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प्रेरणास्पद कथायें

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इस चैनल पर मोटिवेशनल, प्रेरणास्पद, उपदेशात्मक, शिक्षास्प्रद, कथाएं पढ़ने एवं सुनने मिलेगी

प्रेरणास्पद कथायें (Hindi)

यदि आप अपने जीवन में प्रेरणा और उत्साह की खोज में हैं, तो 'प्रेरणास्पद कथायें' नामक चैनल आपके लिए एक संतुलित स्थान हो सकता है। इस चैनल पर आपको मोटिवेशनल, प्रेरणास्पद, उपदेशात्मक, शिक्षास्प्रद कथाएं पढ़ने और सुनने का मौका मिलेगा। चाहे वह किसी व्यक्ति की जीवनी हो या फिर कोई जीवन संदेश, यहाँ आपको हर तरह की प्रेरणादायक कथाएं मिलेंगी। इस चैनल के माध्यम से आप नए उत्साह और सोच का सामना करेंगे, जो आपको जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। इस चैनल को ज्वाइन करें और खुद को एक नया दृष्टिकोण दें, जो आपकी जिंदगी को सकारात्मक और प्रेरणादायक बना सकता है।

प्रेरणास्पद कथायें

30 Dec, 07:53


वास्तविक स्वरूप

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प्रेरणास्पद कथायें

30 Dec, 05:41


बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग...

पहली बात हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते हैं तो भगवान से कहते हैं :- ''प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था, बल्कि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था और आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।

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भगवान बोले :- वो कैसे ...?

हनुमान जी बोले :- वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी है, मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया।

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कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा।

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सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।

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शिक्षा :-
हम भगवान का नाम तो लेते है पर भरोसा नही करते, भरोसा करते भी है तो अपने पुत्रो एवं धन पर, कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।

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उस समय हम भूल जाते है कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे हैं वे हैं, पर हम भरोसा नहीं करते।

बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते हैं।

दूसरी बात प्रभु...!

बाण लगते ही मैं गिरा, पर्वत नहीं गिरा, क्योकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ। मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।

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शिक्षा :-
हमारी भी यही सोच है कि, अपनी गृहस्थी के बोझ को हम ही उठाये हुए हैं।

जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।

जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें है, वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।

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ये राम नाम बहुत ही सरल सरस, मधुर ओर अति मन भावन है मित्रो----- जिंदगी के साथ भी ओर जिंदगी के बाद भी..!!

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

28 Dec, 03:17


सुंदर कांड की रोचक प्रश्नोत्तरी

1 :- सुंदरकाण्ड का नाम सुंदरकाण्ड क्यों रखा गया?

हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटांचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे।
पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था।

दुसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे।

तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी।

इस काण्ड की सबसे प्रमुख घटना यहीं हुई थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया।

2 :- शुभ अवसरों पर सुंदरकाण्ड का पाठ क्यों?

शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का पाठ किया जाता है। शुभ कार्यों की शुरूआत से पहले सुंदरकाण्ड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है।
जबकि किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियाँ हों, कोई काम नहीं बन पा रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकाण्ड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं, कई ज्योतिषी या संत भी विपरित परिस्थितियों में सुंदरकाण्ड करने की सलाह देते हैं।

3 :- सुंदरकाण्ड का पाठ विषेश रूप से क्यों किया जाता है?

माना जाता हैं कि सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी प्रशन्न होते हैं।
सुंदरकाण्ड के पाठ में बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है। जो लोग नियमित रूप से सुंदरकाण्ड का पाठ करते हैं, उनके सभी दुखः दुर हो जाते हैं, इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता माता की खोज की है।

इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है।

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4 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ?

वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड की कथा सबसे अलग है, संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरूषार्थ को दर्शाती है, सुंदरकाण्ड एक मात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का काण्ड है।

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मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड है, सुंदरकाण्ड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।

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5 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है धार्मिक लाभ?

सुंदरकाण्ड के वर्णन से मिलता है धार्मिक लाभ, हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है। बजरंगबली बहुत जल्दी प्रशन्न होने वाले देवता हैं, शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक उपाय सुंदरकाण्ड का पाठ करना है, सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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किसी भी प्रकार की परेशानी हो सुंदरकाण्ड के पाठ से दूर हो जाती है, यह एक श्रेष्ठ और सरल उपाय है, इसी वजह से काफी लोग सुंदरकाण्ड का पाठ नियमित रूप से करते हैं,

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हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए वहां सीता माता की खोज की, लंका को जलाया सीता माता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए, यह एक भक्त की जीत का काण्ड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है, सुंदरकाण्ड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं, इसलिए पुरी रामायण में सुंदरकाण्ड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है, इसी वजह से सुंदरकाण्ड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

27 Dec, 08:21


मौत का डर

https://youtu.be/xDQw1-j7kAo?si=LXRG0AkRFrKUYUZa

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प्रेरणास्पद कथायें

27 Dec, 00:32


शतरंज के मोहरे ओर जिंदगी

एक दिन, एक कंपनी में साक्षात्कार के दौरान, बॉस, जिसका नाम अनिल था, ने सामने बैठी महिला, सीमा से पूछा, "आप इस नौकरी के लिए कितनी तनख्वाह की उम्मीद करती हैं?"

सीमा ने बिना किसी झिझक के आत्मविश्वास से कहा, "कम से कम 90,000 रुपये।"

अनिल ने उसकी ओर देखा और आगे पूछा, "आपको किसी खेल में दिलचस्पी है?"

सीमा ने जवाब दिया, "जी, मुझे शतरंज खेलना पसंद है।"

अनिल ने मुस्कुराते हुए कहा, "शतरंज बहुत ही दिलचस्प खेल है। चलिए, इस बारे में बात करते हैं। आपको शतरंज का कौन सा मोहरा सबसे ज्यादा पसंद है? या आप किस मोहरे से सबसे अधिक प्रभावित हैं?"

सीमा ने मुस्कुराते हुए कहा, "वज़ीर।"

अनिल ने उत्सुकता से पूछा, "क्यों? जबकि मुझे लगता है कि घोड़े की चाल सबसे अनोखी होती है।"

सीमा ने गंभीरता से जवाब दिया, "वास्तव में घोड़े की चाल दिलचस्प होती है, लेकिन वज़ीर में वो सभी गुण होते हैं जो बाकी मोहरों में अलग-अलग रूप से पाए जाते हैं। वह कभी मोहरे की तरह एक कदम बढ़ाकर राजा को बचाता है, तो कभी तिरछा चलकर हैरान करता है, और कभी ढाल बनकर राजा की रक्षा करता है।"

अनिल ने उसकी समझ से प्रभावित होते हुए पूछा, "बहुत दिलचस्प! लेकिन राजा के बारे में आपकी क्या राय है?"

सीमा ने तुरंत जवाब दिया, "सर, मैं राजा को शतरंज के खेल में सबसे कमजोर मानती हूँ। वह खुद को बचाने के लिए केवल एक ही कदम उठा सकता है, जबकि वज़ीर उसकी हर दिशा से रक्षा कर सकता है।"

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अनिल सीमा के जवाब से प्रभावित हुआ और बोला, "बहुत शानदार! बेहतरीन जवाब। अब ये बताइए कि आप खुद को इनमें से किस मोहरे की तरह मानती हैं?"

सीमा ने बिना किसी देर के जवाब दिया, "राजा।"

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अनिल थोड़ी हैरानी में पड़ गया और बोला, "लेकिन आपने तो राजा को कमजोर और सीमित बताया है, जो हमेशा वज़ीर की मदद का इंतजार करता है। फिर आप क्यों खुद को राजा मानती हैं?"

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सीमा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "जी हाँ, मैं राजा हूँ और मेरा वज़ीर मेरा पति था। वह हमेशा मेरी रक्षा मुझसे बढ़कर करता था, हर मुश्किल में मेरा साथ देता था, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं है।"

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अनिल को यह सुनकर थोड़ा धक्का लगा, और उसने गंभीरता से पूछा, "तो आप यह नौकरी क्यों करना चाहती हैं?"

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सीमा की आवाज भर्राई, उसकी आँखें नम हो गईं। उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, "क्योंकि मेरा वज़ीर अब इस दुनिया में नहीं रहा। अब मुझे खुद वज़ीर बनकर अपने बच्चों और अपने जीवन की जिम्मेदारी उठानी है।"

यह सुनकर कमरे में एक गहरी खामोशी छा गई। अनिल ने तालियाँ बजाते हुए कहा, "बहुत बढ़िया, सीमा। आप एक सशक्त महिला हैं।"

शिक्षा और सशक्तिकरण का महत्व:

यह कहानी उन सभी बेटियों के लिए एक प्रेरणा है जो जिंदगी में किसी भी तरह की मुश्किलों का सामना कर सकती हैं। बेटियों को अच्छी शिक्षा और परवरिश देना बेहद जरूरी है, ताकि अगर कभी उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़े, तो वे खुद वज़ीर बनकर अपने और अपने परिवार के लिए एक मजबूत ढाल बन सकें।

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किसी विद्वान ने कहा है, "एक बेहतरीन पत्नी वह होती है जो अपने पति की मौजूदगी में एक आदर्श औरत हो, और पति की गैरमौजूदगी में वह मर्द की तरह परिवार का बोझ उठा सके।"

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यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर आत्मविश्वास और समझदारी हो, तो कोई भी मुश्किल हालात को पार किया जा सकता है।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

26 Dec, 14:19


अर्जुन तो बहाना था गीता का ज्ञान किसे सुनाना था ?

क्या हनुमान जी भी महाभारत के सम्पूर्ण दृश्य के साक्षीदार थे ?

हनुमान जी तो त्रेता युग में भगवान राम जी के साथ थे फिर द्वापरयुग में भगवान कृष्ण के साथ कैसे आगये ?

ऐसे कई रहस्यों से परिपूर्ण कहानियों के लिये "आज की कहानी" इस यूट्यूब चैनल को लाईक कीजिये,सब्स्क्राइब कीजिये और ज्यादा से ज्यादा अपनों को शेयर कीजिये

"आज की कहानी" मिलते है आज रात ठीक 9 बजे
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प्रेरणास्पद कथायें

26 Dec, 06:23


क्या रावण श्रीराम का पुरोहित बना था ?

क्या भगवान श्रीराम ने रावण के चरण स्पर्श किए थे ?

युद्ध से पूर्व भगवान श्री राम ने अपने लिए विजय यज्ञ रावण से क्यों करवाया ?

सुनते है.......

आज की कहानी
DJ की ज़ुबानी

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ऐसी ही सुनी-अनसुनी कहानियां सुनने के लिये चैनल को लाइक कीजिए सब्सक्राइब कीजिए और ज्यादा से ज्यादा अपनों को शेयर कीजिए

प्रेरणास्पद कथायें

25 Dec, 07:30


बड़ा कौन ?

https://youtu.be/R0Q50EV2m7A?si=PLy-8nf7yUc2YohG

छोटी सी कहानी
Dj की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

24 Dec, 07:51


महलों का राजा

https://youtu.be/uuZWSI475QY?si=iCqQazZYEvRbXWXN

छोटी सी कहानी
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प्रेरणास्पद कथायें

24 Dec, 02:37


अहंकारी गरुड़

प्राचीन काल की बात है, शेषनाग का एक महा बलवान पुत्र था। उसका नाम मणिनाग था। उसने भक्ति भाव से भगवान शंकर की उपासना कर गरुड़ से अभय होने का वरदान माँगा। भगवान् शंकर ने कहा - 'ठीक है, गरुड़ से तुम निर्भीक हो जाओ।

तब वह नाग गरुड़ से निर्भय हो क्षीरसागर भगवान् विष्णु जहाँ निवास करते हैं, वहाँ क्षीर सागर के समीप विचरण करने लगा। उसकी इस प्रकार की धृष्टता देखकर गरुड़ को बड़ा क्रोध आया और उसने मणिनाग को पकड़ कर गरुड़ पाश में बाँधकर अपने घर में बन्द कर दिया।

इधर जब कई दिन तक मणिनाग भगवान शंकर के दर्शन को नहीं आया, तो नन्दी ने भगवान शंकर से कहा - 'हे देवेश! मणिनाग इस समय नहीं आ रहा है, अवश्य ही उसे गरुड़ ने खा लिया होगा या बाँध लिया होगा। यदि ऐसा न होता तो वह क्यों न आता?"

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तब नन्दी की बात सुनकर देवाधिदेव भगवान शिव ने कहा – 'नन्दिन्! मणिनाग गरुड़ के घर पर बँधा हुआ पड़ा है, इसलिये शीघ्र ही तुम भगवान् विष्णु के पास जाओ और उनकी स्तुति करो। साथ ही स्वयं मेरी ओर से कहकर गरुड़ द्वारा बाँधे गये उस सर्प को ले आओ।'

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अपने स्वामी भगवान शिव का वचन सुनकर नन्दी ने लक्ष्मीपति भगवान विष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति की और उनसे भगवान शंकर का सन्देश कहा। भगवान शंकर का सन्देश और नन्दी की स्तुति सुनकर नारायण विष्णु बड़े प्रसन्न हुए, उन्होंने गरुड़ से कहा - 'हे वैनतेय! तुम मेरे कहने से मणिनाग को बन्धन मुक्त कर नन्दी को सौंप दो।' यह सुनकर गरुड़ क्रोधित हो गया। अहंकार में आकर बोला - कि स्वामी जन अपने भृत्यों को पुरस्कार देते हैं और एक आप हैं, जो मेरे द्वारा प्राप्त वस्तु को भी हर लेना चाहते हैं। हे नारायण! मेरे बल से ही आप दैत्यों पर विजय प्राप्त करते हैं और स्वयं 'मैं महाबलवान हूं, ऐसी डींग हाँकते हैं।

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गरुड़ की अहंकारपूर्ण बातें सुनकर भगवान विष्णु ने हँसते हुए कहा - 'पक्षिराज! तुम सचमुच मुझे पीठ पर ढोते-ढोते दुर्बल हो गये हो। हे खगश्रेष्ठ! तुम्हारे बल से ही मैं सब असुरों को जीतता हूँ, जीतूंगा भी। अच्छा, तुम मेरी इस कनिष्ठिका अँगुली का भार वहन करो।' यह कहकर भगवान विष्णु ने अपनी कनिष्ठिका अँगुली गरुड़ के सिर पर रख दी। अँगुली के रखते ही गरुड़ का सिर दबकर कोख में घुस गया और कोख भी दोनों पैरों के बीच घुस गयी, उसके समस्त अंग चूर-चूर हो गये।

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तब वह अत्यन्त लज्जित, दीन, व्यथा से कराहता हुआ हाथ जोड़कर विनीत भाव से बोला - हे जगन्नाथ! मुझ अपराधी भृत्य की रक्षा करो - रक्षा करो। प्रभो! सम्पूर्ण लोकों को धारण करने वाले तो आप ही हैं। हे पुत्रवत्सल! हे जगन्माता! मुझ दीन-दुखी बालक की रक्षा करो' कहकर भगवान की प्रार्थना की।

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यह देखकर करुणामयी भगवती लक्ष्मी ने भगवान जनार्दन से प्रार्थना की कि प्रभु! गरुड़ आपका सेवक है, उसका अपराध क्षमा कर उसकी रक्षा करें। भगवान् ने भी गरुड़ को विनीत और अहंकार रहित देखकर कहा कि गरुड़! अब तुम भगवान शंकर के पास जाओ।

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भगवान शंकर की कृपा दृष्टि से ही तुम स्वस्थ हो सकोगे।गरुड़ ने प्रभु की आज्ञा स्वीकार कर नन्दी और मणिनाग के साथ गर्वरहित हो मन्दगति से भगवान शंकर के दर्शन के लिये प्रस्थान किया।उनका गर्व दूर हो चुका था।भगवान शंकर का दर्शन कर और उनके कहने से गौतमी गंगा में स्नान कर वह पुनः वज्र सदृश देहवाले और वेगवान हो गये...!!

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

23 Dec, 08:07


मेहनत का फल

https://youtu.be/Ea1DrBJwXWo?si=fSR-1wi9vqXkHHtF

छोटी सी कहानी
Dj की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

23 Dec, 01:56


कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा,
यह तो सब जानते हैं,
लेकिन कैसे?

यह आज हम आपको बताएंगे..
वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,
लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!
तो मित्रो आज सुनिए
कहानी 'शुभ्रक' की......

सूअर कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया,और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।

कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।

एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई..और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया।

यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..

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कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।

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'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा,उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया,तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया..उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया
और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए,
जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए!

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इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए..

मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए।

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'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी..
लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!

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राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया,तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।

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सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..
भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं!

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जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।

नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..
पढ़कर सीना चौड़ा हुआ हो तो भेज देना सबकाे......

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

22 Dec, 07:59


मजदूर बना गुरु

https://youtu.be/1LuZk4GkvPo?si=BFqyiFNNNQPp2ueH

छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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22 Dec, 02:25


गुरु की बात मानो

नारायण दास एक कुशल मूर्तिकार थे। उनकी बनाई मूर्तियां दूर दूर तक मशहूर थीं। नारायण दास को बस एक ही दुख था कि उनके कोई संतान नहीं थी।

उन्हें हमेशा चिंता रहती थी कि उनके मरने के बाद उनकी कला की विरासत कौन संभालेगा।

एक दिन उनके दरवाजे पर चौदह साल का एक बालक आया। उस समय नारायण दास खाना खा रहे थे।

लड़के की ललचाई आंखों से वे समझ गए कि बेचारा भूखा है। उन्होंने उसे भरपेट भोजन कराया। फिर उसका परिचय पूछा।

लड़के ने कहा कि गांव में हैजा फैलने से उसके माता पिता और छोटी बहन मर गई। वह अनाथ है। नारायण दास को उस पर दया आ गई।

उन्होंने उसे अपने पास रख लिया। लड़के का नाम था कलाधर। वह मन लगाकार उनकी सेवा करता।

काम से छुटृी पाते ही उनके पैर दबाता। नारायण दास द्वारा बनाई जा रही मूर्तियों को ध्यान से देखता।

कई बार वह बाहर से पत्थर ले आता और उस पर छैनी हथौड़ी चलाता।

एक दिन नारायण दास ने उसे ऐसा करते देखा तो समझ गए कि बच्चे में लगन है। उनकी चिंता का समाधान हो गया।

उन्होंने तय कर लिया कि वे अपनी कला इस बालक को दे जाएंगे।

उन्होंने तय कर लिया कि वे अपनी कला इस बालक को दे जाएंगे।

उन्होंने कलाधर से कहा, ”बेटा, क्या तू मूर्ति बनाना सीखना चाहता है? मैं तुझे सिखाऊंगा।“

खुशी से कलाधर का कंठ भर आया। वह कुछ नहीं बोल पाया, बस सिर्फ उनकी ओर देखता रह गया।

नारायण दास ने बड़े मनोयोग से कलाधर को मूर्तिकला सिखाई। धीरे धीरे वह दिन भी आया जब कलाधर भी मूर्तियों गढ़ने में माहिर हो गया।

समय किसी कलाकार को अमर होने का वरदान नहीं देता। नारायण दास बहुत बीमार पड़ गया।

कलाधर ने जी जान से गुरू की सेवा की पर उनकी बीमारी बढ़ती ही गई। एक दिन उनका बुखार तेज हो गया। कलाधर उनके माथे पर गीली पटृी दे रहा था।

गुरू के मुख से कुछ अस्पष्ट स्वर फूट रहे थे, रह रहकर ”बेटा कला धर कला की ऊंचाई का अंत नहीं है। कारीगरी में दोष निकाले जाने का बुरा नहीं मानना कला पर अभिमान मत करना।“ अंतिम शब्द कहते कहते उनके प्राण छूट गए।

कलाधर अपने माता पिता की मृत्यु पर उतना नहीं रोया था, जितना गुरू की मृत्यु पर। धीरे धीरे वह पुराने जीवन में लौट आया। मूर्तियां गढ़नी शुरू कर दीं।

एक दिन उसके यहां एक साधु महाराज पधारे। साधु ने कलाधर से भगवान कृष्ण के बाल रूप की एक सुंदर मूर्ति बनाने को कहा। मूर्तिकार ने उनसे एक महीने बाद आने को कहा।

साधु को इतना लंबा समय लेने के लिए आश्चर्य हो हुआ मगर वे चुप रहे।

एक महीने बाद जब से आए तो वे भगवान कृष्ण की मूर्ति को देखकर दंग रह गए। माखन चुराते कृष्ण.. साधु के मुख से निकला, ”वाह, क्या खूब! बोलो कलाकार, तुम्हें क्या पारिश्रमिक चाहिए?“

कलाधर बोला, ”साधु से पारिश्रमिक! घोर पाप! महाराज, केवल आर्शीवाद दीजिए।“

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”बेटा मेरा आर्शीवाद है कि तू देवलोक के लोगों की वाणी समझ सकेगा।“ और फिर साधु महाराज चले गए।

एक दिन कलाधर अपनी कार्यशाला में मूर्ति गढ़ने में तल्लीन था कि उसे दो व्यक्तियों की आपसी बातचीत की आवाज सुनाई दी। साधु के आर्शीवाद से वह उनकी बातचीत समझ सकता था।

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”बेचारा मूर्तिकार! पंच दिन का मेहमान और है। छठे दिन तो इसके प्राण लेने आना ही पड़ेगा। हमारा काम भी कितना क्रूर है।“

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मूर्तिकार समझ गया कि ये यमदूत हैं। अब मौत का डर सबको होता ही है, सो उसे भी हुआ। वह मृत्यु से बचने को उपाय सोचने लगा।

उसने हू बहू अपने जैसी पांच मूर्तियां बनाईं। छठे दिन वह उन मूर्तियों के बीच सांस रोकर स्थिर बैठ गया।

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यमदूत आए। वे बुरी तरह भ्रम में पड़ गए, ‘इनमें कौन असली मूर्तिकार है।’ वे उसे पहचान नहीं पाए। खाली हाथ लौट आए।

यमदूतों को खाली हाथ लौटते देख यमराज के क्रोध की सीमा न रही। वे गरजे।

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”आज तक मेरा कोई भी दूत बिना प्राण लिए नहीं लौटा। तुम कैसे, वापस आ गए, जाओ, जैसे भी हो उस मूर्तिकार के प्राण लेकर आओ।“

यमदूत वापस कार्यशाला में पहुंचे। अब भी वे उसे पहचान नहीं पाए।

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अचानक एक दूत को एक युक्ति सूझी उसने अपने साथी से कहा, ”वाह क्या मूर्ति बनाई है, फिर भी मूर्तिकार है बेवकूफ। इस मूर्ति की एक आंख बड़ी, दूसरी छोटी बनाई है। दूसरी मूर्ति के अंगूठा ही नहीं है।“

प्रेरणास्पद कथायें

22 Dec, 02:25


मूर्तिकार से अपनी कला में दोष सहन नहीं हुआ। वह गुरू की अंतिम सीख भी भूल गया। चिल्ला पड़ा...”झूठ! दोनों आंखें बराबर“ उसकी आवाज डूबती गई। गर्दन एक ओर लुढ़क गई। यमदूत उसके प्राण लेकर जा चुके थे।

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

21 Dec, 07:42


लालच

https://youtu.be/1W7qhCH4Iuo?si=sbWgTxWbkvz95_vo

छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

20 Dec, 14:46


कौन था केवट ?

भगवान राम को अपनी नौका पर समारुढ करने के लिए क्यों डर रहा था केवट ?

गंगा पार पहुंचाने के लिए भगवान से क्या शर्त रखी केवट ने ?

चरण प्रक्षाल करने के पश्चात ही आपको नौका पर चढ़ने दूंगा ऐसा क्यों कहा केवट ने ?

सुनते हैं.....

आज की कहानी
Dj की ज़ुबानी....

https://youtube.com/watch?v=7jHSd-8SK1c&si=7kvVOsYcezJ8wrF0

"आज की कहानी" मेरे इस नये यूट्यूब चैनल पर आपको सुनी-अनसुनी कहानी सुनने को मिलेगी अत:आपसे विनम्र अनुरोध है कि चैनल को लाईक एवं सब्स्क्राइब कर कमेंट बॉक्स में अपना अभिमत जरूर अभिव्यक्त कीजिये 🙏

प्रेरणास्पद कथायें

20 Dec, 02:15


इन सब बातो का एक ही सार है की कोई अज्ञानी , कोई नास्तिक, कोई कैसा भी क्यों न हो , रामायण ,भागवत ,जैसे महान ग्रंथो को श्रदा पूरवक छूने मात्र से ही सब संकटो से मुक्त हो जाते है ,
और भगवान का सच्चा प्रेमी हो जाये उन की तो बात ही क्या है , मत पूछिये की वे कितने धनि हो जाते है

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

20 Dec, 02:15


राम नाम अति मीठा है कोई गाके देख ले...

एक बार एक राजा ने गाव में रामकथा करवाई और कहा की सभी ब्राह्मणो को रामकथा के लिए आमत्रित किया जय , राजा ने सबको रामकथा पढने के लिए यथा स्थान बिठा दिया |

एक ब्राह्मण अंगुटा छाप था उसको पठना लिखना कुछ आता नही था , वो ब्राह्मण सबसे पीछे बैठ गया , और सोचा की जब पास वाला पन्ना पलटेगा तब मैं भी पलट दूंगा।

काफी देर देखा की पास बैठा व्यक्ति पन्ना नही पलट रहा है, उतने में राजा श्रदा पूरवक सबको नमन करते चक्कर लगाते लगाते उस सज्जन के समीप आने लगे, तो उस ने एक ही रट लगादी
की "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "
"अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "

उस सज्जन की ये बात सुनकर पास में बैठा व्यक्ति भी रट लगाने लग गया ,
की "तेरी गति सो मेरी गति
तेरी गति सो मेरी गति ,"

उतने में तीसरा व्यक्ति बोला ,
" ये पोल कब तक चलेगी !
ये पोल कब तक चलेगी !

चोथा बोला
जबतक चलता है चलने दे ,
जबतक चलता है चलने दे ,
वे चारो अपने सिर निचे किये इस तरह की रट लगाये बैठे है
की,
1 "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा..
2 "तेरी गति सो मेरी गति..
3 "ये पोल कब तक चलेगी..
4 "जबतक चलता है चलने दे..

आज की कहांनी
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जब राजा ने उन चारो के स्वर सुने , राजा ने पूछा की ये सब क्या गा रहे है, ऐसे प्रसंग तो रामायण में हम ने पहले कभी नही सुना ,

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उतने में , एक महात्मा उठे और बोले महाराज ये सब रामायण का ही प्रसंग बता रहे है ,
पहला व्यक्ति है ये बहुत विद्वान है ये , बात सुमन ने ( अयोध्याकाण्ड ) में कही , राम लक्ष्मण सीता जी को वन में छोड़ , घर लोटते है तब ये बात सुमन कहता है की
"अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?
अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?

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फिर पूछा की ये दूसरा कहता है की तेरी गति सो मेरी गति , महात्मा बोले महाराज ये तो इनसे भी ज्यादा विद्द्वान है ,( किष्किन्धाकाण्ड ) में जब हनुमान जी, राम लक्ष्मण जी को अपने दोनों कंधे पर बिठा कर सुग्रीव के पास गए तब ये बात राम जी ने कही थी की , सुग्रीव ! तेरी गति सो मेरी गति , तेरी पत्नीको बाली ने रख लिया और मेरी पत्नी का रावण ने हरण कर लिया..

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राजा ने आदरसे फिर पूछा , की महात्मा जी ! ये तीसरा बोल रहा है की ये पोल कब तक चलेगी , ये बात कभी किसी संत ने नही कही ? , बोले महाराज ये तो और भी ज्ञानी है ,( लंकाकाण्ड ) में अंगद जी ने रावण की भरी सभा में अपना पैर जमाया , तब ये प्रसंग मेधनाथ ने अपने पिता रावन से किया की, पिता श्री ! ये पोल कब तक चलेगी , पहले एक वानर आया और वो हमारी लंका जला कर चला गया , और अब ये कहता है की मेरे पैर को कोई यहाँ से हटा दे तो भगवान श्री राम बिना युद्द किये वापिस लौट जायेंगे।

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फिर राजा बोले की ये चोथा बोल रहा है ? वो बोले महाराज ये इतना बड़ा विद्वान है की कोई इनकी बराबरी कर ही नही सकता ,ये मंदोदरी की बात कर रहे है ,मंदोदरी ने कई बार रावण से कहा की ,स्वामी ! आप जिद्द छोड़, सीता जी को आदर सहित राम जी को सोप दीजिये अन्यथा अनर्थ हो जायगा ,
तब ये बात रावण ने मंदोदरी से कही
की ( जबतक चलता है चलने दे )

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मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है ,अगर में राम के हाथो मारा गया तो मेरी मुक्ति हो जाएगी , इस अदम शरीर से भजन -वजन तो कुछ होता नही , और में युद्द जित गया तो त्रिलोकी में भी मेरी जय जय कार हो जाएगी

राजा इन सब बातोसे चकित रह गए बोले की आज हमे ऐसा अध्बुत प्रसंग सूनने को मिला की आज तक हमने नही सुना , राजा इतने प्रसन्न हुए की उस महात्मा से बोले की आप कहे वो दान देने को राजी हु ,उस महात्मा ने उन अनपढ़ अंगुटा छाप ब्रहमिन भक्तो को अनेको दान दक्षणा दिल वा कर यह सिद्ध कर दिया

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प्रेरणास्पद कथायें

19 Dec, 16:12


क्या रावण श्रीराम का पुरोहित बना था ?
क्या भगवान श्रीराम ने रावण के चरण स्पर्श किए थे ?
युद्ध से पूर्व भगवान श्री राम ने अपने लिए विजय यज्ञ रावण से क्यों करवाया ?

सुनते है आज की कहानी
DJ की ज़ुबानी

https://youtu.be/MKLVCrzYlvs?si=yzqotnJ7URjYzrZD

ऐसी ही सुनी-अनसुनी कहानियां
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प्रेरणास्पद कथायें

19 Dec, 08:46


आत्म चिंतन

https://youtu.be/SGs9QmLMXfE?si=x3TrlBddjxvJeURP

छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

18 Dec, 14:05


"आज की कहानी"

भगवान राम और हनुमान जी का प्रथम मिलन कब और कहाँ हुआ ?

अपना वास्तविक रूप छुपाकर ब्राह्मण वेश में हनुमान जी क्यूं गये श्रीराम जी के पास ?

https://youtu.be/V5huLdNqhPo?si=obZxwCMkkbCHPPSR

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प्रेरणास्पद कथायें

18 Dec, 08:07


"गुरु बिन ज्ञान नहीं"

https://youtu.be/dzLkQJzJLHA?si=_xg3JJFA5_Vw3HKj

छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

18 Dec, 01:21


अच्छाई-बुराई

एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है, जबकी अच्छी आत्माएँ इतने शानदार महल में रहती हैं और हम सब खंडहरों में, आखिर ये भेदभाव क्यों है, जबकि हम सब भी आप ही की संतान हैं।
भगवान ने उन्हें समझाया- ”मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया पर तुम ही अपने कर्मो से बुरी आत्माएं बन गयीं। सो वैसा ही तुम्हारा घर भी हो गया।“

आज की कहांनी
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भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएँ भेदभाव किये जाने की शिकायत करतीं रहीं और उदास होकर बैठ गयी।

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इस पर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले- “बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है, आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खँडहर दिए थे वो सब नष्ट हो जायेंगे, और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने अपने लिए दो अलग-अलग शहरों का निर्माण नए तरीके से स्वयं करेंगी।”
तभी एक आत्मा बोली- “ लेकिन इस निर्माण के लिए हमें ईंटें कहाँ से मिलेंगी?”

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भगवान बोले- “जब पृथ्वी पर कोई इंसान अच्छा या बुरा कर्म करेगा तो यहाँ पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी। सभी ईंटें मजबूती में एक सामान होंगी, अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम अच्छे कार्यों से बनने वाली ईंटें लोगे या बुरे कार्यों से बनने वाली ईंटें!”

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बुरी आत्माओं ने सोचा, पृथ्वी पर बुराई करने वाले अधिक लोग हैं इसलिए अगर उन्होंने बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें ले लीं तो एक विशाल शहर का निर्माण हो सकता है,और उन्होंने भगवान से बुरे कर्मों से बनने वाली ईंटें मांग ली। दोनों शहरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ, पर कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं का शहर वहाँ रूप लेने लगा,उन्हें लगातार ईंटों के ढेर के ढेर मिलते जा रहे थे और उससे उन्होंने एक शानदार महल बहुत जल्द बना भी लिया। वहीँ अच्छी आत्माओं का निर्माण धीरे-धीरे चल रहा था, काफी दिन बीत जाने पर भी उनके शहर का केवल एक ही हिस्सा बन पाया था। कुछ दिन और ऐसे ही बीते, फिर एक दिन अचानक एक अजीब सी घटना घटी। बुरी आत्माओं के शहर से ईंटें गायब होने लगीं… दीवारों से, छतों से, इमारतों की नीवों से,… हर जगह से ईंटें गायब होने लगीं और देखते ही देखते उनका पूरा शहर खंडहर का रूप लेने लगा।

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परेशान आत्माएं तुरंत भगवान के पास भागीं और पुछा- “हे प्रभु! हमारे महल से अचानक ये ईंटें क्यों गायब होने लगीं …हमारा महल और शहर तो फिर से खंडहर बन गया?”भगवान मुस्कुराये और बोले- “ईंटें गायब होने लगीं!! अच्छा! दरअसल जिन लोगों ने बुरे कर्म किए थे अब वे उनका परिणाम भुगतने लगे हैं अर्थात अपने बुरे कर्मों से उबरने लगीं हैं उनके बुरे कर्म और उनसे उपजी बुराइयाँ नष्ट होने लगी हैं। सो उनकी बुराइयों से बनी ईंटें भी नष्ट होने लगीं हैं। आखिर को जो आज बना है वह कल नष्ट भी होगा ही। अब किसकी आयु कितनी होगी ये अलग बात है।“ इस प्रकार बुरी आत्माओ ने अपना सिर पकड़ लिया और सिर झुका के वहा से चली गई।

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शिक्षा:

इस कहानी से हमें कई आवश्यक बातें सीखने को मिलती है, जो हम बचपन से सुनते भी आ रहे हैं पर शायद उसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते। बुराई और उससे होने वाला लाभ बढता तो बहुत तेजी से है। परंतु नष्ट भी उतनी ही तेजी से होता है। वहीँ सच्चाई और अच्छाई से चलने वाले धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं पर उनकी सफलता स्थायी होती है। अतः हमें सदैव सच्चाई की बुनियाद पर अपने सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए, झूठ और बुराई की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते हैं..!!

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

17 Dec, 08:14


भाग्य बदल गया

https://youtu.be/Ud2NSJZMHB4?si=0TTZdX0poEMsB4Uv

छोटी सी कहानी
Dj की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

17 Dec, 02:35


‛अहं’ की गुरुदक्षिणा*

एक ऋषि के पास एक युवक ज्ञान के लिए पहुंचा, ज्ञान प्राप्ति के बाद शिष्य ने गुरु दक्षिणा में गुरु को कुछ देना चाहा।

गुरु ने दक्षिणा के रूप में वह चीज मांगी, जो बिलकुल व्यर्थ हो। शिष्य व्यर्थ चीज की खोज में निकल पड़ा।

उसने मिट्टी की ओर हाथ बढ़ाया, तो मिट्टी बोल पड़ी...

तुम मुझे व्यर्थ समझ रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं है कि इस दुनिया का सारा वैभव मेरे ही गर्भ से प्रकट होता है?

ये विविध वनस्पतियां ये रूप, रस और गंध सब कहां से आते हैं?

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शिष्य आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर पर उसे एक पत्थर मिला। शिष्य ने सोचा, इसे ही ले चलूं।

जैसे ही उसे लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पत्थर से आवाज आई, तुम इतने ज्ञानी होकर भी मुझे बेकार क्यों मान रहे हो।

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तुम अपने भवन और अट्टलिकाएं किससे बनाते हो? तुम्हारे मंदिरों में किसे गढ़ कर देव प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं?

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मेरे इतने उपयोग के बाद भी तुम मुझे व्यर्थ मान रहे हो। यह सुनकर शिष्य ने फिर अपना हाथ खींच लिया।

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वह सोचने लगा, जब मिट्टी और पत्थर इतने उपयोगी हैं, तो आखिर व्यर्थ क्या हो सकता है?

उसके मन से आवाज आई कि सृष्टि का हर पदार्थ अपने आप में उपयोगी है तो ऐसा क्या है जो मैं गुरु जी को दक्षिणा में दे सकूं।

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रास्ते में उसे एक संत मिले, युवक ने उन्हें अपनी बात बताई।

संत मुस्कराए और युवक से कहा ऐसा नहीं है व्यर्थ की चीजें सिर्फ वह होती हैं, जिनका सीधे तौर पर आपके जीवन में कोई कार्य नहीं होता...

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बल्कि व्यर्थ की चीजें वह हैं जिनसे किसी कोई भला नहीं हो सकता।

वस्तुतः व्यर्थ और तुच्छ वह है, जो दूसरों को व्यर्थ और तुच्छ समझता है। व्यक्ति के भीतर का अहंकार ही एक ऐसा तत्व है, जिसका कहीं कोई उपयोग नहीं।

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यह सुनकर शिष्य सीधा गुरु जी के पास गया और उनके पैरों में गिर पड़ा। वह दक्षिणा में अपना अहंकार देने आया था।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

16 Dec, 16:34


"आज की कहानी"

भगवान राम और हनुमान जी का प्रथम मिलन कब और कहाँ हुआ ?

अपना वास्तविक रूप छुपाकर ब्राह्मण वेश में हनुमान जी क्यूं गये श्रीराम जी के पास ?

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प्रेरणास्पद कथायें

07 Dec, 01:39


शिक्षा और दीक्षा

सन्तोष जी के यहाँ पहला लड़का हुआ तो पत्नी ने कहा, "बच्चे को गुरुकुल में शिक्षा दिलवाते हैं, मैं सोच रही हूँ कि गुरुकुल में शिक्षा देकर उसे धर्म ज्ञाता पंडित योगी बनाऊंगी।"

सन्तोष जी ने पत्नी से कहा, "पाण्डित्य पूर्ण योगी बना कर इसे भूखा मारना है क्या !! मैं इसे बड़ा अफसर बनाऊंगा ताकि दुनिया में एक कामयाबी वाला इंसान बने।।"

संतोष जी सरकारी बैंक में मैनेजर के पद पर थे ! पत्नी धार्मिक थी और इच्छा थी कि बेटा पाण्डित्य पूर्ण योगी बने, लेकिन सन्तोष जी नहीं माने।

दूसरा लड़का हुआ पत्नी ने जिद की, सन्तोष जी इस बार भी ना माने, तीसरा लड़का हुआ पत्नी ने फिर जिद की, लेकिन सन्तोष जी एक ही रट लगाते रहे, "कहां से खाएगा, कैसे गुजारा करेगा, और नही माने।"

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चौथा लड़का हुआ, इस बार पत्नी की जिद के आगे सन्तोष जी हार गए , और अंततः उन्होंने गुरुकुल में शिक्षा दीक्षा दिलवाने के लिए वहाँ भेज ही दिया ।

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अब धीरे धीरे समय का चक्र घूमा, अब वो दिन आ गया जब बच्चे अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो गए, पहले तीनों लड़कों ने मेहनत करके सरकारी नौकरियां हासिल कर ली, पहला डॉक्टर, दूसरा बैंक मैनेजर, तीसरा एक गवर्नमेंट कंपनी में उच्च पद पर जॉब करने लगा।

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एक दिन की बात है सन्तोष जी पत्नी से बोले, "अरे भाग्यवान ! देखा, मेरे तीनों होनहार बेटे सरकारी पदों पर हो गए न, अच्छी कमाई भी कर रहे है, तीनों की जिंदगी तो अब सेट हो गयी, कोई चिंता नही रहेगी अब इन तीनों को। लेकिन अफसोस मेरा सबसे छोटा बेटा गुरुकुल का आचार्य बन कर घर घर यज्ञ करवा रहा है, प्रवचन कर रहा है ! जितना वह छ: महीने में कमाएगा उतना मेरा एक बेटा एक महीने में कमा लेगा, अरे भाग्यवान ! तुमने अपनी मर्जी करवा कर बड़ी गलती की, तुम्हें भी आज इस पर पश्चाताप होता होगा , मुझे मालूम है, लेकिन तुम बोलती नही हो"।।

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पत्नी ने कहा, "हम में से कोई एक गलत है, और ये आज दूध का दूध पानी का पानी हो जाना चाहिए, चलो अब हम परीक्षा ले लेते हैं चारों की, कौन गलत है कौन सही पता चल जाएगा ।।"

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दूसरे दिन शाम के वक्त पत्नी ने बाल बिखराकर, अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर और चेहरे पर एक दो नाखून के निशान मारकर आंगन मे बैठ गई और पतिदेव को अंदर कमरे मे छिपा दिया ..!!

बड़ा बेटा आया पूछा, "मम्मी क्या हुआ ?" माँ ने जवाब दिया, "तुम्हारे पापा ने मारा है !" पहला बेटा :- "बुड्ढा, सठिया गया है क्या ? कहां है ? बुलाओ तो जरा।।" माँ ने कहा, "नहीं हैं, बाहर गए हैं !" पहला बेटा - "आए तो मुझे बुला लेना, मैं कमरे मे हूँ, मेरा खाना निकाल दो मुझे भूख लगी है !" ये कहकर कमरे मे चला गया।

दूसरा बेटा आया, पूछा तो माँ ने वही जवाब दिया, दूसरा बेटा : "क्या पगला गए है इस बुढ़ापे में , उनसे कहना चुपचाप अपनी बची खुची ज़िंदगी गुजार ले, आए तो मुझे बुला लेना और मैं खाना खाकर आया हूँ। सोना है मुझे, अगर आये तो मुझे अभी मत जगाना, सुबह खबर लेता हूँ उनकी ।।", ये कह कर वो भी अपने कमरे मे चला गया ।

क्रमशः

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

06 Dec, 07:54


*प्रेरणास्पद कथायें यूट्यूब चैनल पर कल भी कहानी आपको सेंड नहीं कर पाया आज एक साथ दो कहानियां सेंड कर रहा हूं*

1) पार्टनर

https://youtube.com/watch?v=Z6YbNBOgA_8&si=BI5MdVRh9cnVBD-t

छोटी सी कहानी
डीजे की जुबानी

2) भटका हुआ राही

https://youtube.com/watch?v=79_9-CMSiaI&si=PII7ec9tDFkFMWjm

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प्रेरणास्पद कथायें

06 Dec, 01:25


माँ.... क्या चाहिए ?

एक दंपती दीपावली की ख़रीदारी करने को हड़बड़ी में था। पति ने पत्नी से कहा, "ज़ल्दी करो, मेरे पास टाईम नहीं है।" कह कर कमरे से बाहर निकल गया। तभी बाहर लॉन में बैठी "माँ" पर उसकी नज़र पड़ी।

कुछ सोचते हुए वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला, "शालू, तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए?

शालिनी बोली, "नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े....... इसमें पूछने वाली क्या बात है?

यह बात नहीं है शालू...... माँ पहली बार दिवाली पर हमारे घर में रुकी हुई है। वरना तो हर बार गाँव में ही रहती हैं। तो... औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती।

अरे इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो ख़ुद क्यों नहीं पूछ लेते? झल्लाकर चीखी थी शालू ...और कंधे पर हैंड बैग लटकाते हुए तेज़ी से बाहर निकल गयी।

सूरज माँ के पास जाकर बोला, "माँ, हम लोग दिवाली की ख़रीदारी के लिए बाज़ार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो..

माँ बीच में ही बोल पड़ी, "मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा।"

सोच लो माँ, अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए.....

सूरज के बहुत ज़ोर देने पर माँ बोली, "ठीक है, तुम रुको, मैं लिख कर देती हूँ। तुम्हें और बहू को बहुत ख़रीदारी करनी है, कहीं भूल न जाओ।" कहकर सूरज की माँ अपने कमरे में चली गईं। कुछ देर बाद बाहर आईं और लिस्ट सूरज को थमा दी।......

सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, "देखा शालू, माँ को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थीं। मेरे ज़िद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक ज़िंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है।"

अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी ज़रूरत का सारा सामान लूँगी। बाद में आप अपनी माँ की लिस्ट देखते रहना। कहकर शालिनी कार से बाहर निकल गयी।

पूरी ख़रीदारी करने के बाद शालिनी बोली, "अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में A/C चालू करके बैठती हूँ, आप अपनी माँ का सामान देख लो।"

आज की कहांनी
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अरे शालू, तुम भी रुको, फिर साथ चलते हैं, मुझे भी ज़ल्दी है।

देखता हूँ माँ ने इस दिवाली पर क्या मँगाया है? कहकर माँ की लिखी पर्ची ज़ेब से निकालता है।

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बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट, ..... पता नहीं क्या - क्या मँगाया होगा? ज़रूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मँगाये होंगे। और बनो "श्रवण कुमार", कहते हुए शालिनी गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी।

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पर ये क्या? सूरज की आँखों में आँसू........ और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था..... पूरा शरीर काँप रहा था।

शालिनी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ, ऐसा क्या माँग लिया है तुम्हारी माँ ने? कहकर सूरज के हाथ से पर्ची झपट ली....

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हैरान थी शालिनी भी। इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे.....

पर्ची में लिखा था....

"बेटा सूरज मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो...... तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो "फ़ुरसत के कुछ पल" मेरे लिए लेते आना.... ढलती हुई साँझ हूँ अब मैं। सूरज, मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है। पल - पल मेरी तरफ़ बढ़ रही मौत को देखकर.... जानती हूँ टाला नहीं जा सकता, शाश्वत सत्‍य है..... पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है सूरज।...... तो जब तक तुम्हारे घर पर हूँ, कुछ पल बैठा कर मेरे पास, कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन।.... बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ.... कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से, आ मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को। एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को क़रीब, बहुत क़रीब पा कर....और मुस्कुरा कर मिलूँ मौत के गले। क्या पता अगली दिवाली तक रहूँ ना रहूँ.....

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पर्ची की आख़िरी लाइन पढ़ते - पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी.....

ऐसी ही होती हैं माँ.....

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प्रेरणास्पद कथायें

06 Dec, 01:25


दोस्तो, अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों, जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते हैं, वे आपके जीवन के कल्पतरु हैं। उनका यथोचित आदर-सम्मान, सेवा-सुश्रुषा और देखभाल करें। यक़ीन मानिए, आपके भी बूढ़े होने के दिन नज़दीक ही हैं।...उसकी तैयारी आज से ही कर लें। इसमें कोई शक़ नहीं, आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं।

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

05 Dec, 15:50


कौन था केवट ? भगवान राम को अपनी नौका पर समारुढ करने के लिए क्यों डर रहा था केवट ? गंगा पार पहुंचाने के लिए भगवान से क्या शर्त रखी केवट ने ? चरण प्रक्षाल करने के पश्चात ही आपको नौका पर चढ़ने दूंगा ऐसा क्यों कहा केवट ने ? सुनते हैं आज की कहानी डीजे की ज़ुबानी....

https://youtu.be/7jHSd-8SK1c?si=k8Na97OJuWFr7IQ2

"आज की कहानी" मेरे इस नये यूट्यूब चैनल पर प्रत्येक गुरुवार रात ठीक 9 बजे आपको सुनी-अनसुनी कहानी सुनने को मिलेगी अत:आपसे विनम्र अनुरोध है कि चैनल को लाईक एवं सब्स्क्राइब कर कमेंट बॉक्स में अपना अभिमत जरूर अभिव्यक्त कीजिये 🙏

प्रेरणास्पद कथायें

05 Dec, 07:20


आज की कहानी

भगवान राम और हनुमान जी का प्रथम मिलन कब और कहाँ हुआ ?

अपना वास्तविक रूप छुपाकर ब्राह्मण वेश में हनुमान जी क्यूं गये श्रीराम जी के पास ?

https://youtu.be/V5huLdNqhPo?si=obZxwCMkkbCHPPSR

ऐसे कतिपय रहस्य पूर्ण कहानियों को सुनने के लिये "आज की कहानी" यूट्यूब चैनल को लाईक,सब्स्क्राइब एवं शेयर कर कमेंट बॉक्स में अपना अभिप्राय जरूर लिखिये - धन्यवाद

प्रेरणास्पद कथायें

05 Dec, 03:09


रोटी

दो -चार बुजुर्ग दोस्त एक पार्क में बैठे हुऐ थे, वहाँ बातों -बातों में रोटी की बात चल गई..

तभी एक दोस्त बोला - जानते हो कि रोटी कितने प्रकार की होती है?

किसी ने मोटी, पतली तो किसी ने कुछ और ही प्रकार की रोटी के बारे में बतलाया...

तब एक दोस्त ने कहा कि नहीं दोस्त... भावना और कर्म के आधार से रोटी चार प्रकार की होती है।"

पहली "सबसे स्वादिष्ट" रोटी "माँ की "ममता" और "वात्सल्य" से भरी हुई। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता।

एक दोस्त ने कहा, सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।"

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उन्होंने आगे कहा "हाँ, वही तो बात है।

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दूसरी रोटी पत्नी की होती है जिसमें अपनापन और "समर्पण" भाव होता है जिससे "पेट" और "मन" दोनों भर जाते हैं।",

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क्या बात कही है यार ?" ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं।

फिर तीसरी रोटी किस की होती है?" एक दोस्त ने सवाल किया।

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"तीसरी रोटी बहू की होती है जिसमें सिर्फ "कर्तव्य" का भाव होता है जो कुछ कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है"।

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थोड़ी देर के लिए वहाँ चुप्पी छा गई।

"लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है ?" मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा-

"चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे ना तो इन्सान का "पेट" भरता है न ही "मन" तृप्त होता है और "स्वाद" की तो कोई गारँटी ही नहीं है", तो फिर हमें क्या करना चाहिये?

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माँ की हमेशा पूजा करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जिओ, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी मोटी ग़लतियाँ नज़रन्दाज़ कर दो। बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा।

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यदि हालात चौथी रोटी तक ले ही आयें तो भगवान का शुकर करो कि उसने हमें ज़िन्दा रखा हुआ है,अब स्वाद पर ध्यान मत दो केवल जीने के लिये बहुत कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये और सोचो कि वाकई,हम कितने भाग्यशाली हैं..!!

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आज रात ठीक 9 बजे आज की कहानी यूट्यूब चैनल पर सुनना न भूलिए केवट कौन था ? चैनल को लाईक शेयर एवं सब्स्क्राइब कर अपना आशीर्वाद जरूर दीजिये

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

04 Dec, 08:15


हताशा

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प्रेरणास्पद कथायें

04 Dec, 03:59


प्रभु की अलौकिक सुंदरता

महापुरुषों की दृष्टि पड़ते ही क्षण भर में जीवन सुंदर हो सकता है। दक्षिण में एक भक्त हुए उनका नाम धनुदास था। प्रारम्भ में वह हेमाम्बा नाम की वेश्या के रूप पर मुग्ध थे। भगवान में भक्ति बिल्कुल नहीं थी।

शरीर हट्टा-कट्टा था उनका। लोग उन्हें पहलवान कहते थे। दिन बीत रहे थे। वृंदावन रंगजी के मंदिर में प्रतिवर्ष उत्सव हुआ करता था और वैष्णवचार्य श्री रामानुज जी महाराज मंदिर में आया करते थे। लाखों की भीड़ होती थी पहलवान और वेश्या के मन में भी उत्सव देखने की इच्छा हुई। वे दोनों उत्सव में सम्मिलित हुये,कीर्तन में लोग मस्त थे, भगवान की सवारी सजाई गई।

हजारों व्यक्ति आंनद में पागल होकर नाच रहे थे। पर उत्सव में भी पहलवानजी उस वेश्या के मुख की शोभा निहारने में मग्न थे। तभी, श्री रामानुजाचार्यजी की दृष्टि उन पर पड़ गई। भाग्य खुल गया, श्री रामानुजाचार्यजी बोले - यह कौन है उनको दया आ गई, लोगों में यह बात प्रसिद्ध थी ही। सबने सारा हाल सुनाया।

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श्री रामानुजाचार्यजी ने पूछा - “भैया! लाखों व्यक्ति भगवान के आंनद में डूब रहे है, पर तुम्हारी दृष्टि भटक रही है, ऐसा क्यों? पहलवान ने बोला - “महाराज जी! मुझे सुंदरता प्रिय है। हेम्मबा जैसी सुंदरता मैंने कहीं और नहीं देखी। इसीलिए मेरा मन दिन-रात उसी में फंसा रहता है।

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आचार्यजी बोले - “यदि इससे भी सुंदर छवि तुम्हें दिखने को मिले तो इसे छोड़ दोगे?”

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पहलवान बोला - “महाराज जी! इससे भी अधिक सुंदर कोई छवि है, यह मेरी समझ में नहीं आता।”

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आचार्यजी बोले - अच्छा संध्या को मंदिर की आरती समाप्त होने के बाद आ जाना केवल मैं रहूंगा। पहलवान - जी अच्छा! कहकर चले गए।

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श्री रामानुजाचार्यजी मंदिर में गए और भगवान से प्रार्थना की, “प्रभु! आज एक अधर्म का उद्घार करो। एक बार के लिए उसे अपने त्रिभुवन मोहन रूप की एक हल्की सी झांकी तो दिखा दो।”

प्रभु अपने भक्त को कभी निराश नहीं करते। संध्या के समय जब पहलवान आए, तब श्री रामानुजाचार्यजी पकड़कर भीतर ले गए और श्री विग्रह की ओर दिखा कर बोले - देखो! ऐसा सौंदर्य तुमने कभी देखा है।

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पहलवान ने दृष्टि डाली एक क्षण के लिए जन साधारण की दृष्टि में दिखने वाली मूर्ति, मूर्ति न रही स्वयं भगवान ही प्रकट हो गए और पहलवान उस अलौकिक सुंदरता को देखते ही बेहोश हो गया। बहुत देर के बाद होश आया। होश आने पर श्री रामानुजाचार्यजी के चरण पकड़ लिए और बोला - “प्रभु! अब वह रूप निरंतर देखता रहूं, ऐसी कृपा कीजिए।

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फिर श्री रामानुजाचार्यजी ने उन्हें मंत्र दीक्षा दी। आगे चलकर वह उनके बहुत प्यारे शिष्य तथा एक पहुंचे हुए महात्मा हुए। तुलसीदास जी ने सच ही कहा है -

‘बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥’

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

03 Dec, 14:33


लक्ष्य की प्राप्ति

https://youtu.be/5STuNOea_BM?si=ByXC12I2Cmg82zk7

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03 Dec, 02:41


कल एक आधाराश्रम में मेरा प्रोग्राम था वहां जाकर कतिपय वृद्ध लोगों की दर्द भरी कहानी सुनी ह्रदय को गहरा आघात पहुंचा.....

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वृद्धावस्था आने से पहले हमें क्या करना चाहिए, जिससे वृद्धाश्रम में नहीं रहना पड़े?

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वृद्धाश्रम आ जाने या भेजे जाने का मुख्य कारण होता है आपका अपने बच्चों पर निर्भर होना। निम्न लिखें कुछ उपायों से आप आत्मनिर्भर बन सकते हैं।

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सेवा निवृत्त होने से पहले हर माह किसी अच्छी स्कीम में निवेश करना चाहिए जिस से सेवा निवृत्त होने के बाद आप आर्थिक रूप से स्वावलम्बी रह सकें। इस के कारण आप अपने बच्चों पर आर्थिक रूप से बोझ नहीं बनेंगे।

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युवावस्था में ही अपनी मेडिक्लेम पॉलिसी अवश्य बनवा लें। जिससे यदि आगे चलकर बीमारी का कोई बड़ा खर्चा आये तो आपको किसीके सामने हाथ न फ़ैलाने पड़े।

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यदि आपके नाम कोई मकान, घर, ज़मीन, इन्शुरन्स पॉलिसी, बैंक अकाउंट आदि हो तो जॉइंट नाम आपकी पत्नी या पति का रखें।

नॉमिनेशन में अपने बच्चों का नाम रखें। इतना ही नहीं, आपके गुज़र जाने पर सारी चीज़ें आपके जीवित पत्नी या पति के नाम पर हो जाए, ऐसी व्यवस्था करें।

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पति-पत्नी दोनों के गुज़र जाने के बाद ही सारी संपत्ति बच्चों के नाम होनी चाहिए इसका ध्यान रखें क्योंकि आज कल किसीकी भी नियत बदलते देर नहीं लगती।

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युवावस्था से ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना। संतुलित आहार और नियमित व्यायाम करना अत्यंत आवश्यक है जिसके चलते वृद्धावस्था में भी अच्छा स्वास्थ्य बना रहे और आप अपने बच्चों पर बोझ न बनें।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

02 Dec, 07:47


सु:ख का राज

https://youtu.be/FQsT5WMt6j4?si=IG4Du5G6hUQZw1jp

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प्रेरणास्पद कथायें

02 Dec, 01:26


वृन्दावन में एक संत रहा करते थे।

उनका नाम था कल्याण। बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे।

एक बार उनके पास एक सेठ आया। अब था तो सेठ, लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था। उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था।

वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा - महाराज आप कोई उपाय करिये।

उन संत ने कहा, देखो अगर मैं कोई उपाय जानता तो तुम्हे अवश्य बता देता। मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही, जिससे मैं तेरे व्यापार को ठीक कर सकूँ। ये मेरे बस में नही है। हमारे तो एक ही आश्रय है, बिहारी जी। इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया।

उस संत ने कहा - तू चल मेरे साथ, ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले - तुझे जो कुछ माँगना है, जो कुछ कहना है, इनसे कह दे। ये सबकी कामनाओ को पूर्ण कर देते है।

वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा। दो चार दिन वृन्दावन में रुका, फिर चला गया।

कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया, फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा बिहारी जी का धन्यवाद करता।

फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया, वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नही रही, लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था, तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है। तो उसने उसे 750 रुपये दिए और कहा कि ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना।

वो भक्त जब वृन्दावन आया तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया। लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया, लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही, थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे बन गई कोई बात नही।

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लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही। अब इधर मंदिर बंद हुआ तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए।

सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है।

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उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा, तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी, वो मेने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है।

तुम उस भक्त को ये रुपया लौटा देना, ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए।

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उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की!!

वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया लेकिन, उसको पता चला कि वो तो शाम को आयेंगे जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया कि ये बात तो मैं ही जानता था, और तो मैने किसी को बताई भी नही।

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सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा, मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे। वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है।

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ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा, और बोला जय हो बिहारी जी की। इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला!! ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नही रहने देते।

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जो एक बार इनकी शरण ले लेता है, फिर उसे किसी से कुछ माँगना नही पड़ता। उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

30 Nov, 07:42


गोल सेट करो

https://youtu.be/ciOD7JeDCCM?si=ynXwNJNLH0GVtO0s

छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

30 Nov, 01:37


माँ को कैसे पहचाने

एक बार एक राजा के महल में एक व्यापारी दो गायों को लेकर आया। दोनों ही स्वस्थ, सुंदर व दिखने में लगभग एक जैसी थीं।

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व्यापारी ने राजा से कहा - "महाराज! यह दोनों गायें माँ-बेटी हैं, परन्तु मुझे यह नहीं पता है कि दोनों में माँ कौन है और बेटी कौन है। मैं इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि दोनों में कोई विशेष अंतर नहीं है। मैंने अनेक स्थानों पर लोगों से यह पूछा किंतु कोई भी इन दोनों में माँ-बेटी की पहचान नहीं कर पाया। बाद में मुझ से किसी ने यह बताया है कि आपका बुजुर्ग मंत्री बेहद कुशाग्र बुद्धि का है और यहाँ पर मुझे अवश्य मेरे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा इसलिए मैं यहाँ पर चला आया। कृपया मेरी समस्या का समाधान किया जाए।"

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यह सुनकर सभी दरबारी मंत्री की ओर देखने लगे। मंत्री अपने स्थान से उठकर गायों की ओर गया। उसने दोनों का गहराई से निरीक्षण किया किंतु वह भी नहीं पहचान पाया कि वास्तव में कौन मां है और कौन बेटी है। अब मंत्री बड़ी दुविधा में फंस गया। उसने राजा से मां बेटी की पहचान करने के लिए एक दिन की मोहलत मांगी।

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घर आने पर वह बेहद परेशान रहा। उसकी पत्नी इस बात को समझ गई। उसने जब मंत्री से परेशानी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बता दी।

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यह सुनकर उसकी बुद्धिमती पत्नी बोली - 'अरे! बस इतनी सी बात है। यह तो मैं भी बता सकती हूँ।'

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अगले दिन मंत्री अपनी पत्नी को वहां अपने साथ लेकर गया जहाँ गायें बंधी थीं। मंत्री की पत्नी ने दोनों गायों के आगे अच्छा भोजन रखा। कुछ ही देर बाद उसने माँ व बेटी में अंतर बता दिया। लोग चकित रह गए।

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राजा ने पूछा कि उसने कैसे पहचाना कि कौन मां और कौन बेटी है तो मंत्री की पत्नी बोली - "पहली गाय जल्दी-जल्दी खाने के बाद दूसरी गाय के भोजन में मुंह मारने लगी और दूसरी वाली ने पहली वाली के लिए अपना भोजन छोड़ दिया। ऐसा केवल एक मां ही कर सकती है यानि दूसरी वाली माँ है। माँ ही बच्चे के लिए भूखी रह सकती है। माँ में ही त्याग, करुणा, वात्सल्य, ममत्व के गुण विद्यमान होते हैं।"

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इस दुनियाँ मे माँ से महान कोई नही है। माँ के चरणों मे भगवान को भी झुकना पड़ता है। माँ ममता का सागर नहीं बल्कि महासागर है!!

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

29 Nov, 08:26


आत्मज्ञान

https://youtu.be/1HOmvHIn3gg?si=a_APlrOXiFk5D-6p

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Dj की कहानी

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प्रेरणास्पद कथायें

29 Nov, 01:35


बड़ा पद

पिता अपने बेटे के साथ पांचसितारा होटल में प्रोग्राम अटेंड करके कार से वापस जा रहे थे। रास्ते में ट्रेफिक पुलिस हवलदार ने सीट बैल्ट नहीं लगाने पर रोका और चालान बनाने लगे।

पिता ने सचिवालय में अधिकारी होने का परिचय देते हुए रौब झाडना चाहा तो हवलदार जी ने कडे शब्दों में आगे से सीट बैल्ट लगाने की नसीहत देते हुए छोड दिया। बेटा चुपचाप सब देख रहा था।

रास्ते में पिता " अरे मैं आइएएस लेवल के पद वाला अधिकारी हूं और कहां वो मामूली हवलदार मुझे सिखा रहा था, मैं क्या जानता नहीं क्या जरुरी है क्या नहीं", बडे अधिकारियों से बात करना तक नहीं आता, आखिर हम भी जिम्मेदारी वाले बडे पद पर हैं भई !!"

आज की कहांनी
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बेटे ने खिडकी से बगल में लहर जैसे चलती गाडियों का काफिला देखा, तभी अचानक तेज ब्रेक लगने और धमाके की आवाज आई।

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पिता ने कार रोकी, तो देखा सामने सडक पर आगे चलती मोटरसाइकिल वाले प्रोढ को कोई तेज रफ्तार कार वाला टक्कर मारकर भाग गया था । मौके पर एक अकेला पुलिस का हवलदार उसे संभालकर साइड में बैठा रहा था।

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खून ज्यादा बह रहा था, हवलदार ने पिता को कहा " खून ज्यादा बह रहा है मैं ड्यूटि से ऑफ होकर घर जा रहा हूं और मेरे पास बाईक है आपकी कार से इसे जल्दी अस्पताल ले चलते हैं‌ शायद बच जाए।"

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बेटा घबराया हुआ चुपचाप देख रहा था। पिता ने तुरंत घर पर इमरजेंसी का बहाना बनाया और जल्दी से बेटे को खींचकर कार में बिठाकर चल पडा ।

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बेटा अचंभित सा चुपचाप सोच रहा था कि बडा पद वास्तव में कौनसा है !! पिता का प्रशासनिक पद या पुलिस वाले हवलदार का पद जो अभी भी उस घायल की चिंता में वहां बैठा है......….....

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अगले दिन अखबार के एक कोने में दुर्घटना में घायल को गोद में उठाकर 700 मीटर दूर अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाने वाले हवलदार की फोटो सहित खबर व प्रशंसा छपी थी। बेटे के होठों पर सुकुन भरी मुस्कुराहट थी, उसे अपना जवाब मिल गया था।

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शिक्षा

दोस्तों इंसानियत का मतलब सिर्फ खुशियां बांटना नहीं होता …बड़े पद का असली मतलब अपने पास आई चुनोतियों का उस समय तक सामना करना होता है, जब तक उसका समाधान नही हो जाता। उस समय तक साथ देना होता है जब वो मुसीबत में हो, जब उसे हमारी सबसे ज्यादा ज़रुरत हो …।इसलिए हमें कभी भी अपने पद का घमंड नही करना चाहिए,हर समय मदद के लिए तैयार होकर अपने पद की गरिमा बनानी चाहिए..!!

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

28 Nov, 16:07


"आज की कहानी"

भगवान राम और हनुमान जी का प्रथम मिलन कब और कहाँ हुआ ?

अपना वास्तविक रूप छुपाकर ब्राह्मण वेश में हनुमान जी क्यूं गये श्रीराम जी के पास ?

https://youtu.be/V5huLdNqhPo?si=obZxwCMkkbCHPPSR

ऐसे कतिपय रहस्य पूर्ण कहानियों को सुनने के लिये "आज की कहानी" यूट्यूब चैनल को लाईक,सब्स्क्राइब एवं शेयर कर कमेंट बॉक्स में अपना अभिप्राय जरूर लिखिये - धन्यवाद

प्रेरणास्पद कथायें

28 Nov, 07:57


ऐसा वरदान दो

https://youtu.be/9reIP1-4PrA?si=iQRsNUtcuEQMwlQY

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डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

28 Nov, 03:23


तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो ।और मैं तुमसे वचन देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम्हें भगवान को खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी , क्योंकि स्वयं को जानने में ही वह भी जान लिया जाएगा जो परमात्मा है यानी जिसने खुद को जान लिया उसने परमात्मा को पा लिया!

खुद के बोध के लिए सदगुरु की शरणागत होना होगा तभी साक्षात् परम ब्रह्म का दर्शन हो पायेगा!

जिसने भी वह दर्शन किया, अपने अन्दर जीते जी किया।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

24 Nov, 13:00


रामायण की अनसुनी कहानी

https://youtube.com/watch?v=X3uYUZrBEAY&si=HKdfsaBeP8cv7RcZ

1) क्या कुबेर रावण का भाई था ?
2) क्या रावण ऋषि पुत्र था ?
3) पुष्पक विमान एवं अलकापुरी रावण ने कैसे अपने अधीन की ?
4) क्या पुष्पक विमान की गति मन से भी तेज थी ?
5) कैलाश पर्वत के पास आते ही पुष्पक की गति धीमी क्यों हो गई ?

ऐसे कई रहस्य को जानने के लिए "आज की कहानी" के लिंक पर क्लिक कर यह कहानी जरूर सुनिये कहानी अच्छी लगी हो तो चैनल को लाइक शेयर एवं सब्सक्राइब कीजिए और हां कमेंट बॉक्स में अपना अभिमत अभिव्यक्त कर मेरे उत्साह को अभिवृद्धि कीजिए - धन्यवाद

प्रेरणास्पद कथायें

24 Nov, 07:45


करुणानिधि

https://youtu.be/m4kGCDi_ca4?si=TB2TcXGWYUEUKKaD

छोटी सी कहानी
डीजे की जुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

24 Nov, 02:20


अच्छा सोचें

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।

वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी। उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।

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उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।

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मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ?

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क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ? वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?

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हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

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हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश ,हार ,जीत, जीवन,मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है।हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।

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कुछ लोग हमारी सराहना करेंगे, कुछ लोग हमारी आलोचना करेंगे।

दोनों ही मामलों में हम फायदे में हैं एक हमें प्रेरित करेगा और
दूसरा हमारे भीतर सुधार लाएगा।।

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

23 Nov, 11:53


भजन और भोजन

https://youtu.be/HGndrgNvmX8?si=8_KYdSmTQIb3eY6t

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प्रेरणास्पद कथायें

23 Nov, 01:06


!! आखिरी प्रयास !!

एक समय की बात है. एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया. राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ.

उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया. महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं।

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सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना. इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी.” 50 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए.

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अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. किंतु पत्थर जस का तस रहा. मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये. किंतु पत्थर नहीं टूटा.

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पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा. वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है. इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती.

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महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था. इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया।

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पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया. पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया.

इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता।

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शिक्षा :–
मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं. कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं.

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कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं. जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता. यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती. क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

22 Nov, 09:42


भगवान से रिश्ता

https://youtu.be/-oDEuve9cgY?si=MeHQ_Lx4XVTIFVgO

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डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

21 Nov, 17:12


आज की कहानी

भीष्म पितामह ने ऐसी कौन से कर्म किए थे जो उन्हें बाणों की शैया पर सोना पड़ा ?

https://youtu.be/x613Ng-NVOU?si=snHdl6bMLyqOELtt

कर्मफल भोगे बिना किसी को भी छुटकारा नहीं मिल सकता

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प्रेरणास्पद कथायें

20 Nov, 08:05


लालच

https://youtu.be/SzgqG0fnWFM?si=yyhh3okqJcWhOVnm

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प्रेरणास्पद कथायें

20 Nov, 01:36


भीतर के "मैं" का मिटना ज़रूरी है
सुकरात समुन्द्र तट पर टहल रहे थे| उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी.

वो उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा , -''तुम क्यों रो रहे हो?
लड़के ने कहा- 'ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उसमें इस समुन्द्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं |

बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे |

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अब पूछने की बारी बच्चे की थी |
बच्चा कहने लगा- आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है?

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सुकरात ने जवाब दिया- बालक, तुम छोटे से प्याले में समुन्द्र भरना चाहते हो,और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ |

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आज तुमने सिखा दिया कि समुन्द्र प्याले में नहीं समा सकता है , मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा |

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यह सुनके बच्चे ने प्याले को दूर समुन्द्र में फेंक दिया और बोला- "सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है |

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इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले-
बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है |
हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो सारा का सारा आपमें लीन हो सकता हूँ |

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ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गए |

सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त कराया | जिस सुकरात से मिलने के सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए थे

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ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का "मैं " सबसे पहले मिटता है |

या यूँ कहें जब आपके अंदर का "मैं" मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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19 Nov, 06:49


"दिल से अमीर"

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19 Nov, 01:13


नदी और शेर

जीवन है तो सुख भी आएगा, दुख भी आएगा, कठिन परिस्थितियाँ भी आएगी तो खुशी के पल भी आएंगे, लेकिन हर परिस्थिति में हम थोड़ा ठहर कर, थोड़ा रुक कर, फिर उसे समझ कर आगे बढ़े तो इससे क्या जादू होगा आज हम इस कहानी से जानते हैं।

एक समय की बात है। एक जंगल में भारी बारिश होने के कारण नदी का पानी चारो तरफ फैल गया और एक शेर को नदी को पार करने के लिए उस नदी के पानी का सामना करना पड़ा। क्योंकि उस नदी ने बारिश के वजह से उसे घेर लिया था। और वह था शेर इसीलिए तैरना उसके स्वभाव में नहीं था, लेकिन परिस्थिति ऐसी हो गई थी कि "या तो वह उसे पार कर ले या उसमें डूब के मर जाए।"

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शेर दहाड़ते हुए आवेश में नदी के ऊपर खूब चिल्लाया, क्योंकि वह नदी मे लगभग डूबने लगा था। कई बार उसने पानी पर हमला किया, लेकिन हर बार वह नदी पार करने में असफल रहा।

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थक हार कर शेर लेट गया और चारों तरफ खामोशी छा गई। उस खामोशी में उसने नदी को कहते सुना कि, "जो यहाँ नहीं है उससे कभी मत लड़ो।"

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शेर ने ध्यान से सुना और पूछा, "यहाँ क्या नहीं है?"

"आपका यहाँ कोई दुश्मन नहीं हैं।" नदी ने उत्तर दिया। "जैसे आप सिंह हो, वैसे ही मैं भी नदी हूँ। मैं आपकी दुश्मन नहीं हूँ। "

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यह सब सुनकर अब शेर रुक गया और वह शांत होकर बैठ गया। उस शांति के पल में उसने नदी के रास्तों का अध्ययन किया। जिससे कि वह यह समझ पाया कि उसे नदी कैसे पार करनी है। थोड़ी देर के बाद, वह वहाँ चला गया जहाँ एक निश्चित धारा किनारे से टकराती थी और अंदर कदम रखते हुए दूसरी तरफ तैरने लगा क्योंकि वहां नदी का प्रवाह कम था। और बिना किसी मुश्किल के उसने नदी पार कर ली।

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क्या हम भी किसी से लड़ रहे हैं? अपनों के साथ या खुद के साथ....

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दोस्तों जीवन एक संघर्ष नहीं, जीवन एक सफर है। इस सफर में आती हुई हर परिस्थिति से लड़ने या जूझने से पहले कुछ पल रुक कर, उन पलों में पूरी तरह ठहर कर और उस ठहराव को महसूस करके अध्ययन करें, तो हम समझ पाएंगे कि यहाँ लड़ने के लिए कुछ भी नहीं है।

अपने जीवन में और अन्य रिश्तो में हमारे अहंकार और गौरव को जाने दें और गर्जना बंद करे। थोड़ा रुके, मुस्कुराए और उस मुस्कुराहट को फैलने दें।

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सुखी और शांतिपूर्ण जीवन के उपायों को जानकर हम चारों तरफ इस मुस्कराहट को बिखेर सकते हैं।

"यदि एक बार मन सामंजस्यपूर्ण स्थिति में आ जाए तो फिर न बाहरी परिस्थितियों काऔर न वातावरण का उस पर कोई प्रभाव होगा और न ही आंतरिक अशांति होगी।"

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

18 Nov, 07:41


भाग्य में कितना धन है

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छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

18 Nov, 01:52


रुका हुआ आदमी और ठहरा हुआ पानी दोनों सड़ जाते हैं

स्वामी राम जापान गए थे। रास्ते में जिस जहाज पर सवार थे - एक बूढ़ा जर्मन भी उस जहाज़ पर था, जिनकी उम्र कोई नब्बे वर्ष होगी। वह नब्बे वर्ष की उम्र में चीनी भाषा सीख रहा था! चीनी भाषा सीखना कठिन मामला है।

शायद पृथ्वी पर उतनी कठिन कोई दूसरी भाषा नहीं है। उसका कारण है कि चीनी भाषा के पास कोई वर्णमाला नहीं है, कोई अलफाबेट नहीं है, कोई ए बी सी, क ख ग कुछ भी नहीं है।

चीनी भाषा पिक्टोरियल है, चित्रों की भाषा है। एक - एक शब्द के लिए एक - एक चित्र हैं। अगर झगड़ा लिखना है, लड़ाई लिखनी है तो लड़ाई के लिए कोई शब्द नहीं है - सिर्फ एक छप्पर के नीचे दो औरतें बैठी हुई हैं। एक छप्पर के नीचे दो औरतों के बैठने का मतलब झगड़ा होता है। तो छप्पर बना है, और प्रतीक में दो औरतें बैठी हैं, यह झगड़ा हो गया। तो इस तरह कम से कम एक लाख शब्द सीखने पड़े तो कहीं साधारण चीनी का ज्ञान होता है।

नब्बे वर्ष का बूढ़ा चीनी भाषा सीख रहा था, पागल हो गया! रामतीर्थ को लगने लगा, इस बूढ़े को क्या हो गया?

आज की कहांनी
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वह सुबह से लेकर जहाज के डेक पर जो चीनी भाषा सीखने बैठता है, तो कब सूरज डूब जाता है, उसे पता नहीं चलता। जब अंधेरा घिर जाता है, उसकी बूढ़ी आँखे थक जाती हैं तो वह अंदर वापस लौटता है!

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दो - तीन दिन में रामतीर्थ ने उनसे पूछा कि आपको पता है, कि मैंने सुना है कि चीनी भाषा सीखने में कम से कम दस साल लग जाते हैं। आप कब सीख पाओगे? आपकी कितनी उम्र हो गयी है?

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उस बूढ़े ने कहा, कि उम्र! का हिसाब भगवान रखता होगा, इस फिजूल काम में मैं नहीं पड़ता। यहां काम से फुर्सत कहां है?

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रामतीर्थ ने कहा, वह तो ठीक है, लेकिन फिर भी दस साल लग जाएंगे सीखने में - और आपके बचने की उम्मीद कम है। उस बूढ़े आदमी ने कहा कि नब्बे साल का मेरा अनुभव कहता है कि नब्बे साल तो मैं बचा। मरने की संभावना रोज थी, कभी भी मर सकता था। नब्बे साल तो मैंने मरने को धोखा दे दिया। नब्बे साल का अनुभव यह कहता है, अभी तक नहीं मरा - तो जरा विश्वास बढ़ता है कि जी सकता हूं और भी जी सकता हूं। लेकिन तुम्हारी उम्र कितनी है?

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रामतीर्थ बहुत मुश्किल में पड़ गए, उनकी उम्र उस समय तीस ही वर्ष थी। तुम्हारी उम्र कितनी है?

रामतीर्थ ने कहा, उम्र तो तीस ही वर्ष है। उस बूढ़े आदमी ने कहा कि बेटे मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि तुम्हारा देश क्यों बूढ़ा हो गया है। तुम कुछ भी नहीं करते, तुम सिर्फ मौत की प्रतीक्षा करते हो, तो बूढ़े तो हो ही जाओगे।

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फिर मेरा तो ख्याल यह है कि अगर भगवान कहीं भी है, तो इस बूढ़े को देखेगा कि इतना श्रम करता है तो दया करेगा ही। और अगर नहीं है तो उसकी फिक्र ही छोड़ देनी है। और अगर कहीं है, तो इस बूढ़े को बच्चे की तरह मेहनत करते देखकर यह सोचता होगा कि अभी इसे और, और, और उम्र दें। और यह हैरानी की मैंने घटना सुनी है कि वह बूढ़ा पंद्रह साल जिंदा रहा। उसने न केवल चीनी भाषा सीखी, न केवल चीनी किताबें पढ़ी, बल्कि एक चीनी भाषा में किताब भी लिखकर छोड़ गया है! और रामतीर्थ तो दो साल बाद समाप्त हो गए। वह आदमी एक सौ पांच साल जिया।

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मैं मानता हूं, उसके जीने में उसकी जो जीवंत धारणा है, वह बहुत कीमती रूप से हाथ बंटायी होगी। और इतनी जद्दोजहद जो जिंदगी के लिये कर रहा हो, उसके लिए भगवान भी अगर कहीं हो, तो थोड़ा ख्याल रखना जरूरी पड़ेगा

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

17 Nov, 07:56


सदा सुहागन रहो

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प्रेरणास्पद कथायें

17 Nov, 03:07


आत्मविश्वास

एक युवक को संघर्ष करते करते कई वर्ष हो गए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

वह काफी निराश हो गया, और नकारात्मक विचारो ने उसे घेर लिया। उसने इस कदर उम्मीद खो दी कि उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया।

वह जंगल में गया और वह आत्महत्या करने ही जा रहा था कि अचानक एक सन्त ने उसे देख लिया।

सन्त ने उससे कहा – बच्चे क्या बात है , तुम इस घनघोर जंगल में क्या कर रहे हो ?

उस युवक ने जवाब दिया – मैं जीवन में संघर्ष करते -करते थक गया हूँ और मैं आत्महत्या करके अपने बेकार जीवन को नष्ट करने आया हूँ।

सन्त ने पूछा तुम कितने दिनों से संघर्ष कर रहे हों ?

युवक ने कहा मुझे दो वर्ष के लगभग हो गए, मुझे ना तो कहीं नौकरी मिली है, और ना ही किसी परीक्षा में सफल हो सकां हूँ।

सन्त ने कहा– तुम्हे नौकरी भी मिल जाएगी और तुम सफल भी हो जायोगे। निराश न हो , कुछ दिन और प्रयास करो।

युवक ने कहा– मैं किसी भी काम के योग्य नहीं हूँ, अब मुझसे कुछ नहीं होगा।

जब सन्त ने देखा कि युवक बिलकुल हिम्मत हार चुका है तो उन्होंने उसे एक कहानी सुनाई।

“एक बार ईश्वर ने दो पौधे लगाये , एक बांस का, और एक फर्न (पत्तियों वाला) का।

फर्न वाले पौधे में तो कुछ ही दिनों में पत्तियाँ निकल आई। और फर्न का पौधा एक साल में काफी बढ़ गया पर बाँस के पौधे में साल भर में कुछ नहीं हुआ।

लेकिन ईश्वर निराश नहीं हुआ। दूसरे वर्ष में भी बाँस के पौधे में कुछ नहीं हुआ। लेकिन फर्न का पौधा और बढ़ गया।

ईश्वर ने फिर भी निराशा नहीं दिखाई। तीसरे वर्ष और चौथे वर्ष भी बाँस का पौधा वैसा ही रहा, लेकिन फर्न का पौधा और बड़ा हो गया। ईश्वर फिर भी निराश नहीं हुआ।

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फिर कुछ दिनों बाद बाँस के पौधे में अंकुर फूटे और देखते – देखते कुछ ही दिनों में बाँस का पेड़ काफी ऊँचा हो गया।

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बाँस के पेड़ को अपनी जड़ों को मजबूत करने में चार पाँच साल लग गए।

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सन्त ने युवक से कहा – कि यह आपका संघर्ष का समय, अपनी जड़ें मजबूत करने का समय है।

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आप इस समय को व्यर्थ नहीं समझे एवं निराश न हो। जैसे ही आपकी जड़ें मजबूत, परिपक्व हो जाएँगी, आपकी सारी समस्याओं का निदान हो जायेगा।

आप खूब फलेंगे, फूलेंगे, सफल होंगें और आकाश की ऊँचाइयों को छूएंगें।

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आप स्वंय की तुलना अन्य लोगों से न करें। आत्मविश्वास नहीं खोएं। समय आने पर आप बाँस के पेड़ की तरह बहुत ऊँचे हो जाओगे। सफलता की बुलंदियों पर पहुंचोगे।

बात युवक के समझ में आ गई और वह पुन : संघर्ष के पथ पर चल दिया।

दोस्तों, फर्न के पौधे की जड़ें बहुत कमज़ोर होती हैं जो जरा सी तेज़ हवा से ही जड़ से उखड जाता है।

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और बाँस के पेड़ की जड़ें इतनी मजबूत होती हैं कि बड़ा सा बड़ा तूफ़ान भी उसे नहीं हिला सकता।

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इसलिए दोस्तों संघर्ष से घबराये नहीं। मेहनत करते रहें और अपनी जड़ों को इतनी मजबूत बना लें कि बड़े से बड़ी मुसीबत, मुश्किल से मुश्किल हालात आपके इरादो को कमजोर ना कर सके और आपको आगे बढ़ने से रोक ना सके।

किसी से भी अपनी तुलना ना करे , सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास के साथ अपने लक्ष्य की और बढ़ते रहे। आप जरूर सफल होंगे और आसमान की बुलंदियों को छुयेंगे...

   मंगलमय प्रभात
प्रणाम             

प्रेरणास्पद कथायें

16 Nov, 07:44


सही निर्णय

https://youtu.be/xE9rbQ_Ycd4?si=APl6VCyytpGb7rTs

छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

16 Nov, 01:14


आज की कहानी

अमेरिका के एक रेस्तरां में वेट्रेस ने एक आदमी और उसकी पत्नी को लंच का मेनू दिया और मेनू देखने से पहले, उन्होंने उसे दो सबसे सस्ता डिशेस देने के लिए कहा क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे ये मुश्किल दौर से गुजर रहे थे।

वेट्रेस सारा ने ज़्यादा देर तक नहीं सोचा उसने उन्हें दो डिशेस की सिफारिश की और वो बिना किसी संकोच के सहमत हुए कि वो सबसे सस्ते थे। वह आर्डर ले आई और उन्होंने भूख से जल्दी खा लिया, और जाने से पहले उन्होंने वेट्रेस से बिल के लिए पूछा ; अपने बिलिंग वॉलेट में कागज़ टुकड़ा लेकर उनके पास वापस आई जिसमें लिखा था: मैंने आपके हालात को देखते हुए अपने व्यक्तिगत खाते से आपके बिल का भुगतान किया है ये मेरी तरफ से गिफ्ट के रूप में सौ डॉलर हैं और कम से कम मैं आपके लिए यही कर सकती हूँ आने के लिए धन्यवाद।

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सारा अपनी कठिन वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद कपल के लंच के बिल का भुगतान करके खुश थी हालांकि वह लगभग एक साल से वाशिंग मशीन खरीदने के लिए पैसे बचा रहीथी क्योंकि उसे पुरानी वाशिंग मशीन से कपड़े धोने में मुश्किल थी।

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उसकी दोस्त को इस बारे में पता चला तो सारा की दोस्त ने उसे बहुत डांटा क्योंकि उसने खुद को और अपने बच्चे की जरूरतों को पीछे डालकर यह पैसा बचाया था। उसे दूसरों की मदद करने से अधिक अपने लिए एक वाशिंग मशीन खरीदने की जरूरत थी।

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इस बीच उसे अपनी माँ का फोन आया जोर से कहा साराह तुमने क्या किया।

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एक असहनीय सदमे के डर से उसने धीमी, कांपती आवाज़ में जवाब दिया : मैंने कुछ नहीं किया क्या हो गया

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उसकी माँ ने जवाब दिया : सोशल मीडिया आपकी तारीफ़ और आपके व्यवहार की प्रशंसा करने में ज़मीन आसमान एक कर रहा है। उस आदमी और उसकी पत्नी ने फेसबुक पर आपका संदेश पोस्ट किया जब आपने उनकी ओर से बिल का भुगतान किया और कई और लोगों ने इसे शेयर किया। मुझे आप पर फ़ख़्र है।

उसने अपनी मां के साथ अपनी बातचीत मुश्किल से ख़त्म की कि एक दोस्त ने उसे फोन किया और कहा कि उसका मैसेज सभी डिजिटल सोशल प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गया है।

जैसे ही सारा ने फेसबुक अकाउंट खोला,उसे टीवी प्रोडूसर्स और प्रेस रिपोर्टर्स के सैकड़ों मैसेज मिले, जो उसके ख़ास कदम के बारे में बात करने के लिए उनसे मिलने के लिए कह रहे थे।

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अगले दिन, सारा सबसे लोकप्रिय और सबसे अधिक देखे जाने वाले अमेरिकी टीवी शो में से एक में दिखाई दी प्रस्तुतकर्ता ने उसे एक बहुत ही आलीशान वाशिंग मशीन, एक आधुनिक टेलीविजन सेट और दस हजार डॉलर दिए इस इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी से पांच हजार डॉलर का शॉपिंग वाउचर मिला। यहाँ तक कि उसके महान मानवीय व्यवहार की सराहना में हासिल होनेवाली रक़म $100,000 से ज़्यादा तक पहुंच गई।

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सौ डॉलर से कम कीमत वाले दो डिशेस ने उसकी जिंदगी बदल दी।
उदारता ये नहीं है कि जिस चीज़ की आपको ज़रूरत नहीं है वो किसी को दे दें, बल्कि वह है कि जिस चीज़ की आपको ज़रूरत है वो किसी और ज़रूरतमंद को दे दें।

असल ग़रीबी मानवता और दृष्टिकोण की ग़रीबी है।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

15 Nov, 07:46


"चमत्कार"

https://youtu.be/xYuT5ahNxTk?si=Wo2uEMEcKJh2PPKw

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डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

15 Nov, 02:19


हम अंधे है

दो उल्लू एक वृक्ष पर आ कर बैठे। एक ने सांप अपने मुंह में पकड़ रूखा था। भोजन था उनका, सुबह के नाश्ते की तैयारी थी। दूसरा एक चूहा पकड़ लाया था।

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दोनों जैसे ही बैठे वृक्ष पर पास—पास आ कर—एक के मुंह में सांप, एक के मुंह में चूहा।

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सांप ने चूहे को देखा तो वह यह भूल ही गया कि वह उल्लू के मुंह में है और मौत के करीब है। चूहे को देख कर उसके मुंह में रसधार बहने लगी।

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वह भूल ही गया कि मौत के मुंह में है। उसको अपनी जीवेषणा ने पकड़ लिया। और चूहे ने जैसे ही देखा सांप को, वह भयभीत हो गया, वह कंपने लगा। ऐसे मौत के मुंह में बैठा है, मगर सांप को देख कर कंपने लगा।

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वे दोनों उल्लू बड़े हैरान हुए। एक उल्लू ने दूसरे उल्लू से पूछा कि भाई, इसका कुछ राज समझे? दूसरे ने कहा, बिलकुल समझ में आया।

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जीभ की, रस की, स्वाद की इच्छा इतनी प्रबल है कि सामने मृत्यु खड़ी हो तो भी दिखाई नहीं पड़ती। और यह भी समझ में आया कि भय मौत से भी बड़ा भय है।

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मौत सामने खड़ी है, उससे यह भयभीत नहीं है चूहा; लेकिन भय से भयभीत है कि कहीं सांप हमला न कर दे।

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मौत से हम भयभीत नहीं हैं, हम भय से ज्यादा भयभीत हैं।
और लोभ स्वाद का, इंद्रियों का, जीवेषणा का इतना प्रगाढ़ है कि मौत चौबीस घंटे खड़ी है, तो भी हमें दिखाई नहीं पड़ती। हम अंधे हैं।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

14 Nov, 16:24


"रामायण की अनसुनी कहानी"

https://youtube.com/watch?v=X3uYUZrBEAY&si=HKdfsaBeP8cv7RcZ

1) क्या कुबेर रावण का भाई था ?

2) क्या रावण ऋषि पुत्र था ?

3) पुष्पक विमान एवं अल्कापुरी रावण ने कैसे अपने अधीन की ?

4) क्या पुष्पक विमान की गति मन से भी तेज थी ?

5) कैलाश पर्वत के पास आते ही पुष्पक की गति धीमी क्यों हो गई ?

ऐसे कई रहस्य को जानने के लिए "आज की कहानी" के लिंक पर क्लिक कर यह कहानी जरूर सुनिये कहानी अच्छी लगी हो तो चैनल को लाइक शेयर एवं सब्सक्राइब कीजिए और हां कमेंट बॉक्स में अपना अभिमत अभिव्यक्त कर मेरे उत्साह की अभिवृद्धि कीजिए - धन्यवाद

प्रेरणास्पद कथायें

14 Nov, 08:29


अच्छी सोच का फल

https://youtu.be/z9HZ8skodlU?si=Q1kQUEp4hqk0GOf8

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प्रेरणास्पद कथायें

14 Nov, 02:30


बिछड़ा प्रेम

एक छोटा बच्चा माँ की उंगुली पकड़कर मेले में जा रहा था। एक जगह रंग-बिरंगी मिठाई देखकर बच्चे ने उसकी तरफ उंगुली उठायी पर माँ उसे लेकर आगे बढ़ गयी बच्चा पलट- पलट कर घिसटता हुआ मिठाई की तरफ देखता रहा।

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ऐसे ही बच्चे ने गुब्बारे को देखकर माँ को लेने को कहा माँ ने मना कर दिया और माँ जल्दी-जल्दी आगे चलने लगी पर बच्चा धीमे-धीमे लिथड़ता हुआ बार-बार पीछे देखता हुआ माँ के साथ चल रहा था।

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मेले में एक जगह बंदर का खेल दिखा रहा था, अबकी बच्चा माँ से हाथ छुड़ाकर खेल देखने को भाग गया।

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जब खेल खत्म हुआ तब उसे माँ की याद आयी लेकिन उसे माँ दूर-दूर तक न दिखी तो वो रोने लगा एक दयालु आदमी (गुरु) ने आकर उसे गोद में उठा लिया और चुप कराने की कोशिश करने लगा।

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उसने बच्चे को गुब्बारे देने का प्रयास किया बच्चे ने मुँह घुमा लिया आदमी ने मिठाई देनी चाही पर बच्चे ने नही ली वो रोता ही जा रहा था।

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उसे अब सिर्फ माँ चाहिये थी, मेले की किसी भी चीज में उसकी रुचि नही रह गयी।

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अंततः वहीं दयालु आदमी (गुरु) ने उसको उसकी मां से मिलवा दिया!

सारत:-

इसी तरह हम लोग भी परमात्मा से विमुख होकर संसार रूपी मेले में मगन हो जाते है, और अंत समय जब बुढ़ापा आता है या मेले को उपभोग करने की शक्ति और योग्यता नहीं रह जाती तब उसकी याद आती है।

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जब मेले के साथी साथ छोड़ने लगते है, तब उस परम मित्र (ईश्वर) का ख्याल आता है। लेकिन तब तक शरीर में उसे प्राप्त करने की शक्ति नहीं रह जाती, बहुत देर हो जाती है। इसलिये देर न करो, चल पड़ो उससे मिलने के लिये, पता नहीं कब इस जीवन की शाम हो जाये, दोनों आंखे बन्द होने से पहले हमारे विवेक की आंख खुल जाएं नहीं तो ८४ की यात्रा के लिए न जाने कही पहले प्रभु के धाम की खबर मिल जाये।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

13 Nov, 07:54


किसान का खेत

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प्रेरणास्पद कथायें

13 Nov, 03:09


मन का चैन

एक गरीब आदमी था। वो हर रोज अपने गुरु के आश्रम जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था।

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अक्सर वो अपने गुरु से कहता कि आप मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए। एक दिन गुरु ने पूछ ही लिया कि क्या तुम आश्रम में इसीलिए काम करने आते हो।

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उसने पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दरशन करने आता हूं। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे। गुरु ने कहा कि तुम चिंता मत करो।

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जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा। युवक चला गया। समय ने पलटा खाया, वो अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि आश्रम में जाना ही छूट गया।

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कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही आश्रम पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा। गुरु ने बड़े ही आश्चर्य से पूछा--क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो, सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो। वो व्यक्ति बोला--बहुत धन कमाया।

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अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था रोज सेवा करने आता रहूं पर आ ना सका। गुरुजी, आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया। गुरु ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था? 

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जो तुमने मांगा वो तो तुम्हें मिल गया ना।  फिर आज यहां क्या करने आए हो ? उसकी आंखों में आंसू भर आए, गुरु के चरणों में गिर पड़ा और बोला --अब कुछ मांगने के लिए सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शान्ति मिल जाए। गुरु ने कहा--पहले तय कर लो कि अब कुछ मागने के लिए आश्रम की सेवा नहीं करोगे, बस मन की शांति के लिए ही आओगे। गुरु ने समझाया कि चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है। वो व्यक्ति बड़ा ही उदास होकर  गुरु को देखता रहा और बोला--मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए। सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है।।

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आप चाहे किसी भी समाज से हो, अगर आप अपने समाज के किसी उभरते हुए व्यक्तित्व से जलते हो या उसकी निंदा करते हो तो आप निश्चित रूप से उस समाज के लिए कलंक हो ।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

12 Nov, 09:31


स्वार्थी दुनिया

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छोटी सी कहानी
डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

12 Nov, 01:51


अच्छी सीख

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए, उजड़े वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये!

हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ??

यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा !

भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे, उस पर एक उल्लू बैठा था।

वह जोर से चिल्लाने लगा।

हंसिनी ने हंस से कहा- अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते।

ये उल्लू चिल्ला रहा है।

हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ??

ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों की बातें सुन रहा था।

सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ करदो।

हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!

यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा

पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो।

हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी ??

अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है,मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है!

उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये।

कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी।

पंचलोग भी आ गये!

बोले- भाई किस बात का विवाद है ??

लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे।

आज की कहांनी
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हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है।

इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना चाहिए!

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फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जाँच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!

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यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया।

उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली!

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको!

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हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ??

पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?

उल्लू ने कहा- नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी!

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लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है!

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मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है।

यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

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शायद इतने साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने उम्मीदवार की योग्यता व गुण आदि न देखते हुए, हमेशा , ये हमारी बिरादरी का है, ये हमारी पार्टी का है, ये हमारे एरिया का है, के आधार पर हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है, देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैँ!

यही कहानी है हमारे पूरे भारत की

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

28 Oct, 05:20


कर्म से परिवर्तन

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ध्यान रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया।

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई।

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाऊँगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए।

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो रिक्त हाथ ही चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा।

उसने मुड़ के देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चकमा देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी।

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. वस्त्र उतारकर तालाब मे फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा।

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया ओर आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो।

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुँच गये। पर उनको चोर कहीं दिखाई नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी दृष्टि बाबा बने चोर पर पडी।

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सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा।

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सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें। कही सही में कोई संत निकला तो ? अंततः उन्होंने छुपकर उस पर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया। जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा।

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एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नही कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं।

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नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे। भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई। राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें।

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चोर ने सोचा बचने का यही अवसर है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में ले जा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे।

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लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-सम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और वह चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया।

संगति, परिवेश और भाव मनुष्य में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है। रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदि कवि हो गए। असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

27 Oct, 08:49


ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना

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सु-संस्कृति फाउंडेशन द्वारा आयोजित HIV+ve बच्चो के लिए किये गये चॅरिटी शो में एक सुंदर नगमे को गाने का मैंने थोडा सा प्रयास किया है..मेरा यह गाना आपको अच्छा लगे... तो कमेंट बॉक्स मे अपना अभिमत जरूर अभिव्यक्त कीजिएगा.. और हां चैनल को लाईक, शेअर और सबस्क्राईब जरूर कीजिए

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27 Oct, 07:37


सबसे बडा कौन ?

https://youtu.be/wiF30AqfYsI?si=ZcYPf6KS3YzrekCJ

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प्रेरणास्पद कथायें

27 Oct, 02:20


जो चाहोगे सो पाओगे”

एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था ,“जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे।”

बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीँ देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।

एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसनेँ उस साधु की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”, और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।

उसने साधु से पूछा -“महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैँ जो चाहता हूँ?”

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साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहता है मैँ उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी। लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”

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युवक बोला- मेरी एक ही ख्वाहिश है मैँ हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ।

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साधू बोला, कोई बात नहीँ मैँ तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे ! और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा, पुत्र, मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो।

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युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसका दूसरी हथेली, पकड़ते हुए बोला, पुत्र, इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है, लोग इसे “धैर्य” कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलेंतो इस कीमती मोती को धारण कर लेना, याद रखना जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है।

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युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा । और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।

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‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

25 Oct, 07:40


सहयोग का तरीका

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प्रेरणास्पद कथायें

25 Oct, 02:46


एक नाविक की सच्ची कहानी

मित्रो! हम सबके कुछ सपने होते हैं जिन्हें साकार करने के लिए हम कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ते। हम जैसे-जैसे अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ते हैं हमारे प्रयास और अधिक तेज़ हो जाते हैं।

लक्ष्य के अत्यधिक निकट पहुंचने पर हमें अपने लक्ष्य के अतिरिक्त और कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ता। यह स्वाभाविक ही है। सफलता का मूल मंत्र भी यही है। ओलंपिक खेलों को ही लीजिए। दशकों तक कठिन परिश्रम करने के बाद ही कोई खिलाड़ी पदक हासिल करने के लिए आगे आ पाता है।

वर्ष 1988 में सियोल में आयोजित ओलंपिक मुकाबलों में नौकायन की एकल प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए कनाडा के लॉरेंस लेम्यूक्स एक दशक से भी अधिक समय से कठोर प्रशिक्षण ले रहे थे। उनका सपना साकार होने में बस थोड़ा सा ही समय शेष रह गया था।

लॉरेंस लेम्यूक्स के गोल्ड मेडल जीतने की प्रबल संभावना थी। वह तेजी से अपने लक्ष्य कि ओर बढ़ रहे थे और दूसरी पोजीशन पर बने हुए थे; अब उनका कोई न कोई पदक जीतना पक्का था।
लेकिन तभी उन्होंने देखा कि एक दूसरी प्रतिस्पर्धा के नाविकों की नाव बीच समुद्र में उलटी पड़ी है। एक नाविक किसी तरह नाव से लटका हुआ था जबकि दूसरा समुद्र में बह रहा था। दोनों बुरी तरह से घायल थे। लॉरेंस ने अनुमान लगाया कि सुरक्षा नौका अथवा बचाव दल के आने में देर लगेगी और यदि तत्क्षण सहायता नहीं मिली तो इनका बचना असंभव होगा।

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अब उनके सामने दो विकल्प थे...

पहला विकल्प था इस दुर्घटनाग्रस्त नाव के चालकों को नज़रंदाज़ करके अपना पूरा ध्यान केवल अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपनी नौका और रेस पर केंद्रित करना और दूसरा विकल्प था दुर्घटनाग्रस्त नाव के चालकों की मदद करना।

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लॉरेंस लेम्यूक्स ने बिना किसी हिचकिचाहट के फ़ौरन अपनी नाव उस दिशा में मोड़ दी जिधर उलटी हुई दुर्घटनाग्रस्त नाव समुद्र की विकराल लहरों में हिचकोले खा रही थी। लेम्यूक्स ने बिना देर किए दोनों घायल नाविकों को एक एक करके अपनी नाव में खींच लिया और तब तक वहीं इंतज़ार किया जब तक कि कोरिया की नौसेना आकर उन्हें सुरक्षित निकाल नहीं ले गई।

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प्रश्न उठता है कि लॉरेंस लेम्यूक्स ने अपने जीवन की एकमात्र महान उपलब्धि को अपने हाथ से यूँ ही क्यों फिसल जाने दिया?

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वास्तव में लॉरेंस लेम्यूक्स के जीवन मूल्य इस तथ्य पर निर्भर नहीं थे कि विजेता होने के लिए किसी भी कीमत पर ओलंपिक मेडल प्राप्त करना ही एकमात्र विकल्प है।

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लॉरेंस लेम्यूक्स को प्रतिस्पर्धा में तो कोई पदक नहीं मिल सका लेकिन अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी द्वारा लॉरेंस लेम्यूक्स को उनके साहस, आत्म-त्याग और खेल भावना के लिए पियरे द कूबर्तिन पदक प्रदान किया जो अत्यंत सम्मान का सूचक है।

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हमारे जीवन में भौतिक लक्ष्य भी हों और उन्हें पाने के लिए हम सदैव प्रयासरत रहें लेकिन जीवन का एकमात्र लक्ष्य भौतिक उपलब्धियाँ ही न हों। करुणा के वशीभूत होकर जब हम हर हाल में दूसरों की मदद के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं तभी हम वास्तविक विजेता बन पाते हैं। लॉरेंस लेम्यूक्स की करुणा की भावना व वास्तविक मदद ने उसे अपने देश के लोगों के दिलों का ही नहीं दुनिया के लोगों के दिलों का सम्राट बना दिया।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

24 Oct, 01:54


एक मन्दिर था ।

उसमे सब लोग पगार पर थे।
आरती वाला,पूजा कराने वाला आदमी, घण्टा बजाने वाल भी पगार पर था...

घण्टा बजाने वाला आदमी आरती के समय भाव के साथ इतना मसगुल हो जाता था कि होश में ही नही रहता था।

घणटा बजाने वाला व्यक्ति पुरे भक्ति भाव से खुद का काम करता था, मन्दिर में आने वाले सभी व्यक्ति भगवान के साथ साथ घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के भाव के भी दर्शन करते थे,उसकी भी वाह वाह होती थी...

एक दिन मन्दिर का ट्रस्ट बदल गया,और नये ट्रस्टी ने ऐसा आदेश जारी किया कि अपने मन्दिर में काम करते सब लोग पढ़े लिखे होना जरूरी है जो पढे लिखे नही है उन्हें निकाल दिया जाएगा.

उस घण्टा बजाने वाले भाई को ट्रस्टी से कहा कि 'तुम्हारे आज तक का पगार ले लो कल से तुम नोकरी पर मत आना.'

उस घण्टा बजाने वाले व्यक्ति ने कहा, "साहेब भले मैं पढ़ा लिखा नही हुँ,परन्तु इस कार्य में मेरा भाव भगवान से जुड़ा हुआ है बस आप सिर्फ यही देखो!"

ट्रस्टी ने कहा,"सुन लो तुम पढ़े लिखे नही हो, इसलिए तुम्हे रखने में नही आएगा..."

दूसरे दिन मन्दिर में नये लोगो को रखने में आया. परन्तु आरती में आये लोगो को अब पहले जैसी मजा आती नही थी. घण्टा बजाने वाले व्यक्ति की सभी को कमी महसूस होती थी.

कुछ लोग मिलकर घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के घर गए, और विनती करी तुम मन्दिर आओ ।

उस भाई ने जवाब दिया, "मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को लगेगा नौकरी लेने के लिए आया है इसलिए आ नहीं सकता हूँ"

वहा आये हुए लोगो ने एक उपाय बताया कि 'मन्दिर के बराबर सामने आपके लिए एक दूकान खोल के देते है. वहाँ आपको बैठना है और आरती के समय घण्टा बजाने आ जाना, फिर कोई नही कहेगा तुमको नौकरी की जरूरत है ..."

उस भाई ने मन्दिर के सामने दूकान शरू की वो इतनी चली कि एक दूकान से सात दूकान और साथ दूकान से एक फेक्ट्री खोली।

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अब वो आदमी मर्सिडीज़ से घण्टा बजाने आता था ।

समय बीतता गया ये बात पुरानी सी हो गयी।

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मन्दिर का ट्रस्टी फिर बदल गया .

नये ट्रस्ट को नया मन्दिर बनाने के लिए दान की जरूरत थी

मन्दिर के नये ट्रस्टी को विचार आया सबसे पहले उस फेक्ट्री के मालिक से बात करके देखते है ..

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ट्रस्टी मालिक के पास गये और कहा - सात लाख का खर्चा है फेक्ट्री मालिक को बात चित के दौरान बतादिया ।

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फैक्ट्री के मालिक ने कोई सवाल किये बिना एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में दे दिया और कहा चैक भर लो ट्रस्टी ने चैक भरकर उस फैक्ट्री मालिक को वापस दिया । फैक्ट्री मालिक ने चैक को देखा और उस ट्रस्टी को दे दिया।

ट्रस्टी ने चैक हाथ लिया और कहा सिग्नेचर तो बाकी है"

मालिक ने कहा मुझे सिग्नेचर करना नही आता है लाओ अंगुठा मार देता हुँ, "वही चलेगा ..."

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ये सुनकर ट्रस्टी चौक गया और कहा, "साहेब तुमने अनपढ़ होकर भी इतनी तरक्की कर के हमें आश्यर्य चकित कर दिया है यदि पढे लिखे होते तो कहाँ होते ...!!!"

तो वह सेठ हँसते हुए बोला,
"भाई, मैं पढ़ा लिखा होता तो बस मन्दिर में घण्टा बजाते होता"

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सारांश

कार्य कोई भी हो, परिस्थिति कैसी भी हो, तुम्हारी लियाकत तुम्हारी भावनाओ पर निर्भर करता है ।
भावनायें शुद्ध होगी तो ईश्वर और सुंदर भविष्य पक्का तुम्हारा साथ देगा ।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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23 Oct, 14:59


"क्रोध अनर्थ का कारण"

https://youtu.be/UTnCrModEs8?si=0DW0bfu53I4obtEr

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प्रेरणास्पद कथायें

23 Oct, 01:57


अहसान

एक बहेलिया था। एक बार जंगल में उसने चिड़िया फंसाने के लिए अपना जाल फैलाया। थोड़ी देर बाद ही एक उकाब उसके जाल में फंस गया।

वह उसे घर लाया और उसके पंख काट दिए। अब उकाब उड़ नहीं सकता था, बस उछल उछलकर घर के आस-पास ही घूमता रहता।

उस बहेलिए के घर के पास ही एक शिकारी रहता था। उकाब की यह हालत देखकर उससे सहन नहीं हुआ।

वह बहेलिए के पास गया और कहा-"मित्र, जहां तक मुझे मालूम है, तुम्हारे पास एक उकाब है, जिसके तुमने पंख काट दिए हैं। उकाब तो शिकारी पक्षी है।

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छोटे-छोटे जानवर खा कर अपना भरण-पोषण करता है। इसके लिए उसका उड़ना जरूरी है। मगर उसके पंख काटकर तुमने उसे अपंग बना दिया है। फिर भी क्या तुम उसे मुझे बेच दोगे?"

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बहेलिए के लिए उकाब कोई काम का पक्षी तो था नहीं, अतः उसने उस शिकारी की बात मान ली और कुछ पैसों के बदले उकाब उसे दे दिया।

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शिकारी उकाब को अपने घर ले आया और उसकी दवा-दारू करने लगा। दो माह में उकाब के नए पंख निकल आए। वे पहले जैसे ही बड़े थे। अब वह उड़ सकता था।

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जब शिकारी को यह बात समझ में आ गई तो उसने उकाब को खुले आकाश में छोड़ दिया। उकाब ऊंचे आकाश में उड़ गया। शिकारी यह सब देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उकाब भी बहुत प्रसन्न था और शिकारी के प्रति बहुत कृतज्ञ था।

अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उकाब एक खरगोश मारकर शिकारी के पास लाया।

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एक लोमड़ी, जो यह सब देख रही थी,

लोमड़ी उकाब से बोली-"मित्र! जो तुम्हें हानि नहीं पहुंचा सकता उसे प्रसन्न करने से क्या लाभ?"

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इसके उत्तर में उकाब ने कहा-"व्यक्ति को हर उस व्यक्ति का एहसान मानना चाहिए, जिसने उसकी सहायता की हो और ऐेसे व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिए जो हानि पहुंचा सकते हों।"

  शिक्षा
व्यक्ति को सदा सहायता करने वाले का कृतज्ञ रहना चाहिए।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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22 Oct, 02:08


"भरोसा"

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21 Oct, 16:49


ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना

https://youtu.be/Kt77kaEdjQ8?si=uzAJhqELq6KVaDCt

सु-संस्कृति फाउंडेशन द्वारा आयोजित HIV+ve बच्चो के लिए किये गये चॅरिटी शो में एक सुंदर नगमे को गाने का मैंने थोडा सा प्रयास किया है..मेरा यह गाना आपको अच्छा लगे... तो कमेंट बॉक्स मे अपना अभिमत जरूर अभिव्यक्त कीजिएगा.. और हां चैनल को लाईक, शेअर और सबस्क्राईब जरूर कीजिए

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21 Oct, 07:36


"तानसेन"

https://youtu.be/a2YKr1dgywE?si=cwey-LR_PdtvuU8Z

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21 Oct, 00:29


जब दिल करीब होते हैं

एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचा. वहां एक ही परिवार के कुछ लोग अचानक आपस में बात करते-करते एक दूसरे पर क्रोधित हो उठे और जोर-जोर से चिल्लाने लगे. संन्यासी यह देख तुरंत पलटा और अपने शिष्यों से पूछा; “क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं ?”

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शिष्य कुछ देर सोचते रहे, एक ने उत्तर दिया, “क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं इसलिए !” “पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं”, सन्यासी ने पुनः प्रश्न किया. कुछ और शिष्यों ने भी उत्तर देने का प्रयास किया पर बाकी लोग संतुष्ट नहीं हुए.

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अंततः सन्यासी ने समझाया… “जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं. और इस अवस्था में वे एक दूसरे को बिना चिल्लाये नहीं सुन सकते… वे जितना अधिक क्रोधित होंगे उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी और उन्हें उतनी ही तेजी से चिल्लाना पड़ेगा. क्या होता है जब दो लोग प्रेम में होते हैं ? तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है.”

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सन्यासी ने बोलना जारी रखा,” और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो क्या होता है ? तब वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ देखते हैं और सामने वाले की बात समझ जाते हैं.”

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गुरुदेव का आशीर्वाद जिस जिस को मिला वो निहाल हो गया।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

20 Oct, 07:58


"मन बदल गया"

https://youtu.be/rJOkRsSfF2s?si=CWfwao293jKayuzV

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प्रेरणास्पद कथायें

20 Oct, 00:57


बड़ा बनने के लिए बड़ा सोचो

अत्यंत गरीब परिवार का एक बेरोजगार युवक नौकरी की तलाश में किसी दूसरे शहर जाने के लिए रेलगाड़ी से सफ़र कर रहा था। घर में कभी-कभार ही सब्जी बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटियां ही रखी थी।

आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी, और वह टिफिन में से रोटियां निकाल कर खाने लगा। उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था, वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटियां थीं!

उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे। वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता। सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था।

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आखिरकार एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया कि भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो।

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तब उस युवक ने जवाब दिया, "भैया, इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हू की इसमें बहुत सारा अचार है, मै अचार के साथ रोटी खा रहा हूँ।"

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फिर व्यक्ति ने पूछा, "खाली ढक्कन में अचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे अचार का स्वाद आ रहा है?" हाँ, बिलकुल आ रहा है, मै रोटी के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है। युवक ने जवाब दिया।

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उसके इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला, "जब सोचना ही था तो तुम अचार की जगह पर मटर-पनीर सोचते, शाही गोभी सोचते….तुम्हे इनका स्वाद मिल जाता। तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने अचार सोचा तो अचार का स्वाद आया तो और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद आता। सोचना ही था तो भला छोटा क्यों सोचे तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था।"

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मित्रो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जैसा सोचोगे वैसा पाओगे। छोटी सोच होगी तो छोटा मिलेगा, बड़ी सोच होगी तो बड़ा मिलेगा। इसलिए जीवन में हमेशा बड़ा सोचो। बड़े सपने देखो, तो हमेशा बड़ा ही पाओगे।

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छोटी सोच में भी उतनी ही उर्जा और समय खपत होगी जितनी बड़ी सोच में, इसलिए जब सोचना ही है तो हमेशा बड़ा ही सोचो।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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19 Oct, 12:27


भगवान क्या करता है ?


https://youtu.be/Fc8a4sqO8BU?si=2klTkhHwfDv8_uHB

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डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

19 Oct, 03:09


विचित्र घटना

https://youtu.be/K8OKuBx6OKk?si=qIRVxxs3nL50lETq

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प्रेरणास्पद कथायें

19 Oct, 00:20


लक्ष्य प्राप्ति

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया। उस समय वह घर पर नहीं था।

उसकी पत्नी ने कहा: वह खेत पर गए हैं। मैं बच्चे को बुलाने के लिए भेजती हूं। तब तक आप इंतजार करें।

कुछ ही देर में किसान खेत से अपने घर आ पहुंचा। उसके साथ-साथ उसका पालतू कुत्ता भी आया।

कुत्ता जोरों से हांफ रहा था। उसकी यह हालत देख, मिलने आए व्यक्ति ने किसान से पूछा... क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ?

किसान ने कहा: नहीं, पास ही है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?

उस व्यक्ति ने कहा: मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों साथ-साथ आए...लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा है।

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किसान ने कहा: मैं और कुत्ता एक ही रास्ते से घर आए हैं। मेरा खेत भी कोई खास दूर नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा कुत्ता थक गया है। इसका कारण यह है कि मैं सीधे रास्ते से चलकर घर आया हूं, मगर कुत्ता अपनी आदत से मजबूर है।

वह आसपास दूसरे कुत्ते देखकर उनको भगाने के लिए उसके पीछे दौड़ता था और भौंकता हुआ वापस मेरे पास आ जाता था।

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फिर जैसे ही उसे और कोई कुत्ता नजर आता, वह उसके पीछे दौड़ने लगता।

अपनी आदत के अनुसार उसका यह क्रम रास्ते भर जारी रहा। इसलिए वह थक गया है।

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देखा जाए तो यही स्थिति आज के इंसान की भी है।

जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन राह में मिलने वाले कुत्ते, व्यक्ति को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रहे हैं।

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इंसान अपने लक्ष्य से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है।

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यह लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। आपकी ऊर्जा को रास्ते में मिलने वाले कुत्ते बर्बाद करते है।

भौंकने दो कुत्तों को और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सीधे बढ़ते रहो.. फिर एक ना एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी।

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लेकिन इनके चक्कर में पड़ोगे तो थक ही जाओगे। अब ये आपको सोचना है कि किसान की तरह सीधी राह चलना है या उसके कुत्ते की तरह......

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

18 Oct, 07:28


सफलता की सीढ़ी

https://youtu.be/rlUlC7-swF0?si=ONZL9ZO0zXAi4W7U

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प्रेरणास्पद कथायें

17 Oct, 08:29


लक्ष्य प्राप्ति

https://youtu.be/1Snm_se1F_Y?si=29VDQrw6ELJQG9YJ

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डीजे की ज़ुबानी

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प्रेरणास्पद कथायें

16 Oct, 22:09


चरित्र और ज्ञान में बड़ा कौन

एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।

एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।

दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।

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तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की ‍नीयत निश्चित ही खराब हो गई है।

उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। राजा को इस सूचना से बड़ा आघात पहुँचा। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।

चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था।

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यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा - 'सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।'

इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -'क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?' राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया.

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राजा का अगला प्रश्न था - 'आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार?' राजा ने पुन: पूछा - 'वे मोती कहाँ हैं?'

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राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए।

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राजा बोले - 'राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?

राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा - 'राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।

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आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है। वह सब ज्ञान के कारण नहीं ‍अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है।

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16 Oct, 22:09


अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे। कहा जाता है -

धन गया, कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्‍य गया, कुछ गया।
चरित्र गया तो सब कुछ गया।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

16 Oct, 07:29


"नेकी का फल"

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प्रेरणास्पद कथायें

16 Oct, 02:47


एक सच्ची घटना जो आपके दिल को विश्वास से भर देगी

एक लड़की थी जिसका “श्री गुरु नानक साहिब जी पर अटुट विश्वास था वह सुबह तीन उठ जाती स्नान आदि से निर्वत हो कर नितनेम पाठ करती,रोज गुरुद्वारा साहिब जाती श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश भी करती, सहज पाठ करती,उसको बहुत सारी गुरबानी कंठस्थ थी,वह घर में काम करते समय भी गुरबानी की कोई ना कोई तुक हमेशा उसके मुंह मेे होती वो सिर पर हमेशा चुन्नी लगा कर रखती।

फिर उसकी शादी हो गई, ससुराल घर जा कर भी उसने अपना नितनेम नहीं छोड़ा रोज गुरुद्वारा साहिब जाना,सेवा करनी,प्रकाश करना,उसके ससुराल वाले किसी और दुनियावी बाबा को मानते थे,उनको बहू का इस तरह गुरु घर जाना बिल्कुल पसन्द नही था,वो सब उसको दुनियावी बाबा को मानने को कहते पर उस लड़की ने साफ मना कर दिया और कहा मेरे श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी पुरन समरथ है मुझे किसी और के आगे सिर झुकाने की जरुरत नहीं,

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पर उसके ससुराल वाले कोई ना कोई बहाना ढूँढते कि किस तरह इसको नीचा दिखायें.एक दिन उसके ससुराल वालों ने कहा कि अगर तेरे गुरु ग्रंथ साहिब पुरन समरथ हैं तो इस महीने की 31 तारीख तक वो आप चल कर के हमारे घर आएं अगर वो आ गए तो तुझे कभी भी गुरू घर जाने से नहीं रोकेगे और अगर नहीं आए तो तुम कभी भी गुरु घर नहीं जाएगी़ पर उस लड़की को तो पुर्ण रुप से विश्वास था उसने कहा मुझे मंजुर है.

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उसने रोज सुबह गुरुद्वारा साहिब जाना अरदास करनी और कभी कभी रो भी पड़ना और एक ही बात कहनी कि सच्चे पातशाह जी मुझे आप पर पूरा विश्वास है.
दिन निकलते गए,आखिर 30 तारीख आ गयी उस रात लड़की बहुत रोई की अगर सुबह गुरु जी घर ना आए तो मेरा विश्वास टूट जाएगा,उस रात 3 बजे के बाद बहुत बरसात हुई उस सुबह लड़की गुरुद्वारा साहब नही जा सकी जब सुबह हुई तो उसी गाँव के गुरुद्वारा साहब के ग्रंथी साहब ने देखा कि गुरुद्वारा साहब कि कच्ची छत से पानी लीक हो रहा है उन्होंने ने सोचा कि कहीं कुछ गलत ना हो जाए तो गाँव के कुछ समझदार लोगों को बुला के हालात बताए सब ने यह सलाह की कि जब तक बरसात नहीं रुकती और छत ठीक नहीं होती तब तक गुरु साहिब जी का पावन सरुप का किसी के घर में प्रकाश कर देना चाहिए ताकि बेअदबी ना हो तब ग्रंथी जी ने कहा रोज यहाँ एक लड़की आती है जो कभी कभी प्रकाश भी करती है और सेवा भी बहुत करती है,हम लोग गुरु साहिब जी का सरुप उसके घर ले जाते हैं सब लोग इस बात पर सहमत हो गए एक बुजुर्ग कहने लगा कि एक बंदा उसके घर भेज कर इजाजत ले लो ग्रंथी साहब ने कहा इजाज़त क्या लेनी वो मना थोड़ा करेगी तब ग्रंथी साहब और गाँव के कुछ लोग गुरु साहिब जी के पावन सरुप को बेहद आदर सत्कार से लेकर उस लड़की के घर की तरफ चल पड़े,

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लड़की के ससुराल सब इस बात पर खुश हो रहे थे कि आज 31 तारीख़ है अगर गुरु ना आए तो कल से इसका गुरुद्वारे जाना बंद तभी दरवाजे पर दस्तक हुई जब ससुर ने दरवाजा खोला तो सामने “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी” वो तो दंग रह गया,ग्रंथी जी ने कहा जल्दी से कोई भी एक कमरा खाली करके उसकी अच्छी तरह से साफ सफाई करो गुरु साहिब जी का प्रकाश करना है,उस लड़की ने बहुत चाव से कमरा साफ किया उसकी श्रद्धा विश्वास देख सारे परिवार ने उस लड़की से माफी मांगी लड़की का विश्वास रंग लाया.

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बात सारी विश्वास की है,भगत धन्ना जाट ने भी विश्वास के साथ पत्थर में से परमात्मा पा लिया था,श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी आज भी पूर्ण रूप से समरथ हैं कमी गुरु साहिब में नहीं हम में है,हमे गुरु साहिब में विश्वास नहीं है हम कोई भी काम अपनी बुद्धि को आगे रखते हैं और गुरु के हुक्म को पीछे तभी तो बाद में दुखी होते हैं.

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भक्ति सारी विश्वास पर खड़ी है इसलिए गुरु पर विश्वास बनाओ कुछ भी असंभव नहीं है बस कभी भी शक ना करो कि मेरा गुरु यह कर सकता है? नीयत साफ रखो,विश्वास रखो कि हाँ मेरे गुरु सब कुछ कर सकते हैं विश्वास मतलब के लिए मत रखना दिल से प्रेम करना..!!

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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15 Oct, 07:37


"खाली दिमाग शैतान का अड्डा"

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15 Oct, 02:12


इस तरह देश के सबसे बड़े गौरक्षक, गरीबो के मसीहा, उत्तर भारत के रॉबिनहुड कहे जाने वाले वीर हरफूल सिंह ने अपना सर्वस्व गौमाता की सेवा में कुर्बान कर दिया।

उन्होंने अपना जीवन गौरक्षा व गरीबों की सहायता में बिताया मगर कितने शर्म की बात है कि बहुत कम लोग आज उनके बारे में जानते हैं। कई गौरक्षक सनगठन तो उनको याद भी नहीं करते। गौशालाओं में भी गौमाता के इस लाल की मूर्तियां नहीं है। ऐसे महान गौरक्षक को मैं नमन करता हूँ।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

15 Oct, 02:12


भारत की बात सुनाता हूं - वीर बलिदानी हरफूल सिंह

वीर हरफूल का जन्म 1892 ई० में भिवानी जिले के लोहारू तहसील के गांव बारवास में एक जाट क्षत्रिय परिवार में हुआ था।उनके पिता एक किसान थे।
बारवास गांव के इन्द्रायण पाने में उनके पिता चौधरी चतरू राम सिंह रहते थे। उनके दादा का नाम चौधरी किताराम सिंह था। 1899 में हरफूल के पिताजी की प्लेग के कारण मृत्यु हो गयी। इसी बीच ऊनका परिवार जुलानी(जींद) गांव में आ गया।यहीं के नाम से उन्हें वीर हरफूल जाट जुलानी वाला कहा जाता है।

उसके बाद हरफूल सेना में भर्ती हो गए।उन्होंने 10 साल सेना में काम किया। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भी भाग लिया। उस दौरान ब्रिटिश आर्मी के किसी अफसर के बच्चों व औरत को घेर लिया।तब हरफूल ने बड़ी वीरता दिखलाई व बच्चों की रक्षा की। अकेले ही दुश्मनों को मार भगाया। फिर हरफूल ने सेना छोड़ दी। जब सेना छोड़ी तो उस अफसर ने उन्हें गिफ्ट मांगने को कहा गया तो उन्होंने फोल्डिंग गन मांगी। वह बंदूक अफसर ने उन्हें खुशी खुशी दे दी।

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टोहाना में मुस्लिम राँघड़ो का एक गाय काटने का एक कसाईखाना था। वहां की 52 गांवों की नैन खाप ने इसका कई बार विरोध किया। कई बार हमला भी किया जिसमें नैन खाप के कई नौजवान शहीद हुए व कुछ कसाइ भी मारे गए लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई क्योंकि ब्रिटिश सरकार मुस्लिमों के साथ थी और खाप के पास हथियार भी नहीं थे।

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तब नैन खाप ने वीर हरफूल को बुलाया व अपनी समस्या सुनाई।हिन्दू वीर हरफूल भी गौहत्या की बात सुनकर लाल पीले हो गए और फिर नैन खाप के लिए हथियारों का प्रबंध किया।

हरफूल ने युक्ति बनाकर दिमाग से काम लिया। उन्होंने एक औरत का रूप धरकर कसाईखाने के मुस्लिम सैनिको और कसाइयों का ध्यान बांट दिया फिर नौजवान अंदर घुस गए उसके बाद हरफूल ने ऐसी तबाही मचाई के बड़े बड़े कसाई उनके नाम से ही कांपने लगे।उन्होंने कसाइयों पर कोई रहम नहीं खाया। अनेकों को मौत के घाट उतार दिया और गऊओ को मुक्त करवाया। अंग्रेजों के समय बूचड़खाने तोड़ने की यह प्रथम घटना थी।

इस महान साहसिक कार्य के लिए नैन खाप ने उन्हें सवा शेर की उपाधि दी व पगड़ी भेंट की।

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उसके बाद तो हरफूल ने ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जहां उन्हें पता चला कि कसाईखाना है वहीं जाकर धावा बोल देते थे।

उन्होंने जींद, नरवाना, गौहाना, रोहतक आदि में 17 गौहत्थे तोड़े। उनका नाम पूरे उत्तर भारत में फैल गया। कसाई उनके नाम से ही थर्राने लगे। उनके आने की खबर सुनकर ही कसाई सब छोड़कर भाग जाते थे। मुसलमान और अंग्रेजों का कसाइवाड़े का धंधा चौपट हो गया इसलिए अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी। मगर हरफूल कभी हाथ न आये।कोई अग्रेजो को उनका पता बताने को तैयार नहीं हुआ।

वीर हरफूल उस समय चलती फिरती कोर्ट के नाम से भी मशहूर थे। जहाँ भी गरीब या औरत के साथ अन्याय होता था, वे वहीं उसे न्याय दिलाने पहुंच जाते थे। उनके न्याय के भी बहुत से किस्से प्रचलित हैं।

अंग्रेजों ने हरफूल के ऊपर इनाम रख दिया और उन्हें पकड़ने की कवायद शुरू कर दी इसलिए हरफूल अपनी एक ब्राह्मण धर्म बहन के पास झुंझुनूं (राजस्थान) के पंचेरी कलां पहुंच गए। इस ब्राह्मण बहन की शादी भी हरफूल ने ही करवाई थी।

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यहां का एक रसूखदार भी उनका दोस्त था। वह इनाम के लालच में आ गया व उसने अंग्रेजों के हाथों अपना जमीर बेचकर दोस्त व धर्म से गद्दारी की।

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अंग्रेजों ने हरफूल को सोते हुए गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिन जींद जेल में रखा लेकिन उन्हें छुड़वाने के लिये हिन्दुओ ने जेल में सुरंग बनाकर सेंध लगाने की कोशिश की और विद्रोह कर दिया। अंग्रेजों ने उन्हें फिरोजपुर जेल में चुपके से ट्रांसफर कर दिया। बाद में 27 जुलाई 1936 को चुपके से पंजाब की फिरोजपुर जेल में अंग्रेजों ने उन्हें रात को फांसी दे दी। उन्होंने विद्रोह के डर से इस बात को लोगो के सामने स्पष्ट नहीं किया। व उनके पार्थिव शरीर को भी हिन्दुओ को नहीं दिया गया। उनके शरीर को सतलुज नदी में बहा दिया गया।

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प्रेरणास्पद कथायें

14 Oct, 07:22


"कर्मफल"

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14 Oct, 01:28


एक दिन वह सैर से लौट रहें थें तो उनके पीछे एक कुतिया और उसका बच्चा आने लगें । पहले तो उन्होंने अनदेखा कर दिया। पर जब वो घर तक पहुँच गए तो उन्होंने दोनों को दूध और ब्रेड खिलाई। इस तरह कई दिन होता रहा और एक दिन दोनों प्राणी मोहवश अंदर आ गए और फ़िर वे भी उसी घर के सदस्य बन गए । दोनों को भी नाम दे दिया गया, झूरी और झबला । ऐसे ही किसी अन्य दिन कामतानाथ जी ने पार्क में घायल बंदरिया के बच्चे की मरहम पट्टी कर दीं तो वह भी अपने बच्चे को लेकर उनके साथ हो लीं। और नाम मिला, चिंकी और टीलू ।

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समय अपनी गति से गुज़रता जा रहा है । अब तो सभी प्राणी कामतानाथ जी के पूरे घर में उनके साथ विचरण करते , छत से लेकर, ग्राउंड फ्लोर जिसका जहाँ मन करता है, वहाँ रहता है । झबला, झूरी, चिंकी और टीलू तो उनके साथ ही सोते। पक्षियों का परिवार भी बढ़ता जा रहा है । सब बड़े आनंद से उनके साथ अपने दिन गुज़ार रहें हैं । उनकी बेटी को पता चला तो उसने गुस्सा करते हुए कहा कि आपने घर को चिड़िया घर बना दिया है ।

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इतने बड़े मकान को किराए पर चढ़ाते तो कुछ किराया भी मिलता । और वह हँसकर उसकी बात का ज़वाब देते हुए कहते, तुम्हारे कहने पर मैंने किराएदार तो नहीं पर हाँ रिश्तेदार जरूर रख लिए है । फ़िर भी तुम्हें परेशानी हो रही हैं ।

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इसी तरह अपने इन्हीं रिश्तेदारों के साथ उन्होंने पूरे दो-ढाई साल गुज़ार दिए। और एक दिन जब झबला ने उन्हें सैर पर चलने के लिए उठाया तो वह नहीं हिले । उसकी माँ झूरी ने उन्हें बहुत चाटा पर तब भी उनके शरीर ने कोई हरकत नहीं की । दोनों ने भोंक-भोंक कर शोर मचाया तो बाकी रिश्तेदार भी इकठ्ठे हो गए। चिंकी अपनी छत से सोहम की छत पर पहुँचकर उसे उसके घर से कुरता खीँचकर बुला लाई ।

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सोहम छत से कूदता हुआ नीचे वाले कमरे में पहुँचा और कामतानाथ जी को उठाया और फिर ताला खोलकर डॉक्टर को बुला लाया। डॉक्टर के बताने पर कि कामतानाथ जी नहीं रहें। उसने उनके बेटी-दामाद को फ़ोन किया और वे दोनों यह ख़बर सुनते ही भारत पहुंच गए ।

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उसने घर में आकर देखा तो वह हैरान हो गई । कितने कबूतर, चिड़ियाँ, गौरैया के साथ-साथ बंदर और कुत्ते सभी उनके आसपास ग़मगीन होकर बैठे हुए है। गिलहरी उनके माथे को सहला रहीं हैं । चिड़ियाँ अपनी चोंच से प्लास्टिक के चमच्च से उनके बंद मुँह में पानी डाल रहीं है । यह सब आपके पापा ने इन्हे सिखाया है । सोहम नम आँखों से बोला। चिंकी बंदरिया ने ही मुझे आपके पापा के बारे में बताया था। निधि की तो रुलाई फूट पड़ी । उसके पति अनिल ने उसे होंसला दिया । शमशान घाट पर कोई उड़कर पहुंचा और कोई चलकर पहुँचा । रिश्तेदार के नाम पर निधि के ससुराल वाले और कुछ कामतानाथ जी के पुराने परिचित ही पहुँच पाये । कामतानाथ जी और उनकी पत्नी सरला दोनों एकलौते थें और दूर के किसी रिश्तेदार को निधि जानती नहीं थीं।

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चौथे के बाद ही सब चले गए और घर में रह गए, निधि और उसका पति और वो सभी जीव-जंतु। घर का क्या करना है ? अनिल ने पूछा । करना क्या है ? पापा के रिश्तेदार रहेंगे । अनिल उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगा पर उसका मतलब नहीं समझा । निधि ने एक एन.जी.ओ. से बात की और अपने 150 गज़ के पूरे घर को जीव-जंतु संरक्षण में बदल दिया। अब यहाँ हर प्रजाति के पशु-पक्षियों को संरक्षण मिलेगा और उनकी देखभाल भी होगी और घायल जीव-जंतुओ का ईलाज भी किया जायेगा । निधि और अनिल ने कई लोगों को इस संरक्षण केंद्र से जोड़ा ताकि प्राणी जगत को सुरक्षा और रहने का स्थान मिल सकें । और केंद्र का नाम रखा गया "कामतानाथ प्रसाद के रिश्तेदार'।"

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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13 Oct, 16:09


"भोग का उपभोग"

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12 Oct, 22:04


औलाद हो तो ऐसी

मोहिनी।कल गांव से मां और पिताजी आ रहे हैं हमारे पास कुछ दिन के लिए रहने,, इस बार मैं उन दोनों को वापस गांव जाने नहीं दूंगा पूरे 2 साल में आ रहे हैं अपने बेटे के घर हम भी केवल चार-पांच दिन के लिए ही इस बीच में घर जा पाए हैं । कह रहे थे आंखें तरस गई तुम्हें देखने के लिए तुम्हें तो समय मिलता नहीं है तो हमने सोचा हम ही कुछ दिन के लिए तुम्हारे पास आ जाए। अपने दोनों पोतो से मिलने का भी बहुत मन हो रहा है। वहीं बैठे आरव और निकुंज ने जब अपने दादा-दादी के आने की खबर सुनी तो उन्हें मन ही मन परेशानी होने लगी। यही चिंता मोहिनी को भी खाई जा रही थी लेकिन महेश के सामने किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी। महेश अपने माता-पिता की इकलौती संतान है और अब गुड़गांव में एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत है उसके जुड़वा बेटे हैं जो अब 10th क्लास में पढ़ते हैं।उसने अपना घर गुड़गांव में ही बनाया हुआ है जिसमें उसने अपने माता-पिता के लिए भी एक अलग कमरा बनवाया था, लेकिन उनका मन अपने गांव के सिवा कहीं नहीं लगता वह अलग बात है दो-चार दिन के लिए वह उसके पास आ जाते थे लेकिन अब उन्हें आए दो साल हो चुके हैं। गांव के और शहर के परिवेश में रहन-सहन में काफी अंतर होता है आधुनिकता में रंगे उसके बीवी बच्चों को उनका रहन-सहन निम्न स्तर का लगता है ऊपर से उनका टोका टाकी करने का स्वभाव भी उन्हें बहुत अखरता है। लेकिन महेश तो अपने माता-पिता को भगवान से भी ज्यादा पूजता है। ऐसा नहीं है अपने बीवी बच्चों के हाव-भाव उसकी नजरों से छुपे रह सके, उसने शांत तरीके से अपने बच्चों को समझाया देखो बच्चों मैं नहीं चाहता किसी की वजह से भी तुम्हारे दादी बाबा को कोई कष्ट पहुंचे वह जितने दिन यहां पर रहेंगे मैं चाहता हूं तुम भी उनके साथ समय बिताओ क्योंकि बच्चे जो अपने दादी बाबा से सीखते हैं वह ज्ञान दुनिया की किसी किताब में नहीं है । अपने पोती पोतो में जान बसती है बुजुर्गों की। अरे मेरे माता-पिता की ही मेहनत है आज मैं इतने बड़े मुकाम पर हूं। उन्होंने जितने कष्ट सहकर मुझे पढ़ाया लिखाया है यह मैं ही जानता हूं मेरे मां-बाप मेरा गुरूर है तुम्हारे पापा के माता-पिता होने की वजह से तुम्हें तो उनकी दुगनी इज्जत करनी चाहिए। अगले दिन सरला जी और नामदेव जी अपने बेटा बहू के पास आ जाते हैं। अपना अलग कमरा होने के बावजूद वे अक्सर अपने पोतो के पास उनके कमरे में आकर बैठ जाया करते थे और उन्हें अपने गांव के किस्से सुनाते रहते थे और उनके पापा की बचपन की बातें उनसे बतलाते रहते थे। सरला जी भी रसोई में अपनी बहू के साथ उसके काम में हाथ बंटा दिया करती थी। महेश की तो जैसे मुंह मांगी मुराद पुरी हो गई थी वह अक्सर अपनी मां से कहकर वह सारी चीजे बनवाया करता था जो उसे बहुत पसंद थी। रोज रात को अपने माता-पिता के पैर दबाना भी नहीं भूलता था महेश। सच में अपने मां बाप के लिए श्रवण कुमार ही था।मोहिनी को उनके काम करने का तरीका समझ में नहीं आता था। यही हाल बच्चों का भी था अपने दादी बाबा का हर चीज मे टोकना उन बच्चों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। लेकिन महेश के डर की वजह से कोई कुछ कह ही नहीं पाता था। एक दिन महेश ऑफिस से चहकता हुआ घर आया और आते ही अपने माता-पिता के पैर छुए और उन्हें खुशखबरी दी कि कल उनके बेटे को बेस्ट एम्पलाई का अवार्ड मिलेगा जिसमें मेरा सारा परिवार आमंत्रित है। आप दोनों को भी मेरे साथ वहां चलना है। कभी ऐसी पार्टियों में न जाने के कारण उसके माता-पिता को बहुत हिचकिचाहट होती है और वह उसके साथ जाने को मना करते हैं। मोहिनी और बच्चे भी यही कहते हैं कि ऐसी पार्टियों में कहां मम्मी जी और पापा जी सहज रह पाएंगे उन्हें ऐसी पार्टियों के खाना खाने के तरीके भी नहीं पता होते। आप उन्हें क्यों परेशान करते हो? महेश को पता था कि बच्चे नहीं चाहते कि उसके माता-पिता उनके साथ जाएं उन्हें उनके साथ उनके रहन-सहन और पहनावे को लेकर शर्म जो महसूस हो रही थी। मैं इस बारे में किसी से कोई राय नहीं लेना चाहता जिसे उनके साथ जाने में दिक्कत हो वह यही रह सकता है कहकर महेश अपने कमरे में चला गया। अगले दिन ऑफिस की पार्टी में महेश ने अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने माता-पिता को दिया और जब उन्हें स्टेज पर बुलाया गया तो। भावुक होकर उनके कदमों में बैठकर रोने लगा। उसने कहा मैंने तो बड़ा आदमी बनने का केवल सपना देखा था उसे साकार तो मेरे माता-पिता की मेहनत ने हीं किया है। कभी-कभी तो हमारी फसल बेकार हो जाती थी और खाने के भी लाले पड़ जाते थे। लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे एक दिन भी भूखा नहीं रखा और मेरी पढ़ाई के लिए क्या-क्या तपस्या नहीं की है मैं ही जानता हूं? मेरे सपने को इन्होंने हर पल जिया है। उसके मां-बाप की आंखों में तो झरझर आंसू बहे जा रहे थे। उनके मुंह से सिर्फ इतना ही निकल पाया हमारा बेटा हमारा गुरूर है। जो हमने किया वह तो

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12 Oct, 22:04


सभी के मां-बाप करते हैं लेकिन आजकल के बच्चे तो सब कुछ भूल जाते हैं और उन्हें मां-बाप को वृद्ध आश्रम तक भी छोड़ आते हैं। हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि हमारी पहचान हमारे बेटे के नाम से हुई है। हमारा बेटा सच में कलयुग का श्रवन कुमार है ईश्वर ऐसी औलाद सबको दे कहते कहते उन्होंने अपने बेटे को सीने से लगा लिया। वहां खड़े सभी लोगों के मुंह पर यही बात थी जिसका ऐसा बेटा हो उसके मां-बाप भला गुरुर कैसे ना करें? आज तो मोहिनी और दोनों बच्चों की आंखें भी आंसुओं से भरी हुई थी। क्योंकि उन्हें पता चल गया था की मां-बाप के रहन-सहन या ऊंचे नीचे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता मां-बाप तो केवल मां-बाप ही होते हैं जो भले ही अनपढ़ क्यों ना हो लेकिन अपने बच्चों को संस्कार सबसे पहले वही सिखाते हैं।
अगले दिन सरला जी और नामदेव जी ने जब वापस गांव जाने के लिए कहा तो दोनों बच्चों ने जिद करके उन्हें अपने पास ही रोक लिया। यह कहकर कि हमें भी आपकी सेवा करके अपने पापा का गुरूर बनना है दादाजी। आज महेश ने भी अपने बच्चों को कसकर सीने से लगा लिया क्योंकि उसे पता था अब उन्हें समझाने की कोई जरूरत नहीं है संस्कार सिखाने से नहीं अपने घर का माहौल देखने से ही आते हैं। जैसा व्यवहार हम अपने मां-बाप के साथ करते हैं आने वाली पीढ़ी भी स्वत: ही वैसा ही करने लग जाती है।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

12 Oct, 14:25


इच्छाओं का अंत नहीं

https://youtu.be/4hvREVai3xc?si=4F3CCKCBC_Ak8ZAf

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प्रेरणास्पद कथायें

12 Oct, 03:11


"कामयाबी के सूत्र"

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12 Oct, 00:42


बुरी आदत

एक बार स्वामी रामकृष्ण से एक साधक ने पूछा- 'मैं हमेशा भगवान का नाम लेता रहता हूँ। भजन-कीर्तन करता हूँ, ध्यान लगाता हूँ, फिर भी मेरे मन में कुविचार क्यों उठते हैं?' यह सुनकर स्वामीजी मुस्कुराए। उन्होंने साधक को समझाने के लिए एक किस्सा सुनाया।

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एक आदमी ने कुत्ता पाला हुआ था। वह उससे बहुत प्यार करता था। कभी उसे गोद में लेता, कभी पुचकारता। यहाँ तक कि खाते-पीते, सोते-जागते या बाहर जाते समय भी कुत्ता उसके साथ ही रहता था।

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उसकी इस हरकत को देखकर किसी दिन एक बुजुर्ग ने उससे कहा कि एक कुत्ते से इतना लगाव ठीक नहीं। आखिरकार है तो पशु ही। क्या पता कब किसी दिन कोई अनहोनी कर बैठे। तुम्हें नुकसान पहुंचा दे या काट ले।

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यह बात उस आदमी के दिमाग में घर कर गई। उसने तुरंत कुत्ते से दूर रहने की ठान ली। लेकिन वह कुत्ता इस बात को भला कैसे समझे! वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद में आ जाता था। मुंह चाटने की कोशिश करता। मालिक उसे मार-मारकर भगा भी देता। लेकिन कुत्ता अपनी आदत नहीं छोड़ता था।

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बहुत दिनों की कठिन मेहनत और कुत्ते को दुत्कारने के बाद कुत्ते की यह आदत छूटी। कथा सुनाकर स्वामीजी ने साधक से कहा-'तुम भी वास्तव में ऐसे ही हो। जिन सांसारिक भोग-विलास में आसक्ति की आदतों को तुमने इतने लम्बे समय से पाल कर छाती से लगा रखा है, वे भला तुम्हें इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकती हैं?

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पहले तुम उनसे लाड़-प्यार करना बंद करो। उन्हें निर्दयी, निर्मोही होकर अपने से दूर करो। तब ही उनसे पूरी तरह से छुटकारा पा सकोगे। जैसे-जैसे बुरी आदतों का दमन करोगे, मन की एकाग्रता बढ़ती जाएगी और चित्त में अपनेआप धर्म विराजता जाएगा।'

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मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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11 Oct, 16:52


मन की निर्धनता

रवीन्द्रनाथ टैगोर जब कभी ग्वाल मंडी स्थित अमृत धारा भवन आकर ठहरते, उनके शुभेच्छुओं का तांता लग जाता। लोग उनसे तरह-तरह के प्रश्न करते। वहां एक युवक रोज मुंह लटकाए आता और पीछे बैठ जाता। एक दिन टैगोर ने उससे पूछा- 'तुम इस तरह उदास क्यों रहते हो?' कुछ कहते क्यों नहीं।' युवक ने कहा- 'मैं बहुत निर्धन हूँ गुरुदेव।' टैगोर बोले- 'तुम मुझे एक आँख दे दो, मैं तुम्हें एक लाख रूपये दे दूंगा।' युवक बोला – 'यदि मैं एक आँख दे दूँ तो मैं काना हो जाऊँगा।' इस पर टैगोर ने कहा- 'तुम्हारे पास दो हाथ और दो पैर भी हैं। यदि तुम इनमें से कुछ भी दे दो तो मैं तुम्हें मुंहमांगी कीमत दूंगा।' युवक बोला- मैं ये अंग कैसे दे सकता हूँ। ये मेरे लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।' टैगोर मुस्कुराए और बोले- 'जब तुम्हारे पास इतनी महत्वपूर्ण चीजें हैं, और इतनी कीमती चीजों के तुम मालिक हो, तब तुम अपने को निर्धन कहकर अपना मजाक क्यों उड़ाते हो।' युवक उनका आशय समझ गया।

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शुभ रात्री
प्रणाम

प्रेरणास्पद कथायें

11 Oct, 08:11


वह भिखारी नहीं भगवान था

https://youtu.be/R8HKxZ0mYZg?si=HbyjUgG2P73o2VqV

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10 Oct, 08:33


सर्वस्व अर्पण

https://youtu.be/V7akxkENY6I?si=kP4n_G8Q1B8l9z5b

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प्रेरणास्पद कथायें

10 Oct, 02:40


!! धैर्यशील शिष्य !!

एक बार कि बात है, एक गुरू अपने कुछ शिष्यों के साथ पैदल ही यात्रा पर थे। वे चलते-चलते किसी गांव में पहुंच गए।

ये गांव काफी बड़ा था, वहां घूमते हुए उन्हें काफी देर हो गयी थी। गुरू जी थक चुके थे और उन्हें बहुत प्यास लगी थी, तो उन्होनें अपने एक शिष्य से कहा कि हम इसी गांव में कुछ देर रूकते हैं, तुम मेरे लिए पानी ले आओ।

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जब शिष्य गांव के अंदर थोड़ा घुमा तो उसने देखा कि वहां एक नदी थी, जिसमें कई लोग कपड़े धो रहे थे, तो कई लोग नहा रहे थे और इसी वजह से नदी का पानी बहुत ही गंदा सा दिख रहा था।

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शिष्य को लगा कि ऐसा गंदा पानी गुरू जी के स्वास्थ्य को खराब कर सकता है, उन्हें ये पानी नहीं पिलाया जा सकता। इसलिए शिष्य बिना पानी लिए ही वापस लौट आया और नदी के गंदे पानी की सारी बात गुरू जी को बता दी।

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इसके बाद गुरू जी ने किसी दूसरे शिष्य को पानी लाने के लिए भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य पानी साथ लेकर लौटा।

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गुरू जी ने इस दूसरे शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम ये पानी कैसे लाए? शिष्य बोला की गुरू जी, नदी का पानी वास्तव में बहुत ही गंदा था। लेकिन लोगों के नदी से चले जाने के बाद मैंने कुछ देर इंतजार किया और कुछ देर बाद नदी में मिट्टी नीचे बैठ गई और साफ पानी ऊपर आ गया। उसके बाद मैं उसी नदी से आपके लिए पानी भरकर ले आया।

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गुरू जी, ये सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा जीवन भी इसी नदी के पानी की तरह है। जीवन में कई बार दुख और समस्याएं आती है तो जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है। लेकिन थोड़े इंतजार और सब्र के बाद ये दुःख और समस्याएं नीचे दब जाती है और अच्छा समय ऊपर आ जाता है।

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कुछ लोग पहले वाले शिष्य की तरह दुःख और समस्याओं को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर वापस लौट आते हैं। ऐसे लोग जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं, इंतजार करते हैं कि कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएं और दुःख खत्म हो जाएंगे, वे ही सफल होते हैं।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम

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