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GyankiJyoti (Hindi)

ज्ञान के प्रकाश को जलाने वाला 'GyankiJyoti' टेलीग्राम चैनल आपके लिए एक अद्भुत स्रोत हो सकता है। इस चैनल पर हम ब्रह्मचर्य, ध्यान, नॉफैप, ब्रह्मचर्य, योग, और आध्यात्मिकता से जुड़ी जानकारी साझा करते हैं। यहाँ आपको अनमोल सीख और उपयोगी तरीके मिलेंगे जिनसे आप अपनी जीवनशैली को सुधार सकते हैं। GyankiJyoti आपको मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस चैनल को ज्वाइन करने से आप खुद को एक नई और उत्कृष्ट संस्कृति में डालने के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्राप्त करेंगे। GyankiJyoti आपके ज्ञान की ज्योति को और भी उजागर कर सकता है, इसलिए इसे अभी ज्वाइन करें और अपने जीवन को एक नयी दिशा दें।

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23 Nov, 07:23


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22 Nov, 04:57


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22 Nov, 00:23


प्रतिदिन प्रातःकाल व संध्याकाल स्नान करके एक एक घण्टा गायत्री मंत्र अर्थ सहित जप करने से असीमित बुद्धिमत्ता की प्राप्ति होती हैं,कामवासना पर विजय प्राप्त होती है,विद्यार्थी हो या कौनसी भी अर्थी कोई भी जप सकता है।

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22 Nov, 00:21


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21 Nov, 21:15


*!! नेक कर्म !!*
~~~

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया.

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए.

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा.

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब में फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा.

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया और आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नहीं कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में ले जाकर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

*शिक्षा*
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए.

अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

21 Nov, 21:15


🙏जय श्री राम 🙏

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18 Nov, 13:08


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18 Nov, 06:07


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16 Nov, 16:03


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16 Nov, 11:30


सभी भाई इस वीडियो को पूरा देखे
आपका सपोर्ट रहा तो डेली यूट्यूब पे
वीडियो डालूंगा इसीलिए भाई लोग पूरा वीडियो देखे अंत तक

🙏जय श्री राम🙏

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16 Nov, 11:29


https://youtu.be/i4hOTJ1w1k4

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15 Nov, 10:51


https://youtu.be/OYs8w3zEii4?si=3XT3Zk4Fss0kSxBC

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15 Nov, 02:52


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14 Nov, 04:00


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13 Nov, 04:34


🙏जय श्री कृष्णा🙏

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13 Nov, 04:31


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13 Nov, 04:30


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12 Nov, 11:13


वीर्य जिसे मनुष्य के प्रजनन का मूलाधार कहते है। वीर्य जो हमारे शरीर का ढाँचा चलाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण शक्ति का स्त्रोत है । इसके अनर्थक नाश से मनुष्य के विवेकबुद्धि का सम्पूर्ण नाश तय है, हमारे जीवन काल के उत्साह का त्याग यानी वीर्य का नाश ।

- डर, असंतोष, लालसा, क्रोध, महत्वाकांक्षा का अभाव. निरित्साह,नकारात्मकता ये सब वीर्य के नाश के कारण हमारे स्वभाव में बढ़ता रहता है ।

- शरीर मे वीर्य का भंडार होना यानी जान में जान आना; जीवन में हर्ष, उत्साह, उमंग का सूर्योदय होना ।

- वीर्य की कमी से एकाग्रता की कमी महसूस होती है, इससे अपने काम मे हमेशा परेशानी होती हैं ।

- आत्महीनता: इसके कारण हम अपना आत्मविश्वास खों बैठते है , जिससे हम हमेशा डरते है ।

- अपने सामर्थ्य को हम न्यून मानकर खुदको ही कोसते रहते है ।

- अपने माता-पिता को दोष देना, अपने आपको कोसते रहना, किसीसे से बात न करना, अपने आपको चार दीवारी के अंदर कैद करना यह सब अनुभव अतिरिक्त वीर्यनाश के कारण महसूस होते है ।

- वीर्य नाश से बाल झडते है,पुरुषों में दाढ़ी और मूछ आना बंद होता है ।

- किसी भी चीज़ को समझने-समजाने की, लिखने की,पढ़ने की,बोलने की गति धीमी हो जाती है ।

- किसी के साथ बातचीत करना भी कठिन जान पड़ता है, अपनी बात बोलने के लिए शब्द भी आसानी से नही मिल पाते ।

GyankiJyoti

12 Nov, 08:06


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12 Nov, 06:38


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12 Nov, 04:10


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12 Nov, 03:24


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11 Nov, 16:53


बुद्ध ने महल का त्याग
किया शांति के लिए,
हम शांति का त्याग कर
रहें है महल के लिए।.

GyankiJyoti

11 Nov, 16:53


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11 Nov, 06:00


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11 Nov, 03:05


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11 Nov, 03:05


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11 Nov, 03:01


जय श्री राम

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10 Nov, 11:15


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10 Nov, 10:17


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10 Nov, 10:08


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10 Nov, 03:14


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10 Nov, 03:11


भारत में ब्रह्मचर्य की प्राचीन भावना और अभ्यास का व्युत्पन्न अर्थ है " आचरण का एक तरीका जो मन को ब्रह्म या ईश्वर पर केंद्रित रखता है ।" इससे ब्रह्म की ईमानदारी से खोज करने का विशिष्ट साधन उत्पन्न होता है, जो कि कुछ आध्यात्मिक सिद्धांतों का पालन करना और पूर्ण होने तक सभी इंद्रियों को नियंत्रित करना है ...

GyankiJyoti

10 Nov, 03:08


ब्रह्मचर्य के बारे में ज़रूरी जानकारीः
ब्रह्मचर्य का मतलब है, परमात्मा में विचरना या सदा उसका ध्यान करना.

ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचारी कहते हैं.

ब्रह्मचर्य, योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है.

ब्रह्मचर्य का पालन करने से असाधारण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है.

ब्रह्मचर्य, वैदिक धर्म के वर्णाश्रम का पहला आश्रम है.

ब्रह्मचर्य, आत्म-नियंत्रण का उच्चतम स्तर होता है.

ब्रह्मचर्य में, अस्थायी सांसारिक सुखों की इच्छाओं को त्यागकर धार्मिक लक्ष्यों की ओर ध्यान केंद्रित किया जाता है.

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कोई एक तरीका नहीं है.

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए, कम से कम 90 दिन का समय देना चाहिए.

ब्रह्मचर्य के कुछ सामान्य नियमः
ब्रह्म बेला (सुबह 3-3.30 बजे) में उठकर शौच, स्नान, प्राणायाम, नाम जप, और ध्यान करना चाहिए.

संध्या काल में भी शौच, स्नान, प्राणायाम, आसन, नाम जप या मंत्र जप, और ध्यान करना चाहिए.

यथा संभव सत्य का पालन करना चाहिए.

@Gyankijyoti

GyankiJyoti

08 Nov, 03:26


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08 Nov, 03:25


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08 Nov, 03:14


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08 Nov, 03:05


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GyankiJyoti

07 Nov, 03:50


GyankiJyoti-

जिस भाई को (स्वप्नदोष) होता हो
(वीर्य पतला) हो गया हो
(शीघ्रपतन) की समस्या हो
(डिप्रेशन) की समस्या हो
(शरीर पतला हो
(ताकत की कमी हो

तो मैंने आपको ऐसी जड़ी बूटियों से निर्मित स्वदेशी आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स को बनाया है
जिसका इस्तमाल करके आप इन बीमारियो को ठीक कर सकते हो..
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GyankiJyoti

07 Nov, 03:02


हिंदू धर्म और शास्त्रों में ब्रह्मचर्य में रहकर प्रेम के नियम जीवन को संतुलित और पवित्र बनाए रखने के उद्देश्य से निर्धारित किए गए हैं। ये नियम यह बताते हैं कि प्रेम एक जिम्मेदारी है और इसका पालन मर्यादा और नैतिकता के दायरे में रहकर किया जाना चाहिए। यहाँ प्रेम के कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं:

1. मर्यादा का पालन: प्रेम में हमेशा मर्यादा का पालन करना चाहिए। वैदिक परंपरा में प्रेम को एक गहन और पवित्र भावना माना गया है, इसलिए प्रेम का प्रदर्शन खुलेआम न करके निजी रूप में ही किया जाना चाहिए।


2. प्रतिबद्धता और ईमानदारी: प्रेम में निष्ठा (फेथफुलनेस) और सच्चाई होना आवश्यक है। प्रेमी और प्रेमिका को एक-दूसरे के प्रति ईमानदार और वफादार रहना चाहिए। हिंदू धर्म में विवाह का बंधन भी इस पर आधारित है कि दोनों जीवनभर एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी से बंधे रहें।


3. समर्पण और भक्ति: शास्त्रों में प्रेम को भक्ति के रूप में भी देखा गया है। प्रेम में अपने साथी के प्रति समर्पण और सम्मान दिखाना जरूरी है। इसे एक ऐसी भावना माना गया है जो किसी को खुद से ऊपर रखती है और उसमें कोई स्वार्थ नहीं होना चाहिए।


4. प्रेम और काम के बीच संतुलन: प्रेम और शारीरिक आकर्षण (काम) के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। वेदों और उपनिषदों में प्रेम को काम से ऊपर रखा गया है और इसे आत्मा के संबंध से जोड़ा गया है, जबकि काम का संबंध केवल शारीरिक सुख से होता है। प्रेम को हमेशा आत्मिक और सात्विक बनाए रखना चाहिए।


5. धार्मिक नियमों का पालन: हिंदू धर्म में यह आवश्यक है कि प्रेम धर्म और संस्कृति के अनुसार हो। प्रेम में दोनों व्यक्तियों को अपने धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए और इसके अनुसार ही रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए। विवाह जैसे संबंधों के लिए उचित समय और सामाजिक स्वीकृति का पालन आवश्यक माना गया है।


6. आत्म-संयम: प्रेम में आत्म-संयम का महत्व बताया गया है। एक-दूसरे के प्रति प्रेम भावना का आदान-प्रदान करते समय मर्यादा और संयम बनाए रखना चाहिए, जिससे कि प्रेम एक पवित्र रूप में बना रहे।


7. समानता और सम्मान: प्रेम में एक-दूसरे के विचारों, इच्छाओं और भावनाओं का आदर करना जरूरी है। साथी को समान रूप से देखना और उनके प्रति सम्मान का भाव रखना प्रेम का आधार है।



इन नियमों का पालन करके ब्रह्मचर्य में प्रेम को स्थिर, सुखद और मर्यादित बनाए रखा जा सकता है।


जय श्री राम

GyankiJyoti

07 Nov, 03:00


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05 Nov, 13:50


https://youtube.com/shorts/nomIslFISxs?feature=share

GyankiJyoti

04 Nov, 20:19


लँगोट
मानव जीवन में ऊर्जा का बड़ा महत्‍व है। यहाँ तक कि संभोग से लेकर समाधि तक में यह ऊर्जा ही महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारी सारी सांस्‍कृतिक व आध्‍यात्मिक गतिविधियाँ हमारे शरीर के भीतर मौजूद ऊर्जा पर ही निर्भर हैं। ऊर्जा का स्रोत एक ही है जिसे काम केंद्र कहा जाता है। योग की भाषा में शरीर में स्थित सात चक्रों में पहला चक्र मूलाधार इसका स्रोत है, जहाँ हमारी ज्ञानेंद्रियां स्थित होती हैं। आधुनिक युग के चर्चित रहस्‍यदर्शी ओशो के अनुसार शरीर में ऊर्जा एक ही है जब वह मूलाधार से नीचे की तरफ़ सरकती है तो संसार शुरू होता है और जब ऊपर तरफ़ उठती है तो परमात्‍मा शुरू होता है। यही ऊर्जा ऊपर उठते हुए जब सातवें चक्र यानी सहस्रार तक पहुंच जाती है तो आत्‍मा अपने चरम विकास पर पहुंचती है यानि वह परमात्‍मा हो जाती है। अंत:वस्‍त्र लंगोट द्वारा इस ऊर्जा का संरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं, आइए इसकी जानकारी करते हैं। संक्षेप में लंगोट पहनने के लाभ जानते हैं।

अंत:वस्‍त्र लंगोट का महत्त्व
इस ऊर्जा संरक्षण के लिए पुरुषों का अंत:वस्‍त्र लंगोट बड़े काम का है। यह जननांग को केवल ढकता ही नहीं है बल्कि उसे दबाकर रखता है ताकि ऊर्जा नीचे की तरफ़ सरकने के लिए सक्रिय न हो सके। इस शब्‍द में जो अर्थ निहित है – लं और गोट । वह भी इसी तरफ़ इशारा करता है, अर्थात्‌ जो लं और गोट दोनों को संभाल सके वह लंगोट। इसीलिए पहले ऋषि-मुनि जो साधनारत थे, लंगोट के इस्‍तेमाल से ऊर्जा को संरक्षित करने का प्रयास करते थे। धीरे-धीरे यह बल व पौरुष का प्रतीक बन गया। जहां भी पौरुष के संरक्षण की ज़रूरत पड़ी, वहां लंगोट मौजूद हो गया। हनुमानजी के अधिकतर चित्रों में लंगोट पहने ही देखे जाते हैं। पहलवानों का यह बहुत प्रिय वस्‍त्र है। जिस पुरुष को स्त्रियां प्रभावित व आकर्षित न कर सकें, उन्‍हें लंगोट का पक्‍का व्‍यक्ति कहा जाता है।
अब ऐसी कच्छियां आ गई हैं जिनमें लंगोट की गरिमा को संरक्षित करने की कूबत है। लंगोट ने अपना स्‍वरूप बदला लेकिन उसके गुण नहीं बदले। आज जो पहलवान अखाड़ों में लड़ते समय कच्छियां पहनते हैं, वे अंत:वस्‍त्र लंगोट का ही काम करती हैं।

लंगोट पहनने के लाभ
अंत:वस्‍त्र लंगोट काम वासना पर नियंत्रण तो करता ही है, इसे पहनने वाले को कभी हाइड्रोशील की बीमारी नहीं होती और अंडकोश को यह चोट से बचाता है, ख़ासकर साइकिल, मोटरसाइकिल आदि से गिरने पर लगने वाली चोट से। दौड़ने, चलने, योगासान व व्‍यायाम में सुविधाजनक है।
मांगलिक कार्यों खासकर रामचरितमानस के अखंड पाठ, किसी भी तरह का यज्ञ, महायज्ञ आदि में जो ध्‍वज लगता है वह लंगोट के आकार का ही होता है जो ब्रह्मचर्य की ओर जाने का इशारा करता है, यानि ऊर्जा संरक्षण का संदेश देता है। कुल मिलाकर यह ऊर्जा संरक्षण का प्रतीक चिह्न है। आज भी यह बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी सहित अनेक देवताओं को चढ़ाया जाता है। मन्‍नतें पूरी होने पर अनेक देव स्‍थानों पर लंगोट चढ़ाने की परंपरा आज भी जीवित है।

GyankiJyoti

04 Nov, 20:09


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04 Nov, 04:54


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GyankiJyoti

04 Nov, 04:54


इसे सुनना अच्छा लगेगा

GyankiJyoti

03 Nov, 17:17


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GyankiJyoti

03 Nov, 01:07


🙏🙏Jai shree Ram 🙏🙏

GyankiJyoti

02 Nov, 18:17


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01 Nov, 13:52


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GyankiJyoti

30 Oct, 16:32


*!! प्रथम अवसर !!*
~~~

एक किसान की बहुत ही सुन्दर बेटी थी। एक नौजवान लड़का उस किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास आया।

उसने किसान की बेटी से शादी करने की इच्छा जताई। किसान ने उसकी ओर देखा और कहा- युवक तुम खेत में जाओ, मैं एक-एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ। यदि तुम तीनों बैलों में से किसी एक की भी पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा।

नौजवान इस आसान शर्त को सुनकर खुश हो गया और खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकर खडा हो गया। किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला। तभी एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमें से निकला। नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था। अतः उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया।

दरवाजा फिर खुला, आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला। नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था। फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया।

दरवाजा तीसरी बार खुला, नौजवान के चहरे पर मुस्कान आ गई। इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला। जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले। पर यह क्या उस बैल की तो पूँछ ही नहीं थी।

*शिक्षा:-*
हर एक इंसान की जिन्दगी अवसरों से भरी हुई है। कुछ सरल हैं और कुछ कठिन। पर अगर एक बार अवसर गंवा दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा। अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए..!!

GyankiJyoti

29 Oct, 16:02


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28 Oct, 12:30


ब्रह्मचर्य पालन करने वाले भाई लोग इसे देखे काफी हेल्प मिलेगी इस वीडियो को देखने से

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28 Oct, 12:29


https://youtube.com/shorts/jsPKKH68U3k?si=hpnHxpdABWMZStSO

GyankiJyoti

28 Oct, 05:49


*!! मैले कपड़े !!*
~~

एक दिन की बात है। एक मास्टर जी अपने एक अनुयायी के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे, पर बावजूद इसके मास्टर मुस्कुराते हुए चलते रहे। मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा। पर इसके बावजूद मास्टर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। मास्टर पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया।

उस व्यक्ति के जाते ही अनुयायी ने आश्चर्य से पुछा, “मास्टर जी आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया और तो और आप मुस्कुराते रहे, क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुंचा ?”

मास्टर जी कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।

कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर जी के कक्ष तक पहुँच गए। मास्टर जी बोले, “तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया।”

मास्टर जी कुछ देर बाद एक मैले कपड़े को लेकर बाहर आये और उसे अनुयायी को थमाते हुए बोले, “लो अपने कपड़े उतारकर इन्हें धारण कर लो ?”

कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया।

मास्टर जी बोले, “क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता।

*शिक्षा:-*
इतना याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

27 Oct, 03:44


*!! लालच की दुनिया !!*
~~~~

एक दिन गाँव की एक बहू सफाई कर रही थी, मुँह में सुपारी थी पीक आया तो उसने गलती से यज्ञवेदी में थूक दिया। उसे आश्चर्य तब हुआ जब उसका थूक स्वर्ण में बदल गया। अब तो वह प्रतिदिन जान बूझकर वेदी में थूकने लगी और उसके पास धीरे-धीरे स्वर्ण बढ़ने लगा।

महिलाओं में बात तेजी से फैलती है, इसलिए कई और महिलाएं भी अपने-अपने घर में बनी यज्ञवेदी में थूक-थूक कर सोना उत्पादन करने लगीं। धीरे-धीरे पूरे गाँव में यह सामान्य चलन हो गया। सिवाय एक महिला के, उस महिला को भी अनेक दूसरी महिलाओं ने उकसाया, समझाया, अरी ! तू क्यों नहीं थूकती ?

जी, बात यह है कि मैं अपने पति की अनुमति बिना यह कार्य हर्गिज नहीं करूँगी और जहाँ तक मुझे ज्ञात है वह अनुमति नहीं देंगे। किन्तु ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा वातावरण बनाया कि आखिर उसने एक रात डरते-डरते अपने पति को पूछ ही लिया। खबरदार जो ऐसा किया तो, यज्ञवेदी क्या थूकने की चीज़ है ?

पति की गरजदार चेतावनी के आगे बेबस वह महिला चुप हो गई पर जैसा वातावरण था और जो चर्चाएँ होती थी, उनसे वह साध्वी स्त्री बहुत व्यथित रहने लगी। खास कर उसके सूने गले को लक्ष्य कर अन्य स्त्रियाँ अपने नए-नए कण्ठ-हार दिखाती तो वह अन्तर्द्वन्द में घुलने लगी। पति की व्यस्तता और स्त्रियों के उलाहने उसे धर्मसंकट में डाल देते।

यह शायद मेरा दुर्भाग्य है, अथवा कोई पूर्वजन्म का पाप कि एक सती स्त्री होते हुए भी मुझे एक रत्ती सोने के लिए भी तरसना पड़ रहा है। शायद यह मेरे पति का कोई गलत निर्णय है, ओह ! इस धर्माचरण ने मुझे दिया ही क्या है ?

जिस नियम के पालन से दिल कष्ट पाता रहे उसका पालन क्यों करूँ ? और हुआ यह कि वह बीमार रहने लगी। पतिदेव इस रोग को ताड़ गए और उन्होंने एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही सपरिवार ग्राम त्यागने का निश्चय किया। गाड़ी में सारा सामान डालकर वे रवाना हो गए। सूर्योदय से पहले-पहले ही वे बहुत दूर निकल जाना चाहते थे।

किन्तु ! अरे ! यह क्या ? ज्यों ही वे गाँव की कांकड़ (सीमा) से बाहर निकले ! पीछे भयानक विस्फोट हुआ। पूरा गांव धू-धू कर जल रहा था। सज्जन दम्पत्ति अवाक् रह गए। अब उस स्त्री को अपने पति का महत्त्व समझ आ गया। वास्तव में, इतने दिन गाँव बचा रहा, तो केवल इस कारण कि उसका परिवार गाँव की परिधि में था।

*शिक्षा:-*
धर्मांचरण करते रहें, कुछ पाने के लालच में इंसान बहुत कुछ खो बैठता है। इसलिए लालच से बचें।

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26 Oct, 17:14


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25 Oct, 18:33


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GyankiJyoti

24 Oct, 00:48


कोई 15 साल से कोई 20 साल से अपनी शक्ति को बर्बाद कर रहा, अभी सिर्फ 15, 20 दिन ही ब्रह्मचर्य पालन करके सभी समस्या ठीक हो जाये ऐसी उम्मीद करना बुद्धिमानी नहीं है । की हुई गलती का side effects को भुगतने में कोई आपको बचा नहीं सकता , न कोई मदद कर सकता है, हाँ इतना जरूर है , आप खुद अपने पुरुषार्थ से कम से कम एक साल भी ईमानदारी से ब्रह्मचर्य का पालन करें तो 70% समस्या से मुक्ति पा सकते है, बाकी 30% समस्या का महत्व खत्म हो जाएगा जब आपके जीवन में आध्यात्मिक शक्ति आएगी । इसलिए रोते रोते समय खराब न करें, न कोई सुनेगा न कोई बचाएगा, ये सत्य है आपके पुरुषार्थ के सामने भगवान भी यार दोस्त बन सकता है , ये सिर्फ हमारा विचार नहीं बल्कि सनातन संस्कृति का सनातन विचार है

GyankiJyoti

23 Oct, 01:37


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20 Oct, 16:22


मोर मोरनी की कहानी (अजीत मिश्रा)

एक समय की बात है, एक जंगल में एक मोर और उसकी मोरनी रहती थी। मोर बहुत खूबसूरत था, उसके पंखों पर रंग-बिरंगी धारियाँ थीं। वह बहुत अच्छा नाचता भी था। मोरनी भी बहुत सुंदर थी, लेकिन वह मोर की तरह अच्छा नहीं नाचती थी। मोर हमेशा मोरनी का मज़ाक उड़ाया करता था। वह कहता था, "तुम तो अच्छी नाचती ही नहीं हो। तुम नाचने के लायक नहीं हो।"

मोर के इस तरह से मज़ाक उड़ाने से मोरनी का आत्मविश्वास कमजोर होता जा रहा था। वह धीरे-धीरे कोई भी काम करती तो वह सब कुछ गड़बड़ कर देती थी। एक दिन, मोरनी जंगल में घूम रही थी। तभी उसकी मुलाकात एक बाज से हुई। बाज बहुत बुद्धिमान और दयालु था। उसने मोरनी से पूछा, "तुम इतनी उदास क्यों हो?"

मोरनी ने बाज को सारी बात बताई। बाज ने मोरनी को समझाया, "तुम बहुत सुंदर हो। तुम्हारी आवाज भी बहुत अच्छी है। तुम बस थोड़ा अभ्यास करोगी तो तुम बहुत अच्छा नाचोगी।"

बाज की बातों से मोरनी को बहुत अच्छा लगा। उसने बाज की सलाह मानी और नाचने का अभ्यास करने लगी। बाज भी मोरनी का साथ देता रहता था। वह हमेशा मोरनी की प्रशंसा करता रहता था। इससे मोरनी का आत्मविश्वास बढ़ता गया। कुछ दिनों बाद, जंगल में एक नाचने की प्रतियोगिता होने वाली थी। मोर और मोरनी दोनों ने इस प्रतियोगिता में भाग लेने का फैसला किया। नाचने की प्रतियोगिता के दिन, जंगल के सभी जानवर इकट्ठा हो गए। सभी को लग रहा था कि यह नाच प्रतियोगिता मोर ही जीतेगा। सबसे पहले मोर ने नाच किया। उसने बहुत अच्छा नाच किया। सभी जानवर उसकी तारीफ करने लगे। फिर मोरनी ने नाचना शुरू किया। उसने अपनी पूरी शक्ति से नाचा। उसकी आवाज़ भी बहुत अच्छी थी वह नाच के साथ साथ सुरीली आवाज मे गाना भी गा रही थी। उसके गाने की धुन मे जंगल के सभी जानवर ही नहीं अपितु वहाँ मौजूद पेड़-झड़िया आदि भी झूम रहे थे। मोरनी का नाच देखकर सभी जानवर दंग रह गए। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मोरनी इतना अच्छा नाच सकती है।

अंत में, मोरनी ने नाच प्रतियोगिता जीत ली। सभी जानवर मोरनी की जीत पर बहुत खुश हुए। मोरनी ने अपने जीत का श्रेय बाज को दिया। उसने कहा, "मैंने अपनी जीत बाज की वजह से हासिल की है। उसने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया।"

कहानी की शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हमें कोई प्रोत्साहित करने वाला साथी मिलता है जो सकारात्मक ऊर्जा और सोच वाला होता है तो बुरा प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति भी अच्छा प्रदर्शन करने लगता है।

GyankiJyoti

20 Oct, 16:21


हस्तमैथुन से उत्तेजना मिलता है और उस उत्तेजना के कारण कुछ देर आंनद का अनुभव होता है । हस्तमैथुन की आदत छोड़ना चाहते हो तो ये स्वाभाविक है कि उससे मिल रही उत्तेजना को भी छोड़ना होगा । लेकिन बात यही खत्म नही होती । उत्तेजना और भी चीज़ों से मिलती है ,उन उत्तेजनाओं को भी त्यागना होगा । अगर मन उत्तेजनाओं के पीछे ही भागता रहेगा तो फिर हमारा मन हस्तमैथुन से मिल रही उत्तेजना की भी मांग करेगा । इसलिए अपने आनंद का स्रोत किसी भी प्रकार के उत्तेजना को न बनाओ । मसालेदार भोजन , मिठाई इत्यादि से भी उत्तेजना मिलती है , गाने सुनना , फिल्मे देखना ये सारे हमारे मन को उत्तेजनाओं के आदि बना देता है । हालांकि एक बात स्पष्ट कर दूँ कि प्राकृतिक उत्तेजनाओं में कुछ गलत नही होता क्योंकि वे हमारे मन में डोपामाइन स्तर को सामान्य से अधिक बढ़ने नही देती । ध्यान प्राणायाम व्यायाम आदि से प्राकृतिक उत्तेजन मिलती है जिसमे कोई बुराई नही है ।

GyankiJyoti

19 Oct, 18:44


गंगा नदी के तट पर कुछ तपस्वियों का आश्रम था जहाँ याज्ञवल्क्य नाम के ऋषि रहते थे. एक दिन वो नदी के किनारे आचमन कर रहे थे. उसी वक़्त आकाश में एक बाज अपने पंजे में एक चुहिया को दबाये जा रहा था जो उसकी पकड़ से छूटकर ऋषि की पानी से भरी हथेली में आ गिरी. ऋषि ने उसे एक पीपल के पत्ते पर रखा और दोबारा नदी में स्नान किया. चुहिया अभी मरी नहीं थी इसलिए ऋषि ने अपने तप से उसे एक कन्या बना दिया और आश्रम में ले आये. अपनी पत्नी से कहा इसे अपनी बेटी ही समझकर पालना. दोनों निसंतान थे इसलिए उनकी पत्‍नी ने कन्या का पालन बड़े प्रेम से किया. कन्या उनके आश्रम में पलते हुए बारह साल की हो गयी तो उनकी पत्‍नी ने ऋषि से उसके विवाह के लिए कहा.

ऋषि ने कहा में अभी सूर्य को बुलाता हूँ. यदि यह हाँ कहे तो उसके साथ इसका विवाह कर देंगे ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह अग्नि जैसा गरम है. कोई इससे अच्छा वर बुलाइये.”

तब सूर्य ने कहा बादल मुझ से अच्छे हैं, जो मुझे ढक लेते हैं. बादलों को बुलाकर ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह बहुत काले हैं कोई और वर ढूँढिए.”

फिर बादलों ने कहा “वायु हमसे भी वेगवती है जो हमें उड़ाकर ले जाती है."

तब ऋषि ने वायु को बुलाया और कन्या की राय माँगी तो उसने कहा “पिताजी यह तो बड़ी चंचल है. किसी और वर को बुलाइए."

इस पर वायु बोली “पर्वत मुझसे अच्छा है, जो तेज़ हवाओं में भी स्थिर रहता है.”

अब ऋषि ने पर्वत को बुलाया और कन्या से पूछा. कन्या ने उत्तर दिया “पिताजी, ये बड़ा कठोर और गंभीर है, कोई और अच्छा वर ढूँढिए न.”

इस पर पर्वत ने कहा “चूहा मुझसे अच्छा है, जो मुझमें छेद कर अपना बिल बना लेता है.”

ऋषि ने तब चूहे को बुलाया और बेटी से कहा “पुत्री यह मूषकराज क्या तुम्हें स्वीकार हैं?”

कन्या ने चूहे को देखा और देखते ही वो उसे बेहद पसंद आ गया. उस पर मोहित होते हुए वो बोली “आप मुझे चुहिया बनाकर इन मूषकराज को सौंप दीजिये.”

ऋषि ने तथास्तु कह कर उसे फिर चुहिया बना दिया और मूषकराज से उसका स्वयंवर करा दिया.

*शिक्षा:-*
जन्म से जिसका जैसा स्वभाव होता है वह कभी नहीं बदल सकता.

GyankiJyoti

14 Oct, 15:35


एक कबूतर और एक क़बूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे।

उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया ।

क़बूतरी के मन में कुछ शंका हुआ औऱ उसने क़बूतर से कहा कि चलो जल्दी उड़ चले नहीं तो ये आदमी हमें मार डालेगा।

क़बूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान के साथ क़बूतरी से कहा..भला उसे ग़ौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है, ये हमें क्या मारेगा..बिलकुल सज्जन पुरुष लग रहा है...?

क़बूतर की बात सुनकर क़बूतरी चुप हो गई।

जब वह आदमी उनके क़रीब आया तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर कमान निकाला औऱ झट से क़बूतर को मार दिया...औऱ बेचारे उस क़बूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए....

असहाय क़बूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई औऱ बिलखने लगी।उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा औऱ पल भर में ही उसका सारा संसार उजड़ गया।

उसके बाद वह क़बूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई औऱ राजा को उसने पूरी घटना बताई।

राजा बहुत दयालु इंसान था।

राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को उस शिकारी को पकड़कर लाने का आदेश दिया।

तुरंत शिकारी को पकड़ कर दरबार में लाया गया।शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

उसके बाद राजा ने क़बूतरी को ही उस शिकारी को सज़ा देने का अधिकार दे दिया औऱ उससे कहा कि " तुम जो भी सज़ा इस शिकारी को देना चाहो दे सकती हो औऱ तुरंत उसपर अमल किया जाएगा "।

क़बूतरी ने बहुत दुःखी मन से कहा कि " हे राजन,मेरा जीवन साथी तो इस दुनिया से चला गया जो फ़िर क़भी भी लौटकर नहीं आएगा, इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को बस इतनी ही सज़ा दी जानी चाहिए कि
अगर वो शिकारी है तो उसे हर वक़्त शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए , ये शराफत का लिबास वह उतार दे क्योंकि शराफ़त का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं....।

..............

इसलिए अपने आसपास शराफ़त का ढोंग करने वाले बहरूपियों से हमेशा सावधान रहें..........सतर्क रहें औऱ अपना बहुत ख़याल रखें.........!!

GyankiJyoti

09 Oct, 19:08


हस्तमैथून /वीर्यनाश /ब्रह्मचर्य खंडन करने के बुरे प्रभाव :

● हमारे ऊर्जा को छिन करती है ।
● आंखों की चारो ओर काली रेखाएं आ जाना ।
● धसी हुई आंखें होना।
● खून की कमी के कारण चेहरा पिला पढ़ जाना ।
● यादाश्त में कमी होना ।
● आंखों की रोशनी कम हो जाना ।
● पेसाब के साथ वीर्य का निकलना ।
● जननांग का टेढ़ा , छोटा और शिथिल होना ।
● उसपर नस का उभर जाना ।
● अंडकोष में दर्द रहना ।
● पीठ , कमर और जोड़ो में दर्द रहना ।
● हृदय की ढरकन तेज़ चलना ।
● मन का अस्थिर और चंचल रहना ।
● विचार शक्ति में कमी ।
● बुरे और कमुख विचार आना ।
● पुरुषों में यौन नपुंसकता और स्त्रियों में बांझपन का होना ।

नोट : ऊपर बताये गए सभी समस्या का समाधान के लिए कोई दवाखाना जाना मूर्खता होगी । इसका एक ही सरल समाधान है और वो है ब्रह्मचर्य ।

ब्रह्मचर्य / वीर्य संरक्षण के लाभ :

शारीरिक लाभ :

१. शारीरिक स्वास्थ्य सदैव अच्छा बना रहता है।
२. शरीर तेजोमय व आरोग्य बन जाता है।
३. शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।
४. शरीर दीर्घायु को प्राप्त करता है।
५. मुख मण्डल पर अलौकिक आभा होती है।
६. उत्तम व संस्कारित सन्तान प्राप्त होती है।
७. समस्त इन्द्रिय समुह स्वस्थ्य एवं संयम में रहता है।
८. शरीर के त्यागने पर सद्गति मिलती है।
९. सहन शक्ति, उत्साह व साहस में वृद्धि होती है।
१०. गिलहरियों के समान शरीर में फुर्ती रहती है ।

बौद्विक लाभ :

१. ब्रह्मचर्य सदाचार (सज्जनों का आचरण) का आधार है।
२. ब्रह्मचर्य से समस्त दोषों का नाश होता है।
३. यह हमारी श्रेष्ठता एवं सम्पूर्ण उन्नति का साधन है।
४. वेद-अध्ययन एवं ईश्वर चिन्तन में मन लगता है।
५. जीवन के उत्थान एवं सफलता में सहायक है।
६. बौद्विक बल की प्राप्ति होती है।
७. स्मरण शक्ति तेज व स्थायी बनी रहती है।
८. मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की दिशा में प्रर्याप्त   उन्नति करता हुआ सद्गति को प्राप्त करता है।

आत्मिक/ अध्यात्मिक लाभ :

●ब्रह्मचर्य ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की आधारशिला है।
●मानसिक शक्तियों के विकास में सहायक है।
●आत्मिक बल बना रहता है। आत्मिक शक्तियाँ विकसित होती हैं।
●जीवन आनन्दमय बन जाता है।
●ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना में मन व हृदय लग जाता है।
●धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष स्वयं सिद्ध होने लगते हैं।
●आत्म ज्ञान एवं परमानन्द की प्राप्ति होती है।

समाजिक लाभ :

●समाज में पाप, विशेषकर वासना सम्बन्धी, कम होते हैं।
●समाज में आर्थिक उन्नति (सभी वर्गों में) एक समान होने की प्रवृति बनती जाती है।
●यम-नियम पालन की प्रेरणा मिलती है।
●गरीब-अमीर में आर्थिक असमानता कम होती जाती है।
●आज के सभी क्षेत्रों में प्रर्याप्त उन्नति होने की प्रकिया को बढ़ावा मिलता है।
●सभी जीवों के प्रति प्रेम बढ़ता जाता है।
●सभी प्राणियों के मानव अधिकारों की रक्षा होती है।

इस दिव्य ऊर्जा के संरक्षण से दृड़ इच्छा शक्ति , तेज़ बुद्धि , अच्छा व्यवहार और आध्यात्मिक उत्थान की प्राप्ति होती है ।युवाओं से मेरी अपील है की वे महत्वपूर्ण तरल प्रदार्थ-वीर्य के मूल्य को समझे ।वीर्य के प्रत्येक बून्द को संरक्षित करने के लिए आपको अपने स्तर भर भरपूर प्रयास करनी चाहिए ।और आपको इस काम ऊर्जा को रूपांतरित करने के बारे में सोचना चाहिए ।

GyankiJyoti

04 Oct, 03:09


• वीर्य सूक्ष्म रूप में शरीर के सभी कोशाणुओं में पाया जाता है। जिस प्रकार गन्ने में शर्करा तथा दुग्ध में मक्खन सर्वत्र व्याप्त होता है, उसी प्रकार वीर्य समग्र शरीर में व्याप्त रहता है। जिस प्रकार मक्खन निकाल लेने पर छाछ पतली रह जाती है उसी प्रकार वीर्य का अपव्यय होने से वह पतला पड़ जाता है। जितना ही अधिक वीर्य का नाश होता है उतनी ही अधिक दुर्बलता आती है । योगशास्त्र में कहा है: “मरणं बिन्दुपतनात् जीवनं बिन्दुरक्षणात् । " - वीर्य का नाश ही मृत्यु है और वीर्य की रक्षा ही जीवन है। यह मनुष्य का सबसे कीमती खजाना है । यह मुखमण्डल को ब्रह्म तेज तथा बुद्धि को बल प्रदान करती है।

GyankiJyoti

02 Oct, 13:34


एक गाँव था, उस गाँव के रास्ते में बहुत घना जंगल था. जंगल घना होने के कारण तरह तरह के पशु-पक्षी जंगल में रहते थे. एक शेर भी रहता था. शेर कभी-कभी गाँव में घुसकर काफी तहलका मचाता था. इसी वजह से गाँव वाले जंगल के रास्ते में एक पिंजड़ा रख दिए थे. रात हुई सभी अपने-अपने घरों के अन्दर हो गये. गाँव शांत हो गयी. तभी शेर उसी रास्ते से गाँव की ओर जा रहा था. रास्ते में लगा पिंजड़ा में उसका पैर फंसा और भारी शरीर होने के कारण शेर पिंजड़े में बंद हो गया. अब वह उस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका था. काफी कोशिश करने के बावजूद भी वह वहाँ से नहीं निकल पाया. पूरी रात शेर पिंजड़े में ही कैद रहा.

सुबह हुई कुछ समय बाद उसी रास्ते से गाँव में एक व्यक्ति जा रहा था. तभी शेर बोला - "ओ भाई! ओ भाई!" वह व्यक्ति शेर को पिंजड़े में देखकर डर गया. शेर को काफी तेज़ की भूख लगी थी.

शेर ने उस व्यक्ति से कहा - "मेरी सहायता करो. मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है. कृपया कुछ पानी पिला दो."

व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो, अगर मुझे ही अपना शिकार बना लिए तो!" शेर बोला - "नही भाई! मैं ऐसा नहीं करूंगा."

शेर की लाचारी देखकर उस व्यक्ति को शेर पर दया आ गयी और वह बगल के तालाब से पानी ले आया और शेर को पानी पिलाया. शेर पानी पी लिया उसके बाद फिर से उस व्यक्ति को बोला - "प्यास तो बुझ गयी अब पूरी रात से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो न." उस व्यक्ति ने शेर के भोजन की व्यवस्था में जुट गया और कहीं कहीं से उसका भोजन ले आया. शेर भोजन भी किया.

शेर ने फिर से आवाज लगायी - "ओ भले इन्सान! मैं इस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका हूँ. कृपा करके इस पिंजड़े से मुझे आजाद करा दो." वह व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी और सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो. पिंजड़े के बाहर आते ही तु अपनी रूप में आ जाएगा.

शेर बोला - "मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा."

वह व्यक्ति उसकी बात मान कर पिंजड़ा का दरवाजा खोल दिया और शेर बाहर आ गया. शेर बहार आते ही पहले चैन की साँस ली और बोला मेरी अभी तक भूख मिटी नहीं है और भोजन भी सामने है. सो भोजन तलाशने का भी जरुरत नही है. अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ.

इतना सुन वह व्यक्ति डर से काँपने लगा और बोला - "तुम बेईमानी नहीं कर सकते. तुमने पहले ही बोला था की मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा और तुम्हारे परिवार कोb भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो."

शेर बोला - मैं प्राणी ही उसी तरह का हूँ. मुझे बहुत जोर से भूख लगी है तो अब कुछ नहीं. संयोग से ये सब घटना पास के एक पेड़ पर बैठे बन्दर देख रहा था. शेर और उस व्यक्ति में बहस चल ही रही थी तभी बीच में से बन्दर बोल पड़ा - "क्या बात है! क्या बहस हो रही है? उस व्यक्ति ने बन्दर को सारी बात बताई। बन्दर बोला - अच्छा! तो ये बात है. वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजड़े में कैसे आ सकता है? नहीं ! नहीं ! ये हो ही नहीं सकता!"

शेर को अपनी बेइज्जती होते देख रहा नहीं गया और शेर बोला - "ये पंडित ठीक कह रहा है, मैं इस पिंजड़े में पूरी रात कैद था." बन्दर बोला - "मैं कैसे यकीन करूं?"

शेर बोला - "मैं अभी दिखा देता हूँ, इस पिंजड़े में फिर से जा कर." और इतना कह शेर फिर से उस पिंजड़े में चला जाता है और पिंजड़ा का दरवाजा बंद हो जाता है और उसके बाद शेर बोला - "देखो मैं इसी तरह पिंजड़े में था."

बन्दर उस व्यक्ति से बोला - "अब देख क्या रहे हो तुरंत अपनी जान बचा कर भाग लो!" और पंडित वहाँ से भाग जाता है. शेर फिर से पिंजड़े में कैद हो जाता है.

*शिक्षा:-*
दोस्तों! कभी भी किसी की मदद करें तो सोच समझ कर करें. विश्वास उसी पर करें जो सचमुच में विश्वास करने लायक हो. बहुत से लोग सच बोलने का दिखावा करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन पर पहली बार भरोसा कर लेते हैं. ऐसे दुष्ट लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.

GyankiJyoti

02 Oct, 13:26


एक कबूतर और एक क़बूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे।

उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया ।

क़बूतरी के मन में कुछ शंका हुआ औऱ उसने क़बूतर से कहा कि चलो जल्दी उड़ चले नहीं तो ये आदमी हमें मार डालेगा।

क़बूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान के साथ क़बूतरी से कहा..भला उसे ग़ौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है, ये हमें क्या मारेगा..बिलकुल सज्जन पुरुष लग रहा है...?

क़बूतर की बात सुनकर क़बूतरी चुप हो गई।

जब वह आदमी उनके क़रीब आया तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर कमान निकाला औऱ झट से क़बूतर को मार दिया...औऱ बेचारे उस क़बूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए....

असहाय क़बूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई औऱ बिलखने लगी।उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा औऱ पल भर में ही उसका सारा संसार उजड़ गया।

उसके बाद वह क़बूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई औऱ राजा को उसने पूरी घटना बताई।

राजा बहुत दयालु इंसान था।

राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को उस शिकारी को पकड़कर लाने का आदेश दिया।

तुरंत शिकारी को पकड़ कर दरबार में लाया गया।शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

उसके बाद राजा ने क़बूतरी को ही उस शिकारी को सज़ा देने का अधिकार दे दिया औऱ उससे कहा कि " तुम जो भी सज़ा इस शिकारी को देना चाहो दे सकती हो औऱ तुरंत उसपर अमल किया जाएगा "।

क़बूतरी ने बहुत दुःखी मन से कहा कि " हे राजन,मेरा जीवन साथी तो इस दुनिया से चला गया जो फ़िर क़भी भी लौटकर नहीं आएगा, इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को बस इतनी ही सज़ा दी जानी चाहिए कि
अगर वो शिकारी है तो उसे हर वक़्त शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए , ये शराफत का लिबास वह उतार दे क्योंकि शराफ़त का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं....।

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इसलिए अपने आसपास शराफ़त का ढोंग करने वाले बहरूपियों से हमेशा सावधान रहें..........सतर्क रहें औऱ अपना बहुत ख़याल रखें.........!!

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