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GyankiJyoti (Hindi)

ज्ञान के प्रकाश को जलाने वाला 'GyankiJyoti' टेलीग्राम चैनल आपके लिए एक अद्भुत स्रोत हो सकता है। इस चैनल पर हम ब्रह्मचर्य, ध्यान, नॉफैप, ब्रह्मचर्य, योग, और आध्यात्मिकता से जुड़ी जानकारी साझा करते हैं। यहाँ आपको अनमोल सीख और उपयोगी तरीके मिलेंगे जिनसे आप अपनी जीवनशैली को सुधार सकते हैं। GyankiJyoti आपको मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इस चैनल को ज्वाइन करने से आप खुद को एक नई और उत्कृष्ट संस्कृति में डालने के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्राप्त करेंगे। GyankiJyoti आपके ज्ञान की ज्योति को और भी उजागर कर सकता है, इसलिए इसे अभी ज्वाइन करें और अपने जीवन को एक नयी दिशा दें।

GyankiJyoti

06 Jan, 09:11


*!! सफलता !!*
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एक बार की बात है, एक निःसंतान राजा था, वह बूढा हो चुका था और उसे राज्य के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की चिंता सताने लगी थी। योग्य उत्तराधिकारी के खोज के लिए राजा ने पुरे राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि अमुक दिन शाम को जो मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं अपने राज्य का एक हिस्सा दूंगा। राजा के इस निर्णय से राज्य के प्रधानमंत्री ने रोष जताते हुए राजा से कहा, "महाराज, आपसे मिलने तो बहुत से लोग आएंगे और यदि सभी को उनका भाग देंगे तो राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। ऐसा अव्यावहारिक काम न करें।" राजा ने प्रधानमंत्री को आश्वस्त करते हुए कहा, ''प्रधानमंत्री जी, आप चिंता न करें, देखते रहें, क्या होता है।' 

निश्चित दिन जब सबको मिलना था, राजमहल के बगीचे में राजा ने एक विशाल मेले का आयोजन किया। मेले में नाच-गाने और शराब की महफिल जमी थी, खाने के लिए अनेक स्वादिष्ट पदार्थ थे। मेले में कई खेल भी हो रहे थे।

राजा से मिलने आने वाले कितने ही लोग नाच-गाने में अटक गए, कितने ही सुरा-सुंदरी में, कितने ही आश्चर्यजनक खेलों में मशगूल हो गए तथा कितने ही खाने-पीने, घूमने-फिरने के आनंद में डूब गए। इस तरह समय बीतने लगा। 

पर इन सभी के बीच एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने किसी चीज की तरफ देखा भी नहीं, क्योंकि उसके मन में निश्चित ध्येय था कि उसे राजा से मिलना ही है। इसलिए वह बगीचा पार करके राजमहल के दरवाजे पर पहुंच गया। पर वहां खुली तलवार लेकर दो चौकीदार खड़े थे। उन्होंने उसे रोका। उनके रोकने को अनदेखा करके और चौकीदारों को धक्का मारकर वह दौड़कर राजमहल में चला गया, क्योंकि वह निश्चित समय पर राजा से मिलना चाहता था। 

जैसे ही वह अंदर पहुंचा, राजा उसे सामने ही मिल गए और उन्होंने कहा, 'मेरे राज्य में कोई व्यक्ति तो ऐसा मिला जो किसी प्रलोभन में फंसे बिना अपने ध्येय तक पहुंच सका। तुम्हें मैं आधा नहीं पूरा राजपाट दूंगा। तुम मेरे उत्तराधिकारी बनोगे।

*शिक्षा:-*
सफल वही होता है जो लक्ष्य का निर्धारण करता है, उस पर अडिग रहता है, रास्ते में आने वाली हर कठिनाइयों का डटकर सामना करता है और छोटी-छोटी कठिनाईयों को नजरअंदाज कर देता है..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है!*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है!!*
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GyankiJyoti

05 Jan, 02:16


*!! संगति, परिवेश और भाव !!*
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एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया.

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए.

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा.

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब मे फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा.

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया ओर आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नही कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में लेजा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

*शिक्षा:-*
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए.

अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा.

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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03 Jan, 12:15


एक गाँव था, उस गाँव के रास्ते में बहुत घना जंगल था. जंगल घना होने के कारण तरह तरह के पशु-पक्षी जंगल में रहते थे. एक शेर भी रहता था. शेर कभी-कभी गाँव में घुसकर काफी तहलका मचाता था. इसी वजह से गाँव वाले जंगल के रास्ते में एक पिंजड़ा रख दिए थे. रात हुई सभी अपने-अपने घरों के अन्दर हो गये. गाँव शांत हो गयी. तभी शेर उसी रास्ते से गाँव की ओर जा रहा था. रास्ते में लगा पिंजड़ा में उसका पैर फंसा और भारी शरीर होने के कारण शेर पिंजड़े में बंद हो गया. अब वह उस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका था. काफी कोशिश करने के बावजूद भी वह वहाँ से नहीं निकल पाया. पूरी रात शेर पिंजड़े में ही कैद रहा.

सुबह हुई कुछ समय बाद उसी रास्ते से गाँव में एक व्यक्ति जा रहा था. तभी शेर बोला - "ओ भाई! ओ भाई!" वह व्यक्ति शेर को पिंजड़े में देखकर डर गया. शेर को काफी तेज़ की भूख लगी थी.

शेर ने उस व्यक्ति से कहा - "मेरी सहायता करो. मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है. कृपया कुछ पानी पिला दो."

व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो, अगर मुझे ही अपना शिकार बना लिए तो!" शेर बोला - "नही भाई! मैं ऐसा नहीं करूंगा."

शेर की लाचारी देखकर उस व्यक्ति को शेर पर दया आ गयी और वह बगल के तालाब से पानी ले आया और शेर को पानी पिलाया. शेर पानी पी लिया उसके बाद फिर से उस व्यक्ति को बोला - "प्यास तो बुझ गयी अब पूरी रात से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो न." उस व्यक्ति ने शेर के भोजन की व्यवस्था में जुट गया और कहीं कहीं से उसका भोजन ले आया. शेर भोजन भी किया.

शेर ने फिर से आवाज लगायी - "ओ भले इन्सान! मैं इस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका हूँ. कृपा करके इस पिंजड़े से मुझे आजाद करा दो." वह व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी और सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो. पिंजड़े के बाहर आते ही तु अपनी रूप में आ जाएगा.

शेर बोला - "मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा."

वह व्यक्ति उसकी बात मान कर पिंजड़ा का दरवाजा खोल दिया और शेर बाहर आ गया. शेर बहार आते ही पहले चैन की साँस ली और बोला मेरी अभी तक भूख मिटी नहीं है और भोजन भी सामने है. सो भोजन तलाशने का भी जरुरत नही है. अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ.

इतना सुन वह व्यक्ति डर से काँपने लगा और बोला - "तुम बेईमानी नहीं कर सकते. तुमने पहले ही बोला था की मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा और तुम्हारे परिवार को भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो."

शेर बोला - मैं प्राणी ही उसी तरह का हूँ. मुझे बहुत जोर से भूख लगी है तो अब कुछ नहीं. संयोग से ये सब घटना पास के एक पेड़ पर बैठे बन्दर देख रहा था. शेर और उस व्यक्ति में बहस चल ही रही थी तभी बीच में से बन्दर बोल पड़ा - "क्या बात है! क्या बहस हो रही है? उस व्यक्ति ने बन्दर को सारी बात बताई। बन्दर बोला - अच्छा! तो ये बात है. वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजड़े में कैसे आ सकता है? नहीं ! नहीं ! ये हो ही नहीं सकता!"

शेर को अपनी बेइज्जती होते देख रहा नहीं गया और शेर बोला - "ये पंडित ठीक कह रहा है, मैं इस पिंजड़े में पूरी रात कैद था." बन्दर बोला - "मैं कैसे यकीन करूं?"

शेर बोला - "मैं अभी दिखा देता हूँ, इस पिंजड़े में फिर से जा कर." और इतना कह शेर फिर से उस पिंजड़े में चला जाता है और पिंजड़ा का दरवाजा बंद हो जाता है और उसके बाद शेर बोला - "देखो मैं इसी तरह पिंजड़े में था."

बन्दर उस व्यक्ति से बोला - "अब देख क्या रहे हो तुरंत अपनी जान बचा कर भाग लो!" और पंडित वहाँ से भाग जाता है. शेर फिर से पिंजड़े में कैद हो जाता है.


*शिक्षा:-*
दोस्तों! कभी भी किसी की मदद करें तो सोच समझ कर करें. विश्वास उसी पर करें जो सचमुच में विश्वास करने लायक हो. बहुत से लोग सच बोलने का दिखावा करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन पर पहली बार भरोसा कर लेते हैं. ऐसे दुष्ट लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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GyankiJyoti

03 Jan, 12:15


*!! संत की सरलता !!*
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एक गांव में एक संत निवास करते थे। संत का व्यवहार बहुत ही सरल ज्ञानी कर्तव्यनिष्ठ शांत रहता था। संत के इस व्यवहार से बच्चे बहुत ज्यादा खिल्ली उड़ाते रहते थे, लेकिन कभी संत बुरा नहीं मानते।

अपने इस व्यवहार के कारण संत का स्वभाव आसपास में मशहूर था। गांव के लोग अपनी समस्या भी संत के पास लेकर आते और उचित मार्गदर्शन से संतुष्ट भी होते थे। इन सभी व्यवहार के कारण बच्चे बूढ़े सभी के लिए चहेते भी थे।

एक बार बच्चों को कुछ शैतानी सूझी, बच्चों ने संत के साध्वी को जाकर भड़काया कि संत बाबा को आज बहुत सारा गन्ना मिला है, पर पता नहीं आपके पास आते आते आपके लिए बचा पाएंगे कि नहीं, सभी को रास्ते में बांटते आ रहे हैं।

संत की साध्वी थोड़ा झगड़ालू व चिड़चिड़ा प्रवृत्ति की थी, तब तक संत अपने कुटिया की ओर पहुँच गए। बच्चे शीघ्रता से छिप गए, परंतु साध्वी संत के हाथों में मात्र एक ही गन्ना देखकर गुस्सा से आग-बबूला हो गई और गुस्से से बोली कि मात्र एक ही गन्ना लेकर आये हो, (गन्ना छीनकर) जाओ इसे भी किसी को बांट दो कहकर फेंक दिया, जिससे गन्ना दो टुकड़ा हो जाता है। संत जी ये देखकर शांति से बोलते हैं कि तुम्हारा भी कोई जवाब नहीं, कितना सुंदर बराबर दो भाग में टुकड़ा किये हो। चलो मैं स्नान करके आता हूं फिर गन्ना खाएंगे।

इस प्रकार संत के स्वभाव से साध्वी का गुस्सा शांत हो जाता है। और बच्चे अपने शरारती स्वभाव पर लज्जित हो भाग जाते हैं।

उधर संत जी नदी में स्नान कर रहे होते हैं तो क्या देखते हैं कि एक बिच्छू का बच्चा पानी में बह रहा है, संत जी बिच्छु के बच्चे को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं परंतु बिच्छू के बच्चा स्वभाव वश संत को डंक मरता है और जल में पुनः हाथ से गिर जाता है। यह प्रक्रिया तीन चार बार होते देख पास में स्नान कर रहे ग्रामीण, संत से बोलते हैं कि बाबा आपको बिच्छू का बच्चा डंक पे डंक मार रहा है और आप उसे बचाने पर तुले हैं।

संत बड़ी ही सरलता से बोलते हैं कि यह बिच्छू का बच्चा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है तो हम मनुष्यों का स्वभाव क्यों छोड़े!

हमें तो किसी असहाय प्राणियों की रक्षा करनी ही चाहिए और फिर कमंडल में पकड़ कर बिच्छू के बच्चे को बाहर निकाल ही लेते हैं।

*शिक्षा:-*
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि विषम परिस्थितियों में भी हमें अपना धैर्य नहीं खोकर कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए..!!

GyankiJyoti

02 Jan, 11:05


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02 Jan, 08:51


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GyankiJyoti

02 Jan, 04:22


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GyankiJyoti

02 Jan, 03:46


*!! लाभ और हानि !!*
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एक गरीब आदमी बड़ी मेहनत से एक एक-एक रूपया जोड़ कर मकान बनवाता है। उस मकान को बनवाने के लिए वह पिछले बीस वर्षों से एक-एक पैसा बचत करता है ताकि उसका परिवार छोटे से झोपड़े से निकलकर पक्के मकान में सुखी से रह सके।

आखिरकार एक दिन मकान बन कर तैयार हो जाता है। तत्पश्चात पंडित से पूछ कर गृह प्रवेश के लिए शुभ दिन निश्चित की जाती है। लेकिन गृहप्रवेश के दो दिन पहले ही भूकंप आता है और उसका मकान पूरी तरह ध्वस्त हो जाता है। यह खबर जब उस आदमी को पता चलती है तो वह दौड़ा-दौड़ा बाजार जाता है और मिठाई खरीद कर ले आता है। मिठाई लेकर वह घटनास्थल पर पहुंचता है जहां पर काफी लोग इकट्ठे होकर उसके मकान गिरने पर अफसोस जाहिर कर रहे थे। ओह! बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ, कितनी मुश्किल से एक-एक पैसा जोड़कर मकान बनवाया था।

इसी प्रकार, लोग आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थे। वह आदमी वहां पहुंचता है और झोले से मिठाई निकाल कर सबको बांटने लगता है। यह देखकर सभी लोग हैरान हो जाते हैं। तभी उसका एक मित्र उससे कहता है, कहीं तुम पागल तो नहीं हो गए हो, तुम्हारा घर गिर गया, तुम्हारी जीवन भर की कमाई बर्बाद हो गई और तुम खुश होकर मिठाई बांट रहे हो। वह आदमी मुस्कुराते हुए कहता है, तुम इस घटना का सिर्फ नकारात्मक पक्ष देख रहे हो इसलिए इसका सकारात्मक पक्ष तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है। ये तो बहुत अच्छा हुआ कि मकान आज ही गिर गया। वरना तुम्हीं सोचो अगर यह मकान दो दिनों के बाद गिरता तो मैं, मेरी पत्नी और बच्चे सभी मारे जा सकते थे। तब कितना बड़ा नुकसान होता!

*शिक्षा:-*
मित्रों! सकारात्मक और नकारात्मक सोच में क्या अंतर है, यदि वह व्यक्ति नकारात्मक दृष्टिकोण से सोचता तो शायद वह नकारात्मकता का शिकार हो जाता, लेकिन केवल एक सोच के फर्क ने उसके दुःख को सुख में परिवर्तित कर दिया।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

31 Dec, 08:50


*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*

*!! अंत का साथी !!*
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एक व्यक्ति के तीन साथी थे। उन्होंने जीवन भर उसका साथ निभाया। जब वह मरने लगा तो अपने मित्रों को पास बुलाकर बोला, “अब मेरा अंतिम समय आ गया है। तुम लोगों ने आजीवन मेरा साथ दिया है। मृत्यु के बाद भी क्या तुम लोग मेरा साथ दोगे?” पहला मित्र बोला, “मैंने जीवन भर तुम्हारा साथ निभाया। लेकिन अब मैं बेबस हूँ। अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।” दूसरा मित्र बोला, मैं मृत्यु को नहीं रोक सकता।

मैंने आजीवन तुम्हारा हर स्थिति में साथ दिया है। मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मृत्यु के बाद तुम्हारा अंतिम संस्कार सही से हो। तीसरा मित्र बोला, “मित्र! तुम चिंता मत करो। में मृत्यु के बाद भी तुम्हारा साथ दूंगा। तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।” मनुष्य के ये तीन मित्र हैं- माल (धन), इयाल (परिवार) और आमाल (कर्म)। तीनों में से मनुष्य के कर्म ही मृत्यु के बाद भी उसका साथ निभाते हैं।

*शिक्षा:-*
हमें अच्छे कर्म करने चाहिए। यही वो दौलत हैं जो मरने के बाद भी इंसान के साथ जाती हैं। अतः अच्छे कार्यों में इस अनमोल जीवन को बिताना चाहिए।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

31 Dec, 05:24


*!! विद्या का घमंड !!*
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गंगा पार होने के लिए कई लोग एक नौका में बैठे, धीरे-धीरे नौका सवारियों के साथ सामने वाले किनारे की ओर बढ़ रही थी, मनमोहन भी उसमें सवार थे। मनमोहन जी ने नाविक से पूछा “क्या तुमने भूगोल पढ़ी है?”

भोला-भाला नाविक बोला, “भूगोल क्या है इसका मुझे कुछ पता नहीं।”

मनमोहन जी ने शिक्षा का प्रदर्शन करते कहा, “तुम्हारी पाव भर जिंदगी पानी में गई।”

फिर मनमोहन जी ने दूसरा प्रश्न किया, “क्या इतिहास जानते हो? महारानी लक्ष्मीबाई कब और कहाँ हुई तथा उन्होंने कैसे लडाई की?”

नाविक ने अपनी अनभिज्ञता जाहिर की तो मनमोहन जी ने विजयीमुद्रा में कहा, “ये भी नहीं जानते तुम्हारी तो आधी जिंदगी पानी में गई।”

फिर विद्या के मद में मनमोहन जी ने तीसरा प्रश्न पूछा, “महाभारत का भीष्म-नाविक संवाद या रामायण का केवट और भगवान श्रीराम का संवाद जानते हो?”

अनपढ़ नाविक क्या कहे, उसने इशारे में ना कहा, तब मनमोहन जी मुस्कुराते हुए बोले, “तुम्हारी तो पौनी जिंदगी पानी में गई।”

तभी अचानक गंगा में प्रवाह तीव्र होने लगा। नाविक ने सभी को तूफान की चेतावनी दी और मनमोहन जी से पूछा “नौका तो तूफान में डूब सकती है, क्या आपको तैरना आता है?”

मनमोहन जी घबराहट में बोले, “मुझे तो तैरना-वैरना नहीं आता है?”

नाविक ने स्थिति भांपते हुए कहा, “तब तो समझो आपकी पूरी जिंदगी पानी में गयी।”

कुछ ही देर में नौका पलट गई और मनमोहन जी बह गए।

*शिक्षा:-*
मित्रों, विद्या वाद-विवाद के लिए नहीं है और ना ही दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। लेकिन कभी-कभी ज्ञान के अभिमान में कुछ लोग इस बात को भूल जाते हैं और दूसरों का अपमान कर बैठते हैं। याद रखिये, शास्त्रों का ज्ञान समस्याओं के समाधान में प्रयोग होना चाहिए, शस्त्र बना कर हिंसा करने के लिए नहीं।

कहा भी गया है, जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी डालियाँ झुक जाती हैं। धन प्राप्ति होने पर सज्जनों में शालीनता आ जाती है। इसी तरह, विद्या जब विनयी के पास आती है तो वह शोभित हो जाती है। इसीलिए संस्कृत में कहा गया है, ‘विद्या विनयेन शोभते’।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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31 Dec, 05:24


*!! कड़वा वचन !!*
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सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना छोड़ देते।

किंतु, यह सब कब तक चलता। वे पुन: उनसे बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया, लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव में तनिक भी फर्क नहीं आया।

अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले- “महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।” तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा- “सेठ जी ! को मेरे पास भेज देना।”

“ठीक है, महाराज” कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज के पास ले जाना चाहा। किंतु, सेठ जी साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे।

साधु को देखकर सेठ जी की प्योरिया चढ़ गयी। परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे।

साधु महाराज सेठ जी से बोले- “सेठ जी ! मैं हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया हूं, जरा पीकर देखिये।” पहले तो सेठ जी ने आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर भी मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से चाटा।

ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से बोले- “यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है यह ?”

“अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या होता है” साधु महाराज ने कहा। “यह तो हर कोई जानता है” कहते समय सेठ ने रहस्यमई दृष्टि से साधु की ओर देखा।

“नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोई जानता होता तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द अपने मुंह से नहीं निकालता। सेठ जी वह एक पल को रुके फिर बोले। सेठ जी याद रखिये जो आदमी कटु वचन बोलता है वह दूसरों को दुख पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता है।”

सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है उन्हें ही लक्षित करके कहा है। वह फौरन साधु के पैरों में गिर पड़े- “बोले साधु महाराज ! आपने मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।”

सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने साधु से पूछा- “किंतु, महाराज! यह पदार्थ जो आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या है?”

साधु मुस्कुराकर बोले- “नीम के पत्तों का अर्क।” “क्या” सेठ जी के मुंह से निकला और फिर वे धीरे-से मुस्कुरा दिये।

*शिक्षा:-*
मित्रों! कड़वा वचन बोलने से बढ़कर इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। किसी द्रव्य के कड़वे होने से जीभ का स्वाद कुछ ही देर के लिए कड़वा होता है। परंतु कड़वे वचन से तो मन और आत्मा को चोट लगती है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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GyankiJyoti

30 Dec, 10:37


*!! टीनू और चिड़िया के घोंसले !!*
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एक समय की बात है, टीनू नाम की लड़की थी जो स्कूल में दिए गए कार्यों में बड़ी रुचि रखती थी। इस साल टीनू के स्कूल में गर्मी की छुट्टियां पड़ने से पहले उसकी टीचर ने सभी को विभिन्न पक्षियों के चित्र दिखाकर चिड़िया पर निबंध लिखने के लिए कहा था। सभी बच्चों को स्कूल खुलते ही निबंध टीचर को दिखाना था।

पक्षियों की रंग-बिरंगी किताब टीनू को बहुत पसंद थी। जब टीचर ने बताया कि उन पर निबंध लिखना है और सबसे अच्छा लिखने वाले को इनाम में वह किताब मिलेगी, तो टीनू खुश हो गई। टीचर ने सभी पक्षियों से जुड़ी कुछ कहानियाँ भी बच्चों को सुनाई। उसके बाद स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ गईं।

यूँ तो टीनू हर साल अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बिताने के लिए कहीं-न-कही जाती थी। लेकिन इस साल की छुट्टियों में टीनू रोज़ पास के ही बगीचे में जाकर पक्षियों और उनके घोंसले देखने लगी। उस बगीचे में गोरैया, दर्जिन, लवा जैसे बहुत-से पक्षी आते थे। टीनू बगीचे में आने वाली हर चिड़िया को पहचानने की कोशिश करती और उन्हें ग़ौर से देखती रहती।

टीनू देखती थी कि हर चिड़िया एक-एक घास, पत्ती, पंख, आदि को जोड़कर कैसे अपना घोंसला बना रही है। उसके मन में होता था कि चिड़िया को घोंसला बनाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। टीनू चाहती थी कि वो किसी तरह से उन पक्षियों की मदद करें।

एक दिन टीनू ने देखा कि पास के बगीचे में बदमाश लड़कों ने लवा चिड़ियों का घोंसला तोड़ दिया है। टीनू को यह देखकर बहुत दुख हुआ। उसने सोचा कि क्यों न मैं इनके लिए खुद एक-दो घोंसले बना दूँ। शायद ये इसका इस्तेमाल कर लेंगीं।

टीनू को लगा कि वो कुछ ही देर में घोंसला बनाकर तैयार कर देगी। लेकिन टीनू पूरा दिन तिनकों और दूसरी चीज़ों से चिड़िया का घोंसला बुनती रही। बड़ी मुश्किल से जब घोंसला तैयार हुआ, तो घोंसले को पेड़ पर टिकाने के लिए कुछ मिला नहीं।

टीनू की माँ यह सब देख रही थी। तभी टीनू ने माँ को बताया, “देखिए न, मैंने चिड़िया के लिए एक घोंसला बनाया है। मगर यह उतना सुंदर नहीं है, जितना चिड़िया बनाती हैं। मैंने सोचा था आसानी से एक सुंदर घोंसला बन जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह घोंसला अंदर से काफी कठोर बन गया है। क्या आप इसे मुलायम बना देंगी?”

किसी तरह से टीनू की माँ ने उस घोंसले को थोड़ा ठीक किया। उसके बाद टीनू ने उस घोंसले को धागे की मदद से पेड़ पर टिका दिया।

अब बगीचे में बैठकर टीनू लवा पक्षी के आने का इंतज़ार करने लगी। वो पक्षी बगीचे में आए तो, लेकिन टीनू द्वारा बनाया गया घोंसला उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया। टीनू के साथ उसकी माँ भी बगीचे में आई थी, उसने टीनू को उदास देखकर कहा, “तुम परेशान मत होना, अभी चिड़िया घोंसले पर आ जाएगी।”

तभी एक लवा पक्षी ने आकर टीनू द्वारा बनाए गए घोंसले को तोड़ दिया। अब टीनू ने मुँह लटका लिया। तब उसे उसकी माँ ने समझाया कि तुम्हें दुःखी नहीं होना चाहिए। देखो, तुम्हारे द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों से ही लवा पक्षी अपने लिए घोंसला बना रहे हैं। हो सकता है कि इन्हें दूसरों का बनाया हुआ घोंसला पसंद नहीं आता हो। दुःखी मन से टीनू ने कहा, “माँ मैं अपने स्कूल के निबंध में यह सब कुछ लिखूंगी।”

कुछ देर बाद टीनू ने कहा, “माँ आपने देखा कि लवा पक्षी अपना घर झाड़ियों में बना रहे हैं।” जवाब में टीनू की माँ बोली, “हाँ बेटा, मैंने सुना था कि लवा पक्षी अपना घोंसला किसी के घर के रोशनदान या पेड़ पर ही बनाते हैं। आज यह नई बात पता चली है।”

कुछ और दिनों बाद टीनू ने लवा पक्षियों के बारे में एक और बात जानी कि वो सीधे उड़कर अपने घोंसले में नहीं जाते। घोंसले से कुछ दूर ठहरकर इधर-उधर कूदते हुए वो अपने घोंसले तक पहुँचते हैं, ताकि किसी को उनके घोंसले का पता न चले।

थोड़े ही दिनों में स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म हो गईं। टीनू ने स्कूल जाकर लवा पक्षी के बारे में लिखा और निबंध प्रतियोगिता जीत ली। ईनाम में मनपसंद चिड़ियों वाली किताब मिलने पर टीनू खुश हो गई।

प्रतियोगिता जीतने के बाद भी टीनू रोज़ चिड़ियों की चहचहाहट सुनने के लिए उस बगीचे में जाकर घंटों बैठती है। मानो उसकी चिड़ियों के साथ दोस्ती हो गई हो।

*शिक्षा:-*
उपर्युक्त प्रसंग से यह सीख मिलती है कि छोटी-छोटी बात पर मन दुःखी नहीं करना चाहिए। साथ ही आसपास की चीज़ों पर ग़ौर करने से हमें काफ़ी कुछ नया जानने को मिलता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

29 Dec, 05:03


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27 Dec, 09:18


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27 Dec, 09:17


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27 Dec, 02:43


*!! एक छोटी सी अच्छी आदत !!*
~~~~

पुराने समय में दो दोस्त थे। बचपन में दोनों साथ पढ़ते और खेलते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों दोस्त अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए। एक दोस्त ने खूब मेहनत की और बहुत पैसा कमा लिया। जबकि दूसरा दोस्त बहुत आलसी था। वह कुछ भी काम नहीं करता था। उसका जीवन ऐसे ही गरीबी में कट रहा था। एक दिन अमीर व्यक्ति अपने बचपन के दोस्त से मिलने गया। अमीर व्यक्ति ने देखा की उसके दोस्त की हालत बहुत खराब है, उसका घर भी बहुत गंदा था।

गरीब दोस्त ने बैठने के लिए जो कुर्सी दी, उस पर धूल थी। अमीर व्यक्ति ने कहा कि तुम अपना घर इतना गंदा क्यों रखते हो? गरीब ने जवाब दिया कि घर साफ करने से कोई लाभ नहीं है, कुछ दिनों में ये फिर से गंदा हो जाता है। अमीर ने उसे बहुत समझाया कि घर को साफ रखना चाहिए, लेकिन वह नहीं माना। जाते समय अमीर व्यक्ति ने गरीब दोस्त को एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता उपहार में दिया। गरीब ने वह गुलदस्ता अलमारी के ऊपर रख दिया। इसके बाद जब भी कोई व्यक्ति उस गरीब के घर आता तो उसे सुंदर गुलदस्ता दिखता, वे कहते कि गुलदस्ता तो बहुत सुंदर है, लेकिन घर इतना गंदा है।

बार-बार एक ही बात सुनकर गरीब ने सोचा कि ये अलमारी साफ कर देता हूं, उसने अलमारी साफ कर दी। अब उसके घर आने वाले लोगों ने कहा कि गुलदस्ता बहुत सुंदर, अलमारी भी साफ है, लेकिन पूरा घर गंदा है। ये बातें सुनकर गरीब व्यक्ति ने अलमारी के साथ वाली दीवार साफ कर दी। अब जो भी लोग उसके घर आते सभी उसी कोने में बैठना पसंद करते थे, क्योंकि वहां साफ-सफाई थी। गरीब व्यक्ति ने एक दिन गुस्से में पूरा घर साफ कर दिया और दीवारों की पुताई भी करवा दी। धीरे-धीरे उसकी सोच बदलने लगी और उसने काम करना शुरू कर दिया।

*शिक्षा:-*
हमारी एक छोटी सी अच्छी आदत हमारी सोच बदल सकती है, जिससे हमारा जीवन बदल सकता है। अच्छी आदतों से बड़ी-बड़ी बाधाएं भी दूर की जा सकती हैं।

GyankiJyoti

26 Dec, 10:57


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26 Dec, 08:39


सभी भाई इस वीडियो को देखे जिन जिन भाईयो ने नहीं देखा है

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26 Dec, 06:06


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25 Dec, 11:58


नया वीडियो आ गया है जितने भी भाई ब्रह्मचर्य के मार्ग पर है सभी भाई इस वीडियो को पूरा देखे आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ब्रह्मचर्य में

जय श्री राम 🙏

GyankiJyoti

25 Dec, 11:57


https://youtu.be/SGJ_OHuNndI

GyankiJyoti

24 Dec, 02:55


*!! उड़ने वाला घोड़ा !!*
~~~

एक राजा ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई। उसमें से एक यह जानता था कि राजा को अपने घोड़े से बहुत ज्यादा प्यार है।

उसने राजा से कहा कि यदि मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं एक साल में उसके घोड़े को उड़ना सीखा दूँगा। यह सुनकर राजा खुश हो गया कि वह दुनिया के इकलौते उड़ने वाले घोड़े की सवारी कर सकता है।

दूसरे कैदी ने अपने मित्र की ओर अविश्वास की नजर से देखा और बोला, तुम जानते हो कि कोई भी घोड़ा उड़ नहीं सकता!

तुमने इस तरह पागलपन की बात सोची भी कैसे? तुम तो अपनी मौत को एक साल के लिए टाल रहे हो।

पहला कैदी बोला, ऐसी बात नहीं है। मैंने दरअसल खुद को स्वतंत्रता के चार मौके दिए हैं...

पहली बात राजा एक साल के भीतर मर सकता है!

दूसरी बात मैं मर सकता हूं!

तीसरी बात घोड़ा मर सकता है!

और चौथी बात.. हो सकता है, मैं घोड़े को उड़ना सीखा दूं..!! 

*शिक्षा:-*
बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए..!!

GyankiJyoti

23 Dec, 15:33


महाराजा चन्द्रगुप्त का दरबार लगा हुआ था। सभी सभासद अपनी अपनी जगह पर विराजमान थे। महामंत्री चाणक्य दरबार की कार्यवाही कर रहे थे।

महाराजा चन्द्रगुप्त को खिलौनों का बहुत शौक था। उन्हें हर रोज़ एक नया खिलौना चाहिए था। आज भी महाराजा के पूछने पर कि क्या नया है; पता चला कि एक सौदागर आया है और कुछ नये खिलौने लाया है। सौदागर का ये दावा है कि महाराज या किसी ने भी आज तक ऐसे खिलौने न कभी देखें हैं और न कभी देखेंगे। सुन कर महाराज ने सौदागर को बुलाने की आज्ञा दी। सौदागर आया और प्रणाम करने के बाद अपनी पिटारी में से तीन पुतले निकाल कर महाराज के सामने रख दिए और कहा कि अन्नदाता ये तीनों पुतले अपने आप में बहुत विशेष हैं। देखने में भले एक जैसे लगते हैं मगर वास्तव में बहुत निराले हैं। पहले पुतले का मूल्य एक लाख मोहरें हैं, दूसरे का मूल्य एक हज़ार मोहरे हैं और तीसरे पुतले का मूल्य केवल एक मोहर है।

सम्राट ने तीनों पुतलों को बड़े ध्यान से देखा। देखने में कोई अन्तर नहीं लगा, फिर मूल्य में इतना अन्तर क्यों? इस प्रश्न ने चन्द्रगुप्त को बहुत परेशान कर दिया। हार कर उसने सभासदों को पुतले दिये और कहा कि इनमें क्या अन्तर है मुझे बताओ। सभासदों ने तीनों पुतलों को घुमा फिराकर सब तरफ से देखा मगर किसी को भी इस गुत्थी को सुलझाने का जवाब नहीं मिला। चन्द्रगुप्त ने जब देखा कि सभी चुप हैं तो उसने वही प्रश्न अपने गुरू और महामंत्री चाणक्य से पूछा।

चाणक्य ने पुतलों को बहुत ध्यान से देखा और दरबान को तीन तिनके लाने की आज्ञा दी। तिनके आने पर चाणक्य ने पहले पुतले के कान में तिनका डाला। सब ने देखा कि तिनका सीधा पेट में चला गया, थोड़ी देर बाद पुतले के होंठ हिले और फिर बन्द हो गए। अब चाणक्य ने अगला तिनका दूसरे पुतले के कान में डाला। इस बार सब ने देखा कि तिनका दूसरे कान से बाहर आ गया और पुतला ज्यों का त्यों रहा। ये देख कर सभी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि आगे क्या होगा। अब चाणक्य ने तिनका तीसरे पुतले के कान में डाला। सब ने देखा कि तिनका पुतले के मुँह से बाहर आ गया है और पुतले का मुँह एक दम खुल गया। पुतला बराबर हिल रहा है जैसे कुछ कहना चाहता हो।

चन्द्रगुप्त के पूछ्ने पर कि ये सब क्या है और इन पुतलों का मूल्य अलग अलग क्यों है, चाणक्य ने उत्तर दिया।

राजन, चरित्रवान सदा सुनी सुनाई बातों को अपने तक ही रखते हैं और उनकी पुष्टी करने के बाद ही अपना मुँह खोलते हैं। यही उनकी महानता है। पहले पुतले से हमें यही ज्ञान मिलता है और यही कारण है कि इस पुतले का मूल्य एक लाख मोहरें है।

कुछ लोग सदा अपने में ही मग्न रहते हैं। हर बात को अनसुना कर देते हैं। उन्हें अपनी वाह-वाह की कोई इच्छा नहीं होती। ऐसे लोग कभी किसी को हानि नहीं पहुँचाते। दूसरे पुतले से हमें यही ज्ञान मिलता है और यही कारण है कि इस पुतले का मूल्य एक हज़ार मोहरें है।

कुछ लोग कान के कच्चे और पेट के हलके होते हैं। कोई भी बात सुनी नहीं कि सारी दुनिया में शोर मचा दिया। इन्हें झूठ सच का कोई ज्ञान नहीं, बस मुँह खोलने से मतलब है। यही कारण है कि इस पुतले का मूल्य केवल एक मोहर है।

आप कौन से पुतले हैं..!!

*शिक्षा:-*
दोस्तों, जीवन में किसी भी बात को पहले जांच परख करने के बाद ही उस पर अपने विचार प्रकट करने चाहिए, सुनी सुनाई बातों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।

GyankiJyoti

23 Dec, 15:33


*!! घमंड हमारा सबसे बड़ा दुश्मन !!*
~~~~

एक लड़का था, उसके पापा की इतनी बड़ी कंपनी थी की अमरीका में बैठे-बैठे, अफ्रीका की सरकार को गिरा दे। उनके पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी, पैसा, सत्ता सब उनके हाथ में था। लेकिन पैसा कमाते-कमाते वो अपने बच्चे को समय नहीं दे पाए। इसके बदले में बच्चे ने अपनी मनमानी करना शुरू किया, उसको कोई कुछ कहने वाला नहीं था। जैसे-जैसे बड़ा होता चला गया, उसको लगने लगा की, उसका कोई क्या बिगड़ सकता है ?? वो अपने सामने किसी को कुछ समझता ही नहीं था।

एक दिन वो एक बड़ी होटल में कॉफ़ी पीने के लिए गया। वहाँ पर नज़दीक से एक नौकर गुज़र रहा था। नौकर के हाथ से एक कॉफ़ी का गिलास गिर गया। उस लड़के के नज़दीक में गिलास गिरने की वजह से वो लड़का चिल्लाया, और कहा की, साले अंधे तुझे दिखाई नहीं देता ?? बेवफ़ूक कही का। न जाने कहाँ-कहाँ से चले आते है। इतना बोलते ही उसने कहा की तुम्हारे मैनेजर को बुलाओ, नौकर के बहुत मना कर ने पर भी वो नहीं माना। उतनी देर में वहां पर मैनेजर आ पहुँचता है।

मैनेजर को लड़का कहता है की मुझे तुम्हारे कर्मचारी बिलकुल पसंद नहीं आये। में ये होटल खरीद के अपने कर्मचारी रखूँगा। उसने मैनेजर को कहा की मुझे इस होटल के मालिक से बात करवाओ। मैनेजर के लाख कहने पर भी लड़का नहीं माना। उसने होटल के मालिक से बात की और कहा की मुझे तुम्हारी होटल खरीदनी है। आपको कितना पैसा चाहिए ?? होटल का मालिक उसे पहचान गया। और सोच रहा था की, अगर में उसको मेरी ये होटल नहीं बेचूंगा तो ये मेरा बिज़नेस बर्बाद कर देगा।

इसलिए होटल के मालिक ने होटल की कीमत 400 करोड़ कही। लड़के ने अपने मैनेजर को कॉल करके 800 करोड़ का चेक बनवाया। और इस तरह से उसने होटल को खरीद लिया। एक छोटी सी बात के लिए उसने इतना बड़ा हंगामा कर लिया। इस बात से साफ पता चलता है की, इसके अंदर कितना घमंड था। लेकिन एक दिन ऐसा आता है की उसके पापा की मृत्यु होती है, अब कारोबार उसके कंधो पे आ जाता है। कभी कारोबार में ध्यान नहीं देने की वजह से वो कारोबार को अच्छे से संभाल नहीं पाया।

और एक दिन एक बड़े नुकसान की वजह से ऐसी नौबत आयी की उसको अपना घर, गाड़ी सब कुछ बेच देना पड़ा। उसके घमंडी स्वभाव के कारन कोई उसकी मदद के लिए भी नहीं आया। अब न तो उसको पास खाने के लिए पैसे थे और न रहने के लिए घर था।

*शिक्षा:-*
जब तक आप अपने दायरे में रहकर काम करते हो तब तक कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जिस दिन आपने उस दायरे से बाहर जाने की कोशिश की तब आप मुश्किल में आ सकते हो।

GyankiJyoti

22 Dec, 13:09


*दिलचस्प कहानी : सोने का सिक्का*

किसी दूर राज्य में एक राजा शासन करता था। राजा बड़ा ही परोपकारी स्वभाव का था, प्रजा का तो भला चाहता ही था। इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी उसके बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। राजा किसी भी इंसान को दुःखी देखता तो उसका ह्रदय द्रवित हो जाता और वो अपनी पूरी श्रद्धा से जनता का भला करने की सोचता।

एक दिन राजा का जन्मदिन था। उस दिन राजा सुबह सवेरे उठा तो बड़ा खुश था। राजा अपने सैनिकों के साथ वन में कुछ दूर घूमने निकल पड़ा। आज राजा ने खुद से वादा किया कि मैं आज किसी एक व्यक्ति को खुश और संतुष्ट जरूर करूँगा।
          
यही सोचकर राजा सड़क से गुजर ही रहा था कि उसे एक भिखारी दिखाई दिया। राजा को भिखारी की दशा देखकर बड़ी दया आई। उसने भिखारी को अपने पास बुलाया और उसे एक सोने का सिक्का दिया। भिखारी सिक्का लेके बड़ा खुश हुआ, अभी आगे चला ही था कि वो सिक्का भिखारी के हाथ से छिटक कर नाली में गिर गया। भिखारी ने तुरंत नाली में हाथ डाला और सिक्का ढूंढने लगा।

राजा को बड़ी दया आई कि ये बेचारा कितना गरीब है, राजा ने भिखारी को बुलाकर एक सोने का सिक्का और दे दिया। अब तो भिखारी की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने सिक्का लिया और जाकर फिर से नाली में हाथ डाल के खोया सिक्का ढूंढने लगा।

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने फिर भिखारी को बुलाया और उसे एक चांदी का सिक्का और दिया क्यूंकि राजा ने खुद से वादा किया था कि एक इंसान को खुश और संतुष्ट जरूर करेगा। लेकिन ये क्या? चांदी का सिक्का लेकर भी उस भिखारी ने फिर से नाली में हाथ डाल दिया और खोया सिक्का ढूंढने लगा।

राजा को बहुत बुरा लगा उसने फिर भिखारी को बुलाया और उसे एक और सोने का सिक्का दिया। राजा ने कहा – अब तो संतुष्ट हो जाओ….

भिखारी बोला – महाराज, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा जब मुझे वो नाली में गिरा सोने का सिक्का मिल जायेगा।

दोस्तों हम भी उस भिखारी की ही तरह हैं और वो राजा हैं भगवान। अब भगवान हमें कुछ भी देदे हम संतुष्ट हो ही नहीं सकते। ये मेरी या आपकी बात नहीं है बल्कि पूरी मानव जाति कभी संतुष्ट नहीं होती। पैसा चाहिए, पैसा मिले तो अब कार चाहिए, कार मिले तो और बड़ी चाहिए और यही क्रम चलता जाता है

भगवान ने हमें ये अनमोल शरीर दिया है लेकिन हम जिंदगी भर नाली वाला सोने का सिक्का ही ढूंढते रहते हैं। आप चाहे कितने भी अमीर हो जाओ, चाहे कितना भी धन कमा लो आप संतुष्ट नहीं हो सकते। इस अनमोल पावन शरीर को पाकर भी हम संसार रूपी नाली से सिक्के ही ढूढ़ते रहते हैं। दोस्तों भगवान के दिए इस शरीर रूपी धन का इस्तेमाल दूसरों की मदद के लिए करें, भिखारी ना बनें..!!
   *🙏🏾🙏🏿🙏🏼जय जय श्री राधे*🙏🙏🏻🙏🏽

GyankiJyoti

21 Dec, 17:36


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21 Dec, 17:35


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21 Dec, 07:43


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21 Dec, 03:23


*!! लालची कुत्ता !!*
~~~~

बहुत साल पहले की बात है, एक गांव में एक आवारा लालची कुत्ता भूख के मारे खाने की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। वह गांव में बहुत इधर-उधर घुमा लेकिन खाने के लिए उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा।

फिर घूमते-घूमते वह एक कसाई के दुकान पर आ पंहुचा। वहां पर उसे हड्डी के साथ एक मांस का टुकड़ा पड़ा मिला। वह बहुत खुश हुआ और अपने आप से सोचने लगा (अरे वाह आज तो कितना स्वादिष्ट मांस खाने के लिए मिल गया है और साथ में एक हड्डी भी है, आज तो खाने में बहुत मजा आएगा)।

ऐसा सोचकर उसने उस मांस के टुकड़े को उठाया और खाने का आनंद लेने के लिए एक सुरक्षित और शांत जगह ढूंढ़ने के लिए वहां से भागकर चला गया।

उसे एक पेड़ के निचे मन चाही जगह मिलती है। वहां पर बैठता है और उस हड्डी के मांस के टुकड़े को खाने लगता है। खाते-खाते उसने मांस के टुकड़े को पूरा खा लिया और सिर्फ हड्डी बची हुई थी।

अब उसे थोड़ी प्यास लगती है। पर वह उस हड्डी को छोड़कर नहीं जाना चाहता था तो वह उस हड्डी को ऐसे ही मुँह में पकड़कर नदी के किनारे आ गया।

उस नदी पर इस पार से उस पार तक जाने के लिए एक पुल बना हुआ था। वह कुत्ता उस पुल पर आ गया और वह जैसे ही पानी को पिने के लिए नदी में झुका तभी उसे नदी में उसकी खुदकी परछाई दिखाई दी।

पर उसे लगा पानी में कोई दूसरा कुत्ता अपने मुँह में हड्डी लिए बैठा है। उस पानी में अपनी खुद की परछाई को देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने उस हड्डी को भी पाने के लिए सोचा।

लेकिन उसने जैसे ही उस परछाई से हड्डी छीनने के लिए अपना मुँह खोला तैसे ही उसके मुँह से वह भी हड्डी पानी में गिर गयी। जैसे ही हड्डी पानी में गिरा तो उसके गिरने की वजह से वह परछाई भी नष्ट हो गयी और तब उस कुत्ते को ध्यान आया की दूसरी हड्डी हासिल करने की कोशिश में उसके पास जो हड्डी थी उसे भी खो दिया।

*शिक्षा:-*
जो चीज़े हमारे पास है उसका ख्याल रखना चाहिए और कभी भी लालची नहीं होना चाहिए।

GyankiJyoti

23 Nov, 07:23


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22 Nov, 04:57


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22 Nov, 00:23


प्रतिदिन प्रातःकाल व संध्याकाल स्नान करके एक एक घण्टा गायत्री मंत्र अर्थ सहित जप करने से असीमित बुद्धिमत्ता की प्राप्ति होती हैं,कामवासना पर विजय प्राप्त होती है,विद्यार्थी हो या कौनसी भी अर्थी कोई भी जप सकता है।

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22 Nov, 00:21


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21 Nov, 21:15


*!! नेक कर्म !!*
~~~

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया.

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए.

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा.

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब में फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा.

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया और आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नहीं कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में ले जाकर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

*शिक्षा*
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए.

अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

21 Nov, 21:15


🙏जय श्री राम 🙏

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18 Nov, 13:08


https://youtu.be/ohz93W_yJaE?si=BCA3KSpPNB4pd39h

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18 Nov, 06:07


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16 Nov, 11:30


सभी भाई इस वीडियो को पूरा देखे
आपका सपोर्ट रहा तो डेली यूट्यूब पे
वीडियो डालूंगा इसीलिए भाई लोग पूरा वीडियो देखे अंत तक

🙏जय श्री राम🙏

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16 Nov, 11:29


https://youtu.be/i4hOTJ1w1k4

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15 Nov, 10:51


https://youtu.be/OYs8w3zEii4?si=3XT3Zk4Fss0kSxBC

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15 Nov, 02:52


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13 Nov, 04:34


🙏जय श्री कृष्णा🙏

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12 Nov, 11:13


वीर्य जिसे मनुष्य के प्रजनन का मूलाधार कहते है। वीर्य जो हमारे शरीर का ढाँचा चलाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण शक्ति का स्त्रोत है । इसके अनर्थक नाश से मनुष्य के विवेकबुद्धि का सम्पूर्ण नाश तय है, हमारे जीवन काल के उत्साह का त्याग यानी वीर्य का नाश ।

- डर, असंतोष, लालसा, क्रोध, महत्वाकांक्षा का अभाव. निरित्साह,नकारात्मकता ये सब वीर्य के नाश के कारण हमारे स्वभाव में बढ़ता रहता है ।

- शरीर मे वीर्य का भंडार होना यानी जान में जान आना; जीवन में हर्ष, उत्साह, उमंग का सूर्योदय होना ।

- वीर्य की कमी से एकाग्रता की कमी महसूस होती है, इससे अपने काम मे हमेशा परेशानी होती हैं ।

- आत्महीनता: इसके कारण हम अपना आत्मविश्वास खों बैठते है , जिससे हम हमेशा डरते है ।

- अपने सामर्थ्य को हम न्यून मानकर खुदको ही कोसते रहते है ।

- अपने माता-पिता को दोष देना, अपने आपको कोसते रहना, किसीसे से बात न करना, अपने आपको चार दीवारी के अंदर कैद करना यह सब अनुभव अतिरिक्त वीर्यनाश के कारण महसूस होते है ।

- वीर्य नाश से बाल झडते है,पुरुषों में दाढ़ी और मूछ आना बंद होता है ।

- किसी भी चीज़ को समझने-समजाने की, लिखने की,पढ़ने की,बोलने की गति धीमी हो जाती है ।

- किसी के साथ बातचीत करना भी कठिन जान पड़ता है, अपनी बात बोलने के लिए शब्द भी आसानी से नही मिल पाते ।

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12 Nov, 08:06


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12 Nov, 06:38


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12 Nov, 04:10


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12 Nov, 03:24


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11 Nov, 16:53


बुद्ध ने महल का त्याग
किया शांति के लिए,
हम शांति का त्याग कर
रहें है महल के लिए।.

GyankiJyoti

11 Nov, 16:53


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11 Nov, 06:00


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11 Nov, 03:01


जय श्री राम

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10 Nov, 11:15


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10 Nov, 10:17


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10 Nov, 10:08


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10 Nov, 03:14


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10 Nov, 03:11


भारत में ब्रह्मचर्य की प्राचीन भावना और अभ्यास का व्युत्पन्न अर्थ है " आचरण का एक तरीका जो मन को ब्रह्म या ईश्वर पर केंद्रित रखता है ।" इससे ब्रह्म की ईमानदारी से खोज करने का विशिष्ट साधन उत्पन्न होता है, जो कि कुछ आध्यात्मिक सिद्धांतों का पालन करना और पूर्ण होने तक सभी इंद्रियों को नियंत्रित करना है ...

GyankiJyoti

10 Nov, 03:08


ब्रह्मचर्य के बारे में ज़रूरी जानकारीः
ब्रह्मचर्य का मतलब है, परमात्मा में विचरना या सदा उसका ध्यान करना.

ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचारी कहते हैं.

ब्रह्मचर्य, योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है.

ब्रह्मचर्य का पालन करने से असाधारण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है.

ब्रह्मचर्य, वैदिक धर्म के वर्णाश्रम का पहला आश्रम है.

ब्रह्मचर्य, आत्म-नियंत्रण का उच्चतम स्तर होता है.

ब्रह्मचर्य में, अस्थायी सांसारिक सुखों की इच्छाओं को त्यागकर धार्मिक लक्ष्यों की ओर ध्यान केंद्रित किया जाता है.

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कोई एक तरीका नहीं है.

ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए, कम से कम 90 दिन का समय देना चाहिए.

ब्रह्मचर्य के कुछ सामान्य नियमः
ब्रह्म बेला (सुबह 3-3.30 बजे) में उठकर शौच, स्नान, प्राणायाम, नाम जप, और ध्यान करना चाहिए.

संध्या काल में भी शौच, स्नान, प्राणायाम, आसन, नाम जप या मंत्र जप, और ध्यान करना चाहिए.

यथा संभव सत्य का पालन करना चाहिए.

@Gyankijyoti

GyankiJyoti

08 Nov, 03:26


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08 Nov, 03:25


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08 Nov, 03:14


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08 Nov, 03:05


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07 Nov, 03:50


GyankiJyoti-

जिस भाई को (स्वप्नदोष) होता हो
(वीर्य पतला) हो गया हो
(शीघ्रपतन) की समस्या हो
(डिप्रेशन) की समस्या हो
(शरीर पतला हो
(ताकत की कमी हो

तो मैंने आपको ऐसी जड़ी बूटियों से निर्मित स्वदेशी आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स को बनाया है
जिसका इस्तमाल करके आप इन बीमारियो को ठीक कर सकते हो..
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GyankiJyoti

07 Nov, 03:02


हिंदू धर्म और शास्त्रों में ब्रह्मचर्य में रहकर प्रेम के नियम जीवन को संतुलित और पवित्र बनाए रखने के उद्देश्य से निर्धारित किए गए हैं। ये नियम यह बताते हैं कि प्रेम एक जिम्मेदारी है और इसका पालन मर्यादा और नैतिकता के दायरे में रहकर किया जाना चाहिए। यहाँ प्रेम के कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए गए हैं:

1. मर्यादा का पालन: प्रेम में हमेशा मर्यादा का पालन करना चाहिए। वैदिक परंपरा में प्रेम को एक गहन और पवित्र भावना माना गया है, इसलिए प्रेम का प्रदर्शन खुलेआम न करके निजी रूप में ही किया जाना चाहिए।


2. प्रतिबद्धता और ईमानदारी: प्रेम में निष्ठा (फेथफुलनेस) और सच्चाई होना आवश्यक है। प्रेमी और प्रेमिका को एक-दूसरे के प्रति ईमानदार और वफादार रहना चाहिए। हिंदू धर्म में विवाह का बंधन भी इस पर आधारित है कि दोनों जीवनभर एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी से बंधे रहें।


3. समर्पण और भक्ति: शास्त्रों में प्रेम को भक्ति के रूप में भी देखा गया है। प्रेम में अपने साथी के प्रति समर्पण और सम्मान दिखाना जरूरी है। इसे एक ऐसी भावना माना गया है जो किसी को खुद से ऊपर रखती है और उसमें कोई स्वार्थ नहीं होना चाहिए।


4. प्रेम और काम के बीच संतुलन: प्रेम और शारीरिक आकर्षण (काम) के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। वेदों और उपनिषदों में प्रेम को काम से ऊपर रखा गया है और इसे आत्मा के संबंध से जोड़ा गया है, जबकि काम का संबंध केवल शारीरिक सुख से होता है। प्रेम को हमेशा आत्मिक और सात्विक बनाए रखना चाहिए।


5. धार्मिक नियमों का पालन: हिंदू धर्म में यह आवश्यक है कि प्रेम धर्म और संस्कृति के अनुसार हो। प्रेम में दोनों व्यक्तियों को अपने धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए और इसके अनुसार ही रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए। विवाह जैसे संबंधों के लिए उचित समय और सामाजिक स्वीकृति का पालन आवश्यक माना गया है।


6. आत्म-संयम: प्रेम में आत्म-संयम का महत्व बताया गया है। एक-दूसरे के प्रति प्रेम भावना का आदान-प्रदान करते समय मर्यादा और संयम बनाए रखना चाहिए, जिससे कि प्रेम एक पवित्र रूप में बना रहे।


7. समानता और सम्मान: प्रेम में एक-दूसरे के विचारों, इच्छाओं और भावनाओं का आदर करना जरूरी है। साथी को समान रूप से देखना और उनके प्रति सम्मान का भाव रखना प्रेम का आधार है।



इन नियमों का पालन करके ब्रह्मचर्य में प्रेम को स्थिर, सुखद और मर्यादित बनाए रखा जा सकता है।


जय श्री राम

GyankiJyoti

07 Nov, 03:00


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05 Nov, 13:50


https://youtube.com/shorts/nomIslFISxs?feature=share

GyankiJyoti

04 Nov, 20:19


लँगोट
मानव जीवन में ऊर्जा का बड़ा महत्‍व है। यहाँ तक कि संभोग से लेकर समाधि तक में यह ऊर्जा ही महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारी सारी सांस्‍कृतिक व आध्‍यात्मिक गतिविधियाँ हमारे शरीर के भीतर मौजूद ऊर्जा पर ही निर्भर हैं। ऊर्जा का स्रोत एक ही है जिसे काम केंद्र कहा जाता है। योग की भाषा में शरीर में स्थित सात चक्रों में पहला चक्र मूलाधार इसका स्रोत है, जहाँ हमारी ज्ञानेंद्रियां स्थित होती हैं। आधुनिक युग के चर्चित रहस्‍यदर्शी ओशो के अनुसार शरीर में ऊर्जा एक ही है जब वह मूलाधार से नीचे की तरफ़ सरकती है तो संसार शुरू होता है और जब ऊपर तरफ़ उठती है तो परमात्‍मा शुरू होता है। यही ऊर्जा ऊपर उठते हुए जब सातवें चक्र यानी सहस्रार तक पहुंच जाती है तो आत्‍मा अपने चरम विकास पर पहुंचती है यानि वह परमात्‍मा हो जाती है। अंत:वस्‍त्र लंगोट द्वारा इस ऊर्जा का संरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं, आइए इसकी जानकारी करते हैं। संक्षेप में लंगोट पहनने के लाभ जानते हैं।

अंत:वस्‍त्र लंगोट का महत्त्व
इस ऊर्जा संरक्षण के लिए पुरुषों का अंत:वस्‍त्र लंगोट बड़े काम का है। यह जननांग को केवल ढकता ही नहीं है बल्कि उसे दबाकर रखता है ताकि ऊर्जा नीचे की तरफ़ सरकने के लिए सक्रिय न हो सके। इस शब्‍द में जो अर्थ निहित है – लं और गोट । वह भी इसी तरफ़ इशारा करता है, अर्थात्‌ जो लं और गोट दोनों को संभाल सके वह लंगोट। इसीलिए पहले ऋषि-मुनि जो साधनारत थे, लंगोट के इस्‍तेमाल से ऊर्जा को संरक्षित करने का प्रयास करते थे। धीरे-धीरे यह बल व पौरुष का प्रतीक बन गया। जहां भी पौरुष के संरक्षण की ज़रूरत पड़ी, वहां लंगोट मौजूद हो गया। हनुमानजी के अधिकतर चित्रों में लंगोट पहने ही देखे जाते हैं। पहलवानों का यह बहुत प्रिय वस्‍त्र है। जिस पुरुष को स्त्रियां प्रभावित व आकर्षित न कर सकें, उन्‍हें लंगोट का पक्‍का व्‍यक्ति कहा जाता है।
अब ऐसी कच्छियां आ गई हैं जिनमें लंगोट की गरिमा को संरक्षित करने की कूबत है। लंगोट ने अपना स्‍वरूप बदला लेकिन उसके गुण नहीं बदले। आज जो पहलवान अखाड़ों में लड़ते समय कच्छियां पहनते हैं, वे अंत:वस्‍त्र लंगोट का ही काम करती हैं।

लंगोट पहनने के लाभ
अंत:वस्‍त्र लंगोट काम वासना पर नियंत्रण तो करता ही है, इसे पहनने वाले को कभी हाइड्रोशील की बीमारी नहीं होती और अंडकोश को यह चोट से बचाता है, ख़ासकर साइकिल, मोटरसाइकिल आदि से गिरने पर लगने वाली चोट से। दौड़ने, चलने, योगासान व व्‍यायाम में सुविधाजनक है।
मांगलिक कार्यों खासकर रामचरितमानस के अखंड पाठ, किसी भी तरह का यज्ञ, महायज्ञ आदि में जो ध्‍वज लगता है वह लंगोट के आकार का ही होता है जो ब्रह्मचर्य की ओर जाने का इशारा करता है, यानि ऊर्जा संरक्षण का संदेश देता है। कुल मिलाकर यह ऊर्जा संरक्षण का प्रतीक चिह्न है। आज भी यह बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी सहित अनेक देवताओं को चढ़ाया जाता है। मन्‍नतें पूरी होने पर अनेक देव स्‍थानों पर लंगोट चढ़ाने की परंपरा आज भी जीवित है।

GyankiJyoti

04 Nov, 20:09


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04 Nov, 04:54


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04 Nov, 04:54


इसे सुनना अच्छा लगेगा

GyankiJyoti

03 Nov, 17:17


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03 Nov, 01:07


🙏🙏Jai shree Ram 🙏🙏

GyankiJyoti

02 Nov, 18:17


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01 Nov, 13:52


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GyankiJyoti

30 Oct, 16:32


*!! प्रथम अवसर !!*
~~~

एक किसान की बहुत ही सुन्दर बेटी थी। एक नौजवान लड़का उस किसान की बेटी से शादी की इच्छा लेकर किसान के पास आया।

उसने किसान की बेटी से शादी करने की इच्छा जताई। किसान ने उसकी ओर देखा और कहा- युवक तुम खेत में जाओ, मैं एक-एक करके तीन बैल छोड़ने वाला हूँ। यदि तुम तीनों बैलों में से किसी एक की भी पूँछ पकड़ लो तो मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे कर दूंगा।

नौजवान इस आसान शर्त को सुनकर खुश हो गया और खेत में बैल की पूँछ पकड़ने की मुद्रा लेकर खडा हो गया। किसान ने खेत में स्थित घर का दरवाजा खोला। तभी एक बहुत ही बड़ा और खतरनाक बैल उसमें से निकला। नौजवान ने ऐसा बैल पहले कभी नहीं देखा था। अतः उससे डर कर नौजवान ने निर्णय लिया कि वह अगले बैल का इंतज़ार करेगा और वह एक तरफ हो गया जिससे बैल उसके पास से होकर निकल गया।

दरवाजा फिर खुला, आश्चर्यजनक रूप से इस बार पहले से भी बड़ा और भयंकर बैल निकला। नौजवान ने सोचा कि इससे तो पहला वाला बैल ठीक था। फिर उसने एक ओर होकर बैल को निकल जाने दिया।

दरवाजा तीसरी बार खुला, नौजवान के चहरे पर मुस्कान आ गई। इस बार एक छोटा और मरियल बैल निकला। जैसे ही बैल नौजवान के पास आने लगा, नौजवान ने उसकी पूँछ पकड़ने के लिए मुद्रा बना ली ताकि उसकी पूँछ सही समय पर पकड़ ले। पर यह क्या उस बैल की तो पूँछ ही नहीं थी।

*शिक्षा:-*
हर एक इंसान की जिन्दगी अवसरों से भरी हुई है। कुछ सरल हैं और कुछ कठिन। पर अगर एक बार अवसर गंवा दिया तो फिर वह अवसर दुबारा नहीं मिलेगा। अतः हमेशा प्रथम अवसर को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए..!!

GyankiJyoti

29 Oct, 16:02


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GyankiJyoti

28 Oct, 12:30


ब्रह्मचर्य पालन करने वाले भाई लोग इसे देखे काफी हेल्प मिलेगी इस वीडियो को देखने से

🙏जय श्री राम🙏

GyankiJyoti

28 Oct, 12:29


https://youtube.com/shorts/jsPKKH68U3k?si=hpnHxpdABWMZStSO

GyankiJyoti

28 Oct, 05:49


*!! मैले कपड़े !!*
~~

एक दिन की बात है। एक मास्टर जी अपने एक अनुयायी के साथ प्रातः काल सैर कर रहे थे कि अचानक ही एक व्यक्ति उनके पास आया और उन्हें भला-बुरा कहने लगा। उसने पहले मास्टर के लिए बहुत से अपशब्द कहे, पर बावजूद इसके मास्टर मुस्कुराते हुए चलते रहे। मास्टर को ऐसा करता देख वह व्यक्ति और भी क्रोधित हो गया और उनके पूर्वजों तक को अपमानित करने लगा। पर इसके बावजूद मास्टर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते रहे। मास्टर पर अपनी बातों का कोई असर ना होते हुए देख अंततः वह व्यक्ति निराश हो गया और उनके रास्ते से हट गया।

उस व्यक्ति के जाते ही अनुयायी ने आश्चर्य से पुछा, “मास्टर जी आपने भला उस दुष्ट की बातों का जवाब क्यों नहीं दिया और तो और आप मुस्कुराते रहे, क्या आपको उसकी बातों से कोई कष्ट नहीं पहुंचा ?”

मास्टर जी कुछ नहीं बोले और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया।

कुछ देर चलने के बाद वे मास्टर जी के कक्ष तक पहुँच गए। मास्टर जी बोले, “तुम यहीं रुको मैं अंदर से अभी आया।”

मास्टर जी कुछ देर बाद एक मैले कपड़े को लेकर बाहर आये और उसे अनुयायी को थमाते हुए बोले, “लो अपने कपड़े उतारकर इन्हें धारण कर लो ?”

कपड़ों से अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी और अनुयायी ने उन्हें हाथ में लेते ही दूर फेंक दिया।

मास्टर जी बोले, “क्या हुआ तुम इन मैले कपड़ों को नहीं ग्रहण कर सकते ना ? ठीक इसी तरह मैं भी उस व्यक्ति द्वारा फेंके हुए अपशब्दों को नहीं ग्रहण कर सकता।

*शिक्षा:-*
इतना याद रखो कि यदि तुम किसी के बिना मतलब भला-बुरा कहने पर स्वयं भी क्रोधित हो जाते हो तो इसका अर्थ है कि तुम अपने साफ़-सुथरे वस्त्रों की जगह उसके फेंके फटे-पुराने मैले कपड़ों को धारण कर रहे हो।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

GyankiJyoti

27 Oct, 03:44


*!! लालच की दुनिया !!*
~~~~

एक दिन गाँव की एक बहू सफाई कर रही थी, मुँह में सुपारी थी पीक आया तो उसने गलती से यज्ञवेदी में थूक दिया। उसे आश्चर्य तब हुआ जब उसका थूक स्वर्ण में बदल गया। अब तो वह प्रतिदिन जान बूझकर वेदी में थूकने लगी और उसके पास धीरे-धीरे स्वर्ण बढ़ने लगा।

महिलाओं में बात तेजी से फैलती है, इसलिए कई और महिलाएं भी अपने-अपने घर में बनी यज्ञवेदी में थूक-थूक कर सोना उत्पादन करने लगीं। धीरे-धीरे पूरे गाँव में यह सामान्य चलन हो गया। सिवाय एक महिला के, उस महिला को भी अनेक दूसरी महिलाओं ने उकसाया, समझाया, अरी ! तू क्यों नहीं थूकती ?

जी, बात यह है कि मैं अपने पति की अनुमति बिना यह कार्य हर्गिज नहीं करूँगी और जहाँ तक मुझे ज्ञात है वह अनुमति नहीं देंगे। किन्तु ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा वातावरण बनाया कि आखिर उसने एक रात डरते-डरते अपने पति को पूछ ही लिया। खबरदार जो ऐसा किया तो, यज्ञवेदी क्या थूकने की चीज़ है ?

पति की गरजदार चेतावनी के आगे बेबस वह महिला चुप हो गई पर जैसा वातावरण था और जो चर्चाएँ होती थी, उनसे वह साध्वी स्त्री बहुत व्यथित रहने लगी। खास कर उसके सूने गले को लक्ष्य कर अन्य स्त्रियाँ अपने नए-नए कण्ठ-हार दिखाती तो वह अन्तर्द्वन्द में घुलने लगी। पति की व्यस्तता और स्त्रियों के उलाहने उसे धर्मसंकट में डाल देते।

यह शायद मेरा दुर्भाग्य है, अथवा कोई पूर्वजन्म का पाप कि एक सती स्त्री होते हुए भी मुझे एक रत्ती सोने के लिए भी तरसना पड़ रहा है। शायद यह मेरे पति का कोई गलत निर्णय है, ओह ! इस धर्माचरण ने मुझे दिया ही क्या है ?

जिस नियम के पालन से दिल कष्ट पाता रहे उसका पालन क्यों करूँ ? और हुआ यह कि वह बीमार रहने लगी। पतिदेव इस रोग को ताड़ गए और उन्होंने एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही सपरिवार ग्राम त्यागने का निश्चय किया। गाड़ी में सारा सामान डालकर वे रवाना हो गए। सूर्योदय से पहले-पहले ही वे बहुत दूर निकल जाना चाहते थे।

किन्तु ! अरे ! यह क्या ? ज्यों ही वे गाँव की कांकड़ (सीमा) से बाहर निकले ! पीछे भयानक विस्फोट हुआ। पूरा गांव धू-धू कर जल रहा था। सज्जन दम्पत्ति अवाक् रह गए। अब उस स्त्री को अपने पति का महत्त्व समझ आ गया। वास्तव में, इतने दिन गाँव बचा रहा, तो केवल इस कारण कि उसका परिवार गाँव की परिधि में था।

*शिक्षा:-*
धर्मांचरण करते रहें, कुछ पाने के लालच में इंसान बहुत कुछ खो बैठता है। इसलिए लालच से बचें।

GyankiJyoti

26 Oct, 17:14


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25 Oct, 18:33


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GyankiJyoti

24 Oct, 00:48


कोई 15 साल से कोई 20 साल से अपनी शक्ति को बर्बाद कर रहा, अभी सिर्फ 15, 20 दिन ही ब्रह्मचर्य पालन करके सभी समस्या ठीक हो जाये ऐसी उम्मीद करना बुद्धिमानी नहीं है । की हुई गलती का side effects को भुगतने में कोई आपको बचा नहीं सकता , न कोई मदद कर सकता है, हाँ इतना जरूर है , आप खुद अपने पुरुषार्थ से कम से कम एक साल भी ईमानदारी से ब्रह्मचर्य का पालन करें तो 70% समस्या से मुक्ति पा सकते है, बाकी 30% समस्या का महत्व खत्म हो जाएगा जब आपके जीवन में आध्यात्मिक शक्ति आएगी । इसलिए रोते रोते समय खराब न करें, न कोई सुनेगा न कोई बचाएगा, ये सत्य है आपके पुरुषार्थ के सामने भगवान भी यार दोस्त बन सकता है , ये सिर्फ हमारा विचार नहीं बल्कि सनातन संस्कृति का सनातन विचार है

GyankiJyoti

23 Oct, 01:37


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20 Oct, 16:22


मोर मोरनी की कहानी (अजीत मिश्रा)

एक समय की बात है, एक जंगल में एक मोर और उसकी मोरनी रहती थी। मोर बहुत खूबसूरत था, उसके पंखों पर रंग-बिरंगी धारियाँ थीं। वह बहुत अच्छा नाचता भी था। मोरनी भी बहुत सुंदर थी, लेकिन वह मोर की तरह अच्छा नहीं नाचती थी। मोर हमेशा मोरनी का मज़ाक उड़ाया करता था। वह कहता था, "तुम तो अच्छी नाचती ही नहीं हो। तुम नाचने के लायक नहीं हो।"

मोर के इस तरह से मज़ाक उड़ाने से मोरनी का आत्मविश्वास कमजोर होता जा रहा था। वह धीरे-धीरे कोई भी काम करती तो वह सब कुछ गड़बड़ कर देती थी। एक दिन, मोरनी जंगल में घूम रही थी। तभी उसकी मुलाकात एक बाज से हुई। बाज बहुत बुद्धिमान और दयालु था। उसने मोरनी से पूछा, "तुम इतनी उदास क्यों हो?"

मोरनी ने बाज को सारी बात बताई। बाज ने मोरनी को समझाया, "तुम बहुत सुंदर हो। तुम्हारी आवाज भी बहुत अच्छी है। तुम बस थोड़ा अभ्यास करोगी तो तुम बहुत अच्छा नाचोगी।"

बाज की बातों से मोरनी को बहुत अच्छा लगा। उसने बाज की सलाह मानी और नाचने का अभ्यास करने लगी। बाज भी मोरनी का साथ देता रहता था। वह हमेशा मोरनी की प्रशंसा करता रहता था। इससे मोरनी का आत्मविश्वास बढ़ता गया। कुछ दिनों बाद, जंगल में एक नाचने की प्रतियोगिता होने वाली थी। मोर और मोरनी दोनों ने इस प्रतियोगिता में भाग लेने का फैसला किया। नाचने की प्रतियोगिता के दिन, जंगल के सभी जानवर इकट्ठा हो गए। सभी को लग रहा था कि यह नाच प्रतियोगिता मोर ही जीतेगा। सबसे पहले मोर ने नाच किया। उसने बहुत अच्छा नाच किया। सभी जानवर उसकी तारीफ करने लगे। फिर मोरनी ने नाचना शुरू किया। उसने अपनी पूरी शक्ति से नाचा। उसकी आवाज़ भी बहुत अच्छी थी वह नाच के साथ साथ सुरीली आवाज मे गाना भी गा रही थी। उसके गाने की धुन मे जंगल के सभी जानवर ही नहीं अपितु वहाँ मौजूद पेड़-झड़िया आदि भी झूम रहे थे। मोरनी का नाच देखकर सभी जानवर दंग रह गए। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि मोरनी इतना अच्छा नाच सकती है।

अंत में, मोरनी ने नाच प्रतियोगिता जीत ली। सभी जानवर मोरनी की जीत पर बहुत खुश हुए। मोरनी ने अपने जीत का श्रेय बाज को दिया। उसने कहा, "मैंने अपनी जीत बाज की वजह से हासिल की है। उसने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया।"

कहानी की शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब हमें कोई प्रोत्साहित करने वाला साथी मिलता है जो सकारात्मक ऊर्जा और सोच वाला होता है तो बुरा प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति भी अच्छा प्रदर्शन करने लगता है।

GyankiJyoti

20 Oct, 16:21


हस्तमैथुन से उत्तेजना मिलता है और उस उत्तेजना के कारण कुछ देर आंनद का अनुभव होता है । हस्तमैथुन की आदत छोड़ना चाहते हो तो ये स्वाभाविक है कि उससे मिल रही उत्तेजना को भी छोड़ना होगा । लेकिन बात यही खत्म नही होती । उत्तेजना और भी चीज़ों से मिलती है ,उन उत्तेजनाओं को भी त्यागना होगा । अगर मन उत्तेजनाओं के पीछे ही भागता रहेगा तो फिर हमारा मन हस्तमैथुन से मिल रही उत्तेजना की भी मांग करेगा । इसलिए अपने आनंद का स्रोत किसी भी प्रकार के उत्तेजना को न बनाओ । मसालेदार भोजन , मिठाई इत्यादि से भी उत्तेजना मिलती है , गाने सुनना , फिल्मे देखना ये सारे हमारे मन को उत्तेजनाओं के आदि बना देता है । हालांकि एक बात स्पष्ट कर दूँ कि प्राकृतिक उत्तेजनाओं में कुछ गलत नही होता क्योंकि वे हमारे मन में डोपामाइन स्तर को सामान्य से अधिक बढ़ने नही देती । ध्यान प्राणायाम व्यायाम आदि से प्राकृतिक उत्तेजन मिलती है जिसमे कोई बुराई नही है ।

GyankiJyoti

19 Oct, 18:44


गंगा नदी के तट पर कुछ तपस्वियों का आश्रम था जहाँ याज्ञवल्क्य नाम के ऋषि रहते थे. एक दिन वो नदी के किनारे आचमन कर रहे थे. उसी वक़्त आकाश में एक बाज अपने पंजे में एक चुहिया को दबाये जा रहा था जो उसकी पकड़ से छूटकर ऋषि की पानी से भरी हथेली में आ गिरी. ऋषि ने उसे एक पीपल के पत्ते पर रखा और दोबारा नदी में स्नान किया. चुहिया अभी मरी नहीं थी इसलिए ऋषि ने अपने तप से उसे एक कन्या बना दिया और आश्रम में ले आये. अपनी पत्नी से कहा इसे अपनी बेटी ही समझकर पालना. दोनों निसंतान थे इसलिए उनकी पत्‍नी ने कन्या का पालन बड़े प्रेम से किया. कन्या उनके आश्रम में पलते हुए बारह साल की हो गयी तो उनकी पत्‍नी ने ऋषि से उसके विवाह के लिए कहा.

ऋषि ने कहा में अभी सूर्य को बुलाता हूँ. यदि यह हाँ कहे तो उसके साथ इसका विवाह कर देंगे ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह अग्नि जैसा गरम है. कोई इससे अच्छा वर बुलाइये.”

तब सूर्य ने कहा बादल मुझ से अच्छे हैं, जो मुझे ढक लेते हैं. बादलों को बुलाकर ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह बहुत काले हैं कोई और वर ढूँढिए.”

फिर बादलों ने कहा “वायु हमसे भी वेगवती है जो हमें उड़ाकर ले जाती है."

तब ऋषि ने वायु को बुलाया और कन्या की राय माँगी तो उसने कहा “पिताजी यह तो बड़ी चंचल है. किसी और वर को बुलाइए."

इस पर वायु बोली “पर्वत मुझसे अच्छा है, जो तेज़ हवाओं में भी स्थिर रहता है.”

अब ऋषि ने पर्वत को बुलाया और कन्या से पूछा. कन्या ने उत्तर दिया “पिताजी, ये बड़ा कठोर और गंभीर है, कोई और अच्छा वर ढूँढिए न.”

इस पर पर्वत ने कहा “चूहा मुझसे अच्छा है, जो मुझमें छेद कर अपना बिल बना लेता है.”

ऋषि ने तब चूहे को बुलाया और बेटी से कहा “पुत्री यह मूषकराज क्या तुम्हें स्वीकार हैं?”

कन्या ने चूहे को देखा और देखते ही वो उसे बेहद पसंद आ गया. उस पर मोहित होते हुए वो बोली “आप मुझे चुहिया बनाकर इन मूषकराज को सौंप दीजिये.”

ऋषि ने तथास्तु कह कर उसे फिर चुहिया बना दिया और मूषकराज से उसका स्वयंवर करा दिया.

*शिक्षा:-*
जन्म से जिसका जैसा स्वभाव होता है वह कभी नहीं बदल सकता.

GyankiJyoti

14 Oct, 15:35


एक कबूतर और एक क़बूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे।

उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया ।

क़बूतरी के मन में कुछ शंका हुआ औऱ उसने क़बूतर से कहा कि चलो जल्दी उड़ चले नहीं तो ये आदमी हमें मार डालेगा।

क़बूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान के साथ क़बूतरी से कहा..भला उसे ग़ौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है, ये हमें क्या मारेगा..बिलकुल सज्जन पुरुष लग रहा है...?

क़बूतर की बात सुनकर क़बूतरी चुप हो गई।

जब वह आदमी उनके क़रीब आया तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर कमान निकाला औऱ झट से क़बूतर को मार दिया...औऱ बेचारे उस क़बूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए....

असहाय क़बूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई औऱ बिलखने लगी।उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा औऱ पल भर में ही उसका सारा संसार उजड़ गया।

उसके बाद वह क़बूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई औऱ राजा को उसने पूरी घटना बताई।

राजा बहुत दयालु इंसान था।

राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को उस शिकारी को पकड़कर लाने का आदेश दिया।

तुरंत शिकारी को पकड़ कर दरबार में लाया गया।शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

उसके बाद राजा ने क़बूतरी को ही उस शिकारी को सज़ा देने का अधिकार दे दिया औऱ उससे कहा कि " तुम जो भी सज़ा इस शिकारी को देना चाहो दे सकती हो औऱ तुरंत उसपर अमल किया जाएगा "।

क़बूतरी ने बहुत दुःखी मन से कहा कि " हे राजन,मेरा जीवन साथी तो इस दुनिया से चला गया जो फ़िर क़भी भी लौटकर नहीं आएगा, इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को बस इतनी ही सज़ा दी जानी चाहिए कि
अगर वो शिकारी है तो उसे हर वक़्त शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए , ये शराफत का लिबास वह उतार दे क्योंकि शराफ़त का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं....।

..............

इसलिए अपने आसपास शराफ़त का ढोंग करने वाले बहरूपियों से हमेशा सावधान रहें..........सतर्क रहें औऱ अपना बहुत ख़याल रखें.........!!

GyankiJyoti

09 Oct, 19:08


हस्तमैथून /वीर्यनाश /ब्रह्मचर्य खंडन करने के बुरे प्रभाव :

● हमारे ऊर्जा को छिन करती है ।
● आंखों की चारो ओर काली रेखाएं आ जाना ।
● धसी हुई आंखें होना।
● खून की कमी के कारण चेहरा पिला पढ़ जाना ।
● यादाश्त में कमी होना ।
● आंखों की रोशनी कम हो जाना ।
● पेसाब के साथ वीर्य का निकलना ।
● जननांग का टेढ़ा , छोटा और शिथिल होना ।
● उसपर नस का उभर जाना ।
● अंडकोष में दर्द रहना ।
● पीठ , कमर और जोड़ो में दर्द रहना ।
● हृदय की ढरकन तेज़ चलना ।
● मन का अस्थिर और चंचल रहना ।
● विचार शक्ति में कमी ।
● बुरे और कमुख विचार आना ।
● पुरुषों में यौन नपुंसकता और स्त्रियों में बांझपन का होना ।

नोट : ऊपर बताये गए सभी समस्या का समाधान के लिए कोई दवाखाना जाना मूर्खता होगी । इसका एक ही सरल समाधान है और वो है ब्रह्मचर्य ।

ब्रह्मचर्य / वीर्य संरक्षण के लाभ :

शारीरिक लाभ :

१. शारीरिक स्वास्थ्य सदैव अच्छा बना रहता है।
२. शरीर तेजोमय व आरोग्य बन जाता है।
३. शारीरिक बल की प्राप्ति होती है।
४. शरीर दीर्घायु को प्राप्त करता है।
५. मुख मण्डल पर अलौकिक आभा होती है।
६. उत्तम व संस्कारित सन्तान प्राप्त होती है।
७. समस्त इन्द्रिय समुह स्वस्थ्य एवं संयम में रहता है।
८. शरीर के त्यागने पर सद्गति मिलती है।
९. सहन शक्ति, उत्साह व साहस में वृद्धि होती है।
१०. गिलहरियों के समान शरीर में फुर्ती रहती है ।

बौद्विक लाभ :

१. ब्रह्मचर्य सदाचार (सज्जनों का आचरण) का आधार है।
२. ब्रह्मचर्य से समस्त दोषों का नाश होता है।
३. यह हमारी श्रेष्ठता एवं सम्पूर्ण उन्नति का साधन है।
४. वेद-अध्ययन एवं ईश्वर चिन्तन में मन लगता है।
५. जीवन के उत्थान एवं सफलता में सहायक है।
६. बौद्विक बल की प्राप्ति होती है।
७. स्मरण शक्ति तेज व स्थायी बनी रहती है।
८. मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की दिशा में प्रर्याप्त   उन्नति करता हुआ सद्गति को प्राप्त करता है।

आत्मिक/ अध्यात्मिक लाभ :

●ब्रह्मचर्य ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की आधारशिला है।
●मानसिक शक्तियों के विकास में सहायक है।
●आत्मिक बल बना रहता है। आत्मिक शक्तियाँ विकसित होती हैं।
●जीवन आनन्दमय बन जाता है।
●ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना में मन व हृदय लग जाता है।
●धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष स्वयं सिद्ध होने लगते हैं।
●आत्म ज्ञान एवं परमानन्द की प्राप्ति होती है।

समाजिक लाभ :

●समाज में पाप, विशेषकर वासना सम्बन्धी, कम होते हैं।
●समाज में आर्थिक उन्नति (सभी वर्गों में) एक समान होने की प्रवृति बनती जाती है।
●यम-नियम पालन की प्रेरणा मिलती है।
●गरीब-अमीर में आर्थिक असमानता कम होती जाती है।
●आज के सभी क्षेत्रों में प्रर्याप्त उन्नति होने की प्रकिया को बढ़ावा मिलता है।
●सभी जीवों के प्रति प्रेम बढ़ता जाता है।
●सभी प्राणियों के मानव अधिकारों की रक्षा होती है।

इस दिव्य ऊर्जा के संरक्षण से दृड़ इच्छा शक्ति , तेज़ बुद्धि , अच्छा व्यवहार और आध्यात्मिक उत्थान की प्राप्ति होती है ।युवाओं से मेरी अपील है की वे महत्वपूर्ण तरल प्रदार्थ-वीर्य के मूल्य को समझे ।वीर्य के प्रत्येक बून्द को संरक्षित करने के लिए आपको अपने स्तर भर भरपूर प्रयास करनी चाहिए ।और आपको इस काम ऊर्जा को रूपांतरित करने के बारे में सोचना चाहिए ।

GyankiJyoti

04 Oct, 03:09


• वीर्य सूक्ष्म रूप में शरीर के सभी कोशाणुओं में पाया जाता है। जिस प्रकार गन्ने में शर्करा तथा दुग्ध में मक्खन सर्वत्र व्याप्त होता है, उसी प्रकार वीर्य समग्र शरीर में व्याप्त रहता है। जिस प्रकार मक्खन निकाल लेने पर छाछ पतली रह जाती है उसी प्रकार वीर्य का अपव्यय होने से वह पतला पड़ जाता है। जितना ही अधिक वीर्य का नाश होता है उतनी ही अधिक दुर्बलता आती है । योगशास्त्र में कहा है: “मरणं बिन्दुपतनात् जीवनं बिन्दुरक्षणात् । " - वीर्य का नाश ही मृत्यु है और वीर्य की रक्षा ही जीवन है। यह मनुष्य का सबसे कीमती खजाना है । यह मुखमण्डल को ब्रह्म तेज तथा बुद्धि को बल प्रदान करती है।

GyankiJyoti

02 Oct, 13:34


एक गाँव था, उस गाँव के रास्ते में बहुत घना जंगल था. जंगल घना होने के कारण तरह तरह के पशु-पक्षी जंगल में रहते थे. एक शेर भी रहता था. शेर कभी-कभी गाँव में घुसकर काफी तहलका मचाता था. इसी वजह से गाँव वाले जंगल के रास्ते में एक पिंजड़ा रख दिए थे. रात हुई सभी अपने-अपने घरों के अन्दर हो गये. गाँव शांत हो गयी. तभी शेर उसी रास्ते से गाँव की ओर जा रहा था. रास्ते में लगा पिंजड़ा में उसका पैर फंसा और भारी शरीर होने के कारण शेर पिंजड़े में बंद हो गया. अब वह उस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका था. काफी कोशिश करने के बावजूद भी वह वहाँ से नहीं निकल पाया. पूरी रात शेर पिंजड़े में ही कैद रहा.

सुबह हुई कुछ समय बाद उसी रास्ते से गाँव में एक व्यक्ति जा रहा था. तभी शेर बोला - "ओ भाई! ओ भाई!" वह व्यक्ति शेर को पिंजड़े में देखकर डर गया. शेर को काफी तेज़ की भूख लगी थी.

शेर ने उस व्यक्ति से कहा - "मेरी सहायता करो. मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है. कृपया कुछ पानी पिला दो."

व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो, अगर मुझे ही अपना शिकार बना लिए तो!" शेर बोला - "नही भाई! मैं ऐसा नहीं करूंगा."

शेर की लाचारी देखकर उस व्यक्ति को शेर पर दया आ गयी और वह बगल के तालाब से पानी ले आया और शेर को पानी पिलाया. शेर पानी पी लिया उसके बाद फिर से उस व्यक्ति को बोला - "प्यास तो बुझ गयी अब पूरी रात से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो न." उस व्यक्ति ने शेर के भोजन की व्यवस्था में जुट गया और कहीं कहीं से उसका भोजन ले आया. शेर भोजन भी किया.

शेर ने फिर से आवाज लगायी - "ओ भले इन्सान! मैं इस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका हूँ. कृपा करके इस पिंजड़े से मुझे आजाद करा दो." वह व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी और सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो. पिंजड़े के बाहर आते ही तु अपनी रूप में आ जाएगा.

शेर बोला - "मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा."

वह व्यक्ति उसकी बात मान कर पिंजड़ा का दरवाजा खोल दिया और शेर बाहर आ गया. शेर बहार आते ही पहले चैन की साँस ली और बोला मेरी अभी तक भूख मिटी नहीं है और भोजन भी सामने है. सो भोजन तलाशने का भी जरुरत नही है. अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ.

इतना सुन वह व्यक्ति डर से काँपने लगा और बोला - "तुम बेईमानी नहीं कर सकते. तुमने पहले ही बोला था की मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा और तुम्हारे परिवार कोb भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो."

शेर बोला - मैं प्राणी ही उसी तरह का हूँ. मुझे बहुत जोर से भूख लगी है तो अब कुछ नहीं. संयोग से ये सब घटना पास के एक पेड़ पर बैठे बन्दर देख रहा था. शेर और उस व्यक्ति में बहस चल ही रही थी तभी बीच में से बन्दर बोल पड़ा - "क्या बात है! क्या बहस हो रही है? उस व्यक्ति ने बन्दर को सारी बात बताई। बन्दर बोला - अच्छा! तो ये बात है. वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजड़े में कैसे आ सकता है? नहीं ! नहीं ! ये हो ही नहीं सकता!"

शेर को अपनी बेइज्जती होते देख रहा नहीं गया और शेर बोला - "ये पंडित ठीक कह रहा है, मैं इस पिंजड़े में पूरी रात कैद था." बन्दर बोला - "मैं कैसे यकीन करूं?"

शेर बोला - "मैं अभी दिखा देता हूँ, इस पिंजड़े में फिर से जा कर." और इतना कह शेर फिर से उस पिंजड़े में चला जाता है और पिंजड़ा का दरवाजा बंद हो जाता है और उसके बाद शेर बोला - "देखो मैं इसी तरह पिंजड़े में था."

बन्दर उस व्यक्ति से बोला - "अब देख क्या रहे हो तुरंत अपनी जान बचा कर भाग लो!" और पंडित वहाँ से भाग जाता है. शेर फिर से पिंजड़े में कैद हो जाता है.

*शिक्षा:-*
दोस्तों! कभी भी किसी की मदद करें तो सोच समझ कर करें. विश्वास उसी पर करें जो सचमुच में विश्वास करने लायक हो. बहुत से लोग सच बोलने का दिखावा करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन पर पहली बार भरोसा कर लेते हैं. ऐसे दुष्ट लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.

GyankiJyoti

02 Oct, 13:26


एक कबूतर और एक क़बूतरी एक पेड़ की डाल पर बैठे थे।

उन्हें बहुत दूर से एक आदमी आता दिखाई दिया ।

क़बूतरी के मन में कुछ शंका हुआ औऱ उसने क़बूतर से कहा कि चलो जल्दी उड़ चले नहीं तो ये आदमी हमें मार डालेगा।

क़बूतर ने लंबी सांस लेते हुए इत्मीनान के साथ क़बूतरी से कहा..भला उसे ग़ौर से देखो तो सही, उसकी अदा देखो, लिबास देखो, चेहरे से शराफत टपक रही है, ये हमें क्या मारेगा..बिलकुल सज्जन पुरुष लग रहा है...?

क़बूतर की बात सुनकर क़बूतरी चुप हो गई।

जब वह आदमी उनके क़रीब आया तो अचानक उसने अपने वस्त्र के अंदर से तीर कमान निकाला औऱ झट से क़बूतर को मार दिया...औऱ बेचारे उस क़बूतर के वहीं प्राण पखेरू उड़ गए....

असहाय क़बूतरी ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई औऱ बिलखने लगी।उसके दुःख का कोई ठिकाना न रहा औऱ पल भर में ही उसका सारा संसार उजड़ गया।

उसके बाद वह क़बूतरी रोती हुई अपनी फरियाद लेकर राजा के पास गई औऱ राजा को उसने पूरी घटना बताई।

राजा बहुत दयालु इंसान था।

राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को उस शिकारी को पकड़कर लाने का आदेश दिया।

तुरंत शिकारी को पकड़ कर दरबार में लाया गया।शिकारी ने डर के कारण अपना जुर्म कुबूल कर लिया।

उसके बाद राजा ने क़बूतरी को ही उस शिकारी को सज़ा देने का अधिकार दे दिया औऱ उससे कहा कि " तुम जो भी सज़ा इस शिकारी को देना चाहो दे सकती हो औऱ तुरंत उसपर अमल किया जाएगा "।

क़बूतरी ने बहुत दुःखी मन से कहा कि " हे राजन,मेरा जीवन साथी तो इस दुनिया से चला गया जो फ़िर क़भी भी लौटकर नहीं आएगा, इसलिए मेरे विचार से इस क्रूर शिकारी को बस इतनी ही सज़ा दी जानी चाहिए कि
अगर वो शिकारी है तो उसे हर वक़्त शिकारी का ही लिबास पहनना चाहिए , ये शराफत का लिबास वह उतार दे क्योंकि शराफ़त का लिबास ओढ़कर धोखे से घिनौने कर्म करने वाले सबसे बड़े नीच होते हैं....।

..............

इसलिए अपने आसपास शराफ़त का ढोंग करने वाले बहरूपियों से हमेशा सावधान रहें..........सतर्क रहें औऱ अपना बहुत ख़याल रखें.........!!

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