(🚩जय श्री सीताराम जी की* 🚩
*आप सभी श्री सीतारामजीके भक्तों को प्रणाम करता हूँ ।*
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*श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड*
*शिवजी की विचित्र बारात और विवाह की तैयारी*
*सैल सकल जहँ लगि जग माहीं।*
*लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं॥*
*बन सागर सब नदी तलावा।*
*हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा॥2॥*
भावार्थ:-
जगत में जितने छोटे-बड़े पर्वत थे, जिनका वर्णन करके पार नहीं मिलता तथा जितने वन, समुद्र, नदियाँ और तालाब थे, हिमाचल ने सबको नेवता भेजा॥2॥
*कामरूप सुंदर तन धारी।*
*सहित समाज सहित बर नारी॥*
*गए सकल तुहिमाचल गेहा।*
*गावहिं मंगल सहित सनेहा॥3॥*
भावार्थ:-
वे सब अपनी इच्छानुसार रूप धारण करने वाले सुंदर शरीर धारण कर सुंदरी स्त्रियों और समाजों के साथ हिमाचल के घर गए। सभी स्नेह सहित मंगल गीत गाते हैं॥3॥
*प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए*।
*जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए॥*
*पुर सोभा अवलोकि सुहाई। )*
*लागइ लघु बिरंचि निपुनाई॥4॥*
भावार्थ:-
हिमाचल ने पहले ही से बहुत से घर सजवा रखे थे। यथायोग्य उन-उन स्थानों में सब लोग उतर गए। नगर की सुंदर शोभा देखकर ब्रह्मा की रचना चातुरी भी तुच्छ लगती थी॥4॥
छन्द :
*लघु लाग बिधि की निपुनता*
*अवलोकि पुर सोभा सही।*
*बन बाग कूप तड़ाग सरिता*
*सुभग सब सक को कही॥*
*मंगल बिपुल तोरन पताका*
*केतु गृह गृह सोहहीं।*
*बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि*
*देखि मुनि मन मोहहीं॥*
भावार्थ:-
नगर की शोभा देखकर ब्रह्मा की निपुणता सचमुच तुच्छ लगती है। वन, बाग, कुएँ, तालाब, नदियाँ सभी सुंदर हैं, उनका वर्णन कौन कर सकता है? घर-घर बहुत से मंगल सूचक तोरण और ध्वजा-पताकाएँ सुशोभित हो रही हैं। वहाँ के सुंदर और चतुर स्त्री-पुरुषों की छबि देखकर मुनियों के भी मन मोहित हो जाते हैं॥
दोहा :
*जगदंबा जहँ अवतरी,*
*सो पुरु बरनि कि जाइ।*
*रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख,*
*नित नूतन अधिकाइ॥94॥*
भावार्थ:-
जिस नगर में स्वयं जगदम्बा ने अवतार लिया, क्या उसका वर्णन हो सकता है? वहाँ ऋद्धि, सिद्धि, सम्पत्ति और सुख नित-नए बढ़ते जाते हैं॥94॥
चौपाई :
*नगर निकट बरात सुनि आई।*
*पुर खरभरु सोभा अधिकाई*॥
*करि बनाव सजि बाहन नाना।*
*चले लेन सादर अगवाना॥1॥*
भावार्थ:-
बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई, जिससे उसकी शोभा बढ़ गई। अगवानी करने वाले लोग बनाव-श्रृंगार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को सजाकर आदर सहित बारात को लेने चले॥1॥
*हियँ हरषे सुर सेन निहारी।*
*हरिहि देखि अति भए सुखारी॥*
*सिव समाज जब देखन लागे।*
*बिडरि चले बाहन सब भागे॥2॥*
भावार्थ:-
देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए, किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब तो उनके सब वाहन (सवारियों के हाथी, घोड़े, रथ के बैल आदि) डरकर भाग चले॥2॥
*धरि धीरजु तहँ रहे सयाने।*
*बालक सब लै जीव पराने॥*
*गएँ भवन पूछहिं पितु माता।*
*कहहिं बचन भय कंपित गाता॥3॥*
भावार्थ:-
कुछ बड़ी उम्र के समझदार लोग धीरज धरकर वहाँ डटे रहे। लड़के तो सब अपने प्राण लेकर भागे। घर पहुँचने पर जब माता-पिता पूछते हैं, तब वे भय से काँपते हुए शरीर से ऐसा वचन कहते हैं॥3॥
*कहिअ काह कहि जाइ न बाता।*
*जम कर धार किधौं बरिआता॥*
*बरु बौराह बसहँ असवारा।*
*ब्याल कपाल बिभूषन छारा॥4॥*
भावार्थ:-
क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह बारात है या यमराज की सेना? दूल्हा पागल है और बैल पर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं॥4॥
छन्द :
*तन छार ब्याल कपाल भूषन*
*नगन जटिल भयंकरा।*
*सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि*
*बिकट मुख रजनीचरा॥*
*जो जिअत रहिहि बरात देखत*
*पुन्य बड़ तेहि कर सही।*
*देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर*
*बात असि लरिकन्ह कही॥*
भावार्थ:-
दूल्हे के शरीर पर राख लगी है, साँप और कपाल के गहने हैं, वह नंगा, जटाधारी और भयंकर है। उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं, जो बारात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बड़े ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लड़कों ने घर-घर यही बात कही।
दोहा :
*समुझि महेस समाज सब,*
*जननि जनक मुसुकाहिं।*
*बाल बुझाए बिबिध बिधि,*
*निडर होहु डरु नाहिं॥95॥*
भावार्थ:-
महेश्वर (शिवजी) का समाज समझकर सब लड़कों के माता-पिता मुस्कुराते हैं। उन्होंने बहुत तरह से लड़कों को समझाया कि निडर हो जाओ, डर की कोई बात नहीं है ।।95।।
क्रमशः,,,,,
*🚩जय श्री सीताराम जी की* 🚩