राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*’(सत्संग 27.07 मिनिट का)’*
प्रवचन 8 जुलाई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।
*’विषय - भगवान् के होकर निश्चिंत हो जाओ’ ।*
प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।
’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*
परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि कल जो बात आई सामने कि हम तो भगवान् के शरण हो गए । अब क्या करें ? अब चिंता कुछ नहीं रहे । ऐसा हो जाए, ऐसा होना चाहिए, यह छोड़ दो । जप, कीर्तन, ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय करते रहो और भगवान् की मर्जी है, वह होने दो । *जैसी उनकी मर्जी होने दो । सुख आवे, दु:ख आवे तो राजी । अनुकूलता आवे, प्रतिकूलता आवे तो राजी । अपने तो भगवान् की आज्ञा में चलना है, क्योंकि भगवान् ने कहा है - तू मेरी शरण हो जा ।* मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा । हम तो तेरे हो गए बस । चिंता मत करो । ये मेरी मनचाही हुई, ये मेरी मनचाही नहीं हुई । तो मेरी मनचाही नहीं हुई तो भगवान् की मर्जी की हो गई । तो ज्यादा खुश हो जाओ । भगवान् की मर्जी की हो गई । अपने तो नि:शंक हो जाओ । निश्चिंत हो जाओ । नि:शंक, निर्भय हो जाओ । चार बात हैं । सुख आवे, दुःख आवे मौज की बात । हम तो भगवान् के हैं ।
*’मेरी चाहे मत करो, मैं मूर्ख अज्ञान ।’*
’ *तेरी मर्जी में ही है प्रभु मेरा कल्याण ।’*
न शरीर रहेगा, न संसार रहेगा । आपकी (भगवान् की) मर्जी हो, वैसा करो । निश्चिन्त, नि:शंक, निर्भय, नि:शोक हो जाओ । हम तो तेरे हैं । हम क्या करें ? अपने चिंता छोड़ दो । ये होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं, आपकी मर्जी हो वैसा करो । मैंने तो अपने आप को दे दिया बस । न सुख से मतलब है, न दुःख से मतलब है । मस्त हो जाओ सब भाई बहन । हम तो शरण हैं आपकी । सुख दो तो आपकी मर्जी, दुःख दो तो आपकी मर्जी । शोक मत करो, चिंता मत करो, आनंद हो गया । अपने ऊपर भार ही नहीं रहा । हम तो आपके हो गए ।
कपड़ा है, मालिक की मर्जी सिर पर रखे, पैर में रखे और स्वामी जी आनंदित हो रहे हैं । यह बढ़िया चीज है । भार सब भगवान् पर है । स्वर्ग में भेजो, नरकों में भेजो । मृत्युलोक में भेजो । शरणानंद जी से पूछा कहां जाओगे ? तो बोले हमें क्या पता, कहां जाएंगे ? फुटबाल के ठोकर मारे तो कहां जाएगी पता नहीं । हम फुटबाल हैं । प्रियतम जाने कहां भेजेंगे ? भगवान् पर भार रहे कि आपकी मर्जी आवे वैसा करो । सेठ जी ने कहा था कि चद्दर है, उसे सिर पर रखो तो आपकी मर्जी । पैर पर रखो तो आपकी मर्जी । हमारे किंचिन्मात्र आग्रह नहीं । संसार साथ में रहेगा नहीं, पक्की बात है और आप (भगवान्) साथ छोड़ेंगे नहीं । हमें क्या मतलब शरीर से ? मौज में रहो, आनंद में रहे । मुक्ति और प्रेम सब आप जाने । क्यों आफत में पड़ें हम । आपकी मर्जी, ये है शरणागति । भगवान् के शरण हो गए । शरण हो गए और भार ऊपर मेरे ? क्या मतलब है ? आपकी मर्जी से मतलब है । तुम जो करो उसी में राजी हैं । ठोकर दो, आपकी मर्जी, सिर पर रखो, आपकी मर्जी । पुरस्कार दो आपकी मर्जी । आपकी आज्ञा अनुसार काम करेंगे । भूल जाएं तो आप बताओ । चाह गई चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । वो चाह छूटनी चाहिए - अनुकूलता की, प्रतिकूलता की । हमें क्या चाहिए ? हमें कुछ नहीं चाहिए ? हमें तो आप चाहिए । ’एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर ले बस आप हमारे हो, हम आपके हैं बस’ । कुछ भी करो । ’जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ।’ भगवान् का जो विधान हो, उसमें ही राजी । कैसी मौज की बात है ? ’ *भगवान् कहते हैं सब पापों से मुक्त मैं करूंगा* ।’ हमें पापों से क्या मतलब ? मुक्त करो, नहीं करो, आपकी मर्जी । भजन करो, कीर्तन करो, जप करो, पाठ करो । परिस्थिति कैसी ही आ जाय ? तुम्हारी परिस्थिति में ही राजी हैं हम तो, यह बात है । कैसी ही परिस्थिति आवे, हमें क्या मतलब ? हमें मतलब आप से है । देखो एक बात है । हम पढ़ते थे न । गुरुजी कहते थे ज्यादा प्रेम होता है न, उसे ज्यादा कहता हूं । उठो पढ़ो । महाराज कहते थे सो जाओ भले ही, बात मत करो । बात करने में परिश्रम होता है, सोने में ताजगी आती है । आप राजी रहो, खुश रहो, उसमें राजी हैं । कन्या का विवाह हो गया घर - वर मिल गया, अब चिंता नहीं है और कन्या घर पर ही बैठी है, पर चिंता मिट गई । ऐसे शरण हो गए, चिंता मिट गई । मौज हो गई ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!
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