पुराण विद्या पुरातन हैं कल्पित नहीं,,,,,,,,,पुरातनत्वात् पुराणः ,पुरापि नवम्।
पुराणं सर्व शास्त्राणां,प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्।
अनन्तरस्तु वक्त्रेभ्यो,वेदास्तस्य विनिर्गताः।।ब्रह्माण्ड पुराणे
ब्रह्माजी के श्रीमुख से सर्वप्रथम पुराणों का आविर्भाव हुआ तदनन्तर वेदों का प्रादुर्भाव हुआ,,शंका की आवश्यकता ही नहीं,,,सुप्तप्रतिबुद्धन्याय(जैसे सोकर जगे हुए व्यक्ति को सोने से पूर्व की समग्र स्मृति स्वतः हो जाती है) से प्रलय पूर्व की स्मृतियां ही पुराण और वेद के रूप में जाग्रत होती हैं, ब्रह्मा वेदों के सृष्टा नहीं स्मर्ता हैं,,तस्य स्मर्ता स्वयंभुवः।
श्रूयतां यत्पुरा वृत्तं,पुराणेषु मया श्रुतम्। बाल्मीकि रामायणे
पुराणगत वृत्तान्त सुनिये जो मैंने पहले सुना था।।
पुराण विद्या वेदैवास्ति (वात्सायन्)
वेदार्थ का प्रतिपादन करने बाली होने से पुराण विद्या भी वेद वत् ही है।
पुराणं न्याय मीमांसा,धर्मशास्त्रांगमिश्रिताः।
वेदाः स्थानानि विद्यानां,धर्मस्य च चतुर्दश।।
1,,, पुराण,,2,,, न्याय,,,3,,, मीमांसा,,,4,,, धर्मशास्त्र,,,5,,, व्याकरण()मुख,,,6,,, ज्योतिष(नेत्र),,,7,,, शिक्षा(नासिका),,,8,,, कल्प(हस्त),,,9,,, निरुक्त(कर्ण),,,10,,,छन्द(पाद),,,11,,,ऋग्वेद,,,12,,,यजुर्वेद,,,13,,,सामवेद,,,14,,,अथर्ववेद।
4,,वेद
6,,अंग
4,,पुराण,न्याय,मीमांसा,धर्मशास्त्र इस प्रकार चौदह विद्या मानी गयी हैं।
ऋचः सामानि छंदांसि,पुराणं यजुषा सह।
उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे,दिवि देवा दिवि श्रितः।।11-7-24 अथर्वे
स (ईश्वरः)वृहतीं दिशं अनुव्यचलत् तमितिहासश्च पुराणंच गाथाश्च नाराशंसीश्च अनुव्यचलन्।
स दिशोन्वैक्षत। प्राचीं दक्षिणां प्रतीचीं उदीचीं ध्रुवामूर्ध्वामिति।ताभ्यः पंच वेदान्निरमिमत।सर्पवेदं(गारुडी विद्या)पिशाचवेदं असुरवेदं(मारण मोहन वशीकरणादि प्रयोजकम्) इतिहास वेदं पुराणवेदम् (गोपथ ब्राह्मणे)
एवमिमे सर्वे वेदा निर्मिताः सकल्पाः सरहस्याः सब्राह्मणाः सोपनिषत्काः सेतिहासाः सान्वाख्यानाः सपुराणाः सस्वराः ससंस्काराः सनिरुक्ताः सानुशासनाः सानुमार्जनाः सवाकोवाक्याः (गोपथे)
वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतम्।
मन्वर्थं विपरीतायाः सा स्मृतिर्नैव गद्यते।।(वशिष्ठ)
वेदार्थ से समन्वित होने के कारण मनुस्मृति का प्राधान्य है,मनु के विपरीत अर्थ का प्रतिपादन करने वाली स्मृति मान्य नहीं,,ऐसा वशिष्ठ जी का कथन है।।
स्वाध्यायं श्रावयेत् पित्रे,धर्मशास्त्राणि चैव हि।
आख्यानमितिहासांश्च,पुराणान्यखिलानि च।।(मनौ)
श्राद्ध के उपरान्त पितरों की प्रीति के लिये,वेद पारायण श्रवण कराये,,धर्म शास्त्र आख्यान ,इतिहास, पुराणादि को भी सुनाये।।
महाभाष्यकार कहते हैं,,,
सप्तद्वीपा वसुमती त्रयो लोकाः चत्वारो वेदाः सांगाः सरहस्याः बहुधा विभिन्नाः एकशतमध्वर्यु शाखाः,सहस्रवर्त्मा सामवेदःएकविंशतिधा वाह्वृच्यं नवधाथर्वणो,,,वेदो वाक् वाक्यमितिहासः पुराणम् वैद्यकमित्येतावान् शब्दस्य प्रयोग विषयः।(पतंजलि भाष्ये)
हम पतंजलि के महाभाष्य को तो पढते हैं प्रमाण भी मानते हैं,,परन्तु वे स्वयं पुराणों का स्मरण अपनी पवित्र वाणी से करते हैं तो सभी को पुराणों के प्रति दुर्भाव त्यागकर उनकी उपादेयता का लाभ लेना चाहिये।।न कि अपने दुराग्रह के जाल में पङकर पुराणों की निन्दा करें।।
शतपथे,,,4-4
तत्रैव,,13-4-1,,दशमेहनि पुराणमाचक्षीत
तत्रैव,,15-6-1-12,,,
वेदों में पुराण वीज रूप से हैं,,तथा पुराणों में वेद का ही वृक्षात्मक विस्तार है...जैसे,
यजुर्वेद,,,नमोस्तु नीलग्रीवाय,,,
पुराण,,,,,श्री व्यास जी ने समुद्रमन्थन के प्रसंग में शिव की शितिकण्ठता का वर्णन किया है।।
वेद ,,इदं विष्णुर्विचक्रमे,,,,,,
पुराण,,,वामनावतार की कथा देखें।
वेद,,,भृगूणामंगिरः तपसातप्यध्वम्,,
पुराण,,,भृगु तथा अंगिरा के प्रसंगों से आलोक प्राप्त करें।
वेद,,,पुरोरवा असि,,,
पुराण,,,,पुरुरवा का आख्यान।
वेद,,,इन्द्रो दधीचि अस्थिभिःवृत्राण्य प्रतिष्क्रतःजघान नवतीर्नव।।
पुराण,,,इन्द्रकृत वृत्रासुर वध तथा दधीचि का अस्थि दान।।
शतपथे,,,यस्या वै मनुर्वैवस्वतो वत्स आसीत् पृथिवी पात्रं वैन्यो धोक् तां कृषिं च सस्यं चाधोक्।सोदक्रामत्सा सुसुरानागछत्तामसुरा उपाहु यत् एहीति तस्या विरोचनःप्रह्लादि वत्स आसीत्,,,,8-5-13,,
पुराण,,महाराज पृथु चरित्र।
उपनिषद्,,,सत्यं वद।
पुराण,,सत्य हरिश्चन्द्र कथा।
उपनिषद्,,धर्मं चर,,
पुराण,,श्रीराम चरित्र,धर्मराज युधिष्ठिर चरित्र।
वेद,,स्वाध्यायान्मा प्रमद,,
पुराण,,महर्षि अष्टावक्र चरित्र।
वेद,,अतिथि देवो भव,,,
पुराण,,,महाराज शिवि रन्तिदेव।
वेद,,मातृदेवो भव पितृदेवो भव,,
पुराण,,,श्रवण कुमार,,,महाराज पुरु।
वेद,,,आचार्य देवो भव,,
पुराण,,,आरुणि,एकलव्यादि।