कान्तासम्मिश्रदेहोSप्यविषयमनंसा यः पुरस्ताद्यतीनाम् ।
अष्टाभिर्यस्य कृत्सनं जगदपि तनुभिर्बिभ्रतो नाभिमानः
सन्मार्गालोकनाय व्यपनयतु स वस्तामसीं वृत्तिमीशः॥
*मालवीकाग्निमित्र में महाकवि क़ालिदास की शिवस्तुति*
जो अपने भक्तों को प्रभूत फल देने वाले , परम - ऐश्वर्य में स्थित होकर भी जो गज- चर्म को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं , जो पत्नी से मिश्रित तन वाला होकर भी , विषयों से परे मन वाला है , यतियों का अग्रणी है , जो अपने आठ शरीरों से जगत को शारण करने के पश्चात् भी अहंकार- शून्य है वे शिव हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें और हमारी तामसी - वृत्ति को दूर करें ।
🙏जय श्री कृष्ण🙏