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Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

@sanskritshloka


Random collection of Shlokas

श्लोकेन वा तदर्धेन पादेनैकाक्षरेण वा।
अवन्घ्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभिः।।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक (English)

Are you a lover of Sanskrit poetry and looking to immerse yourself in the beauty of ancient Indian scriptures? Look no further than 'Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक' channel on Telegram. This channel, with the username @sanskritshloka, offers a random collection of Shlokas that will transport you to a world of spiritual enlightenment and cultural richness.

'Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक' is dedicated to sharing the profound wisdom and philosophical teachings encapsulated in Sanskrit verses. Each Shloka is carefully curated to inspire, educate, and uplift your soul. Whether you are seeking solace, motivation, or simply a deeper connection with Indian heritage, this channel has something in store for everyone.

The name 'Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक' itself translates to 'Sanskrit Verses' in English. The channel aims to preserve and promote the timeless legacy of Sanskrit literature through its diverse collection of shlokas. From verses on spirituality and morality to those celebrating nature and cosmic harmony, you will find a vast array of poetic gems waiting to be explored.

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Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

14 Jan, 06:03


इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् |

I have described this inexhaustible Yog through Vivasvan.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

13 Jan, 17:25


विषं विषयवैषम्यं न विषं विषमुच्यते।
जन्मान्तरघ्ना विषया एकजन्महरं विषम्।।

महोपनिषत् ३/५४-५५

विषयवासना के कारण चित्त की विषमता ही विष है, वह विष विष नहीं कहाता क्योंकि विष तो एक जन्म का ही नाश करता है विषय तो जन्म-जन्मांतर को नष्ट कर देते हैं।।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

13 Jan, 17:23


"धर्मार्थसङ्ग्रहणं साधु परे तु दानतः ।
सर्वे प्राप्नोति सन्तुष्टमदातारः सदा सदा ।।"

"जो व्यक्ति धर्म और अर्थ के लिए सदा दान करता है, वही सच्चा दाता होता है और सदैव संतुष्ट रहता है ।"

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13 Jan, 17:10


सर्वेभ्यो मकरसंक्रमणस्य बहवः शुभाशयाः।

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13 Jan, 05:09


उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य. वरान्निबोधत ।
क्षुरस्य धारा निशिता, दुरत्यया
दुर्गं पथस्तत्कवयो बदन्ति ॥

14 / 3/1 कठोपनिषद्

अरे अविद्याग्रस्त लोगो ! उठो, [ अज्ञान-निद्रासे] जागो और श्रेष्ठ पुरुषोंके समीप जाकर ज्ञान प्राप्त करो। जिस प्रकार छुरे की धार तीक्ष्ण और दुस्तर होती है। वैसे ही यह मार्ग कठिन है ।

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13 Jan, 05:07


यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्रीरार्जवं यतः ।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः ।

(महाभारत, उद्यो. पर्व - ६८/९)

जहाँ सत्य, धर्म, लज्जा और सरलता हैं वहीं श्रीकृष्ण निवास करते हैं और जहाँ श्रीकृष्ण रहते हैं वहीं विजयश्री प्राप्त होती है।

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13 Jan, 04:58


ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी ॥
तीर्थानामुत्तमं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।

- पद्मपुराणम्, ६.२४.३[२],४[१]

Just as the Sun is among the planets and the Moon is among the stars, the best among all Tirthas (holy places) is the one known as Prayaga.

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10 Jan, 09:01


उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। सोत्साहस्य च लोकेषु न किञ्चिदपि दुर्लभम्॥

वाल०रामा० ४/१/१२१

हे आर्य! उत्साह बहुत बलवान होता है, उत्साह से बड़ा कोई बल नहीं है तथा उत्साही व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।

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10 Jan, 08:59


“अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् ।
स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङमयं तप उच्यते ॥”

"उद्वेग को जन्म न देने वाले, सत्य, प्रिय और हितकर वचन बोलना, स्वाध्याय और अभ्यास करना - यह वाणी की तपस्या है ।"

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10 Jan, 04:37


"अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद्विश्वतो मुखम् ।
अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः ।।"

"सूत्र के छह लक्षण होते हैं - अल्पाक्षरता (कम शब्द), असंदिग्धता (स्पष्टता), सारवत्ता (सारपूर्णता), सामान्य सिद्धांत (सार्वभौमिकता), निरर्थक शब्द का अभाव (अनावश्यक शब्दों का न होना), और दोषरहितत्व (दोष रहित होना) । ये सभी गुण सूत्रविदों द्वारा मान्यता प्राप्त हैं ।"

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08 Jan, 12:05


“मीनः स्नानरतः फणी पवनभुक्त मेषस्तु पर्णाश्नेनिराशी खलु चातकः प्रतिदिनं शेते बिले मूषकः ।
भस्मोध्द्वलनतत्परो ननु खरो ध्यानाधिसरो बकः ।
सर्वे किं न हि यान्ति मोक्षपदवी भक्तिप्रधानं तपः ॥”

"मीन (मछली) नित्य जल में स्नान करती है, साँप वायु का भक्षण करता है; चातक तृषित रहता है, चूहा बिल में रहता है, गधा धूल में भस्मलेपन करता है; बगुला आँखें मूंदकर ध्यान करता है, परंतु इनमें से किसी को भी मोक्ष नहीं मिलता, क्योंकि तपस्या में भक्ति प्रधान है ।"

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03 Jan, 13:58


पवित्राणां पवित्रं यो मङ्गलानां च मङ्गलम्।
दैवतं दैवतानां च भूतानां योऽव्ययः पिता ॥

(महाभारत, अनु. पर्व - १४९/१०)

जो पवित्रों का पवित्र है, मंगलों का मंगल है, देवों का देव है और प्राणियों का अविनाशी पिता है वह ईश्वर है।

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03 Jan, 10:17


अश्वत्थमेकं पिचुमंदमेकं न्यग्रोधमेकं दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वामलकीत्रयं च पञ्चाम्रवापी नरकं न पश्येत् ॥

- भविष्यपुराण, उत्तरपर्व १२८.११

जो पुरुष एक पीपल, एक नीम, एक वट, दस इमली तथा एक-एक कैथ, बेल और आँवला तथा पाँच आम के वृक्ष लगता है उसे कभी नरक के दर्शन नहीं करने पड़ते।

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03 Jan, 10:16


कुतः कृतघ्नस्य यशः कुतः स्थानं कुतः सुखम्।
अश्रद्धेय: कृतघ्नो हि कृतघ्ने नास्ति निष्कृति:।।

महा० शांति० १७३/२०

कृतघ्न का यश कैसा?उसकी कैसी प्रतिष्ठा और सुख ?कृतघ्न विश्वास और श्रद्धा के योग्य नहीं होता। कृतघ्न के उद्धार हेतु शास्त्रों में कोई प्रायश्चित नहीं है‌।।

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03 Jan, 10:16


"बालः पश्यति लिङ्गं मध्यम बुद्धि र्विचारयति वृत्तम् ।
आगम तत्त्वं तु बुधः परीक्षते सर्वयत्नेन ।।"

"जो व्यक्ति बाहरी संकेतों को देखता है, वह बालबुद्धि का होता है; जो केवल वृत्ति का विचार करता है, वह मध्यम बुद्धि का होता है; और जो आगम तत्त्व की पूरी तरह से परीक्षा करता है, वह ज्ञानी होता है ।"

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02 Jan, 15:32


नास्ति कामसमो व्याधिः नास्ति मोहसमो रिपुः ।नास्ति क्रोधसमो वह्निः नास्ति ज्ञानात् परं सुखम् ।।
(चाणक्यनीति)

काम वासना के समान कोई दूसरा रोग नही है, मोह के समान कोई दूसरा शत्रु नही है, क्रोध के समान कोई आग नही है और ज्ञान से बड़ा कोई सुख नही है।

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01 Jan, 16:26


"अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च ।
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम् ।"

"जैसे फूल और फल अपने समय पर स्वतः ही उगते हैं और पकते हैं, वैसे ही पूर्वकृत कर्म भी अपने समय पर अपने फल देते हैं । कर्मों का फल समय पर और स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है ।"

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31 Dec, 02:37


असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥

(श्रीमद्भगवद्गीता - ६/३६)

जिसका मन वश में किया हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है - यह मेरा मत है।

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30 Dec, 18:12


कर्ता कारयिता चैव प्रेरकश्चानुमोदकः
सुकृते दुष्कृते चैव चत्वारः समभागिनः।

कर्ता, करवाने वाला, उत्तेजक तथा अनुयायीl चाहे वह दुष्कर्म हो या पुण्य,इन चारों का हिस्सा बराबर का है।

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30 Dec, 18:11


"निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु,
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ॥"

"बुद्धिमान लोग चाहे निंदा करें या प्रशंसा, लक्ष्मी (धन) आये या चली जाए, चाहे मृत्यु आज ही हो या युगों बाद - धैर्यवान व्यक्ति कभी भी न्याय के पथ से विचलित नहीं होता ।"

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30 Dec, 18:04


“मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते॥”

"मन की प्रसन्नता, सौम्यता, मौन, आत्मनिग्रह, और भावों की शुद्धि - यह सब मानसिक तपस्या कहलाता है ।"

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30 Dec, 15:22


ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: !
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि !!
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: !!

द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, !

शांति हो, शांति हो, शांति हो !

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30 Dec, 02:39


धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेद्।
सन्निमित्ते वरं त्यागो विनाशे नियते सति।।

हितोपदेश: १.४४

संसार में धन,जीवन आदि सब कुछ नश्वर है,,अत: जब सबकुछ स्वत: नष्ट होने वाला है तो किसी श्रेष्ठ प्रयोजन के लिए उनका त्याग करना अच्छा है।।

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27 Dec, 16:17


Start your Day with this Powerful Mantra of Mahadev..

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः ।।
अहम् भोजनं नैव भोज्यम
न भोक्ता चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम।।

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27 Dec, 13:00


श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा: ।
वाग्यता: शुचयश्चैव श्रोतार: पुण्यशालिन: ॥

योग्य श्रोता वही है जिन के पास श्रद्धा तथा भक्ति है, जिनका हेतू केवल ज्ञान प्रााप्त करना है और कुछ भी नही, तथा जिनका अपने वाणी पर नियंत्रण है और जो मन से शुद्ध है ।

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27 Dec, 03:51


आत्मनो मुखदोषेण बध्यन्ते शुकसारिकाः ।
बकास्तत्र न बध्यन्ते मौनं सर्वार्थसाधनम्||

 –पञ्चतन्त्रम् ४.४८.

अपने मुँह बन्द न रखने के दोष के कारण तोता-कोयल आदि पक्षी फँस जाते हैं। पर बगुला कभी नही फँसता। क्योंकि सही समय पर मौन रहना सभी प्रयोजनों को सिद्ध करता है।

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26 Dec, 14:40


वानरोऽहं महाभागे दूतो रामस्य धीमतः।
रामनामाङ्कितं चेदं पश्य देव्यङ्गुलीयकम्।।

महाभागा माता सीता! मैं वानर हनुमान्, बुद्धिमान् श्रीराम का संदेशवाहक दूत हूं। हे देवी! आप यह अंगूठी देखिए, जिस पर श्रीराम का नाम अंकित है।

रामायण (सुन्दरकाण्ड 5.36.2)

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26 Dec, 14:38


चरन् वै मधु विन्दति

~ऐतरेयब्राह्मणम्

अनथक अविश्रांत भाव से सतत चलता हुआ व्यक्ति ही जीवन के मधुर स्वाद को प्राप्त करता है।।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

26 Dec, 14:38


न शोचन् मृतमन्वेति न शोचन् म्रियते नर:।
एवं सांसिद्धिके लोके किमर्थमनुशोचसि।।

~महा० स्त्री० ९/१२

शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न ही स्वयं मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार बार शोक कर रहे हैं।

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26 Dec, 14:37


"शीलं न हन्ति सर्वेषां यथासंख्याति शीलमम् ।
पारदात्तु नरस्येवं यथासङ्गर्षं स्वविघ्नकम् ।।"

"शील, प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्व रखता है और सभी दोषों को समाप्त करता है । उदारता और शील के बिना व्यक्ति अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता ।"

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25 Dec, 17:48


"पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता हि परमं तप: ।
परित् प्रियन्तमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता ।।"

"पिता धर्म हैं, पिता स्वर्ग हैं और पिता सबसे श्रेष्ठ तप हैं । पिता के प्रसन्न हो जाने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

25 Dec, 03:34


अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते I
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः II

किसी जगह पर बिना बुलाये चले जाना, बिना पूछे बहुत अधिक बोलते रहना, जिस चीज या व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करना मुर्ख लोगो के लक्षण होते है I

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24 Dec, 17:41


“प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः। अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते।”

"समस्त कर्म सर्व प्रकृतियों के गुणों से सम्पादित होते हैं । लेकिन अहंकारी और अज्ञानी मनुष्य को ऐसा लगता है, जैसे मैं ही सब कर रहा हूँ ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

24 Dec, 17:40


तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥ १०/१०

जो सदैव अपने मन को मुझमें स्थित रखते हैं और प्रेम-पूर्वक निरन्तर मेरा स्मरण करते हैं, उन भक्तों को मैं वह बुद्धि प्रदान करता हूँ, जिससे वह मुझको ही प्राप्त होते हैं।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Dec, 14:51


अर्थस्य मूलं प्रकृतिर्नयश्च
धर्मस्य कारुण्यमकैतवं च।
कामस्य वित्तं च वपुर्वयश्च
मोक्षस्य सर्वार्थनिवृत्तिरेव।।

नीति व लोग धन प्राप्ति के आधार हैं।

करुणा व अच्छे काम धर्म के आधार हैं।

धन, शरीर व युवावस्था प्रेम के आधार हैं।

इन सभी चीजों में मोह छोड़ना मोक्ष का आधार है।

चाणक्य

Policy and the people
are the source of wealth.

Compassion and rectitude
are the source of dharma.

Wealth, the body, and youthful age
are the source of love.

Non-attachment to all objects
is the source of absolution.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Dec, 14:49


मोहो हि धर्ममूढत्वं मानस्त्वात्माभिमानिता।
धर्मनिष्क्रियताऽऽलस्यं शोकस्त्वज्ञानमुच्यते ॥

(महाभारत, वन पर्व - ३१३-९४)

धर्म में मूर्खता करने का नाम मोह है, अपना अभिमानीपन (स्वाभिमान) मान है, धर्म-कर्म न करने का नाम आलस्य है और शोक करना अज्ञानता कहा जाता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Dec, 14:49


शुनं सुफाला वि तुदन्तु भूमिं शुनं कीनाशा अनु यन्तु वाहान्।
शुनासीरा हविषा तोशमाना सुपिप्पला ओषधीः कर्तमस्मै ।।


हल के सुन्दर फाल भूमि की खुदाई करें, किसान बैलों के पीछे चलें। हमारे यज्ञ से प्रसन्न हुए वायु एवं सूर्य इस कृषि से उत्तम फलवाली रसयुक्त ओषधियाँ दें ॥

3-17-5 अथर्ववेद

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22 Dec, 08:22


।। हनुमान स्तुति मंत्र ।।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।

अतुल बल के धाम , सोने के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वन को ध्वंस करें वाले , ज्ञानियों में सबसे आगे , सम्पूर्ण गुणों के निधान , वानरों के स्वामी , श्री रघुनाथ जी के प्रिये भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं |

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

21 Dec, 15:21


न कालो दण्डमुद्यम्य शिर: कॄन्तति कस्यचित् I
कालस्य बलमेतावत् विपरीतार्थदर्शनम् II

काल किसी का शस्त्र से शिरच्छेद नही करता पर वह बुद्धिभेद करता है ।जिससे मनुष्य को गलत रास्ता ही सही लगता है और वह अपने विनाश की ओर बढता है। बुद्धिभेद ही काल का बल है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

21 Dec, 11:24


अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्राणत्यागेऽपि संस्थिते।
न च कॄत्यं परित्याज्यम् एष धर्म: सनातन:॥

न करने योग्य कार्य को प्राण जाने की परिस्थिति में भी नहीं करना चाहिए और कर्त्तव्य का कभी त्याग नहीं करना चाहिए, यह सनातन धर्म है॥

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21 Dec, 06:45


अर्थपतौ भूमिपतौ
बाले वृद्धे तपोऽधिके विदुषि।
योषिति मूर्खे गुरुषु च
विदुषा नैवोत्तरं देयम्।।

श्रीसूक्तावली

बुद्धिमान् व्यक्ति को धनी, शासक, बालक, वृद्ध, तपस्वी, विद्वान्, मूर्ख और गुरु को कभी उत्तर नहीं देना चाहिए अर्थात् इनके साथ वाद-विवाद या प्रतिवाद नहीं करना चाहिए।

A wise man should not argue with a wealthy man, a king, a child, an old man, an ascetic, a well-read man, a fool and a highly respected man.

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21 Dec, 04:27


“अद्रोहः सर्वभूतेषु कर्मणा मनसा गिरा ।
अनुग्रहश्च दानं च सतां धर्मः सनातनः ।।”

"मन, वाणी और कर्म से प्राणियों के प्रति सद्भावना, सब पर कृपा और दान, यही साधु पुरुषों का सनातन-धर्म है ।"

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20 Dec, 22:59


“विनाश मूलं अहंकारस्य ।”

"विनाश का जड़ अहंकार ही है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

20 Dec, 22:50


"कण्टकावरणं यादृक्फलितस्य फलाप्तये ।
तादृक्दुर्जनसङ्गोSपि साधुसङ्गाय बाधनं ॥"

"जिस प्रकार एक फलदायी वृक्ष के कांटे उसके फलों को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दुष्ट व्यक्तियों की सङ्गति (मित्रता) भी साधु और सज्जन व्यक्तियों की सङ्गति में बाधा उत्पन्न करती है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

20 Dec, 22:49


"क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता ।
यमर्थान् नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥"

"जो व्यक्ति क्रोध, अहंकार, दुष्कर्म, अति-उत्साह, स्वार्थ, उद्दंडता इत्यादि दुर्गुणों की और आकर्षित नहीं होते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Nov, 05:49


चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः | चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ||

संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता हैl

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Nov, 05:47


शीतला साधुसंगतिः

अच्छे मित्रों का साथ चंद्रमा और चंदन दोनों से ज़्यादा शीतल होता है. 

Being amidst those who never lose their calm is like being in the company of saints

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

29 Nov, 16:35


दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान्प्रवर्द्धयन्।
यत्फलं लभते मर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकया॥

एक पुत्री के पालन पोषण के पुण्य दस पुत्रों के समान है। कोई व्यक्ति दस पुत्रों के लालन-पालन से जो फल प्राप्त करता है वही फल केवल एक कन्या के पालन-पोषण से प्राप्त हो जाता है।

स्कन्द पुराण माहेश्वरखण्ड के कौमारिकाखण्ड के अध्याय २३ में एक कन्या के पालन के फल को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है l

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

29 Nov, 15:48


"सुखं शेते सत्यवक्ता सुखं शेते मितव्ययी ।
हितभुक् मितभुक् चैव तथैव विजितेन्द्रिय: ॥"

"सत्य बोलने वाला, मर्यादित खर्च करने वाला, हितकारक पदार्थ आवश्यक प्रमाण में ग्रहण करने वाला, तथा जिसने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो, वह चैन की नींद सोता है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

29 Nov, 13:53


अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च।
वञ्चनं चापमानं च मतिमान् न प्रकाशयेत्।।

बुद्धिमान् व्यक्ति ये पांच बातें सार्वजनिक रूप से कभी प्रकट नहीं करते - धन का नाश, मन की व्यथा, घर के स्त्री या पुरुष के दुराचरण, किसी के द्वारा किया गया धोखा और स्वयं का पूर्व में हुआ अपमान।

चाणक्य

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

29 Nov, 03:27


जैसे स्वप्न में अनेकों विपत्तियाँ आती हैं पर वास्तव में वे हैं नहीं, फिर भी स्वप्न टूटने तक उनका अस्तित्व नहीं मिटता, वैसे ही संसार के न होने पर भी जो उसमें प्रतीत होने वाले विषयों का चिन्तन करते रहते हैं, उनके जन्म मृत्युरूप संसार की निवृत्ति नहीं होती।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

29 Nov, 03:19


#भगवान ( ईश्वर )

वदन्ति तत् तत्त्वविदः तत्त्वं यद्ज्ञानमद्वयम्।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते॥

(श्रीमद्भागवत महापुराण १.२.११)॥

भागवत पुराण के अनुसार जिसे तत्व का ज्ञानी कहते हैं, जो तत्व का ज्ञान देता है, उसे ब्रह्म, परमात्मा तथा भगवान् इत्यादि शब्दों से पुकारा जाता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

28 Nov, 13:31


अग्नि रक्षति रक्षितः l

जो व्यक्ति अपने अंदर की अग्नि की रक्षा करता है, अग्नि उसकी रक्षा करती है (वह दीर्घायु होता है)।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

28 Nov, 06:35


सुवृत्तः शीलसम्पन्नः प्रसन्नात्मात्मविद्बुधः ।
प्राप्येह लोके सत्कारं सुगतिं प्रतिपद्यते ।।

(महाभारत - शान्तिपर्व १६०/२३)

जो सदाचारी, शीलसम्पन्न, प्रसन्नचित्त और आत्मतत्त्व को जानने वाला है, वह विद्वान् पुरुष इस लोक में सत्कार पाकर परलोक में परम गति पाता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

28 Nov, 06:32


यस्य न ज्ञायते शीलन्न कुलन्न च संश्रयः।
न तेन सङ्गतिङ्कुर्य्यादित्युवाच बृहस्पतिः।।

जिसका शील(स्वभाव),और कुल,और रहने का स्थानादि ज्ञात नहीं हो,उसके साथ(अपरिचित के साथ)कदापि सङ्गति(मित्रता)नहीं करे-ऐसा बृहस्पति जी ने कहा है।

पञ्चतन्त्रम्

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

28 Nov, 05:47


तस्या पृथिव्या लाभपालनोपायः शास्त्रमर्थ-शास्त्रमिति।

मनुष्यों से युक्त भूमि को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने वाले उपायों का निरूपण करने वाला शास्त्र अर्थशास्त्र कहलाता है I

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

27 Nov, 08:36


प्रजा सुखे सुखं राज्ञ: प्रजानां च हिते हितम्।
नात्मप्रियं प्रियं राज्ञ: प्रजानां तु प्रियं प्रियम्॥

प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजाके हित में उसका हित है। राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

26 Nov, 21:08


न चातिप्रणयः कार्यः कर्तव्योऽप्रणयश्च ते ।
उभयं हि महादोषं तस्मादन्तरदृग् भव ।।

श्रीमद्वाल्मीकीय_रामायण

किसी के साथ अत्यन्त प्रेम न करो और प्रेम का सर्वथा अभाव भी न होने दो । क्योंकि ये दोनों ही महान् दोष हैं । अतः मध्यम स्थिति पर ही दृष्टि रखो ।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

26 Nov, 20:05


"दूरस्थाः पर्वताः रम्याः वेश्या च मुखमण्डने ।
युद्धस्य वार्ता रम्या त्रीणि रम्याणि दूरतः ॥"

"पर्वत, वेश्या का मुखमण्डल, और युद्ध की बातें – ये तीन दूर से ही अच्छे लगते हैं ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

25 Nov, 11:51


"यदि वहसि त्रिदण्डं नग्रमुंडं जटां वा
यदि वससि गुहायां पर्वताग्रे शिलायाम्।
यदि पठसि पुराणं वेदसिध्धान्ततत्वम्
यदि ह्रदयमशुध्दं सर्वमेतन्न किज्चित्॥"

"व्यक्ति भले त्रिदंड धरे,मुंडन/जटा रखे,गुफा/पर्वत पर रहे, वेद/पुराण/सिद्धान्त पढ़े, परंतु हृदय शुद्ध न हो तो सब बेकार है !"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

24 Nov, 16:55


नीतिज्ञा नियतिज्ञा वेदज्ञा अपि भवन्ति शास्त्रज्ञाः
ब्रह्मज्ञा अपि लभ्याः स्वाज्ञानज्ञानिनो विरलाःl

संसार में नीति,नियति(भाग्य)वेद,शास्त्र,ब्रह्म इन सबके जानने वाले तो मिल सकते है,परंतु अपने अज्ञान को जानने वाले मनुष्य विरले ही हैं!

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

24 Nov, 16:51


अद्भुत आशीर्वादः-

निष्कण्टकं सुरोद्याने निरारक्षकबाधितम्।
निर्मक्षिकं हि ते सिध्यान्मधु पातुं मनोरथः॥

“May your desire to drink honey, unperturbed by bees, in the garden of the devas, untouched by thorns and unperturbed by guards, be fulfilled!”

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

24 Nov, 16:34


"अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च।
पराक्रमश्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥"

"बुद्धि, कुल, इंद्रियों पर नियंत्रण, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, कम बोलना, यथाशक्ति दान देना तथा कृतज्ञता - ये आठ गुण मनुष्य की ख्याति बढ़ाते हैं ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

24 Nov, 16:30


यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यत्नेन वर्जयेत् ।
यद्यदात्मवशं तु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः ।।

(मनुस्मृति - ४/१५९)

जो-जो कार्य दूसरे के अधीन हो उन्हें यत्नपूर्वक छोड़ देना चाहिए, जो-जो कार्य अपने वश में हो उसे यत्नपूर्वक अवश्य पूर्ण करना चाहिए।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Nov, 07:03


॥ श्री ॥
॥ कालभैरवाष्टकम् ॥
देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रबिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १ ॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २ ॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३ ॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थिरं समस्तलोकविग्रहम् ।
निक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ४ ॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णकेशपाशशोभिताङ्गनिर्मलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५ ॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६ ॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्ठसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७ ॥
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासिलोफपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८ ॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधकं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहलोभदैन्यकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥ ९ ॥

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य
श्रीगोविंदभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य
श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ
कालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Nov, 07:00


अधीरः कर्कशः स्तब्धः कुचेलः स्वयमागतः।
एते पञ्च न पूज्यन्ते बृहस्पतिसमा यदि॥

(शौनकीय नीतिसार,५/२,)

अधीर,कर्कश, जड़/दुराग्रही, कुवस्त्रधारी तथा बिना बुलाये स्वयं आया हुआ-ये पाँच यदि बृहस्पति के समान हों तो भी नहीं पूजे जाते।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Nov, 06:53


"जरामृत्यू हि भूतानां खादितारौ वृकाविव।
बलिनां दुर्बलानां च ह्रस्वानां महतामपि॥"

"वृद्धावस्था और मृत्यु, ये दोनों भेड़ियों के समान हैं जो बलवान, दुर्बल, छोटे और बड़े,सभी प्राणियों को खा जाते हैं (अतः जो समय है उसका सदुपयोग करें) ।"

(महाभारत शांतिपर्व 27)

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

22 Nov, 17:50


शतं ददान्न विवदेदिति विज्ञस्य सम्मतम्।
विना हेतुमपि द्वन्द्वमेतन्मूर्खस्य लक्षणम्।।

अपनी सैकड़ों की हानि करके भी विवाद न करे यह *बुद्धिमान्* का लक्षण है और बिना कारण भी कलह कर बैठना यह *मूर्ख* का लक्षण है।

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22 Nov, 17:37


सर्वं ह्येतद् ब्रह्मायमात्मा ब्रह्म सोऽयमात्मा चतुष्पात्॥
अहम् ब्रह्मास्मि॥

यह सम्पूर्ण 'विश्व' 'शाश्वत-ब्रह्म' ही है यह 'आत्मा' 'ब्रह्म' हैं एवं 'आत्मा' चतुर्विध है, इसके चार पाद हैं। और मैं ब्रह्म हूं।

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20 Nov, 17:34


सज्जनों के लिए कुछ भी असह्य नहीं है, विद्वानों को किसी की अपेक्षा नहीं है, कृपणों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं है तथा जिन्होंने स्वयं को वश में कर लिया है उनके लिए कुछ भी त्याग देना कठिन नहीं है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

20 Nov, 17:34


"अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च ।
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम् ।"

"जिस प्रकार से पुष्प तथा फल बिना किसी प्रेरणा से अपने आप ही उग जाते है, व समय का अतिक्रमण नहीं करते है, उसी भांति ही पहले किये गए कर्म भी सही समय पर ही अपने अच्छे या बुरे फल देते है ।"

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19 Nov, 06:28


मानो हि महताम् धनम्

Honour is the wealth of the great

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18 Nov, 05:39


व्याचष्टे यः पठति च शास्त्रं भोगाय शिल्पिवत्।
यतते न त्वनुष्ठाने ज्ञानबन्धुः स उच्यते ।।

योगवसिष्ठः६/२१/३

जो एक शिल्पकार की भांति आजीविका हेतु शास्त्र पढ़ता है और व्याख्यान करता है, परंतु तदनुकूल आचरण नहीं करता वह केवल ज्ञानबन्धु (नाममात्र का ज्ञानी) कहलाता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

17 Nov, 12:43


"काकैः सह प्रवृद्धस्य कोकिलस्य कला गिरः।
खलसङ्गेऽपि नैष्ठुर्यं कल्याणप्रकृतेः कुतः ॥"

"कौए के साथ बड़े होने पर भी कोकिल की वाणी मधुर ही रहती है । (ऐसे ही) दुष्ट जन के संगत में रहने पर भी पवित्र प्रकृति वाले (सत्पुरुष) में निष्ठुरता कहाँ से उत्पन्न होगी ?"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

15 Nov, 08:22


"कैचि द्दैवात्स्वभावाद्वा कालात्पुरूषकारतः।
संयोगे केचिदिच्छन्ति फलं कुशलबुद्धयः।"

"इष्ट-अनिष्ट में कुछ व्यक्ति दैव (भाग्य), कुछ पौरूष तथा कुछ समय को कारण मानते हैं; बुद्धिमानों का कथन है कि इनके संयोग से ही फल की उत्पत्ति होती है ।"

(याज्ञवल्क्यस्मृति, आचाराध्यायः 350)

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

15 Nov, 08:20


भये वा यदि वा हर्षे सम्प्राप्ते यो विमर्शयेत्।
कृत्यन्न कुरुते वेगान्न स सन्तापमाप्नुयात्।।

जो मनुष्य,भय या हर्ष के उपस्थित होने पर कर्त्तव्याकर्त्तव्य का विचार करता है और सहसा कोई कार्य नहीं करता है,वह कदापि सन्ताप(दुःख) को प्राप्त नहीं होता है

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

14 Nov, 08:16


जीवने जीवनं अन्वेष्टुं जीवनम्

To survive is to find the true life.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

13 Nov, 17:24


उद्यमेन विना राजन्ः न सिद्ध्यन्ति मनोरथाः।
कातरा इति जल्पन्ति'यद्भाव्यन्तद्भविष्यति'।।

हे राजन्! विना उद्योग के मनोरथ (अभीष्ट कार्य) कदापि सिद्ध नहीं हो सकते हैं। अतः उद्योग करना ही चाहिए। 'जो होना है, वह स्वयमेव हो जाएगा' यह तो कायर और प्रमादी व्यक्ति ही कहा करते हैं।

#पञ्चतन्त्रम्

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

13 Nov, 15:33


यः समुत्पतितं क्रोधं क्षमयैव निरस्यति।
यथोरगस्त्वचं जीर्णां स वै पुरुष उच्यते॥

जिस प्रकार सांप पुरानी चमड़ी (केंचुली) को शरीर से उतार फेंकता है, उसी प्रकार जो अपने सिर पर चढ़े क्रोध को क्षमाभाव के साथ छोड़ देता है वही वास्तव में पुरुष कहलाने के योग्य है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

13 Nov, 15:32


"अप्रियाण्यापि कुर्वाणो यः प्रियः प्रिय एव सः।
दग्धमन्दिरसारेऽपि कस्य वह्नावनादरः॥"

"भले अप्रिय कार्य करता हो, फिर भी जो अपना प्रिय है वो तो प्रिय ही रहता है । घर के सारे पदार्थ जला दिए हों, फिर भी अग्नि के उपर किसे अनादर होगा ?"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

13 Nov, 12:55


8 names of Tulasi Maa
(तुलसी नामाष्टक)

वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम्।
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम्॥

- ब्रह्मवैवर्तपुराणम्, प्रकृतिखण्डः,२२.३२

1) Vrinda
2) Vrindavani
3) Vishvapavani
4) Vishvapujita
5) Pushpasara
6) Nandini
7) Tulasi
8) Krishnajivani

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

07 Nov, 13:09


छ्ठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

सूर्याष्टकम्

सात घोड़ोंवाले रथपर आरूढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्यको मैं प्रणाम करता हूँ

I worship the Sun God, who rides the chariot of seven horses, is radiant, is the son of Kashyapa and holds a white lotus.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

07 Nov, 03:50


कभी भूमि पर सोना तो कभी सुन्दर और सुखद पलंग पर शयन करना पडे, कभी साधारण शाकाहारी भोजन तो कभी चावल से निर्मित रुचिकर भोजन उपलब्ध हो, कभी शरीर पर फटे हुए वस्त्र हों और कभी सुन्दर और कीमती वस्त्र धारण किये हुए हों। इन सब स्थितियों में मनस्वी और पुरुषार्थी प्रभावित नहीं होते हैं।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

06 Nov, 06:34


स्वाभाविकन्तु यन्मित्रम्भाग्येनैवाभिजायते।
तदकृत्रिमसौहार्दमापत्स्वपि न मुञ्चति।।२२८।।

स्वाभाविक मित्र महान् भाग्य से मिलते हैं।और वह (स्वाभाविक) मित्र स्वकीय अकृत्रिम मित्रता को आपत्ति काल में भीं नहीं त्यागता है।

हितोपदेशः

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

06 Nov, 04:18


नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः।

ऋ. १०.१४.१५

ऋषियों और पूर्वजों के लिए हमारा नमस्कार हो।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

06 Nov, 04:17


एतावान्हि प्रभोरर्थो यद्दीनपरिपालनम्।
प्राणैः स्वैः प्राणिनः पान्ति साधवः क्षणभङ्गुरैः

(श्रीमद्भागवत - ८/७/३८)

जिनके पास शक्ति-सामर्थ्य है, उनके जीवन की सफलता इसी में है कि वे दीन दुखियों की रक्षा करे, सज्जन पुरुष अपने क्षण-भंगुर प्राणों की बलि देकर भी दूसरे प्राणियों के प्राण की रक्षा करते हैं।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

05 Nov, 06:40


"गुणवान् सुचिरस्थायी दैवेनापि न सह्यते।
तिष्ठत्येकां निशां चन्द्रः श्रीमान् सम्पूर्णमण्डलः ॥"

"जो गुणवान् हो, वह देर तक स्थिर रहता हो, ऐसा भाग्य भी नहीं सहता । पूर्ण मंडल वाला सुन्दर चन्द्र मात्र एक रात तक ठहरता है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

04 Nov, 17:07


"जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेतुः सर्वशास्त्राणां धर्मस्य च धनस्य च ॥"

"घड़ा जल के बूंदो के गिरने से धीरे-धीरे भरता है । वही सभी शास्त्रों का, धर्म व धन पर भी लागू होता है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

04 Nov, 13:39


आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मंत्रमौषधसंगमौ।
दानमानावमानाश्च नव गोप्या मनीषिभिः॥

एक विवेकशील मनुष्य नौ बातों को सदा अपने तक ही सीमित रखता है – अपनी आयु, धन-संपत्ति, घर के रहस्य, पवित्र मंत्र, औषधियों का ज्ञान, निजी संबंध, दान का योगदान, मान-सम्मान, और स्वयं के अपमान की बात।

A wise individual keeps nine things confidential – age, wealth, household matters, sacred chants, medicinal knowledge, personal bonds, acts of charity, respect, and personal humiliations.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

04 Nov, 12:04


परं दीपयति स्वं च जीवनं स्वेन तेजसा ।
दीपनं उज्ज्वलीभावः कृत्वा मनसि सन्ततम् ।।
महाग्निशिखया त्वैक्य-मनुभूयाऽथ जीवताम् ।
दिपावली सदा भूयात् धर्मार्थकाममोक्षदा ।।

मत्सदृशं बलं कस्य मन्वानो बलिरित्यहम् ।
यदा प्रतिपदं सोऽयं ज्ञात्वा स्वबलव्यर्थताम् ।।
वृत्तिमत्वं पदत्वं स्या-दित्युक्तेः स्वपदं च यः ।
गुरूपदेशतो ज्ञात्वा वामनं विश्वरूपिणम् ।।
प्रपन्नो ऽ भूद् बलिर्यस्य यशश्च त्रिदिवं गतः ।
सैषा बलिप्रतिपदा भूयात् सद्रतिवर्द्धिनी ।।


🙏🏻🪷🦚🪔🛕🪔🦚🪷🙏🏻

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 07:32


चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं
श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये
अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।

(ऋग्वेद)

चन्द्रमा के समान प्रभावती, अपनी यश-कीर्ति से देदीप्यमती, स्वर्गलोक में देवों द्वारा पूजिता, उदार हृदया, कमल-नेमि (कमल-चक्रिता/पद्म-स्थिता) लक्ष्मी देवी, मैं आपके शरण में हूँ, आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता दूर हो।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 07:30


जैसे अज्ञानी मनुष्य जल में उत्पन्न तिनके और सेवार से ढके हुए जल को जल न समझकर जल के लिए मृगतृष्णा की तरह दौड़ता है, वैसे ही अपनी आत्मा से भिन्न वस्तु में सुख समझने वाला पुरुष आत्मा को छोड़कर विषयों की ओर दौड़ता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 07:29


अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते।
असत्कृतमवज्ञातं, तत्तामसमुदाहृतम्‌॥

।।17.22।।

जो दान बिना सत्कार किये, अथवा तिरस्कारपूर्वक, अयोग्य देशकाल में, कुपात्रों के लिए दिया जाता है, वह दान तामस माना गया है।।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 07:27


यत्तु प्रत्युपकारार्थं, फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं, तद्दानं राजसं स्मृतम्‌॥

।।17.21।।

और जो दान क्लेशपूर्वक तथा प्रत्युपकार के उद्देश्य से अथवा फल की कामना रखकर दिया जाता हैं, वह दान राजस माना गया है।।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 07:25


दातव्यमिति यद्दानं, दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च, तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्‌॥

'दान देना कर्तव्य है' इस भावना से जो दान देश, काल, और योग्य पात्र देखकर, प्रत्युपकार की भावना रखे बिना दिया जाता है वह सात्त्विक दान कहा जाता है.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 07:17


धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज,
पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते. 

भाई-बहन के अटूट प्रेम और स्नेह के पावन पर्व भाई दूज पर यम और यमुना की पूजा की जाती है. 

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 03:46


परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।
स जातो येन जातेन याति वंशस्समुन्नतिम्॥

इस परिवर्तनशील संसार में कौन नहीं मृत्यु को प्राप्त होता तथा कौन जन्म नहीं लेता है।परञ्च यथार्थ में उत्पन्न होना उसी का श्रेष्ठ है,जिसके जन्म लेने से वंश की समुन्नति होती है।

नीतिशतकम्

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 03:31


एकेनैव चिराय कृष्ण भवता गोवर्धनोऽयं धृतः
श्रान्तोऽसि क्षणमास्स्व साम्प्रतममी सर्वे वयं दध्महे।
इत्युल्लासितदोष्णि गोपनिवहे किंचिद्भुजाकुञ्चन-
न्यञ्चच्छैलभरार्दिते विरमति स्मेरो हरिः पातु वः॥

हे कृष्ण! सुनो। तुम अकेले बड़ी देर से गोवर्धन पर्वत को उठाये हुए निश्चित ही थक गए होंगे। तुम जरा सुस्ता लो। तब तक अब हम सब मिलकर इसे उठाए रहेंगे। यों कहकर ग्वालों ने अपने हाथ उठाए पर पर्वत का भार पड़ते ही भुजाएँ दबकर मुड़ गईं। यह देखकर कृष्ण मुस्कुराए। वे श्रीहरि आपकी रक्षा करें।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

02 Nov, 03:30


सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।
मृजया रक्ष्यते पात्रङ्कुलं शीलेन रक्ष्यते।।११३.१०।

सत्य के पालन से धर्म की रक्षा होती है।सर्वदा अभ्यास करने से विद्या की रक्षा होती है।मार्जन के द्वारा पात्र की रक्षा होती है और शील से कुल की रक्षा होती है।

गरुडपुराणम्

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

01 Nov, 17:14


गुणं पृच्छस्व मा रूपं शीलं पृच्छस्व मा कुलम्।
सिद्धिं पृच्छस्व मा विद्यां सौख्यं पृच्छस्व मा धनम्॥

"गुण पूछो, रूप नहीं। चरित्र पूछो, कुल नहीं। सिद्धि पूछो, विद्या नहीं । सुख (से है कि नहीं) पूछो, धन को न पूछो।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

01 Nov, 04:12


त्रैलोक्ये दीपः धर्म।

Religion is the lamp of all the three worlds.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

01 Nov, 04:12


"भारस्योद्वहनार्थं च रथाक्षोऽभ्यज्यते यथा ।
भोजनं प्राणयात्रार्थं तद्वद्विद्वान्निषेव्यते ॥"

"जैसे भार ढ़ोने के लिए गाड़ी के धुरी को तेल लगाया जाता है, उसी प्रकार ज्ञानी व्यक्ति प्राण धरने हेतु (आवश्यकतानुसार) भोजन खाता है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

01 Nov, 04:10


श्रीशिव उवाच ।
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ॥
- पद्मपुराणम्, ६.१२२.४

On the 13th day of the dark fortnight of Kartika, one should offer a light (Deepam) to Yama outside (his house). Thereby untimely death is avoided. 🪔

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

31 Oct, 15:56


दीपप्रभाभिः शुभरात्रिः प्रद्योतिता
सर्वेषां हृदयानि प्रमोदनया स्फुरन्ति।
तिमिरं नाशयतु लक्ष्मीप्रकाशः
दीपावल्याः महोत्सवे सर्वे सुखमयाः सन्तु ॥

दीपों की ज्योति से रात्रि सुंदर हो गई है।
सभी के हृदय उल्लास से खिल उठे हैं।
अंधकार का नाश लक्ष्मी के प्रकाश से हो।
दीपावली के इस महोत्सव में आप सभी का जीवन सुखमय हो।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

31 Oct, 15:53


त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥

तुम ही प्रकाश हो, तुम ही सूर्य, चन्द्रमा, बिजली, अग्नि और तारों के रूप में प्रकट होते हो।
सभी प्रकाश के स्रोतों में तुम ही सर्वोच्च प्रकाश हो। उस दिव्य प्रकाश (दीपावली) को नमस्कार।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 18:34


गच्छन् शरीरविच्छेदावपि भस्मावशेषताम् ।
कर्पूरः सौरभेणेव जन्तुः ख्यात्यानुमीयते॥

शरीर के नाश हो जाने पर, भस्म (की स्थिति) हो जाने पर भी, कपूर के सुगंध के समान जीव अपने अच्छे नाम (कार्यों) के कारण जाना जाता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 18:34


"शरदि न वर्षति गर्जति वर्षति वर्षासु निःस्वनो मेघः।
नीचो वदति न कुरुते न वदति सुजनः करोत्येव ॥"

"शरद ऋतु में बादल केवल गर्जन करते हैं, परंतु बरसते नहीं है और वर्षा ॠतु में जो बादल बरसते हैं वो गरजते नहीं । वैसे ही अधम मनुष्य केवल बोलता है, परंतु (कार्य) करता नहीं है और उत्तम मनुष्य बोलता नहीं, लेकिन (कार्य) करता है ।"

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 18:29


यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति हि॥
रुदिते रोदिति वर्षं हृष्टो वर्षं प्रहृष्यति।
भुक्तौ भोक्ता भवेद्वर्षं स्वस्थः स्वस्थो भवेदिति॥ (भविष्यपुराण)

कौमुदी तिथि (दीपावली) को जो व्यक्ति जिस भाव में रहता है, उसे वर्षभर उसी भाव की की प्राप्ति होती है। यदि व्यक्ति उस दिन रुदन कर रहा हो तो रुदन, हर्षित है तो हर्ष, दु:खी है तो दु:ख, सुखी है तो सुख, भोग से भोग, स्वास्थ्य से स्वस्थता तथा दीन रहने से दीनता प्राप्त होती है।

इसलिए इस तिथि को हृष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 18:11


Photo from Dipak Maheta

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 14:50


व्याघ्राणां महती निद्रा सर्पाणां च महद्भयम्।
ब्राह्मणानाम् अनेकत्वं तस्मात् जीवन्ति जन्तवः।।

शेरों को नींद बहुत आती है, सांपों को डर बहुत लगता है और ब्राह्मणों में एकता नहीं है, इससे सभी जीव आनंद से जी रहे हैं। (ब्राह्मण अनेकत्व छोड़कर एक हो जाएं तो दूसरों का रहना कठिन हो जाए)

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 14:45


न हि ज्ञानात् ऋते मुक्तिः।
For there is no liberation except for knowledge.

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 14:27


🌷।। *श्री लक्ष्मीसूक्तम्‌* ।।🌷

पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥

पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्‌॥

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे॥

पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्‌।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे॥

धनमाग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु।
धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे॥

वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्‌॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्‌॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्‌।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम॥

महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्‌॥

चंद्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम्‌।
चंद्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे॥

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते।
धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम्‌ सत्संवत्सरं दीर्घमायुः॥

🙏॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥ 🙏

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30 Oct, 03:14


न धर्मशास्त्रम्पठतीति कारणन्न चापि वेदाध्ययन्न दुरात्मनः।
स्वभाव एवात्र तथातिरिच्यते यथा प्रकृत्या मधुरङ्गवाम्पयः।।२७।।

धर्मशास्त्र व वेदाध्ययन करने से ही अथवा कथा वार्त्ता,उपदेशादि श्रवण करने से ही दुष्ट सज्जन नहीं हो जाता है, परञ्च सज्जन तो स्वभाव से ही सज्जन होते हैं। यथा धेनु का दुग्ध स्वभाव ही से मधुर होता है।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

30 Oct, 03:12


"सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम्।
योऽर्थे शुचिस्स हि शुचिर्न मृद्वारिशुचिः शुचिः ॥*

"सभी शुचियों में धन संबन्धित पवित्रता ही सर्वोपरि है । जो धनविषय में निर्मल है, वही वास्तव में निर्मल है । जो मिट्टी और पानी से शुद्ध है, वह नहीं ।"

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28 Oct, 17:43


"यदि सन्ति गुणाः पुंसां विकसन्त्येव ते स्वयम्।
न हि कस्तूरिकामोदः शपथेन विभाव्यते ॥"

"यदि मनुष्यों में सद्गुण हैं, तो वे स्वयं ही विकसित होते हैं । कस्तूरी का सुगन्ध शपथ से नहीं जताया जाता ।"

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28 Oct, 17:43


अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः॥

किसी जगह पर बिना बुलाये चले जाना, बिना पूछे बहुत अधिक बोलते रहना, जिस चीज या व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करना मूढ लोगो के लक्षण होते हैं।

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28 Oct, 17:37


"यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः ।
निग्रहानुग्रहौ न स्तः स रुष्टः किं करिष्यति ॥"

"जिसके क्रुद्ध होने पर (हमारा) भय नहीं है, सन्तुष्ट होने पर धन लाभ नहीं हो पाता, जिसका अनुग्रह और निग्रह नहीं हैं, वह क्रोधित होकर भला क्या करेगा ?"

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28 Oct, 03:21


Rama Ekadashi (रमा एकादशी).
The vrata destroys even the greatest sins.

श्रीकृष्ण उवाच ।

श्रूयतां राजशार्दूल कथयामि तवाग्रतः।
कार्त्तिके कृष्णपक्षे तु रमा नाम सुशोभना॥

एकादशी समाख्याता महापापहरा परा।
अस्याः प्रसंगतो राजन्माहात्म्यं प्रवदामि ते॥

पद्मपुराणम्, ६.६०,२.३

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27 Oct, 17:19


क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी ।
विद्या कामदुधा धेनुः संतोषो नन्दनं वनम् ॥

क्रोध साक्षात् यम है, तृष्णा नरक की ओर ले जाने वाली वैतरणी नदी है। ज्ञान कामधेनु है और संतोष ही नंदनवन है।

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27 Oct, 17:19


सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥

सत्य ही पृथ्वी को धारण करता है। सत्य से ही सूर्य तपता है। सत्य से ही वायु बहती है। सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है।

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27 Oct, 17:18


गुणिनां गुणेषु सत्स्वपि पिशुनजनो दोषमात्रमादत्ते।
पुष्पे फले विरागी क्रमेलक: कण्टकौघमिव।।

गुणियों में गुणों के रहते हुए भी ईर्ष्यालु व्यक्ति उनके दोषमात्र को ही ग्रहण करता है,,जैसे ऊंट फल-फूलों के रहते हुए भी कांटों के ढ़ेर को ही खाता है।।

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24 Oct, 14:06


"दरिद्रान् भर कौन्तेय समृद्धान् न कदाचन ।
व्याधितस्यौषधं पथ्यं नीरोगस्य किमौषधैः ॥"

"हे कुन्ती नंदन, धनहीनों को सहारा दो, परंतु जो भरे पूरे हैं, उनको कभी मत देना । (इसका उदाहरण) जो रोगी है, उसके लिए औषघि की आवश्यकता होती है, जो रोगी है ही नहीं, उसको औषधों से क्या करना है ?"

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24 Oct, 13:51


तावद्भयस्य भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।
आगतन्तु भयं वीक्ष्य नरः कुर्याद्यथोचितम्।।५९।।

जब तक विपत्ति नहीं आये तभी तक उससे भय करना चाहिए।पर यदि विपत्ति आ ही पड़े ,तो मनुष्य को निर्भय होकर उसका यथोचित प्रतीकार करना चाहिए।

हितोपदेशः

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

24 Oct, 13:50


नासमञ्जसशीलैस्तु सहासीत कथञ्चन।
सद्वृत्तसन्निकर्षो हि क्षणार्द्धमपि शस्यते।।२१।।

संशयशील व्यक्तियों के साथ कदापि न रहे।सदाचारी पुरुषों का तो अर्धक्षण का सङ्ग भी अति प्रशंसनीय होता है।

विष्णुपुराणम्

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23 Oct, 15:37


नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।।

(ब्रह्मवैवर्तपुराण,१७/३७)

बिना भोगे करोड़ों कल्प वर्षों में भी कर्म का फल क्षीण नहीं होता, निश्चित रूप से अपने किये हुए शुभ/अशुभ कर्म का फल मनुष्य को अवश्य ही भोगना पड़ता है।

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23 Oct, 15:32


अनवस्थितचित्तस्य न जने न वने सुखम्।
जने दहति संसर्गो वने सङ्गविवर्जनम्॥

चाणक्यनीति:

अस्थिर चित्त वाला मनुष्य न मनुष्यों में सुखी रहता है और न वन में। मनुष्यों के बीच उसे उनका संसर्ग पीड़ित करता है और वन में संसर्ग का अभाव।।

Sanskrit Slokas संस्कृत श्लोक

23 Oct, 15:30


गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थितः।
प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते॥

उत्तमता गुणों से आती है, न कि ऊँचे स्थान से।
कौआ महल के शिखर पर बैठकर गरुड नहीं बन जाता।

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23 Oct, 15:29


"गच्छन् शरीरविच्छेदावपि भस्मावशेषताम् ।
कर्पूरः सौरभेणेव जन्तुः ख्यात्यानुमीयते ॥"

"शरीर के नाश हो जाने पर, भस्म (की स्थिति) हो जाने पर भी, कपूर के सुगंध के समान जीव अपने अच्छे नाम (कार्यों) के कारण जाना जाता है ।"

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