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प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩

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प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩 (Hindi)

वैदिक ज्ञान का अद्भुत सागर, यहां पर आपके लिए एक मंच है - 'प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩'। इस चैनल में आपको प्राचीन वैदिक ज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए इस चैनल से जुड़ें और प्राचीनतम धरोहर का अनुसरण करें। यहां प्राचीन भारतीय सभ्यता और दर्शन के गहरे रहस्य छिपे हैं जिन्हें खोजने का सुनहरा अवसर है। इस चैनल के माध्यम से आईये, वैदिक ज्ञान का अनोखा सफर तय करें और अपने मन की शांति और ज्ञान के विस्तार का आनंद उठाएं। जॉइन करें 'प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩' चैनल और दें अपने जीवन को एक नया मायना। धन्यवाद 🙏🏻

प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩

19 Nov, 14:21


प्र. २०६. ईश्वर जीवों से क्या चाहता है ?

उत्तर : ईश्वर चाहता है कि जीव उसकी आज्ञा का पालन करके संसार में सुखी रहें व मुक्तिपद को प्राप्त करें ।

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17 Nov, 12:32


प्र. २०५. ईश्वर से हमारे क्या क्या सम्बन्ध हैं ?

उत्तर : ईश्वर हमारा माता, पिता, गुरु, राजा, स्वामी, उपास्य आदि है। और हम उसके पुत्र, शिष्य, प्रजा, सेवक, उपासक आदि हैं।

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16 Nov, 14:17


प्र. २०४. संसार को ईश्वर बनाता है या जीव बनाते हैं या अपने आप बन जाता है।

उत्तर : ईश्वर बनाता है। जीवों के पास इतना ज्ञान व सामर्थ्य नहीं है कि वे संसार को बना सकें। प्रकृति ज्ञानरहित तथा स्वयं क्रिया रहित होने से स्वयं संसार के रूप में नहीं आ सकती ।

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16 Nov, 14:10


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15 Nov, 11:29


प्र. २०३. ईश्वर का कोई रूप, रंग, भार, आकार, आदि है या नहीं ?

उत्तर : ईश्वर में ये गुण नहीं होते। इसी कारण ईश्वर को निर्गुण भी कहते हैं ।

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13 Nov, 12:33


प्र. २०२. ईश्वर किसे कहते है ?

उत्तर : एक ऐसी वस्तु जो सब जगह विद्यमान है, चेतन है, निराकार है, अनन्तज्ञान, अनन्तबल, अनन्त आनन्द, न्याय, दया आदि गुण से युक्त है उसका नाम ईश्वर है ।

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13 Nov, 11:49


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13 Nov, 11:47


🙏

*कामनाओं को पूरा करने से वे बढ़ती जाती है जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि बढ़ती है:-*

*न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।*
*हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्द्धते।।*

*अर्थ:- यह निश्चय है कि जैसे अग्नि में इन्धन और घी डालने से बढ़ता जाता है वैसे ही कामों के उपभोग से काम शान्त कभी नहीं होता किन्तु बढ़ता ही जाता है। इसलिये मनुष्य को विषयासक्त कभी न होना चाहिए।*

*-(सत्यार्थप्रकाश दशमसमुल्लास)*

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13 Nov, 11:34


दाता कहीं न आप सा

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11 Nov, 15:04


प्र. २०१. सबसे श्रेष्ठ व उत्तम कर्म कौन सा है और उसका फल क्या है ?

उत्तर : बिना किसी लौकिक फल सुख की कामना के दूसरों का उपकार अर्थात् निष्काम कर्म सबसे श्रेष्ठ व उत्तम कर्म है। और उसका फल है जीते जी विशुद्ध ईश्वरीय सुख को भोगना तथा मृत्यु के बाद ३६ हजार बार सृष्टि के बनने और बिगड़ने तक पुनः जन्म न लेना, केवल आनन्द ही आनन्द भोगते रहना, दुःख का लेशमात्र भी स्पर्श न होना । इस मोक्ष फल में शुद्ध ज्ञान व शुद्ध उपासना भी कारण है ।

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09 Nov, 02:39


प्र. २००. व्यक्ति को किसी भी श्रेष्ठ कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?

उत्तर : किसी भी श्रेष्ठ कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए छः चीजों की आवश्यकता है, व्यक्ति को उनका संग्रह और उपयोग करना चाहिए। वे छः चीजें इस प्रकार हैं-
(१) संस्कार,
(२) तीव्र इच्छा,
(३) पर्याप्त साधनों की उपलब्धि,
(४) साधनों को प्रयोग करने की सही विधि,
(५) परम पुरुषार्थ,
(६) घोर तपस्या ।

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07 Nov, 12:30


प्र. १९९. क्या मांस या अण्डा खाने वाले को पाप लगेगा ?

उत्तर : हाँ, मांस हो या अण्डा हो, दोनों के खानेवाले को पाप लगेगा। क्योकि इससे प्राणियों की हिंसा होती है। शास्त्र में भी इसका निषेध किया है ।

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05 Nov, 15:07


प्र. १९८. मनुष्य सुखी कैसे होता है ?

उत्तर : विद्या, बुद्धि व ज्ञान प्राप्त करने , अच्छे कर्म करने और ईश्वर की उपासना करने से मनुष्य सुखी होता है ।

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03 Nov, 06:53


🙏🏻🚩❤️

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02 Nov, 04:53


प्र. १९७. सुख किसे कहते हैं ?

उत्तर : स्वतंत्रता, निर्भयता, प्रसन्नता आदि जिसको प्राप्त करने के पश्चात् व्यक्ति छोड़ना नहीं चाहता, उसे सुख कहते हैं ।

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01 Nov, 12:31


प्र. १९६. दुःख किसे कहते हैं ?

उत्तर : बाधा, पीड़ा, कष्ट, पराधीनता आदि जिससे व्यक्ति बचना चाहता है उसे दुःख कहते हैं ।

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30 Oct, 16:10


प्र. १९५. मनुष्य की आत्मा अगला जन्म पाने के लिए किसी माँ के पेट में स्वयं चली जाती है या कोई ले जाता है ?

उत्तर : अगला जन्म पाने के लिए मनुष्य की आत्मा किसी माँ के पेट (गर्भाशय) में स्वयं नहीं चली जाती है बल्कि उसको परमात्मा (ईश्वर) ही ले जाते हैं।

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29 Oct, 15:45


प्र. १९४. मनुष्य मरने के बाद पुनः मनुष्य ही बनता है या पशु- पक्षी आदि भी बनता है ?

उत्तर : मनुष्य मरने के बाद मनुष्य ही बनेगा, यह जरूरी नहीं है। कर्मों के आधार पर पशु-पक्षी आदि भी बन सकता है ।

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27 Oct, 14:33


प्र. १९३. मरने के बाद मनुष्य पुनः जन्म ग्रहण क्यों करता है ?

उत्तर : मनुष्य जितना व जितने प्रकार का कर्म करता है, उन सभी का फल इसी जन्म में भोग नहीं सकता हैं। कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनका फल भोगने के लिए पुनः जन्म ग्रहण करता है ।

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25 Oct, 15:05


प्र. १९२. क्या मनुष्य का अगला जन्म होता है ? / क्या मनुष्य का मरने के बाद पुनः जन्म होता है ?

उत्तर : हाँ । मनुष्य मरने के बाद पुनः जन्म ग्रहण करता है ।

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24 Oct, 14:33


यन्त्री राट् यन्त्री०।।(यजु० १४-२२)

भावार्थः-जो स्त्री पृथिवी के समान क्षमायुक्त आकाश के समान निश्चल और यन्त्रकला के तुल्य जितेन्द्रिय होती है वह कुल का प्रकाश करने वाली है ॥ २२ ॥

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22 Oct, 02:57


प्र. १९१. क्या आयु जन्म से निश्चित है या घटायी-बढ़ायी जा सकती है ?

उत्तर : मनुष्य अपने कर्मों से, अपनी आयु को जो कि उसको पिछले जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप मिलती है, घटा भी सकता है और बढ़ा भी सकता है। वेदानुकूल आचरण करेगा तो बढ़ जायेगी, विपरीत करेगा तो घट जायेगी ।

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16 Oct, 15:15


प्र. १९०. क्या भ्रान्ति, विवशता, मजबूरी या अल्पज्ञान से किये जाने वाले कर्मों का भी फल मिलता है ?

उत्तर : जी हाँ । भ्रान्ति, विवशता, मजबूरी या अल्पज्ञान से किये गये कर्मों का भी फल ईश्वर द्वारा मिलता है। चाहे वे अच्छे हों या बुरे । क्योंकि उन कर्मों से अन्यों को सुख-दुःख तो प्राप्त होता ही है।

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14 Oct, 15:56


प्र. १८९. क्या बिना ज्ञान के भी कर्म होते हैं ?

उत्तर : सामान्य सिद्धान्त तो यही है कि बिना ज्ञान के कर्म नहीं होते क्योंकि जो कुछ भी कर्म मनुष्य करता है वह इच्छापूर्वक करता है। और वह इच्छा सुख प्राप्त करने तथा दुःख से छूटने रूप होती है। इसलिए अधिकांश कर्म ज्ञान पूर्वक ही होते हैं ।

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13 Oct, 03:30


प्र. १८८. आजकल प्रतिदिन हजारों की संख्या में शिशुओं को उत्पन्न होने से पहले गर्भ में ही मार दिया जाता है । तो क्या यह गर्भ में आने वाले जीव के कर्मों का फल है या माता-पिता का ?

उत्तर : गर्भ का धारण माता-पिता की इच्छा से होता है और गर्भपात भी उन्हीं की स्वतन्त्र इच्छा से होता है अतः गर्भपात के कारण होने वाले भयंकर पाप के अपराधी गर्भपात कराने वाले, करने वाले तथा सहमति देने वाले सभी हैं। गर्भधारण करने वाले शिशु का इसमें कोई भी कर्मफल नहीं है। न ईश्वर की ओर से कोई प्रेरणा या विधान है कि गर्भपात कराया जाये। अपितु गर्भपात का निषेध है ।

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13 Oct, 03:27


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12 Oct, 02:31


दुनिया बनाने वाले महिमा

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08 Oct, 12:39


प्र. १८७. किसी के अच्छे या बुरे कर्म का फल तत्काल प्राप्त होता न देखकर क्या यह विचारना उचित है कि उन कर्मों का फल आगे भी नहीं मिलेगा ?

उत्तर : ऐसा विचारना बिलकुल अनुचित है क्योंकि कर्म-फल से कोई भी बच नहीं सकता। कर्म फल देनेवाला ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वज्ञ तथा न्यायकारी है। अतः योग्य समय आने पर कर्म-फल मिलता ही है।

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06 Oct, 12:25


प्र. १८६. पन्द्रह वर्ष की आयु पर्यन्त के सन्तान जो माता-पिता शिक्षक आदि बड़ों की उचित बात की अवज्ञा करे, उनके कथन के विरुद्ध आचरण करे, उसे दण्ड मिलना चाहिए या नहीं ?

उत्तर : दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। यह वैदिक व्यवस्था है कि सन्तान के सुधार के लिए बिना द्वेष के आवश्यकतानुसार वाणी से तथा सावधानी पूर्वक शारीरिक ताड़ना भी करनी चाहिए ।

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03 Oct, 12:45


प्र. १८५. जिस माता-पिता की एक ही सन्तान है आगे-पीछे कोई नहीं है और वह सन्तान वैराग्य के कारण गृहत्याग कर देती है तो क्या उसका अपराध माना जायेगा ?

उत्तर : नहीं । यदि वैराग्य के कारण उसने घर छोड़ा है और अपने जीवन को सच्चे ईश्वर की उपासना से महान, उन्नत, श्रेष्ठ बना रहा है तथा समाज-राष्ट्र का कल्याण कर रहा है तो उसका अपराध नहीं है। अपितु वह ईश्वर आज्ञा का पालन कर रहा है।

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