Tehzeeb Hafi

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Tehzeeb Hafi

20 Jan, 19:05


दुख अपना छुपाने में ज़रा वक़्त लगेगा
अब उस को भुलाने में ज़रा वक़्त लगेगा

तू ने जो पुकारा तो पलट आऊँगी वापस
हाँ लौट के आने में ज़रा वक़्त लगेगा

लिक्खा था बड़े चाव से जिस नाम को दिल पर
वो नाम मिटाने में ज़रा वक़्त लगेगा

देता है किसी और को तरजीह वो मुझ पर
उस को ये जताने में ज़रा वक़्त लगेगा

जिस शाख़ पे फल-फूल नहीं आए हैं अब तक
वो शाख़ झुकाने में ज़रा वक़्त लगेगा

सब रंज-ओ-अलम मिलने चले आए हैं मुझ से
महफ़िल को सजाने में ज़रा वक़्त लगेगा

मैं देख भी सकती हूँ किसी और को तुझ संग
ये दर्द कमाने में ज़रा वक़्त लगेगा

जो आग 'सदफ़' हिज्र ने है दिल में लगाई
वो आग बुझाने में ज़रा वक़्त लगेगा

सुग़रा सदफ़

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 19:02


आप थे जिस के चारा-गर वो जवाँ
सख़्त बीमार है दुआ कीजे

Jaun

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 19:02


ख़ामुशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मिरे गुमान में क्या

मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या

अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या

शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुक़सान तक दुकान में क्या

वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या

बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में
आबले पड़ गए ज़बान में क्या

यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या

है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूद
ख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या

मेरी हर बात बे-असर ही रही
नक़्स है कुछ मिरे बयान में क्या

ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से
आ गया था मिरे गुमान में क्या

दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत
ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या

~ Jaun Elia

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 19:00


पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
पानी में अक्स चाँद का देखा तो रो दिए

नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए
ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए

उड़ता हुआ ग़ुबार सर-ए-राह देख कर
अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए

बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए
साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए

रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई
'साग़र' हमारे हाथ से छलका तो रो दिए

साग़र सिद्दीक़ी

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:59


Legend waseem nadir

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:58


Bhai log react krte raho❤️

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:55


वैसे तो देखने के लिये काएनात है,
लेकिन तुम्हारी आँखों में कुछ और बात है।

ویسے تو دیکھنے کے لئے کائنات ہے
لیکن تمہاری آنکھوں میں کچھ اور بات ہے

Mehdi Husain Khaalis

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:55


सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं,
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं!!

कोई तो निकल आएगा सरबाज़-ए-मोहब्बत,
दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं!!

कुछ देख रहे हैं दिल-ए-बिस्मिल का तड़पना,
कुछ ग़ौर से क़ातिल का हुनर देख रहे हैं!!

पहले तो सुना करते थे आशिक़ की मुसीबत,
अब आँख से वो आठ पहर देख रहे हैं!!

ख़त ग़ैर का पढ़ते थे जो टोका तो वो बोले,
अख़बार का परचा है ख़बर देख रहे हैं!!

पढ़ पढ़ के वो दम करते हैं कुछ हाथ पर अपने,
हँस हँस के मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर देख रहे हैं!!

मैं 'दाग़' हूँ मरता हूँ इधर देखिए मुझ को,
मुँह फेर के ये आप किधर देख रहे हैं!!

~ दाग़ देहलवी

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:55


Keep reacting for more videos

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:53


Ye nhi samjh aa rhi to kya hi Ghazal samjhoge aap log
Reactions nil

Tehzeeb Hafi

20 Jan, 18:53


आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा

यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने
फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा

महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं
वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा

-Living Legend Bashir badr

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