... मेरे राम............
मुझे तो कुछ लिखना नहीं आता.....
बस कुछ शब्दों को संजोकर एक ही नाम लिखना आता है....जय श्री राम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:18


जिन्दगी में सबसे ताकतवर
इन्सान वह होता है जो
धोखा खा के भी लोगो की
मदद करना नही छोड़ता !!

जय_श्रीराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:17


एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई, लड़का बड़े अच्छे घर से था तो पिता बहुत खुश हुए। लड़के ओर लड़के के माता पिता का सवभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया। एक दिन शादी से पहले लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पर बुलाया। पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी ना न कह सके। लड़के वालो ने बड़े आदर सत्कार से उनका स्वागत किया। फिर लड़की के पिता के लिए चाय आई। डाय्बटिज की वजह से लड़की के पिता को चीनी वाली चाय से दूर रहने को कहा गया था। लेकिन लड़की के होने वाले घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली। चाय कि पहली चुस्की लेते ही चौन्क गये, चीनी बिल्कुल ही नहीं थी और ईलायची भी डली हुई थी सोच मे पड़ गये हमारे जैसी चाय पीते हैं ये लोग भी। दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा, दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चददर। उठते ही सौंफ का पानी पीने को दिया गया। वहां से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे, मुझे क्या खाना है? क्या पीना है? मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है यह आपको कैसे पता है? तो बेटी कि सास ने कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था ओर कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज आप उनका ध्यान रखियेगा। पिता की आंखों मे वहीं पानी आ गया। लड़की के पिता जब आपने घर पहुँचॆ तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ की फोटो से हार निकाल दिया, तो पत्नी ने पूछा कि ये कया कर रहे हो? तो लड़की का पिता बोला मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से गयी नहीं मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है और फिर पिता की आंखों से आँसू झलक गये।

सब कहते हैं कि बेटी है एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी, बेटी कभी भी अपने माँ बाप के घर से नहीं जाती, वो हमेशा उनके दिल में रहती है।

राधेकृष्णा_सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:10


विष मे से भी हो सके तो अमृत निकाल ले.

यदि सोना गनदगी मे गीरा हो तो उसे उठाये और धोये और अपनाये.

यदि कोई निचले कुल मे जनमने वाला भी आपको सर्वोत्तम ज्ञान देता है तो उसे अपनाये.

उसी तरह यदि कोई बदनाम घर की लड़की जो महान गुणो से संपनन है यदि आपको

सीख देती है तो गहण करे.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:09


Look at a mistake as just a mistake, not as my or his mistake. Because my brings guilt and his brings anger, Only acceptance brings improvement.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:07


इंसान का असली चरित्र तब सामने आता है जब वो नशे में होता है !!नशा चाहे"रूप,शराब,पद,कद,पैसा या अन्य का हो"।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 04:07


अहंकार' एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह 'आत्मबल' और 'आत्मज्ञान' को खो देता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Dec, 03:14


जिसमें विद्या, तप, दान,ज्ञान, शील,गुण और धर्म कुछ भी नहीं है, वे मृत्यु लोक में पृथ्वी का भार बने हुए मनुष्य के रूप में पशु ही हैं

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Nov, 17:47


अहंकार में बिलकुल बहाव नहीं होता है। प्रेम में बहाव होता है। इसलिए जब तक अहंकार होता है, तब तक प्रेम पैदा नहीं होता।

यह भी खयाल रख लें कि प्रेम और मोह बड़ी अलग बातें हैं। अलग ही नहीं, विपरीत। जिनके जीवन में मोह है, उनके जीवन में प्रेम पैदा नहीं होता। और जिनके जीवन में प्रेम है, वह तभी होता है, जब मोह नहीं होता। लेकिन हम प्रेम को मोह कहते रहते हैं।

असल में हम मोह को प्रेम कहकर बचाते रहते हैं। धोखा देने में हमारा कोई मुकाबला नहीं है! हम मोह को प्रेम कहते हैं। बाप बेटे से कहता है कि मैं तुझे प्रेम करता हूं। पत्नी पति से कहती है कि मैं तुझे प्रेम करती हूं। मोह है।

इसलिए उपनिषद कहते हैं कि सब अपने को प्रेम करते हैं सिर्फ। अपने को जो सहारा देता है बचने में, उसको भी प्रेम करते हुए मालूम पड़ते हैं। वह सिर्फ मोह है। प्रेम तो तभी हो सकता है, जब दूसरा भी अपना ही मालूम पड़े। प्रेम तो तभी हो सकता है, जब प्रभु का अनुभव हो, अन्यथा नहीं हो सकता है। प्रेम केवल वे ही कर सकते हैं, जो नहीं रहे। बड़ी उलटी बातें हैं।

जो नहीं बचे, वे ही प्रेम कर सकते हैं। जो हैं, बचे हैं, वे सिर्फ मोह ही कर सकते हैं। क्योंकि बचने के लिए मोह ही रास्ता है। प्रेम तो मिटने का रास्ता है। प्रेम तो पिघलना है। इसलिए प्रेम वह नहीं कर सकता, जिसको अपने को बचाना है।

इसलिए देखें, जितना आदमी जीवन को बचाने की चेष्टा में रत होगा, उतना प्रेम शून्य हो जाएगा। तिजोड़ी बड़ी होती जाएगी, प्रेम रिक्त होता जाएगा। मकान बड़ा होता जाएगा, प्रेम समाप्त होता जाएगा।

दीन-दरिद्र के पास प्रेम दिखाई भी पड़ जाए; समृद्ध के पास प्रेम की खबर भी नहीं मिलेगी। क्यों? क्या हो गया? असल में समृद्ध होने की जो तीव्र चेष्टा है, वह भी मैं को बचाने की है, मोह को बचाने की है। मोह जहां है, वहां प्रेम पैदा नहीं हो पाता।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Nov, 14:32


श्रीमद भगवद गीता

पहला अध्याय श्लोक 14

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः॥14॥

भावार्थ :
तत्पश्चात पाण्डवों की सेना के बीच श्वेत अश्वों द्वारा खींचे जाने वाले भव्य रथ पर आसीन माधव और अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।

व्याख्या:
कौरवों की सेना के शंख नाद की ध्वनि धीमी पड़ने के पश्चात भव्य रथ पर आसीन भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन ने निर्भीकता से पूरी शक्ति के साथ शंख नाद करते हुए उसी प्रकार से पाण्डवों द्वारा वीरता से युद्ध लड़ने की उत्कंठा प्रकट की। संजय ने माधव शब्द का प्रयोग श्रीकृष्ण के लिए किया। 'मा' का अर्थ भाग्य के देवता से है और 'धव' का अर्थ पति से है। भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के रूप में भाग्य की देवी लक्ष्मी के पति है। यह श्लोक दर्शाता है कि भाग्य की देवी की अनुकंपा पाण्डवों पर थी और वे शीघ्र युद्ध में विजय प्राप्त कर अपना छीना गया साम्राज्य प्राप्त कर लेंगे। पाण्डवों से तात्पर्य पाण्डु के पुत्रों से है। पाँच भाइयों में किसी भी भाई को पाण्डव कहकर संबोधित किया जाता है। यहाँ पर पाण्डव शब्द अर्जुन के लिए प्रयुक्त हुआ है। जिस भव्य रथ पर वह आसीन था वह उसे अग्नि देवता ने उपहार स्वरूप भेंट किया था।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Nov, 07:35


तुलना

तुलना रुग्णता है, बहुत बड़ी रुग्णता है। प्रारंभ से ही हमें तुलना करना सिखाया जाता है। तुम्हारी मां तुम्हारी तुलना दूसरे बच्चों से करने लगती है। तुम्हारे पिता तुलना करते हैं। शिक्षक कहते हैं, "गोपाल को देखो, वह कितना अच्छा है, और तुम कुछ भी ठीक नहीं रहे हो!'

शुरुआत से ही तुम्हें कहा गया है कि स्वयं की तुलना दूसरों से करो। यह बड़ी से बड़ी रुग्णता है; यह कैंसर की तरह है जो तुम्हारी आत्मा को नष्ट किए चला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है, और तुलना संभव नहीं है। मैं बस मैं हूं और तुम बस तुम। दुनिया में कोई नहीं है जिसके साथ तुलना की जाए। क्या तुम गेंदे की तुलना गुलाब से करते हो? तुम तुलना नहीं करते। क्या तुम आम की तुलना सेव फल से करते हो? तुम तुलना नहीं करते। तुम जानते हो कि वे असमान हैं--तुलना संभव नहीं है।

मनुष्य कोई वर्ण नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है। तुम्हारे जैसा व्यक्ति पहले कभी नहीं हुआ और फिर से कभी नहीं होगा। तुम पूरी तरह से अद्वितीय हो। यह तुम्हारा विशेषाधिकार है, तुम्हारा खास हक है, जीवन का आशीर्वाद है--कि इसने तुम्हें अद्वितीय बनाया।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Nov, 07:05


लोगो के ताने कभी समाप्त नहीं होते
वे अनवरत जारी रहते है
इन्हीं तानो को सुन कर कुछ लोग हिम्मत हार हार जाते है...
और कुछ लोग ऐसे होते है जो
इन तानो का पलटवार करने के लिए संघर्ष करते है, संघर्ष करने की
हिम्मत जुटाते है..
तुम भी ऐसे ही बनो किसी के कहने से हिम्मत न हारो, तुम संघर्ष करो
और और एक बात का ध्यान रखना ये ताने कभी भी पीछा नहीं
छोड़ती..
जब तुम परिश्रम करोगे तब भी लोग कहेंगे कुछ नही कर पायेगा और
जब सफल हो जाओगे तब भी लोग कहेंगे ये कोई बड़ी बात नहीं
आशय यह की जब ताने तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ती तो तुम भी परिश्रम
करना न छोड़ो |
सफलता एक दिन में नही लेकिन एक दिन जरूर मिलती है....

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Nov, 06:07


धन और भोग

जैसे धन और भोगका प्रारब्ध अलग-अलग होता है अर्थात् किसीका धनका प्रारब्ध होता है और किसीका भोगका प्रारब्ध होता है, ऐसे ही धर्म और मोक्षका पुरुषार्थ भी अलग-अलग होता है अर्थात् कोई धर्मके लिये पुरुषार्थ करता है और कोई मोक्षके लिये पुरुषार्थ करता है ।धर्मके अनुष्ठानमें शरीर, धन आदि वस्तुओंकी मुख्यता रहती है और मोक्षकी प्राप्तिमें भाव तथा विचारकी मुख्यता रहती है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Nov, 04:02


He who is overly attached to his family members experiences fear and sorrow, for the root of all grief is attachment. Thus one should discard attachment to be happy.

वह जो अपने परिवार से अत्यधिक जुड़ा हुआ है, उसे भय और चिंता का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सभी दुखों कि जड़ लगाव है. इसलिए खुश रहने कि लिए लगाव छोड़ देना चाहिए.

सीताराम राधेकृष्ण हर हर महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

29 Nov, 19:27


आप कभी इन ५ पर विश्वास ना करे.

१. नदिया २. जिसके हाथ मे शस्त्र हो. ३. पशु जिसे नाख़ून या सिंग हो. ४ स्त्री (यहाँ संकेत भोली सूरत की तरफ है, बहने बुरा न माने ) ५. राज घरानो के लोगो पर.

सिताराम_राधेकृष्ण_हर_हर_महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

29 Nov, 19:26


It is better to die than to preserve this life by incurring disgrace. The loss of life causes but a moment’s grief, but disgrace brings grief every day of one’s life.

अपमानित हो के जीने से अच्छा मरना है. मृत्यु तो बस एक क्षण का दुःख देती है, लेकिन अपमान हर दिन जीवन में दुःख लाता है.

सीताराम राधेकृष्ण हर हर महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Nov, 07:03


आज की प्रेरणा

जीवन का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है परमात्मा के साथ रिश्ता... यदि हम परमात्मा पर भरोसा करें तो सब कुछ हमेशा ठीक हो जाएगा!

आज से हम जीवन के हर मोड़ पर परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखें...

TODAY'S INSPIRATION

A relationship with God is the most important relationship you can have... trust in Him and everything will always turn out fine!

TODAY ONWARDS LET'S have complete trust on God in every scene of life...

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Nov, 07:00


दो पत्थरों की कहानी


नदी पहाड़ों की कठिन व लम्बी यात्रा के बाद तराई में पहुंची। उसके दोनों ही किनारों पर गोलाकार, अण्डाकार व बिना किसी निश्चित आकार के असंख्य पत्थरों का ढेर सा लगा हुआ था। इनमें से दो पत्थरों के बीच आपस में परिचय बढ़ने लगा। दोनों एक दूसरे से अपने मन की बातें कहने-सुनने लगे। इनमें से एक पत्थर एकदम गोल-मटोल, चिकना व अत्यंत आकर्षक था जबकि दूसरा पत्थर बिना किसी निश्चित आकार के, खुरदरा व अनाकर्षक था।

एक दिन इनमें से बेडौल, खुरदरे पत्थर ने चिकने पत्थर से पूछा, ‘‘हम दोनों ही दूर ऊंचे पर्वतों से बहकर आए हैं फिर तुम इतने गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक क्यों हो जबकि मैं नहीं?’’

यह सुनकर चिकना पत्थर बोला, “पता है शुरुआत में मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह ही था लेकिन उसके बाद मैं निरंतर कई सालों तक बहता और लगातार टूटता व घिसता रहा हूं… ना जाने मैंने कितने तूफानों का सामना किया है… कितनी ही बार नदी के तेज थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका है…तो कभी अपनी धार से मेरे शरीर को काटा है… तब कहीं जाकर मैंने ये रूप पाया है।

जानते हो, मेरे पास हमेशा ये विकल्प था कि मैं इन कठनाइयों से बच जाऊं और आराम से एक किनारे पड़ा रहूँ…पर क्या ऐसे जीना भी कोई जीना है? नहीं, मेरी नज़रों में तो ये मौत से भी बदतर है!

तुम भी अपने इस रूप से निराश मत हो… तुम्हें अभी और संघर्ष करना है और निरंतर संघर्ष करते रहे तो एक दिन तुम मुझसे भी अधिक सुंदर, गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक बन जाओगे।

मत स्वीकारों उस रूप को जो तुम्हारे अनुरूप ना हो… तुम आज वही हो जो मैं कल था... कल तुम वही होगे जो मैं आज हूँ… या शायद उससे भी बेहतर!”, चिकने पत्थर ने अपनी बात पूरी की।

शिक्षा:-
दोस्तों, संघर्ष में इतनी ताकत होती है कि वो इंसान के जीवन को बदल कर रख देता है। आज आप चाहे कितनी ही विषम पारिस्थति में क्यों न हों… संघर्ष करना मत छोड़िये… अपने प्रयास बंद मत करिए। आपको बहुत बार लगेगा कि आपके प्रयत्नों का कोई फल नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी प्रयत्न करना मत छोडिये। और जब आप ऐसा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक पाएगी।

@bhagwat_geetakrishn

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Nov, 06:55


"बच्चों से बच्चे बनकर व्यवहार कीजिए.! बुद्धिमानो से गहरी चर्चा कीजिए.! मंदबुद्धि के सामने चुप रहिए.! संतो के सामने मौन रहकर उन्हें समझिए.! अहंकारी व दोगले लोगो से दूरी रखिये.!"

@bhagwat_geetakrishn

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Nov, 06:54


मानवता के नाते प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है वह सामर्थ्य के अनुसार असहाय प्राणियों की मदद करें। लेकिन ध्यान रहे एहसान जताने का प्रयास न हो। मशीन भी समय के अनुसार उपयोग न करने पर अपनी शक्ति खो देती है यही बात काबिलियत पर भी लागू होती है। जरूरतमंद का भाग्योदय हो तब कहीं जाकर मदद करने का अवसर मिलता है। विशेष बात "निष्काम भावना" से मदद करने पर विशेष पुण्य का वर्धन होता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

17 Nov, 05:18


Only that man can take a right decision, whose soul is not tormented by the afflictions of attachment and aversion.

केवल वही व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है, जिसकी आत्मा बंधन और विरक्ति की यातना से संतप्त ना हो.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

16 Nov, 19:11


सृष्टि का स्रोत बहुत सूक्ष्म है। जब आप अपने शरीर और मन को शांत कर देते हैं, तभी यह बात करता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

16 Nov, 19:08


अगर मैं कभी गिरूं भी तो मेरे कृष्णा सिर्फ तेरे
चरणों मैं

जय_श्री_कृष्णा

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

16 Nov, 13:36


लोग बछड़ेको पेटभर दूध न पिलाकर सारा दूध स्वयं दुह लेते हैं ।वह दूध पवित्र नहीं होता; क्योंकि उसमें बछड़ेका हक आ जाता है । बछड़ेको पेटभर दूध पिला दे और इसके बाद जो दूध निकले, वह चाहे पावभर ही क्यों न हो, बहुत पवित्र होता है ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

16 Nov, 05:41


सभी जीव भगवान के समान ही हैं। वे उनकी संतान हैं। जिस प्रकार बच्चा माँ के शरीर का अंग होता है, उसके गर्भ में रहता है और वहीं पलता-बढ़ता है, उसी प्रकार हम भगवान में जन्म लेते हैं, उनमें पलते-बढ़ते हैं और उनसे उसी प्रकार जुड़े रहते हैं, जिस प्रकार बच्चा माँ से होता है। वास्तव में वह कभी भी उससे अलग नहीं होता।… माँ कभी भी अपने बच्चे के प्रति लापरवाह नहीं होती। अपने सच्चे प्रेम के कारण वह उसके प्रति उदासीन नहीं हो सकती। भगवान के साथ हमारा संबंध और भी मजबूत है।… भगवान एक क्षण के लिए भी हमें भूलते नहीं। वे हमेशा हमारा ध्यान रखते हैं। हम उनसे कभी अलग नहीं हुए। वे हमेशा हमारे साथ हैं और हमेशा हमारे पूरे अस्तित्व में व्याप्त हैं.....!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

15 Nov, 17:20


भगवान श्रीकृष्ण की मुस्कान में वो करुणा है, जो हर दुख को हरने का सामर्थ्य रखती है। उनकी मधुर मुस्कान को निहारते ही मन की हर पीड़ा जैसे स्वतः ही समाप्त हो जाती है। श्रीकृष्ण की मुस्कान में सुकून है, आनंद है, और हर समस्या का समाधान है।

जब भी जीवन में घोर अंधकार हो, बस कृष्ण की उस मुस्कान को याद करो, सब राहें खुद-ब-खुद मिल जाएंगी।

जय श्री कृष्णा 🌺🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

15 Nov, 16:13


कर्म

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया।

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई।

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए।

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा।

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी।

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब मे फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा।

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया ओर आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो।

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी।

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा।

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें। कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया। जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा।

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नही कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं।

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे। भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई। राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें।

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में लेजा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे।

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया।

शिक्षा
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है। असंत भी संत बन सकता है,यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए।
अपनी संगति को शुद्ध रखिए,विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा..!!

जय श्री कृष्ण

@bhagwat_geetakrishn

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

15 Nov, 14:17


बुरे व्यक्तिकी अथवा भूखे कुत्तेकी दृष्टि भोजनपर पड़ जाती है तो वह भोजन अपवित्र हो जाता है । अब वह भोजन पवित्र कैसे हो ? भोजनपर उसकी दृष्टि पड़ जाय तो उसे देखकर मनमें प्रसन्न हो जाना चाहिये कि भगवान् पधारे हैं ! अतः उसको सबसे पहले थोड़ा अन्न देकर भोजन करा दे । उसके देनेके बाद बचे हुए शुद्ध अन्नको स्वयं ग्रहण करे तो दृष्टिदोष मिट जानेसे वह अन्न पवित्र हो जाता है

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

15 Nov, 07:40


दुनिया वालों को नहीं दुनिया बनाने वाले को खुश कीजिए राधे कृष्ण 🙏🏻❤️😊

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

15 Nov, 03:33


The soul comes alone and goes alone, no one companies it and no one becomes its mate.

आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है , न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 17:20


जिंदगी जो शेष बची हैं
उसे विशेष बनाइए,
बाद में तो अवशेष बनना ही है!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 16:58


उस नदी का क्या नाम था जिसमें कुंती ने अपने नवजात पुत्र (कर्ण) को लोक-लाज से बचने के लिए प्रवाहित कर दिया था?

(क) चर्मण्वती

(ख) अश्व नदी

(ग) गंगा

(घ) यमुना

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 16:17


प्रभु की शरण


एक बार यशोदा माँ यमुना नदी में दीप दान कर रहीं थीं। पत्तों में दीप रखकर जब वह उन्हें प्रवाहित कर रहीं थीं तब उन्होंने देखा कि कोई भी दीप आगे नहीं जा रहा था। ध्यान से देखने पर उन्होंने पाया कि कान्हा जी एक लकड़ी लेकर सारे दीप जल से बाहर निकाल रहे थे। यशोदा माँ ने कान्हा से पूछा- “लल्ला ! तुम ये क्या कर रहे हो? "कान्हा जी ने कहा - "मैय्या ! यह सब डूब रहे थे। इस कारण मैं इन्हें बचा रहा हूँ।” कान्हा का उत्तर सुनकर यशोदा मैय्या हँसने लगीं और बोलीं- “लल्ला ! तुम किस-किस को बचाओगे?" यह सुनकर कान्हा जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया- "मैय्या ! मैंने सबका ठेका नहीं लिया हुआ है लेकिन जो मेरी ओर आयेंगें मैं उन्हें अवश्य बचाऊँगा।" ...

इसलिए हमें सदैव प्रभु का ध्यान करना चाहिए और उनकी शरण में रहना चाहिए..!!

जय श्री कृष्ण

@bhagwat_geetakrishn

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 16:15


सर्वशक्तिमान ईश्वर

एक राजा अपनी वीरता और सुशासन के लिए प्रसिद्ध था।
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एक बार वह अपने गुरु के साथ भ्रमण कर रहा था, राज्य की समृद्धि और खुशहाली देख कर उसके भीतर घमंड के भाव आने लगे और वह मन ही मन सोचने लगा...
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‘‘सचमुच, मैं एक महान राजा हूँ, मैं कितने अच्छे से अपनी प्रजा की देखभाल करता हूँ। मेरे जरिये कितने लोगों का पालन-पोषण होता है।’’
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गुरु सर्वज्ञानी थे, वे तुरंत ही अपने शिष्य के भावों को समझ गए और तत्काल उसे सुधारने का निर्णय लिया।
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रास्ते में ही एक बड़ा-सा पत्थर पड़ा था, गुरु जी ने सैनिकों को उसे तोडऩे का निर्देश दिया।
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जैसे ही सैनिकों ने पत्थर के दो टुकड़े किए एक अविश्वसनीय दृश्य दिखा...
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पत्थर के बीचो-बीच कुछ पानी जमा था और उसमें एक छोटा-सा मेंढक रह रहा था।
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पत्थर टूटते ही वह अपनी कैद से निकल कर भागा। सब अचरज में थे कि आखिर वह इस तरह कैसे कैद हो गया और इस स्थिति में भी वह अब तक जीवित कैसे था?
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अब गुरु जी राजा की तरफ पलटे और पूछा.. अगर आप ऐसा सोचते हैं कि आप ही इस राज्य में हर किसी का ध्यान रख रहे हैं..
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सबको पाल-पोस रहे हैं तो बताइए पत्थरों के बीच फंसे उस मेंढक का ध्यान कौन रख रहा था..?
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बताइए कौन है इस मेंढक का रखवाला?
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राजा को अपनी गलती का अहसास हो चुका था, उसे अपने अभिमान पर पछतावा होने लगा।
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गुरु की कृपा से वे जान चुका था कि वह ईश्वर ही हैं जिसने हर एक जीव को बनाया है और वही हैं जो सबका ध्यान रखते हैं।
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कई बार अच्छा काम करने पर मिलने वाले यश और प्रसिद्धि से लोगों के मन में अहंकार घर कर जाता है और अंतत: यही उनके अपयश और दुर्गति का कारण बनता है।
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अत: हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम चाहे इस जीवन में किसी भी मुकाम पर पहुंच जाएं कभी घमंड न करें और सदा अपने अर्थपूर्ण जीवन के लिए उस सर्वशक्तिमान ईश्वर के कृतज्ञ रहें..!!

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 14:40


लक्ष्य प्राप्ति की राह !!

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया। उस समय वह घर पर नहीं था। उसकी पत्नी ने कहा- वह खेत पर गए हैं। मैं बच्चे को बुलाने के लिए भेजती हूं। तब तक आप इंतजार करें।

कुछ ही देर में किसान खेत से अपने घर आ पहुंचा। उसके साथ-साथ उसका पालतू कुत्ता भी आया। कुत्ता जोरों से हांफ रहा था। उसकी यह हालत देख, मिलने आए व्यक्ति ने किसान से पूछा... क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ? किसान ने कहा- नहीं, पास ही है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?

उस व्यक्ति ने कहा- मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों साथ-साथ आए... लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा है।

किसान ने कहा- मैं और कुत्ता एक ही रास्ते से घर आए हैं। मेरा खेत भी कोई खास दूर नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा कुत्ता थक गया है। इसका कारण यह है कि मैं सीधे रास्ते से चलकर घर आया हूं, मगर कुत्ता अपनी आदत से मजबूर है।

वह आसपास दूसरे कुत्ते देखकर उनको भगाने के लिए उसके पीछे दौड़ता था और भौंकता हुआ वापस मेरे पास आ जाता था। फिर जैसे ही उसे और कोई कुत्ता नजर आता, वह उसके पीछे दौड़ने लगता। अपनी आदत के अनुसार उसका यह क्रम रास्ते भर जारी रहा। इसलिए वह थक गया है।

देखा जाए तो यही स्थिति आज के इंसान की भी है।

जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन राह में मिलने वाले कुत्ते, व्यक्ति को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रहे हैं।

इंसान अपने लक्ष्य से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है। यह लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। आपकी ऊर्जा को रास्ते में मिलने वाले कुत्ते बर्बाद करते हैं।

भौंकने दो इन कुत्तों को और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सीधे बढ़ते रहो.. फिर एक ना एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी। लेकिन इनके चक्कर में पड़ोगे तो थक ही जाओगे। अब ये आपको सोचना है कि किसान की तरह सीधी राह चलना है या उसके कुत्ते की तरह।

शिक्षा:-
सफलता के लिए सही समय की नहीं, सही निर्णय की जरूरत होती है।

प्रेम दुर्लभ है उसे पकड़ कर रखें, क्रोध बहुत खराब है, उसे दबाकर रखें। भय बहुत भयानक है, उसका सामना करें, स्मृतियाँ बहुत सुखद है उन्हें संजोकर रखें।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 14:05


वाल्मीकि रामायण की रचना जिस छंद में हुई है उसका क्या नाम है?

(A) चौपाई

(B) सोरठा

(C) सवैया

(D) अनुष्टुप्

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 05:58


उन तमाम लोगों को बाल दिवस की शुभकामनायें जिनके अंदर का बचपना अभी तक जीवित है..

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 05:56


आज हम जो महके-महके घूम रहे है ;

हक़ीक़त मे वो हमारे माता-पिता के पसीने की ख़ुशबू है...!
जय श्री कृष्णा

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 05:45


मजबूत होने में मजा ही तब हैं,
जब सारी दुनिया कमजोर
करने पर तुली हो !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

14 Nov, 02:58


आत्मविश्वास एक पूर्ण जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। अगर आपके पास दिव्य आत्मविश्वास है, तो आप जानते हैं कि आप कितने भाग्यशाली हैं। खुद का अध्ययन करें, आपके अंदर जागरूकता और अनंत शक्ति है। अपने मन में जो आप करना चाहते हैं उसकी एक छवि बनाने का चुनाव करें। खुशी, स्वास्थ्य और समृद्धि आपके पुरस्कार होंगे....!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

13 Nov, 08:41


खुद से वादा करो कि तुम इतने मजबूत बनोगे कि कोई भी चीज तुम्हारे मन की शांति को भंग न कर सके। हर चीज के सकारात्मक पक्ष को देखो और अपने आशावाद को सच करो। केवल सर्वश्रेष्ठ के बारे में सोचो, केवल सर्वश्रेष्ठ के लिए काम करो। अतीत की गलतियों को भूल जाओ और भविष्य की बड़ी उपलब्धियों पर जोर दो। खुद को बेहतर बनाने के लिए इतना समय दो कि तुम्हारे पास दूसरों की आलोचना करने का समय ही न बचे। इस विश्वास में जियो कि जब तक तुम अपने अंदर मौजूद सर्वश्रेष्ठ के प्रति सच्चे हो, पूरी दुनिया तुम्हारे पक्ष में है....!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

13 Nov, 07:22


संघर्ष इंसान को मजबूत बनाता है फिर चाहे वो कितना भी कमजोर क्यो न हो..

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

13 Nov, 02:40


दुःख , कष्ट , पीड़ा और असफलता सभी एक अध्यापक के समान होते है जो जीवन में आते ही सिर्फ आपको कुछ नया सिखाने ने के लिए है।

जय श्री राधेकृष्ण🙏🏻

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

12 Nov, 18:43


पता नहीं कैसे परखते है मेरे राम मुझे।

परीक्षा भी मुश्किल ही लेते है , और फेल भी होने नहीं देते।।
😊

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

12 Nov, 15:17


Surround yourself with people who make you feel alive.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

12 Nov, 06:56


अर्जुन की मृत्यु हो जाने पर उलूपी ने जिस वस्तु से उन्हें पुनः जीवित किया था उसका क्या नाम था?

(क) संजीवन मणि

(ख) दिव्य ओषधि

(ग) स्वर्ग-जल

(घ) नाग-बूटिका

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

12 Nov, 04:00


The nights that have departed will never return. They have been wasted by those given to unrighteousness.

जो रातें चली गयी हैं वे फिर कभी नहीं आएँगी. वे अधर्मी लोगों द्वारा बर्बाद कर दी गयी हैं.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

11 Nov, 11:42


सुनने में आया है इंदौर में वायरल बुखार तेजी से फैल रहा है इंदौर MP से जो भी है अपना और अपने परिवार का खयाल रखे

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 16:52


आत्महत्या

दिवाली से कुछ दिन पहले एक लड़के ने whatsapp पर कॉल किया था बहुत रो रहा था मैने कहा चुप हो जाओ क्या बात है बताओ।

उसने कहा मैं आज आत्महत्या करने गया था लेकिन आपकी पोस्ट पढ़ी और आपसे बात करने का मन हुआ तो मैंने कहा कहो क्या बात है पूरी बात बताओ वो रोते जा रहा है मैने शांति से उसे सुना समझाया ।

उसने कॉलेज फीस और रेंट का जुआ खेल लिया था ऑनलाइन उसने बताया २ दिन से अब खाना भी नही खाया है मैने खाने के पैसे उसके अकाउंट में भेज दिए और उसे बहुत समझाया।

दूसरे दिन मेरा मोबाइल खराब होने की वजह से बहुत से नंबर मुंहासे डिलीट हो गए में दुबारा उससे पूछ नही पाया।

अगर तुम इस मैसेज को पढ़ रहे तो जरूर बताना आजकल क्या कर रहे हो मैने जो समझाया था वो किया है या नही।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 16:44


दुनिया में किसी भी व्यक्ति को
भ्रम में नहीं रहना चाहिए,
बिना गुरु के कोई भी
दुसरे किनारे तक नहीं जा सकता है !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 16:00


एक ऐसी चीज़ जो किसी अन्य योनि में प्राप्त नहीं की जा सकती, वह है ईश्वर प्राप्ति। यह सौभाग्य और क्षमता केवल मनुष्य जाति को ही दी गई है। यदि हम एक बार इस अवसर को हाथ से जाने दें, तो पता नहीं यह हमें फिर कब मिलेगा या मिलेगा भी या नहीं...!!

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 13:06


सोनार की चतुराई

एक राजा था। राजा बहुत ही बुद्धिमान था। राजा ने अपने मंत्रियों से कहा कि क्या कोई मुझसे चोरी कर सकता है। सभी मंत्रियों ने कहा नही राजा आपसे कोई चोरी नही कर सकता है। तभी एक मंत्री ने कहा राजा जी कुछ सुनार होते है। जो व्यक्तियों के सामने से ही सोना चुराते है। तो राजा ने कहा यह नामुमकिन है मेरे सामने कोई भी सुनार सोना नही चुरा सकता। उसने राज्य के सभी सुनारों को अपने दरबार मे बुलाने का आदेश दिया। आदेश के अनुसार सभी सुनार राज्य में आये।

सभी आपस मे चिंतित थे कि राजा किस वजह से एक साथ हमे बुलाये है। तभी राजा दरबार मे आये और उन्होंने कहा कि क्या आप मेरी देख रेख में भी सोने की चोरी कर सकते है। कुछ सोनार ने कहा जी हां हम एक चौथाई सोना निकाल सकते है। कुछ ने कहा कि हम आधा सोना चुरा सकते है। तभी सन्मति नाम के एक सुनार ने कहा कि मैं पूरा सोना आपके सामने रहते हुए भी चुरा सकता है। सभी लोग आश्चर्यजनक हुए की सन्मति तुम यह नही कर सकते पर उसने फिर से कहा नहीं मैं यह कर सकता हूं।

राजा ने आदेश दिया कि अगर ऐसा तुम कर पाओगे तो तुम्हारा विवाह मैं अपनी बेटी से करवाऊँगा और अपने राज्य का आधा हिस्सा तुम्हे दे दूँगा। और कहा कि यह पूरा काम मेरी और पहरेदारो को निगरानी में होगा। साथ ही तुम्हें अलग से वस्त्र दिए जाएंगे जिन्हें तुम यहां काम करते वक्त उन्हें ही पहनोगे और जाते वक्त अपने वस्त्र ही पहन कर जाओगे। सन्मति ने कहा ठीक है जैसी आप की आज्ञा। सन्मति ने दूसरे दिन से अपना काम आरंभ किया।

राजा की देख रेख में एक शिव जी की सोने की मूर्ति उसे बनाने के लिए दी गयी। धीरे धीरे मूर्ति का चलता रहा। वह दिन भर राजा के यहां शिव जी की सोने की मूर्ति बनाता और एक ध्यान देने वाली बात यह थी कि वह रात में शिव जी की पीतल की मूर्ति अपने घर पे बनाता। यह क्रम चलता रहा। लगभग एक हफ्ते बाद मूर्ति बनकर तैयार हुई और राम ने राजा से कहा अब मुझे एक चमकाने के लिए ताजा दही चाहिए शाम का वक्त था इस टाइम ताजा दही मिलना मुश्किल था।

पहरेदारों को आदेश दिया गया कि ताजा दही ढूंढ कर लाया जाए। पहरेदार बहुत परेशान हुए पर उन्हें ताजा दही नही मिला। तभी एक अचानक से एक युवती ताजा दही मटके में बेच रही थी। राम ने सोने की मूर्ति उस मटके में डाली और निकाल कर उसे चमका दिया। फिर राजा ने अपने स्वर्ण विशेषज्ञ को बुलाया और मूर्ति की जांच करने को कहा और पूछा कि इस मूर्ति में कितना सोना है। स्वर्ण विशेषज्ञ आश्चर्यजनक हुए की राजा इसमें तो एक भी सोना नही है। यह जानकर राजा भी बहुत हैरान हुआ कि पूरा काम मेरी देख रेख में हुआ है फिर भी ऐसा कैसे हो सकता है।

उसे पहरेदार दरबार लेकर आये और राजा ने युवती को पैसे देकर जाने को कहा। राजा ने सन्मति से पूछा कि तुमने ऐसा कैसे किया। उसने राजा से कहा कि आप सच जानकर मुझे सजा तो नही देंगे। राजा ने वादा किया कि नही ऐसा नही होगा। सन्मति ने बताया कि दही बेचने वाली मेरी बहन थी मैने ही उस से पीतल की मूर्ति निकाली और सोने की मूर्ति डाल दी थी। राजा उसकी चतुराई से प्रसन्न हुए। उन्होंने वादा किये आनुसार अपनी बेटी का ब्याह उस से कर दिया और आधे राज्य को उसे सौंप दिया।

शिक्षा:-
इस प्रसंग से हमें यह सीख मिलती है कि इन्सान चाहे तो चतुराई से कोई भी कार्य कर सकता है। कृपया।इस कहानी से यह सीख मत लीजियेगा। की बुरा काम (चोरी) करके आपको इनाम मिलेगा। (बुरे काम का बुरा नतीजा ही मिलता है)। परंतु जब आपके सामने कोई किसी प्रकार की प्रतियोगिता में भाग ले कर ऐसा करवाते है तो अलग बात है। आप अपनी चतुराई से कुछ भी हल कर सकते है। जरूरत है। खुद पर विश्वास करने की ओर आत्मविश्वास से भर कर आगे बढ़ने की।
🙏🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 12:39


इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः

“हे मनुष्यों! मानव जीवन पाने का बहुत कम अवसर मिलता है। यदि तुम इसका उपयोग परम लक्ष्य को प्राप्त करने में नहीं करते तब तुम्हें घोर संकटों का सामना करना पड़ेगा । "

कठोपनिषद् में आगे यह वर्णन है कि
इह चेदशकद् बोद्धुं प्राक् शरीरस्य विस्रसः ।
ततः सर्गेषु लोकेषु शरीरत्वाय कल्पते।।

“यदि तुम इस जीवन में भगवद्प्राप्ति का प्रयास नहीं करते तो तुम्हें कई जन्मों तक 84 लाख योनियों में चक्कर लगाना पड़ेगा।"

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 11:50


लंका के उस प्रसिद्ध वैद्य का क्या नाम था, जिसे लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करने हेतु हनुमानजी लंका से उठा लाए थे?

(A) मातलि

(B) विश्रवा

(C) सुषेण

(D) रैभ्य

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 09:11


जीवन में हर जगह
हम "जीत" चाहते हैं
सिर्फ फूलवाले की दूकान ऐसी है
जहाँ हम कहते हैं कि "हार" चाहिए


क्योंकि
हम भगवान से
"जीत" नहीं सकते

सीताराम🙏🏻😊

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 08:20


महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पराजित हो जाने के पश्चात् दुर्योधन जिस सरोवर में जा छिपा था उसका क्या नाम था?

(क) मानसरोवर

(ख) ब्रह्म सरोवर

(ग) पुष्पक सरोवर

(घ) द्वैपायन सरोवर

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 07:54


प्रेम में अपने प्रिय को अपना मन समर्पित कर देना प्रेम का सबसे सुंदर भाग है मानस में वर्ण आता है कि भगवान श्री राम सिया जी से कहते हैं कि है प्रिया

।। तत्त्व प्रेम कर मम करू तोरा प्रिया एकच मनु मोरा ।।
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं ।।

मेरा और तुम्हारा एक तात्पर्य प्रेम है वह सदा रहता तुम्हारे पास है
यह प्रेम का सबसे सुंदर भाव है ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 05:31


A Guru's role means unconditional love and support without expectations...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 05:22


अगर कुछ सीखना चाहो तो,
प्रेम से बहुत कुछ सीखा जा सकता है,
राधा कृष्ण जैसा प्रेम ,
सिया राम जैसा प्रेम ,
मीरा का निस्वार्थ प्रेम ,
या फिर प्रभु राम से किया गया हनुमान जी का प्रेम,
हर जगह प्रेम की अलग अलग छवि है,
हर रूप में प्रेम अमर हुआ है,
न छल हुआ,ना जोर जबरदस्ती,
हर सुख में हर दुख में,
हृदय के उच्च स्थान पर प्रेम,
स्थिर रहा विराजमान रहा,
परिस्थिति जैसी भी रही,
प्रेम का सम्मोहक स्वरूप,
प्रेम की दृढ़ पराकाष्ठा वही रही,
जीवनभर प्रेम में रहे,
एक श्वास तक न ली जो प्रेम से रहित हो,
बिना मिलन,बिना लंबी लंबी बातों के,
सदैव एक दूसरे के हृदय में स्थापित रहे,
शब्दों की जहां तनिक भी आवश्यकता न थी,
जहां सिर्फ आस्था थी ,गहरे एहसास थे,
प्रेम को पूज्य समझा गया था,
जीवन के अंत तक प्रेम अंतर्मन में समाहित रहा,
न प्रेम को अपमानित होने दिया,
न उस प्रेम का कभी दिखावा किया,
बस स्वयं को समर्पित कर दिया उस प्रेम के लिए,
उस प्रेम को सदा के लिए पूज्य बना दिया..!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 00:54


सभी अनुभवों का
स्वागत कीजिए

पता नही कौन सा अनुभव
आपकी जिंदगी बदल दे

राधे राधे जय श्री कृष्णा🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

10 Nov, 00:31


यदि आप इस शरीर में अपने जीवन के छोटे से हिस्से को शांति और खुशी से जीना चाहते हैं, यदि आप प्रभु के पास लौटना चाहते हैं, तो केवल एक ही रास्ता है: नाम के अभ्यास में लग जाओ। नाम पर ध्यान के अलावा, कोई अन्य विधि या तकनीक नहीं है...!!

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 18:54


भगवान राम के चरित्र की विशिष्टता के सन्दर्भ में महाराज दशरथ गुरु वसिष्ठ से जो वाक्य कहते हैं वह बड़े महत्व का है । महाराज दशरथ के मन में जब यह बात आई कि श्रीराम को युवराज पद पर अभिषिक्त करें, तो वे गुरु वसिष्ठ के पास गए और कहा कि मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे विरोधी नहीं हैं, शत्रुता का भाव रखनेवाले नहीं हैं । वे कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति हैं जो मुझसे प्रेम करते हैं, मित्रता रखते हैं । कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो वैर-विरोध रखते हैं और कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो न तो मित्रता ही रखते हैं और न ही विरोध करते हैं । पर मैंने एक बात अनुभव किया है कि जहाँ तक राम का संबंध है वे सभी राम से उतना ही प्रेम करते हैं जितना प्रेम मैं करता हूँ । यह गुण मुझमें नहीं है, जो राम में है । मानस में यह भी कहा गया कि 'बैरिहु राम बड़ाई करिही' भगवान राम की प्रशंसा शत्रु भी करते हैं ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 18:52


छू गया जब कभी ख्याल तेरा, दिल मेरा देर तक धड़कता रहा, कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में, और घर देर तक महकता रहा !

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 18:52


जाते ही शमशान में, मिट गयी सब लकीर,

पास पास ही जल रहे थे, राजा और फ़क़ीर.....

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 18:51


प्रेम कोई भावना नहीं है. यह आपका अस्तित्व है....!!
जय श्री कृष्ण जी🌸

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 18:45


पुरुष का फर्ज़ है
स्त्री का सम्मान करना

स्त्री का भी फर्ज़ है
ख़ुद सम्मान के लायक बनाये रखना !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 18:11


भगवान के कैसे स्वरूप का ध्यान करना है?

सगुण साकार का ध्यान करना है, राधाकृष्ण का। उनकी लीलायें हुई हैं। उन लीलाओं में हमारा मन जल्दी लगेगा। और जो पुरुष है अन्तःकरण में, परमात्मा रूप में, वो तो निराकार है उसका रूप नहीं हो सकता। ध्यान नहीं कर सकते हम। वो बड़े-बड़े योगी लोग नहीं कर पाते।

तो, हमको तो राधाकृष्ण का ध्यान करना चाहिये जो यहाँ ब्रज में अवतार लेकर आये थे। वही अन्दर वाले पुरुष यहाँ अवतार लेकर आये थे। उनका ध्यान करना है। भगवान् के तीन स्वरूप हैं- एक ब्रह्म, एक परमात्मा, एक भगवान्। तो ब्रह्म तो सर्वव्यापक है, उसका ध्यान नहीं हो पाता जीव के लिये, और परमात्मा पुरुष है जो अन्दर रहता है हमारे आइडियाज नोट करता है, सबके अन्तःकरण में रहता है। उसका भी रूपध्यान हम नहीं कर पाते क्योंकि वो निराकार है और महाविष्णु साकार हैं, लेकिन उनकी लीला नहीं है कोई। इसलिये राधाकृष्ण का रूपध्यान हमारे मन को जल्दी खींचेगा, जल्दी हमारे मन का अटैचमेन्ट होगा। भगवान् के सभी रूप हैं, लेकिन जिसमें हमारे मन का लगाव जल्दी हो जाय, वो हमारे लिये अच्छा है। अब मत्स्य अवतार भी है, कच्छप अवतार भी है, नरसिंह अवतार भी है। हमारा मन उसमें नहीं लगेगा क्योंकि हमारे लिये आकर्षक स्वरूप नहीं है उनका।

तो राधाकृष्ण के स्वरूप में, उनकी लीलाओं में जल्दी मन लग जायेगा। फिर चाहे हृदय में ध्यान करो, चाहे भौंहों के बीच में ध्यान करो, चाहे सामने ध्यान करो, कहीं करो, सब ठीक है। राधाकृष्ण का ध्यान। चाहे बालकृष्ण का करो, चाहे किशोर कृष्ण का करो, जो रूप पसन्द हो बदलते रहो। वो सब हैं -

त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी।
त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः।

वेद कहता है भगवान् पुरुष भी हैं, स्त्री भी हैं, कुमार भी हैं, कुमारी भी हैं और बूढ़े बनकर डण्डा लेकर भी चलते हैं। सब प्रकार की उनकी लीलायें हैं। तुमको जो पसंद हो।

और जिसका हृदय जितना गन्दा होता है उतना ही उसको सत्संग से दूरी आती जाती है। जैसे ये चुम्बक है, बीच में रखा है और चारों और सुईयाँ हैं। कोई सुई प्योर लोहे की है, किसी में टेन पर्सेन्ट मिलावट, किसी में ट्वन्टी पर्सेन्ट, किसी में फिफ्टी पर्सेन्ट तो चुम्बक जो क्लीन है शुद्ध लोहे की है उसको जल्दी खींच लेगा। जिसमें टैन पर्सेन्ट है वो बाद में खिंचेगा और जितनी अधिक मिलावट है उतनी ही देर में खिंचेगा। ऐसे ही भगवान् और महापुरुष से जो जीव खिंचते हैं, आकर्षण होता है, वो उनके अन्तःकरण की शुद्धि पर डिपैण्ड करता है। जिसका जितना अन्तःकरण शुद्ध है वो उतना जल्दी खिंच जायेगा और जितने पाप हैं, गन्दगी है अन्तःकरण में, उतनी ही देर में खिंचेगा।

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

09 Nov, 16:27


कठिनाई का मुकाबला करने से ही मनुष्य निर्मित होता है। जितनी चोट पड़ती है, उतनी जाग आती है। जितने तार तुम्हारे छेड़े जाएंगे, उतना संगीत निखरेगा। जितनी छेनी तुम पर पड़ेगी, उतना ही रूप प्रगट होगा।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 18:47


हरे कृष्णा!!!!

भरोसा अगर सावंरिया पर है!!!!!
काम भी सफल होंगे!!!
और ज़िन्दगी भी!!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 17:30


हमें बस अपना कर्तव्य निभाना है और पूरी तरह से आश्वस्त होना है कि स्वामी अपना कर्तव्य निभाएंगे; यानी, वे हमें उचित समय पर ले जाएंगे। बस इतना ही ज़रूरी है कि हम दुनिया से मुंह मोड़ लें और स्वामी की ओर मुंह करें। वे हमेशा खुले हाथों से हमारा स्वागत करने के लिए मौजूद हैं...!!

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 11:00


श्रीराम की सेना के दो अभियंता वानरों के नाम बताइए।

(A) अंगद-हनुमान

(B) सुग्रीव-अंगद

(C) केसरी-सुषेण

(D) नल-नील

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 07:47


भाव के भूखे है मेरे कान्हा..!!

कृष्ण भगवान का एक बहुत बड़ा भक्त हुआ लेकिन वो बेहद गरीब था।
एक दिन उसने अपने शहर के सब से बड़े "गोविन्द गोधाम" की महिमा सुनी और उसका वहाँ जाने को मन उत्सुक हो गया।
कुछ दिन बाद जन्माष्टमी आने वाली थी उसने सोचा मै प्रभु के साथ जन्माष्टमी "गोविन्द गोधाम" में मनाऊँगा।
गोंविंद गोधाम उसके घर से बहुत दूर था। जन्माष्टमी वाले दिन वो सुबह ही घर से चल पड़ा।
उसके मन में कृष्ण भगवान को देखने का उत्साह और मन में भगवान के भजन गाता जा रहा था।
रास्ते में जगह जगह लंगर और पानी की सेवा हो रही थी, वो यह देखकर बहुत आनंदित हुआ की वाह प्रभु आपकी लीला ! मैने तो सिर्फ सुना ही था कि आप गरीबो पर बड़ी दया करते हो आज अपनी आँखों से देख भी लिया।
सब गरीब और भिखारी और आम लोग एक ही जगह से लंगर प्रशाद पाकर कितने खुश है।
भक्त ऑटो में बैठा ही देख रहा था उसने सबके देने पर भी कुछ नही लिया और सोचा पहले प्रभु के दर्शन करूँगा फिर कुछ खाऊँगा ! क्योंकि आज तो वहाँ ग़रीबो के लिये बहुत प्रशाद का इंतेज़ाम किया होगा।
रास्ते में उसने भगवान के लिए थोड़े से अमरुद का प्रशाद लिया और बड़े आनंद में था भगवान के दर्शन को लेकर।
भक्त इतनी कड़ी धूप में भगवान के घर पहुँच गया और मंदिर की इतनी प्यारी सजावट देखकर भावविभोर हो गया।
भक्त ने फिर मंदिर के अंदर जाने का किसी से रास्ता पूछा।किसी ने उसे रास्ता बता दिया और कहा यह जो लाईने लगी हुई है आप भी उस लाइन में लग जाओ।
वो भक्त भी लाईन में लग गया वहाँ बहुत ही भीड़ थी पर एक और लाइन उसके साथ ही थी पर वो एकदम खाली थी।
भक्त को बड़ी हैरानी हुई की यहाँ इतनी भीड़ और यहाँ तो बारी ही नही आ रही और वो लाइन से लोग जल्दी जल्दी दर्शन करने जा रहे है।
उस भक्त से रहा न गया उसने अपने साथ वाले भक्त से पूछा की भैया यहाँ इतनी भीड़ और वो लाइन इतनी खाली क्यों है और वहाँ सब जल्दी जल्दी दर्शन के लिए कैसे जा रहे है वो तो हमारे से काफी बाद में आए है।
उस दूसरे भक्त ने कहा भाई यह VIP लाइन है जिसमे शहर के अमीर लोग है।
भक्त की सुनते ही आँखे खुली रह गई उसने मन में सोचा भगवान के दर पे क्या अमीर क्या गरीब यहाँ तो सब समान होते है।
कितनी देर भूखे प्यासे रहकर उस भक्त की बारी दरबार में आ ही गई और भगवान को वो दूर से देख रहा था और उनकी छवि को देखकर बहुत आनंदित हो रहा था।
वो देख रहा था की भगवान को तो सब लोग यहाँ छप्पन भोग चढ़ा रहे है और वो अपने थोड़े से अमरुद सब से छुपा रहा था।
जब दर्शन की बारी आई तो सेवादारो ने उसे ठीक से दर्शन भी नही करने दिए और जल्दी चलो जल्दी चलो कहने लगे। उसकी आँखे भर आई और उसने चुपके से अपने वो अमरुद वहाँ रख दिए और दरबार से बाहर चला गया।
दरबार के बाहर ही लंगर प्रशाद लिखा हुआ था। भक्त को बहुत भूख लगी थी सोचा अब प्रशाद ग्रहण कर लू ।
जेसे ही वो लंगर हाल के गेट पर पहुँचा तो 2 दरबान खड़े थे वहाँ उन्होंने उस भक्त को रोका और कहा पहले VIP पास दिखाओ फिर अंदर जा सकोगे।
भक्त ने कहाँ यह VIP पास क्या होता है मेरे पास तो नही है। उस दरबान ने कहा की यहाँ जो अमीर लोग दान करते है उनको पास मिलता है और लंगर सिर्फ वो ही यहाँ खा सकते हैं।
भक्त की आँखों में इतने आँसू आ गए और वो फूट फूट कर रोने लगा और भगवान से नाराज़ हो गया और अपने घर वापिस जाने लगा।
रास्ते में वो भगवान से मन में बातें करता रहा और उसने कहा प्रभु आप भी अमीरों की तरफ हो गए आप भी बदल गए प्रभु मुझे आप से तो यह आशा न थी और सोचते सोचते सारे रास्ते रोता रहा।
भक्त घर पर पहुँच कर रोता रोता सो गया।
भक्त को भगवान् ने नींद में दर्शन दिए और भक्त से कहा तुम नाराज़ मत होओ मेरे प्यारे भक्त
भगवान ने कहा अमीर लोग तो सिर्फ मेरी मूर्ति के दर्शन करते है।अपने साक्षात् दर्शन तो मै तुम जैसे भक्तों को देता हूँ ...
और मुझे छप्पन भोग से कुछ भी लेंना देंना नही है मै तो भक्त के भाव खाता हूँ और उनके आँसू पी लेता हूँ और यह देख मै तेरे भाव से चढ़ाए हुए अमरुद खा रहा हूँ।
भक्त का सारा संदेह दूर हुआ और वो भगवान के साक्षात् दर्शन पाकर गदगद हो गया और उसका गोविंद गोधाम जाना सफल हुआ और भगवान को खुद उसके घर चल कर आना पड़ा।
भगवान भाव के भूखे है बिन भाव के उनके आगे चढ़ाए छप्पन भोग भी फीके है..!!

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 07:14


ज्ञानी व्यक्ति की कभी भी मृत्यु नहीं होती। उनका ज्ञान का प्रकाश हर जगह मौजूद होता है। जबकि मुर्ख और अज्ञानी व्यक्ति अपने विचारो से पहले ही मर चुका होता है। पूरी दुनिया में अंधेरा चाहे कितना भी जोर लगा ले। लेकिन एक मोमबत्ती की रोशनी को वह कभी नहीं मिटा सकता...!!

A wise person never dies. The light of his knowledge is present everywhere. Whereas a fool and ignorant person is already dead with his thoughts. No matter how much darkness tries to spread in the whole world, it can never extinguish the light of a candle...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 03:11


उस वन का क्या नाम था जिसे जलाकर पांडवों ने वहाँ इंद्रप्रस्थ नगर बसाया था?

(क) काम्यक

(ख) द्वैत

(ग) खांडव

(घ) सौगंधिक

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 03:09


आपके जीवन में जितने मोड़ आते हैं, वो सब आपका भला करने के लिए कृष्ण लाते हैं…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

08 Nov, 03:04


That with the help of which we can know the truth, control the restless mind, and purify the soul is called knowledge.

वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Nov, 18:51


Before you start some work, always ask yourself three questions – Why am I doing it, What the results might be and Will I be successful. Only when you think deeply and find satisfactory answers to these questions, go ahead.

कोई काम शुरू करने से पहले, स्वयं से तीन प्रश्न कीजिये – मैं ये क्यों कर रहा हूँ, इसके परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल होऊंगा. और जब गहराई से सोचने पर इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जायें, तभी आगे बढिए.

सीताराम राधेकृष्ण हर हर महादेव

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Nov, 18:42


कान्हा तूने लाखों की तकदीर संवारी है,

मुझे दिलासा तो दे, के अब मेरी बारी है...

जय श्री कृष्ण.....🙏🏼🙏🏼

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Nov, 17:47


रामायण में कुल कितने अध्याय हैं?

(A) 5
(B) 7
(C) 9
(D) 11

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Nov, 14:42


मन की संगति में आकर आत्मा अपना घर, ... और अपनी पहचान भूल गई है। मन भी खुद को नहीं जानता। वह इंद्रियों का गुलाम बन गया है। इसलिए हमें अपने मन को इंद्रियों से हटाकर भीतर के शब्द और नाम से जोड़ना होगा। और फिर शब्द और नाम की सहायता से मन शुद्ध होकर अपने मूल स्रोत पर वापस आ जाता है। तब आत्मा अपने आप ही मन के चंगुल से मुक्त हो जाती है। यही आत्म-साक्षात्कार है...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Nov, 13:11


ईश्वर प्राप्ति से पहले आत्म-साक्षात्कार आवश्यक है। आत्म-साक्षात्कार क्या है? मन और माया के दायरे से परे जाना; मन को नेत्र-केंद्र और उसके अपने गंतव्य पर लाने का प्रयास करना, ताकि आत्मा मन के चंगुल से मुक्त हो सके। आत्मा को मन से अलग करना - यही आत्म-साक्षात्कार है, यही खुद को जानना है...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

07 Nov, 02:40


Hatred does not cease by hatred, but only by love; this is the eternal rule.

घृणा घृणा से नहीं प्रेम से ख़त्म होती है, यह शाश्वत सत्य है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

06 Nov, 18:43


जब तक मन में खोट और दिल में पाप है

तब तक बेकार सारे मंत्र और जाप है

जय_शिव_शक्ति

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

06 Nov, 14:40


जीवन में सबसे महंगी चीज आपका वर्तमान है, जो एक बार चला जाए तो पूरी दुनिया की संपत्ति से भी हम उसे खरीद नहीं सकते…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

06 Nov, 14:39


जो मानव अपनी निंदा सुन लेने के बाद भी शांत है, वह सारे जगत पर विजय प्राप्त कर लेता है…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

06 Nov, 08:59


गृहस्थ

साधु सन्यासी हो या गृहस्थ हो सभी के लिए कुछ नियम बनाए गए है गृहस्थ को बहुत सारी चीज़ें करने से मना किया है वो सिर्फ इसलिए ताकि वो वैराग्य की तरफ ना जाए और अपने परिवार की तरफ भी ध्यान दे।

किसी भी मंत्र का जप गुरु की दीक्षा के बिना नहीं करना चाहिए एक मार्गदर्शक जरूरी होता हैं जीवन में इसलिए गुरु जरूर बनाए।

मंत्र जप करने के साथ आपके मन में वैराग्य जागने लगेगा ऐसे में कोई भी स्त्री या पुरुष हो यदि अपने साथी को कामसुख से वंचित रखे तो यह भी पाप होगा इसलिए दोनो यदि नियम का पालन करे तो अच्छी बात है वरना साथी को दुख देना सही नही चाहे तो मानसिक हो या शरारिक हो।

हनुमानजी की पूजा भी कोई भी कर सकता है पर वो ब्रह्मचारी है इसलिए उन्हें पति के रूप में नही पिता भाई बेटा के रूप में मानकर पूजा कर सकते है।

ईश्वर से प्रेम करना चाहिए उनसे डरना नहीं चाहिए उनसे कोई रिश्ता जोड़ लो और उन्हें पुकारो।

नाम जप का यदि महत्व है आप ईश्वर को पुकारते है अब किस रिश्ते से पुकारना है वो आप पर निर्भर करता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

06 Nov, 08:30


शास्त्र

शास्त्र क्या है ? एक नियम ( कानून ) बनाया गया है स्त्री और पुरुष दोनों के लिए एक समाज को चलाने के लिए कुछ नियम और कानून बनाया गया है जिसे हम शास्त्र कहते है।

समय के अनुसार परिस्थिति के अनुसार कुछ नियम बदले जाते है या वही रह जाते है तो उसको हम आज पाखंड नही कह सकते है।

मंत्रों के जप में कुछ नियम होते है आप कोई भी मंत्र यूही कही भी जप नही कर सकते हा नाम जप आप कभी भी कही भी कर सकते है नाम जप का अर्थ हुआ ईश्वर को पुकारना आप किसी भी अवस्था में नाम जप कर सकते है।

अब किसी ने कहा गायत्री मंत्र वो किसी भी अवस्था में कर सकती है तो आप करो आपको किसने रोका का यदि आप मासिक धर्म में बैठकर १००० जप करने में सक्षम है तो बैठा करो कोई रोक नहीं सकता है।

कुछ दिन पहले एक लड़की ने कहा घर में पढ़ाई नही कर पाती हु सारा दिन काम करना पड़ता है और आज पीरियड में कॉलेज जाना फिर आकर घर का काम करना पड़ता है आराम ही नही मिल रहा है बुखार भी होगया टेंशन है क्या होगा एक्जाम नजदीक है उस वक्त मैंने सोचा मासिक धर्म में आराम करने के लिए 7 दिन का नियम बनाया गया था अगर इस नियम का पालन होता तो शायद उसे आराम मिलता आज अब कुछ लोग कहेंगे हम क्यों आराम करे हम लडको के कम है क्या हम तो काम करेंगे ही तो करो आपको कोई रोका थोड़ी ना है।

कोई भी वैदिक काम रात में नही होता दिन में होता हैं लेकिन मुगल आने के बाद से उत्तर भारत में विवाह जो एक वैदिक कार्य है वो रात में छुपकर होने लगा और वही परंपरा चल गया आज भी।

समय और काल के हिसाब से चीज़े बदल गई इसपर किसीको गलत और खुदको सही साबित करना मूर्खता होगी और कुछ नहीं।

आपको ईश्वर को पुकारना है ईश्वर को प्राप्त करना है तो उन्हें पुकारो बहस करने के कोई लाभ नहीं मिलेगा आपको या किसीको।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Nov, 11:12


मनुष्य अपने आप को सीमित और दुर्बल समझता है और यह सच भी है कि वह जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। लेकिन आत्मा भगवान का एक कण है और भगवान अनंत हैं। यदि कण कुछ समय तक अनंत के बारे में सोचे तो वह खुद को अनंत पाता है...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Nov, 03:25


कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है, पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है...!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 23:43


न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो??

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 23:41


क्रोध में बोला हुआ एक कठोर शब्द
इतना जहरीला हो सकता है की,
आपकी हजार प्यारी बातों को
एक मिनट में नष्ट कर सकता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 23:33


I know, O Arjuna, the beings of the past, of the present, and those of the future, but no one really knows Me.

हे अर्जुन !, मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ, किन्तु वास्तविकता में कोई मुझे नहीं जानता.

श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 23:32


मात पिता अब कृष्ण तुम्ही प्रभु हो तुम ही सरकार हमारी...!
डोल रही भव बन्धन में अब नाव करो तुम पार हमारी..!!

शीश झुके न किसी दर पे बस है इतनी दरकार हमारी..!
मीत सखा बन जाय यहाँ सब बात सुनो करतार हमारी..!!

जय_श्री_राधे_कृष्णा

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 23:15


Every soul is in itself absolutely omniscient and blissful. The bliss does not come from outside.

प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है. आनंद बाहर से नहीं आता.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 04:54


वेद नारायण के परायण हैं। देवता भी नारायण के ही अंगों में कल्पित हुए हैं और समस्त यज्ञ भी नारायण की प्रसन्नता के लिये ही हैं तथा उनसे जिन लोकों की प्राप्ति होती है, वे भी नारायण में ही कल्पित हैं । सब प्रकार के योग भी नारायण की प्राप्ति के ही हेतु हैं। सारी तपस्याएँ नारायण की ओर ही ले जाने वाली हैं, ज्ञान के द्वारा भी नारायण ही जाने जाते हैं। समस्त साध्य और साधकों का पर्यवसान भगवान नारायण ही हैं । वे द्रष्टा होने पर भी ईश्वर हैं, स्वामी हैं; निर्विकार होने पर भी सर्वस्वरुप हैं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 04:42


परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 04:42


The unsuccessful yogi is reborn, after attaining heaven and living there for many years, in the house of the pure and prosperous.

स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है.

श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 04:41


गायत्री की महिमा अपरंपार है। समस्त ऋषि-मुनि मुक्त कंठ से गायत्री का गुण-गान करते हैं।गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा,विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 04:40


जीवन कभी परिपूर्ण नहीं होता, सड़क की तरह इसमें भी उतार चढ़ाव और कई मोड़ हैं, लेकिन यही इसकी खूबसूरती भी है…!

आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ 🪔

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

31 Oct, 04:37


Health is the greatest gift, contentment the greatest wealth, faithfulness the best relationship.

स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 16:01


एक कड़वा सच- कामयाबी में पार्टी मांगने वाले, तकलीफ में फोन नहीं उठाते…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 04:16


There is nothing, animate or inanimate, that can exist without Me.

ऐसा कुछ भी नहीं , चेतन या अचेतन , जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो.

श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 04:15


The mind alone is one’s friend as well as one’s enemy.

केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है.

श्रीमद्भगवद्गीता

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 04:14


श्रीकृष्ण हर स्थिति में, हर मोर्च पर विचारों के धनी रहे। वह किसी भी बंधी-बंधाई लीक पर नहीं चले। जैसी परिस्थिति थी, उसी के अनुसार उन्होंने अपनी भूमिका बदली और यहां तक की द्वारका के राजा होकर भी धर्म युद्ध महाभारत में अर्जुन के सारथी बन गये। जिससे वे उसे पल-पल गाईड कर सकें।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 04:13


कला से प्रेम करो : संगीत व कलाओं का हमारे जीवन में विशिष्ट स्थान है। भगवान ने मोरपंख व बांसुरी धारण करके कला, संस्कृति व पर्यावरण के प्रति अपने लगाव को दर्शाया।

इनके जरिए उन्होंने संदेश दिया कि जीवन को सुंदर बनाने में संगीत व कला का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 04:13


Did you notice that all happy faces have closed eyes?
And on the other hand, all sad or angry faces have open eyes.
This is life...Close ur eyes & ignore all negative things to live happily.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

30 Oct, 01:53


Every soul is independent. None depends on another.

प्रत्येक जीव स्वतंत्र है. कोई किसी और पर निर्भर नहीं करता.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 16:23


कल वासिंगमशीन, टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि खरीदने का खूब प्रचलन है। ये सब राहु और शनि की वस्तुयें हैं। सीधे कहें तो सूर्य, चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र की वस्तुएं ही खरीदें। राहु, शनि, मंगल की वस्तुओं से सर्वदा परहेज करें। उन्हें आवश्यकतानुसार कभी बाद में खरीदें, धनतेरस से गोवर्धन (भैयादूज) तक कदापि नहीं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 14:09


धनतेरस या दीपावली की शाम को घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें, साथ ही दीपक में थोड़ी सी केसर भी डाल दें,अमोघ उपाय है।।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 12:58


राम_का_महत्व_क्या_है

अगर आप राम के जीवन की घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि वह मुसीबतों का एक अंतहीन सिलसिला था। सबसे पहले उन्हें अपने जीवन में उस राजपाट को छोड़ना पड़ा, जिस पर उस समय की परंपराओं के अनुसार उनका एकाधिकार था। उसके बाद 14 साल वनवास झेलना पड़ा।

जंगल में उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया गया। पत्नी को छुड़ाने के लिए उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध एक भयानक युद्ध में उतरना पड़ा। उसके बाद जब वह पत्नी को ले कर अपने राज्य में वापस लौटे, तो उन्हें आलोचना सुनने को मिली। इस पर उन्हें अपनी पत्नी को जंगल में ले जा कर छोड़ना पड़ा, जो उनके जुड़वां बच्चों की मां बनने वाली थी। फिर उन्हें जाने-अनजाने अपने ही बच्चों के खिलाफ जंग लड़नी पड़ी। और अंत में वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी से हाथ धो बैठे।

राम_का_महत्व_उनकी_मर्यादा_में_है

राम का पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग राम की पूजा करते हैं। भारतीय मानस में राम का महत्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही शिष्टता पूर्वक किया। अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी उन्होंने खुद को बेहद गरिमा पूर्ण रखा।
उस दौरान वे एक बार भी न तो क्रोधित हुए, न उन्होंने किसी को कोसा और न ही घबराए या उत्तेजित हुए। हर स्थिति को उन्होंने बहुत ही मर्यादित तरीके से संभाला। इसलिए जो लोग मुक्ति और गरिमा पूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें राम की शरण लेनी चाहिए।

राम में यह देख पाने की क्षमता थी कि जीवन में बाहरी परिस्थितियां कभी भी बिगड़ सकती हैं। यहां तक कि अपने जीवन में तमाम व्यवस्था के बावजूद बाहरी परिस्थितियां विरोधी हो सकती हैं। जैसे घर में सब कुछ ठीक – ठाक हो, पर अगर तूफान आ जाए तो वह आपसे आपका सब कुछ छीन कर ले जा सकता है। अगर आप सोचते है कि ‘मेरे साथ ये सब नहीं होगा’ तो यह मूर्खता है। जीने का विवेकपूर्ण तरीका तो यही होगा कि आप सोचें, ‘अगर मेरे साथ ऐसा होता है तो मैं इसे शिष्टता से ही निपटूंगा।’

लोगों ने राम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि उन्होंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा।

राम_धैर्य_की_प्रेरणा_हैं

राम की पूजा इसलिए नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं-मकान बन जाए, प्रमोशन हो जाए, सौदे में लाभ मिल जाए। बल्कि राम की पूजा हम उनसे यह प्रेरणा लेने के लिए करते हैं कि मुश्किल क्षणों का सामना कैसे धैर्य पूर्वक बिना विचलित हुए किया जाए।

इस लिए सवाल यह नहीं है कि आपके पास कितना है, आपने क्या किया, आपके साथ क्या हुआ और क्या नहीं। असली चीज यह है कि जो भी हुआ, उसके साथ आपने खुद को कैसे संचालित किया। राम ने अपने जीवन की परिस्थितियों को सहेजने की काफी कोशिश की, लेकिन वे हमेशा ऐसा कर नहीं सके। उन्होंने कठिन परिस्थतियों में ही अपना जीवन बिताया, जिसमें चीजें लगातार उनके नियंत्रण से बाहर निकलती रहीं, लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह था कि उन्होंने हमेशा खुद को संयमित और मर्यादित रखा। आध्यात्मिक बनने का यही सार है।

जय_श्रीराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 12:52


।। राम राम ।। हरि ॐ ।।

तीन लोक का समझिए सार,
राम - नाम सब ही सुखकार।
राम - नाम की बहुत बड़ाई,
वेद पुराण मुनि जन गाई॥

सुख प्रदान करने वाला राम-नाम सारे विश्व की आत्मा है, तत्त्व है, ऐसा समझ लीजिये | राम-नाम का महात्म्य, इसका प्रताप तो वेदों, पुराणों एवं मुनियों ने भरपूर गाया है | तीन लोक का सार : 'रं' अग्निबीज (अग्नि का स्थान है भू-लोक), 'अँ' आदित्य बीज (सूर्य का स्थान है स्वर्गलोक), 'मँ' चंद्रबीज (चन्द्र का स्थान दोनों के मध्य में अंतरिक्ष लोक है) इस प्रकार राम-नाम तीनो लोकों का सार है | मुनि : जो मनन में मग्न रहता है |

।। राम राम ।। हरि ॐ ।।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 12:51


यह_कलयुग_है_साहेब

मिठाई दुकानदार ने कल उन साहेब से पूछा - साहब हर दीवाली में आप हमेशा दो तरह की मिठाई ले जाते
हैं, बूंदी के लड्डू और काजू कतली ऐसा क्यों---??

उन साहेब ने जवाब दिया : " बूंदी के लड्डू उनके लिए जो हमें सलाम करते है, और काजू कतली उनके लिए
जिनको हम सलाम करते है----

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 12:46


मीरा को लगा कि....
जहर में कैसा नशा है... देखलूँ

तो जहर को भी लगा कि...!!
इसी बहाने कंठ में.. कृष्ण प्रेम देखलूँ

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 12:45


अंहकारी इंसान को न तो अपनी गलतियां दिखती है न ही दूसरों की अच्छी बातें
व न ही दूसरों के अच्छे गुण दिखते हैं

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 12:40


"धन का नहीं आरोग्य का दिन है धनतेरस"

धन त्रयोदशी (धन तेरस) तथा धन्वंतरि त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयंती की बधाई लेते-देते या धनवर्षा की प्रत्याशा में किसी कर्मकाण्ड में शामिल होने के पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस दिन का धन-संपत्ति से कहीं कोई संबंध नहीं है। कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ अच्छी बात है परन्तु याद रखें यह धन का नहीं आरोग्य का दिन है। पुराणों के अनुसार यह दिन उस घटना की स्मृति है जब समुद्र मंथन के अभियान में देवों और असुरों ने समुद्र मंथन कर अमृत-घट के साथ महान चिकित्सक भगवान श्री धन्वंतरि को प्रकट किया था। प्राकृतिक चिकित्सा-विज्ञान में पारंगत धन्वंतरि को आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का आदिपुरुष कहा जाता है। देवों ने उन्हें अपना चिकित्सक बनाया। धन्वंतरि जी भगवान विष्णु के अवतार हैं । हजारों वर्षों से लोगों का यह विश्वास रहा है कि इस दिन संध्या समय भगवान धन्वंतरि का पूजन कर यमराज जी को दीपदान करने से विभिन्न प्रकार के रोगों से तथा अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है। पता नहीं कैसे कालांतर में विकृतियों का शिकार होकर आयुर्वेद को समर्पित यह दिन धन की वर्षा का दिन बन गया। हमारी धनलिप्सा ने एक महान चिकित्सक को भी धन का देवता बना दिया।धनतेरस का यह वर्तमान स्वरुप बाजार और उपभोक्तावाद की देन है जिसने हमें बताया कि धनतेरस के दिन सोने-चांदी में निवेश करने,विलासिता के महंगे सामान खरीदने या जुआ-सट्टा खेलने से धन तेरह गुना तक बढ़ जाता है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।
आज के दिन कहीं निवेश करना है तो आयुर्वेद के आदिपुरुष भगवान धन्वंतरि को याद कर अपने आरोग्य की प्राप्ति के लिए पूजन-अर्चन करिये तथा स्वास्थ्य रूपी धन को एकत्र करिये और आयुर्वेद औषधियों की रक्षा में निवेश कीजिए।अच्छे स्वास्थ्य से बड़ा इस दुनिया में और कोई धन नहीं है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 08:54


3 पाठ "पुरुष सूक्तम्" फिर 16 पाठ "श्री सूक्तं" का नियमित पाठ करें। कंगाली में नहीं जियोगे, इतना वादा है।।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

28 Oct, 08:50


प्रेम से वैरागी तक का सफर शिव के अस्तित्व को सत्ती से जोड़ता है प्रेम सामान्य साधारण बात नही प्रेम स्वभाव है सृष्टि का सार है...

महादेव_नम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

27 Oct, 13:10


जीवन कभी-कभी कठिन लग सकता है, लेकिन आप डिप्रेशन से लड़ सकते हैं। डिप्रेशन से बाहर आना संभव है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

27 Oct, 07:17


राधे राधे

जिसका समय भगवान श्रीकृष्ण के गुणों के गान अथवा श्रवण में व्यतीत हो रहा है, उसके अतिरिक्त सभी मनुष्यों की आयु व्यर्थ जा रही है। ये भगवान सूर्य प्रतिदिन अपने उदय और अस्त से उनकी आयु छीनते जा रहे हैं । क्या वृक्ष नहीं जीते ? क्या लुहार की धौंकनी साँस नहीं लेती ? गाँव के अन्य पालतू पशु क्या मनुष्य—पशु की ही तरह खाते-पीटे या मैथुन नहीं करते ? जिसके कान में भगवान श्रीकृष्ण की लीला-कथा नहीं पड़ी, वह नर पशु, कुत्ते ग्रामसूकर, ऊँट और गधे से भी गया बीता है ।

जो मनुष्य भगवान श्रीकृष्ण की कथा कभी नहीं सुनता, उसके कान बिल के समान हैं। जो जीभ भगवान की लीलाओं का गायन नहीं करती, वह मेढक की जीभ के समान टर्र-टर्र करने वाली हैं; उसका तो न रहना ही अच्छा है । जो सिर कभी भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में झुकता नहीं, वह रेशमी वस्त्र से सुसज्जित और मुकुट से युक्त होने पर भी बोझामात्र ही है। जो हाथ भगवान की सेवा-पूजा नहीं करते, वे सोने के कंगन से भूषित होने पर भी मुर्दे के हाथ हैं । जो आँखें भगवान की याद दिलाने वाली मूर्ति, तीर्थ, नदी आदि का दर्शन नहीं करतीं, वे मोरों की पाँख में बने हुए आँखों के चिन्ह के समान निरर्थक हैं। मनुष्यों के वे पैर चलने की शक्ति रखने पर भी न चलने वाले पेड़ों-जैसे ही हैं, जो भगवान की लीला-स्थलियों की यात्रा नहीं करते । जिस मनुष्य ने भगवत्प्रेमी संतों के चरणों की धूल कभी सिर पर नहीं चढ़ायी, वह जीता हुआ भी मुर्दा है। जिस मनुष्य ने भगवान के चरणों पर चढ़ी हुई तुलसी की सुगन्ध लेकर उसकी सराहना नहीं की, वह श्वास लेता हुआ भी श्वासरहित शव है ।

वह ह्रदय नहीं लोहा है, जो भगवान के मंगलमय नामों का श्रवण-कीर्तन करने पर भी पिघलकर उन्हीं की ओर बह नहीं जाता। जिस समय ह्रदय पिघल जाता है, उस समय नेत्रों में आँसू छलकने लगते हैं और शरीर का रोम-रोम खिल उठता है ।

सीताराम

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

27 Oct, 06:36


राधे राधे

जो ब्रम्हतेज का इच्छुक हो वह बृहस्पति की; जिसे इन्द्रियों की विशेष शक्ति की कामना हो वह इन्द्र की और जिसे सन्तान की लालसा हो वह प्रजापतियों की उपासना करे । जिसे लक्ष्मी चाहिये वह मायादेवी की, जिसे तेज चाहिये वह अग्नि की, जिसे धन चाहिये वह वसुओं की और जिस प्रभावशाली पुरुष को वीरता की चाह हो उसे रुद्रों की उपासना करनी चाहिये ।

जिसे बहुत अन्न प्राप्त करने की इच्छा हो वह अदिति का; जिसे स्वर्ग की कामना हो वह अदिति के पुत्र देवताओं का, जिसे राज्य की अभिलाषा हो वह विश्वदेवों का और जो प्रजा को अपने अनुकूल बनाने की इच्छा रखता हो उसे साध्य देवताओं का आराधन करना चाहिये ।

आयु की इच्छा से अश्विनी कुमारों का, पुष्टि की इच्छा से पृथ्वी का और प्रतिष्ठा की चाह हो तो लोक-माता पृथ्वी और द्वौ (आकाश)—का सेवन करना चाहिये ।
सौन्दर्य की चाह से गन्धर्वों की, पत्नी की प्राप्ति के लिये उर्वशी अप्सरा की और सबका स्वामी बनने के लिये ब्रम्हा की आराधना करनी चाहिये ।

जिसे यश की इच्छा हो वह यज्ञ पुरुष की, जिसे खजाने की लालसा हो वह वरुण की; विद्या प्राप्त करने की आकांक्षा हो तो भगवान शंकर की और पति-पत्नी में परस्पर प्रेम बनाये रखने के लिये पार्वतीजी की उपासना करनी चाहिये ।

धर्म-उपार्जन करने के लिये विष्णु-भगवान की, वंशपरम्परा की रक्षा के लिये पितरों की, बाधाओं से बचने के लिये यक्षों की और बलवान् होने के लिये मरुद्गणों की आराधना करनी चाहिये ।

राज्य के लिये मन्वन्तरों के अधिपति देवों को, अभिचार के लिये निर्ऋतिको, भोगों के लिये चन्द्रमा को और निष्कामता प्राप्त करने के लिये परम पुरुष नारायण को भजना चाहिये ।

और जो बुद्धिमान पुरुष हैं—वह चाहे निष्काम हो, समस्त कामनाओं से युक्त हो अथवा मोक्ष चाहता हो—उसे तीव्र भक्ति योग के द्वारा केवल पुरुषोत्तम भगवान की ही आराधना करनी चाहिये ।

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

27 Oct, 06:25


किताबें खुद चुप रहती हैं, लेकिन जिसने भी पढ़ लीं, उसको बोलना सिखा देती हैं…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

27 Oct, 06:24


जीवन एक अंतहीन परीक्षा है, क्योंकि मूल्यांकन करने वाला आपके भीतर बैठा है…!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

27 Oct, 02:50


परिवर्तन
प्रकृति का नियम है
जब अच्छे दिन नहीं रहे
तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे।
जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है वह सुख में सुखी नहीं होता और दुख में दुखी नहीं।
उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है।
सुख और दुख को
जो समभाव से ले
समझना कि उसने स्वयं को जान लिया।
क्योंकि स्वयं की पृथकता का बोध ही समभाव को जन्म देता है।
सुख-दुख आते और जाते हैं।
जो न आता है और न जाता है
वह है
स्वयं का अस्तित्व
इस अस्तित्व में ठहर जाना ही समत्व है।
फूल आते हैं चले जाते हैं।
कांटे आते हैं चले जाते हैं।
सुख आते हैं चले जाते हैं।
दुख आते हैं चले जाते हैं।
जो जगत के इस "चले जाने" के शाश्वत नियम को जान लेता है
उसका जीवन क्रमश: बंधनों से मुक्त होने लगता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

26 Oct, 19:01


"माली प्रतिदिन पौधों को पानी देता है मगर फल सिर्फ मौसम में ही आते हैं,इसीलिए जीवन में धैर्य रखें प्रत्येक चीज अपने समय पर होगी।"

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

26 Oct, 18:57


लोग बहुत अच्छे होते है,

अगर हमारा वक्त अच्छा हो तो !!

सीताराम

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

26 Oct, 18:56


माँ बाप पर भी उतना ही विश्वास रखो जितनी दवाइयाँ पर रखते हो...

बेशक थोडे कडवे होंगे पर आपके फ़ायदे के लिए होंगे....

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

26 Oct, 18:48


कुछ बातें
समझाने से नहीं ...
खुद पर बीत जाने से
समझ में आती है ...
कर्म करने में हमारी
मनमानी चल सकती है..
लेकिन फल भोगने में नहीं।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 17:29


कठिनाईयां

एक धनी राजा ने सड़क के बीचों-बीच एक बहुत बड़ा पत्थर रखवा दिया और चुपचाप नजदीक के एक पेड़ के पीछे जाकर छुप गया।

दरअसल वो देखना चाहता था कि कौन व्यक्ति बीच सड़क पर पड़े उस भारी-भरकम पत्थर को हटाने का प्रयास करता है।

कुछ देर इंतजार करने के बाद वहां से राजा के दरबारी गुजरते हैं। लेकिन वो सब उस पत्थर को देखने के बावजूद नजरअंदाज कर देते हैं।

इसके बाद वहां से करीब बीस से तीस लोग और गुजरे लेकिन किसी ने भी पत्थर को सड़क से हटाने का प्रयास नहीं किया।

करीब डेढ़ घंटे बाद वहां से एक गरीब किसान गुजरा। किसान के हाथों में सब्जियां और उसके कई औजार थे। किसान रुका और उसने पत्थर को हटाने के लिए पूरा दम लगाया।

आखिर वह सड़क से पत्थर हटाने में सफल हो गया। पत्थर हटाने के बाद उसकी नजर नीचे पड़े एक थैले पर गई। इसमें कई सोने के सिक्के और जेवरात थे।

उस थैले में एक खत भी था जो राजा ने लिखा था कि ये तुम्हारी ईमानदारी, निष्ठा, मेहनत और अच्छे स्वभाव का इनाम है।

जीवन में भी इसी तरह की कई रुकावटें आती हैं। उनसे बचने के बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए।

शिक्षा:-

मुसीबतों से डर कर भागे नहीं, उनका डटकर सामना करें..!!

जय श्री कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 17:22


श्री परमात्मने नमः

भगवान् को याद करने मात्र से वे प्रसन्न हो जाते हैं-'अच्युतः स्मृतिमात्रेण'! भगवान से एक ही चीज मांगों कि 'हे नाथ! मैं आपको भूलूं नहीं! यह एक मंत्र है जिससे भगवान की स्मृति होगी स्मृति होने से आपमें शान्ति आनन्द दया क्षमा उदारता आदिका ठिकाना नहीं रहेगा ! सम्पूर्ण दुःखो का अत्यन्त अभाव हो जायगा ! केवल उनको हर समय याद रखो ! भगवान को याद रखने मात्र से ऋद्धियां सिद्धियां पासमे आ जाती है!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 17:20


मनुष्य अपने जीवन में पूरे दिन काम करके इतना नही थकता जितना वह एक पल की चिंता से थक जाता है.!!

जय श्री राधे कृष्ण

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 17:17


बुराई जड़ से ख़त्म करो


बुराई की ऊपरी कांट-छांट से वह नहीं मिटती,उसे तो  उसकी जड़ से मिटाना होता है। जब तक जड़ को नष्ट नहीं किया जाएगा तब तक कोई लाभ नहीं होगा।
किसी नगर में एक आदमी रहता था। उसके आँगन में एक पौधा उग आया। कुछ दिनों बाद वह बड़ा हो गया  और उस पर फल लगने लगे। एक बार एक फल पककर नीचे गिर गया। उस फल को एक कुत्ते ने खा लिया। जैसे ही कुत्ते ने फल खाया, उसके प्राण निकल गए। आदमी ने सोचा--कोई बात होगी जिससे कुत्ता मर गया। पर उसने पेड़ के फल पर ध्यान नहीं दिया।
                                           
कुछ समय बाद उधर से एक लड़का निकला। फल देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने किसी तरह फल तोड़कर खा लिया। फल को खाते ही लड़का मर गया। मरे हुए लड़के को देख आदमी की समझ में आ गया कि यह जहरीला पेड़ है। उसने कुल्हाड़ी ली और वृक्ष के सारे फल काटकर गिरा दिए। थोड़े दिन बाद पेड़ में फिर फल लग गए। लेकिन इस बार पहले से भी ज्यादा बड़े फल लगे थे। आदमी ने फिर कुल्हाड़ी से फल के साथ-साथ शाखाओं को भी काट दिया। परंतु कुछ दिन बाद पेड़ फिर फलों से लद गया। अब आदमी की समझ में कुछ नहीं आया। वह परेशान हो गया। तभी उसके पड़ोसी ने उसे देखा और उसकी परेशानी का कारण पूछा। आदमी ने सारी बातें बता दी।

यह सब सुनकर पड़ोसी ने कहा --तुमने पेड़ के फल तोड़े,उसकी शाखाएं काटी , पर तुम्हारी समझ में नहीं आया कि जब तक पेड़ की जड़ रहेगी तब तक पेड़ रहेगा और उसमें फल आते रहेंगे। अगर तुम इससे छुटकारा चाहते हो तो इसकी जड़ काटो। तब आदमी की समझ में आया कि बुराई की ऊपरी कांट-छांट से वह नहीं मिटती,उसे तो उसकी जड़ से मिटाना चाहिए। उसने कुल्हाड़ी लेकर पेड़ की जड़ को काट दिया और हमेशा के लिए चिंता मुक्त हो गया।

इसी तरह बुराई की जड़ हमारे मन में होती है। जब तक जड़ को नष्ट नहीं किया जाएगा, मनुष्य को जहरीला बनाने वाले फल आते रहेंगे।

@bhagwat_geetakrishn

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 16:31


अच्छा सोचिए अच्छा बोलिए और अच्छा कीजिए क्योंकि सब आपके पास लौटकर आता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 16:28


लोहे को कोई नहीं बिगाड़ सकता
लेकिन उसका अपना जंग ही बिगाड़ सकता है

उसी तरह,

किसी इंसान को कोई नहीं बिगाड़ सकता
लेकिन उसकी अपनी सोच ही उसे बिगाड़ सकती है..


😊🙏

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 14:27


हाथ वालों के बिना हाथ वाले, चार पैर वाले पशुओं के बिना पैर वाले (तृणादि) और उनमें भी बड़े जीवों के छोटे जीव आहार हैं। इस प्रकार एक जीव दूसरे जीव के जीवन का कारण हो रहा है । इन समस्त रूपों में जीवों के बाहर और भीतर वही एक स्वयं प्रकाश भगवान्, जो सम्पूर्ण आत्माओं के आत्मा हैं, माया के द्वारा अनेकों प्रकार से प्रकट हो रहे हैं; तुम केवल उन्हीं को देखो ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 14:27


सारा जगत् ईश्वर के वश में है। सारे लोक और लोकपाल विवश होकर ईश्वर की ही आज्ञा का पालन कर रहे हैं। वही एक प्राणी को दूसरे से मिलाता है और वही उन्हें अलग करता है । जैसे बैल बड़ी रस्सी में बँधे और छोटी रस्सी से रथे रहकर अपने स्वामी का भार ढोते हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी वर्णाश्रमादि अनेक प्रकार के नामों से वेदरूप रस्सी में बँधकर ईश्वर की ही आज्ञा का अनुसरण करते हैं । जैसे संसार में खिलाड़ी की इच्छा से ही खिलौनों का संयोग और वियोग होता है, वैसे ही भगवान की इच्छा से ही मनुष्यों का मिलना-बिछुड़ना होता है ।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 13:15


बहुत समय पहले पुरी में अर्जुन मिश्रा नाम का एक पांडा रहता था।

वह प्रतिदिन पूरी भगवद्गीता का पाठ करता था।

क्योंकि उन्होंने अपना काफी समय गीता का अध्ययन करने में लगाया और उनकी अटूट आस्था के कारण स्थानीय लोग उन्हें गीता पांडा कहते थे।

वह भगवान जगन्नाथ के बहुत बड़े भक्त थे, बहुत ही समर्पित आत्मा थे।

वह हर चीज के लिए अपने भगवान पर निर्भर था।

जो कुछ हुआ उसे प्रभु की इच्छा मानकर स्वीकार कर लिया।

गीता पांडा को कुछ भी प्रभावित नहीं कर सका।

वह बहुत गरीब व्यक्ति था और भिक्षा मांग कर अपना गुजारा करता था।

एक बार पुरी में लगभग एक सप्ताह तक भारी बारिश हुई और गीता पांडा को भिक्षा मांगने के लिए बाहर जाने की कोई गुंजाइश नहीं थी।

उसके पास जो भी थोड़ा बहुत था, वह बहुत जल्दी खत्म हो गया।

उन्हें और उनके परिवार को उपवास करने के लिए मजबूर होना पड़ा फिर भी गीता पांडा परेशान नहीं हुए।

उन्होंने गीता का पाठ करते हुए अपने दिन खुशी-खुशी व्यतीत किए।

वह खुश था कि वह बाहर नहीं जा सका पर उसकी पत्नी उससे बहुत नाराज हो गई।

उसने उसे डांटा।

“जब तक आप बाहर जाकर भिक्षा नहीं मांगेंगे, आपको क्या लगता है कि आपका परिवार कैसे जीवित रहेगा?

हमारे तीन बच्चे हैं।

यदि आप बाहर जाकर उनके लिए कुछ नहीं लाएगें तो वे सब मर जाएँगे!”

गीता पांडा अविचलित थे ।

उन्होंने उसे भगवद्गीता का एक श्लोक दिखाया:

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।

" जो लोग हमेशा अनन्य भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, मेरे पारलौकिक रूप का ध्यान करते हैं - उनके पास जो कुछ भी नहीं है, मैं उन्हें पूरा करता हूं और जो उनके पास है, मैं उसकी रक्षा करता हूं।"

पति के व्यवहार से वह और भी चिड़चिड़ी हो गई।

उसने कई दिनों तक प्रतीक्षा की, लेकिन फिर भी उसका पति कुछ नहीं लाया।

वह बस उससे कहता रहा, "अगर हम केवल प्रभु पर निर्भर रहें, तो उन्होंने कहा कि वह सब कुछ संभाल लेंगे।"

पत्नी सोच में पड़ गई कि वह और कितना इंतजार कर सकती है।

भोजन के अभाव में बच्चे बहुत भूखे थे।

वह बहुत गुस्से में थी।

अपने पति से भगवद-गीता को लेते हुए, उन्होंने इसे उस श्लोक में खोला, जिसे उन्होंने उद्धृत किया था और श्लोक के माध्यम से तीन पंक्तियों को खंगाला।

बाद में, निराश और भूखे, वह और उसके बच्चे सोने चले गए।

कुछ देर बाद गीता पांडा ने भी आराम किया।

इसके तुरंत बाद, गीता पांडा की पत्नी ने दरवाजे पर दस्तक सुनी।

वह अपने बिस्तर से उठी और दरवाजा खोला।

वहाँ दो बहुत सुंदर लड़के खड़े थे, और वे अपने साथ खाना बनाने के लिए बहुत सारी सामग्री लाए थे।

इन दोनों अति सुन्दर बालकों को देखकर ब्राह्मणी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

उनमें से एक का रंग सांवला था और दूसरे की त्वचा दूध के रंग की थी।

सांवले लड़के ने ब्राह्मणी से कहा, "कृपया ये भोजन सामग्री ले लीजिए जो गीता पांडा के एक मित्र द्वारा भेजी गई है।

कृपया पकाएँ और फिर जी भर कर खाएँ।”

इन अत्यंत सुंदर बालकों को देखकर ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और जब उसने बालकों की वाणी सुनी तो उसका हृदय आनंद से भर गया।

वह उनके प्रति बहुत स्नेह महसूस कर रही थी।

उसने उनसे अनुरोध किया कि जब तक वह भोजन तैयार नहीं करती तब तक कृपया प्रतीक्षा करें और अपने साथ प्रसाद ग्रहण करें।

लेकिन लड़के ने जवाब दिया, "हाँ, हम आपके और आपके अच्छे पति के साथ प्रसाद लेने की बहुत इच्छा रखते हैं, लेकिन मेरी जीभ कट गई है और मैं कुछ भी नहीं खा सकता।"

इसके बाद लड़कों ने विदा ली।

गीता पंडों की पत्नी ने सभी सामग्रियों को स्टोर रूम में रख दिया और अपने पति को अपने सौभाग्य के बारे में बताने के लिए बुलाने चली गईं।

जब गीता पांडा ने आकर देखा कि सारा भण्डार तरह-तरह की सामग्री से भरा हुआ है, तो उसने अपनी पत्नी से पूछा, “इन लड़कों को खिलाया?

मुझे आशा है कि आप उनकी दया को वापस करने और उन्हें कुछ प्रसाद देने में सक्षम थे।' उनकी पत्नी ने उत्तर दिया, 'मैंने उनसे कुछ खाने और इंतजार करने के लिए कहा, लेकिन सांवले लड़के ने कहा कि किसी ने उसकी जीभ को तीन जगहों पर काट दिया था और वह खाने में असमर्थ था। ”

जब गीता पांडा ने यह सुना तो वह तुरंत समझ गया कि वह बालक स्वयं भगवान है।

क्योंकि उनकी पत्नी ने गीता के श्लोक को तीन बार खंगाला था, इसलिए भगवान के मुख कमल से निकले शब्द उनकी जिह्वा पर प्रतिबिम्बित हुए।

गीता पांडा की पत्नी ने महसूस किया कि भगवान अपने भक्तों का पालन-पोषण करने के अपने वचन को सिद्ध करने के लिए,

अपने प्रिय भक्त के लिए भोग लाया था।

तुरंत ही गीता पांडा और उनकी पत्नी जगन्नाथ मंदिर जाकर क्षमा माँगने और उनकी दया के लिए धन्यवाद देने के लिए तैयार हो गए।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 12:20


सब के पास समान आँखे हैं,
लेकिन सब के पास समान दृष्टिकोण नहीं,

बस यही इंसान को इंसान से अलग करता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 12:16


घड़ी की सुईयों की तरह जीवन में,
अपने रिश्तों को बनाए रखें,

कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई तेज है और कोई धीमा,
मायने रखता है जुडे़ रहना।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 11:59


मानस मन

हमारे पास 5 ज्ञानेन्द्रियाँ है चक्षु,कर्ण ,नासिका ,जिह्वा और त्वचा । लेकिन एक अपर मन भी है ।

मन महा - इंद्रिय, जिस व्यक्ति को वासना वशीभूत करती है वह उन्हें 5 ज्ञानेंद्रियो से भोगता है । लेकिन भोग भोगने से नहीं भोगे जाते ,भोग की कोई निश्चित परिसीमा नहीं है ।

आओ एक पुराण प्रसंग से जानते है।

ययाति के 100 पुत्र थे । जब मृत्यु का समय आया तो यमदूत उनके प्राण लेने आये ,ययाति कंपन करने लगा और उनसे विनय की के मेरे प्राण मत लीजिए ,मैंने ठीक से भोग नहीं भोगा है कुछ समय और दो ताकि ठीक से भोगों को भोग सकूँ ।
यमदूत ने कहा यह संभव नहीं है तुम्हें तो चलना ही होगा ,ययाति गिड़गिड़ाने लगा और कहा बस एक सौ साल और ,यमदूत ने कहा ठीक है पर अपने उलट अपने पुत्रों में से किसी एक को भेजना होगा ।
ययाति अत्यंत प्रसन्न हुआ । उसने अपने सबसे ज्येष्ठ पुत्र को बुलाया और सारी बात विस्तार से बताई । उस ज्येष्ठ पुत्र ने विचार किया की इनकी मृत्यु निकट है फिर तो भोग भोगने की मेरी अवस्था है उसने यमदूत के साथ जाने से इंकार कर दिया ,अन्य पुत्रों ने भी ऐसा ही किया ,परंतु कनिष्ठ पुत्र यमदूत के साथ जाने को तैयार हो गया । यमदूत को भारी आश्चर्य हुआ ।
यमदूत ने कहा तुम तो अभी बालक हो ,भोग विलास की अवस्था तुम्हारी है तुम विलास करो ,क्यों जाना चाहते हो ?
उस पुत्र ने कहा "मैं समझ गया भोग भोगने से नहीं भोगे जाते ,जब पिता का मन इतने सालो तक भोगने के बाद भी परिपूर्ण नहीं हुआ तो मेरा क्या होगा ?"

यह तो चलिए एक कथा है परंतु क्या यह सत्य नहीं ?

जिस व्यक्ति ने मन को खुली छूट दे दी उसकी वासना कभी पूर्ण नहीं होगी। बल्कि और बढ़ती ही जायेगी । कामनाओं को नियंत्रित करना है तो मन को नियंत्रित करना सीखना होगा,

जिस व्यक्ति का मन पर नियंत्रण हो जाये वह श्रद्धा के रूप में जीवन व्यतीत करता है,
वह अपने ही शरीर को अकर्मण्य भाव से देखता है
उसके सारे कर्म प्रमेय हो जाते हैं ,
वह शून्य से शिखर की यात्रा करता है ,
आत्मा और शरीर का भेद मिट जाता है
इस स्थिति में परम तत्व से अनायास ही जुड़ाव हो जाता है ,
धर्म स्थापना उसके शरीर का एक मात्र निम्मित हो जाता है ।
जन्म मरण के बंधन से सर्वथा छूट जाता है ,
पाप और पुण्य से वह विरक्त हो जाता है ,
उसके शरीर के कण कण में शिव विराजमान होते हैं ,
माया का नाममात्र भी उसके सूक्ष्म शरीर को छू नहीं पाती ।
वह जल में कमल के समान सांसारिक रूप में रहता है
उसका रोम रोम परम तत्व से जुड़ जाता है ।

ॐ नमः शिवाय

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 11:53


अच्छाई और बुराई......,
इंसान के कर्मो में होती है...,
कोई बांस का तीर बनाकर किसी को घायल करता है....,
तो कोई बांसुरी बनाकर बांस में सुर को भरता है..!!

🙏🏾 जय श्री राम 🙏🏾

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 11:51


हमे खुश ही रहना है, क्योंकि जिंदगी है छोटी, हर पल में खुश रहना है। काम में खुश रहना है। आराम में खुश रहना है, आज पनीर नहीं, दाल में ही खुश रहना है। आज गाड़ी नहीं, पैदल ही खुश रहना है, दोस्तों का साथ नहीं, अकेले ही खुश रहना है। उसके इस अंदाज से ही खुश रहना है।

जिस को देख नहीं सकता, उसकी आवाज से ही खुश रहना है, जिसको पा नहीं सकते उसको सोच कर ही खुश रहना है, बीता हुआ कल जा चुका है, उसकी मीठी याद में ही खुश रहना है, आने वाले कल का पता नहीं, इंतजार में ही खुश रहना है, हंसता हुआ बीत रहा है पल, आज में ही खुश रहना है। जिंदगी है छोटी, हर पल में खुश रहना है।

जय श्री श्याम जय सियाराम

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 11:48


अगर कोई मक्खी सब्जी तौलते हुए तराजू पर बैठ जाए तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन वही मक्खी अगर सोना"* तौलते हुए तराजू पर बैठ जाए तो उसकी कीमत बढ़ जाती है। हम कहाँ बैठते है? हम किसके साथ बैठते है? हमारा मूल्य उसी आधार पर निर्धारित किया जाता है।

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 05:09


The wise should work without attachment, for the welfare of the society.

बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए.

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

21 Oct, 03:08


सच्चाई से परमेश्वर की आराधना करने का अर्थ है उसे पहचानना कि वह कौन है, और स्वयं को पहचानना कि हम क्या हैं...!!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

20 Oct, 05:56


जपहिं_नामु_जन_आरत_भारी !
मिटहिं_कुसंकट_होहिं_सुखारी !!

ईस चौपाई के नीरन्तर जाप करने से ( संकट से घबराये हुऐ ) लोग आर्त भाव से जब ईस चौपाई का पाठ करते है तो 40 दिन मे मे वो संकट मुक्त होजाते है !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

20 Oct, 05:33


सभी विवाहित महिलाओं को करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं,
जय श्रीकृषणा🙏
भगवान से प्रार्थना है कि वह आपको तथा आपके पति देव को उतम स्वास्थ्य, दीर्घ आयु तथा सुख समृद्धि प्रदान करें ।
तेज जगे तेजस्वी हों,
मन खिल जाये मनस्वी हों,
प्राण बढ़ें ओजस्वी हों,
जहाँ भी आप रहें वर्चस्वी हों।
शुभ करवा चौथ !!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

20 Oct, 05:30


करवा चौथ व्रत पति-पत्नी के बीच के प्रेम और विश्वास का प्रतीक है।
यह व्रत पत्नियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए रखा जाता है।
इस दिन पत्नियां निर्जल व्रत रखती हैं और चंद्रमा को देखकर ही अपना व्रत तोड़ती हैं।
यह व्रत पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को मजबूत बनाने में मदद करता है।

हार्दिक शुभकामनाएं:

करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं!

आपके जीवन में प्रेम, सुख और समृद्धि की बहार आए।
आपके पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करता हूँ।
आपका व्रत सफल हो और आपके जीवन में खुशियों का आगमन हो।

आपके प्रेम और विश्वास को सलाम!

करवा चौथ की शुभकामनाएं!

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