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श्रीशङ्कराचार्यो विजयतेतराम्!

हिन्दूराष्ट्र प्रकल्प अंतर्गत स्वस्थक्रान्ति को उद्भासित करने हेतु नभोमार्गीय प्रचार-प्रसार प्रकल्प।

एकमात्र उद्देश्य- हिन्दुराष्ट्र!
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो!
हर हर महादेव!!
नारायण नारायण!! 🌸🚩

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद (Hindi)

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद नामक चैनल हिन्दूराष्ट्र प्रकल्प के अंतर्गत स्वस्थक्रान्ति को उद्भासित करने के लिए नभोमार्गीय प्रचार-प्रसार प्रकल्प है। इसका उद्देश्य है हिन्दुराष्ट्र की जय और अधर्म का नाश करना। यह चैनल हिन्दू धर्म के महान आचार्य, शंकराचार्य की विजय को साझा करता है। चैनल में हर हर महादेव के नारे के साथ हर तरह के धार्मिक ज्ञान और प्रेरणादायक संदेश साझा किए जाते हैं। अगर आपका उद्देश्य है धर्म को बढ़ावा देना और समाज को धार्मिक मार्ग पर चलाना, तो यह चैनल आपके लिए है। जुड़ें और धार्मिक ज्ञान का लाभ उठाएं।

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07 Feb, 13:02


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07 Feb, 12:04


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06 Feb, 15:06


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06 Feb, 13:30


सभी जुडें 🌺🙏🏻

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06 Feb, 13:07


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03 Feb, 13:54


श्रीमन्निश्चलानन्दस्वामिनश्शिवरूपिणः।
जीवमात्रोपकाराय विचरन्ति महीतले॥
🪷🙏🏻

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03 Feb, 07:18


ज्वलत्कान्तिवह्निं जगन्मोहनाङ्गीं
भजन्मानसाम्भोजसुभ्रान्तभृङ्गीम् ।
निजस्तोत्रसङ्गीतनृत्यप्रभाङ्गी
भजे शारदाम्बामजस्रं मदम्बाम् ॥

Meaning:
Salutations to Mother Sharada whose form shines with the Beauty of a Blazing Fire, which enchants the whole World. I worship(meditate) within the Lotus of my Mind (Heart) that wondrous form which wanders like a Bee (wandering over a Lotus), ...[That Form] which shines with the Glory of her own Stotra set to the melody of Music and Dance, I worship Mother Sharada, Who is my Eternal Mother.
{Sharda Bhujanga Storam - Adi Shankaracharya}

🪷🦢

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01 Feb, 03:38


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01 Feb, 03:37


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18 Jan, 09:37


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03 Jan, 15:36


हे अच्युत' हे अनन्त' हे गोविन्द' 

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03 Jan, 15:14


꧁वासुदेव꧂:

जिज्ञासु—अद्वैत शैवदर्शन अनुसार शिव ने जगत् की रचना क्यों की? क्या शिव ने केवल अपने आनन्द के लिए जगत् को रचा?

उत्तर — शिव ने अपने आनन्द के लिए जगत् को नहीं रचा, अपितु अपने आनन्द के द्वारा जगत् को रचा। उदाहरण के लिए जैसे हम जब अपने प्रिय गीत को सुनते हैं तो हम भी आनन्दित हो के गुनगुनाने लग जाते हैं, गुनगुनाना हमारे आनन्द की अभिव्यक्ति है, वैसे ही यह जगत् भी शिव के आनन्द की अभिव्यक्तिमात्र ही है, आनन्द शिव से भिन्न कोई दूसरी सत्ता नहीं है, आनन्द शिव का स्वभाव या उसका स्वरूप ही है वैसे ही जैसे उष्णता अग्नि का स्वरूप है, इसलिए शिव सदा ही आनन्दमय रहता है। जिस प्रकार से आनन्द में गुनगुनाना कोई बाध्यता नहीं है, गुनगुनाने की क्रिया को रोकने का सामर्थ्य हमारे पास होता है, वैसे ही जगत् को रचना शिव की बाध्यता नहीं है, इसलिए ऐसा भी नहीं है कि शिव जगत् को नहीं रचेगा तो आनन्दरहित हो जायेगा, आनन्द शिव का स्वरूप ही है तो आनन्दरहित होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। आनन्द शिव का स्वभाव है इसी से जगत् को रचा है शिव ने। आनन्द हमारी स्वतन्त्रता का पर्याय भी है, चूंकि शिव अनन्त है और आनन्द उसका स्वरूप है तो उसका स्वातन्त्र्य भी अनन्त हुआ, स्वातन्त्र्य अनन्त हुआ तो शिव का सामर्थ्य भी अनन्त है और महिमा भी। अपने अभिव्यक्तिस्वरूप इस जगत् को वह शिव जानता है और जीवरूप से बद्ध हो जाना और उस जीवरूप में स्वातन्त्र्य के सीमित हो जाने की लीला करना भी उसके इस आनन्द की अभिव्यक्ति ही है। अनन्त सामर्थ्य होने के चलते उसका यह कर पाना कोई बड़ी बात नहीं। अपने आप को जानते हुए भी जीवरूप में स्वयं को भुला देने की लीला करते हुए दुबारा अपने आप को जानना भी शिव का स्वातन्त्र्य ही है। तैत्तिरीय उपनिषत्कार ऋषि भी कहता है कि [3/6] –

आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात् । आनन्दाध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते । आनन्देन जातानि जीवन्ति । आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति । सैषा भार्गवी वारुणी विद्या । परमे व्योमन्प्रतिष्ठिता । स य एवं वेद प्रतितिष्ठति ।

अनुवाद:- उसने तप करके ‘आनन्द ब्रह्म है’ इस प्रकार जाना । निश्चय ही आनन्द से ये सभी भूत उत्पन्न होते हैं, उत्पन्न होकर आनन्द से ही जीवित रहते हैं और प्रयाण करते हुए आनन्द में ही लीन हो जाते हैं । वह यह भृगु के द्वारा जानी हुई और वरुण के द्वारा उपदेश की हुयी विद्या परम आकाश में प्रतिष्ठित है । जो इस प्रकार जानता है, वह उसमें प्रतिष्ठित होता है ।

🙌🌹🙌

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29 Dec, 12:18


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17 Dec, 16:51


कुम्भपर्व-महोत्सव प्रयागराज २०२५

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11 Dec, 12:02


भगवद्गीता किस दर्शन को स्वीकार करती है?
—ब्रह्मलीन स्वामी श्रीअखण्डानन्दसरस्वतीजी महाराज

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09 Dec, 13:21


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07 Dec, 04:48


दूसरा भाग जल्द आएगा 🔥

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07 Dec, 04:45


की स्त्रियों के लिए । उपनयमानो ब्रह्मचारिणं' (111513) यह. अथर्ववेदका मन्त्र स्त्रियोंके उपनयन एवं वेदाधिकारका स्पष्ट निषेधक है। इस सूक्तमें ब्रह्मचयं वेदाध्ययन तथा उपस्थसंयमरूपसे दो प्रकारका बताया गया है। इस मन्त्रमें तो वेदाध्ययन जिसका मूल उपनयन है-ब्रह्मचर्यका निरुपण है, तथा एक प्राध अन्य मन्त्रमें भी शेष सभी मन्त्रोंमे 'ब्रह्मचर्य का अर्थ 'उपस्थसंयम ही है। उक्त मन्त्र में 'ब्रह्मचारिणं' यह पुंलिङ्‌‌ङ्गान्त है, स्त्रोलिङ्‌‌ङ्गान्त नहीं; तब इससे स्त्रियोंका उपनयन नहीं हो सकता है। जब उपनयन ही नहीं; तब स्त्रीका संन्यासा कैसा। (मनुस्मृति २/६७ ) भगवान मनु कहते हैं पतिसेवा गुरौ वासो गृहार्थोँऽग्निपरिक्रिया || ‘स्त्रियोँ के लिये वैवाहिक विधि का पालन ही वैदिक-संस्कार (यज्ञोपवीत), पति की सेवा ही गुरुकुलवास और गृह-कार्य ही अग्निहोत्र कहा गया है |और साथ में ’अत्रि स्मृति १/१३३ में कहा गया है ये छ कर्म स्त्री शूद्रों को पतित करनेवाले हैं ये कौन-कौन से कर्म है जपस्तपस्तीर्थयात्रा प्रव्रज्या मंत्रसाधनम् ।जप , तपस्या , तीर्थयात्रा संन्यास मन्त्रसाचन , देवताओं की आराधना ,क्योंकि वेद धर्म का मूल है- "वेदो धर्ममूलम् । और उसमें मनु० २, १ की । श्रुतिस्मृतिविहितो धर्मः - श्रुति और स्मृति द्वारा विहित आचरण धर्म है।

©चंदन वशिष्ठ

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04 Dec, 07:09


चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्निनिर्वापणं
श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्।
आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं
सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम्

[स्वामी श्रीकृष्णचैतन्यभारतीजी (श्रीचैतन्यमहाप्रभु)]

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02 Dec, 17:36


हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं !!

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27 Nov, 02:05


https://youtu.be/xsrddnlZwlI?si=t2PEmJQGCU5s0NZb

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20 Nov, 16:51


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18 Nov, 18:40


🔥 शिवलिङ्गोद्भव महामहोत्सव 🔥

यत्पुनः स्तम्भरूपेण स्वाविरासमहं पुरा।
स कालो मार्गशीर्षे तु स्यादार्द्राऋक्षमर्भकौ॥
आर्द्रायां मार्गशीर्षे तु यः पश्येन्मामुमासखम्।
मद्वेरमपि वा लिङ्गं स गुहादपि मे प्रियः॥
अलं दर्शनमात्रेण फल तस्मिन् दिने शुभे।
अभ्यर्चनं चेधिकं फलं वाचामगोचरम्॥

(श्रीशिवमहापुराण, विद्येश्वरसंहिता, अध्याय ९, श्लोक १४-१६)

हे वत्सो ! पहले मैं जब ज्योतिर्मय ज्वालामालासहस्राढ्य स्तम्भाकार शिवलिङ्गरूपसे प्रकट हुआ था, उस समय मार्गशीर्षमासमें आर्द्रा नक्षत्र था। अतः जो पुरुष मार्गशीर्षमासमें आर्द्रा नक्षत्र होनेपर मुझ उमापतिका दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिङ्गकी ही झाँकीका दर्शन करता है, वह मेरे लिये कार्तिकेयसे भी अधिक प्रिय है। उस शुभ दिन मेरे दर्शनमात्रसे पूरा फल प्राप्त होता है। यदि [दर्शनके साथ-साथ] मेरा पूजन भी किया जाय तो उसका अधिक फल प्राप्त होता है, जिसका वाणीद्वारा वर्णन नहीं हो सकता॥१५-१७॥

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यह नक्षत्र — मंगलवार (19-11-2024) को है।
मङ्गलवार को सम्पूर्ण दिवस।

विशेष- रुद्राभिषेक, शिवलिङ्गार्चन, पार्थिवेश्वरपूजन, शिवलिङ्ग दर्शन आदि करें।

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16 Nov, 16:02


जो लोग स्वयं को आवश्यकता से अधिक चतुर समझ बैठते हैं और शास्त्रीय मर्यादाओं एवं धार्मिक विधि-विधानों की आलोचना तो करते ही हैं साथ ही उनका अतिक्रमण भी करते हैं। ऐसे लोगों को आङ्गिरस् स्मृति के इन वचनों का मनन कर लेना चाहिए कि -- कलियुग में भी मनुष्य को अति अन्याय, अतिद्रोह, अतिक्रूरता, सामाजिक मर्यादाओं और सदाचार का अति उल्लंघन और शास्त्रीय विधानों का अति अनादर नहीं करना चाहिए और न किसी को करने देना चाहिए। अन्यथा वैसा करने वाला, करवाने वाला, वैसा करने की प्रेरणा देने वाला और उसमें नियोजित करने वाला तथा उसके सहायक सहित वे सभी पापी शीघ्र नष्ट हो जाते हैं-
अत्यन्यायमतिद्रोहमतिक्रौर्यं कलावपि ।
अत्यक्रमं चात्यशास्त्रं न कुर्यान्नापि कारयेत् ।।
यदि कुर्वीत मोहेन सद्यो विलयमेष्यति ।
कर्ता कारयिता चापि प्रेरकश्च नियोजकः ।।१६
तत्सहायश्च सर्वे ते लयमेष्यन्ति सत्वरम् ।
आङ्गिरस स्मृति, पूर्वाङ्गिरसम् १८-१६ (स्मृतिसन्दर्भ भाग ५ पृ० २६५६) ।

👉 अशास्त्रविहित आचरण करने वाले अनाचारी और अधर्मी मनुष्य निश्चित रूप से आत्मपतन की दिशा में अग्रसर होते हैं। यह कहा गया है कि - अधर्माचरण में संलग्न और धर्ममार्ग से विचलित मनुष्य की आयु नष्ट हो जाती है, उसका अपयश फैलता है, उसका सौभाग्य क्षीण हो जाता है, उसकी दुर्गति होती है तथा उसके स्वर्गस्थ पितरों का भी पतन हो जाता है—
आयुर्विनश्यत्ययशो विवर्धते भाग्यं क्षयं यात्यति दुर्गतिं व्रजेत्।
स्वर्गाच्च्यवन्ते पितरः पुरातना धर्मव्यपेतस्य नरस्य निश्चितम् ।।
स्कन्द ३।३।१५।३५)
हरिभक्ताश्च निष्कामाः स्वधर्मनिरता द्विजाः ।
ते च यान्ति हरेर्लोकं क्रमाद्भक्तिबलादहो ।।
[श्रीमद्देवीभागवत ]
जो द्विज अपने धर्ममें संलग्न रहते हुए निष्काम भावसे भगवान् श्रीहरिकी भक्ति करते हैं l वे उस भक्तिके प्रभावसे क्रमसे श्रीहरिके लोकको प्राप्त होते हैं॥

जय महादेव
प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें‼️

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12 Nov, 09:18


जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥

(श्रीमद्भागवतमहापुराण ०१।०१।०१)
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-
र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः॥

(श्रीमद्भागवतमहापुराण १२।१३।०१)

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11 Nov, 11:17


बौद्धप्रस्थानमें "
न सन् नासन् न सदसन्न चाप्यनुभयात्मकम्" -

यह चार कोटियोंमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है, 'न भावो नाप्यभावः", "न नित्यो नाप्यनित्यः", "नोच्छेदो नापि शाश्वतः।" यह दो कोटियोंमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है, "अद्वय" यह एक कोटिमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है। परन्तु "नित्यो ध्रुवः शिवः " की उक्तिसे विधिमुखसे वस्तुका प्रतिपादन है। "जो अनित्य नहीं, वह नित्य है। जो अध्रुव नहीं, वह ध्रुव है। जो अशिव नहीं, वह शिव है।" की दृष्टिसे यह एक कोटिमें विधिमुखसे आत्मवस्तुका प्रतिपादन है। नित्यको केवल अनित्यका, ध्रुवको केवल अध्रुवका तथा शिवको केवल अशिवका प्रतिषेध मानें तो प्रतिपाद्यशून्य अभावात्मक असत् ही सिद्ध होगा। ऐसी स्थितिमें उसे चतुष्कोटि - विनिर्मुक्त कहना वाग्विलासमात्र सिद्ध होगा। बन्ध्या - पुत्र, शश - शृङ्ग, आकाश - कुसुममें बन्ध्या और पुत्र, शश तथा शृङ्ग, आकाश और कुसुम - दोनों शब्द भाववाचक हैं। तथापि बन्ध्यापुत्रादि अलीक पदार्थ हैं। विवाहिता बन्ध्यामें देहगत प्रतिबन्धकताके कारण सन्तानहीनता होती है। नरमें चतुष्पाद, पुच्छ, पक्ष तथा शृङ्ग चारोंसे विहीनता पुरुषार्थ चतुष्टयसाधकता है। वानरमें चतुष्पाद - पक्ष - शृङ्गः - विहीनता धर्म, अर्थ, काम साधकता है। कपोतादिमें द्विपाद, पुच्छ और पक्षसम्पन्नता अर्थ, कामसाधकता तथा नभचरता है। गवादिमें चतुष्पाद, पुच्छ तथा शृङ्गः - संम्पन्नता अर्थ, कामसाधकता तथा भूचरता है। आर्द्रपृथ्वीमें पुष्पकी उपादानता तथा जलकी निमित्तता सिद्ध है। पङ्किल जलमें तापापनोदक और सुगन्धित पुष्पकी प्रचुर निमित्तता सिद्ध है। तद्वत् पुष्पाभिव्यक्तिमें भूमि तथा बीजनिष्ठ उष्णता, प्राणदा तथा अवकाशप्रदता भी सन्निहित है, तथापि पुष्पकी भूमिकुसुम, जलकुसुम (जलज) ही संज्ञा है, न कि तेजः कुसुम, वायुकुसुम या आकाशकुसुम। इसका कारण पृथ्वी तथा जलकी प्रधानता या मुख्यता है।


वैदिकप्रस्थानमें "
नान्तः प्रज्ञं न बहिष्प्रज्ञं नोभयतः प्रज्ञं न प्रज्ञानधनं न प्रज्ञं नाप्रज्ञम्। अदृष्टमवहार्यमग्राह्यमलक्षणमचिन्त्य- मव्यपदेश्यमेकात्मप्रत्ययसारं प्रपञ्चोपशमं शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः " (माण्डूक्योपनिषत् ७) में "नान्तः प्रज्ञ "
आदि निषेध मुखसे आत्माका प्रतिपादन है। "शान्तं शिवम्" • यह विधिमुखसे आत्माका प्रतिपादन है।

"न सती, न असती, न सदसती" (सर्वसारोपनिषत् ४) के अनुसार माया न सती है, न असती, न उभयरूपा सदसती ही। परन्तु "ॐ तदाहुः किं तदासीत्तस्मै स होवाच न सन्नासन्न सदसदिति तस्मात्तमः सञ्जायते।" (सुबालोपनिषत् १), "...तमः परे देव एकीभवति परस्तान्न सन्नासन्नासदसदित्ये- तन्निर्वाणानुशासनमिति वेदानुशासनम् "
से तमस् का लयस्थान और उद्धवस्थान परदेवस्वरूप ब्रह्म भी सत्, असत् तथा सदसत् से विलक्षण सिद्ध होता है। "
सविलासमूलाविद्या सर्वकार्योपाधिसमन्विता सदसद्विलक्षणानिर्वाच्या " (त्रिपाद्विभूतिमहानारायणोपनिषत् ३)
के अनुसार मूलाविद्यारूपा माया सत्, असत् से विलक्षणा अनिर्वाच्या है। वेदान्ती मायाको सदसद्विलक्षणा अनिर्वाच्या मानते हैं।

नासदूपा न सदूपा माया नैवोभयात्मिका।
अनिर्वाच्या ततो ज्ञेया मिथ्याभूता सनातनी।। (बृहन्नारदीय)

"माया न असत् है, न सत् ही, न उभयात्मिका ही, वह मिथ्या और सनातनी है। अतः अनिर्वाच्या ही समझने योग्य है।।"


यह लेख बौद्ध सिद्धांत और वेदांत से लिया गया है 🌼

श्रीवैदिक स्मार्त्त

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09 Nov, 06:18


गोपाष्टमी की महिमा ...✍️

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07 Nov, 12:10


छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं मंगलमय 🌼

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06 Nov, 09:04


आर्ष इतिहासग्रन्थ 'महाभारत' में अवतारवाद एवं मूर्तिपूजा का वर्णन

(महाभारत, आश्वमेधिकपर्व, वैष्णवधर्मपर्व, अध्याय ११६, श्लोक २८-३०)

// गीताप्रेसगोरखपुरसंस्करणमें- (अध्याय ९२)

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06 Nov, 07:08


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04 Nov, 13:03


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02 Nov, 07:28


🌸 सभी सनातनधर्मावलम्बी धर्मप्रेमीसज्जनों!!
आज आप सभी उपर्युक्तविधिसे सवत्स भगवती वेदलक्षणा गोमाता का पूजन सम्पन्न करें।

🍃 पूजनके अनन्तर भारतवर्षके समस्त धर्मानुरागी बन्धुओं के परस्पर उत्साहवर्धन हेतु अपने द्वारा पूजित वेदलक्षणा गोमाता का चित्र भी कमेन्ट रूप में अवश्य ही प्रेषित करें!! @Dharmveer_Dal

गोमाताकी जय हो! गोहत्या बन्द हो!!

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02 Nov, 07:20


अतिसंक्षिप्तगोपूजनम्

(पूजनकर्त्ता कृतनित्यक्रियः सर्वपूजनसाधारर्णी व्यवस्थां सम्पाद्य संकल्पपूर्वकं यथोपचारैः सवत्सां गां पूजयेत्।)

संकल्पः-
अद्येत्यादि देशकालौ संकीर्त्य अमुकोऽहं सवत्सगोपूजनं करिष्ये। (अमुक के स्थान पर अपना-अपना नाम लें)

ध्यानम्-
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत्स्थावरजंगमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
औं सवत्सगव्यै नमः ध्यानं समर्पयामि।


आवाहनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः आवाहनं समर्पयामि।

आसनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः आसनं समर्पयामि।

जलम्-
औं सवत्सगव्यै नमः पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि।

चन्दनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः इदमनुलेपनं समर्पयामि।

अक्षताः-
औं सवत्सगव्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि।

पुष्पम्-
औं सवत्सगव्यै नमः पुष्यं पुष्पमाल्यं च समर्पयामि।

धूपः-
औं सवत्सगव्यै नमः धूपमाघ्घ्रापयामि।

दीपः-
औं सवत्सगव्यै नमः दीपं दर्शयामि।

नैवेद्यम्
औं सवत्सगव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि।

आचमनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि।

दक्षिणादव्यम्-
औं सवत्सगव्यै नमः दक्षिणाद्रव्यं समर्पयामि।

पुष्पांजलिः-
औं सवत्सगव्यै नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।

प्रदक्षिणा-
औं सवत्सगव्यै नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि।

नमस्कारः-
गावो ममाग्रतः सन्तु गावो मे सन्तु पृष्ठतः।
गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
औं सवत्सगव्यै नमः नमस्कारं निवेदयामि।

(इससे भी कम समय में पूजन के लिये गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से पंचोपचार पूजन कर ले।)

अनेन यथालब्धोपचारपूजनेन गोमाता प्रीयतां न मम।

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02 Nov, 05:32


समस्त गोभक्त सनातनधर्मावलम्बियों को
गोनवरात्र महोत्सव की मङ्गलमय शुभकामनाएँ।


भगवती गोमाता सबका मङ्गल करें। 🌺

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30 Oct, 14:09


भारत के लगभग समस्त प्रान्तोंमें दीपावली कल गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही मनाई जाएगी।

आर्षपक्ष में शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों द्वारा यही निर्णीत है। सूर्यसिद्धान्तीय गणितपद्धति का अनुगमन करने वाले काशी के हृषीकेश पञ्चाङ्ग, विश्व पञ्चाङ्ग; बिहार के विद्यापति पञ्चाङ्ग और विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग; राजस्थान के श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग; महाराष्ट्र के देशपाण्डे पञ्चाङ्ग; दक्षिण भारत के शृङ्गेरीपीठसे प्रकाशित पञ्चाङ्ग, मध्वमठ से प्रकाशित पञ्चाङ्ग; श्रीकाशीविद्वत्परिषद्; अखिलभारतीयविद्वत्परिषद्; केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालय इत्यादि सभी ने एक स्वरमें कल- गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही दीपावली एवं प्रदोषकालमें लक्ष्मीपूजन का निर्णय किया है।

स्मरण रहे, शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों के अतिरिक्त, दो बहुश्रुत दृग्गणितीय पद्धति का अनुगमन करने वाले पञ्चाङ्ग १) जगन्नाथ पञ्चाङ्ग एवं २) सम्पूर्णानन्दसंस्कृतविश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित उत्तरप्रदेशशासनद्वारा संरक्षित श्रीबापूदेशास्त्रीद्वारा प्रवर्तित पञ्चाङ्ग में भी दीपावली कल गुरुवार ३१/१०/२०२४ को ही लिखी है।

आर्ष सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष श्रीवेदव्यास, श्रीविद्यारण्यस्वामि आदि पूर्वाचार्यों द्वारा मान्य है। धर्मसम्राट् स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज, पुरीपीठ के १४४वें पीठाधीश्वर पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज, वर्तमान शृङ्गेरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीभारतीतीर्थ जी महाराज एवं शृङ्गेरीपीठकी विद्वत् मण्डली एवं वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज एवं उनकी सच्छिष्यमण्डली द्वारा सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष ही मान्य है।

सुतरां- शास्त्रीयपक्ष के अनुसार दीपावली कल (गुरुवार तदनुसार ३१/१०/२०२४ को) ही है।

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद 🌼🚩

30 Oct, 03:00


किसे जानें और किसे नहीं, जिसे जानें उसे कैसे जानें इत्यादि पर विमर्श करनेसे पूर्व वस्तुतः ज्ञेय तत्व क्या है यह जानना आवश्यक है।

"ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्॥"
(श्रीमद्भगवद्गीता १३।१८)
"वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो"
(श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५)
"मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥"

(श्रीमद्भगवद्गीता ७।७)
"वासुदेवः सर्वमिति"
(श्रीमद्भगवद्गीता ७।१९)

ज्ञानस्वरूप ज्ञानगम्य और ज्ञेय एकमात्र देशकाल एवं वस्तुकृत परिच्छेदविनिर्मुक्त सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्मात्मतत्व और उसका एकत्व ही है। श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासादि सकल सच्छास्त्रोंमें उस एक के विज्ञानसे ही सर्वविज्ञान और उस एक के ही विज्ञानसे मुक्ति भी कही गई है। भगवान् श्रीकृष्ण का यह स्पष्ट उद्घोष है- "वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो" (श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५) अर्थात्, "समस्त वेदोंद्वारा मैं (परमात्मा) ही जाननेयोग्य हूँ।" "एव" का प्रयोग करके अन्य किसी तत्वके ज्ञेयत्वका स्पष्ट निषेध कर दिया गया है।

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीतामें कहा है-
"ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वाऽमृतमश्नुते।
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते॥"

(श्रीमद्भगवद्गीता १३।१३)
अर्थात्, उस ज्ञेय परामात्मतत्व को यथावद्रूपसे कहूँगा जिसे जानकर अमृतत्व प्राप्त हो जाता है।

आगे "ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं" (गीता १३।१८) कहकर संविद्रूप सदानन्द ब्रह्मात्म तत्व को ही ज्ञेय और ज्ञानगम्य कहा है। पुनश्च, "वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो" (श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५) कहकर वेदों का वेद्य तत्व मैं (परब्रह्म परमात्मा) ही हूँ इसका निरूपण किया है।

अतः यह स्पष्ट है कि ब्रह्मात्मतत्व ही वह वेदोंका अपूर्वप्रतिपाद्य एकमात्र ज्ञेय तत्व है।

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29 Oct, 03:44


द्रव्यज्ञानक्रियात्मिका त्रिगुणमयी प्रकृति भगवान् की शक्ति

श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य
श्रीपुरुषोत्तमपुरीक्षेत्रस्थ-श्रीगोवर्द्धनमठ-उड्ड्याणपीठाधीश्वर
स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज

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29 Oct, 03:41


https://youtu.be/Y3zJDbr-VPY

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27 Oct, 09:43


जवानी ही शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा को पुष्ट करनेका सबसे उत्तम समय है।इसे अपवित्र कार्यों में लगाना दुख का कारण है॥

~ पूज्यपाद श्री उड़िया बाबा

बहुत सुंदर और प्रेरक उद्धरण! पूज्यपाद श्री उड़िया बाबा जी के शब्दों में गहरी सच्चाई और जीवन की महत्वपूर्ण सबक हैं।

जवानी का समय हमारे जीवन एक महत्वपूर्ण चरण है, जब हमारा शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा विकसित होते हैं। इस समय का सही उपयोग करना और इसे सकारात्मक दिशा में लगाना बहुत जरूरी है।

इस उद्धरण के माध्यम से, श्री उड़िया बाबा हमें याद दिलाते हैं कि हमारी जवानी को अपवित्र कार्यों में बर्बाद करने से हमें दुख और पछतावा हो सकता है। इसके बजाय, हमें अपनी जवानी को ज्ञान, सेवा, और आत्म-साक्षरता के लिए समर्पित करना चाहिए।

🙌🌹🙌

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26 Oct, 03:46


मायाको बाधयोग्य अनादिसान्त मानने के कारण भगवत्पाद श्रीशिवावतारशङ्कराचार्यमहाभाग वस्तुतः 'मायावादके उच्छेदक' थे।

अतः उनके सिद्धान्तको मायावाद और उन्हें मायावादी कहना शिवापराध है, शिवनिन्दातुल्य महापाप है।

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद 🌼🚩

26 Oct, 02:23


क्या भगवत्पाद श्रीशिवावतारशङ्कराचार्यमहाभाग
का सिद्धान्त 'मायावाद' है?


श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य
श्रीपुरुषोत्तमपुरीक्षेत्रस्थ-श्रीगोवर्द्धनमठ-उड्ड्याणपीठाधीश्वर
स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद 🌼🚩

26 Oct, 02:20


सर्वोपयोगी सामग्री 👆🏻

विशेषकर युवाओं हेतु।

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26 Oct, 02:16


ब्रह्मचर्य —रक्षाके उपाय और फल,
स्वामी श्रीअखण्डानन्दसरस्वतीजी महाराज

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25 Oct, 10:24


https://youtu.be/hM9IoiGV2Ts?si=heaz17_lM2FqeDq5

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23 Oct, 14:33


श्रीशङ्कराचार्यो विजयतेतराम्! 🚩

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21 Oct, 14:32


https://t.me/dharmanushasanam

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20 Oct, 06:42


https://www.youtube.com/live/cThOohN6oTs?si=Y0ntVU3L4HuLzT_7

Live 🔴

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19 Oct, 20:15


॥ वन्दे सदा श्रीकरपात्रिणं गुरुं ॥

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद 🌼🚩

15 Oct, 05:39


पुराण विद्या पुरातन हैं कल्पित नहीं,,,,,,,,,पुरातनत्वात् पुराणः ,पुरापि नवम्।

पुराणं सर्व शास्त्राणां,प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्।
अनन्तरस्तु वक्त्रेभ्यो,वेदास्तस्य विनिर्गताः।।ब्रह्माण्ड पुराणे
ब्रह्माजी के श्रीमुख से सर्वप्रथम पुराणों का आविर्भाव हुआ तदनन्तर वेदों का प्रादुर्भाव हुआ,,शंका की आवश्यकता ही नहीं,,,सुप्तप्रतिबुद्धन्याय(जैसे सोकर जगे हुए व्यक्ति को सोने से पूर्व की समग्र स्मृति स्वतः हो जाती है) से प्रलय पूर्व की स्मृतियां ही पुराण और वेद के रूप में जाग्रत होती हैं, ब्रह्मा वेदों के सृष्टा नहीं स्मर्ता हैं,,तस्य स्मर्ता स्वयंभुवः।

श्रूयतां यत्पुरा वृत्तं,पुराणेषु मया श्रुतम्। बाल्मीकि रामायणे
पुराणगत वृत्तान्त सुनिये जो मैंने पहले सुना था।।

पुराण विद्या वेदैवास्ति (वात्सायन्)
वेदार्थ का प्रतिपादन करने बाली होने से पुराण विद्या भी वेद वत् ही है।

पुराणं न्याय मीमांसा,धर्मशास्त्रांगमिश्रिताः।
वेदाः स्थानानि विद्यानां,धर्मस्य च चतुर्दश।।
1,,, पुराण,,2,,, न्याय,,,3,,, मीमांसा,,,4,,, धर्मशास्त्र,,,5,,, व्याकरण()मुख,,,6,,, ज्योतिष(नेत्र),,,7,,, शिक्षा(नासिका),,,8,,, कल्प(हस्त),,,9,,, निरुक्त(कर्ण),,,10,,,छन्द(पाद),,,11,,,ऋग्वेद,,,12,,,यजुर्वेद,,,13,,,सामवेद,,,14,,,अथर्ववेद।

4,,वेद
6,,अंग
4,,पुराण,न्याय,मीमांसा,धर्मशास्त्र इस प्रकार चौदह विद्या मानी गयी हैं।

ऋचः सामानि छंदांसि,पुराणं यजुषा सह।
उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे,दिवि देवा दिवि श्रितः।।11-7-24 अथर्वे

स (ईश्वरः)वृहतीं दिशं अनुव्यचलत् तमितिहासश्च पुराणंच गाथाश्च नाराशंसीश्च अनुव्यचलन्।
स दिशोन्वैक्षत। प्राचीं दक्षिणां प्रतीचीं उदीचीं ध्रुवामूर्ध्वामिति।ताभ्यः पंच वेदान्निरमिमत।सर्पवेदं(गारुडी विद्या)पिशाचवेदं असुरवेदं(मारण मोहन वशीकरणादि प्रयोजकम्) इतिहास वेदं पुराणवेदम् (गोपथ ब्राह्मणे)

एवमिमे सर्वे वेदा निर्मिताः सकल्पाः सरहस्याः सब्राह्मणाः सोपनिषत्काः सेतिहासाः सान्वाख्यानाः सपुराणाः सस्वराः ससंस्काराः सनिरुक्ताः सानुशासनाः सानुमार्जनाः सवाकोवाक्याः (गोपथे)

वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतम्।
मन्वर्थं विपरीतायाः सा स्मृतिर्नैव गद्यते।।(वशिष्ठ)
वेदार्थ से समन्वित होने के कारण मनुस्मृति का प्राधान्य है,मनु के विपरीत अर्थ का प्रतिपादन करने वाली स्मृति मान्य नहीं,,ऐसा वशिष्ठ जी का कथन है।।

स्वाध्यायं श्रावयेत् पित्रे,धर्मशास्त्राणि चैव हि।
आख्यानमितिहासांश्च,पुराणान्यखिलानि च।।(मनौ)
श्राद्ध के उपरान्त पितरों की प्रीति के लिये,वेद पारायण श्रवण कराये,,धर्म शास्त्र आख्यान ,इतिहास, पुराणादि को भी सुनाये।।

महाभाष्यकार कहते हैं,,,
सप्तद्वीपा वसुमती त्रयो लोकाः चत्वारो वेदाः सांगाः सरहस्याः बहुधा विभिन्नाः एकशतमध्वर्यु शाखाः,सहस्रवर्त्मा सामवेदःएकविंशतिधा वाह्वृच्यं नवधाथर्वणो,,,वेदो वाक् वाक्यमितिहासः पुराणम् वैद्यकमित्येतावान् शब्दस्य प्रयोग विषयः।(पतंजलि भाष्ये)

हम पतंजलि के महाभाष्य को तो पढते हैं प्रमाण भी मानते हैं,,परन्तु वे स्वयं पुराणों का स्मरण अपनी पवित्र वाणी से करते हैं तो सभी को पुराणों के प्रति दुर्भाव त्यागकर उनकी उपादेयता का लाभ लेना चाहिये।।न कि अपने दुराग्रह के जाल में पङकर पुराणों की निन्दा करें।।

शतपथे,,,4-4
तत्रैव,,13-4-1,,दशमेहनि पुराणमाचक्षीत
तत्रैव,,15-6-1-12,,,
वेदों में पुराण वीज रूप से हैं,,तथा पुराणों में वेद का ही वृक्षात्मक विस्तार है...जैसे,

यजुर्वेद,,,नमोस्तु नीलग्रीवाय,,,
पुराण,,,,,श्री व्यास जी ने समुद्रमन्थन के प्रसंग में शिव की शितिकण्ठता का वर्णन किया है।।

वेद ,,इदं विष्णुर्विचक्रमे,,,,,,
पुराण,,,वामनावतार की कथा देखें।

वेद,,,भृगूणामंगिरः तपसातप्यध्वम्,,
पुराण,,,भृगु तथा अंगिरा के प्रसंगों से आलोक प्राप्त करें।

वेद,,,पुरोरवा असि,,,
पुराण,,,,पुरुरवा का आख्यान।

वेद,,,इन्द्रो दधीचि अस्थिभिःवृत्राण्य प्रतिष्क्रतःजघान नवतीर्नव।।
पुराण,,,इन्द्रकृत वृत्रासुर वध तथा दधीचि का अस्थि दान।।

शतपथे,,,यस्या वै मनुर्वैवस्वतो वत्स आसीत् पृथिवी पात्रं वैन्यो धोक् तां कृषिं च सस्यं चाधोक्।सोदक्रामत्सा सुसुरानागछत्तामसुरा उपाहु यत् एहीति तस्या विरोचनःप्रह्लादि वत्स आसीत्,,,,8-5-13,,
पुराण,,महाराज पृथु चरित्र।

उपनिषद्,,,सत्यं वद।
पुराण,,सत्य हरिश्चन्द्र कथा।

उपनिषद्,,धर्मं चर,,
पुराण,,श्रीराम चरित्र,धर्मराज युधिष्ठिर चरित्र।

वेद,,स्वाध्यायान्मा प्रमद,,
पुराण,,महर्षि अष्टावक्र चरित्र।

वेद,,अतिथि देवो भव,,,
पुराण,,,महाराज शिवि रन्तिदेव।

वेद,,मातृदेवो भव पितृदेवो भव,,
पुराण,,,श्रवण कुमार,,,महाराज पुरु।

वेद,,,आचार्य देवो भव,,
पुराण,,,आरुणि,एकलव्यादि।

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15 Oct, 05:39


अध्यात्मभाषा प्रथमा,लौकिकी च ततः परा।
तृतीया परकीयेति,शास्त्रभाषा त्रिधा स्मृता।।(भरद्वाजः)
शास्त्रों में भाषा के तीन स्तर माने जाते हैं,,1 आध्यात्मिक 2 आधि भौतिक 3 आधिदैविक

इतिहासपुराणाभ्यां वेदार्थमुपवृहयेत्।
विभेति अल्पश्रुतात् वेदो,मामयं प्रहरिष्यति।।
इतिहास पुराणों के द्वारा वेदार्थ का उपवृहण करना चाहियें क्योंकि इनकी उपयोगिता वेदार्थावगमन के लिये ही है,,,अल्पज्ञ इतिहासुपुराण ज्ञान रहित व्यक्ति से तो वेद भी भयभीत होते हैं,,,क्यों,,क्योंकि उनको भय रहता है,,ये मेरे अर्थ का अनर्थ करके मेरे गात्र पर प्रहार करेगा।।.शिवार्पणमस्तु

सङ्कलयिता त्र्यम्बकेश्वरश्चैतन्य:

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15 Oct, 05:39


पुराण विद्या पुरातन हैं

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद 🌼🚩

12 Oct, 17:03


स्मार्त्तों के लिए दशमी विद्धा एकादशी ही करणीय

एकादशी व्रत कल-रविवार, १३ अक्टूबर

धर्मानुशासनम्-परंपरावाद 🌼🚩

12 Oct, 15:30


ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ-पुरीपीठ द्वारा सञ्चालित प्रातः तथा सायं संकीर्तन-गोष्ठीमें भाग लेने एवं पूज्यपाद जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य महाभाग के प्रवासादि की सूचना हेतु पीठका ऐप प्ले-स्टोर से डाउनलोड करें—

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12 Oct, 04:49


शस्त्र पूजन विधि.pdf

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