*इन्द्रियाँ तो व्यर्थ ही इधर-उधर भागने वाली हैं।*
*ये आपको किसी भी खड्डे में गिरा सकती हैं।*
*इन्द्रियों को वश में कर लो तो तुम विजयी कहलाओगे।*
*इन्द्रियाँ चोर की तरह वह अवसर ताकती हैं, जब वे तुम्हें नर्क में पटक दें, पतन करा दें।*
*यदि इन चोरों को अवसर मिलेगा, तो ये सारा संचित धर्म नष्ट कर देंगी।*
*मन के संयम से उत्थान का मार्ग थोड़ा सरल हो जाता है।*
*अनियंत्रित इन्द्रियों का विद्रोह ही नर्क है।*
*उत्तम स्वास्थ्य, दिव्य बुद्धि और सांसारिक सम्पदाएँ उसी को प्राप्त होती है,*
*जिसने अपने मन और इन्द्रियों पर काबू पा लिया है।*
*जिन व्यक्तियों के हृदय पवित्र हैं, मन काबू में है, वे धन्य हैं, क्योंकि वे पृथ्वी पर ही स्वर्ग का सुख प्राप्त करेंगे।*
*धर्म वही है, होता जिससे सदा-सर्वदा पर-उपकार।*
*उससे ही होता निश्चय अपना भी सहज सत्य उपकार॥*
*वह अधर्म है, जिससे होता तनिक दूसरेका अपकार।*
*उससे अपना भी निश्चय ही होता सहज अमित अपकार॥*
*बुद्धिमान जन इसीलिये नित करते रहते पर-उपकार।*
*क्योंकि उसीसे ही होता है उनका भी अपना उपकार॥*