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सनातन धर्म • Sanatan Dharma (Hindi)

आज के व्यस्त जीवन में हम सभी अपने मूल्य और संस्कृति को भूल जाते हैं। लेकिन अब आपके लिए एक ऐसा चैनल है जो आपको सनातन धर्म के आध्यात्मिक साहित्य और ज्ञान को प्रस्तुत करेगा। सनातन धर्म • Sanatan Dharma नामक चैनल पर आपको हिंदू धर्म, गीता और अन्य आध्यात्मिक विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।nnयह चैनल @HinduStuff और @Geeta_HinduStuff द्वारा निर्वाहित किया जाता है जिससे आपको एक साथ सभी आध्यात्मिक संसार के महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी। तो अब जुड़िए सनातन धर्म • Sanatan Dharma चैनल के साथ और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भर दीजिए।

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

12 Jan, 14:00


🌹🌹हनुमान सर्व रक्षा-शाबर मन्त्र🌹🌹

*“ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।”*

💫विधिः-
अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है।
अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें।सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे।
लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

12 Jan, 14:00


🌹🌹श्री बटुकभैरव_माला मन्त्रम्!!🌹🌹

💫विनियोग:~
*"ॐ अस्य श्रीबटुकभैरव माला मन्त्रस्य वृहदारण्यक ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीबटुक-भैरवो देवता, ह्रीं बीजं, बटुकाय, शक्तिः, आपदुद्धारणाय कीलकं, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।"*

*न्यासाः ध्यानं च पूर्व-वत्*


💫माला मन्त्र:~

*"ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं द्रां द्रीं क्लीं क्लूं सः हौं जूं सः ह्रां ह्रीं ह्रूं भ्रां भ्रीं भ्रुं डमल वरयूं हौं हौं महा कालाय महा भैरवाय मां रक्ष रक्ष, मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, मम भ्रातृन् रक्ष रक्ष, मम शिष्यान् रक्ष रक्ष, साधकान् रक्ष रक्ष, मम परिवारान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट दृष्टि दुष्ट बुद्धि दुष्ट प्रयोगान् कारकान् दुष्ट प्रयोगान् कुर्वति कारयति करिष्यति तां हन हन, उच्चाटय उच्चाटय, स्तम्भय स्तम्भय, मारय मारय, मथ मथ, धुन धुन छेदय छेदय, छिन्धि छिन्धि, हन हन, फ्रें फ्रें फ्रें, खें खें खें, ह्रीं ह्रीं ह्रीं, ह्रूं ह्रूं ह्रूं, दुं दुं दुं, दुष्टं दारय दारय, दारिद्रं हन हन, पापं मथ मथ, आरोग्यं कुरु कुरु, पर बलानि क्षोभय क्षोभय, क्षौं क्षौं क्षौं ह्रीं बटुकाय, केलि रुद्राय नमः।"*

।। जय श्री महाकाल।।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

11 Jan, 03:23


महाँकालभैरव_साधना

यह रक्षा कारक साधना है, जिन्हें दुसरों से धोखे अगर बार बार मिलते हों,अनजाना भय लगता हो, शत्रु हैरान या बदनामी करते हों, उनके लिए ये रामबाण साधना है। ये किसी भी रविवार या अष्टमी की रात्रि में कर सकते हैं।

संकल्प लेकर गुरुदेव, गणपति को प्रणाम करें भैरवजी के यंत्र या चित्र के सामने स्नान करके रात्रि 9 बजे काले या लाल आसन पर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं।

अपने सामने काले वस्त्र पर सूखा नारियल , एक कपूर के टुकड़े , 11 लौंग 11 इलायची थोड़ा लोबान या धूप रखें।
सरसों के तेल का दीपक जलाएं। हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें।
नारियल परसिंदूर,अक्षत,काले तिल लाल पुष्प, थोड़ा गुड़ या जलेबी अर्पित करें।

दक्षिण दिशा की ओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जप हकीक या रुद्राक्ष से करें।

मंत्र:-
"ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः! ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः!ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः!घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र:! म्रां म्रीं म्रूं म्र:! म्रों म्रों म्रों म्रों! क्लों क्लों क्लों क्लों!श्रों श्रों श्रों श्रों! ज्रों ज्रों ज्रों ज्रों। हूँ हूँ हूँ हूँ। हूँ हूँ हूँ हूँ फट सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट।"

जप के बाद क्षमा प्रार्थना करें, अपनी इच्छा पूर्ण होने का अनुरोध करें। गुरु महाकाल,
भोग गुड़ या जलेबी को घर के बाहर कुत्ते के लिए रख दें,फिर इस बाकी सामान को उसी रात्रि या अगले दिन काले कपडे़ में बांधकर भैरव मंदिर में चढ़ा दें या फिर जल में प्रवाहित कर दें या सुनसान जगह पर छोड़ दें।

।।जय श्री महाकाल।।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

03 Jan, 03:21


हनुमान सर्व रक्षा-शाबर मन्त्र

*“ॐ गर्जन्तां घोरन्तां, इतनी छिन कहाँ लगाई ? साँझ क वेला, लौंग-सुपारी-पान-फूल-इलायची-धूप-दीप-रोट॒लँगोट-फल-फलाहार मो पै माँगै। अञ्जनी-पुत्र ‌प्रताप-रक्षा-कारण वेगि चलो। लोहे की गदा कील, चं चं गटका चक कील, बावन भैरो कील, मरी कील, मसान कील, प्रेत-ब्रह्म-राक्षस कील, दानव कील, नाग कील, साढ़ बारह ताप कील, तिजारी कील, छल कील, छिद कील, डाकनी कील, साकनी कील, दुष्ट कील, मुष्ट कील, तन कील, काल-भैरो कील, मन्त्र कील, कामरु देश के दोनों दरवाजा कील, बावन वीर कील, चौंसठ जोगिनी कील, मारते क हाथ कील, देखते क नयन कील, बोलते क जिह्वा कील, स्वर्ग कील, पाताल कील, पृथ्वी कील, तारा कील, कील बे कील, नहीं तो अञ्जनी माई की दोहाई फिरती रहे। जो करै वज्र की घात, उलटे वज्र उसी पै परै। छात फार के मरै। ॐ खं-खं-खं जं-जं-जं वं-वं-वं रं-रं-रं लं-लं-लं टं-टं-टं मं-मं-मं। महा रुद्राय नमः। अञ्जनी-पुत्राय नमः। हनुमताय नमः। वायु-पुत्राय नमः। राम-दूताय नमः।”*

विधिः-
अत्यन्त लाभ-दायक अनुभूत मन्त्र है। १००० पाठ करने से सिद्ध होता है।
अधिक कष्ट हो, तो हनुमानजी का फोटो टाँगकर, ध्यान लगाकर लाल फूल और गुग्गूल की आहुति दें।सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे।
लाल लँगोट, फल, मिठाई, ५ लौंग, ५ इलायची, १ सुपारी चढ़ा कर पाठ करें।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

22 Dec, 17:30


108 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्नोऽन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
109 बगलामुखी ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
110 बटुकभैरव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे आपदुद्धारणाय धीमहि तन्नो बटुकः प्रचोदयात् ॥
111 भैरवी ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
112 भुवनेश्वरी ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
113 ब्रह्मा ॐ पद्मोद्भवाय विद्महे देववक्त्राय धीमहि तन्नः स्रष्टा प्रचोदयात्॥
114 ॐ वेदात्मने च विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
115 ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
116 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
117 छिन्नमस्ता ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
118 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात्॥
119 देवी ॐ देव्यैब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
120 धूमावती ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात्॥
121 दुर्गा ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥
122 ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
123 गणेश ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥
124 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
125 गरुड ॐ वैनतेयाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
126 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपर्णाय (सुवर्णपक्षाय) धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
127 गौरी ॐ गणाम्बिकायै विद्महे कर्मसिद्ध्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
128 ॐ सुभगायै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
129 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥
130 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
131 हनुमत् ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
132 ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
133 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
134 इन्द्र, शक्र ॐ देवराजाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नः शक्रः प्रचोदयात्॥
135 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥
136 जल ॐ ह्रीं जलबिम्बाय विद्महे मीनपुरुषाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
137 ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नस्त्वम्बु प्रचोदयात् ॥
138 जानकी ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात्॥
139 जयदुर्गा ॐ नारायण्यै विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
140 काली ॐ कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नोऽघोरा प्रचोदयात् ॥
141 काम ॐ मनोभवाय विद्महे कन्दर्पाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात्॥
142 ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात् ॥
143 ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात् ॥
144ॐ दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
145ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्ण: प्रचोदयात्:।

@Sanatan 3/3

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

22 Dec, 17:30


55 मारुती ॐ मरुत्पुत्राय विद्महे आञ्जनेयाय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात् ॥
56 दुर्गा ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
57 ॐ महाशूलिन्यै विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
58 ॐ गिरिजायै च विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
59 शक्ति ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात् ॥
60 काली ॐ कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै च धीमहि तन्न अघोरा प्रचोदयात् ॥
61 ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि तन्नः कालीः प्रचोदयात् ॥
62 देवी ॐ महाशूलिन्यै च विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
63 ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराज्ञै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
64 गौरी ॐ सुभगायै च विद्महे काममालिन्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
65 लक्ष्मी ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीश्च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
66 ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
67 सरस्वती ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात् ॥
68 सीता ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै च धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥
69 राधा ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् ॥
70 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्न अन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
71 तुलसी ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि तन्नो बृन्दः प्रचोदयात् ॥
72 महादेव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
73 रुद्र ॐ पुरुषस्य विद्महे सहस्राक्षस्य धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
74 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
75 शङ्कर ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि तन्नः साम्बः प्रचोदयात् ॥
76 नन्दिकेश्वर ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नन्दिकेश्वराय धीमहि तन्नो वृषभः प्रचोदयात् ॥
77 गणेश ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
78 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
79 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
80 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
81 ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
82 षण्मुख ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः स्कन्दः प्रचोदयात्॥
83 ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षष्ठः प्रचोदयात् ॥
84 सुब्रह्मण्य ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षण्मुखः प्रचोदयात् ॥
85 ॐ ॐ ॐकाराय विद्महे डमरुजातस्य धीमहि! तन्नः प्रणवः प्रचोदयात् ॥
86 अजपा ॐ हंस हंसाय विद्महे सोऽहं हंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
87 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥
88 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्मणे धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
89 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
90 अग्नि ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥
91 ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥
92 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ॥
93 यम ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात् ॥
94 वरुण ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात् ॥
95 वैश्वानर ॐ पावकाय विद्महे सप्तजिह्वाय धीमहि तन्नो वैश्वानरः प्रचोदयात् ॥
96 मन्मथ ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पवनाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात् ॥
97 हंस ॐ हंस हंसाय विद्महे परमहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
98 ॐ परमहंसाय विद्महे महत्तत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
99 नन्दी ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नन्दिः प्रचोदयात् ॥
100 गरुड ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
101 सर्प ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नः सर्पः प्रचोदयात् ॥
102 पाञ्चजन्य ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शङ्खः प्रचोदयात् ॥
103 सुदर्शन ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्नश्चक्रः प्रचोदयात् ॥
104 अग्नि ॐ रुद्रनेत्राय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो वह्निः प्रचोदयात् ॥
105 ॐ वैश्वानराय विद्महे लाललीलाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥
106 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमथनाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥

107 आकाश ॐ आकाशाय च विद्महे नभोदेवाय धीमहि तन्नो गगनं प्रचोदयात् ॥

@Sanatan 2/3

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

22 Dec, 17:30


*145 देवो के गायत्री मंत्र*

1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥
3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
5 ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि तन्न आदित्यः प्रचोदयात् ॥
6 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
7 ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
8 ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
9 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
10 ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
11 ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥
12 अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
13 ॐ अङ्गारकाय विद्महे भूमिपालाय धीमहि तन्नः कुजः प्रचोदयात् ॥
14 ॐ चित्रिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
15 ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
16 बुध ॐ गजध्वजाय विद्महे सुखहस्ताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
17 ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुधः
प्रचोदयात् ॥
18 ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
19 गुरु ॐ वृषभध्वजाय विद्महे क्रुनिहस्ताय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
20 ॐ सुराचार्याय विद्महे सुरश्रेष्ठाय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
21 शुक्र ॐ अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
22 ॐ रजदाभाय विद्महे भृगुसुताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
23 ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
24 शनीश्वर, शनैश्चर, शनी ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥
25 ॐ शनैश्चराय विद्महे सूर्यपुत्राय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥
26 ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः सौरिः प्रचोदयात् ॥
27 राहु ॐ नाकध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
28 ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
29 केतु ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
30 ॐ चित्रवर्णाय विद्महे सर्परूपाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
31 ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
32 पृथ्वी ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्रमर्त्यै च धीमहि तन्नः पृथ्वी प्रचोदयात् ॥
33 ब्रह्मा ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
34 ॐ वेदात्मनाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
35 ॐ चतुर्मुखाय विद्महे कमण्डलुधराय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
36 ॐ परमेश्वराय विद्महे परमतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
37 विष्णु ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
38 नारायण ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
39 वेङ्कटेश्वर ॐ निरञ्जनाय विद्महे निरपाशाय धीमहि तन्नः श्रीनिवासः प्रचोदयात् ॥
40 राम ॐ रघुवंश्याय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
41 ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
42 ॐ भरताग्रजाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
43 ॐ भरताग्रजाय विद्महे रघुनन्दनाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
44 कृष्ण ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
45 ॐ दामोदराय विद्महे रुक्मिणीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
46 ॐ गोविन्दाय विद्महे गोपीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ।
47 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥
48 पाण्डुरङ्ग ॐ भक्तवरदाय विद्महे पाण्डुरङ्गाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
49 नृसिंह ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि तन्नो नारसिꣳहः प्रचोदयात् ॥
50 ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नः सिंहः प्रचोदयात् ॥
51 परशुराम ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नः परशुरामः प्रचोदयात् ॥
52 इन्द्र ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥
53 हनुमान ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात्

54 ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् ॥

@Sanatan 1/3

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

18 Dec, 21:24


मंगलवार को हनुमानजी का दिन होता है। जिसे हनुमान जी का आशीर्वाद मिल गया तो समझो उसके सारे काम हो गए। मंगलवार को करें यह टोटके/उपाय, बन जाएगा बिगड़ा काम।

मंगलवार के टोटके/उपाय

1. आप मंगलवार के दिन राम मंदिर में जाएं और दाहिने हाथ के अंगुठे से हनुमान जी के सिर से सिंदूर लेकर सीता माता श्री चरणों में लगा दें इससे आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगा।

2. मंगल के दिन सुबह के दिन एक धागे में चार मिर्चें नीचे डालकर उसके ऊपर नींबू डालें और फिर उसके ऊपर तीन मिर्चें और लगाए। इसके बद इसे घर और व्यवसाय के दरवाजे पर लटका दें। इससे नकारात्मकता खत्म हो जाएगी और सकारात्मकता का संचार होगा।

3. मंगलवार के दिन पीपल के 11 पत्ते लेकर साफ जल से धो लें। इन पत्तों पर चंदन या कुमकुम से प्रभु श्रीराम का नाम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मंदिर में जाकर इन पत्तों को अर्पित कर दें। इससे जीवन के दुख कम होंगे।

4. प्रत्येक मंगलवार को नजदीकी मंदिर में जाकर हनुमान जी को बनारसी पान अर्पित करें। ऐसा करने से आपके जीवन में हमेशा हनुमान जी की कृपा बनी रहेगी और आपके सभी काम बनते रहेंगे।

5. मंगलवार को सुबह लाल गाय को रोटी देना शुभ है।

6. मंगलवार को हनुमान मंदिर या गणेश मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।

7. मिटटी के बर्तन में हनुमान जी को बूंदी का भोग लगाये , फिर गरीबो को दान कर दे

8. मंगलवार को हनुमान मंदिर में तुलसी का पत्ता चढ़ाए

9. राम लिखी लाल रंग की ध्वजा मंगलवार को हनुमान जी को चढ़ाए

10. मंगलवार के दिन लाल चंदन,लाल गुलाब के फूल तथा रोली को लाल कपड़े में बांधकर एक सप्ताह के लिए मंदिर में रख दें. एक सप्ताह के बाद उनको घर की तथा दुकान की तिजोरि में रख दें

11. प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम के समय पिला दें

12. सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय ! गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए ! गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय

13. लगातार आठ मंगलवार हनुमान जी के मंदिर एक नारियल ले कर जाये उसके सिंदूर से स्वस्तिक बनाये हनुमान जी को अर्पित कर वहां बैठ कर ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करे

14. मंगलवार के दिन एक साबुत पानी वाला नारियल लेकर उसे बीमार व्यक्ति के सिर पर से 21 बार उसार कर किसी मंदिर की आग में डाल दें। साथ ही हनुमानजी की प्रतिमा को चोला चढ़ाकर हनुमानचालिसा पढ़े।

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

17 Dec, 09:29


Mudra

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

17 Dec, 09:29


Mudra

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

24 Nov, 15:35


सूर्य उपासना से हमें क्या-क्या लाभ होते हैं
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1) भगवान सूर्य की उपासना से दाद फोड़ा कुष्ठ हैजा प्रभृत्ति रोग नष्ट हो जाते हैं
( वही -75/88)

2) भगवान सूर्य का उपासक कठिन से कठिन रोगों से मुक्ति पाकर अनेकों वर्ष की लंबी आयु प्राप्त करता है
( वही -75/88)

3) भगवान सूर्य की उपासना मात्र से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है

( पद्म पुराण सृष्टि खंड अध्याय नंबर 79 श्लोक नंबर 17)

4) जो भी भक्ति पूर्वक भगवान सूर्य की पूजा करता है वह निरोग होता ही है।

( स्कंद पुराण भाग 2 काशी खंड महत्यम अध्याय नंबर 3 श्लोक नंबर 15)

5) सूर्य देव उदय होने पर रोगो का अपहरण कर लेते हैं
( शुक्ल यजुर्वेद 33/36)

6) शरीर के सभी रोग भगवान सूर्य की रश्मियों के द्वारा नष्ट हो जाते हैं
( अथर्ववेद)
7) अगर शरीर में तेज की कामना हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए
( श्रीमद्भागवत महापुराण)

8) अगर सुख की कामना हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए
( स्कंद पुराण)
9) अगर शत्रु को पराजय करना हो शत्रु विजय प्राप्त करनी हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए।
( वाल्मीकि रामायण)
10) अगर आरोग्य की कामना हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए
( मत्स्य महापुराण 67/61)

11) भगवान सूर्य की उपासना करने पर वह शरीर को निरोग तो बनते ही बनाते हैं साथ में दृढ़ भी कर देते हैं
( स्कंद पुराण)

12) भगवान भास्कर जिस पर प्रसन्न हो जाते हैं उसे निः संदेह धन और यश भी प्रदान करते हैं।
( पद्म पुराण)

13) सूर्य की जो लालिमा युक्त किरणे होती है इसका सेवन करने से शरीर का पीलापन और हृदय रोग नष्ट होते हैं
( अथर्ववेद)

14) भगवान सूर्य की लालिमा युक्त किरणो का सेवन करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है
( अथर्ववेद)

15) सूर्य की विधिवत उपासना करने पर नेत्र रोग नष्ट हो जाते हैं
( चाक्षुषोपनिषद्)

16) भगवान सूर्य की उपासना करने पर प्राण शक्ति प्रबल होती है
( यजुर्वेद)

17) ज्योति युक्त चीजों में मैं सूर्य हूं।
( गीता)
18) सूर्य में जो तेज है उसे तू मेरा ही तेज जान
( गीता)
19) विराट स्वरूप में मै सूर्य को आपका नेत्र देख रहा हूं
( गीता)
20) शिव जी की आठ मूर्तियों में से एक मूर्ति सूर्य है
( शिव महापुराण)

21) भगवान सूर्य की विधिवत आराधना करने से बुरे सपनों का नाश हो जाता है
( सामवेद)

22) भगवान सूर्य की उपासना करने से घर में कभी अन्न जल की कमी नहीं रहती है
( यजुर्वेद)

23) भगवान सूर्य सभी प्राणियों के जीवन है
( ब्रह्म पुराण)

24) सूर्य अपने उपासक को दीर्घायु आरोग्य ऐश्वर्या धन पशु मित्र पुत्र स्त्री विविध प्रकार की उन्नति के क्षेत्र आठ प्रकार के भोग स्वर्ग और सब कुछ प्रदान कर देते हैं
( स्कंद पुराण)

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

19 Nov, 22:24


गंगा स्नान करने की शास्त्रीय विधि

1) जहां से गंगा जी का जल दिखने लगे वहां से पादुकाओं का त्याग करके पैदल ही चलना चाहिए।
2) गंगा जी के समीप जाकर के सबसे पहले उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर यह प्रार्थना करना चाहिए-:
मां आज मेरा जन्म सफल हो गया मेरा पृथ्वी पर जिना सफल हो गया जो मुझे आज साक्षात् ब्रह्म स्वरूपिणी आपका दर्शन हुआ और मैं इन आंखों से आपको देख पाया। देवी आपके दर्शन के प्रभाव से मेरे अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाए ऐसी कृपा करें।
ऐसा बोलकर गंगा जी को दंडवत करें और गंगा जी की मिट्टी अपने माथे से लगाए

3) इसके बाद गंगा जी से प्रार्थना करें कि मां आपका जल बहुत पवित्र है देवताओं के लिए भी दुर्लभ है मैं आपके इस पवित्र दिव्य जल को पैरों से स्पर्श कर रहा हूं इसके लिए मुझे क्षमा करें और मुझ पर प्रसन्न होंईए अपना वात्सल्य मुझ पर रखिए।

4) इतना बोलने के पश्चात गंगा जी का नाम लेते हुए गंगा जी के जल को शिरोधार्य करके फिर उसमे डुबकी लगाई

5) डुबकी लगाने के पश्चात अपने कपड़े इतनी दूर निचोड़ की उसका जल गंगा जी में वापस न जाए। उसके बाद अपने शरीर पर गंगा जी की मिट्टी का तिलक करें और वस्त्र आदि पहनकर संध्या वंदन गायत्री जप आदि करें

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

17 Nov, 03:07


सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार जन्मदिन मनाने की प्रामाणिक और शास्त्रीय विधि क्या हैं चलिए जानते हैं-:

( यह सभी निर्देश तिथि के अनुसार है परंतु आज के समय में दिनांक से जन्मदिन मनाने का प्रचलन है तो यह नियम दोनों ही दिन निभाए जा सकते हैं)

जन्मदिन मनाने के विषय में निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ में पेज नंबर 531 में निम्नलिखित निर्देश प्राप्त होते है -:
1) व्यक्ति को अपने जन्मदिन के दिन नए वस्त्र धारण करने चाहिए
( नवाम्बरधरो भूत्वा )
2) अपने जन्मदिन के दिन व्यक्ति को आठ चिरंजीवियों की पूजा करनी चाहिए
( पूजयेच्च चिरायुषम्)

3) अपने जन्मदिन के दिन दही और चावल का षष्ठी देवी को भोग अवश्य लगाना चाहिए।

4) अपने जन्मदिन के दिन माता-पिता और गुरुजनों का पूजन करके प्रतिवर्ष महोत्सव (Celebration)करना चाहिए

5)हाथ में मोली बांधना चाहिए।

6) अपने जन्मदिन के दिन एक अंजलि में दूध लेकर उसमें थोड़ा सा गुड और थोड़ी सी तिल्ली डालकर उस दूध को पीना चाहिए और दूध पीते समय यह बोलना चाहिए-:
हे भगवान आप मुझ पर प्रसन्न होइए और मुझे आरोग्यता और आयु प्रदान कीजिए हे अष्ट चिरंजीवीयो आप मुझ पर कृपा किजीएऔर मुझे आयुष्य का वर दीजिए यही कामना रखकर मैं इस दूध का पान कर रहा हूं।
आप सभी मेरे पर कृपा करें।
7) अपने जन्मदिन के दिन ठंडे जल से ही स्नान करना चाहिए गर्म जल को प्रयत्नतः त्याग देना चाहिए।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

16 Nov, 01:40


सभी पापों से छुड़ाने वाले गंगा जी के द्वादश (बारह ) नाम कौन कौन से हैं ?

उत्तर :---
स्नान के समय निम्नलिखित श्लोक का जहाँ भी स्मरण किया जाय गंगा जी वहाँ के जल में प्रवेश कर जाती हैं। इसमें गंगा जी के द्वादश (बारह) नाम हैं जो सभी पापों को हरने वाले हैं। इसे गंगा जी ने स्वयं अपने मुख से कहा है :---

नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गङ्गा त्रिपथगामिनी ।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी ।
द्वादशैतानि नामानि यत्र तत्र जलाशये ।
स्नानोद्यतः स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम् ।।


नन्दिनी, नलिनी, सीता, मालती, महापगा, विष्णुपादा, गङ्गा, त्रिपथगामिनी, भागीरथी, भोगवती, जाह्नवी और त्रिदशेश्वरी ।
वैसे तो गंगा जी के 108 नाम हैं पर ये द्वादश नाम मुख्य नाम हैं।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

14 Nov, 05:50


(रिप्लाइ की हुई पोस्ट का उत्तर...)

(C) दोनों समान रूप से शक्तिशाली हैं

• स्पष्टीकरण :

यह प्रश्न सनातन धर्म की एक महत्वपूर्ण अवधारणा को उजागर करता है - दोनों शिव और विष्णु शक्तिशाली हैं, लेकिन उन्हें एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं माना जाता। शिव और विष्णु दोनों ही ब्रह्मांड के महत्वपूर्ण देवता हैं, और उनकी शक्तियाँ अलग-अलग रूपों में प्रकट होती हैं।

🕉️ शिव : संहार के देवता, उनकी शक्ति विनाशकारी और रूपांतकारी है। वे ब्रह्मांड को नष्ट करने और नवीनीकृत करने में सक्षम हैं।

🕉️ विष्णु : पालन के देवता, उनकी शक्ति संरक्षण और रक्षा करने वाली है। वे ब्रह्मांड को बनाए रखने और रक्षा करने में सक्षम हैं।

यह कहना कि कौन "बड़ा" या "मजबूत" है, सनातन धर्म की अवधारणा के विपरीत है। दोनों देवता अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वोच्च शक्तिशाली हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि सनातन धर्म में शक्ति को केवल भौतिक बल के रूप में नहीं देखा जाता। शिव की विनाशकारी शक्ति और विष्णु की पालन शक्ति दोनों ही ब्रह्मांड के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

🕉️ ॐ नमः शिवाय 🙏
🕉️ ॐ नमो नारायणाय 🙏

🕉️ ॐ हरिहराय नमः 🙏

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

14 Nov, 02:38


दामोदर मास कार्तिक
पढे़ समझे व करे
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वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू कैलेंडर में एक पवित्र दिन है जो कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाया जाता है । कार्तिक माह के दौरान शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है क्योंकि दोनों देवताओं की पूजा एक ही दिन की जाती है। अन्यथा, ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है।

वाराणसी के अधिकांश मंदिर वैकुंठ चतुर्दशी मनाते हैं और यह देव दिवाली के एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान से एक दिन पहले आता है । वाराणसी के अलावा, वैकुंठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में भी मनाई जाती है।

शिव पुराण के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा करने वाराणसी गए थे। भगवान विष्णु ने एक हजार कमल के साथ भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया। कमल के फूल चढ़ाते समय, भगवान विष्णु ने पाया कि हजारवां कमल गायब था। अपनी पूजा को पूरा करने और पूरा करने के लिए भगवान विष्णु, जिनकी आंखों की तुलना कमल से की जाती है, ने अपनी एक आंख को तोड़ दिया और लापता हजारवें कमल के फूल के स्थान पर भगवान शिव को अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु की इस भक्ति ने भगवान शिव को इतना प्रसन्न किया कि उन्होंने न केवल भगवान विष्णु की फटी हुई आंख को बहाल किया, बल्कि उन्होंने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र का उपहार भी दिया, जो भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली और पवित्र हथियारों में से एक बन गया।

वैकुंठ चतुर्दशी पर, निशिता के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जो दिन के हिंदू विभाजन के अनुसार मध्यरात्रि है। भक्त भगवान विष्णु के हजार नामों, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल चढ़ाते हैं।

यद्यपि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है, भक्त दिन के दो अलग-अलग समय पर पूजा करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त निशिता को पसंद करते हैं जो हिंदू मध्यरात्रि है जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदय को पसंद करते हैं जो पूजा के लिए हिंदू भोर है। शिव भक्तों के लिए, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदय के दौरान सुबह का स्नान बहुत महत्वपूर्ण है और इस पवित्र डुबकी को कार्तिक चतुर्दशी पर मणिकर्णिका स्नान के रूप में जाना जाता है।

यह एकमात्र दिन है जब भगवान विष्णु को वाराणसी के एक प्रमुख भगवान शिव मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में विशेष सम्मान दिया जाता है । ऐसा माना जाता है कि विश्वनाथ मंदिर उसी दिन वैकुंठ के समान पवित्र हो जाता है। दोनों देवताओं की पूजा इस तरह की जाती है जैसे वे एक-दूसरे की पूजा कर रहे हों। भगवान विष्णु शिव को तुलसी के पत्ते चढ़ाते हैं और भगवान शिव बदले में भगवान विष्णु को बेल के पत्ते चढ़ाते हैं।

@Sanatan

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

12 Nov, 06:08


(पूर्व पोस्ट का उत्तर...)

सनातन धर्म में, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कौन माने जाते हैं?

• दिव्य धनुर्धर : शिव
- धनुष "पिन्नाक" पर उनकी महारत बेजोड़ है, जो परम दिव्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वह सृजन और विनाश की शक्ति रखता है।

• धर्म नायक : राम
- उनका कौशल उनके धार्मिक चरित्र और धर्म के प्रति उनके पालन से जुड़ा हुआ है। वह आदर्श नायक है जो अपने धनुष का उपयोग भलाई और न्याय के लिए करता है।

• रणनीतिकार और कुशल रणनीतिज्ञ : अर्जुन
- तीरंदाजी में उनकी विशेषज्ञता असाधारण है, और वह विभिन्न तीरों और दिव्य हथियारों की महारत के लिए जाने जाते हैं। उनका कौशल वर्षों के अभ्यास और समर्पण का प्रतिनिधित्व करता है।

• जिसने अधर्म का साथ दिया : कर्ण
- उसकी प्रतिभा अपार है, लेकिन उसका दुखद भाग्य और संघर्ष उसे एक दिलचस्प मामला बनाते हैं। वह एक शक्तिशाली तीरंदाज है लेकिन परिस्थितियों के कारण बाधित है।

• संभावित रूप से शतिशाली : बर्बरीक
- वह अपने तीन बाणों से किसी भी युद्ध का परिणाम तय कर सकता था। वह अप्रयुक्त क्षमता और केंद्रित कौशल की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

अंततः,"सबसे अच्छा" धनुर्धर कौन है, यह दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। प्रत्येक चरित्र सनातन धर्म में एक अनोखा स्थान रखता है, और उनके धनुर्विद्या कौशल मानव अनुभव के विभिन्न पहलुओं का प्रतीक हैं। यह एक खुला विचार-विमर्श है जो हमें नायकों और उनकी कहानियों के समृद्ध और विविध ताने-बाने की सराहना करने के लिए आमंत्रित करता है!

@Hindu

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

11 Nov, 10:02


अप्सरा (२)
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भगवती महाअप्सरा हैं और अप्सराओं का निर्माण करती हैं। अप्सरा साधना पूर्णिमा या फिर चंद्रकला की उपस्थिति में करनी चाहिए। अप्सराएं चंद्र मण्डल के माध्यम से ही चंद्र रश्मियों के द्वारा ही गमन करती हैं। ध्यान रहे चंद्रमा की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन के दौरान हुई है। ग्रह नक्षत्र मण्डलों में भगवान शनि के पास सबसे ज्यादा अप्सराएं हैं, 16 अप्सराओं का समूह शनि मण्डल में गमन करता है। ये अप्सराएं अगर शनि मण्डल में नहीं होती तो न जाने शनि महाराज कब के वृद्ध होकर परलोक सिधार गये होते। निरंतर कर्मशील भगवान सूर्य के रथ के आगे अप्सराएं चलती रहती हैं और सूर्य देव को प्रसन्नता प्रदान करती रहती हैं। अप्सरा साधना कभी भी उन्हें माता समझकर न करें, अप्सराएं संतान उत्पत्ति नहीं करती हैं, वे किसी बंधन में नहीं बंधती, वे किसी की पत्नी नहीं बनती अपितु वे एक अच्छी मित्र, अच्छी सहयोगी, अच्छी प्रेयसी के रूप में सब कुछ प्रदान करती हैं। स्त्री सौन्दर्य का विकास तभी सम्भव है जब उसके साथ किसी अप्सरा विशेष का गमन अवश्यम्भावी हो। रूप, लावण्य, ऐश्वर्य, नृत्य, मुस्कान, पवित्र हृदयता, छलकता हुआ यौवन बाजार में नहीं मिलता, औषधि की दुकान पर नहीं मिलता अपितु इसकी एकमात्र प्रदात्री हैं अप्सराएं।

@Sanatan

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

11 Nov, 10:01


अप्सरा
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श्रीविद्या साधना के अंतर्गत अप्सरा सिद्धि जातक को प्राप्त होती है। अप्सराएं दयालू प्रवृत्ति की अहिंसक शक्तिपुंज हैं। खगोल के माध्यम से ही सभी कुछ इस पृथ्वी पर आता है। समस्त संवेग खगोल अर्थात आकाश के माध्यम से ही मानव मस्तिष्क को उत्प्रेरित करते हैं, अप्सराएं वो जीवन शक्ति का प्रचण्ड माध्यम हैं जिनके द्वारा मस्तिष्क का पोषण होता है। ये मस्तिष्क के रस विज्ञान को परम संतुलित रखती हैं एवं उसे सदैव रसमयी बनाये रखती हैं। साधनाकाल में जातक खगोलीय मस्तिष्क एवं खगोलीय शरीर को प्राप्त कर लेता है, वह आकाश की अनंत ऊंचाईयों में विचरण करने लगता है। ऐसे खगोलीय मस्तिष्क अत्यधिक क्रियाशील हो जाते हैं उनमें नित नये विचार, चिंतन, सृजनात्मकता इत्यादि अपेक्षाकृत बढ़ जाती है। इन असामान्य परिस्थितियों में अप्सराएं ही जातक के खगोलीय मस्तिष्क का वास्तविक पोषण करने में सक्षम होती है।

हे सागर कन्याओं, हे सागर की पुत्रियों, हे लक्ष्मी की बहिनों, हे भगवान धन्वन्तरी की बहनों, हे रत्न प्रियाओं, हे अमृत-युक्ताओं तुम सबको मेरा बारम्बार नमस्कार है। अप्सराएं श्रीहरि की सालियाँ हैं, श्रीहरि की परम प्रियायें हैं क्योंकि वे सब भगवती लक्ष्मी की बहिनें हैं और सागर मंथन के समय लक्ष्मी जी से पहले उत्पन्न हुई हैं। भगवान धन्वन्तरी जो कि देवताओं को भी आरोग्य प्रदान करते हैं वे अप्सराओं के भाई हैं। समस्त रत्न अप्सराओं के साथ ही समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुए हैं अतः अप्सराओं में रत्नों सी चमक है। ये अप्सराएं कल्प- वृक्ष स्वरूपा हैं क्योंकि कल्पवृक्ष भी समुद्र मंथन में उत्पन्न हुआ है। कल्पवृक्ष का तात्पर्य है समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला वृक्ष।

समुद्र मंथन में जब कामधेनु उत्पन्न हुईं तो ऋषियों ने उन्हें ले लिया, कामधेनु के दुग्ध का पान करके ही ऋषि-मुनि अपने मस्तिष्क एवं शरीर का पोषण करते हैं अतः अप्सराएं भी दिव्य वृक्ष-स्थल की मल्लिकाएं हैं। तप से तपे हुए विश्वामित्र का मस्तिष्क मेनका रूपी अप्सरा के वक्ष स्थल पर ही स्थित होकर शीतल हुआ। जिस प्रकार इन्द्र का ऐरावत हाथी जो कि समुद्र मंथन के समय अप्सराओं के साथ उत्पन्न हुआ है द्रुत गति से ब्रह्माण्ड में कहीं भी विचरण कर सकता है ठीक उसी प्रकार अप्सरा भी द्रुत गति से समस्त लोकों में विचरण करने हेतु सक्षम हैं। अप्सराओं की उत्पत्ति के समय ही ब्रह्मा ने उन्हें समस्त लोकों में विचरण का अधिकार दिया, ब्रह्मा ने स्वयं अप्सराओं को परम स्वतंत्रता प्रदान की। समुद्र मंथन में जो-जो भी उत्पन्न हुआ उन सब पर वर्ग विशेष का अधिकार रहा परन्तु केवल अप्सराओं को वर्ग विशेष के अधिकार से मुक्त रखा गया उन्हें किसी भी प्रकार से बंधन-युक्त नहीं किया गया।

भगवती लक्ष्मी श्रीहरि धाम चली गईं परन्तु अप्सराएं आज भी सभी जगह विचरण करती हैं। समुद्र मंथन में अमृत भी प्रकट हुआ, समुद्र मंथन में मदिरा भी प्रकट हुई इसलिए अप्सराओं का सौन्दर्य मादक है, इसलिए अप्सराओं का सौन्दर्य अमृतमयी है। विश्व के सभी धर्मों ने एक स्वर में अप्सराओं की उपस्थिति का प्रमाणीकरण किया है। ईसाई धर्म में इन्हें ऐन्जल कहा गया, इस्लाम में इन्हें जन्नत की हूर कहा गया, बौद्ध धर्म में इन्हें देव-कन्या कहा गया, सनातन धर्म में इन्हें अप्सरा कहा गया इत्यादि-इत्यादि। कहीं पर भी इनके अस्तित्व को नकारा नहीं गया। समुद्र मंथन क्यों किया गया ? समुद्र मंथन का एकमात्र उद्देश्य था ब्रह्मा द्वारा सृजित सृष्टि की रुग्णता, शिथिलता, बोझिलता एवं लकवा-ग्रस्तता को दूर करना। सृष्टि की रचना एक बात है, सृष्टि चलाना एवं उसे क्रियाशील करना दूसरी बात है जिसमें ब्रह्मा जी सर्वथा असमर्थ सिद्ध हो रहे थे। जीवन प्राप्त करने से क्या होगा ? निराशा युक्त, लक्ष्यहीन, आनंदहीन, शक्तिहीन, बोझिल, ढला हुआ, वृद्धता की ओर अग्रसर होता हुआ जीवन किस काम का। इस स्थिति में तो जीवन की उत्पत्ति पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। ब्रह्मा जी की सृष्टि पर तो अनेकों प्रश्न चिन्ह लगे हुए हैं अतः भगवती त्रिपुर सुन्दरी एवं देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की अंतःप्रेरणा से समुद्र मंथन का प्रयोजन किया गया जिससे कि जीवन- दायिनी शक्तियों का, जीवन के प्रवाह को सुगम बनाने वाली शक्तियों का, जीवन को आनंददायी, मधुरतम एवं क्रियाशील करने वाली शक्तियों का उत्पादन किया जा सके।

कर्म के ताप को नियंत्रित किया जा सके और इसके साथ-साथ जीवन जीने के प्रति लालसा, उत्साह के भाव बने रहे इस हेतु अप्सराओं की उत्पत्ति की गई। शक्ति का एक विशेष रूप में अनुसंधान किया गया। जब-जब जीवन उत्साहहीन एवं निरर्थक होने लगता है तब-तब अप्सराएं उसमें पुनः प्राण फूंकती हैं।

(क्रमशः)

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

10 Nov, 03:34


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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

04 Nov, 07:07


🙏 यक्ष व यक्षिणी

💫यक्षिणी (या यक्षी ; पालि: यक्खिनी या यक्खी ) हिंदू, बौद्ध और जैन धार्मिक पुराणों में वर्णित एक वर्ग है जो देवों (देवताओं), असुरों (राक्षसों), और गन्धर्वों या अप्सराओं से अलग हैं। यक्षिणी और यक्ष, भारत के सदियों पुराने पवित्र पेड़ों से जुड़े कई अपसामान्य प्राणियों में से एक हैं।

यक्ष-यक्षिणी का वर्णन, अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। इन्हें भगवान शिव के, सेवक माना जाता है। इनके राजा यक्षराज कुबेर हैं, जो धन के स्वामी हैं। ये कुबेर रावण के भाई भी हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यक्ष-यक्षिणीयों के पास रहस्यमयी ताकत होती है।

मनोकांमना पूर्ति हेतु यक्ष - यक्षिणी पूजा ----

तंत्र शास्त्र के अनुसार, इस ब्रह्मांड में , कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी-देवता हैं। पृथ्वी से , इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है कि, नजदीक लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं। क्योंकि, लगातार ठीक दिशा और समय पर, किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर, उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण है कि, यक्ष-यक्षिणी की साधना जल्दी पूरी होती है । क्योंकि, इनके लोक पृथ्वी से पास माने गए हैं।

यक्ष एक दैवी प्रजाति है, इनका स्वामी शिव का भक्त कुबेर है । शिव, कुबेर की भक्ति से, इतने प्रसन्न हो गए कि, उसे देवताओं का खजांची अथवा कोषाध्यक्ष बना दिया। ये सबसे धनवान देवता हैं और अपने कैलास के बगल में , उनको रहने का स्थान ( लोक ) दिया , यक्षों के राजा कुबेर हैं , और उनके लोक का नाम ' अलकापूरी ' है । यक्ष लोग देवताओं जैसे होते है।

योगिनी, किन्नरी, अप्सरा आदि की तरह ही यक्षिणियां भी, मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति करती हैं। साधारणतया, 36 यक्षिणियां हैं तथा उनके वर देने के प्रकार अलग-अलग हैं। माता, बहन या पत्नी के रूप में , उनका वरण किया जाता है। उनकी साधना के पहले तैयारी की जाती है, जो अधिक कठिन है, बजाय साधना के।

रहस्यमयी शक्तियों के स्वामी होते हैं यक्ष-यक्षिणी, इनकी पूजा से पूरी हो सकती है , हर मनोकामनाएं !

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

04 Nov, 07:07


यक्षिणी

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

03 Nov, 09:34


।। श्रीगोवर्धनाष्टकम् ।।

कृष्णप्रसादेन समस्तशैल
साम्राज्यमाप्नोति च वैरिणोऽपि ।
शक्रस्य यः प्राप बलिं स साक्षा-
द्गोवर्धनो मे दिशतामभीष्टम् ॥ १॥
स्वप्रेष्ठहस्ताम्बुजसौकुमार्य
सुखानुभूतेरतिभूमि वृत्तेः ।
महेन्द्रवज्राहतिमप्यजानन्
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ २॥
यत्रैव कृष्णो वृषभानुपुत्र्या
दानं गृहीतुं कलहं वितेने ।
श्रुतेः स्पृहा यत्र महत्यतः श्री
गोवर्धनो मे दिषतामभिष्टम् ॥ ३॥
स्नात्वा सरः स्वशु समीर हस्ती
यत्रैव नीपादिपराग धूलिः ।
आलोलयन् खेलति चारु स श्री
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ४॥
कस्तूरिकाभिः शयितं किमत्रे-
त्यूहं प्रभोः स्वस्य मुहुर्वितन्वन् ।
नैसर्गिकस्वीयशिलासुगन्धै-
र्गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ५॥
वंशप्रतिध्वन्यनुसारवर्त्म
दिदृक्षवो यत्र हरिं हरिण्याः ।
यान्त्यो लभन्ते न हि विस्मिताः स
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ६॥
यत्रैव गङ्गामनु नावि राधां
आरोह्य मध्ये तु निमग्ननौकः ।
कृष्णो हि राधानुगलो बभौ स
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ७॥
विना भवेत्किं हरिदासवर्य
पदाश्रयं भक्तिरतः श्रयामि ।
यमेव सप्रेम निजेशयोः श्री
गोवर्धनो मे दिषतामभीष्टम् ॥ ८॥
एतत्पठेद्यो हरिदासवर्य
महानुभावाष्टकमार्द्रचेताः ।
श्रीराधिकामाधवयोः पदाब्ज
दास्यं स विन्देदचिरेण साक्षात् ॥ ९॥
इति महामहोपाध्याय श्रीविश्वनाथचक्रवर्ति विरचितं श्रीगोवर्धनाष्टकं सम्पूर्णं ।।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

02 Nov, 08:12


गांठ बांध लीजिए...

🕉️ कन्याओं का विवाह 21 से 25 वे वर्ष तक, और लड़कों का विवाह 25 से 29वें वर्ष की आयु तक हर स्थिति में हो जाना चाहिए !

🕉️ फ्लैट न लेकर जमीन खरीदो, और उस पर अपना घर बनाओ! वरना आपकी संतानों का भविष्य पिंजरे के पंछी की तरह हो जाएगा

🕉️ नयी युवा पीढ़ी को कम से कम तीन संतानों को जन्म देने के लिए प्रेरित करें !

🕉️ गांव से नाता जोड़ कर रखें ! और गांव की पैतृक सम्पत्ति, और वहां के लोगों से नाता, जोड़कर रखें !

🕉️ अपनी संतानों को अपने धर्म की शिक्षा अवश्य दें, और उनके मानसिक व शारीरिक विकास पर अवश्य ध्यान दें !

🕉️ किसी भी और आतंकवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति से सामान लेने-देने, व्यवहार करने से यथासंभव बचें !

🕉️ घर में बागवानी करने की आदत डालें,(और यदि पर्याप्त जगह है,तो देशी गाय पालें।

🕉️ होली, दीपावली,विजयादशमी, नवरात्रि, मकर संक्रांति, जन्माष्टमी, राम नवमी, आदि जितने भी त्यौहार आयें, उन्हें आफिस/कार्य से छुट्टी लेकर सपरिवार मनाये ।

🕉️ प्रात: काल 5-5:30 बजे उठ जाएं, और रात्रि को 10 बजे तक सोने का नियम बनाएं ! सोने से पहले आधा गिलास पानी अवश्य पिये (हार्ट अटैक की संभावना घटती है)

🕉️ यदि आपकी कोई एक संतान पढ़ाई में असक्षम है, तो उसको कोई भी हुनर (Skill) वाला ज्ञान जरूर दें !

🕉️ आपकी प्रत्येक संतान को कम से कम तीन फोन नंबर स्मरण होने चाहिए, और आपको भी!

🕉️ जब भी परिवार व समाज के किसी कार्यक्रम में जाएं, तो अपनी संतानों को भी ले जाएं ! इससे उनका मानसिक विकास सशक्त होगा !

🕉️ परिवार के साथ मिल बैठकर भोजन करने का प्रयास करें, और भोजन करते समय मोबाइल फोन और टीवी बंद कर लें !

🕉️ अपनी संतानों को बालीवुड की कचरा फिल्मों से बचाएं, और प्रेरणादायक फिल्में दिखाएं !

🕉️ जंक फूड और फास्ट फूड से बचें !
🕉️ सांयकाल के समय कम से कम 10 मिनट भक्ति संगीत सुने, बजाएं !

🕉️ दिखावे के चक्कर में पड़कर, व्यर्थ का खर्चा न करें !

🕉️ दो किलोमीटर तक जाना हो, तो पैदल जाएं, या साईकिल का प्रयोग करें !

🕉️ अपनी संतानों के मन में किसी भी प्रकार के नशे (गुटखा, तंबाखू, बीड़ी, सिगरेट, दारू, मांसाहार...) के विरुद्ध चेतना उत्पन्न करें,तथा उसे विकसित करें !

🕉️ सदैव सात्विक भोजन ग्रहण करें, अपने भोजन का ईश्वर को भोग लगा कर प्रसाद ग्रहण करें ! !

🕉️ अपने आंगन में तुलसी का पौधा अवश्य लगायें, व नित्य प्रति दिन पूजा, दीपदान अवश्य करें !

🕉️ अपने घर पर एक हथियार अवश्य रखें, ओर उसे चलाने का निरन्तर हवा में अकेले प्रयास करते रहें, ताकि विपत्ति के समय प्रयोग कर सकें ! जैसे-लाठी,हॉकी,गुप्ती, तलवार,भाला,त्रिशूल व बंदूक/पिस्तौल लाइसेंस के साथ !

🕉️ घर में पुत्र का जन्म हो या कन्या का, खुशी बराबरी से मनाएँ ! दोनों जरूरी है ! अगर बेटियाँ नहीं होगी तो परिवार व समाज को आगे बढाने वाली बहुएँ कहाँ से आएगी और बेटे नहीं होंगे तो परिवार समाज व देश की रक्षा कौन करेगा !

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31 Oct, 02:58


विशेष सूचना

भारत के लगभग समस्त प्रान्तों में दीपावली कल गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही मनाई जाएगी।

आर्षपक्ष में शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों द्वारा यही निर्णीत है। सूर्यसिद्धान्तीय गणितपद्धति का अनुगमन करने वाले काशी के हृषीकेश पञ्चाङ्ग, विश्व पञ्चाङ्ग; बिहार के विद्यापति पञ्चाङ्ग और विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग; राजस्थान के श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग; महाराष्ट्र के देशपाण्डे पञ्चाङ्ग; दक्षिण भारत के शृङ्गेरीपीठसे प्रकाशित पञ्चाङ्ग, मध्वमठ से प्रकाशित पञ्चाङ्ग; श्रीकाशीविद्वत्परिषद्; अखिलभारतीयविद्वत्परिषद्; केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालय इत्यादि सभी ने एक स्वरमें कल- गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही दीपावली एवं प्रदोषकालमें लक्ष्मीपूजन का निर्णय किया है।

स्मरण रहे, शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों के अतिरिक्त, दो बहुश्रुत दृग्गणितीय पद्धति का अनुगमन करने वाले पञ्चाङ्ग १) जगन्नाथ पञ्चाङ्ग एवं २) सम्पूर्णानन्दसंस्कृतविश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित उत्तरप्रदेशशासनद्वारा संरक्षित श्रीबापूदेशास्त्रीद्वारा प्रवर्तित पञ्चाङ्ग में भी दीपावली कल गुरुवार ३१/१०/२०२४ को ही लिखी है।

आर्ष सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष श्रीवेदव्यास, श्रीविद्यारण्यस्वामि आदि पूर्वाचार्यों द्वारा मान्य है। धर्मसम्राट् स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज, पुरीपीठ के १४४वें पीठाधीश्वर पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज, वर्तमान शृङ्गेरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीभारतीतीर्थ जी महाराज एवं शृङ्गेरीपीठकी विद्वत् मण्डली एवं वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज एवं उनकी सच्छिष्यमण्डली द्वारा सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष ही मान्य है।

सुतरां- शास्त्रीयपक्ष के अनुसार दीपावली कल (गुरुवार तदनुसार ३१/१०/२०२४ को) ही है।

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

20 Oct, 02:08


देवयान पथ के संदर्भ में श्री आदि शंकराचार्य जी ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि 'जो सगुण ब्रह्म की उपासना करते हैं वे ही सगुण ब्रह्म को प्राप्त होते हैं और जो निर्गुण ब्रह्म की उपासना कर ब्रह्मविद्या प्राप्त करते हैं वे लोग देवयान पथ से नहीं जाते'।

अग्नि के सहयोग से जब स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, उस समय सूक्ष्म शरीर नष्ट नहीं हुआ करता ।

मृत्यु के बाद शरीर का जो भाग गर्म महसूस होता है, वास्तव में उसी स्थान से सूक्ष्म शरीर देह त्याग करता है । इसलिए वह स्थान थोड़ा गर्म महसूस होता है ।

गीता के अनुसार जो लोग मृत्यु के अनंतर देवयान पथ से गति करते हैं उनको 'अग्नि' और 'ज्योति' नाम के देवता अपने अपने अधिकृत स्थानों के द्वारा ले जाते हैं । उसके बाद 'अह:' अथवा दिवस के अभिमानी देवता ले जाते हैं । उसके बाद शुक्ल-पक्ष व उत्तरायण के देवता ले जाते हैं ।

थोड़ा स्पष्ट शब्दों में कहे तो देवयान पथ में सबसे पहले अग्नि-देवता का देश आता है फिर दिवस-देवता, शुक्ल-पक्ष, उत्तरायण, वत्सर और फिर आदित्य देवता का देश आता है । देवयान मार्ग इन्हीं देवताओं के अधिकृत मार्ग से ही होकर गुजरता है ।

उसके बाद चन्द्र, विद्युत, वरुण, इन्द्र, प्रजापति तथा ब्रह्मा, क्रमशः आदि के देश पड़ते हैं । जो ईश्वर की पूजा-पाठ करते हैं, भक्ति करते हैं वो इस मार्ग से जाते हैं और उनका पुनर्जन्म नहीं होता तथा वो अपने अभीष्ट के अविनाशी धाम चले जाते हैं ।

पितृयान मार्ग से भी चन्द्रलोक जाना पड़ता है, लेकिन वो मार्ग थोड़ा अलग होता है । उस पथ पर धूम, रात्रि, कृष्ण-पक्ष, दक्षिणायन आदि के अधिकृत देश पड़ते हैं। अर्थात ये सब देवता उस जीव को अपने देश के अधिकृत स्थान के मध्य से ले जाते हैं।

चन्द्रलोक कभी अधिक गर्म तो कभी अतरिक्त शीतल हो जाता है । वहां अपने स्थूल शरीर के साथ कोई नहीं रह सकता, लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर (जो मृत्यु के बाद मिलता है) कि साथ चन्द्रलोक में रह सकता है ।

जो ईश्वर पूजा नहीं करते, परोपकार नही करते, हर समय केवल इन्द्रिय सुख-भोग में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वे लोग मृत्यु के बाद न तो देवयान पथ से और न ही पितृयान पथ से जाते है बल्कि वे पशु योनि
(जैसी उनकी आसक्ति या वासना हो) में बार बार यही जन्म लेकर यही मरते रहते हैं ।

जो लोग अत्यधिक पाप करते है, निरीह और असहायों को सताने में जिनको आनंद आता है, ऐसे नराधमों की गति (मृत्य के बाद) निम्न लोकों में यानी कि नरक में होती है । यहां ये जिस स्तर का कष्ट दूसरों को दिए होते हैं उसका दस गुणा कष्ट पाते हैं । विभिन्न प्रकार के नरकों का वर्णन भारतीय ग्रंथों में दिया गया है ।

अतः नारायण का स्मरण सदैव करें।समय बीतता जा रहा है।जीवन क्षणभंगुर है।


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20 Oct, 02:07


जानिए आपके प्राण कहाँ से निकलेंगे...

प्रत्येक व्यक्ति अलग इंद्रिय से मरता है।किसी की मौत आंख से होती है, तो आंख खुली रह जाती है—हंस आंख से उड़ा। किसी की मृत्यु कान से होती है। किसी की मृत्यु मुंह से होती है, तो मुंह खुला रह जाता है।

अधिक लोगों की मृत्यु जननेंद्रिय से होती है, क्योंकि अधिक लोग जीवन में जननेंद्रिय के आसपास ही भटकते रहते हैं, उसके ऊपर नहीं जा पाते।

आपकी जिंदगी जिस इंद्रिय के पास जीयी गई है, उसी इंद्रिय से मौत होगी। औपचारिक रूप से हम मृतक को जब मरघट ले जाते हैं तो उसकी कपाल—क्रिया करते हैं, उसका सिर तोड़ते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है। पर समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु उस तरह होती है। समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु सहस्रार से होती है।

जननेंद्रिय सबसे नीचा द्वार है। जैसे कोई अपने घर की नाली में से प्रवेश करके बाहर निकले। सहस्रार, जो तुम्हारे मस्तिष्क में है द्वार, वह श्रेष्ठतम द्वार है।

जननेंद्रिय पृथ्वी से जोड़ती है, सहस्रार आकाश से। जननेंद्रिय देह से जोड़ती है, सहस्रार आत्मा से। जो लोग समाधिस्थ हो गए हैं, जिन्होंने ध्यान को अनुभव किया है, जो बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं, उनकी मृत्यु सहस्रार से होती है।

उस प्रतीक में हम अभी भी कपाल—क्रिया करते हैं। मरघट ले जाते हैं, बाप मर जाता है, तो बेटा लकड़ी मारकर सिर तोड़ देता है। मरे—मराए का सिर तोड़ रहे हो!

प्राण तो निकल ही चुके, अब काहे के लिए दरवाजा खोल रहे हो? अब निकलने को वहां कोई है ही नहीं। मगर प्रतीक, औपचारिक, आशा कर रहा है बेटा कि बाप सहस्रार से मरे; मगर बाप तो मर ही चुका है।

यह दरवाजा मरने के बाद नहीं खोला जाता, यह दरवाजा जिंदगी में खोलना पड़ता है। इसी दरवाजे की तलाश में सारे योग, तंत्र की विद्याओं का जन्म हुआ। इसी दरवाजे को खोलने की कुंजियां हैं योग में, तंत्र में।

इसी दरवाजे को जिसने खोल लिया, वह परमात्मा को जानकर मरता है। उसकी मृत्यु समाधि हो जाती है।

प्रत्येक व्यक्ति उस इंद्रिय से मरता है, जिस इंद्रिय के पास जीया। जो लोग रूप के दीवाने हैं, वे आंख से मरेंगे; इसलिए चित्रकार, मूर्तिकार आंख से मरते हैं। उनकी आंख खुली रह जाती है। जिंदगी—भर उन्होंने रूप और रंग में ही अपने को तलाशा, अपनी खोज की। संगीतज्ञ कान से मरते हैं। उनका जीवन कान के पास ही था।

उनकी सारी संवेदनशीलता वहीं संगृहीत हो गई थी। मृत्यु देखकर कहा जा सकता है—आदमी का पूरा जीवन कैसा बीता। अगर तुम्हें मृत्यु को पढ़ने का ज्ञान हो, तो मृत्यु पूरी जिंदगी के बाबत खबर दे जाती है कि आदमी कैसे जीया; क्योंकि मृत्यु सूचक है, सारी जिंदगी का सार—निचोड़ है—आदमी कहां जीया।

~~~

मृत्यु के समय जीव के साथ क्या घटित हो रहा होता है उसका वहां अन्य लोगों को अंदाज़ नही हो पाता । लेकिन घटनाएं तेज़ी से घटती हैं । मृत्यु के समय व्यक्ति की सबसे पहले वाक उसके मन में विलीन हो जाती है ।उसकी बोलने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

उस समय वह मन ही मन विचार कर सकता है लेकिन कुछ बोल नहीं सकता । उसके बाद दृष्टिऔर फिरश्रवण इन्द्रिय मन में विलीन हो जाती हैं । उस समय वह न देख पाता है, न बोल पाता है और न ही सुन पाता है ।

उसके बाद मन इन इंद्रियों के साथ प्राण में विलीन हो जाता है उस समय सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है, केवल श्वास-प्रश्वास चलती रहती है ।

इसके बाद सबके साथ प्राण सूक्ष्म शरीर मे प्रवेश करता है । फिर जीव सूक्ष्म रूप से पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश (पञ्च तन्मात्राओं) का आश्रय लेकर हृदय देश से निकलने वाली 101 नाड़ियों में से किसी एक में प्रवेश करता है ।

हृदय देश से जो 101 नाड़ियां निकली हुई है, मृत्यु के समय जीव इन्हीं में से किसी एक नाड़ी में प्रवेश कर देह-त्याग करता है । मोक्ष प्राप्त करने वाला जीव जिस नाड़ी में प्रवेश करता है, वह नाड़ी हृदय से मस्तिष्क तक फैली हुई है । जो मृत्यु के समय आवागमन से मुक्त नहीं हो रहे होते वे जीव किसी दूसरी नाड़ी में प्रवेश करते हैं ।

जीव जब तक नाड़ी में प्रवेश नही करता तब तक ज्ञानी और मूर्ख दोनों की एक गति एक ही तरह की होती है । नाड़ी में प्रवेश करने के बाद जीवन की अलग अलग गतियां होती हैं।

श्री आदि शंकराचार्य जी का कथन है कि 'जो लोग ब्रह्मविद्या की प्राप्ति करते हैं वो मृत्यु के बाद देह ग्रहण नही करते, बल्कि मृत्यु के बाद उनको मोक्ष प्राप्त हो जाता है' । श्री रामानुज स्वामी का कहना है 'ब्रह्मविद्या प्राप्त होने के बाद भी जीव जीव देवयान पथ पर गमन करने के बाद ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है, उसके बाद मुक्त हो जाता है' ।

(क्रमशः)

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19 Oct, 04:59


इस काल खंड में देश की पवित्र नदियों में स्नान का खास महत्व होता है। भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए आश्विन की पूर्णिमा से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तक प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करना चाहिए. यदि गंगा जी नहीं है तब किसी भी नदी, तालाब अथवा पोखर आदि में कार्तिक स्नान करना चाहिए. यदि कुछ भी नहीं है तब नियमित रुप से घर पर ही शुद्ध बाल्टी अथवा पात्र से स्नान करना है उसमें गंगा जी सहित सभी पवित्र नदियों की कल्पना करके स्नान करना चाहिए।

देवी पक्ष अर्थात भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महारात्रि आने तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आश्विन कृष्ण चतुर्थी से लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक नियमपूर्वक स्नान करना चाहिए। भगवान जनार्दन को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।

जो मनुष्य जाने-अनजाने कार्तिक मास में नियम से स्नान करते हैं, उन्हें कभी यम-यातना को नहीं देखना पड़ता, कार्तिक मास में तुलसी के पौधे के नीचे राधा-कृष्ण की मूर्त्ति रखकर पूरे भाव के साथ पूजा करनी चाहिए. यदि आंवले का पेड़ है तब उसके नीचे भी राधा-कृष्ण की मूर्त्ति रखकर पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करना चाहिए।

विधिपूर्वक स्नान करने के लिए जब दो घड़ी रात बाकी बच जाए तब तुलसी की मिट्टी, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय या गंगा तट अथवा पवित्र नदी के किनारे जाकर पैर धोने चाहिए तथा गंगा जी के साथ अन्य पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए विष्णु, शिव आदि देवताओं का ध्यान करना चाहिए. उसके बाद नाभि तक जल में खड़े होकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

कार्तिकेsहं करिष्यामि प्रात: स्नानं जनार्दनं ।
प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह ।।

अर्थात हे जनार्दन देवेश्वर ! लक्ष्मी सहित आपकी प्रसन्नता के लिए मैं कार्तिक प्रात: स्नान करुँगा।

उसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करें -

गृहाणार्घ्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे ।
नम: कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने ।।।
नमस्तेsस्तु हृषीकेश गृहाणार्घ्यं नमोsस्तुते ।।

अर्थात आप मेरे द्वारा दिये गये इस अर्घ्य को श्रीराधाजी सहित स्वीकार करें,
हे हरे! आप कमलनाभ को नमस्कार है, जल में शयन करने वाले आप नारायण को नमस्कार है. इस अर्घ्य को स्वीकार कीजिए, आपको बारम्बार नमस्कार है।

व्यक्ति किसी भी जलाशय में स्नान करे, उसे स्नान करते समय गंगा जी का ही ध्यान करना चाहिए. सबसे पहले मृत्तिका (मिट्टी) आदि से स्नान कर ऋचाओं द्वारा अपने मस्तक पर अभिषेक करें. अघमर्षण और स्नानांग तर्पण करें तथा पुरुष सूक्त द्वारा अपने सिर पर जल छिड़्के. इसके बाद जल से बाहर निकलकर दुबारा अपने मस्तक पर आचमन करना चाहिए और कपड़े बदलने चाहिए। कपड़े बदलने के बाद तिलक आदि लगाना चाहिए। जब कुछ रात बाकी रह जाए तब स्नान किया जाना चाहिए क्योंकि यही स्नान उत्तम कहलाता है तथा भगवान विष्णु को पूर्ण रूप से संतुष्ट करता है।

प्राचीनकाल में कार्तिक मास में पुष्कर का स्पर्श पाकर नन्दा परम धाम को प्राप्त हुई थी, राजा प्रभंजन भी कार्तिक मास में पुष्कर में स्नान करने से व्याघ्र योनि से मुक्त हुए थे,अत: कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रात:काल उठकर तीर्थ में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर श्री हरि को प्राप्त होता है। सूर्योदय काल में किया गया स्नान मध्यम स्नान कहलाता है, कृत्तिका अस्त होने से पहले तक का स्नान उत्तम माना जाता है, बहुत देर से किया गया स्नान कार्तिक स्नान नहीं माना जाता है।
इस प्रकार संपूर्ण कार्तिक स्नान कर्म विधि को सर्व मोक्ष एवं कल्याण रूप में निरूपित किया जाना चाहिए।


🚩नमो नारायण 🚩


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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

19 Oct, 04:58


कार्तिक मास त्याज्य पदार्थ
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हिन्दू धर्म में इस महीने में कुछ परहेज/ त्याज्य बताए गए हैं। कार्तिक स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को इसका पालन करना चाहिए। इस मास में धूम्रपान निषेध होता है। यही नहीं लहुसन, प्याज और मांसाहर का सेवन भी वर्जित होता है।

कार्तिक मास में प्याज, सिंघाड़ा, सेज, बेर, राई, नशीली वस्तुएँ और चिवड़ा इन सभी का उपयोग भी वर्जित है, कार्तिक व्रत करने वाले व्यक्ति को देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री और महात्माओं की निन्दा नहीं करनी चाहिए, कार्तिक मास में नरक चतुर्दशी को (छोटी दीवाली) शरीर में तेल लगाना चाहिए, इसके अलावा व्रती मनुष्य को अन्य किसी भी दिन तेल नहीं लगाना चााहिए, व्रत करने वाले को कार्तिक में चाण्डाल, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मण द्वेषी और वेद बहिष्कृत लोगों से बातचीत भी नहीं करनी चाहिए।

इस महीने में भक्त को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए उसे भूमि शयन करना चाहिए। इस दौरान सूर्य उपासना विशेष फलदायी होती है। साथ ही दाल खाना तथा दोपहर में सोना भी अच्छा नहीं माना जाता है। तेल लगाना, दूसरे का दिया भोजन ग्रहण करना, तेल खाना, अधिक बीज वाले फलों का सेवन, चावल तथा दाल ये खाद्य पदार्थ कार्तिक मास में नहीं खाने चाहिए. इसके अलावा गाजर, बैंगन, बासी खाना, मसूर, कांसे के बर्तन में भोजन, कांजी, दुर्गंधित पदार्थ, किसी भी समुदाय का अन्न अर्थात भण्डारा, शूद्र का अन्न, सूतक का अन्न, श्राद्ध का अन्न यह कार्तिक व्रत करने वाले को त्याग देने चाहिए।


कार्तिक मास वेदोक्त महात्म्य
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भगवान श्रीकृष्ण कहते है- हे प्रिये! एकादशी और कार्तिक व्रत मुझे बहुत ही प्रिय हैं। इनसे मुक्ति, भुक्ति, पुत्र तथा सम्पत्ति प्राप्त होती है। कार्तिक मास में जब तुला राशि पर सूर्य आता है तब ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने व व्रत व उपवास करने वाले मनुष्य मुझे बहुत प्रिय हैं क्योंकि यदि उन्होंने पाप भी किये हों तो भी स्नान व व्रत के प्रभाव से उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है। कार्तिक में स्नान, जागरण, दीपदान तथा तुलसी के पौधे की रक्षा करने वाले मनुष्य साक्षात भगवान विष्णु के समान है। कार्तिक मास में मन्दिर में झाड़ू लगाने वाले, स्वस्तिक बनाने वाले तथा भगवान विष्णु की पूजा करने वाले मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा पा जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष नियम निम्न प्रकार हैं

1 ➾ जो कार्तिक मास प्राप्त हुआ देख पराये अन्न का सर्वथा त्याग करता है (बाहर का कुछ नही खाता) उसे अतिक्रच्छ नामक यज्ञ करने का फल मिलता है।

2 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु को कमल के फूल चढाता है। वह 1 करोड जन्म के पाप से मुक्त हो जाता है।

3 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु को तुलसी चढाता है , वह हर 1 पत्ते पर 1 हीरा दान करने का फल पाता है।

4 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज गीता का एक अध्याय पड़ता है वह कभी यमराज का मुख नही देखता।

5 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे शालिग्राम शिला का दान करता है उसे सम्पूर्ण पृथ्वी के दान का फल मिलता है।

6 ➾ कार्तिक मास मे जो व्यक्ति पुरे मास पलाश की पत्तल मे भोजन करता है । वह विष्णु लोक को जाता है।

7 ➾ कार्तिक मास मे तुलसी पीपल और विष्णु की रोज पूजा करनी चाहिए।

8 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज भगवान विष्णु के मंदिर की परिक्रमा करता है । उसे पग पग पर अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

9 ➾ इस जन्म मे जो पाप होते है वह सब कार्तिक मास मे दीपदान करने से नष्ट हो जाता है।

10 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे रोज नाम जप करते है। उन पर भगवान विष्णु प्रसन्न रहते है।

11 ➾ जो मनुष्य कार्तिक मास मे तुलसी ,पीपल या आवले का वृक्षारोपण करते है। वह पेड़ जब तक पृथ्वी पर रहते है। लगाने वाला तब तक वैकुण्ठ मे वास करता है।

🛑 विशेष ➺

कार्तिक स्नान सम्पूर्ण विधि
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कार्तिक महीने में दान, पूजा-पाठ तथा स्नान का बहुत महत्व होता है तथा इसे कार्तिक स्नान की संज्ञा दी जाती है। यह स्नान सूर्योदय से पूर्व किया जाता है। इस समय घर की महिलायें नदियों में ब्रह्ममूहुर्त में स्नान करती हैं। यह स्नान विवाहित तथा कुंवारी दोनों के लिए फलदायी होता है। स्नान कर पूजा-पाठ को खास अहमियत दी जाती है। कार्तिक स्नान आश्विन माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अगले माह कार्तिक माह की पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस पवित्र स्नान को आरंभ करने से पहले आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आने पर भगवान विष्णु को प्रणाम कर कार्तिक व्रत करने की आज्ञा लेनी चाहिए। इस तरह से आज्ञा लेने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त पर कृपा कर उसे आत्मिक बल तथा मनोबल प्रदान करते हैं. साथ ही ईश्वर अपने भक्त को विधिपूर्वक कार्तिक व्रत करने की सद्बुद्धि देते हैं।

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सनातन धर्म • Sanatan Dharma

19 Oct, 04:57


🔺 श्री हरि नारायण को सर्वाधिक प्रिय कार्तिक मास का अलौकिक वेदोक्त वर्णन ⁉️
🔺 कार्तिक मास की सर्वोपयुक्त व्रत विधि ⁉️
🔺 कार्तिक मास में वेदानुसार किन-किन पदार्थों का त्याज्य कर दें ⁉️
🔺 कार्तिक मास के लिए कितने प्रकार के महात्म्य बताए गए हैं ⁉️

🛑 विशेष ➺ कार्तिक मास स्नान की संपूर्ण विधि व्याख्या अवश्य पढ़ें।

#Thread 🧵


।। कार्तिक मास ।।
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सत्य सनातन धर्म में कार्तिक मास की महत्ता अति श्रेष्ठ मानी गई है। सभी बारह मासों में मार्गशीर्ष मास को अत्यन्त पुण्यदायक कहा गया है, उससे भी अधिक पुण्य देने वाला वैशाख मास कहा गया है, प्रयाग में माघ मास का अधिक महत्व है तथा इससे भी महान तथा अधिक फलदायी कार्तिक मास को कहा गया है, जब ब्रह्मा जी ने एक तरफ सभी प्रकार के दान, व्रत तथा नियम रखे और दूसरी ओर कार्तिक का स्नान रखकर तौला तो कार्तिक स्नान का पलड़ा ही भारी पाया।

सूर्य भगवान जब तुला राशि पर आते है तो कार्तिक मास का प्रारम्भ होता है इस मास का माहत्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में विस्तार पूर्वक मिलता है। कलियुग में कार्तिक मास को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है इस मास को धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला बताया गया है नारायण भगवान ने स्वयं इसे ब्रम्हा को, ब्रम्हा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण सम्पन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है।

कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।

कार्तिक मास से श्रेष्ठ कोई अन्य मास नहीं,
सतयुग के समान कोई अन्य युग नहीं।
वेद के समान कोई अन्य शास्त्र नहीं और
गंगाजी के समान कोई और तीर्थ नहीं है।

भगवान नारायण के शयन और प्रबोधन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और समापन होता है उत्तरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरिकाल माना जाता है दक्षिणायन में सत्गुणों के क्षरण से बचने और बचाने के लिए हमारे शास्त्रों में व्रत और तप का विधान है सूर्य का कर्क राशि पर आगमन दक्षिणायन का प्रारम्भ माना जाता है और कातिक मास इस अवधि में ही होता है पुराण आदि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है यूँ तो हर मास का अलग अलग महत्व है परन्तु व्रत, तप की दृष्टि से कार्तिक मास की महता अधिक है शास्त्रों में भगवान विष्णु और विष्णु तीर्थ के ही समान कर्तिक् मास को श्रेष्ट और दुर्लभ कहा गया है शास्त्रों में ये मास परम कल्याणकारी कहा गया है।


कार्तिक मास के व्रत नियम
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कार्तिक मास में जो भी व्रत आदि रखता है उसे सदा एक पहर रात बचते ही उठ जाना चाहिए फिर स्तोत्र आदि के द्वारा अपने इष्ट देव की स्तुति करते हुए दिन के बाकी कामों को करना चाहिए। गाँव अथवा नगर के अनुसार दैनिक कर्म मल-मूत्र त्याग आदि कर उत्तर की ओर मुँह करके बैठना चाहिए। इसके साथ ही दाँत व जिह्वा की शुद्धि के लिए वृक्ष के समीप जाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए -

आयुर्बल यशो वर्च: प्रजा पशुवसूनि च ।
ब्रह्म प्रज्ञां च मेघां च त्वं नो देहि वनस्पते ।।

अर्थात हे वनस्पति! आप मुझे आयु, बल, यश, तेज, सन्तति, पशु, धन, वैदिक ज्ञान, प्रज्ञा एवं धारणाशक्ति प्रदान करें. इस प्रकार कहकर वृक्ष से दाँतुन लेनी चाहिए. दूध वाले वृक्षों की दाँतुन लेना वर्जित माना गया है। दाँतों को विधिपूर्वक शुद्ध करके मुँह को जल से धोना चाहिए, इसके बाद कार्तिक का व्रत करने वाले को विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।

स्नान के बाद नए अथवा स्वच्छ वस्त्र धारण करके तिलक लगाना चाहिए फिर अपनी गोत्र विधि के अनुसार अथवा अपने घर के नियमानुसार संध्या उपासना करनी चाहिए. जब तक सूर्योदय ना हो जाए तब तक गायत्री मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। संध्योपासना के अंत में विष्णु सहस्त्रनाम आदि का पाठ करना चाहिए, फिर व्यक्ति को अपनी दिनचर्या आरंभ करनी चाहिए जैसे वह जो भी काम करता हो उस पर जाना चाहिए। मध्यान्ह में दाल के अलावा शेष अन्न का भोजन करना चाहिए। जो व्यक्ति अतिथियों को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करता है वह भोजन अमृततुल्य होता है।

मुख शुद्धि के लिए तुलसी का सेवन करना उत्तम है। उसके बाद शेष दिन सांसारिक व्यवहार में व्यतीत करना चाहिए, सायंकाल में पुन: भगवान के मन्दिर जाकर संध्या करके यथाशक्ति दीपदान करना चाहिए. भगवान विष्णु अथवा अपने देवता को प्रणाम करके आरती उतारनी चाहिए, प्रथम प्रहर में कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए, प्रथम प्रहर के बीत जाने पर शयन करना चाहिए, इस प्रकार जो व्यक्ति एक महीने तक शास्त्र अनुसार विधि का पालन करते हुए कार्तिक मास में स्नान-दान करता है, उसे भगवान का सालोक्य प्राप्त होता है।


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19 Oct, 04:56


कपिला गाय

गाय अलग-अलग नस्ल की होती हैं। हर गाय की अपनी एक खासियत होती है। जिस गाय के बारे में आज हम बात कर रहे हैं वह गाय है कपिला। कपिला गाय दक्षिण कर्नाटक और कासरगोड में पाई जाने वाली गाय की एक विशेष नस्ल है। कपिला नाम महान ऋषि कपिला महर्षि से आया है, और इन गायों को उनके आध्यात्मिक मूल्य के लिए सम्मानित किया जाता है। कपिला गायें सुनहरी त्वचा और चमकदार बनावट के साथ बहुत सुंदर होती हैं। उनकी सुनहरी आंखें और सुनहरी नाक है। कपिला गायों का उपयोग तिरुपति थिरुमाला जैसे मंदिरों में अनुष्ठानों के लिए किया जाता है, और उन्हें सदियों से ब्राह्मणों द्वारा उनके मूल स्थान पर पाला जाता है।

कपिला गाय की नस्ल को गौंटी और गवती के नाम से भी जाना जाता है। इस नस्ल की गाय अधिकतर सफेद रंग की होती हैं, लेकिन इन्हें काले, ब्राउन या हल्के लाल रंग में भी देखा जा सकता है। कपिला गाय की नस्ल मध्यम आकार की होती हैं और इनका चेहरा सफेद एवं इनकी बोंहे भी सफेद होती हैं। इसके अलावा इस कपिला गाय की नस्ल का कूबड़ उठा हुआ होता है और इनका वजन 200 से लेकर 225 किलो तक जा सकता है। इनकी औसत ऊंचाई लगभग 83 सेंटीमीटर होती है। कपिला गाय कम दूध देती है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे विशेष गुण पाए गए हैं जो ऑटिज्म और अन्य बीमारियों जैसे कई विकासात्मक विकारों को रोकने या उलटने में मदद कर सकते हैं। इला गाय के सींगों में पाया जाने वाला पदार्थ गो-रोचन भी बहुत खास है और इसमें कुछ बहुत ही दुर्लभ औषधीय गुण हैं। कपिला गाय हर साल स्वेच्छा से अपने सींग गिराती हैं, इसलिए उनसे छुटकारा पाना आसान है।

कपिला गाय वह होती है जो मालिक के पास उसके घर में खूंटे के साथ बंधी रहती है। जो चारा मालिक उसे डालता है वही चारा वह खाती है। वह गली में घूमने वाली गायों जैसी नहीं होती जो उन्हें जो भी कुछ मिल जाता है वही खा लेती हैं। परंतु कपिला गाय अपने मालिक से मिला हुआ शुद्ध चारा खाती हैं और उनका दूध भी शुद्ध होता है। क्योंकि उसके चारे में किसी प्रकार की कोई अशुद्धि नहीं होती। दूसरी गायों की तरह गली में पड़े हुए कूड़े कचरे को कपिला गाय नहीं खाती। इसीलिए कपिला गाय का घी और दूध शुद्ध माना गया है। इसीलिए अधिकतर हवन व पूजा सामग्री में कपिला गाय का घी और दूध ही शुभ माना जाता है। ऐसी गायों के घी से अगर घर में ज्योत जलाई जाती है तो वह शुभ मानी जाती है।

कपिला गाय के दूध में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो ओटिज्म जैसे रोगों से बचाव करने में मदद करते हैं इसके अलावा इस नस्ल की गाय के दूध को काफी शुद्ध माना जाता है और ये इंसान के संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर कर सकता है। ये नस्ल एक दिन में 1 से 3 लीटर तक दूध दे सकती है। इसके साथ ही इस नस्ल के दूध मे ए 2 प्रोटीन पाया जाता है जो न केवल फायदेमंद होता है, बल्कि इसे पचाना भी काफी आसान होता है। इन सब बातों के अलावा कपिला गाय एक ब्यात में 350 लीटर तक दूध दे सकती है।
कपिला गाय भारत की उन चुनिंदा नस्लों में से एक है जिन्हें पालना काफी सरल है। इन्हें अधिक आहार की आवश्यकता नहीं होती, इसके अलावा इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफी मजबूत होती है और ये आसानी से बीमार भी नहीं पड़ती। इसके साथ ही जानकार बताते हैं कि अगर कपिला गाय के कान में अपनी इच्छाओं को बोला जाए तो इससे इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। कपिला गाय का महत्व हिंदू धर्म में काफी अधिक रहा है। कपिला गाय सर्वपूजनीय है।

🚩 जै गौ माता की 🚩

@Sanatan

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13 Oct, 18:06


।। श्री हनुमत महामंत्र ।।


ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय वायु सुताय अञ्जनी गर्भ सम्भुताय अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत पालन तत्पराय धवली कृत जगत् त्रितयाया ज्वलदग्नि सूर्यकोटी समप्रभाय प्रकट पराक्रमाय आक्रान्त दिग् मण्डलाय यशोवितानाय यशोऽलंकृताय शोभिताननाय महा सामर्थ्याय महा तेज पुञ्ज:विराजमानाय श्रीराम भक्ति तत्पराय श्रिराम लक्ष्मणानन्द कारकाय कपिसैन्य प्राकाराय सुग्रीव सौख्य कारणाय सुग्रीव साहाय्य कारणाय ब्रह्मास्त्र ब्रह्म शक्ति ग्रसनाय लक्ष्मण शक्ति भेद निबारणाय शल्य लिशल्यौषधि समानयनाय बालोदित भानु मण्डल ग्रसनाय अक्षयकुमार छेदनाय वन रक्षाकर समूह विभञ्जनाय द्रोण पर्वतोत्पाटनाय स्वामि वचन सम्पादितार्जुन संयुग संग्रामाय गम्भिर शव्दोदयाय दक्षिणाशा मार्तण्डाय मेरूपर्वत पीठिकार्चनाय दावानल कालाग्नी रूद्राय समुद्र लङ्घनाय सीताऽऽश्वासनाय सीता रक्षकाय राक्षसी सङ्घ विदारणाय अशोकबन विदारणाय लङ्कापुरी दहनाय दश ग्रीव शिर:कृन्त्तकाय कुम्भकर्णादि वधकारणाय बालि निबर्हण कारणाय मेघनादहोम विध्वंसनाय इन्द्रजीत वध कारणाय सर्व शास्त्र पारङ्गताय सर्व ग्रह विनाशकाय सर्व ज्वर हराय सर्व भय निवारणाय सर्व कष्ट निवारणाय सर्वापत्ती निवारणाय सर्व दुष्टादि निबर्हणाय सर्व शत्रुच्छेदनाय भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी ध्वंसकाय सर्वकार्य साधकाय प्राणीमात्र रक्षकाय रामदुताय स्वाहा॥

।। जय श्री महाकाल।।

@Sanatan

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

12 Oct, 04:38


रावण के प्रति नख भर का भी सम्मान वैदिक संस्कृति के प्रति द्रोह है।

रावण प्रतीक है व्यभिचार का जिसने अपनी पुत्रवधू तक पर कुदृष्टि डाली, अपनी पत्नी मंदोदरी की बहन के हेमा साथ कुकर्म किया और उसके पति को मारकर उसे उठा लाया।

रावण प्रतीक है अपने सगे संबंधियों को त्रास देने का। उसने अपनी बहन सूर्पनखा के पति विद्युत जिह्वा की हत्या कर दी। उसने अपने भाई से लंका छीन ली, अपने पिता को त्रास दिया, अपने मामा को स्वार्थ में मरवा दिया। अपने कुल खानदान को अपनी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया। अपने भाई को लात मार कर भगा दिया।

रावण प्रतीक है अघन्या गाय के हत्यारे का, ऋषियों ब्राह्मणों के सामूहिक नरसंहार का। वैदिक व्यवस्था का परम शत्रु था रावण। यज्ञ और धर्म के किसी भी स्वरूप को अमान्य घोषित करने वाला रावण वैदिक देवताओं के प्रति घोर असभ्य था।

रावण प्रतीक है कृतघ्नता का। उसने भगवान शिव से कृतघ्नता की। वह उतना ही शिवभक्त था जितना भस्मासुर। वस्तुतः उसने महादेव के सामने दीन-हीन होने का ढोंग किया। वह भगवान शिव से भी अहंकार करता था। ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के बाद उनके प्रति भी वह कृतघ्न हो गया। अपने मित्रों से भी उसने कृतघ्नता की।

रावण प्रतीक है शक्ति और ज्ञान के दुरुपयोग का। कुसंस्कारित कुपात्र को विद्या मिलने पर वह क्या-कुछ करता है इसका जीता जागता उदाहरण रावण है।

रावण प्रतीक है क्षुद्र बुद्धि और मलिन मानस का, नारी जाति के प्रति घृणा का, सुर धेनु विप्र और मनुष्य के प्रति घृणा रखने वाला रावण प्रतीक है दम्भ, असभ्यता और विध्वंस का।

कुछ घृणित लोग रावण को महान बता रहे। यह ठीक वैसी ही बात है जैसे कुछ नीच लोग महिषासुर को महान बताते हैं। पहले समाज के रावणों और महिषासुरों का सजीव दहन मर्दन होता था पर बलिहारी इस लोकतंत्र की कि हर टुच्चा आदमी अपनी दो कौड़ी की जबान हिला कर कुछ भी बोल सकता है।

पहचानिए ऐसे दुष्टात्माओं को और दहन करिये उनका।

और हां ये ब्रह्महत्या वाला पाप फर्जी नरेटिव है। ब्रह्मा जिसके वध की इच्छा स्वयं रखते हों ऐसे गोघाती, सुर त्रासी, ब्राह्मण द्रोही रावण के वध पर ब्रह्म हत्या लगने की बात कोई घृणित व्यक्ति ही कह सकता है।


जय जय श्रीराम


@Gurukul
@Sanatan
@Hindu

सनातन धर्म • Sanatan Dharma

11 Oct, 13:11


किसी भी बीमारी को नष्ट करने में असरकारक है यह नाम त्रय अस्त्र मंत्र!

विष्णु भगवान के तीन नामों को महारोगनाशक अस्त्र कहा गया है। अर्थात् इस तीन नाम के जप से कैंसर, किडनी, पैरालाइसिस आदि जैसी बड़ी से बड़ी बीमारी का संकट भी टल जाता है।

जो पूरे विष्णु सहस्रनाम को पढ़ने में असमर्थ हैं और किसी भयंकर व्याधि से पीड़ित हैं तो साधना में बैठकर भगवान विष्णु जी के इन तीन नामों का कम से कम 108 बार जाप प्रतिदिन सुबह अथवा शाम में करें।

जप नहीं कर सकते तो कॉपी या डायरी लेकर इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार लिखें। लिखने के बाद कॉपी को इधर-उधर रखने की जगह अपने पूजा कक्ष में रखें।

कोई बहुत बीमार है, और वो जाप नहीं कर सकता, लिख नहीं सकता, तो उनके परिवार का कोई सदस्य उनके सिरहाने बैठकर कम से कम 108 बार मंत्र जाप करे ताकि उनके कानों में मंत्र जाए।

इस मंत्र के उदय की कथा:-

मां ललिता त्रिपुरा महासुन्दरी और भंडासुर के मध्य जब युद्ध हुआ उस समय व्याधिनाशक इस महाअस्त्र मंत्र का उदय हुआ था।

युद्ध में पराजय जानकर भंडासुर ने महारोगास्त्र का प्रयोग किया, जिसे मां त्रिपुरा सुंदरी ने इस नामत्रय अस्त्र मंत्र का निर्माण कर उस महारोगास्त्र को नष्ट कर दिया। उसके बाद से ही किसी भी बीमारी को नष्ट करने में इस मंत्र का उपयोग सनातन धर्म में होता आ रहा है।
यह नामत्रय मंत्र है:-
अच्युताय नमः
अनंताय नमः
गोविंदाय नमः


इन तीन नामों की महिमा गाते हुए महर्षि वेदव्यास जी कहते हैं:-

अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।

हां, यह मंत्र काम तभी करेगा जब आपको भगवान विष्णु में संपूर्ण आस्था हो, उनके समक्ष आपका संपूर्ण समर्पण हो।

वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्


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