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प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩

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प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩 (Hindi)

वैदिक ज्ञान का अद्भुत सागर, यहां पर आपके लिए एक मंच है - 'प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩'। इस चैनल में आपको प्राचीन वैदिक ज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए इस चैनल से जुड़ें और प्राचीनतम धरोहर का अनुसरण करें। यहां प्राचीन भारतीय सभ्यता और दर्शन के गहरे रहस्य छिपे हैं जिन्हें खोजने का सुनहरा अवसर है। इस चैनल के माध्यम से आईये, वैदिक ज्ञान का अनोखा सफर तय करें और अपने मन की शांति और ज्ञान के विस्तार का आनंद उठाएं। जॉइन करें 'प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩' चैनल और दें अपने जीवन को एक नया मायना। धन्यवाद 🙏🏻

प्राचीन वैदिक सैद्धांतिक ज्ञान 🚩

11 Jan, 03:08


प्रभु आपकी कृपा से

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07 Jan, 10:43


प्र. २२५. क्या ईश्वर जीवों में या सांसारिक पदार्थों में राग रखता है ?

उत्तर : नहीं, राग अपने से भिन्न उत्तम पदार्थ में होता है। ईश्वर से कोई भी जीव या सांसारिक पदार्थ उत्तम नहीं हैं। अतः ईश्वर किसी से भी राग नहीं रखता है।

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04 Jan, 11:19


प्र. २२४. क्या ईश्वर विरक्त है ?

उत्तर : नहीं, जो प्राप्त हुए पदार्थ को छोड़ दे उसे विरक्त कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापक होने से किसी पदार्थ को नहीं छोड़ता इस दृष्टि से वह विरक्त नहीं हैं।

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02 Jan, 11:29


प्र. २२३. मनुष्य जन्म पाकर करने योग्य सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कौन सा है ?

उत्तर : ईश्वर को समझना व उसकी अनूभूति करना (प्रत्यक्ष करना) सबसे महत्वपूर्ण कार्य है ।

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31 Dec, 13:55


यह नववर्ष हमें स्वीकार नहीं
- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

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29 Dec, 15:18


प्र. २२२. ईश्वर को जानने के पश्चात् योगी को क्या अनुभूति होती है ?

उत्तर : ईश्वर को जानने के पश्चात् योगी को यह अनुभूति होती है कि जो जानना था सो जान लिया, जो पाना था सो पा लिया, अब कुछ भी जानना या प्राप्त करना बाकी नहीं रहा ।

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27 Dec, 11:57


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26 Dec, 15:03


प्र. २२१. जब परमेश्वर जन्म नहीं लेता तब निर्गुण व जब जन्म लेता है तब सगुण कहलाता है। क्या यह बात ठीक है ?

उत्तर : नहीं, सगुण व निर्गुण का अर्थ भिन्न ही है। सर्वज्ञता, सर्वव्यापकत्व आदि गुणों से सहित होने से उसे सगुण व जड़त्व, मूर्खत्व, राग-द्वेष आदि गुणों से रहित होने से ईश्वर को निर्गुण कहते हैं ।

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23 Dec, 15:31


प्र. २२०. क्या भक्त अपने सामर्थ्य से ईश्वर का दर्शन (अनुभूति) कर सकता है ?

उत्तर : नहीं, जब तक ईश्वर से विशेष ज्ञान विज्ञान न मिले व ईश्वर की कृपा न हो तब तक भक्त उसका दर्शन (अनुभूति) नहीं कर सकता ।

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20 Dec, 14:34


प्र. २१९. क्या जीव अपने कर्मों का फल पूर्ण रूप से स्वयं ले सकते हैं ?

उत्तर : नहीं, कर्मों का फल ईश्वर के अधीन है। वह अपनी व्यवस्था से कर्मफल देता है।

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17 Dec, 11:37


प्र. २१८. ईश्वर किस किस का स्वामी है ?

उत्तर : ईश्वर प्रकृति, जीवों, संसार व मोक्ष का स्वामी है ।

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15 Dec, 14:31


प्र. २१७. ईश्वर की क्या विशेषता है ?

उत्तर : ईश्वर सदा अपने आनन्द में मग्न रहता है। ईश्वर में कोई न्यूनता, कोई दोष नहीं है। उसे किसी भौतिक पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती ।

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12 Dec, 14:05


प्र. २१६. ईश्वर व जीवों के बीच कोई दूरी है या नहीं ?

उत्तर : काल व स्थान की दृष्टि से जीव, ईश्वर से दूर नहीं हैं। ईश्वर हर समय, हर स्थान पर उनके साथ रहता है। परन्तु ज्ञान की दृष्टि से जीव ईश्वर से दूर हो जाते हैं। जो ईश्वर को नहीं जानते, मानते, व उसकी भक्ति नहीं करते वे जीव, ईश्वर से दूर हैं ।

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12 Dec, 13:58


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10 Dec, 13:49


प्र. २१५. ईश्वर के सुख व सांसारिक पदार्थों के सुख में कोई अन्तर है या नहीं ?

उत्तर : ईश्वर के सुख व सांसारिक पदार्थों के सुख में अन्तर है। ईश्वर का आनन्द स्थायी व पूर्ण तृप्ति देने वाला है जबकि सांसारिक पदार्थों का सुख क्षणिक व दुःखमिश्रित है ।

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09 Dec, 08:21


बुरे कार्यों को करने से कैसे बचें

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08 Dec, 14:19


प्र. २१४. संसार को किसने धारण किया हुआ है ?

उत्तर : ईश्वर ने अपने सामर्थ्य से सब लोक-लोकान्तरों को (संसार को) धारण कर रखा है।

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06 Dec, 00:51


प्र. २१३. ईश्वर का ज्ञान सदा एक सा रहता है या घटता बढ़ता है ?

उत्तर : ईश्वर का ज्ञान सदा एकरस रहता है अर्थात् घटता बढ़ता नहीं है तथा वह असत्य भी नहीं होता ।

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04 Dec, 15:19


प्र. २१२. प्रलय में ईश्वर कुछ करता है या सो जाता है ?

उत्तर : प्रलय समय में ईश्वर मुक्तात्माओं को आनन्द भुगाता है।

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03 Dec, 08:07


अपने अंदर के दोषों को कैसे हटाएं

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02 Dec, 14:45


प्र. २११. ईश्वर के मुख्य कार्य कौन कौन से हैं ?

उत्तर : ईश्वर के मुख्य रुप से ५ कार्य हैं : (१) सृष्टि को बनाना,
(२) पालन करना,
(३) संहार करना,
(४) जीवों के कर्मों का फल देना,
(५) वेदों का ज्ञान देना ।

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02 Dec, 09:07


ये सब जीवन के मुख्य दोष हैं , जिन्हें हमे हटाना चाहिए

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01 Dec, 13:52


सूक्ष्म विद्या -

भारतीय वैदिक वांग्मय और गौतम ऋषि के न्यायदर्शन( तर्क शास्त्र ) के अनुसार ऐसा माना गया है, कि "एक जन्म के बाद दूसरा जन्म होता है तब तक जब तक मोक्ष न मिल जाये । ईश्वर, आत्मा के कर्मों के आधार पर उसे अगला जन्म देता है।"दूसरा सिद्धांत है कि बिना दंड के और दंड के भय से कोई सुधरता नहीं है।

          जब कोई मनुष्य सेवा, दान , यज्ञ ,वेद प्रचार, पशु -पक्षियों पर्यावरण की रक्षा , निर्धन दुखिया , रोगी की सहायता, वेद प्रचार आदि अच्छे काम करता है, तो वह इस जीवन में भी सुखी रहता है( भले ही दुष्ट लोग उसे परेशान करें पर भीतर से ईश्वर उसे आनन्द देता है) और उसका अगला जन्म भी अच्छा सुखदायक होता है अर्थात उसे उत्तम मनुष्य का जन्म मिलता है।"

       "और यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलना, छल कपट, चोरी, ठगी, मांसाहार, अन्याय, पक्षपात, निर्दोष जीवों की हत्या इत्यादि बुरे काम करता है, तो ईश्वर उसे मरने के बाद पशु पक्षी , कीड़े,विकलांग,गरीब, मूर्ख, समलैंगिक, किन्नर योनियों में जन्म देता है, जहां पर वह दंड स्वरूप अनेक प्रकार के दुखों को भोगता है, ये दंड पाप की मात्रा के अनुसार सैकड़ों हजारों जन्मों तक भी चलता रह सकता है। और वह इस जन्म में भी अंदर से दुःखी रहता है भले ही कितना धनिक हो ।इस प्रकार से वैदिक शास्त्रों के अनुसार अनेक जन्मों की व्यवस्था कर्मफल के आधार पर चलती रहती है।
          "तो इस जन्म और अगले जन्म में थोड़ा ही अंतर है, "एक सांस का।" यदि आपकी सांस चल रही है, तो आप "यहां" हैं, अर्थात इस जन्म में हैं।और यदि सांस बंद हो गई, तो आप "वहां" हैं, अर्थात अगले जन्म में। अतः इस जन्म में अच्छे काम करें, और बुराइयों से बचें, ताकि आपको अगला जन्म भी अच्छा ही मिले।"
--- सौजन्य से : आर्य विद्वान गण

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29 Nov, 13:33


दुखों से मुक्ति पूरी तरह चाहते हो
और 31 नील 10 खरब, 40 अरब वर्षो तक 100% महासुख चाहते हो
तो मोक्ष के लिए परिश्रम करो , यही मनुष्य जन्म का मुख्य लक्ष्य है।

मोक्ष के लिए 3 काम करना होगा
1) अष्टांग योग का पालन करके ईश्वर साक्षात्कार करना
2) निष्काम पुण्य करना
3) शुद्ध ज्ञान, अर्थात - वेद और आर्ष ग्रंथों का विद्वान बनना होगा ।

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29 Nov, 04:32


प्र. २१०. ईश्वर का मुख्य व निज नाम क्या है ?

उत्तर : 'ओ३म्' यह परमात्मा का प्रधान निज नाम है। जैसे वेद में भी आया है "ओ३म् क्रतो स्मर" ।

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26 Nov, 14:57


प्र. २०९. ईश्वर और आत्मा में क्या भेद है ?

उत्तर : ईश्वर सर्वज्ञ है, आत्मा अल्पज्ञ हैं। ईश्वर के पास अपना उत्कृष्ट सुख है आत्मा के पास सुख नहीं है वह सुख लेने के लिए ईश्वर के पास या संसार के पदार्थों में जाता है।

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22 Nov, 15:41


प्र. २०८. ईश्वर और आत्मा में क्या समानता है ?

उत्तर : ईश्वर और आत्मा में यह समानता है कि दोनों ही चेतन, पवित्र, अविनाशी, अनादि, निराकार हैं।

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21 Nov, 14:08


प्र. २०७. ईश्वर की आज्ञा क्या है, यह कैसे पता चलता है ?

उत्तर : वेदों के पढ़ने से और ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभावों को जानने से उसकी आज्ञाओं का पता लगा सकते हैं ।

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19 Nov, 14:21


प्र. २०६. ईश्वर जीवों से क्या चाहता है ?

उत्तर : ईश्वर चाहता है कि जीव उसकी आज्ञा का पालन करके संसार में सुखी रहें व मुक्तिपद को प्राप्त करें ।

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17 Nov, 12:32


प्र. २०५. ईश्वर से हमारे क्या क्या सम्बन्ध हैं ?

उत्तर : ईश्वर हमारा माता, पिता, गुरु, राजा, स्वामी, उपास्य आदि है। और हम उसके पुत्र, शिष्य, प्रजा, सेवक, उपासक आदि हैं।

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16 Nov, 14:17


प्र. २०४. संसार को ईश्वर बनाता है या जीव बनाते हैं या अपने आप बन जाता है।

उत्तर : ईश्वर बनाता है। जीवों के पास इतना ज्ञान व सामर्थ्य नहीं है कि वे संसार को बना सकें। प्रकृति ज्ञानरहित तथा स्वयं क्रिया रहित होने से स्वयं संसार के रूप में नहीं आ सकती ।

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16 Nov, 14:10


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15 Nov, 11:29


प्र. २०३. ईश्वर का कोई रूप, रंग, भार, आकार, आदि है या नहीं ?

उत्तर : ईश्वर में ये गुण नहीं होते। इसी कारण ईश्वर को निर्गुण भी कहते हैं ।

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13 Nov, 12:33


प्र. २०२. ईश्वर किसे कहते है ?

उत्तर : एक ऐसी वस्तु जो सब जगह विद्यमान है, चेतन है, निराकार है, अनन्तज्ञान, अनन्तबल, अनन्त आनन्द, न्याय, दया आदि गुण से युक्त है उसका नाम ईश्वर है ।

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13 Nov, 11:49


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13 Nov, 11:47


🙏

*कामनाओं को पूरा करने से वे बढ़ती जाती है जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि बढ़ती है:-*

*न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।*
*हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्द्धते।।*

*अर्थ:- यह निश्चय है कि जैसे अग्नि में इन्धन और घी डालने से बढ़ता जाता है वैसे ही कामों के उपभोग से काम शान्त कभी नहीं होता किन्तु बढ़ता ही जाता है। इसलिये मनुष्य को विषयासक्त कभी न होना चाहिए।*

*-(सत्यार्थप्रकाश दशमसमुल्लास)*

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13 Nov, 11:34


दाता कहीं न आप सा

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11 Nov, 15:04


प्र. २०१. सबसे श्रेष्ठ व उत्तम कर्म कौन सा है और उसका फल क्या है ?

उत्तर : बिना किसी लौकिक फल सुख की कामना के दूसरों का उपकार अर्थात् निष्काम कर्म सबसे श्रेष्ठ व उत्तम कर्म है। और उसका फल है जीते जी विशुद्ध ईश्वरीय सुख को भोगना तथा मृत्यु के बाद ३६ हजार बार सृष्टि के बनने और बिगड़ने तक पुनः जन्म न लेना, केवल आनन्द ही आनन्द भोगते रहना, दुःख का लेशमात्र भी स्पर्श न होना । इस मोक्ष फल में शुद्ध ज्ञान व शुद्ध उपासना भी कारण है ।

@vaidic_gyan

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09 Nov, 02:39


प्र. २००. व्यक्ति को किसी भी श्रेष्ठ कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?

उत्तर : किसी भी श्रेष्ठ कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए छः चीजों की आवश्यकता है, व्यक्ति को उनका संग्रह और उपयोग करना चाहिए। वे छः चीजें इस प्रकार हैं-
(१) संस्कार,
(२) तीव्र इच्छा,
(३) पर्याप्त साधनों की उपलब्धि,
(४) साधनों को प्रयोग करने की सही विधि,
(५) परम पुरुषार्थ,
(६) घोर तपस्या ।

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07 Nov, 12:30


प्र. १९९. क्या मांस या अण्डा खाने वाले को पाप लगेगा ?

उत्तर : हाँ, मांस हो या अण्डा हो, दोनों के खानेवाले को पाप लगेगा। क्योकि इससे प्राणियों की हिंसा होती है। शास्त्र में भी इसका निषेध किया है ।

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05 Nov, 15:07


प्र. १९८. मनुष्य सुखी कैसे होता है ?

उत्तर : विद्या, बुद्धि व ज्ञान प्राप्त करने , अच्छे कर्म करने और ईश्वर की उपासना करने से मनुष्य सुखी होता है ।

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03 Nov, 06:53


🙏🏻🚩❤️

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02 Nov, 04:53


प्र. १९७. सुख किसे कहते हैं ?

उत्तर : स्वतंत्रता, निर्भयता, प्रसन्नता आदि जिसको प्राप्त करने के पश्चात् व्यक्ति छोड़ना नहीं चाहता, उसे सुख कहते हैं ।

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01 Nov, 12:31


प्र. १९६. दुःख किसे कहते हैं ?

उत्तर : बाधा, पीड़ा, कष्ट, पराधीनता आदि जिससे व्यक्ति बचना चाहता है उसे दुःख कहते हैं ।

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30 Oct, 16:10


प्र. १९५. मनुष्य की आत्मा अगला जन्म पाने के लिए किसी माँ के पेट में स्वयं चली जाती है या कोई ले जाता है ?

उत्तर : अगला जन्म पाने के लिए मनुष्य की आत्मा किसी माँ के पेट (गर्भाशय) में स्वयं नहीं चली जाती है बल्कि उसको परमात्मा (ईश्वर) ही ले जाते हैं।

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29 Oct, 15:45


प्र. १९४. मनुष्य मरने के बाद पुनः मनुष्य ही बनता है या पशु- पक्षी आदि भी बनता है ?

उत्तर : मनुष्य मरने के बाद मनुष्य ही बनेगा, यह जरूरी नहीं है। कर्मों के आधार पर पशु-पक्षी आदि भी बन सकता है ।

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27 Oct, 14:33


प्र. १९३. मरने के बाद मनुष्य पुनः जन्म ग्रहण क्यों करता है ?

उत्तर : मनुष्य जितना व जितने प्रकार का कर्म करता है, उन सभी का फल इसी जन्म में भोग नहीं सकता हैं। कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनका फल भोगने के लिए पुनः जन्म ग्रहण करता है ।

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25 Oct, 15:05


प्र. १९२. क्या मनुष्य का अगला जन्म होता है ? / क्या मनुष्य का मरने के बाद पुनः जन्म होता है ?

उत्तर : हाँ । मनुष्य मरने के बाद पुनः जन्म ग्रहण करता है ।

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24 Oct, 14:33


यन्त्री राट् यन्त्री०।।(यजु० १४-२२)

भावार्थः-जो स्त्री पृथिवी के समान क्षमायुक्त आकाश के समान निश्चल और यन्त्रकला के तुल्य जितेन्द्रिय होती है वह कुल का प्रकाश करने वाली है ॥ २२ ॥

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22 Oct, 02:57


प्र. १९१. क्या आयु जन्म से निश्चित है या घटायी-बढ़ायी जा सकती है ?

उत्तर : मनुष्य अपने कर्मों से, अपनी आयु को जो कि उसको पिछले जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप मिलती है, घटा भी सकता है और बढ़ा भी सकता है। वेदानुकूल आचरण करेगा तो बढ़ जायेगी, विपरीत करेगा तो घट जायेगी ।

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16 Oct, 15:15


प्र. १९०. क्या भ्रान्ति, विवशता, मजबूरी या अल्पज्ञान से किये जाने वाले कर्मों का भी फल मिलता है ?

उत्तर : जी हाँ । भ्रान्ति, विवशता, मजबूरी या अल्पज्ञान से किये गये कर्मों का भी फल ईश्वर द्वारा मिलता है। चाहे वे अच्छे हों या बुरे । क्योंकि उन कर्मों से अन्यों को सुख-दुःख तो प्राप्त होता ही है।

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14 Oct, 15:56


प्र. १८९. क्या बिना ज्ञान के भी कर्म होते हैं ?

उत्तर : सामान्य सिद्धान्त तो यही है कि बिना ज्ञान के कर्म नहीं होते क्योंकि जो कुछ भी कर्म मनुष्य करता है वह इच्छापूर्वक करता है। और वह इच्छा सुख प्राप्त करने तथा दुःख से छूटने रूप होती है। इसलिए अधिकांश कर्म ज्ञान पूर्वक ही होते हैं ।

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13 Oct, 03:30


प्र. १८८. आजकल प्रतिदिन हजारों की संख्या में शिशुओं को उत्पन्न होने से पहले गर्भ में ही मार दिया जाता है । तो क्या यह गर्भ में आने वाले जीव के कर्मों का फल है या माता-पिता का ?

उत्तर : गर्भ का धारण माता-पिता की इच्छा से होता है और गर्भपात भी उन्हीं की स्वतन्त्र इच्छा से होता है अतः गर्भपात के कारण होने वाले भयंकर पाप के अपराधी गर्भपात कराने वाले, करने वाले तथा सहमति देने वाले सभी हैं। गर्भधारण करने वाले शिशु का इसमें कोई भी कर्मफल नहीं है। न ईश्वर की ओर से कोई प्रेरणा या विधान है कि गर्भपात कराया जाये। अपितु गर्भपात का निषेध है ।

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13 Oct, 03:27


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12 Oct, 02:31


दुनिया बनाने वाले महिमा

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08 Oct, 12:39


प्र. १८७. किसी के अच्छे या बुरे कर्म का फल तत्काल प्राप्त होता न देखकर क्या यह विचारना उचित है कि उन कर्मों का फल आगे भी नहीं मिलेगा ?

उत्तर : ऐसा विचारना बिलकुल अनुचित है क्योंकि कर्म-फल से कोई भी बच नहीं सकता। कर्म फल देनेवाला ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वज्ञ तथा न्यायकारी है। अतः योग्य समय आने पर कर्म-फल मिलता ही है।

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06 Oct, 12:25


प्र. १८६. पन्द्रह वर्ष की आयु पर्यन्त के सन्तान जो माता-पिता शिक्षक आदि बड़ों की उचित बात की अवज्ञा करे, उनके कथन के विरुद्ध आचरण करे, उसे दण्ड मिलना चाहिए या नहीं ?

उत्तर : दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। यह वैदिक व्यवस्था है कि सन्तान के सुधार के लिए बिना द्वेष के आवश्यकतानुसार वाणी से तथा सावधानी पूर्वक शारीरिक ताड़ना भी करनी चाहिए ।

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03 Oct, 12:45


प्र. १८५. जिस माता-पिता की एक ही सन्तान है आगे-पीछे कोई नहीं है और वह सन्तान वैराग्य के कारण गृहत्याग कर देती है तो क्या उसका अपराध माना जायेगा ?

उत्तर : नहीं । यदि वैराग्य के कारण उसने घर छोड़ा है और अपने जीवन को सच्चे ईश्वर की उपासना से महान, उन्नत, श्रेष्ठ बना रहा है तथा समाज-राष्ट्र का कल्याण कर रहा है तो उसका अपराध नहीं है। अपितु वह ईश्वर आज्ञा का पालन कर रहा है।

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