राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
प्रवचन दिनांक 24 मई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।
’ *विषय - हम भगवान् के अंश हैं ।’*
प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।
’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है,’ ’श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*
परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि *ममैवांशो जीव लोके ।* जीव मेरा ही अंश है । जीव मात्र स्थावर हो, जंगम हो, स्त्री हो, पुरुष हो, हिंदू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, मेरा ही अंश है । अगर आप विचार करें आप भगवान् के अंश हैं और भगवान् हमारे अंशी हैं । जैसे यह शरीर है, यह माता का अंश है । परंतु इसमें पिता का भी अंश है । पर भगवान् कहते हैं जीव मेरा ही अंश है । ’ *ममैवांशो* ’ । तो हमारे भाई बहनों से कहना है आप इस बात को स्वीकार कर लें सरलता पूर्वक और दृढ़ता पूर्वक । बहनों माताओं को कहना है- मैं भगवान की लाडली पुत्री हूं, पुरुषों से कहना है - मैं भगवान् का लाडला पुत्र हूं ।
’ *ईश्वर अंस जीव अबिनाशी ।’*
’ *चेतन अमल सहज सुख राशि।।’*
हम चेतन है, अमल हैं । न रुपया अपने साथ चलेगा, न भोग अपने साथ चलेगा । रुपयों को, मकान को, कुटुंब को अपना माना है यह मल है । अपन अमल है । मल रहित हैं । सहज सुख राशि हैं । कोरा सुख ही सुख है । मैं भगवान् का हूं, भगवान् मेरे हैं । करना कुछ नहीं । आप सज्जन हो, दुराचारी हो, कैसे ही हो, भगवान् के हो, भगवान मेरे हैं और कोई मेरा नहीं है । संसार की चीज वस्तु हमारी नहीं है । हमारे लिए भी नहीं है । संसार के लिए है । मैं भगवान् का हूं ।
*ईश्वर अंस, जीव अबिनाशी,* *चेतन, अमल, सहज सुख राशि ।*
ये पांच बातें हैं, यह स्वीकार कर लो अभी-अभी सरलता से । सहज बात है । दो खास बंधन है, एक संग्रह करना और भोग भोगना । गीता में दूसरे अध्याय के 44 वां श्लोक । दो बातें ध्यान देने की है - आए थे तब क्या लाए थे ? जाएंगे तब क्या ले जाएंगे ? जाएंगे तब शरीर भी यही रहेगा । संसार, धन-संपत्ति, कोई साथ जाएगी ? कोई साथ नहीं जाएगी । ’ *अंतहुं तोहि तजैंगे’ ’पामर तू न तजै अब ही’ ’ते’ ।* शरीर की मिट्टी बन जाएगी । याद रखो साथ कुछ लाए नहीं, साथ कुछ ले जा सकते नहीं । यहां जो मिला है, वह सेवा के लिए मिला है । अन्न, जल, वस्त्र, मकान, यह जितना अपने काम में आए उतनी अपनी, बाकी अपनी नहीं है । जिस धन के लिए पाप किया, वह साथ जाएगा । भोग भोगकर देख लिया, यह एक धोखे की टट्टी है । छोड़ दिया तो निहाल हो जाओगे । दु:ख से छुटकारा नहीं होगा । जैसे 84 लाख योनियों में एक मनुष्य शरीर है, ऐसे मनुष्य शरीर में एक सत्संग है । अगर उनकी बात मान लें, तो निहाल हो जाएं । नहीं तो जन्मों, मरो । खेती सूखने के बाद वर्षा का क्या महत्व ? मनुष्य जीवन में कल्याण की स्वतंत्रता दी है, योग्यता दी है, बल दिया है, अधिकार दिया है । मनुष्य मात्र अधिकारी हैं । ये चार बातें हैं - स्वतंत्रता, अधिकार, योग्यता और सामर्थ्य । यह भगवान् ने दिया है । पापी से पापी भगवान् में लग सकता है । सब पाप नष्ट हो जाएंगे और परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी। अभी मौका है परमात्मा की प्राप्ति में सब स्वतंत्र हैं, योग्य हैं, बलवान हैं, दु:खों का कोई अंत नहीं है । अभी मौका है । बड़े-बड़े धनियों ने छोड़ दिया सब और भगवान् में लग गए । मीरा जी ने पुत्र जाया नहीं और चेला एक बनाया नहीं, पर मुक्त हो गई । एक साधक ने संतों से पूछा कि कोई योग्य चेला मिल जाए तो मकान उसको सौंपकर भजन करूं । तो संतो ने कहा कि जब आप ही छोड़ रहे हो तो अच्छा नहीं समझे तभी तो छोड़ा तो इसके लिए पात्र क्या देख रहे हो ? कपूत को देखो, जिससे वह इससे अपना माथा फौड़े ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!
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