✍ धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ @dharmakikhoj Channel on Telegram

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

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ॐ, धर्म ही जीवन है और स्वधर्म की खोज करने के लिए ही मानव के रूप में हम सब का जन्म हुआ है। जिस दिन आपको आपका धर्म मिल जाएगा उस दिन आपका मानव जन्म सफल हुआ तो आओ हम सब मिलकर समूह में स्वधर्म की खोज करें।
ॐ शान्तिः शान्तिंः शान्तिंः

✍ धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ (Hindi)

आपका धर्म क्या है? आपको अपना स्वधर्म कैसे पता चलेगा? ये सवाल हर किसी के मन में उठते हैं। धर्म की खोज नामक टेलीग्राम चैनल आपको इन सवालों के जवाब देने के लिए है।nnयह चैनल 'धर्म की खोज' में हम सब मिलकर एक समूह बनाते हैं जो हर व्यक्ति को अपना स्वधर्म खोजने के लिए प्रेरित करता है। धर्म ही जीवन है और जब आप अपना धर्म पहचान लेते हैं, तो आपका मानव जीवन सफल हो जाता है।nnइस चैनल में हम धार्मिक ज्ञान, पौराणिक कथाएं, ध्यान तकनीकें, और अन्य धार्मिक विषयों पर चर्चा करते हैं। यहां आप अपने आत्मा की शांति और समृद्धि के लिए मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।nnचाहे आपका संदेश हो 'ॐ शान्तिः शान्तिंः शान्तिंः' या आप बस अपने धर्म की खोज में लगे हो, यह चैनल आपके लिए एक साथी और मार्गदर्शक है। आइए, हम सभी मिलकर स्वधर्म की खोज में निकलें और अपने आत्मा के सम्बंध में नए पहलुओं को जानें।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

12 Jan, 06:11


*सत्य का मार्ग मत छोड़ना, चाहे मन कितना ही क्यों न छटपटाये!*

*इन्द्रियाँ तो व्यर्थ ही इधर-उधर भागने वाली हैं।*
*ये आपको किसी भी खड्डे में गिरा सकती हैं।*
*इन्द्रियों को वश में कर लो तो तुम विजयी कहलाओगे।*
*इन्द्रियाँ चोर की तरह वह अवसर ताकती हैं, जब वे तुम्हें नर्क में पटक दें, पतन करा दें।*

*यदि इन चोरों को अवसर मिलेगा, तो ये सारा संचित धर्म नष्ट कर देंगी।*
*मन के संयम से उत्थान का मार्ग थोड़ा सरल हो जाता है।*
*अनियंत्रित इन्द्रियों का विद्रोह ही नर्क है।*
*उत्तम स्वास्थ्य, दिव्य बुद्धि और सांसारिक सम्पदाएँ उसी को प्राप्त होती है,*
*जिसने अपने मन और इन्द्रियों पर काबू पा लिया है।*

*जिन व्यक्तियों के हृदय पवित्र हैं, मन काबू में है, वे धन्य हैं, क्योंकि वे पृथ्वी पर ही स्वर्ग का सुख प्राप्त करेंगे।*

*धर्म वही है, होता जिससे सदा-सर्वदा पर-उपकार।*
*उससे ही होता निश्चय अपना भी सहज सत्य उपकार॥*

*वह अधर्म है, जिससे होता तनिक दूसरेका अपकार।*
*उससे अपना भी निश्चय ही होता सहज अमित अपकार॥*

*बुद्धिमान जन इसीलिये नित करते रहते पर-उपकार।*
*क्योंकि उसीसे ही होता है उनका भी अपना उपकार॥*

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11 Jan, 10:06


दुष्कर्मों के और कुविचारों के जो कुसंस्कार मन पर जमते हैं वे एक प्रकार से विषैली पर्तों के रूप में चेतन मस्तिष्क और अचेतन चित्त पर जमते रहते हैं। ये मन की चंचलता, उद्विग्नता, अस्थिरता, आवेग, विक्षोभ आदि के रूप में फूटते हैं और व्यक्ति को अर्ध पागल जैसा बना देते हैं। वह किसी काम को एकाग्रचित होकर नहीं कर पाता और हर घडी उधेडबुन में ही लगा रहता है। फलस्वरूप पग-पग पर उसे असफलता मिलती है और ठोकरें लगती हैं। असंतुलित व्यवहार से वह रूष्ट और असंतुष्ट होकर असहयोगी, विरोधी और अपराधी बन जाता है। परिवार और समाज में सभी से कलह करने का अभ्यस्त व्यक्ति हर घडी विक्षुब्ध बना रहता है। न तो मस्तिष्क ठीक प्रकार से सोच पाता है, न कोई सही रास्ता मिलता है। शरीर से रूग्न और मन से विक्षुब्ध व्यक्ति जीवित रहते स्वयं नरक भोगता है और सामाजिक वातावरण को भी दूषित करता है।

व्यसन और मृत्यु में व्यसन अधिक कष्टदायक होता है। व्यसनों में अलिप्त व्यक्ति मरकर भी सुख प्राप्त करता है पर दुर्व्यसनों में फंसा हुआ व्यक्ति प्रति पल मरता रहता है। और अधोगति को प्राप्त होता है। निर्व्यसनता मनुष्य की शोभा का कारण होती है। जो व्यक्ति मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करता उसे निश्चित रूप से नशा करने वालों से अच्छा समझा जाएगा। मांसाहार न करने वाला व्यक्ति मांसा हारी की अपेक्षा श्रेष्ठ समझा जाएगा। जुआरी की अपेक्षा जुआ न खेलने वाला ही सम्मान व प्रतिष्ठा पाता है।

दुराचारों, दुष्कर्मों और दुर्व्यसनों में उलझा हुआ व्यक्ति अपने पतन का कारण तो बनता ही है, समाज के प्रति भी घोर अपराध करता है। उसके कारण समाज में अराजकता और अशांति फैलती है और न जाने कितने लोगों के जीवन पर भी उसका दुष्प्रभाव पडता है। व्यभिचार और बलात्कार से पीडित व्यक्ति को आजीवन मानसिक यातना भुगतनी पडती है।

जहां ये सब दुर्व्यसन समाज के प्रति अपराध हैं वहां मांसाहार जीव जगत के प्रति अपराध है। यह मनुष्य को जंगली और अशिष्ट बनाता है और बुद्धि को मलिन करता है। मांसाहार से मनुष्य के हृदय से दया का भाव दूर हो जाता है। यह उसकी शारीरिक, मानसिक, आत्मिक तथा बौद्धिक उन्नति को रोककर अवनति की ओर ले जाता है अतः इसे वर्जित समझना चाहिए। संसार भर में जितने भी महापुरूष हुए हैं वे सभी शाकाहारी रहे हैं और उन्होने मांसाहार की भरपूर निंदा की है। मांसाहार अहिंसा को त्याग कर ही किया जा सकता है। हमारे ऋषियों ने सदैव ही अहिंसा की महिमा का बखान किया है। महाभारत ( आदि पर्व ) में ऋषि ने स्पष्ट कहा है 'अहिंसा परमोधर्मः सर्वप्राणभूतां वर।' किसी भी प्राणी को न मारना ही परम धर्म है। अहिंसा से बढकर दूसरा कोई धर्म नहीं है।

समाज एवं जीव जगत के इन अपराधियों को, मानवता के विरोधियों को उचित दंड अवश्य मिलना चाहिए। ऐसी दुष्प्रवृत्तियों को जड से उखाड फेंकने के उपक्रम हम सभी को करने चाहिए तभी हम सामाजिक उत्तरदायित्व को भली प्रकार निभा सकेंगे।

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10 Jan, 08:40


_ * प्रेम की सुगंध *

बल के प्रयोग से आप किसी व्यक्ति को तो जीत पाते हैं लेकिन उसके हृदय को नहीं जीत सकते हैं। अपनी बात मनवाने के लिए अपने अधिकार या बल का प्रयोग करना कदापि उचित नहीं है। प्रेम ही वो शस्त्र है जिसके प्रयोग से सारी दुनिया को जीता जा सकता है। लेकिन प्रेम की विजय की शुरुआत पूर्ण समर्पण से ही संभव है इसलिए निसंदेह प्रेम की विजय ही सच्ची विजय है। प्रयास करें कि किसी काम को करवाने के लिए आपको क्रोध का आश्रय न लेना पड़े।
इसी पर हॉलीवुड में एक फिल्म (हैकसॉ रिज 2016) का निर्माण हुआ है जिसमें एक सैनिक बिना हथियार उठाए कैसे एक युद्ध में सहायता कर सकता है इसका खूबसूरती से चित्रित किया गया है।
हमारे ग्रंथों में भी प्रेम या शांति को पहले स्थान दिया गया है राम, कृष्ण हों या कबीर हों सबने प्रेम को ही सर्वोपरी माना है
जब जो कोई काम धीरे बोलकर, मुस्कुराकर और प्रेम से बोलकर कराया जा सकता है उसे क्रोधित होकर करवाना भी उचित नहीं है। आज प्रत्येक घर में परस्पर द्वेष, संघर्ष, दुःख और अशांति का एक ही कारण है और वह है प्रेम का अभाव। आग को आग नहीं बुझाती पानी बुझाता है और क्रोध को क्रोध शांत नहीं करता अपितु प्रेम ही शांत करता हूँ। पशु -पक्षी भी प्रेम की भाषा समझते हैं। प्रेम वो इत्र है जिसकी सुगंध आपके पूरे जीवन को प्रसन्नता की सुगंध से भर देती है।

🙏 *जय श्री राधे कृष्ण* 🙏

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09 Jan, 05:34


हस्तरेखाशास्त्र

हाथों में कहां रहते हैं राशि, ग्रह, शंख और चक्र

यदि आप हस्तरेखा विशेषज्ञ नहीं भी बनना चाहते हैं तो भी आपको यह जानना चाहिए कि हाथों में ग्रह और राशि का स्थान कौन सा होता है और उसका प्रभाव कैसा रहता है? आओ जानते हैं इस संबंध में संक्षिप्त, सामान्य लेकिन रोचक जानकारी हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिसे जानकर आप अपना थोड़ा-बहुत भविष्य जान ही जाएंगे।

हाथ और हथेली में ग्रह और उनके पर्वत-
एक हाथ में 4 अंगुलियां और 1 अंगूठा होता है। अंगुलियों में 3 पोरे और अंगूठे में 2 पोरे होते हैं। हथेली में ढेर सारी रे‍खाएं होती हैं। पहली तर्जनी अंगुली गुरु की अंगुली है। दूसरी अंगुली मध्‍यमा शनि की अंगुली। तीसरी अनामिका अंगुली सूर्य की अंगुली और चौथी सबसे छोटी अंगुली बुध की अंगुली है।

तर्जनी अंगुली के नीचे के हिस्से को गुरु पर्वत कहते हैं। इसी तरह मध्यमा के नीचे शनि पर्वत, अनामिका के नीचे सूर्य, सबसे छोटी कनिष्ठा अंगुली के नीचे बुध का पर्वत होता है। बुध के पर्वत के नीचे उर्ध्व मंगल, सूर्य और शनि पर्वत के नीचे मध्यम मंगल और गुरु पर्वत के नीचे निम्न मंगल होता है। संपूर्ण अंगूठा ही शुक्र का होता है।

अंगूठे के नीचे शुक्र का स्थान है और उसके सामने हथेली के दूसरी ओर चंद्र का स्थान है। इसी तरह हथेली के बीचोबीच राहु और मणिबद्ध अर्थात कलाई में केतु का स्थान होता है जबकि लाल किताब के अनुसार कलाई में राहु और केतु दोनों होते हैं। जीवनरेखा की समाप्ति स्थान कलाई के ऊपर पर बना राहु पर्वत होता है।

बृहस्पति पर्वत पर चक्र का होना धनवान होने का संकेत है। शनि पर्वत पर चक्र होना अचानक धनलाभ करता है। सूर्य पर्वत पर चक्र होना व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा दिलाता है। बुध पर्वत पर चक्र होना सफल व्यापारी और वक्त बनाता है। चंद्र, मंगल और शुक्र पर्वत पर चक्र होना अशुभ है।

रेखाएं- बुध पर्वत से निकलकर गुरु पर्वत की ओर जाने वाली रेखा हृदयरेखा होती है। गुरु पर्वत के नीचे जीवनरेखा से निकलकर चंद्र पर्वत की ओर जाने वाली रेखा मस्तिष्क रेखा होती है। गुरु पर्वत और निम्न मंगल पर्वत के बीच से निकलकर कलाई की ओर जाने वाली रेखा जीवनरेखा होती है। राहु या केतु पर्वत से निकलकर शनि या गुरु पर्वत की ओर जाने वाली रेखा भाग्य रेखा होती है। केतु पर्वत के कुछ ऊपर से निकलकर बुध पर्वत की ओर जाने वाली रेखा स्वास्थ्य रेखा होती है।

सभी लोगों के हाथ में बुध पर्वत के पास और मस्तिष्क रेखा के ऊपर संतान और विवाह की छोटी-छोटी रेखाएं होती हैं। कुछ लोगों के हाथ में निम्न मंगल से ही मंगल रेखा निकलकर शुक्र पर्वत से होती हुए नीचे तक जाती है। कुछ लोगों के हाथ में चंद्र पर्वत पर यात्रा और प्रज्ञा रेखा होती है। जीवनरेखा से ही नीचे से निकलकर बुध की ओर एक बुध रेखा जाती है। सूर्य और शनि पर्वत के नीचे शुक्र वलय होता है। शनि के नीचे शनि और बुध के नीचे बुध वलय होता है। वलय चंद्राकार का होता है।

जीवनरेखा- ऐसा माना जाता है कि जीवनरेखा पूर्ण और पुष्ट है तो जीवन भी पूर्ण होगा। यदि यह रेखा अपूर्ण हो तो स्वास्थ्य संबंधी परेशानी झेलना पड़ती है। यदि यह रेखा गहरी हो तो जीवन आसान और रोचांचभरा होता है किंतु यह हल्की है तो जीवन में कोई आनंद या रोमांच नहीं होता है।

हृदय रेखा- हृदय रेखा लंबी और गहरी है तो व्यक्ति खुले और पुष्ट हृदय वाला होगा। लेकिन यह रेखा अधिक लंबी अर्थात हथेली के दोनों किनारों को टच कर रही है तो व्यक्ति जीवनसाथी पर निर्भर रहता है। यदि यह रेखा छोटी है तो व्यक्ति स्वार्थी और कृपण हो होगा, लेकिन यदि यह रेखा एकदम सीधी है तो व्यक्ति रोमांटिक होगा।

मस्तिष्क रेखा- मस्तिष्क रेखा यदि साधारण रूप से लंबी है तो व्यक्ति स्मृ‍तिवान होगा, साथ ही वह किसी कार्य को सोच-समझकर करने वाला होगा। लेकिन यह रेखा अधिक लंबी है तो व्यक्ति सफल और साहसी होगा और यह रेखा यदि कर्व लिए हुए है तो व्यक्ति क्रिएटिव एवं आदर्शवादी होगा।

भाग्य रेखा- भाग्य रेखा यदि सरल और स्पष्ट है तो व्यक्ति का भाग्य साथ देगा लेकिन यह रेखा टूटी-फूटी और अस्पष्ट है तो कर्म पर ही निर्भर रहना होगा। यह भी मान्यता है कि यदि यह रेखा कलाई से निकलकर यदि गुरु पर्वत में मिल जाए तो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा भाग्यशाली होता है लेकिन शनि पर्वत में मिल जाए तो भाग्य की कोई गारंटी नहीं।

विवाह रेखा- इसे प्रेम रेखा भी कहते हैं। यह एक अथवा एक से अधिक होती है। यदि यह रेखा गहरी और लंबी होती है तो व्यक्ति अपने रिश्तों को महत्व देता है और वह सचमुच में ही प्रेम करता है। किंतु यदि यह रेखा छोटी और हल्की है तो व्यक्ति को अपने रिश्तों की परवाह नहीं है, ऐसा माना जाता है। विवाह रेखा के ऊपर ही संतान की रेखा होती है।

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09 Jan, 05:34


अंगुलियों में राशियां-
1. पहली अंगुली तर्जनी का प्रथम पोर मेष, दूसरा वृषभ और तीसरा मिथुन राशि का होता है।
2. बीच की अंगुली का प्रथम पोर मकर, दूसरा पोर कुंभ और तीसरा पोर मीन राशि का माना जाता है।
3. तीसरी अंगुली अनामिका में प्रथम पोर कर्क, दूसरा पोर सिंह और तीसरा पोर कन्या राशि का माना जाता है।
4. चौथी अंगुली का प्रथम पोर तुला, दूसरा पोर वृश्चिक और तीसरा पोर धनु राशि का माना जाता है।

अंगुलियों के पोरों के शंख-
जिस अंगुली के नीचे के पर्वत गहरे और स्पष्ट हैं, साथ ही अपनी जगह से हटे हुए या किसी अन्य पर्वत की ओर झुके हुए नहीं है तो माना जाता है कि उस अंगुली से संबंधित ग्रह भी मजबूत होता है। पर्वत में चक्र या शंख होता है। अंगुलियों के पोरों में भी चक्र या शंख होते हैं। एक अंगुली में शंख है तो उच्च शिक्षा प्राप्त कर उच्च पद पद पर आसीन होगा। दो है तो जीवन संघर्षपूर्ण होगा। तीन है तो लग्जरी लाइफ जिएंगे। चार है तो राजयोग या अपार धनयोग समझें और पांच है तो अत्यंत प्रतिभावान, ख्यातिप्राप्त होगा और समाज को बदलने वाला होगा। छह है तो वैज्ञानिक, उपदेशक, संत या अद्भुत मस्तिष्क क्षमता का धनी होगा। सात है तो गरीब या दुखी होगा। आठ है तो मेहनत के बल पर ऊंचाइयां छुएगा। नौ है तो महिलाओं के गुण होंगे और उसे महिलाओं का सहयोग खूब मिलेगा। दस है तो बहुत ही सम्माननीय व्यक्ति होगा। हथेली पर शंख है तो व्यक्ति देश-विदेश की यात्रा करेगा।

अंगुलियों के पोरों के चक्र-
चक्र गोल पूर्ण घेरे से युक्त स्पष्ट अभंग होना चाहिए, नहीं तो टूटा हुआ चक्र व्यक्ति को अनेक मानसिक चिंताओं से ग्रस्त कर देता है। तर्जनी में चक्र होगा तो जातक अनेक मित्रों से युक्त होकर लोगों का नेतृत्व करेगा, महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ धन का भी लाभ होगा। मध्यमा में चक्र होगा तो जातक धनवान और धार्मिक प्रवृत्ति का होगा और उस पर शनि की कृपा रहेगी। हो सकता है कि वह उत्तम ज्योतिषी, तांत्रिक या मठाधीश हो।

अनामिका अंगुली पर चक्र होना भाग्यशाली होने की निशानी है। ऐसे जातक उत्तम व्यापारी, धनवान, उद्योग-धंधों में सफल, प्रतिष्ठित लेखक, यशस्वी, ऐश्वर्यवान, राजनीतिज्ञ, कुशल प्रशासनिक अधिकारी भी हो सकते हैं। सबसे छोटी अंगुली यानी कनिष्ठिका पर चक्र का होना सफल व्यापारी होने की निशानी होती है। ऐसे जातक सफल लेखक और प्रकाशक भी होते हैं व संपादन के क्षेत्र में भी सफलता पा सकते हैं।

यदि अंगूठे पोरे पर चक्र बना है तो जातक जीवन में कई उपलब्धियां प्राप्त करता है। वह जीवन में कई उल्लेखनीय कार्य भी करता है। ऐसा जातक भाग्यशाली व धनवान होता है। ऐसा जातक ऐश्वर्यवान, प्रभावशाली, दिमागी कार्य में निपुण, उत्तम गुणयुक्त, पिता का सहयोग व धन पाने वाला होता है।

हाथों के निशान-
1. हथेली में सूर्य का निशान सूर्य के समान दिखाई देता है।
2. चंद्र का निशान चंद्र तारे की तरह नजर आता है।
3. शुभ मंगल का निशान चौकोर चतुर्भुज के समान होता है।
4. अशुभ मंगल का निशान त्रिकोण या त्रिभुज के रूप में होता है।
5. बुध का निशान गोलाकार समान होता है।
6. गुरु का निशान किसी ध्वज की, तरह होता है।
7. शुक्र का निशान समांतर में बनी 2 लहराती हुई रेखाओं सा होता है।
8. शनि का निशान धनु के आकार का होता है।
9. राहु का निशान आड़ी-तिरछी रेखाओं से बना जाल सा होता है।
10. केतु का निशान लंबी रेखा के नीचे एक अर्द्धवृत सा होता है।

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08 Jan, 06:36


क्या मोक्ष का हो सकता है पूर्वाभास

मोक्ष एक परम आकांक्षा है, परंतु उसके लिए पात्रता भी आवश्यक है। इस पात्रता की परिभाषा भी समझनी होगी। मोक्ष का वास्तविक अर्थ है जन्म और मृत्यु के आवागमन से मुक्ति और परमब्रह्म में विलीन होना। यह भी तथ्य है कि एक जैसे तत्व ही एक दूसरे में विलय हो सकते हैं। ईश्वर यानी ब्रह्म निर्गुण तथा सम स्थिति में है। इसका अर्थ है कि वह काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से मुक्त है। यदि प्राणी भी उसमें विलीन होना चाहता है तो उसे भी इसी स्थिति में आना पड़ेगा। तभी वह मोक्ष का पात्र बनने में सक्षम हो सकेगा। इसीलिए प्रत्येक धर्म में यही शिक्षा दी गई है कि यदि ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो पहले बुराइयों से मुक्ति पानी होगी।

सनातन धर्म में जीवन को व्यवस्थित करने के लिए उसे चार भागों में विभाजित किया गया है। ये हैं-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। वर्तमान में 60 वर्ष की आयु के बाद मनुष्य का एक प्रकार से वानप्रस्थ आरंभ हो जाता है। जीवन के इस पड़ाव पर उसे सांसारिक बुराइयों से दूर होने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उसे पतंजलि के अष्टांग योग का सहारा लेना चाहिए। यदि वह इसके पहले दो कदम यानी यम-सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, असते और अपरिग्रह तथा नियम-ईश्वर की उपासना, स्वाध्याय, शौच, तप, संतोष और स्वाध्याय को ही अपना ले तो बहुत हितकारी होगा।

इसमें अपरिग्रह से तात्पर्य है आवश्यकता से अधिक भंडारण न करना। असते अर्थात् किसी प्रकार की चोरी न करना। इन दोनों कदमों से ही मनुष्य की मानसिकता बदल जाएगी और परम शांति तथा सम स्थिति का अनुभव होगा। ऐसी अवस्था जिसमें कोई कामना या भय नहीं रहेगा। यदि यह अवस्था स्थायी रूप से प्राप्त हो जाती है तो मनुष्य को यह आभास हो जाना चाहिए कि वह मोक्ष का पात्र बन गया है और अब उसे सर्वशक्तिमान स्वयं अपने में विलीन करके परम शांति प्रदान करेंगे। इसी को मोक्ष का आभास भी कहा जाता है।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

07 Jan, 08:29


सामुद्रिकशास्त्र

कैसे पुरुष होते हैं भाग्यशाली?

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुषों के अंगों की कैसी बनावट उनके भाग्यशाली होने का संकेत देती है आइए इस बारे में जानें…

1. सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन पुरुषों के पैरों के तलवे में चक्र, कुंडल अथवा अंकुश के निशान मौजूद होते हैं, वे लोग अच्छे कारोबारी या कोई बड़ा अधिकारी बनते हैं।

2. अगर किसी आदमी की हथेली की बीचों-बीच तिल होता है तो ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि उन्हें वाहन सुख और समाज में खूब मांग मान-सम्मान प्राप्त होता है। साथ ही ऐसे लोगों के पास पैसों की भी कमी नहीं होती है।

3. अगर किसी पुरुष की छाती चौड़ी और नाक लंबी हो तो यह एक शुभ संकेत माना जाता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ऐसे लोग कम उम्र में ही काफी तरक्की पा लेते हैं। साथ ही इन्हें प्रॉपर्टी में निवेश करना अधिक पसंद होता है। वहीं ऐसे पुरुषों को धन लाभ भी अच्छा होता है।

4. सामुद्रिक शास्त्र कहता है कि जिन पुरुषों की छाती पर काफी बाल होते हैं उन्हें जीवन में खूब सुख और धन प्राप्त होता है। ऐसे लोग स्वभाव से काफी संतुष्ट होते हैं।

5. इसके अलावा पुरुषों के हाथ की 6 उंगलियां उनके भाग्यशाली और धनी होने का संकेत होती हैं। ये लोग स्वभाव से बहुत मेहनती होते हैं, जिसके कारण इनकी आर्थिक स्थिति भी काफी मजबूत रहती है।

6. जिन पुरुषों के पैर में कमल, रथ अथवा वाण जैसे चिन्ह मौजूद होते हैं, उन्हें जीवन में कभी भी सुख-सुविधाओं की कमी नहीं होती है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार माना जाता है कि ऐसे लोग शानो-शौकत से अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

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06 Jan, 03:31


सामुद्रिक शास्त्र क्या है?

प्राचीन सामुद्रिक शास्त्र, शरीर की विशेषताओं के ज्ञान से जुड़ा है. यह ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, मस्तिष्क विज्ञान, और चेहरा पढ़ने से जुड़ा है. सामुद्रिक शास्त्र के मुताबिक, शरीर के अंगों की संरचना और तिलों से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है.
सामुद्रिक शास्त्र से जुड़ी कुछ खास बातेंः
सामुद्रिक शास्त्र, प्राचीन हिंदू ग्रंथ गरुड़ पुराण में शामिल विषयों में से एक है.
सामुद्रिक शास्त्र में मानव तत्वों के पांच मुख्य प्रकार हैं: अग्नि, वायु, जल, आकाश, और पृथ्वी.
सामुद्रिक शास्त्र में मस्तक रेखा, हस्तरेखाओं, और रोमावली का अध्ययन किया जाता है.
सामुद्रिक शास्त्र को सीखने के लिए, गुरु से सिखना ज़रूरी है.
सामुद्रिक शास्त्र को सीखने के बाद, व्यक्ति भविष्यवाणी कर सकता है.
सामुद्रिक शास्त्र, हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्मों में साझा किया जाता है.
सामुद्रिक शास्त्र से जुड़े कुछ सिद्धांत, फ्रेनोलॉजी और फ़ेस रीडिंग में भी देखे जा सकते हैं.
दूसरे शब्दों में सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें मानव शरीर के चिन्हों के द्वारा स्त्री और पुरुष के लक्षणों के उपर प्रकाश डाला गया है . इस ग्रंथ को लक्षण शास्त्र भी कहा जाता है। कहते हैं इस ग्रंथ की रचना भगवान कार्तिकेय ने की थी . शिवजी के द्वारा इस ग्रन्थ को सामुद्रिक शास्त्र कहा गया।

कैसे पड़ा सामुद्रिक शास्त्र नाम

सामुद्रिक शास्त्र का नामकरण समुद्र ऋषि द्वारा इस ग्रन्थ को प्रचारित करने के कारण किया गया है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र ऋषि का भविष्य कथन इतना सटीक निकलता था कि उनके उपरान्त विद्वानों में समुद्र के वचन की साक्षी दी जाने लगी। अतः ज्योतिष आदि के ग्रंथों में श्लोकों के अंत में अपनी बात पर जोर देने हेतु ' समुद्रस्य वचनं यथा 'जैसे वाक्य प्राप्त होते हैं। दुर्भाग्यवश आज समुद्र ऋषि प्रणीत यह ग्रन्थ अपने अविकल रूप में प्राप्त नहीं है। वराह मिहिर आदि आचार्यों ने समुद्र के नाम का उल्लेख यत्र तत्र किया है।
वर्तमान समय में 'सामुद्रिक तिलक' , भविष्य पुराण का स्त्री पुरुष लक्षण वर्णन इत्यादि सामुद्रिक शास्त्र से सम्बंधित ग्रन्थ उपलब्ध हैं।
सामुद्रिक शास्त्र एक संस्कृत शब्द है जिसका अनुवाद मोटे तौर पर "शरीर की विशेषताओं का ज्ञान" के रूप में किया जाता है। सामुद्रिक शास्त्र कई बार वैदिक ज्योतिष में भी उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह ज्योतिष और हस्तरेखा से संबंधित है, साथ ही साथ फ्रेनोलॉजी (कपाल-समुद्री) और चेहरा पढ़ने [मुख-समुद्री] से भी संबंधित है। गरुड पुराण में भी सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन कई जगह किया गया है।

रहस्यमयी विद्या है सामुद्रिक शास्त्र

यह एक रहस्यमयी शास्त्र है जो व्यक्ति के संपूर्ण चरित्र और भविष्य को खोलकर रख देता है।
सामुद्रिक शास्त्र मुख, मुखमण्डल तथा सम्पूर्ण शरीर के अध्ययन की विद्या है। भारत में यह यह वैदिक काल से ही प्रचलित है। गरुड़ पुराण में सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन है। हस्तरेखा विज्ञान तो सामुद्रिक विद्या की वह शाखा मात्र है।
सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञान प्राचीनकाल से ही भारत में प्रचलित रहा है। मूलत: यह ज्ञान दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित रहा। इसके जानकार दक्षिण भारत में ज्यादा पाए जाते हैं। इस विज्ञान का उल्लेख प्राचीनकालीन ज्योतिष शास्त्र में भी मिलता है।

ज्योतिष शास्त्र की भांति सामुद्रिक शास्त्र का उद्भव भी 5000 वर्ष पूर्व भारत में ही हुआ था। पराशर, व्यास, सूर्य, भारद्वाज, भृगु, कश्यप, बृहस्पति, कात्यायन आदि महर्षियों ने इस विद्या की खोज की।

इस शास्त्र का उल्लेख वेदों और स्कंद पुराण, बाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों के साथ-साथ जैन तथा बौद्ध ग्रंथों में भी मिलता है। इसका प्रचार प्रसार सर्वप्रथम ऋषि समुद्र ने किया इसलिए उन्हीं के नाम पर सामुद्रिक शास्त्र हो गया। भारत से यह विद्या चीन, यूनान, रोम और इसराइल तक पहुंची और आगे चलकर यह संपूर्ण योरप में फैल गई।

कहते हैं कि ईसा पूर्व 423 में यूनानी विद्वान अनेक्सागोरस यह शास्त्र पढ़ाया करते थे। इतिहासकारों अनुसार हिपांजस को हर्गल की वेदी पर सुनहरे अक्षरों में लिखी सामुद्रिक ज्ञान की एक पुस्तक मिली जो सिकंदर महान को भेंट की गई थी। प्लेटो, अरिस्टॉटल, मेगनस, अगस्टस, पैराक्लीज तथा यूनान के अन्य दार्शनिक भारत के ज्योतिष और सामुद्रिक ज्ञान से परिचित थे।


'समुद्रिका-तिलक'

1700 ई. में लिखी गई यह पुस्तक समुद्रिका-तिलक के बहुत करीब है। समुद्रिका, जिसे सामान्य शीर्षक समुद्रिका-शास्त्र या समुद्रिका-लक्षण के नाम से भी जाना जाता है, एक अनाम रचना है जिसके दो संस्करण हैं । पहला संस्करण पूरे भारत में पाया जाता है, और एक पांडुलिपि में मूल-देव को इसका मुख्य लेखक बताया गया है, साथ ही वाम-देव को बीस श्लोकों का लेखक बताया गया है।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

06 Jan, 03:31


इस पुस्तक की उपयोगिता असंदिग्ध और निर्विवाद है । इसका अध्येता असाधारण क्षमता, अलौकिक दृष्टि, अद्भुत वाणी और अतर्क्य ज्ञान से संपन्न हो जाता है। इसका अध्येता किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसके गुण , स्वभाव , शिक्षा , आर्थिक स्तर , आयु , परिवार एवं जीवन की भावी घटनाओं के संबंध में भविष्यवाणी कर सकता है ।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

05 Jan, 03:15


कहानी का समय

_दो सगे भाई

" भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (रविवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।"  छोटे भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।
        
" क्या छोटे, किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो ?"
    
" नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं ।" अपना मकान", भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला।"छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।"" बस भैया ", कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया।"अपना मकान" ,  " बस भैया "  ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे।
          
भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब  पन्द्रह साल। लक्ष्मण जब करीब सात साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी भरत पर थी। इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।
               
प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा।
           
पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।
               
मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। वो बोली, "  देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं आये। दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से छिपा के रखी।"
         
रविवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो गयी। मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर। हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन कहा, " देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से (portion) तैयार कराये हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।"
          
मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें  उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका।
         
तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई, " हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।"
            
  लक्ष्मण के दोस्तों ने कहा, " पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।"
         
यह सुन लक्ष्मण बोले, " इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक मेरा।"
         
हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, " भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे ।"
इतना सुनते ही भरत आत्मग्लानि से भर गया
भरत ने नज़र उठाकर एक क्षण के लिए लक्ष्मण को देखा तुरन्त ही उसने आंखें झुका ली
उसका मन द्रवित हो गया उसे एक पल को लगा जैसे उसका शरीर उसका साथ नहीं दे रहा है वह गिरने को हुआ लेकिन उसके भाई ने उसे पकड़ लिया
छोटा भाई, क्या हुआ भईया,
भरत ने एक समय के लिये अपनी पत्नी को देखा शायद वह इसका जवाब अपनी पत्नी के
आंखों में देखना चाह रहा था।
भरत को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या बोले भरत ने किसी तरह खुद को संभाला और हवन पर बैठ गया
पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

01 Jan, 04:08


साधु-संतों की शब्दवाली

*साधु-संतों की शब्दावली आम लोगों को समझना थोड़ा कठिन होता है. साधु-संत अपने दैनिक उपयोग के चीजों का नाम भी अजीबोगरीब तरीके से रखते हैं. इनके खान-पान की बात की जाए तो सभी खाद्य सामाग्री का नाम राम से ही शुरू होता है. कुछ तो शब्द ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर आप हंस पड़ेंगे. ये शब्दावली काफी रोचक भी होती हैं.*

*साधु-संतों की शब्दावली आम लोगों की शब्दावली से काफी अलग होती है. हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली अधिकतर वस्तुओं के नाम यहां अलग- तरीके से रखे गए हैं. कुछ तो शब्द ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर आप हंस पड़ेंगे. ये शब्दावली काफी रोचक भी होती है. जब आप साधु-संतो के बीच होंगे, ऐसे शब्द या वाक्य सुनने को अक्सर मिल जाएंगे कि लंका की चटनी बनेगी, सब्जी में रामरस मिलाया जाएगा और दाल में रंग बदल डाला जाएगा या महाप्रसाद के साथ भंडारा जताया जाएगा.*

*इन बातों को समझने में दिक्कत हो, तो इस खबर के जरिए विस्तार से समझ सकते हैं. साधु-संतों की इस रोचक शब्दावली को जानने के लिए कुचायकोट प्रखंड के सेमरा बाजार में स्थित अतिप्राचीन राम जानकी मठ में साधु-संतों से शब्दावली की जानकारी ली गयी. इस दौरान काफी रोचक बातें सामने आई.*

*रसोईघर के सभी सामग्रियों के नाम अजीबोगरीब*

साधु-संत रसोई में प्रयोग होने वाले सभी चीजों को अलग नाम से पुकारते हैं. यहां मिर्चा को लंका कहा जाता है. हल्दी को रंग बदल के नाम से पुकारा जाता है.जबकि नमक को रामरस, भात को महाप्रसाद तथा रोटी को टिकर कहते हैं. यहां भोजन को भंडारा कहा जाता है और खाना बनाने को भंडारा चेतना कहा जाता है. इसके अलावा भोजन करने को प्रसाद पाना कहा जाता है.

*राम नाम से जुड़े होते हैं अधिकतर शब्द*

साधु-संतों की शब्दावली में अधिकतर शब्द राम नाम से जुड़े हुए होते हैं. राम जानकी मठ सेमरा के महंथ अवधबिहारी दास बताते हैं कि मिर्च कड़वा होता है, इसलिए इसे लंका कहा जाता है. कुछ साधु-संत राम झनाका भी कहते हैं. नमक को रामरस कहा जाता है. ऐसे ही कई शब्द हैं, जिनके नाम राम और अध्यात्म से जुड़े हुए रखे गए हैं.

*यहां संक्षेप में समझिये संत भाषा में कुछ वस्तुओं के नाम*

मिर्चा- लंका

नमक- रामरस

हल्दी- रंगबदल

भात- महाप्रसाद

दाल- दालप्रसाद

रोटी- टिकर

भोजन- भंडारा

भोजन बनाने वाला- भंडारी

खाना बनाना- भंडारा चेताना

भोजन करना- प्रसाद पाना

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

30 Dec, 01:47


*खेलो, परन्तु फँसो मत*

परंतु खेल तो यही है कि तुमने इस खेलघरको असली घर मान लिया है और इसमें इतने फँस गये हो कि असली घरको भूल ही गये! मान लेनेमात्रसे यह घर और इसके रहनेवाले तुम्हारे ही-जैसे खेलनेको आये हुए लोग, जिनसे तुमने नाना प्रकारके नाते जोड़ लिये हैं, तुम्हारे होते भी नहीं; इन्हें अपना समझकर इनसे चिपटे हो, परंतु बार-बार जबरदस्ती अलग किये जानेसे तुम्हें रोना-चिल्लाना पड़ता है। तुम्हारा स्वभाव ही हो गया है, हर एक खेलके संगी-साथियोंसे इसी प्रकार चिपटे रहना, दो घड़ीके लिये जहाँ भी जाते हो वहीं ममता फैलाकर बैठ जाते हो। इसीसे हर एक खेलमें तुम्हें रोना ही पड़ता है। न मालूम कितने लंबे समयसे तुम इसी प्रकार रो रहे हो और न समझोगे तो न जाने कबतक रोते रहोगे। अच्छा हो यदि समझ जाओ और इस रोने-चिल्लानेसे—इस सदाकी साँसतसे तुम्हारा पीछा छूट जाय।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

29 Dec, 10:55


कहानी का समय

सास-बहु

आज कांति जी बहुत खुश थीं, पूरे 6 महीने बाद बेटा बहू से मिलने जा रही थी।नई नवेली बहू निर्मला नौकरी के चक्कर में 4 दिन भी सास के साथ न रह सकी थी।शादी के तुरन्त बाद चली आई थी पति धीमेश के साथ उज्जैन।
कांति जी ने ट्रेन से उतरते ही टैक्सी ली और पँहुच गई बेटे के आशियाने।
किन्तु यह क्या??दरवाज़े पर बड़ा सा ताला लटक रहा था।कांति जी की खुशी पल भर में काफ़ूर हो गई।
पर्स में से फोन निकाला ही था कि पड़ौसन की आवाज़ सुनाई पड़ी...
आप आ गईं? आईए! आईये!!
निर्मला ऑफिस जाते समय चाबियाँ दे गई थी,सुबह ही बताया था उसने मम्मी जी आ रहीं हैं। आईये, हमारे साथ भी चाय पी लीजिए।
कांति जी का मन तो क्षुब्ध हो गया था,लेकिन अभी 4 ही बजे थे। बहू पता नही कब तक लौटे। बेटा धीमेश भी टूर पर गया हुआ था सो मन मार कर बैग उठाया और चल दी पड़ौसन के साथ।
कुछ इधर उधर की बाते की चाय पी और चाबी लेकर आ गईं वापस बेटे के घर में।शाम के सात बजे तक कांति का मन अत्यंत क्षुब्ध हो गया। बेटा तो टूर पर गया हुआ था लेकिन बहू को तो पता था कि वह आज आने वाली है। ऑफिस से छुट्टी तो ली नहीं उल्टे समय से घर पर भी नहीं आई। चाबी पड़ोस में रख गई और फोन भी नहीं किया।
वह तो भला हो पड़ोसियों का, चाबी का भी बताया और चाय नाश्ता भी करवा दिया, वरना चार बजे पहुंचते ही चाय भी खुद ही बनाकर पीनी पड़ती।
ऑफिस में उन्हें हाल ही में प्रमोशन मिला था तो ज्वाइन कर के उन्होंने आठ दिन की छुट्टी ले ली थी, सोचा चलकर कुछ दिन नई बहू के पास रहूंगी तो सास बहू जरा एक दूसरे को जान समझ लेंगी।लेकिन यहां तो आते ही बहू के निराले रंग दिखने लगे।
अपमान से वह एक दम क्षुब्ध सी हो गई। मन में पूर्वाग्रहों के कुछ नाग फन उठाने लगे। जरूर... जान बूझ कर ऐसा कर रही होगी ताकि मैं यहां से जल्दी चली जाऊं। पूर्णिमा की बहू ने भी ऐसा ही किया था, और करुणा की बहू तो ऑफिस का टूर है कह कर मायके ही जाकर बैठ गई थी।
मेरी बहू भी वैसी ही निकली, दुःख से उसकी आंखें भीग गईं । सोचने लगी यही सब होना था तो मैं आती ही नहीं।
बेटे के आते ही टिकट करा कर वापस चली जाऊंगी, लेकिन तब तक जाने और कैसी कैसी कड़वाहट, बेइज्जती सहनी पड़ेगी। इन्हीं विचारों में जाने कब उसकी हल्की आँख लग गई।
7:30 बजे आखिर बहू आ ही गई। दरवाजा खुलते ही...
सॉरी माँ!, बहुत शर्मिंदा हूँ, देर हो गई मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई तो ऑफिस से निकलने के बाद फोन भी नहीं कर पाई।
ये कहते हुए उसने एक बुके सास को बड़े प्यार से थमा दिया ।

ताजे फूलों की खुशबू बिखेरता खूबसूरत बुके कांति जी के हाथ में था और बहू उन्हें प्रणाम करने के लिए झुकी हुई थी।
कांति जी का हाथ अनायास बहू के सर पर पहुंच गया,जिसे उन्होने प्यार से सहला भी दिया। अप्रत्याश्चित सुख का एक झौंका सास बहु को प्रेम से भर गया।
और यह देखो मैं आपके लिए साड़ी लाई हूं, इसलिए देर हो गई। मुझे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आ रही थी, आखिर बड़ा ढूंढने के बाद जाकर यह साड़ी पसंद आई।
बताओ ना मां,आपको पसंद आई कि नहीं। बहू ने हाथ में पकड़े पैकेट से एक खूबसूरत सिल्क की साड़ी निकाल कर विमला के कंधे पर फैला दी।
भीगी आंखों और खुशी से रुंधें गले से उन्होंने कहा,बहुत सुंदर है,बेटा!
सच में माँजी? बहु का चेहरा खिल गया।
सारे काम आज पूरे कर के ऑफिस से आठ दिन की छुट्टी ले ली है मैंने।अब मैं पूरा समय आपके ही साथ रहूंगी,जाने कितनी बातें करनी है आपसे, जाने कितना कुछ सीखना है।चलिए! अब तो सबसे पहले मैं आपकी पसंद का खाना बनाने रसोईघर में जाती हूं। पहले चाय बनाके लाती हूँ, आप बैठो। बस पांच मिनट।
नन्ही बच्ची की तरह वह उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।
उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फेरकर कांति को लगा वो अपनी बेटी के यहां आई है।
वो भी साथ साथ रसोई घर की तरफ चल दी। मन के सारे पूर्वाग्रह खुशी के आसुओं के साथ धुलते जा रहे थे।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

29 Dec, 03:48


मुखिया बनने के अहंकार का परिणाम

एक दिन जंगल में सियारों की सभा एकत्रित हुई, उन्होंने विचार-विमर्श किया कि अपनी समाज का भी कोई एक मुखिया होना चाहिये, सभी ने इस विचार का समर्थन किया, और सोचा कि मुखिया किसे बनाया जाये, सभी के विचार-विमर्शों से एक बुद्धिमान सियार को मुखिया चुना गया, सभी सियार एक जैसे होने से उन्होंने सोचा कि मुखिया की पहचान के लिये मुखिया की पूछ में एक लाठी बांध दी जाये, जिससे कि मुखिया की पहचान हो सके।
यह सब सोच-विचार कर मुखिया की पूछ में लाठी बांध दी गयी, इतने में ही वहाँ दहाड़ता हुआ सिंह आ धमका, सिंह की दहाड़ से सभी भयभीत सियार एक छोटी सी गुफा के अन्दर प्रवेश कर गये, उनके पीछे-पीछे भागते हुए मुखिया ने भी उसी गुफा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन उस समय उस मुखिया की पूछ में बांधी गई वह लाठी तिरछी हो गई, सभी सियारों ने कहा कि मुखिया जी आप भी जल्दी से अन्दर आ जाओ, तब वह मुखिया बोला मैं कैसे अन्दर आ जाऊं यह मुखियाई तो मेरे पीछे पड़ी हुई है और अन्त में वह बना हुआ मुखिया सियार सिंह का शिकार बन गया।
ऐसे ही आज भी अपनी विद्वता के अहंकार से मिली प्रशंसा अथवा पदरूप लाठी उनकी पूछ में बंधी हुई होनेसे बने हुए मुखियाओं के पीछे बंधी हुई है जिसके कारण वे यथार्थ ज्ञान-रूप गुफा में सुरक्षित नहीं हो पा रहे हैं।।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

28 Dec, 06:42


गोस्वामी तुलसी दास जी का अंतिम सफर

पृथ्वी पर बहुत ही तीर्थ स्थान हैं किन्तु सब तीर्थों की यात्रा मनुष्य नहीं कर सकता। ऐसे ही संपूर्ण नदियों में जाकर मनुष्य स्नान नहीं कर सकता, मगर जहां हरि- कीर्तन होता है, हरि की कथा होती है, सत्संग होता है, वहां संपूर्ण तीर्थ विद्यमान होते हैं। इसीलिए आर्ष वाणी है-- अन्न का कण और सत्संग का क्षण, कभी नहीं गंवाना चाहिए। जहां से मिले, जब मिले, कभी छोड़ना नहीं चाहिए; क्योंकि यथा--

"गुरु पितु मातु बंधु पति देवा,
सब मोहि कहँ जानै दृढ़सेवा।
मम गुन गावत पुलक शरीरा,
गदगद गिरा नयन बह नीरा।
काम आदि मद दंभ न जाके,
तात निरंतर बस मैं ताके।
बचन कर्म मन मोरि गति,
भजनु करहिं निः काम।
तिन्ह के ह्रदय कमल महुँ,
कराऊँ सदा बिश्राम।।''
(रामचरित मानस/ अरण्य कांड : दोहा 15/ 10, 11, 12, 16)

भावार्थ है-- "जो मेरा (ईश्वर का) भक्त मुझे (ईश्वर को) ही अपना गुरु, पिता, माता, भाई, मित्र, स्वामी और ईश्वर-- सब कुछ मानकर अपने अंतःकरण में शुद्ध श्रद्धा और भक्ति भाव से मेरी सेवा में दृढ़ हो जाता है, प्रसन्न मन से गदगद वाणी से मेरा कीर्त्तन- भजन और नाम- गुण गाता हुआ, काम- क्रोध- मोह- लोभ- दम्भ- पाखण्ड आदि से विरत हो, मन- बचन और कर्म से निष्काम और निःस्वार्थ तथा समर्पण भाव से मेरा भजन करता है, मैं (ईश्वर) सदा ऐसे अपने भक्त के ह्रदय- कमल में विश्राम करता हूँ।।"

एकदा तुलसी दास जी से किसी ने पूछा-- "कभी- कभी भक्ति करने का मन नहीं करता, फिर भी 'नाम' जपने के लिये बैठ जाते है। तो क्या इसी से कोई फल मिलता है ?" -- तुलसी दास जी ने मुस्करा कर कहा था--

"तुलसी मेरे राम को
रीझ भजो या खीज।
भौम पड़ा जाने सभी
उल्टा सीधा बीज॥"

भावार्थ है-- "भूमि में जब बीज बोये जाते है, तो यह नही देखा जाता कि बीज उल्टे है या सीधे; पर फिर भी कालांतर में फसल बन जाती है। इसी प्रकार नाम सुमिरन कैसे भी किया जाये, फल अवश्य मिलता है।।"

"नाम की मौज़ रहे जीवन में
पलपल सिमरन करो ओंठो पर।
फल की चिंता कभी ना करो
नाम जपते रहो जीवन भर।।"

परन्तु बदलती हुई समय को दृष्टि में रखकर घोर अवसोस- जर्जरित एक भक्त के मुख से इस मार्मिक दोहा निकली थी; यथा--
"क्षत्रिय थे वे रामचंद्र जिन ने
फूंक दई क्षण में लंका।
डरे न दोनों भाई अकेले
बन में फिरे वह रणबंका।।
दिलीप रघु अजबेन आदि का
बजा सकल जग में डन्का।
द्वापर में था कृष्ण निराला
योगी भी अपने ढंग का।
जो धर्नूवेद के जानन
हारे थे सबके सिरताजा।।

हमारी गति उल्टी हे
कैसी भाई आज !
अब रहे नहीं गुण कर्म रामके
जग रावण भारत लंका।
इनमें ऐसा रिवाज रात दिन
बजे रंडियों का डंका।
शेरों से तो थरथर काम्पे
करते भेड़ों का पंखा।।

चोरी लूट के अभ्यासी पूरे
डूब गई सब लाज।
हमारी गति उल्टी है
कैसी भाई आज।।"

अंतिम यात्रा पर गोस्वामी जी :
-------------------------------------
ऐसे गोस्वामी जी की जीवनव्यापी उच्छर्गीकृत "राम- सेवा" ढलती उम्र में भी हार नहीं मानी थी। "रामकथा" प्रचार- प्रसार और इसकी लोकभाषा में कुल ग्यारह अध्यात्म ग्रन्थ (और एक 'तुलसी दोहा शतक' को जोड़ने से बारह संख्यक) भी लोकप्रिय होकर सैकड़ों प्रतिलिपि- पोथी लोगों के हाथ को आ गया था। बहुत पहले हनुमान चालिसा रचना के समय बादशाह अकबर भी उनको मान गए थे। चलती समय आगे बढ़ जाता है। आयुष भी समय के साथ ताल देकर, आगे बढ़ते हुए वार्धक्य को अपना लेता है। देहधारियों के लिए समय को टालना भी नामुमकिन है।।

एकदा रात को मूर्त रूप धारण कर गोस्वामी जी के पास कलि यम आ गया और उन्हे विविध त्रास देने लगा। तब तुलसी दास जी ने प्रभु राम जी, बजरंगबली जी, श्रीविश्वनाथ जी का ध्यान किया। नियति की विधान से देवदूत बनकर खोद संकट मोचक श्रीहनुमान जी प्रकट होकर उन्हें अंतिम दोहावली "विनय पत्रिका" रचना करने की आज्ञा देकर चले गए, तो आशुकवि गोस्वामी जी ने तुरन्त 'विनय पत्रिका' की रचना करके भगवान के श्रीचरणों पर समर्पित कर दिया। प्रभु श्रीराम ने उस अंतिम पोथी पर अपने आशीर्वाद रूपी हस्ताक्षर कर उनको निर्भय बना दिया। तब गोस्वामी जी निर्भय होकर कलि यम को स्वागत करने के लिए प्रस्तुत हो गए।।

गोस्वामी जी पर भक्तों के सामने ऐसे अनेक किवदंती लोकमुख से आए हैं। उस से यह स्पष्ट है की उच्च कोटि के अनन्य भक्त और विद्वान थे गोस्वामी जी। उनके बारे में जितना भी लिखा जाए, कम पड़ जायेगा। कारण, उन्होंने जीवन में कच्चे सुख 'कामभोग' को त्याग कर, सच्चे सुख 'रामसेवा' के प्रति अपने आप को समर्पित कर दिया था। अपनी कई महान कृतियों के कारण तुलसी दास जी को विद्वानों ने 'कवि शिरोमणि' और 'वाल्मीकि- अवतार'

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

28 Dec, 06:42


भी कहते है। ईसाई 1680 (सम्बत 1589) की श्रावण शुक्ल सप्तमी शनिवार को अस्सीघाट पर "श्री राम जय राम जय जय राम" जापते हुए सन्त गोस्वामी तुलसी दास जी ने अपनी देहलीला संग कर 'साकेत' धाम को लौट गए थे; यथा--

"इशाई सोलह सो असी,
अस्सी गंग के तिर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी
तुलसी तज्यो शरीर।।
"तुलसी या संसार में
भांति भांति के लोग।
सबसे हिलमिल चालियो
जैसे नदी नाव संयोग।।"

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

28 Dec, 03:46


साधु-समागम अर्थात् सत्संगकी महिमा निम्न श्लोक में कहते हैं -
गंगा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा।
पापं तापं दैन्यं च हरेत साधुसमागमः।।
अर्थात् - गंगा स्नान से गंगा पापों का हरण कर लेती है, चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों से वाह्य ताप को दूर कर देता है और इच्छित सुखोपभोग प्रदान करने वाला कल्पवृक्ष दैन्य को मिटा देता है। किन्तु साधु-समागम से पाप, ताप और दैन्य तीनों ही नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार गंगा, चन्द्रमा और कल्पवृक्ष से भी अधिक महिमा साधु-समागम की कही गई है। इसलिये मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह मरण पर्यन्त साधु-सत्संग करता रहे। क्योंकि -
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू।।
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा।।
बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी।।
हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी।।
बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा।।
सबहि सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा।।
अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देइ सद्य फल प्रगट प्रभाऊ।।
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।
मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला।।
सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई।।
बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी।।
जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।।
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई।।
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ।।
बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

27 Dec, 07:46


मानव जीवन के चार पुरुषार्थ <-
1 धर्म -
सात प्रकार की शुद्धि होने पर धर्म की सिद्धि होती है - देशशुद्धि , कालशुद्धि , मन्त्रशुद्धि . देहशुद्धि ,
विचार शुद्धि , इन्द्रियशुद्धि , द्रव्यशुद्धि।

2. अर्थ -
पाँच साधनो से अर्थ की प्राप्ति होती है - माता पिता के आशीर्वाद, गुरुकृपा, उद्यम, प्रारब्ध, प्रभुकृपा ।

3. काम -
काम इन्द्रियों में बसता है अर्थात् पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ , पाँच
कर्मेन्द्रियाँ एवं मन, इन ग्यारह ठिकानों में काम बसा हुआ है, काम जीव मात्र को रुलाता है, काम मन में से जाता नहीं है, यही विघ्नरुप है, काम मन में आँखों से प्रवेश
करता है इसलिए आँखों से भगवान की दिव्य झाँकी का दर्शन करना चाहिए--
"हमारे ध्यान में आओ, प्रभु आँखों में बस जाओ।
अँधेरे दिल में आकर के, प्रभु ज्योति जगा देना।।

4.मोक्ष --
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतियं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तथा मन, बुद्धि और व्यवहार - ये आठ प्रकार से विभक्त हुई मेरी प्रकृति है।
इन प्रकृतियों को जो बस में कर लेता है उसे मोक्ष मिलता है, जो अष्टधा प्रकृति के बंधन से मुक्त होता है वह कृतार्थ होता है ।
प्रकृति का अर्थ है -- "स्वभाव" अनेक जन्मों के संस्कार मन में संचित रहते हैं बडे़ बडे़ ऋषि भी प्रकृति (स्वभाव )
को बस मे नहीं रख सके, अतः बन्धन में पड़े हैं।
इन अष्टधा प्रकृतियों के बस में जो वह जीव , जो इन्हें
बस में कर ले वह ईश्वर, श्रवण, कीर्तन आदि भक्ति जिसकी सिद्ध हो गयी वह ईश्वर का हो जाता है।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

26 Dec, 02:44


अब आप अपना स्वयं का ‘अवलोकन’ करें और जानें की आपकी आध्यात्मिक स्थिति कैसी हैं ! आत्मा की पवित्रता का और चित्त हा बड़ा ही निकट का संबंध होता हैं ! अब तो यह समझ लो की ‘चित्तरूपी धन’ लेकर हम जन्मे हैं और जीवनभर हमारे आसपास सभी ‘चित्तचोर’ जो चित्त को दूषित करने वाले ही रहते हैं , उनके बीच रहकर भी हमें अपने चित्तरूपी धन को संभालना हैं ! अब कैसे , वह आप ही जाने !!!

इसी तरह अनेक श्रेष्ठजनों हमारे चित्त का अवकलन करके इसे अलग अलग अवस्थाओं में बाटा है जैसे कृष्ण ने भक्तो और योगिजनो की अलग अलग अवस्थाए बताई है उसी तरह महावीर ने श्रमणजनो के 14 गुणस्थान और अलग अलग चित्त के प्रकार भी बताए हैं और ऐसे ही बुद्ध ने भी ध्यानियों के चित्त के अवस्था के अनुसार उनके प्रकार को बताया है
इन सब के बारे में विस्तार से जानने के लिये आप अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करें और उसके अनुसार स्वयं का सही अवकलन करें.।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

26 Dec, 02:44


🕉️"चित्त का स्तर"
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प्रत्येक साधक की कुछ दिन ध्यान साधना करने के बाद यह जानने की इच्छा होती हैं की मेरी कुछ ‘आध्यात्मिक प्रगति’ हुई या नही क्या मैं साधना के नाम पर "भुस में लठ" तो नहीं मार रहा, इस बात से प्रेरित हो कर आप को इस पोस्ट के माध्यम से अवगत करने की कोशिश कर रहा हूँ! ‘आध्यात्मिक प्रगति’ को नापने का मापदंड है , आपका अपना चित्त ! आपका अपना चित्त कितना शुद्ध और पवित्र हुआ है , वही आपकी आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाता हैं ! अब आपको भी अपनी आध्यात्मिक प्रगति जानने की इच्छा हैं, तो आप भी इन निम्नलिखित चित्त के स्तर से अपनी स्वयं की आध्यात्मिक स्थिति को जान सकते हैं | बस अपने ‘चित्त का प्रामाणिकता’ के साथ ही ‘अवलोकन’ करें यह अत्यंत आवश्यक हैं !

(1) दूषित चित्त👉 चित्त का सबसे निचला स्तर हैं , दूषित चित्त ! इस स्तर पर साधक सभी के दोष ही खोजते रहता हैं ! दूसरा , सदैव सबका बुरा कैसे किया जाए सदैव इसी का विचार करते रहता है ! दूसरों की प्रगति से सदैव ‘ईर्ष्या’ करते रहता हैं ! नित्य नए-नए उपाय खोजते रहता हैं की किस उपाय से हम दुसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं ! सदैव नकारात्मक बातों से , नकारात्मक घटनाओं से , नकारात्मक व्यक्तिओं से यह ‘चित्त’ सदैव भरा ही रहता हैं !

(2) भूतकाल में खोया चित्त👉 एक चित्त एसा होता हैं , वः सदैव भूतकाल में ही खोया हुआ होता हैं ! वह सदैव भूतकाल के व्यक्ति और भूतकाल की घटनाओं में ही लिप्त रहता हैं ! जो भूतकाल की घटनाओं में रहने का इतना आधी हो जाता हैं की उसे भूतकाल में रहने में आनंद का अनुभव होता हैं !

(3) नकारात्मक चित्त👉 इस प्रकार का चित्त सदैव बुरी संभावनाओं से ही भरा रहता हैं ! सदैव कुछ-न-कुछ बुरा ही होगा यह वह चित्त चित्तवाला मनुष्य सोचते रहता हैं ! यह अति भूतकाल में रहने के कारण होता हैं क्योंकि अति भूतकाल में रहने से वर्त्तमान काल खराब हो जाता हैं !

(4) सामान्य चित्त👉 यह चित्त एक सामान्य प्रकृत्ति का होता हैं ! इस चित्त में अच्छे , बुरे , दोनों ही प्रकार के विचार आते हैं ! यह जब अच्छी संगत में होता हैं , तो इसे अच्छे विचार आते हैं और जब यह बुरी संगत में रहता हैं तब उसे बुरे विचार आते हैं ! यानी इस चित्त के अपने कोई विचार नहीं होते ! जैसी अन्य चित्त की संगत मिलती हैं , वैसे ही उसे विचार आते हैं ! वास्तव में वैचारिक प्रदुषण के कारण नकारात्मक विचारों के प्रभाव में ही यह ‘सामान्य चित्त’ आता हैं !

(5) निर्विचार चित्त👉 साधक जब कुछ ‘साल’ तक ध्यान साधना करता हैं , तब यह निर्विचार चित्त की स्थिति साधक को प्राप्त होती है ! यानी उसे अच्छे भी विचार नहीं आते और बुरे भी विचार नहीं आते ! उसे कोई भी विचार ही नहीं आते ! वर्त्तमान की किसी परिस्थितिवश अगर चित्त कहीं गया तो भी वह क्षणिकभर ही होता हैं ! जिस प्रकार से बरसात के दिनों में एक पानी का बबुला एक क्षण ही रहता हैं , बाद में फुट जाता हैं , वैसे ही इनका चित्त कहीं भी गया तो एक क्षण के लिए जाता हैं , बाद में फिर अपने स्थान पर आ जाता हैं ! यह आध्यात्मिक स्थिति की ‘प्रथम पादान’ हैं होती हैं क्योकि फिर कुछ साल तक अगर इसी स्थिति में रहता हैं तो चित्त का सशक्तिकरण होना प्रारंभ हो जाता हैं और साधक एक सशक्त चित्त का धनि हो जाता हैं !

(6) दुर्भावनारहित चित्त👉 चित्त के सशक्तिकरण के साथ-साथ चित्त में निर्मलता आ जाती हैं ! और बाद में चित्त इतना निर्मल और पवित्र हो जाता हैं कि चित्त में किसी के भी प्रति बुरा भाव ही नहीं आता हैं , चाहे सामनेवाला का व्यवहार उसके प्रति कैसा भी हो ! यह चित्त की एक अच्छी दशा होती हैं !

(7) सद्भावना भरा चित्त👉 ऐसा चित्त बहुत ही कम लोगों को प्राप्त होता हैं ! इनके चित्त में सदैव विश्व के सभी प्राणिमात्र के लिए सदैव सद्भावना ही भरी रहती हैं ! ऐसे चित्तवाले मनुष्य ‘संत प्रकृत्ति’ के होते हैं वे सदैव सभी के लिए अच्छा , भला ही सोचते हैं ! ये सदैव अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं ! इनका चित्त कहीं भी जाता ही नहीं हैं ! ये साधना में लीन रहते हैं !

(8) शून्य चित्त👉 यह चित्त की सर्वोत्तम दशा हैं ! इस स्थिति में चित्त को एक शून्यता प्राप्त हो जाती हैं ! यह चित्त एक पाइप जैसा होता हैं , जिसमें साक्षात परमात्मा का ‘चैतन्य’ सदैव बहते ही रहता हैं ! परमात्मा की ‘करूणा की शक्ति’ सदैव ऐसे शून्य चित्त से बहते ही रहती हैं ! यह चित्त कल्याणकारी होता हैं !यह चित्त किसी भी कारण से किसी के भी ऊपर आ जाए तो भी उसका कल्याण हो जाता हैं ! इसीलिए ऐसे चित्त को कल्याणकारी चित्त कहते हैं ! ऐसे चित्त से कल्याणकारी शक्तियाँ सदैव बहते ही रहती हैं | यह चित्त जो भी संकल्प करता हैं , वह पूर्ण हो जाता हैं ! यह सदैव सबके मंगल के ही कामनाएँ करता हैं ! मंगलमय प्रकाश ऐसे चित्त से सदैव निरंतर निकलते ही रहता हैं !

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

26 Dec, 00:50


*कुल करनी के कारनै, हंसा गया बिगोय।*
*तब कुल काको लाजि है, चारीपांव का होय।*

*अर्थ:* कुल की मर्यादा के मोह में पड़कर जीव पतित हो गया अन्यथा यह तो हंस स्वरूप था, किन्तु उसे भूलकर अधोगति में पड़ गया। उस समय का तनिक ध्यान करो जब चार पैरों वाला पशु बनकर आना होगा। तब कुल की मान मर्यादा क्या होगी?

*।। ॐ नमः शिवाय।।*

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25 Dec, 22:10


|| जगज्ज्येष्ठं श्रेष्ठं सुरपतिकनिष्ठं क्रतुपतिं
बलिष्ठं भूयिष्ठं त्रिभुवनवरिष्ठं वरवहम् |
स्वनिष्ठं धर्मिष्ठं गुरुगुणगरिष्ठं गुरुवरं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे ||

जो संसारमें सबसे बड़ा है, श्रेष्ठ है, सुरराज इन्द्रका अनुज {वामन} है, यज्ञपति है, बलिष्ठ है, भूयिष्ठ है, त्रिभुवनमें सर्वश्रेष्ठ है, वरदायक है, आत्मनिष्ठ है, धर्मिष्ठ है, महान् गुणोंसे गौरवयुक्त है, गुरुवर है, अरे! उस परमानन्दकन्द गोविन्दका सदैव भजन कर |

हरिःशरणम् ! हरिःशरणम् !

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25 Dec, 11:57


असली शराब

हम उस परमात्मा को नमस्कार करते हैं जो नितान्त शान्त है तथा कुछ भी प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता, जो पूर्णतया स्वतन्त्र है तथा अपने में सम्पूर्ण है, जो मायोत्पन्न गुणात्मक जगत के कार्यों में आसक्त नहीं होता। वे परमात्मा संसार में अपनी लीला करने में वायु की तरह गतिशील हैं।

संस्कृत शब्द है- शराब। शृ (हिंसार्थे) + अच्= शर, मारक वस्तु वा पदार्थ। अप् शब्द जल वाचक + जस्= अपः नीचे की ओर जाने वाला सबके भीतर प्रवेश करने वाला, रिक्त स्थान की पूर्ति करने वाला द्रव विशेष, पानी।
【शर+ अपः =शरापः= शराब (प्→ब्,
१→३ सूत्र से)】

शराब का अर्थ है, वह जल जो किसी को मारे, नष्ट करे, खण्ड-खण्ड करे, नष्ट करे। शराब के भीतर जो गुण वा वस्तु अन्तर्निहित है, उसका नाम है-नशा नश् (नश्यति / नाशयति क्विप् ,क + टाप् = नशा, जो नाश वा नष्ट करता है, अन्तर्धान वा लुप्त करता है तथा स्वयं उड़ जाता है अदृश्य रहता है, उसे नशा नाम दिया गया है। शराब में नशा होती है। जिसमें नशा हो, वह सब शराब है। हर वस्तु में नशा प्रच्छन्न रूप में रहती है। व्यापक होने से यह विष्णु है। अस्मै विष्णवे नमः ।

अन्न ब्रह्म है। अन्न में नशा है। अन्न को सड़ाकर शराब बनायी जाती है। अन्न के विकिण्वन से बनी हुई शराब मद उत्पन्न करने से मदिरा कही जाती है। जो खाया जाय वह अन्न है। फल भी अन्न है। अंगूर/ द्राक्षादि फलों से शराब बनती है। जातक भी शराब है। यौवन प्राप्त होने पर इसमें नशा का प्रादुर्भाव होता है। तरुण, तरुणी के देह की शराब पीता है तो युवती, युवक के शरीर की नशा में धुत्त रहती है। इस प्रकार सर्वत्र नशा का साम्राज्य है। शब्द की नशा कान से स्पर्श की नशा त्वचा से रूप की नशा आँख से, रस की नशा जिहा से, गन्ध की नशा नाक से ग्राह्य है। किन्तु इन पाँचों की नशा एक साथ मन से ग्राह्य है। मन तो कभी अशक्त होता ही नहीं, ज्ञानेन्द्रियाँ अशक्त होती हैं। अतएव यह मन सदैव नशा करता रहता है। मन से स्त्री और पुरुष एक दूसरे को पीते हैं, चाहते हैं। दोनों एक दूसरे के लिये शराब हैं। शराब ही शराबी को पीती है, शराबी तो शराब को पीता ही है।

शराब के शुभ और अशुभ दो प्रभाव हैं। जिस शराब के पीने से विवेक का नाश हो, वह त्याज्य है। जिसके पीने से कुविचारों का नाश हो, वह ग्राह्य है। पार्थिव शराब में ये दोनों गुण हैं। अल्पमात्रा में यह शुभ तथा अधिक मात्रा में पीने से अशुभ प्रभाववाली कही गई है। जो अपार्थिव शराब है, उसका प्रभाव शुभ ही शुभ है। जितना अधिक पिया जाय, उतना ही शुभ है। राम नाम ही यह दिव्य शराब है। प्रारंभ में इसे कान एवं जिहा से पिया जाता है। आगे चलकर इसे मन से पीते रहना चाहिये।

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23 Dec, 02:54


॥ शिव मृत्युञ्जय स्तोत्र ॥*

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं

शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवंदितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥1॥

पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥2॥

मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं

पंकजासनपद्मलोचनपूजितांगघ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणी करसिक्तशीतजटाधरं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥3॥

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अंधकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥4॥

यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजंगविभूषणं

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥5॥

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥6॥

भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥7॥

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमाव्रतं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥8॥

रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥9॥

कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥10॥

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥11॥

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥12॥

देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥13॥

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥14॥

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥15॥

स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥16॥

*॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्। ॥*

*शिव जी के मंत्र*

*शिव मूल मंत्र-* *ॐ नमः शिवाय॥*

*भगवान शिव का गायत्री मंत्र-* *ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥*

*महामृत्युंजय मंत्र-* *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||*

*शिव जी का ध्यान मंत्र-* *करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा। श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधं। विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व। जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥*

*रुद्र मंत्र-* *ॐ नमो भगवते रुद्राये।।*

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22 Dec, 10:54


कहानी का समय

*सम्मान की भूख*

कल रविवार का दिन था। घर के बाहर अखबार पढ़ने के बाद राजेश जी बरामदे में बैठे रेडियो पर गानें सुन रहे थे। एकाएक उनके कानों में इकतारे की धुन के साथ साथ लोक संगीत के बोल घुल गये।

आँखे खोलकर उन्होने आवाज की दिशा में देखा। दरवाजे पर खड़ा एक बूढ़ा याचक कुछ गाते हुए इकतारा बजा रहा था।

वह दरवाजे तक गये और उसे वहीं बाहर बने चबूतरे पर बैठने के लिए कहा
"बहुत अच्छा गाते हो आप कहाँ से हो?" उसके बैठते ही उन्होनें सवाल किया।
"बहुत दूर से हैं बाबूजी। हमारे पुरखे अपने जमाने के बहुत बड़े लोक कलाकार थे। बस उनसे ही थोड़ा बहुत सीख लिया।" बूढ़े ने इज्जत मिलते ही अपना परिचय दिया

"तो यहाँ शहर में कैसे..?" राजेश जी ने अगला प्रश्न किया

"अब इस कला की कहाँ कोई कद्र है बाबूजी ? गाँव में पेट भरना मुश्किल हो गया और कोई दूसरा काम हमें आता नही इसलिए यहाँ शहर में इसके सहारे माँगकर गुजारा कर लेते हैं।" बूढ़े ने माथे का पसीना पूछा

"तो सुना दो कुछ..." कहते हुए राजेश जी भी वहीं चबूतरे पर बैठ गये
बूढ़े ने पहले तो हैरानी से देखा फिर आश्वस्त होने पर संगीत शुरू किया। उसे गाते देख उसके आसपास और लोग भी जुड़ने लगे। अपनी आँखें मूंदकर वह लगभग आधे घंटे तक अपने इकतारे के साथ लोक धुनें बिखेरता रहा।

समाप्ति पर आँखे खोली तो आसपास तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। राजेश जी ने जेब से निकालकर उसे सौ का नोट देना चाहा।

बूढ़े ने हाथ जोड़कर मना करते हुए कहा 'बाबूजी, आया तो पैसों की आस में ही था मगर अब पैसे नही लूँगा।'

"अररे मगर...तुम पैसों के लिए ही तो यह बजाते हो"

बूढ़े की आखों में आँसू आ गये। इकतारे को माथे से लगाते हुए वह रूँधे गले से इतना ही कह पाया "ज्यादा नही तो कम..पैसे तो रोज मिल ही जाते हैं मगर आज एक कलाकार को उसका सम्मान मिला है बाबूजी.."

राजेश जी ने नोट उसके कुर्ते की जेब में रखते हुए कहा "रख लो काम आयेगें...और हाँ, अगले रविवार को भी जरूर आना.."

*बूढ़े की आँखे बता रही थी कि सम्मान का ऑक्सीजन मिलते ही उसकी मरती हुई कला उसमें दोबारा जीवित हो रही थी*

*जहाँ विदेशो में हमारी संस्कृति की नकल करते हुए ऐसी किसी कला को दिखाने पर चलते लोग रुककर इनाम स्वरूप धन तथा ताली बजाकर प्रोत्साहन देते है वहीं हम भारतीय अपने मूल संस्कारो में से कलाकार को समय,प्रोत्साहन तथा आदर देने में संकीर्णता अनुभव करने लगे है। ध्यान दीजियेगा सच्चा कलाकार सम्मान का भूखा है धन का नही

*जय श्री राम*

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22 Dec, 10:40


कहानी का समय

हमारी-तुम्हारी

एक धन सम्पन्न व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था।
पर कालचक्र के प्रभाव से धीरे धीरे वह कंगाल हो गया।
उस की पत्नी ने कहा कि सम्पन्नता के दिनों में तो राजा के यहाँ आपका अच्छा आना जाना था।
क्या विपन्नता में वे हमारी मदद नहीं करेंगे जैसे श्रीकृष्ण ने सुदामा की की थी?
पत्नी के कहने से वह भी सुदामा की तरह राजा के पास गया।

द्वारपाल ने राजा को संदेश दिया कि एक निर्धन व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है और स्वयं को
आपका मित्र बताता है।
राजा भी श्रीकृष्ण की तरह मित्र का नाम सुनते ही दौड़े चले आए और मित्र को इस हाल में
देखकर द्रवित होकर बोले कि मित्र बताओ, मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ?
मित्र ने सकुचाते हुए अपना हाल कह सुनाया।

चलो, मै तुम्हें अपने रत्नों के खजाने में ले चलता हूँ।
वहां से जी भरकर अपनी जेब में रत्न भर कर ले जाना।
पर तुम्हें केवल 3 घंटे का समय ही मिलेगा।
यदि उससे अधिक समय लोगे तो तुम्हें खाली हाथ बाहर आना पड़ेगा।
ठीक है, चलो।
वह व्यक्ति रत्नों का भंडार और उनसे निकलने वाले प्रकाश की चकाचौंध देखकर हैरान हो गया।
पर समय सीमा को देखते हुए उसने भरपूर रत्न अपनी जेब में भर लिए।
वह बाहर आने लगा तो उसने देखा कि दरवाजे के पास रत्नों से बने छोटे छोटे खिलौने रखे
थे जो बटन दबाने पर तरह तरह के खेल दिखाते थे।
उसने सोचा कि अभी तो समय बाकी है, क्यों न थोड़ी देर इनसे खेल लिया जाए?
पर यह क्या?
वह तो खिलौनों के साथ खेलने में इतना मग्न हो गया कि समय का भान ही नहीं रहा।
उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह निराश होकर *खाली
हाथ* ही बाहर आ गया।
राजा ने कहा- मित्र, निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
चलो, मैं तुम्हें अपने स्वर्ण के खजाने में ले चलता हूँ।
वहां से जी भरकर सोना अपने थैले में भर कर ले जाना।
पर समय सीमा का ध्यान रखना।
ठीक है।

उसने देखा कि वह कक्ष भी सुनहरे प्रकाश से जगमगा रहा था।
उसने शीघ्रता से अपने थैले में सोना भरना प्रारम्भ कर दिया।
तभी उसकी नजर एक घोड़े पर पड़ी जिसे सोने की काठी से सजाया गया था।
अरे! यह तो वही घोड़ा है जिस पर बैठ कर मैं राजा साहब के साथ घूमने जाया करता था।
वह उस घोड़े के निकट गया, उस पर हाथ फिराया और कुछ समय के लिए उस पर सवारी
करने की इच्छा से उस पर बैठ गया।
पर यह क्या?
समय सीमा समाप्त हो गई और वह अभी तक सवारी का आनन्द ही ले रहा था।
उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और वह घोर निराश होकर
खाली हाथ ही बाहर आ गया।

राजा ने कहा- मित्र, निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
चलो, मैं तुम्हें अपने रजत के खजाने में ले चलता हूँ।
वहां से जी भरकर चाँदी अपने ढोल में भर कर ले जाना।
पर समय सीमा का ध्यान अवश्य रखना।
ठीक है।
उसने देखा कि वह कक्ष भी चाँदी की धवल आभा से शोभायमान था।
उसने अपने ढोल में चाँदी भरनी आरम्भ कर दी।
इस बार उसने तय किया कि वह समय सीमा से पहले कक्ष से बाहर आ जाएगा।
पर समय तो अभी बहुत बाकी था।
दरवाजे के पास चाँदी से बना एक छल्ला टंगा हुआ था।
साथ ही एक नोटिस लिखा हुआ था कि इसे छूने पर उलझने का डर है।
यदि उलझ भी जाओ तो दोनों हाथों से सुलझाने की चेष्टा बिल्कुल न करना।
उसने सोचा कि ऐसी उलझने वाली बात तो कोई दिखाई नहीं देती।
बहुत कीमती होगा तभी बचाव के लिए लिख दिया होगा।
देखते हैं कि क्या माजरा है?
बस! फिर क्या था।
हाथ लगाते ही वह तो ऐसा उलझा कि पहले तो एक हाथ से सुलझाने की कोशिश करता
रहा।
जब सफलता न मिली तो दोनों हाथों से सुलझाने लगा।
पर सुलझा न सका और उसी समय घंटी बजी जो समय सीमा समाप्त होने का संकेत था और
वह निराश होकर खाली हाथ ही बाहर आ गया।

राजा ने कहा- मित्र, *कोई बात नहीं*।
निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
अभी तांबे का खजाना बाकी है।
चलो, मैं तुम्हें अपने तांबे के खजाने में ले चलता हूँ।
वहां से जी भरकर तांबा अपने बोरे में भर कर ले जाना।
पर समय सीमा का ध्यान रखना।
ठीक है।

मैं तो जेब में रत्न भरने आया था और बोरे में तांबा भरने की नौबत आ गई।
थोड़े तांबे से तो काम नहीं चलेगा।
उसने कई बोरे तांबे के भर लिए।
भरते भरते उसकी कमर दुखने लगी लेकिन फिर भी वह काम में लगा रहा।
विवश होकर उसने आसपास सहायता के लिए देखा।
एक पलंग बिछा हुआ दिखाई दिया।
उस पर सुस्ताने के लिए थोड़ी देर लेटा तो नींद आ गई और अंत में वहाँ से भी खाली हाथ
बाहर निकाल दिया गया।

क्या इसी प्रकार हम भी अपने जीवन में अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाएंगे?
बचपन खिलौनों के साथ खेलने में, जवानी विवाह के आकर्षण में और गृहस्थी की उलझन में
बिता दी।
बुढ़ापे में जब कमर दुखने लगी तो पलंग के सिवा कुछ दिखा नहीं।
समय सीमा समाप्त होने की घंटी बजने वाली है।

इसी लिए संत कहते हैं- सावधान! सावधान!

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

17 Dec, 00:37


यह संसार दीखता है, इसमें अलग-अलग शरीर हैं | स्थूल, सूक्ष्म और कारण---ये तीन शरीर हैं | कोई स्थिर रहनेवाला {स्थावर} शरीर है, कोई चलने-फिरनेवाला {जंगम} शरीर है |

स्थिर रहनेवालोंमें कोई पीपलका वृक्ष है, कोई नीमका वृक्ष है, कोई आमका वृक्ष है, कोई करीलका वृक्ष है | तरह-तरहके पौधे हैं, घास हैं | चलने-फिरनेवालोंमें कई तरहके पशु-पक्षी, मनुष्य आदि हैं | ये सभी पृथ्वीपर हैं |

पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश---ये पञ्चमहाभूत हैं | इनसे आगे समष्टि अहंकार है | फिर महत्तत्व {समष्टि बुद्धि} है | महत्तत्वके बाद फिर मूल प्रकृति है | ये सब मिलकर संसार है |

संसारके आदिमें भी परमात्मा है, अन्तमें भी परमात्मा हैं और बीचमें अनेक रूपसे दीखते हुए भी तत्त्वसे परमात्मा ही हैं |

मनसा वचसा दृष्ट्या गृह्यतेऽन्यैरपीन्द्रियैः|
अहमेव न मत्तोऽन्यदिति बुध्यध्वमञ्जसा ||
{श्रीमद्भा० ११|१३|२४|}

‘मनसे, वाणीसे, दृष्टिसे तथा अन्य इन्द्रियोंसे जो कुछ ग्रहण किया जाता है, वह सब मैं ही हूँ | अतः मेरे सिवाय दूसरा कुछ भी नहीं है---यह सिद्धान्त आप विचारपूर्वक शीघ्र समझ लें अर्थात् स्वीकार कर लें |’

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

16 Dec, 01:36


जैसे, समुद्रमें तरंगे उठती हैं, बुद्बुद पैदा होते हैं, ज्वार-भाटा आता है, पर यह सब-का-सब जल ही है | इस जलसे भाप निकलती है | भाप बादल बन जाती है | बादलोंसे फिर वर्षा होती है | कभी ओले बरसते हैं |

वर्षाका जल बह करके सरोवर,नदी-नालेमें चला जाता है | नदी समुद्र में मिल जाती है | इस प्रकार एक ही जल कभी समुद्ररूपसे, कभी भापरूपसे, कभी बादलरूपसे, कभी बूँदरूपसे, कभी ओलारूपसे, कभी नदी रूपसे और कभी आकाशमें परमाणुरूपसे हो जाता है |

समुद्र, भाप, बादल, वर्षा, बर्फ, नदी आदिमें तो फर्क दीखता है, पर जल-तत्त्वमें कोई फर्क नहीं है | केवल जल-तत्त्वको ही देखें तो उसमें न समुद्र है, न भाप है, न बूँदें हैं, न ओले हैं, न नदी है, न तलाब है | ये सब जलकी अलग-अलग उपाधियाँ हैं |

तत्त्वसे एक जलके सिवाय कुछ भी नहीं है | इसी तरह सोनेके अनेक गहने होते हैं | उनका अलग-अलग उपयोग, माप-तौल, मूल्य, आकार आदि होते हैं |

परन्तु तत्त्वसे देखें तो सब सोना-ही-सोना है | पहले भी सोना था, अन्तमें भी सोना रहेगा और बीचमें अनेक रूपसे दीखनेपर भी सोना ही है |

मिट्टीसे घड़ा, हाँडी, ढक्कन, सकोरा आदि कई चीजें बनती हैं | उन चीजोंका अलग-अलग नाम, रूप, उपयोग आदि होता है |

परन्तु तत्त्वसे देखें तो उनमें एक मिट्टीके सिवाय कुछ भी नहीं है | पहले भी मिट्टी थी, अन्तमें भी मिट्टी रहेगी और बीचमें अनेकरूपसे दीखनेपर भी मिट्टी ही है |

इसी प्रकार पहले भी परमात्मा थे, बादमें भी परमात्मा रहेंगे और बीचमें संसाररूपसे अनेक दीखनेपर भी तत्त्वसे परमात्मा ही हैं--- ‘वासुदेवः सर्वम् |’

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

15 Dec, 10:26


कहानी का समय

चार साधुओं की कथा

प्रिय बन्धुओं एक बार भगवान शंकर जी के पास से चार साधू गुजर रहे थे वे अपने धुन में मस्त थे जिससे उन्होंने भगवान शंकर जी को प्रणाम नहीं किया। जिससे माता पार्वती जी को बहुत गुस्सा आया तो उन्होंने ने उन साधुओं को श्राप दे दिया की जाओ कोचवान बन जाओ।

जिससे श्राप के कारण वे चारों हाथी को चलाने वाले कोचवान बन गए। एक दिन चारों हाथी पर बैठ के कहीं जा रहे थे तब माता पार्वती उनके सामने पहुँच कर पूछा अच्छा बताओ जी कोचवान बनकर कैसा लग रहा है ?

तब उन चारों ने कहा बहुत अच्छा लग रहा है। फिर माता पार्वती जी बोलीं पहले तुम साधू थे चारों तरफ तुम्हारी पूजा होती थी, अब हाथी हांक रहे हो और बोलते हो अच्छा लग रहा है। तब उन साधुओं ने कहा इससे क्या फर्क पड़ता है हमारा तो केवल बाहरी रूप ही बदला है, किसी नाटक में अगर कोई पहले चौकीदार और बाद में राजा बन कर आये तो उससे कोई अंतर तो नहीं पड़ता।

माता को उन पे और गुस्सा आया और श्राप दिया जाओ तुम ऊंट बन जाओ। फिर वे ऊंट बन गए एक दिन वे चारों कहीं जा रहे थे और अपने लम्बी गर्दन से पेड़ की पत्तियां तोड़ के खा रहे थे, तभी वहां माता पार्वती जी पहुंची पर बोलीं अब बताओ ऊंट बन कर कैसा लग रहा है तब वे बोले अब तो और अच्छा लग रहा है न नहाने की फिक्र न धोने की मस्त पत्ते खाते हैं और घूमते हैं।

माता पार्वती जी ने सोचा ये तो हद हो गयी इनका तो कुछ बिगड़ता ही नहीं।

तब वो भगवान शंकर जी के पास पहुंची और बोलीं प्रभु वे साधू किस मिट्टी के बने हैं उनको तो किसी बात की कोई तकलीफ ही नहीं होती,पहले कोचवान बनाया फिर ऊंट फिर भी वे कहते हैं कि वे सुखी हैं।

तब भगवान ने कहा,पार्वती वे साधू आत्मज्ञानी हैं वो खुद को आत्मा मानते हैं उन्हें ये फर्क नहीं पड़ता कि वे किस शरीर में है क्योंकि ये शरीर आज है तो कल नहीं लेकिन आत्मा अजर अमर है।इसी प्रकार चाहे तुम बिल्ली बनो,राजा बनो या कंगाल बनो,रोगी बन जाओ या पहलवान इससे किसी का कुछ नहीं बनता बिगड़ता है लेकिन व्यवहार के बदलने से सब कुछ बिगड़ जाता है..!!

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15 Dec, 08:35


*सबके साथ आत्मवत् व्यवहार करो*

याद रखो—बदला लेनेकी भावना परायेमें ही होती है; अपनेमें नहीं होती। जब तुम सारे विश्वमें आत्मभावना कर लोगे, तब तुम्हारे अंदर बदला लेनेकी भावना रहेगी ही नहीं। हाँ, जब किसी अंगमें कोई रोग होकर उसमें सड़न पैदा हो जाती है और जब उसके द्वारा सारे शरीरमें जहर फैलनेकी संभावना होती है तब जैसे उसके अंदरका दूषित मवाद निकालकर उसे शुद्ध निरोग और स्वस्थ बनानेके लिये ऑपरेशनकी जरूरत पड़ती है, वैसे ही कभी-कभी तुम्हें भी विश्वकी विशुद्ध हित-कामनासे उसके किसी अंगमें ऑपरेशन करनेकी जरूरत पड़ सकती है। परंतु इस ऑपरेशनमें तुम्हारा वही भाव हो जो अपने अंगको कटानेमें होता है।

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04 Dec, 14:00


समुद्रशास्त्र

शरीर के यह अंग बताते हैं कि आप धनवान और महान बनेंगे

समुद्रशास्त्र में बताया गया है कि शरीर के कुछ अंगों की बनावट को देखकर यह जाना जा सकता है कि व्यक्ति खूब धनवान और महान व्यक्ति होगा। शरीर के कुछ अंगों को देखकर यह भी जाना जा सकता है कि व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में बड़ा अधिकारी या प्रशासक हो सकता है।

हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिस व्यक्ति की तर्जनी उंगली यानी अंगूठे के बाद वाली उंगली बीच वाली उंगली से बड़ी हो तो व्यक्ति प्रशासक बनता है। ऎसा व्यक्ति सामान्य स्थिति में कभी नहीं रहता। सामान्य परिवार में जन्म लेने पर भी महान व्यक्ति बनता है। इसके उदाहरण हैं नेपोलियन और लिंकन।

हथेली की सबसे छोटी उंगली जिसे कनिष्ठा उंगली कहते हैं यह अगर लंबी हो और अनामिका उंगली के उपरी पोर तक पहुंच जाए तो बड़ा ही सौभाग्यशाली होता है। जिकी कनिष्ठा उंगली ऎसी होती है वह बहुत ही बुद्धिमान और कुशल प्रशासक होते हैं। ऎसे व्यक्ति जीवन में खूब धन और प्रशंसा प्राप्त करते हैं। जिनकी कनिष्ठा उंगली छोटी होती है वह जीवन में बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर पाते हैं।

जिस व्यक्ति के मस्तिष्क पर चन्द्रमा का चिन्ह बनता है वह बहुत ही भाग्यशाली होते हैं। ऎसे व्यक्ति बहुत ही बुद्धिमान होते हैं। पढ़ने लिखने में यह काफी होशियार होते हैं। यह अपने ज्ञान और विद्या से जीवन में सम्मान और धनवान बनते हैं।

समुद्रशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की भुजाएं लंबी होती हैं और हाथ घुटने तक पहुंच जाती है वह महान व्यक्ति होता है। ऎसा व्यक्ति जीवन में बड़ी उपलब्धियां हासिल करता है और समाज में पूजनीय होता है। इसका उदाहरण महात्मा गांधी हैं।

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04 Dec, 04:40


*स्वप्न शास्त्र: अच्छा समय आने से पहले सपने में दिखाई देती हैं ये पांच*

हिंदू धर्म में स्वप्न शास्त्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। यह एक ऐसी विद्या है, जिसके माध्यम से सभी सपनों के अर्थ का पता चलता है। स्वप्न शास्त्र के अनुसार हर व्यक्ति सोते समय किसी न किसी सपने को जरूर देखता है। आमतौर पर ये सपने रोजमर्रा की गतिविधियों से जुड़े होते है। लेकिन कई बार ये सपने भविष्य में मिलने वाले लाभ, बुरे समय का समापन या अन्य कई चीजों से जुड़े होते हैं। स्वप्न शास्त्र के मुताबिक अगर सपने में बारिश देखी जाए, तो यह बहुत शुभ होता है। इसका अर्थ है कि जल्द ही आपके जीवन में कुछ अच्छा होने वाला है। साथ ही शुभ समाचार की प्राप्ति भी होगी। ऐसे ही कई अन्य सपनों का उल्लेख स्वप्न शास्त्र में किया गया है, जिसका अर्थ भविष्य में मिलने वाले लाभ से जुड़ा होता है। आइए इसके बारे में जानते हैं।*

*१. चंद्रमा का दिखना*

स्वप्न शास्त्र के अनुसार यदि आप सपने में चंद्रमा देखते हैं, तो यह बहुत शुभ होता है। इसका अर्थ है कि आपके परिवार में सब कुछ ठीक होने वाला है। इतना ही नहीं जल्द ही घर में खुशहाली आने वाली है।

*२. नाखून काटना*

माना जाता है कि अगर सपने में स्वयं को नाखून काटते हुए देखा जाए, तो यह अच्छा संकेत होता है। इसका अर्थ है कि जल्द ही आपको कर्ज से छुटकारा मिलने वाला है और आपकी आर्थिक स्थित भी मजबूत होने वाली है।

*३. पक्षी की तरह उड़ना*

स्वप्न शास्त्र के मुताबिक अगर सपने में खुद को पक्षी की तरह उड़ता हुआ देखा जाए, तो यह बहुत लाभकारी होता है। इसे अच्छे समय आने का संकेत माना जाता है। इसका अर्थ है कि जल्द ही आपके जीवन की समस्याएं खत्म होने वाली है।

*४. नदी का दिखना*

आमतौर पर सपने में नदी को देखा जाता है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह खुशखबरी मिलने का संकेत होता है। इस सपने का अर्थ है कि जल्द ही आपको किसी शुभ समाचार की प्राप्ति होने वाली है।

*५. बगीचा देखना*

सपने में बगीचा देखना बेहद भी लाभकारी होता है। इसका अर्थ है कि जल्द ही आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने वाला है। इतना ही नहीं लाभ की प्राप्ति भी संभव है।

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03 Dec, 07:51


🕉️।।श्रीहरिः।।

*ज्ञान के दीप जले*

*जैसे बालक माँ की गोद में जाता है, ऐसे ही हमें भगवान् की शरण होना है | यह शरणागति अत्यन्त सुगम है | माँ की गोद में जाने में क्या कठिनता ? मुख्य बात है – मालिक का स्वीकार करना | भगवान् ने तो हमें अपने शरण में स्वीकार कर रखा है – ‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए’ (मानस, उतर. ८६/२) | केवल अपनी तरफ से हमें ‘हाँ’ कहनी है | कारण कि भगवान् से विमुख हम ही हुए हैं | ‘हे नाथ ! मैं आपके शरण हूँ’ – ऐसा कहकर शरण हो जायँ | शरण होने में जाति, वर्ण, आश्रम, गोत्र आदि नहीं देखा जाता | भक्त अच्युतगोत्र हो जाता है | भगवान् के साथ जीवमात्र का नित्य-सम्बन्ध है |*

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02 Dec, 01:37


प्रबुद्ध मानस

प्रवृत्त मन से ऊपर दूसरा मन है, जिसे 'प्रबुद्ध मानस' कहना चाहिए। इस पुस्तक को पढ़ते समय तुम उसी मन का उपयोग कर रहे हो। इसका काम सोचना, विचारना, विवेचना करना, तुलना करना, कल्पना, तर्क तथा निर्णय आदि करना है। हाजिर जबावी, बुद्घिमत्ता, चतुरता, अनुभव, स्थिति का परीक्षण यह सब प्रबुद्घ मन द्वारा होते हैं। याद रखो जैसे प्रवृत्त मानस 'अहम्' नहीं है उसी प्रकार प्रबुद्घ मानस भी वह नहीं है। कुछ देर विचार करके तुम इसे आसानी के साथ 'अहम्' से अलग कर सकते हो। इस छोटी-सी पुस्तक में बुद्घि के गुण धर्मों का विवेचन नहीं हो सकता, जिन्हें इस विषय का अधिक ज्ञान प्राप्त करना हो, वे मनोविज्ञान के उत्तमोत्तम ग्रन्थों का मनन करें। इस समय इतना काफी है कि तुम अनुभव कर लो कि प्रबुद्घ मन भी एक आच्छादन है न कि 'अहम्'।

तीसरे सर्वोच्च मन का नाम 'अध्यात्म मानस' है। इसका विकास अधिकांश लोगों में नहीं हुआ होता। मेरा विचार है कि तुम में यह कुछ-कुछ विकसने लगा है, क्योंकि इस पुस्तक को मन लगाकर पढ़ रहे हो और इसमें वर्णित विषय की ओर आकर्षित हो रहे हो। मन के इस विभाग को हम लोग उच्चतम विभाग मानते हैं और आध्यात्मिकता, आत्म-प्रेरणा, ईश्वरीय सन्देश, प्रतिभा आदि के रूप में जानते हैं। उच्च भावनाएँ मन के इसी भाग में उत्पन्न होकर चेतना में गति करती हैं। प्रेम, सहानुभूति, दया, करुणा, न्याय, निष्ठा, उदारता, धर्म प्रवृत्ति, सत्य, पवित्रता, आत्मीयता आदि सब भावनाएँ इसी मन से आती हैं। ईश्वरीय भक्ति इसी मन में उदय होती है। गूढ़ तत्त्वों का रहस्य इसी के द्वारा जाना जाता है। इस पाठ में जिस विशुद्घ 'अहम्' की अनुभूति के शिक्षण का हम प्रयत्न कर रहे हैं, वह इसी 'अध्यात्म मानस' के चेतना क्षेत्र से प्राप्त हो सकेगी। परन्तु भूलिए मत, मन का यह सर्वोच्च भाग भी केवल उपकरण ही है। 'अहम्' यह भी नहीं है।

तुम्हें यह भ्रम न करना चाहिए कि हम किसी मन की निन्दा और किसी की स्तुति करते हैं और भार या बाधक सिद्घ करते हैं। बात ऐसी नहीं है। हम सोचते तो यह हैं कि मन की सहायता से ही तुम अपनी वास्तविक सत्ता और आत्म-ज्ञान के निकट पहुँचे हो और आगे भी बहुत दूर तक उसकी सहायता से अपना मानसिक विकास कर सकोगे इसलिए मन का प्रत्येक विभाग अपने स्थान पर बहुत अच्छा है, बशर्ते कि उसका ठीक उपयोग किया जाय।

साधारण लोग अब तक मन के निम्न भागों को ही उपयोग में लाते हैं, उनके मानस-लोक में अभी ऐसे असंख्य गुप्त प्रकट स्थान हैं जिनकी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की जा सकी है अतएव मन को कोसने के स्थान पर आचार्य लोग दीक्षितों को सदैव यह उपदेश देते हैं कि उस गुप्त शक्ति को त्याज्य न ठहराकर ठीक प्रकार से क्रियाशील बनाओ।

यह शिक्षा जो तुम्हें दी जा रही है मन के द्वारा ही क्रिया रूप में आ सकती है और उसी के द्वारा समझने, धारण करने एवं सफल होने का कार्य हो सकता है इसलिए हम सीधे तुम्हारे मन से बात कर रहे हैं, उसी से निवेदन कर रहे हैं कि महोदय! अपनी उच्च कक्षा से आने वाले ज्ञान को ग्रहण कीजिए और उसके लिए अपना द्वार खोल दीजिए। हम आपकी बुद्घि से प्रार्थना करते हैं-भगवती! अपना ध्यान उस महातत्त्व की ओर लगाइए और सत्य के अनुभवी, अपने आध्यात्मिक मन द्वारा आने वाली दैवी चेतनाओं में कम बाधा दीजिए।

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01 Dec, 08:55


कहानी का समय

*आत्मसम्मान*

उस दिन ट्रेन लेट होकर रात्रि 12 बजे पहुँची।
बाहर एक
वृद्ध रिक्शावाला ही दिखा जिसे कई
यात्री जान बूझकर
छोड़ गए थे। एक बार मेरे मन में भी आया, इससे
चलना पाप
होगा,फिर मजबूरी में उसी को बुलाया, वह
भी बिना कुछ पूछे
चल दिया।
कुछ दूर चलने के बाद ओवरब्रिज की चढ़ाई थी, तब
जाकर पता चला, उसका एक ही हाथ था। मैंने
सहानुभूतिवश पूछा, ‘‘एक
हाथ से रिक्शा चलाने में बहुत
ही परेशानी होती होगी?’’
‘‘बिल्कुल नहीं बाबूजी, शुरू में कुछ दिन हुई थी।’’
रात के सन्नाटे में वह एक ही हाथ से
रिक्शा खींचते हुए पसीने–
पसीने हो रहा था । मैंने पूछा, ‘एक हाथ
की क्या कहानी है?’’
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद वह बोला, ‘‘गाँव में
खेत के बँटवारे में रंजिश हो गई, वे लोग दबंग और
अपराधी स्वभाव के थे,
मुकदमा उठाने के लिए दबाव डालने लगे।’’
वह कुछ गम्भीर हो गया और आगे की बात बताने से
कतराने
लगा, किन्तु मेरी उत्सुकता के आगे वह विवश
हो गया और
बताया, ‘‘एक रात जब मैं खलिहान में सो रहा था,
जान मारने
की नीयत से मुझ पर वार किया गया। संयोग से
वह गड़ासा गर्दन पर गिरने के बजाए हाथ पर
गिरा और वह कट
गया।’’
‘‘क्या दिन की मजदूरी से काम नहीं चलता जो इस
उम्र में रात
में रिक्शा चला रहे हो?’’ मुझे उस पर दया आई।

‘‘रात्रि में भीड़ कम होती है जिससे
रिक्शा चलाने में
आसानी होती है।’’ उसने धीरे से कहा।
उसकी विवशता समझकर घर पर मैंने पाँच रूपए के
बजाए दस रुपए
दिए। सीढि़याँ चढ़कर
दरवाजा खुलवा ही रहा था कि वह
भी हाँफते हुए पहुँचा और पाँच रुपए का नोट वापस
करते हुए
बोला, ‘‘आपने ज्यादा दे दिया था।’’
‘‘आपकी अवस्था देखकर और रात की मेहनत सोचकर
कोई
अधिक नहीं है, मैं खुशी से दे रहा हूँ।’’ उसने जवाब
दिया,
*‘‘मेरी प्रतिज्ञा है एक हाथ के रहते हुए भी दया की भीख नहीं लूँगा, तन ही बूढ़ा हुआ है मन नहीं।’’*
मुझे लगा पाँच रुपए अधिक देकर मैंने उसका अपमान
कर दिया है।



*आत्मसम्मान एक सफल सुखी जीवन का आधारभूत तत्व है। व्यक्ति आत्मसम्मान के अभाव में सफल तो हो सकता है, बाह्य उपलब्धियों भरा जीवन भी सकता है, किंतु वह अंदर से भी सुखी, संतुष्ट और संतृप्त होगा, यह संभव नहीं है।*

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18 Nov, 04:29


कहानी का समय

भाग्य में नहीं है

भाग्य से ऊंचा कर्म है इस कर्म से ही भाग्य बनता है,और जो भाग्य "(प्रारब्ध)" बनता है उसे उसका फल भोगना ही पड़ता है।

चंदन नगर का राजा चंदन सिंह बहुत ही पराक्रमी एवं शक्तिशाली था। उसका राज्य भी धन-धान्य से पूर्ण था।_
   राजा की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी।_
एक बार चंदन नगर में एक ज्योतिषी पधारे। उनका नाम था- "भद्रशील " उनके बारे में विख्यात था- कि वह बहुत ही पहुंचे हुए ज्यातिषी हैं- और किसी के भी भविष्य के बारे में सही-सही बता सकते हैं। वह नगर के बाहर एक छोटी कुटिया में ठहरे थे।_
              _उनकी इच्छा हुई कि वह भी राजा के दर्शन करें।_
             _उन्होंने राजा से मिलने की इच्छा व्यक्त की- तो राजा से मिलने की अनुमति- उन्हें सहर्ष ही मिल गई।_
     _राज दरबार में राजा ने उनका हार्दिक स्वागत किया।_
    _चलते समय राजा ने ज्योतिषी को कुछ हीरे- जवाहरात देकर विदा करना चाहा,परंतु ज्योतिषी ने यह कह कर मना कर दिया- कि वह सिर्फ अपने भाग्य का खाते हैं।_
          _राजा की दी हुई दौलत से वह अमीर नहीं बन सकते।_
    _राजा ने पूछा: "इससे क्या तात्पर्य है- आपका गुरुदेव.....?"_
            _"कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत और मेहनत से गरीब या अमीर होता है।_
             _यदि राजा भी किसी को अमीर बनाना चाहे- तो नहीं बना सकता।_
     _राजा की दौलत भी उसके हाथ से निकल जाएगी।"_
   _यह सुनकर राजा को क्रोध आ गया।_
_"गुरुदेव ! आप किसी का हाथ देखकर यह बताइए- कि उसकी किस्मत में अमीर बनना लिखा है या गरीब!_
        _मैं उसको उलटकर दिखा दूंगा-" राजा बोले।_
             _"ठीक है,आप ही किसी व्यक्ति को बुलाइए, मैं बताता हूं उसका भविष्य और भाग्य।"_
                _ज्योतिषी ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया।_
           _राजा ने अपने मंत्री को चुपचाप कुछ आदेश दिया- और कुछ ही क्षणों में एक सजा- धजा नौजवान ज्योतिषी के सामने हाजिर था।_
    _ज्योतिषी भद्रशील ने ध्यान से उस व्यक्ति का माथा देखा- फिर हाथ देखकर कहा - "यह व्यक्ति गरीबी में जन्मा है और जिन्दगी भर गरीब ही रहेगा।_
  _इसे खेतों और पेड़ों के बीच कुटिया में रहने की आदत है- और वहीं रहेगा ।"_
           _राजा चंदन सिंह सुनकर हैरत में पड़ गया, बोला - "आप ठीक कहते हैं,यह सजा-धजा नौजवान महल के राजसी वस्त्र पहनकर आया है!_
      _परंतु वास्तव में यह महल के बागों की देखभाल करने वाला गरीब माली है।_
   _परंतु गुरुदेव एक वर्ष के भीतर मैं इसे अमीर बना दूंगा।_
          _यह जिन्दगी भर गरीब नहीं रह सकता।"_
             _राजा का घमंड देखकर ज्योतिषी ने कहा: "ठीक है,आप स्वयं प्रयत्न कर लीजिए,अब मुझे आज्ञा दीजिए।"_
            _और ज्योतिषी "भद्रशील " चंदन नगर से चले गए।_

       _राजा ने अगले दिन माली दयाल को बुलाकर एक पत्र दिया -और साथ में यात्रा करने के लिए कुछ धन दिया।_
         _फिर उससे कहा: "यहां से सौ कोस दूर बालीपुर में मेरे परम मित्र भानुप्रताप रहते हैं, वहां जाओ- और यह पत्र उन्हें दे आओ।"_
       _सुनकर दयाल का चेहरा लटक गया। वह पत्र लेकर अपनी कुटिया में आ गया,और सोचने लगा - यहां तो पेड़ों की थोड़ी-बहुत देखभाल करके दिन भर आराम करता हूं। अब इतनी गर्मी में इतनी दूर जाना पड़ेगा।_
    _परंतु राजा की आज्ञा थी, इसलिए अगले दिन सुबह तड़के वह चंदन नगर से पत्र लेकर निकल गया।_
        _दो गांव पार करते- करते वह बहुत थक चुका था- और धूप चढ़ने लगी थी। इस कारण उसे भूख और प्यास भी जोर की लगी थी। वह उस गांव में बाजार से भोजन लेकर एक पेड़ के नीचे खाने बैठ गया। अभी आधा भोजन ही कर पाया था कि उसका एक अन्य मित्र,जो खेती ही करता था, मिल गया।_
         _दयाल ने अपनी परेशानी अपने मित्र टीकम को बताई।_
    _सुनकर टीकम हंसने लगा,और बोला:_
      _"इसमें परेशानी की क्या बात है.....? राजा के काम से जाओगे,खूब आवभगत होगी।_ 
           _तुम्हारी जगह मैं होता तो खुशी-खुशी जाता।"_
        _यह सुनकर दयाल का चेहरा खुशी से खिल उठा, "तो ठीक है भैया टीकम! तुम ही यह पत्र लेकर चले जाओ,मैं एक दिन यहीं आराम करके वापस चला जाऊंगा।"_

    _टीकम ने खुशी-खुशी वह पत्र ले लिया- और दो दिन में बाली नगर पहुंच गया।_             
               _वहां का राजा भानुप्रताप था। टीकम आसानी से भानुप्रताप के दरवाजे तक पहुंच गया- और सूचना भिजवाई कि चंदन नगर के राजा का दूत आया है।_
  _उसे तुरंत अंदर बुलाया गया ।_
             _टीकम की खूब आव भगत हुई। दरबार में मंत्रियों के साथ उसे बिठाया। गया जब उसने पत्र दिया- तो भानुप्रताप ने पत्र खोला। पत्र में लिखा था "प्रिय मित्र!, यह बहुत योग्य एवं मेहनती व्यक्ति है। इसे अपने राज्य में इसकी इच्छानुसार चार सौ एकड़ जमीन दे दो- और उसका मालिक बना दो- यह मेरे पुत्र समान है।

इसके आगे की कहानी पहले ही भेज दी गई है

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17 Nov, 09:00


_यदि तुम चाहो तो- इससे अपनी पुत्री का विवाह कर सकते हो। वापस आने पर मैं भी उसे अपने राज्य के पांच गांव इनाम में दे दूंगा।"_
_राजा भानुप्रताप को लगा कि यह सचमुच में योग्य व्यक्ति है, उसने अपनी पुत्री व पत्नी से सलाह करके- पुत्री का विवाह टीकम से कर दिया- और चलते समय ढेरों हीरे- जवाहारात देकर विदा किया।_
_उधर,आलसी दयाल थका-हारा अपनी कुटिया में पहुंचा- और जाकर सो गया।_
_दो दिन सोता रहा- फिर सुबह उठकर पेड़ों में पानी देने लगा।_
_सुबह जब राजा अपने बाग में घूमने निकले- तो दयाल से पत्र के बारे में पूछा।_
_दयाल ने डरते-डरते सारी राजा को बता दी।_
_राजा को बहुत क्रोध आया- और साथ ही ज्योतिषी की भविष्य- वाणी भी याद आई।_
_परंतु राजा ने सोचा कि कहीं भूल-चूक भी हो सकती है।_
_अत: वह एक बार फिर प्रयत्न करके देखेगा- कि दयाल को धनी किस प्रकार बनाया जाए....?_
_तीन-चार दिन पश्चात् दयाल राजा का गुस्सा कम करने की इच्छा से खेत से बड़े-बड़े तरबूज तोड़कर लाया।_
_और बोला: "सरकार, इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है। देखिए, खेत में कितने बड़े-बड़े तरबूज हुए हैं।_
_राजा खुश हो गया- उसने चुपचाप अपने मंत्री को इशारा कर दिया। मंत्री एक बड़ा तरबूज लेकर अंदर चला गया- और उसे अंदर से खोखला कर उसमें हीरे-जवाहारात भरवाकर ज्यों का त्यों चिपकाकर ले आया।_
_राजा ने दयाल से कहा: "हम आज तुमसे बहुत खुश हुए हैं। तुम्हें इनाम में यह तरबूज देते हैं ।"_
_सुनकर दयाल का चेहरा फिर लटक गया । वह सोचने लगा कि राजा ने इनाम दिया भी तो क्या ? वह बड़े उदास मन से तरबूज लेकर जा रहा था, तभी उसका परिचित लोटन मिल गया । वह बोला - "क्यों भाई, इतने उदास होकर तरबूज लिए कहां चले जा रहे हो ?"_

_दयाल बोला - "क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी है। आज राजा मुझसे खुश हो गए, पर इनाम में दिया यह तरबूज-भला तरबूज भी इनाम में देने की चीज है.... ?_
_मैं किसे खिलाऊंगा इतना बड़ा तरबूज ?"_
_लोटन बोला - "निराश क्यों होते हो भाई, इनाम तो इनाम ही है। मुझे ऐसा इनाम मिलता- तो मेरे बच्चे खुश हो जाते।"_
_"फिर ठीक है,तुम्हीं ले लो यह तरबूज।"_
_और दयाल तरबूज देकर कुटिया पर आ गया।_
_अगले दिन राजा ने दयाल का फिर वही फटा हाल देखा तो पूछा:_
_"क्यों,तरबूज खाया नहीं........?"_
_दयाल ने सारी बात चुपचाप बता दी। राजा को दयाल पर बड़ा क्रोध आया...? पर कर क्या सकता था।_

_अगले दिन- दयाल ने लोटन को बड़े अच्छे- अच्छे कपड़े पहने बग्घी में जाते देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।_
_दयाल ने अचानक धनी बनने का राज लोटन से पूछा- तो उसने तरबूज का किस्सा बता दिया।_
_सुनकर दयाल हाथ मलकर रह गया। तभी उसने देखा कि किसी राजा की बारात - सी आ रही है । उसने पास जाकर पता किया तो पता लगा कि कोई राजा अपनी दुल्हन को ब्याह कर ला रहा था। ज्यों ही उसने राजा का चेहरा देखा तो उसके हाथों के तोते उड़ गए।_
_उसने देखा,राजसवारी पर टीकम बैठा था।_
_अगले दिन टीकम से मिलने पर उसे पत्र की सच्चाई पता लगी,परंतु अब वह कर ही क्या सकता था....?_
_राजा ने भी किस्मत के आगे हार मान ली -और सोचने लगा -
_राजा भी गरीब को अमीर नहीं बना सकता, यदि उसकी भाग्य में गरीब रहना लिखा है।' अब राजा ने ज्योतिषी भद्रशील को बहुत ढ़ुंढ़वाया,पर उनका कहीं पता न लगा।_
*_
_*।।हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम रा

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16 Nov, 11:55


हनुमानजी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकता या रोक नहीं लगा सकता। इसे यूं समझें कि यदि घर का मुखिया पिताजी या माताजी आपसे नाराज हों, तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिए आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि वे 'बाहरी' होते हैं। गीता में इस संबंध में विस्तार से उल्लेख मिलता है कि कुल का नाश कैसा होता है?

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ऐसे अनेक परिवार हैं जिन्हें अपने कुलदेवी या देवता के बारे में कुछ भी नहीं मालूम है। ऐसा इसलिए कि उन्होंने कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाना ही नहीं छोड़ा बल्कि उनकी पूजा भी बंद कर दी है। लेकिन उनके पूर्वज और उनके देवता उन्हें बराबर देख रहे होते हैं। यदि किसी को अपने कुलदेवी और देवताओं के बारे में नहीं मालूम है, तो उन्हें अपने बड़े-बुजुर्गों, रिश्तेदारों या पंडितों से पूछकर इसकी जानकारी लेना चाहिए। यह जानने की कोशिश करना चाहिए कि झडूला, मुंडन संकार आपके गोत्र परंपरानुसार कहां होता है या 'जात' कहां दी जाती है। यह भी कि विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (5, 6, 7वां) कहां होता है?

कहते हैं कि कालांतर में परिवारों के एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रांताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों का क्षय होने, विजातीयता पनपने, पाश्चात्य मानसिकता के पनपने और नए विचारों के संतों की संगत के ज्ञानभ्रम में उलझकर लोग अपने कुल खानदान के कुलदेवी और देवताओं को भूलकर अपने वंश का इतिहास भी भूल गए हैं। खासकर यह प्रवृत्ति शहरों में देखने को ज्यादा मिलती है।

ऐसा भी देखने में आया है कि कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई खास परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, गृहकलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं। आगे वंश नहीं चल पाता है। पिताद्रोही होकर व्यक्ति अपने वंश को नष्ट कर लेता है!

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

16 Nov, 11:55


कुलदेवी और देवता एक गहन अध्ययन

भारत में कई समाज या जाति के कुलदेवी और देवता होते हैं। इसके अलावा पितृदेव भी होते हैं। भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुलदेवी और देवता की पूजा करते आ रहे हैं। कुलदेवी और देवता को पूजने के पीछे एक गहरा रहस्य है, जो बहुत कम लोग जानते होंगे। आओ जानते हैं कि सभी के कुलदेवी-देवता अलग क्यों होते हैं और उन्हें क्यों पूजना जरूरी होता है?*

*जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है। इसके अलावा एक ऐसा भी दिन होता है जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं। जिन लोगों को अपने कुलदेवी और देवता के बारे में नहीं मालूम है या जो भूल गए हैं, वे अपने कुल की शाखा और जड़ों से कट गए हैं।*

सवाल यह है कि कुल देवता और कुलदेवी सभी के अलग-अलग क्यों होते हैं? इसका उत्तर यह है कि कुल अलग है, तो स्वाभाविक है कि कुलदेवी-देवता भी-अलग अलग ही होंगे। दरअसल, हजारों वर्षों से अपने कुल को संगठित करने और उसके इतिहास को संरक्षित करने के लिए ही कुलदेवी और देवताओं को एक निश्‍चित स्थान पर नियुक्त किया जाता था। वह स्थान उस वंश या कुल के लोगों का मूल स्थान होता था।

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मान लो कोई व्यक्ति गुजरात में रहता है लेकिन उसके कुलदेवी और देवता राजस्थान के किसी स्थान पर हैं। यदि उस व्यक्ति को यह मालूम है कि मेरे कुलदेवी और देवता उक्त स्थान पर हैं, तो वह वहां जाकर अपने कुल के लोगों से मिल सकता है। वहां हजारों लोग किसी खास दिन इकट्ठा होते हैं। इसका मतलब है कि वे हजारों लोग आप ही के कुल के हैं। हालांकि कुछ स्‍थान इतने प्रसिद्ध हो गए हैं कि वहां दूसरे कुल के लोग भी दर्शन करने आते हैं।

उदाहरणार्थ आपके परदादा के परदादा ने किसी दौर में कहीं से किसी भी कारणवश पलायन करके जब किसी दूसरी जगह रैन-बसेरा बसाया होगा तो निश्चित ही उन्होंने वहां पर एक छोटा सा मंदिर बनाया होगा, जहां पर आपके कुलदेवी और देवता की मूर्तियां रखी होंगी। सभी उस मंदिर से जुड़े रहकर यह जानते थे कि हमारे कुल का मूल क्या है?

यह उस दौर की बात है, जब लोगों को आक्रांताओं से बचने के लिए एक शहर से दूसरे शहर या एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करना होता था। ऐसे में वे अपने साथ अपने कुल और जाति के लोगों को संगठित और बचाए रखने के लिए वे एक जगह ऐसा मंदिर बनाते थे, जहां पर कि उनके कुल के बिखरे हुए लोग इकट्टा हो सकें।

पहले यह होता था कि मंदिर से जुड़े व्यक्ति के पास एक बड़ी-सी पोथी होती थी जिसमें वह उन लोगों के नाम, पते और गोत्र दर्ज करता था, जो आकर दर्ज करवाते थे। इस तरह एक ही कुल के लोगों का एक डाटा तैयार हो जाता था। यह कार्य वैसा ही था, जैसा कि गंगा किनारे बैठा तीर्थ पुरोहित या पंडे आपके कुल और गोत्र का नाम दर्ज करते हैं। आपको अपने परदादा के परदादा का नाम नहीं मालूम होगा लेकिन उन तीर्थ पुरोहित के पास आपके पूर्वजों के नाम लिखे होते हैं।

इसी तरह कुलदेवी और देवता आपको आपके पूर्वजों से ही नहीं जोड़ते बल्कि वह वर्तमान में जिंदा आपके कुल खानदान के हजारों अनजान लोगों से भी मिलने का जरिया भी बनते हैं। इसीलिए कुलदेवी और कुल देवता को पूजने का महत्व है। इससे आप अपने वंशवृक्ष से जुड़े रहते हैं और यदि यह सत्य है कि आत्मा होती है और पूर्वज होते हैं, तो वे भी आपको कहीं से देख रहे होते हैं। उन्हें यह देखकर अच्‍छा लगता है और वे आपको ढेर सारे आशीर्वाद देते हैं।

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अब फिर से समझें कि प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी देवी, देवता या ऋषि के वंशज से संबंधित है। उसके गोत्र से यह पता चलता है कि वह किस वंश से संबधित है। मान लीजिए किसी व्यक्ति का गोत्र भारद्वाज है तो वह भारद्वाज ऋषि की संतान है। कालांतर में भारद्वाज के कुल में ही आगे चलकर कोई व्यक्ति हुआ और उसने अपने नाम से कुल चलाया, तो उस कुल को उस नाम से लोग जानने लगे। इस तरह हमें भारद्वाज गोत्र के लोग सभी जाति और समाज में मिल जाएंगे।

हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव व कुलदेवी के रूप में पूज्य हैं। इसके अलावा किसी कुल के पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया और उसके लिए एक निश्चित जगह एक मंदिर बनवाया ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से उनका कुल जुड़ा रहे और वहां से उसकी रक्षा होती रहे।

कुलदेवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं। ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं। इनकी गणना हमारे घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी होती है। अत: प्रत्येक कार्य में इन्हें याद करना जरूरी होता है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो

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16 Nov, 07:00


*कबीर ये जग आंधरा, जैसे अंधी गाय बछरा था सो मरि गया, वो भी चाम चटाय।*
*अर्थ- कबीर के मुताविक यह संसार अंधा-अविवेकी है जैसे कि एक अंधी गाय। उसका वछड़ा मर चुका है पर उसे हीं बार-बार चाट रहा है। आदमी भी नश्वर शरीर में मन लगाता है।*

*कबीर देखि परखि ले, परखि के मुख खोल साधु असाधु जानि ले, सुनि मुख का बोल।*
*अर्थ- कबीर कहते हैं कि देख-समझ कर हीं अपना मुँह खोलना चाहिये कुछ बोलना चाहिये। व्यक्ति के साधु या असाधु की जाँच उस के वचन सुन कर हीं की जा सकती है।*

*काया माहि कबीर है, ज्यों *पहुपम मे बास कई जाने कोई जौहरी, कई जाने कोई दास।*
*अर्थ- कबीर के अनुसार इसी शरीर में प्रभु का वास है जैसे फूल में सुगंध का बास है। इस तथ्य को कोई पारखी या जौहरी जानता है अथवा कोई प्रभु का भक्त या दास।*

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15 Nov, 06:10


सुंदरकांड में प्रभुश्रीराम एवं समुद्र का ज्ञानवर्धक संवाद

रामजी सुग्रीव और बिभीषणजी से पूछते हैं कि अब इस गहरे समुद्र को किस प्रकार पार किया जाय?

विभीषणजी कहते हैं- हे रघुनाथजी! सुनिए यद्यपि आप का एक बाण ही करोडों समुद्रों को सोख सकता है। तथापि नीति ऐसी कही गयी है कि पहले समुद्र से प्रार्थना की जाए।

समुद्र आपके कुल में बडे हैं, वे विचार कर उपाय बतला देंगे। इस प्रकार सेना बिना परिश्रम के समुद्र के पार उतर जाएगी। रामजी को यह बात अच्छी लगी और कहा यही ठीक है। परन्तु यह परामर्श लक्ष्मणजी को अच्छी नहीं लगी लक्ष्मणजी कहते हैं हे नाथ! दैव का क्या भरोसा! मन में क्रोध कीजिए और समुद्र को सुखा डालीए। यह दैव तो कायर के मन का एक आधार है। आलसी लोग ही दैव दैव पुकारा करते हैं।

भगवान राम हँस कर कहते हैं कि ऐसा ही करेंगे, मन में धीरज रखो। ऐसा समझाकर पहले समुद्र को प्रणाम करते हैं और समुंद्र से विनय करते हैं तीन दिन बीत जाते है।

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥

भावार्थ:-इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥

भावार्थ:-हे लक्ष्मण! धनुष-बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूँ। मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वाभाविक ही कंजूस से सुंदर नीति (उदारता का उपदेश),॥

* ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥

भावार्थ:-ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान्‌ की कथा, इनका वैसा ही फल होता है जैसा ऊसर में बीज बोने से होता है (अर्थात्‌ ऊसर में बीज बोने की भाँति यह सब व्यर्थ जाता है)॥

* अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥
संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥

भावार्थ:-ऐसा कहकर श्री रघुनाथजी ने धनुष चढ़ाया। यह मत लक्ष्मणजी के मन को बहुत अच्छा लगा। प्रभु ने भयानक (अग्नि) बाण संधान किया, जिससे समुद्र के हृदय के अंदर अग्नि की ज्वाला उठी॥

* मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥

भावार्थ:-मगर, साँप तथा मछलियों के समूह व्याकुल हो गए। जब समुद्र ने जीवों को जलते जाना, तब सोने के थाल में अनेक मणियों (रत्नों) को भरकर अभिमान छोड़कर वह ब्राह्मण के रूप में आया॥

* काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥

भावार्थ:-(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे गरुड़जी! सुनिए, चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता, वह डाँटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)॥

* सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥।
गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥

भावार्थ:-समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़कर कहा- हे नाथ! मेरे सब अवगुण (दोष) क्षमा कीजिए। हे नाथ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी- इन सबकी करनी स्वभाव से ही जड़ है॥

* तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥

भावार्थ:-आपकी प्रेरणा से माया ने इन्हें सृष्टि के लिए उत्पन्न किया है, सब ग्रंथों ने यही गाया है। जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा है, वह उसी प्रकार से रहने में सुख पाता है॥

* प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥

भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥

* प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥
प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥

भावार्थ:-प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊँगा और सेना पार उतर जाएगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है (मेरी मर्यादा नहीं रहेगी)। तथापि प्रभु की आज्ञा अपेल है (अर्थात्‌ आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता) ऐसा वेद गाते हैं। अब आपको जो अच्छा लगे, मैं तुरंत वही करूँ॥

सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ।
जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ॥

भावार्थ:-समुद्र के अत्यंत विनीत वचन सुनकर कृपालु श्री रामजी ने मुस्कुराकर कहा- हे तात! जिस प्रकार वानरों की सेना पार उतर जाए, वह उपाय बताओ॥

नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥
तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥

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15 Nov, 06:10


भावार्थ:-(समुद्र ने कहा)) हे नाथ! नील और नल दो वानर भाई हैं। उन्होंने लड़कपन में ऋषि से आशीर्वाद पाया था। उनके स्पर्श कर लेने से ही भारी-भारी पहाड़ भी आपके प्रताप से समुद्र पर तैर जाएँगे॥

* मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई। करिहउँ बल अनुमान सहाई॥
एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ। जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥

भावार्थ:-मैं भी प्रभु की प्रभुता को हृदय में धारण कर अपने बल के अनुसार (जहाँ तक मुझसे बन पड़ेगा) सहायता करूँगा। हे नाथ! इस प्रकार समुद्र को बँधाइए, जिससे तीनों लोकों में आपका सुंदर यश गाया जाए॥

* एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥
सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥

भावार्थ:-इस बाण से मेरे उत्तर तट पर रहने वाले पाप के राशि दुष्ट मनुष्यों का वध कीजिए। कृपालु और रणधीर श्री रामजी ने समुद्र के मन की पीड़ा सुनकर उसे तुरंत ही हर लिया (अर्थात्‌ बाण से उन दुष्टों का वध कर दिया)॥
* देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥
सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥
भावार्थ:-श्री रामजी का भारी बल और पौरुष देखकर समुद्र हर्षित होकर सुखी हो गया। उसने उन दुष्टों का सारा चरित्र प्रभु को कह सुनाया। फिर चरणों की वंदना करके समुद्र चला गया॥

* निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ।
यह चरित कलि मल हर जथामति दास तुलसी गायऊ॥
सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना।
तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥

भावार्थ:-समुद्र अपने घर चला गया, श्री रघुनाथजी को यह मत (उसका परामर्श ) अच्छा लगा। यह चरित्र कलियुग के पापों को हरने वाला है, इसे तुलसीदास ने अपनी बुद्धि के अनुसार गाया है। श्री रघुनाथजी के गुण समूह सुख के धाम, संदेह का नाश करने वाले और विषाद का दमन करने वाले हैं। अरे मूर्ख मन! तू संसार का सब आशा-भरोसा त्यागकर निरंतर इन्हें गा और सुन।

* सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥

भावार्थ:-श्री रघुनाथजी का गुणगान संपूर्ण सुंदर मंगलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेंगे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥

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15 Nov, 02:02


विज्ञान भैरव तंत्र से ली गई एक अद्भुत विधि

।।विज्ञान भैरव आग्रह और पूर्वाग्रह को जला देने को कहता है।।

तीसरी धारा से स्वयम् को अर्थात"गुप्त-सरस्वती" को संतृप्त कर देती हैं!!

क्रमद्वादशकं सम्यग् द्वादशाक्षरभेदितम् ।
स्थूलसूक्ष्मपरस्थित्या मुक्त्वा मुक्त्वान्तत: शिव: ।।30।।

शिवार्णवी कालिकान्तरी चूड़ामड़ी में एक अद्भुत सा श्लोक है--
"इडापिड़्गलयोर्मध्ये सुषुम्णा या भवेत्खलुः।
षट्स्थानेषु च षट्शक्तिं षट्पद्मं योगिनो विदुः।।"

दक्षिण नासिकास्थ इडा और वाम नासिकास्थ पिड़्गला इन्हीं दोनों के मध्य यदि प्रयत्न करने से कदाचित्"सुषुम्ना"नाडी स्थित हो जाये!!और जागृत होकर आप एक बार उसकी गतिविधियों को देख सकें!!

तो यहीं पर"पद्माकार"ऊपर के छहों चक्र एक दूसरे से संलग्न हैं!!तभी तो कहते हैं कि--
"न योगो नभसः पृष्ठे न भूमौ न रसाते।"
"भैरवी-सीद्धि"न योग से होती है न वह नभ,भूमि या फिर रसातल में ही स्थित है,वह तो सुषुम्ना में स्थित है!!अब आप ध्यान दें सखियों-साधनार्थ अनुलोम तथा विलोम के क्रम में--(रू.या.तं.32/6)-----
"चतुस्त्रीशत्संख्याघटितकवलं चासनमिह।
प्रबुद्धं देहस्य क्षयमरणशड़्काविरहितम्।।"

चौंसठ योगिनी,भैरव या भैरवी कही गयी हैं!!और योग तथा संयोग के भी चौंसठ ही आसन भी कहे गये हैं,और तो और चौंसठ ही मुद्रायें भी बतायी गयी हैं!! एक गुप्त रहस्यात्मक वैदिक संस्कारजन्य कथन भी है कि इसका षोडषांस--षोडसी कन्या या कुमार ही"नारीत्व या नरत्व"की सीमारेखा को प्राप्त भी होते हैं!! और इससे भी ज्यादा रहस्य की बात यह है कि"इडा,सूर्य-स्वर, गड़्गा,प्राण-वायु ही"पुरूष,शिव या फिर भैरव कहे गये हैं!!

पिंड़्ग्ला,यमुना,चन्द्र या फिर अपान-वायु ही"शिवा, सूरता अथवा भैरवी कही गयी हैं, और दूर्गम्य दूर्लभ ज्ञान तो यही है कि-"सुषुम्ना, समान-वायु,सरस्वती ही"अर्धनारिनाटकेश्वरी या लौकिक रूप से त्याज्या"पुँश्चली,निपूती,विधवा-पति-भक्षिका या फिर धूमावती कही गयी हैं!!

"कबिरा खड़ा बाजार में,लिये लुवाठी हांथ।
जो घर जारै आपना,सो हो ले मेरे साथ।।"

अब क्रिया
आपको करना यह है कि प्रथम तो आठ पलों तक दक्षिण नासिका से स्वास लेते हुवे आठ पलों तक कुम्भक करते हुवे और फिर आठ ही पलों तक वाम-नासिका से रेचन करना है!! और पुनश्च वाम नासिका से स्वास लेते हुवे आठ पलों तक कुम्भक करते हुवे और फिर आठ ही पलों तक दक्षिण-नासिका से रेचन करना है!! और इसी प्रक्रिया को चौंसठ बार करना है,ऐसा आठ बार करें और विशेष रूप से ध्यान रक्खें कि इस पूरी प्रक्रिया के अंतर्गत आपकी दृष्टि और ध्यान"नासिकाग्र"पर ही होना चाहिये!!

●तदोपरांत ऐसे ही सोलह-सोलह पलों तक बार-बार पूरक-कुम्भक और रेचक करें,और वह भी चौंसठ बार करें!!

●ऐसे ही बत्तीस पलों तक बार-बार पूरक-कुम्भक और रेचक करें,और वह भी चौंसठ बार करें!!

●ऐसे ही अणतालीस पलों तक बार-बार पूरक-कुम्भक और रेचक करें,और वह भी चौंसठ बार करें!!

●ऐसे ही चौंसठ पलों तक बार-बार पूरक-कुम्भक और रेचक करें,और वह भी चौंसठ बार करें!!

यह भी स्मरण रक्खें कि ढाई पल =एक मिनट होता है,अर्थात चौबिस मिनट=60 पल होते हैं!!और उपरोक्त दी हुयी इन संख्याओं का उतना ही गहन सम्बंध है जितना कि यह ध्यान रखने का प्रयास करना कि रक्तचाप-80/120 ही रहे अन्यथा खतरे की घंटी बज सकती है!!

इस प्रक्रिया में कई मास का समय लग सकता है, यहां धैर्य अनिवार्य है!!और अद्भुत तथा अलौकिक अनुभूतियाँ क्रमशः होती ही चली जायेंगी,इसी भ्रूमध्य चक्र में वृत्ताकार ज्योति आपको अवस्यमेव ही नासिकाग्र पर अंतः रूप से दृष्टिगोचर--"होगी ही"--और यही है भ्रूमध्य चक्र के जागृत हो जाने की सामान्य सी सरलतम् विधि!!

विज्ञान भैरव तंत्र हमारे आग्रह और पूर्वाग्रह को जलाने की बात करता है,ये अद्भुत ग्रंथ 112 ध्यान विधियां के द्वारा, आप जहां हैं, वहीं पर, जिस तल पर खड़े हैं, उसी तल पर चेतना की गहराई में उतरने का मार्ग हैं, ये विधियां स्पष्ट करती हैं कि देह का उपयोग करके देह के पार आप जा सकती हैं,कल्पना का उपयोग करके जो कल्पना से भी परे है, उसे जाना जा सकता हैं!!

विचारों का उपयोग कर के निर्विचार और मन को अपना मित्र बनाकर मन को भी विसर्जित करना कुछ विधियां श्वासों पर आधारित हैं, कुछ विधियां देह पर आधारित हैं| कुछ विधियां आपकी कल्पनाओं का उपयोग भी करना सिखाती हैं!!

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12 Nov, 07:15


*तुलसी विवाह के दिन है भद्रा और पंचक, जानें भगवान शालिग्राम से तुलसी विवाह कराने के नियम, विधि*

*इस साल तुलसी विवाह 12 नवंबर मंगलवार को है. तुलसी विवाह के दिन भद्रा है, जिसका वास स्थान पृथ्वी है. उस दिन भद्रा सुबह से शाम तक है, वहीं पंचक भी पूरे दिन रहेगा. इस बार तुलसी विवाह वाले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहे हैं. भगवान शालिग्रामा से माता तुलसी का विवाह सर्वार्थ सिद्धि योग में ही होगा. उस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:52 बजे से अगले दिन सुबह 05:40 बजे तक है. तुलसी विवाह कराने से परिवार में सुख, समृद्धि और शांति आती है, वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है. विवाह में होने वाली देरी या अड़चन दूर होती है और जल्द शादी के योग बनते हैं. यदि आप इस साल अपने घर पर तुलसी विवाह कराना चाहते हैं तो आपको शुभ मुहूर्त और नियम के बारे में जानना चाहिए. आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं।*

*तुलसी विवाह 2024 भद्रा काल*

इस साल तुलसी विवाह के दिन भद्रा का प्रारंभ सुबह 6 बजकर 42 मिनट से हो रहा है, जो शाम को 4 बजकर 4 मिनट तक है. उसके बाद भद्रा का समापन हो जाएगा. जो लोग तुलसी विवाह कराना चाहते हैं, उनको भद्रा से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुलसी विवाह के समय से पहले ही भद्रा का समापन हो जा रहा है. तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को होता है.

*तुलसी विवाह 2024 मुहूर्त*

*कार्तिक शुक्ल द्वादशी तिथि का प्रारंभ:-* 12 नवंबर, मंगलवार, शाम 4:04 बजे से

*कार्तिक शुक्ल द्वादशी तिथि का समापन:-* 13 नवंबर, बुधवार, दोपहर 1:01 बजे पर

*तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त:-* शाम 5:29 बजे से शाम 7:53 बजे तक

*तुलसी विवाह के नियम और विधि*

1. तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त से पूर्व परिवार के सभी सदस्य उस प्रकार से तैयार हों, जिस तरह से आप शादी समारोह में शामिल होने के लिए पारंपरिक कपड़े पहनते हैं.

2. उसके बाद पूजा स्थान, आंगन या छत पर तुलसी विवाह के लिए मंडप तैयार करें. तुलसी विवाह के लिए गन्ने का मंडप बनाएं और उसे फूलों से सजाएं.

3. उसके बाद आम की लकड़ी के बने पटरे या पटिया पर गमले में लगा तुलसी का पौधा रखें. अब आप तुलसी जी को अक्षत्, फूल, माला, हल्दी, सिंदूर, सोलह श्रृंगार की वस्तुएं, लाल साड़ी या चुनरी, नैवेद्य अर्पित करें.

4. फिर गमले में भगवान शालिग्राम को रखें. उनको तिल, हल्दी, पीले फूल, दूध, नैवेद्य आदि चढ़ाएं. दोनों को बेर, मूली, साग, आंवला आदि भी चढ़ाते हैं.

5. तुलसी विवाह के समय मंगलाष्टक का पाठ करें. माता तुलसी की आरती करें. उसके बाद 11 बार तुलसी परिक्रमा करें.

6. माता तुलसी और भगवान शालिग्राम से सुख, समृद्धि का आशीर्वाद लें. सबसे अंत में आप तुलसी विवाह का प्रसाद वितरण करें.

*#हरिऊँ*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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09 Nov, 06:30


* नवंबर महीने केशुभाशुभ मुहूर्त*

👇

*_विवाह मुहूर्त_*

विवाह मुहूर्त
17 जुलाई से 15 नवम्बर 2024 ई.सन् तक हरिशयन का दोष है इसलिए इन दिनों शुभ विवाह नहीं है। विवाह मुहूर्त
16, 17, 18, 22, 23, 25, 26, 28, 29

मुंडन मुहूर्त
कोई मुहूर्त नहीं है

गृह प्रवेश मुहूर्त
13, 16, 18, 25

नामकरण मुहूर्त
13, 17, 18, 20, 21, 25, 27, 28

अन्नप्राशन मुहूर्त
11, 13, 14, 20, 25, 28, 29

कर्णवेध मुहूर्त
09, 13, 14, 20, 21, 27

विद्यारम्भ मुहूर्त
17, 20, 21, 24, 27

उपनयन/जनेऊ मुहूर्त
11, 13, 17, 20

वाहन खरीद मुहूर्त
13, 18, 20, 21, 25, 28

प्रॉपर्टी खरीद मुहूर्त
11, 19, 20, 30

सर्वार्थ सिद्धि योग
09, 12, 14, 16, 18, 21, 24

अमृत सिद्धि योग
16, 18, 21

पंचक
समय शुरू - शनिवार, 9 नवंबर (11:28 PM) - गुरूवार, 14 नवंबर (03:11 AM) समाप्त समय
(09, 10, 11, 12, 13, 14)

भद्रा
भद्रा (विष्टि करण) - नवंबर

समय शुरू - समाप्त समय

शुक्रवार, 8 नवंबर (11:58 PM) - शनिवार, 9 नवंबर (11:27 AM)

मंगलवार, 12 नवंबर (05:30 AM) - मंगलवार, 12 नवंबर (04:06 PM)

शुक्रवार, 15 नवंबर (06:21 AM) - शुक्रवार, 15 नवंबर (04:39 PM)

सोमवार, 18 नवंबर (07:58 AM) - सोमवार, 18 नवंबर (06:57 PM)

गुरूवार, 21 नवंबर (05:05 PM) - शुक्रवार, 22 नवंबर (05:32 AM)

सोमवार, 25 नवंबर (11:41 AM) - मंगलवार, 26 नवंबर (01:04 AM)

शुक्रवार, 29 नवंबर (08:42 AM) - शुक्रवार, 29 नवंबर (09:40 PM)

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

06 Nov, 04:00


छठपर्व शंका समाधान
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लोकपर्व छठ या सूर्यषष्‍ठी पूजा का फैलाव देश-विदेश के उन भागों में भी हो गया है, जहां बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग जाकर बस गए हैं। इसके बावजूद, देश की बहुत बड़ी आबादी इस पूजा की मौलिक बातों से अनजान है। इतना ही नहीं, जिन लोगों के घर में यह व्रत होता है, उनके मन में भी इसे लेकर कई सवाल उठते हैं।

1. छठ या सूर्यषष्‍ठी व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?

इस व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है, जो प्रत्‍यक्ष दिखते हैं और सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं... सूर्य के साथ-साथ षष्‍ठी देवी या छठ मैया की भी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्‍यता के अनुसार, षष्‍ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्‍हें स्‍वस्‍थ और दीघार्यु बनाती हैं। इस अवसर पर सूर्यदेव की पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। छठ व्रत में सूर्यदेव और षष्ठी देवी दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है। इस तरह ये पूजा अपने-आप में बेहद खास है।

2. सूर्य से तो सभी परिचित हैं, लेकिन छठ मैया कौन-सी देवी हैं?

सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है।

षष्‍ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्‍यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्‍ठी तिथि को होती है। षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।

3. षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे हुई? पुराण की कथा क्‍या है?

प्रथम मनु स्‍वायम्‍भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी, इसके कारण वह दुखी रहते थे। महर्षि कश्‍यप ने राजा से पुत्रेष्‍ट‍ि यज्ञ कराने को कहा. राजा ने यज्ञ कराया, जिसके बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्‍म दिया। लेकिन दुर्योग से वह शिशु मरा पैदा हुआ था। राजा का दुख देखकर एक दिव्‍य देवी प्रकट हुईं। उन्‍होंने उस मृत बालक को जीवित कर दिया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत खुश हुए. उन्‍होंने षष्‍ठी देवी की स्‍तुति की। तभी से यह पूजा संपन्न की जा रही है।

4. आध्‍यात्‍म‍िक ग्रंथों में सूर्य की पूजा का प्रसंग कहां-कहां मिलता है?

शास्‍त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है। पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी। श्रीराम ने आदित्‍यहृदयस्‍तोत्र का पाठ कर सूर्य देवता को प्रसन्‍न करने के बाद ही रावण को अंतिम बाण मारा था और उस पर विजय पाई थी।

श्रीकृष्‍ण के पुत्र साम्‍ब को कुष्‍ठ रोग हो गया था, तब उन्‍होंने सूर्य की उपासना करके ही रोग से मुक्‍त‍ि पाई थी...सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से होती आई है।

5. सनातन धर्म के अनेक देवी-देवताओं के बीच सूर्य का क्‍या स्‍थान है?

सूर्य की गिनती उन 5 प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है। पंचदेव में सूर्य के अलाव अन्‍य 4 हैं: गणेश, दुर्गा, शिव, विष्‍णु. (मत्‍स्‍य पुराण)

6. सूर्य की पूजा से क्‍या-क्‍या फल मिलते हैं? पुराण का क्‍या मत है?

भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले, अत्‍यंत दयालु हैं। वे उपासक को आयु, आरोग्‍य, धन-धान्‍य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्‍य देते हैं। वे सभी को चेतना देते हैं।

सूर्य की उपासना करने से मनुष्‍य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्‍त और अंधे नहीं होते।

सूर्य को ब्रह्म का ही तेज बताया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को देने वाले हैं, साथ ही पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं।

7. इस पूजा में लोग पवित्र नदी और तालाबों आदि के किनारे क्‍यों जमा होते हैं?

सूर्य की पूजा में उन्‍हें जल से अर्घ्‍य देने का विधान है। पवित्र नदियों के जल से सूर्य को अर्घ्‍य देने और स्‍नान करने का विशेष महत्‍व बताया गया है। हालांकि यह पूजा किसी भी साफ-सुथरी जगह पर की जा सकती है।

8. छठ में नदी-तालाबों पर भीड़ बहुत बढ़ जाती है। भीड़ से बचते हुए व्रत करने का क्‍या तरीका हो सकता है?

इस भीड़ से बचने के लिए हाल के दशकों में घर में ही छठ करने का चलन तेजी से बढ़ा है। 'मन चंगा, तो कठौती में गंगा' की कहावत यहां भी गौर करने लायक है। कई लोग घर के आंगन या छतों पर भी छठ व्रत करते हैं। व्रत करने वालों की सुविधा को ध्‍यान में रखकर ऐसा किया जाता है।

9. ज्‍यादातर महिलाएं ही छठ पूजा क्‍यों करती हैं?

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06 Nov, 04:00


ऐसा देखा जाता है कि महिलाएं अनेक कष्‍ट सहकर पूरे परिवार के कल्‍याण की न केवल कामना करती हैं, बल्‍कि इसके लिए तरह-तरह के यत्‍न करने में पुरुषों से आगे रहती हैं। इसे महिलाओं के त्‍याग-तप की भावना से जोड़कर देखा जा सकता है।

छठ पूजा कोई भी कर सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। पर इतना जरूर है कि महिलाएं संतान की कामना से या संतान के स्‍वास्‍थ्‍य और उनके दीघार्यु होने के लिए यह पूजा अधिक बढ़-चढ़कर और पूरी श्रद्धा से करती हैं।

10. क्‍या यह पूजा किसी भी सामाजिक वर्ग या जाति के लोग कर सकते हैं?

सूर्य सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं। वे किसी तरह का भेदभाव नहीं करते। इस पूजा में वर्ण या जाति के आधार पर भेद नहीं है। इस पूजा के प्रति समाज के हर वर्ग-जाति में गहरी श्रद्धा देखी जाती है। हर कोई मिल-जुलकर, साथ-साथ इसमें शामिल होता है। हर जाति-धर्म के लोग इस पूजा को कर सकते हैं।

11. क्‍या इस पूजा में कोई सामाजिक संदेश भी छिपा हुआ है?

सूर्यषष्‍ठी व्रत में लोग उगते हुए सूर्य की भी पूजा करते हैं, डूबते हुए सूर्य की भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा करते हैं। इसमें कई तरह के संकेत छिपे हैं। ये पूरी दुनिया में भारत की आध्‍यात्‍म‍िक श्रेष्‍ठता को दिखाता है।

इस पूजा में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है, समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। सूर्य देवता को बांस के बने जिस सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं। इससे सामाजिक संदेश एकदम स्‍पष्‍ट है।

12. बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध क्‍यों है?

सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की पूजा की अनूठी परंपरा बिहार के इस सबसे बड़े लोकपर्व में देखी जाती है। यही बात इस पूजा के मामले में प्रदेश को खास बनाती है। बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है। सूर्य पुराण में यहां के देव मंदिरों की महिमा का वर्णन मिलता है। यहां सूर्यपुत्र कर्ण की जन्मस्थली भी है। अत: स्वाभाविक रूप से इस प्रदेश के लोगों की आस्‍था सूर्य देवता में ज्‍यादा है।

13. बिहार के देव सूर्य मंदिर की खासियत क्‍या है?

सबसे बड़ी खासियत यह है कि मंदिर का मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जबकि आम तौर पर सूर्य मंदिर का मुख्‍य द्वार पूर्व दिशा की ओर होता है। मान्‍यता है कि यहां के विशेष सूर्य मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्‍पी भगवान विश्‍वकर्मा ने किया था। स्‍थापत्‍य और वास्‍तुकला कला के दृष्‍ट‍िकोण से यहां के सूर्य मंदिर बेजोड़ हैं।

14. कार्तिक महीने के अलावा यह पूजा साल में कब की जाती है?

कार्तिक के अलावा छठ व्रत चैत्र शुक्‍ल पक्ष में चतुर्थी से लेकर सप्‍तमी तक किया जाता है। इसे आम बोलचाल में चैती छठ कहते हैं।

15. इस पूजा में कुछ लोग जमीन पर बार-बार लेटकर, कष्‍ट सहते हुए घाट की ओर क्‍यों जाते हैं?

आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘कष्‍टी देना’ कहते हैं। ज्‍यादातर मामलों में ऐसा तब होता है, जब किसी ने इस तरह की कोई मन्नत मानी हो।

16. 4 दिनों तक चलने वाली छठ पूजा में किस-किस दिन क्‍या-क्‍या होता है?
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को व्रत की शुरुआत 'नहाय-खाय' के साथ होती है। इस दिन व्रत करने वाले और घर के सारे लोग चावल-दाल और कद्दू से बने व्‍यंजन प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं। वास्‍तव में ये अगले 3 दिनों तक चलने वाली पूजा की शारीरिक और मानसिक तैयारी है।

दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल पंचमी को शाम में मुख्‍य पूजा होती है. इसे ‘खरना’ कहा जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस या गुड़ में बनी खीर चढ़ाई जाती है। कई घरों में चावल का पिट्ठा भी बनाया जाता है। लोग उन घरों में जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिन घरों में पूजा होती है।

तीसरे दिन, कार्तिक शुक्ल षष्‍ठी की शाम को अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है। व्रती के साथ-साथ सारे लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्‍य देते हैं।
चौथे दिन, कार्तिक शुक्ल सप्‍तमी को उगते सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद पारण के साथ व्रत की समाप्‍त‍ि होती है।

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05 Nov, 09:45


*_एक बार कबीर दास जी हरि भजन करते हुए एक गली से निकल रहे थे कि उनके आगे कुछ स्त्रियां जा रही थी उसी में से एक स्त्री की शादी तय हुई थी और अपने ससुरालवालों की तरफ से भेजा गया नथनी की तारीफ वह लडकी कर रही थी।नथनी ऐसी है नथनी वैसी है खास मेरे लिए उन्होंने भेजी है।बार बार नथनी की ही बात कर रही थी।_*

*_उसके पीछे चल रहे कबीरदासजी के कानों में सारी बात पड रही थी।तेजी से कदम बढाकर कबीरदासजी उस लडकी से आगे आकर कहा।_*

*_नथनी दीनी यार, वो चिंतन बारम्बार।_*
*_नाक दीनी करतार, उनको दिया बिसार।।_*

*_सोचो यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहां पहनती यही जीवन में हम भी करते हैं।भौतिक वस्तुओं का तो हमें ज्ञान रहता है परंतु जिस परमात्मा ने यह दुर्लभ मनुष्य देह दी और इस देह से सम्बंधित सारी वस्तुएं रिश्ते नाते दिये उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं होता।_*

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05 Nov, 08:50


करता

हूँ।”

इतना कह कर वह पक्षी जलती हुई आग में कूद पड़ा। यह देखकर उसकी स्त्री विचार करने लगी कि ‘इस छोटे से पक्षी को खाकर इन तीनों की तृप्ति कैसे होगी ? अपने पति का अनुकरण करके इनकी तृप्ति करना मेरा कर्तव्य है।’ यह सोच कर वह भी आग में कूद पड़ी।

यह सब कार्य उस पक्षी के तीनों बच्चे देख रहे थे, वे भी अपने मन में विचार करने लगे कि- "कदाचित अब भी हमारे इन अतिथियों की तृप्ति न हुई होगी, इसलिये अपने माँ बाप के पीछे इनका सत्कार हमको ही करना चाहिये।” यह कह कर वे तीनों भी आग में कूद पड़े।

यह सब हाल देख कर वे तीनों बड़े चकित हुए। सुबह होने पर वे सब जंगल से चल दिये। राजा और संन्यासी ने राजकन्या को उसके पिता के पास पहुँचाया।

इसके बाद संन्यासी राजा से बोला- "राजन् !! अपने कर्तव्य का पालन करने वाला चाहे जिस परिस्थिति में हो श्रेष्ठ ही समझना चाहिये। यदि गृहस्थाश्रम स्वीकार करने की तेरी इच्छा हो, तो उस पक्षी की तरह परोपकार के लिये तुझे तैयार रहना चाहिये और यदि संन्यासी होना चाहता हो, तो उस उस यति की तरह राज लक्ष्मी और रति को भी लज्जित करने वाली सुन्दरी तक की उपेक्षा करने के लिये तुझे तैयार होना चाहिये। कठोर कर्तव्य धर्म को पालन करते हुए दोनों ही बड़े हैं..!!

जय श्री राम 🙏

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05 Nov, 08:50


कहानी का समय

कर्त्तव्यपालन

किसी नगर में एक राजा रहता था, उस नगर में जब कोई संन्यासी आता तो राजा उसे बुलाकर पूछता कि- ”भगवान ! गृहस्थ बड़ा है या संन्यास ?” अनेक साधु अनेक प्रकार से इसका उत्तर देते थे। कई संन्यासी को बड़ा तो बताते पर यदि वे अपना कथन सिद्ध न कर पाते तो राजा उन्हें गृहस्थ बनने की आज्ञा देता। जो गृहस्थ को उत्तम बताते उन्हें भी यही आज्ञा मिलती।

इस प्रकार होते-होते एक दिन एक संन्यासी उस नगर में आ निकला और राजा ने बुलाकर वही अपना पुराना प्रश्न पूछा। संन्यासी ने उत्तर दिया- “राजन। सच पूछें तो कोई आश्रम बड़ा नहीं है, किन्तु जो अपने नियत आश्रम को कठोर कर्तव्य धर्म की तरह पालता है वही बड़ा है।”

राजा ने कहा- “तो आप अपने कथन की सत्यता प्रमाणित कीजिये।“

संन्यासी ने राजा की यह बात स्वीकार कर ली और उसे साथ लेकर दूर देश की यात्रा को चल दिया।

घूमते-घूमते वे दोनों एक दूसरे बड़े राजा के नगर में पहुँचे, उस दिन वहाँ की राज कन्या का स्वयंवर था, उत्सव की बड़ी भारी धूम थी। कौतुक देखने के लिये वेष बदले हुए राजा और संन्यासी भी वहीं खड़े हो गये। जिस राजकन्या का स्वयंवर था, वह अत्यन्त रूपवती थी और उसके पिता के कोई अन्य सन्तान न होने के कारण उस राजा के बाद सम्पूर्ण राज्य भी उसके दामाद को ही मिलने वाला था।

राजकन्या सौंदर्य को चाहने वाली थी, इसलिये उसकी इच्छा थी कि मेरा पति, अतुल सौंदर्यवान हो, हजारों प्रतिष्ठित व्यक्ति और देश-देश के राजकुमार इस स्वयंवर में जमा हुए थे। राज-कन्या उस सभा मण्डली में अपनी सखी के साथ घूमने लगी। अनेक राजा-पुत्रों तथा अन्य लोगों को उसने देखा पर उसे कोई पसन्द न आया। वे राजकुमार जो बड़ी आशा से एकत्रित हुए थे, बिल्कुल हताश हो गये। अन्त में ऐसा जान पड़ने लगा कि मानो अब यह स्वयंवर बिना किसी निर्णय के अधूरा ही समाप्त हो जायगा।

इसी समय एक संन्यासी वहाँ आया, सूर्य के समान उज्ज्वल काँति उसके मुख पर दमक रही थी। उसे देखते ही राजकन्या ने उसके गले में माला डाल दी। परन्तु संन्यासी ने तत्क्षण ही वह माला गले से निकाल कर फेंक दी और कहा- ”राजकन्ये। क्या तू नहीं देखती कि मैं संन्यासी हूँ? मुझे विवाह करके क्या करना है?”

यह सुन कर राजकन्या के पिता ने समझा कि यह संन्यासी कदाचित भिखारी होने के कारण, विवाह करने से डरता होगा, इसलिये उसने संन्यासी से कहा- "मेरी कन्या के साथ ही आधे राज्य के स्वामी तो आप अभी हो जायेंगे और पश्चात् सम्पूर्ण राज्य आपको ही मिलेगा।"

राजा के इस प्रकार कहते ही राजकन्या ने फिर वह माला उस साधु के गले में डाल दी, किन्तु संन्यासी ने फिर उसे निकाल पर फेंक दिया और बोला- "राजन् ! विवाह करना मेरा धर्म नहीं है।"

ऐसा कह कर वह तत्काल वहाँ से चला गया, परन्तु उसे देखकर राजकन्या अत्यन्त मोहित हो गई थी, अतएव वह बोली - "विवाह करूंगी तो उसी से करूंगी, नहीं तो मर जाऊँगी।” ऐसा कह कर वह उसके पीछे चलने लगी।

हमारे राजा साहब और संन्यासी यह सब हाल वहाँ खड़े हुए देख रहे थे। संन्यासी ने राजा से कहा- "राजन् ! आओ, हम दोनों भी इनके पीछे चल कर देखें कि क्या परिणाम होता है।”

राजा तैयार हो गया और वे उन दोनों के पीछे थोड़े अन्तर पर चलने लगे। चलते-चलते वह संन्यासी बहुत दूर एक घोर जंगल में पहुँचा, उसके पीछे राजकन्या भी उसी जंगल में पहुँची, आगे चलकर वह संन्यासी बिल्कुल अदृश्य हो गया। बेचारी राजकन्या बड़ी दुखी हुई और घोर अरण्य में भयभीत होकर रोने लगी।

इतने में राजा और संन्यासी दोनों उसके पास पहुँच गये और उससे बोले- ”राजकन्ये ! डरो मत, इस जंगल में तेरी रक्षा करके हम तेरे पिता के पास तुझे कुशल पूर्वक पहुँचा देंगे। परन्तु अब अँधेरा होने लगा है, इसलिये पीछे लौटना भी ठीक नहीं, यह पास ही एक बड़ा वृक्ष है, इसके नीचे रात काट कर प्रातःकाल ही हम लोग चलेंगे।”

राजकन्या को उनका कथन उचित जान पड़ा और तीनों वृक्ष के नीचे रात बिताने लगे। उस वृक्ष के कोटर में पक्षियों का एक छोटा सा घोंसला था, उसमें वह पक्षी, उसकी मादी और तीन बच्चे थे, एक छोटा सा कुटुम्ब था। नर ने स्वाभाविक ही घोंसले से जरा बाहर सिर निकाल कर देखा तो उसे यह तीन अतिथि दिखाई दिये।

इसलिये वह गृहस्थाश्रमी पक्षी अपनी पत्नी से बोला- “प्रिये ! देखो हमारे यहाँ तीन अतिथि आये हुए हैं, जाड़ा बहुत है और घर में आग भी नहीं है।” इतना कह कर वह पक्षी उड़ गया और एक जलती हुई लकड़ी का टुकड़ा कहीं से अपनी चोंच में उठा लाया और उन तीनों के आगे डाल दिया। उसे लेकर उन तीनों ने आग जलाई।

परन्तु उस पक्षी को इतने से ही सन्तोष न हुआ, वह फिर बोला-"ये तो बेचारे दिनभर के भूखे जान पड़ते हैं, इनको खाने के लिये देने को हमारे घर में कुछ भी नहीं है। प्रिय, हम गृहस्थाश्रमी हैं और भूखे अतिथि को विमुख करना हमारा धर्म नहीं है, हमारे पास जो कुछ भी हो इन्हें देना चाहिये, मेरे पास तो सिर्फ मेरा देह है, यही मैं इन्हें अर्पण

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05 Nov, 07:03


महापर्व छठ पूजा का प्रारंभ
चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का लोग बड़ी ही बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं। छठ पूजा का यह त्यौहार भगवान सूर्य देव और छठी मईया को समर्पित है। इस दिन महिलाएं जल में खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य देती हैं और अपनी संतान, परिवार की मंगल कामना के लिए प्रार्थना करती हैं। छठ पूजा के पावन अवसर पर भगवान सूर्य की आराधना करने से समृद्धि एवं प्रगति की प्राप्ति होती है और मनुष्य का कल्याण होता है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी, डाला छठ, छठ पर्व, डाला पूजा आदि नामों से जाना जाता है। तो आइए जानते हैं आचार्य श्री गोपी राम से कि इस साल छठ पूजा की शुरुआत कब से होने वाली है।_*

📆 *_छठ पूजा 2024 कैलेंडर_*

➡️ *_छठ पूजा पहला दिन- नहाय खाय- 5 नवंबर 2024_*
➡️ *_छठ पूजा दूसरा दिन- खरना- 6 नवंबर 2024_*
➡️ *_छठ पूजा तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य- 7 नवंबर 2024_*
➡️ *_छठ पूजा चौथा दिन- उषा अर्घ्य, पारण- 8 नवंबर 2024_*

*_छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय_*

*_महापर्व छठ पूजा का आरंभ नहाय खाय के साथ होता है। इस दिन व्रती महिलाएंभोर में उठकर स्नान आदि कर नए वस्त्र पहल सूर्य देव को जल अर्पित करती हैं। इसके बाद सात्विक आहार ग्रहण कर अपने व्रत को शुरू करती हैं। नहाय खाय के दिन कद्दू की सब्जी, लौकी चने की दाल और भात यानी चावल खाया जाता है। नहाया खाय का भोजन बिना लहसुन और प्याज के सात्विक तरीके से तैयार किया जाता है। व्रती के खाने के बाद ही परिवार के अन्य लोग नहाय खाय का खाना खा सकते हैं। नहाय खाय के दिन यानी 5 नवंबर को सूर्योदय सुबह 6 बजकर 36 मिनट पर होगा, जबकि सूर्यास्त शाम 5 बजकर 33 पर।_*

*_छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना_*

*_छठ पूजा के दूसरे दिन आता है खरना। इस दिन व्रती महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और फिर रात के समय खीर प्रसाद ग्रहण करती हैं। खरना के बाद से ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ हो जाता है। छठ व्रत का पारण उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही खोला जाता है। वहीं बता दें कि खरना के दिन गुड़, चावल और दूध की खीर बनाई जाती है। इस दिन व्रत रखने वाली महिला या पुरुष को नमक का सेवन नहीं करना होता है। खरना के दिन यानी 6 नवंबर को सूर्योदय सुबह 6 बजकर 37 मिनट पर होगा, जबकि सूर्यास्त शाम 5 बजकर 32 पर।_*

*_छठ पूजा का तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य_*

*_छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से भी जाना जाता है। संध्या अर्घ्य 7 नवंबर 2024 को दिया जाएगा। 7 नवंबर यानी छठ पूजा के दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर होगा, जबकि सूर्यास्त शाम 5 बजकर 32 मिनट पर होगा।_*

*_छठ पूजा का चौथा दिन- उषा अर्घ्य_*

*_छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जिसे उषा अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाओं भोर के समय जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के बाद इसी दिन व्रती महिलाएं छठ व्रत का पारण करती हैं। उषा अर्घ्य 8 नवंबर 2024 को दिया जाएगा। 8 नवंबर यानी छठ पूजा उषा अर्घ्य के दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर होगा, जबकि सूर्यास्त शाम 5 बजकर 31 मिनट पर होगा।_*

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31 Oct, 06:15


दीपावली

_दीपावली शब्द दीप एवं आवली की संधि से बना है । आवली अर्थात पंक्ति । इस प्रकार दीपावली का शाब्दिक अर्थ है, दीपों की पंक्ति। दीपावली के समय सर्वत्र दीप जलाए जाते हैं, इसलिए इस त्यौहार का नाम दीपावली है। भारतवर्ष में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक एवं धार्मिक इन दोनों दृष्टियों से अत्यधिक महत्त्व है इसे दीपोत्सव भी कहते है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय।’ अर्थात अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। अपने घर में सदैव लक्ष्मी का वास रहे, ज्ञान का प्रकाश रहे, इसलिए सभी अत्यंत हर्षोउल्लास से दीपावली मनाते हैं । प्रभु श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे,  उस समय प्रजा ने दीपोत्सव मनाया। तब से प्रारंभ हुई दीपावली_
दीपावली पर्व का मूल नाम शारदीय नवसस्येष्टि पर्व है शरद् ऋतु में उत्पन्न नयी फसल के अन्न द्वारा किया जाने वाला यज्ञ इस अवसर पर खरीफ की फसल का अन्न घर में आता है तथा रबी की फसल की बुवाई प्रारम्भ होती है। ये दोनों फसलें आर्यावर्त (भारत) की मुख्य फसलें हैं भारतीय वैदिक संस्कृति में भोजन ग्रहण करने से पहले उसे यज्ञ में आहुत करने की परम्परा रही है।

    इसी के साथ दीपक जलाकर, मिष्ठान्न आदि वितरण द्वारा प्रसन्नता प्रदर्शन करने की भी परम्परा रही है यह पर्व शरद् ऋतु के समापन एवं हेमन्त ऋतु के आगमन के संगम के काल में आता है इस समय अनेक रोगों का संक्रमण भी होने की पूरी आशंका रहती है। इस कारण भी इस पर्व पर बड़े-2 सामूहिक यज्ञ की भी परम्परा रही हैै।

_‘श्रीकृष्ण ने आसुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर जनता को भोगवृत्ति, लालसा, अनाचार एवं दुष्टप्रवृत्ति से मुक्त किया एवं प्रभुविचार (दैवी विचार) देकर सुखी किया, यह वही ‘दीपावली’ है हम अनेक वर्षों से एक रूढ़ि के रूप में ही दीपावली मना रहे हैं आज उसका गुह्यार्थ लुप्त हो गया है। इस गुह्यार्थ को ध्यान में रखते हुए, अस्मिता जागृत हो तो अज्ञानरूपी अंधकार के साथ ही साथ भोगवृत्ति, अनाचारी एवं आसुरी वृत्ति के लोगों की प्रबलता अल्प होगी एवं सज्जनों पर उनका वर्चस्व अल्प होगा।_

*1. दीपावली का इतिहास:-*

_बलिराजा अत्यंत दानवीर थे द्वारपर पधारे अतिथि को उनसे मुंहमांगा दान मिलता था। दान देना गुण है; परंतु गुणों का अतिरेक दोष ही सिद्ध होता है। किसे क्या, कब और कहां दें, इसका निश्चित विचार शास्त्रों में एवं गीता में बताया गया है ।  सत्पात्र को दान देना चाहिए, अपात्र को नहीं। अपात्र मानवों के हाथ संपत्ति लगने पर वे मदोन्मत्त होकर मनमानी करने लगते है। बलि राजा से कोई, कभी भी, कुछ भी मांगता, उसे वह देते थे। तब भगवान श्रीविष्णु ने ब्रह्मचारी बालक का (वामन) अवतार  लिया। ‘वामन’ अर्थात छोटा। ब्रह्मचारी बालक छोटा होता है और वह ‘ॐ भवति भिक्षां देही’ अर्थात ‘भिक्षा दो’ ऐसा कहता है। विष्णु ने वामन अवतार लिया एवं बलिराजा के पास जाकर भिक्षा मांगी। बलिराजा ने पूछा, ‘‘क्या चाहिए ?’’ तब वामन ने  त्रिपाद भूमिदान मांगा। ‘वामन कौन है एवं इस दान से क्या होगा’, इसका ज्ञान न होने के कारण बलिराजा ने इस वामन को त्रिपाद भूमि दान कर दी। इसके साथ ही वामन ने विराट रूप धारण कर एक पैर से समस्त पृथ्वी नाप ली, दूसरे पैरसे अंतरिक्ष एवं फिर  बलिराजा से पूछा ‘‘तीसरा पैर कहां रखूं ?’’ उसने उत्तर दिया ‘‘तीसरा पैर मेरे मस्तक पर रखें’’। तब तीसरा पैर उसके मस्तक पर रख, उसे पाताल में भेजने का निश्चय कर वामन ने बलिराजासे कहा, ‘‘तुम्हें कोई वर मांगना हो, तो मांगो (वरं ब्रूहि)।’’ बलिराजा ने वर मांगा कि ‘अब पृथ्वी पर मेरा समस्त राज्य समाप्त होनेको है एवं आप मुझे पाताल में भेजनेवाले हैं, ऐसे में तीन कदमों के इस प्रसंग के प्रतीकरूप पृथ्वी पर प्रतिवर्ष कम से कम तीन दिन मेरे राज्य के रूप में माने जाएं। प्रभु, यमप्रीत्यर्थ दीपदान करनेवालेको यमयातनाएं न हो। उसे अपमृत्यु न आए । उसके घर पर सदा लक्ष्मीका वास हो।’ ये तीन दिन अर्थात कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, अमावस्या एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा । इसे ‘बलिराज्य’ कहा जाता है।_

*2. दीपावली कब मनाई जाती है ?*

_दीपावली पर्व के अंतर्गत आनेवाले महत्त्वपूर्ण दिन हैं, कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी (धनत्रयोदशी / धनतेरस), कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (नरकचतुर्दशी), अमावस्या (लक्ष्मीपूजन) एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (बलिप्रतिपदा) ये तीन दिन दीपावली के विशेष उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं । कुछ लोग त्रयोदशी को दीपावली में सम्मिलित न कर, शेष तीन दिनों की ही दीवाली मनाते हैं । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी, धनत्रयोदशी अर्थात धनतेरस तथा भाईदूज अर्थात यमद्वितीया, ये दिन दीपावली के साथ ही आते है इसलिए, भले ही ये त्यौहार भिन्न हों,  फिर भी इनका समावेश दीपावली में ही किया जाता है । इन दिनों को दीपावली का एक अंग माना जाता है । कुछ प्रदेशों में वसुबारस अर्थात

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31 Oct, 06:15


गोवत्स द्वादशी को ही दीपावली का आरंभदिन मानते है।_

दीपावली निर्णय।
निर्णय सिंधु के द्वितीय परिच्छेद के पृष्ठ क्रमांक 341 (चौखंबा प्रकाशन) के अनुसार

*तुला के सूर्य में चतुर्दशी और अमावस्या का प्रमाण मिलता है।दोनों दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो अगले दिन का प्रमाण मिलता है।*

किन्तु व्यापिनी शब्द जिसका अर्थ है पूरे प्रदोष में अमावस्या का होना जो की 31 अक्टूबर को ही मिल रही है

*तिथि तत्व में ज्योतिष का वचन है कि यदि एक घड़ी रात्रि का योग हो और अमावस्या अगले दिन हो उस स्थिति में पहले दिन की छोड़कर अगले दिन करना चाहिए।*

*यहां 31अक्टूबर को पूर्ण प्रदोष के साथ पूर्ण रात्रि अमावस्या प्राप्त हो रही है।*

देवदास के ग्रंथ में प्रदोष को कर्मकाल माना गया  है ब्रह्म पुराण के अनुसार अर्धरात्रि के समय (अमावस्या) लक्ष्मी घर जाने के लिए भ्रमण करती है अतः एवं मनुष्यों को दीपकों को प्रज्वलित करके स्वयं को जागृत रह कर लक्ष्मी पूजन करना चाहिए।

*ब्रह्म पुराण की युक्ति के अनुसार प्रदोष और अर्धरात्रव्यापिनी तिथि मुख्य है।*

आगे निर्णय सिंधु यहां लिखते हैं कि यदि प्रदोष अथवा अर्धरात्रि में दोनों में से एक में ही व्याप्त होने पर अगले दिन लेनी चाहिए

*आगे निर्णय सिंधु में लिखा हैं कि प्रदोष मुख्य है  प्रदोष काल में पूर्ण रूप से 31 तारीख को अमावस्या मिल रही हैं ।*

एक अन्य प्रमाण के अनुसार मध्य रात्रि अमावस्या में लक्ष्मी पूजन उत्तम माना गया है।

*डामर तन्त्र के अनुसार अमावस्या प्रतिपदा युक्त लक्ष्मी पूजन के निषेध का प्रमाण मिलता है इन सभी प्रमाणो के अनुसार 31अक्टूबर की दीपावली को महालक्ष्मी पूजन श्रेष्ठ है।

लक्ष्मी पूजा 2024 शुभ मुहूर्त*

*पंचांग के मुताबिक, कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को 3 बजकर 52 मिनट से 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक रहेगी।*

*दीवाली पर लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल और स्थिर लग्न में है। ये सभी मुहूर्त 31 अक्टूबर को ही मिलेंगे।*

*दीपावली पूजन का पहला मुहूर्त प्रदोष काल- शाम 5:36 से 6:15 बजे तक*

*स्थिर लग्न में वृषभ लग्न का मुहूर्त- शाम 6:28 से 8:24 बजे तक*

*सिंह लग्न का मुहूर्त- दोपहर 12:56 से 3:10 बजे तक रहेगा।*

*काशी के अलावा मिथिला पंचांग में भी 31 अक्टूबर को दिवाली मनाने का उल्लेख है। जब दो तिथियों में प्रदोष काल उपलब्ध हो, तो त्यौहार पहले वाले प्रदोष काल की तिथि को मनाया जाता है।*

_दीपावली आने से पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वच्छता पर ध्यान देते हैं । घर का कूड़ा-करकट साफ करते हैं । घर में टूटी-फूटी वस्तुओं को ठीक करवाकर घर की रंगाई करवाते है  इससे उस स्थान की न केवल आयु  बढ़ती  है, वरन आकर्षण भी बढ़ जाता है । वर्षाऋतु में फैली अस्वच्छता का भी परिमार्जन हो जाता है । स्वच्छता के साथ ही घर के सभी सदस्य नए कपड़े सिलवाते हैं । विविध मिठाइयां भी बनायी जाती है । ब्रह्मपुराण में लिखा है कि दीपावली को श्री लक्ष्मी सदगृहस्थों के घर में विचरण करती हैं। घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध एवं सुशोभित कर दीपावली मनानेसे श्री लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा वहां स्थायीरूप से निवास करती हैं।_

*4. दीपावली में बनाई जानेवाली विशेष रंगोलियां:-*

_दीपावली के पूर्वायोजन का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है, रंगोली । दीपावली के शुभ पर्व पर विशेष रूप से रंगोली बनाने की प्रथा है । रंगोली के दो उद्देश्य हैं – सौंदर्य का साक्षात्कार एवं मंगल की सिद्धि । रंगोली देवताओं के स्वागतका प्रतीक है । रंगोली से सजाए आंगन को देखकर देवता प्रसन्न होते हैं । इसी कारण दिवाली में प्रतिदिन देवताओं के तत्त्व आकर्षित करने वाली रंगोलियां बनानी चाहिए तथा उस माध्यम से देवतातत्त्व का  लाभ प्राप्त करना चाहिए।_

*5. तेल के दीप जलाना:-*

_रंगोली बनाने के साथ ही दीपावली में प्रतिदिन किए जानेवाला यह एक महत्त्वपूर्ण कृत्य है । दीपावली में प्रतिदिन सायंकाल में देवता एवं तुलसी के समक्ष, साथ ही द्वार पर एवं आंगन में विविध स्थानों पर तेल के दीप लगाए जाते हैं । यह भी देवता तथा अतिथियों का स्वागत करने का प्रतीक है । आजकल तेल के दीप के स्थान पर मोम के दीप लगाए जाते हैं अथवा कुछ स्थानों पर बिजली के दीप भी लगाते हैं । परंतु शास्त्र के अनुसार तेल के दीप लगाना ही उचित एवं लाभदायक है । तेल का दीप एक मीटर तक की सात्त्विक तरंगें खींच सकता है । इसके विपरीत मोम का दीप केवल रज-तमकणों का प्रक्षेपण करता है, जबकि बिजली का दीप वृत्ति को बहिर्मुख बनाता है । इसलिए दीपों की संख्या अल्प ही क्यों न हो, तो भी तेल के दीप की ही पंक्ति लगाएं।_

*6. आकाश दीप अथवा आकाश कंडील:-*

_विशिष्ट प्रकारके रंगीन कागज, थर्माकोल इत्यादिकी विविध कलाकृतियां बनाकर उनमें बिजली के दिये लगाए जाते हैं, उसे आकाशदीप अथवा आकाशकंदील कहते हैं । आकाशदीप सुशोभन का ही एक भाग है।_

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

31 Oct, 06:15


*7. दीपावली पर्व पर बच्चों द्वारा बनाए जानेवाले घरौंदे एवं किले:-*

_दीपावली के अवसर पर उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर बच्चे आंगन में मिट्टी का घरौंदा बनाते हैं, जिसे कहीं पर ‘हटरी’, तो कहीं पर ‘घरकुंडा’के नाम से जानते हैं । दीप से सजाकर, इसमें खीलें, बताशे, मिठाइयां एवं मिट्टी के खिलौने रखते हैं । महाराष्ट्र में बच्चे किला बनाते हैं तथा उसपर छत्रपति शिवाजी महाराज एवं उनके सैनिकों के चित्र रखते हैं । इस प्रकार त्यौहारों के माध्यमसे पराक्रम तथा धर्माभिमान की वृद्धि कर बच्चों में राष्ट्र एवं धर्म के प्रति कुछ नवनिर्माण की वृत्ति का पोषण किया जाता है।_

*8. दीपावली शुभसंदेश देनेवाले दीपावली के शुभेच्छापत्र:*

_दीपावली के मंगल पर्व पर लोग अपने सगे-संबंधियों एवं शुभचिंतकों को, आनंदमय दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं इसके लिए वे शुभकामना पत्र भेजते हैं तथा कुछ लोग उपहार भी देते हैं । ये साधन जितने सात्त्विक होंगे, देनेवाले एवं प्राप्त करनेवाले को उतना ही अधिक लाभ होगा । शुभकामना पत्रों के संदेश एवं उपहार, यदि धर्मशिक्षा, धर्मजागृति एवं धर्माचरणसे संबंधित हों, तो प्राप्त करनेवाले को इस दिशा में कुछ करने की प्रेरणा भी मिलती है । हिंदू जनजागृति समिति एवं सनातन संस्था द्वारा इस प्रकार के शुभेच्छापत्र बनाए जाते हैं।

              *।। जय सियाराम जी।।*
               *।। ॐ नमह शिवाय।।*.

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31 Oct, 03:15


शुभ दीपावली..

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30 Oct, 13:29


*दीपकों से करिए देवी देवता को प्रसन्न*

दीपक कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे मिट्टी, आटा, तांबा, चांदी, लोहा, पीतल अथवा स्वर्ण धातु का। मूंग, चावल, गेहूं, उड़द तथा ज्वार को समान भाग में लेकर उसके आटे से बना दीपक सभी प्रकार की साधनाओं में श्रेष्ठ होता है। किसी-किसी साधना में अखंड ज्योति जलाने का भी विशेष विधान है जिसे गाय के शुद्ध घी और तिल के तेल के साथ भी जलाया जा सकता है। यह प्रयोग विशेषत: आश्रमों और देव स्थानों के लिए करना चाहिए।
अगर हमें आर्थिक लाभ प्राप्त करना हो तो नियम पूर्वक अपने घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।

दीपको से करिए मां लक्ष्मी को प्रसन्न,
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माता लक्ष्मी को प्रकाश बेहद प्रिय है। इसलिए दीपावली पर दीपक जलाकर मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है। दीपक कहां कहां जलाए जाने चाहिए। दीपावली की रात अपने घर में सात स्थानों पर दीपक का प्रकाश जरुर करें।

पहला धन स्थान या तिजोरी- घर में जहां भी आप रुपए पैसे रखते हैं, वहां दीपक जरुर जलाएं।

दूसरा वाहन स्थल- जहां भी आपका वाहन खड़ा होता है, वहां प्रकाश जरुर करें। भले ही वह सायकिल क्यों न हो। माता की कृपा से बड़ा वाहन प्राप्त होगा।

तीसरा जल स्थल- घर में जहां कहीं भी पानी का भंडार होता है, उस स्थान को भी प्रकाशित करें।

चौथा भंडार गृह- घर में जहां भी अन्न भंडार होता है, वहां दीया अवश्य जलाएं।

पांचवां रसोईघर- रसोई घर की सबसे पवित्र जगह है। यहां दीपक जरुर प्रज्जवलित करें।

छठा मुख्य द्वार- घर के मुख्य द्वार से ही मां लक्ष्मी का आगमन होता है। इसलिए वहां माता के स्वागत के लिए दीया जरुर होना चाहिए।

सातवां पूजा गृह- पूजा घर में चौमुखा दीपक जलाएं और प्रयास करें कि ये दीपक रात भर जलता रहे।

इन स्थानों पर दीपक जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, और उस घर में स्थायी रुप से निवास करती हैं।

शास्त्रों मे हर देवता के लिए भिन्न -भिन्न दीपक जलाने का विधान है जानिए ! किस देवता के लिए कौन सा दीपक जलाना चाहिए ।

जब हम किसी देवता का पूजन करते हैं तो सामान्यतः दीपक जलाते हैं। दीपक किसी भी पूजा का महत्त्वपूर्ण अंग है । हमारे मस्तिष्क में सामान्यतया घी अथवा तेल का दीपक जलाने की बात आती है और हम जलाते हैं। जब हम धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की साधना अथवा सिद्धि के मार्ग पर चलते हैं तो दीपक का महत्व विशिष्ट हो जाता है। दीपक कैसा हो, उसमे कितनी बत्तियां हों , इसका भी एक विशेष महत्त्व है। उसमें जलने वाला तेल व घी किस-किस प्रकार का हो, इसका भी विशेष महत्त्व है। उस देवता की कृपा प्राप्त करने और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये सभी बातें महत्वपूर्ण हैं।

आर्थिक लाभ प्राप्त करना हो तो नियम पूर्वक अपने घर के मंदिर में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।

शत्रुओं से पीड़ा हो तो सरसों के तेल का दीपक भैरव जी के सामने जलाना चाहिये।

भगवान सूर्य की प्रसन्नता के लिए घी का दीपक जलाना चाहिए ।

शनि के लिए सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

पति की दीर्घायु के लिए गिलोय के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

राहु तथा केतु ग्रह के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

किसी भी देवी या देवता की पूजा में गाय का शुद्ध घी तथा एक फूल बत्ती या तिल के तेल का दीपक आवश्यक रूप से जलाना चाहिए।

भगवती जगदंबा व दुर्गा देवी की आराधना के समय एवं माता सरस्वती की आराधना के समय तथा शिक्षा-प्राप्ति के लिए दो मुखों वाला दीपक जलाना चाहिए।

भगवान गणेश की कृपा-प्राप्ति के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए।

भैरव साधना के लिए सरसों के तेल का चैमुखी दीपक जलाना चाहिए।

मुकदमा जीतने के लिए पांच मुखी दीपक जलाना चाहिए।

भगवान कार्तिकेय की प्रसन्नता के लिए गाय के शुद्ध घी या पीली सरसों के तेल का पांच मुखी दीपक जलाना चाहिए ।

भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए आठ तथा बारह मुखी दीपक पीली सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए।

माता लक्ष्मी जी की प्रसन्नता के लिए घी का सात मुखी दीपक जलाना चाहिए।

भगवान विष्णु की दशावतार आराधना के समय दस मुखी दीपक जलाना चाहिए।

इष्ट-सिद्धि तथा ज्ञान-प्राप्ति के लिए गहरा तथा गोल दीपक प्रयोग में लेना चाहिए।

शत्रुनाश तथा आपत्ति निवारण के लिए मध्य में से ऊपर उठा हुआ दीपक प्रयोग में लेना चाहिए।

लक्ष्मी-प्राप्ति के लिए दीपक सामान्य गहरा होना चाहिए।

हनुमानजी की प्रसन्नता के लिए तिकोने दीपक का प्रयोग करना चाहिए और उसमें चमेली के तेल का प्रयोग करना चाहिए।

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29 Oct, 16:00


*_व्यापार करने वाले जातक बुध गोचर की अवधि में अच्छा लाभ कमाने में सक्षम होंगे, जो आपके द्वारा किए गए कठिन प्रयासों के कारण संभव होगा।आर्थिक जीवन के लिए इस समय को शुभ कहा जाएगा क्योंकि आप यात्रा के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में धन लाभ प्राप्त करेंगे और ऐसी यात्रा आपको संतुष्टि प्रदान करेगी।निजी जीवन की बात करें तो आप अपने सुखद व्यवहार से अपने जीवन साथी के साथ अच्छी भावनाओं को साझा करेंगे और एक-दूसरे के साथ बेहतरीन पल व्यतीत करेंगे।स्वास्थ्य के लिहाज़ से, आपको बेहतरीन स्वास्थ्य प्राप्त होगा, लेकिन आपको अपनी आंखों की जांच करने की आवश्यकता है।_*

*_उपाय- प्रतिदिन प्राचीन पाठ ललिता सहस्रनाम का जाप करें।_*

वृश्चिक राशि
* *_वृश्चिक राशि वालों के लिए बुध ग्रह आपके आठवें और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके पहले भाव में होगा।ऐसे में, आप अपनी सुख-सुविधाओं को बढ़ाने, संपत्ति खरीदने में निवेश करने और साथ ही, धन की बचत करने में सक्षम होंगे।करियर के लिहाज़ से, आपको इस दौरान नई नौकरी के अवसर और अपने काम से खुशी प्राप्त होगी।_*

*_वृश्चिक राशि के व्यापार करने वाले लोगों को इस समय अच्छा लाभ प्राप्त होगा और साथ ही आप प्रतिद्वंदियों से कड़ी टक्कर देने में सक्षम होंगे।आर्थिक जीवन में बुध के गोचर के दौरान आप अच्छा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे और उसी का निवेश एक अच्छी संपत्ति खरीदने में कर सकते हैं।प्रेम जीवन की बात करें, तो आप जीवन साथी के साथ अपने व्यवहार में अधिक आत्मविश्वासी होंगे। इस तरह आप बेहतर आपसी तालमेल और समझ की वजह से पार्टनर के साथ ख़ुश दिखाई देंगे।स्वास्थ्य के लिहाज़ से, आप इस दौरान फिट और स्वस्थ महसूस करेंगे क्योंकि आपमें अधिक ऊर्जा और उत्साह होगा।_*

*_उपाय- प्रतिदिन 41 बार “ऊँ नमो नारायण” का जाप करें।_*

धनु राशि
* *_धनु राशि के जातकों के लिए बुध सातवें और दसवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके बारहवें भाव में होगा।उपरोक्त के कारण, आप इस दौरान आपकी प्रतिष्ठा और मान-सम्मान में कमी आ सकती है। साथ ही आप अच्छे दोस्त और उनका समर्थन खो सकते हैं।करियर के क्षेत्र में, आप संतुष्टि की कमी के कारण नौकरी में बदलाव कर सकते हैं। साथ ही, कार्यक्षेत्र में नौकरी का दबाव आप पर आ सकता है।_*

*_जिन जातकों का खुद का व्यापार है, वे अपने व्यवसाय में अच्छे अवसर खो सकते हैं और आगे के व्यावसायिक ऑर्डर आपके हाथ से निकल सकता है।आर्थिक जीवन की बात करें, तो आप यात्रा करते समय पैसे खो सकते हैं और यह आपको निराश कर सकता है।निजी जीवन की बात करें, तो रिश्ते में उच्च मूल्यों की कमी के कारण आपका अपने जीवन साथी के साथ संबंध खराब हो सकता है।स्वास्थ्य के लिहाज़ से, आपको अपने पैरों में दर्द हो सकता है जो इस समय तनाव के कारण उत्पन्न हो सकता है।_*

*_उपाय- गुरुवार को वृद्ध ब्राह्मण को भोजन दान करें।_*

मकर राशि
* *_मकर राशि के जातकों के लिए बुध ग्रह आपके छठे और नौवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके ग्यारहवें भाव में होगा।ऐसे में, आप इस दौरान अपने कठिन प्रयासों से सफल होंगे और अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम होंगे।करियर के क्षेत्र में, आपको नौकरी के नए अवसर मिलेंगे, जिससे आपकी उम्मीद और अधिक बढ़ेगी। आप इस दौरान पूरी क्षमता और मेहनत से काम करेंगे।_*

*_जिन जातकों का खुद का व्यापार है, उन्हें अच्छा मुनाफा मिलेगा और प्रतिद्वंदियों से अच्छी तरह से मुकाबला करने में सक्षम होंगे।आर्थिक जीवन में आप अच्छा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे और इसे एक अच्छी संपत्ति खरीदने में निवेश करेंगे।निजी जीवन की बात करें, तो आप अपने जीवन साथी से खुश होंगे और उनके साथ अच्छे व्यवहार करेंगे। साथ ही, आप एक-दूसरे की बात पर सहमत होंगे।बुध गोचर की अवधि में मकर राशि वालों की सेहत अच्छी रहेगी। आप फिट व खुशी महसूस करेंगे और यह आपके जीवनसाथी के वजह से संभव होगा।_*

*_उपाय- शनिवार को दिव्यांग व्यक्तियों को कच्चे चावल दान करें।_*

कुंभ राशि
* *_कुंभ राशि के जातकों के लिए बुध पांचवें और आठवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर दसवें भाव में गोचर कर रहा है।ऐसे में, आप काम के प्रति अधिक समर्पित होंगे और उसी पर टिके रहेंगे। आप लक्ष्यों के प्रति ध्यान केंद्रित करेंगे।करियर के क्षेत्र में, इस समय आपको अपनी नौकरी के संबंध में अधिक लाभ मिलेगा और आपको नई ऑनसाइट नौकरी के अवसर भी मिलेंगे।_*

*_व्यापार के क्षेत्र में, आप व्यापार करके और उसमें शामिल होकर अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त करेंगे।आर्थिक जीवन की बात करें, अधिक धन कमाने में और अर्जित करने में सक्षम होंगे। साथ ही, बचत करना भी आपके लिए आसान होगा।निजी जीवन को देखें, तो यह लोग अपने पार्टनर के प्रति ईमानदार रहेंगे और इसके फलस्वरूप, आपके रिश्ते में खुशियां बनी रहेंगी।स्वास्थ्य के

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29 Oct, 16:00


लिहाज़ से, आपको बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं नहीं होंगी। लेकिन आपको केवल पीठ दर्द की समस्या हो सकती है।_*

*_उपाय- शनिवार को दिव्यांग गरीब और जरूरतमंदों को कच्चे चावल दान करें।_*

मीन राशि
* *_मीन राशि के जातकों के लिए बुध पांचवें और आठवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके नौवें भाव में होगा।ऐसे में, आप इस दौरान आपका झुकाव आध्यात्मिक गतिविधियों की ओर अधिक रहेगा और इससे आपको राहत मिलेगी।करियर के लिहाज़ में आपको उच्च लाभ प्राप्त करने में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है और इस वजह से आपको मिले-जुले परिणाम मिलने की संभावना है।_*

*_जिन जातकों का खुद का व्यापार है, उन्हें इस दौरान अच्छा लाभ प्राप्त होगा और आप अपने प्रतिद्वंदियों को बराबर की टक्कर देंगे।आर्थिक जीवन में आप अधिक से अधिक धन अर्जित करने और बचत करने में सक्षम होंगे। साथ ही, आपको भाग्य का साथ भी मिलेगा।प्रेम जीवन में, इस अवधि आपको अपने जीवनसाथी का पूरा साथ मिलेगी, जिस वजह से आपको खुशी महसूस होगी। आप अपने जीवनसाथी के सहयोग से सुख व सौभाग्य प्राप्त करेंगे।स्वास्थ्य की बात करें, तो आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण आप फिट व खुशहाल महसूस करेंगे।_*

*_उपाय- प्रतिदिन 21 बार “ॐ गुरवे नमः” का जाप करें।_*



*_हर हर महादेव🙏_

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29 Oct, 16:00


*_गोचर » बुध का वृश्चिक राशि .._*
* *_बुध का वृश्चिक राशि में गोचर (29 अक्टूबर 2024)_*

*_इस लेख में आपको “बुध का वृश्चिक राशि में गोचर” से जुड़ी समस्त जानकारी प्राप्त होगी जैसे कि तिथि, समय एवं राशियों पर प्रभाव। ज्योतिष में बुध ग्रह को नवग्रहों के युवराज का दर्जा प्राप्त है और इनकी स्थिति सूर्य महाराज के सबसे निकट होती है। अब बुध महाराज 29 अक्टूबर 2024 की रात 10 बजकर 24 मिनट पर वृश्चिक राशि में गोचर करने जा रहे हैं। आइए जानते हैं बुध का यह गोचर सभी 12 राशियों को कैसे परिणाम देगा।_*

* *_बुध का वृश्चिक राशि में गोचर 29 अक्टूबर 2024 को होने जा रहा है।_*

*_बुध को बुद्धि और सीखने की क्षमता का ग्रह कहा जाता है। कोई व्यक्ति बुध ग्रह के आशीर्वाद के बिना अपने गुणों और क्षमताओं के साथ जीवन में आगे नहीं बढ़ सकता है और न ही इनके उपयोग से सफलता प्राप्त कर सकता है। बुध न सिर्फ सीखने में सहायता करते हैं, बल्कि यह व्यापार के क्षेत्र में सफलता प्रदान करते हैं। विशेष रूप से जिनका संबंध ट्रेड के व्यापार से होता है, वह कुंडली में बुध ग्रह की मज़बूत स्थिति से कामयाबी हासिल कर सकते हैं।_*

* *_जब बुध महाराज शुभ एवं लाभकारी ग्रह गुरु के साथ होते हैं, तब व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है और वह इससे लाभ प्राप्त करता है। अगर बुध मिथुन राशि में उपस्थित होते हैं, तो ऐसे जातक को जीवन में काफ़ी यात्राएं करनी पड़ती हैं और उन्हें यात्राएं करना पसंद होता है। साथ ही, यह लोग व्यक्तिगत विकास के इच्छुक हो सकते हैं। बुध ग्रह के कन्या राशि में विराजमान होने पर आपका झुकाव ज्योतिष, गूढ़ विज्ञान आदि में होता है और व्यापार करना पसंद करते हैं।_*

*_अब बुध का वृश्चिक राशि में गोचर होने जा रहा है और चलिए अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि यह राशि चक्र की सभी राशियों को किस तरह प्रभावित करेंगे।यह राशिफल आपकी चंद्र राशि पर आधारित है।_*

*_बुध का वृश्चिक राशि में गोचर: राशि अनुसार राशिफल और उपाय👇_*

मेष राशि
* *_मेष राशि के जातकों के लिए बुध तीसरे और छठे भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके आठवें भाव में होगा।ऐसे में, आपको ज़रूरत के समय पैतृक संपत्ति और ऋण के माध्यम से अप्रत्याशित तरीके से लाभ होगा।करियर के क्षेत्र में आपको इस दौरान कार्यक्षेत्र में समस्याएं आ सकती हैं और काम करते समय बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में, आपको योजना बना कर चलने की आवश्यकता हो सकती है।_*

*_जिन जातकों का खुद का व्यापार है, वे अपनी गैर-योजना और लापरवाही के चलते लाभ कमाने से पीछे रह सकते हैं। इसके अलावा, आपको बिज़नेस पार्टनर से भी समस्या हो सकती है।आर्थिक जीवन में, बुध का गोचर आपके लिए कुछ ख़ास अनुकूल प्रतीत नहीं हो रहा है क्योंकि आपको धन की हानि होने की संभावना है। यात्रा करते समय भी आपको धन की हानि हो सकती है।निजी जीवन को देखें, तो इस दौरान अहंकार की समस्याओं और खुशी की कमी के कारण आपका अपने जीवन साथी के साथ वाद-विवाद हो सकता है।बुध के इस राशि परिवर्तन के दौरान आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती है। तनाव और चिंता के कारण आपको पीठ दर्द होने की संभावना है, जो आपके समस्या का कारण बन सकता है।_*

*_उपाय- प्रतिदिन 24 बार “ॐ नरसिंहाय नमः” का जाप करें।_*

वृषभ राशि
* *_वृषभ राशि के जातकों के लिए बुध दूसरे और पांचवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके सातवें भाव में होगा।इसके परिणामस्वरूप, आप इस दौरान नए दोस्त, सहयोगी बनाएं और अपने रिश्ते को अच्छी तरह से आगे बढ़ाएंगे।करियर की बात करें तो, आप अपने वरिष्ठों का सहयोग प्राप्त करेंगे और सहकर्मियों का समर्थन प्राप्त करेंगे, जिससे आपको अपने काम में सफलता मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ेंगे।_*

*_बुध का गोचर व्यापार में आपको लाभ प्रदान करेगा। यह लाभ आप अपनी बुद्धि और खुद के द्वारा बनाई गई योजना से प्राप्त करेंगे।आर्थिक जीवन में बुध का गोचर आपको अच्छा ख़ासा धन लाभ करवाएगा। साथ ही, आप बचत करने में भी सक्षम होंगे।निजी जीवन को देखें, तो इस दौरान आपके मन में पार्टनर के प्रति प्रेम में बढ़ोतरी होगी और आप अपने जीवनसाथी का विश्वास प्राप्त करने में भी सक्षम होंगे।बुध के इस राशि परिवर्तन के दौरान आप भरपूर साहस और ऊर्जा के कारण अपने स्वास्थ्य और फिटनेस को बनाए रखेंगे।_*

*_उपाय- प्रतिदिन 41 बार “ॐ बुधाय नमः” का जाप करें।_*

मिथुन राशि
* *_मिथुन राशि के जातकों के लिए बुध पहले और चौथे भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके छठे भाव में होगा।ऐसे में, आपको अधिक खर्च का सामना करना पड़ सकता है और परिवार में भी कुछ समस्याएं आ सकती हैं, जो आपको परेशान कर सकती हैं।करियर की बात करें, तो आप कार्यक्षेत्र में तनाव महसूस कर सकते हैं। साथ ही, आपको वरिष्ठों से समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। इस दौरान आपको चुनौतीपूर्ण कार्य

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29 Oct, 16:00


सौंपे जा सकते हैं जो आपको परेशान कर सकते हैं।_*

*_व्यापार की बात करें,आपको नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, जो इस समय आपको चिंता में डाल सकता है।आर्थिक जीवन में आपको अधिक खर्चों का सामना करना पड़ सकता है और आशंका है कि ऐसे में, आपके लिए बचत कर पाना मुश्किल हो।आपके प्रेम जीवन की बात करें, तो आपको अपने जीवनसाथी के साथ अहंकार की समस्या का सामना करना पड़ सकता है और इस वजह से आप काफी अधिक चिंतित हो सकते हैं।स्वास्थ्य के लिहाज़ से इस समय आपको पेट दर्द और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।_*

*_उपाय- प्रतिदिन प्राचीन पाठ नारायणाय का जाप करें।_*

कर्क राशि
* *_कर्क राशि वालों के लिए बुध ग्रह आपके तीसरे और बारहवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके पांचवें भाव में होगा।उपरोक्त कारणों से आप अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो सकते हैं और असमंजस में पड़ सकते हैं। इस दौरान आप अपने बच्चों को लेकर भी परेशान हो सकते हैं।करियर की बात करें, तो आपको अपने वरिष्ठों के साथ संबंधों में समस्या हो सकती है और आशंका है कि इससे आपके प्रदर्शन में गिरावट आए।_*

*_व्यापार में बुध का यह गोचर आपको औसत रूप से लाभ प्रदान कर सकता हैं, जो चिंता का कारण बन सकता है। ऐसे में, आपको बेहतर रिटर्न के लिए योजना बनानी होगी।आर्थिक जीवन में आपको भारी खर्च का सामना करना पड़ सकता है, जो आपके द्वारा लिए गए भारी कर्ज के कारण संभव है।बुध गोचर की अवधि में आप पार्टनर के साथ मधुर संबंध बनाए रखने में असफल रह सकते हैं जिसकी वजह आपसी तालमेल की कमी हो सकती है।स्वास्थ्य को देखें, तो कर्क राशि के जातकों की माता को कुछ बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और ऐसे में, आपको उनकी सेहत पर पैसा खर्च करना पड़ेगा।_*

*_उपाय- सोमवार को महिलाओं को चावल दान करें।_*

सिंह राशि
* *_सिंह राशि के जातकों के लिए बुध दूसरे और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके चौथे भाव में होगा।उपरोक्त के कारण, आप अपनी सुख-सुविधाओं को बढ़ाने, संपत्ति खरीदने में निवेश करने और पैसे बचाने में सक्षम होंगे।करियर के क्षेत्र में, आपको इस दौरान नौकरी के नए अवसर प्राप्त होंगे और कार्यक्षेत्र में खुशी महसूस होगी।_*

*_सिंह राशि के व्यापार करने वाले जातक इस अवधि में अच्छा लाभ कमा सकेंगे जो कि आपके द्वारा की जा रही मेहनत का परिणाम होगा। साथ ही, प्रतिद्वंदियों को कड़ी टक्कर देने में सक्षम होंगे।आर्थिक जीवन में आप अच्छा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे और इसे एक अच्छी संपत्ति खरीदने में निवेश करेंगे।निजी जीवन में आपका रिश्ता जीवनसाथी के साथ अनुकूल बना रहेगा और आप अपने जीवनसाथी के साथ खुश नज़र आएंगे। साथ ही, एक-दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे और एक-दूसरे की बात पर परस्पर सहमत होंगे।बुध गोचर की अवधि में सिंह राशि वालों की सेहत अच्छी रहेगी। आप फिट व खुशी महसूस करेंगे और यह आपके जीवनसाथी के वजह से संभव होगा।_*

*_उपाय- रविवार को दिव्यांगों को कच्चे चावल दान करें।_*

कन्या राशि
* *_कन्या राशि के जातकों के लिए बुध पहले और दसवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर तीसरे भाव में होगा।ऐसे में, आप अधिक यात्रा करेंगे। जीवन में आपको बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। साथ ही, आपको अपने भाई-बहनों आदि का सहयोग प्राप्त होगा।जब बात आती है करियर की तो, आप काम और उससे जुड़ी गतिविधियों में वृद्धि देखेंगे। इस दौरान आपको सहकर्मियों और वरिष्ठों से प्राप्त होगा।बुध के इस गोचर की अवधि में आप व्यापार के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकेंगे और यह आपके प्रयास और मेहनत का नतीजा हो सकता है।_*

*_आर्थिक जीवन में कन्या राशि के जातक अपने कठिन प्रयास से बहुत अच्छा लाभ प्राप्त करेंगे।निजी जीवन को देखें, आप अपने जीवनसाथी के साथ बहुत अधिक खुश नज़र आएंगे और इसके फलस्वरूप, आपके रिश्ते में खुशियां बनी रहेंगी। साथ ही, आपका रिश्ता मजबूत होगा।स्वास्थ्य के मोर्चे पर, आप इस दौरान फिट रह सकते हैं और यह आपके भीतर मौजूद अपार ऊर्जा के कारण संभव हो सकता है।स्वास्थ्य के मामले में आपके भीतर की ऊर्जा की वजह से आपकी सेहत उत्तम बनी रहेगी और आप फिट महसूस करेंगे।_*

*_उपाय- बुधवार को गरीब बच्चों को स्कूल की नोटबुक दान करें।_*

तुला राशि
* *_तुला राशि के जातकों के लिए बुध नौवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं। बुध का वृश्चिक राशि में गोचर आपके दूसरे भाव में होगा।ऐसे में, आपको भाग्य का साथ मिलेगा और आप अच्छा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे। इस अवधि में आपका झुकाव अध्यात्म गतिविधियों पर अधिक होगा।बात करें करियर के क्षेत्र की, तो आपको विदेश में नौकरी के अवसर मिलेंगे और ऐसे अवसर आपके सपनों को पूरा करेंगे।_*

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

29 Oct, 11:37


*श्री लक्ष्मी कवच*

हिंदी अर्थ सहित

लक्ष्मी में चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः।
नारायणी शीर्षदेभे सर्वांगे श्री स्वरूपिणी।।

भावार्थ: लक्ष्मी जी हमारे आगे के भाग की तथा कमलाजी हमारी पीठ की रक्षा करें। नारायणी हमारे सिर की और श्री स्वरूपिणी हमारे पूरे शरीर एवं अंगों की रक्षा करें।

रामपत्नी तु प्रत्यंगे रामेश्वरी सदाऽवतु।
विभालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणीतथा।।
जयदात्री धनदात्री, पाभाक्षमालिनी शुभा।
हरिप्रिया हरिरामा जयंकारी महोदरी।।
कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्ण मनमोहिनी।
जयंकारी महारोद्री सिद्धिदात्री शुभंकरी।।
सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूटनिवासिनी।
भयं हरतु भक्तानां भवबन्ध विमुचतु।।

भावार्थ: रामपत्नी और रामेश्वरी हमारे सब अंगों-उपांगों की रक्षा करें। वह कौमारी है, चक्रधारिणी हैं, जय देने वाली और पाभाक्षमालिनी हैं, वह कल्याणी हैं, हरिप्रिया हैं, हरिरामा हैं, जयंकारी हैं, महादेवी हैं, श्रीकृष्ण का मन मोहन करने वाली हैं, महाभयंकर, सिद्धि देने वाली हैं, शुभंकरी, सुख तथा मोक्ष को देने वाली हैं जिनके चित्रकूट निवासिनी इत्यादि अनेक नाम हैं वह अनपायिनि लक्ष्मी देवी हमारे भय दूर करके सदा हमारी रक्षा करें।

कवचं तन्महापुष्यं यः पठेद्भक्तिसंयुतः।
त्रिसन्ध्यंमेकसन्ध्यं वा मुच्यते सर्वसंकटात्।।

भावार्थ: जो प्राणी भक्तिमय होकर नित्य तीन या केवल एक बार ही इस पवित्र लक्ष्मी कवच का पाठ करता है, वह सम्पूर्ण संकटों से छुटकारा पा जाता है।

कवचस्यास्य पठन धनपुत्रविवर्द्धनम्।
भीतिर्विनाशनं चैव त्रिषु लोकेषु कीर्तितम्।।

भावार्थ: इस कवच का पाठ करने से पुत्र, धन आदि की वृद्धि होती है। भय दूर हो जाता है। इसका माहात्म्य तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।

भूर्जपत्रे समालिख्य रोचनाकुंकुमेनतु।
धारणद्गलदेभे च सर्वसिद्ध- र्भविष्यति।।

भावार्थ: भोजपत्र पर रचना और कुंकुम से इसको लिखकर गले में पहनने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।

अपुत्रो लभते पुत्र धनार्थी लभते धनम्।
मोक्षार्थी मोक्षमारनोति कवचस्या- स्यप्रसादतः।।

भावार्थ: इस कवच के प्रभाव से पुत्र, धन एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।

संकटेे विपदे घोरे तथा च गहने वने।
राजद्वारे च नौकायां तथा च रणमध्यतः।।
पठनाद्वारणादस्य जय माप्नोति निश्चितम्।।

भावार्थ: संकट, विपदा, घने जंगल, राजद्वार, नौका मार्ग, रण आदि स्थानों में इस कवच का पाठ करने से या धारण करने से विजय प्राप्त होती है।

बहुना किमी होक्तेन सर्व जीवेश्वरेश्वरी आद्या भक्तिः सदा लक्ष्मीर्भक्तानुग्रहकारणी।
धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद् ध्रुवम।।

भावार्थ: अधिक क्या कहा जाये, जो मनुष्य इस कवच का प्रतिदिन पाठ करता है, धारण करता है, उसपर लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है।

।। जय माँ लक्ष्मी ।।

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29 Oct, 09:45


. *अष्टलक्ष्मी स्तुति*

माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिये माँ लक्ष्मी के अष्टरुपों का नियमित स्मरण करना शुभ फलदायक माना गया है. अष्टलक्ष्मी स्त्रोत कि विशेषता है की इसे करने से व्यक्ति को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी का वास बनाये रखने में यह विशेष रुप से शुभ माना जाता है. अगर कोई भक्त यदि माता लक्ष्मी के अष्टस्त्रोत के साथ श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करता है, तो उसके व्यापार में वृद्धि व धन में बढोतरी होती है।

व्यापारिक क्षेत्रों में वृद्धि करने में अष्टलक्ष्मी स्त्रोत और श्री यंत्र कि पूजा विश्लेष लाभकारी रहती है. श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ कहा गया है. पूजा में श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है. इसे करते समय शास्त्रों में कहे गये सभी नियमों का पालन करना चाहिए और पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए. शुक्रवार के दिन से इसे आरंभ करते हुए जब तक हो सके करें।

इसका प्रारम्भ करते समय इसकी संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए और संख्या पूरी होने पर उद्धापन अवश्य करना चाहिए. प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है. लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए.

श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पूजन विधि

स्त्रोत का पाठ करने के लिए घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए तथा ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी कि चांदी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए. साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए उन्हें प्रणाम करना चहिए, इसके पश्चात उक्त मंत्र बोलना चाहिए. पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी कि कथा का श्रवण भी किया जा सकता है. माँ लक्ष्मी जी को खीर का भोग लगाना चाहिए और धूप, दीप, गंध और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए. सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए.

॥ श्रीअष्टलक्ष्मीस्तुतिः ॥

आदिलक्ष्मीः

सुमनोवन्दितसुन्दरि माधवि चन्द्रसहोदरि हेममयि
मुनिगणकाङ्क्षितमोक्षप्रदायिनि मञ्जुलभाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजिते सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते
जय जय हे मधुसूदनकामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

धान्यलक्ष्मीः

अयि कलिकल्मषनाशिनि कामिनि वैदिकरूपिणि वेदमयि
क्षीरसमुद्भवमङ्गलरूपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रितपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

धैर्यलक्ष्मीः

जय वरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमयि
सुरगणविनुते अतिशयफलदे ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचिनि साधुसमाश्रितपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धैर्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

गजलक्ष्मीः

जय जय दुर्गतिनाशिनि कामिनि बहुदे शुभकलहंसगते
रथगजतुरगपदादिसमावृतपरिजनमण्डितराजनुते ।
सुरवरधनपतिपद्मजसेविततापनिवारकपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि गजलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

सन्तानलक्ष्मीः

अयि खगवाहे मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि सन्मतिदे
गुणगणवारिधे लोकहितैषिणि नारदतुम्बुरुगाननुते ।
सकलसुरासुरदेवमुनीश्वरभूसुरवन्दितपादयुगे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

विजयलक्ष्मीः

कमलनिवासिनि सद्गतिदायिनि विज्ञानविकासिनि काममयि
अनुदिनमर्चितकुङ्कुमभासुरभूषणशोभि सुगात्रयुते ।
सुरमुनिसंस्तुतवैभवराजितदीनजानाश्रितमान्यपदे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि विजयलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

ऐश्वर्यलक्ष्मीः

प्रणतसुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमयि
मणिगणभूषितकर्णविभूषणकान्तिसमावृतहासमुखि ।
नवनिधिदायिनि कलिमलहारिणि कामितवरदे कल्पलते
जय जय हे मधुसूदनकामिनि ऐश्वर्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

धनलक्ष्मीः

धिमिधिमिधिन्धिमिदुन्दुमदुमदुमदुन्दुभिनादविनोदरते
बम्बम्बों बम्बम्बों प्रणवोच्चारशङ्खनिनादयुते ।
वेदपुराणस्मृतिगणदर्शितसत्पदसज्जनशुभफलदे
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धनलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

।इति श्रीअष्टलक्ष्मीस्तुतिः सम्पूर्णा।

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

29 Oct, 08:50


धनतेरस

धनतेरस मुहूर्त :_*
*_18:33:13 से 20:12:47 तक_*
*_अवधि :1 घंटे 39 मिनट_*

*_प्रदोष काल :17:37:59 से 20:12:47 तक_*
*_वृषभ लग्न काल :18:33:13 से 20:29:06 तक_*

*_धनतेरस 2024 की तारीख व मुहूर्त। धनतेरस कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाने वाला त्यौहार है। धन तेरस को धन त्रयोदशी व धन्वंतरि जंयती के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक धन्वंतरि देव समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धन तेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है। धन्वंतरि देव जब समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे उस समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसी वजह से धन तेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनतेरस पर्व से ही दीपावली की शुरुआत हो जाती है।_*

*_धन तेरस का शास्त्रोक्त नियम_*

* 1. *_धनतेरस कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की उदयव्यापिनी त्रयोदशी को मनाई जाती है। यहां उदयव्यापिनी त्रयोदशी से मतलब है कि, अगर त्रयोदशी तिथि सूर्य उदय के साथ शुरू होती है, तो धनतेरस मनाई जानी चाहिए।_*

* 2. *_धन तेरस के दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में यमराज को दीपदान भी किया जाता है।जो स्वास्थ्य संबंधी त्यौहार भी है और महाराज धन्वंतरि जी की जयंती उपासना भी_*

*_धनतेरस की पूजा विधि और धार्मिक कर्म:-मानव जीवन का सबसे बड़ा धन उत्तम स्वास्थ है, इसलिए आयुर्वेद के देव धन्वंतरि के अवतरण दिवस यानि धन तेरस पर स्वास्थ्य रूपी धन की प्राप्ति के लिए यह त्यौहार मनाया जाना चाहिए।_*

* 1. *_धनतेरस पर धन्वंतरि देव की षोडशोपचार पूजा का विधान है। षोडशोपचार यानि विधिवत 16 क्रियाओं से पूजा संपन्न करना। इनमें आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन (सुगंधित पेय जल), स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध (केसर-चंदन), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन (शुद्ध जल), दक्षिणायुक्त तांबूल, आरती, परिक्रमा आदि है।_*

* 2. *_धनतेरस पर पीतल और चांदी के बर्तन खरीदने की परंपरा है। मान्यता है कि बर्तन खरीदने से धन समृद्धि होती है। इसी आधार पर इसे धन त्रयोदशी या धनतेरस कहते हैं।_*

* 3. *_इस दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीये जलाने चाहिए। क्योंकि धनतेरस से ही दीपावली के त्यौहार की शुरुआत होती है।_*

* 4. *_धनतेरस के दिन शाम के समय यम देव के निमित्त दीपदान किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मृत्यु के देवता यमराज के भय से मुक्ति मिलती है।_*

1. *_धनतेरस कितनी तारीख को है?वर्ष 2024 में धनतेरस भारत और अन्य देशों में 29 अक्टूबर को मनाया जायेगा। धनतेरस का पर्व दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है और इस दिन खरीदारी करने का विशेष महत्व बताया गया है।_*

2. *_धनतेरस पर क्या खरीदना चाहिए?धनतेरस के दिन नई चीज़ें जैसे सोना, चाँदी, पीतल, खरीदना बेहद शुभ माना गया है। इसके अलावा इस दिन धनिया खरीदना और झाड़ू खरीदना भी बेहद शुभ होता है।_*

3. *_धनतेरस क्यों मनाया जाता है?धनतेरस धन्वंतरि के प्रकट होने के दिन के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है दिवाली से दो दिन पहले धन्वंतरि देव समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहा जाता है।_*

4. *_धनतेरस पूजा विधि क्या है?धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है। इसके बाद शाम को मुख्य द्वार और आंगन में दीप जलाये जाते हैं। धनतेरस के दिन शाम के समय यम देवता के नाम का भी दीपक जलाया जाता है।_*

5. *_धनतेरस पर क्या खरीदें और क्या नहीं?धनतेरस के दिन सोने, चांदी और पीतल की वस्तुओं, और झाड़ू खरीदना शुभ होता है। हालांकि इस दिन काले या गहरे रंग की चीज़ें, चीनी मिट्टी से बनी चीज़ें, कांच, एल्युमीनियम, और लोहे से बनी चीज़ें नहीं खरीदनी चाहिए।_*

6. *_धनतेरस पर कौन सी झाड़ू खरीदे?धनतेरस के दिन फूल वाली झाड़ू यानि जिससे घर में झाड़ू लगाया जाता है उसे खरीदें।_*

7. *_धनतेरस के दिन झाड़ू क्यों खरीदा जाता है?धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने के पीछे जुड़ी मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, इससे घर में माँ लक्ष्मी का आगमन होता है, घर से नकारात्मकता दूर होती है, और माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।_*

8. *_धनतेरस के दिन कितनी झाड़ू खरीदनी चाहिए?धनतेरस के दिन हमेशा विषम संख्या में (अर्थात 1, 3, 5) ही झाड़ू खरीदनी चाहिए।_*

*_हमारी ओर से सभी पाठकों को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं। हम आशा करते हैं कि धन्वंतरि देव की कृपा आप पर बनी रहे और आप निरोगी व स्वस्थ रहें।_*

*_यहां एक सत्य शास्त्रोक्त निर्णय से अवगत कराना चाहता हूं।_*

धर्म की खोज DHARMA KI KHOJ

29 Oct, 08:50


*_धनतेरस धन्वंतरि की जयंती है और मानव समाज को धन्वतरि आयुर्वेदाचार्य की कृपा प्राप्त करने की उपासना के लिए है।आज हम वस्तु खरीदने के पीछे भाग रहे हैं क्योंकि हमें बताया गया है कि इस कुछ चुनिंदा वस्तुओं की खरीद से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त की जा सकती है जो एक लक्ष्य का भटकाव है।जिसके लिए सच्चाई यह है कि हमें स्वास्थ्य धन की कामना के लिए महाराज धन्वन्तरि की पूजा उपासना करनी चाहिए जबकि धनलोलुपता में हमें स्वास्थ्य संबंधी सच्चाई को दबाकर वस्तु की बिक्री और खरीद की जानकारी आमजनमानस के मस्तिष्क में फैलाया गया है।जहां यम देव के लिए दीपक जलाने उनकी (यमदेव की) प्रत्क्ष चलन है वह स्वास्थ्य से ही संबंधित है।यह जानकारी कितनी चालाकी से लोगों के बीच अधिक प्रचलन में नहीं है जबकि लोगों को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।जिससे मूल ज्ञान हम सब प्राप्त कर सकें अपने त्यौहार की वैज्ञानिकता को समझ सकें।_*

*_इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्रत्येक परिवार में कुछ न कुछ खरीद की जाती है किन्तु महाराज धन्वंतरि की उपासना किसी ग्राम कॉलोनी में शहर में शायद ही कोई महाराज धन्वन्तरि की कृपा पाने की पूजा उपासना करता हो।मूल तत्व से भटकना ही अंधी परंपरा का द्योतक है। अपनी संस्कृति को जानकारी के अभाव में धन लक्ष्मी को पाने के बदले स्वास्थ्य धन(धन्वंतरि उपासना) को छोड रहे हैं।

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