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श्री गीताप्रेस सत्संग

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श्री गीताप्रेस सत्संग (Hindi)

श्री गीताप्रेस सत्संग चैनल एक धार्मिक समूह है जो गीता सार, उपदेश और सत्य के संदेश को बांटने का कार्य करता है। इस चैनल में आपको ध्यान में लगाने वाले विचार, पूजा-अर्चना की विधियाँ और ध्यान करने के तरीके सीखने का मौका मिलेगा। इस चैनल का मकसद उन लोगों तक सत्य और धर्म के संदेश पहुंचाना है जो ध्यान और मार्गदर्शन की तलाश में हैं। श्री गीताप्रेस सत्संग चैनल का अधिकारिक यूजरनेम 'geetapresspariwar' है और इसमें विभिन्न धार्मिक धारणाएं और सिद्धांतों पर चर्चा की जाती है। यहां आपको धर्म से जुड़ी जानकारी, संत संग, और साधना के महत्वपूर्ण तत्वों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेगी। इस चैनल को सभी धर्मग्रंथ पढ़ने और ध्यान में लगाने के शौकीन लोगों के लिए बनाया गया है। ज्योतिष, ध्यान और आध्यात्मिक ज्ञान में रुचि रखने वाले लोग इस चैनल को फॉलो करके नए धार्मिक अनुभवों का आनंद ले सकते हैं। अगर आप भी धार्मिक ज्ञान और सत्य की खोज में हैं, तो श्री गीताप्रेस सत्संग चैनल आपके लिए सही स्थान है।

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 17:00


*एक बातपर ध्यान दें*

अपने-आप जो चिन्तन होता है, वह मनमें होता है, आपमें नहीं होता। आप अलग हैं, मन अलग है। जैसे आपके मनमें चिन्तन होता है, ऐसे ही कुत्तेके मनमें भी चिन्तन होता है, तो आप क्या करोगे। जैसा कुत्तेका अथवा गधेका मन है, वैसा ही यह मन है। दोनों एक ही जातिके हैं। आप उससे मिल जाते हैं, यह गलती होती है। आप मिलो मत। विचार करो कि गलती कहाँ है? चिन्तन होना गलती नहीं है, गलती यह है कि आप चिन्तनमें मिल जाते हो। आप उससे अलग हो जाओ। आप मनमें होनेवाले चिन्तनसे मिलो मत, भगवान्‌के चरणोंमें रहो तो वह मिट जायगा

*एक बातपर ध्यान दें। परमात्मा सत्र जगह हैं तो जो चिन्तन होता है, उसमें क्या परमात्मा नहीं है? इसलिये या तो चिन्तनकी उपेक्षा कर दो, या उसमें भगवान्‌को देखो। दोनोंका परिणाम एक ही होगा। सेठजीने 'तत्त्वचिन्तामणि' के चौथे भागमें लिखा है कि भगवान्‌के लिये एकान्तमें बैठ जाओ। फिर यह संकल्प कर लो कि मेरे मनमें जो आयेगा, भगवान् ही आयेंगे और मेरा मन कहीं जायगा तो भगवान्म हो जायगा; क्योंकि भगवान्‌के लिये ही मैं बैठा हूँ। इतनी सावधानी आपको रखनी है। फिर संसार मिट जायगा और भगवान् रह जायेंगे।*

*‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे* पुष्ट क्रमांक ४२

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 16:59


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 16:58


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *उनचालीसवाँ दिन*
*1-दिनांक-21-11-2024*
*2-वार-गुरुवार।*
*3-गीता पाठ दसवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 01 से 10 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 21-अक्टूबर - 1993 प्रात:5:00 बजे*

*5-काम वृत्ति कैसै मिटै?*



🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 11:35


श्रोता‒‘है’ को मान लिया, पर प्रत्यक्ष अनुभव हुए बिना यह मान्यता टिकती नहीं है !

स्वामीजी‒देखो भाई ! यह आँखसे नहीं दीखेगा । देखना दो तरहका होता है‒एक आँखसे होता है और एक भीतरमें माननेसे होता है । भीतरसे अनुभव हो जाय, बुद्धिसे बात जँच जाय‒इसको देखना कहते हैं । यह ‘है’ आँखसे कभी दीखेगा ही नहीं । यह तो माननेमें ही आता है । आपका नाम, जाति, गाँव, मोहल्ला, घर क्या अभी देखने में आ रहे हैं ? देखने में नहीं आ रहे हैं तो क्या ये नहीं हैं ? जो देखने में नहीं आता, वह होता ही नहीं‒ऐसी बात नहीं है । जो देखनेमें नहीं आता, वही होता है । परमात्मा देखनेमें न आनेपर भी हैं । नाम, जाति आदिके होनेमें कोई शास्त्र आदिका प्रमाण नहीं है, प्रत्युत यह केवल आपकी कल्पना है । परन्तु परमात्माके होनेमें शास्त्र, वेद, सन्त-महात्मा प्रमाण हैं और उसको माननेका फल भी विलक्षण (कल्याण) है । इसलिये परमात्माको दृढ़तासे मानो ।

गलती तो पैदा होनेवाली और मिटनेवाली है, पर परमात्मा पैदा होनेवाला और मिटनेवाला नहीं है । पैदा होनेवाली वस्तुसे पैदा न होनेवाली वस्तुका निषेध क्यों करते हो ? हमारेसे झूठ-कपट हो गया तो यह परमात्माका होनापन थोड़े ही मिट गया ! परमात्मा के होने में क्या बाधा लगी ? यह मानो कि पाप हो गया तो वह भूल हुई, पर परमात्मा है‒यह भूल नहीं है । परमात्माको जितनी दृढ़तासे मानोगे, उतनी भूलें होनी मिट जायँगी । जिस समय भूल होती है उस समय आप ‘परमात्मा है’‒इसको याद नहीं रखते । इसकी याद न रहनेसे ही भूल होती है । जो ‘है’ उससे विमुख हो जाते हैं, उसको भूल जाते हैं, तब यह भूल होती है । इसलिये अपनेको उससे विमुख होना ही नहीं है । कभी अचानक कोई भूल हो भी जाय तो उस भूलको महत्त्व मत दो । जो सच्ची चीज है, उसको महत्त्व दो । भूल तो मिट जाती है, पर परमात्मा रहता है, मिटता है ही नहीं । जो हरदम रहता है, उसको मानो । अब बोलो, क्या बाधा लगी ?

सत्‌-असत्‌का विवेक

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:45


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 11 अक्टूबर 1993 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - कृपा को देखो ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश’ ’आता है । इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि साधन, सत्संग करने वाला मनुष्य अपने जीवन को देखें कि समझ आने के बाद इतना जीवन बीता है उसमें जब-जब अभिमान किया है, संसार का सहारा लिया है, तब तब असफलता मिली है, दुःख आया है । और जब जब भगवान् की कृपा की तरफ दृष्टि गई है और अभिमान नहीं किया है, अपना आग्रह नहीं किया है, सत्संग भजन किया है, तो भगवान् की कृपा समझ में आती है । कहां था किस परिस्थिति में था । इसमें कैसे भगवान् ने ऊंचा उठाया ? जानते नहीं थे, वहां से निकाला । किन किन परिस्थितियों से निकाला । अंधेरे में प्रकाश दिया । सत्संग में ज्ञान कराया । किस तरह से भगवान् की कृपा रही है । गुप्त रीति से । भगवान् देते हैं और जनाते नहीं हैं । भगवान् ने अच्छे रास्ते में लगाया है । उनके सम्मुख हो गए । भजन करने लग गए । दुर्भावों को मिटाया है । संग मिला है । सहारा मिला है । इस बात को अगर देखें तो भगवान् की कृपा पर विश्वास हो जाए । सत्संग में कितनी बातें मिली । होश आया । नहीं तो बेहोश पड़ा था । उस कृपा का भरोसा, उसका ही विश्वास । ऐसे चले । भगवान् की कृपा को अच्छी तरह से देखता रहे । हृदय, वाणी और शरीर से नमस्कार करता रहे । क्या था और क्या कर दिया ? कहां मैं था और कहां पहुंचा दिया ? इस तरह से सजगता आती है । कितनी कृपा भगवान् की है । देते हैं भगवान्, पर आदमी अपनी ही मानता है । भगवान् कितना चेताते हैं - घटना के द्वारा चेताते हैं । सत्संग के द्वारा चेताते हैं । दरवाजा खुलता है और नींद खुल जाती है । हल्ला होता है और नींद खुल जाती है । कितनी कृपा करते हैं । अनंत जीव हैं, कृपा सब पर करते हैं । हम सत्संग करना चाहते हैं, छोड़ना नहीं चाहते, पर छुड़ा देते हैं । उससे अगाड़ी अच्छा सत्संग दिला देते हैं ।

’ *हेतु रहित जग जुग उपकारी ।’*
’ *तुम तुम्हारे सेवक असुरारी’ ।।*
ऐसे भगवान् कृपा करते हैं । कृपा देखें तो देख देख कर मस्त हो जाए । बच्चा मां के उपकार को क्या समझे ? मां तो कर ही रही है । बच्चे की समझने की शक्ति नहीं है । ऐसे भगवान् कर रहे हैं । समझ ही नहीं सकते । एक संत गाते हैं - प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो । भगवान् अवगुण चित्त धरते ही नहीं हैं । भगवान् कृपा ही कृपा करते रहते हैं । लोग भगवान् को कहते हैं - मेरे को दु:ख देते हैं, क्या कर रहे हैं ? भगवान् इन बातों को देखते हैं, इन बातों को सुनते हैं, फिर भी कृपा को रोकते नहीं हैं । कृपा करते ही रहते हैं । भगवान् के सम्मुख हो जाता है, तो भगवान् की विशेष जिम्मेदारी आ जाती है । एक साधु मिले वह कहते थे कि मेरे कहने में संकोच होता है - पता नहीं भगवान् क्या कर बैठें । कहने से डर लगता है कि कृपा करो । पता नहीं सही (सहन होगी) भी जाएगी कि नहीं सही (सहन नहीं होगी) जाएगी । आदमी बेहोश रहता है - विद्या में, बुद्धि में, योग्यता में । अरे ! तू है क्या ? फिर भी कृपा करते हैं भगवान् । भगवान् चेताते हैं । एक बार मैं बीकानेर गाड़ी से उतरा । लोग सीधे ही सत्संगमें ले गए । मन में आया कि सत्संग मिलता है । सुनते हैं, सुनाते हैं, पर लायक नहीं हैं । हमारे में ऐसे लक्षण नहीं हैं । फिर भी भगवान् कृपा करते हैं । क्या ही कृपालु भगवान् हैं । कृपा करते ही रहते हैं । कहते हैं - भगवान् कृपा नहीं करते, दुःख देते हैं । भगवान् सब सुन लेते हैं । फिर भी कृपा करते हैं । बड़ा ही विचित्र स्वभाव है भगवान् का । भगवान् के समान कौन उदार हो सकता है । नारद जी के मन में आई । नारद जी घबरा गए । नारद जी के मन में आया - ऐसा क्यों किया भगवान् ने । भगवान् से पूछा आपने मेरा विवाह क्यों नहीं करने दिया ? भगवान् बोले देख मैंने विवाह किया रोता फिरता हूं । ऐसे मैं तेरे को नहीं देखना चाहता था । ऐसे भगवान् कृपा करते हैं । नारद जी को गुस्सा आया, शाप दिया - मेरी तरह स्त्री के वियोग में रोना पड़ेगा । नारद जी ने देखा भगवान् ने मेरा शाप स्वीकार किया है ।
एक भाई ने कहा - मेरे पास बहुत धन था, एक वक्त ऐसा आया सुबह रोटी बनी शाम को बनेगी कि नहीं बनेगी पता नहीं । एक ही उम्र में कितना फर्क । (भगवान् चेताते हैं) अभिमान मत कर, घमंड मत कर । कैसे कैसे उपदेश देते हैं । किन किनसे उपदेश दिला देते हैं । एक पंडित जी थे । साइकिल पर कहीं जा रहे थे । रोड के बीच में साइकिल से जा रहे थे । पीछे से गाड़ी आई - तो ड्राइवर ने कहा कि बीच में चल रहा है, क्या तो

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:45


इधर हो जा, या उधर हो जा । तो उपदेश मिल गया, उनको (पंडित जी को) होश आ गया - भगवान् में लगो। तो भगवान् के सम्मुख हो जाए तो भगवान् के गुण आ जाएं । देवी संपत्ति आ जाए । और मनुष्य मान लेता है अपना गुण । विचित्र कृपा है भगवान् की । कृपा करना छोड़ते ही नहीं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:45


🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
*🌹राधा राधा राधा राधा राधा🌹*

*🌹श्रीभाईजी-एक अलौकिक विभूति🌹*

*🌹भाग-१४१🌹*

*🌹स्वर्गाश्रम (गीताभवन) में सत्संग🌹*

*🌹उत्तराखण्ड हमारे देश का शताब्दियों से साधना-स्थल रहा है। इसी उत्तराखण्ड की पवित्र भूमि ऋषिकेश में श्रीसेठजी ने एक सत्संग-सत्र खोल दिया था।* *यह क्रम सं० १९७८-७९ (सन् १९२१-२२) के लगभग प्रारम्भ होकर अभीतक निर्बाध चल रहा है।* *प्रतिवर्ष श्रीसेठजी चैत्र से आषाढ़ तक अधिकांश समय वहीं रहते एवं सत्संगियों का एक बड़ी ही श्रद्धा के साथ एकत्रित होकर सुरसरि की कलकल करती पावन धारा से गुंजित पुलिन पर भगवद्रस का आस्वादन करता।* *कुछ समय बाद यही आयोजन गंगा के तटपर, जिसे स्वर्गाश्रम कहते हैं, आयोजित होने लगा। उस समय वहां समन जंगल था, रहने के लिये मात्र कुछ कुटियाएँ थी।* *गंगातट पर विशाल वटवृक्ष की छाया में भगवद्रस का प्रवाह बहता रहता।* *श्रीभाईजी सर्वप्रथम इस आयोजन का लाभ लेने के लिये बम्बई से चैत्रशुक्ल पक्ष सं० १९८१ (सन् १९२४) में गये। इससे पूर्व वहाँ के सत्संगी श्रीसेठजी द्वारा इनकी साधना के बारे में बहुत कुछ बातें जान गये थे।* *भाईजीने वहाँ श्रीसेठजी के मार्मिक प्रवचनों का लाभ उठाया ही,साथ ही सत्संगी भाइयों के आग्रह पर अपनी साधना में कैसे उन्नत्ति हुई, इसपर भी प्रकाश डाला। यद्यपि भाईजी उस समय केवल तीन दिन ही रह सके, पर इनके अन्तस्तल की अनुभूत बातें सुनकर सभी प्रभावित हुए।* *इसके पश्चात् भाईजी कल्याण के कार्यवश तो नहीं जा पाते थे पर प्रायः जाया करते थे। सं० १९८६ (सन् १९२९) का चैत्र मास में जब भाईजी गये तब स्वामी शिवानन्द जी से मिले थे, और उसी वर्ष श्रीनारायण स्वामी से मिलकर उनके साधनमय जीवन के अनुभव की बातें लिखी थी। श्रीनारायण स्वामी एक अमीर घराने में पैदा हुए एक उच्च शिक्षित पुरुष थे।* *उस समय निरन्तर मौन रहकर'नारायण नाम का जप करते थे और अपने पास कुछ भी संग्रह नहीं करते थे। बाद में उनकी अनुभव की बातें गीताप्रेस से 'एक सन्त का अनुभव' नामक पुस्तक रूप में प्रकाशित हुई। उस वर्ष भाईजी गंगातट पर रात्रि के समय उन्मत्त अवस्था में मधुर नृत्य करते हुए विलक्षण ढंगसे संकीर्तन कराते थे।🌹*

*🌹श्रीसेठजी का तो हर वर्ष ही भाईजी को बुलाने का मन रहता था, किन्तु भाईजी जा नहीं पाते थे। आगे चलकर यहीं गंगातट पर सत्संगी भाइयों के निवास हेतु 'गीताभवन' नामक एक विशाल भवनका निर्माण हुआ।* *एक सत्संग-हाल का भी निर्माण हुआ एवं स्नान की सुविधा के लिये विशाल घाट भी बने। भाईजी के प्रवचन बड़े ही हृदयस्पर्शी हुआ करते थे और अध्यात्म-मार्ग के पथिक इस सत्संग-सत्र की उत्सुकता पूर्वक प्रतिक्षा करते रहते। श्रीसेठजी के देहावसान के पश्चात् इस आयोजन का सम्पूर्ण दायित्व भाईजी पर ही आ गया।* *उसके बाद भाईजी हर वर्ष जाते एवं दो-तीन महीने स्वर्गाश्रम ही रहते थे। 'कल्याण' का सम्पादन कार्य भी वहीं से होता था।* *श्रीसेठजी के सामने सत्संग का क्रम लगभग बारह-तेरह घण्टे प्रतिदिन चलता था एवं उन दिनों श्रीसेठजी के आग्रह से भाईजी भी चार-पाँच घण्टे प्रतिदिन प्रवचन देते थे।* *श्रीसेठजी के पश्चात् भाईजी प्रायः एक-एक घण्टे दो समय सत्संग कराते थे। सच्चे साधक, जो एक बार इस रस का आस्वादन कर लेते वे प्रायः हर वर्ष ही आने का प्रयत्न करते। अन्य सन्त-महात्माओं को आमन्त्रित करके उनके प्रवचनों की भी व्यवस्था की जाती थी।* *प्रवचन के अतिरिक्त साधक भाईजी से एकान्त में भी अपनी-अपनी व्यक्तिगत समस्याओं का हल पूछने हेतु समय की माँग करते रहते थे। प्रवचन के समय भी सत्संगी भाई अपने-अपने प्रश्न लिखकर भाईजी को दे देते, जिनका भाईजी समयानुसार समाधान करते थे।* *रात्रि में भाईजी के निवास स्थान (डालमिया कोठी) पर पद गायन एवं संकीर्तन का कार्यक्रम रहता और पूर्णिमा, अमावस्या एवं एकादशी को गीता-भवन में संकीर्तन का आयोजन होता था।* *भाईजी सं० २०२६ (सन् १९६९) तक बराबर जाते रहे, केवल एक वर्ष स्वास्थ्य ठीक न रहने से नहीं जा सके।🌹*
*क्रमशः*

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:37


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:37


*राम राम*
सुख दुःख आंटा जिवण जेवङी रा
सुख दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरि:
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
बेटो कहायो बाप कहायो
बेटो कहायो बाप कहायो
ओर कहायो काको हरिः
हां बेटो कहायो बाप कहायो
ओर कहायो काको हरिः
बाप कहाले चाहे दादो कहायले
बाप कहायै चाहे दादो कहायले
हो बिगङे ऐक दिन खाखो रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः

हां तरुण भयो जब नारी पुरुष को
तरुण भयो जब नारी पुरुष को
बन्धन जोङूयो आखो हरिः
तरुण भयो जब नारी पुरुष को
बन्धन जोङ्यो आखो हरिः
घर ग्रहस्ती की गाडी लगायदी
घर गृहस्थी की गाडी लगायदी
सूरज छिपे बेगा हांको रे जिवङा
दिन दिन होय रयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
ओ आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रहयो पाको हरिः
सुख भोगे जब
सुख भोगे जब अकल सरावे
सुख भोगे जब अकल सरावे
म्हे ही धिकांवा धाको हरिः
सुख भोगे जब अकल सरावे
म्हे ही धिकावां धाको हरिः
दुःख पावे जब राम के उपर
दुःख पावे जब राम के उपर
हो झुठो लगावे लाको रे जिवङा
दिन दिन हो रह्यो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंठा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे
बेटो सुपात्र म्हांको हरिः
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे

बेटो सुपात्र म्हाकों हरिः
हाण हट्या मुंडे नही बोले
हाण हट्या मुडें नही बोले
हो दरङे माही नाखो रे जिवङा
दिन दिन हो रहयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख-दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
ओ आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
ऐक तार कर राखो हरिः
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
ऐक तार कर राखो हरिः
माधो कहे समता मे रहकर
माधो कहे समता मे रहकर
हो राम नाम मुख भाको रे जिवङा
दिन दिन होय रयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख-दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख-दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन होय रयो पाको हरिः
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:37


आज का भजन 🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 05:20


।।श्रीहरि:।।🌺

संसारकी इच्छा न छूटे तो भगवान् से प्रार्थना करो कि *'हे नाथ! संसारकी इच्छासे पिण्ड छुड़ाओ'!* उनकी कृपासे काम होगा।

भगवान् कृपा कैसे करते हैं - यह मैं नहीं जानता, *पर वे कृपा करते हैं - यह मैं जानता हूँ। हमारी योग्यताके बिना काम होता है-ऐसी कृपा भगवान् करते हैं!*

*सच्ची बातका दुःख भगवान् से सहा नहीं जाता।*

*परन्तु संसारके लिये रोओ तो भगवान् सह लेते हैं! मर जाओ तो भी परवाह नहीं करते !*

परमात्माकी इच्छा जोरदार हो और रो पड़ो तो *यह दुःख भगवान् सह नहीं सकते; क्योंकि यह सच्चा दुःख है।*

🌟 *मैं नहीं, मेरा नहीं* पृष्ठ ९३ गीता प्रकाशन *परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज* नारायण !नारायण! नारायण! नारायण!

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:55


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:54


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *तेतीसवाँ दिन*
*1-दिनांक-15-11-2024*
*2-वार-शुक्रवार।*
*3-गीता पाठ आठवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 1से 10तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 14 - जनवरी 1993 प्रात:5:00 बजे*

*5-विवेक की महत्ता,अहम का नाश।*



🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:06


॥ श्रीहरिः ॥

*सत्संग भगवान्की दयासे ही मिलता है। सत्संगसे जो लाभ है वह उनकी दयासे ही है।*

*सत्संग ईश्वरकी वह कृपा है जो परम लाभ पहुँचाती है, उसकी कोई सीमा नहीं। लाभ उठानेवालोंपर यह बात निर्भर करती है।*

*उसकी दयाको हमलोग जितनी समझते हैं वह थोड़ी है। भगवान्‌की दयाकी कोई सीमा नहीं है, अपरिमित है। हमलोगोंको उसकी जो दया समझमें आती है वह सीमित है।*

*किंतु अपने ऊपर उत्तरोत्तर अधिक-से-अधिक भगवान्‌की दया समझें तो शीघ्र ही भगवान्‌की प्राप्ति हो सकती है।*

*इसलिये हर एक लीलामें, हर बातमें, हर समयमें दया देखें और उसे देखते-देखते इतना मुग्ध हो जायँ कि भगवान् ही आकर चेत करावें।*

*जबतक भगवान्के साक्षात् दर्शन नहीं हों तबतक यह समझें कि हम लोगोंने भगवान्‌की पूरी दया समझी ही नहीं।*

–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठजी)
–‘अमूल्य समय का सदुपयोग’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:05


॥ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
*सत्यकी स्वीकृतिसे कल्याण*

एक मार्मिक बात है कि *असर शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिपर पड़ता है, आपपर नहीं।* जिस जातिकी वस्तु है, उसी जातिपर उसका असर पड़ता है, आपपर नहीं पड़ता, क्योंकि आपकी जाति अलग है। शरीर संसार जड़ हैं, आप चेतन हो। जड़का असर चेतनपर कैसे पड़ेगा ? जड़का असर तो जड़ (शरीर)-पर ही पड़ेगा। यह सच्ची बात है। इसको अभी मान लो तो अभी काम हो गया !

आँखोंके कारण देखनेका असर पड़ता है। कानोंके कारण सुननेका असर पड़ता है। तात्पर्य है कि असर सजातीय वस्तुपर पड़ता है। अतः कितना ही असर पड़े, उसको आप सच्चा मत मानो। आपके स्वरूपपर असर नहीं पड़ता। स्वरूप बिलकुल निर्लेप है -' *असङ्गो ह्ययं पुरुषः'* (बृहदा० ४।३। १५)। मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो पड़ता रहे। मन-बुद्धि हमारे नहीं हैं। ये उसी धातुके हैं, जिस धातुकी वस्तुका असर पड़ता है।

प्रश्न- फिर सुखी और दुःखी स्वयं क्यों होता है ?

उत्तर-*मन-बुद्धिको अपना माननेसे ही स्वयं सुखी-दुःखी होता है।* मन- बुद्धि अपने नहीं हैं, प्रत्युत प्रकृतिके अंश हैं। आप परमात्माके अंश हो। मन-बुद्धिपर असर पड़नेसे आप सुखी-दुःखी होते हो तो यह गलतीकी बात है। वास्तवमें आप सुखी-दुःखी नहीं होते, प्रत्युत ज्यों-के-त्यों रहते हो। विचार करें, अगर आपके ऊपर सुख-दुःखका असर पड़ जाय तो आप अपरिवर्तनशील और एकरस नहीं रहेंगे। आपपर असर पड़ता नहीं है, प्रत्युत आप अपनेपर असर मान लेते हैं। कारण कि आपने मन-बुद्धिको अपने मान रखा है, जो आपके कभी नहीं हैं, कभी नहीं हैं। मन- बुद्धि प्रकृतिके हैं और प्रकृतिका असर प्रकृतिपर ही पड़ेगा।

प्रश्न-असर पड़नेपर वैसा कर्म भी हो जाय तो ?

उत्तर-कर्म भी हो जाय तो भी आपमें क्या फर्क पड़ा ? आप विचार करके देखो तो आपपर असर नहीं पड़ा। परन्तु मुश्किल यह है कि आप उसके साथ मिल जाते हो। आप मन-बुद्धिको अपना स्वरूप मानकर ही कहते हो कि हमारेपर असर पड़ा। मन-बुद्धि आपके नहीं हैं, प्रत्युत प्रकृतिके हैं- *'मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति'* (गीता १५। ७) और आप मन-बुद्धिके नहीं हो, प्रत्युत परमात्माके हो- *'ममैवांशो जीवलोके'* (गीता १५। ७)। इसलिये असर मन- बुद्धिपर पड़ता है, आपपर नहीं। आप तो वैसे-के-वैसे ही रहते हो - *'समदुःखसुखः स्वस्थः'* (गीता १४। २४)। प्रकृतिमें स्थित पुरुष ही सुख- दुःखका भोक्ता बनता है- *'पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान्'* (गीता १३।२१)। मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो पड़ता रहे, अपनेको क्या मतलब है ! असरको महत्त्व मत दो। इसको अपनेमें स्वीकार मत करो। आप 'स्व' में स्थित हैं- *'स्वस्थः।'* असर 'स्व' में पहुँचता ही नहीं। असत् वस्तु सत् में कैसे पहुँचेगी ? और सत् वस्तु असत् में कैसे पहुँचेगी ? सत् तो निर्लेप रहता है।

*मन-बुद्धि चाहे आपके हों, चाहे एक कुत्तेके हों, उनसे आपका कोई सम्बन्ध नहीं है।* कुत्तेके मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो क्या आप सुखी-दुःखी होते हो ? जैसे कुत्तेके मन-बुद्धि आपके नहीं हैं, ऐसे ही आपके मन-बुद्धि भी वास्तवमें आपके नहीं हैं। मन-बुद्धिको अपना मानना ही मूल गलती है। इनको अपना मानकर आप मुफ्तमें ही दुःख पाते हो !

एक मार्मिक बात है कि *हमारे और परमात्माके बीचमें जड़ता (शरीर- संसार) का परदा नहीं है, प्रत्युत जड़ताके सम्बन्धका परदा है।* यह बात पढ़ाईकी पुस्तकोंमें, वेदान्तके ग्रन्थोंमें मेरेको नहीं मिली। केवल एक जगह सन्तोंसे मिली है। इसलिये शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसे हमारा बिलकुल सम्बन्ध नहीं है-ऐसा स्वीकार कर लो तो आप निहाल हो जाओगे।

प्रश्न- जड़ताका सम्बन्ध छोड़नेके लिये क्या अभ्यास करना पड़ेगा ?

उत्तर-*जड़ताका सम्बन्ध अभ्याससे नहीं छूटता, प्रत्युत विवेक-विचारसे छूटता है।* यह अभ्याससे होनेवाली बात है ही नहीं। विवेकका आदर करो तो आज ही यह सम्बन्ध छूट सकता है।

*आप दो बातोंको स्वीकार कर लें-जानना और मानना। जड़के साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है- यह 'जानना' है और हमारा सम्बन्ध भगवान् के साथ है- यह 'मानना' है।*

अनन्त ब्रह्माण्डोंमें केश-जितनी चीज भी हमारी नहीं है- यह जाननेपर जड़ताका असर नहीं पड़ेगा। इसमें अभ्यास काम नहीं करता, पर विवेकसे तत्काल काम होता है। आपपर असर नहीं पड़ता, आप वैसे- के-वैसे ही रहते हो। वास्तवमें मुक्ति स्वतः स्वाभाविक है। *मुक्ति होती नहीं है, प्रत्युत मुक्ति है।* जो होती है, वह मिट जाती है और जो है, वह कभी मिटती नहीं-

*'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।*'
(गीता २।१६)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:05


'असत् की सत्ता विद्यमान नहीं है और सत् का अभाव विद्यमान नहीं है।' आपने असरको सच्चा मान लिया, जो कि असत् है, झूठा है। मन-बुद्धिके साथ आपका सम्बन्ध है ही नहीं। श्रीशरणानन्दजी महाराजसे किसीने पूछा कि कुण्डलिनी क्या होती है ? उन्होंने उत्तर दिया कि *कुण्डलिनी क्या होती है- यह तो हम जानते नहीं, पर इतना जरूर जानते हैं कि कुण्डलिनीके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है।* कुण्डलिनी सोती रहे अथवा जाग जाय, हमारा उससे क्या मतलब ? ऐसे ही शरीर-संसारके साथ हमारा सम्बन्ध ही नहीं है। अतः उसके असरका आदर मत करो। यह अभ्याससे नहीं होगा। अभ्यास एक नयी स्थिति पैदा करता है। जैसे, रस्सेपर चलना हो तो इसके लिये अभ्यास करना पड़ेगा। अभ्याससे कुछ लाभ नहीं होगा। अभ्याससे तत्त्वज्ञान कभी हुआ नहीं, कभी होगा नहीं, कभी हो सकता नहीं। विवेकका आदर करो तो आज ही, अभी निहाल हो जाओगे।

नारायण .. नारायण ... नारायण .... नारायण ....

हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं !!!

–परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
–‘मानवमात्रके कल्याणके लिए’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 10:45


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 10:44


*जय सियाराम !*
*(मायाकी-मोहिनी)*

‘क्या करें जिम्मेवारी निबाहना भी मनुष्यका धर्म है। हम सब समझते हुए जिम्मेवारीका त्याग कैसे कर दें?’ *बड़े जिम्मेवार बन रहे हो।* और बात तो जाने दो, शरीरकी जिम्मेवारी तो निबाहो। तुम्हारी जिम्मेवारीका निर्वाह तभी समझा जायगा, जब तुम इसे बीमारी या मौतके मुँहसे बचा सकोगे। जब तुम शरीरकी जिम्मेवारी भी नहीं निभा सकते, तब और जिम्मेवारीकी तो बात ही कौन-सी है? *बिना ही बनाये पंच बनकर जिम्मेवार बन बैठे हो।★*

*मोहने ही प्रेमका स्वाँग भरकर तुम्हारे ऊपर जिम्मेवारी और कर्तव्यका बोझ लाद रखा है।★★* उतारकर फेंक दो न जिम्मेवारीके इस बोझको। *तुरंत हलके हो जाओगे।*

परम पूज्य *"भाईजी”*
श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 10:44


*राम राम*
हां महाराज हां महाराज
हां महाराज हां महाराज
अर्जुन कहहि अच्युत अब मोरा
हां महाराज हां महाराज
नाशेहू मोह अनुग्रह तोरा
हां महाराज हां महाराज
सूरति मोहि लभिगत संदेहा
हां महाराज हां महाराज
पाल्लिहू तोर वचन सस्नेहा
हां महाराज हां महाराज
समता माझ भई प्रिति मेरी
हां महाराज हां महाराज
मिटी कामना जूग जूग केरी
हां महाराज हां महाराज
हातव विमुख अनत भटकावे
हां महाराज हां महाराज
सन्मुख होयी परम सुख पावा
हां महाराज हां महाराज
होतो सदा शरण म्ह॔ तोरी
हां महाराज हां महाराज
याद न रही भूल अति मोरी
हां महाराज हां महाराज
मिटी असत जग के प्रतिती
हां महाराज हां महाराज
जाग्रत भयी चरण तब प्रिति
हां महाराज हां महाराज
जानेहू निज स्वरुप अविनासी
हां महाराज हां महाराज
जङता मूल देह बुद्धी नाशी
हां महाराज हां महाराज
मो पर किरपा भयी अधिताई
हां महाराज हां महाराज
सब दिशी आप ही आप लखाहि
हां महाराज हां महाराज
जो कुछ कहो करु मे स्वामी
हां महाराज हां महाराज
नाथ नमामि नमामि नमामि
हां महाराज हां महाराज
जय श्रीकृष्ण पार्थ धनु धारी
हां महाराज हां महाराज
नर नारायण जग हित कारी
हां महाराज हां महाराज
यह गीता हरिःमुख की बानी
हां महाराज हां महाराज
लखी बड बड आचार्यज ज्ञानी
हां महाराज हां महाराज
लिखतन थके इन्ही पर टिका
हां महाराज हां महाराज
दरस हि जो पथ लागई निका
हां महाराज हां महाराज
बन्दउ ताही सकल आचार्यज
हां महाराज हां महाराज
जग हित कियउ बहुत बड कारज
हां महाराज हां महाराज
देखहि बृहद ग्रंथ जब दोहू
हां महाराज हां महाराज
बाकी पठन रहहि नही कोउ
हां महाराज हां महाराज
*एक नाम साधकसंजीवनी*
*हां महाराज हां महाराज*
*दूसर जानेउ तत्व विवेचनी*
*हां महाराज हां महाराज*
*मो कहू समाधान जस होवर्ई*
*हां महाराज हां महाराज*
*बरणउ पक्ष पात नही कोई*
*हां महाराज हां महाराज*
*पूनि निज प्रभु कहहू करउ प्रणामा*
*हां महाराज हां महाराज*
*जाहि किरपा पाउ विश्रामा*
*हां महाराज हां महाराज*
*जय श्रीकृष्ण पार्थ धनुधारी*
*हां महाराज हां महाराज*
*नर नारायण जग हितकारी*
*हां महाराज हां महाराज*
*हां महाराज हां महाराज*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 06:04


।। श्रीहरिः ।।🌺

*तुलसी की कण्ठी क्यों धारण करते हैं ?*

* वैष्णव *इसीलिये* गले में तुलसी की कण्ठी धारण करते हैं। *ये - *यह शरीर भगवान् को अर्पण हो गया।*

* 🌷 जिस वस्तु में आप तुलसी-पत्र रखते हो, वह *कृष्णार्पण* हो जाती है । तुलसी-पत्र के बिना भगवान् स्वीकार नहीं करते ।

* *गले में तुलसी की माला धारण करने का अर्थ यह है कि यह शरीर अब भगवान् को अर्पण हुआ है।*

* *शरीर भगवान् *का** है, शरीर भगवान् *के लिये - * है।* बहुत-से लोग गले में तुलसी की कंठी तो धारण करते हैं-उसका अर्थ नहीं समझते ।

🌟 भागवत- पुस्तक से, पुस्तक कोड- 2009, पृष्ठ संख्या- ३४, गीताप्रेस, गोरखपुर
*सन्त श्रीरामचन्द्र केशव डोंगरेजी महाराज*
नारायण !नारायण!नारायण! नारायण!

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 04:17


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : १६
--- :: x :: ---

*यदि कोई स्वयं अपनेको दोषी स्वीकार करे, तब भी साधक उसे उस की वर्तमान निर्दोषताका स्मरण दिला कर उसे सदाके लिये निर्दोषता सुरिक्षित रखनेकी प्रेरणा देता है और उससे वर्तमान निर्दोषताके अनुरूप ही व्यवहार करता है | इस दृष्टिसे परस्पर निर्दोषता सुरिक्षित रखनेका बल प्राप्त होता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२९, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 03:20


*।। श्रीहरि: ।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-त्रयोदशी(सुबह 09:43 तक)चतुर्दशी(कल प्रातः06:20 तक)*
*नक्षत्र-अश्विनी(रात्रि 12:33 तक)*
*वार-गुरुवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-14 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-दोपहर 01:30 से 03:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-मेष*
*अग्निवास-पृथ्वी*
*दिशाशूल-दक्षिण*
*व्रत पर्व विवरण-वैकुण्ठ चतुर्दशी,विश्वेश्वर व्रत,कार्तिक चौमासी चौदस,बाल दिवस,सर्वार्थसिद्धि योग।*
*👉कल-कार्तिक पूर्णिमा,पुष्कर स्नान।*
*16 नवम्बर शनिवार-वृश्चिक संक्रांति।*
*22 नवम्बर शुक्रवार-कालभैरव जयन्ती।*
*26 नवम्बर मंगलवार-उत्पन्ना एकादशी।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 01:45


*राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 साक्षात् प्रेमावतार, श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा 🌹 परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹 भगवान जो इतनी ऊंची चीज़ हैं, वे दुर्लभ नहीं हैं, सुलभ हैं।🌹 केवल विश्वास कर लें।🌹 जय जय श्री राधे 🌹🙏🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 16:59


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 16:58


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷तीसवाँ दिन
*1-दिनांक-12 -11-2024*
*2-वार-मंगलवार।*
*3-गीता पाठ सातवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 01 से 10 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 05 -जून - 1992* प्रात:5:00 बजे

*5-अहम् की निवृत्ति, अच्छाई का अभिमान, बुराई की जड़।*



🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 15:56


॥ श्रीहरिः शरणम् ॥

*प्रश्न - हम दूसरों के दोष क्यों देखते हैं ?*

*उत्तर - क्योंकि हम अपने दोषों को नहीं देखते।*

*प्रश्न - पूजा का क्या अर्थ है ?*

*उत्तर - संसार को भगवान् का मानकर उन्हीं की प्रसन्नतार्थ संसार से मिली हुई वस्तुओं को संसार की सेवा में लगा देना ही पूजा है।*

*प्रश्न - भगवत्प्राप्ति में विघ्न क्या है ?*

*उत्तर - संसार को पसन्द करना ही सबसे बड़ा विघ्न है।*

*प्रश्न - दुःख क्यों होता है ?*

*उत्तर - सुख-भोग से ही दुःख रूप वृक्ष उत्पन्न होता है। ऐसा कोई भी दुःख नहीं है, जिसका जन्म सुख-भोग से न हुआ हो।*

*प्रश्न - दुःख और सुख का परिणाम क्या है ?*

*उत्तर - जो सुख किसी का दुःख बनकर मिलता है वह मिट कर कभी न कभी बहुत बड़ा दुःख हो जाता है और जो दुःख किसी का सुख बन कर मिलता है वह मिट कर कभी न कभी आनन्द प्रदान करता है। प्राणी सुख से बँधता और दुःख से छूट जाता है। सुख से दुःख और दुःख से आनन्द मिलता है।*

–पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज
–‘प्रश्नोत्तरी संतवाणी - १ मानव सेवा संघ वृन्दावन की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:41


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : १३
--- :: x :: ---

* कर्त्तव्य-निष्ठ होनेकी माँग साधकको अकर्त्तव्यसे रहित कर देती है, जिसके होते ही स्वतः कर्त्तव्य-परायणता आ जाती है |

बुराई-रहित होनेसे बुराईका नाश होता है, किसी अन्य प्रकारसे नहीं | इतना ही नहीं, बुराईके बदलेमें भी जब भलाईकी जाती है, तब बुराई करनेवाला बुराई-रहित होनेके लिये तत्पर हो जाता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२८, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:41


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन 29 मई 1992 प्रातः 5:00 बजे ।

*विषय - अहम नाश की आवश्यकता ।*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश’ ’आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि संसार में तरह-तरह के दु:ख हैं । (संसार) दुःख देने वाला है, इससे कोई शोक बाकी नहीं रहेगा । ये जो मैं पन है, इसमें एक दर्प होता है, एक अभिमान होता है, एक "मैं पन" होता है । बाहर की चीजों को लेकर के धन संपत्ति, जमीन जायदाद, मेरे इतने आदमी हैं, इनको लेकर के जो बड़प्पन का अनुभव होता है, ये दर्प कहलाता हैं । घमंड कहलाता है । मैं समझदार हूं, मैं पढ़ा लिखा हूं मैं, ब्राह्मण हूं, मैं साधु हूं । इसको अंहकार कहते हैं । अहंकार से स्थूल अभिमान है, अभिमान से स्थूल दर्प है, घमंड है । ‘ मैं’ तो प्रत्यक्ष आसुरी संपत्ति है । मैं और मेरा माया है, बंधन है । ये साधन, असाधन के साथ, देवी संपत्ति, आसुरी संपत्ति के साथ भी रहता है । पढ़ाई करते हैं, साधन करते हैं, जप करते हैं, ध्यान करते हैं । समाधी लगाते हैं । इसमें भी अभिमान रहता है । समाधि में भी होता है, व्युत्थान में भी अभिमान होता है । इस अभिमान को दूर करना है, ये भी लक्ष्य में नहीं आता । इस अभिमान के मिटते ही स्वत: शांति मिलेगी । निर्ममो निरहंकार: । ये निरहंकार की स्थिति, ब्राह्मी स्थिति है । सात्विक भाव वाले उर्ध्व लोक में जाते हैं, राजस भाव वाले मृत्यु लोक में आते हैं । तामसी अधोगति में जाते हैं । यह भी तीन तरह का अभिमान रहता है । जब तक अहम रहता है, बंधन रहता ही है । कितनी समाधि लग जाए । अभिमान रहता है तो मुक्ति नहीं होती । अहंकार से रहित होने पर शांति मिलती है । मैं व्याख्यान देता हूं, अभिमान वैसा का वैसा ही रहता है ।

तो यह दूर कैसे हो ?

तो सबके यह जानने में आ जाए कि अभिमान है । जानने में कैसे आए ? कि मैं हूं ! यह सबसे पहले है । यह सब में है । गाय, भैंस, भेड़, बकरी सब में रहता है । अपने अपने ख्याल करो कि "मैं" दीखता है कि नहीं । यह आंखों से नहीं दीखेगा । यह बुद्धि और विवेक से दीखता है । मैं नाम अहंकार का है । हूँ नाम परा प्रकृति है । मैं है यह अपरा प्रकृति है । इसका अनुभव करना चाहे तो हर एक भाई बहन कर सकता है, कि मैं हूं । मैं जड़ है । हूं चेतन है । ये चिज्जड़ ग्रंथि है, झूठी है, पर छूटत कठिनाई (मुश्किल से छूटती है) । मैं जानता हूं, मैं नहीं जानता हूं । दोनों में अहम ज्यों का त्यों है । अहम के मिटने पर मुक्ति होती है । अपने स्वरूप में सब भूतों (प्राणियों) को देखता है, ये अहम के मिटने के बाद होता है । तो सबको अहम को पहचानने की जरूरत है कि यह अहम है । जैसे नेत्र से खंबा दीखता है । ऐसे भीतर एक प्रकाश होता है, उससे भान होता है, कि यह अहम है और यह (अहम) जिससे प्रकाशित होता है, यह आपका स्वरूप है । इसमें स्थित हो जाए । अनुकूलता, प्रतिकूलता में सुखी दु:खी होता है । राजी नाराज होता है, तो ये अहम का भोग होता है । संप्रदाय में भी - यह द्वैतवादी है, यह अद्वैत वादी है । उसमें भी अभिमान रहता है । मैं जानता हूं, समझदार हूं, इसमें भी अहम रहता है । इसका भान होता है । आज मन लगा, आज मन नहीं लगा अशांति रही । यह भी अहम का भोग हुआ । इस अहम से रहित होना है । साधक को चाहिए कि मैं इस अहम से रहित हूं । मैं ब्रह्म हूं, इसकी जरूरत नहीं है । वह (ब्रह्म) तो स्वत: है । मैं अहम रहित हूं, इसकी जरूरत है । अहम रहित हैं आप । इस (अहम को) पकड़ा हुआ है, छोड़ना है ।

नारायण । नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:41


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:40


*राम राम*
प्रेम बढावो जी थारे चरण कमल रो चेरो
थारे चरण कमल रो चेरो
म्हारो प्रेम जगाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
थारे चरण कमल गो चेरो
पड्यो रहूं दरबार आप रे
संन्तन मांही बसेरों
आठो पहर चाकरी करस्यूं
आठो पहर चाकरी करस्यूं
हरदम रहस्यू नेडो
थारे ह्रदय रहस्यू नेडो
म्हारी लगन लगाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
थारे चरण कमल रो चेरो
थारे चरण कमल रो चेरो
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
थारे चरण कमल रो चेरो
थारे चरण कमल रो चेरो
था ने छोड़ कठे नहीं म्हारो
ठोर ठिकानो डेरो
प्रभु था ने छोड़ कठे नहीं म्हारो
ठोर ठिकानो डेरो
झिड़क भी डारो तो नहीं छोडू
झिड़क भी डारो तो नहीं छोडू
पकड़ लियो अब लेरौ
था रो पकड़ लियो अब लेरौ
म्हारी लगन लगाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
म्हारो भाव बढ़ाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
ज्यों राखोला त्यूं ही रहस्यू
करु न कोई बखेड़ों
प्रभु ज्यूं राखो ला त्यूं ही रहस्यू
करु न कोई बखेड़ों
प्रभु ज्यों राखो ला त्यूं ही रहस्यू
करु न कोई बखेड़ों
*आप बिना कोई नहीं म्हारो*
*आप बिना कोई नहीं म्हारो*
सब जग मांही अंधेरौ
प्रभु जी सब जग माहीं अन्धेरौ
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
म्हारो भाव बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
म्हारे आग लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
*था रो हूं बस इतणो जाणू*
*ओर नहीं कछू बेरौ*_
*प्रभु जी थारो हूं बस इतणो जाणूओर नहीं कुछ बेरों*
*अपणो जाण शरणं में राखौ*
*कृपा दृष्टि कर हेरौ*
*म्हाने कृपा दृष्टि कर हैरो*
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
म्हारो भाव बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 05:56


🌿🌹🪷🙏🪷🌹🌿
*ॐ नमः शिवाय।*
(द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् )

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रिशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोमकारममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

*एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।*
*सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥*

*अन्यथा शरणम् नाऽस्ति, त्वमेव शरणम् मम्।*
*तस्मात्कारूण भावेन्, रक्ष माम् महेश्वर:॥*
💐🌹🌷🙏🌷🌹💐

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 03:03


राम।।🍁

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

*..किसीके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो..*

आपने चौरासी लाख देह धारण किये, पर किसी भी देहमें आप नहीं रहे तो फिर इस देहमें कैसे रहेंगे? इसलिये *देह रहते हुए ही 'मैं देहसे अलग हूँ'- यह अनुभव कर लो।* जैसे पण्डालमें रहते हुए भी आप पण्डाल नहीं हैं, मकानमें रहते हुए भी आप मकान नहीं हैं, ऐसे ही देहमें रहते हुए भी आप देह नहीं हैं। इस बातको जाननेकी बड़ी आवश्यकता है।

*तीन बातें हैं-आप देह नहीं हो, देह आपका नहीं है और आपके लिये नहीं है।* शरीरकी एकता संसारके साथ है। यह आपके काम नहीं आयेगा। देह मिला है केवल संसारकी सेवाके लिये, अपने सुखभोगके लिये बिलकुल नहीं। शरीरसे भोग भोगोगे तो नरकोंमें जाओगे !

आप भगवान् के अंश हो । आपका सम्बन्ध भगवान् के साथ है। अतः *भगवान् के सिवाय किसीके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो । किसीके साथ भी सम्बन्ध जोड़ना अनर्थका कारण है!* आजकल कई व्यक्ति केवल चेला बनानेके लिये ही साधु बनते हैं, व्याख्यान देते हैं! पहलेवाला सम्बन्ध तो टूटा ही नहीं, दूसरे सम्बन्ध बनाते हैं तो बड़ी दुर्दशा होगी !

*राम ! राम !! राम !!!*

परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज, पुस्तक- *ईश्वर अंस जीव अबिनासी* पृष्ठ १७१

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 03:03


।। जय श्री गौ माता ।।

बहुत-से लोग घर में गाय नहीं रखते हैं, कुत्ते को रखते हैं । उनको गाय की सेवा करने में शर्म आती है, कुत्ते की सेवा करने में शर्म नहीं आती । कितने लोग तो कुत्ते की बहुत सेवा करते हैं । घूमने के लिये जाते हैं तो कुत्ते को साथ में ले जाते हैं । कितने लोग तो कुत्ते को साथ में मोटर में भी बिठाते हैं । कोई कुत्ते के साथ बहुत प्रेम करे तो समझना वह दूसरे जन्म में कुत्ता होने की तैयारी कर रहा है । भागवत में वर्णन आया है-भरतजी हिरण के साथ बहुत प्रेम करते थे, दूसरा जन्म उन्हें हिरण का मिला था ।

'भागवत-नवनीत' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 2009, पृष्ठ-संख्या- ४७६, गीताप्रेस, गोरखपुर

सन्त श्रीरामचन्द्र केशव डोंगरेजी महाराज

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 02:22


*।। श्रीहरि:।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-दशमी(शाम 06:46 तक)*
*नक्षत्र-शतभिषा(सुबह 09:40 तक)*
*वार-सोमवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-11 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-सुबह 07:30 से 09:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-कुम्भ*
*अग्निवास-आकाश*
*दिशाशूल-पूर्व*
*व्रत पर्व विवरण-भीष्म पंचक प्रारम्भ,कंस वध,पञ्चक जारी है।*
*👉कल-देवउठनी एकादशी व्रत।*
*13 नवम्बर बुधवार-प्रदोष व्रत।*
*14 नवम्बर गुरुवार-वैकुण्ठ चतुर्दशी,विश्वेश्वर व्रत।*
*15 नवम्बर शुक्रवार-कार्तिक पूर्णिमा।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 01:31


*🌹🌹🌹राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹जिव्हा से भगवान का नाम ना छोड़िए , सब पाप स्वयं छूट जाएंगे।🌹 बहुत बहुत सुंदर संदेश।🌹 जय जय श्री राधे 🌹🙏🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 18:07


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 18:07


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं

🌷 अठाईसवाँ दिन
*1-दिनांक-10 -11-2024*
*2-वार-रविवार।*
*3-गीता पाठ छठा अध्याय - श्लोक संख्या 31 से 40 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 23 -01 - 1992* दोपहर 3:00 बजे

*5-भय का कारण, विश्वास की कमी।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 16:53


॥ श्रीहरिः ॥

*अग्नि, गाय, ब्राह्मण, तुलसी, गंगा- इनको देवताके समान आदर देना चाहिये।*

*परमात्माको हर समय याद रखनेकी चेष्टा करनी चाहिये।*

*मनको विचारना चाहिये कि मैंने इस संसारमें आकर क्या किया और क्या करना चाहिये। इसी तरह यदि और भी समय बीतेगा तो फिर कैसे जल्दी कामयाबी होगी। समयको अमूल्य काममें बिताना चाहिये।*

*मनुष्यको ऐसा बनना चाहिये कि अपनेको जीवित रहते हुए ही भगवत्प्राप्ति हो जाय।*

*बुद्धिको कुशाग्र और तीक्ष्ण करनेके लिये सत्पुरुषोंका संग एवं सत्-शास्त्रोंका विचार करना चाहिये। निष्काम कर्मयोग और उपासनाके द्वारा पवित्र होनेसे भी बुद्धिमें कुशाग्रता और तीक्ष्णता आती है और स्मरणशक्ति बढ़ सकती है। ब्रह्मचर्यका पालन इसमें विशेष सहायक होता है।*

*शुद्ध आहार-विहारका सेवन एवं ब्रह्मचर्यके पालन और योगके साधनसे आयुका बढ़ना भी सम्भव है।*

*जो भगवान्‌को छोड़ संसारका चिन्तन करता है उसको मूर्ख समझना चाहिये।*

–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठजी)
–‘परमार्थ सूत्र संग्रह’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 12:48


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 11.01.1992 दोपहर 3.00 बजे ।

’ *विषय - जी नहीं रहे, मर रहे हैं* ।’

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है ।’ ’श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में’ ’प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि सबसे पहली खास बात है, हर एक के यह बात बैठी हुई है -हम जी रहे हैं । सच्ची बात यह है -हम मर रहे हैं । बुरी मत मानना । जितने वर्ष आ गए (बीत गए) उतनी उम्र कम हो गई । जन्मा तब 90 वर्ष का होना था, 30 वर्ष का हो गया तो कितना बचा, 60 वर्ष । तो 30 वर्ष मर गया कि नहीं । आप जितने बैठे हो आकर बैठे तब से अब तक कितने स्वांस कम हो गए । तो जी रहे हैं कि मर रहे हैं । जो सच्ची बात माने वह रास्ते पर है । वहम है हम जी रहे हैं । सच्ची बात है मर रहे हैं । एक बात और है सोचते हैं अभी थोड़ी मरेंगे ! जब भी मरेगा अभी मरेगा । प्रतिक्षण मर ही रहे हैं । तो निश्चित क्यों बैठे हो ? भजन स्मरण कर लो । मर रहे हैं यह तो पक्का है । जिएंगे कितने यह पता नहीं । जैसे वहम है जी रहे हैं पर मर रहे हैं । ऐसे ही चोरी, डाका, हिंसा करते हैं उसमें हमारी हानि है । खुद की हानि है, कर्ज हो गया । मार्मिक बात है - जिसकी चोरी होनी थी वह (धन) तो जाने वाला था । एक चोरी की घटना सुना रहे हैं । घटना से बता रहे हैं कि अपनी चीज है वह जाती नहीं है । चोर आए लेकिन चोरी कर नहीं सके । जो मरने वाला है वह मरेगा ही । चिंता किस बात की । सूरज छिपता है तो अंधेरा होता है । तो रोने से क्या लाभ है । कोई रोता है ? सूर्य उदय होने पर राजी होते हैं और छिपता है तो रोते नहीं । क्योंकि पक्की जन्ची हुई है - अस्त होगा । तो जो जन्मा है वह मरेगा ही । पक्की बात है । मरने वाला ही मरेगा, नहीं मरने वाला नहीं मरेगा । फिर चिंता किस बात की । होने वाला तो होकर ही रहेगा । अनहोनी होगी नहीं, होनी सो होय । फिर चिंता किस बात की ।

अरबों रुपये हैं, पर शोक मिटता नहीं और सत्संग में शोक टिकता नहीं । सत्संग से चिंता मिट जाती है । दु:ख मिट जाता है । संतों के पास रुपया, सामान नहीं पर मस्त रहते हैं । कल रोटी मिलेगी कि नहीं, क्या खाएंगे ? पता नहीं । पास में कुछ भी नहीं पर चिंता नहीं है । और लाखों करोड़ों रुपए और चिंता रहती है । इस वास्ते सच्ची बात मान लेनी चाहिए । मर रहे हैं, समय जा रहा है, सच्ची बात है । जाने वाला तो जाएगा ही । मरने वाला ही मरा है, नई बात कुछ नहीं हुई । जन्म ने वाला ही जन्मता है, नई बात क्या है ? गाड़ी में से कोई यात्री उतरता है तो रोना चाहिए ? रोने से क्या फायदा ? सच्ची बात को मान लेना चाहिए । सत्संग में सच्ची बात है, मान लेना चाहिए । साथ कुछ चलेगा नहीं, रहते रहते सेवा, पुण्य, उपकार कर लो । यह साथ चलेगा । एक बाबा जी की बात सुना रहे हैं । इस बात से समझा रहे हैं कि कैसे बाबा जी ने परिस्थिति का सदुपयोग किया । राज्य मिला तो सदुपयोग किया, सेवा करके । और राज्य छीना तो त्याग कर दिया । अब तक राज्य मैंने किया अब तुम करो । कबीर जी कहते हैं, दुनिया मरने से डरती है, पर मेरे मरण आनंद । क्यों ? क्योंकि भजन किया है । भगवान् के यहां जाएंगे । मौज है । रुपया एक कोडी साथ जाएगा नहीं, और राम नाम एक पीछे रहेगा नहीं ।
कबीरा सब जन निर्धना, धनवंता नहीं कोय ।
धनवंता सोई जानिए जाके राम नाम धन होय ।
सच्ची बात है, मान लेना चाहिए ।

जय सीताराम ! सीताराम !! सीताराम !!! जय सीताराम !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 12:48


।। श्रीहरि ।।

किसी सन्त के पास जाओ तो कम-से-कम उनके मन के विरुद्ध काम मत करो । इससे कभी लाभ नहीं होगा, उल्टे हानि होगी । लाभ सन्त की प्रसन्नता से होता है, उनके मन के विरुद्ध काम करने से नहीं । उनके मन के विरूद्ध काम करेंगे तो वह अपराध होगा, जिसका दण्ड भोगना पड़ेगा । उनका कहना नहीं मानो तो कम-से-कम उनके विरूद्ध तो मत चलो । हम सन्त से जबर्दस्ती लाभ नहीं ले सकते, प्रत्युत उनकी प्रसन्नता से लाभ ले सकते हैं । लाभ सन्त की प्रसन्नता में है, उनके चरणों में नहीं ।

'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से, पृष्ठ-संख्या- ८६, गीता प्रकाशन, गोरखपुर

परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 11:12


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 10:53


राम राम
किस का लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
किस का लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
पांच तत्व का पिंजरा बणिया
पांच तत्व का पिंजरा बनिया
मन बुद्धि अंहकारा रे
मन बुद्धि अहंकारा रे
मे अरु मेरा मान इसी को
बहता जिव बेचारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
बालक बहता बुढा बहता
बहता तरुण कुमारा रे
दुबला बहता मोटा बहता
बहता स्वस्थ बिमारा रे
किसका लिया सहारा रे प्राणी
बहता यह जग सारा रे
साधु बहता पंडित बहता
बहता मूर्ख गंवारा रे
धन पति बहता नरपति बहता
हाथी के असवारा रे
किसका लिया सहारा रे प्राणी
बहता यह जग सारा रे
आश्रम बहता कुटिया बहती
मंदिर महल दिवारा रे
जिन्दा बहता मुर्दा बहता
बहती सब की छारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
नदिया बहती पर्वत बहता
बहता समुन्दर खारा रे
धरणी पवन अग्न जल बहता
चांद सूरज नभ तारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
स्वर्ग लोक मे इन्द्र बहता
देवो का सरदारा रे
बृह्मलोक मे बृह्मा बहता
जिसके है मुख चारा रे
किसका लिया सहारा रे प्राणी
बहता यह जग सारा रे
मिन्ट सेकिन्ड घङी पल बहवे
दिन रजनी पखवाङा रे
जाग्रत स्वपन सुषुप्ति बहवे
ज्यू गंगा की धारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
*बहता संग बहो मत प्यारे*
*सुमिरो सिरजन हारा रे*
*हरदम रहता कभी न बहता*
*वह सबका आधारा रे*
*किसका लिया सहारा प्राणी*
*बहता यह जग सारा रे*
*यह संसार शरीर ऐक है*
*तू इन सबसे न्यारा रे*
*तू ईश्वर का अंश सनातन*
*मालिक वही तुम्हारा रे*
*किसका लिया सहारा रे प्राणी*
*बहता यह जग सारा रे*
*किसका लिया सहारा रे प्राणी*
*बहता यह जग सारा रे*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 16:32


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 16:32


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 सताईसवाँ दिन
*1-दिनांक-09-11-2024*
*2-वार-शनिवार।*
*3-गीता पाठ छठा अध्याय - श्लोक संख्या 21 से 30 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 11 -01 - 1992* दोपहर 3:00 बजे

*5-जी नहीं रहे, मर रहे हैं।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 16:25


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

*विचार करें, आपकी दृष्टिमें कोई चीज स्थिर रहनेवाली दीखती है क्या ? जिसपर आप भरोसा करो, आश्रय लो, ऐसी कोई चीज स्थिर दीखती है क्या ?*

*किसके भरोसे निश्चिन्त बैठे हो ? आप सदा रहना चाहते हो या मरना चाहते हो ? रहना चाहते हो तो क्या शरीरसे रह जाओगे ?*

*मिटनेवालेका सहारा कबतक टिकेगा ? कम-से-कम जो चीजें नाशवान् या बिछुड़नेवाली दीखती हैं, उनका भरोसा, विश्वास छोड़ दो।*

*क्या हम सदा बोलते ही रहेंगे ? क्या हमारी सुनने-सुनाने, चलने आदिकी सामर्थ्य सदा रहेगी ? यह तो सब बन्द होगा !*

*जब यह विश्वास हो जायगा कि कोई सहारा रहनेवाला नहीं है, तब भगवान्‌का सहारा अपने-आप होगा ! नाम-जप अपने-आप होगा।*

*किसी तरहसे भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़ लो। नाम- जप करो तो जबानसे, पुस्तक पढ़ो तो नेत्रोंसे, चिन्तन करो तो मनसे भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जुड़ गया।*

–परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
–‘सत्संगके फूल’ गीताप्रेस की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 07:32


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 07:31


राम राम
ओ जी म्हारा नटवर नागरिया
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या
जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरिया
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा
चाल्या जी सांवरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
थारी तो ओल्यु गिरधर म्हे करा
थारी तो ओल्यु गिरधर म्हे करा
प्रभु थां बिन म्हारो जिवङो नही लागे जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
थां स्यु तो विनती गिरधर म्हे कंरा
था स्यु तो विनती गिरधर म्हे करा
ऐ जी थां स्यु तो विनती गिरधर म्हे करा
थे गोकुल तज मथुरा क्याने जावो जी सांवरा
थे गोकुल तज मथुरा क्याने जावो जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
थे प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सावरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सावरा
ऐक घङी तो ठहरो सांवरिया
थारी गोपया सगली थां बिन व्याकुल
होवे जी सांवरा
थारी गोपया सगली थां बिन व्याकुल
होवे जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 07:17


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : ११
--- :: x :: ---

* निर्दोष जीवनसे ही समाजमें निर्दोषता व्यापक होती है | निर्दोष साधक दोषयुक्त मानवको देख, करुणित होता है, क्षोभित नहीं |

उसे परदुःख अपना ही दुःख प्रतीत होता है और करुणित होकर उसके प्रति क्रियात्मक तथा भावात्मक सहयोग देनेके लिये तत्पर हो जाता है |

उसका परिणाम यह होता है कि अपराधी स्वयं अपने अपराधको देख, निर्दोष होनेके लिये आकुल तथा व्याकुल हो जाता है, और फिर वह बड़ी ही सुगमतापूर्वक वर्तमान निर्दोषताको सुरक्षित रखनेमें समर्थ होता है | इस प्रकार साधन-निष्ठ जीवनसे समाजमें निर्दोषता व्यापक होती है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२८, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 04:23


*।। श्रीहरि: ।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-सप्तमी(रात्रि 11:56 तक)*
*नक्षत्र-उत्तराषाढ़ा(दोपहर 12:03 तक)*
*वार-शुक्रवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-08 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-सुबह 10:30 से 12:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-मकर*
*अग्निवास-पाताल*
*दिशाशूल-पश्चिम*
*व्रत पर्व विवरण-कार्तिक अष्टाहर्निका विधान प्रारम्भ,जलाराम बापा जयन्ती,सर्वार्थसिद्धि योग।*
*👉कल-श्री गोपाष्टमी।*
*10 नवम्बर रविवार-अक्षय नवमी।*
*12 नवम्बर मंगलवार-देवउठनी एकादशी।*
*13 नवम्बर बुधवार-प्रदोष व्रत।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 16:56


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 16:56


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 छबीसवाँ दिन
*1-दिनांक-08-11-2024*
*2-वार-शुक्रवार।*
*3-गीता पाठ छठा अध्याय - श्लोक संख्या 11 से 20 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 21 -मार्च - 1985* प्रातःकाल 5:00 बजे

*5-ध्यान दो मेरी बात की तरफ, बड़ी मार्मिक बात है, अर बढ़िया बात है, और एकदम निहाल करे जैसी बात है।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 13:01


👌🏻 *एक विशेष महत्व वाली बात* 👇🏽

हरेक काममें भविष्य होता है, पर परमात्मतत्वमें भविष्य नहीं होता । परमात्माकी प्राप्ति धीरे-धीरे नहीं होती, प्रत्युत तत्काल होती है । सुनानेवाला अनुभवी पुरुष भी विद्यमान हो, सुननेवाला जिज्ञासु साधक भी विद्यमान हो और परमात्मतत्त्व तो विद्यमान है ही, फिर भविष्यका क्या काम ? देरी होनेका कोई कारण ही नहीं है ! परमात्मतत्व नित्य-निरन्तर सबमें विद्यमान है । सुनानेवालेने दृष्टि करायी और सुननेवालेने उसको जान लिया‒इसमें देरी किस बातकी ? बहुत-से भाई-बहनोंने ऐसी धारणा कर रखी है कि सुनते-सुनते, साधन करते-करते, धीरे-धीरे कभी परमात्माकी प्राप्ति होगी । परन्तु वास्तवमें सांसारिक काम ही ‘कभी’ होगा, पारमार्थिक काम ‘कभी’ नहीं होगा, वह तो ‘अभी’ ही होगा ।

जो वस्तु पैदा होनेवाली होती है, उसीकी प्राप्तिमें भविष्य होता है । जो पैदा होनेवाली नहीं है, प्रत्युत नित्य-निरन्तर रहनेवाली वस्तु (परमात्मतत्त्व) है, उसकी प्राप्तिमें भविष्य कैसे होगा ? सुननेकी भूख ही नहीं है, परमात्मतत्त्वकी तीव्र जिज्ञासा ही नहीं है, उसके लिये तड़पन ही नहीं है, उसके लिये व्याकुलता ही नहीं है, इसी कारण देरी हो रही है !

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

‒‘जित देखूँ तित तू’ पुस्तकसे

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 11:24


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 11:24


राम राम
यो जग झुठो रे संसार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
उगे सो ही आथणरे
फुले सो कुम्हलाय
उगे सो ही आथणरे
फुले सो कुम्हलाय
चिङिया नेवल गीर पङे रे
चिङिया नेवल गीर पङे रे
जन्मे सो मरजाय
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
जांस्यु हंस हंस बोलता रे
दिन मे सो सो बार
वे मानुष किस देश गया रे
सुरता कर विचार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
सोने का लंक गढ बणाया
हिरो का दरबार
सोने का गढ लंक बणाया
हिरो का दरबार
रति भर सोनो ना गयो रे
रति एक सोनो ना गयो रे
रावण मरती बार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
हाथा परबत तोलता रे
धरती ने झेले भार
वे मानुष किस देश गया रे
वे मानुष किस देश गया रे
हां वे माणस माटी मिल्या रे
वे मानुष माटी मिल्या रे
ओर भांडा खङत कुम्हार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
सैर सेर सोनो पहरती रे
मोतिया भरती भार
कोई ऐक झोलो बह गयो रे
घर घर की पनिहार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
या जग मे तेरो कोई नही साथी
स्वार्थ को संसार
मोह माया मे भूल गयो तू
कोइ नही चाहे लार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निदङली निवार
ढाई अक्षर प्रेम का रे
कृष्ण नाम तत् सार
मीरा के प्रभु गिरधर नागर
हरि भज उतरो पार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 11:24


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 14 सितंबर 1991 सांय 4:45 बजे ।

*’विषय - प्रश्नोत्तर अध्याय 18/61 मिक्स ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण’ ’है, दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी’ ’जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए’ ’प्रतिदिन जरूर सुनना चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी से प्रश्न कर रहे हैं -
प्रश्न - गुरु बिना कल्याण हो सकता है क्या ?
स्वामी जी -गुरु बिना कल्याण कैसे होगा ! बनावटी गुरु से नहीं होता । जिससे प्रकाश मिला है, वो ही गुरु हो गया - उसे गुरु मानो या न मानो, जानो या न जानो ।

प्रश्न - भगवान् को ही गुरु बना लें ?
स्वामी जी -निहाल हो जाएं । शास्त्र में पढ़ा है - गुरु में मनुष्य बुद्धि, मनुष्य में गुरु बुद्धि, यह अपराध है ।

प्रश्न - जो भगवान् का भजन करते हैं, वो दु:खी दीखते हैं । जो भगवान् का भजन नहीं करते, वो सुखी दीखते हैं !
स्वामी जी - हमारे तो यह देखने में आता है कि भजन करने वाला सुखी हैं । भजन नहीं करने वाला दु:खी है । जितना त्याग करेगा, आराम ज्यादा होगा । आदर भी ज्यादा होगा ।

प्रश्न -कोई भी काम करते हैं अभिमान आता है ?
स्वामी जी -सेवा करो । सबको सुख कैसे हो ? माता-पिता, भाई -भोजाई सब की सेवा करो ।

प्रश्न -सेवा करने वाले परेशान करते हैं ?
स्वामी जी -सेवा करने वाले परेशान करते हैं तो दूना लाभ होगा ।

प्रश्न - स्त्रियों को माता बहनों को शंकर जी पर जल चढ़ाना चाहिए ?
स्वामी जी - माता बहनों को शंकर जी को जल दूर से चढ़ाना चाहिए । कन्या प्राय: गौरी का पूजन करती हैं । हमारे जगत्जननी माता सीताने भी गौरी की पूजा की है । गौरी का पूजन करना कोई दोषी नहीं है । गौरी जी का कन्याएं पूजन करती हैं ।

प्रश्न - नाम गुरु का लें ।
स्वामी जी -नाम भगवान् का लो । हे नाथ ! हे नाथ ! पुकारो ।

प्रश्न - बच्चों को कैसे समझाएं कि सत्संग में आवैं ।
स्वामी जी -प्यार से समझावें । आपके पास कम रहते हैं, स्कूल में ज्यादा रहते हैं । प्यार से समझाओ । घर में भगवान् के चित्र लगाओ । घर में (गीता प्रेस की भगवद् संबंधी) पुस्तकें जगह जगह रख दो, बच्चे देखेंगे पढ़ेंगे । आप सच्चे हृदय से लग जाओ ।

कर्म और फल के संदर्भ में एक साधक के प्रश्न का जवाब -
स्वामी जी - भगवान् कर्म करवाते नहीं । फल जरूर भुगताते हैं । साधक संजीवनी (परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता की टीका ) देखते ही हो, देखो । गीता जी के 18 वें अध्याय के 56 से 66 श्लोक तक में भक्ति का प्रकरण है । अर्जुन को भगवान् ने कहा मेरी बात मान ले । आज्ञा दे दी । अर्जुन ने स्वीकार नहीं किया । तो भगवान् ने कहा तू मेरी बात नहीं मानेगा तो नष्ट हो जाएगा, पतन हो जायेगा । यंत्र पर आरूढ़ होने के बाद मनुष्य परतंत्र हो जाता है । यंत्र पर आरूढ़ होने के बाद, यंत्र चाहे जैसे घुमाता है । वैसे घूमना पड़ेगा । ऐसे ही शरीर, मन, बुद्धि को अपना मान लिया, तो यंत्र पर आरूढ़ हो गए । आपको करना पड़ेगा (प्रकृति के परवश) और फल भोगना पड़ेगा । साधक संजीवनी पढ़ो (इस प्रकरण को विशेषता से समझने के लिए साधक संजीवनी अध्याय 18 श्लोक संख्या 56 से 66 पढ़ना चाहिए)।

प्रश्न -अच्छे संत हैं वो गुरु नहीं बनते, क्या उनको गुरु बना लें मन से ?
स्वामी जी - कोई हर्ज नहीं । भगवान् को बना लो गुरु । भगवान् को बनाओ गुरु । गीता जी है उनका मंत्र । भगवान जगद्गुरु हैं । आप जगद्गुरु में हो कि नहीं ? दूसरे को क्यों मानो ।

- कारण शरीर है - स्वभाव, अहंकार, मैं पन । इसे मिटा दे तो कल्याण हो जाए ।

- अभिमान से डरो मत । भगवान् से प्रार्थना करो ।
बच्चे के आफत आती है तो मां को पुकारता है कि नहीं ! ऐसे मां को पुकारो ।

-आदर सत्कार हो तो इसमें खतरा है । नुकसान होता है, निरादर होता है तो लाभ है । काम करे, अच्छा करे और निरादर हो तो लाभ ज्यादा होगा ।

- हे नाथ ! हे नाथ ! सब की दवाई है । डाकू आ जाए तो भगवान् को पुकारे और क्या करे ! पिंड छोड़े नहीं, भगवान् को पुकारे ।

- जिस आश्रम में है, उसका पालन करे तो अच्छा है । सन्यास में सन्यास का पालन करे । अपने अपने आश्रम का पालन करें, ठीक हो जाएगा ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 07:18


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : १०
--- :: x :: ---

कर्त्तव्यनिष्ठ जीवनसे दूसरोंमें अपनी-अपनी भूल देखनेकी माँग जाग्रत् हो जाती है | कर्त्तव्यनिष्ठ मानव किसीको भयभीत नहीं करता, अपितु भय-रहित होनेके लिये सहयोग प्रदान करता है |

किसीको भयभीत करनेसे उसका कल्याण नहीं होता,अपितु किसी-न -किसी अंशमें अहित ही होता है | भय देकर कोई भी राष्ट्र अपनी प्रजा को निर्दोष नहीं बना सका, यह अनुभव-सिद्ध सत्य है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२८, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 02:50


*।। श्रीहरि: ।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-षष्ठी(रात्रि 12:34 तक)*
*नक्षत्र-पूर्वाषाढ़ा(सुबह 11:47 तक)*
*वार-गुरुवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-07 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-दोपहर 01:30 से 03:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-धनु*
*अग्निवास-पृथ्वी*
*दिशाशूल-दक्षिण*
*व्रत पर्व विवरण-छठ पूजा,सूर्य षष्ठी,डाला छठ,स्कन्द षष्ठी।*
*09 नवम्बर शनिवार-गोपाष्टमी।*
*10 नवम्बर रविवार-अक्षय नवमी।*
*12 नवम्बर मंगलवार-देवउठनी एकादशी।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 02:33


🌺 *भगवान का स्वभाव* 🌺

भगवान्‌का यह स्वभाव है कि ‘तुम नाशवान्‌को देखते हो तो नाशवान्‌रुपसे मैं आ जाऊँगा । उस रूपमें ही तुम्हारेको दीखूँगा ।’ प्यास लग जाय तो जलरूपसे आ जायँगे । भूख लग जाय तो अन्नरूपसे आ जायँगे । जैसी इच्छा करोगे, उसी रूपमें आ जायँगे । आयेंगे तो भगवान्‌ ही, दूसरा आवे कहाँसे ? भगवान्‌के रूपसे उनको चाहोगे तो भगवान्‌ कहतें है‒‘मैं आ जाऊँगा ।’ संसारके रूपसे चाहोगे तो संसार-रूपसे आ जाऊँगा ।

भगवतरूपसे चाहनेवालोंका भगवान्‌ बहुत जल्दी कल्याण करते हैं । *भगवान्‌के भूख लगी हैं कि किसी तरह मेरा अंश मेरे पास आ जायँ* । भगवान्‌की भूख मिटाओ, भगवान्‌पर दया करो, सब लोग उनपर महेरबानी करो ।केवल एक भगवान्‌को ही चाहो और कुछ मत चाहो । अन्य सब इच्छाओंको मिटानेके लिये केवल भगवान्‌की इच्छा करो । सब इच्छाएँ मिट जायँगी तो भगवान्‌के मिलनेकी इच्छा पूरी हो जायगी । संसारकी आशा, तृष्णा, इच्छा‒ये ही बाधक हैं । अपने पास जो वस्तुएँ हैं, सब संसारकी हैं । उन्हें संसारकी सेवामें लगा दो; निहाल हो जाओगे । एकदम सच्‍ची बात है ।

*इच्छाओंका त्याग कैसे हो ?* *पुष्तक से*


*॥ सन्तवाणी ॥– *श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज**

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 01:35


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

तत्व का अनुभव हरदम होता है, कभी अननुभव होता ही नहीं । असत् का उपयोग संसार मात्र के लिए है । उसकी कामना, ममता और तादात्मय बंधन कारक है । उसे अपने लिए मत मानो ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४१*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 02:30


राम।।🍁

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

*..यह कोई मामूली बात नहीं..*

*आप भले ही कुछ नहीं हों, सन्त-महात्मा नहीं हों, भजनानन्दी नहीं हों, शुद्ध नहीं हों, पर जीव तो हो ही!* कपूत क्या पूत नहीं होता ? मल-मूत्रसे भरा बच्चा क्या माँका बेटा नहीं होता ? मूलमें आप निर्दोष हैं, दोष पीछेसे आये हुए हैं। स्नानघरमें जब आप साबुन लगाते हो तो काँचमें देखनेपर क्या आप मानते हो कि मेरा चेहरा खराब हो गया ?

*आप दृढ़ताके साथ भगवान्‌को अपना स्वीकार कर लें तो इसका महान् फल होगा, आपका जीवन सफल हो जायगा !* इससे मेरे चित्तमें बहुत प्रसन्नता होगी और आपको भी प्रसन्नता होगी, आनन्द होगा! इस बातको स्वीकार करनेमें लाभ ही लाभ है, नुकसान कोई है ही नहीं! यह कोई मामूली बात नहीं है। यह वेदोंका, गीताका, रामायणका भी सार है! आप नहीं मानो तो भी सच्ची बात सच्ची ही रहेगी, कभी झूठी नहीं हो सकती। आप अपनी तरफसे मान लो, फिर आपके माननेमें कोई कमी रहेगी तो उसे भगवान् पूरी करेंगे। पर *एक बार स्वीकार करके फिर आप इसे छोड़ना मत ।* मैं भगवान् का हूँ-यह मानते रहो तो आप अपने-आप शुद्ध, निर्मल हो जाओगे। जो लोहेका सोना बना दे, उस पारससे भी क्या भगवान् कमजोर हैं? भगवान् के सम्बन्धसे जैसी शुद्धि होती है, वैसी अपने उद्योग से नहीं होती। *वर्षों तक सत्संग करने से जो लाभ नहीं होता, वह भगवान् को अपना मान लेने से एक दिन में हो जाता है।*

*राम ! राम !! राम !!!*

परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज, पुस्तक- *बिन्दु में सिन्धु* पृष्ठ ८६

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 01:49


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 28 मई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय -परमात्मा सर्वत्र परिपूर्ण है ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण’ है, ’दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी’ ’चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि परमात्मा सब जगह परिपूर्ण हैं । यह बात सदा ही याद रखनी है और संसार है ये हरदम बदलता है, हरदम । सर्ग में, महासर्ग में, प्रलय में, महाप्रलय में भी इसमें क्रिया होती रहती है और परमात्मा में क्रिया होती ही नहीं । दोनों परस्पर विरोधी बात है । मनुष्य सो जाता है तो भी उम्र तो खत्म हो रही है । मनुष्यों के भाव है कि हम जी रहे हैं, जी नहीं रहे, हम मर रहे हैं । चेतन तत्व है, वह ज्यों का त्यों है, उसको प्राप्त करना है । जो कभी नहीं बदलता वह आपका स्वरूप है । आप नहीं बदलने वाले हो, आप परमात्मा के अंश हो । आप नित्य निरंतर रहने वाले हो और संसार बदलता ही बदलता है । आपका स्वरूप नित्य है । जहां आप की स्थिति है, वहां ही परमात्मा हैं । तो जहां आप हो वहां परमात्मा में स्थिति है । आपने बदलने वाले को पकड़ लिया, यह गलती की है । तो प्रकृति के साथ न मानकर परमात्मा के साथ मान लो । शरीर हरदम बदलता है, प्रकृति सबकी सब बदलती है । जड़ता के साथ एकता मानना भूल है । उससे सुख लेते हो, सुख है नहीं । उससे अलग हो जाए तो महान सुख की प्राप्ति होती है । भगवान् ने कहा है मेरी प्राप्ति होने के बाद फिर दु:ख नहीं होता । आप खुद कहते हो मैं बचपन में ऐसे करता था, जवानी में ऐसे करता था । तो क्रियाएं बदली, पर आप बदले ही नहीं । पापी से पापी भी भगवान् में लग सकता है । जल सब की प्यास बुझाता है, पृथ्वी सबको जगह देती है, वायु सबको समान मिलती है । जितनी ज्यादा चीज की आवश्यकता है जीवन निर्वाह के लिए, उसको भगवान् ने उतना ही सस्ता बनाया है । जहां पुकारो वहां भगवान् पूरे के पूरे । उनके चरण भी वहीं हैं । मस्तक भी वहीं हैं । कान भी वहीं हैं । मुख भी वहीं है, वहीं भोग लगा दो, वहां ही दीपक दिखा दो, फूल भी चढ़ा दो, भगवान् सब जगह हैं । हे नाथ ! हे नाथ ! पुकारो ! सब जगह सुनते हैं । मन में कहो तो भी सुनते हैं । हमारे प्रभु हैं । हमारे प्रभु हैं । हमारे प्रभु हैं । जैसे मां के 10 बालक हैं, उन दसों बालकों की मां पूरी की पूरी है, सबकी । ऐसे भगवान् सबके हैं पूरे के पूरे । भगवान् सदा जागते हैं और सब की पुकार सुनते हैं । सब के माता पिता हैं ।

’ *त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।’* संसार की दृष्टि छोड़ो । भगवान् की तरफ दृष्टि करो । तो भगवान् मिल जाएंगे । वो भगवान् हमारे । मस्त हो जाओ जहां हो वहां ही । संसार दु:खालय है । जैसे भोजनालय है, पुस्तकालय है, वस्त्रालय है । ऐसे संसार दु:खालय है । जहां भक्त होता है, भगवान् को वहीं पा लेता है । आप मान लो, सब का भरण पोषण का अधिकार भगवान् के हाथ में है । भगवान् चींटी को भी भोजन कराते हैं । यह कथा सुना रहे हैं । भगवान् के होकर रहो हरदम । भगवान् के हो जाओ और भगवान् के होकर ही रहो । ’ *सदसच्चाहमर्जुन* ’ , मान लो सब को पूरे के पूरे मिलेंगे । भगवान् पूर्ण हैं और पूर्ण ही मिलते हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 01:49


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 01:48


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

सिद्ध भक्तों के लक्षणों में श्रद्धा, विश्वास आदि शब्द नहीं आते । ये शब्द साधकों के लक्षणों में आते हैं, जैसे -' *अश्रद्धाना मत्परमा भक्ता:'* (गीता १२/२०) ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३८*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 17:05


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 17:04


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 8:00 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *सोलहवाँ दिन*
*1-दिनांक- 29* *-अक्टूबर 2024*
*2-वार-मंगलवार।*
*3-गीता पाठ - तीसरा अध्याय - श्लोक संख्या 23 से 33 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 20 - जून - 1990* प्रातः 5:00 बजे

*5-राग कैसै मिटे?*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 16:25


॥ श्रीहरिः ॥
*सबसे बड़ा पुण्यात्मा*

काशी प्राचीन समयसे प्रसिद्ध है। संस्कृत-विद्याका वह पुराना केन्द्र है। उसे भगवान् विश्वनाथकी नगरी या विश्वनाथपुरी भी कहा जाता है। विश्वनाथजीका वहाँ बहुत प्राचीन मन्दिर है। एक दिन विश्वनाथजीके पुजारीने स्वप्न देखा कि भगवान् विश्वनाथ उससे मन्दिरमें विद्वानों तथा धर्मात्मा लोगोंकी सभा बुलानेको कह रहे हैं। पुजारीने दूसरे दिन सबेरे ही सारे नगरमें इसकी घोषणा करवा दी।

काशीके सभी विद्वान्, साधु और दूसरे पुण्यात्मा दानी लोग भी गंगाजीमें स्नान करके मन्दिरमें आये। सबने विश्वनाथजीको जल चढ़ाया, प्रदक्षिणा की और सभा मण्डपमें तथा बाहर खड़े हो गये। उस दिन मन्दिरमें बहुत भीड़ थी। सबके आ जानेपर पुजारीने सबसे अपना स्वप्न बताया। सब लोग 'हर हर महादेव' की ध्वनि करके शंकरजीकी प्रार्थना करने लगे।

जब भगवान् की आरती हो गयी, घड़ी-घण्टेके शब्द बंद हो गये और सब लोग प्रार्थना कर चुके, तब सबने देखा कि मन्दिरमें अचानक खूब प्रकाश हो गया है। भगवान् विश्वनाथकी मूर्तिके पास एक सोनेका पत्र पड़ा था, जिसपर बड़े-बड़े रत्न जड़े हुए थे। उन रत्नोंकी चमकसे ही मन्दिरमें प्रकाश हो रहा था। पुजारीने वह रत्न-जटित स्वर्णपत्र उठा लिया। उसपर हीरोंके अक्षरोंमें लिखा था - 'सबसे बड़े दयालु और पुण्यात्माके लिये यह विश्वनाथजीका उपहार है।'

पुजारी बड़े त्यागी और सच्चे भगवद्भक्त थे। उन्होंने वह पत्र उठाकर सबको दिखाया। वे बोले -' प्रत्येक सोमवारको यहाँ विद्वानोंकी सभा होगी। जो सबसे बड़ा पुण्यात्मा और दयालु अपनेको सिद्ध कर देगा, उसे यह स्वर्णपत्र दिया जायगा।'

देशमें चारों ओर यह समाचार फैल गया। दूर-दूरसे तपस्वी, त्यागी, व्रत करनेवाले, दान करनेवाले लोग काशी आने लगे। एक ब्राह्मणने कई महीने लगातार चान्द्रायण व्रत किया था। वे उस स्वर्णपत्रको लेने आये। लेकिन जब स्वर्णपत्र उन्हें दिया गया, उनके हाथमें जाते ही वह मिट्टीका हो गया। उसकी ज्योति नष्ट हो गयी। लज्जित होकर उन्होंने स्वर्णपत्र लौटा दिया। पुजारीके हाथमें जाते ही वह फिर सोनेका हो गया और उसके रत्न चमकने लगे।

एक बाबूजीने बहुत से विद्यालय बनवाये थे। कई स्थानोंपर सेवाश्रम चलाते थे। दान करते-करते उन्होंने अपना लगभग सारा धन खर्च कर दिया था। बहुत सी संस्थाओंको वे सदा दान देते थे। अखबारोंमें उनका नाम छपता था। वे भी स्वर्णपत्र लेने आये, किंतु उनके हाथमें जाकर भी वह मिट्टीका हो गया। पुजारीने उनसे कहा-' आप पद, मान या यशके लोभसे दान करते जान पड़ते हैं।' नामकी इच्छासे होनेवाला दान सच्चा दान नहीं है।

इसी प्रकार बहुत-से लोग आये, किंतु कोई भी स्वर्णपत्र पा नहीं सका। सबके हाथोंमें पहुँचकर वह मिट्टीका हो जाता था। कई महीने बीत गये। बहुत से लोग स्वर्णपत्र पानेके लोभसे भगवान् विश्वनाथके मन्दिरके पास ही दान-पुण्य करने लगे। लेकिन स्वर्णपत्र उन्हें भी मिला नहीं।

एक दिन एक बूढ़ा किसान भगवान् विश्वनाथके दर्शन करने आया। वह देहाती किसान था। उसके कपड़े मैले और फटे थे। वह केवल विश्वनाथजीका दर्शन करने आया था। उसके पास कपड़ेमें बँधा थोड़ा सत्तू और एक फटा कम्बल था। मन्दिरके पास लोग गरीबोंको कपड़े और पूड़ी- मिठाई बाँट रहे थे; किंतु एक कोढ़ी मन्दिरसे दूर पड़ा कराह रहा था। उससे उठा नहीं जाता था। उसके सारे शरीरमें घाव थे। वह भूखा था, किंतु उसकी ओर कोई देखता तक नहीं था। बूढ़े किसानको कोढ़ीपर दया आ गयी। उसने अपना सत्तू उसे खानेको दे दिया और अपना कम्बल उसे उढ़ा दिया। वहाँसे वह मन्दिरमें दर्शन करने आया।

मन्दिरके पुजारीने अब नियम बना लिया था कि सोमवारको जितने यात्री दर्शन करने आते थे, सबके हाथमें एक बार वह स्वर्णपत्र रखते थे। बूढ़ा किसान जब विश्वनाथजीका दर्शन करके मन्दिरसे निकला, पुजारीने स्वर्णपत्र उसके हाथमें रख दिया। उसके हाथमें जाते ही स्वर्णपत्रमें जड़े रत्न दुगुने प्रकाशसे चमकने लगे। सब लोग बूढ़ेकी प्रशंसा करने लगे।

पुजारीने कहा- 'यह स्वर्णपत्र तुम्हें विश्वनाथजीने दिया है। *जो निर्लोभ है, जो दीनोंपर दया करता है, जो बिना किसी स्वार्थके दान करता है और दुःखियोंकी सेवा करता है, वही सबसे बड़ा पुण्यात्मा है।'*

–श्रद्धेय श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार (भाईजी)
–‘उपयोगी कहानियां’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 16:24


॥ श्रीहरिः ॥

*सब प्रकारसे प्रभुके शरण हो जानेपर फिर उनसे इच्छा या याचना करना नहीं बन सकता।*

*जब प्रभु हमारे और हम प्रभुके हो गये तो फिर बाकी क्या रहा !*

*_हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! हम आपकी शरण में हैं !!!_*

–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठ जी)
-'परमार्थसूत्र-संग्रह गीताप्रेस की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 16:21


॥ श्रीहरिः शरणम् ॥

*जीवन को अपने लिए, जगत् के लिए तथा जगत्पति के लिए उपयोगी बनाने वाले ग्यारह व्रतों की आवश्यकता बताई गई है, जो निम्नलिखित हैं-*

*(क) जीवन को अपने लिए उपयोगी बनाने के उपायः-*

*1. भूल-रहित होना,*

*2. निर्मम होना,*

*3. कामना-रहित होना,*

*4. अधिकार-लिप्सा से रहित होना,*

*5. अहंकृति-रहित होना।*

*(ख) जीवन को जगत् के लिए उपयोगी बनाने के उपायः-*

*1. किसी के साथ बुराई न करना,*

*2. किसी को बुरा न समझना,*

*3. किसी का बुरा न चाहना।*

*(ग) जीवन को प्रभु के लिए उपयोगी बनाने के उपायः-*

*1. सुने हुए प्रभु की सत्ता स्वीकार करना,*

*2. श्रद्धा एवं विश्वास करना,*

*3. आत्मीयता का सम्बन्ध स्वीकार करना।*

*इन्हीं व्रतों को 'साधन-निधि' के नाम से कहा गया है। वस्तुतः ये व्रत सभी साधकों के लिए सभी साधनों के निचोड़ के रूप में प्रस्तुत हैं, जो सभी के जीवन को सभी के लिए उपयोगी बनाने में समर्थ हैं।*

–पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज
–‘साधन निधि’ मानव सेवा संघ वृन्दावन की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 12:39


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 12:39


*राम राम*

आखंडीया झायीं पड़ी
पंथ निहारे निहार
जिभडीयां छाला पंड्या
श्याम पुकारें पुकार
देह गेह की सुध नहीं
टुट गयी जग प्रित
नारायण गावत फिरे
प्रेम भरे रस गीत
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
मे जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
प्रभु से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय
आये मेरे सजना
फिरी गये अंगना
आये मेरे सजना
फिरी गये अंगना
फिरी गये अंगना

में तो अभागन रही सोय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
फाडुगी चिर करु गलफंता
फाङुगी चिर करु गलफंता
रहुंगी बेरागण होय री
में जाण्यो नाही
रहुगी बेरागण होय री
मे जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
प्रभु से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
चुडीया फोडु मांग बखेरु
कजरा ने डारुगी धोय री
मे जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
मीरां के प्रभु गिरधर नागर
बाई मीरां के प्रभु गिरधर नागर
गिरधर नागर
मिल बिछुडो मत होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

26 Oct, 01:13


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

26 Oct, 01:13


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

शास्त्रों में तत्वज्ञ महात्माओं के चरण - रज की महिमा आई है, गुरु के चरण - रज का तात्पर्य उनकी कृपा से है ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३७*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

26 Oct, 01:13


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 25 मई 2000 की प्रातः 5:00 बजे ।

*’विषय - परम शांति की प्राप्ति’* ।

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है,’ श्री ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि परमात्मा सब जगह समान रूप से परिपूर्ण हैं । जैसे वायु सब जगह परिपूर्ण है । जहां हिलावे वहीं हाजिर हो जाती है । ऐसे परमात्मा सब जगह परिपूर्ण हैं । जहां आप अपनी स्थिति मानते हैं, वहां ही परमात्मा स्थित हैं । क्रिया करेंगे तो क्रिया से दूर हो जाएंगे । परिपूर्ण समान रूप से है, तो कुछ नहीं करना है । अब कुछ नहीं करने की शक्ति है, वह जप, ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय से आती है । यह शक्ति कुछ नहीं करने की आ जाएगी । पाने की इच्छा न रख करके सब की सेवा करें । तो वह स्थिरता की शक्ति आती है । एक करना होता है, पाने के लिए, उससे शांति नहीं होती है । एक करने का वेग मिटाना है, उसके लिए करना होता है । अगर किसी का अंतःकरण शुद्ध है, तो अभी स्थिर हो जाओ । उस परमात्मा का अनुभव नहीं होने में दो कारण हैं - एक सुख भोग की इच्छा और दूसरा संग्रह करना । तो निष्काम भाव से सेवा करो । ’ *सर्वभूतहिते रता’* : । सबका कल्याण हो इस भाव वाले को सगुण और निर्गुण तत्व की प्राप्ति हो जाती है । जहां आप हैं, परमात्मा पूरे के पूरे हैं । वहीं परमात्मा का मस्तक है, वहीं चरण हैं, वहीं दृष्टि है, भोग लगाओ तो मुख वहीं है । भोग लगाओ तो चरण भी वहीं है । जैसे सोने में सब तरह के गहने हैं, कुछ भी गहना बनाओ । ऐसे परमात्मा समान रीति से सब जगह परिपूर्ण है । वह शक्ति सब जगह है, सब में है । वह शक्ति कब आवेगी, जब भोगों की इच्छा नहीं रहेगी । मान बड़ाई की इच्छा नहीं रहेगी । तो वह शक्ति प्रकट हो जाएगी । भोगों की इच्छा वाले के परमात्मा की प्राप्ति करनी है, यह भाव भी ठहर नहीं सकता । परमात्मा सब जगह हैं, ऐसा निश्चय करके फिर कुछ भी चिंतन न करें ।

’ *निर्ममो निरहंकार: स’ ’शांति’ ........* । निर्मम और अहंकार रहित होने से शांति मिलती है । ब्राह्मी स्थिति की प्राप्ति होती है । लोक, परलोक की कोई इच्छा नहीं हो, परमात्मा की भी इच्छा नहीं हो, तो वहां परमात्मा प्रकट हो जाते हैं । परमात्मा की भी इच्छा नहीं रखें । सबसे पहले निषिद्ध आचरणों का त्याग करे । शास्त्र निषिद्ध काम नहीं करे । तो दूसरों को दु:ख नहीं देना और अपनी इच्छा नहीं करना । परमात्मा सब जगह हैं, वो हट सकते नहीं । सब जगह हैं तो परमात्मा की भी इच्छा नहीं करें, तो उस तत्व की प्राप्ति हो जाएगी । तो मुख्य क्या रहा ? भोग और संग्रह, इनका त्याग करे । परमात्मा के साथ नित्य योग है । उस योग में स्थित हो जाए । कामना का त्याग हुए बिना उसमें स्थिति होगी नहीं, इस वास्ते सब इच्छाएं मिट जाए, कोई इच्छा नहीं रहे । उस परमात्मा की भी इच्छा नहीं रहे तो वो प्राप्त हो जाएंगे; क्योंकि वह है । इच्छा करने से परमात्मा दूर हो जाते हैं । निष्काम भाव से सब की सेवा करो । सब को शांति मिले, सब सुखी हो जाएं । सब निरोग हो जाएं । परमात्मा सब जगह होते हुए भी इच्छा रहने से प्राप्ति नहीं होती। इच्छा मिटेगी सब की सेवा करने से । यह सूक्ष्म और कारण शरीर भी नाशवान है । कोई इच्छा नहीं हो तो वह तत्त्व प्राप्त है स्वाभाविक ही । सब परमात्मा ही हैं । इस वास्ते उद्योग करना है, इच्छाओं को मिटाने के लिए । संपूर्ण संसार की सेवा करो । अपने को शरीर मिला है, धन मिला है, मकान मिला है, सामग्री मिली है सब सेवा के लिए मिली है । ’ *एहि तन कर फल बिषय न भाई’ ।* तो निष्काम भाव से सब की सेवा करो । यह सब बंधन कामना में है ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 17:03


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 17:03


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*
प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 8:00 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *तेरहवाँ दिन*
*1-दिनांक- 26* *-अक्टूबर 2024*
*2-वार-शनिवार।*
*3-गीता पाठ - दूसरा अध्याय - श्लोक संख्या 51 से 61 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 03 - जून - 1990* प्रातः 8:30 बजे

*5-करने में सावधान होने में प्रसन्न।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 16:00


॥ श्री हरिः ॥
*आस्तिकताकी आधार – शिलाएँ*
गतांक से आगे –
*#८१. सर्वथा नामके आश्रित हो जाइये
अनन्त शान्ति मिल जाय, सदाके लिये हम सुखी हो जायँ -*
इसके लिये अनेक मार्ग हैं; पर उनमें सबसे सुन्दर साधन है – भगवान् के नामकी निरन्तर रटन। भागवत्के द्वितीय स्कन्धमें सबसे पहले शुकदेवजी महाराज अपना हृदय खोलते हुए कहते हैं-
*एतन्निर्विद्यमानानामिच्छतामकुतोभयम् ।*
*योगिनां नृप निर्णीतं हरेर्नामानुकीर्तनम् ॥*
भाग० २ । १ । ११)

'जो लोग संसारमें दुःखका अनुभव करके उससे विरक्त हो गये हैं और निर्भय मोक्षपदको प्राप्त करना चाहते हैं, उन साधकोंके लिये तथा योगसम्पन्न सिद्ध ज्ञानियोंके लिये भी समस्त शास्त्रोंका यही निर्णय है कि वे भगवान्‌के नामोंका प्रेमसे संकीर्तन करें।
इन वचनोंपर विश्वास कीजिये और सर्वथा सब प्रकारसे नामके आश्रित हो जाइये। पापके बुरे संस्कार बाधा देते हैं; इसलिये जैसी चाहिये, वैसी रुचि नहीं होती। पर जैसे रोगी दवा समझकर कड़वी दवाका भी सेवन करता है, वैसे ही मनको प्रिय न लगनेपर भी हठसे नामजप करें। जैसे-जैसे पापोंके संस्कार मिटेंगे, वैसे-वैसे प्रियता बढ़ने लगेगी। बिलम्ब मत कीजिये । इसमें प्रमाद करना बड़ी भारी भूल है । यहाँकी उन्नति-अवनतिमें कुछ भी सार नहीं है । बहुत दृढ़ होनेकी जरूरत है, अन्यथा पश्चात्ताप होगा । सब कीजिये, ज्यों-का-त्यों ऊपरसे रहिये, पर भीतरसे बदल जाइये। यह बात अपने-आप होने लगेगी, यदि तत्परतासे नामकी रटन होने लगे । अतएव वाणीका पूरा संयम करके आवश्यकताभर बोलनेके बाद बाकी कुल समय मशीनकी तरह नाम लेनेमें बीते। इसमें लाभ ही लाभ है ।

*-परमपूज्य श्री राधाबाबा।*

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 12:53


*जय सियाराम !*
भगवान् से श्री तुकारामजी
की *प्रार्थना* 🌷🙏🏻
*(पोस्टराम - १)*

५३२-मार्गकी प्रतीक्षा करते-करते नेत्र थक गये। *इन नेत्रोंको अपने चरण-कमल कब दिखाओगे।* तुम मेरी *मैया* हो; दयामयी छाया हो। *मेरे लिये तुम्हारा ऐसा कठोर हृदय कैसे हो गया ?* मेरी बाँहे, *हे मेरे प्राणधन हरि !* तुमसे मिलनेको फड़क रही हैं।

५३३-हे हरि, हे दीनजनतारक ! तुम्हारा यह सुन्दर सगुणरूप मेरे लिये सब कुछ है। पतितपावन ! *तुमने बड़ी देर लगायी, क्या अपना वचन भूल गये ?*

*घर-गिरस्ती जलाकर तुम्हारे आँगनमें आ बैठा हूँ। इसकी तुम्हें कुछ सुध ही नहीं है।* हे मेरे जीवनसखा ! *रिस* मत करो, *अब उठो और मुझे दर्शन दो।*

५३४-जीकी बड़ी साध यही है कि तुम्हारे चरणोंसे भेंट हो। *इस निरन्तर वियोगसे चित्त अत्यन्त व्याकुल है।*

५३५-आत्मस्थितिका विचार क्या करूँ? क्या उद्गार करूँ ? *चतुर्भुजको देखे बिना धीरज ही नहीं बँध रहा है।* तुम्हारे बिना कोई बात हो यह तो मेरा जी नहीं चाहता। नाथ ! *अब चरणोंके दर्शन कराओ।.........1* 🌷

*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:33


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:33


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

*गीतामें शरणागतिकी बात मुख्य है। शरणागतिको 'सर्वगुह्यतम' कहा गया है। जीव परमात्माका अंश है, इसलिये उसके लिये परमात्माकी शरणमें जाना बहुत सीधी-सरल बात है, जैसे बालकका अपनी माँकी गोदमें जाना !*

*शरणमें जानेका काम जीवका है और सब पापोंसे मुक्त करनेका काम भगवान्‌का है-*

*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।*
*अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥*
(गीता १८।६६)

*भगवान्ने तो हमें शरणमें ले रखा है। केवल हमें संसारकी शरण नहीं रखनी है। शरणागत आरम्भमें ही मुक्त हो जाता है! शरणागत सिद्ध होकर साधक होता है, ज्ञानमार्गी साधक होकर सिद्ध होता है।*

*सबसे ऊँचा सहारा परमात्माका है। उद्योग तो करो, पर उद्योगका सहारा मत लो- 'मामाश्रित्य यतन्ति ये' (गीता ७।२९)। औरका सहारा न ले, केवल भगवान्‌का सहारा ले, तब काम होगा।*

*एक बानि करुनानिधान की। सो प्रिय जाकें गति न आन की ॥*
(मानस, अरण्य० १०१४)

–परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
–‘सत्संग के फूल’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:33


राम राम
तू मेरा है तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
दोङत कोई पकङे छाया
दोङत कोई पकङे छाया
ऐसी अजब रचि तू माया
ऐसी अजब रचि तू माया
दोङत कोई पकङे छाया
ऐसी अजब रचि तू माया
मे मूर्ख देखत ललचाया
मे मूरख देखत ललचाया
कैसा गजब चितेरा है
तू केसे गजब चितेरा है
तू मेरा है तू मेरा है तू मेरा है
यह रचा हुआ सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है
यह रचा हुआ सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
*मे तो रहा सदा मुख मोङे*
*मे तो रहा सदा मुख मोङे*
*फिर भी तू मुझको नही छोङे*
*फिर भी तू मुझको नही छोङे*
*जेसे गाय बछ्छे संग दोङे*
*करता लाड घेरा है*
*तू करता लाड घनेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है*
*जो मिला हुआ सब तेरा है*
तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
पाया कष्ट बहूत गफलत मे
अब लिखकर देता हू खत मे
मेरा कुछ भी नही जगत मे
मेरा कुछ भी नही जगत मे
जो कुछ है सब तेरा है
जो कुछ है सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है
यो मिला हुआ सब तेरा है
*तू ही मात पिता अरु भ्राता*
*तू ही मात पिता अरु भ्राता*
*तू मेरा स्वामी सुखदाता*
*तू मेरा स्वामी सुखदाता*
*मेरा ऐक तुमहई से नाता*
*मेरा ऐक तुमहई से नाता*
*तुम बिन घोर अन्धेरा है*
*तुम बिन घोर अन्धेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है*
*जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तुम बिन कोई रहा न जग मे*
*तुम बिन कोई रहा न जग मे*
*रमा हुआ मेरे रग रग-रग मे*
*रमा हुआ मेरे रग-रग मे*
*पल भर रह नही सकु अलग मे*
*पल भर रह नही स्कु अलग मे*
*जंह रवि तंहा ऊजेरा है*
*जंह रवि तंहा ऊजेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:32


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन 31 मई 1990 प्रातः 8:30 बजे ।

’ *विषय - आत्मरति कैसे हो ?’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन’ ’जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी एक श्रोता के प्रश्न के उत्तर में कह रहे हैं कि भगवत् प्राप्ति के लिए लालसा जोरदार चाहिए । दूसरी लालसा न हो तो भगवत् प्राप्ति हो जाएगी । लालसा की कमी है ओर कमी नहीं है । संसार की लालसा है, यही कमी है । और संसार की वस्तुओं की प्राप्ति में लालसा का काम नहीं है । उसमें भगवान् का विधान है । सुखदाई परिस्थिति आई है, शुभ कर्मों से और दु:खदाई परिस्थिति आई है, अशुभ कर्मों से । भगवत् लालसा - सत्संग से, भक्त चरित्र के पढ़ने से, भजन से प्रकट होती है । सुनने का भी असर पड़ता है । तो लालसा वालों का संग करें ।

फिर एक श्रोता के प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं -
चाहे विश्वास करो भगवान् पर, चाहे त्याग पर विश्वास करो, कर्मयोग पर, चाहे स्वयं पर विश्वास हो । तो आत्मरति हो जाए । जो अपने में संतुष्ट रहता है । संसार जितना मिला है, वह हमारे कर्मों से ही मिला है । तो निष्काम होने से आत्मरति हो जाएगी । तो केवल दूसरों के हित के लिए काम किया जाए । केवल लोगों के हित के लिए काम किया जाए । अपने लिए नहीं किया जाए । स्थूल शरीर की स्थूल संसार के साथ एकता है, सूक्ष्म शरीर की सूक्ष्म संसार के साथ एकता है, कारण शरीर की कारण संसार के साथ एकता है । तो क्रिया करना संसार के हित के लिए, चिंतन करना संसार के लिए और समाधि भी संसार के हित के लिए । ईमानदारी से, इसमें कोई विलक्षणता नहीं है । जैसे कर्मयोगी संसार की चीज मानकर संसार के लोगों को दे देता है । तो सिद्ध हो जाता है । कर्मयोग से कृतकृत्य हो जाता है । ज्ञान योग से ज्ञात ज्ञातव्य हो जाता है । भक्तियोग से प्राप्त प्राप्तव्य हो जाता है । इसमें कोई एक हो जाए तो तीनों सिद्ध हो जाएंगे । तो आत्मा के सिवाय और कहीं रति ही नहीं हो तो आत्मरति हो जाती है । सुंदर दास जी महाराज ने कहा कि परमात्मा की रति नहीं हो तो कोई काम की नहीं है । तो यह कब होगा ? जब संसार में रति नहीं हो, तो आत्मरति स्वत: हो जाएगी । चाहे जाने न जाने, माने न माने । यह रति जितनी जड़ में है, वह उतनी कमी है । दूसरी तृप्ति, रति यह बाधक है । बिना भगवान् के संसार के साथ रह सकते ही नहीं । बालक अवस्था के साथ आप नहीं रह सकते । जवान अवस्था के साथ आप नहीं रह सकते । वृद्धावस्था के साथ आप नहीं रह सकते । रोग अवस्था के साथ आप साथ नहीं रह सकते । निरोग अवस्था के साथ आप नहीं रह सकते । धनवत्ता अवस्था के साथ आप साथ नहीं रह सकते और परमात्मा के साथ रह सकते हैं । अभी परमात्मा के साथ हैं, पर विमुख हैं । परमात्मा साथ नहीं छोड़ सकते । परमात्मा दूर है नहीं, दूर होंगे नहीं, दूर हुए नहीं, दूर हो सकते ही नहीं । परमात्मा सर्व समर्थ है, पर दूर नहीं हो सकते ।

आत्मरति चाहो तो अनात्म रति मत करो । लोग परमात्मा की प्राप्ति के लिए परमात्मा का चिंतन करते हैं । संसार का त्याग नहीं करते । पर अगर संसार का त्याग हो जाए तो स्वत: स्वरूप में स्थिति हो जाएगी । स्थिति क्यों हो जाती है ? क्योंकि स्थिति स्वत: है । लड़की का विवाह होता है, तो मां - बाप से, भाई, बहन से अलग होना कठिन पड़ता है । पर वहां (ससुराल) जाती है तो फिर मां-बाप की याद ही नहीं आती । यह करण सापेक्ष नहीं है, करण निरपेक्ष है । स्वयं की स्वीकृति है । केवल अपना संबंध है । करण निर्माण में काम आता है । स्वीकार और अस्वीकार में ग्रहण और त्याग में करण की आवश्यकता नहीं है । दूसरी रति है, यही आत्मरति में बाधक है । लोग विधि पर जोर देते हैं । नाम जप करो, चिंतन करो, करो यह प्रकृति में है । शरणागति फायदेमंद है । मेरे भगवान् हैं । भगवान को इतना ही कह दे कि आप मेरे को मीठे लगें । भगवान् अच्छा लगे । इस बात का भगवान् भी त्याग नहीं कर सकते । आपसे कोई प्रेम करे तो आपको बुरा लगेगा क्या ? तो भगवान् मीठे लगे यही मांगो भगवान् से । जैसे प्यास लगती है तो पानी की याद आती है । जैसे भूख लगती है तो अन्न की याद आती है । ज्योतिपुंज महाराज जी से पूछा कि महाराज भजन कैसे हो ? तो बोले भूख हो तो भजन अच्छा लगता है । भगवान् से कहें प्रभु आपको देखना चाहता हूं और कुछ नहीं चाहिए । यह भगवान् की कृपा से होगा, त्याग से होगा । संसार केवल दु:खों का कारण है, दु:खों का जनक है । बुद्धिमान उसमें रमण नहीं करते । अष्टावक्र गीता में अष्टावक्र जी ने कहा कि ये जहर है । जहर से एक बार मरता है, यह तो मारता ही रहता है, गिनती नहीं है ।

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:32


भक्ति जितनी जड़ में है, यह व्यभिचार है । मान, बड़ाई, भोग में रुचि नहीं हो । यह कर्मयोग से संसार में रुचि मिटती है । एक सज्जन ने कहा कि मुझे आम मिला, तो मैं अपनी स्त्री को ला करके दे दिया, स्त्री में मोह था । तो मुंह तो उसके नजदीक था, पर नहीं खाया । दूसरे का हित हो, यह भाव होने से वस्तु दूसरे के काम आ जाती है । ’ *सर्व भूत हिते रता* ।’ संसार का काम करो और संसार मेरे काम आ जाए यह आशा मत करो । संत महात्मा कहते हैं - भगवान् से भी आशा मत करो । संसार की कामना से पराधीनता होगी और मिलेगा कुछ नहीं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 05:27


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“अपने लिये उपयोगी होना” : ६७
--- :: x :: ---

* यदि विचारपूर्वक जगत् से आशा न करें और मिली हुई वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य, जो जगत्पति ने जगत् की सेवाके लिये दी हैं, वे उसीकी सेवामें अर्पित कर दें, तो शरीर आदिसे असंगता और जगत् से अभिन्नता हो जायगी, जिसके होते ही शरीर और विश्वकी एकता स्वतःसिद्ध होगी |

शरीर और विश्वकी एकताका अनुभव हमें जगत्पतिसे नित्य-सम्बन्ध तथा आत्मीयता जाग्रत् करनेमें सहयोगी होगा; कारण, कि जब शरीर अपना करके नहीं रहा, तब अपनी अहंता उन्हींकी आत्मीयतामें परिणत हो गयी, जिन्होंने मेरा और जगत् का निर्माण किया था |

इस दृष्टिसे मानव अचाह होकर जगत्पतिसे अभिन्न हो, कृतकृत्य हो जाता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२५, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 02:15


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 24 मई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - हम भगवान् के अंश हैं ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है,’ ’श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि *ममैवांशो जीव लोके ।* जीव मेरा ही अंश है । जीव मात्र स्थावर हो, जंगम हो, स्त्री हो, पुरुष हो, हिंदू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, मेरा ही अंश है । अगर आप विचार करें आप भगवान् के अंश हैं और भगवान् हमारे अंशी हैं । जैसे यह शरीर है, यह माता का अंश है । परंतु इसमें पिता का भी अंश है । पर भगवान् कहते हैं जीव मेरा ही अंश है । ’ *ममैवांशो* ’ । तो हमारे भाई बहनों से कहना है आप इस बात को स्वीकार कर लें सरलता पूर्वक और दृढ़ता पूर्वक । बहनों माताओं को कहना है- मैं भगवान की लाडली पुत्री हूं, पुरुषों से कहना है - मैं भगवान् का लाडला पुत्र हूं ।

’ *ईश्वर अंस जीव अबिनाशी ।’*
’ *चेतन अमल सहज सुख राशि।।’*

हम चेतन है, अमल हैं । न रुपया अपने साथ चलेगा, न भोग अपने साथ चलेगा । रुपयों को, मकान को, कुटुंब को अपना माना है यह मल है । अपन अमल है । मल रहित हैं । सहज सुख राशि हैं । कोरा सुख ही सुख है । मैं भगवान् का हूं, भगवान् मेरे हैं । करना कुछ नहीं । आप सज्जन हो, दुराचारी हो, कैसे ही हो, भगवान् के हो, भगवान मेरे हैं और कोई मेरा नहीं है । संसार की चीज वस्तु हमारी नहीं है । हमारे लिए भी नहीं है । संसार के लिए है । मैं भगवान् का हूं ।

*ईश्वर अंस, जीव अबिनाशी,* *चेतन, अमल, सहज सुख राशि ।*
ये पांच बातें हैं, यह स्वीकार कर लो अभी-अभी सरलता से । सहज बात है । दो खास बंधन है, एक संग्रह करना और भोग भोगना । गीता में दूसरे अध्याय के 44 वां श्लोक । दो बातें ध्यान देने की है - आए थे तब क्या लाए थे ? जाएंगे तब क्या ले जाएंगे ? जाएंगे तब शरीर भी यही रहेगा । संसार, धन-संपत्ति, कोई साथ जाएगी ? कोई साथ नहीं जाएगी । ’ *अंतहुं तोहि तजैंगे’ ’पामर तू न तजै अब ही’ ’ते’ ।* शरीर की मिट्टी बन जाएगी । याद रखो साथ कुछ लाए नहीं, साथ कुछ ले जा सकते नहीं । यहां जो मिला है, वह सेवा के लिए मिला है । अन्न, जल, वस्त्र, मकान, यह जितना अपने काम में आए उतनी अपनी, बाकी अपनी नहीं है । जिस धन के लिए पाप किया, वह साथ जाएगा । भोग भोगकर देख लिया, यह एक धोखे की टट्टी है । छोड़ दिया तो निहाल हो जाओगे । दु:ख से छुटकारा नहीं होगा । जैसे 84 लाख योनियों में एक मनुष्य शरीर है, ऐसे मनुष्य शरीर में एक सत्संग है । अगर उनकी बात मान लें, तो निहाल हो जाएं । नहीं तो जन्मों, मरो । खेती सूखने के बाद वर्षा का क्या महत्व ? मनुष्य जीवन में कल्याण की स्वतंत्रता दी है, योग्यता दी है, बल दिया है, अधिकार दिया है । मनुष्य मात्र अधिकारी हैं । ये चार बातें हैं - स्वतंत्रता, अधिकार, योग्यता और सामर्थ्य । यह भगवान् ने दिया है । पापी से पापी भगवान् में लग सकता है । सब पाप नष्ट हो जाएंगे और परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी। अभी मौका है परमात्मा की प्राप्ति में सब स्वतंत्र हैं, योग्य हैं, बलवान हैं, दु:खों का कोई अंत नहीं है । अभी मौका है । बड़े-बड़े धनियों ने छोड़ दिया सब और भगवान् में लग गए । मीरा जी ने पुत्र जाया नहीं और चेला एक बनाया नहीं, पर मुक्त हो गई । एक साधक ने संतों से पूछा कि कोई योग्य चेला मिल जाए तो मकान उसको सौंपकर भजन करूं । तो संतो ने कहा कि जब आप ही छोड़ रहे हो तो अच्छा नहीं समझे तभी तो छोड़ा तो इसके लिए पात्र क्या देख रहे हो ? कपूत को देखो, जिससे वह इससे अपना माथा फौड़े ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 02:15


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:18


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:18


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 8:00 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇
🌷 *पाँचवा दिन*

*1-दिनांक- 18* *-अक्टूबर 2024*

*2-वार-शुक्रवार*

*3-गीता पाठ - पहला अध्याय - श्लोक संख्या 31 से 40 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक-06-जनवरी- 1990* *प्रातःकाल 5:00 बजे*

5- *विषय- कमर कस के तैयार हो जाओ।*


🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:15


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

*परमात्मप्राप्तिके तीन मुख्य मार्ग*

(परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज )

परमात्मप्राप्ति तत्काल होनेवाली वस्तु है । इसमें न तो भविष्यकी अपेक्षा है और​ न क्रिया एवं पदार्थकी ही अपेक्षा है। परमात्मप्राप्तिके तीन मुख्य मार्ग हैं- ज्ञानयोग,​ कर्मयोग और भक्तियोग । ​भगवान् कहते हैं-
​ *योगास्त्रयो मया प्रोक्ता नृणां श्रेयोविधित्सया ।​*

​ *ज्ञानं कर्म च भक्तिश्च नोपायोऽन्योऽस्ति कुत्रचित् ॥​*

( श्रीमद्भागवत ११ । २०। ६)
'अपना कल्याण चाहनेवाले मनुष्योंके लिये मैंने तीन योग बताये हैं- ज्ञानयोग, कर्मयोग​ और भक्तियोग। इन तीनोंके सिवाय दूसरा कोई कल्याणका मार्ग नहीं है । '

1️⃣ *ज्ञानयोग (विवेकमार्ग )​*

अपने जाने हुए असत्का त्याग करना 'ज्ञानयोग' है। इसके तीन उपाय हैं-

*१* . अनन्त ब्रह्माण्डोंमें लेशमात्र भी कोई वस्तु मेरी नहीं है-ऐसा जानना ।
*२* . मुझे कुछ भी नहीं चाहिये- ऐसा जानना ।
*३* . 'मैं' कुछ नहीं है - ऐसा जानना ।

2️⃣​ *कर्मयोग (योगमार्ग )​*

बुराईका सर्वथा त्याग करना 'कर्मयोग' है। इसके तीन उपाय हैं—

*१* . किसीको बुरा न समझना, किसीका बुरा न चाहना और किसीका बुरा न करना ।
*२* . दुःखी व्यक्तियोंको देखकर करुणित और सुखी व्यक्तियोंको देखकर प्रसन्न होना ।
*३* . अपने लिये कुछ न करना अर्थात् संसारसे मिली हुई वस्तुओंको संसारकी ही सेवामें
लगा देना और बदलेमें कुछ न चाहना ।

3️⃣​ *भक्तियोग ( विश्वासमार्ग )​*

सर्वथा भगवान्‌के शरणागत हो जा
'भक्तियोग' है। इसके दो उपाय हैं-

*१* . मैं केवल भगवान्‌का अंश हूँ- 'ममैवांशो जीवलोके' (गीता १५ । ७), 'ईस्वर अंस​ जीव अबिनासी' (मानस, उत्तर० ११७ । १ ) । भगवान्‌का ही अंश होनेके नाते मैं केवल​ भगवान्‌का ही हूँ और केवल भगवान् ही मेरे हैं।भगवान्‌के सिवाय और कोई मेरा नहीं है-​ ऐसा मानना ।

*२* . क ) सब कुछ भगवान्‌का ही है अर्थात् संसारमें जो कुछ भी देखने, सुनने तथा मनन​ करनेमें आता है, वह सब भगवान्‌का ही है - ऐसा मानना ।

ख) सब कुछ भगवान् ही हैं; भगवान्‌के सिवाय कुछ भी नहीं है। 'मैं' सहित सम्पूर्ण​ जगत् उन्हींका स्वरूप है— 'वासुदेवः सर्वम्' ( गीता ७। १९ ) – ऐसा मानना ।
-
ग) एक भगवान्‌के सिवाय अन्य कुछ हुआ ही नहीं, कभी होगा ही नहीं, कभी होना​ सम्भव ही नहीं । एकमात्र भगवान् ही थे, भगवान् ही हैं और भगवान् ही रहेंगे — ऐसा मानना ।​ भक्तिसे प्रतिक्षण वर्धमान परमप्रेमकी​ प्राप्ति होती है। एक भगवान् ही प्रेमी​ और प्रेमास्पदका रूप धारण करके परमप्रेमकी लीला करते हैं। उस परमप्रेमकी​ प्राप्तिमें ही मानव जीवनकी पूर्णता है।

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:15


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:13


*"ॐ श्री परमात्मने नमः"*
*(9:22मिनट का सत्संग)*
*दिनांक:-* 4 सितबर 2002
*प्रातः*- 5 *गीता भवन*

*🙏आप संभालो अपने आप को!आप कौन हो,?आप साक्षात ईश्वर के अंश हो!डरो मत!! माया आपको वस में नहीं कर सकती🙏,*

*🏵️आपको परबस माया नहीं कर सकती!आप साक्षात परमात्मा के अंश हो!* *माया की शक्ति नहीं है कि आप पर आधिपत्य जमावे! आप माया को पकड़े हुए हो!*
*👉✓✓आप सभी कान देकर सुनो,भाई बहन सब सुनो! आप माया के बस में नहीं हो!आप हुवे हो!* *"सो माया बस भयहु गोसाई,बंद्धयो कीट मरकट की नाई"!* *माया बस हुवे हो आप! माया बस नहीं हो!*
*आप भगवान के हो!माया को आप छोड़ दो!* *बहुत अच्छा अवसर है!* *मौका है बड़ा अच्छा!*
*आपने सम्बन्ध जोड़ा है,माया से!माया आपको बस में नहीं कर सकती!✓✓*

*आप भगवान के हो!*
*"ममे वासौ जीव लोके"*
*"ईश्वर अंश जीव अविनाशी! हम साक्षात परमात्मा के हैं,फिर निशंक हो जाओ!उनके समान कोई है नहीं, होगा नहीं,हो सकता नहीं!*🏵️

*🌻निशंक ,निर्भय, निडर हो जाओ! हम भगवान के हैं! कैसे ही है,भगवान के हैं!*

*राज का सिपाही कैसा ही हो,वो वर्दी राज की है!* *इस वास्ते हम सब भगवान के हैं!* *भगवान के हैं साक्षात!जीव मात्र!ईश्वर से सम्बंध है माया से सम्बंध नहीं है!आप माया बस हुवे हो! माया ने आपके ऊपर कोई प्रभाव नहीं डाला है!* *माया आपको वस में नहीं कर सकती!आप ईश्वर के अंश हो!* *भगवान के हैं हम!*
*उसके हो!! "ईश्वर अंश जीव अविनाशी,चेतन अमल सहज सुख राशि"!*
*माया आपको वस में नहीं कर सकती!हम भगवान के हैं*🌺

*🏵️राज का सिपाही होता है,उसके गर्मी होती है, भीतर में कि मैं राज का हूं!उसका असर पड़ता है!* *दुनिया पर असर पड़ता है!* *भगवान के हैं हम,भगवान के हैं!अपने बहुत विशेष शक्ति है!आपमें विशेष पावर है! "भगवान के हैं हम"!भगवान के नहीं हो तो कुछ नहीं,फिर कोई शक्ति नहीं!*
*🙏🏻गो स्वामीजी महाराज ने कलियुग को धमकाया है!* *👉,"तूं"जानता नहीं है?*👈
*तूं भगवान "शंकर के" तीसरे नेत्र को नहीं सह सका!*
*क्या "चक्र सुदर्शन" को नहीं जानता?* *मेरी तरफ देखता है?👈*

""""""" *"मैं कौन हूं"""""""""*
*मैं"भगवान का"हूं!*
"""" *वो """"""*
*आप सब हैं!*
*जम राज को ,देखने की ताकत नहीं!* *कौन हो तुम* *हम "भगवान के हैं"! ऐसे आप हो!*
*आप अपनी तरफ ध्यान दो!* *आप बड़े घर के हो,मामूली नहीं हो!*
*आप साक्षात परमात्मा के हो!🏵️*

*🌻आप संभालो,संभालो अपने आप को! आपकी तरफ ध्यान दो,आप कौन हो?*
*याद करो याद, केवल याद करो! केवल भगवान के हैं हम!भूलो मत! मौज हो गई आनन्द हो गया!हम भगवान के हैं साक्षात!पीढ़ियां नहीं है!साक्षात बेटा है!*

""""""""" *सुना कि नहीं?""""*

*साक्षात परमात्मा के अंश!* *निर्भय ,निशंक रहो!* *भगवान के तो हम है ही!*🌻

*🏵️ आज से ही याद कर लो कि हम भगवान के हैं!हम सब भगवान के हैं!कोई नहीं पहचानता हो तो उसे कह दो कि अरे तुम क्या करते हो?भगवान के हो!*

*हम अच्छे घराने के हैं,मामूली नहीं है?* *डरो मत किसी से ही!* *डर किस बात का है? पाप करते नहीं,अन्याय करते नहीं फिर डर किस बात का?मौज रहेगी हरदम, मस्ती रहेगी!* *आनन्द हो गया!*🏵️

*[{परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के मुखारविंद से"माया आपको वस में नही कर सकती"सत्संग रूपी अमृत की वर्षा}]*
नारायण!नारायण!

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