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श्री गीताप्रेस सत्संग

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श्री गीताप्रेस सत्संग (Hindi)

श्री गीताप्रेस सत्संग चैनल एक धार्मिक समूह है जो गीता सार, उपदेश और सत्य के संदेश को बांटने का कार्य करता है। इस चैनल में आपको ध्यान में लगाने वाले विचार, पूजा-अर्चना की विधियाँ और ध्यान करने के तरीके सीखने का मौका मिलेगा। इस चैनल का मकसद उन लोगों तक सत्य और धर्म के संदेश पहुंचाना है जो ध्यान और मार्गदर्शन की तलाश में हैं। श्री गीताप्रेस सत्संग चैनल का अधिकारिक यूजरनेम 'geetapresspariwar' है और इसमें विभिन्न धार्मिक धारणाएं और सिद्धांतों पर चर्चा की जाती है। यहां आपको धर्म से जुड़ी जानकारी, संत संग, और साधना के महत्वपूर्ण तत्वों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलेगी। इस चैनल को सभी धर्मग्रंथ पढ़ने और ध्यान में लगाने के शौकीन लोगों के लिए बनाया गया है। ज्योतिष, ध्यान और आध्यात्मिक ज्ञान में रुचि रखने वाले लोग इस चैनल को फॉलो करके नए धार्मिक अनुभवों का आनंद ले सकते हैं। अगर आप भी धार्मिक ज्ञान और सत्य की खोज में हैं, तो श्री गीताप्रेस सत्संग चैनल आपके लिए सही स्थान है।

श्री गीताप्रेस सत्संग

15 Jan, 02:09


।।श्रीहरिः।।

*संतवाणी*
*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानन्दजी महाराज*
_(‘सन्त-उद्‌बोधन’ पुस्तकसे)_

दैनिक-नित्य-सत्संग कब, कैसे करना चाहिए ? प्रातःकाल । यह सर्वमान्य सत्य है कि निर्विकल्प-स्थितिमें समस्त प्रवृतियोंका अन्त होता है । जिसे निर्विकल्पता प्राप्‍त हो जाय, उसे श्रमयुक्त प्रवृत्ति अपेक्षित नहीं है । प्रवृत्तियोंकी सार्थकता निर्विकल्पतामें है । निर्विकल्प होनेपर अवस्थातीत जीवनकी ओर स्वतः प्रगति होती है । इस दृष्टिसे निर्विकल्पताके लिए समस्त प्रवृत्तियाँ की जाती हैं । मानव-सेवा-संघने मूक-सत्संगको मुख्य सत्संग माना है । उसीसे साधककी योग्यता, सामर्थ्य, रुचिके अनुसार साधनकी अभिव्यक्ति होती है । और, फिर साधन-तत्त्वसे अभिन्‍नता हो जाती है । इसी उद्देश्यकी पूर्तिके लिए सत्संग करना है । मूक-सत्संगका समय पूरा होनेपर प्रार्थना की जाय और नित्य-कर्मके रूपमें भजन-कीर्तन, यदि रुचि हो, तो किया जाय । किन्तु उसका समय १०-१५ मिनटसे अधिक न हो । विध्यात्मक साधनको सामूहिक रूप देना एक रूढ़ि डाल देना है, और कुछ नहीं । उसके अन्तमें पुनः सभी शान्त हो जायें । उसके पश्चात् यदि किसीके मनमें कोई बात उठती हो और उसपर उसे परस्पर विचार-विनिमय करना हो, तो किया जाय । बात करनेका ढंग मधुर हो, शान्त हो, आग्रह-रहित हो । तब तो विचार-विनिमय परस्पर चल सकेगा ।

श्री गीताप्रेस सत्संग

15 Jan, 01:51


*राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 साक्षात् प्रेमावतार श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹 जगत की कोई वस्तु ना हमें सुखी बना सकती है, ना दुखी बना सकती है। 🌹हमारा जो अनन्त अखंड आनंद है, उसमें जगत् की कोई अवस्था, कोई स्थिति, कोई वस्तु, कोई पदार्थ, कोई प्राणी, किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं डाल सकता। 🌹संसार की कोई स्थिति, उस स्थिति के कारण से हर्ष नहीं ला सकती। संसार का कोई प्राणी पदार्थ उसके मन में द्वेष अथवा शोच पैदा नहीं कर सकता। 🌹संसार के किसी प्राणी पदार्थ के लिए उसके मन में कोई आकांक्षा पैदा नहीं हो सकती। 🌹इस प्रकार का सर्व धर्मान परित्यागी स्वतंत्र है, वो भगवान का एकमात्र अपना है।🌹 जय जय श्री राधे 🌹🙏🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

15 Jan, 01:43


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*’(सत्संग 21.35 मिनिट का)’*

प्रवचन 17 अगस्त 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - भगवान् मेरे हैं ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य’ ’(परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें कि मैं केवल भगवान् का ही हूं और केवल भगवान् ही मेरे हैं । इतने में ही पूरी बात हो गई । ’ *केवल भगवान् का हूं ।’ ’केवल भगवान् का हूं का* तात्पर्य है कि शरीर संसार का नहीं हूं ।’ शरीर, संसार किसी के साथ रहते ही नहीं और भगवान् हर दम मेरे साथ रहते हैं । तो संसार की सत्ता नहीं है ।
*’नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत: ।’* तो असत् का भाव नहीं है और सत् का अभाव नहीं है । तो परमात्मा ही परमात्मा हैं । ’ *वासुदेव: सर्वम्* ।’ वासुदेव: सर्वम् कब तक है ? जब संसार की वासना है । वासना नहीं रहने पर केवल वासुदेव ही है । भजन, ध्यान, सत्संग, कीर्तन, स्वाध्याय यह करने से वासुदेव: सर्वम् आ जाता है । भजन है, ध्यान है, प्रार्थना है, प्रार्थना सबसे बढ़िया है । फिर नहीं करना आ जाएगा । पहले भजन, ध्यान, कीर्तन करना है । फिर न करने की योग्यता आ जाएगी । इस वास्ते प्रार्थना बहुत काम की चीज है । जप, ध्यान, सत्संग, कीर्तन करो । ये अंतरंग हैं । इस वास्ते जप, कीर्तन करो ।
देखो -
*उत्तमा सहजावस्था,*
*मध्यमा ध्यान धारणा,*
*नाम जप स्वाध्याय कनिष्ठा,*
*तीर्थ व्रत अधमा अधमा ।*
अधम से अधम तीर्थ यात्रा है, फिर जप, स्वाध्याय, फिर ध्यान धारणा । फिर सहज समाधि । फिर ’वासुदेव: सर्वम्’ । फिर केवल वासुदेव है । परमात्मा ही परमात्मा हैं । फिर मन, बुद्धि, अहंकार की आवश्यकता नहीं है । निर्ममो, निरहंकार: स शांतिमधिगच्छति । नाम जप, ध्यान, कीर्तन, सत्संग, स्वाध्याय में लगे रहो । फिर वासुदेव: सर्वम् की योग्यता आ जाएगी । अंतरंग होते जाओ । क्रिया कम कर दो । भजन, स्वाध्याय ज्यादा करो, तो सब भाई बहनों से कहना है जप - कीर्तन, सत्संग, गीता रामायण के पाठ करो, फिर क्रिया, पदार्थ छूट जाएगी । पदार्थ है ही नहीं, क्रिया है नहीं । उत्पत्ति स्थिति, उत्पत्ति स्थिति को ही पदार्थ कह देते हैं । नवधा भक्ति के बारे में समझा रहे हैं । प्रथम भगति संतन कर संगा । भगवान् शबरी से कहते हैं - सकल प्रकार भक्ति दृढ़ तोरे । भजन, ध्यान, सत्संग में लगे रहो तो वासुदेव: सर्वम् समझ में आ जाए । भगवान् राम कहते हैं मेरे से अधिक संत को समझें । मेरा ही भरोसा हो । भगवान् ने शबरी से कहा कि आप में सभी (नवधा) भक्ति दृढ़ है । शबरी को पता ही नहीं, और भगवान् कहते हैं - सकल प्रकार भक्ति दृढ़ तोरे और स्वामी जी गद्गद् हो रहे हैं । पंपा सरोवर का जल शबरी के पैर धोने से पवित्र हो गया । और भगवान् ने जल में पैर धोए तो कुछ हुआ ही नहीं । भगवान् के भक्तों की महिमा भगवान् जानते हैं । भगवान् भक्तों को अपने से बड़ा बनाते हैं । हम भगवान् के हैं, यह दृढ़ता से मान लो । तुलसीदास जी कहते हैं - राम जी के होकर नाम जपो और कुसमाज को तजो । सब ठीक हो जाएगा ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

15 Jan, 01:43


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

15 Jan, 01:43


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

जैसे क्रिया का अंत होता है, ऐसे त्याग का अंत नहीं होता । त्याग का फल भी अनंत होता है ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ५५*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

15 Jan, 01:43


॥ श्रीहरिः ॥

*याद रखो - मनुष्यकी एक बड़ी कमजोरी है- उसका चिरस्थायी 'असंतोष'।*

*इसीसे वह सदा दुःखी रहता है। तृष्णाकी कोई सीमा नहीं है; जितना मिले, उतनी ही तृष्णा बढ़ती है। भोगोंकी प्राप्तिसे तृष्णाका अन्त नहीं होता- वरं ज्यों-ज्यों भोग प्राप्त होते हैं, त्यों-ही-त्यों तृष्णाका दायरा भी बढ़ता ही जाता है।*

*भोग भोगनेकी शक्ति चाहे नष्ट हो जाय, परंतु तृष्णा नहीं नष्ट होती। तृष्णा बड़े-से-बड़े धनवान्, ऐश्वर्यवान्‌को भी सदा दरिद्र बनाये रखती है; उसमें कभी जीर्णता नहीं आती, उसका तारुण्य सदा ही बना रहता है।*

*याद रखो - जिसका मन प्रत्येक परिस्थितिमें संतुष्ट है, वही परम सुखी है। वस्तुतः संतोष ही वह परम धन है, जिसे पाकर मनुष्य सदा धनी बना रहता है; कोई भी अवस्था उसे दीन-दरिद्र नहीं बना सकती।*

*संतोषसे प्राप्त होनेवाला जो महान् पद है, वह बड़े-से-बड़े सम्राट्के पदसे भी ऊँचा और महान् है।*

–श्रद्धेय श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार (भाईजी)
–‘परमार्थ की मंदाकिनी’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Jan, 16:32


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Jan, 16:32


*।।राम-राम।।*
🌷 परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजेनित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।

🌷प्रवचन के बाद
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज प्रवचन की विशेष बातों पर व्याख्या व शंकाओ का समाधानभी करते हैं।

🌷 रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।


🌷तेईसवाँ दिन 1-दिनांक-15-01-25
2-वार-बुधवार।
3-गीतापाठ-पाँचवा अध्याय श्लोक संख्या 11 से 20 तक।

*4-दिनांक-13-10-93 प्रातः5:00-बजे*

*5- रुपयों से वस्तु श्रेष्ठ।*

🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Jan, 09:58


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Jan, 09:55


*राम राम*
हां महाराज हां महाराज
हां महाराज हां महाराज
अर्जुन कहहि अच्युत अब मोरा
हां महाराज हां महाराज
नाशेहू मोह अनुग्रह तोरा
हां महाराज हां महाराज
सूरति मोहि लभिगत संदेहा
हां महाराज हां महाराज
पाल्लिहू तोर वचन सस्नेहा
हां महाराज हां महाराज
समता माझ भई प्रिति मेरी
हां महाराज हां महाराज
मिटी कामना जूग जूग केरी
हां महाराज हां महाराज
हातव विमुख अनत भटकावे
हां महाराज हां महाराज
सन्मुख होयी परम सुख पावा
हां महाराज हां महाराज
होतो सदा शरण म्ह॔ तोरी
हां महाराज हां महाराज
याद न रही भूल अति मोरी
हां महाराज हां महाराज
मिटी असत जग के प्रतिती
हां महाराज हां महाराज
जाग्रत भयी चरण तब प्रिति
हां महाराज हां महाराज
जानेहू निज स्वरुप अविनासी
हां महाराज हां महाराज
जङता मूल देह बुद्धी नाशी
हां महाराज हां महाराज
मो पर किरपा भयी अधिताई
हां महाराज हां महाराज
सब दिशी आप ही आप लखाहि
हां महाराज हां महाराज
जो कुछ कहो करु मे स्वामी
हां महाराज हां महाराज
नाथ नमामि नमामि नमामि
हां महाराज हां महाराज
जय श्रीकृष्ण पार्थ धनु धारी
हां महाराज हां महाराज
नर नारायण जग हित कारी
हां महाराज हां महाराज
यह गीता हरिःमुख की बानी
हां महाराज हां महाराज
लखी बड बड आचार्यज ज्ञानी
हां महाराज हां महाराज
लिखतन थके इन्ही पर टिका
हां महाराज हां महाराज
दरस हि जो पथ लागई निका
हां महाराज हां महाराज
बन्दउ ताही सकल आचार्यज
हां महाराज हां महाराज
जग हित कियउ बहुत बड कारज
हां महाराज हां महाराज
देखहि बृहद ग्रंथ जब दोहू
हां महाराज हां महाराज
बाकी पठन रहहि नही कोउ
हां महाराज हां महाराज
*एक नाम साधकसंजीवनी*
*हां महाराज हां महाराज*
*दूसर जानेउ तत्व विवेचनी*
*हां महाराज हां महाराज*
*मो कहू समाधान जस होवर्ई*
*हां महाराज हां महाराज*
*बरणउ पक्ष पात नही कोई*
*हां महाराज हां महाराज*
*पूनि निज प्रभु कहहू करउ प्रणामा*
*हां महाराज हां महाराज*
*जाहि किरपा पाउ विश्रामा*
*हां महाराज हां महाराज*
*जय श्रीकृष्ण पार्थ धनुधारी*
*हां महाराज हां महाराज*
*नर नारायण जग हितकारी*
*हां महाराज हां महाराज*
*हां महाराज हां महाराज*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Jan, 05:19


राम।।🍁

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

*..आपका लोक-परलोक सब सुधर जायगा..*

जैसे बालक माँ को मानता है, ऐसे आप भगवान् को आप मान लो। इससे आपके जीवन में फर्क पड़ेगा, भीतर से एक बड़ा सन्तोष होगा, शान्ति मिलेगी।

आप रात-दिन नामजप करो और भगवान् से बार-बार कहो कि 'हे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं'। पाँच मिनटमें, सात मिनटमें, दस मिनटमें, आधे घण्टेमें, एक घण्टेमें कहते रहो कि 'हे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं'। एक घण्टेसे अधिक समय न निकले। निहाल हो जाओगे ! इसमें लाभ-ही-लाभ है, हानि है ही नहीं। यह सभीके लिये बहुत बढ़िया चीज है। आपका लोक और परलोक सब सुधर जायगा। भगवान् सुग्रीवसे कहते हैं -
*सखा सोच त्यागहु बल मोरें।*
*सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥*
(मानस, किष्किन्धा० ७।५)

इस तरह भगवान् सब काम करनेको तैयार हैं। आप विचार करके देखो, भगवान् ने मनुष्यजन्म दिया है, सत्संग दिया है, सत्संगमें अच्छी-अच्छी बातें दी हैं तो यह हमें उनकी कृपासे मिला है, अपने उद्योगसे नहीं मिला है। इतना काम जिसने किया है, वही आगे भी काम करेगा ! हमारे द्वारा प्रार्थना किये बिना, माँगे बिना जब भगवान् ने अपने-आप इतना दिया है, तो फिर 'हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं' ऐसी प्रार्थना करनेपर क्या वे हमें छोड़ेंगे ? अपने-आप कृपा करेंगे ! जरूर कृपा करेंगे !
*राम !....................राम!!....................राम !!!*

परम् श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदास जी महाराज, *लक्ष्य अब दूर नहीं !* पृ०-५८

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Jan, 05:19


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“प्रभु के लिये उपयोगी होना” : १५
--- :: x :: ---

* जिसने अपने ही में से सभीका निर्माण किया है, उससे निर्मित समस्त विश्व उसीके एक अंश-मात्रमें है | इस दृष्टिसे हम सब उन्हींमें हैं और वे सभीमें होते हुए भी सभीसे अतीत भी हैं |

उनकी महिमाका कोई वारापार नहीं है | उनकी महिमाकी विस्मृति ने ही असमर्थ साधकमें निराशा उत्पन्न की है |

* यदि साधक उनकी महिमामें अविचल आस्था कर, सब प्रकारसे उन्हींका हो जाय, तो बड़ी ही सुगमता-पूर्वक लक्ष्यको प्राप्त कर कृतकृत्य हो सकता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-४२-४३, मानव सेवा संघ वृन्दावन --281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 16:11


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 16:11


*।।राम-राम।।*
🌷 परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजेनित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।

🌷प्रवचन के बाद
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज प्रवचन की विशेष बातों पर व्याख्या व शंकाओ का समाधानभी करते हैं।

🌷 रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।


🌷बीसवाँ दिन 1-दिनांक-12-01-25
2-वार-रविवार।
3-गीतापाठ-चौथा अध्याय श्लोक संख्या 21 से 32 तक।

*4-दिनांक-10-10-93 प्रातः5:00-बजे*

*5- प्राप्त है।*
🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 15:59


Document from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 15:59


. ।।श्री हरि।।
परम श्रद्धेय 'भाई जी' श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार का प्रवचन
*धन की प्रभाव हीनता, नाम जप की महत्ता, भगवत कृपा पर विश्वास—*
(ट्रैक संख्या - ३२३)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 10:26


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 10:25


राम राम
हे नाथ !
नाथ थारे शरणे आयो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी ओ
नाथ थारे शरणे आयो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
बोझो सभी उतरयो मन को
दुःख बी नसायो जी
चिन्ता मिटी बङे चरणा गो
सहारो पायो जी
चिन्ता मिटी बङे चरणागो
सहारो पायो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
सोच फिकर अब सारो
थारे उपर आयो जी
सोच फिक्र सब थारो
थारे उपर आयो जी
मे तो अब निश्चिंत हुयो
अंतर हरसायो जी
मे तो अब निश्चिंत हुयो
अंतर हरखायो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
जस अपजस सब थारो
मे तो दास कुहायो जी
जस अपजस सब थारो
मे तो दास कुहायो जी
मन भवंरो थारे चरणकमल मे
जा लिपटायो जी
मन भवंरो थारे चरणकमल मे
जा लिपटायो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
नाथ थारे शरणे आयो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
जचे जिस तरहा खेल खिलाओ
थे मन चायो जी
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 10:24


ॐ श्री परमात्मने नमः

प्रश्‍न‒‘वासुदेवः सर्वम्’ के अनुभवमें बाधा क्या है ?

*स्वामीजी‒बाधा है‒भोगेच्छा, जो खुदमें है । गीतामें ‘काम’ को खुदमें बताया है‒‘यो बुद्धेः परतस्तु सः’ (गीता ३ । ४२)

अनुभव न हो तो भी मान लें कि सब कुछ वासुदेव ही है; क्योंकि पहले भी परमात्मा थे, पीछे भी परमात्मा रहेंगे, फिर बीचमें दूसरा कहाँसे आया ? इसको समझनेके लिये बाजरीका दृष्टान्त बढ़िया है । परन्तु ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’‒इसको समझनेमें जोर नहीं लगाना है, प्रत्युत यह तो स्वतः-स्वाभाविक है‒ऐसे उदासीनतापूर्वक स्थिति करना है कि वास्तवमें है ही ऐसा । स्थूल-सूक्ष्म-कारणशरीर भी ‘वासुदेवः सर्वम्’ में ही हैं । ऐसा करके ‘चुप’ हो जायँ । विचारको पकड़े न रखें, प्रत्युत विचार करके फिर उसे भी छोड़ दें और ‘चुप’ हो जायँ ।
इसमें दो बातें खास हुईं‒एक तो शरीरको भी ‘वासुदेवः सर्वम्’ में देखें और एक ‘चुप’ हो जायँ । हमारी समझमें नहीं आया, पर है तो वासुदेव ही‒ऐसे मान लें । जोर लगाकर समझनेकी अपेक्षा मानकर ‘चुप’ होना बढ़िया है । ‘चुप’ होनेसे ‘है’ में स्थिति हो जायगी और अहम् मिट जायगा ।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
‘रहस्यमयी-वार्ता’ पुस्तकसे

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 10:22


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 9 अक्टूबर 1993 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - त्याग क्या है ?’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन’ ’जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि हमने एक बात सुनी संतों से कि जाने हुए असत्य का त्याग करें । अगर जाने हुए असत्य का त्याग भी नहीं करोगे तो क्या त्याग करोगे ? जितना भी देखने में, सुनने में, समझने में आता है, भगवान के सिवाय, परमात्म तत्व के सिवाय, असत्य है । परमात्मा हैं - इसमें मतभेद है कि सगुण है, कि निर्गुण है । साकार है कि निराकार है ? पर है (इसमें मतभेद नहीं है) । तो उस असत्य का त्याग क्या है ?- कि असत्य को चाहे ही नहीं । धन, मकान, जमीन, संपत्ति इनको महत्व देते हैं, यह बाधक है ! इनको महत्व दे दिया, अपने काम में आएगा, यह नहीं है । असत्य विभाग असत्य के लिए ही है । असत्य को महत्व देकर के दुर्गुण, दुराचारोंमें लग जाते हैं, यह गलती की बात है । जैसे धन है यह खर्च करने से काम आता है । *धन होने से चोर डाकू से भी डर लगता है । तो क्या इसका नाश कर दें ? ऐसा नहीं है । इसका सदुपयोग करके, खर्च करो । चोर डाकू से रक्षा करो ।*

*समय का सदुपयोग करो । समय ऐसी चीज है यह निरंतर खर्च हो रहा है । भजन करो,* *काम करो, नींद लो, यह (समय) तो निरंतर जा रहा है ।* यह जीवन का आधार है पर यह जा रहा है निरंतर । *दो खास काम हैं - भगवान् को याद करना और दूसरों को सुख पहुंचाना* । अपने तन, मन, धन विद्या, से दूसरों को सुख पहुंचाना है ।
यह तन कर फल विषय न भाई । दूसरों की सेवा करना और भगवान् को याद करना । पशु, वृक्ष से सेवा ले सकते हैं, पर वह सेवा कर नहीं सकते । सेवा करने का विवेक मनुष्य में है । कल्याण करने के लिए समय दिया है, समझ दी है, सामग्री दी है । जन्म मरण का चक्कर इस मनुष्य शरीर से शुरू हुआ है और इस मनुष्य शरीर में ही मिटेगा । अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने से जन्म मरण शुरू हुआ है । और कब मिटेगा ? जो समय और स्वतंत्रता मिली है, उस समय, स्वतंत्रता का सदुपयोग करें । तो जन्म मरण मिटेगा ।
ऊंच नीच योनि में जाने का कारण गुणों का संग है । यह समझ यहां ही (मनुष्य शरीर) में ही है । भगवान् गुणातीत हैं । संत महात्मा शास्त्र कहता है, कल्याण की सामग्री मिली है, पूरी की पूरी । पाप अन्याय करता है स्वाधीनता से और फल भोगता है परतंत्रता से, तो यह कैद है । करते हैं मर्जी से भोगना पड़ता बिना मर्जी से । कैद में मर्जी से थोड़े जाते हैं ? *काम करते हैं मर्जी से, कैद में जाते हैं बिना मर्जी से ।* यह मौका अपने को कल्याण करने के लिए मिला है । सावधानी ही साधना है । दिल में जाग्रत रहिए बंदा ।
सपने में भी किसी जीव का अपकार न हो जाए । डरते रहो यह जिंदगी बेकार न हो जाए ।
डरते रहो मानो सावधान रहो । गुरु डर, जगत् डर,.... । गुरु से, जगत से, परमात्मा से डरते रहो । मानो इनकी आज्ञा में रहो । नहीं तो फल से बच नहीं सकते । निष्काम भाव से सेवा करो और भगवान् को पुकारो । दूसरों को सुख पहुंचाया जावे, तो दूसरों को जो दु:ख दिया है, वह मिट जाएगा । जितने से आपका जीवन जीवन निर्वाह हो जाए उतना ही आपका है । संन्यासी की बड़ी महिमा बताई है; क्योंकि वह त्याग करता है । जैसे सन्यासियों का कल्याण होता है, ऐसे गृहस्थियों का भी कल्याण हो, इस संदर्भ में युधिष्ठिर जी से प्रश्न किया तो युधिष्ठिर जी ने कहा कि जितना जीवन निर्वाह हो जाए उतना ही अपना है । बाकी बचा हुआ अपना नहीं है । तो किसका है, यह पता नहीं । पर जो जरूरतमंद दिखे, यह उनका है । उनको दे दो । तो सेवा करो और भगवान् को याद करो ।

नारायण ! नारायण !!नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 08:07


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*( ’सत्संग 20.56 मिनिट का)’*

प्रवचन 13 अगस्त 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

*’विषय - सत्य को स्वीकार करें* ।’

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी’ ’की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि इतनी सरल बात है । एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें कि मेरे केवल भगवान् हैं । मैं केवल भगवान् का हूं । इतने में पूर्ण बात हो गई । एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें कि केवल मेरे एक भगवान् ही हैं और मैं केवल एक भगवान् का ही हूं । तो दृढ़ता पूर्वक मान लें । गीता कहती है, रामायण कहती है, उपनिषद कहता है, केवल एक बार स्वीकार कर लो दृढ़ता पूर्वक । बात यही है । हम स्वीकार करें तो, स्वीकार न करें तो, बात तो यही है कि मैं भगवान् का हूं और भगवान् ही मेरे हैं । रामायण में, गीता जी में यही है । उपनिषदों में यही बात है । अमृत्स्य पुत्रा: । दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें । बात ऐसी ही है । स्वीकार कर लें कि मैं सर्वकाल में परमात्मा का ही हूं और सर्व काल में परमात्मा ही मेरे हैं ।


’ *ईश्वर अंश जीव अबिनाशी ।’*
*’चेतन अमल सहज सुख राशि* ।।’
दूसरा - शरीर, संसार साथ रहा नहीं, रहेगा नहीं, रह सकता नहीं । परमात्मा सब में हैं । अभी हैं, अगाड़ी रहेंगे । अलग हो सकते ही नहीं । जैसे आपकी कन्या वर को स्वीकार कर लेती है । ऐसे मैं भगवान् का हूं, और भगवान् मेरे हैं, केवल दृढ़ता से । भगवान् कहते हैं मैं ही हूं । मेरे सिवाय कुछ नहीं है । भागवत में आया है गीता में भी यही आया है, रामायण में भी यही आया है । उपनिषदों में भी यही आया है । पापी से पापी हो, कसाई से कसाई हो । बच्चे, बूढ़े, बालक, सब मान सकते हैं कि मैं ही हूं (भगवान् ही हैं) मेरे सिवाय कुछ नहीं है । एक बार दृढ़ता पूर्वक । ’ *सद्सच्चाहमर्जुन* ’ । मैं ही हूं, मैं ही हूं । सत् -असत् मैं ही हूं । एक ही है, एक ही है । कितना सुगम है, कितना सरल है, केवल स्वीकार कर लेना है । मेरे सिवाय कुछ है ही नहीं । मनुष्य जन्म सफल हो जायेगा । गीता, रामायण, भागवत, उपनिषद, शास्त्रों ने, संतों ने यही कहा है । वासुदेव: सर्वम् । मैं ही हूं, मेरे सिवाय कुछ नहीं है । अमृत और मृत्यु मैं ही हूं । सत् असत् भी मैं ही हूं । कोई कमी रह जाएगी तो मिट जाएगी । सत् मैं ही हूं, असत् मैं ही हुं । संत महात्मा भी यही कहते हैं । सब जग ईश्वर रूप है, भलो बुरो नहीं कोई ..... । एक ही बात है, दृढ़ता पूर्वक मान ले। भागवत, गीता, रामायण, उपनिषद को छोड़कर कहां जाएंगे ? *’वासुदेव: सर्वम्* ’ । सुख आवे, दु:ख आवे, अनुकूल आवे, प्रतिकूल आवे । सब वे ही हैं । हम चाहते हैं तो वे ही हैं, नहीं चाहे तो भी वे ही हैं । वासुदेव: सर्वमिति स: महात्मा सुदुर्लभ । सर्वम् वासुदेव: । कितनी बढ़िया बात है । यह मेरी तरफ से बात नहीं है । गीता, रामायण, भागवत, उपनिषदों की बात है । अपने घर की बात मैंने नहीं कही । गीता, रामायण, भागवत, उपनिषद की बात कही है । अनुकूल से अनुकूल, प्रतिकूल से प्रतिकूल आवे वे ही हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 08:07


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 08:07


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

वृत्ति वास्तव में परमात्मा में ही रहती है, पर उसका मुख संसार की तरफ रहता है ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ५४*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Jan, 05:17


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“प्रभु के लिये उपयोगी होना” : १२
--- :: x :: ---

* अब विचार यह करना है कि जो मौजूद है, उससे दूरी, भेद, भिन्नता क्यों प्रतीत होती है?

इस सम्बन्धमें विचार करनेसे यह स्पष्ट विदित होता है कि जब साध क अपने लक्ष्यको मिली हुई वस्तु, योग्यता सामर्थ्य के द्वारा प्राप्त करना चाहता है,जो उसे विश्व-सेवाके लिये मिली हैं, तब लक्ष्यसे दूरी, भेद, भिन्नता प्रतीत होती है |

यद्यपि जो सर्वत्र, सर्वदा है उससे स्वरूपसे दूरी हो ही नहीं सकती, परन्तु मिले हुए शरीर आदि वस्तुओंका आश्रय लक्ष्यसे विमुख कर देता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-४२, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 10:14


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 10:14


*राम राम*

*उन संतो की बानी*
सुन मन उन संतो की बानी
सुन मन उन संतो की बानी
*उन संतो की बानी*
उन संतो की बानी
सुन मन उन संतो की बानी
*सुन मन उन संतो की बानी*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*मानुस जेसे मानुस दरसे*
*मानुष जेसे मानुष दरसे*
*कोन लखे वाको प्राणी*
*कोन लखे वा को प्राणी*
*चाह नही चिन्ता नही मन मे*
*चाह नही चिन्ता नही मन मे*
*सबसे बढ़कर दानी*
*सबसे बढ़कर दानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*सुन मन उन संतो की बानीं*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*राग न द्वेष न लेश किसी से*
*राग न द्वेष न लेश किसी से*
*चाल चले मस्तानी*
*चाल चले मस्तानी*
*हरि:सुमिरण स्यू हिवङो उमङे*
*हरिःसुमिरण स्यू हिवङो उमङे*
*संत कहो चाहे ज्ञानी*
*संत कहो चाहे ज्ञानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*ओ चमक उठे जिन्दगानी*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*स्वार्थ छोङ जगत की सेवा*
*स्वार्थ छोङ जगत की सेवा*
*सुमिरण सारंग पानी*
*सुमिरण सारंग पानी*
*आदर मान करे ओरन का*
*आदर मान करे ओरन का*
*बन रहे आप अमानी*
*बन रहे आप अमानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*क्या जाने विष्यन सुख भोगी*
*क्या जाने विष्यन सुख भोगी*
*मोह माया लपटानी*
*मोह माया लपटानी*
*जाने सोही जन प्रभु का प्यारा*
*जाने सोही जन प्रभु का प्यारा*
*प्रभु मे सुरता समानी*
*प्रभु मे सुरता समानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*करत है चोट कलेजे भीतर*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*चमक उठे जिन्दगानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
*सुन मन उन संतो की बानी*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


*

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 10:14


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 3 अक्टूबर 1993 प्रातः 5:00 बजे ।

*’विषय - मर रहे हैं हम ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है । श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि शास्त्रों में अनेक तरह का वर्णन है तो उस वर्णन से अपनी दृष्टि में शास्त्रों की जो वो प्रक्रिया नहीं कहता हूं । उसके द्वारा मनुष्य को बोध कैसे हो जाए ? उस दृष्टि से सार सार बात कहता हूं । जैसे कि लोगों के समझ में यह बैठी हुई बात है कि हम जी रहे हैं । यह झूठी बात है । असत्य से सत्य की प्राप्ति नहीं होती । तो हम जी रहे हैं कि मर रहे हैं ? इसको आप समझें ? जैसे हम जन्मे हमारी उम्र लंबी थी । ज्यों ज्यों बड़े हुए उम्र कम हो गई । मानो 100 वर्ष की उम्र थी, 5 वर्ष चले गई तो 95 वर्ष ही बची । तो मर रहे हैं कि जी रहे हैं ? शास्त्र को पढ़ लेते हैं, सुन लेते हैं, पर अनुभव नहीं होता । तो हमें अपनी तरफ से देखना चाहिए कि हम मृत्यु की तरफ जा रहे हैं । कैसी ही परिस्थिति हो, शरीर जाने का प्रवाह, मरने का प्रवाह ज्यों का त्यों है । यह निरंतर मर रहा है । एक याद रखना है, एक जागृति है । जैसे हम जोधपुर में सूरसागर में हैं, तो इसके लिए एक भी माला नहीं जपी कि सूरसागर में हैं । पर जागृति है कि हम सूरसागर में हैं । दूसरी बात संयोग अनित्य है । योग नित्य है । पहले ही पहले अपना वियोग था और अंत में वियोग ही होगा । फिर संयोग होगा ही नहीं । तो संसार मात्र के साथ वियोग हो रहा है निरंतर । और चाहते हैं संयोग बना रहे, तो क्यों चाहते हैं कि इसको जाना नहीं है ? यह दूसरी बात कही, पर बात वही है ।

मैं अपनी तरफ से अच्छी बात कहता हूं । वियोग होता है तो इसका अनुभव रहने वाले को होता है । जैसे यहां से कई गए, तो उन जाने वालों को रहने वाला ही जान सकता है । आप वियोग को जानते हैं, तो आप का स्वयं का वियोग नहीं होता । आपकी मन, बुद्धि और शरीर का वियोग हो रहा है, पर आपका वियोग नहीं हो रहा है । तो आप रहते हैं । रुपया मकान बना रहे, ये बना रहे, यह बना नहीं रहता है । यह तो जा रहा है । यह बात हम समझ सकते हैं । गाय बहुत पवित्र होती है । पवित्र होते हुए भी उसको समझा नहीं सकते । बड़े बड़े धनी और देवता इसको समझ सकते नहीं; क्योंकि उनकी दृष्टि भोग और संग्रह में लगी रहती है । हम सत्संगी हैं । हम समझ सकते हैं कि संसार का वियोग निरंतर हो रहा है । तो वियोग होने वाले की क्या चिंता करते हो ? परमात्मा पहले भी थे हमारे साथ, अब भी हमारे साथ हैं, और आगे भी परमात्मा साथ रहेंगे - तो गीता ने इसको योग कहा है । संयोग के दु:खों के वियोग का नाम योग है । समत्वं योग उच्यते । कि बाकी जो बचेगा “सम “ वह भी योग है । संसार तो नाशवान् है और परमात्मा अविनाशी है । इसको बताने का ये तरीका है । युधिष्ठिर जी महाराज ने ये ही आश्चर्य बताया - कि निरंतर आदमी जा रहा है । फिर भी सोचता है कि यही रहूंगा । मकान सीमेंट, लोहा देकर बनाता है, कि पक्का रहे । पीढ़ियों तक चले । यहां ही ख्याल है, अगाड़ी का विचार करो ? संत महात्मा इस पर विचार करते हैं, अगाड़ी क्या होगा ?
’ *तुलसी सोई नर चतुर है जो राम भजन लवलीन ।’*
*’पर धन पर मन हरण को वैश्या भी प्रवीण ।’*
वाह-वाह कर ली, यह क्या काम आवेगा ? पर धन पर मन को हरण कर लिया तो ये तो वैश्या भी करती है । तो दूसरे के मन को धन को हरण कर लिया तो क्या किया ? वैश्या की पदवी प्राप्त कर ली । तो इस तरफ (कल्याण की तरफ) ख्याल रखना चाहिए । संयोग वियोग में वियोग नित्य है और परमात्मा का योग नित्य है - यह गीता कहती है ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 05:29


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 05:29


*"ॐ श्री परमात्मने नमः"*
*(15:17 मिनट का सत्संग)*
*[{ गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक - सीमा में असीम प्रकाश पृष्ठ -106 एवं सत्संग का चमत्कार पुस्तक पृष्ठ -,51, 52 में और कल्याणकारी संत वाणी पुस्तक पृष्ठ - 47/38 में)}]*

*दिनांक:-* 17 अप्रैल 1999
*प्रातः*- 9 *राम कृपा - श्याम - कृपा, कानपुर*

*🙏🏻सब ठाकुरजी का, पर ठाकुरजी हमारे🙏🏻*

*🏵️एक सेठ था!उसके दर्शन करने के लिए संत गए, कि वो भगवान का भक्त है!जाकर नमस्कार किया!*
*संतो ने पूछा ये मकान किसका है?* *कि ये मकान ठाकुरजी का है,महाराज,भगवान का है!* *घोड़ा गाड़ी,मोटर,गाएं,बछड़े,बाल बच्चे खेल रहे थे,ये किसके है?""" भगवान के हैं!* *स्त्री - पुत्र आदि,,,सब भगवान के हैं!* *उपर था मंदिर!तो पूछा कि ये मंदिर,उसमे सोने के चांदी के बर्तन पड़े ,ठाकुर जी के गहना पहना है,ये किसके हैं, कि ठाकुर जी के!* *""और ये ठाकुरजी""* *🙏🏻कि ये मेरे हैं🙏🏻*
*और तो सब ठाकुरजी का,ठाकुरजी मेरे!* *सबके बीच में ठाकुरजी है,अब विष (जहर) नहीं चढ़ेगा!अभिमान नहीं होगा!भगवान हमारे हैं!*
*हमारे तो आफत ही मिट गए,सब ही! अब तुम्हारी मर्जी आवे जहां रखो महाराज!तुम्हारी चीज है!अपने खुश रहे, प्रसन्न रहें! "जीवन मुक्त हो जाओगे आप,जीवन मुक्त"! इतनी विलक्षण बात है!जिसको "जीवन - मुक्त" कहते हैं! "भगवान के प्यारे भक्त" कहते हैं, वो आप हो जाओगे!*🏵️
*🌺दो बात याद रखो!काम धंधा सब अपने लो और आराम दूसरों को दो!* *काम धंधा तो मैं करूं ये लेलो और चीज वस्तु उनको देदो! ये दो बात कर लो, आप निहाल हो जाओगे!*
*✓✓पांच बात हुई:-----*
*(1),हम भगवान के हैं!*
*(2),भगवान के दरबार में रहते हैं!*
*(3),भगवान का प्रसाद पातें हैं!*
*(4),भगवान का ही काम करते हैं* *और*
*(5),भगवान के प्रसाद से भगवान के जनों की सेवा करते हैं!*
*कैसी मौज हो गई!*
*हमारा कुछ है ही नहीं!सब ठाकुरजी का है!* *ठाकुरजी के मंदिर में रहने का महात्म!* *भगवान का होकर रहने का महात्म!*✓✓🌺
*🏵️हमारे एक "कसेराजी थे, जय दयाल जी"!* *वो कहते कि हमारा जनम हुआ ही नहीं!जनम तो भगवान से बाहर निकले तब होवे! हम तो पेट में हैं भगवान के! हम तो गर्भ में ही रहते हैं! जनम हमारा हुआ ही नहीं! बाहर निकले ही नहीं हम!*
*हरदम भगवान में ही रहते हैं,भगवान का काम करते हैं!आनन्द करते हैं! आनन्द आनन्द तो हमारा और काम है सब, भगवान का!*
*✓✓चिंता दीन दयाल को,मो मन सदा आनन्द!कैसा काम बढ़िया हो गया!मौज हो गई!✓✓*🏵️
*🌻 जो बात मेरे कहने की मन में थी,वो बात भी सुनादी! सज्जनों सच पूछो तो "आज निहाल हो गए"!हमारे कोई काम रहा न धंधा रहा! अब चाहे कुछ भी हो जाए , हमें क्या मतलब?* *हमारी है ही नहीं चीज! घाटा - नफा सब भगवान का!*🌻
*(कीर्तन):--* *11:55 मिनट से --* *म्हे तो म्हारे रामजी का, रामजी हमारा रे"""""*

*[{परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के मुखारविंद से "सब ठाकुर जी का,ठाकुर जी मेरे हैं "सत्संग रूपी अमृत का पान करें}]*
नारायण!नारायण!

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 05:28


राम।।🍁
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संसार का आश्रय कैसे छूटे ?
( पोस्ट 8 )
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गत पोस्ट से आगे ......
संसार से कुछ भी लेने की इच्छा न रखे, तो भी मन में ‘यह अपना है’ – ऐसा भाव है तो यह भोग है | कारण कि संसार से अपनापन छूटता है तो दुःख होता है | संसार से अपनापन टिकनेवाला नहीं है | हम शरीर को अपना मानते हैं तो क्या उसके साथ हमारा सम्बन्ध सदा बना रहेगा ? शरीर बना रहे – यह इच्छा ही मनुष्य को तंग कर रही है | शरीर सदा रहनेवाला तो है नहीं, पर वह ‘मेरा है’ – इस भाव से एक सुख मिलता है, यह सुख ही आफत में डालने वाला है | यह साधक के काम की बहुत मार्मिक बात है |
यह संसार सब-का-सब छूटने वाला ही है; परंतु ऐसा जानते हुए भी इसको छोड़ने में असमर्थता मालूम देती है | पर इस असमर्थता, कठिनता के आगे हार मत स्वीकार करो | घबरा जाओ तो भगवान् से प्रार्थना करो | चलते-फिरते कहो कि ‘हे नाथ ! क्या करूँ ! मेरे से तो कुछ बनता नहीं |’ जितना संयोगजन्य सुख लिया है, उससे सवा गुणा अधिक दुःख हो जाय तो संसार से माना हुआ सम्बन्ध छूट जायगा | इसलिये संसार में दुःख के समान उपकारी कोई है ही नहीं | पर वह दुःख भीतर से होना चाहिये | परिस्थितिजन्य दुःख बाहर से आता है | पुत्र नहीं है, धन नहीं है, मान नहीं है, यह नहीं है, वह नहीं है – ये सब बाहर के दुःख हैं | ये नकली दुःख हैं, असली दुःख नही है | असली दुःख भीतर से होता है | अपनी वास्तविक स्थिति नहीं हो रही है, भगवान् से प्रेम नहीं हो रहा है, भगवान् के दर्शन नहीं हो रहे हैं, संसार का आश्रय नहीं छूट रहा है – इस प्रकार भीतर से जो दुःख होता है, जलन होती है, उसको भगवान् सह नहीं सकते |
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शेष आगामी पोस्ट में |
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदास जी महाराज की पुस्तक *कल्याणकारी प्रवचन* पुस्तक कोड ४३६ द्वारा प्रकाशित गीताप्रेस, गोरखपुर |
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श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 05:28


राम।।🍁

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

*..अच्छा और खराब स्वयं होता है..*

आप कहते हैं कि मन बड़ा खराब है, पर वास्तवमें मन अच्छा और खराब होता ही नहीं। अच्छा और खराब स्वयं ही होता है। स्वयं अच्छा होता है तो संकल्प अच्छे होते हैं और स्वयं खराब होता है तो संकल्प खराब होते हैं। अच्छा और खराब ये दोनों ही प्रकृतिके सम्बन्धसे होते हैं। प्रकृतिके सम्बन्धके बिना न अच्छा होता है और न बुरा होता है। जैसे सुख और दुःख दो चीज हैं, पर आनन्दमें दो चीज नहीं हैं अर्थात् आनन्दमें न सुख है, न दुःख है। ऐसे ही प्रकृतिके सम्बन्धसे रहित तत्त्वमें न अच्छा है, न बुरा है। इसलिये अच्छे और बुरेका भेद करके राजी और नाराज न हों।

संकल्प आयें अथवा जायँ, उसमें पहलेसे ही यह विचार कर लें कि वास्तवमें संकल्प आता नहीं है, प्रत्युत जाता है। भूतकालमें हमने जो काम किये हैं, उनकी याद आती है अथवा भविष्यमें कुछ करनेका विचार पकड़ रखा है, उसकी याद आती है कि वहाँ जाना है, वह काम करना है आदि। इस तरह भूत और भविष्यकी याद आती है, जो अभी है ही नहीं। वास्तवमें उसकी याद आ नहीं रही है, प्रत्युत स्वतः जा रही है। मनमें जो बातें जमी हैं, वे निकल रही हैं। अतः आप उससे सम्बन्ध मत जोड़ें, तटस्थ हो जायँ। सम्बन्ध नहीं जोड़नेसे आपको उन संकल्पोंका दोष नहीं लगेगा और वे संकल्प भी अपने-आप नष्ट हो जायँगे; क्योंकि उत्पन्न होनेवाली वस्तु स्वतः नष्ट होती है- यह नियम है।

*राम !....................राम!!....................राम !!!*

परम् श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदास जी महाराज, *लक्ष्य अब दूर नहीं !* पृ०-४९

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 02:26


*।।श्रीहरि:।।* 💐

*प्रश्न* - मैलापन अच्छा लगता है, *रागसे घृणा नहीं होती?*

*उत्तर*- खटकती नहीं इसीलिये पड़ी है, *खटकनेके बाद पीछे कितनी देर रहे।*

काँटा चुभे तो कितनी देर रहे। *तुरन्त सूई मँगाओगे।* कहा अभी अँधेरा है सुबह निकालना, *रातभर नींद नहीं आयेगी अभी दीपकके प्रकाशमें निकाल दो।*

🌟 *त्याग की महिमा* पृष्ठ २८, गीताप्रेस गोरखपुर *परम श्रद्धेय श्री जयदयाल गोयन्दका सेठ (श्रेष्ठ) जी* नारायण !नारायण! नारायण! नारायण!

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 01:55


*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 01:30


https://youtu.be/nfFtWZ1S-S4?si=hbVogaKB6Wtxdqu-

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 01:29


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 8 अगस्त 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - अपने लिए कुछ नहीं करना ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है । श्री स्वामी जी’ ’महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर’ ’सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि देखो जिस को पाना है, वह पाया हुआ है । वह आप में है । आप अपनी सत्ता मानते हो, “मैं हूं” । वह “मैं” तो है जड़ और वह हूं है आपका स्वरूप । “है” है । संसार “नहीं” रूप से है । तो हमारे लिए चुप होना, कुछ नहीं करना, यही आवश्यकता है ।

’ *ईश्वर अंश जीव अबिनाशी* ।’
’ *चेतन अमल सहज सुख राशि* ।’

ईश्वर अंश को क्या करना है ? अविनाशी को क्या करना है ? चेतन को क्या करना है ?
अमल को क्या करना है ?
पाना है, उसे पाया हुआ ही है । जो छोड़ना है वह छूटा हुआ ही है । अपने लिए क्या करना है ? अपने लिए कुछ नहीं करना है । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार ये अपरा प्रकृति है । यह अपनी नहीं है । इनकी सेवा करना है । सेवा क्या है ? उनकी चीज है, उनको देना है । अहंकार किस बात का ? “है” “है” है । है में हमारी स्थिति है । जिसको छोड़ना था छोड़ दिया । जिसको पाना था, उसे पा लिया । सेवा करना है, यह कर्म योग है । है रूप से है, ये ज्ञान योग है । “है” वह मेरा अपना है, यह हो गई भक्ति । तो अपने लिए क्या करना है ? अपने लिए कुछ नहीं करना । अपना कुछ नहीं रहा । वह “ है “ वह मेरा अपना है, यह हो गई भक्ति । “है” है यह हो गया ज्ञान । सेवा कर दी, यह हो गया कर्मयोग । भागवत में भी यही कहा है - भागवत में पहले ज्ञान योग, फिर कर्म योग, फिर भक्ति योग । लौकिक की दृष्टि से पहले कर्म योग, फिर भक्ति योग, फिर ज्ञान योग आता है । भागवत और गीता में है - पहले ज्ञान योग, फिर कर्म योग, अंत में भक्तियोग । यह क्रम आता है । सेवा कर्म योग है । “है” में स्थित होना-ज्ञान योग है । “है “ को अपना मानना ये भक्ति योग है । इतनी सी बात है । आश्रय भगवान् के चरणों का ।

चुप होना, कुछ नहीं करना - यह साधन है । न करने के लिए - जप करो, नाम लो, सत्संग करो, स्वाध्याय करो, उपवास करो, यह सब वेग मिटाने के लिए है । बिना किए वेग मिटेगा नहीं । कर्म योग संसार के लिए (उपयोगी है), ज्ञान योग स्वयं के लिए (उपयोगी है), भक्ति योग भगवान् के लिए (उपयोगी है) । जप करो, नाम लो, सेवा करो, उपवास करो, यह सब संसार की सेवा के लिए । वेग मिटाने के लिए करना है । अपने बाप को भी नहीं जान सकते, तो दुनिया मात्र के बाप को कैसे जानेंगे ? उनको अपना मानना है । वह मेरे हैं, सार क्या निकला ? एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर लें । क्या ? मैं भगवान् का ही हूं और भगवान् ही मेरे अपने हैं । मौज हो जाएगी, आनंद हो जाएगा । भगवान् का हूं यह भक्ति योग हो गया । संसार मात्र का हित करना है, यह कर्म योग हो गया । पदार्थों की उत्पत्ति, नाश होता है, क्रियाओं का आरंभ और अंत होता है, संयोग और वियोग है, ये सब संसार के लिए है । संसार को सच्चा मानने वाले के लिए कर्म योग ( यानि सेवा करना है ) । अपने लिए किया तो कभी मिटेगा नहीं । अपने लिए किया तो करते रहो, भोगते रहो । करते रहो, भोगते रहो । करते रहो, भोगते रहो । मथुरा के आदमी रात भर चले, वहीं की वहीं रहे; क्योंकि रस्सी नहीं खोली । यह बात सुना रहे हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

06 Jan, 01:29


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

05 Jan, 01:49


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 7 अगस्त 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय -परमात्मा प्राप्त हैं ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य’ ’(परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है,’ ’इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि देखो अपने को यह निश्चित हो गया बहुतों को, कि ये स्थिति है (संसारी हैं), हमारी है । पर परमात्मा को प्राप्त करना है, यह नई बात है । बात ये नहीं है, यह बनावटी बात है । परमात्मा को प्राप्त करना वास्तविक बात है । परमात्मा की प्राप्ति के बाद इससे बढ़कर कोई लाभ होगा, यह मानने में भी नहीं आता । इस वास्ते परमात्मा को प्राप्त करना है, यह अपनी वास्तविक स्थिति को प्राप्त करना है । जैसे आप अपने बचपन को अब बता नहीं सकते । न जवानी को बता सकते हो । तो अब आपका बालकपना नहीं रहा, जवानी नहीं रही । यह (संसार में) हमारी वास्तविक स्थिति नहीं है । परमात्मा हमारी वास्तविक स्थिति है । वास्तविक स्थिति है खुद की ।

संसार सब असत् है । ये बिल्कुल भूल है । इसके लिए रोना होता है, तो यह भूल है । पश्चाताप होता है, तो ये भूल है । सही बात तो सही ही रहेगी । गलत बात गलत ही रहेगी । यह तो मिटने वाला है । हमारा है ही नहीं । *सत्संग में कितना ही शोक हो, दु:ख हो, सब मिट जाता है; क्योंकि यह (संसार) हमारा है ही नहीं ।* सुख की अपेक्षा दु:ख है, दु:ख की अपेक्षा सुख है । तत्व निरपेक्ष है । असत् एक क्षण भी नहीं रहता है । नित्य तत्व तो नित्य ही है । असत् की सत्ता होती ही नहीं और सत् का अभाव होता ही नहीं । सेठ जी, भाई जी, घनश्याम जी कितने आदमी थे । अब हैं ? सेठ जी की बातें बता रहे हैं । बुरा न मानो तो बताऊं ? वैश्य जाति में ऐसा भाव (परमात्मा का भाव) पैदा कर दिया । पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है; क्योंकि ईश्वर अंश हैं । ये मृत्यु लोक है । मरने वालों का लोक है । मरने ही मरने वालों का लोक है । ये भूल मिटाने के लिए हम इकट्ठे हुए हैं । कठिनता हमारी बनाई हुई है । सुगमता स्वाभाविक है । मुक्ति स्वाभाविक है, स्वाभाविक । असत् को सत् मान लिया और सत् की तरफ ध्यान नहीं दिया । हिंदी वर्णमाला है, वह वैज्ञानिक वर्णमाला है । अपनी मां की गोदी तो अपनी है । इस वास्ते भगवान् की बात है, वो हमारी है । हमारे बाप की है । परमात्मा हमारा बाप है । बनावटी नहीं है । बनावटी संसार है, यह तो मिटेगा ही । एक छूटना और एक छोड़ना । छोड़ दोगे तो निहाल हो जाओगे और छूटेगा तो रोओगे । ये तो जासी, जासी । ये तो जाएगा । रहा नहीं, रहता नहीं, रहेगा नहीं, रह सकता नहीं । इसकी प्राप्ति के लिए भी जड़ता का जितना त्याग करोगे, उतना लाभ । महत्व दिया है रुपयों को । रुपया काम कुछ आवे नहीं । खाने के काम आवे नहीं, पीने के काम आवे नहीं । रुपयों का खर्च काम आता है । और स्वामी जी गद्गद् हो रहे हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

05 Jan, 01:49


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

05 Jan, 01:48


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

दास्य, सख्य आदि भावों में भी माधुर्य भाव रहता है ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ५४*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

05 Jan, 01:42


https://youtu.be/MDR7enaDBXs?si=BF_QluAKeAxC1A0x

श्री गीताप्रेस सत्संग

05 Jan, 01:42


*🌹🌹🌹राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 साक्षात् प्रेमावतार श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹भगवान का वास्तविक स्मरण वह है जो स्मरण श्वास की भांति हो।🌹 श्वास हम लेते हैं सहज, पर रुक जाने पर बेचैनी होती है। किसी को उपदेश नहीं देना पड़ता कि तुम श्वास लिया करो। और श्वास लेने वाला यह नहीं कहता कि हम कितनी संख्या में श्वास लें, कितनी संख्या में जाप किया करें, और इतनी देर हो गई श्वास लेते-लेते, तो ज़रा बंद कर दें? परंतु श्वास यदि बंद हो जाए , तो जीव व्याकुल हो जाए, मरने लगे। यदि इसी प्रकार श्वास की भांति भगवान की स्मृति होती रहे , तो यह है सबसे ऊंची स्मृति। 🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

04 Jan, 18:15


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

04 Jan, 18:14


*।।राम-राम।।*
🌷 परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजेनित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।

🌷प्रवचन के बाद
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज प्रवचन की विशेष बातों पर व्याख्या व शंकाओ का समाधानभी करते हैं।

🌷 रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।


🌷तेरहवाँ दिन 1-दिनांक-05-01-25
2-वार-रविवार।
3-गीतापाठ-दूसरा अध्याय श्लोक संख्या 62 से अध्याय की समाप्ति तक।

*4-दिनांक-02-10-93 प्रातः5:00-बजे*

*5-वियोग सत्य है।*
🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

10 Dec, 02:10


।।श्रीहरिः।।

*संतवाणी*

*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानन्दजी महाराज*
_(‘प्रश्‍नोत्तरी-०२’ पुस्तकसे)_
 
*_प्रश्‍न‒हम उस अनन्तकी तो प्रीति होना चाहते हैं पर इस भौतिक जगत्‌की, जिसमें अनेक दोष दिखाई देते हैं, प्रीति कैसे हो सकते हैं ?_*
 
*स्वामीजी‒* जब प्रीतिसे अभिन्‍नता हो जाती है तब समस्त भौतिक जगत्‌ उस अनन्तकी ही अभिव्यक्‍ति प्रतीत होता है, उसके बाद यह प्रश्‍न शेष नहीं रहता कि हम किसकी प्रीति हैं । प्रीति तो सभीकी प्रीति है । पर यह अवश्य है कि वह किसी परिस्थिति आदिमें आबद्ध नहीं है, सीमित नहीं है, विनाशी नहीं है; नित-नव है, दिव्य है, चिन्मय है और उसकी दृष्‍टिमें प्रीतमसे भिन्‍न कुछ नहीं है । क्योंकि प्रेमके साम्राज्यमें प्रेमास्पदसे भिन्‍न कुछ हुआ ही नहीं ।
 
*_प्रश्‍न‒हम बुराईको बुराई जानते हुए भी उसका त्याग क्यों नहीं कर पाते ?_*
 
*स्वामीजी‒* इन्द्रिय-ज्ञानमें और बुद्धिके ज्ञानमें जो द्वन्द्व है, उसीके कारण हम बुराईको बुराई जानकर भी उसका त्याग नहीं कर पाते । जिस कालमें बुद्धिका ज्ञान इन्द्रियोंके ज्ञानपर विजयी हो जाता है, उसी कालमें द्वन्द्व मिट जाता है । उसके मिटते ही बुराईका त्याग स्वतः हो जाता है और भलाई अपने-आप होने लगती है, क्योंकि बुराईको तो किया जाता है और भलाई स्वतः होती है ।
 

श्री गीताप्रेस सत्संग

10 Dec, 01:45


*गीताप्रेस, गोरखपुर के आदि संपादक,🌹साक्षात् प्रेमावतार,🌹श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा, 🌹परम पूज्य भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार का उपलब्ध इकलौता वीडियो, हम सभी अवश्य दर्शन करें, तथा दर्शन करके स्वयं को धन्य करें।🌹परम भागवत पद रत्नाकर, पद संख्या 645 🌹जय जयश्री राधे🌹🙏*

*🌹कैसी दिव्य तुम्हारी ममता, कैसा दिव्य तुम्हारा प्रेम।*

*🌹तनिक उदास देख मुझको, तुम गल जाते ज्यों तापित हेम॥*

🌹 सब भगवत्ता भूल, तुरत प्रिय !
करने लगते करुण विलाप।

🌹मुझ-सी अति नगण्यके कारण कर उठते तुम सहज प्रलाप॥

🌹कैसा मधुर, अनन्त स्नेह-सागर लहराता उर अन्तर।
मैं हो गयी धन्य अब पाकर उसका एक पुण्य सीकर॥

🌹कैसे अपना भाग्य बखानूँ, कैसे हृदय दिखाऊँ खोल।
पाया मैंने दुर्लभ अतिशय प्रेम तुम्हारा यह अनमोल॥

🌹 रहे सुरक्षित मेरा उरमें, सुखद गोदमें प्यारा स्थान।
करती रहूँ सदा अनुभव मैं प्रियतमका प्रिय सङ्ग महान॥

https://youtu.be/r2dqp7Rq8O4?si=_TECmtEMiYY1Z_85

श्री गीताप्रेस सत्संग

10 Dec, 01:43


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 11 जुलाई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - सब परमात्मा हैं ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण’ है ’, दिव्य ( परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने’ ’से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि आप समझेंगे कि बार-बार कह रहा है । यह बार-बार कहने पर भी स्थिति नहीं होती है । फिर कहने की क्या आवश्यकता है ? एक परमात्मा ही हैं । गीता ने कहा है - ’ *वासुदेव’: ’सर्वम्* ’ । यहां पहुंचना है । जब तक दूजा भाव रहता है तब तक दूसरी सत्ता रहती है । वास्तव में सत्ता एक है । दूजी कल्पना है । कल्पना मिट जाएगी, तब सत्ता में स्थिति हो जाएगी । सब कुछ परमात्मा ही हैं । संदेह नहीं रहे, संदेह; क्योंकि शास्त्रों में आता है एक परमात्मा ही है । अनेक रूप से होते हुए भी एक ही है । जैसे पेड़ के फल, फूल, पत्ते अलग-अलग हैं । पर बीज एक ही है । ऐसे अनेक होते हुए भी तत्त्व एक ही है । इमली के कितने पत्ते हैं । सब पत्ते पत्तियां, फूल अलग-अलग, पर इमली का पेड़ एक ही है । ऐसे अनेक रूप होते हुए भी एक परमात्मा ही हैं । तो वासुदेव: सर्वम् । सर्वम् वासुदेव: । सब आ गया उसमें । स्थावर, जंगम, अंडज, जरायुज, मनुष्य, भेड़, बकरी, देवता, दानव, असुर, भूत, प्रेत अनेक होते हुए भी सब एक (परमात्मा है) हैं । सब परमात्मा का स्वरुप, साक्षात् । समता का नाम योग है । सम दर्शन कहा है, समवर्तिन नहीं । सब में परमात्मा को देखता है । शरीर में अवयव अलग-अलग हैं । नाम अलग अलग हैं, पर शरीर एक ही है । मिट्टी के बर्तन में बर्तन अनेक हैं, पर मिट्टी एक ही है । ऐसे सोने के गहने अनेक हैं, पर है सोना ही । जैसे लोहे के अस्त्र-शस्त्र अनेक हैं, पर लोहा एक ही है । व्यवहार में अनेक प्रकार हैं । पर परमार्थ में एक ही है । सत्ता एक है । एक में अनेक, और अनेक में एक । तत्त्व एक ही है ।

खेत का दृष्टांत अच्छा दीखता है हमें । बाजरी के खेत में डंठल भी बाजरी है । पत्ते भी बाजरी है । दाना भी बाजरी ही है । तो बाजरी के अनेक भेद हैं । गाय खा जाती है तो कहते हैं तुम्हारी गाय बाजरी खा गई, जबकि दाना एक भी नहीं है । गीता में पहले ज्ञान योग कहा, फिर कर्म योग और फिर भक्ति योग का वर्णन किया । ज्ञान में द्वैत है, लोग भक्ति में द्वैत कहते हैं । गीता में कहा है - ’ *सदसच्चाहमर्जुन* ’ । सब शरीरों को प्रकाशित करने वाला एक ही है । सबसे बढ़िया चीज है, एक परमात्मा । जैसे खांड के खिलौने अनेक होते हैं, पर चीनी एक ही है । खेती वाली बात विलक्षण है । इसमें गेहूं और जौ एक जैसे दीखते हैं, पर बाल निकलती है तब पता चलता है कि अलग-अलग है । ऐसे अनेक में एक परमात्मा ही है । साधनों में सर्वोत्तम साधन शरणागति बताया । इस वास्ते एक सिद्धांत से एक परमात्मा ही हैं । दु:ख में, सुख में, उदासीन में प्रसन्न । प्रसन्नता सब दु:खों का नाश कर देती है । भक्ति में आप ही हो, आप ही हो, आप ही हो - ऐसे करते करते खुद भी आप ही हो, आप ही हो । सब जगत में ढूंढा तेरा पता लगा नहीं । जब पता तेरा लगा तो अब पता मेरा नहीं । मैं, तू, यह, वह भी तू ही है । ज्ञान मार्ग जानने का मार्ग है । मानना भक्ति मार्ग है । संतों ने बढ़िया बात बताई । एक परमात्मा की सेवा से सब संसार की सेवा हो गई । सब परमात्मा ही हैं । ये बात याद रखो ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

10 Dec, 01:43


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

10 Dec, 01:43


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

जैसे वैद्य जो दवा दे, वही हमारे लिए बढ़िया है। ऐसे ही भगवान् जो विधान करें, वही हमारे लिए बढ़िया है। चाहे अनुकूलता आए या प्रतिकूलता, वह हमारे लिए साधन - सामग्री है।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४८*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 17:06


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 17:06


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-

🌷 *अठावनवाँ दिन*
*1-दिनांक-10 -12-2024*
*2-मंगलवार।*
*3-गीता पाठ सोलहवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 01 से 12 तक।*

*4- प्रवचन का दिनांक- 01-अगस्त- 1995 सांय :5:00 बजे*

*5-चेतावनीपूर्वक नामजप के लिये प्रेरणा।*


🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 15:51


. *🌹श्रीसीताराम शरणम् मम 🌹*
*🌼श्री विनय-पत्रिका पद संख्या -१५२🌼*
*🌱विनयावली🌱*

*【 🌼 पद संख्या १५२ का भावार्थ🌼 】*

*श्रीरामजी ने अपने भले स्वभाव से किसका भला नहीं किया? युग-युग से श्रीजानकीनाथजी का यह कार्य जगत् में प्रसिद्ध है ॥१॥*

*ब्रह्मा आदि देवताओं ने पृथ्वी का दुःख सुनाकर (जब) विनय की थी, (तब पृथ्वी का भार हरने के लिये और राक्षसों को मारने के लिये) सूर्यवंशरूपी कुमुदिनी को प्रफुल्लित करने वाले चन्द्ररूप एवं अमृत के समान आनन्द देने वाले श्रीरामचन्द्रजी प्रकट हुए ॥२॥*

*विश्वामित्र ताड़का का तेज देखकर ओले की नाईं गले जाते थे। प्रभु ने ताड़का को मारकर, शत्रुको मित्र का सा फल दिया एवं क्रोधरूपी परम कृपा की। भाव यह है कि दुष्ट ताड़का को सद्गति देकर उस पर कृपा की ॥३॥*

*स्वयं जाकर शिला (बनी हुई अहल्या) का पाप-संताप दूर कर दिया, फिर (धनुष यज्ञ के समय) शोक-सागर में से डूबते हुए मिथिला के महाराज जनक को निकाल लिया, अर्थात् धनुष तोड़कर उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर दी॥४॥*

*परशुराम क्रोध के ढेर एवं अहंकार और ममत्व के धनी थे, उन्हें भी आपने देखते ही शान्त और समता का पात्र बना लिया। अर्थात् वह क्रोधी से शान्त और अहंकारी से समद्रष्टा हो गये ॥५॥*

*माता (कैकेयी) और पिता की आज्ञा मानकर प्रसन्नचित्त से वन चले गये। ऐसा धर्मधुरन्धर और धीरजधारी तथा सद्गुण और शील को जीतने वाला दूसरा कौन है ? कोई भी नहीं ॥ ६॥*

*नीच जाति का गरीब गुह निषाद, जिसने ऐसा कौन जीव है जिसे नहीं खाया हो अर्थात् जो सब प्रकार के जीवों का भक्षण कर चुका था, उसने भी पवित्र प्रेम के कारण श्रीरघुनाथजी से सखा जैसा आदर प्राप्त किया ॥७॥*

*शबरी और गीध (जटायु) को सत्कार के साथ मोक्ष देने वाला कौन है? और शोक की सीमा अर्थात् महान् दुःखी सुग्रीव का संकट दूर करने वाला कौन है? (श्रीरामजी ही हैं) ॥८॥*

*ऐसा कौन काल का ग्रास था, जो (रावण से निकाले हुए) विभीषण को अपनी शरण में रखता? (अथवा 'तेहि काल कहाँ को' ऐसा पाठ होने पर-उस समय ऐसा कौन था जो विभीषण को अपनी शरण में रखता) जिस रावण के राज्य में आज भी विभीषण राजा बना बैठा है (यह सब श्रीरघुनाथजी की ही कृपा है) ॥९॥*

*अयोध्या का रहनेवाला मूर्ख धोबी, जिसमें बुद्धि का नाम भी नहीं था, वह पामर भी वहाँ पहुँच गया, जहाँ पहुँचने में मुनियों का मन भी थक जाता है। (महामुनिगण जिस परम धाम के सम्बन्ध में तत्त्व का विचार भी नहीं कर सकते, वह धोबी वहीं चला गया) ॥१०॥*

*ब्रह्मा ने ऐसा किसे रचा है, जो राम-नाम लेकर मुक्ति का भागी न हो? पार्वतीवल्लभ शिवजी (जिस) राम-नाम का स्वयं स्मरण करते हैं और दूसरों को उपदेश देकर उसका प्रचार करते हैं ॥११॥*

*अजामिल की कथा सुनकर कौन प्रसन्न नहीं हुआ? और राम-नाम लेकर, इस कलिकाल में भी कौन भगवान् श्रीहरि के परम धाम में नहीं गया? ॥१२॥*

*राम-नाम की महिमा ऐसी है कि वह आक के पेड़ को भी कल्पवृक्ष बना सकती है। वेद और पुराण इस बात के साक्षी हैं, (इसपर भी विश्वास न हो‌ तो) तुलसी की ओर देखो। भाव यह है, कि मैं क्या था और अब राम-नाम के प्रभाव से कैसा राम-भक्त हो गया हूँ ॥१३॥*

*【 👇 पद संख्या १५२ 👇】*

राम भलाई आपनी भल कियो न काको।
जुग जुग जानकिनाथको जग जागत साको ॥१॥

ब्रह्मादिक बिनती करी कहि दुख बसुधाको।
रबिकुल-कैरव-चंद भो आनंद-सुधाको ॥२॥

कौसिक गरत तुषार ज्यों तकि तेज तियाको।
प्रभु अनहित हित को दियो फल कोप कृपाको ॥३॥

हस्यो पाप आप जाइकै संताप सिलाको।
सोच-मगन काढ्यो सही साहिब मिथिलाको ॥४॥

रोष-रासि भृगुपति धनी अहमिति ममताको।
चितवत भाजन करि लियो उपसम समताको ॥५॥

मुदित मानि आयसु चले बन मातु-पिताको।
धरम-धुरंधर धीरधुर गुन-सील-जिताको? ॥६॥

गुह गरीब गतग्याति हू जेहि जिउ न भखा को?
पायो पावन प्रेम तें सनमान सखाको॥७॥

सदगति सबरी गीधकी सादर करता को?
सोच-सींव सुग्रीवके संकट-हरता को? ॥८॥

राखि बिभीषनको सकै अस काल-गहा / तेहि काल कहाँ को?
आज बिराजत राज है दसकंठ जहाँको ॥९॥

बालिस बासी अवधको बूझिये न खाको।
सो पाँवर पहुँचो तहाँ जहँ मुनि-मन थाको ॥१०॥

गति न लहै राम-नामसों बिधि सो सिरजा को?
सुमिरत कहत प्रचारि कै बल्लभ गिरिजाको ॥११॥

अकनि अजामिलकी कथा सानंद न भा को?
नाम लेत कलिकालहू हरिपुरहिं न गा को? ॥१२॥

राम-नाम-महिमा करै आको।
साखी बेद पुरान हैं तुलसी-तन ताको ॥१३॥

🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
_*शेष [ पद ] अगले भाग में ..............*_

🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿
🙏 _*गोस्वामी श्रीतुलसीदास कृत*_ 🙏
🙏 *【 जय जय श्रीसीताराम जी 】* 🙏
*【 हर हर महादेव 】*
🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿🌻🌿

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 15:51


॥ श्रीहरि: ॥
*🌹सत्संग की अनमोल बाते🌹*

*८६१. प्रतिदिन पन्द्रह मिनट या आधा घंटा एकान्तमें विचार करें कि मेरी उन्नति हो रही है या नहीं हो रही है। विचार करनेसे भजनसे भी ज्यादा लाभ प्रतीत हुआ है।*

*८६२. जो ईश्वरकी शरण हो जाता है उसे तो जो कुछ हो उसमें ही प्रसन्न रहना चाहिये।*

*८६३. पंचायतीमें नहीं पड़ना चाहिये, निष्पक्ष रहना बहुत कठिन है, पक्षपात होनेसे साधकका पतन हो जाता है, इसमें निष्पक्ष महान् पुरुष ही रह सकते हैं।*

*८६४. हर समय प्रसन्न रहनेका उपाय निरन्तर भगवान्‌की स्मृति है।*

*८६५. निष्काम कर्मसे श्रेष्ठ जप, जपसे श्रेष्ठ जपसहित निष्काम कर्म, इससे भी श्रेष्ठ एकान्तका ध्यान, इससे श्रेष्ठ भगवान्‌के प्रेम और रहस्यकी बातोंको सुनना है।*

*८६६. धर्म और मोक्षमें पुरुषार्थ प्रधान है, अर्थ और काममें प्रारब्ध प्रधान है।*

*🌻हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे🌻*
*🌻हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे🌻*

–‘अमृतवचन’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार
–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठजी)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 15:50


॥ श्रीहरि: ॥
*दुःसंग पतनका हेतु*

दुःसंगः सर्वथैव त्याज्यः (नारदभक्तिसूत्र ४३) - नारदजीने कहा है कि बुरे संगका सर्वथा ही त्याग करें।

क्षणभरके लिये ही यदि बुरा संग हो गया और उसने मनमें सोये हुए शैतानको जगा दिया तो न जाने क्या दशा होगी ?

अजामिल ब्राह्मण-पुत्र था, नौजवान था, सदाचारी था, मातृ-पितृभक्त था, वेदाध्ययन करता था। पिताके सुशासनमें उसके अंदर जो विकार थे (विकार सभीमें रहते हैं) वे दबे थे, सोये हुए थे।

वह प्रतिदिन पिताके हवन-कार्यहेतु लकड़ियाँ लेने जाया करता था। अबतक उसने बुरी नीयतसे कोई कार्य नहीं किया था। एक दिन वह समिधा लेकर लौट रहा था और रास्तेमें उसकी आँखोंने एक दृश्य देखा, उसे देखते ही उसके मनका शैतान जाग उठा। उसका सोया हुआ विकार उद्विग्न हो गया और उसे अपने वशमें कर लिया।

फिर तो उसका ब्राह्मणत्व गया, सदाचार गया, धर्म गया। वहीं उसने एक चाण्डाल स्त्रीसे विवाह कर लिया और एक क्षणके बुरे संगसे उसका सारा जीवन अधर्ममय हो गया।

जय श्री सीताराम !!🌼
लेखराम-४४

*–"सरस प्रसंग" गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार*
*–श्रद्धेय श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार (भाईजी)*

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 13:30


॥ श्रीहरिः शरणम् ॥

* *अपने को शरीर कभी मत समझो।*

* *सर्वेन्द्रियों का ब्रह्मचर्य पालन कर, शरीर को शुद्ध कर लो।*

* *गुणों का भोग मत करो, क्योंकि भोग करने से विकास रुक जाता है।*

* *अपनी अच्छाई तथा दूसरों की बुराई भूल जाओ।*

* *दूसरों के दोष मत देखो, क्योंकि दूसरों के दोष देखने से दोषों से अकारण ही सम्बन्ध हो जाता है।*

* *अकिंचन, अचाह तथा अप्रयत्नपूर्वक साधक साध्य से अभिन्न होता है।*

– पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज
–‘सन्त जीवन दर्पण’ मानव सेवा संघ वृन्दावन की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 11:34


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 11:33


राम राम
मत चुको मत चुको
भाई पाओ प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
भाई पावो प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
होगा किया चमक दमक पर
फिदा होय मत सुको
मिले जिस्या ही खाय ढोकला
मिले जिस्या ही खाय ढोकला
हरि: को नाम धङुको
अवसर मत चुको मत चुको
भाई पावो प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
लाख काम तज आतुर होकर
सतसंगत मे ढुको
काम क्रोध मद लोभ मोह को
ज्ञान अग्न से फुंको
अवसर मत चुको मत चुको
भाई पावो प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
कर्म करो निस्काम भाव से
रस्ते मे मत रुको
कर अर्पण सब प्रभु चरणन मे
दास भाव से झुको
अवसर मत चुको मत चुको
भाई पाओ प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
बेठ एकांत प्रभु के सन्मुख
हाङ कलेजो फुंको
बेठ ऐकांत हरि के सन्मुख
फाङ कालजो फुंको
सटके अरजी सुणे सांवरो
असल प्रेम को भुखो
अवसर मत चुको मत चुको
भाई पावो प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
जा पहुंचो बेकुंठ धाम
कलजुग के मार धमुको
फेर जन्म नही होय जगत मे
इमरत स्यं क्यू उको
अवसर मत चुको
भाई पाओ प्रेम प्रभु को
अवसर मत चुको मत चुको
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 11:33


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 25 जुलाई 1995 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - बुद्धि की स्थिरता का महत्त्व ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण’ ’है, दिव्य (परम वचन) है । श्री स्वामी’ ’जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में’ ’प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि सत्संग की बातें होती हैं । बहुत जगह लोग मन की बात पूछते हैं कि मन कैसे लगे ? और मन लगेगा तो ठीक होगा, मन नहीं लगेगा तो ठीक नहीं होगा । मन की प्रधानता की बात पूछते हैं । पूछते हैं, पर पूछने पर वैसा करते नहीं हैं । पर जिज्ञासा मन की रहती है कि मन हमारा लग जाए तो ठीक होगा । अर्जुन ने भी पूछा मन बहुत चंचल है । अर्जुन ने मन की चंचलता के विषय में दो ही श्लोक में पूछा और उत्तर में भगवान् ने भी दो ही श्लोक कहे । किसी प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने इतना थोड़ा नहीं कहा, जितना मन की चंचलता के विषय में थोड़ा बोले हैं । मन से आगे एक बात और है बुद्धि की स्थिरता की । इन दोनों में बुद्धि की स्थिरता की बात श्रेष्ठ है । इससे आगे स्वयं के लगने की बात श्रेष्ठ है । बुद्धि से पारमार्थिक निश्चय करना, यह बुद्धि की स्थिरता है । बुद्धि से संसार का निश्चय करना, यह तो मन की स्थिरता की तरह ही है । गीता अध्याय दो के 41 से 44 तक बुद्धि की स्थिरता के विषय में बताया है । बुद्धि स्थिर क्यों नहीं होती ? तो गीता अध्याय दो के 44 में बताया है कि भोग और ऐश्वर्य की प्रधानता वाले की बुद्धि स्थिर नहीं होती । भोग और संग्रह करेगा तब तक बुद्धि स्थिर नहीं होगी और मन भी स्थिर नहीं होगा । भोग और संग्रह करने वाले का परमात्मा की प्राप्ति करना है - ऐसा निश्चय नहीं होता । इसमें वो ही स्थिर हो सकते हैं, जो भोग और संग्रह में नहीं लगे हुए हैं । इस वास्ते जो अपना उद्धार चाहते हैं, कल्याण करना चाहते है, एक निश्चय कर लें कि परमात्मा की प्राप्ति करनी है । एक बात और कहता हूं आपको - उद्देश्य एक परमात्मा का चाहिए (तो परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है) । (उद्देश्य) न संग्रह का है, न भोग का है । घरबार छोड़ने की जरूरत नहीं है । निर्वाह मात्र करने के लिए करना है, कर्तव्य कर्म करना है तो गृहस्थ में रहते भी कर सकते हैं । धन का लक्ष्य रखने पर धन प्राप्त होता है और धन का लक्ष्य नहीं रखने पर धन प्राप्त नहीं होता है - ऐसा नहीं है । तो धन का आना-जाना लक्ष्य पर निर्भर नहीं है । यह प्रारब्ध और भगवान् के विधान पर निर्भर है ।

साधु होने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती, गृहस्थ को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती । लक्ष्य परमात्मा का हो, उसको परमात्मा की प्राप्ति होती है । लक्ष्य परमात्मा का हो तो हरेक काम परमात्मा का हो जाएगा । कह हरेक काम परमात्मा का हो सकता है ? तो गीता का उदय युद्ध के समय हुआ है और गीता में एक विलक्षण बात बताई कि जय - पराजय, सुख-दुख, लाभ - हानि को समान समझ कर युद्ध कर, कल्याण हो जाएगा, घोर कर्म से उद्धार हो जाए । तो अर्जुन कहता है - करिष्ये वचनम् तव । अपना लक्ष्य छोटा, बड़ा, भाई, बहन सब बना सकते हैं । तो मन की चंचलता मिटाने से बुद्धि की स्थिरता बहुत श्रेष्ठ है । एक निश्चय कि परमात्मा की प्राप्ति करना है । धन कमाने वाला कभी धन का नुकसान हो ऐसा काम नहीं करेगा । ऐसे परमात्मा का लक्ष्य करने वाला परमात्मा की बाधा वाला काम नहीं करेगा । चारों वर्ण अपने अपने कर्मों को करते हुए परमात्मा को प्राप्त हो सकते हैं । इसमें क्रिया बाधक नहीं है । इसमें बुद्धि का निश्चय काम करता है । धन की प्राप्ति तो प्रारब्ध पर निर्भर है । परमात्मा की प्राप्ति चाहने वाले को नफा ही नफा होता है । उसे घाटा नहीं होता । तो एक लक्ष्य कि परमात्मा की प्राप्ति करना है । यह बुद्धि की स्थिरता है ।

प्रश्न - महाराज जी कामना के होते हुए बुद्धि की स्थिरता कैसे होगी ?

स्वामी जी - नाशवान् का लक्ष्य होने से (संसार) मिले, न मिले दोनों होते हैं । परमात्मा का लक्ष्य होने से बुद्धि का निश्चय हो जाता है । अपने मन में धन की इच्छा होती है, तब तक न मन लगता है, न बुद्धि लगती है । पर हम खुद परमात्मा में लगना चाहते हों तो मन की, इंद्रियों की प्रधानता नहीं रहेगी, बुद्धि की प्रधानता हो जाएगी ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Dec, 11:33


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : ३८
--- :: x :: ---

* परहितमें, परसेवामें साधकका अधिकार है | किसीको बुरा समझने, बुरा चाहने एवं किसीके साथ बुराई करनेमें साधकको कोई अधिकार नहीं है | इतना ही नहीं, परचिन्तनमात्रसे ही साधकका अहित होता है |

यद्यपि किसी-न-किसी नाते सभी अपने हैं; परन्तु जिसके नाते सभी अपनें हैं, अपना तो वही है अपनेकी प्रियता और उनके नाते सभीकी सेवा ही तो साधकका जीवन है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-३५, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 17:04


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 17:04


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-

🌷 *छपनवाँ दिन*
*1-दिनांक-08 -12-2024*
*2-रविवार।*
*3-गीता पाठ पन्द्रहवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 01 से 10 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 21-जनवरी - 1995 प्रात:5:00 बजे*

*5-सुखासक्ती को मिटाने का उपाय।*


🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 10:08


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 10:08


, *राम राम*
हरि:की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
बन गये आप अकेले सब-कुछ
बन गये आप अकेले सब-कुछ
नाम धरा संसार प्रभुजी नाम धरा संसार
हरि:की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
बन गये आप अकेले सब-कुछ नाम धरा संसार हरि की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
बन गये आप अकेले सब-कुछ नाम धरा संसार
हरि की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
मात पिता गुरु स्वामी बन कर
करें डांट फटकार
शुतकारा ओर सेवक बनकर
खुब करे सत्कार
प्रभु जी खुब करे सत्कार
हरि की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
बन गये आप अकेले सब-कुछ नाम धरा संसार
प्रभु जी नाम धरा संसार
हरि की लीला बड़ी अपार
कभी रोग का रुप बनाकर बनते आप बुखार
कभी वेद्यय बन दवा खिलाते
आप करे उपचार
प्रभुजी आप करें उपचार
हरि की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
बन गये आप अकेले सब-कुछ नाम धरा संसार
प्रभु जी नाम धरा संसार
हरि की लीला बड़ी अपार
कभी भोग सुख मान बड़ाई हाजीर मैं नर नार
कभी दुखों का पहाड़ पटकते
कभी दुखों का पहाड़ पटकते
मचती हांहाकार प्रभुजी मचती‌ हाहाकार
हरि की लीला बड़ी अपार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
बन गये आप अकेले सब-कुछ नाम धरा संसार
कभी संत बनकर जीवो पर कृपा दृष्टि विस्तार
अगनित जन्मों का दुःख संकट छन में देते टार
बन गये आप अकेले सब-कुछ नाम धरा संसार
प्रभु की लीला बड़ी अपार
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 03:35


*भगवते नम:*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-मार्गशीर्ष*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-षष्ठी(सुबह 11:05 तक)*
*नक्षत्र-धनिष्ठा(शाम 04:50 तक)*
*वार-शनिवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-07 दिसम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-सुबह 09:00 से 10:30 तक है।*
*सूर्य राशि-वृश्चिक*
*चन्द्र राशि-कुम्भ*
*अग्निवास-पाताल*
*दिशाशूल-पूर्व*
*व्रत पर्व विवरण-श्री राम कलेवा,गृह षष्ठी,चम्पा षष्ठी,मित्र सप्तमी,सशस्त्र सेना झण्डा दिवस,द्विपुष्कर योग,पञ्चक प्रारम्भ।*
*👉कल-भानु सप्तमी।*
*11 दिसम्बर बुधवार-गीता जयन्ती,मोक्षदा एकादशी।*
*12 दिसम्बर गुरुवार-मत्स्य द्वादशी।*
*13 दिसम्बर शुक्रवार-प्रदोष व्रत।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 02:34


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
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‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : ३६
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* जब साधक किसीका बुरा नहीं चाहता, तब उसमें उसके प्रति भी करुणा जाग्रत् होती है, जो उसे बुराई करता हुआ प्रतीत होता है और उसके प्रति भी, जिसके प्रति बुराई की जा रही है |

उसकी सद्भावना दोनों ही पक्षोंके प्रति समान रहती है | इस कारण उसमें क्षोभ तथा क्रोधकी उत्पत्ति ही नहीं होती, जिससे वह स्वभावसे ही कर्त्तव्यनिष्ठ हो जाता है और उससे सभीका हित होने लगता है | यह ध्रुव सत्य है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-३५, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 01:57


॥ श्रीहरिः शरणम् ॥

*प्रश्न - सबसे बड़ा सुख किसे मिलता है ?*

*स्वामीजी - सबसे बड़ा जो सुख है, वह उसी को मिलता है, जो साधु (साधक) हो जाता है।*

*प्रश्न - शरणागति का तात्पर्य क्या है ?*

*स्वामीजी - शरणागति का मतलब होता है उनका हो जाना। 'हे प्रभु मैं तेरा हूँ' - यह पहला स्टेज है शरणागति का। 'तुम मेरे हो' यह आखिरी स्टेज है। शरणागति का फल है 'तुम ही हो'।*

*प्रश्न - सबसे ऊँचा जीवन कौन सा होता है ?*

*स्वामीजी – जिसका कभी नाश न हो और जो सभी के लिये उपयोगी हो। योग का कभी नाश नहीं होता, बोध का कभी नाश नहीं होता और प्रेम का कभी नाश नहीं होता।*

*प्रश्न- हम फँसे किसमें हैं ?*

*स्वामीजी- भोग में, मोह में और आसक्ति में।*

*प्रश्न- जीवन की सभी समस्याएँ हल कैसे हों ?*

*स्वामीजी- अगर हम शरीर को जगत की मर्जी पर छोड़ दें और अपने को प्रभु की मर्जी पर, तो जीवन की जितनी समस्याएँ हैं वे सब हल हो सकती हैं।*

*प्रश्न - दुनिया में बड़ा आदमी कौन होता है ?*

*स्वामीजी - जो दूसरों की जरूरत को अपनी जरूरत मानता है। जिसके सभी संकल्प प्रभु के संकल्प में अथवा जगत के संकल्प में विलीन हो गये हैं, वह दुनिया का बड़ा आदमी है।*

–पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज
–‘प्रश्नोत्तरी संतवाणी -२ मानव सेवा संघ वृन्दावन की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 01:48


https://youtu.be/W9CTtUtYpwE?si=jOBTJRfUDDr0taE1

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 01:36


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*’(सत्संग 27.07 मिनिट का)’*

प्रवचन 8 जुलाई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

*’विषय - भगवान् के होकर निश्चिंत हो जाओ’ ।*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि कल जो बात आई सामने कि हम तो भगवान् के शरण हो गए । अब क्या करें ? अब चिंता कुछ नहीं रहे । ऐसा हो जाए, ऐसा होना चाहिए, यह छोड़ दो । जप, कीर्तन, ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय करते रहो और भगवान् की मर्जी है, वह होने दो । *जैसी उनकी मर्जी होने दो । सुख आवे, दु:ख आवे तो राजी । अनुकूलता आवे, प्रतिकूलता आवे तो राजी । अपने तो भगवान् की आज्ञा में चलना है, क्योंकि भगवान् ने कहा है - तू मेरी शरण हो जा ।* मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा । हम तो तेरे हो गए बस । चिंता मत करो । ये मेरी मनचाही हुई, ये मेरी मनचाही नहीं हुई । तो मेरी मनचाही नहीं हुई तो भगवान् की मर्जी की हो गई । तो ज्यादा खुश हो जाओ । भगवान् की मर्जी की हो गई । अपने तो नि:शंक हो जाओ । निश्चिंत हो जाओ । नि:शंक, निर्भय हो जाओ । चार बात हैं । सुख आवे, दुःख आवे मौज की बात । हम तो भगवान् के हैं ।
*’मेरी चाहे मत करो, मैं मूर्ख अज्ञान ।’*
’ *तेरी मर्जी में ही है प्रभु मेरा कल्याण ।’*
न शरीर रहेगा, न संसार रहेगा । आपकी (भगवान् की) मर्जी हो, वैसा करो । निश्चिन्त, नि:शंक, निर्भय, नि:शोक हो जाओ । हम तो तेरे हैं । हम क्या करें ? अपने चिंता छोड़ दो । ये होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं, आपकी मर्जी हो वैसा करो । मैंने तो अपने आप को दे दिया बस । न सुख से मतलब है, न दुःख से मतलब है । मस्त हो जाओ सब भाई बहन । हम तो शरण हैं आपकी । सुख दो तो आपकी मर्जी, दुःख दो तो आपकी मर्जी । शोक मत करो, चिंता मत करो, आनंद हो गया । अपने ऊपर भार ही नहीं रहा । हम तो आपके हो गए ।

कपड़ा है, मालिक की मर्जी सिर पर रखे, पैर में रखे और स्वामी जी आनंदित हो रहे हैं । यह बढ़िया चीज है । भार सब भगवान् पर है । स्वर्ग में भेजो, नरकों में भेजो । मृत्युलोक में भेजो । शरणानंद जी से पूछा कहां जाओगे ? तो बोले हमें क्या पता, कहां जाएंगे ? फुटबाल के ठोकर मारे तो कहां जाएगी पता नहीं । हम फुटबाल हैं । प्रियतम जाने कहां भेजेंगे ? भगवान् पर भार रहे कि आपकी मर्जी आवे वैसा करो । सेठ जी ने कहा था कि चद्दर है, उसे सिर पर रखो तो आपकी मर्जी । पैर पर रखो तो आपकी मर्जी । हमारे किंचिन्मात्र आग्रह नहीं । संसार साथ में रहेगा नहीं, पक्की बात है और आप (भगवान्) साथ छोड़ेंगे नहीं । हमें क्या मतलब शरीर से ? मौज में रहो, आनंद में रहे । मुक्ति और प्रेम सब आप जाने । क्यों आफत में पड़ें हम । आपकी मर्जी, ये है शरणागति । भगवान् के शरण हो गए । शरण हो गए और भार ऊपर मेरे ? क्या मतलब है ? आपकी मर्जी से मतलब है । तुम जो करो उसी में राजी हैं । ठोकर दो, आपकी मर्जी, सिर पर रखो, आपकी मर्जी । पुरस्कार दो आपकी मर्जी । आपकी आज्ञा अनुसार काम करेंगे । भूल जाएं तो आप बताओ । चाह गई चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । वो चाह छूटनी चाहिए - अनुकूलता की, प्रतिकूलता की । हमें क्या चाहिए ? हमें कुछ नहीं चाहिए ? हमें तो आप चाहिए । ’एक बार सरल हृदय से दृढ़ता पूर्वक स्वीकार कर ले बस आप हमारे हो, हम आपके हैं बस’ । कुछ भी करो । ’जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ।’ भगवान् का जो विधान हो, उसमें ही राजी । कैसी मौज की बात है ? ’ *भगवान् कहते हैं सब पापों से मुक्त मैं करूंगा* ।’ हमें पापों से क्या मतलब ? मुक्त करो, नहीं करो, आपकी मर्जी । भजन करो, कीर्तन करो, जप करो, पाठ करो । परिस्थिति कैसी ही आ जाय ? तुम्हारी परिस्थिति में ही राजी हैं हम तो, यह बात है । कैसी ही परिस्थिति आवे, हमें क्या मतलब ? हमें मतलब आप से है । देखो एक बात है । हम पढ़ते थे न । गुरुजी कहते थे ज्यादा प्रेम होता है न, उसे ज्यादा कहता हूं । उठो पढ़ो । महाराज कहते थे सो जाओ भले ही, बात मत करो । बात करने में परिश्रम होता है, सोने में ताजगी आती है । आप राजी रहो, खुश रहो, उसमें राजी हैं । कन्या का विवाह हो गया घर - वर मिल गया, अब चिंता नहीं है और कन्या घर पर ही बैठी है, पर चिंता मिट गई । ऐसे शरण हो गए, चिंता मिट गई । मौज हो गई ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 01:36


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 01:35


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

सब दुर्गुण सुख- लोलुपता पर टिके हुए हैं । सुखासक्ति न हो तो सब दोष मिट जाएंगे । मूल में एक ही दोष है - नाशवान् की तरफ आकर्षण । मूल में एक ही गुण है - अविनाशी की तरफ आकर्षण ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४७*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Dec, 01:33


*राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹जिससे कोई साधन न बने, वह क्या करे? वह भगवान का विश्वास करके, करुण होकर पुकार उठे, तथा कृपा का आश्रय ले ले।🌹 जय जय श्री राधे 🌹🙏🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 16:53


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 16:52


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-

🌷 *उनचासवाँ दिन*
*1-दिनांक-01 -12-2024*
*2-रविवार।*
*3-गीता पाठ बारहवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 11 से अध्याय की समाप्ति तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 19-अगस्त - 1994 प्रात:5:00 बजे*

*5-स्वरूप अहम् रहित है।*
🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 10:49


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 10:48


राम राम
छुटे जो अंहकार से है ब्रह्म सचिदानंदा
छुटे जो अंहकार से है ब्रह्म सचिदानंदा
विषय वासनाओ मे फसकर
जीव भयो मति मंदा
विषय वासनाओ मे फसकर जीव भयो मति मंदा
जब लग फांसी छुटे नांही
अंहकार है जिंदा
छुटे जो अंहकार से है ब्रह्म सचिदानंदा
छुटे जो अंहकार से है ब्रह्म सचिदानंदा
पुण्य पाप का कर्ता माने
भोक्ता सुख-दुःख द्वंदा
निज स्वरूप को भूली परयो है
निज स्वरूप को भूल परयो है
जन्म मरण के फंदा
निज स्वरूप को भूली परयो है
जन्म मरण के फंदा
छुटे जो अंहकार से है
ब्रह्म सचिदानंदा
छुटे जो अंहकार से है
ब्रह्म सचिदानंदा
रहता सभी अवस्था मे
जो निर्विकार निस्पंदा
अंहकार बिन स्वयम प्रकासे
जैसे पूरण चंदा
अंहकार बिन स्वयंम प्रकासे
जेसे पूरण चंदा
छुटे जो अंहकार से
है ब्रह्म सचिदानंदा
छुटे जो अंहकार से है
ब्रह्म सचिदानंदा
ज्युं निर्मल जल मल के संग मे
मिलकर हो गयो गंदा
ज्यू निर्मल जल मल के संगमे
मिलकर हो गयो गंदा
मे मेरापन मिटते ही है
ज्यो का त्यो स्वछंदा
छुटे जो अंहकार से
है ब्रह्म सचिदानंदा
छुटे जो अंहकार से
है ब्रह्म सचिदानंदा
छुटे जो अंहकार से
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 10:48


*जय सियाराम !*
श्री स्वामीजी महाराज कह रहे हैं कि संसारकी जरूरी से जरूरी *आवश्यकता* भी *कामना* ही है *और भगवान् की आवश्यकता कामना नहीं है*🌷🙏🏻

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 08:34


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन 29 जुलाई 1994 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - सावधान रहने की आवश्यकता ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में’ ’प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि संसार के काम बाकी रह जाएंगे तो बेटा, पोता कर लेगा और बहुत बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं, बेटा, पोता नहीं है तो राज्य कर लेगा (संभाल लेगा) । पर अपना कल्याण कौन करेगा ? और शरीरों का पता नहीं । बहुत उम्र आ गई है । तो सबसे पहली बात है अपना कल्याण कर लेना चाहिए । इसलिए ही यह मनुष्य शरीर मिला है । भोग, संग्रह के लिए ये शरीर नहीं मिला है । इसके बाद कोई दु:ख नहीं रहता । पूर्णता हो जाती है । जानना, करना, पाना पूरा हो जाता है । सबसे पहला काम यह है जल्दी से जल्दी सिद्धि कर लेनी चाहिए । प्रायः लोग इसे कठिन कहते हैं । पर अपन लोग इसे कठिन नहीं मानते, सरल बात है । यह एक नई बात मिली है । दूसरी बात अधिकार की है तो सब अधिकारी हैं । हिंदू हो, मुसलमान हो, यहूदी हो, ईसाई हो, सब अधिकारी हैं । मनुष्य मात्र अधिकारी है । मनुष्यों में भी आप आए हो नींद छोड़ कर के तो जिज्ञासा है, यह बढ़िया बात है (अन्य से विलक्षणता है) । सांसारिक काम (सिद्धि) के लिए कोई विधान होता है । प्रारब्ध होता है । यह (संसार) चतुराई से नहीं मिलता और इसमें (कल्याण में) अधिकार मिला हुआ है । जप, स्वाध्याय , दान में संतोष नहीं करना है । पुराने जन्मों के कर्मों से जो मिलता है उसमें संतोष करना चाहिए; क्योंकि वह तो उतना ही मिलेगा । लेकिन जप, ध्यान, स्वाध्याय सत्संग, साधन करने, उपकार करने में, सेवा में संतोष नहीं करना चाहिए । बात उल्टी हो रही है । थोड़ा सा पाठ कर लेते हैं और पुस्तक बांध कर रख देते हैं और कमाने में ही लगे रहते हैं । का वर्षा सब कृषि सुखाने । कृपा करके मनुष्य शरीर दिया है, उसमें भी सत्संग दिया है, यह अपने हाथ की बात नहीं है (भगवत् कृपा है) । तो किस दिन के लिए छोड़ रखा है । तो सावधान रहना है, तत्परता से करना है; क्योंकि यह करने से होगा । विचार करें । विचार सत्संग से पैदा होता है । तो यह मौका भगवत कृपा से मिला है । तो सावधानी रखनी चाहिए ।

*’हमारे पास दो धन हैं । एक धन - रुपया, पैसा, संपत्ति है । दूसरा धन समय का, हमारी उम्र का है’ ।* यह (समय) बहुत उपयोगी है । अपने समय का सदुपयोग करना है । अपना कल्याण करना है । सत्संग मिला है, साधन मिला है, सामर्थ्य मिला है, सामग्री मिली है । दूजी (संसार में) योग्यता, विद्या होती है । तो उसमें सामर्थ्य चाहिए । इसमें (आध्यात्म में) तत्परता चाहिए । लगन खुद की हो तो वो बात मिल जाती है । उस लगन में तन-मन दीजे खोए । आज ही साधन करें, सावधान रहें तो अन्य दिनों से आज का दिन विलक्षण दीखेगा, विलक्षण हो जाएगा । तो इसमें स्वतंत्रता है । इसमें बात क्या है ? उत्साह होना चाहिए । उत्साही आदमी के लिए कठिन काम भी सरल हो जाता है । ऐसा मानव शरीर है । इसमें सावधान रहें । ऐसा मौका मिला है, सुंदर अवसर मिला है । पहले की बात है - मेरे मन में आती थी कि बताने वाला नहीं है । नहीं तो यों करें, यों करें । अब अपने यह बात नहीं है । विचार करें तो युक्तियां मिल सकती हैं । तो लाभ उठाना चाहिए, मौका मिला है । कलयुग को खराब बताया है । पर कलयुग में विशेषता है । कीर्तन करने से काम होता है । सत्संग करने से गोद जाने वाले की तरह लाभ होता है । सावधान हो जाए, समय खराब नहीं चला जाए । हे नाथ ! भूलूं नहीं । भगवान् को पुकारते रहो । हे कृपानाथ ! जल्दी से जल्दी आप की प्राप्ति हो जाए । तो भगवान् की कृपा का सहारा मिल जाएगा । श्रद्धा वाले को ज्ञान मिलता है । जितनी श्रद्धा होगी, तो तत्परता होगी । और तत्परता से लग जाएगा, उसकी इंद्रियां संयमित हो जाती हैं । और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है । ऋषिकेश में टीबडी (एक जगह का नाम) पर सत्संग हो रहा था । एक भाई ने कहा कि गंगा जी की ठंडी हवा आ रही है । तो दूजा बोला कि सत्संग कर रहे हो कि हवा की तरफ देख रहे हो । उधर ध्यान कैसे गया ? तो ऐसी तत्परता से करना चाहिए । आवश्यक काम नहीं करोगे तो मन नहीं लगेगा । अनावश्यक काम करोगे तो मन नहीं लगेगा तो आवश्यक काम करना है और अनावश्यक काम नहीं करना है । अभी सत्संग चल रहा है, यह आवश्यक है । यह काम करना है । सावधान होना है । सावधान हो जाओ । जितने सावधान होंगे, जितनी तत्परता से लगोगे, उतना लाभ है । इस वास्ते तत्परता से काम करना है । इसलिए मानव शरीर मिला है - सत्संग करो, साधन करो । हमारे 60 वर्ष पहले यह बात पैदा हुई थी सत्संग करो,

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 08:34


फिर साधन करो । अड़चन आवे तो पूछो ? यह मैंने मेरे साथियों से कहा था ।

प्रश्न - अपने आप को कैसे जानें ?

स्वामी जी - बहुत बढ़िया उत्तर है, ध्यान देना । अपने आप को जानने का उपाय है - कपड़ा मैं नहीं हूं, चमड़ा मैं नहीं हूं । मन, बुद्धि मैं नहीं हूं, शरीर मैं नहीं हूं । ऐसा विचार करके मैं शरीर नहीं हूं, इस बात पर पक्का रहे । अनुभव हो जाएगा । मन, बुद्धि और अहम भी नहीं रहे । अनुभव हो जाएगा ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

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श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 06:44


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*’(सत्संग 26.50 मिनिट का)’*

प्रवचन 1 जुलाई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - असत् के त्याग से सत् की प्राप्ति ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी’ ’बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी’ ’की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि जिसको (परमात्मा को) हम चाहते हैं । सत्संगी भाई बहन जिस परमात्मा को चाहते हैं वह सब जगह परिपूर्ण है, ये शरीर जितने हैं, यह रहेंगे नहीं । बदल जाएंगे । वह परमात्मा रहेगा । ये (संसार) उत्पत्ति विनाशशील है । (परमात्मा) उत्पत्ति विनाशशील नहीं है । कई युग बदल गया तो भी परमात्मा बदलता ही नहीं । उसको ही प्राप्त करना है । वह मिटने वाला नहीं है । स्वाभाविक विश्राम है । परम विश्राम कहते हैं उसे । जैसे तुलसीदास जी ने कहा कि जिन की कृपा लवलेश ते पायो परम विश्राम । सबको प्राप्त है, केवल उधर दृष्टि डालने से । भूल हुई है । बात दो दीखती हैं, है एक । संसार को हटाना और परमात्मा को प्राप्त करना । एक नाशवान् की वृत्ति हट जाए तो परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी । है एक काम, पर दोनों काम हो जायेंगे । जैसे घड़े से धान निकालना हो तो उसमें धान निकालने से आकाश रह जाता है । मैं को हटाना है, तो “है” ही है । केवल असत् की सत्ता छोड़ दें तो स्वत: प्राप्त है ।
’ *नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत:* ।’ असत् की सत्ता को मिटा दें, तो तत्त्व स्वत: प्राप्त है । अपने मन में असत् को सत्ता दी है । यही बात है । यह (संसार) ठहरेगा नहीं । हरदम बदलता है । वह (परमात्मा) सब को प्राप्त है । सबकी उस तत्व में स्थिति है । अभी भी है । पर असत् को महत्व देने से दीखता नहीं । यह हमारी ही लगाई हुई बाधा है । इसको मिटाने की जिम्मेदारी हमारी है । वह स्वाभाविक है और है की प्राप्ति के लिए ही नाम जप, कीर्तन, सत्संग, स्वाध्याय करना है । यह करते रहें तो शक्ति आ जाएगी स्वाभाविक । फिर कुछ नहीं करना है । यह सब छूट जाएगा । “है” रह जाएगा । तत्त्व तो सब में परिपूर्ण है स्वाभाविक ही । सांसारिक वृत्ति न हो तो स्वाभाविक प्राप्त है । इस वास्ते (वृत्ति हटाने के लिए) नाम जप, कीर्तन और प्रार्थना । इस प्रार्थना में बहुत ताकत है । *’हे नाथ मैं आपको भूलूं नहीं ।’* नाम जप, कीर्तन, प्रार्थना से शक्ति (न करने की शक्ति) आती है । संसार की सत्ता और महत्ता मान रखी है । सत्ता का अभाव कभी हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं, हो सकता ही नहीं । असत् का त्याग किया, तो प्राप्त है । अहंकृत भाव नहीं है, अभिमान भी नहीं है, तो संपूर्ण लोकों को भी मार दे तो पाप नहीं लगता है । अहंकृत भाव और अभिमान न हो । मैं कर्ता हूं, ये ही बाधा है । कर्तृत्व अपने में नहीं है । जैसे सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है, ऐसे ही एक क्षेत्री संपूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है । ’ *शरीरस्थोsपि कौंतेय.....* ।’ भोक्तृत्व भाव से कर्तृत्व होता है । करना कर्तृत्व और मिलेगा भोक्तृत्व अर्थात् भोगना पड़ेगा । और वहां परमात्मा और विश्राम । कुछ नहीं करना, यह कुछ नहीं करने की शक्ति - भगवत् संबंधी बात करना और फल इच्छा नहीं रखना तो सबको प्राप्त हो जाएगा । अंधेरा मकान में पूरा ठोस भरा हुआ है । दीपक करते ही अंधेरा होता है ? ऐसे कितना ही भारी पाप हो सबसे अधिक पाप करने वाला है, वह भी ज्ञान रूपी नौका से तर जाएगा । हिंदू हो, इसाई हो, सबके लिए है । शरीर संसार किसी का नहीं है । छोड़ना पड़ेगा । वह (संसार) छोड़ेगा तो लाभ नहीं होगा । आप छोड़ोगे तो लाभ होगा । परमात्मा सब को प्राप्त है, पूरा का पूरा । रूपयों से सब मिलता है । ऐसे फंस गए । मानो ये भाव है कि रुपयों से जन्म मरण मिट जाएगा । (पर रूपयों से जन्म मरण नहीं मिटेगा ) ।
’ *ईश्वर अंश जीव अबिनाशी ।’*
’ *चेतन अमल सहज सुख राशि* ।।’
संसार मल सहित है और दु:ख की राशि है । आप सब के सब ईश्वर अंश जीव अविनाशी हो । जो उत्पत्ति विनाश वाली, संयोग और वियोग वाली होता है, उत्पन्न होता है, वो अपना नहीं होता है । जिसमें संयोग और वियोग नहीं हो, वह योग है । उसमें सब जीवों की स्थिति स्वाभाविक है । आनंद ही आनंद । इस वास्ते बद्ध अवस्था में भी मुक्ति है । ये कल्पना मिट जाएगी । स्वरूप में स्थिति स्वत: है । असत् की सत्ता मानने से उसका अनुभव नहीं हो रहा है ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

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श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 06:43


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

30 Nov, 06:43


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

साधक के द्वारा किसी को कष्ट न पहुंचे । आपके पास जो धन, योग्यता, अधिकार, विद्या आदि है, उसके द्वारा दूसरों की सेवा करके उसका टैक्स चुकाना है ।


*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४६*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 17:00


*एक बातपर ध्यान दें*

अपने-आप जो चिन्तन होता है, वह मनमें होता है, आपमें नहीं होता। आप अलग हैं, मन अलग है। जैसे आपके मनमें चिन्तन होता है, ऐसे ही कुत्तेके मनमें भी चिन्तन होता है, तो आप क्या करोगे। जैसा कुत्तेका अथवा गधेका मन है, वैसा ही यह मन है। दोनों एक ही जातिके हैं। आप उससे मिल जाते हैं, यह गलती होती है। आप मिलो मत। विचार करो कि गलती कहाँ है? चिन्तन होना गलती नहीं है, गलती यह है कि आप चिन्तनमें मिल जाते हो। आप उससे अलग हो जाओ। आप मनमें होनेवाले चिन्तनसे मिलो मत, भगवान्‌के चरणोंमें रहो तो वह मिट जायगा

*एक बातपर ध्यान दें। परमात्मा सत्र जगह हैं तो जो चिन्तन होता है, उसमें क्या परमात्मा नहीं है? इसलिये या तो चिन्तनकी उपेक्षा कर दो, या उसमें भगवान्‌को देखो। दोनोंका परिणाम एक ही होगा। सेठजीने 'तत्त्वचिन्तामणि' के चौथे भागमें लिखा है कि भगवान्‌के लिये एकान्तमें बैठ जाओ। फिर यह संकल्प कर लो कि मेरे मनमें जो आयेगा, भगवान् ही आयेंगे और मेरा मन कहीं जायगा तो भगवान्म हो जायगा; क्योंकि भगवान्‌के लिये ही मैं बैठा हूँ। इतनी सावधानी आपको रखनी है। फिर संसार मिट जायगा और भगवान् रह जायेंगे।*

*‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे* पुष्ट क्रमांक ४२

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 16:59


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 16:58


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *उनचालीसवाँ दिन*
*1-दिनांक-21-11-2024*
*2-वार-गुरुवार।*
*3-गीता पाठ दसवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 01 से 10 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 21-अक्टूबर - 1993 प्रात:5:00 बजे*

*5-काम वृत्ति कैसै मिटै?*



🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 11:35


श्रोता‒‘है’ को मान लिया, पर प्रत्यक्ष अनुभव हुए बिना यह मान्यता टिकती नहीं है !

स्वामीजी‒देखो भाई ! यह आँखसे नहीं दीखेगा । देखना दो तरहका होता है‒एक आँखसे होता है और एक भीतरमें माननेसे होता है । भीतरसे अनुभव हो जाय, बुद्धिसे बात जँच जाय‒इसको देखना कहते हैं । यह ‘है’ आँखसे कभी दीखेगा ही नहीं । यह तो माननेमें ही आता है । आपका नाम, जाति, गाँव, मोहल्ला, घर क्या अभी देखने में आ रहे हैं ? देखने में नहीं आ रहे हैं तो क्या ये नहीं हैं ? जो देखने में नहीं आता, वह होता ही नहीं‒ऐसी बात नहीं है । जो देखनेमें नहीं आता, वही होता है । परमात्मा देखनेमें न आनेपर भी हैं । नाम, जाति आदिके होनेमें कोई शास्त्र आदिका प्रमाण नहीं है, प्रत्युत यह केवल आपकी कल्पना है । परन्तु परमात्माके होनेमें शास्त्र, वेद, सन्त-महात्मा प्रमाण हैं और उसको माननेका फल भी विलक्षण (कल्याण) है । इसलिये परमात्माको दृढ़तासे मानो ।

गलती तो पैदा होनेवाली और मिटनेवाली है, पर परमात्मा पैदा होनेवाला और मिटनेवाला नहीं है । पैदा होनेवाली वस्तुसे पैदा न होनेवाली वस्तुका निषेध क्यों करते हो ? हमारेसे झूठ-कपट हो गया तो यह परमात्माका होनापन थोड़े ही मिट गया ! परमात्मा के होने में क्या बाधा लगी ? यह मानो कि पाप हो गया तो वह भूल हुई, पर परमात्मा है‒यह भूल नहीं है । परमात्माको जितनी दृढ़तासे मानोगे, उतनी भूलें होनी मिट जायँगी । जिस समय भूल होती है उस समय आप ‘परमात्मा है’‒इसको याद नहीं रखते । इसकी याद न रहनेसे ही भूल होती है । जो ‘है’ उससे विमुख हो जाते हैं, उसको भूल जाते हैं, तब यह भूल होती है । इसलिये अपनेको उससे विमुख होना ही नहीं है । कभी अचानक कोई भूल हो भी जाय तो उस भूलको महत्त्व मत दो । जो सच्ची चीज है, उसको महत्त्व दो । भूल तो मिट जाती है, पर परमात्मा रहता है, मिटता है ही नहीं । जो हरदम रहता है, उसको मानो । अब बोलो, क्या बाधा लगी ?

सत्‌-असत्‌का विवेक

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:45


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 11 अक्टूबर 1993 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - कृपा को देखो ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश’ ’आता है । इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि साधन, सत्संग करने वाला मनुष्य अपने जीवन को देखें कि समझ आने के बाद इतना जीवन बीता है उसमें जब-जब अभिमान किया है, संसार का सहारा लिया है, तब तब असफलता मिली है, दुःख आया है । और जब जब भगवान् की कृपा की तरफ दृष्टि गई है और अभिमान नहीं किया है, अपना आग्रह नहीं किया है, सत्संग भजन किया है, तो भगवान् की कृपा समझ में आती है । कहां था किस परिस्थिति में था । इसमें कैसे भगवान् ने ऊंचा उठाया ? जानते नहीं थे, वहां से निकाला । किन किन परिस्थितियों से निकाला । अंधेरे में प्रकाश दिया । सत्संग में ज्ञान कराया । किस तरह से भगवान् की कृपा रही है । गुप्त रीति से । भगवान् देते हैं और जनाते नहीं हैं । भगवान् ने अच्छे रास्ते में लगाया है । उनके सम्मुख हो गए । भजन करने लग गए । दुर्भावों को मिटाया है । संग मिला है । सहारा मिला है । इस बात को अगर देखें तो भगवान् की कृपा पर विश्वास हो जाए । सत्संग में कितनी बातें मिली । होश आया । नहीं तो बेहोश पड़ा था । उस कृपा का भरोसा, उसका ही विश्वास । ऐसे चले । भगवान् की कृपा को अच्छी तरह से देखता रहे । हृदय, वाणी और शरीर से नमस्कार करता रहे । क्या था और क्या कर दिया ? कहां मैं था और कहां पहुंचा दिया ? इस तरह से सजगता आती है । कितनी कृपा भगवान् की है । देते हैं भगवान्, पर आदमी अपनी ही मानता है । भगवान् कितना चेताते हैं - घटना के द्वारा चेताते हैं । सत्संग के द्वारा चेताते हैं । दरवाजा खुलता है और नींद खुल जाती है । हल्ला होता है और नींद खुल जाती है । कितनी कृपा करते हैं । अनंत जीव हैं, कृपा सब पर करते हैं । हम सत्संग करना चाहते हैं, छोड़ना नहीं चाहते, पर छुड़ा देते हैं । उससे अगाड़ी अच्छा सत्संग दिला देते हैं ।

’ *हेतु रहित जग जुग उपकारी ।’*
’ *तुम तुम्हारे सेवक असुरारी’ ।।*
ऐसे भगवान् कृपा करते हैं । कृपा देखें तो देख देख कर मस्त हो जाए । बच्चा मां के उपकार को क्या समझे ? मां तो कर ही रही है । बच्चे की समझने की शक्ति नहीं है । ऐसे भगवान् कर रहे हैं । समझ ही नहीं सकते । एक संत गाते हैं - प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो । भगवान् अवगुण चित्त धरते ही नहीं हैं । भगवान् कृपा ही कृपा करते रहते हैं । लोग भगवान् को कहते हैं - मेरे को दु:ख देते हैं, क्या कर रहे हैं ? भगवान् इन बातों को देखते हैं, इन बातों को सुनते हैं, फिर भी कृपा को रोकते नहीं हैं । कृपा करते ही रहते हैं । भगवान् के सम्मुख हो जाता है, तो भगवान् की विशेष जिम्मेदारी आ जाती है । एक साधु मिले वह कहते थे कि मेरे कहने में संकोच होता है - पता नहीं भगवान् क्या कर बैठें । कहने से डर लगता है कि कृपा करो । पता नहीं सही (सहन होगी) भी जाएगी कि नहीं सही (सहन नहीं होगी) जाएगी । आदमी बेहोश रहता है - विद्या में, बुद्धि में, योग्यता में । अरे ! तू है क्या ? फिर भी कृपा करते हैं भगवान् । भगवान् चेताते हैं । एक बार मैं बीकानेर गाड़ी से उतरा । लोग सीधे ही सत्संगमें ले गए । मन में आया कि सत्संग मिलता है । सुनते हैं, सुनाते हैं, पर लायक नहीं हैं । हमारे में ऐसे लक्षण नहीं हैं । फिर भी भगवान् कृपा करते हैं । क्या ही कृपालु भगवान् हैं । कृपा करते ही रहते हैं । कहते हैं - भगवान् कृपा नहीं करते, दुःख देते हैं । भगवान् सब सुन लेते हैं । फिर भी कृपा करते हैं । बड़ा ही विचित्र स्वभाव है भगवान् का । भगवान् के समान कौन उदार हो सकता है । नारद जी के मन में आई । नारद जी घबरा गए । नारद जी के मन में आया - ऐसा क्यों किया भगवान् ने । भगवान् से पूछा आपने मेरा विवाह क्यों नहीं करने दिया ? भगवान् बोले देख मैंने विवाह किया रोता फिरता हूं । ऐसे मैं तेरे को नहीं देखना चाहता था । ऐसे भगवान् कृपा करते हैं । नारद जी को गुस्सा आया, शाप दिया - मेरी तरह स्त्री के वियोग में रोना पड़ेगा । नारद जी ने देखा भगवान् ने मेरा शाप स्वीकार किया है ।
एक भाई ने कहा - मेरे पास बहुत धन था, एक वक्त ऐसा आया सुबह रोटी बनी शाम को बनेगी कि नहीं बनेगी पता नहीं । एक ही उम्र में कितना फर्क । (भगवान् चेताते हैं) अभिमान मत कर, घमंड मत कर । कैसे कैसे उपदेश देते हैं । किन किनसे उपदेश दिला देते हैं । एक पंडित जी थे । साइकिल पर कहीं जा रहे थे । रोड के बीच में साइकिल से जा रहे थे । पीछे से गाड़ी आई - तो ड्राइवर ने कहा कि बीच में चल रहा है, क्या तो

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:45


इधर हो जा, या उधर हो जा । तो उपदेश मिल गया, उनको (पंडित जी को) होश आ गया - भगवान् में लगो। तो भगवान् के सम्मुख हो जाए तो भगवान् के गुण आ जाएं । देवी संपत्ति आ जाए । और मनुष्य मान लेता है अपना गुण । विचित्र कृपा है भगवान् की । कृपा करना छोड़ते ही नहीं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

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श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:45


🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
*🌹राधा राधा राधा राधा राधा🌹*

*🌹श्रीभाईजी-एक अलौकिक विभूति🌹*

*🌹भाग-१४१🌹*

*🌹स्वर्गाश्रम (गीताभवन) में सत्संग🌹*

*🌹उत्तराखण्ड हमारे देश का शताब्दियों से साधना-स्थल रहा है। इसी उत्तराखण्ड की पवित्र भूमि ऋषिकेश में श्रीसेठजी ने एक सत्संग-सत्र खोल दिया था।* *यह क्रम सं० १९७८-७९ (सन् १९२१-२२) के लगभग प्रारम्भ होकर अभीतक निर्बाध चल रहा है।* *प्रतिवर्ष श्रीसेठजी चैत्र से आषाढ़ तक अधिकांश समय वहीं रहते एवं सत्संगियों का एक बड़ी ही श्रद्धा के साथ एकत्रित होकर सुरसरि की कलकल करती पावन धारा से गुंजित पुलिन पर भगवद्रस का आस्वादन करता।* *कुछ समय बाद यही आयोजन गंगा के तटपर, जिसे स्वर्गाश्रम कहते हैं, आयोजित होने लगा। उस समय वहां समन जंगल था, रहने के लिये मात्र कुछ कुटियाएँ थी।* *गंगातट पर विशाल वटवृक्ष की छाया में भगवद्रस का प्रवाह बहता रहता।* *श्रीभाईजी सर्वप्रथम इस आयोजन का लाभ लेने के लिये बम्बई से चैत्रशुक्ल पक्ष सं० १९८१ (सन् १९२४) में गये। इससे पूर्व वहाँ के सत्संगी श्रीसेठजी द्वारा इनकी साधना के बारे में बहुत कुछ बातें जान गये थे।* *भाईजीने वहाँ श्रीसेठजी के मार्मिक प्रवचनों का लाभ उठाया ही,साथ ही सत्संगी भाइयों के आग्रह पर अपनी साधना में कैसे उन्नत्ति हुई, इसपर भी प्रकाश डाला। यद्यपि भाईजी उस समय केवल तीन दिन ही रह सके, पर इनके अन्तस्तल की अनुभूत बातें सुनकर सभी प्रभावित हुए।* *इसके पश्चात् भाईजी कल्याण के कार्यवश तो नहीं जा पाते थे पर प्रायः जाया करते थे। सं० १९८६ (सन् १९२९) का चैत्र मास में जब भाईजी गये तब स्वामी शिवानन्द जी से मिले थे, और उसी वर्ष श्रीनारायण स्वामी से मिलकर उनके साधनमय जीवन के अनुभव की बातें लिखी थी। श्रीनारायण स्वामी एक अमीर घराने में पैदा हुए एक उच्च शिक्षित पुरुष थे।* *उस समय निरन्तर मौन रहकर'नारायण नाम का जप करते थे और अपने पास कुछ भी संग्रह नहीं करते थे। बाद में उनकी अनुभव की बातें गीताप्रेस से 'एक सन्त का अनुभव' नामक पुस्तक रूप में प्रकाशित हुई। उस वर्ष भाईजी गंगातट पर रात्रि के समय उन्मत्त अवस्था में मधुर नृत्य करते हुए विलक्षण ढंगसे संकीर्तन कराते थे।🌹*

*🌹श्रीसेठजी का तो हर वर्ष ही भाईजी को बुलाने का मन रहता था, किन्तु भाईजी जा नहीं पाते थे। आगे चलकर यहीं गंगातट पर सत्संगी भाइयों के निवास हेतु 'गीताभवन' नामक एक विशाल भवनका निर्माण हुआ।* *एक सत्संग-हाल का भी निर्माण हुआ एवं स्नान की सुविधा के लिये विशाल घाट भी बने। भाईजी के प्रवचन बड़े ही हृदयस्पर्शी हुआ करते थे और अध्यात्म-मार्ग के पथिक इस सत्संग-सत्र की उत्सुकता पूर्वक प्रतिक्षा करते रहते। श्रीसेठजी के देहावसान के पश्चात् इस आयोजन का सम्पूर्ण दायित्व भाईजी पर ही आ गया।* *उसके बाद भाईजी हर वर्ष जाते एवं दो-तीन महीने स्वर्गाश्रम ही रहते थे। 'कल्याण' का सम्पादन कार्य भी वहीं से होता था।* *श्रीसेठजी के सामने सत्संग का क्रम लगभग बारह-तेरह घण्टे प्रतिदिन चलता था एवं उन दिनों श्रीसेठजी के आग्रह से भाईजी भी चार-पाँच घण्टे प्रतिदिन प्रवचन देते थे।* *श्रीसेठजी के पश्चात् भाईजी प्रायः एक-एक घण्टे दो समय सत्संग कराते थे। सच्चे साधक, जो एक बार इस रस का आस्वादन कर लेते वे प्रायः हर वर्ष ही आने का प्रयत्न करते। अन्य सन्त-महात्माओं को आमन्त्रित करके उनके प्रवचनों की भी व्यवस्था की जाती थी।* *प्रवचन के अतिरिक्त साधक भाईजी से एकान्त में भी अपनी-अपनी व्यक्तिगत समस्याओं का हल पूछने हेतु समय की माँग करते रहते थे। प्रवचन के समय भी सत्संगी भाई अपने-अपने प्रश्न लिखकर भाईजी को दे देते, जिनका भाईजी समयानुसार समाधान करते थे।* *रात्रि में भाईजी के निवास स्थान (डालमिया कोठी) पर पद गायन एवं संकीर्तन का कार्यक्रम रहता और पूर्णिमा, अमावस्या एवं एकादशी को गीता-भवन में संकीर्तन का आयोजन होता था।* *भाईजी सं० २०२६ (सन् १९६९) तक बराबर जाते रहे, केवल एक वर्ष स्वास्थ्य ठीक न रहने से नहीं जा सके।🌹*
*क्रमशः*

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:37


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:37


*राम राम*
सुख दुःख आंटा जिवण जेवङी रा
सुख दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरि:
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
बेटो कहायो बाप कहायो
बेटो कहायो बाप कहायो
ओर कहायो काको हरिः
हां बेटो कहायो बाप कहायो
ओर कहायो काको हरिः
बाप कहाले चाहे दादो कहायले
बाप कहायै चाहे दादो कहायले
हो बिगङे ऐक दिन खाखो रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः

हां तरुण भयो जब नारी पुरुष को
तरुण भयो जब नारी पुरुष को
बन्धन जोङूयो आखो हरिः
तरुण भयो जब नारी पुरुष को
बन्धन जोङ्यो आखो हरिः
घर ग्रहस्ती की गाडी लगायदी
घर गृहस्थी की गाडी लगायदी
सूरज छिपे बेगा हांको रे जिवङा
दिन दिन होय रयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
ओ आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रहयो पाको हरिः
सुख भोगे जब
सुख भोगे जब अकल सरावे
सुख भोगे जब अकल सरावे
म्हे ही धिकांवा धाको हरिः
सुख भोगे जब अकल सरावे
म्हे ही धिकावां धाको हरिः
दुःख पावे जब राम के उपर
दुःख पावे जब राम के उपर
हो झुठो लगावे लाको रे जिवङा
दिन दिन हो रह्यो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंठा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे
बेटो सुपात्र म्हांको हरिः
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे
रुपिया घणा कमाकर ल्यावे

बेटो सुपात्र म्हाकों हरिः
हाण हट्या मुंडे नही बोले
हाण हट्या मुडें नही बोले
हो दरङे माही नाखो रे जिवङा
दिन दिन हो रहयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख-दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख दुःख आंटा
ओ आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन हो रयो पाको हरिः
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
ऐक तार कर राखो हरिः
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
सुख दुःख का दोय आंटा खोलो
ऐक तार कर राखो हरिः
माधो कहे समता मे रहकर
माधो कहे समता मे रहकर
हो राम नाम मुख भाको रे जिवङा
दिन दिन होय रयो पाको हरिः
जिवण जेवङी रा सुख-दुःख आंटा
जिवण जेवङी रा सुख-दुःख आंटा
आयो उमर वालो नाको रे जिवङा
दिन दिन होय रयो पाको हरिः
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 09:37


आज का भजन 🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

20 Nov, 05:20


।।श्रीहरि:।।🌺

संसारकी इच्छा न छूटे तो भगवान् से प्रार्थना करो कि *'हे नाथ! संसारकी इच्छासे पिण्ड छुड़ाओ'!* उनकी कृपासे काम होगा।

भगवान् कृपा कैसे करते हैं - यह मैं नहीं जानता, *पर वे कृपा करते हैं - यह मैं जानता हूँ। हमारी योग्यताके बिना काम होता है-ऐसी कृपा भगवान् करते हैं!*

*सच्ची बातका दुःख भगवान् से सहा नहीं जाता।*

*परन्तु संसारके लिये रोओ तो भगवान् सह लेते हैं! मर जाओ तो भी परवाह नहीं करते !*

परमात्माकी इच्छा जोरदार हो और रो पड़ो तो *यह दुःख भगवान् सह नहीं सकते; क्योंकि यह सच्चा दुःख है।*

🌟 *मैं नहीं, मेरा नहीं* पृष्ठ ९३ गीता प्रकाशन *परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज* नारायण !नारायण! नारायण! नारायण!

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:55


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:54


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *तेतीसवाँ दिन*
*1-दिनांक-15-11-2024*
*2-वार-शुक्रवार।*
*3-गीता पाठ आठवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 1से 10तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 14 - जनवरी 1993 प्रात:5:00 बजे*

*5-विवेक की महत्ता,अहम का नाश।*



🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:06


॥ श्रीहरिः ॥

*सत्संग भगवान्की दयासे ही मिलता है। सत्संगसे जो लाभ है वह उनकी दयासे ही है।*

*सत्संग ईश्वरकी वह कृपा है जो परम लाभ पहुँचाती है, उसकी कोई सीमा नहीं। लाभ उठानेवालोंपर यह बात निर्भर करती है।*

*उसकी दयाको हमलोग जितनी समझते हैं वह थोड़ी है। भगवान्‌की दयाकी कोई सीमा नहीं है, अपरिमित है। हमलोगोंको उसकी जो दया समझमें आती है वह सीमित है।*

*किंतु अपने ऊपर उत्तरोत्तर अधिक-से-अधिक भगवान्‌की दया समझें तो शीघ्र ही भगवान्‌की प्राप्ति हो सकती है।*

*इसलिये हर एक लीलामें, हर बातमें, हर समयमें दया देखें और उसे देखते-देखते इतना मुग्ध हो जायँ कि भगवान् ही आकर चेत करावें।*

*जबतक भगवान्के साक्षात् दर्शन नहीं हों तबतक यह समझें कि हम लोगोंने भगवान्‌की पूरी दया समझी ही नहीं।*

–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठजी)
–‘अमूल्य समय का सदुपयोग’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:05


॥ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
*सत्यकी स्वीकृतिसे कल्याण*

एक मार्मिक बात है कि *असर शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिपर पड़ता है, आपपर नहीं।* जिस जातिकी वस्तु है, उसी जातिपर उसका असर पड़ता है, आपपर नहीं पड़ता, क्योंकि आपकी जाति अलग है। शरीर संसार जड़ हैं, आप चेतन हो। जड़का असर चेतनपर कैसे पड़ेगा ? जड़का असर तो जड़ (शरीर)-पर ही पड़ेगा। यह सच्ची बात है। इसको अभी मान लो तो अभी काम हो गया !

आँखोंके कारण देखनेका असर पड़ता है। कानोंके कारण सुननेका असर पड़ता है। तात्पर्य है कि असर सजातीय वस्तुपर पड़ता है। अतः कितना ही असर पड़े, उसको आप सच्चा मत मानो। आपके स्वरूपपर असर नहीं पड़ता। स्वरूप बिलकुल निर्लेप है -' *असङ्गो ह्ययं पुरुषः'* (बृहदा० ४।३। १५)। मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो पड़ता रहे। मन-बुद्धि हमारे नहीं हैं। ये उसी धातुके हैं, जिस धातुकी वस्तुका असर पड़ता है।

प्रश्न- फिर सुखी और दुःखी स्वयं क्यों होता है ?

उत्तर-*मन-बुद्धिको अपना माननेसे ही स्वयं सुखी-दुःखी होता है।* मन- बुद्धि अपने नहीं हैं, प्रत्युत प्रकृतिके अंश हैं। आप परमात्माके अंश हो। मन-बुद्धिपर असर पड़नेसे आप सुखी-दुःखी होते हो तो यह गलतीकी बात है। वास्तवमें आप सुखी-दुःखी नहीं होते, प्रत्युत ज्यों-के-त्यों रहते हो। विचार करें, अगर आपके ऊपर सुख-दुःखका असर पड़ जाय तो आप अपरिवर्तनशील और एकरस नहीं रहेंगे। आपपर असर पड़ता नहीं है, प्रत्युत आप अपनेपर असर मान लेते हैं। कारण कि आपने मन-बुद्धिको अपने मान रखा है, जो आपके कभी नहीं हैं, कभी नहीं हैं। मन- बुद्धि प्रकृतिके हैं और प्रकृतिका असर प्रकृतिपर ही पड़ेगा।

प्रश्न-असर पड़नेपर वैसा कर्म भी हो जाय तो ?

उत्तर-कर्म भी हो जाय तो भी आपमें क्या फर्क पड़ा ? आप विचार करके देखो तो आपपर असर नहीं पड़ा। परन्तु मुश्किल यह है कि आप उसके साथ मिल जाते हो। आप मन-बुद्धिको अपना स्वरूप मानकर ही कहते हो कि हमारेपर असर पड़ा। मन-बुद्धि आपके नहीं हैं, प्रत्युत प्रकृतिके हैं- *'मनः षष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति'* (गीता १५। ७) और आप मन-बुद्धिके नहीं हो, प्रत्युत परमात्माके हो- *'ममैवांशो जीवलोके'* (गीता १५। ७)। इसलिये असर मन- बुद्धिपर पड़ता है, आपपर नहीं। आप तो वैसे-के-वैसे ही रहते हो - *'समदुःखसुखः स्वस्थः'* (गीता १४। २४)। प्रकृतिमें स्थित पुरुष ही सुख- दुःखका भोक्ता बनता है- *'पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान्'* (गीता १३।२१)। मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो पड़ता रहे, अपनेको क्या मतलब है ! असरको महत्त्व मत दो। इसको अपनेमें स्वीकार मत करो। आप 'स्व' में स्थित हैं- *'स्वस्थः।'* असर 'स्व' में पहुँचता ही नहीं। असत् वस्तु सत् में कैसे पहुँचेगी ? और सत् वस्तु असत् में कैसे पहुँचेगी ? सत् तो निर्लेप रहता है।

*मन-बुद्धि चाहे आपके हों, चाहे एक कुत्तेके हों, उनसे आपका कोई सम्बन्ध नहीं है।* कुत्तेके मन-बुद्धिपर असर पड़ता है तो क्या आप सुखी-दुःखी होते हो ? जैसे कुत्तेके मन-बुद्धि आपके नहीं हैं, ऐसे ही आपके मन-बुद्धि भी वास्तवमें आपके नहीं हैं। मन-बुद्धिको अपना मानना ही मूल गलती है। इनको अपना मानकर आप मुफ्तमें ही दुःख पाते हो !

एक मार्मिक बात है कि *हमारे और परमात्माके बीचमें जड़ता (शरीर- संसार) का परदा नहीं है, प्रत्युत जड़ताके सम्बन्धका परदा है।* यह बात पढ़ाईकी पुस्तकोंमें, वेदान्तके ग्रन्थोंमें मेरेको नहीं मिली। केवल एक जगह सन्तोंसे मिली है। इसलिये शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसे हमारा बिलकुल सम्बन्ध नहीं है-ऐसा स्वीकार कर लो तो आप निहाल हो जाओगे।

प्रश्न- जड़ताका सम्बन्ध छोड़नेके लिये क्या अभ्यास करना पड़ेगा ?

उत्तर-*जड़ताका सम्बन्ध अभ्याससे नहीं छूटता, प्रत्युत विवेक-विचारसे छूटता है।* यह अभ्याससे होनेवाली बात है ही नहीं। विवेकका आदर करो तो आज ही यह सम्बन्ध छूट सकता है।

*आप दो बातोंको स्वीकार कर लें-जानना और मानना। जड़के साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है- यह 'जानना' है और हमारा सम्बन्ध भगवान् के साथ है- यह 'मानना' है।*

अनन्त ब्रह्माण्डोंमें केश-जितनी चीज भी हमारी नहीं है- यह जाननेपर जड़ताका असर नहीं पड़ेगा। इसमें अभ्यास काम नहीं करता, पर विवेकसे तत्काल काम होता है। आपपर असर नहीं पड़ता, आप वैसे- के-वैसे ही रहते हो। वास्तवमें मुक्ति स्वतः स्वाभाविक है। *मुक्ति होती नहीं है, प्रत्युत मुक्ति है।* जो होती है, वह मिट जाती है और जो है, वह कभी मिटती नहीं-

*'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।*'
(गीता २।१६)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 16:05


'असत् की सत्ता विद्यमान नहीं है और सत् का अभाव विद्यमान नहीं है।' आपने असरको सच्चा मान लिया, जो कि असत् है, झूठा है। मन-बुद्धिके साथ आपका सम्बन्ध है ही नहीं। श्रीशरणानन्दजी महाराजसे किसीने पूछा कि कुण्डलिनी क्या होती है ? उन्होंने उत्तर दिया कि *कुण्डलिनी क्या होती है- यह तो हम जानते नहीं, पर इतना जरूर जानते हैं कि कुण्डलिनीके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है।* कुण्डलिनी सोती रहे अथवा जाग जाय, हमारा उससे क्या मतलब ? ऐसे ही शरीर-संसारके साथ हमारा सम्बन्ध ही नहीं है। अतः उसके असरका आदर मत करो। यह अभ्याससे नहीं होगा। अभ्यास एक नयी स्थिति पैदा करता है। जैसे, रस्सेपर चलना हो तो इसके लिये अभ्यास करना पड़ेगा। अभ्याससे कुछ लाभ नहीं होगा। अभ्याससे तत्त्वज्ञान कभी हुआ नहीं, कभी होगा नहीं, कभी हो सकता नहीं। विवेकका आदर करो तो आज ही, अभी निहाल हो जाओगे।

नारायण .. नारायण ... नारायण .... नारायण ....

हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं !!!

–परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
–‘मानवमात्रके कल्याणके लिए’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 10:45


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 10:44


*जय सियाराम !*
*(मायाकी-मोहिनी)*

‘क्या करें जिम्मेवारी निबाहना भी मनुष्यका धर्म है। हम सब समझते हुए जिम्मेवारीका त्याग कैसे कर दें?’ *बड़े जिम्मेवार बन रहे हो।* और बात तो जाने दो, शरीरकी जिम्मेवारी तो निबाहो। तुम्हारी जिम्मेवारीका निर्वाह तभी समझा जायगा, जब तुम इसे बीमारी या मौतके मुँहसे बचा सकोगे। जब तुम शरीरकी जिम्मेवारी भी नहीं निभा सकते, तब और जिम्मेवारीकी तो बात ही कौन-सी है? *बिना ही बनाये पंच बनकर जिम्मेवार बन बैठे हो।★*

*मोहने ही प्रेमका स्वाँग भरकर तुम्हारे ऊपर जिम्मेवारी और कर्तव्यका बोझ लाद रखा है।★★* उतारकर फेंक दो न जिम्मेवारीके इस बोझको। *तुरंत हलके हो जाओगे।*

परम पूज्य *"भाईजी”*
श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 10:44


*राम राम*
हां महाराज हां महाराज
हां महाराज हां महाराज
अर्जुन कहहि अच्युत अब मोरा
हां महाराज हां महाराज
नाशेहू मोह अनुग्रह तोरा
हां महाराज हां महाराज
सूरति मोहि लभिगत संदेहा
हां महाराज हां महाराज
पाल्लिहू तोर वचन सस्नेहा
हां महाराज हां महाराज
समता माझ भई प्रिति मेरी
हां महाराज हां महाराज
मिटी कामना जूग जूग केरी
हां महाराज हां महाराज
हातव विमुख अनत भटकावे
हां महाराज हां महाराज
सन्मुख होयी परम सुख पावा
हां महाराज हां महाराज
होतो सदा शरण म्ह॔ तोरी
हां महाराज हां महाराज
याद न रही भूल अति मोरी
हां महाराज हां महाराज
मिटी असत जग के प्रतिती
हां महाराज हां महाराज
जाग्रत भयी चरण तब प्रिति
हां महाराज हां महाराज
जानेहू निज स्वरुप अविनासी
हां महाराज हां महाराज
जङता मूल देह बुद्धी नाशी
हां महाराज हां महाराज
मो पर किरपा भयी अधिताई
हां महाराज हां महाराज
सब दिशी आप ही आप लखाहि
हां महाराज हां महाराज
जो कुछ कहो करु मे स्वामी
हां महाराज हां महाराज
नाथ नमामि नमामि नमामि
हां महाराज हां महाराज
जय श्रीकृष्ण पार्थ धनु धारी
हां महाराज हां महाराज
नर नारायण जग हित कारी
हां महाराज हां महाराज
यह गीता हरिःमुख की बानी
हां महाराज हां महाराज
लखी बड बड आचार्यज ज्ञानी
हां महाराज हां महाराज
लिखतन थके इन्ही पर टिका
हां महाराज हां महाराज
दरस हि जो पथ लागई निका
हां महाराज हां महाराज
बन्दउ ताही सकल आचार्यज
हां महाराज हां महाराज
जग हित कियउ बहुत बड कारज
हां महाराज हां महाराज
देखहि बृहद ग्रंथ जब दोहू
हां महाराज हां महाराज
बाकी पठन रहहि नही कोउ
हां महाराज हां महाराज
*एक नाम साधकसंजीवनी*
*हां महाराज हां महाराज*
*दूसर जानेउ तत्व विवेचनी*
*हां महाराज हां महाराज*
*मो कहू समाधान जस होवर्ई*
*हां महाराज हां महाराज*
*बरणउ पक्ष पात नही कोई*
*हां महाराज हां महाराज*
*पूनि निज प्रभु कहहू करउ प्रणामा*
*हां महाराज हां महाराज*
*जाहि किरपा पाउ विश्रामा*
*हां महाराज हां महाराज*
*जय श्रीकृष्ण पार्थ धनुधारी*
*हां महाराज हां महाराज*
*नर नारायण जग हितकारी*
*हां महाराज हां महाराज*
*हां महाराज हां महाराज*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 06:04


।। श्रीहरिः ।।🌺

*तुलसी की कण्ठी क्यों धारण करते हैं ?*

* वैष्णव *इसीलिये* गले में तुलसी की कण्ठी धारण करते हैं। *ये - *यह शरीर भगवान् को अर्पण हो गया।*

* 🌷 जिस वस्तु में आप तुलसी-पत्र रखते हो, वह *कृष्णार्पण* हो जाती है । तुलसी-पत्र के बिना भगवान् स्वीकार नहीं करते ।

* *गले में तुलसी की माला धारण करने का अर्थ यह है कि यह शरीर अब भगवान् को अर्पण हुआ है।*

* *शरीर भगवान् *का** है, शरीर भगवान् *के लिये - * है।* बहुत-से लोग गले में तुलसी की कंठी तो धारण करते हैं-उसका अर्थ नहीं समझते ।

🌟 भागवत- पुस्तक से, पुस्तक कोड- 2009, पृष्ठ संख्या- ३४, गीताप्रेस, गोरखपुर
*सन्त श्रीरामचन्द्र केशव डोंगरेजी महाराज*
नारायण !नारायण!नारायण! नारायण!

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 04:17


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : १६
--- :: x :: ---

*यदि कोई स्वयं अपनेको दोषी स्वीकार करे, तब भी साधक उसे उस की वर्तमान निर्दोषताका स्मरण दिला कर उसे सदाके लिये निर्दोषता सुरिक्षित रखनेकी प्रेरणा देता है और उससे वर्तमान निर्दोषताके अनुरूप ही व्यवहार करता है | इस दृष्टिसे परस्पर निर्दोषता सुरिक्षित रखनेका बल प्राप्त होता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२९, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 03:20


*।। श्रीहरि: ।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-त्रयोदशी(सुबह 09:43 तक)चतुर्दशी(कल प्रातः06:20 तक)*
*नक्षत्र-अश्विनी(रात्रि 12:33 तक)*
*वार-गुरुवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-14 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-दोपहर 01:30 से 03:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-मेष*
*अग्निवास-पृथ्वी*
*दिशाशूल-दक्षिण*
*व्रत पर्व विवरण-वैकुण्ठ चतुर्दशी,विश्वेश्वर व्रत,कार्तिक चौमासी चौदस,बाल दिवस,सर्वार्थसिद्धि योग।*
*👉कल-कार्तिक पूर्णिमा,पुष्कर स्नान।*
*16 नवम्बर शनिवार-वृश्चिक संक्रांति।*
*22 नवम्बर शुक्रवार-कालभैरव जयन्ती।*
*26 नवम्बर मंगलवार-उत्पन्ना एकादशी।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

14 Nov, 01:45


*राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 साक्षात् प्रेमावतार, श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा 🌹 परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹 भगवान जो इतनी ऊंची चीज़ हैं, वे दुर्लभ नहीं हैं, सुलभ हैं।🌹 केवल विश्वास कर लें।🌹 जय जय श्री राधे 🌹🙏🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 16:59


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 16:58


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷तीसवाँ दिन
*1-दिनांक-12 -11-2024*
*2-वार-मंगलवार।*
*3-गीता पाठ सातवाँ अध्याय - श्लोक संख्या 01 से 10 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 05 -जून - 1992* प्रात:5:00 बजे

*5-अहम् की निवृत्ति, अच्छाई का अभिमान, बुराई की जड़।*



🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 15:56


॥ श्रीहरिः शरणम् ॥

*प्रश्न - हम दूसरों के दोष क्यों देखते हैं ?*

*उत्तर - क्योंकि हम अपने दोषों को नहीं देखते।*

*प्रश्न - पूजा का क्या अर्थ है ?*

*उत्तर - संसार को भगवान् का मानकर उन्हीं की प्रसन्नतार्थ संसार से मिली हुई वस्तुओं को संसार की सेवा में लगा देना ही पूजा है।*

*प्रश्न - भगवत्प्राप्ति में विघ्न क्या है ?*

*उत्तर - संसार को पसन्द करना ही सबसे बड़ा विघ्न है।*

*प्रश्न - दुःख क्यों होता है ?*

*उत्तर - सुख-भोग से ही दुःख रूप वृक्ष उत्पन्न होता है। ऐसा कोई भी दुःख नहीं है, जिसका जन्म सुख-भोग से न हुआ हो।*

*प्रश्न - दुःख और सुख का परिणाम क्या है ?*

*उत्तर - जो सुख किसी का दुःख बनकर मिलता है वह मिट कर कभी न कभी बहुत बड़ा दुःख हो जाता है और जो दुःख किसी का सुख बन कर मिलता है वह मिट कर कभी न कभी आनन्द प्रदान करता है। प्राणी सुख से बँधता और दुःख से छूट जाता है। सुख से दुःख और दुःख से आनन्द मिलता है।*

–पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज
–‘प्रश्नोत्तरी संतवाणी - १ मानव सेवा संघ वृन्दावन की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:41


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : १३
--- :: x :: ---

* कर्त्तव्य-निष्ठ होनेकी माँग साधकको अकर्त्तव्यसे रहित कर देती है, जिसके होते ही स्वतः कर्त्तव्य-परायणता आ जाती है |

बुराई-रहित होनेसे बुराईका नाश होता है, किसी अन्य प्रकारसे नहीं | इतना ही नहीं, बुराईके बदलेमें भी जब भलाईकी जाती है, तब बुराई करनेवाला बुराई-रहित होनेके लिये तत्पर हो जाता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२८, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:41


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन 29 मई 1992 प्रातः 5:00 बजे ।

*विषय - अहम नाश की आवश्यकता ।*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश’ ’आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि संसार में तरह-तरह के दु:ख हैं । (संसार) दुःख देने वाला है, इससे कोई शोक बाकी नहीं रहेगा । ये जो मैं पन है, इसमें एक दर्प होता है, एक अभिमान होता है, एक "मैं पन" होता है । बाहर की चीजों को लेकर के धन संपत्ति, जमीन जायदाद, मेरे इतने आदमी हैं, इनको लेकर के जो बड़प्पन का अनुभव होता है, ये दर्प कहलाता हैं । घमंड कहलाता है । मैं समझदार हूं, मैं पढ़ा लिखा हूं मैं, ब्राह्मण हूं, मैं साधु हूं । इसको अंहकार कहते हैं । अहंकार से स्थूल अभिमान है, अभिमान से स्थूल दर्प है, घमंड है । ‘ मैं’ तो प्रत्यक्ष आसुरी संपत्ति है । मैं और मेरा माया है, बंधन है । ये साधन, असाधन के साथ, देवी संपत्ति, आसुरी संपत्ति के साथ भी रहता है । पढ़ाई करते हैं, साधन करते हैं, जप करते हैं, ध्यान करते हैं । समाधी लगाते हैं । इसमें भी अभिमान रहता है । समाधि में भी होता है, व्युत्थान में भी अभिमान होता है । इस अभिमान को दूर करना है, ये भी लक्ष्य में नहीं आता । इस अभिमान के मिटते ही स्वत: शांति मिलेगी । निर्ममो निरहंकार: । ये निरहंकार की स्थिति, ब्राह्मी स्थिति है । सात्विक भाव वाले उर्ध्व लोक में जाते हैं, राजस भाव वाले मृत्यु लोक में आते हैं । तामसी अधोगति में जाते हैं । यह भी तीन तरह का अभिमान रहता है । जब तक अहम रहता है, बंधन रहता ही है । कितनी समाधि लग जाए । अभिमान रहता है तो मुक्ति नहीं होती । अहंकार से रहित होने पर शांति मिलती है । मैं व्याख्यान देता हूं, अभिमान वैसा का वैसा ही रहता है ।

तो यह दूर कैसे हो ?

तो सबके यह जानने में आ जाए कि अभिमान है । जानने में कैसे आए ? कि मैं हूं ! यह सबसे पहले है । यह सब में है । गाय, भैंस, भेड़, बकरी सब में रहता है । अपने अपने ख्याल करो कि "मैं" दीखता है कि नहीं । यह आंखों से नहीं दीखेगा । यह बुद्धि और विवेक से दीखता है । मैं नाम अहंकार का है । हूँ नाम परा प्रकृति है । मैं है यह अपरा प्रकृति है । इसका अनुभव करना चाहे तो हर एक भाई बहन कर सकता है, कि मैं हूं । मैं जड़ है । हूं चेतन है । ये चिज्जड़ ग्रंथि है, झूठी है, पर छूटत कठिनाई (मुश्किल से छूटती है) । मैं जानता हूं, मैं नहीं जानता हूं । दोनों में अहम ज्यों का त्यों है । अहम के मिटने पर मुक्ति होती है । अपने स्वरूप में सब भूतों (प्राणियों) को देखता है, ये अहम के मिटने के बाद होता है । तो सबको अहम को पहचानने की जरूरत है कि यह अहम है । जैसे नेत्र से खंबा दीखता है । ऐसे भीतर एक प्रकाश होता है, उससे भान होता है, कि यह अहम है और यह (अहम) जिससे प्रकाशित होता है, यह आपका स्वरूप है । इसमें स्थित हो जाए । अनुकूलता, प्रतिकूलता में सुखी दु:खी होता है । राजी नाराज होता है, तो ये अहम का भोग होता है । संप्रदाय में भी - यह द्वैतवादी है, यह अद्वैत वादी है । उसमें भी अभिमान रहता है । मैं जानता हूं, समझदार हूं, इसमें भी अहम रहता है । इसका भान होता है । आज मन लगा, आज मन नहीं लगा अशांति रही । यह भी अहम का भोग हुआ । इस अहम से रहित होना है । साधक को चाहिए कि मैं इस अहम से रहित हूं । मैं ब्रह्म हूं, इसकी जरूरत नहीं है । वह (ब्रह्म) तो स्वत: है । मैं अहम रहित हूं, इसकी जरूरत है । अहम रहित हैं आप । इस (अहम को) पकड़ा हुआ है, छोड़ना है ।

नारायण । नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:41


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 09:40


*राम राम*
प्रेम बढावो जी थारे चरण कमल रो चेरो
थारे चरण कमल रो चेरो
म्हारो प्रेम जगाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
थारे चरण कमल गो चेरो
पड्यो रहूं दरबार आप रे
संन्तन मांही बसेरों
आठो पहर चाकरी करस्यूं
आठो पहर चाकरी करस्यूं
हरदम रहस्यू नेडो
थारे ह्रदय रहस्यू नेडो
म्हारी लगन लगाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
थारे चरण कमल रो चेरो
थारे चरण कमल रो चेरो
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
थारे चरण कमल रो चेरो
थारे चरण कमल रो चेरो
था ने छोड़ कठे नहीं म्हारो
ठोर ठिकानो डेरो
प्रभु था ने छोड़ कठे नहीं म्हारो
ठोर ठिकानो डेरो
झिड़क भी डारो तो नहीं छोडू
झिड़क भी डारो तो नहीं छोडू
पकड़ लियो अब लेरौ
था रो पकड़ लियो अब लेरौ
म्हारी लगन लगाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
म्हारो भाव बढ़ाओ जी
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
ज्यों राखोला त्यूं ही रहस्यू
करु न कोई बखेड़ों
प्रभु ज्यूं राखो ला त्यूं ही रहस्यू
करु न कोई बखेड़ों
प्रभु ज्यों राखो ला त्यूं ही रहस्यू
करु न कोई बखेड़ों
*आप बिना कोई नहीं म्हारो*
*आप बिना कोई नहीं म्हारो*
सब जग मांही अंधेरौ
प्रभु जी सब जग माहीं अन्धेरौ
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
म्हारो भाव बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
म्हारे आग लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
*था रो हूं बस इतणो जाणू*
*ओर नहीं कछू बेरौ*_
*प्रभु जी थारो हूं बस इतणो जाणूओर नहीं कुछ बेरों*
*अपणो जाण शरणं में राखौ*
*कृपा दृष्टि कर हेरौ*
*म्हाने कृपा दृष्टि कर हैरो*
म्हारो प्रेम बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
म्हारो भाव बढ़ाओ जी
म्हारी लगन लगाओ जी
था रे चरण कमल रो चेरो
था रे चरण कमल रो चेरो
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 05:56


🌿🌹🪷🙏🪷🌹🌿
*ॐ नमः शिवाय।*
(द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् )

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रिशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोमकारममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

*एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।*
*सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥*

*अन्यथा शरणम् नाऽस्ति, त्वमेव शरणम् मम्।*
*तस्मात्कारूण भावेन्, रक्ष माम् महेश्वर:॥*
💐🌹🌷🙏🌷🌹💐

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 03:03


राम।।🍁

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

*..किसीके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो..*

आपने चौरासी लाख देह धारण किये, पर किसी भी देहमें आप नहीं रहे तो फिर इस देहमें कैसे रहेंगे? इसलिये *देह रहते हुए ही 'मैं देहसे अलग हूँ'- यह अनुभव कर लो।* जैसे पण्डालमें रहते हुए भी आप पण्डाल नहीं हैं, मकानमें रहते हुए भी आप मकान नहीं हैं, ऐसे ही देहमें रहते हुए भी आप देह नहीं हैं। इस बातको जाननेकी बड़ी आवश्यकता है।

*तीन बातें हैं-आप देह नहीं हो, देह आपका नहीं है और आपके लिये नहीं है।* शरीरकी एकता संसारके साथ है। यह आपके काम नहीं आयेगा। देह मिला है केवल संसारकी सेवाके लिये, अपने सुखभोगके लिये बिलकुल नहीं। शरीरसे भोग भोगोगे तो नरकोंमें जाओगे !

आप भगवान् के अंश हो । आपका सम्बन्ध भगवान् के साथ है। अतः *भगवान् के सिवाय किसीके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो । किसीके साथ भी सम्बन्ध जोड़ना अनर्थका कारण है!* आजकल कई व्यक्ति केवल चेला बनानेके लिये ही साधु बनते हैं, व्याख्यान देते हैं! पहलेवाला सम्बन्ध तो टूटा ही नहीं, दूसरे सम्बन्ध बनाते हैं तो बड़ी दुर्दशा होगी !

*राम ! राम !! राम !!!*

परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज, पुस्तक- *ईश्वर अंस जीव अबिनासी* पृष्ठ १७१

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 03:03


।। जय श्री गौ माता ।।

बहुत-से लोग घर में गाय नहीं रखते हैं, कुत्ते को रखते हैं । उनको गाय की सेवा करने में शर्म आती है, कुत्ते की सेवा करने में शर्म नहीं आती । कितने लोग तो कुत्ते की बहुत सेवा करते हैं । घूमने के लिये जाते हैं तो कुत्ते को साथ में ले जाते हैं । कितने लोग तो कुत्ते को साथ में मोटर में भी बिठाते हैं । कोई कुत्ते के साथ बहुत प्रेम करे तो समझना वह दूसरे जन्म में कुत्ता होने की तैयारी कर रहा है । भागवत में वर्णन आया है-भरतजी हिरण के साथ बहुत प्रेम करते थे, दूसरा जन्म उन्हें हिरण का मिला था ।

'भागवत-नवनीत' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 2009, पृष्ठ-संख्या- ४७६, गीताप्रेस, गोरखपुर

सन्त श्रीरामचन्द्र केशव डोंगरेजी महाराज

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 02:22


*।। श्रीहरि:।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-दशमी(शाम 06:46 तक)*
*नक्षत्र-शतभिषा(सुबह 09:40 तक)*
*वार-सोमवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-11 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-सुबह 07:30 से 09:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-कुम्भ*
*अग्निवास-आकाश*
*दिशाशूल-पूर्व*
*व्रत पर्व विवरण-भीष्म पंचक प्रारम्भ,कंस वध,पञ्चक जारी है।*
*👉कल-देवउठनी एकादशी व्रत।*
*13 नवम्बर बुधवार-प्रदोष व्रत।*
*14 नवम्बर गुरुवार-वैकुण्ठ चतुर्दशी,विश्वेश्वर व्रत।*
*15 नवम्बर शुक्रवार-कार्तिक पूर्णिमा।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

11 Nov, 01:31


*🌹🌹🌹राधा राधा राधा राधा राधा 🌹 श्रीराधा रानी अभिन्न स्वरूपा परम पूज्य श्रीभाईजी की परम दिव्य वाणी : 🌹जिव्हा से भगवान का नाम ना छोड़िए , सब पाप स्वयं छूट जाएंगे।🌹 बहुत बहुत सुंदर संदेश।🌹 जय जय श्री राधे 🌹🙏🌹*

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 18:07


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 18:07


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं

🌷 अठाईसवाँ दिन
*1-दिनांक-10 -11-2024*
*2-वार-रविवार।*
*3-गीता पाठ छठा अध्याय - श्लोक संख्या 31 से 40 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 23 -01 - 1992* दोपहर 3:00 बजे

*5-भय का कारण, विश्वास की कमी।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 16:53


॥ श्रीहरिः ॥

*अग्नि, गाय, ब्राह्मण, तुलसी, गंगा- इनको देवताके समान आदर देना चाहिये।*

*परमात्माको हर समय याद रखनेकी चेष्टा करनी चाहिये।*

*मनको विचारना चाहिये कि मैंने इस संसारमें आकर क्या किया और क्या करना चाहिये। इसी तरह यदि और भी समय बीतेगा तो फिर कैसे जल्दी कामयाबी होगी। समयको अमूल्य काममें बिताना चाहिये।*

*मनुष्यको ऐसा बनना चाहिये कि अपनेको जीवित रहते हुए ही भगवत्प्राप्ति हो जाय।*

*बुद्धिको कुशाग्र और तीक्ष्ण करनेके लिये सत्पुरुषोंका संग एवं सत्-शास्त्रोंका विचार करना चाहिये। निष्काम कर्मयोग और उपासनाके द्वारा पवित्र होनेसे भी बुद्धिमें कुशाग्रता और तीक्ष्णता आती है और स्मरणशक्ति बढ़ सकती है। ब्रह्मचर्यका पालन इसमें विशेष सहायक होता है।*

*शुद्ध आहार-विहारका सेवन एवं ब्रह्मचर्यके पालन और योगके साधनसे आयुका बढ़ना भी सम्भव है।*

*जो भगवान्‌को छोड़ संसारका चिन्तन करता है उसको मूर्ख समझना चाहिये।*

–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठजी)
–‘परमार्थ सूत्र संग्रह’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 12:48


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 11.01.1992 दोपहर 3.00 बजे ।

’ *विषय - जी नहीं रहे, मर रहे हैं* ।’

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है ।’ ’श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में’ ’प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि सबसे पहली खास बात है, हर एक के यह बात बैठी हुई है -हम जी रहे हैं । सच्ची बात यह है -हम मर रहे हैं । बुरी मत मानना । जितने वर्ष आ गए (बीत गए) उतनी उम्र कम हो गई । जन्मा तब 90 वर्ष का होना था, 30 वर्ष का हो गया तो कितना बचा, 60 वर्ष । तो 30 वर्ष मर गया कि नहीं । आप जितने बैठे हो आकर बैठे तब से अब तक कितने स्वांस कम हो गए । तो जी रहे हैं कि मर रहे हैं । जो सच्ची बात माने वह रास्ते पर है । वहम है हम जी रहे हैं । सच्ची बात है मर रहे हैं । एक बात और है सोचते हैं अभी थोड़ी मरेंगे ! जब भी मरेगा अभी मरेगा । प्रतिक्षण मर ही रहे हैं । तो निश्चित क्यों बैठे हो ? भजन स्मरण कर लो । मर रहे हैं यह तो पक्का है । जिएंगे कितने यह पता नहीं । जैसे वहम है जी रहे हैं पर मर रहे हैं । ऐसे ही चोरी, डाका, हिंसा करते हैं उसमें हमारी हानि है । खुद की हानि है, कर्ज हो गया । मार्मिक बात है - जिसकी चोरी होनी थी वह (धन) तो जाने वाला था । एक चोरी की घटना सुना रहे हैं । घटना से बता रहे हैं कि अपनी चीज है वह जाती नहीं है । चोर आए लेकिन चोरी कर नहीं सके । जो मरने वाला है वह मरेगा ही । चिंता किस बात की । सूरज छिपता है तो अंधेरा होता है । तो रोने से क्या लाभ है । कोई रोता है ? सूर्य उदय होने पर राजी होते हैं और छिपता है तो रोते नहीं । क्योंकि पक्की जन्ची हुई है - अस्त होगा । तो जो जन्मा है वह मरेगा ही । पक्की बात है । मरने वाला ही मरेगा, नहीं मरने वाला नहीं मरेगा । फिर चिंता किस बात की । होने वाला तो होकर ही रहेगा । अनहोनी होगी नहीं, होनी सो होय । फिर चिंता किस बात की ।

अरबों रुपये हैं, पर शोक मिटता नहीं और सत्संग में शोक टिकता नहीं । सत्संग से चिंता मिट जाती है । दु:ख मिट जाता है । संतों के पास रुपया, सामान नहीं पर मस्त रहते हैं । कल रोटी मिलेगी कि नहीं, क्या खाएंगे ? पता नहीं । पास में कुछ भी नहीं पर चिंता नहीं है । और लाखों करोड़ों रुपए और चिंता रहती है । इस वास्ते सच्ची बात मान लेनी चाहिए । मर रहे हैं, समय जा रहा है, सच्ची बात है । जाने वाला तो जाएगा ही । मरने वाला ही मरा है, नई बात कुछ नहीं हुई । जन्म ने वाला ही जन्मता है, नई बात क्या है ? गाड़ी में से कोई यात्री उतरता है तो रोना चाहिए ? रोने से क्या फायदा ? सच्ची बात को मान लेना चाहिए । सत्संग में सच्ची बात है, मान लेना चाहिए । साथ कुछ चलेगा नहीं, रहते रहते सेवा, पुण्य, उपकार कर लो । यह साथ चलेगा । एक बाबा जी की बात सुना रहे हैं । इस बात से समझा रहे हैं कि कैसे बाबा जी ने परिस्थिति का सदुपयोग किया । राज्य मिला तो सदुपयोग किया, सेवा करके । और राज्य छीना तो त्याग कर दिया । अब तक राज्य मैंने किया अब तुम करो । कबीर जी कहते हैं, दुनिया मरने से डरती है, पर मेरे मरण आनंद । क्यों ? क्योंकि भजन किया है । भगवान् के यहां जाएंगे । मौज है । रुपया एक कोडी साथ जाएगा नहीं, और राम नाम एक पीछे रहेगा नहीं ।
कबीरा सब जन निर्धना, धनवंता नहीं कोय ।
धनवंता सोई जानिए जाके राम नाम धन होय ।
सच्ची बात है, मान लेना चाहिए ।

जय सीताराम ! सीताराम !! सीताराम !!! जय सीताराम !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 12:48


।। श्रीहरि ।।

किसी सन्त के पास जाओ तो कम-से-कम उनके मन के विरुद्ध काम मत करो । इससे कभी लाभ नहीं होगा, उल्टे हानि होगी । लाभ सन्त की प्रसन्नता से होता है, उनके मन के विरुद्ध काम करने से नहीं । उनके मन के विरूद्ध काम करेंगे तो वह अपराध होगा, जिसका दण्ड भोगना पड़ेगा । उनका कहना नहीं मानो तो कम-से-कम उनके विरूद्ध तो मत चलो । हम सन्त से जबर्दस्ती लाभ नहीं ले सकते, प्रत्युत उनकी प्रसन्नता से लाभ ले सकते हैं । लाभ सन्त की प्रसन्नता में है, उनके चरणों में नहीं ।

'सीमा के भीतर असीम प्रकाश' पुस्तक से, पृष्ठ-संख्या- ८६, गीता प्रकाशन, गोरखपुर

परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 11:12


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

09 Nov, 10:53


राम राम
किस का लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
किस का लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
पांच तत्व का पिंजरा बणिया
पांच तत्व का पिंजरा बनिया
मन बुद्धि अंहकारा रे
मन बुद्धि अहंकारा रे
मे अरु मेरा मान इसी को
बहता जिव बेचारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
बालक बहता बुढा बहता
बहता तरुण कुमारा रे
दुबला बहता मोटा बहता
बहता स्वस्थ बिमारा रे
किसका लिया सहारा रे प्राणी
बहता यह जग सारा रे
साधु बहता पंडित बहता
बहता मूर्ख गंवारा रे
धन पति बहता नरपति बहता
हाथी के असवारा रे
किसका लिया सहारा रे प्राणी
बहता यह जग सारा रे
आश्रम बहता कुटिया बहती
मंदिर महल दिवारा रे
जिन्दा बहता मुर्दा बहता
बहती सब की छारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
नदिया बहती पर्वत बहता
बहता समुन्दर खारा रे
धरणी पवन अग्न जल बहता
चांद सूरज नभ तारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
स्वर्ग लोक मे इन्द्र बहता
देवो का सरदारा रे
बृह्मलोक मे बृह्मा बहता
जिसके है मुख चारा रे
किसका लिया सहारा रे प्राणी
बहता यह जग सारा रे
मिन्ट सेकिन्ड घङी पल बहवे
दिन रजनी पखवाङा रे
जाग्रत स्वपन सुषुप्ति बहवे
ज्यू गंगा की धारा रे
किसका लिया सहारा प्राणी
बहता यह जग सारा रे
*बहता संग बहो मत प्यारे*
*सुमिरो सिरजन हारा रे*
*हरदम रहता कभी न बहता*
*वह सबका आधारा रे*
*किसका लिया सहारा प्राणी*
*बहता यह जग सारा रे*
*यह संसार शरीर ऐक है*
*तू इन सबसे न्यारा रे*
*तू ईश्वर का अंश सनातन*
*मालिक वही तुम्हारा रे*
*किसका लिया सहारा रे प्राणी*
*बहता यह जग सारा रे*
*किसका लिया सहारा रे प्राणी*
*बहता यह जग सारा रे*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 16:32


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 16:32


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 सताईसवाँ दिन
*1-दिनांक-09-11-2024*
*2-वार-शनिवार।*
*3-गीता पाठ छठा अध्याय - श्लोक संख्या 21 से 30 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 11 -01 - 1992* दोपहर 3:00 बजे

*5-जी नहीं रहे, मर रहे हैं।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 16:25


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

*विचार करें, आपकी दृष्टिमें कोई चीज स्थिर रहनेवाली दीखती है क्या ? जिसपर आप भरोसा करो, आश्रय लो, ऐसी कोई चीज स्थिर दीखती है क्या ?*

*किसके भरोसे निश्चिन्त बैठे हो ? आप सदा रहना चाहते हो या मरना चाहते हो ? रहना चाहते हो तो क्या शरीरसे रह जाओगे ?*

*मिटनेवालेका सहारा कबतक टिकेगा ? कम-से-कम जो चीजें नाशवान् या बिछुड़नेवाली दीखती हैं, उनका भरोसा, विश्वास छोड़ दो।*

*क्या हम सदा बोलते ही रहेंगे ? क्या हमारी सुनने-सुनाने, चलने आदिकी सामर्थ्य सदा रहेगी ? यह तो सब बन्द होगा !*

*जब यह विश्वास हो जायगा कि कोई सहारा रहनेवाला नहीं है, तब भगवान्‌का सहारा अपने-आप होगा ! नाम-जप अपने-आप होगा।*

*किसी तरहसे भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़ लो। नाम- जप करो तो जबानसे, पुस्तक पढ़ो तो नेत्रोंसे, चिन्तन करो तो मनसे भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जुड़ गया।*

–परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
–‘सत्संगके फूल’ गीताप्रेस की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 07:32


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 07:31


राम राम
ओ जी म्हारा नटवर नागरिया
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या
जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरिया
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा
चाल्या जी सांवरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
थारी तो ओल्यु गिरधर म्हे करा
थारी तो ओल्यु गिरधर म्हे करा
प्रभु थां बिन म्हारो जिवङो नही लागे जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सांवरा
थां स्यु तो विनती गिरधर म्हे कंरा
था स्यु तो विनती गिरधर म्हे करा
ऐ जी थां स्यु तो विनती गिरधर म्हे करा
थे गोकुल तज मथुरा क्याने जावो जी सांवरा
थे गोकुल तज मथुरा क्याने जावो जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
थे प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सावरा
क्यु प्रितङली लगाकर पाछा चाल्या जी सावरा
ऐक घङी तो ठहरो सांवरिया
थारी गोपया सगली थां बिन व्याकुल
होवे जी सांवरा
थारी गोपया सगली थां बिन व्याकुल
होवे जी सांवरा
ओ जी म्हारा नटवर नागरीया
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 07:17


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : ११
--- :: x :: ---

* निर्दोष जीवनसे ही समाजमें निर्दोषता व्यापक होती है | निर्दोष साधक दोषयुक्त मानवको देख, करुणित होता है, क्षोभित नहीं |

उसे परदुःख अपना ही दुःख प्रतीत होता है और करुणित होकर उसके प्रति क्रियात्मक तथा भावात्मक सहयोग देनेके लिये तत्पर हो जाता है |

उसका परिणाम यह होता है कि अपराधी स्वयं अपने अपराधको देख, निर्दोष होनेके लिये आकुल तथा व्याकुल हो जाता है, और फिर वह बड़ी ही सुगमतापूर्वक वर्तमान निर्दोषताको सुरक्षित रखनेमें समर्थ होता है | इस प्रकार साधन-निष्ठ जीवनसे समाजमें निर्दोषता व्यापक होती है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२८, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

08 Nov, 04:23


*।। श्रीहरि: ।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-सप्तमी(रात्रि 11:56 तक)*
*नक्षत्र-उत्तराषाढ़ा(दोपहर 12:03 तक)*
*वार-शुक्रवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-08 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-सुबह 10:30 से 12:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-मकर*
*अग्निवास-पाताल*
*दिशाशूल-पश्चिम*
*व्रत पर्व विवरण-कार्तिक अष्टाहर्निका विधान प्रारम्भ,जलाराम बापा जयन्ती,सर्वार्थसिद्धि योग।*
*👉कल-श्री गोपाष्टमी।*
*10 नवम्बर रविवार-अक्षय नवमी।*
*12 नवम्बर मंगलवार-देवउठनी एकादशी।*
*13 नवम्बर बुधवार-प्रदोष व्रत।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 16:56


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 16:56


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 7:30 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 छबीसवाँ दिन
*1-दिनांक-08-11-2024*
*2-वार-शुक्रवार।*
*3-गीता पाठ छठा अध्याय - श्लोक संख्या 11 से 20 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 21 -मार्च - 1985* प्रातःकाल 5:00 बजे

*5-ध्यान दो मेरी बात की तरफ, बड़ी मार्मिक बात है, अर बढ़िया बात है, और एकदम निहाल करे जैसी बात है।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 13:01


👌🏻 *एक विशेष महत्व वाली बात* 👇🏽

हरेक काममें भविष्य होता है, पर परमात्मतत्वमें भविष्य नहीं होता । परमात्माकी प्राप्ति धीरे-धीरे नहीं होती, प्रत्युत तत्काल होती है । सुनानेवाला अनुभवी पुरुष भी विद्यमान हो, सुननेवाला जिज्ञासु साधक भी विद्यमान हो और परमात्मतत्त्व तो विद्यमान है ही, फिर भविष्यका क्या काम ? देरी होनेका कोई कारण ही नहीं है ! परमात्मतत्व नित्य-निरन्तर सबमें विद्यमान है । सुनानेवालेने दृष्टि करायी और सुननेवालेने उसको जान लिया‒इसमें देरी किस बातकी ? बहुत-से भाई-बहनोंने ऐसी धारणा कर रखी है कि सुनते-सुनते, साधन करते-करते, धीरे-धीरे कभी परमात्माकी प्राप्ति होगी । परन्तु वास्तवमें सांसारिक काम ही ‘कभी’ होगा, पारमार्थिक काम ‘कभी’ नहीं होगा, वह तो ‘अभी’ ही होगा ।

जो वस्तु पैदा होनेवाली होती है, उसीकी प्राप्तिमें भविष्य होता है । जो पैदा होनेवाली नहीं है, प्रत्युत नित्य-निरन्तर रहनेवाली वस्तु (परमात्मतत्त्व) है, उसकी प्राप्तिमें भविष्य कैसे होगा ? सुननेकी भूख ही नहीं है, परमात्मतत्त्वकी तीव्र जिज्ञासा ही नहीं है, उसके लिये तड़पन ही नहीं है, उसके लिये व्याकुलता ही नहीं है, इसी कारण देरी हो रही है !

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

‒‘जित देखूँ तित तू’ पुस्तकसे

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 11:24


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 11:24


राम राम
यो जग झुठो रे संसार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
उगे सो ही आथणरे
फुले सो कुम्हलाय
उगे सो ही आथणरे
फुले सो कुम्हलाय
चिङिया नेवल गीर पङे रे
चिङिया नेवल गीर पङे रे
जन्मे सो मरजाय
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
जांस्यु हंस हंस बोलता रे
दिन मे सो सो बार
वे मानुष किस देश गया रे
सुरता कर विचार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
सोने का लंक गढ बणाया
हिरो का दरबार
सोने का गढ लंक बणाया
हिरो का दरबार
रति भर सोनो ना गयो रे
रति एक सोनो ना गयो रे
रावण मरती बार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
हाथा परबत तोलता रे
धरती ने झेले भार
वे मानुष किस देश गया रे
वे मानुष किस देश गया रे
हां वे माणस माटी मिल्या रे
वे मानुष माटी मिल्या रे
ओर भांडा खङत कुम्हार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
सैर सेर सोनो पहरती रे
मोतिया भरती भार
कोई ऐक झोलो बह गयो रे
घर घर की पनिहार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
या जग मे तेरो कोई नही साथी
स्वार्थ को संसार
मोह माया मे भूल गयो तू
कोइ नही चाहे लार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निदङली निवार
ढाई अक्षर प्रेम का रे
कृष्ण नाम तत् सार
मीरा के प्रभु गिरधर नागर
हरि भज उतरो पार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निंदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
बंदा थारी निदङली निवार
यो जग झुठो रे संसार
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 11:24


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 14 सितंबर 1991 सांय 4:45 बजे ।

*’विषय - प्रश्नोत्तर अध्याय 18/61 मिक्स ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण’ ’है, दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी’ ’जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए’ ’प्रतिदिन जरूर सुनना चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी से प्रश्न कर रहे हैं -
प्रश्न - गुरु बिना कल्याण हो सकता है क्या ?
स्वामी जी -गुरु बिना कल्याण कैसे होगा ! बनावटी गुरु से नहीं होता । जिससे प्रकाश मिला है, वो ही गुरु हो गया - उसे गुरु मानो या न मानो, जानो या न जानो ।

प्रश्न - भगवान् को ही गुरु बना लें ?
स्वामी जी -निहाल हो जाएं । शास्त्र में पढ़ा है - गुरु में मनुष्य बुद्धि, मनुष्य में गुरु बुद्धि, यह अपराध है ।

प्रश्न - जो भगवान् का भजन करते हैं, वो दु:खी दीखते हैं । जो भगवान् का भजन नहीं करते, वो सुखी दीखते हैं !
स्वामी जी - हमारे तो यह देखने में आता है कि भजन करने वाला सुखी हैं । भजन नहीं करने वाला दु:खी है । जितना त्याग करेगा, आराम ज्यादा होगा । आदर भी ज्यादा होगा ।

प्रश्न -कोई भी काम करते हैं अभिमान आता है ?
स्वामी जी -सेवा करो । सबको सुख कैसे हो ? माता-पिता, भाई -भोजाई सब की सेवा करो ।

प्रश्न -सेवा करने वाले परेशान करते हैं ?
स्वामी जी -सेवा करने वाले परेशान करते हैं तो दूना लाभ होगा ।

प्रश्न - स्त्रियों को माता बहनों को शंकर जी पर जल चढ़ाना चाहिए ?
स्वामी जी - माता बहनों को शंकर जी को जल दूर से चढ़ाना चाहिए । कन्या प्राय: गौरी का पूजन करती हैं । हमारे जगत्जननी माता सीताने भी गौरी की पूजा की है । गौरी का पूजन करना कोई दोषी नहीं है । गौरी जी का कन्याएं पूजन करती हैं ।

प्रश्न - नाम गुरु का लें ।
स्वामी जी -नाम भगवान् का लो । हे नाथ ! हे नाथ ! पुकारो ।

प्रश्न - बच्चों को कैसे समझाएं कि सत्संग में आवैं ।
स्वामी जी -प्यार से समझावें । आपके पास कम रहते हैं, स्कूल में ज्यादा रहते हैं । प्यार से समझाओ । घर में भगवान् के चित्र लगाओ । घर में (गीता प्रेस की भगवद् संबंधी) पुस्तकें जगह जगह रख दो, बच्चे देखेंगे पढ़ेंगे । आप सच्चे हृदय से लग जाओ ।

कर्म और फल के संदर्भ में एक साधक के प्रश्न का जवाब -
स्वामी जी - भगवान् कर्म करवाते नहीं । फल जरूर भुगताते हैं । साधक संजीवनी (परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता की टीका ) देखते ही हो, देखो । गीता जी के 18 वें अध्याय के 56 से 66 श्लोक तक में भक्ति का प्रकरण है । अर्जुन को भगवान् ने कहा मेरी बात मान ले । आज्ञा दे दी । अर्जुन ने स्वीकार नहीं किया । तो भगवान् ने कहा तू मेरी बात नहीं मानेगा तो नष्ट हो जाएगा, पतन हो जायेगा । यंत्र पर आरूढ़ होने के बाद मनुष्य परतंत्र हो जाता है । यंत्र पर आरूढ़ होने के बाद, यंत्र चाहे जैसे घुमाता है । वैसे घूमना पड़ेगा । ऐसे ही शरीर, मन, बुद्धि को अपना मान लिया, तो यंत्र पर आरूढ़ हो गए । आपको करना पड़ेगा (प्रकृति के परवश) और फल भोगना पड़ेगा । साधक संजीवनी पढ़ो (इस प्रकरण को विशेषता से समझने के लिए साधक संजीवनी अध्याय 18 श्लोक संख्या 56 से 66 पढ़ना चाहिए)।

प्रश्न -अच्छे संत हैं वो गुरु नहीं बनते, क्या उनको गुरु बना लें मन से ?
स्वामी जी - कोई हर्ज नहीं । भगवान् को बना लो गुरु । भगवान् को बनाओ गुरु । गीता जी है उनका मंत्र । भगवान जगद्गुरु हैं । आप जगद्गुरु में हो कि नहीं ? दूसरे को क्यों मानो ।

- कारण शरीर है - स्वभाव, अहंकार, मैं पन । इसे मिटा दे तो कल्याण हो जाए ।

- अभिमान से डरो मत । भगवान् से प्रार्थना करो ।
बच्चे के आफत आती है तो मां को पुकारता है कि नहीं ! ऐसे मां को पुकारो ।

-आदर सत्कार हो तो इसमें खतरा है । नुकसान होता है, निरादर होता है तो लाभ है । काम करे, अच्छा करे और निरादर हो तो लाभ ज्यादा होगा ।

- हे नाथ ! हे नाथ ! सब की दवाई है । डाकू आ जाए तो भगवान् को पुकारे और क्या करे ! पिंड छोड़े नहीं, भगवान् को पुकारे ।

- जिस आश्रम में है, उसका पालन करे तो अच्छा है । सन्यास में सन्यास का पालन करे । अपने अपने आश्रम का पालन करें, ठीक हो जाएगा ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 07:18


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
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‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“जगत् के लिये उपयोगी होना” : १०
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कर्त्तव्यनिष्ठ जीवनसे दूसरोंमें अपनी-अपनी भूल देखनेकी माँग जाग्रत् हो जाती है | कर्त्तव्यनिष्ठ मानव किसीको भयभीत नहीं करता, अपितु भय-रहित होनेके लिये सहयोग प्रदान करता है |

किसीको भयभीत करनेसे उसका कल्याण नहीं होता,अपितु किसी-न -किसी अंशमें अहित ही होता है | भय देकर कोई भी राष्ट्र अपनी प्रजा को निर्दोष नहीं बना सका, यह अनुभव-सिद्ध सत्य है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२८, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 02:50


*।। श्रीहरि: ।।*
*आज के पावन गंगा दर्शन ऋषिकेश*
*माह-कार्तिक*
*पक्ष-शुक्लपक्ष*
*तिथि-षष्ठी(रात्रि 12:34 तक)*
*नक्षत्र-पूर्वाषाढ़ा(सुबह 11:47 तक)*
*वार-गुरुवार*
*विक्रम सम्वत-2081*
*तदनुसार-07 नवम्बर 2024*
*अभिजीत मुहूर्त-दोपहर 12:00 से 12:50 तक है।*
*राहुकाल-दोपहर 01:30 से 03:00 तक है।*
*सूर्य राशि-तुला*
*चन्द्र राशि-धनु*
*अग्निवास-पृथ्वी*
*दिशाशूल-दक्षिण*
*व्रत पर्व विवरण-छठ पूजा,सूर्य षष्ठी,डाला छठ,स्कन्द षष्ठी।*
*09 नवम्बर शनिवार-गोपाष्टमी।*
*10 नवम्बर रविवार-अक्षय नवमी।*
*12 नवम्बर मंगलवार-देवउठनी एकादशी।*
*॥जय श्री सीताराम॥*
*॥नमामि गंगे! हर हर गंगे॥*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*जय गंगामैया*
*हर हर गंगा लहर तरंगा,*
*दरशण से होय पातक भंगा*

*भगवद्गीता किञ्चिदधीता*
*गङ्गाजललवकणिका पीता।*
*सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा*
*तस्य यमः किं कुरुते चर्चाम्॥*

*गंगाजल दिव्य जल है। यह महान पवित्र है। सब लोगों को रोजाना सुबह शाम गंगाजल का चरणामृत लेना चाहिये।* परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

*हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं!*
*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 02:33


🌺 *भगवान का स्वभाव* 🌺

भगवान्‌का यह स्वभाव है कि ‘तुम नाशवान्‌को देखते हो तो नाशवान्‌रुपसे मैं आ जाऊँगा । उस रूपमें ही तुम्हारेको दीखूँगा ।’ प्यास लग जाय तो जलरूपसे आ जायँगे । भूख लग जाय तो अन्नरूपसे आ जायँगे । जैसी इच्छा करोगे, उसी रूपमें आ जायँगे । आयेंगे तो भगवान्‌ ही, दूसरा आवे कहाँसे ? भगवान्‌के रूपसे उनको चाहोगे तो भगवान्‌ कहतें है‒‘मैं आ जाऊँगा ।’ संसारके रूपसे चाहोगे तो संसार-रूपसे आ जाऊँगा ।

भगवतरूपसे चाहनेवालोंका भगवान्‌ बहुत जल्दी कल्याण करते हैं । *भगवान्‌के भूख लगी हैं कि किसी तरह मेरा अंश मेरे पास आ जायँ* । भगवान्‌की भूख मिटाओ, भगवान्‌पर दया करो, सब लोग उनपर महेरबानी करो ।केवल एक भगवान्‌को ही चाहो और कुछ मत चाहो । अन्य सब इच्छाओंको मिटानेके लिये केवल भगवान्‌की इच्छा करो । सब इच्छाएँ मिट जायँगी तो भगवान्‌के मिलनेकी इच्छा पूरी हो जायगी । संसारकी आशा, तृष्णा, इच्छा‒ये ही बाधक हैं । अपने पास जो वस्तुएँ हैं, सब संसारकी हैं । उन्हें संसारकी सेवामें लगा दो; निहाल हो जाओगे । एकदम सच्‍ची बात है ।

*इच्छाओंका त्याग कैसे हो ?* *पुष्तक से*


*॥ सन्तवाणी ॥– *श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज**

श्री गीताप्रेस सत्संग

07 Nov, 01:35


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

तत्व का अनुभव हरदम होता है, कभी अननुभव होता ही नहीं । असत् का उपयोग संसार मात्र के लिए है । उसकी कामना, ममता और तादात्मय बंधन कारक है । उसे अपने लिए मत मानो ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४१*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 02:30


राम।।🍁

🍁 *विचार संजीवनी* 🍁

*..यह कोई मामूली बात नहीं..*

*आप भले ही कुछ नहीं हों, सन्त-महात्मा नहीं हों, भजनानन्दी नहीं हों, शुद्ध नहीं हों, पर जीव तो हो ही!* कपूत क्या पूत नहीं होता ? मल-मूत्रसे भरा बच्चा क्या माँका बेटा नहीं होता ? मूलमें आप निर्दोष हैं, दोष पीछेसे आये हुए हैं। स्नानघरमें जब आप साबुन लगाते हो तो काँचमें देखनेपर क्या आप मानते हो कि मेरा चेहरा खराब हो गया ?

*आप दृढ़ताके साथ भगवान्‌को अपना स्वीकार कर लें तो इसका महान् फल होगा, आपका जीवन सफल हो जायगा !* इससे मेरे चित्तमें बहुत प्रसन्नता होगी और आपको भी प्रसन्नता होगी, आनन्द होगा! इस बातको स्वीकार करनेमें लाभ ही लाभ है, नुकसान कोई है ही नहीं! यह कोई मामूली बात नहीं है। यह वेदोंका, गीताका, रामायणका भी सार है! आप नहीं मानो तो भी सच्ची बात सच्ची ही रहेगी, कभी झूठी नहीं हो सकती। आप अपनी तरफसे मान लो, फिर आपके माननेमें कोई कमी रहेगी तो उसे भगवान् पूरी करेंगे। पर *एक बार स्वीकार करके फिर आप इसे छोड़ना मत ।* मैं भगवान् का हूँ-यह मानते रहो तो आप अपने-आप शुद्ध, निर्मल हो जाओगे। जो लोहेका सोना बना दे, उस पारससे भी क्या भगवान् कमजोर हैं? भगवान् के सम्बन्धसे जैसी शुद्धि होती है, वैसी अपने उद्योग से नहीं होती। *वर्षों तक सत्संग करने से जो लाभ नहीं होता, वह भगवान् को अपना मान लेने से एक दिन में हो जाता है।*

*राम ! राम !! राम !!!*

परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज, पुस्तक- *बिन्दु में सिन्धु* पृष्ठ ८६

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 01:49


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 28 मई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय -परमात्मा सर्वत्र परिपूर्ण है ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण’ है, ’दिव्य (परम वचन) है, श्री स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी’ ’चाहिए’ ।*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि परमात्मा सब जगह परिपूर्ण हैं । यह बात सदा ही याद रखनी है और संसार है ये हरदम बदलता है, हरदम । सर्ग में, महासर्ग में, प्रलय में, महाप्रलय में भी इसमें क्रिया होती रहती है और परमात्मा में क्रिया होती ही नहीं । दोनों परस्पर विरोधी बात है । मनुष्य सो जाता है तो भी उम्र तो खत्म हो रही है । मनुष्यों के भाव है कि हम जी रहे हैं, जी नहीं रहे, हम मर रहे हैं । चेतन तत्व है, वह ज्यों का त्यों है, उसको प्राप्त करना है । जो कभी नहीं बदलता वह आपका स्वरूप है । आप नहीं बदलने वाले हो, आप परमात्मा के अंश हो । आप नित्य निरंतर रहने वाले हो और संसार बदलता ही बदलता है । आपका स्वरूप नित्य है । जहां आप की स्थिति है, वहां ही परमात्मा हैं । तो जहां आप हो वहां परमात्मा में स्थिति है । आपने बदलने वाले को पकड़ लिया, यह गलती की है । तो प्रकृति के साथ न मानकर परमात्मा के साथ मान लो । शरीर हरदम बदलता है, प्रकृति सबकी सब बदलती है । जड़ता के साथ एकता मानना भूल है । उससे सुख लेते हो, सुख है नहीं । उससे अलग हो जाए तो महान सुख की प्राप्ति होती है । भगवान् ने कहा है मेरी प्राप्ति होने के बाद फिर दु:ख नहीं होता । आप खुद कहते हो मैं बचपन में ऐसे करता था, जवानी में ऐसे करता था । तो क्रियाएं बदली, पर आप बदले ही नहीं । पापी से पापी भी भगवान् में लग सकता है । जल सब की प्यास बुझाता है, पृथ्वी सबको जगह देती है, वायु सबको समान मिलती है । जितनी ज्यादा चीज की आवश्यकता है जीवन निर्वाह के लिए, उसको भगवान् ने उतना ही सस्ता बनाया है । जहां पुकारो वहां भगवान् पूरे के पूरे । उनके चरण भी वहीं हैं । मस्तक भी वहीं हैं । कान भी वहीं हैं । मुख भी वहीं है, वहीं भोग लगा दो, वहां ही दीपक दिखा दो, फूल भी चढ़ा दो, भगवान् सब जगह हैं । हे नाथ ! हे नाथ ! पुकारो ! सब जगह सुनते हैं । मन में कहो तो भी सुनते हैं । हमारे प्रभु हैं । हमारे प्रभु हैं । हमारे प्रभु हैं । जैसे मां के 10 बालक हैं, उन दसों बालकों की मां पूरी की पूरी है, सबकी । ऐसे भगवान् सबके हैं पूरे के पूरे । भगवान् सदा जागते हैं और सब की पुकार सुनते हैं । सब के माता पिता हैं ।

’ *त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।’* संसार की दृष्टि छोड़ो । भगवान् की तरफ दृष्टि करो । तो भगवान् मिल जाएंगे । वो भगवान् हमारे । मस्त हो जाओ जहां हो वहां ही । संसार दु:खालय है । जैसे भोजनालय है, पुस्तकालय है, वस्त्रालय है । ऐसे संसार दु:खालय है । जहां भक्त होता है, भगवान् को वहीं पा लेता है । आप मान लो, सब का भरण पोषण का अधिकार भगवान् के हाथ में है । भगवान् चींटी को भी भोजन कराते हैं । यह कथा सुना रहे हैं । भगवान् के होकर रहो हरदम । भगवान् के हो जाओ और भगवान् के होकर ही रहो । ’ *सदसच्चाहमर्जुन* ’ , मान लो सब को पूरे के पूरे मिलेंगे । भगवान् पूर्ण हैं और पूर्ण ही मिलते हैं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 01:49


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

29 Oct, 01:48


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

सिद्ध भक्तों के लक्षणों में श्रद्धा, विश्वास आदि शब्द नहीं आते । ये शब्द साधकों के लक्षणों में आते हैं, जैसे -' *अश्रद्धाना मत्परमा भक्ता:'* (गीता १२/२०) ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३८*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 17:05


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 17:04


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 8:00 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *सोलहवाँ दिन*
*1-दिनांक- 29* *-अक्टूबर 2024*
*2-वार-मंगलवार।*
*3-गीता पाठ - तीसरा अध्याय - श्लोक संख्या 23 से 33 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 20 - जून - 1990* प्रातः 5:00 बजे

*5-राग कैसै मिटे?*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 16:25


॥ श्रीहरिः ॥
*सबसे बड़ा पुण्यात्मा*

काशी प्राचीन समयसे प्रसिद्ध है। संस्कृत-विद्याका वह पुराना केन्द्र है। उसे भगवान् विश्वनाथकी नगरी या विश्वनाथपुरी भी कहा जाता है। विश्वनाथजीका वहाँ बहुत प्राचीन मन्दिर है। एक दिन विश्वनाथजीके पुजारीने स्वप्न देखा कि भगवान् विश्वनाथ उससे मन्दिरमें विद्वानों तथा धर्मात्मा लोगोंकी सभा बुलानेको कह रहे हैं। पुजारीने दूसरे दिन सबेरे ही सारे नगरमें इसकी घोषणा करवा दी।

काशीके सभी विद्वान्, साधु और दूसरे पुण्यात्मा दानी लोग भी गंगाजीमें स्नान करके मन्दिरमें आये। सबने विश्वनाथजीको जल चढ़ाया, प्रदक्षिणा की और सभा मण्डपमें तथा बाहर खड़े हो गये। उस दिन मन्दिरमें बहुत भीड़ थी। सबके आ जानेपर पुजारीने सबसे अपना स्वप्न बताया। सब लोग 'हर हर महादेव' की ध्वनि करके शंकरजीकी प्रार्थना करने लगे।

जब भगवान् की आरती हो गयी, घड़ी-घण्टेके शब्द बंद हो गये और सब लोग प्रार्थना कर चुके, तब सबने देखा कि मन्दिरमें अचानक खूब प्रकाश हो गया है। भगवान् विश्वनाथकी मूर्तिके पास एक सोनेका पत्र पड़ा था, जिसपर बड़े-बड़े रत्न जड़े हुए थे। उन रत्नोंकी चमकसे ही मन्दिरमें प्रकाश हो रहा था। पुजारीने वह रत्न-जटित स्वर्णपत्र उठा लिया। उसपर हीरोंके अक्षरोंमें लिखा था - 'सबसे बड़े दयालु और पुण्यात्माके लिये यह विश्वनाथजीका उपहार है।'

पुजारी बड़े त्यागी और सच्चे भगवद्भक्त थे। उन्होंने वह पत्र उठाकर सबको दिखाया। वे बोले -' प्रत्येक सोमवारको यहाँ विद्वानोंकी सभा होगी। जो सबसे बड़ा पुण्यात्मा और दयालु अपनेको सिद्ध कर देगा, उसे यह स्वर्णपत्र दिया जायगा।'

देशमें चारों ओर यह समाचार फैल गया। दूर-दूरसे तपस्वी, त्यागी, व्रत करनेवाले, दान करनेवाले लोग काशी आने लगे। एक ब्राह्मणने कई महीने लगातार चान्द्रायण व्रत किया था। वे उस स्वर्णपत्रको लेने आये। लेकिन जब स्वर्णपत्र उन्हें दिया गया, उनके हाथमें जाते ही वह मिट्टीका हो गया। उसकी ज्योति नष्ट हो गयी। लज्जित होकर उन्होंने स्वर्णपत्र लौटा दिया। पुजारीके हाथमें जाते ही वह फिर सोनेका हो गया और उसके रत्न चमकने लगे।

एक बाबूजीने बहुत से विद्यालय बनवाये थे। कई स्थानोंपर सेवाश्रम चलाते थे। दान करते-करते उन्होंने अपना लगभग सारा धन खर्च कर दिया था। बहुत सी संस्थाओंको वे सदा दान देते थे। अखबारोंमें उनका नाम छपता था। वे भी स्वर्णपत्र लेने आये, किंतु उनके हाथमें जाकर भी वह मिट्टीका हो गया। पुजारीने उनसे कहा-' आप पद, मान या यशके लोभसे दान करते जान पड़ते हैं।' नामकी इच्छासे होनेवाला दान सच्चा दान नहीं है।

इसी प्रकार बहुत-से लोग आये, किंतु कोई भी स्वर्णपत्र पा नहीं सका। सबके हाथोंमें पहुँचकर वह मिट्टीका हो जाता था। कई महीने बीत गये। बहुत से लोग स्वर्णपत्र पानेके लोभसे भगवान् विश्वनाथके मन्दिरके पास ही दान-पुण्य करने लगे। लेकिन स्वर्णपत्र उन्हें भी मिला नहीं।

एक दिन एक बूढ़ा किसान भगवान् विश्वनाथके दर्शन करने आया। वह देहाती किसान था। उसके कपड़े मैले और फटे थे। वह केवल विश्वनाथजीका दर्शन करने आया था। उसके पास कपड़ेमें बँधा थोड़ा सत्तू और एक फटा कम्बल था। मन्दिरके पास लोग गरीबोंको कपड़े और पूड़ी- मिठाई बाँट रहे थे; किंतु एक कोढ़ी मन्दिरसे दूर पड़ा कराह रहा था। उससे उठा नहीं जाता था। उसके सारे शरीरमें घाव थे। वह भूखा था, किंतु उसकी ओर कोई देखता तक नहीं था। बूढ़े किसानको कोढ़ीपर दया आ गयी। उसने अपना सत्तू उसे खानेको दे दिया और अपना कम्बल उसे उढ़ा दिया। वहाँसे वह मन्दिरमें दर्शन करने आया।

मन्दिरके पुजारीने अब नियम बना लिया था कि सोमवारको जितने यात्री दर्शन करने आते थे, सबके हाथमें एक बार वह स्वर्णपत्र रखते थे। बूढ़ा किसान जब विश्वनाथजीका दर्शन करके मन्दिरसे निकला, पुजारीने स्वर्णपत्र उसके हाथमें रख दिया। उसके हाथमें जाते ही स्वर्णपत्रमें जड़े रत्न दुगुने प्रकाशसे चमकने लगे। सब लोग बूढ़ेकी प्रशंसा करने लगे।

पुजारीने कहा- 'यह स्वर्णपत्र तुम्हें विश्वनाथजीने दिया है। *जो निर्लोभ है, जो दीनोंपर दया करता है, जो बिना किसी स्वार्थके दान करता है और दुःखियोंकी सेवा करता है, वही सबसे बड़ा पुण्यात्मा है।'*

–श्रद्धेय श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार (भाईजी)
–‘उपयोगी कहानियां’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 16:24


॥ श्रीहरिः ॥

*सब प्रकारसे प्रभुके शरण हो जानेपर फिर उनसे इच्छा या याचना करना नहीं बन सकता।*

*जब प्रभु हमारे और हम प्रभुके हो गये तो फिर बाकी क्या रहा !*

*_हे नाथ ! हे मेरे नाथ !! हम आपकी शरण में हैं !!!_*

–श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका (सेठ जी)
-'परमार्थसूत्र-संग्रह गीताप्रेस की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 16:21


॥ श्रीहरिः शरणम् ॥

*जीवन को अपने लिए, जगत् के लिए तथा जगत्पति के लिए उपयोगी बनाने वाले ग्यारह व्रतों की आवश्यकता बताई गई है, जो निम्नलिखित हैं-*

*(क) जीवन को अपने लिए उपयोगी बनाने के उपायः-*

*1. भूल-रहित होना,*

*2. निर्मम होना,*

*3. कामना-रहित होना,*

*4. अधिकार-लिप्सा से रहित होना,*

*5. अहंकृति-रहित होना।*

*(ख) जीवन को जगत् के लिए उपयोगी बनाने के उपायः-*

*1. किसी के साथ बुराई न करना,*

*2. किसी को बुरा न समझना,*

*3. किसी का बुरा न चाहना।*

*(ग) जीवन को प्रभु के लिए उपयोगी बनाने के उपायः-*

*1. सुने हुए प्रभु की सत्ता स्वीकार करना,*

*2. श्रद्धा एवं विश्वास करना,*

*3. आत्मीयता का सम्बन्ध स्वीकार करना।*

*इन्हीं व्रतों को 'साधन-निधि' के नाम से कहा गया है। वस्तुतः ये व्रत सभी साधकों के लिए सभी साधनों के निचोड़ के रूप में प्रस्तुत हैं, जो सभी के जीवन को सभी के लिए उपयोगी बनाने में समर्थ हैं।*

–पूज्यपाद स्वामी श्री शरणानन्दजी महाराज
–‘साधन निधि’ मानव सेवा संघ वृन्दावन की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 12:39


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

28 Oct, 12:39


*राम राम*

आखंडीया झायीं पड़ी
पंथ निहारे निहार
जिभडीयां छाला पंड्या
श्याम पुकारें पुकार
देह गेह की सुध नहीं
टुट गयी जग प्रित
नारायण गावत फिरे
प्रेम भरे रस गीत
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
मे जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
प्रभु से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय
आये मेरे सजना
फिरी गये अंगना
आये मेरे सजना
फिरी गये अंगना
फिरी गये अंगना

में तो अभागन रही सोय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
फाडुगी चिर करु गलफंता
फाङुगी चिर करु गलफंता
रहुंगी बेरागण होय री
में जाण्यो नाही
रहुगी बेरागण होय री
मे जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
प्रभु से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
चुडीया फोडु मांग बखेरु
कजरा ने डारुगी धोय री
मे जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
मीरां के प्रभु गिरधर नागर
बाई मीरां के प्रभु गिरधर नागर
गिरधर नागर
मिल बिछुडो मत होय री
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
हरि से मिलन केसे होय री
में जाण्यो नाही
हरि से मिलन केसे होय
में जाण्यो नाही
प्रभु से मिलन केसे होय
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

26 Oct, 01:13


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

26 Oct, 01:13


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

शास्त्रों में तत्वज्ञ महात्माओं के चरण - रज की महिमा आई है, गुरु के चरण - रज का तात्पर्य उनकी कृपा से है ।

*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३७*

*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

26 Oct, 01:13


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 25 मई 2000 की प्रातः 5:00 बजे ।

*’विषय - परम शांति की प्राप्ति’* ।

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है, इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है,’ श्री ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि परमात्मा सब जगह समान रूप से परिपूर्ण हैं । जैसे वायु सब जगह परिपूर्ण है । जहां हिलावे वहीं हाजिर हो जाती है । ऐसे परमात्मा सब जगह परिपूर्ण हैं । जहां आप अपनी स्थिति मानते हैं, वहां ही परमात्मा स्थित हैं । क्रिया करेंगे तो क्रिया से दूर हो जाएंगे । परिपूर्ण समान रूप से है, तो कुछ नहीं करना है । अब कुछ नहीं करने की शक्ति है, वह जप, ध्यान, सत्संग, स्वाध्याय से आती है । यह शक्ति कुछ नहीं करने की आ जाएगी । पाने की इच्छा न रख करके सब की सेवा करें । तो वह स्थिरता की शक्ति आती है । एक करना होता है, पाने के लिए, उससे शांति नहीं होती है । एक करने का वेग मिटाना है, उसके लिए करना होता है । अगर किसी का अंतःकरण शुद्ध है, तो अभी स्थिर हो जाओ । उस परमात्मा का अनुभव नहीं होने में दो कारण हैं - एक सुख भोग की इच्छा और दूसरा संग्रह करना । तो निष्काम भाव से सेवा करो । ’ *सर्वभूतहिते रता’* : । सबका कल्याण हो इस भाव वाले को सगुण और निर्गुण तत्व की प्राप्ति हो जाती है । जहां आप हैं, परमात्मा पूरे के पूरे हैं । वहीं परमात्मा का मस्तक है, वहीं चरण हैं, वहीं दृष्टि है, भोग लगाओ तो मुख वहीं है । भोग लगाओ तो चरण भी वहीं है । जैसे सोने में सब तरह के गहने हैं, कुछ भी गहना बनाओ । ऐसे परमात्मा समान रीति से सब जगह परिपूर्ण है । वह शक्ति सब जगह है, सब में है । वह शक्ति कब आवेगी, जब भोगों की इच्छा नहीं रहेगी । मान बड़ाई की इच्छा नहीं रहेगी । तो वह शक्ति प्रकट हो जाएगी । भोगों की इच्छा वाले के परमात्मा की प्राप्ति करनी है, यह भाव भी ठहर नहीं सकता । परमात्मा सब जगह हैं, ऐसा निश्चय करके फिर कुछ भी चिंतन न करें ।

’ *निर्ममो निरहंकार: स’ ’शांति’ ........* । निर्मम और अहंकार रहित होने से शांति मिलती है । ब्राह्मी स्थिति की प्राप्ति होती है । लोक, परलोक की कोई इच्छा नहीं हो, परमात्मा की भी इच्छा नहीं हो, तो वहां परमात्मा प्रकट हो जाते हैं । परमात्मा की भी इच्छा नहीं रखें । सबसे पहले निषिद्ध आचरणों का त्याग करे । शास्त्र निषिद्ध काम नहीं करे । तो दूसरों को दु:ख नहीं देना और अपनी इच्छा नहीं करना । परमात्मा सब जगह हैं, वो हट सकते नहीं । सब जगह हैं तो परमात्मा की भी इच्छा नहीं करें, तो उस तत्व की प्राप्ति हो जाएगी । तो मुख्य क्या रहा ? भोग और संग्रह, इनका त्याग करे । परमात्मा के साथ नित्य योग है । उस योग में स्थित हो जाए । कामना का त्याग हुए बिना उसमें स्थिति होगी नहीं, इस वास्ते सब इच्छाएं मिट जाए, कोई इच्छा नहीं रहे । उस परमात्मा की भी इच्छा नहीं रहे तो वो प्राप्त हो जाएंगे; क्योंकि वह है । इच्छा करने से परमात्मा दूर हो जाते हैं । निष्काम भाव से सब की सेवा करो । सब को शांति मिले, सब सुखी हो जाएं । सब निरोग हो जाएं । परमात्मा सब जगह होते हुए भी इच्छा रहने से प्राप्ति नहीं होती। इच्छा मिटेगी सब की सेवा करने से । यह सूक्ष्म और कारण शरीर भी नाशवान है । कोई इच्छा नहीं हो तो वह तत्त्व प्राप्त है स्वाभाविक ही । सब परमात्मा ही हैं । इस वास्ते उद्योग करना है, इच्छाओं को मिटाने के लिए । संपूर्ण संसार की सेवा करो । अपने को शरीर मिला है, धन मिला है, मकान मिला है, सामग्री मिली है सब सेवा के लिए मिली है । ’ *एहि तन कर फल बिषय न भाई’ ।* तो निष्काम भाव से सब की सेवा करो । यह सब बंधन कामना में है ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 17:03


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 17:03


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*
प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 8:00 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇

🌷 *तेरहवाँ दिन*
*1-दिनांक- 26* *-अक्टूबर 2024*
*2-वार-शनिवार।*
*3-गीता पाठ - दूसरा अध्याय - श्लोक संख्या 51 से 61 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक- 03 - जून - 1990* प्रातः 8:30 बजे

*5-करने में सावधान होने में प्रसन्न।*

🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 16:00


॥ श्री हरिः ॥
*आस्तिकताकी आधार – शिलाएँ*
गतांक से आगे –
*#८१. सर्वथा नामके आश्रित हो जाइये
अनन्त शान्ति मिल जाय, सदाके लिये हम सुखी हो जायँ -*
इसके लिये अनेक मार्ग हैं; पर उनमें सबसे सुन्दर साधन है – भगवान् के नामकी निरन्तर रटन। भागवत्के द्वितीय स्कन्धमें सबसे पहले शुकदेवजी महाराज अपना हृदय खोलते हुए कहते हैं-
*एतन्निर्विद्यमानानामिच्छतामकुतोभयम् ।*
*योगिनां नृप निर्णीतं हरेर्नामानुकीर्तनम् ॥*
भाग० २ । १ । ११)

'जो लोग संसारमें दुःखका अनुभव करके उससे विरक्त हो गये हैं और निर्भय मोक्षपदको प्राप्त करना चाहते हैं, उन साधकोंके लिये तथा योगसम्पन्न सिद्ध ज्ञानियोंके लिये भी समस्त शास्त्रोंका यही निर्णय है कि वे भगवान्‌के नामोंका प्रेमसे संकीर्तन करें।
इन वचनोंपर विश्वास कीजिये और सर्वथा सब प्रकारसे नामके आश्रित हो जाइये। पापके बुरे संस्कार बाधा देते हैं; इसलिये जैसी चाहिये, वैसी रुचि नहीं होती। पर जैसे रोगी दवा समझकर कड़वी दवाका भी सेवन करता है, वैसे ही मनको प्रिय न लगनेपर भी हठसे नामजप करें। जैसे-जैसे पापोंके संस्कार मिटेंगे, वैसे-वैसे प्रियता बढ़ने लगेगी। बिलम्ब मत कीजिये । इसमें प्रमाद करना बड़ी भारी भूल है । यहाँकी उन्नति-अवनतिमें कुछ भी सार नहीं है । बहुत दृढ़ होनेकी जरूरत है, अन्यथा पश्चात्ताप होगा । सब कीजिये, ज्यों-का-त्यों ऊपरसे रहिये, पर भीतरसे बदल जाइये। यह बात अपने-आप होने लगेगी, यदि तत्परतासे नामकी रटन होने लगे । अतएव वाणीका पूरा संयम करके आवश्यकताभर बोलनेके बाद बाकी कुल समय मशीनकी तरह नाम लेनेमें बीते। इसमें लाभ ही लाभ है ।

*-परमपूज्य श्री राधाबाबा।*

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 12:53


*जय सियाराम !*
भगवान् से श्री तुकारामजी
की *प्रार्थना* 🌷🙏🏻
*(पोस्टराम - १)*

५३२-मार्गकी प्रतीक्षा करते-करते नेत्र थक गये। *इन नेत्रोंको अपने चरण-कमल कब दिखाओगे।* तुम मेरी *मैया* हो; दयामयी छाया हो। *मेरे लिये तुम्हारा ऐसा कठोर हृदय कैसे हो गया ?* मेरी बाँहे, *हे मेरे प्राणधन हरि !* तुमसे मिलनेको फड़क रही हैं।

५३३-हे हरि, हे दीनजनतारक ! तुम्हारा यह सुन्दर सगुणरूप मेरे लिये सब कुछ है। पतितपावन ! *तुमने बड़ी देर लगायी, क्या अपना वचन भूल गये ?*

*घर-गिरस्ती जलाकर तुम्हारे आँगनमें आ बैठा हूँ। इसकी तुम्हें कुछ सुध ही नहीं है।* हे मेरे जीवनसखा ! *रिस* मत करो, *अब उठो और मुझे दर्शन दो।*

५३४-जीकी बड़ी साध यही है कि तुम्हारे चरणोंसे भेंट हो। *इस निरन्तर वियोगसे चित्त अत्यन्त व्याकुल है।*

५३५-आत्मस्थितिका विचार क्या करूँ? क्या उद्गार करूँ ? *चतुर्भुजको देखे बिना धीरज ही नहीं बँध रहा है।* तुम्हारे बिना कोई बात हो यह तो मेरा जी नहीं चाहता। नाथ ! *अब चरणोंके दर्शन कराओ।.........1* 🌷

*।। श्री कृष्णार्पणमस्तु ।।* 🌹🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:33


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:33


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

*गीतामें शरणागतिकी बात मुख्य है। शरणागतिको 'सर्वगुह्यतम' कहा गया है। जीव परमात्माका अंश है, इसलिये उसके लिये परमात्माकी शरणमें जाना बहुत सीधी-सरल बात है, जैसे बालकका अपनी माँकी गोदमें जाना !*

*शरणमें जानेका काम जीवका है और सब पापोंसे मुक्त करनेका काम भगवान्‌का है-*

*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।*
*अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥*
(गीता १८।६६)

*भगवान्ने तो हमें शरणमें ले रखा है। केवल हमें संसारकी शरण नहीं रखनी है। शरणागत आरम्भमें ही मुक्त हो जाता है! शरणागत सिद्ध होकर साधक होता है, ज्ञानमार्गी साधक होकर सिद्ध होता है।*

*सबसे ऊँचा सहारा परमात्माका है। उद्योग तो करो, पर उद्योगका सहारा मत लो- 'मामाश्रित्य यतन्ति ये' (गीता ७।२९)। औरका सहारा न ले, केवल भगवान्‌का सहारा ले, तब काम होगा।*

*एक बानि करुनानिधान की। सो प्रिय जाकें गति न आन की ॥*
(मानस, अरण्य० १०१४)

–परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
–‘सत्संग के फूल’ गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:33


राम राम
तू मेरा है तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
दोङत कोई पकङे छाया
दोङत कोई पकङे छाया
ऐसी अजब रचि तू माया
ऐसी अजब रचि तू माया
दोङत कोई पकङे छाया
ऐसी अजब रचि तू माया
मे मूर्ख देखत ललचाया
मे मूरख देखत ललचाया
कैसा गजब चितेरा है
तू केसे गजब चितेरा है
तू मेरा है तू मेरा है तू मेरा है
यह रचा हुआ सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है
यह रचा हुआ सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
*मे तो रहा सदा मुख मोङे*
*मे तो रहा सदा मुख मोङे*
*फिर भी तू मुझको नही छोङे*
*फिर भी तू मुझको नही छोङे*
*जेसे गाय बछ्छे संग दोङे*
*करता लाड घेरा है*
*तू करता लाड घनेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है*
*जो मिला हुआ सब तेरा है*
तू मेरा है तू मेरा है
जो मिला हुआ सब तेरा है
पाया कष्ट बहूत गफलत मे
अब लिखकर देता हू खत मे
मेरा कुछ भी नही जगत मे
मेरा कुछ भी नही जगत मे
जो कुछ है सब तेरा है
जो कुछ है सब तेरा है
तू मेरा है तू मेरा है
यो मिला हुआ सब तेरा है
*तू ही मात पिता अरु भ्राता*
*तू ही मात पिता अरु भ्राता*
*तू मेरा स्वामी सुखदाता*
*तू मेरा स्वामी सुखदाता*
*मेरा ऐक तुमहई से नाता*
*मेरा ऐक तुमहई से नाता*
*तुम बिन घोर अन्धेरा है*
*तुम बिन घोर अन्धेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है*
*जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तुम बिन कोई रहा न जग मे*
*तुम बिन कोई रहा न जग मे*
*रमा हुआ मेरे रग रग-रग मे*
*रमा हुआ मेरे रग-रग मे*
*पल भर रह नही सकु अलग मे*
*पल भर रह नही स्कु अलग मे*
*जंह रवि तंहा ऊजेरा है*
*जंह रवि तंहा ऊजेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
*तू मेरा है तू मेरा है जो मिला हुआ सब तेरा है*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:32


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन 31 मई 1990 प्रातः 8:30 बजे ।

’ *विषय - आत्मरति कैसे हो ?’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*’हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है, श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन’ ’जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी एक श्रोता के प्रश्न के उत्तर में कह रहे हैं कि भगवत् प्राप्ति के लिए लालसा जोरदार चाहिए । दूसरी लालसा न हो तो भगवत् प्राप्ति हो जाएगी । लालसा की कमी है ओर कमी नहीं है । संसार की लालसा है, यही कमी है । और संसार की वस्तुओं की प्राप्ति में लालसा का काम नहीं है । उसमें भगवान् का विधान है । सुखदाई परिस्थिति आई है, शुभ कर्मों से और दु:खदाई परिस्थिति आई है, अशुभ कर्मों से । भगवत् लालसा - सत्संग से, भक्त चरित्र के पढ़ने से, भजन से प्रकट होती है । सुनने का भी असर पड़ता है । तो लालसा वालों का संग करें ।

फिर एक श्रोता के प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं -
चाहे विश्वास करो भगवान् पर, चाहे त्याग पर विश्वास करो, कर्मयोग पर, चाहे स्वयं पर विश्वास हो । तो आत्मरति हो जाए । जो अपने में संतुष्ट रहता है । संसार जितना मिला है, वह हमारे कर्मों से ही मिला है । तो निष्काम होने से आत्मरति हो जाएगी । तो केवल दूसरों के हित के लिए काम किया जाए । केवल लोगों के हित के लिए काम किया जाए । अपने लिए नहीं किया जाए । स्थूल शरीर की स्थूल संसार के साथ एकता है, सूक्ष्म शरीर की सूक्ष्म संसार के साथ एकता है, कारण शरीर की कारण संसार के साथ एकता है । तो क्रिया करना संसार के हित के लिए, चिंतन करना संसार के लिए और समाधि भी संसार के हित के लिए । ईमानदारी से, इसमें कोई विलक्षणता नहीं है । जैसे कर्मयोगी संसार की चीज मानकर संसार के लोगों को दे देता है । तो सिद्ध हो जाता है । कर्मयोग से कृतकृत्य हो जाता है । ज्ञान योग से ज्ञात ज्ञातव्य हो जाता है । भक्तियोग से प्राप्त प्राप्तव्य हो जाता है । इसमें कोई एक हो जाए तो तीनों सिद्ध हो जाएंगे । तो आत्मा के सिवाय और कहीं रति ही नहीं हो तो आत्मरति हो जाती है । सुंदर दास जी महाराज ने कहा कि परमात्मा की रति नहीं हो तो कोई काम की नहीं है । तो यह कब होगा ? जब संसार में रति नहीं हो, तो आत्मरति स्वत: हो जाएगी । चाहे जाने न जाने, माने न माने । यह रति जितनी जड़ में है, वह उतनी कमी है । दूसरी तृप्ति, रति यह बाधक है । बिना भगवान् के संसार के साथ रह सकते ही नहीं । बालक अवस्था के साथ आप नहीं रह सकते । जवान अवस्था के साथ आप नहीं रह सकते । वृद्धावस्था के साथ आप नहीं रह सकते । रोग अवस्था के साथ आप साथ नहीं रह सकते । निरोग अवस्था के साथ आप नहीं रह सकते । धनवत्ता अवस्था के साथ आप साथ नहीं रह सकते और परमात्मा के साथ रह सकते हैं । अभी परमात्मा के साथ हैं, पर विमुख हैं । परमात्मा साथ नहीं छोड़ सकते । परमात्मा दूर है नहीं, दूर होंगे नहीं, दूर हुए नहीं, दूर हो सकते ही नहीं । परमात्मा सर्व समर्थ है, पर दूर नहीं हो सकते ।

आत्मरति चाहो तो अनात्म रति मत करो । लोग परमात्मा की प्राप्ति के लिए परमात्मा का चिंतन करते हैं । संसार का त्याग नहीं करते । पर अगर संसार का त्याग हो जाए तो स्वत: स्वरूप में स्थिति हो जाएगी । स्थिति क्यों हो जाती है ? क्योंकि स्थिति स्वत: है । लड़की का विवाह होता है, तो मां - बाप से, भाई, बहन से अलग होना कठिन पड़ता है । पर वहां (ससुराल) जाती है तो फिर मां-बाप की याद ही नहीं आती । यह करण सापेक्ष नहीं है, करण निरपेक्ष है । स्वयं की स्वीकृति है । केवल अपना संबंध है । करण निर्माण में काम आता है । स्वीकार और अस्वीकार में ग्रहण और त्याग में करण की आवश्यकता नहीं है । दूसरी रति है, यही आत्मरति में बाधक है । लोग विधि पर जोर देते हैं । नाम जप करो, चिंतन करो, करो यह प्रकृति में है । शरणागति फायदेमंद है । मेरे भगवान् हैं । भगवान को इतना ही कह दे कि आप मेरे को मीठे लगें । भगवान् अच्छा लगे । इस बात का भगवान् भी त्याग नहीं कर सकते । आपसे कोई प्रेम करे तो आपको बुरा लगेगा क्या ? तो भगवान् मीठे लगे यही मांगो भगवान् से । जैसे प्यास लगती है तो पानी की याद आती है । जैसे भूख लगती है तो अन्न की याद आती है । ज्योतिपुंज महाराज जी से पूछा कि महाराज भजन कैसे हो ? तो बोले भूख हो तो भजन अच्छा लगता है । भगवान् से कहें प्रभु आपको देखना चाहता हूं और कुछ नहीं चाहिए । यह भगवान् की कृपा से होगा, त्याग से होगा । संसार केवल दु:खों का कारण है, दु:खों का जनक है । बुद्धिमान उसमें रमण नहीं करते । अष्टावक्र गीता में अष्टावक्र जी ने कहा कि ये जहर है । जहर से एक बार मरता है, यह तो मारता ही रहता है, गिनती नहीं है ।

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 10:32


भक्ति जितनी जड़ में है, यह व्यभिचार है । मान, बड़ाई, भोग में रुचि नहीं हो । यह कर्मयोग से संसार में रुचि मिटती है । एक सज्जन ने कहा कि मुझे आम मिला, तो मैं अपनी स्त्री को ला करके दे दिया, स्त्री में मोह था । तो मुंह तो उसके नजदीक था, पर नहीं खाया । दूसरे का हित हो, यह भाव होने से वस्तु दूसरे के काम आ जाती है । ’ *सर्व भूत हिते रता* ।’ संसार का काम करो और संसार मेरे काम आ जाए यह आशा मत करो । संत महात्मा कहते हैं - भगवान् से भी आशा मत करो । संसार की कामना से पराधीनता होगी और मिलेगा कुछ नहीं ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 05:27


|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||
--- :: x :: ---
‘मानव जीवनका सार’
{श्रद्धेय स्वामीशरणानन्दजी महाराज}

“अपने लिये उपयोगी होना” : ६७
--- :: x :: ---

* यदि विचारपूर्वक जगत् से आशा न करें और मिली हुई वस्तु, योग्यता, सामर्थ्य, जो जगत्पति ने जगत् की सेवाके लिये दी हैं, वे उसीकी सेवामें अर्पित कर दें, तो शरीर आदिसे असंगता और जगत् से अभिन्नता हो जायगी, जिसके होते ही शरीर और विश्वकी एकता स्वतःसिद्ध होगी |

शरीर और विश्वकी एकताका अनुभव हमें जगत्पतिसे नित्य-सम्बन्ध तथा आत्मीयता जाग्रत् करनेमें सहयोगी होगा; कारण, कि जब शरीर अपना करके नहीं रहा, तब अपनी अहंता उन्हींकी आत्मीयतामें परिणत हो गयी, जिन्होंने मेरा और जगत् का निर्माण किया था |

इस दृष्टिसे मानव अचाह होकर जगत्पतिसे अभिन्न हो, कृतकृत्य हो जाता है |

क्रमशः-

नारायण हरिः ! नारायण हरिः !! नारायण हरिः !!!
::xxx :: xxx :: xxx : :
{“साधन-निधि’’ पुस्तकसे, क्रमांक-२५, मानव सेवा संघ वृन्दावन-- 281121; फोन –{0565} 2443181}

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 02:15


राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 24 मई 2003 प्रातः 5:00 बजे ।

’ *विषय - हम भगवान् के अंश हैं ।’*

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो भिजवाया जा रहा है । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

’ *हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है,’ ’श्री’ ’स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए ।’*

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि *ममैवांशो जीव लोके ।* जीव मेरा ही अंश है । जीव मात्र स्थावर हो, जंगम हो, स्त्री हो, पुरुष हो, हिंदू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, मेरा ही अंश है । अगर आप विचार करें आप भगवान् के अंश हैं और भगवान् हमारे अंशी हैं । जैसे यह शरीर है, यह माता का अंश है । परंतु इसमें पिता का भी अंश है । पर भगवान् कहते हैं जीव मेरा ही अंश है । ’ *ममैवांशो* ’ । तो हमारे भाई बहनों से कहना है आप इस बात को स्वीकार कर लें सरलता पूर्वक और दृढ़ता पूर्वक । बहनों माताओं को कहना है- मैं भगवान की लाडली पुत्री हूं, पुरुषों से कहना है - मैं भगवान् का लाडला पुत्र हूं ।

’ *ईश्वर अंस जीव अबिनाशी ।’*
’ *चेतन अमल सहज सुख राशि।।’*

हम चेतन है, अमल हैं । न रुपया अपने साथ चलेगा, न भोग अपने साथ चलेगा । रुपयों को, मकान को, कुटुंब को अपना माना है यह मल है । अपन अमल है । मल रहित हैं । सहज सुख राशि हैं । कोरा सुख ही सुख है । मैं भगवान् का हूं, भगवान् मेरे हैं । करना कुछ नहीं । आप सज्जन हो, दुराचारी हो, कैसे ही हो, भगवान् के हो, भगवान मेरे हैं और कोई मेरा नहीं है । संसार की चीज वस्तु हमारी नहीं है । हमारे लिए भी नहीं है । संसार के लिए है । मैं भगवान् का हूं ।

*ईश्वर अंस, जीव अबिनाशी,* *चेतन, अमल, सहज सुख राशि ।*
ये पांच बातें हैं, यह स्वीकार कर लो अभी-अभी सरलता से । सहज बात है । दो खास बंधन है, एक संग्रह करना और भोग भोगना । गीता में दूसरे अध्याय के 44 वां श्लोक । दो बातें ध्यान देने की है - आए थे तब क्या लाए थे ? जाएंगे तब क्या ले जाएंगे ? जाएंगे तब शरीर भी यही रहेगा । संसार, धन-संपत्ति, कोई साथ जाएगी ? कोई साथ नहीं जाएगी । ’ *अंतहुं तोहि तजैंगे’ ’पामर तू न तजै अब ही’ ’ते’ ।* शरीर की मिट्टी बन जाएगी । याद रखो साथ कुछ लाए नहीं, साथ कुछ ले जा सकते नहीं । यहां जो मिला है, वह सेवा के लिए मिला है । अन्न, जल, वस्त्र, मकान, यह जितना अपने काम में आए उतनी अपनी, बाकी अपनी नहीं है । जिस धन के लिए पाप किया, वह साथ जाएगा । भोग भोगकर देख लिया, यह एक धोखे की टट्टी है । छोड़ दिया तो निहाल हो जाओगे । दु:ख से छुटकारा नहीं होगा । जैसे 84 लाख योनियों में एक मनुष्य शरीर है, ऐसे मनुष्य शरीर में एक सत्संग है । अगर उनकी बात मान लें, तो निहाल हो जाएं । नहीं तो जन्मों, मरो । खेती सूखने के बाद वर्षा का क्या महत्व ? मनुष्य जीवन में कल्याण की स्वतंत्रता दी है, योग्यता दी है, बल दिया है, अधिकार दिया है । मनुष्य मात्र अधिकारी हैं । ये चार बातें हैं - स्वतंत्रता, अधिकार, योग्यता और सामर्थ्य । यह भगवान् ने दिया है । पापी से पापी भगवान् में लग सकता है । सब पाप नष्ट हो जाएंगे और परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी। अभी मौका है परमात्मा की प्राप्ति में सब स्वतंत्र हैं, योग्य हैं, बलवान हैं, दु:खों का कोई अंत नहीं है । अभी मौका है । बड़े-बड़े धनियों ने छोड़ दिया सब और भगवान् में लग गए । मीरा जी ने पुत्र जाया नहीं और चेला एक बनाया नहीं, पर मुक्त हो गई । एक साधक ने संतों से पूछा कि कोई योग्य चेला मिल जाए तो मकान उसको सौंपकर भजन करूं । तो संतो ने कहा कि जब आप ही छोड़ रहे हो तो अच्छा नहीं समझे तभी तो छोड़ा तो इसके लिए पात्र क्या देख रहे हो ? कपूत को देखो, जिससे वह इससे अपना माथा फौड़े ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

श्री गीताप्रेस सत्संग

25 Oct, 02:15


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:18


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:18


*।।राम-राम।।*
🌷 *आनलाईन टेलीग्राम लिंक से श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी में प्रतिदिन प्रातः 5:00 बजे* *नित्य-स्तुति,प्रार्थना,गीता पाठ व हरिशरणम् तत्पश्चात प्रवचन।*

प्रवचन बाद साधकों की शंकाओ का समाधान
प्रायः संत श्री डूँगरदास जी महाराज
करते हैं।

रात्रि में 8:00 बजे से श्री स्वामीजी महाराज के साधक संजीवनी वाचन इसके बाद श्री स्वामी जी महाराज की वाणी से प्रवचन तत्पश्चात आपसी चर्चा व शंका समाधान।

सत्संग के दोनों कार्यक्रमों का लाभ टेलीग्राम समूह से आनलाईन प्राप्त कर सकते हैं-👇
🌷 *पाँचवा दिन*

*1-दिनांक- 18* *-अक्टूबर 2024*

*2-वार-शुक्रवार*

*3-गीता पाठ - पहला अध्याय - श्लोक संख्या 31 से 40 तक*

*4- प्रवचन का दिनांक-06-जनवरी- 1990* *प्रातःकाल 5:00 बजे*

5- *विषय- कमर कस के तैयार हो जाओ।*


🌷

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:15


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

*परमात्मप्राप्तिके तीन मुख्य मार्ग*

(परमश्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज )

परमात्मप्राप्ति तत्काल होनेवाली वस्तु है । इसमें न तो भविष्यकी अपेक्षा है और​ न क्रिया एवं पदार्थकी ही अपेक्षा है। परमात्मप्राप्तिके तीन मुख्य मार्ग हैं- ज्ञानयोग,​ कर्मयोग और भक्तियोग । ​भगवान् कहते हैं-
​ *योगास्त्रयो मया प्रोक्ता नृणां श्रेयोविधित्सया ।​*

​ *ज्ञानं कर्म च भक्तिश्च नोपायोऽन्योऽस्ति कुत्रचित् ॥​*

( श्रीमद्भागवत ११ । २०। ६)
'अपना कल्याण चाहनेवाले मनुष्योंके लिये मैंने तीन योग बताये हैं- ज्ञानयोग, कर्मयोग​ और भक्तियोग। इन तीनोंके सिवाय दूसरा कोई कल्याणका मार्ग नहीं है । '

1️⃣ *ज्ञानयोग (विवेकमार्ग )​*

अपने जाने हुए असत्का त्याग करना 'ज्ञानयोग' है। इसके तीन उपाय हैं-

*१* . अनन्त ब्रह्माण्डोंमें लेशमात्र भी कोई वस्तु मेरी नहीं है-ऐसा जानना ।
*२* . मुझे कुछ भी नहीं चाहिये- ऐसा जानना ।
*३* . 'मैं' कुछ नहीं है - ऐसा जानना ।

2️⃣​ *कर्मयोग (योगमार्ग )​*

बुराईका सर्वथा त्याग करना 'कर्मयोग' है। इसके तीन उपाय हैं—

*१* . किसीको बुरा न समझना, किसीका बुरा न चाहना और किसीका बुरा न करना ।
*२* . दुःखी व्यक्तियोंको देखकर करुणित और सुखी व्यक्तियोंको देखकर प्रसन्न होना ।
*३* . अपने लिये कुछ न करना अर्थात् संसारसे मिली हुई वस्तुओंको संसारकी ही सेवामें
लगा देना और बदलेमें कुछ न चाहना ।

3️⃣​ *भक्तियोग ( विश्वासमार्ग )​*

सर्वथा भगवान्‌के शरणागत हो जा
'भक्तियोग' है। इसके दो उपाय हैं-

*१* . मैं केवल भगवान्‌का अंश हूँ- 'ममैवांशो जीवलोके' (गीता १५ । ७), 'ईस्वर अंस​ जीव अबिनासी' (मानस, उत्तर० ११७ । १ ) । भगवान्‌का ही अंश होनेके नाते मैं केवल​ भगवान्‌का ही हूँ और केवल भगवान् ही मेरे हैं।भगवान्‌के सिवाय और कोई मेरा नहीं है-​ ऐसा मानना ।

*२* . क ) सब कुछ भगवान्‌का ही है अर्थात् संसारमें जो कुछ भी देखने, सुनने तथा मनन​ करनेमें आता है, वह सब भगवान्‌का ही है - ऐसा मानना ।

ख) सब कुछ भगवान् ही हैं; भगवान्‌के सिवाय कुछ भी नहीं है। 'मैं' सहित सम्पूर्ण​ जगत् उन्हींका स्वरूप है— 'वासुदेवः सर्वम्' ( गीता ७। १९ ) – ऐसा मानना ।
-
ग) एक भगवान्‌के सिवाय अन्य कुछ हुआ ही नहीं, कभी होगा ही नहीं, कभी होना​ सम्भव ही नहीं । एकमात्र भगवान् ही थे, भगवान् ही हैं और भगवान् ही रहेंगे — ऐसा मानना ।​ भक्तिसे प्रतिक्षण वर्धमान परमप्रेमकी​ प्राप्ति होती है। एक भगवान् ही प्रेमी​ और प्रेमास्पदका रूप धारण करके परमप्रेमकी लीला करते हैं। उस परमप्रेमकी​ प्राप्तिमें ही मानव जीवनकी पूर्णता है।

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:15


Audio from श्री हरी (Amit Jangid)

श्री गीताप्रेस सत्संग

17 Oct, 17:13


*"ॐ श्री परमात्मने नमः"*
*(9:22मिनट का सत्संग)*
*दिनांक:-* 4 सितबर 2002
*प्रातः*- 5 *गीता भवन*

*🙏आप संभालो अपने आप को!आप कौन हो,?आप साक्षात ईश्वर के अंश हो!डरो मत!! माया आपको वस में नहीं कर सकती🙏,*

*🏵️आपको परबस माया नहीं कर सकती!आप साक्षात परमात्मा के अंश हो!* *माया की शक्ति नहीं है कि आप पर आधिपत्य जमावे! आप माया को पकड़े हुए हो!*
*👉✓✓आप सभी कान देकर सुनो,भाई बहन सब सुनो! आप माया के बस में नहीं हो!आप हुवे हो!* *"सो माया बस भयहु गोसाई,बंद्धयो कीट मरकट की नाई"!* *माया बस हुवे हो आप! माया बस नहीं हो!*
*आप भगवान के हो!माया को आप छोड़ दो!* *बहुत अच्छा अवसर है!* *मौका है बड़ा अच्छा!*
*आपने सम्बन्ध जोड़ा है,माया से!माया आपको बस में नहीं कर सकती!✓✓*

*आप भगवान के हो!*
*"ममे वासौ जीव लोके"*
*"ईश्वर अंश जीव अविनाशी! हम साक्षात परमात्मा के हैं,फिर निशंक हो जाओ!उनके समान कोई है नहीं, होगा नहीं,हो सकता नहीं!*🏵️

*🌻निशंक ,निर्भय, निडर हो जाओ! हम भगवान के हैं! कैसे ही है,भगवान के हैं!*

*राज का सिपाही कैसा ही हो,वो वर्दी राज की है!* *इस वास्ते हम सब भगवान के हैं!* *भगवान के हैं साक्षात!जीव मात्र!ईश्वर से सम्बंध है माया से सम्बंध नहीं है!आप माया बस हुवे हो! माया ने आपके ऊपर कोई प्रभाव नहीं डाला है!* *माया आपको वस में नहीं कर सकती!आप ईश्वर के अंश हो!* *भगवान के हैं हम!*
*उसके हो!! "ईश्वर अंश जीव अविनाशी,चेतन अमल सहज सुख राशि"!*
*माया आपको वस में नहीं कर सकती!हम भगवान के हैं*🌺

*🏵️राज का सिपाही होता है,उसके गर्मी होती है, भीतर में कि मैं राज का हूं!उसका असर पड़ता है!* *दुनिया पर असर पड़ता है!* *भगवान के हैं हम,भगवान के हैं!अपने बहुत विशेष शक्ति है!आपमें विशेष पावर है! "भगवान के हैं हम"!भगवान के नहीं हो तो कुछ नहीं,फिर कोई शक्ति नहीं!*
*🙏🏻गो स्वामीजी महाराज ने कलियुग को धमकाया है!* *👉,"तूं"जानता नहीं है?*👈
*तूं भगवान "शंकर के" तीसरे नेत्र को नहीं सह सका!*
*क्या "चक्र सुदर्शन" को नहीं जानता?* *मेरी तरफ देखता है?👈*

""""""" *"मैं कौन हूं"""""""""*
*मैं"भगवान का"हूं!*
"""" *वो """"""*
*आप सब हैं!*
*जम राज को ,देखने की ताकत नहीं!* *कौन हो तुम* *हम "भगवान के हैं"! ऐसे आप हो!*
*आप अपनी तरफ ध्यान दो!* *आप बड़े घर के हो,मामूली नहीं हो!*
*आप साक्षात परमात्मा के हो!🏵️*

*🌻आप संभालो,संभालो अपने आप को! आपकी तरफ ध्यान दो,आप कौन हो?*
*याद करो याद, केवल याद करो! केवल भगवान के हैं हम!भूलो मत! मौज हो गई आनन्द हो गया!हम भगवान के हैं साक्षात!पीढ़ियां नहीं है!साक्षात बेटा है!*

""""""""" *सुना कि नहीं?""""*

*साक्षात परमात्मा के अंश!* *निर्भय ,निशंक रहो!* *भगवान के तो हम है ही!*🌻

*🏵️ आज से ही याद कर लो कि हम भगवान के हैं!हम सब भगवान के हैं!कोई नहीं पहचानता हो तो उसे कह दो कि अरे तुम क्या करते हो?भगवान के हो!*

*हम अच्छे घराने के हैं,मामूली नहीं है?* *डरो मत किसी से ही!* *डर किस बात का है? पाप करते नहीं,अन्याय करते नहीं फिर डर किस बात का?मौज रहेगी हरदम, मस्ती रहेगी!* *आनन्द हो गया!*🏵️

*[{परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के मुखारविंद से"माया आपको वस में नही कर सकती"सत्संग रूपी अमृत की वर्षा}]*
नारायण!नारायण!

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