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प्रेरक कथाएँ

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प्रेरक कथाएँ (Hindi)

प्रेरक कथाएँ एक टेलीग्राम चैनल है जो आपको रोमांचित करने और आपके मन को शांत करने के लिए उत्तेजित करेगा। चैनल पर विभिन्न प्रेरणादायक कहानियाँ हैं जो जीवन की महत्वपूर्ण सबकों को सिखाती हैं। यहाँ पर आपको उदाहरण, साहस, और सहानुभूति से भरपूर कहानियाँ मिलेंगी जो आपको प्रेरित करेंगी। यह चैनल उन लोगों के लिए है जो अपने जीवन में नई सोच और प्रेरणा की खोज में हैं। यहाँ आपको रोमांचक कहानियाँ मिलेंगी जो आपके दिल को छू जाएंगी और आपको आगे बढ़ने का जोश देगी। चैनल का उद्देश्य एक सकारात्मक और प्रेरणादायक समुदाय बनाना है, जो एक-दूसरे के साथ अपनी अनुभव साझा कर सके और एक-दूसरे को सहायता प्रदान कर सके। इस चैनल का उद्येश्य है लोगों के जीवन में पॉजिटिविटी और उत्साह लाना। चैनल में आपको युवाओं और वयस्कों के लिए समय बिताने के लिए सुन्दर कहानियाँ मिलेंगी जो आपके मनोरंजन के साथ-साथ आपको सोचने पर मजबूर करेंगी। इस चैनल पर इसकी सदस्यता ले और अपने जीवन को संवारने का नया तरीका जानें।

प्रेरक कथाएँ

23 Jan, 04:25


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*प्रेरक कहानी: फरिश्ता*

ऑन-ड्यूटी नर्स उस चिंतित युवा सेना के मेजर को उस बिस्तर के पास ले गई।
"आपका बेटा आया है," उसने धीरे से बिस्तर पर पड़े बूढ़े आदमी से कहा।

बुजुर्ग की आंखें खुलने से पहले उसे कई बार इन्ही शब्दों को बार बार दोहराना पड़ा।

दिल के दौरे के दर्द के कारण भारी बेहोशी की हालत में हल्की हल्की आंखे खोलकर किसी तरह उन्होंने उस युवा वर्दीधारी मेजर को ऑक्सीजन टेंट के बाहर खड़े देखा।

युवा मेजर ने हाथ बढ़ाया।

मेजर ने अपने प्यार और स्नेह को बुजुर्ग तक पहुंचाने के लिए नजदीक जाकर ध्यानपूर्वज उन्हें गले लगाने का अधूरा सा प्रयास किया। इस प्यार भरे लम्हे के बाद मेजर ने उन बूढ़े हाथों को अपनी जवान उंगलियों में, प्यार से कसकर थामा और मैं आपके साथ, आपके पास ही हूँ, का अहसास दिलाया।

इन मार्मिक क्षणों को देखते हुए, नर्स तुंरन्त एक कुर्सी ले आई ताकि मेजर साहब बिस्तर के पास ही बैठ सके।

"आपका धन्यवाद बहन" ये बोलकर मेजर ने एक विनम्र स्वीकृति का पालन किया।

सारी रात, वो जवान मेजर वहां खराब रोशनी वाले वार्ड में बैठा रहा, बस बुजुर्ग का हाथ पकड़े पकड़े, उन्हें स्नेह,प्यार और ताकत के अनेको शब्द बोलते बोलते, संयम देते देते।

बीच बीच मे बहुत बार नर्स ने मेजर से आग्रह किया कि "आप भी थोड़ी देर आराम कर लीजिये" जिसे मेजर ने शालीनता से ठुकरा दिया।

जब भी नर्स वार्ड में आयी हर बार वह उसके आने और अस्पताल के रात के शोर शराबे से बेखबर ही रहा। बस यूँही हाथ थामे बैठा रहा। ऑक्सीजन टैंक की गड़गड़ाहट, रात के स्टाफ सदस्यों की हँसी का आदान-प्रदान, अन्य रोगियों के रोने और कराहने की आवाजे, कुछ भी उसकी एकाग्रता को तोड़ नही पा रहा था।

उसने मेजर को हरदम बस बुजुर्ग को कुछ कोमल मीठे शब्द बुदबुदाते सुना। मरने वाले बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, रात भर केवल अपने बेटे को कसकर पकड़ रखा था।

भोर होते ही बुजुर्ग का देहांत हो गया। मेजर ने उनके बेजान हाथ को छोड़ दिया और नर्स को बताने के लिये गया।

पूरी रात मेजर ने बस वही किया जो उसे करना चाहिए था, उसने इंतजार किया ...

अंत में, जब नर्से लौट आई और सहानुभूति जताने के लिये कुछ कह पाती, उससे पहले ही मेजर ने उसे रोककर पूछा-
"कौन था वो आदमी?"

नर्स चौंक गई, "वह आपके पिता थे," उसने जवाब दिया।

"नहीं, वे नहीं थे" मेजर ने उत्तर दिया। "मैंने उन्हें अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा।"

"तो जब मैं आपको उनके पास ले गयी थी तो आपने कुछ कहा क्यों नहीं ?"

"मैं उसी समय समझ गया था कि कोई गलती हुई है, लेकिन मुझे यह भी पता था कि उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है, और उनका बेटा यहाँ नहीं है।"

नर्स सुनती रही, उलझन में।

"जब मुझे एहसास हुआ कि वो बुजुर्ग बहुत बीमार है, आखिरी सांसे गिन रहा है, उसे मेरी जरूरत है, तो मैं उनका बेटा बनकर रुक गया।"

"तो फिर आपके यहाँ अस्पताल आने का कारण?", नर्स ने उससे पूछा।

"जी मैं आज रात यहां श्री विक्रम सलारिया को खोजने आया था। उनका बेटा कल रात जम्मू-कश्मीर में मारा गया था, और मुझे उन्हें सूचित करने के लिए भेजा गया था।"

'लेकिन जिस आदमी का हाथ आपने पूरी रात पकड़े रखा, वे ही मिस्टर विक्रम सलारिया थे।'

दोनो कुछ समय तक पूर्ण मौन में खड़े रहे क्योंकि दोनों को एहसास था कि एक मरते हुए आदमी के लिए अपने बेटे के हाथ से ज्यादा आश्वस्त करने वाला कुछ नहीं हो सकता।

*दोस्तो जब अगली बार किसी को आपकी जरूरत हो तो आप भी बस वहीं रुके रहें, बस साथ बने रहें, अंत तक। आपके बोल,उत्साह,आश्वासन तथा दूसरे को ये अहसास की मैं हूँ न ही उसे स्वस्थ करने के लिये काफी है*

प्रेरक कथाएँ

22 Jan, 06:40


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*बथुआ साग नहीं,एक औषधि*

सागों का सरदार है बथुआ,सबसे अच्छा आहार है बथुआ।
बथुआ को अंग्रेजी में Lamb's Quarters कहते हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम Chenopodium album है।

साग और रायता बना कर बथुआ अनादि काल से खाया जाता रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि विश्व की सबसे पुरानी महल बनाने की पुस्तक शिल्प शास्त्र में लिखा है कि हमारे बुजुर्ग अपने घरों को हरा रंग करने के लिए पलस्तर में बथुआ मिलाते थे?

हमारी बुजुर्ग महिलायें सिर से ढेरे व फाँस (डैंड्रफ) साफ करने के लिए बथुए के पानी से बाल धोया करती थीं।

बथुआ गुणों की खान है और भारत में ऐसी ऐसी जड़ी बूटियां हैं तभी तो हमारा भारत महान है।

*बथुए में क्या-क्या है ?*
मतलब कौन-कौन से विटामिन और मिनरल्स हैं ?
तो सुनें,बथुए में क्या है।
बथुआ विटामिन *B1, B2, B3, B5, B6, B9 और C* से भरपूर है तथा बथुए में *कैल्शियम,लोहा,मैग्नीशियम,मैगनीज,फास्फोरस,पोटाशियम,सोडियम व जिंक* आदि मिनरल्स हैं।

100 ग्राम कच्चे बथुवे यानि पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं।
कुल मिलाकर 43 Kcal होती है।

जब बथुआ मट्ठा, लस्सी या दही में मिला दिया जाता है तो यह किसी भी मांसाहार से ज्यादा प्रोटीन वाला व किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ से ज्यादा सुपाच्य व पौष्टिक आहार बन जाता है। साथ में बाजरे या मक्का की रोटी, मक्खन व गुड़ की डली हो तो इसे खाने के लिए देवता भी तरसते हैं।

जब हम बीमार होते हैं तो आजकल डाक्टर सबसे पहले विटामिन की गोली खाने की सलाह देते हैं। गर्भवती महिला को खासतौर पर विटामिन बी, सी व आयरन की गोली बताई जाती है। बथुए में ये सब कुछ है।
कहने का तात्पर्य है कि बथुआ पहलवानों से लेकर गर्भवती महिलाओं तक, बच्चों से लेकर बूढों तक, सबके लिए अमृत समान है !

बथुआ का साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। बथुआ अमाशय को बलवान बनाता है,गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। बथुए के साग का सही मात्रा में सेवन किया जाए तो निरोग रहने के लिए सबसे उत्तम औषधि है।

बथुए का सेवन कम से कम मसाले डालकर करें। नमक न मिलाएँ तो अच्छा है,यदि स्वाद के लिए मिलाना पड़े तो काला नमक मिलाएँ और देशी गाय के घी से छौंक लगाए। बथुए का उबला हुआ पानी अच्छा लगता है। तथा दही में बनाया हुआ रायता स्वादिष्ट होता है।

किसी भी तरह बथुआ नित्य सेवन करें।
बथुए में जिंक होता है जो कि शुक्रवर्धक होता है। बथुआ कब्ज दूर करता है और अगर पेट साफ रहेगा तो कोई भी बीमारी शरीर में लगेगी ही नहीं ताकत और स्फूर्ति बनी रहेगी। कहने का मतलब है कि जब तक इस मौसम में बथुये का साग मिलता रहे नित्य इसकी सब्जी खाए।

बथुये का रस,उबाला हुआ पानी पियें तो यह खराब लीवर को भी ठीक कर देता है। पथरी हो तो एक गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नित्य पिए तो पथरी टूटकर बाहर निकल आएगी। मासिक धर्म रुका हुआ हो तो दो चम्मच बथुए के बीज एक गिलास पानी में उबालें,आधा रहने पर छानकर पी जाए, तुरंत लाभ होगा। आँखों में सूजन,लाली हो तो प्रतिदिन बथुए की सब्जी खाएँ। पेशाब के रोगी बथुआ आधा किलो, पानी तीन गिलास,दोनों को उबालें और फिर पानी छान लें। बथुए को निचोड़कर पानी निकाल कर यह भी छाने हुए पानी में मिला लें। स्वाद के लिए नींबू , जीरा, जरा सी काली मिर्च और काला नमक डाल लें और पी जाए।

आप ने अपने दादा-दादी से ये कहते जरूर सुना होगा कि हमने तो सारी उम्र अंग्रेजी दवा की एक गोली भी नहीं ली उनके स्वास्थ्य व ताकत का राज यही बथुआ ही है।
मकान को रंगने से लेकर खाने व दवाई तक बथुआ काम आता है।
हाँ अगर सिर के बाल धोते हैं,क्या करेंगे शेम्पू
इसके आगे......

इसलिये अपने आहार में इसको शामिल कर प्रतिदिन जरूर सेवन करे,लाभदायक रहेगा,

प्रेरक कथाएँ

22 Jan, 02:40


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*प्रेरक कहानी: सुख की तलाश*

हफ़ीज अफ़्रीका का एक़ किसान था, खेती करता जो ईश्वर इच्छा से प्राप्त हो जाता रब का शुक्र किया करता, वह अपनी ज़िन्दगी से ख़ुश और सन्तुष्ट था।

अफ्रीका में हर जगह हीरे की खदानें थीं, जहां से लोग हीरे तलाश कर दुनियां भर में बेचते और धनवान होते जाते। पर हफीज अपनी मेहनत से जो बन पड़ता अपना और अपने परिवार के लिये पूर्ण पाता और उसमें ही अपने परिवार के साथ खुशी से सुख पूर्वक रहता।

एक दिन हफीज का एक रिश्तेदार उसके घर पर आया,वो हीरों का बहुत बड़ा व्यपारी था, उसने हफीज को अफ्रीका में रहते हुये इस तरह गरीबी में रहते देखा तो उसे समझाने लगा, तुम हीरों का काम करो! जितनी मेहनत तुम खेती में करते हो पर कमाते जरूरत भर हो,अगर इतनी मेहनत तुम हीरे ढूंढने में लगाओ तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाओगे। छोटे से छोटा हीरा भी बेसकीमती होता है और अगर कहीं अपने अंगूठे भर का भी हीरा पालो तो तुम एक पूरा शहर खरीद सकते हो,और कहीं मुठी भर जितना हीरा मिल जाये तो पूरा अफ्रीका तुम्हारा होगा। सोचो क्या सुख नहीं होगा तुम्हारे पास, हर सुख और सुविधायें, बड़ा घर,गाड़ियां,बच्चों और परिवार के ऐसों आराम की सभी जरूरतें।

वो रिश्तेदार ये बातें कर शाम को अपने घर लौट गया।पर अपने पीछे एक चिंतित हफीज को छोड़ गया,आज उसे अपनी मेहनत की कमाई लानत लग रही थी,उसे ऐसा लग रहा था की वो बेकार में ही आदर्शवादी बना फिरता है,उसके जानने वाले सभी कहाँ से कहां पहुंच गये और वो आज भी वहीं का वहीं है,आज उसे अपनी खुद्दारी बोझिल सी लग रही थी,उस रात हफीज सो न सका,उसके मन में आज सन्तुष्टता की बजाये असंतुष्टा घर कर गई थी इसीलिये वो आज दुखी था।

अगले दिन सुबह हफीज काम पर नहीं गया,उसने अपने परिवार को बुला अपनी सारी बात उनके सामने रखी,अब मुझे जीवन का मकसद मिल गया है हमें भी अब अमीर होना है,अपने पति में यह परिवर्तन देख उसकी पत्नी ने समझना चाहा"हम अपनी छोटी सी दुनियां में बहुत सुख से हैं,नहीं चाहिये हमें कोई अन्य सुख सुविधायें, आप अपना यह विचार त्याग दीजिये।

पर अब हफीज पर अमीर बनने का जुनून सवार हो चुका था,हफ़ीज ने अपने खेतेां को बेचकर कुछ पैसे पत्नी को गुजर बसर के लिये दिये और हीरे खोज़ने के लिये रवाना हो गया। वह हीरों क़ी ख़ोज मेँ पूरे अफ़्रीका मेँ भटकता रहा पर ,बहुत परिश्रम भी किया पर उन्हें पा न सका। पर वो मायूस न हुआ उसने और आगे जाने की सोची।

उसने उन्हेँ यूरोप मेँ भी ढूंढा पर वे उसे वहां भी नहीँ मिलें । स्पेन पहुंचते-पहुंचते वह मानसिक,शारिरीक और आर्थिक स्तर पर पूरी तरह टुट चुका था। उसका सारा धन समाप्त हो चुका था उसके पास उस दिन के खाने भर के लिये भी पैसे नहीं थे फिर भी वो भटकता रहा की काश मुझे कोई हीरा मिल जाये। पर आखिर वह इतना मायूस हो चुका था की उसने बर्सिलोना नदी मेँ कुदकर ख़ुद-ख़ुशी क़र अपनी जान दे दी।

इधर जिस आदमी ने हफ़ीज के ख़ेत ख़रीदें थे वह एक़ दिन उन ख़ेतों से होंकर बहनें वाले नालेँ मेँ अपने ऊंटों को पानी पिला रहा था तभी सुबह के वक्त ऊग रहें सुरज क़ी किरणेँ नालेँ के दुसरी ओर पढ़े एक़ पत्थर पर पडी और वह इंद्र धनुष क़ी तरह जगमगा ऊठा।बहुत ही सुंदर लग रहा था वो जैसे बर्फ को किसी ने किसी टोकरे में रख दिया हो। यह सोंचकर क़ी वह पत्थर उसकि बैठक मेँ अच्छा दिखेगा उसने उसे उठा क़र अपनी बैठक कक्ष मेँ सजा दिया,संजोग से आज वही हफीज का रिश्तेदार ख़ेतों के इस नए मालिक़ के पास आया,उसनें उस जगमगाते हुए पत्थर को देखा तो हैरानी से उछल पड़ा,ओह!इतना बड़ा और बेसकीमती पत्थर उसने जमीन के नये मालिक से-पूछा - क्या हफ़ीज लौट आया ?नए मालिक़ ने जवाब दिया- नहीँ लेक़िन आपने यह सवाल क़्यों पूछा?*
*अमीर रिश्तेदार आदमीं ने ज़वाब दिया क्योंकी यह हीरा हैँ, मैं उन्हें देखतें ही पहचान जाता हूँ ।नए मालिक़ ने कहा- नहीँ यह तो महज एक़ पत्थर हैँ, मैने उसे नाले के पास से उठाया हैँ। चलिए मैं आपक़ो दीखाता हूँ, वहां ऐसे बहुत सारे पत्थर पड़े हुए हैँ।उन्होनें वहां से बहुत सरे पत्थर उठाए और उन्हेँ जांचने परखने के लिये भेंज दिया।वे सभी पत्थर हीरे ही साबित हुए। उन्होनें पाया क़ी उस ख़ेत में दूर-दूर तक़ हीरे दबे हुए थे। जमीन का नया मालिक दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन चुका था।

*कथा सार----*
1. अवसर ढूंढने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। बहुदा अवसर सके पास होता है बस उसे पहचानने को जरूरत है

2. परमात्मा ने मुझे और सभी को अपनी प्रारब्ध अनुसार भरपूर दिया हुआ है। जो इस नेमत को न देख और,और,और कि चाह में भटकते हैं,वे सदा दुख ही पाते हैं। उसकी नेमत को देख,अपनी भरपूरता का अनुभव कर सदेव मालिक का शुक्रगुजार होने में ही वास्तविक सुख है..!!

प्रेरक कथाएँ

21 Jan, 13:29


भीगने से बचें, भीगने पर शीघ्र सूखे कपड़े पहने, नंगे पैर, गीली मिट्टी या कीचड़ में नहीं जाना चाहिए, सीलन युक्त स्थान पर नहीं रहना चाहिए तथा बाहर से लौटने पर पैरों को अच्छी तरह धोकर पोंछ लेना चाहिए।
तैल की मालिश करना हितकर है तथा कीट-पतंग एवं मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का उपयोग हितकर है।
अपथ्य आहार-विहार
चावल, आलू, अरबी, भिण्डी तथा पचने में भारी आहार द्रव्यों का प्रयोग, बांसी भोजन, दही, अधिक तरल पदार्थ, शराब आदि का सेवन अहितकर है तथा तालाब एवं नदी के जल का सेवन उचित नहीं है।
दिन में सोना, रात में जागना, खुले में सोना, अधिक व्यायाम, धूप सेवन, अधिक परिश्रम, अधिक सहवास, अज्ञात नदी, जलाशय में स्नान एवं तैरना अहितकर है।

*शरद ऋतुचर्या*

समय - अश्विन, कार्तिक (सितंबर , अक्टूबर) सम्भाविवत राेेग - आयुर्वेद के मत से शरद काल में पित्त का प्रकोप होता है जो शरीर में अग्नि का प्रधान कारक है। अतः ज्वर, रक्तविकार, दाह, छर्दि (उल्टी, कै) सिरदर्द, चक्कर आना, खट्टी डकारें, जलन, रक्त एवं कफ विकार, प्यास, कब्ज, अफरा, अपच, जुकाम, अरुचि आदि विकारों की सम्भावना रहती है। इस ऋतु में विशेष रूप से पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को अधिक कष्ट होता है।

पथ्य आहार-विहार
हल्का भोजन, पेट साफ रखना हितकर है।
मधुर एवं शीतल, तिक्त (कड़वा नीम, करेला आदि), चावल, जौ का सेवन करना चाहिए।
करेला, परवल, तुरई, मैथी, लौकी, पालक, मूली, सिंघाड़ा, अंगूर, टमाटर, फलों का रस, सूखे मेवे, नारियल का प्रयोग करना चाहिए।
इलाइची, मुनक्का, खजूर, घी का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहिए।
त्रिफला चूर्ण, अमलतास का गूदा, छिलके वाली दालें, मसाले रहित सब्जी, गुनगुने पानी के साथ नींबू के रस का सेवन प्रातःकाल, रात्रि में हरड़ का प्रयोग विशेष लाभदायक है।
तैल मालिश, व्यायाम तथा प्रातः भ्रमण, शीतल जल से स्नान करना चाहिए, हल्के वस्त्र धारण करें, रात्रि में चन्द्रमा की किरणों का सेवन करें, चन्दन तथा मुल्तानी मिट्टी का लेप लाभदायक है।
अपथ्य आहार-विहार
मैदे से बनी हुई वस्तुऐं, गरम, तीखा, भारी, मसालेदार तथा तेल में तले हुए खाद्य पदार्थों का उपयोग न करें।
दही एवं मछली का प्रयोग न करें, अमरूद को खाली पेट न खाऐ। कन् द शाक, वनस्पति घी, मूंगफली, भुट्टे, कच्ची ककड़ी, दही आदि का अधिक उपयोग न करें।
दिन में न सोंऐ, मुंह ढककर न सोंए तथा धूप से बचें।

*हेमन्त ऋतुचर्या*

समय- मार्गशीर्ष, पौष (नवम्बर , दिसंबर)

सम्भावित राेेग - वातज रोग, वात-श्लैष्मिक रोग, लकवा, दमा, पांवों में बिवाई फटना, जुकाम आदि।

पथ्य आहार-विहार
शरीर संशोधन हेतु वमन व कुंजल आदि करें।
स्निग्ध, मधुर, गुरु, लवणयुक्त भोजन करें।
घी, तेल तथा उष्ण मोगर, गोंद, मैथी के लड्डू, च्यवनप्राश, नये चावल, आदि का सेवन हितकारी है।
तैल मालिश, उबटन, गुनगुने पानी से नहाना, ऊनी कपड़ों का प्रयोग, सिर, कान, नाक, पैर के तलुओं पर तैल मालिश करें। गरम एवं गहरे रंग के वस्त्र धारण करें। आग तपना एवं धूप सेंकना हितकारी है।
हाथ-पैर धोने के लिए गुनगुने जल का प्रयोग करें। जूते-मौंजे, दस्ताने, टोपी, मफलर, स्कार्फ का प्रयोग करना चाहिए।
अपथ्य आहार-विहार
ठण्डे, वायु बढ़ाने वाली वस्तुओं का सेवन, नपातुला भोजन, बहुत पतला भोजन न करें।
दिन में नहीं सोना चाहिए, अधिक हवादार स्थान में रहना तथा ठण्डी हवा हानिकारक है। खुले पांव नहीं रहना चाहिए तथ हल्के सफेद रंग के वस्त्र न पहने।

प्रेरक कथाएँ

21 Jan, 13:29


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*आयुर्वेद में ऋतुचर्या का विधान सदा स्वस्थ रहने के लिये बताया गया है, तो आओ पूरे वर्ष की ऋतुओं में स्वस्थ रहने की जानकारी सांझा करें जी*
आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी मनुष्य के रोग की चिकित्सा करना है। इस प्रयोजन की सम्पूर्ति हेतु आचार्यो ने दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या का विधान बताया है।

आयुर्वेद में काल को वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। इन ऋतुओं में पृथक-पृथक् चर्या बतायी गयी है। यदि मानव इन सभी का ऋतुओं में बतायी गयी चर्याओ का नियमित व विधिपूर्वक पालन करता है, तो किसी प्रकार के रोग उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती है, अन्यथा अनेक मौसमी बिमारियों से ग्रसित हो जाता है।

मौसम के बदलाव के साथ ही खान-पान में बदलाव जरूरी है, ये बदलाव करके मौसमी-रोगों से बचा जा सकता है।

*शिशिर ऋतुचर्या*

समय - माघ, फाल्गुन (जनवरी, फरवरी)

सम्भावित राेेग - अधिक भूख लगना, होंठ, त्वचा तथा बिवाई फटने लगती है। सर्दी व रूखापन, लकवा, बुखार, खांसी, दमा आदि रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है।

पथ्य आहार-विहार (क्या सेवन करें ?)
विविध प्रकार के पाक एवं लड्डू, अदरक, लहसुन की चटनी, जमींकन्द, पोषक आहार आदि सेवन करें।
दूध का सेवन विशेष रूप से करें।
तैल मालिश, धूप का सेवन, गर्म पानी का उपयोग करें।
ऊनी एवं गहरे रंग के कपड़े, जूते-मौजे आदि से शरीर को ढककर रखें।
अपथ्य आहार-विहार (क्या सेवन न करें ?)
बरसात एवं ठण्डी हवा से बचें।
हल्का, रूखा एवं वायुवर्धक आहार न लें।

*बसन्त ऋतुचर्या*

समय - चैत्र, वैशाख (मार्च , अप्रैल)

सम्भावित राेेग - दमा, खांसी, बदन दर्द, बुखार, कै, अरुचि, जी मिचलाना, बैचेनी, भारीपन, भूख न लगना, अफरा, पेट में गुड़गुड़ाहट, कब्ज, पेट में दर्द, पेट में कीड़े आदि विकार होते है।

पथ्य आहार-विहार
पुराने जौ, गेंहू, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि धानों का आहार श्रेष्ठ है। मूंग, मसूर, अरहर एवं चने की दालें तथा मूली, घीय, गाजर, बथुआ, चौलाई, परवल, सरसों, मेथी, पालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन हितकारी है।
वमन, जलनेति, नस्य एवं कुंजल आदि हितकर है।
परिश्रम, व्यायाम, उबटन और आंखों में अंजन का प्रयोग हितकर है।
शरीर पर चंदन, अगर आदि का लेप लाभदायक है।
शहद के साथ हरड़, प्रातःकालीन हवा का सेवन, सूर्योदय के पहले उठकर योगासन करना एवं मालिश करना हितकर है।
अपथ्य आहार-विहार
नया अन्न, ठण्डे एवं चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे आहार द्रव्य, दही, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नया गुड़, भैंस का दूध एवं सिंघाड़े का सेवन अहितकर है।
दिन में सोना, एक साथ लम्बे समय तक बैठना अहितकर है।

*ग्रीष्म ऋतुचर्या*

समय - ज्येष्ठ, आषाढ़ (मई , जून )

सम्भावित राेेग - रूखापन, दौर्बल्य, लू लगना, खसरा, हैजा, चेचक, कै, दस्त, बुखार, नकसीर, जलन, प्यास, पीलिया, यकृत विकार आदि होने की सम्भावना होती है।

पथ्य आहार-विहार
हल्के, मीठे, चिकनाई वाले पदार्थ, ठण्डे पदार्थ, चावल, जौ, मूंग, मसूर, दूध, शर्बत, दही की लस्सी, फलों का रस, सत्तू, छाछ आदि। संतरा, अनार, नींबू, खरबूजा, तरबूज, शहतूत, गन्ना, नारियल पानी, जलजीरा, प्याज, कच्चा आम (कैरी) आदि का प्रयोग हितकर है।
सूर्योदय से पहले उठना तथा उषःपान हितकर है।
सुबह टहलना, दो बार स्नान, ठण्डी जगह पर रहना, धूप में निकलने से पहले पानी पीना, तथा सिर को ढककर जाना, बार-बार पानी पीते रहना, सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग एवं दिन में सोना अच्छा है।
अपथ्य आहार-विहार
धूप, परिश्रम, व्यायाम, सहवास, प्यास रोकना, रेशमी कपड़े, कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधन, प्रदूषित जल का सेवन अहितकर है।
गरम, तीखे, नमकीन, तले हुए पदार्थ, तेज मसाले, मैदा, बेसन से बने, पचने में भारी खाद्य पदार्थों की ज्यादा मात्रा एवं शराब का सेवन अहितकर है।

*वर्षा ऋतुचर्या*

समय - श्रावण, भाद्रपद (जुलाई , अगस्त )

सम्भावित राेेग - भूख कम लगना, जोड़ों के दर्द, गठिया, सूजन, खुजली, फोड़े-फुंसी, दाद, पेट में कीड़े, नेत्राभिष्यन्द (आंख आना), मलेरिया, टाइफाइड, दस्त और अन्य रोग होने की सम्भावना रहती है।

पथ्य आहार-विहार
अम्ल, लवण, स्नेहयुक्त भोजन, पुराने धान्य (चावल, जौ, गेंहू), घी एवं दूध का प्रयोग, छाछ में बनाई गई बाजरा या मक्का की राबड़ी, कद्दू, बैंगन, परवल, करेला, लौकी, तुरई, अदरक, जीरा, मैथी, लहसुन का सेवन हितकर है।
संशोधित जल का प्रयोग करना चाहिए, कुंआ, तालाब और नदी के जल का प्रयोग बिना शुद्ध किये नहीं करना चाहिए। पानी को उबाल कर उपयोग में लेना श्रेष्ठ है।

प्रेरक कथाएँ

21 Jan, 02:15


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*प्रेरक विचार: तीन महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ*

पं० श्रीशान्तनुबिहारीजी द्विवेदी (स्वामी श्री अखण्डानन्द सरस्वती) जब लौकिक कार्य वश घर से रवाना तो उनकी माताजी ने उन्हें तीन शिक्षाएँ दीं।

पहली - बासी खाना, दूसरी – पलंग पर सोना तथा तीसरी- किले में रहना।

अखण्डानन्दजी महाराज इनका तात्पर्य समझे नहीं और अपनी माँ से पूंछा । मां ने समझाया बेटा! बासी खानेका अर्थ है- इतना अर्थोपार्जन करना कि दूसरे दिन की चिन्ता न रहे। गृहस्थ को हमेशा कल के लिये बचाकर रखना चाहिये, अन्यथा वह लोगों की दृष्टि में हेय हो जाता है, उसे बहुत कष्ट उठाना पड़ता है।

पलंगपर सोने का अर्थ है-खूब परिश्रम करना। परिश्रम करने से शरीर स्वस्थ रहता है। दिन भर अगर परिश्रम होता है तो सोते ही ऐसी नींद आती है—जैसे सुन्दर पलंग पर सोने से। यदि परिश्रम न किया | जाय तो पलंग भी काटने को दौड़ता है। करवट बदलते- बदलते रात बीत जाती है। अतः सर्वदा शारीरिक श्रम भी करते रहना चाहिये। शारीरिक श्रम से ही नींद अच्छी आती है।

किले में रहनेका अर्थ है- सदा सन्त के आश्रय में रहना। किले से भी अधिक सुरक्षा उसे सन्त के सान्निध्य में रहने से प्राप्त हो जाती है। जीवन की सफलता सत्संग में ही है, बिना सत्संग के मनुष्य या तो पशुवत् जीवन व्यतीत करता है अथवा राक्षसी वृत्ति का शिकार हो जाता है। केवल सत्संग में ही यह सामर्थ्य है कि वह मनुष्य को यथार्थ में मनुष्य बना सकता है, मनुष्य-जीवन के उद्देश्य के बारे में ज्ञान प्रदान कर सकता है। सत्संग से ही जीवन का सच्चा आनन्द मिलता है।

माँ के श्रीमुख से व्याख्या सुनकर महाराजजी अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने माताजी के चरण छूकर कहा-माँ, मैं जीवनपर्यन्त आपकी महत्त्वपूर्ण शिक्षाप्रद बातों का ध्यान रखूँगा और वे घर से विदा हो गये।

प्रेरक कथाएँ

20 Jan, 15:39


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*🪷🌹••हरे कृष्ण••🌹🪷*

*इन्सान का मन एक मगरमच्छ की भांति है*

कैसे ?
आइए गजेंद्र मोक्ष के प्रसंग से जानते हैं ...

जिस प्रकार गजेंद्र के पैर को मगरमच्छ ने पकड़ लिया था, उसी प्रकार कई बार हमारी चेतना मगरमच्छ जैसे विचारों के चंगुल में फस जाती है जो हमें कभी नहीं छोड़ती!

विशेष रूप से बहुत ही विकट परिस्थितियों के दौरान हमारा मन परेशानी पैदा करता है और आसान व संभव कार्य भी असंभव महसूस होने लगते हैं। इसी कारण हमारा यह उद्वेगी मन हमारी चेतना को बहुत तंग करता है और हमें पूरी तरह से निराश कर देता है।

हम कितनी भी कोशिश कर लें, लेकिन हमारा मन बार-बार वही सोचता रहता है जो उसे नहीं सोचना चाहिए। स्थिति के इर्द-गिर्द का दर्द और अनिश्चितता हमारे हृदय में ऐसे गहरी उतर जाती है जैसे मगरमच्छ के जबड़ों में गजेंद्र का पैर !

पलायन क्या है?
गजेंद्र ने एक हजार दिव्य वर्षों तक मगरमच्छ से स्वयं को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन अनेकानेक प्रयासों के बावजूद भी और अपने परिवार के सदस्यों की मदद से भी वह उस मगरमच्छ के चंगुल से नहीं बच पाया।

जब उसे यह समझ आई कि वह अपने बल सहित, कोई भी उसकी सहायता नहीं कर सकता, तब गजेंद्र ने अपनी अंतरात्मा से भगवान की प्रार्थना की और एक कमल भगवान के चरणों में अर्पित कर प्रभु की शरण ली। शीघ्र ही भगवान गरुड़ पर प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का गला काटकर गजेंद्र को मुक्त कर दिया।

इसी तरह, हमारे अपने प्रयासों से, हम अपने मन के चुंगल से नहीं निकल सकते। भगवान का पावन नाम ही हमारा एक मात्र सहारा है। नाम और नामी अभिन्न होने के कारण, दोनो हमें मन के चक्रव्यूह से बाहर निकालने की शक्ति रखते हैं।

"मंत्र" शब्द का अर्थ ही यही है - "मनस् त्रायते इति मंत्र" - जो मन से मुक्त कराए।

इस प्रकार जब हम असहाय भाव से भगवान को बुलाते हैं या जाप करते हैं

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*

तब गजेंद्र की तरह, हम अपने मन की खींचा-तानी से पूर्ण रूप से स्वतंत्रता, यानी उसके चुंगल से बचने का अनुभव कर सकते हैं।

*🦚🌹//हरे कृष्ण\\🌹🦚*
*हमारी प्रिय दीदी की और से साभार*

प्रेरक कथाएँ

20 Jan, 05:05


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*प्रेरक कहानी: तराजू .....*
"कभी मेरी भावनाओं का ध्यान नहीं रखते। जब देखो तब बस उन्हें माँ जी की ही चिंता रहती है। मैं भी अब वापस नहीं जाना चाहती वहाँ। रहे अपनी माँ के साथ और खूब सेवा करें।"
ससुराल से लड़-झगड़कर मायके आयी बेटी की भुनभुनाहट विभा जी बड़ी देर से सुन रही थी। बात कुछ खास नहीं थी। वही घर-गृहस्थी के छोटे-मोटे मनमुटाव और खींचतान।
जब बेटी अपनी भड़ास निकालकर चुप हुई तब विभा जी ने बोलना शुरू किया।
"हम जब सब्जी लेने जाते हैं तो जितनी सब्जी चाहिए उसके लिए क्या करते हैं?"
उनके इस अजीबो गरीब सवाल पर बेटी अचकचा गयी-
"तराजू में तुलवाते हैं, और क्या।"
"और सही तोल के लिए क्या करते हैं?" विभा जी ने फिर एक अटपटा प्रश्न किया।
"एक पलड़े में सब्जी तो दूसरे पलड़े में जितनी चाहिए उतने का बाट या वजन रखते हैं।" बेटी झुंझलाकर बोली।
"अगर हमें एक किलो सब्जी चाहिए तो क्या दो सौ ग्राम का बाट रखने से मिल जाएगी?" विभा जी ने एक और प्रश्न किया बेटी से।
"कैसी बचकानी बात कर रही हो माँ, दो सौ ग्राम के बाट रखने से भला एक किलो सब्जी कैसे तुलेगी?" बेटी अब सचमुच झुंझला गयी थी।
"तो फिर बेटी सम्मान और प्यार के सौ ग्राम बाट रखकर तुम किलो भर की आशा कैसे कर सकती हो?" विभा जी गम्भीर स्वर में बोली।
"क्या मतलब...." बेटी हकबका गयी।
"मतलब ये की रिश्ते भी तराजू की तरह होते हैं। दोनो पलड़े संतुलित तभी होंगे जब वजन बराबर होगा" विभा जी बोली।


बेटी उनका मुँह देखने लगी चुप होकर।
"तुम सास को सम्मान और माँ समान प्रेम नहीं देती, पति को सहयोग नहीं करती और चाहती हो तो घर में सब तुम्हे पलकों पर बिठायें, खूब सम्मान दें, तो ऐसा नहीं होता।"
विभा जी ने समझाया तो बेटी का चेहरा उतर गया।
"जितना प्रेम, सम्मान ससुराल वालों से चाहती हो पहले अपने पलड़े में उनके लिए उतना रखो। तभी रिश्तों का तराजू संतुलित रहेगा।"
बेटी की आँखे भर आयी। अपनी गलती वो समझ चुकी थी।
  

प्रेरक कथाएँ

19 Jan, 13:38


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,*🚩॥॥सबसे बड़ा तीर्थ॥॥* 🚩

एक बार एक चोर जब मरने लगा तो उसने अपने बेटे को बुलाकर एक नसीहत दी:-” अगर तुझे चोरी करनी है तो किसी गुरुद्वारा, धर्मशाला या किसी धार्मिक स्थान में मत जाना बल्कि इनसे दूर ही रहना और दूसरी बात अगर कभी पकड़े जाओ, तो यह मत स्वीकार करना कि तुमने चोरी की है, चाहे कितनी भी सख्त मार पड़े”

चोर के लड़के ने कहा:- “सत्य वचन” इतना कहकर वह चोर मर गया और उसका लड़का रोज रात को चोरी करता रहा
एक बार उस लड़के ने चोरी करने के लिए किसी घर के ताले तोड़े, लेकिन घर वाले जाग गए और उन्होंने शोर मचा दिया आगे पहरेदार खड़े थे उन्होंने कहा:- “आने दो, बच कर कहां जाएगा”? एक तरफ घरवाले खड़े थे और दूसरी तरफ पहरेदार
अब चोर जाए भी तो किधर जाए वह किसी तरह बच कर वहां से निकल गया रास्ते में एक धर्मशाला पड़ती थी धर्मशाला को देखकर उसको अपने बाप की सलाह याद आ गई कि धर्मशाला में नहीं जाना लेकिन वह अब करे भी तो क्या करे ? उसने यह सही मौका देख कर वह धर्मशाला में चला गया जहाँ सत्संग हो रहा था.
वह बाप का आज्ञाकारी बेटा था, इसलिए उसने अपने कानों में उंगली डाल ली जिससे सत्संग के वचन उसके कानों में ना पड़ जाए लेकिन आखिरकार मन अडियल घोड़ा होता है, इसे जिधर से मोड़ो यह उधर नही जाता है कानों को बंद कर लेने के बाद भी चोर के कानों में यह वचन पड़ गए कि देवी देवताओं की परछाई नहीं होती उस चोर ने सोचा की परछाई हो या ना हो इस से मुझे क्या लेना देना घर वाले और पहरेदार पीछे लगे हुए थे किसी ने बताया कि चोर, धर्मशाला में है जांच पड़ताल होने पर वह चोर पकड़ा गया.

सिपाही ने चोर को बहुत मारा लेकिन उसने अपना अपराध कबूल नहीं किया उस समय यह नियम था कि जब तक मुजरिम, अपराध ने स्वीकार कर ले तो सजा नहीं दी जा सकती.

उसे राजा के सामने पेश किया गया वहां भी खूब मार पड़ी, लेकिन चोर ने वहां भी अपना अपराध नहीं माना वह चोर देवी की पूजा करता था इसलिए सिपाही ने एक ठगिनी को सहायता के लिए बुलाया ठगिनी ने कहा कि मैं इसको मना लूंगी उसने देवी का रूप भर कर दो नकली बांहें लगाई, चारों हाथों में चार मशाल जलाई और नकली शेर की सवारी की
क्योंकि वह सिपाही के साथ मिली हुई थी इसलिए जब वह आई तो उसके कहने पर जेल के दरवाजे कड़क कड़क कर खुल गए जब कोई आदमी किसी मुसीबत में फंस जाता है तो अक्सर अपने इष्ट देव को याद करता है इसलिए चोर भी देवी की याद में बैठा हुआ था कि अचानक दरवाजा खुल गया और अंधेरे कमरे में एकदम रोशनी हो गई.

देवी ने खास अंदाज में कहा:-” देख भक्त! तूने मुझे याद किया और मैं आ गई| तूने बड़ा अच्छा किया कि तुमने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया अगर तू ने चोरी की है तो मुझे सच-सच बता दे मुझसे कुछ भी मत छुपाना| मैं तुम्हें फौरन आजाद करवा दूंगी..

चोर, देवी का भक्त था अपने इष्ट को सामने खड़ा देखकर बहुत खुश हुआ और मन में सोचने लगा कि मैं देवी को सब सच सच बता दूंगा वह बताने को तैयार ही हुआ था कि उसकी नजर देवी की परछाई पर पड़ गई उसको फौरन सत्संग का वचन याद आ गया कि देवी देवताओं की परछाई नहीं होती उसने देखा कि इसकी तो परछाई है वह समझ गया कि यह देवी नहीं बल्कि मेरे साथ कोई धोखा है.
वह सच कहते कहते रुक गया और बोला:-“ मां! मैंने चोरी नहीं की अगर मैंने चोरी की होती तो क्या आपको पता नहीं होता जेल के कमरे के बाहर बैठे हुए पहरेदार चोर और ठगनी की बातचीत नोट कर रहे थे उनको और ठगिनी को विश्वास हो गया कि यह चोर नहीं है.

अगले दिन उन्होंने राजा से कह दिया कि यह चोर नहीं है राजा ने उस को आजाद कर दिया जब चोर आजाद हो गया तो सोचने लगा कि सत्संग का एक वचन सुनकर मैं जेल से छूट गया हूं अगर मैं अपनी सारी जिंदगी सत्संग सुनने में लगाऊं तो मेरा तो जीवन ही बदल जाएगा अब वह प्रतिदिन सत्संग में जाने लगा और चोरी का धंधा छोड़ कर महात्मा बन गया.

*शिक्षा:-*
कलयुग में सत्संग ही सबसे बड़ा तीर्थ है.
🚩🙏🙏🙏🙏🚩
*हमारी प्रिय दीदी की और से साभार*



               

प्रेरक कथाएँ

19 Jan, 08:28


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*महिलाओं की हार्ट प्रोब्लम् (हृदय रोग)*

*संकेत व बचाव...*

*मौजूदा वैश्विक आंकड़ों के अनुसार हर साल करीब 17.3 मिलियन लोगों की हृदय रोगों के कारण मृत्यु हो जाती है।*
*विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इनमें से लगभग 8.6 मिलियन महिलाएं हैं।*

*आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपना ज्यादातर समय प्रोफेशनल कैरियर संभालने में बिता देती हैं तथा अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाती हैं, जिसके कारण वह हृदय रोग का शिकार हो जाती हैं।*

*हृदय रोग से कैसे बचें महिलाएं..*

*Prevention...*

*हृदय रोग से बचने के लिए अपने स्वास्थ्य की नियमित जाँच करानी चाहिए। इससे किसी भी तरह की समस्या का शुरूआत में ही पता चल जाता है, हालांकि कुछ एहतियात बरतकर भी हृदय रोग से बचा जा सकता है।*

*जो निम्नलिखित हैं...*

*यदि आप धूम्रपान करती हैं तो तुरंत छोड़ दें क्योंकि इससे हाई ब्लड प्रेशर होने की संभावना होती है, जिससे आपको हार्ट अटैक हो सकता है।*

*अगर आप मोटी हैं तो शारीरिक गतिविधियों द्वारा अपने बढ़ते वजन को रोकने का प्रयास करें तथा खाने में केवल पौष्टिक भोजन ही खाएं।*

*खाने में पालक, गाजर, आड़ू और जामुन जैसे एंटीऑक्सीडेंट फलों और सब्जियों का प्रयोग करें।*

*महिलाओं को अपने कोलेस्ट्रॉल के स्तर का खास ध्यान रखना चाहिए...*
*जिन महिलाओं का कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है उनमें हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है।*

*हृदय रोग के लक्षण* *Symptoms...*

*हृदय रोग का पहला लक्षण यह है कि इसमें सीने के बीचो बीच दर्द उठता है तथा कुछ समय बाद बंद हो जाता है और उसके बाद फिर शुरू हो जाता है।*

*व्यक्ति को बेचैनी महसूस होती है, एक या दोनों हाथों में झनझनाहट और दर्द के अलावा पीठ, गर्दन, जबड़े या पेट में दर्द होना भी हृदय रोग के लक्षण हैं।*

*सांस लेने में किसी भी प्रकार की तकलीफ होती है।* *इसके अलावा जी मिचलाना और सिर में लगातार हल्का दर्द रहना भी हृदय रोग का लक्षण है।*

*समय रहते जांच आवश्यक..*

*डॉक्टरों के अनुसार 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अपना नियमित हेल्थ चेकअप अवश्य करवाना चाहिए।*
*मार्केट में कई कंपनियां हृदय रोग की जांच के लिए विशेष पैकेज उपलब्ध करवाती हैं।*

प्रेरक कथाएँ

19 Jan, 02:23


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*प्रेरक विचार: दही-चीनी :पुरानी परंपरा*
आज एक मूवी मे देखा कि हीरो किसी अच्छे और जरूरी काम से जा रहा था तो जाने से पहले उसकी बीवी ने उसे दही-चीनी खिला कर भेजा। ये देख कर ऐसा लगा जैसे पुराने दिनों को किसी खिड़की से झाँक कर देख लिया। बचपन में कोई छोटा सा क्लास टेस्ट भी होता था तो *माँ एक दिन पहले ही दही का इंतेज़ाम कर लेती थी और फिर सुबह सुबह दही शक्कर खिला कर ही भेजती थी स्कूल।* उस समय लगता था की अगर दही चीनी नही खा कर गए तो पक्का टेस्ट में फेल ही हो जायेंगे और ऐसा हुआ भी कि अगर किसी दिन दही चीनी नही खा कर गए, *तो एगजाम अच्छा नही हुआ और घर आकर माँ को उलहाना दिया कि आपने दही खिला कर नही भेजा, इसलिए ऐसा *। आज जब इन सबके बारे में सोचा तो समझ आया कि *कमाल दही-चीनी का नही, बल्कि एक माँ की प्रार्थना और उसके विश्वास का होता था, जो उसे अपने बच्चे पर था। दही खिलाते वक़्त माँ जो हिम्मत देती थी कि देख लेना अब टेस्ट अच्छा ही होगा, उससे ही होंसला मिलता था और हर मुश्किल आसान हो जाती थी।*
अब कितनी भी इंपोर्टेड मीटिंग हो या इंक्रीमेंट का समय, घर से यूँ ही निकल जाते हैं क्यूँकि माँ नही होती साथ में दही चीनी खिलाने को और अपने शब्दों से हिम्मत देने को। कुछ चंद रुपये कमाने की खातिर कितना कुछ पीछे छूटता जा रहा हैं। घर से इतनी दूर नौकरी कर रहे हैं और आत्मनिर्भर तो कहला रहे हैं लेकिन अपने ही साथ नही है। जिंदगी मे आगे तो बढ़ रहे है लेकिन एक मशीन बन कर, एक ही रूटीन में बंध कर।
*अब कुछ भी अच्छा होने पर अपने दोस्तों को किसी महँगे रेस्टोरेंट में पार्टी देने पर भी वो खुशी नही महसूस होती जो खुशी तब महसूस होती थी जब माँ किसी शुभ कार्य पर आटे के बने गुलगुले पड़ोसियों मे बाँटती थी।*
शायद ये हमारे पुराने रिवाज और रस्मे ही है जो इंसान को जीवंत महसूस कराते हैं और इंसान इन छोटी-छोटी बातों में ही खुशियाँ तलाश लेता है।

*सफलता तभी अच्छी लगती है, जब आपके अपने साथ हों और जब आप किसी खास काम के लिए घर से निकले, तो आपको कोई दही-चीनी खिलाने वाला मौजूद हो!*

*🙏🏼जय श्री श्याम : जय श्री कृष्णा 🙏🏼*

प्रेरक कथाएँ

18 Jan, 09:14


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*त्रिफला : एक महाऔषधि*
त्रिफला एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर लोग कब्ज़ दूर करने के लिए करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि यह सिर्फ़ कब्ज़ दूर करने की ही दवा नहीं है बल्कि इसके अनेकों फायदे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में सदियों पहले से त्रिफला का इस्तेमाल होता आया है। त्रिफला चूर्ण को आयुर्वेद में शरीर का कायाकल्प करने वाला रसायन औषधि माना गया है। इस लेख में हम आपको त्रिफला के फायदे और त्रिफला चूर्ण की खुराक के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

Contents

1 त्रिफला क्या है ?
2 त्रिफला चूर्ण बनाने की विधि
3 त्रिफला की सामान्य खुराक
4 त्रिफला के फायदे
4.1 कब्ज़ दूर करने में सहायक
4.2 पेट में गैस की समस्या (एसिडिटी) से राहत
4.3 आंखों के लिए फायदेमंद
4.4 वजन घटाने और मोटापा कम करने में सहायक
4.5 पाचन शक्ति बढ़ाता है
4.6 बालों का झड़ना रोकता है
4.7 भूख बढ़ाता है
4.8 मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभकारी
4.9 गोनोरिया में उपयोगी
4.10 कुष्ठरोग में फायदेमंद
4.11 मलेरिया में लाभकारी
त्रिफला क्या है ?
त्रिफला तीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है। ये तीन जड़ी बूटियों निम्न हैं :

आंवला
बहेड़ा
हरड़
इन तीनों फलों के चूर्ण का मिश्रण ही त्रिफला कहलाता है। इसका सेवन हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।

त्रिफला चूर्ण बनाने की विधि
वैसे तो पतंजलि त्रिफला चूर्ण बाज़ार में आसानी से उपलब्ध है लेकिन अगर आप इसे घर पर भी बनाना चाहें तो इसे आसानी से बना सकते हैं। इसके लिए हरड़ का छिलका, बहेड़े का छिलका और गुठली निकाले हुए आंवला तीनों के 1-1 भाग लेकर उसका बारीक़ चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें और इसका सेवन करें। -(शा. सं.)

त्रिफला की सामान्य खुराक
रात को सोते समय 3 से 9 ग्राम त्रिफला चूर्ण गर्म पानी या दूध के साथ ले सकते हैं। इसके अलावा विषम भाग घी या शहद के साथ भी इसे लिया जा सकता है।

त्रिफला के फायदे
त्रिफला को हर उम्र के लोग रसायन औषधि के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा त्रिफला के नियमित सेवन से पेट से जुड़ी बीमारियों से बचाव होता है। यह औषधि डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसे गंभीर रोगों में भी लाभकारी है। आइये इसके कुछ प्रमुख फायदों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

कब्ज़ दूर करने में सहायक
आयुर्वेद में कब्ज़ को कई गंभीर रोगों की जड़ बताया गया है। अगर आप कब्ज़ से पीड़ित हैं तो आगे चलकर बवासीर, भगंदर जैसी कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। त्रिफला चूर्ण कब्ज़ दूर करने की कारगर औषधि मानी जाती है। यह पुराने कब्ज़ से पीड़ित मरीजों के लिए भी बहुत उपयोगी है।

उपयोग विधि :

कब्ज़ दूर करने के लिए रोजाना रात में सोने से पहले गुनगुने पानी में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

पेट में गैस की समस्या (एसिडिटी) से राहत
कब्ज़ के अलावा पेट से जुड़ी एक और समस्या है एसिडिटी जिससे अधिकांश लोग परेशान रहते हैं। यह समस्या गलत खानपान और अनियमित रहन सहन की वजह से होती है। त्रिफला चूर्ण पेट फूलने, पेट में गैस की समस्या (हाइपरएसिडिटी) आदि सभी रोगों से आराम दिलाता है।

उपयोग विधि :

आधे चम्मच त्रिफला चूर्ण को पानी के साथ रोजाना सुबह दोपहर और शाम को लें।

आंखों के लिए फायदेमंद
बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं कि त्रिफला चूर्ण आखों के लिए भी फायदेमंद है। यह आंखों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ आंखों को अनेक रोगों से बचाता भी है।

उपयोग विधि :

एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात भर के लिए ठंडे पानी में भिगोकर रख दें। अगली सुबह इसे छानकर पानी अलग कर लें और उस पानी से आंखों को अच्छी तरह धोएं। ऐसा करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और आंखों से जुड़े अनेक रोगों से बचाव होता है।

वजन घटाने और मोटापा कम करने में सहायक
अगर आप बढ़ते वजन और मोटापे से से परेशान हैं और इससे जल्दी निजात पाना चाहते हैं तो त्रिफला आपके लिए एक कारगर औषधि हो सकती है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला में ऐसे गुण हैं जो पाचन शक्ति बढ़ाने और वजन घटाने में सहायक है। इसलिए नियमित रूप से त्रिफला चूर्ण का सेवन करें।

उपयोग विधि :

200 एमएल पानी में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण मिलाकर इसे रात भर के लिए रख दें। अगली सुबह इस पानी को तब तक उबालें जब तक यह घटकर आधा ना रह जाए। अब इस बचे मिश्रण को 2 चम्मच शहद के साथ लें। नियमित रूप से इसका सेवन करने पर कुछ ही हफ़्तों में मोटापा कम होने लगता है।

प्रेरक कथाएँ

18 Jan, 09:14


पाचन शक्ति बढ़ाता है
पाचन शक्ति कमजोर होने से कई बीमारियां का खतरा बढ़ जाता है। आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला में ऐसे गुण हैं जो पाचन शक्ति को मजबूत बनाते हैं और पेट संबंधी रोगों का खतरा कम करते हैं। इसलिए अगर आपकी पाचन शक्ति कमजोर है तो चिकित्सक की सलाह लेकर त्रिफला का सेवन शुरू कर दें।

बालों का झड़ना रोकता है
आजकल अधिकांश लोग बाल झड़ने की समस्या से परेशान रहते हैं और रोज बालों को झड़ने से रोकने के नए तरीके आजमाते रहते हैं। लेकिन अगर आप आयुर्वेद की मदद लें तो बाल झड़ने की समस्या से निजात पा सकते हैं। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार त्रिफला चूर्ण के सेवन से बालों का गिरना काफी हद तक कम किया जा सकता है।

उपयोग विधि :

2-5 ग्राम त्रिफला चूर्ण को 125 एमएल लौह भस्म में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम को सेवन करें।

भूख बढ़ाता है
त्रिफला में आंवला, हरड़ और बहेड़ा होता है और ये तीनों ही फल पेट के लिए बहुत लाभदायक होते हैं। यही वजह है कि पेट से जुड़ी लगभग सभी समस्याओं के लिए त्रिफला चूर्ण सर्वोतम औषधि मानी जाती है। आयुर्वेद में इसके गुणों का उल्लख करते हुए लिखा गया है कि इसके सेवन से भूख और पाचन शक्ति बढ़ती है। इसलिए यदि आपको भूख कम लगती है या कमजोर पाचन शक्ति है तो त्रिफला चूर्ण का नियमित सेवन करें।

मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभकारी
त्रिफला चूर्ण मूत्र संबंधी समस्याओं में भी उपयोगी है। इसके सेवन से रूक-रूक कर पेशाब आना, पेशाब में जलन आदि समस्याओं से आराम मिलता है।

उपयोग विधि :

त्रिफला, अनार और चिरौंजी का साथ में सेवन मूत्र संबंधी समस्याओं में उपयोगी है।

गोनोरिया में उपयोगी
गोनोरिया एक यौन संचारित बीमारी है जो बैक्टीरिया संक्रमण के कारण होती है। यह बीमारी पुरुषों और महिलाओं दोनों को हो सकती है। त्रिफला चूर्ण गोनोरिया के इलाज में उपयोगी है। हालांकि गोनोरिया के लिए त्रिफला चूर्ण का सेवन चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करें।

कुष्ठरोग में फायदेमंद
कुष्ठरोग त्वचा से संबंधित एक समस्या है जिसमें त्वचा पर सफ़ेद दाग , गांठे या घाव होने लगते हैं। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार कुष्ठरोग में त्रिफला का सेवन लाभकारी होता है। अगर आप कुष्ठरोग से पीड़ित हैं तो चिकित्सक की सलाह अनुसार त्रिफला चूर्ण का सेवन करें।

मलेरिया में लाभकारी
गर्मियों और मानसून के मौसम में मलेरिया का प्रकोप काफी बढ़ जाता है। मच्छरों से फैलने वाली यह बीमारी बच्चों में बहुत ज्यादा होती है। त्रिफला चूर्ण मलेरिया में होने वाले बुखार से आराम दिलाने में सहायक है। इसका सेवन किसी भी उम्र के लोग कर सकते हैं।

उपयोग विधि

त्रिफला से तैयार काढ़े की 20 एमएल मात्रा का सेवन करना मलेरिया में लाभकारी माना जाता है।

अब आप त्रिफला के फायदों से भलीभांति परिचित हो चुके हैं। इस बात का ध्यान रखें कि यदि आप त्रिफला का इस्तेमाल किसी गंभीर बीमारी के इलाज में कर रहे हैं तो चिकित्सक के परामर्श अनुसार ही इसका सेवन करें।

प्रेरक कथाएँ

18 Jan, 03:40


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*प्रेरक जानकारी: लोहार्गल जहां पानी से गल गए थे पांडवों के अश्त्र शस्त्र?*
राजस्थान के शेखावटी इलाके के झुंझुनूं जिले से 70 कि. मी. दूर अरावली पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस कि.मी. की दूरी पर स्थित है लोहार्गल। जिसका अर्थ होता है जहां लोहा गल जाए।

यह राजस्थान का पुष्कर के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ है। इस तीर्थ का सम्बन्ध पांडवो, भगवन परशुराम, भगवान सूर्य और भगवान विष्णु से है।

यहाँ गले थे पांडवों के हथियार महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने परिजनों की हत्या के पाप से चिंतित थे। लाखों लोगों के पाप का दर्द देख श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा।

घूमते-घूमते पाण्डव लोहार्गल आ पहुँचे तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गये। इसके बाद शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधि से विभूषित किया।

यहां प्राचीन काल से निर्मित सूर्य मंदिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई।

राजा ने भूत-भविष्य के ज्ञाताओं को बुलाकर उसके पिछले जन्म के बारे में पूछा। तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व के जन्म में वह लड़की मर्कटी अर्थात बंदरिया थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया, क्योंकि बंदरिया का मांस अभक्ष्य होता है।

हवा और धूप के कारण वह सूख कर लोहार्गल धाम के जलकुंड में गिर गई किंतु उसका एक हाथ पेड़ पर रह गया। बाकी शरीर पवित्र जल में गिरने से वह कन्या के रूप में आपके यहाँ उत्पन्न हुई है।

विद्वानों ने राजा से कहा, आप वहां पर जाकर उस हाथ को भी पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया।

जिससे उनकी पुत्री का हाथ स्वतः ही ठीक हो गया। राजा इस चमत्कार से अति प्रसन्न हुए। विद्वानों ने राजा को बताया कि यह क्षेत्र भगवान सूर्यदेव का स्थान है। उनकी सलाह पर ही राजा ने हजारों वर्ष पूर्व यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया।

भगवान विष्णु ने लिया था मतस्य अवतार यह क्षेत्र पहले ब्रह्मक्षेत्र था। माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने शंखासूर नामक दैत्य का संहार करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। शंखासूर का वध कर विष्णु ने वेदों को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसके बाद इस जगह का नाम ब्रह्मक्षेत्र रखा।

परशुराम जी ने भी किया था यहां प्रायश्चित।

विष्णु के छठें अंशअवतार भगवान परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था, लेकिन शान्त होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्होंने यहां आकर पश्चाताप के लिए यज्ञ किया तथा पाप मुक्ति पाई थी।

यहाँ एक विशाल बावड़ी भी है जिसका निर्माण महात्मा चेतनदास जी ने करवाया था। यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। पहाड़ी पर सूर्य मंदिर के साथ ही वनखण्डी जी का मन्दिर है। कुण्ड के पास ही प्राचीन शिव मन्दिर, हनुमान मन्दिर तथा पाण्डव गुफा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढ़ियाँ चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किए जा सकते हैं।

श्रावण मास में भक्तजन यहाँ के सूर्यकुंड से जल से भर कर कांवड़ उठाते हैं। यहां प्रति वर्ष माघ मास की सप्तमी को सूर्यसप्तमी महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें सूर्य नारायण की शोभायात्रा के अलावा सत्संग प्रवचन के साथ विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।

मालकेतु बाबा की चौबीस कोसी परिक्रमा भाद्रपद मास में श्रीकृषण जन्माष्टमी से अमावस्या तक प्रत्येक वर्ष लोहार्गल के पहाडो में हज़ारों लाखों नर-नारी 24 कोस की पैदल परिक्रमा करते हैं जो मालकेतु बाबा की चौबीस कोसी परिक्रमा के नाम से प्रसिद्ध है।

पुराणों में परिक्रमा का महात्म्य अनंत फलदायी बताया है। अब यह परिक्रमा और ज्यादा प्रासंगिक है। हरा-भरा वातावरण। औषधि गुणों से लबरेज पेड़-पौधों से आती शुद्ध-ताजा हवा और ट्रैकिंग का आनंद यहां है। और फिर खुशहाली की कामना से अनुष्ठान तो है ही। अमावस्या के दिन सूर्यकुण्ड में पवित्र स्नान के साथ यह परिक्रमा विधिवत संपन्न होती है।

प्रेरक कथाएँ

16 Jan, 13:31


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*भगवत दर्शन प्राप्त भाई जी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार*

*भगवत दर्शनोंकी उत्कंठा*

भाईजी के मन में भगवत दर्शनों की तीव्र उत्कंठा थी सेठ जय दयालजी उस समय बिहार में थे और उन्होंने पोद्दार जी को वही बुला लिया । सेठजी, पोद्दारजी और घनश्याम जालान जी के कहने पर भाईजीको एक निर्जन स्थान पर ले गए और उनको बैठा कर बोले कि भगवान का ध्यान करो । थोड़ी ही देर में भाई जी को एक दिव्य प्रकाश उदय होने की अनुभूति हुई और ध्यान में ही बे बोल पड़े मुझे दर्शन हो रहे हैं। और इस प्रकार उन्हें उस दिव्या आनंद की प्राप्ति हुई इसके बाद अनेकों बार सेठजी के सत्संग में उन्हें भगवत दर्शनों के अनुभव प्राप्त होती रहे । इसके बाद भाईजी गोरखपुर लौट आए और उन्होंने अपने मन में यह निश्चय कर लिया कि अब उनका संपूर्ण जीवन भगवानकी सेवा और प्रचारके लिए है।

*भगवानकी लीलाओंके दर्शन*

जो महान कार्य पोद्दार जी ने गीता प्रेस गोरखपुर के लिए किया वह अतुलनीय है श्रीजयदयाल गोयन्दकाजी ने सन 1923 में गीताप्रेस की स्थापना की और उसके बाद ही हनुमान प्रसाद पोद्दारजी ने दिव्य प्रेरणा से सैकड़ों ग्रंथों का निर्माण किया और उचित मूल्य पर घर-घर पहुंचाया ।

भाईजीके जीवन में भगवान की लीलाओं के उन्हें दर्शन होते रहते थे कभी उनकी धर्मपत्नी भोजन ले कर आती तो भोजन करने के लिए बैठते और ध्यान लग जाता, भगवान की लीला में डूब जाते समाधि लग जाती भोजन रखा ही रह जाता पूरा पूरा दिन निकल जाता रात्रि निकल जाती कल्याण पत्रिका के संपादन काल के दौरान जब उन्हें कहीं कोई बात समझ में नहीं आती तो है जिस देवी-देवता का स्मरण करते वही प्रकट होकर उन्हें समस्या से बाहर निकालता महर्षि अंगिराजी और देवऋषि नारदजी उन्हें सत्संग देने आते थे ।

*राधाबाबा को श्रीकृष्ण दर्शन*

महान विभूति राधाबाबाजी का जन्म बिहार के गया नामक स्थान में ब्राह्मण परिवार में हुआ था । गीता प्रेस के संस्थापक श्रीजयदयाल गोयन्दकाजीसे ये कोलकाता में उनके एक शिविर में मिले । बाबा गीता वाटिका आए थे । श्रीमद्भगवद्गीताजी पर टीका लिखने के लिए । एक दिन राधा बाबा श्रीकृष्णके प्रेम में व्याकुल होकर वृंदावन जाना चाहते थे उन्होंने भाईजी से कहा ! हम वृंदावन जाना है भाईजी बोले ! पल पल पर मूर्छित हो जाना, गाना, लीला में डूब जाना ये तो तुम्हारी दशा है वहां तुम्हें कौन संभालेगा इसलिए यहीं पर रहकर साधन भजन करो । राधा बाबा जी बोले ! कि नहीं आप हमें पहले भी कई बार मना कर चुके हैं अब हम नहीं मानेंगे ज्यादा से ज्यादा आप हमारी टिकट नहीं बनवाएंगे क्यों बाबाजी पैसों को हाथ नहीं लगाते थे, किसी को साथ नहीं भेजेंगे तो मत भेजिए हम रास्ता पूछ कर पैदल ही चले जाएंगे ।

भाव भाव में बात बढ़ गई भाईजी मुस्कुराते हुए बोले अच्छा ठीक है देखते हैं हम भी आप कैसे जाते हैं । रात में राधाबाबा फिरसे व्याकुल हुए और रोने लगे उसी समय साक्षात भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट होकर बोले ! बाबा क्यों रो रहे हो तुम वृंदावन जाना चाहते हो न बाबा तुम नहीं जानते पोद्दारजी का शरीर चलता फिरता वृंदावन है इसमें मैं नित्य निरंतर विहार करता रहता हूं पोद्दार जी का हृदय मेरा निकुंज लीला स्थान है । ऐसे चलते फिरते वृंदावन को छोड़कर आप वहां जाना चाहते हैं इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण अंतर्धान हो गए इसके पश्चात तो बाबा रोने लगे पूरी रात उन्होंने रोकर बिताई और सुबह होते ही भाईजीके पास पहुंच गए । भाईजीने उन्हें प्रणाम किया तो बोले अब आप हमें प्रणाम न करें हमारी समझ में आ चुका है कि आप किस महान राज को छुपाए बैठे हैं इसलिए आपको लोग पोद्दार महाराज कहते हैं।

*श्रीकृष्ण प्रेरणा से राधाबाबाकी प्रतिज्ञा*

और अब मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक आप विराजमान रहेंगे तब तक आपके चरणों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा और जब आपका यह शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाएगा तो जहां आपके शरीरका संस्कार किया जाएगा अपने जीवनकी अंतिम सांस तक मैं वही निवास करूंगा । और हुआ भी ऐसा ही जब भाई जी का शरीर शांत हुआ तो उनका संस्कार राप्ती नदी पर ना करके गीता वाटिका में किया गया वह इसीलिए क्योंकि सब लोगों ने यह विचार किया कि राधाबाबा जैसी महान विभूति शमशान में कुटिया बनाकर निवास करें क्योंकि उनका प्रण था कि भाईजी का संस्कार जहां होगा वही पर वह अपने प्राण त्यागेंगे यह ठीक नहीं है इसलिए भाई जी का अंतिम संस्कार गीता वाटिका में बाबा की कुटिया के ठीक सामने किया गया ।

*राधाबाबाका प्रारब्ध भाईजी द्वारा स्वयं भोगना*

प्रेरक कथाएँ

16 Jan, 13:31


एक बार नंद नंदन भगवान श्रीकृष्ण साक्षात प्रकट होकर राधा बाबा से बोले ! पोद्दारजी जो 3 वर्ष से पाइल्स बीमारी का कष्ट भोग रहे वह आपके प्रारब्ध का कष्ट था परंतु उन्होंने उसे स्वयं भोगने के लिए ले लिया यह बात सुनकर राधा बाबा को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह तुरंत भाईजी के पास गए और कहने लगेग आपने मेरे प्रारब्ध को अपने ऊपर क्यों ले लिया है ।

भाईजी बोले ! कैसा प्रारब्ध ?

तो राधा बाबाजी कहने लगे कि मुझे साक्षात श्रीकृष्ण ने प्रकट होकर ये बात बताई है ,भाईजी ने मुस्कुराकर कहा ! कि क्या तुममें और मुझमें कोई अंतर है क्या तुम कोई अंतर मानते हो ?

श्री राधाबाबाजी कहते थे कि जब बे पहली बार भाईजी से मिले तो भाईजीने उनके चरणों को ज्योंही अपने हाथों से स्पर्स किया राधा बाबाजी के पूरे शरीर में एक दिव्य कंपन सा हुआ और उन्हें ऐसा अनुभव हुआ जैसे वह गोपियों के बीच में बैठे हुए है । ऐसी प्रेम की पराकाष्ठा को पहुंचे हुए भक्ति के परमाणु भाई जी के शरीर में थे।

*प्रेत को मुक्त कराना*

एक बार जब भाईजी मुंबई में रहा करते थे तबकी यह घटना है वह नित्य साधन करने के लिए चौपाटी क्षेत्र जो समुद्रके किनारे पड़ता है वहां एकांत में माला जपने के लिए जाते थे वह हरे राम महामंत्र की 40 मालाएं अपने उस युवा काल में जपते थे । माला जपने के बाद ज्यों ही उठने के लिए उद्यत हुए उन्हेंने देखा कि सामने कोई व्यक्ति खड़ा हुआ है, कुछ क्षण तो भाईजी देखते रहे फिर उन्होंने कहा कि भाई आप कौन हो यहां क्यों खड़े हुए हो अपना परिचय दो वह व्यक्ति बोला कि हम अपना परिचय देंगे तो आप डर सकते हैं, हम प्रेत हैं भाईजी कुछ संशय पूर्ण वाणी से बोले ! प्रत हो कहां रहते हो ? प्रेतबोला हम यही मुंबई के ही प्रेत हैं और पारसी धर्म से।

हमारा पिंडदान श्राद्ध आदि तर्पण क्रियाएं नहीं की गई इसलिए प्रेत योनि प्राप्त हुई है भाई जी ने कहा कि आपके धर्म में तो श्राद्ध तर्पण पिंडदान की क्रियाएं होती नहीं फिर तू प्रेत बोला कि यह मृत्युलोक की कल्पनाएं हैं यहां ऐसा नहीं है । जिन मनुष्यों की सनातन धर्म की वैदिक पद्धतियों के अनुसार क्रियाएं होती हैं उन्हीं को मुक्ति प्राप्त होती है भाईजीने कहा तो आप हमसे क्या चाहते हैं प्रेत बोला कि आप समर्थ हैं इसलिए हम आपके पास आए हैं हमारा संस्कार वैदिक पद्धतियों के अनुसार नहीं किया गया इसलिए हमें प्रेत योनि प्राप्त हुई है यदि आप हमारा किसी वेद पाठी ब्राह्मण से गया में श्राद्ध करा देते हैं तो हमें मुक्ति प्राप्त हो जाएगी भाई जी बोले कि ऐसा करने से आपको मुक्ति मिल जाएगी तो हम अवश्य ही यह क्रिया आपके निमित्त कराएंगे,परंतु मुक्ति प्राप्त हो तो आप हमको अनुभव अवश्य कराकर जाइए जिससे हमें पता चले कि हमारे द्वारा कराई हुई क्रिया से आपको कोई लाभ प्राप्त हुआ ।
प्रेत बोला ठीक है आप हमें मुक्त करा दीजिए।

भाईजी ने एक वेदपाठी ब्राह्मणको गया(बिहार) स्थान में उस प्रेत की क्रिया के निमित्त कुछ द्रव्य देकर भेज दिया जिस दिन वहां पर क्रिया संपन्न हुई उसी दिन की बात है भाई जी रोजाना की तरह चौपाटी क्षेत्र में संध्या कर रहे थे महामंत्र जप रहे थे उसी समय वह प्रेत प्रसन्न मुद्रा में आ कर बोला कि आपके कारण आज हमारी प्रेतत्व से मुक्ति हो गई और हम स्वर्ग को जा रहे है।

*तीर्थांक का प्रकाशन*

बहुत से भक्तों की अभिलाषा थी कि जनवरी 1957 का कल्याण का अंक तीर्थांक हो इसके लिए बहुतसे साधु-संतों, महात्माओं से जानकारी मांगी गई परंतु पर्याप्त जानकारी ना मिल सकी, अतः सेठ जी ने सुझाव दिया कि भाईजी आप स्वयं ही तीर्थों पर जाकर जानकारी एकत्रित करें इसके पश्चात सैकड़ों भक्तों के साथ भाई जी स्वयं सभी तीर्थों पर जाकर जानकारी एकत्रित की ओर तीर्थक निकाला ।

श्रद्धेय श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दारजी (भाई जी) एवं राधा बाबा जी को दंडवत प्रणाम🙏

🙏हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

******
*हमारी प्रिय दीदी की और से साभार*

प्रेरक कथाएँ

16 Jan, 08:13


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*GyLT प्रेरक जानकारी: विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया !*
विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया !
हम तो फिर भी कहेंगे और सब कहते हैं कि विज्ञान बहुत तरक्की कर रहा है पर बीमारी घटने के बजाय बढ़ कैसे रही है ?
हर घर में कोई ना कोई दवाई क्यों खा रहा है? नहीं पता न ?

मैं बताता हूँ, हुआ ये है कि हमारे रसोई की मूलभूत चीजों में बहुत मिलावट, गिरावट और घटियापन आ गया है।
कौन कौन सी हैं वो चीजें ?
1. नमक
2. गुड़
3. तेल
4. घी
5. दूध
6. आटा
7. पानी
8. शक्कर

जी हाँ बस इन चीजों में सुधार कीजिये और 6 महीनो में फर्क देखिये।
1. सब से पहले समुंद्री नमक- आयोडीन नमक को बदल के सेंधा नमक (रॉक सॉल्ट) कर दीजिये, वो भी बड़े टुकड़े लाके घर में ही कूट लें और हाँ नमक केवल रसोई बनाते वक्त ही डालें। टेबल पे रख के भोजन के समय डालने की आदत छोड़ें।

2. गुड़ हमेशा डार्क चॉकलेट कलर का ही लायें।सफ़ेद गुड़ में मिलावट होती है।
.
3. Refined oil के बदले घानी का फिल्टर तेल ही खायें, वो भी मुंगफली, तिल या सरसों; कोई अन्य नहीं।

4. घी असली वो है जो देसी गाय के दूध से दहीं, दहीं से मख्खन और मख्खन से बनता है। सीधे मलाई निकाल के या विदेशी गाय के दूध से जो बनता है, वो बटर आयल है, घी नहीं।
.
5. दूध पिओ तो केवल देसी गाय का, नहीं तो पिओगे ही नहीं तो कोई नुकसान नहीं है।

6. आटा हमेशा मोटा पिसवाओ और बिना चोकर निकले प्रयोग में लाओ। मैदा कभी ना खायें।

7. पानी हमेशा मटके का या गुनगुना ही पीओ। ठंडा फ्रिज का पानी कभी नहीं पीना।
.
8. चीनी सफ़ेद जहर है। उसकी जगह गुड़ ही खायें या शक्कर जो थोड़ी पीली होती है। बड़े टुकडों में मिलती है, उसे प्रयोग करें।

अब आप कहेंगे इतना कुछ कौन करेगा ? टाइम नहीं है, तो टेंसन नहीं लेने का, मस्त से जियो,
कुछ नहीं होता है।

तो दोस्तों, आस-पास के जो लोग गोलियां खा रहे हैं, वो भी ऐसा ही सोचते थे लेकिन
अब वो हॉस्पिटल में डॉक्टर के चक्कर काटने में टाइम निकाल ही रहे हैं।

थोड़ा सा बदलाव और सेहत बनाओ।

प्रेरक कथाएँ

16 Jan, 02:21


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*प्रेरक जानकारी: क्यो, हिंदू धर्म में किए जाने वाले विभिन्न धार्मिक कर्म-कांडों में अक्सर कुश (विशेष प्रकार की घास) का उपयोग किया जाता है।*
कुशा को सामन्य घास समझा जाता है उसका बहुत ही बड़ा महत्व है , कुशा के अग्र भाग जो कि बहुत ही तीखा होता है इसीलिए उसे कुशाग्र कहते हैं l

तीक्ष्ण बुद्धि वालो को भी कुशाग्र इसीलिए कहा जाता है.

कुशा नारियों की सुरक्षा करनें में राम बाण है जब लंकेश माँ सीता का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका ले गया , उसके बाद वह बार बार उन्हें प्रलोभित करने जाता था और माता सीता इस कुशा को अपना सुरक्षा कवच बनाकर उससे बात करती थी , जिसके कारण रावण सीता के निकट नहीं पहुँच सका l

आज भी मातृ शक्ति अपने पास कुशा रखे तो अपने सतीत्व की रक्षा सहज रूप से कर सकती है क्योंकि कुशा में वह शक्ति विद्यमान है जो माँ बहिनों पर कुदृष्टि रखने वालों को उनके निकट पहुंचने भी नहीं देती l

जो माँ या बहिन मासिक विकार से परेशान है उन्हें कुशा के आसन और चटाई का विशेष दिनों में प्रयोग करना चाहीये .

पूजा-अर्चना आदि धार्मिक कार्यों में कुश का प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। यह एक प्रकार की घास है, जिसे अत्यधिक पावन मान कर पूजा में इसका प्रयोग किया जाता है।

महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं। एक का नाम कद्रू था और दूसरी का नाम विनता। कद्रू और विनता दोनों महर्षि कश्यप की खूब सेवा करती थीं।

महर्षि कश्यप ने उनकी सेवा-भावना से अभिभूत हो वरदान मांगने को कहा। कद्रू ने कहा, मुझे एक हजार पुत्र चाहिए। महर्षि ने ‘तथास्तु’ कह कर उन्हें वरदान दे दिया। विनता ने कहा कि मुझे केवल दो प्रतापी पुत्र चाहिए। महर्षि कश्यप ने उन्हें भी दो तेजस्वी पुत्र होने का वरदान देकर अपनी साधना में तल्लीन हो गए।

कद्रू के पुत्र सर्प रूप में हुए, जबकि विनता के दो प्रतापी पुत्र हुए। किंतु विनता को भूल के कारण कद्रू की दासी बनना पड़ा।

विनता के पुत्र गरुड़ ने जब अपनी मां की दुर्दशा देखी तो दासता से मुक्ति का प्रस्ताव कद्रू के पुत्रों के सामने रखा। कद्रू के पुत्रों ने कहा कि यदि गरुड़ उन्हें स्वर्ग से अमृत लाकर दे दें तो वे विनता को दासता से मुक्त कर देंगे।

गरुड़ ने उनकी बात स्वीकार कर अमृत कलश स्वर्ग से लाकर दे दिया और अपनी मां विनता को दासता से मुक्त करवा लिया।

यह अमृत कलश ‘कुश’ नामक घास पर रखा था, जहां से इंद्र इसे पुन: उठा ले गए तथा कद्रू के पुत्र अमृतपान से वंचित रह गए।

उन्होंने गरुड़ से इसकी शिकायत की कि इंद्र अमृत कलश उठा ले गए। गरुड़ ने उन्हें समझाया कि अब अमृत कलश मिलना तो संभव नहीं, हां यदि तुम सब उस घास (कुश) को, जिस पर अमृत कलश रखा था, जीभ से चाटो तो तुम्हें आंशिक लाभ होगा।

कद्रू के पुत्र कुश को चाटने लगे, जिससे कि उनकी जीभें चिर गई इसी कारण आज भी सर्प की जीभ दो भागों वाली चिरी हुई दिखाई पड़ती है.l

‘कुश’ घास की महत्ता अमृत कलश रखने के कारण बढ़ गई और भगवान विष्णु के निर्देशानुसार इसे पूजा कार्य में प्रयुक्त किया जाने लगा।

जब भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर समुद्रतल में छिपे असुर हिरण्याक्ष का वध कर दिया और पृथ्वी को उससे मुक्त कराकर बाहर निकले तो उन्होंने अपने बालों को फटकारा। उस समय कुछ रोम पृथ्वी पर गिरे। वहीं कुश के रूप में प्रकट हुए।

कुश ऊर्जा की कुचालक है। इसलिए इसके आसन पर बैठकर पूजा-वंदना, उपासना या अनुष्ठान करने वाले साधक की शक्ति का क्षय नहीं होता। परिणामस्वरूप कामनाओं की अविलंब पूर्ति होती है।

वेदों ने कुश को तत्काल फल देने वाली औषधि, आयु की वृद्धि करने वाला और दूषित वातावरण को पवित्र करके संक्रमण फैलने से रोकने वाला बताया है।

कुश का प्रयोग पूजा करते समय जल छिड़कने, ऊंगली में पवित्री पहनने, विवाह में मंडप छाने तथा अन्य मांगलिक कार्यों में किया जाता है। इस घास के प्रयोग का तात्पर्य मांगलिक कार्य एवं सुख-समृद्धिकारी है, क्योंकि इसका स्पर्श अमृत से हुआ है।

हिंदू धर्म में किए जाने वाले विभिन्न धार्मिक कर्म-कांडों में अक्सर कुश (विशेष प्रकार की घास) का उपयोग किया जाता है। इसका धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक कारण भी है।

कुश जब पृथ्वी से उत्पन्न होती है तो उसकी धार बहुत तेज होती है। असावधानी पूर्वक इसे तोडऩे पर हाथों को चोंट भी लग सकती है।

पुरातन समय में गुरुजन अपने शिष्यों की परीक्षा लेते समय उन्हें कुश लाने का कहते थे। कुश लाने में जिनके हाथ ठीक होते थे उन्हें कुशल कहा जाता था अर्थात उसे ही ज्ञान का सद्पात्र माना जाता था।

प्रेरक कथाएँ

16 Jan, 02:21


वैज्ञानिक शोधों से यह भी पता चला है कि कुश ऊर्जा का कुचालक है। इसीलिए सूर्य व चंद्रग्रहण के समय इसे भोजन तथा पानी में डाल दिया जाता है जिससे ग्रहण के समय पृथ्वी पर आने वाली किरणें कुश से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं तथा भोजन व पानी पर उन किरणों का विपरीत असर नहीं पड़ता।

पांच वर्ष की आयु के बच्चे की जिव्हा पर शुभ मुहूर्त में कुशा के अग्र भाग से शहद द्वारा सरस्वती मन्त्र लिख दिया जाए तो वह बच्चा कुशाग्र बन जाता है।

कुश से बने आसन पर बैठकर तप, ध्यान तथा पूजन आदि धार्मिक कर्म-कांडों से प्राप्त ऊर्जा धरती में नहीं जा पाती क्योंकि धरती व शरीर के बीच कुश का आसन कुचालक का कार्य करता है

प्रेरक कथाएँ

11 Jan, 02:32


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*प्रेरक कहानी: मरना नही है मुझे*
रामदयाल इस बड़ी दुनिया में अकेले रह गए थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। वह दो-चार दिन ही बीमार रहीं। मोहल्ले वाले उन्हें अस्पताल ले गए। उन्होने ही भाग-दौड़ की। रामदयाल खुद बीमार थे। उनका लड़का मुंबई में रहता है। कई वर्षों से घर नहीं आया था। मां की मृत्यु का समाचार मिलने पर उसने जवाब भेज दिया-‘बहुत उलझा हुआ हूं, फुरसत होने पर आऊंगा।‘
पत्र पाने वाली रात रामदयाल तकिए में मुंह गड़ाकर कितना रोए-कहना कठिन है। उनकी खुद की उम्र पैंसठ वर्ष हो गई थी। अब उन्हें हरदम लगता था जैसे दुनिया में उनके लिए कुछ भी शेष नहीं रहा है। पड़ोसियों ने उनका बहुत ख्याल रखा। हर समय कोई-न-कोई उनके पास मौजूद रहता। लेकिन फिर भी रामदयाल की उदासी बढ़ती गई। वह जितना सोचते, यह विश्वास पक्का होता जाता कि अब इस दुनिया में रहना बेकार है। और एक सुबह घूमने के लिए निकले तो फिर लौटे नहीं। उनके कदम शहर से बाहर की ओर चलते चले गए।
एक बस आगे की तरफ जा रही थी। रामदयाल बस में बैठ गए। कई घंटे की यात्रा के बाद जब बस एक घने जंगल में से गुजर रही थी, तो वह पेशाब करने के लिए नीचे उतरे और एक दिशा में बढ़ गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने बस के भोंपू की आवाज सुनी। ड्राइवर उन्हें जल्दी करने को कह रहा था, लेकिन रामदयाल बाबू वहीं खड़े रहे। उन्होंने न लौटने का फैसला किया था। वह वन में खो जाना चाहते थे।
उस घने जंगल में दिन में भी पेड़ों के नीचे हल्का अंधेरा था। हर तरफ सुनसान। पत्तों में सांय-सांय हवा। रामदयाल बाबू को जैसे होश नहीं था। झाडि़यों में अटकते, उलझते बढ़ रहे थे, पता नहीं किधर। धूप तेज हुई तो प्यास से गला सूखने लगा। अब वह एक ऊंचे कगार की ओर बढ़ रहे थे-आंखों के सामने एक दृश्य तैर रहा था-वह हवा में हाथ-पैर मारते हुए नीचे घाटी की ओर गिरे जा रहे हैं।
और फिर एकाएक उनके कदम रुक गए। जहां ढलान नीचे घाटी की ओर खुलता था, वहां दो लकडि़यां लगाकर रास्ता बंद किया था, वहां मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था-‘सावधान।’ रामदयाल बाबू ने इधर-उधर देखा पर कोई नजर नहीं आया। उनकी समझ में न आया कि
लोगों को सावधान रहने की बात किसने लिखी। उन्होंने जरा बढ़कर झांका तो देखा आगे गहरी खाई थी। वह पीछे हट आए-न जाने क्यों उनका मन कांप उठा। वह एक तरफ बैठ गए। कुछ देर पहले रामदयाल आत्महत्या के लिए तैयार थे, लेकिन अब कुछ-कुछ डर लग रहा था।
वह कुछ देर आंखें मूंदे बैठे रहे, फिर उठे। प्यास से गला खुश्क हो रहा था, लेकिन वहां भला पानी कहां मिलता। तभी उन्होंने देखा पास ही पत्थर की कूंडी में पानी भरा है। वहीं कुछ फल भी रखे दिखाई दिए। कुछ देर सोचते खड़े रहे-पिएं या न पिएं, फिर प्यास ने जोर मारा तो गटागट पानी पी गए। वहां रखे फल भी खा लिए। अब जाकर चित्त कुछ ठिकाने हुआ, लेकिन एक बात रह-रहकर परेशान कर रही थी-यह सब किसने किया है। यहां तो कोई नजर नहीं आता। कौन है वह?
रामदयाल के मन से आत्महत्या का विचार निकल गया। वह जंगल में घूमने लगे। जगह-जगह उन्होंने ‘सावधान’ लिखा देखा। कई पेड़ों पर ‘जहरीले फल’ भी लिखा था। उन्होंने पाया कि अगर वह सब न लिखा होता तो कोई भी गिरकर अपने प्राण गंवा सकता था। घास में छिपे हुए गहरे गड्ढे, खतरनाक मोड़, जहरीले फल-सबके बारे में सावधान किया गया था। अब तक दोपहर ढल चुकी थी। रामदयाल जी ने जोर से पुकारा, ‘‘मेरे प्राण बचाने वाले भाई, मैं आपके दर्शन करना चाहता हूं।’’
पत्तों के पीछे सरसराहट हुई और एक बूढ़ा हंसता हुआ सामने आ गया। उसने कहा-‘‘मैं बहुत देर से आपको देख रहा हूं, कहिए आप यहां कैसे आ गए?’’
‘‘सच कहूं, मैं आत्महत्या के इरादे से आया था लेकिन खाई के किनारे लिखे शब्दों ने मन बदल दिया।’’ रामदयाल कह गए।
उस व्यक्ति ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है?’’
‘‘सोच रहा हूं क्या करूं।’’ रामदयाल ने कहा और उनकी आंखें भर आईं। बूढ़े के पूछने पर उन्होंने अपनी रामकहानी कह सुनाई। जब उन्होंने बात खत्म की तो उनकी आंखों से लगातार आंसू गिर रहे थे। एकाएक उन्होंने पूछा-‘‘लेकिन आपने अपना परिचय नहीं दिया।’’
बूढ़े ने कहा-‘‘जो आपका परिचय है वही मेरा भी है। मेरा नाम है नरसिंह। क्या सुनाऊं! अनेक वर्ष हो गए। एक दिन मैं अपने बेटे के साथ इस जंगल से गुजर रहा था। तभी बेटा घास में छिपे गहरे गड्ढे में गिर गया। वह इतना नीचे गिरा था कि मैं वहां पहुंच भी नहीं सकता था। मेरी दुनिया अंधेरी हो गई।
‘पत्नी पहले ही मर गई थी। अब तो कुछ भी नहीं बचा था जीवन में। मैंने तय किया कि मैं भी उसी गड्ढे में कूदकर जान दे दूं।’’रामदयाल जी ध्यान से सुन रहे थे।

प्रेरक कथाएँ

11 Jan, 02:32


नरसिंह ने आगे कहा-‘‘मैं कूदने जा रहा था, एकाएक मन ने कहा यह कायरता है। हो सकता है, इसी तरह लोग आकर इस छिपे गड्ढे में गिरते रहें। नहीं, यह ठीक नहीं। पहले इसका कुछ प्रबंध करना चाहिए। बस, मैंने गड्ढे के चारों ओर पेड़ की डालियां खड़ी करके उन्हें लताओं से बांध दिया।’’
‘‘फिर?’’ रामदयाल ने पूछा।
‘‘फिर मुझे लगा कि ऐसे खतरनाक स्थान तो इस जंगल में और भी होंगे। मैंने देखा, मेरे बेटे की जान लेने वाले गड्ढे के पास ऐसे ही दूसरे स्थान भी थे। बस, मैंने निश्चय कर लिया कि जंगल में जब तक एक भी ऐसा खतरनाक स्थान रहेगा, मैं नहीं मरूंगा।’’ वह दिन था और आज का दिन है, मैं इसी जंगल में रह रहा हूं-अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ। खतरनाक स्थानों पर मैंने चेतावनियां लिखकर लगा दी हैं। कौन-से फल जहरीले हैं और कौन-से खाने लायक यह भी जान लिया है। जंगल इतना खतरनाक नहीं रह गया है जितना पहले था। मैंने कई भटके लोगों को रास्ता बताया है। खाने-पीने की सामग्री दी है, नहीं तो शायद वे मर जाते। और हर बार मुझे लगा कि आत्महत्या न करने का मेरा निश्चय गलत नहीं था।’’
रामदयाल गंभीर होकर नरसिंह की बातें सुन रहे थे। एकाएक नरसिंह ने कहा-‘‘रात हो रही है, जंगली जानवरों का डर है। सुबह आपको जंगल से बाहर जाने का रास्ता बता दूंगा। आइए।’’
नरसिंह रामदयाल को एक गुफा में ले गया। उसके बाहर आग जलाकर दोनों लेट गए। रात को जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई दीं, कभी दूर, कभी एकदम पास। सुबह रामदयाल की नींद खुली तो नरसिंह ने कहा-‘‘चलिए, आपको जंगल से बाहर जाने वाले रास्ते पर छोड़ दूं।’’
‘‘लेकिन मुझे कहीं नहीं जाना।’’
‘‘तब कहां जाएंगे, क्या इरादा है?’’ नरसिंह ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘मैं यहीं रहूंगा, आपके साथ।’’ रामदयाल ने कहा-‘‘अभी जंगल में ऐसे बहुत-से स्थान हैं जहां देखभाल की जरूरत है- मैंने मरने का इरादा छोड़ दिया है।’’
‘‘क्या सच।’’ कहते हुए नरसिंह की आंखें चमक उठीं।
‘‘हां, मैने देख लिया है जीवित रहकर दूसरों को मरने से बचाया जा सकता है।’’ रामदयाल ने कहा और मुसकरा उठे।
*मरने के लिए एक दुख है तो जीने के लिए सौ सुख भी कम हैं*’’
रामदयाल ने कहा और गुफा से बाहर आ गए। सूरज पेड़ों के पीछे से ऊपर उठ रहा था..!!
*🙏🙏🏿🙏🏾जय श्री कृष्ण*

प्रेरक कथाएँ

10 Jan, 14:46


*Short story :-* must read out

*राजा के दरबार में एक आदमी नौकरी मांगने के लिए गया, उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई तो वो बोला :-*
*मैं किसी की भी — चाहे वो आदमी हो या चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ.....*

*राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया.....*
*कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा तो उसने कहा :-*

*नस्ली नहीं है...*

*राजा को हैरानी हुई, उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा,,,,,*
*उसने बताया घोड़ा नस्ली तो है पर इसके पैदा होते ही इसकी माँ मर गई थी… इसलिए ये एक गाय का दूध पी पी कर उसके साथ पला बढ़ा है,,,,,*
*राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा कि तुम्हें कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं…??*

*"उसने कहा" जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके खाता है, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुँह में लेकर सर उठा कर खाता है,,,,,,,,"*

*राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ, उसने नौकर के घर अनाज, घी, मुर्गे और ढेर सारी बकरियाँ बतौर इनाम भिजवा दिए,,,,,,,,,,*
*और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया,,, कुछ दिनों के बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी, तब उसने रानी के लिए कहा :-*

*"तौर तरीके तो रानी जैसे हैं लेकिन पैदाइशी रानी नहीं हैं,,,,"*

*राजा के पैरों तले जमीन खिसक गई, उसने अपनी सास को बुलाया, सास ने कहा "हक़ीक़त ये है कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता माँग लिया था लेकिन हमारी बेटी 6 महीने में ही मर गई थी लिहाज़ा हमने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया,,,,,,,,,"*

*राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा "तुम को कैसे पता चला ??"*

*""उसने कहा, "रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गँवारों से भी बुरा है… एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता है जो रानी साहिबा में बिल्कुल नहीं है,,,,,,"*

*राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ और फिर से बहुत सारा अनाज भेड़ बकरियां बतौर इनाम दी और फिर साथ ही उसे अपने दरबार में तैनात कर दिया,,,,,*

*कुछ वक्त गुज़रा, राजा ने फिर नौकर को बुलाया और अपने बारे में पूछा,,,,,,*

*नौकर ने कहा "जान की सलामती हो तो कहूँ…!!”*

*राजा ने वादा किया तो उसने कहा :-*

*"न तो आप राजा के बेटे हो और न ही आपका चलन राजाओं वाला है !!"*

*राजा को बहुत गुस्सा आया, मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था। राजा सीधा अपनी माँ के महल में पहुँचा और फिर माँ से पुछा तो फिर माँ ने कहा कि ये सच है कि तुम एक चरवाहे के बेटे हो…*
*हमारी औलाद नहीं थी तो तुम्हें गोद लेकर हम ने पाला,,,,,*

*राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा :- बता भई, अब ये तुझे कैसे पता चला ????*

*उसने कहा "जब राजा किसी को इनाम दिया करते हैं तो हीरे-मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं लेकिन आप भेड़, बकरियाँ, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं...*
*ये रवैया किसी राजा का नहीं, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है,,,,,,,,,"*

*किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल है…*
*ये सब बाहरी दिखावा है।*
*इंसान की असलियत की पहचान उसके व्यवहार और उसकी नीयत से है…*😇

*हैसियत चाहे कुछ भी हो… पर सोच नहीं बदलती…*
✍️
*योगेन्द्र सिंह राठौर जी की और से साभार*
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प्रेरक कथाएँ

10 Jan, 08:42


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*55% महिलायें थाइरोइड से ग्रस्त*

*थायरायड को कैसे कम करे... जानिये...!*

*आजकल एक गंभीर समस्या बहुतायात देखने को मिल रही है थायराइड।*

*थायरायड गर्दन के सामने और स्वर तंत्र के दोनों तरफ होती है। थायरायड में अचानक बृद्धि हो जाना या फिर अचानक कम हो जाना है।*

*●●थाइरोइड●●*

*एक स्वस्थ्य मनुष्य में थायरायड ग्रंथि का भार 25 से 50 ग्राम तक होता है।*

*यह ‘थाइराक्सिन‘ नामक हार्मोन का उत्पादन करती है।*

*पैराथायरायड ग्रंथियां*

*थायरायड ग्रंथि के ऊपर एवं मध्य भाग की ओर एक-एक जोड़े यानी कि कुल चार होती हैं। यह ”पैराथारमोन” हार्मोन का उत्पादन करती हैं।*

*तनावग्रस्त जीवन शैली से थाइरोइड रोग बढ़ रहा है।*

*आराम परस्त जीवन से भी हाइपो थायराइड और तनाव से हाइपर थायराइड के रोग होने की आशंका, आधुनिक चिकित्सक निदान में करने लगे हैं।*

*आधुनिक जीवन में व्यक्ति अनेक चिंताओं से ग्रसित है*

जैसे

*परिवार की चिंताऐं तथा आपसी स्त्री-पुरुषों के संबंध।
आत्मसम्मान को बनाए रखना।*

*लोग क्या कहेंगे आदि अनेक चिंताओं के विषय हैं।*

*●●उपचार●●*

*1- थायरायड की समस्या वाले लोगों को दही और दूध का इस्तेमाल अधिक से अधिक करना चाहिए क्योंकि दूध और दही में मौजूद कैल्शियम, मिनरल्स और विटामिन्स थाइरोइड से ग्रसित पुरूषों को स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं।*

*2- थायरायड ग्रन्थि को बढ़ने से रोकने के लिए गेहूं के ज्वार का सेवन कर सकते है।*

*गेहूं का ज्वार आयुर्वेद में थायरायड की समस्या को दूर करने का बेहतर और सरल प्राकृतिक उपाय है।*
*इसके अलावा ये साइनस, उच्च रक्तचाप और खून की कमी जैसी समस्याओं को रोकने में भी प्रभावी रूप से काम करता है।*

*3- थायरायड की परेशानी में जितना हो सके, फलों और सब्जियों का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि फल और सब्जियों में एंटीआक्सिडेंटस होता है जो थायरायड को कभी भी बढ़ने नहीं देता है।*
*सब्जियों में टमाटर, हरी मिर्च आदि का सेवन करें।*

*4- थायरायड के मरीजों को थकान बड़ी जल्दी लगने लगती है और वे जल्दी ही थक जाते हैं एैसे में मुलेठी का सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है, चूंकि मुलेठी में मौजूद तत्व थायरायड ग्रन्थि को संतुलित बनाते हैं और थकान को उर्जा में बदल देते हैं। मुलेठी थायरायड में कैंसर को बढ़ने से भी रोकता है।*

*5- योग के जरिए भी थायरायड की समस्या से निजात पाया जा सकता है इसलिए भुजंगासन, ध्यान लगाना, नाड़ीशोधन, मत्स्यासन, सर्वांगासन और बृहमद्रासन आदि करना चाहिए।*

*6- अदरक में मौजूद गुण जैसे पोटेशियम, मैग्नीश्यिम आदि थायरायड की समस्या से निजात दिलवाते हैं* *अदरक में एंटी-इंफलेमेटरी गुण थायरायड को बढ़ने से रोकता है और उसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाता है।*

*7-और इस के उपचार के लिए जापनिस् नैनो टेक्नॉलॉजी से निर्मित स्टेम सेल द्वारा बनाई गई शुद्ध आरुर्वेदिक पाऊडर से थायोराइड ही नहीं बल्कि शरीर के और भी रोगों का जड़ से इलाज एक साथ होता है, पूरी तरह अनुभव के साथ।*

प्रेरक कथाएँ

10 Jan, 02:29


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*प्रेरक जानकारी: शाकाहार की महिमा*
मनुष्य मांसाहारी है या शाकाहारी है..... पुरा पढ़िये
एक बार एक चिंतनशील शिक्षक ने अपने 10th स्टेंडर्ड के बच्चों से पूछा कि आप लोग कहीं जा रहे हैं और सामने से कोई कीड़ा मकोड़ा या कोई साँप छिपकली या कोई गाय-भैंस या अन्य कोई ऐसा विचित्र जीव दिख गया, जो आपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा हो, तो प्रश्न यह है कि आप कैसे पहचानेंगे कि वह जीव अंडे देता है या बच्चे ? क्या पहचान है उसकी ?
अधिकांश बच्चे मौन रहे जबकि कुछ बच्चों में बस आंतरिक खुसर- फुसर चलती रही... ।
मिनट दो मिनट बाद
फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने स्वयम ही बताया कि
बहुत आसान है,, जिनके भी कान बाहर दिखाई देते हैं वे
सब बच्चे देते हैं और जिन जीवों के कान बाहर नहीं
दिखाई देते हैं वे अंडे देते हैं.... ।।
फिर दूसरा प्रश्न पूछा कि-
ये बताइए आप लोगों के सामने एकदम
कोई प्राणी आ गया... तो आप कैसे पहचानेंगे की यह शाकाहारी है यामांसाहारी ?
क्योंकि आपने तो उसे पहले भोजन करते देखा ही नहीं, बच्चों में फिर वही कौतूहल और खुसर फ़सर की आवाजें......
शिक्षक ने कहा-
देखो भाई बहुत आसान है,,
जिन जीवों की आँखों की बाहर की यानी ऊपरी संरचना गोल होती है, वे सब के सब माँसाहारी होते हैं,
जैसे- - कुत्ता, बिल्ली, बाज, चिड़िया, शेर, भेड़िया, चील या अन्य कोई भी आपके आस-पास का जीव-जंतु जिसकी आँखे गोल हैं वह माँसाहारी ही होगा है, ठीक उसी तरह जिसकी आँखों की बाहरी संरचना लंबाई लिए हुए होती
है, वे सब के सब जीव शाकाहारी
होते हैं, जैसे - हिरन, गाय, हाथी, बैल, भैंस, बकरी, इत्यादि ।
इनकी आँखे बाहर की बनावट में लंबाई लिए होती है
फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने बच्चों से पूछा कि-
बच्चों अब ये बताओ कि मनुष्य की आँखें गोल हैं या लंबाई वाली ?
इस बार सब बच्चों ने कहा कि मनुष्य की आंखें लंबाई वाली होती है...
इस बात पर
शिक्षक ने फिर बच्चों से पूछा कि यह बताओ इस हिसाब से मनुष्य शाकाहारी जीव हुआ या माँसाहारी ?? सब के सब बच्चों का उत्तर था शाकाहारी ।
फिर शिक्षक से पूछा कि
बच्चों यह बताओ कि फिर मनुष्य में बहुत सारे लोग मांसाहार क्यों करते हैं ? तो इस बार बच्चों ने बहुत ही गम्भीर उत्तर दिया
और वह उत्तर था कि अज्ञानतावश या
मूर्खता के कारण।
फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने बच्चों को दूसरी बात यह बताई कि
जिन भी जीवों के नाखून तीखे नुकीले होते हैं, वे सब के सब माँसाहारी होते हैं, जैसे- शेर, बिल्ली, कुत्ता, बाज, गिद्ध या अन्य कोई तीखे नुकीले नाखूनों वाला जीव.... और
जिन जीवों के नाखून चौड़े चपटे होते हैं वे सब के सब शाकाहारी होते हैं, जैसे - मनुष्य, गाय, घोड़ा, गधा, बैल, हाथी, ऊँट, हिरण, बकरी इत्यादि ।
इस हिसाब से भी अब ये बताओ बच्चों कि मनुष्य के नाखून तीखे नुकीले होते हैं या चौड़े चपटे ??
सभी बच्चों ने कहा कि चौड़े चपटे,,
फिर शिक्षक ने पूछा कि अब ये बताओ इस हिसाब से मनुष्य कौन से जीवों की श्रेणी में हुआ ?? सब के सब बच्चों ने एक सुर में कहा कि शाकाहारी ।
फिर शिक्षक ने बच्चों से तीसरी बात यह बताई कि,
जिन भी जीवों अथवा पशु-प्राणियों को पसीना आता है, वे सब के सब शाकाहारी होते हैं,
जैसे- घोड़ा, बैल, गाय, भैंस, खच्चर, आदि अनेकानेक प्राणी... जबकि
माँसाहारी जीवों को पसीना नहीं आता है, इसलिए कुदरती तौर पर वे जीव अपनी जीभ निकाल कर लार
टपकाते हुए हाँफते रहते हैं इस प्रकार वे अपनी शरीर की गर्मी को नियंत्रित करते हैं.... ।
तो प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य को पसीना आता है या मनुष्य जीभ से अपने तापमान को एडजस्ट करता है ??
सभी बच्चों ने कहा कि मनुष्य को पसीना आता है,
शिक्षक ने कहा कि अच्छा यह बताओ
कि
इस बात से भी मनुष्य कौन सा जीव सिद्ध हुआ, सब के सब बच्चों ने एक साथ कहा
शाकाहारी ।
सभी लोग विशेषकर अहिंसा में, सनातन धर्म, संस्कृति और परम्पराओं में विश्वास करने वाले लोग भी चाहे तो बच्चों को नैतिक बौधिक ज्ञान देने अथवा सीखने-पढ़ाने के लिए इस तरह बातचीत की शैली विकसित कर सकते हैं,
इससे जो वे समझेंगे सीखेंगे वह उन्हें जीवनभर काम आएगा... याद रहेगा, पढ़ते वक्त बोर भी नहीं होंगे.... ।
* बच्चे अगर बड़े हो जाएं तो उनको यह भी बताएं कि कैसे शाकाहारी मनुष्य जानकारी के अभाव में मांसाहार का उपयोग करता है और कहता है कि जब अन्न नहीं उपजाया जाता था तब मनुष्य मांसाहार का सेवन करते थे, जो सरासर गलत है तब मनुष्य कंद-मुल एवं फलों पर जीवित रहते थे, जो सही है एवं उसके संरचना और स्वभाव से मेल भी खाता है।
॥ प्रकृति की ओर लौटिये तथा ईश्वर, भगवान, प्रभु से सच्चे अर्थों में जुड़िये ॥

प्रेरक कथाएँ

09 Jan, 13:23


जिस कलकत्ता मेल को शाम पाँच बजे राजनगर स्टेशन पहुँचना था, वो कोहरे की वजह से लेट हुई और रात आठ बजे प्लेटफार्म पर पहुँची!

मेरा मन अनमयस्क हो चला! जबकि मनोहर बाबू के चेहरे पर सुकून नजर आ रहा था!

"अब तो कोई साधन भी नहीं मिलेगा गाँव जाने को!"--मैंने कहा।

"बाहर चलकर देखते हैं, फिर आगे की सोचेंगे!"--मनोहर बाबू ने कहा।

राजनगर कोई बहुत बड़ा स्टेशन नहीं था! इक्का-दुक्का टेंपो जो इस आखिरी ट्रेन के इंतजार में खड़े रहते थे, संभवत: जाड़े की वजह से वो भी पहले ही जा चुके थे या फिर कोई सवारी हमसे पहले ही बुक कराकर ले गयी थी।

"अब! अब क्या करेंगे!"--मैंने कहा।

"पैदल चलने की हिम्मत है?"

"क्या बोल रहे ह़ै मनोहर बाबू! जाड़े की इस सर्द रात में पंद्रह किलोमीटर! मरना है क्या?"

"स्टेशन पर रहे, तब भी ठंड से बचना मुश्किल है!"

"फिर क्या करें?"

"मेरे ननिहाल चलोगे? मुश्किल से चार किलोमीटर है यहाँ से!"

और कोई चारा भी क्या था! पौने घंटे चलकर रात गुजारने का ठौर मिल जाय, इससे अच्छा क्या होगा!

थोड़ी ही देर बाद हमदोनों सुनसान सड़क पर चले जा रहे थे!

"सोचो, अगर मैं ना होता तो तुम अकेले क्या करते!"

"क्या पता, आपकी वजह से ही कलकत्ता मेल लेट हुई हो!"

होहोहोहोहो

पहली बार मनोहर बाबू खुलकर हँसे!

तकरीबन आधे घंटे तेज तेज चले हम! शार्टकट के लिए मेनरोड तो कब का छोड़ चुके थे! सामने दूर एक छोटी सी बस्ती दिखायी दे रही थी, जहाँ इक्का-दुक्का रोशनियां टिमटिमा रही थीं!

"वो रहा मेरा ननिहाल! बस थोड़ी देर और। बस जरा ये नाला पार कर लें!"--मनोहर बाबू अचानक ठिठके।

"क्या हुआ?"

"कुछ नहीं, तुम जरा थोड़ी देर ठहरोगे?"

"क्या बात है?"

"बस, जरा दीर्घशंका महसूस हो रही है!"

"ठीक है, मैं तब तक पुलिया पर बैठ जाता हूँ!"--कहकर मैं नाले पर बनी छोटी सी पुलिया पर बैठ गया। मनोहर बाबू नीचे खाई में उतर गये।

सर्द हवायें सांय सांय करके चल रही थीं। दूर दूर तक गंगा के कछार तक फैले हुए खेत सुनसान पड़े हुए थे। तभी नीचे पानी में हलचल हुई!

मैंने समझा मनोहर बाबू हैं!

मैं आगे बढ़ा! सामने एक आकृति सर पर फसलों का गट्ठर उठाये चली जा रही थी! उसके ठीक पीछे एक नारी आकृति भुनभुनाती हुई चल रही थी!

"मनोहर बाबू!"--मैंने जोर से आवाज लगायी!

पुरुष आकृति रुक गयी! उसने पीछे चली आ रही नारी आकृति को डपटना शुरु किया!

थोड़ी दूर पर खड़ा मैं जब तक कुछ समझ पाता, नारी आकृति मेरी तरफ बढ़ने लगी!

"कौन है?"--मैंने धीमे स्वर में पूछा।

"ये सवाल तो मुझे पूछना चाहिए था! तू बता, तू कौन है!"

मैं क्या जवाब देता!
नारी आकृति पल-प्रतिपल मेरे नजदीक आती जा रही थी!

और बस कुछेक ही क्षण बाद!

स्याह कपड़ों में लिपटी बड़ा सा जूड़ा बाँधे वो मेरे सामने खड़ी थी!

अचानक नीचे खाई की तरफ कईलोगों का कोलाहल गूँजा! ऐसा लगा, जैसे नाले के मुहाने से कईलोग गुजर रहे हों!

"अरे ऊपर आ जाओ रे सब! ये यही है!"--नारी आकृति ने जोरों से घरघराते स्वर में हांक लगायी!

मेरे रोयें खड़े हो गये! सुनसान रात में ऐसी जगह पर यूँ एकाएक इतने लोगों की आमद भयाक्रांत कर देने वाली थी!

"भागो!"--अचानक जाने कहाँ से मनोहर बाबू प्रकट हुए और मेरा हाथ पकड़कर बस्ती की ओर दौड़ने का इशारा किया।

मैंने आव देखा ना ताव, बस भाग चला उनके साथ!

थोड़ी ही देर बाद हम बस्ती में खड़े एक मकान के दरवाजे की सांकल खटखटा रहे थे!

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला!

सामने एक वृद्ध खड़े थे! हमें देखकर चौंके--"अरे! तुम!"

मनोहर बाबू ने आगे बढ़कर उनके चरण छुए--"प्रणाम मामाजी!"

वृद्ध की आँखों से आँसू छलक पड़े--"अरे, आओ रे सब! देखो, मनोहर आया है!"

पल भर में ही सारा घर इकट्ठा हो गया!

सबकी नजरों के केंद्र में मनोहर बाबू ही थे!

"क्यों रे मनोहर! अपने मामा को भी भूल गया! उस मामा को, जो तुझे बचपन में दिन भर अपने कंधे पर लादे घूमते फिरते थे!"

"मैं किसी को नहीं भूला हूँ मामा! नाना-नानी के बाद आपलोग ही तो हो!"

"भाग झूठे! इतना ही अपना समझता तो हमसे भी अपने दिल की बात ना बताता!"

मनोहर बाबू ने नजरें झुका लीं!

"जा, अंदर तेरी भाभी बुला रही है! खाना खा ले!"

हमदोनों अंदर पहुँचे! रसोई में एक अधेड़ औरत आटा गूंथ रही थी।

"आओ बबुआ! सबको खिलाने के बाद भी तुम्हारे भाग्य से सब्जी बची हुई है। मैं रोटी सेंक देती हूँ!"

मनोहर बाबू ने कहा कुछ नहीं, बस चुपचाप उन्हें घूरे जा रहे थे, मानो कुछ सोच रहे हों!

"भाभी, तुम तो....!"

"हाँ हाँ बोलो!"

"तुम तो....!"

"बोलो ना! अटक क्यों रहे हो!"

"क्या कहूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा...!"

"तुमने कभी कुछ कहा है, जो आज कहोगे! भाभी तो बस मुँह से कहते हो!"

"ऐसी बात नहीं है भाभी, आपको कभी खुद से अलग नहीं माना!"

"और कितना झूठ बोलोगे बबुआ! अगर दिल से मानते होते तो दिल की बातें नहीं कहते!"

मनोहर बाबू चुप लगा गये!

और तब, जब हम खाना खाकर सोने के लिए दुआर पर जा रहे थे, मनोहर बाबू एकाएक बेचैन नजर आने लगे!

प्रेरक कथाएँ

09 Jan, 13:23


चिट्ठी!
हाँ, वो तो मेरे कमरे में ही पड़ी रह गयी, बिना पढ़े ही! मनोहर बाबू मुझे क्या बताना चाह रहे थे, आजतक समझ नहीं पाया! और जब उनको दिल की बीमारी थी, तो उसका ही ढंग से ईलाज क्यों नहीं करवाये! क्या संकोचवश पैसे के लिए मुँह नहीं खोल पाये घर में! उनको अपनी मृत्यु का आभास था, शायद इसीलिए घर चले आये थे बीवी-बच्चों के पास! हो सकता है, खेतीबाड़ी की आमदनी और बाबूजी की पेंशन को लेकर किसी ने कुछ कटाक्ष किया हो, और बात उनके दिल को लग गयी!

मौन रहकर मृत्यु का वरण कर लिया उन्होंने! वास्तव में क्या हुआ होगा, उनके जाने के बाद वो गुत्थी अनसुलझी ही रह गयी! कथाकार -कृपा शंकर मिश्र *खलनायक*

प्रेरक कथाएँ

09 Jan, 13:23


"क्या हुआ?"

"पता नहीं! सोच रहा हूँ, तुमसे कहूँ कि ना कहूँ....!"

जाने क्यूँ मेरा मन सिहरकर रह गया!

"अब बोलिये भी!"

"मेरा विश्वास करोगे?"

"क्यों नहीं!"

"मेरी भाभी को देखे?"

"हाँ हाँ, अभी तो खाना खिलायीं वे!"

"वो मेरी भाभी नहीं हो सकती!"

"क्या कह रहे हैं आप!"

"सच में! वो मेरी भाभी कैसे हो सकती हैं भला! वो तो चार साल पहले ही मर चुकी हैं!"

मारे भय के मेरे माथे पर पसीना चुहचुहा आया!

"और वो मामा भी कब के मर चुके हैं!"--मनोहर बाबू ने दूसरा धमाका किया।

"आपका दिमाग तो ठीक है ना!"--मैं चीखा।

"एकदम ठीक है!"

अचानक पीछे से एक सर्द आवाज गूँजी!

मैं पलटा, और भय के मारे जड़ हो गया!

पीछे मनोहर बाबू के मामा ही खड़े थे! सर पर चारे का गट्ठर लिए हुए! और उनके ठीक पीछे भाभी खड़ी थीं, जोर जोर बिहँसते हुए। अंधेरे में उनके बाहर को निकले हुए दाँत और मांग में मोटा सिंदूर कुछ अजीब ही लग रहे थे!

"हहहहहहहहह, नाले पर मुलाकात हुई तब भी नहीं पहचान पाये!"

"भागो!"--मनोहर बाबू ने एक बार फिर से मेरा हाथ पकड़ा और बाहर की ओर दौड़ते चले गये! पीछे से दोनों की सम्मिलित आवाजें गूँज रही थीं....

"अरे ठहर जाओ, ठहर जाओ, हम कुछ नहीं करेंगे! बस जाते जाते वो बात बताते जाओ ना मनोहर!"

"वे लोग जानना क्या चाहते हैं?"

"ये तो मुझे भी नहीं पता!"--मनोहर बाबू ने मुझे चुप कराते हुए कहा।

थोड़ी ही देर बाद हम दौड़ते हुए वापस उसी नाले के पास जा पहुँचे थे! पीछे उनदोनों के दौड़ते कदमों की आहट साफ सुनायी दे रही थी!

"देखना, ये दोनों जाने ना पायें!"

"हमलोग यहीं किनारे पर हैं मालिक! छोड़ेंगे नहीं इन्हें!"

"अब क्या करें मनोहर बाबू! ये सब हो क्या रहा है आखिर?"--मैंने मरे स्वर में पूछा!

"कूद जाओ!"

"कहाँ!"

"सामने बरसाती नाले में, और कहाँ!"

और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, उन्होंने मुझे जोर से धक्का दे दिया!

मैं औंधे मुँह नाले में जा गिरा! पीछे मनोहर बाबू उनकी पकड़ में आ चुके थे!

जाने कितनी देर तक मैं बेहोश रहा। जब चेतना लौटी तो खुद को एक हस्पताल में पाया! डॉक्टर मेरे बगल के कस्बे वाले ही थे, साथ में घरवाले और मुहल्ले के कुछलोग भी थे!

"मैं यहाँ कैसे आ गया?"

"सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम पिछली रात रामपुर वाले बरसाती नाले में के पास क्यूं पड़े थे!"

मैंने पिछली रात की बात ज्यों की त्यों बता दीं। सुनकर सभी अवाक् रह गये!

बाबूजी की आँखें सोचने की मुद्रा में सिकुड़ी हुई थीं--मनोहर! तुम मनोहर के साथ थे पिछली रात! पर ये कैसे संभव है?"

"क्यों? क्या बात है?"

"मनोहर तो पंद्रह दिन पहले ही मर चुका है!"

"अरे! पर कैसे....!"

"हार्ट अटैक से!"

धम्म!

लगा, जैसे मेरा सर फट जायेगा!

मैंने फिर से आँखें बंद कर लीं!

दो दिन बाद हस्पताल से छुट्टी मिली तो मैं घर लौटा! पूरे गाँव में चर्चा का केंद्र बना था मैं! लोग मेरे पास आते, तरह तरह के सवाल पूछते! पर क्या जवाब देता मैं!

मनोहर बाबू की पत्नी मिलीं, जार जार रो रही थीं....

"मुझे छोड़कर चले गये, दिल की दो बातें भी आखिरी समय में नहीं कहे! मुझे क्या पता था कि आखिरी समय में मुझे छोड़कर जाने के लिए कलकत्ते से गाँव आये थे! अब कैसे गुजर होगा मेरे दोनों बच्चों का!"

मनोहर बाबू के पिता को तो जैसे काठ मार गया था!

"साल भर पहले जाने क्यूँ नौकरी छोड़कर गाँव आया! पता नहीं खेतीबाड़ी में कौन सा लाभ दिखा उसे!"

उनके भाई अब सामान्य हो चले थे--"बड़ा अंतर्मुखी था वो, कभी थाह नहीं लगी उसके मन की! हमलोग तो बाहर कमाते-खाते हैं। खेतीबाड़ी के अलावा बाबूजी की पेंशन भी थी, कभी एक पैसे का हिसाब भी तो नहीं मांगा उससे!"

मैंने सबकी बातें चुपचाप सुनीं, पर कुछ समझ में नहीं आया! हाँ, हस्पताल वाले डॉक्टर साहब ने जो कुछ बतलाया, वो आश्चर्यजनक था...

"दो साल पहले मनोहर को सीने में दर्द की शिकायत थी! मैंने उसे बड़े शहर में बाइपास सर्जरी की सलाह दी थी! उसके बाद वो वापस कलकत्ता चला गया! वहाँ कुछ दिन रहने के बाद गाँव आकर रहने लगा! फिर मेरी उससे मुलाकात नहीं हुई। मैंने सोचा था कि वहाँ अपनी सर्जरी कराया होगा! पर नहीं, ये बात उसने घरवालों को भी नहीं बतायी थीं!"

बाकी बातें मेरी पत्नी ने बतायी--"मनोहर बाबू का शरीर दिन पर दिन गलता जा रहा था, पर किसी से कुछ कहते तब ना! जाने कौन सी बीमारी पालकर बैठे थे! किसी से कभी कुछ भी नहीं बताया!

और मरना भी हुआ तो ननिहाल जाकर! एक दिन पहले ही तो वहाँ गये थे। उन बिचारों के माथे भी अपयश मढ़ दिया! उनके ममेरे भाई भी बाहर रहते हैं, कुछ दिनों के लिए गाँव आये थे। शायद ये कलंक उनके माथे लगना था! मैंने तो आपको चिट्ठी भी लिखी थी उनके मरने की! शायद आपको मिली ही नहीं!"

प्रेरक कथाएँ

09 Jan, 13:23


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कहानी

#अनसुलझी_गुत्थी

दिसंबर की एक सांझ।
छ: बज चुके थे। मैं शॉल-स्वेटर ओढ़कर बाहर चलने को तैयार हो ही रहा था कि दरवाजे की सांकल बजी।

जाकर दरवाजा खोला सुखद आश्चर्य का झटका लगा! सामने मनोहर बाबू खड़े थे!

"आप! इस वक्त!"

"क्या हुआ! मुझे नहीं आना चाहिए था क्या?"--उनके चेहरे पर उदासी पसर गयी।

"अरे नहीं जी, ऐसी बात नहीं है! बस आपको एकाएक देखकर....!"

"मालिक से हिसाब करने आया था! सोचा, तुमसे भी मिल लूँ!"

"बढ़िया किये! आप तो लगभग मुझे भूल ही चुके थे!"

"भूला कहाँ था भई! आठ महीने तो हो गये मुझे कलकत्ता छोड़े हुए! और तुम भी गाँव कहाँ आते हो!"

"छुट्टी कहाँ मिलती है बाबू जो गाँव जाऊँ! वैसे कल सुबह की ट्रेन है मेरी!"

"कल! कल ही निकलोगे?"

"हाँ, कल से ठंड की छुट्टियां हो रही हैं दस दिनों की! वैसे हिसाब हो गया आपका?"

"हाँ, हो गया! मालिक ने पाई पाई जोड़कर सब दे दिया!"

"पर आपको अभी काम नहीं छोड़ना चाहिए था, कुछ दिन और कर लेते तो क्या हर्ज था!"

"बहुत दिन नौकरी की, क्या हासिल हुआ! एक धेला तो बचाकर नहीं रख पाया! फिर सोचा, क्या फायदा इसका! जनम भर ना परिवार का सुख और ना ही पैसे का! वैसे कल सुबह मैं भी गाँव चल रहा हूँ कलकत्ता मेल से!"

"वाह! फिर तो हम साथ चलेंगे!"

रात को हमने इकट्ठे खाना पाया। मनोहर बाबू तो जल्द ही गहरी नींद में चले गये, पर मुझे सामान भी पैक करना था! घर से आज शाम ही आयी हुई चिट्ठी मेज पर पड़ी थी, जिसे पढ़ने का समय नहीं मिला था।

मनोहर बाबू मेरे गाँव के ही थे। कलकत्ते में मुझसे पहले से ही रहते थे। मैं जहाँ स्कूल टीचर था, वहीं वो एक जूट मिल में क्लर्क थे। गाँव में एक बड़ा संयुक्त परिवार था उनका।

आमतौर पर जहाँ लोगों के पारिवारिक विवाद सुनने को मिलते रहते थे, वहीं उनके परिवार की लोग मिसाल देते थे! मनोहर बाबू थे भी बड़े खिलंदड़ स्वभाव के, हरदम हँसने-हँसाने वाले!

अब पता नहीं, ये मेरे मन का वहम था या फिर उनकी अभिनय कुशलता, कभी उन्हें ठीक से पढ़ नहीं पाया! जब जब वो गंभीर होते, उनके चेहरे पर ऐसे रहस्यमयी भाव आते, जो उनके स्वभाव से मेल नहीं खाते थे!

उनकी आँखों के भाव इतने गहरे होते कि कभी उनपर अनायास दया आती तो कभी मन को गहरी सोच में धकेल देतीं! कुल मिलाकर उनका व्यक्तित्व बड़ा अजीब सा था!

करीब साल भर पहले उन्होंने एकाएक काम छोड़ दिया और घर जाकर खेतीबाड़ी करने लगे! जब तक कलकत्ते में थे, महीने में एकाध बार उनसे मुलाकात हो ही जाती थी, पर अब....!

मैंने एक बार उनका चेहरा ध्यान से देखा! गहरी नींद में ऐसे सोये थे मानों कोई चिंता ही ना हो, जबकि उनके बेटे-बेटी अभी कुँवारे थे और पढ़ रहे थे!

रात के दस बज चुके थे!
मैंने सोने से पहले घर से आयी हुई चिट्ठी पढ़ने के लिए लिफाफा खोला!

चर्रर्रर्रर्

"जब सुबह घर ही चलना है तो चिट्ठी क्या पढ़नी! सो जाओ!"

एकाएक मैं चौंक गया!
अचानक से मनोहर बाबू बेड पर उठ बैठे थे और मुझे ही घूर रहे थे!

"ये तो है, फिर भी पढ़ लेता हूँ!"

"जैसी तुम्हारी मर्जी!"--कहकर उन्होंने फिर से चादर तान ली।

अभी मैंने चिट्ठी खोलकर पहली ही पंक्ति पढ़ी थी कि एक झटके से बत्ती गुल हो गयी! बाहर मुहल्ले में रोशनी का एक तेज झमाका और जोरदार आवाज हुई थी! संभवतः ट्रांसफार्मर का फ्यूज उड़ गया था!

"अब तो सो जाओ!"--मनोहर बाबू ने लेटे लेटे ही कहा।

मैंने भी चिट्ठी पढ़ने का ख्याल मन से निकाल दिया और चौकी पर उनके बगल में लेट गया!

अगली सुबह सात बजे!

लगभग दो घंटे देर से कलकत्ता मेल आयी! दिनभर का समय लगभग खामोशी में ही बीता! आमतौर पर हमेशा बोलने वाले मनोहर बाबू ज्यादातर समय खिड़की से बाहर चुपचाप जाने क्या निहारते जा रहे थे! कभी-कभार मुझसे नजरें मिलतीं भी तो चुरा लेते! जाने उन मौन आँखों में कैसी दैन्यता पसरी हुई थी!

"क्या बात है मनोहर बाबू! आज बड़े चुप चुप से हैं, कुछ बात है क्या?"

"आं, नहीं नहीं! बस जी थोड़ा उदास है!"

"क्यों?"

"ये आखिरी फेरा है ना! इतने बरस रहा इस शहर में! अब पता नहीं...!"

"घर जाने का फैसला भी तो आपका ही था ना!"

उन्होंने जवाब नहीं दिया!

दिनभर बस इसी तरह इक्का-दुक्का बातें होती रहीं! थोड़ी देर बाद मुझे हल्की सी झपकी आ गयी, आँख तब खुली, जब किसी ने मेरे कंधे को हल्का सा थपथपाया!

वो बगल की सीट वाली एक महिला थी!

"क्या बात है?"--मैंने पूछा।

"आपकी तबियत ठीक है?"

"हाँ क्यों?"

"नहीं! बस ऐसे ही....!"

फिर महिला ने कुछ नहीं कहा! चुपचाप जाकर अपनी सीट पर बैठ गयी! उसकी निगाहें मुझे घूरते हुए अजीब सी हो चली थीं!

मैंने बगल में बैठे मनोहर बाबू की ओर देखा!
उनके होठों पर रहस्यमयी चुप्पी थी....!

प्रेरक कथाएँ

09 Jan, 07:41


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*कमजोर ब्लड सर्कुलेशन में सबसे ज्यादा अटैक करता है लकवा और उससे बचने के लिए इन दो अंगों को बचा कर रखें...*

*अपने परिवार के 50 के ऊपर वाले व्यक्तियों को बचा सकते हैं।*

*जानिये कैसे..?*

*ठंड के दिनों में सर्दी, जुकाम, बुखार जैसे तमाम रोगों का खतरा ज्यादा रहता है।*

*ऐसे ही लकवा (Paralysis) जैसी बीमारियों का भी खतरा बना रहा है।*

*सर्दियों में लोगों को ठंड के कारण बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन के ठीक तरह से न होने की शिकायत रहती है।*

*ऐसे में लकवा अटैक का खतरा बढ़ जाता है।*

*50 साल की उम्र पार कर चुके लोगों को इसका खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।*

*ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल पर काबू पाकर इससे बचा जा सकता है।*

*नशा करने वाले लोगों पर इसका खतरा अधिक होता है। लिहाजा नशे का सेवन करना बंद कर देना चाहिए।*

*लकवा शरीर के एक हिस्से में मार कर सकता है।*

*अगर यह चेहरे पर मार करता है तो इसे मेडिकल भाषा में फेशियल पैरालाइसिस कहा जाता है।*

*नमक ज्यादा खाने से चेहरे को लकवा मार सकता है।*

*लक्षण...*

*लकवा के लक्षणों को बहुत आसानी से पहचान सकते हैं।*
*दिमागी दौरा जब पड़ता है तो उसके शुरुआती लक्षण में जुबान लडख़ाती है, चक्कर आता है, शरीर के किसी एक स्थान पर दर्द होता है।*
*इसके बाद शरीर का एक हिस्सा काम करना बंद कर देता है।*
*अगर दौरा तेज है तो व्यक्ति अचेत हो जाता है।*
*इसमें शरीर का एक हिस्सा सुन्न पड़ जाता है।*
*बोलने में परेशानी होती है।*
*पलक झपकाने में कठिनाई होने लगती है।*
*चेहरा टेढ़ा हो जाता है।*
*लोगों की बातों को समझने में परेशानी होने लगती है।*

*आमतौर पर 50 साल की ऊम्र पार कर चुके लोगों को लकवा का ज्यादा खतरा रहता है।*
*लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अन्य को नहीं हो सकता।*
*स्मोकर्स या अन्य ड्रग लेने वालों को कम उम्र भी झटका पड़ सकता है।*

*नमक ज्यादा खाना नुकसानदायक..*

*भोजन में नमक की मात्रा अधिक लेने से चेहरे पर लकवा (फेशियल पैरालाइसिस) मार सकता है।*
*इसकी वजह ये है कि ज्यादा नमक खाने से ब्लड प्रेशर हाई होता है।*
*इससे ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।*

*एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्ट्रोक आना चेहरे का लकवा मारना सबसे बड़ा कारण है।*
*फेशियल पैरालाइसिस होने से चेहरे के एक या दोनों तरफ की मांसपेशियां काम करना बंद कर सकती हैं।*

*आयुर्वेद में बताया गया है कि...*

*ठंड के मौसम में कान और सिर हमेशा ढककर रखना चाहिए।*

*इससे चेहरे पर लकवा मारने के खतरे को 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है।*

*इसकी वजह ये है कि ठंडी हवा लगने से नसें बहुत ज्यादा प्रभावित होती हैं।*
*इससे फेशियल पैरालाइसिस हो सकता है।*
*सर्दियों में कान और सिर को ऊनी टोपे, मफलर या शाल से जरूर ढके रहना चाहिए।*

*बचाव...*

*ठंड के मौसम में गर्म तासीर वाले भोजन करना चाहिए।*

*इतना ही नहीं गर्म कपड़ों से शरीर को ढंक कर रखें।*

*शरीर में ठंडा तेल लगाने से बचना चाहिए।*

*गुनगुना पानी पीना चाहिए।*

*तेल से मालिश करना चाहिए।*

*धूप में अधिक से अधिक समय गुजारें।*

*मैग्नेटिक थेरेपी का प्रयोग करे, जल्द असर करती हैं।

प्रेरक कथाएँ

09 Jan, 02:31


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प्रेरक कहानी: कृष्ण मंदिर जाएं तो जरूर ध्यान रखें
👉 *श्री कृष्ण जी की पीठ का कभी दर्शन न करे*
👉 *श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है*

जब भी कृष्ण भगवान के मंदिर जाएं तो यह जरुर ध्यान रखें कि कृष्ण जी कि मूर्ति की पीठ के दर्शन ना करें। दरअसल पीठ के दर्शन न करने के संबंध में
भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की
एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ
पहुंचा। कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा।

तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले। इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा। जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा। इस तरह भगवान
रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा
नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है। कालयवन कृष्णा की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म
बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है। जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण
एक गुफा में चले गए। जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था। मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया।
अत: भगवान श्री हरि की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे हमारे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है और अधर्म बढ़ता है। कृष्णजी के हमेशा ही मुख की ओर से ही दर्शन करें।

हरे कृष्ण ! जय श्री कृष्ण

प्रेरक कथाएँ

08 Jan, 14:22


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परम आदरणीय मनीषी श्री राज शेखर जी तिवारी सहज सरल ही अकाट्य तर्क से अपने वेद उपनिषदों की बात रखते हैं, तो श्रद्धा से मन प्रफुल्लित हो जाता है । उन्ही के द्वारा 22 जनवरी तक राम कथा को,इसके मर्म को ज्यादा सहज समझने का लाभ -
राम_ज्योति २१ दिन शेष

०१-०१-२०२४

राम कथा

बुद्धि पर पत्थर पड़ जाना …बुद्धि का भ्रष्ट हो जाना

स्त्री का अपमान और दंड

ब्रह्मा की सबसे सुंदर कृति बुद्धि है । इस सबसे सुंदर कृति बुद्धि का नाम अहल्या है ।

देवराज इंद्र को पूरा विश्वास है कि सबसे सुंदर कृति उसे ही मिलेगी । परन्तु ब्रह्मा जी उस सबसे सुंदर कृति को ऋषि गौतम को दे देते हैं ।

संसार की सबसे सुंदर कृति पाने के लिये इंद्र छल करता है । मुर्ग़े , मध्यरात्रि में बाग देकर सुबह होने का भ्रम उत्पन्न करते हैं । गौतम ऋषि, स्नान के लिये बाहर निकलते हैं । अवसर पाकर और गौतम ऋषि का भेष बनाकर इंद्र , अहल्या का सतीत्व भंग करता है ।

ऋषि गौतम जब स्नान करने पहुँचते हैं तो उन्हें भान हो जाता है कि अभी मध्य रात्रि है और वे वापस लौटते हैं तथा इंद्र को अपने भेष में अपनी कुटिया से बाहर निकलता देखते हैं ।

गौतम ऋषि, इंद्र के शरीर में सौ छिद्र हो जाने का शाप देते हैं और अहल्या को जड़ हो जाने का शाप ।

इंद्र को अपनी भूल का भान हो जाता है और प्रायश्चित करना चाहता है । अहल्या ने भी कोई विक्टिम कार्ड नहीं खेला कि इसमें उसकी कोई भूल नहीं है क्योंकि वह तो इंद्र के बदले हुये भेष के कारण समझ नहीं पायी । उसने भी विक्टिम कार्ड खेलने के स्थान पर गौतम ऋषि से प्रायश्चित और शाप मुक्ति का उपाय माँगा और जनक पुरी जाते समय श्री भगवान उसका उद्धार करते हैं ।

कथा का दूसरा रहस्य .. बुद्धि पर पत्थर पड़ जाये और भूल भी हो जाये तब भी धैर्य पूर्वक अनुकूल समय आने की राह देखनी चाहिये ।

कथा का तीसरा रहस्य — भगवान की शरणागति निःसाधन को भी मिल सकती और मिलती है । अहल्या ने अपनी ओर से कोई साधन नहीं किया और उसे न केवल भगवान मिले बल्कि उसके पति भी उसे पुनः मिले ।

कथा का चौथा रहस्य — भूल रावण से भी हुयी और उसे प्रायश्चित करने का अवसर भी दिया गया पर अहंकारी को अपनी भूल का भान नहीं हुआ और नाती पोतों के साथ नष्ट हुआ ।

नोटः अलग-अलग रामायणों में कथा में थोड़ा थोड़ा अन्तर है , कुछ अन्य करने का न कोई प्रयोजन है , अतः मुझे इन सबसे अलग रखें । निवेदन है 🙏

जय श्री राम रूपी आशीर्वाद देते रहें ।

प्रेरक कथाएँ

08 Jan, 02:54


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*प्रेरक कहानी: गुलामी की सीख !!*

दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान। लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा- सुनते हैं, कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ।

अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ। लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा- अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है। मालिक ने आदेश देते हुए कहा- “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”

लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा- “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा-ही-बुरा है। “उसने आगे कहते हुए कहा- “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है…क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें। इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है।

कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है । संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है।

भारत के विनाशकारी महाभारत का युद्ध वाणी के गलत प्रयोग का ही परिणाम था। “मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए ; आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और उन्होंने उसे आजाद कर दिया।

*शिक्षा:-*
मित्रों, मधुर वाणी एक वरदान है जो हमें लोकप्रिय बनाती है वहीं कर्कश या तीखी बोली हमें अपयश दिलाती है . का प्रतिबिम्ब है, उसे अच्छा होना ही चाहिए।
  

प्रेरक कथाएँ

07 Jan, 13:11


तो, अपनी कायरता समाप्त करिए, निडर बनिये! आज, अभी, इसी पल... इसके पश्चात् पता नहीं किसको समय मिलेगा, किसको नहीं! सनातन पद्धति आप इसी क्षण से स्वीकार करिए, फिर देखिये चमत्कार! अपनी बच्चियों की भी चिन्ता छोड़ दीजिए, बस उनसे सनातनी बनकर, उनसे भी सत्यनिष्ठ हो जाइए, और उन्हें स्वतंत्र छोड़ दीजिए।

खानवुड के दिन लद गए अब! हमारे लोग चौंके, डरे तो थे, लेकिन अब संभल रहे हैं।

कल मैं दिल्ली के एक क्षेत्र से गुजर रहा था। सिंगल रोड थी, और दोनों ओर से ट्रैफिक बहुत था! बीच बीच में गाय भैंस आदि अवरोधक भी.... इतने में किसी स्कूल की छुट्टी हुई। झुण्ड की झुण्ड छोटी बच्चियां सड़क पर, मेरे सामने की ओर से आती दिखाई देने लगीं।

वे हँस रही थीं, आपस में खिलखिला रही थीं, किन्ही उन्मुक्त लहलहाते फूलों की भांति। बहुत प्रसन्न लग रही थीं, लेकिन हमारे जैसे गाड़ी वाले साहब लोग, जल्दी निकलने के चक्कर में हॉर्न मारकर उन्हें डरा दे रहे थे, चौंका दे रहे थे बेचारियों को। वे गाड़ी का पहिया अपने ऊपर चढ़ जाने के भय से, सहम सहम कर, इधर उधर छिटक छिटक कर ही हँस पा रही थीं।

सहम सहम कर....!

मुझसे किसी की बेबसी नहीं देखी जाती है, असहाय प्राणी नहीं देखे जाते मुझसे, बचपन से ही।

अचानक, मेरे होठों पर मुस्कुराहट खेल गई। मैंने अपने साइड में अपनी गाड़ी की स्पीड, दस पर कर लिया, और जहां लड़कियों-लड़कों का झुण्ड बड़ा दिखता था, वहां गाड़ी रोक भी दे रहा था। मैं उनकी हँसी में, उनकी झूमती खिलखिलाहट में तनिक भी विघ्न, न डालने लगा।

यह कई मिनट तक चलता रहा, और आरम्भ में तो पीछे की गाड़ी वाले ने चार पांच बार हॉर्न मारा, पर मैं अपनी ही धुन में चलता रहा, तो वो भी मेरा इंटेंशन समझ गया।

"अच्छाई से बड़ी संक्रामक बीमारी कोई नहीं इस दुनिया में।"

बबवा ने, पूरे रोड पर, बिना एक भी डेसिबल का स्वर निकाले, हजारों लोगों को, लगभग चार पांच मिनट तक अपने सम्मोहन में जकड़ा रहा। सभी सुधर गए थे, सभी दस की स्पीड पर चलने लगे थे, दोनों साइड के वाहन चालक।

जिनको जेनुइन जल्दी रही हो, उनसे विनम्र क्षमा... पर क्या सचमुच किसी की जल्दी, इतनी आवश्यक है कि छोटे बच्चों के जीवन से भी अधिक आवश्यक हो??

क्यों उनको डराना?? उन्हें खिलखिलाने दो यार! बाद में हमारी तरह चक्की के पाटों के बीच उन्हें भी, आगे चलकर पिसना ही तो है।

आज तो जी लेने दो उन्हें!

मैं अब सत्यनिष्ठ हो चला हूं, सनातन के प्रति! जीवन बहुत आसान हो चला है। कहीं कोई मानसिक ग्रंथि अब रह ही नहीं गई है जीवन में, सब आसानी से तह बाई तह सुलझती जा रही हैं!

"सत्यम वदामि....!"

इं. प्रदीप शुक्ला
"जय हिन्द..!!"
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प्रेरक कथाएँ

07 Jan, 13:11


हम सनातनी लोग, सदियों से डरते-डरते एकदम कायर हो चले हैं, हर नई आहट पर चौंकते-चौंकते भीरू प्रवृत्ति ही स्थायी चरित्र हो चला है हमारा।

हाथी नहीं चौंकते, शेर नहीं चौंका करते! हिरन चौंकते हैं, मक्खी मच्छर चौंकते हैं! राजा प्रवृत्ति के लोग बात बात पर चौंकते नहीं हैं, क्योंकि डरते ही नहीं हैं किसी के भी बाप से।

हम सारे डरे सहमे हुए थे खानवुड के आतंक से, और डरना चाहिए भी था। आजादी के पश्चात् जिस तरह का राजनैतिक-पाशविक गठजोड़ बनाया गया था, कि आगे आते-आते खानवुड इतना खतरनाक लगने लगा था, कि भारतीय संस्कृति पर इतना घातक असर किया, जितना अद्यतन किसी अत्याचारी के आक्रमण या शासन, ने नहीं कर पाया था।

इन्होंने सनातनी किशोरियों को निशाने पर लिया! जिससे भारतीय परंपराओं की जड़ों के ही, इस तरह पांव उखड़ते कि फिर पूरा भारत, पाकिस्तान बनकर ही रुकता। और इनका साथ दिया कम्युनिस्ट वामपंथियों ने, जिन्हें केवल "गर्म गोश्त" चाहिए, वो भी रोज बदल बदल कर। दोनों पाशविक शक्तियों का गठजोड़ एक और एक ग्यारह के रूप में, गुणात्मक रूप में बढ़ता ही चला गया।

फिर आया नया इंटरनेट! और हमारे लोग पुनः डर गए कि इस तकनीक से तो खानवुड हमारे घरों तक में घुसकर, हमारी बच्चियों के दिमाग में सेंध लगा देगा! हम हिरणों के भयभीत झुण्ड बन चुके हैं।

और इस भय का कारण है.. बहुत सटीक कारण है...!

"क्योंकि हम हृदय से, स्वयं ही सनातनी नहीं रह गए हैं, तो अपने बच्चों को क्या खाक संस्कार देंगे?"

हमने अपनी सुविधानुसार, अपने स्वार्थ, लालच, कुत्सित कामनाओं के चलते, कितनी-कितनी बार ही शास्त्रों की धज्जियाँ उड़ाई हैं। हम झूठे और मक्कार लोग हैं! हम ढपोरशंख लोग हैं। हमें स्वयं से कुछ ठीक नहीं करना है, लेकिन बच्चे हमें आदर्श चाहिए। क्यों है न??

अरे, अपने बच्चों के साथ बैठिए! उनसे बातें करिए, उनके साथ खेलिए! उनसे सहज हो जाइए। शास्त्रों में लिखी बातें रटनी नहीं है मूर्ख रट्टू तोतों, उन्हें अप्लाई करनी हैं। वही जीवन जीने का सही और सरल तरीका है।

चलो, तुम सारे मंत्र भूल जाओ... केवल एक छोटा सा पकड़ते हैं... कहा गया है न! सत्यम वद... तो बोलो न सच बाबू भइया! इसको सूत्र को रटना नहीं है, इससे आईएएस नहीं बनना है लिख कर... इसको "करना" है!

तुम अगले साल भर के लिए रेजोल्यूशन मत लो, प्रतिज्ञा मत लो... अगले दिन तक जीवित रहने की भी कोई संसार में गारंटी ले सकता है??? अगले ही पल की गारंटी नहीं है भई।

महाभारत युद्ध के पश्चात्, जब युधिष्ठिर का राज्याभिषेक समारोह हुआ तो, दान दक्षिणा के समाप्त होने के काफी देर पश्चात्, युधिष्ठिर के समक्ष एक दीन हीन ब्राह्मण आकर दान मांग लिया।

रात हो चली थी, दिन भर के हेक्टिक शेड्यूल से क्लांत युधिष्ठिर ने हाथ जोड़कर कह दिया, "हे विप्रवर! अब सुबह ही दान की कोठरी खुलवाइए! आज क्षमा करें, कल चौगुना दक्षिणा आपको मिल जायेगी।"

सामान्य सी बात थी, विनम्रता से किया गया निवेदन था। कुछ रात हो ही चली है, कुछ पहर में सुबह हो ही जाती। किसी का ध्यान नहीं गया, कोई विशेष बात थी ही नहीं।

लेकिन भीम ठठाकर हँसने लगे! अपने भाई की ओर हाथ उठा उठाकर हँसने लगे।

सबको अजीब लगा, कि संसार भर में सम्मानित अपने बड़े भाई पर हँस रहे भीम?? सबको तनिक क्रोध भी आ गया भीम की हँसने की ढिढाई देखकर, परन्तु युधिष्ठिर, युद्ध में भी स्थिर रहने वाले महापुरुष, अत्यन्त विनम्रता से भीम से पूछे, "क्या मैंने कुछ अनुचित किया है प्रिय अनुज भीम?"

भीम हँसना रोक कर, मुस्कुराते हुए अपने बड़े भाई से हाथ जोड़कर बोले, "आप तो भगवान हो गए हैं भइया! आप ने इतने कॉन्फिडेंस से ब्राह्मण देव को, कल के लिए विदा किया है मानो आपको निश्चित पता हो कि कल क्या होने वाला है! कल तक वो ब्राह्मण जीवित भी रहेगा या नहीं! कल तक आप, हम, ये संसार जीवित रहेगा या नहीं! आप तो भविष्यदर्शी हो गए भईया!"

युधिष्ठिर को अपनी गलती समझ में आ गई। महान लोग महान इसीलिए होते हैं, कि वे किसी छोटे के द्वारा टोके जाने में कोई अपमान नहीं मान लेते। महान लोग अपनी गलतियों के प्रति सत्यनिष्ठ होते हैं।

युधिष्ठिर ने तुरन्त कोठरी खुलवाकर, ब्राह्मणदेव को यथोचित दान दिया, साथ ही पश्चाताप के साथ क्षमा भी मांगते रहे!

तो.....

तो अगले वर्ष तक का रिजॉल्यूशन मत लो... यहां अगले पल का ही कुछ निश्चित नहीं है। एक छोटा मंत्र पकड़ो "सत्यम वद..!" और गहरी सांस के साथ कि इसी पल से मैं सत्यनिष्ठ हो रहा हूं। बहुत सरल सा प्रयोग है यह। करके देखिए... इसी पल से आप सदा के लिए "निडर, निर्भय" बन जायेंगे।

लेकिन सत्यनिष्ठ पढ़ने में छोटा लग रहा है, है नहीं। मेरे सत्यनिष्ठ बोलने का अर्थ यह है कि चरित्र से, स्वयं से भी सत्यनिष्ठ होना है।

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07 Jan, 02:38


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*भगवान श्री कृष्ण जी के बारे में संपूर्ण जानकारी*

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*🌹🔅 कृष्ण का जन्म ● 5252 वर्ष पूर्व हुआ था*


*🌹🔅 जन्म तिथि ● 3228 ईसा पूर्व*


*🌹🔅 मास ● श्रावण*


*🌹🔅दिन ● अष्टमी*


*🌹🔅नक्षत्र ● रोहिणी*


*🌹🔅 दिन ● बुधवार*


*🌹🔅समय ● 00:00 पूर्वाह्न*


*🌹🔅 वंश ● चंद्रवंशी यदुवंशी क्षत्रिय*


*🌹🔅 कुल ● चंद्रवंशी क्षत्रिय*


*🌹🔅वर्तमान में श्री कृष्ण के वंशज ● जादौन, भाटी, जाड़ेजा, चुडासमा, सरवैया, रायजादा,सलारिया, छोकर, जाधव राजपूत ही श्रीकृष्ण के वास्तविक वंशज हैं ।*


*🌹🔅 श्री कृष्ण ● 125 वर्ष, 08 महीने और 07 दिन जीवित रहे।*


*🌹🔅 मृत्यु तिथि ● 3102 ईसा पूर्व।*

*🌹🔅जब कृष्ण 89 वर्ष के थे ● मेगा युद्ध (कुरुक्षेत्र युद्ध) हुआ।*


*🌹🔅कुरुक्षेत्र युद्ध के 36 साल बाद ● उनकी मृत्यु हो गई।*


*🌹🔅कुरुक्षेत्र युद्ध ● मृगशिरा शुक्ल एकादशी, ईसा पूर्व 3139. यानी " 3139 ईसा पूर्व" को शुरू हुआ था और " 3139 ईसा पूर्व" को समाप्त हुआ था।*


*🌹🔅 " 3139 ईसा पूर्व को दोपहर 3 बजे से शाम 5 बजे के बीच एक सूर्य ग्रहण था"; जयद्रथ की मृत्यु का कारण*


*🌹🔅भीष्म की मृत्यु ● (उत्तरायण की पहली एकादशी) को 3138 ईसा पूर्व में हुई थी।*


*🌹🔅 जैविक पिता ● महाराज वासुदेव*


*🌹🔅 जैविक माता ● माता देवकी*


*🌹🔅 दत्तक पिता ● नंद*


*🌹🔅 दत्तक माता ● यशोदा*


*🌹🔅 बड़े भाई ● बलराम*


*🌹🔅 बहन ● सुभद्रा*


*🌹🔅जन्म स्थान ● मथुरा*


*🌹🔅पत्नियाँ● रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नग्नजिती, भद्रा, लक्ष्मणा*


*🌹🔅 भगवान श्रीकृष्ण के 80 पुत्र ●*

*किस रानी ने किस पुत्र को जन्म दिया. प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू रुक्मिणी के पुत्र थे. साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु जाम्बवती के पुत्र थे. भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु, सत्यभामा के पुत्र थे.श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक, कालिंदी के पुत्र थे. वहीं वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि, मित्रविन्दा के पुत्र कहलाए. जबकि प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊध्र्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित, लक्ष्मणा की गर्भ से जन्मे थे. वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगुप्त, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंति, सत्या के पुत्र कहलाए और संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक,भद्रा के पुत्र थे.*

*🌹🔅 बताया जाता है कि कृष्ण जी ने अपने जीवनकाल में केवल 4 लोगों का नरसंहार किया थी।*

*⚘️(i) चानूरा ●  पहलवान*
*⚘️(ii) कंस ● उसके मामा*
*⚘️ (iii) शिशुपाल ● और*
*⚘️ (iv)दंतवक्र ● उसके चचेरे भाई.*

*🌹🔅श्रीकृष्ण जी का विभिन्न स्थानों पर जीवन काल कृष्ण जी ने अपना जीवन 3 प्रमुख भागों में बिताया ●*

*⚘️व्रज लीला - 11 वर्ष 6 महीने (बृंदावन में एक बच्चे के रूप में)*

*⚘️मथुरा लीला - 10 वर्ष 6 महीने (अपने मामा कंस को मारने के बाद एक किशोर के रूप में )*

*⚘️ द्वारका लीला - 105 वर्ष 3 माह (द्वारका में राज्य स्थापित करने के बाद*

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06 Jan, 12:51


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उर्मिला 33

माता के प्रश्न अभी समाप्त नहीं हुए थे। उन्होंने फिर कहा, "चलो मान लिया कि राम का वनवास जगतकल्याण के लिए हुआ है। यह भी मान लेती हूँ कि इस कार्य के लिए मेरा चुनाव नियति ने इसी कारण किया कि राम को सर्वाधिक प्रेम मैंने ही किया है। पर यह तो संसार के कल्याण की बात हुई न बेटी? मेरा क्या? तनिक मेरे लिए तो सोचो... मुझे मेरे पति ने त्याग दिया, मेरे पुत्र ने त्याग दिया। युग युगांतर के लिए मैं सबसे बड़ी अपराधिनी सिद्ध हो गयी। राम और भरत जैसे पुत्रों की माता होने बाद भी मैं ऐसी कलंकिनी हो गयी कि अब भविष्य में शायद ही कोई अपनी पुत्री का नाम कैकई रखे। यह मेरे किस अपराध का दण्ड है पुत्री?
उर्मिला कुछ क्षण मौन रहीं। माता का प्रश्न ऐसा नहीं था कि उसे सांत्वना दिलाने के प्रयास के साथ दबा दिया जाता। उनका प्रश्न, उनकी पीड़ा से उपजा था। एक निर्दोष स्त्री के अनायास ही युग युगांतर के लिए दोषी सिद्ध हो जाने की पीड़ा...
कुछ क्षण बाद एक उदास मुस्कुराहट के साथ उर्मिला ने उत्तर दिया। हम युगनिर्माता के परिवारजन हैं माता! महानायक राम के अपने हैं हम। इसका कुछ तो मूल्य चुकाना होगा न? तनिक देखिये तो, कौन नहीं चुका रहा है मूल्य? पिता को प्राण देना पड़ा। एक वधु वन को गयी तो अन्य तीन वधुओं के हिस्से भी चौदह वर्ष का वियोग ही आया। भइया के साथ साथ उनके तीनों अनुज भी सन्यासी जीवन जी रहे हैं। तीनों माताओं को पुत्र वियोग भोगना पड़ रहा है। दुख तो सबके हिस्से में आये हैं माता! हाँ यह अवश्य है कि आपके हिस्से में तनिक अधिक आये। तो अब क्या ही किया जा सकता है? नियति की योजनाओं को चुपचाप स्वीकार करना पड़ता है, हम इससे अधिक तो कुछ नहीं ही कर सकते न!
कैकई चुपचाप निहारती रह गईं उनकी ओर! उर्मिला सत्य ही तो कह रही थीं। देर तक शान्ति पसरी रही। यह शान्ति पुनः उर्मिला ने ही भंग की। कहा, "इस अपराधबोध से बाहर निकलिये माता! न आपका कोई दोष है, न मंथरा का। हम सब भइया की महायात्रा के संगी हैं और अपने अपने हिस्से का कार्य कर रहे हैं। इसमें न कोई अच्छा है न बुरा। सब समान ही है।"
"तो क्या मुझे कभी क्षमा न मिलेगी?" सबकुछ समझने के बाद भी स्वयं से बार बार पराजित हो जाने वाली कैकई के प्रश्न कम नहीं हो रहे थे।
"कैसी क्षमा माता? जिसके प्रति अपराधबोध भरा है आपमें, वे तो आप से जरा भी नाराज नहीं होंगे। उन्हें यूँ ही तो समूची अयोध्या इतना प्रेम नहीं करती न! वे एक क्षण के लिए भी अपनी माता से नाराज नहीं हो सकते। जब वे लौट कर आएंगे तब देखियेगा, वे सबसे पहले अपनी छोटी माँ के चरणों में ही गिरेंगे। और रही बात संसार की, तो वैसे मर्यादित और साधु पुरुषों की माता को संसार से किसी क्षमा की आवश्यकता नहीं। आपके पुत्रों के स्मरण मात्र से संसार के पाप धुलेंगे माता! यह इस संसार पर आपका उपकार है। संसार आपको क्या ही क्षमा करेगा, उसे तो युग युगांतर तक आपके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये।"
कैकई के मुख पर जाने कितने दिनों बाद एक सहज मुस्कान तैर उठी। उन्होंने उर्मिला को भींच कर गले लगा लिया। पर पलभर में ही वह मुस्कान रुदन में बदल गयी। पुत्रवधु के गले से लिपटी कैकई देर तक रोती रहीं। उर्मिला चुपचाप उनकी पीठ सहला रही थीं।
बहुत देर बाद जब वे अलग हुईं तो देखा, माता कौशल्या और सुमित्रा का साथ उनके कंधे पर था, और मांडवी और श्रुतिकीर्ति भी उनके पास खड़ी थीं। राम परिवार की देवियों ने जैसे कैकई को अपराधी मानने से इनकार कर दिया था।
क्रमशः
(पौराणिक पात्रों व कथानक लेखनी के धनी श्री सर्वेश तिवारी श्रीमुख द्वारा लिखित ये कथा इतनी प्यारी व आकर्षण भरी लगी, कि शेयर करने के लोभ को रोक न पाया )

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06 Jan, 02:44


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*प्रेरक कहानी: सोच का फ़र्क*

एक शहर में एक धनी व्यक्ति रहता था, उसके पास बहुत पैसा था और उसे इस बात पर बहुत घमंड भी था| एक बार किसी कारण से उसकी आँखों में इंफेक्शन हो गया|

आँखों में बुरी तरह जलन होती थी, वह डॉक्टर के पास गया लेकिन डॉक्टर उसकी इस बीमारी का इलाज नहीं कर पाया| सेठ के पास बहुत पैसा था उसने देश विदेश से बहुत सारे नीम- हकीम और डॉक्टर बुलाए| एक बड़े डॉक्टर ने बताया की आपकी आँखों में एलर्जी है| आपको कुछ दिन तक सिर्फ़ हरा रंग ही देखना होगा और कोई और रंग देखेंगे तो आपकी आँखों को परेशानी होगी|

अब क्या था, सेठ ने बड़े बड़े पेंटरों को बुलाया और पूरे महल को हरे रंग से रंगने के लिए कहा| वह बोला- मुझे हरे रंग से अलावा कोई और रंग दिखाई नहीं देना चाहिए मैं जहाँ से भी गुजरूँ, हर जगह हरा रंग कर दो|

इस काम में बहुत पैसा खर्च हो रहा था लेकिन फिर भी सेठ की नज़र किसी अलग रंग पर पड़ ही जाती थी क्यूंकी पूरे नगर को हरे रंग से रंगना को संभव ही नहीं था, सेठ दिन प्रतिदिन पेंट कराने के लिए पैसा खर्च करता जा रहा था|

वहीं शहर के एक सज्जन पुरुष गुजर रहा था उसने चारों तरफ हरा रंग देखकर लोगों से कारण पूछा| सारी बात सुनकर वह सेठ के पास गया और बोला सेठ जी आपको इतना पैसा खर्च करने की ज़रूरत नहीं है मेरे पास आपकी परेशानी का एक छोटा सा हल है.. आप हरा चश्मा क्यूँ नहीं खरीद लेते फिर सब कुछ हरा हो जाएगा|


सेठ की आँख खुली की खुली रह गयी उसके दिमाग़ में यह शानदार विचार आया ही नहीं वह बेकार में इतना पैसा खर्च किए जा रहा था|

*तो मित्रों, जीवन में हमारी सोच और देखने के नज़रिए पर भी बहुत सारी चीज़ें निर्भर करतीं हैं कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होता है लेकिन हम परेशानी में फँसे रहते हैं|*

*इसे कहते हैं सोच का फ़र्क|*

प्रेरक कथाएँ

05 Jan, 04:02


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*प्रेरक विचार: हमारे श्री कृष्णा मानव इतिहास के एकमात्र नायक है। वह महानायक है,रियल हीरो है।*

आपने कभी सोचा है, कि वे जेल में ही क्यों जन्मे ?
भादो की काली अँधेरी रात में जब वे आये, तो सबसे पहला काम यह हुआ कि जंजीरे कट गयीं। जन्म देने वाले के शरीर की भी, और कैद करने वाली कपाटों की भी। वस्तुतः वह आया ही था जंजीरे काटने... हर तरह की जंजीर!

जन्म लेते ही वह बेड़ियां काटता है। थोडा सा बड़ा होता है, तो लज्जा की जंजीरे काटता हैं। ऐसे काटता है कि सारा गांव चिल्लाने लगता है- कन्हैया हम तुमसे बहुत प्रेम करते हैं। सब चिल्लाते हैं- बच्चे, जवान, बूढ़े, महिलाएं, लड़कियां सब... कोई भय नहीं, कोई लज्जा नही!

वह प्रेम के बारे में सबसे बड़े भ्रम को दूर करता है, और सिद्ध करता है कि प्रेम देह का नही हृदय का विषय है। माथे पर मोरपंख बांधे आठ वर्ष की उम्र में रासलीला करते उस बालक के प्रेम में देह है क्या? मोर पंख का रहस्य जानते हैं? मोर के सम्बन्ध में लोक की एक प्राचीन धारणा है कि वह मादा से शारीरिक सम्बन्ध नही बनाता। मेघ को देख कर नाचते मोर के मुह से गाज़ गिरती है,और वही खा कर मोरनी गर्भवती होती है। माथे पर मोर मुकुट बांधे वह बालक इस तरह स्वयं को गोस्वामी सिद्ध करता है। वह एक ही साथ "पूर्ण पुरुष" और "गोस्वामी" की दो परस्पर विरोधी उपाधियाँ धारण करता है।

कुछ दिन बाद वह समाज की सबसे बड़ी रूढ़ि पर प्रहार करता है, जब पूजा की पद्धति ही बदल देता है। अज्ञात देवताओँ के स्थान पर लौकिक और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा को प्रारम्भ कराना उस युग की सबसे बड़ी क्रांति थी। वह नदी, पहाड़, हल, बैल, गाय, की पूजा और रक्षा की परम्परा प्रारम्भ करता है। वह इस सृष्टी का पहला पर्यावरणविद् है।

थोडा और बड़ा होता है तो परतंत्रता की बेड़ियां काटता है, और उस कालखंड के सबसे बड़े तानाशाह को मारता है। ध्यान दीजिये, राजा बन कर नही मारता, आम आदमी बन कर मारता है। कोई सेना नहीँ, कोई राजनैतिक गठजोड़ नहीं। एक आम आदमी द्वारा एक तानाशाह के नाश की एकमात्र घटना है यह।

इसके बाद वह सृष्टि की सबसे बड़ी बेड़ी पुरुषसत्ता पर प्रहार करता है। तनिक सोचिये तो, आज अपने आप को अत्याधुनिक बताने वाले लोग भी क्या इतने उदार हैं कि सामाज की परवाह किये बगैर अपनी बहन को अपनी गाड़ी पर बैठा कर उसके योग्य प्रेमी के साथ विदा कर दे ? पर वह ऐसा करता है। ठीक से सोचिये तो स्त्री समानता को लागु कराने वाला पहला व्यक्ति है वह। वह स्त्री की बेड़ियां काटता है।



कुछ दिन बाद वह एक महान क्रांति करता है। नरकासुर की कैद में बंद सोलह हजार बलात्कृता कुमारियों की बेड़ी काट कर, और उनको अपना नाम दे कर समाज में रानी की गरिमा दिलाता है।

फिर वह उंच नीच की बेड़ियां काटता है और राजपुत्र हो कर भी सुदामा जैसे दरिद्र को मित्र बनाता है, और मित्रता निभाता भी है। ऐसा निभाता है कि युगों युगों तक मित्रता का आदर्श बना रहता है।

फिर अपने जीवन के सबसे बड़े रणक्षेत्र में अन्याय की बेड़ियां काटता है। कहते हैं कि यदि वह चाहता तो एक क्षण में महाभारत ख़त्म कर सकता था। पर नहीं, उसे न्याय करना है, उसे दुनिया को बताना है कि किसी स्त्री का अपमान करने वाले का समूल नाश होना ही न्याय है। वह स्वयं शस्त्र नहीं छूता, क्योकि उसे पांडवों को भी दण्डित करना है। स्त्री आपकी सम्पति नही जो आप उसको दांव पर लगा दें, स्त्री जननी है, स्त्री आधा विश्व् है। वह स्त्री को दाव पर लगाने का दंड निर्धारित करता है, और पांडवों के हाथों ही उनके पुर्वजों का वध कराता है। अर्जुन रोते हैं, और अपने दादा को मारते हैं। धर्मराज का हृदय फटता है पर उन्हें अपने मामा, नाना, भाई, भतीजा, बहनोई को मारना पड़ता है। अपने ही हाथों अपने बान्धवों की हत्या कर अपनी स्त्री को दाव पर लगाने का दंड वे जीवन भर भोगते हैं। वह न्याय करता है। वह अन्याय की बेड़ियां तोड़ता है।

वह मानव इतिहास का एकमात्र नायक है। वह महानायक है,रियल हीरो है...

वह! कन्हैया...भारत का प्राण कन्हैया... इस जगत का सबसे बड़ा गुरु कन्हैया... सबसे अच्छा मित्र कन्हैया... सबसे बड़ा प्रेमी कन्हैया... सबसे अच्छा पति कन्हैया... सबसे अच्छा पुत्र कन्हैया... सबसे अच्छा भाई कन्हैया... कन्हैया...
आओ कान्हा, काटो हमारी बेड़ियां!

प्रेम से बोलो : राधे कृष्णा
प्रेम से बोलो : राधे कृष्णा
प्रेम से बोलो : राधे कृष्णा

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02 Jan, 13:19


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कहानी
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सर .....मुझे पहचाना.....
कौन....
सर..... मैं आपका स्टूडेंट.. 40 साल पहले का.....

ओह.... अच्छा, आजकल ठीक से दिखता नही बेटा
और याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है...
इसलिए नही पहचान पाया।

खैर... आओ, बैठो.. क्या करते हो आजकल......
उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते
हुए पूछा...
.
सर....मैं भी आपकी ही तरह टीचर बन गया हूँ....
.
वाह.....यह तो अच्छी बात है लेकिन टीचर की तनख़ाह तो बहुत कम होती है फिर तुम कैसे…...
.
सर.... जब मैं सातवीं क्लास में था तब हमारी कलास में एक वाक़िआ हुआ था.. उस से आपने मुझे बचाया था। मैंने तभी टीचर बनने का इरादा कर लिया था।
.
वो वाक़िआ मैं आपको याद दिलाता हूँ..
आपको मैं भी याद आ जाऊँगा।
.
अच्छा ....
क्या हुआ था तब .....
.
सर, सातवीं में हमारी क्लास में एक बहुत अमीर
लड़का पढ़ता था।
जबकि हम बाक़ी सब बहुत ग़रीब थे।
.
एक दिन वोह बहुत महंगी घड़ी पहनकर आया था
और उसकी घड़ी चोरी हो गयी थी।
कुछ याद आया सर.....
.
सातवीं कक्षा.....
.
हाँ सर, उस दिन मेरा दिल उस घड़ी पर आ गया था
और खेल के पीरियड में जब उसने वह घड़ी अपने
पेंसिल बॉक्स में रखी तो मैंने मौक़ा देखकर
वह घड़ी चुरा ली थी।
.
उसके बाद आपका पीरियड था...
.
उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की
शिकायत की।
.
आपने कहा कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है
उसे वापस कर दो। मैं उसे सज़ा नहीं दूँगा।
.
लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई
घड़ी वापस करने की।
.
फिर आपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और
हम सबको एक लाइन से आँखें बंद कर खड़े
होने को कहा...
.
और यह भी कहा कि आप सबकी जेब देखेंगे...
.
लेकिन जब तक घड़ी मिल नहीं जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नहीं खोलेगा वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।
.
हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए।
.
आप एक-एक कर सबकी जेब देख रहे थे।
जब आप मेरे पास आये तो
मेरी धड़कन तेज होने लगी।
.
मेरी चोरी पकड़ी जानी थी।
अब जिंदगी भर के लिए मेरे ऊपर चोर का
ठप्पा लगने वाला था।
.
मैं पछतावे से भर उठा था।
उसी वक्त जान देने का इरादा कर लिया था लेकिन….
.
लेकिन मेरी जेब में घड़ी मिलने के बाद भी
आप लाइन के आख़िर तक सबकी जेब देखते रहे।
.
और घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए कहा...
.
अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नहीं आना
और जिसने भी यह चोरी की थी वह
दोबारा ऐसा काम न करे।
.
इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढाने लगे थे... कहते कहते उसकी आँख भर आई।
.
वह रुंधे गले से बोला,
आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया। आगे भी कभी किसी पर भी आपने मेरा चोर होना
जाहिर न होने दिया।
.
आपने कभी मेरे साथ फ़र्क़ नहीं किया।
उसी दिन मैंने तय कर लिया था कि मैं
आपके जैसा टीचर ही बनूँगा।
.
हाँ हाँ…मुझे याद आया।
उनकी आँखों मे चमक आ गयी।
फिर चकित हो बोले...
.
लेकिन बेटा… मैं आजतक नहीं जानता था
कि वह चोरी किसने की थी क्योंकि...
.
जब मैं तुम सबकी जेब देख कर रहा था तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं..!!
.

प्रेरक कथाएँ

02 Jan, 07:56


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*बेचारा तेजपत्ता* 🍂 😨

*भोजन करते समय अक्सर हम सबने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा....*
*पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से बाहर न करके बड़े चाव से इसका सेवन शुरू कर देंगे..!*

*तेजपत्ता को तेजपत्र, तेजपान, तमालका, तमालपत्र, तेजपात, इन्डियन केसिया आदि आदि नामों से जाना जाता है।*

*तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू- कश्मीर, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है।*

*ये हमेशा हरा रहने वाले तमाल वृक्ष के पत्ते हैं जो कई सालों तक लगातार उपज देता रहता है।*

*इस पेड़ को यदि एक बार लगाया गया तो यह 50 से 100 सालों तक उपज देकर सेवा करता रहता है।*

*रोपण करने के 6 साल बाद जब इसका पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियों को इक्कठा कर लिया जाता है।*

*पत्तियों को इक्कठा करने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है।*

*तब ये पत्तियां उपयोग करने के लिए तैयार हो जाती है। फसल की कटाई करने का बाद, इसकी पत्तियों को छाया में सुखाया जाता है।*

*तेज पत्ते का तेल निकालने के लिए आसवन यंत्र का प्रयोग किया जाता है।*

*इसकी पत्तियों से हमे 0.6% खुशबूदार तेल की प्राप्ति होती है।*

*इसका तेल भी एक बहुआयामी बहुकीमती औषधि है।*

*औषधीय गुण* 🍾👌

*तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम, जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में अत्यंत उपयोगी है।*

*तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते रहे हैं।*

*चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम, छींकें आना, बुखार, नाक बहना, जलन, सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है।*

*तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है।*

*तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है।*

*एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।*

*तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है।*

*कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिये, ऊनी, सूती, रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे।*

*अनाजों के बीच में 4-5 पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे लेकिन उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।*

*अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है, वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न.!*

*तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए, आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा, कभी हृदय रोग नहीं होंगे।*

*इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।*

*इसका धुँआ मिर्गी रोगी के लिए काफी लाभदायक होता है।*

प्रेरक कथाएँ

02 Jan, 03:21


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*प्रेरक जानकारी: पीपल वृक्ष नहीं अपितु साक्षात देवता है..!!*

भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। पीपल वृक्ष प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस में विशेष रूप से पूजनीय रहा है। ग्रंथों में पीपल को प्रत्यक्ष देवता की संज्ञा दी गई है। स्कन्दपुराणमें वर्णित है कि अश्वत्थ(पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टोंका साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है।

भगवान कृष्ण कहते हैं-अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणांअर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्वको व्यक्त किया है...

"पीपल महत्त्व.!!"
🔸🔸🔹🔸🔸
जो व्यक्ति पीपल का पौधा लगाता है और उसकी पूरी उम्र उसकी सेवा करता है, उस जातक की कुंडली के सभी दोष नष्ट हो जाते हैं, उसके परिवार में सुख-समृद्धि आती है और शांति का वास रहता है।
::
शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करके उसकी सेवा करता है तो वह व्यक्ति जीवन के कष्टों से मुक्त रहता है और बुरा समय भी टल जाता है।

::
दिन ढलने के बाद पीपल के वृक्ष के पास दीपक जलाना भी शुभ माना जाता है।
::
पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा पढ़ने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और जीवन की परेशानियों को हर लेते हैं। जीवन की हर बाधा समाप्त होती है।
::
पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है।
::
पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।
::
शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादानसे शनि की पीडा का शमन होता है।
::
अथर्ववेदके उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है।
::
अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या में पीपल वृक्ष के पूजन से शनि से मुक्ति प्राप्त होती है।श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से बडे से बड़े संकट से मुक्ति मिल जाती है। पीपल का वृक्ष इसीलिए ब्रह्मस्थानहै। इससे सात्विकताबढती है।
::
पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र,जप और ध्यान उपादेय रहता है। श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुगमें परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसका प्रभाव तन-मन तक ही नहीं भाव जगत तक रहता है।
::
सांयकाल के समय पीपल के नीचे मिट्टी के दीपक को सरसों के तेल से प्रज्ज्वलित करने से दुःख व मानसिक कष्ट दूर होते है।
::
पीपल की परिक्रमा सुबह सूर्योदय से पूर्व करने से अस्थमा रोग में राहत मिलती है।
::
पीपल के नीचे बैठ कर ध्यान करने से ज्ञान की वृद्धि हो कर मन सात्विकता की ओर बड़ता है।
::
यदि ग्यारह पीपल के वृक्ष नदी के किनारे लगाए जाय तो समस्त पापों का नाश होता है।
::
यदि ग्यारह नवनिर्मित मंदिरों में शुभ मुहूर्त में पीपल वृक्ष लगा कर चालीस दिनों तक इनकी सेवा या देखभाल* (कहीं सूख ना जाये) करने पर उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती और जब तक वह जीवित रहता है तब तक उसके अपने परिवार में भी अकाल मृत्यु नही होती है।
::
पीपल वृक्ष 24 घंटे सिर्फ ऑक्सीजन ही छोड़ता है, अत: पीपल का वृक्ष आक्सीजन का भण्डार है यही आक्सीजन हमारे जीवन में भी आ कर हमे निरोग व सुख का मार्ग प्रशस्त करती रहती है।
::
मार्ग में जहां भी पीपल वृक्ष मिले उसे देव की तरह प्रणाम करने से भी लाभ होते है....!

प्रेरक कथाएँ

01 Jan, 08:03


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*सर्दी,जुकाम नाक बंद, गला दर्द व कफ संबंधित समस्याओं पर अपनावे ये उपाय_*

सर्दी जुकाम
सर्दी जुकाम की घटना अनेक चरणों में होती है। हर एक चरण का अलग उपचार होता है। ध्यान से पढ़ें।
1. गला दर्द - काली मिर्च नमक में मिलाकर चाटें और उस ओर से निगलें जिस ओर गला दर्द कर रहा है।
2. सूखी खांसी- थोड़ा सा अमृतधारा डालकर गर्म पानी पी लें।
3. आंख, नाक, कान, गला सब कुछ खुजलाना- आधा चम्मच सोंठ के साथ गर्म पानी पी लें।
4. नाक बहने वाला जुकाम- अदरक का रस निकालें और बराबरी से शहद मिलाकर एक एक चम्मच दिन भर में पांच-छह बार ले लें।
5. जुकाम के साथ बुखार भी- अन्य उपचारों के अतिरिक्त अजवाइन का उबला पानी ही दिन भर गुनगुना करके पिएं।
6. कफ गाढ़ा होने के बाद नाक बंद हो जाना, फेफड़ों में कफ भर जाना- छाती गले पीठ और गर्दन पर अमृतधारा लगाकर सोएं।
नियमित रसाहार अडूसा, गिलोय, तुलसी, ग्वारपाठा, हल्दी।
अधिक कष्ट हो तो पिप्पली चटनी दिन में बार और आवश्यक हो तो रात में भी भी।
7. नाक और गले से रक्त भी आता हो या पुराना कफ हो, अस्थमा या एलर्जी हो जाए तो लंबे समय तक रसाहार और पिप्पली चटनी दोनों लें।
इन सब स्थितियों में सिर या शरीर गीला रखकर तेज हवा न लगने दें। इनमें से किसी भी अवस्था में दूध या दूध से बने पदार्थ, तले हुए पदार्थ, आइसक्रीम, इमली, कैरी, फास्ट फूड, कोल्ड ड्रिंक या बेकरी पदार्थ अपथ्य हैं। प्रातः देर तक सोने या रात को देर तक जागने से अधिक परेशानी होगी।
खांसी तब अधिक होती है।
1. जब जुकाम होने वाला हो।
2. जब जुकाम होकर ठीक हो गया हो, लेकिन कफ बना हुआ रहे।
3. जब आप सुबह देर से उठे और आपकी श्वास नली से स्वाभाविक रूप से सुबह कफ न निकल सके।
उन सबके लिए उपचार
1. नमक के गरारे करें
2. पिप्पली चटनी चाटें।
3. ग्वारपाठा का रस लें।
4. सोते समय यदि खांसी आए तो थोड़ा सा कत्था मुंह में रखकर चूसते रहें।
5. लौंग भूनकर पीसकर चुटकी भर मुंह में रखकर चूसते रहें।

प्रेरक कथाएँ

01 Jan, 04:21


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*प्रेरक कहानी: चित्रकार की गलती*

  किसी शहर में एक प्रसिद्द  चित्रकार रहता था. देश-विदेश में उसकी चित्र प्रदर्शनी देखने हजारों लोग आते थे और उसके काम की प्रशंसा करते नहीं थकते थे.
एक बार उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नही कि लोग सिर्फ उसके मुंह पे उसकी तारीफ़ करते हैं और पीठ पीछे उसके काम में कमी निकालते हैं.
यही सोच कर उसने अपनी बनायी एक मशहूर पेंटिंग सुबह-सुबह शहर के एक व्यस्त चौराहे पर लगा दी और नीचे लिख दिया-
जिसे भी इस पेंटिंग में कहीं कोई कमी नज़र आये वह उस जगह एक निशान लगा दे.
शाम को जब वो पेंटिंग देखने चौराहे पर गया तो उसकी आँखें फटी-फटी रह गयीं… पेंटिंग पे सैकड़ों निशान लगे हुए थे. वह बहुत निराश हो गया और चुपचाप पेटिंग उठा कर अपने घर चला गया.
इस घटना का उसपर बहुत बुरा असर हुआ. उसने चित्रकारी करना छोड़ दिया और लोगों से मिलने-जुलने से भी कतराने लगा.
एक दिन उसके किसी दोस्ती ने उसकी निराश का कारण पूछा तब उसने उदास मन से उस दिन की घटना सुना डाली.
मित्र बोला, “एक काम करते हैं हम एक बार और तुम्हारी बनायी कोई पेटिंग उस चौराहे पर रखते हैं.”
और अगली सुबह उन्होंने चौराहे पर एक नयी पेंटिंग लगा दी. पेटिंग लगाने के बाद चित्रकार उसके नीचे फिर से वही लाइन लिखने जा रहा था कि “ जिसे भी इस पेंटिंग में कहीं  कोई कमी नज़र आये  वह  उस जगह एक निशान लगा दे. “
कि तभी दोस्त ने उसे रोका और कहा इस बार लिखो-
जिस किसी को भी इस पेंटिंग में कहीं भी कोई कमी दिखाई दे उसे सही कर दे.
शाम को जब दोनों दोस्त उस पेंटिंग को देखने गया तो उन्होंने देखा कि पेंटिंग जैसी सुबह थी अभी भी बिलकुल वैसी की वैसी ही है.
दोस्त चित्रकार को देखकर मुस्कुराया और बोला, “कुछ समझे…. कोई भी मूर्ख गलतियाँ निकाल सकता है और ज्यादातर मूर्ख निकालते ही हैं…लेकिन गलतियाँ सुधारने वाले बहुत कम ही लोग होते हैं… बेकार में ऐसे लोगों की राय लेने का कोई फायदा नहीं जो सिर्फ और सिर्फ दूसरों मीन मेख निकालना चाहते हैं… उन्हें नीचा दिखाना चाहते हैं…. लेकिन उनको सुधारने के लिए न उनके पास समय है और न ज्ञान.
इसलिये गलती तुम्हारे चित्र में नहीं बल्कि गलती ऐसे लोगों से सलाह मांगने में है!”
चित्रकार अपने दोस्त की बात समझ चुका था और अब वह दुबारा अपना मनपसंद काम करने लगा… वह पेंटिंग्स बनाने लगा.


दोस्तों इस कहानी से हमें कुछ महत्त्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं-
हमें हर किसी से उसकी “सलाह” या “advice” नहीं लेनीचाहिए.
यदि हमें सलाह लेनी ही है तो अपनी फील्ड के एक्सपर्ट से ही सलाह या फीडबैक लें.
हमें वो इंसान बनने से बचना चाहिए जो सिर्फ गलतियाँ निकालना जानता है.
हमें वो इंसान बनना चाहिए जो औरों की गलती को सुधार कर उनके जीवन को सकारात्मक बना सके I
  
*आप सभी को नव वर्ष 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई*
🙏🏻

प्रेरक कथाएँ

31 Dec, 15:01


ऋषि आस्तिक ने अपने एक शिष्य से कहा, “जाओ, ऋषि वैशंपायन को यहाँ बुलाओ और उनसे कहो कि राजा जनमेजय को संपूर्ण सत्य का ज्ञान दें। वह ज्ञान जो उनके गुरु महर्षि कृष्ण द्वैपायन बजनारायण वेद व्यास की रचना है। जिसे गौरीपुत्र गणेश ने लिपिबद्ध किया है। यह कथा जानने के बाद ही राजा जनमेजय के मन से अज्ञानता का तिमिर दूर होगा और वे नाग जाति को नहीं, अपितु अपने मन को "जय" कर सकेंगे।

इस प्रकार "जय" की कहानी प्रारंभ होती है जो कालांतर में महाभारत के नाम से विश्व विख्यात हुई।
पोस्ट का मूल उद्देश्य महाभारत की कथा लिखना नहीं था। वे आप सभी मुझसे बेहतर जानते हैं। किंतु पोस्ट वर्तमान के जिस कटु सत्य से अवगत कराती है, उसका सीधा संबंध महाभारत से है, अतएव शब्द स्वतः जुड़ने लगे और यह पोस्ट लंबी हो गई। जब ध्यान आया कि भावना के अतिरेक में महाभारत कथा तक पहुँच गये तो स्मरण हुआ कि महाभारत के प्रथम श्लोक "नारायणं नमस्कृत्य" के बिना महाभारत का अंश लिखना अनुचित है।
-Shivi snighdhi

क्रमशः

प्रेरक कथाएँ

31 Dec, 15:01


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पाकिस्तान_में_पांडवों_के_वंशज भाग-१

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् |
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत् ||

राजा जनमेजय ने नाग जाति के समूल विनाश के लिये निर्यायक युद्ध का ऐलान कर दिया था। नागों के अड्डे खोजे जा रहे थे और चुन-चुन कर उन्हें समाप्त किया जा रहा था।
नागों के विरुद्ध इस अभियान में सफलता में दैवीय कृपा पाने के लिये जनमेजय ने ऋषि उत्तंक के नेतृत्व में यज्ञ आरंभ करवाया। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो संसार के समस्त नाग एक-एक कर यज्ञ कुंड में समाहित होते जा रहे हों। तभी ऋषि आस्तिक वहाँ पधारे और राजा जनमेजय से नाग जाति के विरुद्ध अभियान रोकने को कहा।

"क्षमा करें ऋषिवर, किंतु आप तो ऐसा कहेंगे ही। आपकी माता मनसा नागदेवी हैं। नागों के प्रति आपका लगाव स्वाभाविक है। आपका यही लगाव आपको यह देखने नहीं दे रहा कि इन्होंने मेरे पिता, राजा परीक्षित की है। अब मैं इस संसार से समस्त नागों को मिटा कर अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लूँगा।" जनमेजय ने रोषपूर्वक कहा।

“राजन! मेरे पिता ऋषि जरत्कारु एक मानव थे। मेरा लगाव जितना नाग जाति से है, उतना ही मानव जाति से भी।
आप केवल अपने पिता की हत्या देख रहे हैं, किंतु यह घटनाक्रम केवल यहीं तक सीमित नहीं है। इसके बीज तो वर्षों पहले पड़ गये थे। तब आप, आपके पिता यहाँ तक कि आपके पितामह का भी कोई अस्तित्व नहीं था।” ऋषि आस्तिक ने संयमित स्वर में उत्तर दिया।

"वर्षों पहले?? मैं कुछ समझा नहीं ऋषिवर।" भ्रमित जनमेजय ने कौतूहलवश कहा।

“हे राजन!” ऋषि आस्तिक ने कहा, “जितना तुम जानते हो, सत्य केवल उतना ही नहीं है। इसके पीछे कई कड़ियाँ हैं। कई परतें हैं। तुम तो मात्र सत्य के एक छोटे से अंश मात्र से भिज्ञ हो। वर्षों पहले तुम्हारे प्रपितामह ने अपना राज्य बसाने के लिये एक वन को जलाया था। वह वन नाग जाति का निवास था। नाग जाति के मुखिया तक्षक ने भी तब तुम्हारे वंश से प्रतिशोध लेने का संकल्प लिया था। कुरुक्षेत्र के युद्ध में भी उसने तुम्हारे प्रपितामह के परम वैरी की सहायता करने का प्रयत्न किया था, किंतु वह सफल नहीं हो सका। उसने तुम्हारे पिता के चिर प्रतिद्वंदी से एक अवसर और माँगा था, किंतु पुनरपि एक ही चाल का प्रयोग करना तुम्हारे प्रपितामह के शत्रु को अपने आत्मसम्मान, अपनी बुद्धि, अपनी वीरता का अपमान लगा। तक्षक का प्रतिशोध अधूरा रह गया। इसलिये नाग जाति ने तुम्हारे पिता की हत्या कर के अपने वर्षों का प्रतिशोध पूरा किया।”

"किंतु इन सब में मेरे पिता का क्या दोष था ऋषिवर? आपके इस कथन ने तो मेरे हृदय में धधकती प्रतिशोध की अग्नि को और भी प्रचंड बना दिया है। जहाँ तक मुझे पता है, वह वन भी मेरे प्रपितामह के पूर्वजों के अधिकार क्षेत्र में था। नाग जाति का क्या अधिकार था उस भूमि में रहने का जिसे मेरे प्रपितामह के पूर्वजों ने बसाया था? यदि उन्हें हटाने के लिये मेरे प्रपितामह ने वन को जलाया तो इसमें अनुचित क्या है?
ऋषिवर! मेरे हृदय की तृष्णा तअब पहले से भी अधिक विकराल हो चुकी है। उन नागों के रक्त से मैं स्नान कर के अपने पिता के प्रतिशोध साथ-साथ अपने पूर्वजों के अधूरे कार्य को भी संपन्न करूँगा। मेरी प्रत्येक नाड़ी में रक्त के साथ नाग जाति के अस्तित्व मिटा देने का संकल्प बह रहा है।" जनमेजय ने अधीर हो कर कहा।

“राजन! जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था और कल किसी और का हो जायेगा। वह वन तुम्हारे प्रपितामह के पूर्वजों का था, किंतु बाद में वह निर्जन हो गया। वह नाग जाति का निवास बना जहाँ उन्हें देवराज इंद्र ने बसाया था।
तुम्हारे प्रपितामह ने अपने नये राज्य को बसाने के लिये वन को जलाया। जिसमें कई नाग कालकवलित हुए। आज वह साम्राज्य तुम्हारा है, कल किसी और का होगा। यही सनातन सत्य है। जो नाग उस दावानल में भस्म हुए, उनके संबंधियों के मन में तुम्हारे वंश के प्रति प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हुई। उन्होंने तुम्हारे पिता की हत्या कर के अपना प्रतिशोध पूर्ण किया। अपने पिता के प्रतिशोध में तुमने इस नाग यज्ञ का आयोजन किया है। इसमें अब तक अनगिनत नाग मारे जा चुके हैं। उनकी संतानों में भी प्रतिशोध की भावना उत्पन्न होगी। कालांतर में कभी न कभी संभवतः वे अपना प्रतिशोध लेने में सफल हो भी जायें। प्रतिशोध का यह चक्रवृद्धि क्रम अब समाप्त होना चाहिये।” ऋषि आस्तिक ने अधीर जनमेजय के हृदय में अपनी ओजस्वी वाणी की शीतलता उड़ेलते हुए कहा। “राजन! तुमने केवल अपने प्रपितामह का साम्राज्य उत्तराधिकार प्राप्त किया है, किंतु मुझे यह देख कर भीषण व्यथा हो रही है कि तुम उनके ज्ञान के उत्तराधिकारी नहीं बन सके।”

प्रेरक कथाएँ

31 Dec, 11:22


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शकरकन्द उगायें और सभी तक लाभ पहुंचायें , अपना व राष्ट्र का धन बचाएं
शकरकन्द : नव जीवन दे सकती है
1 शकरकंद का परिचय
2 शकरकंद क्या है ?
3 अन्य भाषाओं में शकरकंद के नाम
4 शकरकंद के फायदे
4.1 विबंध या कब्ज में फायदेमंद शकरकंद
4.2 शकरकंद का सेवन दस्त रोकने में फायदेमंद
4.3 मूत्र संबंधी समस्याओं में फायदेमंद शकरकंद
4.4 फोड़ा सुखाने के लिए शकरकंद का प्रयोग
4.5 झाइंयों या पिग्मेंटशन को कम करे शकरकंद
4.6 त्वचा में निखार लाये शकरकंद
4.7 कमजोरी दूर करें शकरकंद
4.8 बिच्छू के काटने पर शकरकंद का प्रयोग
5 शकरकंद का उपयोगी भाग
6 शकरकंद का इस्तेमाल कैसे करें ?
7 शकरकंद कहां पाया या उगाया जाता है?
शकरकंद का परिचय
शकरकंद को मीठा आलू भी कहते हैं। आम तौर पर उपवास के समय शकरकंद को उबालकर खाया जाता है क्योंकि ये एनर्जी या ऊर्जा का स्रोत होता है। शकरकंद (shakarkand) में कई तरह की पौष्टिकताएं होती है जिसके कारण आयुर्वेद में औषधि के रुप में उपयोग किया जाता है। शकरकंद एक ऐसा फल है जो कच्चा या पका दोनों रूपों में सेवन किया जाता है। और उसको उबालकर खाना अच्छा होता है। शायद आपको ये सुनकर आश्चर्य होगा कि शकरकंद मीठा होने के बावजूद डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है। चलिये शकरकंद के बारे में और शकरकंद के फायदों के बारे में आगे विस्तार से बात करते हैं।

शकरकंद क्या है ?
शकरकंद विटामिन सी, विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स, आयरन, फॉस्फोरस और बीटा कैरोटीन का स्रोत होता है जिसके कारण पौष्टिकता से भरपूर होता है। शकरकंद मीठा, थोड़ा ठंडा और गरम, वात और पित्त को कम करने वाला, कफ को बढ़ाने वाला, शक्ति को बढ़ाने वाला, कब्ज से राहत दिलाने वाला होता है। इसका कंद विरेचक, वाजीकारक, मूत्रल बलकारक, कवकरोधी, जीवाणुरोधी, विबन्ध, प्रदर, अर्श, मधुमेह, कुष्ठ, पूयमेह तथा मूत्रकृच्छ्र में हितकर होता है। इसके भूमिगत कंद (bulb),लाल, सफेद अथवा पीले रंग का होता है। आम तौर पर शकरकंद बीच में मोटा तथा दोनों किनारों पर पतला होता है।

अन्य भाषाओं में शकरकंद के नाम
शकरकंद का वानास्पतिक नाम Ipomoea batatas (Linn.) Lam. (आइपोमिया बटॉटास्) Syn-Convolvulus batatas Linn होता है। ये कुल : Convolvulaceae (कान्वाल्वुलेसी) का होता है। शकरकंद को अंग्रेजी में : स्वीट पोटैटो कहते हैं। लेकिन इसके अलावा भारत के अन्य प्रांतों में शकरकंद को दूसरे नामों से भी पुकारा जाता है।

Sanskrit-सितालुक
Hindi-शकरकन्द
Urdu-शकरकन्द (Shakarkand)
Assamese-बोगालु (Bogaalu), रंगालु (Rangaalu)
Konkani-कनंग (Kanang), कोनोंग (Konong)
Kannada-गेनासु (Genasu); कनंगी (Kanangi), सक्कारीया (Sakkariya)
Tamil-सक्केराईवल्लेइकेलांगु (Sakkereivelleikelangu), वालीकिलांगु (Vallikilangu)
Telugu-गेनासू (Genasu), चेलागडा (Chelagada)
Bengali-रंगालु (Rangaalu), चिनेलू (Chinealu), लाल आलू (Lal alu)
Panjabi-शखर-कुन्द (Sakhar-kund), शकरकंद (Shakarkand)
Marathi-रतालु (Ratalu), रताली (Ratali)
Malayalam-कापाकालेंगा (Kapakalenga)
English-स्वीट पोटेटो (Sweet potato)
Arbi-बटाटा हलुवाह (Batatah haluwah)
Persian-लर्दाकलाहोरी (Lardaklahori)
शकरकंद के फायदे
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि शकरकंद के बहुत सारे स्वास्थ्यवर्द्धक गुण होते हैं, इसलिए आयुर्वेद में इसको कई तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। शकरकंद किन-किन बीमारियों के लिए और कैसे प्रयोग में लाया जाता है ये जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।

विबंध या कब्ज में फायदेमंद शकरकंद
अक्सर आहार में फेरबदल होने पर कब्ज की परेशानी होती है या किसी-किसी को लंबे समय तक कब्ज के समस्या से ग्रस्त रहना पड़ता है। शकरकंद को भूनकर सेवन करने से कब्ज के कष्ट से निजात मिलता है।
शकरकंद का सेवन दस्त रोकने में फायदेमंद
खान-पान में समस्या होने पर या इंफेक्शन होने पर दस्त की परेशानी होती है। लंबे समय तक दस्त होने पर शरीर से जल की मात्रा कम हो जाती है। शकरकंद के जड़ को उबालकर सेवन करने से अतिसार या दस्त से राहत मिलती है।

मूत्र संबंधी समस्याओं में फायदेमंद शकरकंद
यूरीनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होने पर मूत्र संबंधी कई तरह की समस्याएं होती है, जैसे- मूत्रमार्ग से स्राव होता है और पेशाब करने से जलन जैसी बहुत तरह की समस्याएं होती है। शकरकंद के जड़ का प्रयोग मूत्रमार्ग से होने वाले स्राव की चिकित्सा में ये होता है। पेशाब करने में जलन होने पर शकरकंद को जड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा शकरकन्दी को काटकर-सुखाकर, उबालकर या काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र संबंधी और रोगों तथा मूत्रदाह में लाभ होता है।

प्रेरक कथाएँ

31 Dec, 11:22


फोड़ा सुखाने के लिए शकरकंद का प्रयोग
अगर लंबे समय से कोई फोड़ा नहीं सूख रहा है तो शकरकन्द को भूनकर पुल्टिस या पोटली की तरह बनाकर बांधने से फोड़ा जल्दी फटकर सूख जाता है।

झाइंयों या पिग्मेंटशन को कम करे शकरकंद
आजकल चेहरे पर दाग-धब्बों की समस्या आम हो गई है। कच्ची शकरकन्दी को घिसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की झांईयां मिटती है तथा चेहरे की कान्ति बढ़ती है।

त्वचा में निखार लाये शकरकंद
आजकल तनाव भरी जिंदगी का सीधा असर त्वचा पर पड़ती है, फलस्वरूप चेहरे की कांति खो जाती है। कच्ची शकरकन्दी को गोल काटकर या पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की कान्ति वापस आ जाती है।

कमजोरी दूर करें शकरकंद
अक्सर लंबे समय से बीमार पड़ने से कमजोरी हो जाती है। शकरकंद के मूल या जड़ का सेवन करने से कमजोरी दूर होती है।

बिच्छू के काटने पर शकरकंद का प्रयोग
अगर बिच्छु ने काटा है तो छाया में सुखाये हुए सूखे कड़वे शकरकंद को घिसकर दंश स्थान पर लेप करने से वृश्चिक या बिच्छु के विष का प्रभाव कम हो जाता है। इसके अलावा जड़ तथा पत्तों से बने काढ़ा को दंशस्थान पर लगाने से भी लाभ मिलता है।

शकरकंद का उपयोगी भाग
आयुर्वेद में शकरकंद के कंद और पत्ते का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। चिकित्सक के परामर्शानुसार इसका सेवन करना चाहिए।

शकरकंद का इस्तेमाल कैसे करें ?
हर बीमारी के लिए शकरकंद का सेवन और इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, इसके बारे में पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए शकरकंद का उपयोग कर रहें हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

शकरकंद कहां पाया या उगाया जाता है?
समस्त भारत में शकरकंद की खेती की जाती है। इसके मीठे कंद को भूनकर या उबालकर व्रत-उपवास में उपयोग किया जाता है।

प्रेरक कथाएँ

31 Dec, 02:44


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*प्रेरक कहानी: मतलब का संसार*
काफी समय पहले की बात है, एक जंगल में एक शेर रहता था, शेर ठहरा जंगल का राजा, सौ पुरे जंगल के जानवर शेर से डरते थे, शेर दिनभर जंगल में मस्ती से घूमता और रात को अपनी गुफा में घुसकर मज़े से आराम करता, कई सालों से शेर की यही दिनचर्या थी,शेर का जीवन बड़े मज़े से कट रहा था।

एक दिन शेर की गुफा में एक चूहा घुस गया,शेर के दर से कोई भी जानवर शेर की गुफा की तरफ नहीं आता था,इसीलिए चूहे को शेर की गुफा उसके रहने के लिए सबसे उचित जगह लगी, अब चूहा दिन भर अपने बिल में रहता और रात के वक़्त जब शेर सो जाता तब बिल से बहार आता था,कुछ दिन तो सब कुछ इसे ही चलता रहा,शेर को अपने बिल में चूहे के होने की भनक भी नहीं लगी,लेकिन समय के साथ-साथ चूहे को खुद पर घमंड हो गया, अब उसे शेर से डर लगना भी बंद हो गया।

एक दिन चूहे ने सोचा, “शेर ने पूरी ज़िन्दगी इस जंगल को और जंगल के जानवरों को डरा-डरा कर परेशान किया है,क्यों ना में अब शेर को परेशान करके उसका जीना मुश्किल कर दूँ,बस चूहे महाराज के सोचने भर की देर थी..अब चूहा हर रोज रात को अपने बिल से बाहर निकलता और शेर की गर्दन के घने बाल काट जाता,शेर जब सुबह उठता तो उसे अपनी गर्दन के घने बाल ज़मीन पर पड़े मिलते,कुछ दिन तो शेर को कुछ समझ नहीं आया,लेकिन जल्द ही उसे अहसास हो गया की हो ना हो मेरे बिल में कोई चूहा घुस आया है, जो रोज रात को मेरे बाल कुतर जाता है,शेर ने चूहे को अपने पंजो से पकड़ने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार चूहा शेर के चंगुल से निकल जाता।

चूहे को पकड़ने के लिए शेर एक दिन जंगल के एक बिलाव के पास गया और बिलाव को अपनी व्यथा सुनाइ,शेर ने बिलाव को अपने गुफा में चलकर रहने की विनती की ताकि बिलाव के डर से चूहा शेर का बिल छोड़कर भाग जाए या बिलाव खुद उस चूहे का शिकार कर उसे मार डाले,शेर और बिलाव ठहरे एक ही जाती के,सो बिलाव ने शेर की मदद करने के लिए हाँ कर दी और शेर के गुफा में आकर रहने लगा, शेर ने बिलाव की अपने गुफा में बहुत आदर सत्कार की और आराम से अपनी गुफा में रहने के लिए कहा।

अब शेर रोज जंगल से शिकार करके लाता बिलाव को खिलाता, बिलाव के डर से अब चूहे ने अपने बिल से बाहर निकलना बंद कर दिया,शेर को अपनी योजना कामियाब लगी,लेकिन उसे लगता था की हो ना हो चूहा अब भी बिल में है,शेर को जब भी चूहे की चूं-चूं सुनाई देती वह बिलाव को और भी अच्छा और ताज़ा शिकार खिला देता ताकि बिलाव उसकी गुफा में ही रहे और बिलाव के डर से चूहा उसका बिल छोड़कर भाग जाए,

एक दिन ऐसे ही शेर शिकार की तलाश में जंगल में गया था,तभी बिलाव को चूहा दिखाई दिया और उसने झट से उसे अपने पंजे में दबोच लिया और चूहे को मार कर खा गया,शेर जब शाम को वापस अपनी गुफा में आया तो उसे अपनी गुफा में मरे हुए चूहे की बू आई,शेर समझ गया की हो ना हो आज बिलाव ने चूहे का काम तमाम कर दिया है।

शेर ने सोचा अब जब चूहा ही ना रहा तो मुझे बिलाव की क्या आवश्यकता,बस शेर के सोचने भर की देर थी,अब शेर ने बिलाव को शिकार खिलाना भी बंद कर दिया,लेकिन बिलाव को तो अब बेठे-बेठे ताज़ा शिकार खाने की आदत हो चुकि थी,कई दिन तक भोजन ना मिलने के कारण बिलाव की हालत अब इतनी ख़राब हो चुकी थी की अब वह खुद शिकार भी नहीं कर सकता था,बस कुछ ही दिनों में भूख और कमजोरी के कारण बिलाव की मृत्यू हो गई।

मित्रों" कुल मिलाकर दुनिया मतलबी है,लेकिन हम दुनिया से दूर भी नहीं भाग सकते,इसलिए अगर जीवन में कोई भी आपकी मदद करे तो पहले उस मदद के पीछे छिपे स्वार्थ का पता करो..!!”
*🙏🏽🙏🏾🙏🏼जय श्री कृष्ण*

प्रेरक कथाएँ

30 Dec, 05:55


यह शिक्षा एक कमांडो की तरह होती है, तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।

हिंदी में एक कहावत है… “बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते।”
बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर उसे दुनियां की मुश्किलों से परिचित कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।

मित्रों" वर्तमान समय की अनन्त सुख सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने मिलकर, आपके बच्चों को “ब्रायलर_मुर्गे” जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता, वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि “गमले_के_पौधे और जंगल के पौधे में बहुत फ़र्क होता है..!!”

प्रेरक कथाएँ

30 Dec, 05:55


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*प्रेरक कहानी: बाज की उड़ान*

एक राज्य में एक राजा अपनी प्रजा के साथ रहता था, राजा का राज्य ऐश्वर्य, धन-धान्य से भरपूर था, लेकिन फिर भी राज्य में हमेशा अशांति फैली रहती थी, राजा राज्य में फैली अशान्ति से हमेशा परेशान रहता था।

एक दिन राजा ने राज्य के सभी साधू-संतों की एक सभा बुलाई, और सभी साधू-संतो से राज्य में फैली अशांति का उपाय पूछा, सभी-साधू संतो ने आपसी सहमती से राजा को एक उपाय बताया, साधू महात्मा ने बताया की अगर राजा अपने महल में दो बाज के बच्चों को पाले तो राज्य में फैली अशांति दूर हो सकती है, साधुओं की बात मानकर राजा ने अपने सैनिकों को बाज के बच्चों को महल में लाने का आदेश दिया।

बाज के दोनों बच्चों को पलने के लिए राजा ने एक आदमी को महल में नियुक्त कर दिया, कुछ समय बाद जब राजा को राज्य में फैली अशांति दूर होते हुए नहीं दिखी उसे बाज के उन दो बच्चों को देखने की इच्छा हुई, राजा जब बाज के बच्चों को देखने गया तब तक बाज के वह बच्चे बड़े हो चुके थे, राजा ने बाज के बच्चों को पालने के लिए नियुक्त किए गए आदमी से कहा, कि वह इन बच्चों को उड़ते हुए देखना चाहता है, राजा की बात सुनकर उस आदमी ने बाज के उन बच्चो को उडा दिया।

राजा ने देखा, कि बाज के उन बच्चों में से एक बच्चा तो आसमान में काफी ऊपर तक उड़ रहा था, लैकिन दूसरा बाज थोड़ी देर आसमान में उड़ता और फिर आकर एक पेड़ पर बैठ जाता, राजा ने बाज की देख-रेख में नियुक्त आदमी से इसका कारण पूछा तो उसने बताया किन यह बाज शुरू से ही एसा करता है, कुछ देर आसमान में उड़ने के बाद यह बाज आकर वापस पेड की इस डाल पर आकर बेठ जाता है और इस डाल को छोडता ही नहीं है।

अगले दिन राजा ने पुरे राज्य में ऐलान करवा दिया, कि जो भी इस बाज को आसमान में दूर तक उड़ना सिखा देगा उसे मुह माँगा इनाम दिया जाएगा, बाज को उड़ना सिखाने के लिए पुरे राज्य से कई सारे लोग आए लेकिन बाज का रवैया जो का त्यों रहा, बाज कुछ देर आसमान में उड़ता और फिर आकर पेड की उसी डाल पर बेठ जाता।

एक दिन राजा ने देखा की दूसरा बाज भी पहले बाज के साथ आसमान में ऊँचा उड़ रहा था, दोनों बाजों को आसमान में एक साथ उड़न भरते देख रजा बहुत खुश हुआ, राजा ने अपने सैनिको को पता लगाने का आदेश दिया की किसने यह कारनामा कर दिखाया है।

सैनिकों ने पता लगाया, कि वहा व्यक्ति एक किसान है जिसने बाज को उड़ना सिखाया है, राजा ने किसान को महल में उपस्थित होने का हुक्म दिया, अगले दिन किसान राजा के महल में उपस्थित हुआ| राजा ने किसान से पूछा की कैसे उसने उस बाज को उड़ना सिखा दिया,

किसान ने बड़ी विनम्रता पूर्वक कहा, कि “महाराज मैंने धयान दिया की बाज रोज एक ही डाल के ऊपर आकर वापस बेठ जाता था इसलिए मैंने वह डाल ही काट दी जिस पर बाज बार-बार आकर वापस बेठ जाता था।”

किसान की बात सुनकर राजा को अपने अपने राज्य की अशांति का कारण पता चल गया।

तो मित्रों" कहानी का तर्क यही है, कि अपने अन्दर की बुरी आदत को पहचाने और उस डाल की तरह ही अपने अन्दर की कमी को काट कर फैक दें।

“बाज़” ऐसा पक्षी जिसे हम ईगल भी कहते है, जिस उम्र में बाकी पंछियो के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है।

मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग १२ कि.मी. ऊपर ले जाती है। जितने ऊपर आधुनिक जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज ७ से ९ मिनट का समय लेती है।

यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा, उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है? तेरी दुनिया क्या है? तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।

धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग २ कि.मी. उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। ७ कि.मी. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते है।

लगभग ९ कि.मी. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।

अब धरती से वह लगभग ३००० मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को।

अब उसकी दूरी धरती से केवल ७००/८०० मीटर होती है लेकिन उसके पंख अभी इतने मजबूत नहीं हुए है की वो उड़ सके।

धरती से लगभग ४००/५०० मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है।

फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपने कब्जे मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।

यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। और उसकी यह शिक्षा निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता।

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29 Dec, 05:28


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*प्रेरक जानकारी: कैलाश पर्वत क्यों है भगवान शिव का प्रिय निवास ? इसका क्या संदेस हैं आईये इसे समझने का प्रयास करते हैं।*

भगवान शिव के कैलाश पर निवास करने का अर्थ है की वे आनंद और शांति के सर्वोच्च शिखर पर रहते हैं कैलाश पर्वत उनकी शीतलता का भी प्रतीक है। पर्वत की तरह वे भी पूर्ण रूपेण अविचलित और अडिग हैं।
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। पर्वतों पर आम लोग नहीं आते-जाते। सिद्ध पुरुष ही वहां तक पहुंच पाते हैं। भगवान शिव कैलाश पर्वत पर योग में लीन रहते हैं। लाइफ मैनेजमेंट की दृष्टि से देखा जाए तो पर्वत प्रतीक है एकांत व ऊंचाई का। यदि आप किसी प्रकार की सिद्धि पाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको एकांत स्थान पर ही साधना करनी चाहिए। ऐसे स्थान पर साधना करने से आपका मन भटकेगा नहीं और साधना की उच्च अवस्था तक पहुंच जाएगा।

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28 Dec, 06:42


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*प्रेरक कहानी: अंदर की हवा*
स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए एक मज़ेदार यात्रा का आयोजन किया,
रास्ते में वे एक सुरंग से गुज़रे, जिसके नीचे से पहले बस ड्राइवर गुज़रता था। सुरंग के किनारे पर लिखा था पांच मीटर की ऊँचाइ। बस की ऊंचाई भी पांच मीटर थी इसलिए ड्राइवर नहीं रुका। लेकिन इस बार बस सुरंग की छत से रगड़ कर बीच में फंस गई, इससे बच्चे भयभीत हो गए।
बस ड्राइवर कहने लगा "हर साल मैं बिना किसी समस्या के सुरंग से गुज़रता हूं, लेकिन अब क्या हुआ? एक आदमी ने जवाब दिया : सड़क पक्की हो गई है इसलिए सड़क का स्तर थोड़ा बढ़ा दिया गया है।
वहाँ एक भीड़ लग गयी.. एक आदमी ने बस को अपनी कार से बांधने की कोशिश की, लेकिन रस्सी हर बार रगड़ी तो टूट गई, कुछ ने बस खींचने के लिए एक मज़बूत क्रेन लाने का सुझाव दिया और कुछ ने खुदाई और तोड़ने का सुझाव दिया। इन विभिन्न सुझावों के बीच में एक बच्चा बस से उतरा और बोला "टायरों से थोड़ी हवा निकाल देते हैं तो वह सुरंग की छत से नीचे आना शुरू कर देगी और हम सुरक्षित रूप से गुज़र जाएंगे। बच्चे की शानदार सलाह से हर कोई चकित था और वास्तव में बस के टायर से हवा का दबाव कम कर दिया इस तरह बस सुरंग की छत के स्तर से गुज़र गई और सभी सुरक्षित बाहर आ गए।

भावार्थ– घमंड, अहंकार, घृणा, स्वार्थ और लालच से हम लोगो के सामने फुले होते हैं। अगर हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा। समस्याएं हम में हैं हमारे दुश्मनों की ताक़त में नहीं।

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27 Dec, 06:25


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*एक वो पत्ता 🍃 जिसके बगैर खाना कम्प्लीट नहीं हो सकता लेकिन जिसे खाते ही कटोरी से बाहर का रास्ता अक्सर दिखा दिया जाता है, जानते हैं कि वो कौन सा पत्ता है.?*

*जी हां वो है करी पत्ता 🌿.!*

*जानिये, कैसे लिवर की कमजोरी हो या त्वचा का इंफेक्शन...*

*करी पत्ते के सेवन से कैसे ऐसी बीमारियां छू मंतर हो जाती हैं...!!*

*जानिये वो 9 अद्भुत फायदे, जो करी पत्तों से होते हैं...*

*(1). करी पत्ते में मौजूद फाइबर इन्सुलिन को प्रभावित करके ब्लड शुगर लेवल को कम करता है।*

*(2). यह पाचन 🩰 क्रिया को भी सही रखता है।* 

*(3). इससे वजन बढ़ने का खतरा कम होता है।*

*(4). लिवर कमजोर होने पर करी पत्ता फायदेमंद साबित हो सकता है। इसमें मौजूद विटामिन ए और सी लिवर को दुरुस्त करते हैं।*

*(5). यह कोलेस्ट्रॉल 🫀 के स्तर को कम करता है।*

*(6). रक्त में गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ाकर दिल 💓 से जुड़ी बीमारियों से बचाता है।*

*(7). कब्ज हो, तो इसका सेवन करें।*  

*(8). एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुणों से भरपूर होने के कारण यह त्वचा के लिए गुणकारी है।* 

*(9). त्वचा में इंफेक्शन होने पर इससे लाभ होता है।*

प्रेरक कथाएँ

27 Dec, 02:56


समस्त शाखाओं में शक्ति जागरण की साधना प्रधान है।

कुल शक्ति पाताल लोक में अवस्थित है और अकुल तत्व मुक्तिलोक में कुल शक्ति (कुण्डलिनी) अकुल (शिव) की प्रियतमा है किंतु अनन्तकाल से अपने प्रीतम से वियुक्त है और साधक का लक्ष्य है इस वियुक्त दंपत्ति का मिलन कराना। इस विषय पर श्री गोरखनाथ जी ने भी भी पाताल की गंगा को ब्रह्मांड में चढ़ाने का उपदेश दिया है वह पाताल की गंगा कुण्डलिनी शक्ति है। गोरखनाथ कहते हैं--

#पाताल_की_गंगा_ब्रह्म_चढाइबा_तहां_बिमल_जल_पीया

प्रेरक कथाएँ

27 Dec, 02:56


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*प्रेरक विचार: #क्या_है_मृत्यु*

जो व्यक्ति शरीर को ही सब कुछ मानता है वह समझता है कि शरीर का नाश होने से जीवन नष्ट हो जाएगा किन्तु जीवन शरीर का नही है ।बल्कि जीवात्मा है जिसका शरीर के नाश होने से नाश नही होता । मनुष्य योनि मे प्रथम जन्म सो मोक्ष पर्यन्त का सम्पुर्ण अवधि इस जीवात्मा का जीवन है ।
तथा यही उसकी सम्पुर्ण आयु है ।𑀰𑀓𑁆𑀢𑀺 𑀉𑀧𑀸𑀲𑀓
जिस प्रकार दिन भर के श्रम के बाद मनुष्य को रात्रि विश्राम की आवश्यकता होती है ।जिसे हम मृत्यु कहते उसी प्रकार शरीर का एक जीवन जीवात्मा का एक दिन है । जिनमें किए श्रम से थक कर उसे विश्राम की आवश्यकता होती है मृत्यु इस विश्राम की व्यवस्था है इस विश्राम काल मे जीवात्मा अपनी थकान मिटाती है जीवन से प्राप्त अनुभव का पाचन करती है तथा नई ताजगी से जीवन मे प्रवेश करती है ।
शरीर का जीवन उस जीवात्मा के सम्पुर्ण जीवन की एक कडी़ है।
शरीर का हर जीवन उस की एक कक्षा है जिसे उत्तीर्ण करको वह अगली कक्षा मे प्रवेश करता है ।इस प्रकार बार बार शरीर धारण करके उन्नति करता हुआ अन्त मे मोक्ष को प्राप्त होता है ।
यही वास्तविक मृत्यु है । जिसके बाद उसका ही उसका जन्म-मृत्यु से छुटकारा होता है लिए शरीर की मृत्यू जीवात्मा के लिये अभिशाप नही वरदान है यदि जीवन और मृत्यू का चक्र न होता तो जीवात्मा का कभी विकास नही हो सकता था। मनुष्य आदिम सभ्यता से उपर उठ नही पाता जिसे जीवन की तारतम्यता का ज्ञान नही है वही इस शरीर की मृत्यू को अपनी मृत्यू समझकर भयभीत होता है ।
जीवात्मा जो भी कर्म करता चलता है उस एक एक कर्म की तह मल पर मल बनकर जमती चलती है ।इसलिये उस मल का परिपाक नही हो पाता। पर जब कर्मों का त्याग हो जाता है तब मल की तह न जमने के कारण मल का परिपाक हो जाता है और जीवात्मा के सारे कलुष समाप्त हो जाते है ।तब वह समाप्त कलुष कहलाने लगता है जैसे जीवात्माओं को भगवान आठ प्रकार के विधेश्वर पदो पर पहुँचा देते है--अनन्त, सुक्ष्म, शिवोत्तम, एकनेत्र, एकरूद्र,त्रिमुर्ति, श्री कंठ और शिखंडी। फल की इच्छा से किए हुए धर्म-अधर्मवाले कर्मो को ही कर्म पाश कहते है प्रलय के समय जिस शक्ति मे सब कुछ लीन हो जाता है और सृष्टि के समय जिसमे से सब कुछ उत्पन्न हो जाता है ।
वही माया पाश है इसलिये इन पाशों मे बँधा हुआ जी व जब तत्त्वज्ञान के द्वारा इन्हे काट डालता है । तभी वह परमशिवतत्त्व अर्थात आनन्दमय पशुपति पद को प्राप्त कर लेता है प्रत्यभिज्ञा का अर्थ ही है । अपने को जान लेना कि मैं शिव हूँ --शिवोहम।
शाक्तागम के तीन भेद है सात्विक राजस और तामस क्रमशः सात्विक आगम= तंत्र, राजस,आगम= यामल एवं तामस यामल= डामर कहलाते हैं। शाक्तागम की अनवर्तन करने वाली उपासना के तीन मुख्य केंद्र भी हैं जो काश्मीर, कांची एवं कामाख्या इनमें से कश्मीर और कांची श्री विद्या के केंद्र तथा कामाख्या कौल मत का केंद्र है। शाक्त तांत्रिकों के तीन प्रमुख मार्ग है जोकि इस प्रकार है कौलमार्ग मिश्रमार्ग एवं समय मार्ग सम्मोहन तंत्र के अनुसार शाक्तसंप्रदाय नौ आम्नायों एवं चार संप्रदायों मे विभक्त था। ये संप्रदाय केरल कश्मीर गौड एवं विलास रहे है।
चक्रपूजा का शाक्तसंप्रदाय में अत्याधिक महत्व इस पूजा की दृष्टि में शाक्तो के प्रमुख दोवर्ग है- कौलिक और समय थी। कौलिकों के भी दो वर्ग है - पूर्वकौल एवं उत्तरकौल, पूर्वकौल स्त्रीरूप की काल्पनिक पूजा करते है, किन्तु उत्तरकौल जीवित सुन्दरी के मांसल योनि की प्रत्यक्ष पूजा करते है । कौल पंचमकारों- मदिरा, मांस,मधु, मत्स्य, एवं मैथुन को अपनी उपास्या देवी को समर्पित करते हैं यही पंच मकार साधना कहीं जाती है।
आजकल बंगाल और आसाम मे भी शाक्तमत अधिक प्रचार-प्रसार है बंगाल में दुर्गा पूजा और आसाम में देवी कामाख्या की पूजा अधिक प्रचलित है आचार विचार की दृष्टि में शाक्तो के तीन वर्ग है कौल समयी और मिश्र शाक्तमत में कौल संप्रदाय एवं कौलाचार का विशेष महत्व रहा है आचारों में कौलाचार अवधूत मार्ग में भी माना गया है।
श्रेष्ठ दक्षिणाचार से श्रेष्ठ गाणपत्याचार गाणपत्याचार से श्रेष्ठ सौरआचार, सौर आचार से श्रेष्ठतर शैवाचार,शैवाचार से श्रेष्ठ शाक्ताचार शाक्ताचार से श्रेष्ठ वामाचार से श्रेष्ठ दक्षिणाचार और सभी से श्रेष्ठ कौलाचार यह कौलचार ही श्रेष्ठ आचार है गोरक्ष सिद्धांत के अनुसार समस्त शाक्त तंत्रों कों नाथसंम्प्रदाय का अनुवर्ती स्वीकार किया गया है।
तांत्रिक समाम्नाय मे कौल या अवधुतमत श्रेष्ठतम मत कहा गया है तांत्रिकों का श्रेष्ठ आचार कौलाचार को ही अवधुतमार्ग स्वीकार करके नामों ने इसे अपना मत माना है, शाक्त साधना एवं शाक्त दर्शन का मुख्य लक्ष्य होता है सुषुप्त शक्ति का जागरण क्योंकि शक्ति के जागृत होने से पूर्व मुक्ति संभव नहीं है अतः शाक्त संप्रदाय के

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26 Dec, 14:22


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इसको scientifically और spritiaully प्रूफ कीजिये क्यों नही खाना है
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अन्न का मन पर प्रभाव
कहते है जैसा अन्न वैसा मन अर्थात हम जो कुछ भी खाते है वैसा ही हमारा मन बन जाता है।अन्न चरित्र निर्माण करता है।इसलिए हम क्या खा रहे है इस बात को सदा ध्यान रखना चाहिये।

◎◎◎ भोजन भी तीन प्रकार का होता है।
1. सात्विक अन्न🌾
2. रजोगुणी अन्न मैदा से बनी आइटम्स
3. तमोगुणी आहार

इनमें से मुख्य दो आहार है :
1. सात्विक व
2.तामसिक

◎◎◎ योग पथ पर चलने वाले को सात्विक आहार ही लेना चाहिए। सात्विक आहार मानसिक पवित्रता को बढ़ाता है।

◎◎◎ तामसिक भोजन मानसिक अपवित्रता है।अन्न की शुद्वता हो जिसमें तामसिक भोजन लहसुन, प्याज, तीखा मिर्च मसाला, नॉन वेज(मीट) आदि ना हो।
आधिक भोजन भी वर्जित है।

◎◎◎ कोई भी व्यसन स्मोकिंग शराब आदि नशे हमें हमारे मूल स्वभाव में ठहरने नहीं देते हैं। शारीरिक कमजोरी पैदा करते हैं। मन में भारीपन, डर, शंका, ईर्ष्या, घृणा, बदले की भावना पैदा करते हैं। संकल्पों में वेग उत्पन्न कराते हैं।

कहा जाता है कि जो भी प्याज
और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं। इन दोनों सब्जियों को मांस के समान माना जाता है। जो लहसुन और प्याज खाता है उसका मन के साथ-साथ पूरा शरीर तामसिक स्वभाव का हो जाता है।

◎◎◎ श्रीमद् भगवद्गीता में 17 वें अध्याय में भी कहा गया है व्यक्ति जैसा भोजन (लहुसन, प्याज..... तामसिक) खाता है, वैसी अपनी प्रकृति (शरीर) का निर्माण करता है।

आपने देखा होगा, कोई भी ऐसा भोजन जो इस देह के लिए नही है उसको ये देह में डालते ही देह उसके कणों को बाहर फेंकता है और मुख से दुर्गन्ध आती है।जैसे- अनियन, अण्डा, शराब, बीड़ी, सिगरेट आदि।

◎◎◎ प्याज को तामसिक माना जाता है।इसलिए देवी- देवताओ को भी इसका भोग नही लगाया जाता।

◎◎◎ जितने व्रत रखते है उसमे भी इसका परहेज बताया जाता है।

इसे खाने से मन पर कंट्रोल नहीं हो पाता और मन स्थिर न हो तो योग नहीं लग सकता है।

◎◎◎ जैसा होगा अन्न, वैसा होगा मन ।

अगर हम लहुसन और प्याज खाते रहे तो पुरुषार्थ में जो रूकावट आएगी वो हमें पता नही पड़ेगा इसलिए शुद्ध भोजन पर ही पूरा-पूरा ध्यान देना पड़ेगा

◎◎◎ इनको खाने सेे गैस भी ज्यादा बनती है और सिर में दर्द भी पैदा होता है और मस्तिष्क भी कमजोर हो जाता है।

◎◎◎ मन बड़ा भटकता है योग नहीं लगने देता और कर्मेन्द्रियाँ भी धोखा देती है।

◎◎◎ तामसिक पदार्थ हमें धीरे-धीरे ज्ञान और योग से दूर ले जाता है।

◎◎◎ वैष्णव. जन प्याज, लहसुन का उपयोग नहीं करते।

प्रेरक कथाएँ

26 Dec, 04:52


भगवान श्रीकृष्ण एक महायोगी थे। उनका शरीर बहुत ही लचीला था लेकिन वे अपनी इच्छानुसार उसे वज्र के समान बना लेते थे, साथ ही उनमें कई तरह की यौगिक शक्तियां थीं। योग के बल पर ही उन्होंने मृत्युपर्यंत तक खुद को जवान बनाए रखा था।

*११. अवतारी कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्‍ण विष्णु के अवतार थे। उन्हें पूर्णावतार माना जाता है। महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को उन्होंने अपना विराट स्वरूप दिखाकर यह सिद्ध कर दिया था कि वे ही परमेश्वर हैं।

*१२. राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने संपूर्ण जीवन में कूटनीति के बल पर परिस्थितियों को अपने अनुसार ढालकर भविष्‍य का निर्माण किया था। उन्होंने जहां कर्ण के कवच और कुंडल दान में दिलवा दिए, वहीं उन्होंने दुर्योधन के संपूर्ण शरीर को वज्र के समान होने से रोक दिया। सबसे शक्तिशाली बर्बरीक का शीश मांग लिया तो दूसरी ओर उन्होंने घटोत्कच को सही समय पर युद्ध में उतारा। ऐसी सैकड़ों बातें हैं जिससे पता चलता है कि किस चालाकी से उन्होंने संपूर्ण महाभारत की रचना की और पांडवों को जीत दिलाई।

*१३. रिश्तों में खरे कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण की ८ पत्नियां थीं- रुक्मिणी, जाम्बवंती, सत्यभामा, मित्रवंदा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। इनसे श्रीकृष्ण को लगभग ८० पुत्र हुए थे। कृष्ण की ३ बहनें थीं- एकानंगा (यह यशोदा की पुत्री थीं), सुभद्रा और द्रौपदी (मानस भगिनी)। कृष्ण के भाइयों में नेमिनाथ, बलराम और गद थे। सुभद्रा का विवाह कृष्ण ने अपनी बुआ कुंती के पुत्र अर्जुन से किया था। उसी तरह श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र साम्ब का विवाह दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से किया था। श्रीकृष्ण के रिश्तों की बात करें तो वे बहुत ही उलझे हुए थे।

प्रेरक कथाएँ

26 Dec, 04:52


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*।। भगवान श्रीकृष्ण के १३ स्वरूप ।।*
भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना जाता है। ६४ कलाओं में दक्ष श्रीकृष्ण ने हर क्षेत्र में अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी है। वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण के सैकड़ों रूप और रंग हैं, किन्तु यहां उनके १३ स्वरूप प्रस्तुत हैं-

*१. बाल कृष्ण*

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अद्भुत परिस्थितियों में हुआ और उनकी बाल लीलाओं पर हजारों किताबें लिखी जा चुकी हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में उनकी बाल लीलाओं का वर्णन मिलता है। श्रीकृष्ण का बचपन गोकुल और वृंदावन में बीता। श्रीकृष्ण ने ताड़का, पूतना, शकटासुर आदि का बचपन में ही वध कर डाला था। बाल कृष्ण को 'माखन चोर' भी कहा जाता है।

*२. गोपाल कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण एक ग्वाले थे और वे गाय चराने जाते थे इसीलिए उन्हें 'गोपाल' भी कहा जाता है। ग्वाले को गोप और गवालन को गोपी कहा जाता है। हालांकि यह शब्द अनेकार्थी है। पुराणों में गोपी-कृष्ण लीला का वर्णन मिलता है। इसमें गोप और गोपिकाएं डांडिया रास करते हैं।

*३. रक्षक कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण ने किशोरावस्था में ही चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया था, साथ ही उन्होंने इंद्र के प्रकोप के चलते जब वृंदावन आदि ब्रज क्षेत्र में जलप्रलय हो चली थी, तब गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली पर उठाकर सभी ग्रामवासियों की रक्षा की थी।

*४. शिष्य कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण के गुरु सांदीपनी थे। उनका आश्रम अवंतिका (उज्जैन) में था। कहते हैं कि उन्होंने जैन धर्म में २२वें तीर्थंकर नेमीनाथजी से भी ज्ञान ग्रहण किया था। श्रीकृष्ण गुरु दीक्षा में सांदीपनी के मृत पुत्र को यमराज से मुक्ति कराकर ले आए थे।

*५. सखा कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण के हजारों सखा थे। सखा मतलब मित्र या दोस्त। श्रीकृष्ण के सखा सुदामा, श्रीदामा, मधुमंगल, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्‍द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश, अर्जुन आदि थे। श्रीकृष्ण की सखियां भी हजारों थीं। राधा, ललिता आदि सहित कृष्ण की 8 सखियां थीं।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। इसके अलावा भौमासुर से मुक्त कराई गईं सभी महिलाएं कृष्ण की सखियां थीं। द्रौपदी भी श्रीकृष्ण की सखी थीं।

*६. प्रेमी कृष्ण-*

कृष्ण को चाहने वाली अनेक गोपियां और प्रेमिकाएं थीं। कृष्ण-भक्त कवियों ने अपने काव्य में गोपी-कृष्ण की रासलीला को प्रमुख स्थान दिया है। पुराणों में गोपी-कृष्ण के प्रेम संबंधों को आध्यात्मिक और अति श्रांगारिक रूप दिया गया है। महाभारत में यह आध्यात्मिक रूप नहीं मिलता, लेकिन पुराणों में मिलता है। उनकी प्रेमिका राधा, रुक्मिणी और ललिता की ज्यादा चर्चा होती है।

*७. कर्मयोगी कृष्ण-*

गीता में कर्मयोग का बहुत महत्व है। कृष्ण ने जो भी कार्य किया, उसे अपना कर्म समझा, अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया, क्योंकि वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण जीते थे और पूरी जिम्मेदारी के साथ उसका पालन करते थे। न अतीत में और न भविष्य में, जहां हैं वहीं पूरी सघनता से जीना ही उनका उद्देश्य रहा।

*८. धर्मयोगी कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण ने ऋषि वेदव्यास के साथ मिलकर धर्म के लिए बहुत कार्य किया। गीता में उन्होंने कहा भी है कि जब-जब धर्म की हानि होगी, तब-तब मैं अवतार लूंगा। श्रीकृष्ण ने नए सिरे से उनके कार्य में सनातन धर्म की स्थापना की थी।

*९. वीर कृष्ण-*

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में युद्ध नहीं लड़ा था। वे अर्जुन के सारथी थे। लेकिन उन्होंने कम से कम १० युद्धों में भाग लिया था। उन्होंने चाणूर, मुष्टिक, कंस, जरासंध, कालयवन, अर्जुन, शंकर, नरकासुर, पौंड्रक और जाम्बवंत से भयंकर युद्ध किया था।

महाभारत के युद्ध में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में वे अर्जुन के सारथी थे। हालांकि उन्हें 'रणछोड़ कृष्ण' भी कहा जाता है। इसलिए कि वे अपने सभी बंधु-बांधवों की रक्षा के लिए मथुरा छोड़कर द्वारिका चले गए थे। वे नहीं चाहते थे कि जरासंध से मेरी शत्रुता के कारण मेरे कुल के लोग भी व्यर्थ का युद्ध करें।

*१०. योगेश्वर कृष्ण-*

प्रेरक कथाएँ

08 Dec, 07:50


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लहसुन का रस कैंसर में लाभदायक होता है। पानी में लहसुन का रस मिलाकर पीने से कैंसर में फायदा होता है, कैंसर की रसौली भी लहसुन के रस के सेवन से नष्ट हो जाती है।

👉 *नपुंसकता.....*

किसी भी तरह से प्रयोग किया गया लहसुन नपंुसकता दूर करता है। नपुंसक लोगों को 15-20 लहसुन की तुर्रियों को घी में तलकर खाना चाहिए।

लहसुन के रस को शहद के साथ सेवन करने से भी नपुंसकता दूर होती है।

नंपुसक व्यक्ति लहसुन की तुर्रियों को दूध से उबालकर भी सेवन कर लाभ उठा सकते हैं।

👉 *त्वचा विकार....*

लहसुन का प्रयोग त्वचा के विकारों को भी दूर करता है। लहसुन को चेहरे पर दिन में कई बार मलने से कील मुहांसे दूर होते हैं, आंखों के नीचे के काले धब्बे लहसुन रगड़ने से धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। किसी भी प्रकार के दाग-धब्बे दूर करने में लहसुन लाभदायक है। सौंदर्यवर्धक के रूप में लहसुन का प्रयोग ‘अमृत’ है।

घाव के सड़ने या कीड़े पड़ने पर
शरीर पर कहीं घाव होने पर लहसुन का रस लगाने पर घाव जल्दी ठीक हो जाता है, घाव में कीड़े नहीं पड़ते हैं।

👉 *गुम चोट....*

गुम चोट में भी लहसुन लाभकारी है। लहसुन की तुर्रियों को नमक के साथ पीसकर गुम चोट वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।

👉 *नोट...*

तीन वर्ष से कम आयु के शिशु को लहसुन नहीं देना चाहिए, किसी भी रोग के लिए लहसुन का प्रयोग करने के लिए किसी चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह लेना हितकर होगा।

👉 *लहसुन के अन्य प्रयोग....*

जहरीले कीड़े के काटने पर भी लहसुन का रस लगाने से विष का प्रभाव दूर हो जाता है।

गले की ग्रंथियों की सूजन में लहसुन चबाकर खाने से सूजन दूर हो जाती है।

कुकुर खांसी, काली खांसी, फेफड़ों से खून आने पर लहसुन की कलियां चूसने से लाभ होता है।

लहसुन खाने से निमोनिया में भी आराम होता है।

पीलिया में भी लहसुन का प्रयोग लाभकारी है।

लहसुन को तेल में पकाकर उस तेल को ठंडाकर मालिश करने से त्वचा की खुजली मिट जाती है और त्वचा ठीक हो जाती है।

मिर्गी की बेहोशी दूर करने के लिए लहसुन के रस को नाक में टपकाना चाहिए।

लहसुन का नियमित सेवन बुढ़ापे को दूर रखता है।

लहसुन मेधाशक्ति को बढ़ाता है और नेत्रों के लिए भी हितकर है।
लहसुन में विद्यमान एलाइसिन, ऐजोन तथा गंधक तत्व शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता ह

प्रेरक कथाएँ

08 Dec, 03:23


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*प्रेरक कहानी: मेरा 'राम' तो एक ही है*

एक बार की बात है कि कबीर दास जी हमेशा की तरह अपने काम में मग्न होकर राम नाम रट रहे थे।
तभी उनके पास कुछ तार्किक व्‍यक्ति आते हैं। उनमें से एक व्‍यक्ति उनसे पूछता है.. “कबीर जी आपने यह गले में क्‍या पहन रखा है?”
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कबीर जी कहते है.. “यह कंठी है?” (कंठी यानि गले में पहनी जाने वाली रूद्रा्क्ष की माला)
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तब दुसरा तार्किक व्‍यक्ति उनसे प्रश्‍न करता है- “भाई अपने माथे पर यह क्‍या लगा रखा है?”
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“इसे तिलक कहते है मेरे भाई!” कबीर जी कहते हैं।
.
उत्‍तर सुनकर एक अन्‍य तार्किक व्‍यक्ति फिर से उनसे प्रश्‍न करता है- “आपने, यह हाथ में क्‍या बांध रखा है? आप क्‍या कर रहे हो?
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यह सुनकर कबीर जी कुछ उन लोगों को कहते हैं- “मैं राम राम रट रहा हूँ। गुरु जी की आज्ञा है, राम नाम के भीतर सकल शास्त्र पुराण श्रुति का सार है। इसलिए मैं ‘नाम’ जप रहा हूँ।
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यह सुनकर उनमें से एक व्‍यक्ति कहता है, “अच्छा तो तुम राम नाम जपते हो! तो राम का भजन करते हो!
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“हां! मैं श्री राम का भजन करता हूँ।”- कबीर जी बोले।
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“तो फिर कौन से राम का भजन करते हो?” उस व्‍यक्ति ने कबीर जी से पूछा।
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“कौन से राम? क्‍या राम भी बहुत सारे हैं?” कबीर जी ने कहा।
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तो उनमें से एक व्‍यक्ति ने कहा, “लो इन्‍हें यह तो पता नहीं कि कौन से राम का भजन करते हो, और लग गए भजन करने।
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जिसे यही नहीं पता कि राम कितने तरीके के होते हैं, तो भजन का क्या फल?
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अब यह कहकर वे तार्किक व्‍यक्ति वहां से चलते समय कबीर जी को एक दोहा भी सुना गए।

एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा;
एक राम का सकल पसारा,
एक राम सभी से न्‍यारा;
इन में कौन-सा राम तुम्‍हारा? ।।

अब कबीर जी सोचने लगे कि मुझे तो यह पता ही नहीं कि राम भी बहुत हैं। मैं तो केवल यही जानता हूँ कि एक ही राम हैं। ये अच्‍छा संशय मेरे मन में डाल गए हैं।
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पूछते हैं कौन से राम का भजन करते हो? यह सब जब वह सोच रहे थे, तो तभी उन्‍हें अपने गुरु जी की कही बात याद आ जाती है, गुरू जी ने कहा था, कोई संशय हो तो उसका निवारण कर लेना।
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तब कबीर जी ने सोचा इस संशय का निवारण अपने गुरुजी के पास जाकर ही करता हूँ।
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बस फिर क्‍या था कबीर जी पहुँचे अपने गुरुजी के पास। गुरू जी को प्रणाम कर एक ओर हाथ बांधकर खड़े हो गए। कबीर जी को देखकर, गरू जी बोले आओ कबीर, क्या बात है?
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तब कबीर जी बोले- “गुरु जी! एक अजीब सा संशय चित में आ गया है।
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“कौन सा संशय” गुरू जी ने पूछा?
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कबीर जी बोले, “गुरू जी कुछ तार्किक विद्वान मेरे पास आए थे। मैं बैठा आपकी आज्ञा से राम नाम का भजन कर रहा था।
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तब वे मुझसे पूछने लगे क्‍या कर रहे हो कबीर? मैंने कहा, राम-राम रट रहा हूँ।
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फिर वह पूछने लगे कि कौन से राम का भजन कर रहे हो? तब हमने उनसे पूछा कि क्‍या राम भी बहुत सारे होते हैं क्‍या?
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तो वे मेरे इस प्रश्‍न के उत्‍तर में मुझसे बोले “हाँ” और क्‍या तुम्‍हें यह भी नही पता क्‍या? जाते जाते मुझे एक दोहा भी सुनाकर चले गए हैं! वह दोहा है…..
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एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा;
एक राम का सकल पसारा,
एक राम सभी से न्‍यारा:
इन में कौन-सा राम तुम्‍हारा? ।।
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यह सुनकर गुरुजी बहुत खुश हुए और बड़े जोर से हँसने लगे।
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हँसते हुए कबीर से कहने लगे- “बेटा! ऐसी बात करने वाले एक दिन नहीं तुम्‍हारे जीवन में, जीवन भर आएँगे। पर तुम्हें सजग रहना होगा।
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देखो यह सृष्टि विविधमयी है। जिसकी आँख पर जैसा चश्मा चढ़ा होता है, उसको भगवान का वैसा ही रूप दिखाई देता है।
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कोई परमात्मा को ‘ब्रह्म’ कहता है; कोई ‘परमात्मा’ कहता है; कोई ‘ईश्‍वर’ कहता है; कोई ‘भगवान’ कहता है। लेकिन अलग-अलग नाम लेने से परमात्मा अलग-अलग नहीं हो जाते।
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इसलिए जो राम दशरथ जी का बेटा है; वही राम घट घट में भी लेटा है; उसी राम का सकल पसारा है; और वही राम सबसे न्यारा भी है। लेकिन एक बात है इस दोहे मे

इस दोहे में ‘एक राम ’ चारो पंक्ति में ही एक ही हैं! तो बेटा! इस दोहे का अर्थ क्‍या है?
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तो कबीर जी बोले- वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घट-घट में लेटा, उसी राम का सकल पसारा, वही राम सभी से न्‍यारा।
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तब गुरू जी ने कबीर को समझाते हुए आगे कहा-
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“जब राम सभी जीवो के भीतर विराजमान रहता है, तो सबके घट- घट में व‍ह व्‍यापक हुआ ना और राम ने ही इस सृष्टि को रचाा हैं, तो यह सब पसारा उन्‍हीं का है।
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लेकिन इस सृष्टि की रचना करने के बाद भी वह इस सृष्टि में फसते नहीं हैं। इसलिए वह सबसे न्यारे भी हैं।

प्रेरक कथाएँ

08 Dec, 03:23


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लेकिन जब कोई भगत रोकर उनको पुकारता है, प्रार्थना निवेदन करता हैं तो वहीं निराकार साकार रूप में दशरथ जी के घर प्रगट हो जाता है।
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तो बेटा! इन चारों में कोई भेद नहीं है। यह चारों एक ही है।” कबीर जी को उस दोहे का अर्थ अच्‍छे से गुरू जी ने समझा दिया।
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कबीर जी प्रसन्न होकर गुरुदेव जी से बोले- “गुरू जी! आपने बहुत कृपा की है। अब मेरा इस विषय में कभी कोई संशय नहीं होगा।“
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अपने गुरू जी से विदा लेकर कबीर जी अपने घर आ गए और अपने भजन सिमरन में लग गए।
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पर चलते चलते गुरु ने कबीर के कान में दोहा बोला और कहा कि फिर कोई तार्किक ज्ञानी मिल जाये तो यह दोहा सुना कर उसका अर्थ अवश्य पूछना।
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कुछ दिनों बाद वही सभी तार्किक व्‍यक्ति वहां से फिर गुजर रहे थे और मन ही मन सोच रहे थे कि हमने जो कबीर के मन में संशय डाल दिया था..
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उसके कारण तो अब तक कबीर की कंठी माला सब छूट गई होगी। चलो उनके घर चल कर देखते हैं।

कबीर जी के घर पहुँच कर उन्‍होंने देखा कि कबीर जी तो पहले की ही भांति ही बैठे राम नाम रट रहें हैं।
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यह देख कर उनमें से एक व्‍यक्ति ने पूछा क्‍यों कबीर जी आपको पता चल गया कि आप कौन-से राम का भजन करते हैं?
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अब कबीर जी तो पक्‍क अपने गुरु जी चेला थे, उन्होंने कहा मैं आपके सब प्रश्नों का उत्तर दूँगा। पर इससे पहले आपको मेरे एक प्रश्न का उत्तर देना होगा।
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वे सभी एक स्‍वर में बोले, “पूछो”
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“मेरा भी एक दोहा है। आप उसको उसका उत्तर बताना होगा।” कबीर जी बोले।
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“बताओ कौन-सा दोहा है?” वे बोले।
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एक है पिता जो कि तेरी दादी का छोरा,
एक है पिता जो कि तेरी बुआ का भाई:
एक है पिता जो कि पति तेरी मां का
एक है पिता जो कि तेरी नानी का जमाई
तो बताओ कितने पिता हो गए, भाई।।
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दोहा सुनते ही वे सभी भागे, तो कबीर जी ने उनसे कहा कि बताते तो जाते कि एक पिता है या?
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वे सभी बोले हद हो गई कबीर यह कोई पूछने की बात है! अरे एक ही पिता होता है, वही पिता मेरी दादी का छोरा,वही पिता मेरी बुआ का भाई, वही पिता मेरी माँ का पति, वही पिता मेरी नानी का जमाई।
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तो कबीर जी ने कहा अब आप सब भी सुनते जाओ उत्‍तर- “राम भी एक ही है। वही राम दशरथ का बेटा, वही राम घट-घट में लेटा, उसी राम का सकल पसारा, वही राम सभी से न्‍यारा भी है।”
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प्रेम से बोलो - जय श्री राम

प्रेरक कथाएँ

07 Dec, 08:52


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*लहसुन से हो जायेगा कायाकल्प......*
लहसुन की उत्पत्ति मध्य एशिया से मानी जाती है। आज लहसुन भारत, चीन, फिलीपीन्स, ब्राजील, मैक्सिको आदि सभी देशों में बहुत बड़े पैमाने पर पैदा होता है।

लहसुन में खनिज एवं विटामिनों की काफी अधिक मात्रा होती है। इसमें आयोडीन, गंधक, क्लोरीन, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, लोहा, विटामिन ‘सी’ ‘बी’ काफी मात्रा में पाए जाते हैं।

रोग निवारक गुणों में लहसुन का प्रयोग दमा, बहरापन, कोढ़, छाती में बलगम, बुखार, पेट के कीड़े, यकृत के रोग, हृदय रोग, रक्त-विकार, वीर्य-विकार, क्षय आदि रोगों में लाभकारी है।

आयुर्वेद के आचार्यों का मानना है कि लहसुन के प्रयोग से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है। शारीरिक शक्ति और वीर्यवर्द्धन में लाभकारी है। यह पौष्टिक, वीर्यवर्द्धक, गर्म, पाचक, मल-निष्कासक तीक्ष्ण तथा मधुर है।

लहसुन के गुणों की आधुनिक खोज भी प्राचीन विचारों की पुष्टि करती है। लहसुन को हृदय रोगों में ‘अमृत’ की संज्ञा दी गई है।

विभिन्न रोगों में लहसुन का उपयोग......

👉 *क्षय रोग.....*

10, 12 तुर्रियों को पाव भर दूध में अच्छी तरह उबाल लें। तुर्रियों को खाकर दूध पीने से तपेदिक व क्षय रोग में आराम मिलता है।

👉 *फेफड़े के रोग.....*

यदि फेफड़े के पर्दे पर अधिक तरल जमा होने से सांस लेने में कठिनाई हो और ज्वर हो तो लहसुन पीसकर आटे में इसकी पुलटिस बनाकर दर्द वाले स्थान पर बांधने से आराम मिलता है।

👉 *दमा रोग.....*

लहसुन का रस गुन-गुने पानी में मिलाकर पीने से सांस का दर्द दूर होता है। लहसुन की दो तुर्रियों को देशी घी में भूनकर दिन में दो बार खाने से श्वांस के कष्ट दूर होते हैं। शहद में लहसुन का रस मिलाकर चाटने से भी रोगी को आराम मिलता है। दमे के दौरे में भी लहसुन का रस व शहद मिलाकर चाटने से दौरे का कष्ट दूर होता है।

लहसुन दूध में उबालकर रात को पीने से दमा में लाभ होता है।
लहसुन को सिरके में उबालकर ठंडा कर शहद मिलाकर पीने से दमे के रोगी को लाभ होता है।
लहसुन छाती के सभी रोगों में लाभदायक है, यह सांस व दमे पर नकेल डालता है।

👉 *पाचन तंत्र......*

पेट के रोग के लिए लहसुन बहुत लाभदायक है। यह गैस और अम्लता की शिकायत दूर करता है। लहसुन के प्रयोग से आंतों में पाचक रस उत्पन्न होते हैं तथा पेट के रोगों को समाप्त करने में सहायता मिलती है। इसका प्रभाव शरीर में विद्यमान विष को दूर करता है। आंतों और पेट में किसी भी प्रकार से संक्रमण से उत्पन्न सूजन समाप्त हो जाती है। लहसुन में पाया जाने वाला एन्टीसेप्टिक तत्व संक्रामक रोगों से रोकथाम करता है।

👉 *पेट का कैंसर......*

पेट में कैंसर होने की स्थिति में पानी में लहसुन को पीसकर कुछ समय रोगी को पिलाते रहने से पेट से कैंसर दूर हो जाता है।

👉 *अमाशय का फोड़ा.....*

अमाशय में यदि कोई फोड़ा हो जाए तो ऐसी स्थिति में भी लहसुन का प्रयोग करने से रोगी को लाभ होता है। ऐसे में लहसुन की दो तीन तुर्रियां चबाकर खानी चाहिए।

👉 *पेट के कीड़े.....*

पेट दर्द, पेचिश, दस्तों में भी लहसुन का प्रयोग लाभदायक है। पेट के रोगों में लहसुन के कैप्सूल भी उलपब्ध हैं। लहसुन से आंतों के विषाणु नष्ट होते हैं।

👉 *हृदय रोग.....*

हृदय रोग के लिए लहसुन को ‘अमृत’ की संज्ञा दी गई है। हृदय रोग का मुख्य कारण रक्त वाहिनियों, धमनियों का सिकुड़ जाना है और इनसे कोलेस्ट्राॅल जम जाता है जिसके कारण शरीर में रक्त-प्रवाह ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। लहसुन के प्रयोग से सिकुड़ी हुई अथवा रुकी हुई धमनियां साफ हो जाती हैं और व्यक्ति हृदय रोग से मुक्ति पा लेता है।

लहसुन की दो तीन तुर्रियां चबा लेने से हार्ट फेल होने की नौबत नहीं आती, ऐसे में नियमित लहसुन दूध के साथ प्रयोग करना चाहिए। लहसुन के सेवन से हृदय पर पड़ने वाला गैस का दबाव कम होता है। यह कोलेस्ट्राॅल को समाप्त करता है तथा हृदय रोगी को नया जीवन देता है।

👉 *रक्त चाप.....*

लहसुन का प्रयोग रक्त को पतला करता है इसलिए उच्च रक्तचाप से बचाता है। उच्च रक्तचाप का प्रमुख कारण भी धमनियों का संकुचित होना है। लहसुन के प्रयोग से धमनियों की सिकुड़न समाप्त हो जाती है। लहसुन, पुदीना, जीरा, धनिया, काली मिर्च, सेंधा नमक की चटनी खाने से रक्तचाप कम होता है।

👉 *जोड़ों के दर्द......*

लहसुन के प्रयोग से जोड़ों के दर्द मंे कमी आती है,इससे जोड़ों की सूजन कम होती है, दर्द व सूजन वाले स्थान पर लहसुन का रस लगाने से दर्द कम हो जाता है सूजन दूर होती है। जिन्हें लहसुन की गंध से परहेज है वे रात को लहसुन को घोलकर पानी में भिगोकर सुबह धोकर खाएं। आजकल लहसुन के कैप्सूल भी बाजार में उपलब्ध हैं, उनका प्रयोग किया जा सकता है।

👉 *कैंसर.....*

प्रेरक कथाएँ

07 Dec, 08:52


लहसुन का रस कैंसर में लाभदायक होता है। पानी में लहसुन का रस मिलाकर पीने से कैंसर में फायदा होता है, कैंसर की रसौली भी लहसुन के रस के सेवन से नष्ट हो जाती है।

👉 *नपुंसकता.....*

किसी भी तरह से प्रयोग किया गया लहसुन नपंुसकता दूर करता है। नपुंसक लोगों को 15-20 लहसुन की तुर्रियों को घी में तलकर खाना चाहिए।

लहसुन के रस को शहद के साथ सेवन करने से भी नपुंसकता दूर होती है।

नंपुसक व्यक्ति लहसुन की तुर्रियों को दूध से उबालकर भी सेवन कर लाभ उठा सकते हैं।

👉 *त्वचा विकार....*

लहसुन का प्रयोग त्वचा के विकारों को भी दूर करता है। लहसुन को चेहरे पर दिन में कई बार मलने से कील मुहांसे दूर होते हैं, आंखों के नीचे के काले धब्बे लहसुन रगड़ने से धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। किसी भी प्रकार के दाग-धब्बे दूर करने में लहसुन लाभदायक है। सौंदर्यवर्धक के रूप में लहसुन का प्रयोग ‘अमृत’ है।

घाव के सड़ने या कीड़े पड़ने पर
शरीर पर कहीं घाव होने पर लहसुन का रस लगाने पर घाव जल्दी ठीक हो जाता है, घाव में कीड़े नहीं पड़ते हैं।

👉 *गुम चोट....*

गुम चोट में भी लहसुन लाभकारी है। लहसुन की तुर्रियों को नमक के साथ पीसकर गुम चोट वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।

👉 *नोट...*

तीन वर्ष से कम आयु के शिशु को लहसुन नहीं देना चाहिए, किसी भी रोग के लिए लहसुन का प्रयोग करने के लिए किसी चिकित्सा विशेषज्ञ की सलाह लेना हितकर होगा।

👉 *लहसुन के अन्य प्रयोग....*

जहरीले कीड़े के काटने पर भी लहसुन का रस लगाने से विष का प्रभाव दूर हो जाता है।

गले की ग्रंथियों की सूजन में लहसुन चबाकर खाने से सूजन दूर हो जाती है।

कुकुर खांसी, काली खांसी, फेफड़ों से खून आने पर लहसुन की कलियां चूसने से लाभ होता है।

लहसुन खाने से निमोनिया में भी आराम होता है।

पीलिया में भी लहसुन का प्रयोग लाभकारी है।

लहसुन को तेल में पकाकर उस तेल को ठंडाकर मालिश करने से त्वचा की खुजली मिट जाती है और त्वचा ठीक हो जाती है।

मिर्गी की बेहोशी दूर करने के लिए लहसुन के रस को नाक में टपकाना चाहिए।

लहसुन का नियमित सेवन बुढ़ापे को दूर रखता है।

लहसुन मेधाशक्ति को बढ़ाता है और नेत्रों के लिए भी हितकर है।
लहसुन में विद्यमान एलाइसिन, ऐजोन तथा गंधक तत्व शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है ।

प्रेरक कथाएँ

07 Dec, 01:17


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भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है, उन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य..

1. आदिनाथ शिव

सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

2. शिव के अस्त्र-शस्त्र

शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

3. शिव का नाग

शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

4. शिव की अर्द्धांगिनी

शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

5. शिव के पुत्र

शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

6. शिव के शिष्य

शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

7. शिव के गण

शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। शिवगण नंदी ने ही 'कामशास्त्र' की रचना की थी। 'कामशास्त्र' के आधार पर ही 'कामसूत्र' लिखा गया।

8. शिव पंचायत

भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

9. शिव के द्वारपाल

नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

10. शिव पार्षद

जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

11. सभी धर्मों का केंद्र शिव

शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

12. बौद्ध साहित्यके मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव

भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता है।

14. शिव चिह्न

वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

15. शिव की गुफा

शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

16. शिव के पैरों के निशान

श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

प्रेरक कथाएँ

07 Dec, 01:17


जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

17. शिव के अवतार

वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

18. शिव का विरोधाभासिक परिवार

शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

प्रेरक कथाएँ

06 Dec, 08:29


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🔶 आरोग्य 🔶 सर्दियों में आंवले की चटनी खाने के फायदे


इम्यूनिटी होती है बूस्ट

सर्दियों के मौसम में इम्यूनिटी को मजबूत बनाने के लिए आंवला की चटनी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि आंवला की चटनी में विटामिन सी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो इम्यूनिटी को बूस्ट (Boost Immunity) करता है। जिससे आप वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षित रह सकते हैं।

डायबिटीज में फायदेमंद

डायबिटीज (Diabetes) के मरीजों के लिए आंवला की चटनी का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि आंवला की चटनी फाइबर से भरपूर होती है, जो ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करता है।

स्किन के लिए फायदेमंद

सर्दियों के मौसम में स्किन (Skin) से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती है। लेकिन सर्दियों में अगर आप आंवला की चटनी का सेवन करते हैं, तो इसमें मौजूद विटामिन सी और एंटी ऑक्सीडेंट स्किन को हेल्दी और ग्लोइंग बनाने में मदद करते हैं।

बालों के लिए फायदेमंद

सर्दियों के मौसम में बाल झड़ने की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। लेकिन सर्दियों में अगर आप आंवला की चटनी का सेवन करते हैं, तो इसमें मौजूद तत्व बालों को घना और मजबूत (Strong and thick hair) बनाते हैं। साथ ही इसके सेवन से बाल झड़ने की समस्या भी कम होती है।

पाचन तंत्र होता है मजबूत

सर्दियों के मौसम में पाचन (Digestion) से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती है। लेकिन सर्दियों में अगर आप अपनी डाइट में आंवला की चटनी को शामिल करते हैं, तो इससे पाचन क्रिया में सुधार होता है और पाचन से जुड़ी समस्याएं भी दूर होती है ! नोट:- यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है!

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05 Dec, 04:45


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*प्रेरक कहानी: पहले खुद राम तो बनो*

*आप मेरी बात तो सुनिए* सुनंदा ने कहना चाहा, लेकिन सुमेश ने उसे बाहर करते हुए कहा *मुझे कुछ नहीं सुनना, इस घर में अब तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।* और भड़ाक से दरवाज़ा बंद कर लिया। सुनंदा को कुछ समझ नहीं आया, क्या करे, कहाँ जाए। उसने एक फोन लगाया और पूरी बात बताई। उधर से आवाज़ आई *आप यहीं आ जाइए।*
अगले दिन सुमेश से मिलने उसका मित्र अंकित आया तो देखा कि सुमेश नशे में धुत्त बैठा था। पास में दो बोतलें रखी थीं और गिलास ढ़ुलकी पड़ी थी।अंकित ने पूछा *यार, भाभी कहाँ हैं?* सुनकर वह फट पड़ा *नाम मत लो उस कुलटा का, परसों रात भर पता नहीं कहाँ अपना मुँह काला करती रही, मैंने उसे घर से निकाल दिया।*
*तुमने कारण नहीं पूछा?*
*पूछने की ज़रूरत क्या थी?* कहकर वह बोतल की बची शराब भी गटक गया।
अचानक सुमेश को कुछ याद आया, उसने अंकित से पूछा *अब तेरी पत्नी की तबीयत कैसी है?* अंकित बोला *वही तो बताने आया हूँ। परसों रात अचानक अनु की तबीयत बहुत बिगड़ गई, मैंने तुझे ऑफ़िस में फ़ोन लगाया, लेकिन तूने नहीं उठाया तो फिर सुनंदा भाभी को फ़ोन किया, वह तो बहुत घबरा गईं, उन्होंने ही डाॅक्टर को मेरे घर का पता बताया और मेरे घर आ गईं। उन्होंने भी तुझे चार-पाँच फ़ोन किया था, तेरे से बात न होने पर वो बेचारी बहुत परेशान थी कि तेरे साथ कोई अनहोनी तो न हो गई है।डाॅक्टर ने अनु का चेकअप करके बताया कि सही समय पर मुझे इन्फार्म कर दिया वरना। देर बहुत हो गई थी तो हमने ही उन्हें रोक लिया था। मैं तो उनका धन्यवाद करने आया था परन्तु तुमने तो...*
*हे भगवान! ये मुझसे क्या अनर्थ हो गया।* कहकर वह रोने लगा। रोते रोते उसने अपना फ़ोन देखा, सुनंदा के कई मिस्ड काॅल थें। सायलेंट मोड पर होने के कारण उसने नहीं सुना। वह अपने को कोसने लगा तब अंकित बोला *खुद को अब कोसने से क्या फ़ायदा? याद है,भाभी कभी तुम्हारा फ़ोन नहीं उठा पाती तो तुम कितना चिल्लाते थे। उन्हें बिना बताए कहीं चले जाते, देर रात घर लौटते, कभी-कभी तो तुम अगली सुबह आते, लेकिन उन्होंने कभी तुमसे कुछ नहीं कहा, वो तुम पर विश्वास करती थीं, इसी विश्वास पर तो उस रात वो हमारे घर ठहर गईं थी, लेकिन तुमने उन्हें अपनी बात कहने का एक मौका तक नहीं दिया लानत है तुम पर। अरे, पत्नी का त्याग कर देने से ही कोई राम नहीं बन जाता। श्री राम में धैर्य था, व्यवहार में सौम्यता थी। क्रोध तो उन्हें कभी छुआ भी न था। तभी तो वे पुरुषोत्तम कहलाए। सीता की इच्छा रखते हो तो पहले स्वयं राम तो बनो।*
अंकित की बात सुनकर सोमेश हाथ जोड़कर बोला *मुझे माफ़ कर दो यार! मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है।अब मैं सुनंदा को कहाँ ढूंढू? मैं पुलिस को फ़ोन करता हूँ।* और वह पुलिस का नंबर डायल करने लगा तो अंकित बोला *पहले अपना हुलिया ठीक करके मेरे घर चलो, नाश्ता करो, तब थाने चलेंगे।* सोमेश ने अंकित की बात मान ली और फ़्रेश होकर अंकित के साथ उसके घर चला गया। डाइनिंग टेबल पर सुनंदा को नाश्ता सर्व करते देख सोमेश खुशी से उछल पड़ा। बोला *सुनंदा,तुम यहाँ!* फिर वह हाथ जोड़कर बोला *मुझे माफ़ कर दो। क्रोध में आकर मैं अपना आपा खो बैठा था, इसीलिए तुम्हारे साथ बदसलूकी कर बैठा। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो।* सुनंदा ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह कान पकड़कर उठक बैठक करने लगा, यह देखकर सुनंदा को हँसी आ गई और सोमेश ने उसे गले से लगा लिया, तभी अंकित आ गया, सोमेश से बोला *मित्र घर प्यार और विश्वास से बनता है, शक का कीड़ा घर की दीवारों में दरारें पैदा कर देती हैं।अपनी गलती दोहराना मत वरना.*
*कभी नहीं!* कहकर सोमेश अपनी सीता रूपी सुनंदा को लेकर घर आ गया।

प्रेरक कथाएँ

04 Dec, 13:22


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वानस्पतिक नाम : जमीकन्द, जिमिकन्द
संस्कृत-सूरण , अर्शोघ्न , कन्द, ओल, कन्दल; हिन्दी-सूरनकन्द, जमीकन्द, जिमिकन्द, ओल; कोंकणी-सूमा, सुरना कन्नड़-सुवर्णा-गेडडे सूरण गुजराती-सूरण तेलुगु-थीया–कन्धा कन्द कन्दगोडडा तमिल-काराक्कारानाई
अंग्रेज़ी में नाम : (ऐलिफैन्ट याम) कणैकिलंगु करुनाकालंग बंगाली-ओला ओल मराठी-जंगली सूरण मलयालम-कीजहान्ना करुनाकरग

फारसी-ओला , जमीकन्द।

परिचय

भारत के सभी मैदानी भागों में इसकी खेती की जाती है। इसकी चार प्रजातियां होती है। जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है। सूरन को समस्त कन्द शाकों में श्रेष्ठ कहा गया है। सूरन अर्श में अत्यन्त लाभप्रद होता है। सूरण की समस्त प्रजातियों के कन्द में आक्जलेट पाया जाता है जिसके कारण कच्चे सूरन का सेवन करने से मुखपाक, कण्ठदाह तथा कण्डू आदि उपद्रव उत्पन्न होते है। अत सूरन को अच्छी तरह पकाकर ही इसका सेवन करना चाहिए।

1. (सूरण)
इसका 30 सेमी से 1 मी ऊँचा दृढ़ क्षुप होता है। इसके पत्र 30-90 सेमी व्यास के, अनेक भाग में विभक्त, हरित रंग का एवं छत्र की तरह फैला हुआ रहता है। इसके कन्द प्राय चैत्र-वैशाख मास में लगाए जाते हैं तथा आश्विन शुक्ल पक्ष से लेकर फाल्गुन के अन्त तक ये खोदे जाते हैं। इस प्रकार प्राय 6 मास तक ये सुविधा से प्राप्त होते हैं। कन्द की परिपूर्णता के लिए यह 3 या 6 वर्ष तक भी नहीं खोदा जाता। ऐसे

परिपूर्ण हुए इसके बहुत बड़े-बड़े कन्द, हाथी के पग या उससे भी मोटे, गोल, चक्राकार होते हैं, किन्तु इसके लिए सानूकुल एवं उचित सिंचाई की आवश्यकता होती है। ये कन्द गहरे बादामी रंग के, ऊपर के भाग में दबे हुए होते है। इसके कन्द से अनेक श्वेत वर्ण की जड़े निकली हुई होती है। इसके कन्द का प्रयोग शाक व अचार बनाने के लिए किया जाता है।

2. (मन्दगर सूरन)- इसका पौधा सूरण के समान दिखने वाला परन्तु सूरण से बड़ा होता है। इसके कन्द सूरण से बड़े होते हैं। कई स्थानों पर इसके कंद का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है। इसके कंद को अच्छी तरह उबालने के पश्चात् इसका प्रयोग करना चाहिए। सूरण के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है परन्तु यह सूरण से कम गुणकारी होता है।
3. Amorphophallus margaritifer (Roxb.)Kunth (बहुपर्ण सूरण)- इसका पौधा सूरण से छोटा होता है। इसके पत्र तथा कन्द सूरण की अपेक्षा छोटे होते हैं। इसके कन्द का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

सूरन कटु, कषाय, उष्ण, लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कफवातशामक, अर्शोघ्न, वाजीकरण, दीपन, रुचिकारक, विष्टम्भी, पाचन, स्रंसन, कण्डुकारक, विशद तथा पथ्य होता है।

यह अर्श, प्लीहारोग, गुल्म, कृमि, श्वास, कास, छर्दि, शूल तथा अरोचक नाशक होता है।

सूरण शाक रक्तपित्त प्रकोपक होता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

कर्णमूल शोथ-वन सूरण को पानी में घिसकर या सूखे हुए कंद को पानी के साथ पीसकर लगाने से कर्णमूलशोथ में लाभ होता है।
उदररोग-10-12 ग्राम जंगली सूरण कल्क को दही के मध्य रखकर या दही लपेट कर निगल जाने से उदररोग का शमन होता है।
उदरशोथ-सूरन का शाक बनाकर सेवन करने से उदरशोथ का शमन होता है।
उदर विकार-सूरन की नवीन पत्तियों का शाक बनाकर सेवन करने से उदरविकारों का शमन होता है।
अर्श-सूरण पर मिट्टी की मोटी परत लगाकर, सूखने पर आग में अच्छी तरह पका कर, पकने पर मिट्टी हटा कर, साफ कर तैल में भून कर बनाएं मिलाकर खाने से अर्श में अतिशय लाभ होता है।
2-4 ग्राम सूरणकंद चूर्ण में समभाग कुटज त्वक् चूर्ण को मिलाकर तक्र के अनुपान के साथ सेवन करने से अर्श में लाभ होता है।
पुटपाक विधि से प्राप्त 50 मिली सूरण स्वरस में 10-12 मिली तिल तैल और 1 ग्राम बनाएं मिलाकर पीने से अर्श रोग में लाभ होता है।
(कल्याणक लवण) समभाग शुद्ध भल्लातक, त्रिफला, दंती, चित्रकमूल तथा सूरण में दो गुना मिलाकर बनाएं, मिट्टी के घड़े में बंद कर, उपलों की मंद अग्नि में पकाकर प्राप्त लवण का मात्रापूर्वक सेवन अर्श में प्रशस्त है।
एक मास तक अन्य कोई आहार न देकर केवल सूरण का शाक आदि रूप में सेवन करना चाहिए और तक्र पिलाना चाहिए, केवल इसी आहार पर रहने से अर्श का शमन होता है।
अर्श-सूरण आदि औषधियों से निर्मित बाहुशाल गुड़ का मात्रानुसार सेवन करने से अर्श, गुल्म, वातोदर, आमवात, प्रतिश्याय, क्षय, ग्रहणी, पीनस, हलीमक, पाण्डु तथा प्रमेह रोगों में लाभ होता है।
सूरणपिण्डी का उपयोग अर्श की चिकित्सा में किया जाता है।
बृहत् सूरण वटक का सेवन करने से अर्श, ग्रहणी, श्वास-कास, क्षय, प्लीहा, श्लीपद, शोथ, भगन्दर तथा पलित रोग का शमन होता है। यह योग वृष्य, मेधावर्धक, अग्निवर्धक तथा रसायन होता है।

प्रेरक कथाएँ

04 Dec, 13:22


अर्श-जंगली सूरण के चूर्ण को घी में भूनकर, मूली के रस में घोंटकर, 250 मिग्रा की गोलियां बनाकर प्रातसायं 2-2 गोली खिलाने से अर्श में लाभ होता है।
संधिवात-सूरन घनकंद को पीसकर जोड़ों पर लेप करने से संधिवात का शमन होता है। (लेप करने से पहले संधियों में तैल लगा लेना चाहिए।)
श्लीपद-सूरणकन्द कल्क में मधु तथा घी मिलाकर लेप करने से वल्मीक और श्लीपदजन्य शोथ का शमन होता है।
अर्बुद (रसोली)-अग्नि पर भूने हुए सूरणकन्द में घी और गुड़ मिलाकर, पीसकर लेप करने से अर्बुद का शमन होता है।
मेदजन्य-ग्रन्थि-अच्छे पके हुए सूरण के कन्द को सोंठ और जल के साथ भलीभाँति पीसकर ग्रन्थियों पर उसका बारम्बार लेप कराना चाहिए। सात दिन तक लेप करने से ग्रन्थियाँ नष्ट हो जाती हैं।
प्रयोज्याङ्ग : घनकंद।

मात्रा : कल्क 10-12 ग्राम। स्वरस 50 मिली। चिकित्सक के परामर्शानुसार।

विशेष : सूरण को सम्पूर्ण कन्दशाकों में श्रेष्ठ समझा जाता है, किन्तु यह दद्रु, कुष्ठ तथा रक्तपित्त के रोगियों के लिए हितकर नहीं होता है।

प्रेरक कथाएँ

04 Dec, 02:32


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*प्रेरक कहानी: कीमत*
एक कुम्हार को रास्ते पर चलते समय..बाजार से लौटता था अपनी मटकियां बेच कर, अपने गधे को लेकर..एक हीरा पड़ा मिल गया। बड़ा हीरा! उठा लिया सोच कर कि चमकदार पत्थर है, बच्चे खेलेंगे। फिर राह में ख्याल आया उसे कि *बच्चे कहीं गंवा देंगे, यहां-वहां खो देंगे, अच्छा हो गधे के गले में लटका दूं। गधे के लिए आभूषण हो जाएगा।*

कुम्हार के हाथ हीरा पड़े तो गधे के गले में लटकेगा ही, और जाएगा कहां! उसने गधे के गले में हीरा लटका दिया। एक जौहरी अपने घोड़े पर सवार आता था। देख कर चैंक गया। बहुत हीरे उसने देखे थे, पर ऐसा हीरा नहीं देखा था। और गधे के गले में लटका! रोक लिया घोड़ा।

समझ गया कि इस मूढ़ को कुछ पता नहीं है। इसलिए नहीं कहा कि इस हीरे का कितना दाम; कहा कि इस पत्थर का क्या लेगा? कुम्हार ने बहुत सोचा-विचारा, बहुत हिम्मत करके कहा कि आठ आने दे दें। जौहरी तो बिल्कुल समझ गया कि इसे कुछ भी पता नहीं है।

*आठ आने में करोड़ों का हीरा बेच रहा है! मगर जौहरी को भी कंजूसी पकड़ी। उसने सोचा: चार आने लेगा? चार आने में देगा?* आठ आने, शर्म नहीं आती इस पत्थर के मांगते। कुम्हार ने कहा कि फिर रहने दो। फिर गधे के गले में ही ठीक। चार आने के पीछे कौन उसके गले में पहनाए हुए पत्थर को उतारे!

जौहरी यह सोच कर आगे बढ़ गया कि और दो आने लेगा, ज्यादा से ज्यादा; या आगे बढ़ जाऊं तो शायद चार आने में ही दे दे। मगर उसके पीछे ही *एक और जौहरी आ गया। और उसने एक रुपये में वह पत्थर खरीद लिया।*

जब तक पहला जौहरी वापस लौटा, सौदा हो चुका था। *पहले जौहरी ने कहा: अरे मूर्ख, अरे पागल कुम्हार! तुझे पता है तूने क्या किया? करोड़ों की चीज एक रुपये में बेच दी!*

वह कुम्हार हंसने लगा। उसने कहा: *मैं तो कुम्हार हूं, मुझे तो पता नहीं कि करोड़ों का था हीरा। मैंने तो सोचा एक रुपया मिलता है, यही क्या कम है! महीने भर की मजदूरी हो गई। मगर तुम्हारे लिए क्या कहूं, तुम तो जौहरी हो, तुम आठ आने में न ले सके।*

*करोड़ों तुमने गंवाए हैं, मैंने नहीं गंवाए। मुझे तो पता ही नहीं था।*

तुम्हें भी पता नहीं है कि तुम कितना गंवा रहे हो! *और वो लोग जो तुम्हे जानते है पर लालच या अहंकार के कारण सस्ते में सौदा करना चाहते हैं* वो तुमसे भी ज्यादा वे गंवा रहे हैं। *तुम तो नहीं जानते कि तुम क्या गंवा रहे हो, वो तो जानते है तुम्हारी कीमत* कम से कम उन्हें तो बोध होना चाहिए।

कुम्हार तो मुर्ख है है, पर उसकी मूर्खता अज्ञानता के कारण है.. पर जौहरी... वो तो महामूर्ख निकला..

*आपने जीवन के ऐसे महामूर्खों के लिए दुखी मत होइए...*

प्रेरक कथाएँ

03 Dec, 12:04


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वर्तमान समय में शहर में रहने वाले, जो पहले गांव में रहते थे उन सबको चूल्हे की रोटी याद आती है चूल्हे पर पका हुआ भोजन आज भी स्वाद तृप्ति और स्वास्थ्य का केंद्र है। चूहे पर भोजन पका कर किया जाए उसे जो स्वास्थ्य लाभ होता था वह एक अलग बात थी
किंतु उसकी राख........
भारतीय रसोई के चूल्हे की राख में ऐसा क्या था कि, वह पुराने जमाने का Hand Sanitizer थी ...?

उस समय Hand Sanitizer नहीं हुआ करते थे, तथा साबुन भी दुर्लभ वस्तुओं की श्रेणी आता था। उस समय हाथ धोने के लिए जो सर्वसुलभ वस्तु थी, वह थी चूल्हे की राख। जो बनती थी लकड़ी तथा गोबर के कण्डों के जलाये जाने से। चूल्हे की राख का रासायनिक संगठन है ही कुछ ऐसा ।
आइये चूल्हे की राख का वैज्ञानिक विश्लेषण करें। इस राख में वो सभी तत्व पाए जाते हैं, वे पौधों में भी उपलब्ध होते हैं। इसके सभी Major तथा Minor Elements पौधे या तो मिट्टी से ग्रहण करते हैं या फिर वातावरण से। इसमें सबसे अधिक मात्रा में होता है Calcium.

इसके अलावा होता है Potassium, Aluminium, Magnesium, Iron, Phosphorus, Manganese, Sodium तथा Nitrogen. कुछ मात्रा में Zinc, Boron, Copper, Lead, Chromium, Nickel, Molybdenum, Arsenic, Cadmium, Mercury तथा Selenium भी होता है ।
राख में मौजूद Calcium तथा Potassium के कारण इसकी ph क्षमता ९.० से १३.५ तक होती है। इसी ph के कारण जब कोई व्यक्ति हाथ में राख लेकर तथा उस पर थोड़ा पानी डालकर रगड़ता है तो यह बिल्कुल वही माहौल पैदा करती है जो साबुन रगड़ने पर होता है।

जिसका परिणाम होता है जीवाणुओं और विषाणुओं का विनाश । आइये, अब मनन करें सनातन धर्म के उस तथ्य पर जिसे अब सारा संसार अपनाने पर विवश है। सनातन में मृत देह को जलाने और फिर राख को बहते पानी में अर्पित करने का प्रावधान है। मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है ।
मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है । जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटैण्ट का काम करती है ।

इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म (MPN) में कमी आ जाती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन (DO) की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फैक्शन के लिए एक एकोफ़्रेंडली विकल्प है...
जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमैंट (STP) के लिए भी किया जा सकता है। सनातन का हर क्रिया कलाप विशुद्ध वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। इसलिए सनातन अपनाइए स्वस्थ रहिये ।

आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर धूनी की राख मलते हैं जो कि उन्हें शुद्ध रखती है साथ ही साथ भीषण ठंडक से भी बचाये रखता है
स्वास्थ्य- रक्षा
दवा मुक्त भारत
तो बोलो जय श्री राम 🙏🕉️🚩

प्रेरक कथाएँ

03 Dec, 07:51


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*प्रेरक विचार: इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले।*

आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है । ऐसे में वह स्वयं भी हथियार डाल देता है अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है और इस चक्कर में कष्ट झेला होता है ।

अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चल-चित्र की तरह चल रही होती है । उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है इसलिये शरीर के पाँच प्राण एक 'धनंजय प्राण' को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरम्भ कर देते हैं ।

ये प्राण, आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिये सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं जो कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है । धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश कर जाती है ।

बहरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते हैं कि व्यक्ति को पता चल जाता है ।

उसे बेचैनी होने लगती है, घबराहट होने लगती है । सारा शरीर फटने लगता है, खून की गति धीमी होने लगती है । सांँस उखड़ने लगती है । बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं ।

अर्थात् अब चेतना लुप्त होने लगती है और मूर्च्छा आने लगती है । चैतन्य ही आत्मा के होने का संकेत है और जब आत्मा ही शरीर छोड़ने को तैयार है - तो चेतना को तो जाना ही है और वो मूर्छित होने लगता है ।

बुद्धि समाप्त हो जाती है और किसी अनजाने लोक में प्रवेश की अनुभूति होने लगती है - यह चौथा आयाम होता है ।

फिर मूर्च्छा आ जाती है और आत्मा एक झटके से किसी भी खुली हुई इंद्रिय से बाहर निकल जाती है । इसी समय चेहरा विकृत हो जाता है । यही आत्मा के शरीर छोड़ देने का मुख्य चिह्न होता है ।

शरीर छोड़ने से पहले - केवल कुछ पलों के लिये आत्मा अपनी शक्ति से शरीर को शत-प्रतिशत सजीव करती है - ताकि उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध न रहे - और फिर उसी समय आत्मा निकल जाती है और शरीर खाली मकान की तरह निर्जीव रह जाता है ।
इससे पहले घर के आसपास कुत्ते-बिल्ली के रोने की आवाजें आती हैं । इन पशुओं की आँखे अत्याधिक चमकीली होती है जिससे ये रात के अँधेरे में तो क्या सूक्ष्म-शरीर धारी आत्माओं को भी देख लेते हैं ।

जब किसी व्यक्ति की आत्मा शरीर छोड़ने को तैयार होती है तो उसके अपने सगे-संबंधी जो मृतात्माओं के रूप में होते है उसे लेने आते हैं और व्यक्ति उन्हें यमदूत समझता है और कुत्ते-बिल्ली उन्हें साधारण जीवित मनुष्य ही समझते हैं और अनजान होने की वजह से उन्हें देखकर रोते हैं और कभी-कभी भौंकते भी हैं ।

शरीर के पाँच प्रकार के प्राण बाहर निकलकर उसी तरह सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं । जैसे गर्भ में स्थूल-शरीर का निर्माण क्रम से होता है ।

सूक्ष्म-शरीर का निर्माण होते ही आत्मा अपने मूल वाहक धनंजय प्राण के द्वारा बड़े वेग से निकलकर सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश कर जाती है ।

आत्मा शरीर के जिस अंग से निकलती है उसे खोलती, तोड़ती हुई निकलती है । जो लोग भयंकर पापी होते है उनकी आत्मा मूत्र या मल-मार्ग से निकलती है । जो पापी भी हैं और पुण्यात्मा भी हैं उनकी आत्मा मुख से निकलती है । जो पापी कम और पुण्यात्मा अधिक है उनकी आत्मा नेत्रों से निकलती है और जो पूर्ण धर्मनिष्ठ हैं, पुण्यात्मा और योगी पुरुष हैं उनकी आत्मा ब्रह्मरंध्र से निकलती है ।

अब तक शरीर से बाहर सूक्ष्म-शरीर का निर्माण हुआ रहता है । लेकिन ये सभी का नहीं हुआ रहता । जो लोग अपने जीवन में ही मोहमाया से मुक्त हो चुके योगी पुरुष है उन्ही के लिये तुरंत सूक्ष्म-शरीर का निर्माण हो पाता है ।

अन्यथा जो लोग मोहमाया से ग्रस्त हैं परंतु बुद्धिमान हैं, ज्ञान-विज्ञान से अथवा पांडित्य से युक्त हैं , ऐसे लोगों के लिये दस दिनों में सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है ।

हिंदू धर्म-शास्त्र में - दस गात्र का श्राद्ध और अंतिम दिन मृतक का श्राद्ध करने का विधान इसीलिये है कि - दस दिनों में शरीर के दस अंगों का निर्माण इस विधान से पूर्ण हो जाये और आत्मा को सूक्ष्म-शरीर मिल जाये ।

ऐसे में, जब तक दस गात्र का श्राद्ध पूर्ण नहीं होता और सूक्ष्म-शरीर तैयार नहीं हो जाता आत्मा, प्रेत-शरीर में निवास करती है ।

अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो आत्मा प्रेत-योनि में भटकती रहती है ।

एक और बात, आत्मा के शरीर छोड़ते समय व्यक्ति को पानी की बहुत प्यास लगती है । शरीर से प्राण निकलते समय कण्ठ सूखने लगता है । ह्रदय सूखता जाता है और इससे नाभि जलने लगती है । लेकिन कण्ठ अवरुद्ध होने से पानी पिया नहीं जाता और ऐसी ही स्थिति में आत्मा शरीर छोड़ देती है । प्यास अधूरी रह जाती है । इसलिये अंतिम समय में मुख में 'गंगा-जल' डालने का विधान है ।

प्रेरक कथाएँ

03 Dec, 07:51


इसके बाद आत्मा का अगला पड़ाव होता है शमशान का 'पीपल' ।

यहाँ आत्मा के लिये 'यमघंट' बंँधा होता है । जिसमें पानी होता है । यहाँ प्यासी आत्मा यमघंट से पानी पीती है जो उसके लिये अमृत तुल्य होता है । इस पानी से आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है ।

हिन्दू धर्म शास्त्रों में विधान है कि - मृतक के लिये यह सब करना होता है ताकि उसकी आत्मा को शान्ति मिले । अगर किसी कारण वश मृतक का दस गात्र का श्राद्ध न हो सके और उसके लिये पीपल पर यमघंट भी न बाँधा जा सके तो उसकी आत्मा प्रेत-योनि में चली जायेगी और फिर कब वहांँ से उसकी मुक्ति होगी, कहना कठिन होगा l

*हांँ, कुछ उपाय अवश्य हैं। पहला तो यह कि किसी के देहावसान होने के समय से लेकर तेरह दिन तक निरन्तर भगवान् के नामों का उच्च स्वर में जप अथवा कीर्तन किया जाय और जो संस्कार बताये गये हैं उनका पालन करने से मृतक भूत प्रेत की योनि, नरक आदि में जाने से बच जायेगा , लेकिन यह करेगा कोन ?*

*यह संस्कारित परिजन, सन्तान, नातेदार ही कर सकते हैं l अन्यथा आजकल अनेक लोग केवल औपचारिकता निभाकर केवल दिखावा ही अधिक करते हैं l*

*दूसरा उपाय कि मरने वाला व्यक्ति स्वयं भजनानंदी हो, भगवान का भक्त हो और अंतिम समय तक यथासंभव हरि स्मरण में रत रहा हो ।*

इसी संदर्भ में , भक्त कहता है...

कृष्ण त्वदीय पदपंकजपंजरांके अद्यैव मे विशतु मानस राजहंसः

प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः कंठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते।।

श्रीकृष्ण कहते हैं....

कफवातादिदोषेन मद्भक्तो न तु मां स्मरेत्
अहं स्मरामि तद्भक्तं ददामि परमां गतिम्।।

फिर श्रीकृष्ण को लगता है कि यह मैं कुछ अनुचित बोल गया।

पुनश्च वे कहते हैं....

कफवातादिदोषेन मद्भक्तो न च मां स्मरेत्
तस्य स्मराम्यहं नो चेत् कृतघ्नो नास्ति मत्परः

ततस्तं मृयमाणं तु काष्ठपाषाणसन्निभं
अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्।।

*तीसरा भगवान के धामों में देह त्यागी हो, अथवा दाह संस्कार काशी, वृंदावन या चारों धामों में से किसी में हुआ हो l*

*स्वयं विचार करना चाहिये कि हम दूसरों के भरोसे रहें या अपना हित स्वयं साधें l*

जीवन बहुत अनमोल है, इसको व्यर्थ मत गँवायें। एक - एक पल को सार्थक करें। हरिनाम का नित्य आश्रय लें । मन के दायरे से बाहर निकल कर सचेत होकर जीवन को जियें, न कि मन के अधीन होकर।

यह मानव शरीर बार- बार नहीं मिलता।

🙏🙏

जीवन का एक- एक पल जो जीवन का गुजर रहा है ,वह फिर वापस नहीं मिलेगा। इसमें जितना अधिक हो भगवान् का स्मरण जप करते रहें, हर पल जो भी कर्म करो बहुत सोच कर करें। क्योंकि कर्म परछाईं की तरह मनुष्य के साथ रहते है। इसलिये सदा शुभ कर्मों की शीतल छाया में रहें।

वैसे भी कर्मों की ध्वनि शब्दों की धवनि से अधिक ऊँची होती है।

अतः सदा कर्म सोच विचार कर करें। जिस प्रकार धनुष में से तीर छूट जाने के बाद वापस नहीं आता, इसी प्रकार जो कर्म आपसे हो गया वह उस पल का कर्म वापस नहीं होता चाहे अच्छा हो या बुरा।

इसलिये इससे पहले कि आत्मा इस शरीर को छोड़ जाये, शरीर मेँ रहते हुए आत्मा को यानी स्वयं को जान लें और जितना अधिक हो सके मन से, वचन से, कर्म से भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण का ध्यान, चिंतन, जप कीर्तन करते रहें, निरन्तर स्मरण से हम यम पाश से तो बचेंगे ही बचेंगे, साथ ही हमें भगवत् धाम भी प्राप्त हो सकेगा जो कि जीवन का वास्तविक लक्ष्य है ।

आयुष्यक्षणमेकोSपि न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः
स वृथा नीयते येन तस्मै मूढात्मने नमः।।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।

।। हरिः ओम् तत् सत् ।।
🙏

प्रेरक कथाएँ

02 Dec, 10:14


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कितने विद्वान थे हमारे पुरखे
स्वास्थ्य को भी त्यौहार से जोड़ दिया, परंपराओं से जोड़ दिया केवल एक दिन सब्जी खाने से साल भर शरीर मे फास्फोरस की कमी नहीं रहेगी मतलब हड्डियां मजबूत रहेंगी।
दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है, सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है, कभी-२ देशी वाला सूरन अर्थात जिमीकंद भी मिल जाता है,

बचपन में ये सब्जी फूटी आँख भी नही सुहाती थी, लेकिन चूँकि बनती ही यही थी तो झख मारकर खाना पड़ता ही था, तब मै सोचता था कि पापा लोग कितने कंजूस हैं जो आज त्यौहार के दिन भी ये खुजली वाली सब्जी खिला रहे हैं, दादी बोलती थी आज के दिन जो सूरन ना खायेगा, अगले जन्म में छछुंदर जन्म लेगा,
यही सोच कर अनवरत खाये जा रहे है कि छछुंदर ना बन जाये😂😂 बड़े हुए तब सूरन की उपयोगिता समझ में आई,

सब्जियो में जिमीकंद ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, ऐसी मान्यता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी जिमीकंद की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नही होगी,

मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी।
धन्य पूर्वज हमारे जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया🙏🏻

प्रेरक कथाएँ

25 Nov, 13:11


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*पिता के हाथ के निशान*

पिता जी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। नतीजतन, दीवारें जहाँ भी छूती थीं, वहाँ रंग उड़ जाता था और दीवारों पर उनके उंगलियों के निशान पड़ जाते थे।

मेरी पत्नी ने यह देखा और अक्सर गंदी दिखने वाली दीवारों के बारे में शिकायत करती थी।

एक दिन, उन्हें सिरदर्द हो रहा था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर थोड़ा तेल मालिश किया। इसलिए चलते समय दीवारों पर तेल के दाग बन गए।

मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लाई। और मैंने भी अपने पिता पर चिल्लाया और उनसे बदतमीजी से बात की, उन्हें सलाह दी कि वे चलते समय दीवारों को न छुएँ।

वे दुखी लग रहे थे। मुझे भी अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी, लेकिन मैंने उनसे कुछ नहीं कहा।

पिता जी ने चलते समय दीवार को पकड़ना बंद कर दिया। और एक दिन गिर पड़े। वे बिस्तर पर पड़ गए और कुछ ही समय में हमें छोड़कर चले गए। मुझे अपने दिल में अपराधबोध महसूस हुआ और मैं उनके भावों को कभी नहीं भूल पाया और कुछ ही समय बाद उनके निधन के लिए खुद को माफ़ नहीं कर पाया।

कुछ समय बाद, हम अपने घर की पेंटिंग करवाना चाहते थे। जब पेंटर आए, तो मेरे बेटे ने, जो अपने दादा को बहुत प्यार करता था, पेंटर को पिता के फिंगरप्रिंट साफ करने और उन जगहों पर पेंट करने की अनुमति नहीं दी।

पेंटर बहुत अच्छे और नए थे। उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वे मेरे पिता के फिंगरप्रिंट/हाथ के निशान नहीं मिटाएंगे, बल्कि इन निशानों के चारों ओर एक सुंदर घेरा बनाकर एक अनूठी डिजाइन बनाएंगे।

इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और वे निशान हमारे घर का हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे अनोखे डिजाइन की प्रशंसा करता था।

समय के साथ, मैं भी बूढ़ा हो गया।

अब मुझे चलने के लिए दीवार के सहारे की जरूरत थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कहे गए शब्द याद आ गए और मैंने बिना सहारे के चलने की कोशिश की। मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझे दीवार का सहारा लेने के लिए कहा, चिंता व्यक्त करते हुए कि मैं बिना सहारे के गिर जाऊंगा, मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मुझे पकड़ रहा था।

मेरी पोती तुरंत आगे आई और प्यार से, मुझे सहारा देने के लिए अपना हाथ उसके कंधे पर रखने के लिए कहा। मैं लगभग चुपचाप रोने लगा। अगर मैंने अपने पिता के लिए भी ऐसा ही किया होता, तो वे लंबे समय तक जीवित रहते।

मेरी पोती मुझे साथ ले गई और सोफे पर बैठा दिया।
फिर उसने मुझे दिखाने के लिए अपनी ड्राइंग बुक निकाली।
उसकी शिक्षिका ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की और उसे बेहतरीन टिप्पणियाँ दीं।
स्केच दीवारों पर मेरे पिता के हाथ के निशान का था।
स्केच के नीचे शीर्षक लिखा था..
“काश हर बच्चा बड़ों से इसी तरह प्यार करता”।

मैं अपने कमरे में वापस आ गया और अपने पिता से माफ़ी मांगते हुए फूट-फूट कर रोने लगा, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।

*हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाते हैं। आइए अपने बड़ों का ख्याल रखें*।
*योगेन्द्र सिंह राठौर जी की और से साभार*

प्रेरक कथाएँ

25 Nov, 06:52


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*हार्ट अटैक क्यों होता है और इसके लक्षण क्या हैं ??*

दुनिया में लगभग 1.79 करोड़ लोग प्रति वर्ष हार्ट अटैक और कार्डियो-वैस्कुलर बीमारी के कारण मरते हैं. कार्डियो-वैस्कुलर बीमारीयां ही हार्ट-अटैक और अन्य हृदय संबंधी बीमारियों का करना भी हैं. हार्ट-अटैक और स्ट्रोक इंसानों की मृत्यु का एक बड़ा कारण है.

तो आखिर हार्ट-अटैक किन कारणों से होता है?


येल यूनिवर्सिटी
हृदय भी अन्य मांसपेशियों की तरह ही है. इसे भी काम करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जो की हार्ट-अटैक के दौरान उसे पर्याप्त मात्र में मिल नहीं पाती. हृदय को रक्त पहुचानें वाली coronary arteries यानि कोरोनरी धमनियों में वसा यानि फैट जमा होते होते उन्हें संकरा कर देता है,उम्र बढ़ने के साथ साथ इस फैट का भण्डार बढ़ता जाता है. जिससे हृदय में रक्त की आपूर्ति में कमी आती जाती है. जिससे ऑक्सीजन युक्त रक्त, हृदय तक नहीं पहुँच पता.

धमनियों में जमा हुआ यह फैट, टूटता रहता है, और जहाँ भी यह टूटता है वहां मिनटों में रक्त का थक्का जमना शुरू हो जाता है, और कभी कभी यह थक्का, धमनियों को ब्लाक कर देता है और रक्त का प्रवाह रुक जाता है. रक्त कर प्रवाह रुकते ही, हृदय की कोशिकाओं को ओक्सीजन मिलना बंद हो जाती है. और मिनटों में वो मरने लगती हैं, इसे मायोकार्डीअल इन्फर्कशन या हार्ट-अटैक कहते हैं.



ट्रीटमेंट के आभाव में स्थिति तेज़ी से ख़राब होने लगती है. हृदय का ज़ख़्मी हिसा पूरी शक्ति से रक्त को पंप नहीं कर पता. और हृदय के धड़कने की गति और रिदम में भी गड़बड़ी होने लगती है. बुरी स्थिति में हार्ट-अटैक से तुरंन्त मृतु भी हो सकती है.

हमें कैसे पता चलेगा की आप को या आपके आसपास किसी व्यक्ति हो हार्ट-अटैक हो रहा है?

सबसे सामान्य लक्षण है, छाती में जोर कर दर्द. जो कोशिकाओं के मरने के कारण हृदय की मांस्पेशियो में होता है. अक्सर लोग इसे बेहद दर्दनाक बताते हैं. यह दर्द बायीं भुजा, जबड़े, कमर और पेट में भी तेज़ी से फ़ैल सकता है.

हार्ट-अटैक हमेशा इतना अचानक और नाटकीय नहीं होता, जैसा की फ़िल्मो में दिखाते हैं.

कुछ लोग मिथली या उलटी आना और सांस लेने में तकलीफ महसूस करते हैं. बुजुर्गों और औरतों में लक्षण और भी कम दिखाई दे सकते हैं. उनके लिए कमजोरी और थकान ही मुख्य संकेत हो सकते हैं. और तो और, ऐसे लोग जिन्हें मधुमेह है, उनकी दर्द के संकेत पहुचने वाली नर्व्स छति-ग्रस्त हो जाती है. ऐसे लोगों में तो हार्ट-अटैक बिना किसी दर्द के भी हो सकता है.

अगर आपको लगता है की किसी को हार्ट-अटैक हो रहा है. तो सबसे ज़रूरी काम है जल्द से जल्द मदद करें. अगर आपके पास किसी हॉस्पिटल का नंबर है तो जल्द से जल्द कॉल करें और प्रथम-उपचार उपलब्ध कराएँ और जितनी जल्दी हो सके व्यक्ति को हॉस्पिटल पहुचाएं.
प्रथम उपचार के और पर अस्प्रिन मरीज़ को दे सकते हैं. अस्प्रिन, रक्त को पतला कर देती है जिससे रक्त के बहाव में आसानी होती है. साथ ही नाइट्रो-ग्लिसरीन भी दे सकते हैं, जो धमनियों को चौड़ा करने में सहायक है. यह हार्ट-अटैक को कुछ देर के लिए और बिगड़ने से रोक सकती हैं जिससे मरीज़ को हॉस्पिटल तक ले जाने का कीमती समय मिल सकता है.

हॉस्पिटल पहुचते ही डॉक्टर्स हार्ट-अटैक का पता लगा सकते हैं. सामान्य रूप से वे ECG (इलेक्ट्रो कार्डियो ग्राम) के द्वारा हृदय की इलेक्ट्रिकल गतिविधिओं को नाप कर और कुछ ब्लड टेस्ट के ज़रिये हृदय की मांसपेशिओं के नुक्सान का पता लगा कर यह निश्चित करते हैं की व्यक्ति को हार्ट अटैक हो रहा है या नहीं.

मरीज, फिर एक हाई-टेक कमरे में ले जाया जाता है, जहाँ टेस्ट किये जाते हैं और पता लगाया जाता है की धमनियां कहा-कहा ब्लाक हुई हैं.

कार्डियोलोजिस्ट (हृदय विशेषज्ञ) ब्लाक धमनी के अन्दर गुब्बारे को भुला कर ब्लाक को खोल सकते हैं. इस प्रक्रिया को एनजीओप्लास्टी कहते हैं. अक्सर वो एक धातु या पोलिमर की जाली वाला पाइप भी ब्लाक वाले स्थान पे लगा देते हैं जो धमनी को पुनः ब्लाक होने से रोकता है. अति घटक हार्ट ब्लॉक्स को ठीक करने के लिए कोरोनरी आर्टरी बाईपास सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है. जिसे शरीर के किसी अन्य हिस्से की धमनी को काट कर हृदय के क्षतिग्रस्त हिस्से में रक्त पहुचने के लिए जोड़ दिया जाता है. यह प्रक्रियायें हृदय में रक्त का प्रवाह फिर से प्रारंभ कर देती हैं.

हृदय रोग निवारण प्रगति पर है. पर इलाज से बेहतर तो हमेशा बचाव ही होता है. तो आखिर कैसे अपने हृदय को आप स्वस्थ रख सकते हैं?

पैत्रक जींस और जीवन शैली दोनों इसपर बहुत बड़ा असर डालते हैं. फिलहाल जींस का तो हम कुछ नहीं कर सकते पर अच्छी खबर यह है कि आप अपनी जीवन शैली में परिवर्तन कर के हार्ट-अटैक की संभवना को काफी कम कर सकते हैं.

प्रेरक कथाएँ

25 Nov, 06:52


कसरत, पौष्टिक भोजन और मोटापा कम करना, ये सब हार्ट-अटैक आने के खतरे को कम कर देते हैं चाहे आपको पहले हार्ट-अटैक हुआ हो या नहीं. डॉक्टर्स हफ्ते में कम से कम 3 दिन व्यायाम की सलाह देते हैं. जिनमें एरोबिक्स और वज़न उठाना दोनों शामिल हैं.

शक्कर, और फैट वाला भोजन लेना हृदय के लिए अच्छा नहीं होता. इनसे ही ह्रदय रोग होने की सम्भावना और बढ़ जाती है.

तो फिर हम क्या क्या खा सकते हैं?

फल, और फाइबर से भरी हुई सब्जियां, लाल मांस के स्थान पर मछली और चिकन, साबुत अनाज और ड्राई फ्रूट्स जैसे बादाम और अखरोट. ये सभी फ़ायदेमंद साबित हो सकते हैं.



अच्छी खुराक और व्यायाम आपके वजन को भी कंट्रोल में रख सकता है. जिससे ह्रदय रोगों की सम्भावना और कम हो जाती है. और हाँ दवायें भी हार्ट अटैक की रोक थम में मदद करती हैं. अगर आपको पहले हार्ट-अटैक आ चुका है तो अपनी दवाई समय पर लें.

हार्ट-अटैक सामान्य हो सकते हैं पर ज़रूरी नहीं की इससे बचा नहीं जा सकता.

अच्छा भोजन, तम्बाकू से दूरी, व्यायाम, अच्छी नींद और खूब साड़ी हसी… यह सब हार्ट-अटैक के खतरे को कम करते हैं और सुनिश्चित करते हैं की आपके शरीर की सबसे महत्वपूर्ण मांसपेशी धड़कती रहे.

प्रेरक कथाएँ

25 Nov, 04:17


🔸रविवार 👉 रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं। इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं।

प्रेरक कथाएँ

25 Nov, 04:17


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♦️जानिये त्रिपुंड और तिलक किसे कहते है तथा किस दिन किस का तिलक लगये और इस में कौन कौन देवता निवास करते है !

🔸ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

🔸ललाट अर्थात माथे पर भस्म या चंदन से तीन रेखाएं बनाई जाती हैं उसे त्रिपुंड कहते हैं।

🔸शैव संप्रदाय के लोग इसे धारण करते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से हर एक में नौ-नौ देवता निवास करते हैं।

♦️त्रिपुंड के देवताओ के नाम इस प्रकार हैं-
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1- अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रात:स्वन तथा महादेव- ये त्रिपुंड की पहली रेखा के नौ देवता हैं।

2- ऊंकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा और महेश्वर- ये त्रिपुंड की दूसरी रेखा के नौ देवता हैं।

3- मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन तथा शिव- ये त्रिपुंड की तीसरी रेखा के नौ देवता हैं।

त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:

🔸तिलक के प्रकार :
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तिलक कई प्रकार के होते हैं - मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।

♦️सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

🔸चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।

चन्दन के प्रकार👉 हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।

♦️तिलक लगाने के लाभ
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1👉 तिलक करने से व्यक्त‍ित्व प्रभावशाली हो जाता है. दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्यक्त‍ि के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है.

2👉 ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है. लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं. यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है.

3👉 दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है. यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है.

4👉 इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है.

5👉 हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है. हल्दी में एंटी बैक्ट्र‍ियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है.

6👉 धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है.

7👉 माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।

किस दिन किस का तिलक लगाये :
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यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।

🔸सोमवार 👉 सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं।

🔸मंगलवार 👉 मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है। मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है।

🔸बुधवार 👉 बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए।

🔸गुरुवार 👉 गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं।

🔸शुक्रवार 👉शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है ।

🔸शनिवार 👉 शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह। शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं।

प्रेरक कथाएँ

24 Nov, 10:43


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*"नाभि" में छुपा है सेहत का राज नाभी कुदरत की एक अद्भुत देन है।*
*हमारी "नाभि" का सम्बन्ध सीधा हमारे शरीर से जुड़ा है।*

*🔸जानिए इसके वैज्ञानिक तथ्य:*

*मित्रों हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है...गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुड़ी हुई नाड़ी से पोषण मिलता है और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।*
*गर्भधारण के नौ महीनें अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुड़ाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।*
*नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या Navel Button होता है। जिसमें 72,000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है।*
*नाभी में गाय का शुध्द घी या तेल लगानें से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।*

*ईश्वर ने हमारा पूरा शरीर अनोखा बनाया है। सारी दुनिया के कम्प्यूटर भी इसके पीधे हैं। उसमें सबसे अद्भुत है हमारी "नाभि"*

*हमारी नाभि हमारे पूरे शरीर का केन्द्र है ये पूरे शरीर को कन्ट्रोल करती है। जैसे ही हम नाभि में तेल डालते हैं तो हमारी नाभि को मालूम रहता है कि, हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।*

*🔹एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख से कम दिखनां शुरू हो गया। खासकर रात को नजर न के बराबर होनें लगी। जाँच करनें से यह निष्कर्ष निकला कि, उनकी आँखे ठीक है परन्तु बांई आँख की रक्त नलियाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामनें आया कि, अब वो जीवन भर देख नहीं पायेंगे।*
*मित्रों डाॅ का यह कथन ठीक नहीं कि, यह सम्भव नहीं है..*
*हमें इसकी जानकारी हमारे वैद्यराज और बुजुर्गों दादा दादी से मिलती है।*

*🔸1. आँखों का शुष्क हो जानां, नजर कमजोर हो जानां, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय...सोनें से पहले 3 से 7 बूंदें देशी गाय का शुध्द घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच गोलाई में फैला देवें।*

*🔹2. घुटनें के दर्द में उपायः सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।*

*🔸3. शरीर में कम्पन्न तथा जोड़ों में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय:*
*रात को सोनें से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों के तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।*

*🔹4. मुँह और गाल पर होनें वाले पिम्पल के लिए उपाय:*
*नीम के तेल की तीन बूंदें नाभि में उपरोक्त तरीके से डालें।*

*🔸5. होठ फटनें पर सरसों का तेल नाभि पर लगाएँ*

*🔹6. चेहरे में चमक लानें के लिए बादाम का तेल नाभि पर लगाएँ*

*🔸7. चेहरे को मुलायम रखनें के लिए गाय का देशी घी नाभि पर लगाएँ*

*🔹8. चेहरे पर दाग धब्बे मिटानें के लिए नीम्बू का तेल नाभि पर लगाएँ*

*🔸9. चेहरे पर सफेद दाग चकत्ते ( ललौसी )है तो नीम का तेल नाभि पर लगाएँ*

*🔹10. पीरियड्स में दर्द हो तो ब्रान्डी को काॅटन में भिगो कर नाभि में रक्खें*

*नोटः- ऊपर बताये गए तेलों को रूई में भिगो कर भी नाभि में रख सकते हैं और ऊपर से बैन्डेड या मेडिकल टेप लगा लें*

*जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हमारी दादी हींग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाती थी और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।*
*...बस यही अद्भुत काम है नाभि और तेल का।*

*🔴अस्वीकरण*

*मैं अपनें किसी भी हेल्थ मैसेज का 100% सही होनें का दावा नहीं करता। इस टिप्स से काफी लोगों को फायदा हुआ है कृपया आप किसी भी हेल्थ टिप्स पर अपनें ऊपर प्रयोग करनें से पूर्व अपनें वैद्य से राय लेवें।*
*योगेन्द्र सिंह राठौर जी की और से साभार*

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24 Nov, 07:36


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*ये 10 चीजें भाग्य के लिये शुभ मानी जाती है*

1. पानी का लोटा : आप अपने सिरहाने तांबे के लोटा में पानी भरकर रखें और सुबह उसे किसी पेड़ पौधे में डाल दें। ऐसा करने से सेहत में लाभ मिलता है।

2. चाकू : ऐसा कहा जाता है कि यदि आप या बच्चे सोते समय सपने में चौंक कर उठ जाते हैं या डरावने सपने आते हैं तो उनके तकिये के नीचे चाकू, कैंची या लोहे की कोई वस्तु जरूर रखें।

3. लहसुन : लहसुन को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। यदि आप लहसुन की कुछ कलियां अपने तकिये के नीचे रखकर सोते हैं तो आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और अच्छी नींद आने में मदद मिलती है। उसे जेब में रखकर सोने से भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

4. सौंफ : तकिये के नीचे सौंफ रखकर सोने से राहुदोष समाप्त हो जाता है। इससे बुरे सपनों में भी राहत मिलती है और मानसिक परेशानियां से छुटकारा मिलता है।

5. हरी इलायची : सौंफ के अलावा तकिये के नीचे हरी इलायची रखकर सोने से व्यक्ति को गहरी नींद आने में मदद मिलती है।

6. दूध : रविवार को सोते समय एक गिलास में दूध भरें, और दूध से भरे इस गिलास को, सिरहाने रखकर सो जाएं। गिलास रखते वक्त सावधानी रखें, ताकि नींद में आपके हाथ से दूध गिर न जाए। सुबह उठकर, नित्य कर्मों से निवृत्त हो जाएं, इसके बाद इस दूध को ले जाकर,किसी बबूल के पेड़ की जड़ में डाल दें। 7 रविवार तक यह उपाय करने से आपकी धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी।

7. सिक्का : अगर आपको किसी रोग ने घेर लिया हैं तो सोते समय अपना सिरहाना पूर्व दिशा की ओर रखें। वहीं अपने सोने वाले कमरे में एक छोटी कटोरी में सेंधा नमक-एक रुपए का सिक्का रखें। आपकी सेहत दुरुस्त रहेगी।

8. मूली : जब जन्मपत्री में राहु कुंडली के पांचवें घर में हो और संतान सुख में कठिनाई आ रही है तो ऐसी स्थिति में 40 दिनों तक 5 मूली पत्नी के सिरहाने रखें और सुबह मूली को शिव मंदिर में रख आएं। इससे संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ेगी। इस उपाय से डरावने सपने आना भी बंद हो जाते हैं।

9. सुगंधित फूल : सोने के पूर्व तकिये के पास सुंगधित फूल रखकर सोएं। इससे शुक्र का प्रभाव बढता और नींद अच्छी आती है। इससे मानसिक शांति मिलती है और वैवाहिक जीवन अच्छा रहता है। साथ ही यह किस्मत चमकाने वाला उपाय भी है।

10. आभूषण : सोते समय यदि आप अपने सिरहाने के नीचे सोने अथवा चांदी का आभूषण रखकर सोते हैं, तो इससे मंगल दोष दूर होता है। तथा इसके शुभ प्रभाव मिलते है।

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24 Nov, 02:57


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*प्रेरक कहानी: स्वार्थी दोस्त किस काम के*

एक खरगोश था। उसके कई मित्र थे। घोड़ा, बैल, बकरा, भेड़ आदि। लेकिन उनकी मित्रता कितनी सच्ची है, उसे यह परखने का अवसर नहीं मिला था।

एक दिन उसे यह मौका तब मिला, जब वह स्वयं संकट में पड़ गया।

उस दिन कुछ शिकारी कुत्ते उसके पीछे पड़ गये। यह देखकर खरगोश जान बचाने के लिये भागने लगा। भागते-भागते दम फूलने लगा। वह थककर चूर हो गया। जब और अधिक नहीं भाग पाया तो कुत्तों को चकमा देकर वह एक घनी झाड़ी में घुस गया और वहीं छिपकर बैठ गया। पर उसे यह डर सता रहा था कि कुत्ते किसी भी क्षण वहां आ पहुंचेंगे और सूंघते-सूंघते उसे ढूंढ निकालेंगे।

वह समझ गया कि यदि समय पर उसका कोई मित्र न पहुंच सका, तो उसकी मृत्यु निश्चित है। वह अपने मित्रों को याद करने लगा। यदि घोड़ा आ गया तो वह मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले भागेगा। यदि बैल आ गया तो अपने पैने सींगों से इनके पेट फाड़ देगा। यदि भेड़ आ गई तो वह टक्करें मारकर इनकी अक्ल दुरूस्त कर देगी।

तभी उसकी नजर अपने मित्र घोड़े पर पड़ी। वह उसी रास्ते पर तेजी से दौड़ता हुआ आ रहा था।

खरगोश ने घोड़े को रोका और कहा, ”घोड़े भाई! कुछ शिकारी कुत्ते मेरे पीछे पड़े हुए हैं। तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर कहीं दूर ले चलो वरना ये शिकारी कुत्ते मुझे मार डालेंगे।“

घोड़े ने कहा, ”प्यारे भाई! मैं तुम्हारी मदद तो जरूर करता, पर इस समय मैं बहुत जल्दी में हूं। वह देखो, तुम्हारा मित्र बैल इधर ही आ रहा है। तुम उससे कहो, वह जरूर तुम्हारी मदद करेगा।“

यह कहकर घोड़ा सरपट दौड़ता हुआ चला गया।

खरगोश ने बैल से प्राथना की, ”बैल दादा ! कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। कृपया आप मुझे अपनी पीठ पर बिठा लें और कहीं दूर ले चलें, नहीं तो कुत्ते मुझे मार डालेंगे।“

”भाई खरगोश! मैं तुम्हारी मदद जरूर करता, पर इस समय मेरे कुछ दोस्त बड़ी बेचैनी से मेरा इंतजार कर रहे होंगे, इसलिए मुझे वहां जल्दी पहुंचना है। देखो, तुम्हारा मित्र बकरा इधर ही आ रहा है, उससे कहो, वह जरूर तुम्हारी मदद करेगा।“

यह कहकर बैल भी चला गया।

खरगोश ने बकरे से विनती की, ”बकरे चाचा! कुछ शिकारी कुत्ते मेरा पीछा कर रहे हैं। तुम मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर कहीं दूर ले चलो, तो मेरे प्राण बच जायेंगे, वरना वे मुझे मार डालेंगे।“

बकरे ने कहा, ”बेटा! मैं तुम्हें अपनी पीठ पर दूर तो ले जाऊं, पर मेरी पीठ खुरदरी है। उस पर बैठने से तुम्हारे कोमल शरीर को बहुत तकलीफ होगी। मगर चिंता न करो, देखो, तुम्हारी दोस्त भेड़ इधर ही आ रही है, उससे कहोगे तो वह जरूर तुम्हारी मदद करेगी।“ यह कहकर बकरा भी चलता बना।

खरगोश ने भेड़ से भी मदद की याचना की, पर उसने भी खरगोश से बहाना करके अपना पिंड छुड़ा लिया।

इस तरह खरगोश के सभी मित्र वहां से गुजरे। खरगोश ने सभी से मदद करने की प्रार्थना की, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की। सभी कोई न कोई बहाना कर चलते बने।


खरगोश ने मन ही मन कहा, ‘अच्छे दिनों में मेरे अनेक मित्र थे। पर आज संकट के समय कोई मित्र काम नहीं आ रहा। मेरे सभी मित्र केवल अच्छे दिनों के ही साथी हैं।

थोड़ी देर में उसे खोजते शिकारी कुत्ते वहां भी आ पहुंचे। उन्होंने बेचारे खरगोश को मार डाला। अफसोस की बात है कि इतने सारे मित्र होते हुए भी खरगोश बेमौत मारा गया।
ये नीति श्लोक भी इसकी पुष्टि करते हैं I

पापान्निवारयति योजयते हिताय
गुह्यां निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति ।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥

भावार्थ :- पाप (अहित) कर्मो से हटा कर हित योग्य कर्मो में लगाता है , गुप्त रखने योग्य बातों को छिपाकर गुणों को प्रगट करता है , आपदा के समय जो साथ खड़ा होता है , संतो ने यही सन्मित्र के लक्षण बताये हैं |

कराविव शरीरस्य नेत्र्योरिव पक्ष्मनी।
अविचार्य प्रियं कुर्यात् तन्मित्रं मित्रमुच्यते।।

जिस प्रकार मनुष्य के दोनों हाथ किसी खतरे से स्वतः शरीर की अनवरत रक्षा करते हैं। और पलकें खतरे का आभास होते ही आँख की रक्षा के लिये तुरंत बंद हो जाती हैं ।
इसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी बिना कुछ कहे सुने विपत्ति में मित्र की सहायता के लिये दौड़ पड़ता है ।

उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे ।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः॥
चाणक्य नीति अध्याय १/१२

वे ही सच्चे मित्र होते हैं जो -
"जरूरत के समय , दुःख में, अकाल के समय, युद्ध में , राजदरबार में और मरघट (श्मशान) में साथ नहीं छोड़ते हैं।"

दातुः परीक्षा दुर्भिक्षे रणे शूरस्य जायते I
आपत्काले तु मित्रस्याशक्तौस्त्रीणां कुलस्य हि II
विनतेः संकटे प्राप्ते Sवितथस्य परोक्षतःI
सुस्नेहस्य तथा तात नान्यथा सत्यमीरितम् II
शिवपुराण १७ I१२-१३

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05 Nov, 07:22


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सुबह खाली पेट डालें गुड़ खाने की आदत, शरीर की इन 6 समस्याओं से मिलेगा छुटकारा
सुबह खाली पेट गुड़ का सेवन करने से पाचन से जुड़ी परेशानी दूर होती है। साथ ही कई अन्य समस्याओं से बचाव किया जा सकता है।
आयुर्वेद में गुड़ का इस्तेमाल औषधी के रूप में किया जाता है। इसके सेवन से शरीर की खई परेशानी होती है। यह चीनी का एक बेहतर विकल्प हो सकता है। ऐसे में चीनी से होने वाली समस्याओं से राहत दिलाने में गुड़ काफी लाभकारी हो सकता है। इसमें कई तरह के विटामिंस और मिनरल्स पाए जाते हैं, तो शरीर की कई परेशानी दूर करने में लाभकारी हो सकता है। कई हेल्थ एक्सपर्ट खाली पेट गुड़ का सेवन करने की सलाह देते हैं। खाली पेट गुड़ का सेवन करने से पचन को मजबूती मिलती है। साथ ही इससे शरीर में खून की कमी से भी राहत मिल सकता है। आज इस लेख में हम खाली पेट गुड़ का सेवन ( Jaggery Health benefits) करने के फायदों के बारे में जानेंगे।
खाली पेट गुड़ खाने के फायदे ( Eating Jaggery Empty Stomach )
1. पाचन को मजबूती
खाली पेट गुड़ का सेवन करने से वजन को कंट्रोल किया जा सकता है। साथ ही इससे पाचन को मजबूती मिलती है। दरअसल, इसमें फुक्रोज होता है, जो पाचन और कब्ज जैसी समस्याओं को कंट्रोल करने में प्रभावी हो सकता है। साथ ही इसके नियमित रूप से सेवन करने से शरीर में पाचन के एंजाइम एक्टिव होते हैं। इससे पेट फूलने जैसी परेशानी कम होती है।

2. शरीर में लाए एनर्जी
गुड़ का सेवन करने से शरीर को कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है। इससे शरीर को भरपूर रूप से एनर्जी मिलती है। गुड़ का सेवन करने से शरीर में लंबे समय तक हो रही थकान दूर होती है। सुबह-सुबह गुड़ खाने से शरीर को एनर्जी मिलती है।

3. आयरन की कमी करे दूर
गुड़ में आयरन, फोलेट जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर में रेल ब्लड सेल्स को कम करने में प्रभावी हो सकता है। खाली पेट नियमित रूप से गुड़ का सेवन करने से शरीर में आयरन की कमी को दूर किया जा सकता है।

4. जोड़ों में दर्द से छुटकारा
सुबह गुड़ का सेवन करने से जोड़ों में दर्द की परेशानी को दूर किया जा सकता है। यह गठिया में होने वाली अन्य समस्याओं से राहत दिलाने में प्रभावी है। दरअसल, सुबह के समय गुड़ खाने से शारीरिक और हड्डियों की संचरना बेहतर होती है, जिससे जोड़ों में होने वाले दर्द और सूजन की परेशानी को कम करता है।

5. ब्लड प्रेशर करे कंट्रोल
गुड़ में पोटैशियम और सोडियम पाया जाता है, जो शरीर में एसिड को कम करने में प्रभावी होता है। साथ ही इससे रेड ब्लड सेल्स स्वस्थ रहते हैं। रोजाना सुबह के समय 1 टुकड़ा गुड़ खाने से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद मिलती है।

6. पीरियड्स की परेशानी करे दूर
सुबह गुड़ का सेवन करने से पीरियड्स में होने वाली समस्याओं को कम किया जा सकता है। यह शरीर के दर्द और ऐंठन को कम करने में प्रभावी है। साथ ही यह ब्लड फ्लो को भी बेहतर करता है। ऐसे में पीरियड्स के दौरान सुबह के समय गुड़ का सेवन आपके लिए प्रभावी हो सकता है।

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05 Nov, 00:25


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*प्रेरक कहानी: सत्संग की महिमा..*

एक संत की कथा में एक बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था, वो एक शब्द भी सुन नही सकता था ।

किसी ने संतश्री से कहाः"बाबा जी !वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।"

बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं।

बाबा जी ने कहाः "जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोजएकदम समय पर पहुँच जाता है।चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है,घंटों बैठा रहता है।

"बाबाजी सोचने लगे,

"बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए, उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !''

बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः "कथा सुनाई पड़ती है ?" उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?
"बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः "मैंजो कहता हूँ, क्या वह सुनाई पड़ता है ?"

उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?" बाबाजी समझ गये कि यह नितांत बहरा है।

बाबाजी ने सेवक से कागज कलम मँगाया और लिखकर पूछा।

वृद्ध ने कहाः "मेरे कान पूरी तरह से खराब हैं। मैं एक भी शब्द नहीं सुन सकता हूँ।" कागज कलम से प्रश्नोत्तर शुरू हो गया।

"फिर तुम सत्संग में क्यों आते हो ?"

"बाबाजी ! सुन तो नहीं सकता हूँ लेकिन यह तो समझता हूँ कि ईश्वरप्राप्त महापुरुष जब बोलते हैं तो पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं।
संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती है लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर आती हैं।
मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूँ पर उसकी तरंगे,अनुभूति मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं तो रोम रोम पवित्र होने का आभास होने लगता है ।

दूसरी बात,

आपकी अमृतवाणी सुनने के लिएजो पुण्यात्मा लोग आते हैं उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है।"

बाबा जी ने देखा कि ये तो ऊँची समझ के धनी हैं।

उन्होंने कहाः " दो बार हँसना, आपको अधिकार है किंतु मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप रोज सत्संग में समय पर पहुँच जाते हैं और आगे बैठते हैं,

ऐसा क्यों ?"

"मैं परिवार में सबसे बड़ा हूँ, बड़े जैसा करते हैं।

वैसा ही छोटे भी करते हैं। मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा। शुरुआत में कभी-कभी मैं बहाना बना के उसे ले आता था। मैं उसे ले आया तो वह अपनी पत्नी को यहाँ ले आया, पत्नी बच्चों को ले आयी – सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा, कुटुम्ब को संस्कार मिल गये।"

बाबा जी उसकी बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुऐ और मन ही मन बोले आज मेरा सत्संग करना सार्थक हुआ ।
भगवत चर्चा,सन्तों का सत्संग ऐसा है कि यह समझ में नहीं आये तो क्या, सुनाई नहीं देता हो तो भी इसमें शामिल होने मात्र से कल्याण हो जाता हैं।

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04 Nov, 07:21


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पहले लोग बिररा अर्थात चना और गेहूं का मिक्स आटा, किसी भी अनाज की मोटा आटा की रोटी खाते थे जिसमें ज्वार, बाजरा, मक्का, जो ,रागी, धान इत्यादि हुआ करते थे जिसको खाने के बाद आदमी अपने कार्य पर निकल जाता था उसे सुस्ती कभी नहीं आती थी और ऊर्जा के साथ काम करता था पर जिस दिन गेहूं की रोटी जो मेहमानों के लिए बनाते थे उनको खाने के बाद एक नशा जैसा होता है जिससे आप को कुछ सुस्ती जैसी आती है इसलिए स्वस्थ रहने के लिए मल्टीग्रेन सभी प्रकार के अनाज इस्तेमाल करें एवं गेहूं को 10% से 20% से ज्यादा नहीं खाना चाहिए और खासकर रोगी को गेहूं कतई नहीं खाना चाहिए और इसके बारे में अधिक जानने के लिए इसको जरूर ध्यान से पढ़ें

‼️गेहूं की तोंद *‼️
गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है ...ये यूरोप से होता हुआ भारत तक आया था ...... अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डॉ विलियम डेविस...उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी 2011 में जिसका नाम था "Wheat belly गेंहू की तोंद"...यह पुस्तक अब फूड हेबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक बन गई है...पूरे अमेरिका में इन दिनों गेंहू को त्यागने का अभियान चल रहा है...कल यह अभियान यूरोप होते हुये भारत भी आएगा...

यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और कोई फ़्री में पढ़ना चाहे तो भी मिल सकती है....

*चौंकाने वाली बात यह है कि डॉ डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह ज्वार, बाजरा, रागी, चना, मटर, कोदरा, जो, सावां, कांगनी ही खाना चाहिये गेंहू नहीं*..जबकि यहां भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह शाम गेंहू खा खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं...*गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है. यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांताओ के भारत आने के साथ यह अनाज भारत आया था...उससे पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि...भारतीयों के मांगलिक कार्यों में भी जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढाए जाते रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है...*

जयपुर निवासी प्रशासनिक अधिकारी नृसिंह जी की बहन विजयकांता भट्ट (81 वर्षीय) अम्मा जी कहती हैं कि 1975-80 तक भी आम भारतीय घरों में *बेजड़* (मिक्स अनाज, Multigrain) की रोटी का प्रचलन था जो धीरे धीरे खतम हो गया। 1980 के पहले आम तौर पर घरों में मेहमान आने या दामाद के आने पर ही गेंहू की रोटी बनती थी और उस पर घी लगाया जाता था, अन्यथा बेजड़ की ही रोटी बनती थी ......आज घरवाले उसी बेजड़ की रोटी को चोखी ढाणी में खाकर हजारों रुपए खर्च कर देते हैं....*हम अक्सर अपने ही परिवारों में बुजुर्गों के लम्बी दूरी पैदल चल सकने, तैरने, दौड़ने, सुदीर्घ जीने, स्वस्थ रहने के किस्से सुनते हैं। वे सब मोटा अनाज ही खाते थे गेंहू नहीं।*

एक पीढ़ी पहले किसी का मोटा होना आश्चर्य की बात होती थी, *आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट हैं और यह तब है जब इतने ही प्रतिशत भारतीय कुपोषित भी हैं...फ़िर भी 30 पार का हर दूसरा भारतीय अपनी तौंद घटाना चाहता है....*

गेंहू की लोच ही उसे आधुनिक भारत में लोकप्रिय बनाये हुये है क्योंकि इसकी रोटी कम समय और कम आग में आसानी से बन जाती है...पर यह अनाज उतनी आसानी से पचता नहीं है...समय आ गया है कि भारतीयों को अपनी रसोई में 80-90 प्रतिशत अनाज जौ, ज्वार, बाजरे, रागी, मटर, चना, रामदाना आदि को रखना चाहिये और 10-20 प्रतिशत गेंहू को...

*हाल ही कोरोना ने जिन एक लाख लोगों को भारत में लीला है उनमें से डायबिटिज वाले लोगों का प्रतिशत 70 के करीब है...

वाकई गेहूं त्यागना ही पड़ेगा.... अन्त में एक बात और भारत kar sakta .hai yadi.ek bar than le...*

*मात्र बीते 40 बरसों में यह हाल हो गया है तो अब भी नहीं चेतोगे फ़िर अगली पीढ़ी के बच्चे डायबिटिज लेकर ही पैदा होंगे...शेष- समझदार को इशारा ही काफी है।*

प्रेरक कथाएँ

03 Nov, 23:53


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*प्रेरक विचार: दो अक्षर की गम्भीर समस्या और दो अक्षर से ही समाधान*

• एक बार एक नगर मे कई व्यक्ति बड़े दुःखी थे बस अपने दुखों की दवा पाने के लिये इधरउधर मारे मारे फिरते थे!

• एक बार उस नगर मे कोई संत आये और वो रोज प्रवचन दिया करते थे एक दिन जब वो प्रवचन देकर उठे तो बाहर से एक आदमी आया और वो लोगो को मिठाई बाँट रहा था और खुशी मे झूम रहा था लोगो ने पूछा अरे भाई क्या मिल गया तुम्हे ऐसा की इतने खुश हो रहे हो और ये मिठाई किस बात की बाँट रहे हो?

• तो उसने कहाँ मेरे जीवन की एक बहुत ही गम्भीर समस्या थी मै उस समस्या से बड़ा दुःखी रहता था भगवान श्री राम की इस कथा मे आने से मेरी उस समस्या का समाधान हो गया उस करुणानिधान ने मेरी सारी समस्या को समाप्त कर दिया! तो लोगो ने पूछा की आखिर ऐसा क्या मिला तो उसने कहा मिला नही मेरा घोड़ा खो गया तो लोगो ने पूछा की घोड़ा मूल्यहीन होगा इसलिये लड्डू बाँट रहा है तो उसने कहा अरे नही वो तो बहुत ही चंचल और मूल्यवान है पर वो खो गया इसलिये मै बड़ा खुश हुं उसने सन्त श्री के चरणों मे खुब प्रणाम किया और नाचते गाते चला गया!

• सभी लोग सन्त श्री के पास गये और उन्होंने कहा की हॆ देव ये कैसा पागल इंसान है जो लोगों से कह रहा है और मिठाई बाँट रहा है की इस कथा मे मेरा घोड़ा खो गया है ये कैसा पागल है?

• तो सन्त श्री ने कहा की यहाँ मेरी कथा सार्थक हो गई तो लोगो ने कहा की हॆ देव हम आपका मतलब नही समझ पा रहे है तो सन्त श्री ने कहा की मै तो यही चाहता हुं जो भी कथा मे आये उन सब के घोड़े खो जाये तो लोगो ने कहा की हमारे पास तो घोड़े है ही नही तो फिर घोड़े खोयेँगे कैसे तो सन्त श्री ने जो उत्तर दिया तो सब अवाक रह गये!

• सन्त श्री ने कहा की "मन" वो घोड़ा है जो बड़ा चंचल है और यदि ये "राम" मे खो जायें अर्थात ईष्ट मे खो जायें सार मे खो जाये तो आनन्द ही आनन्द है और संसार मे खो जाये तो दुःख दुःख और बस दुःख ही दुःख है! मन बड़ा चंचल है पता नही कहाँ कहाँ खो जाता है अरे जिसमे इसे खोना है ये उसमे तो नही खोता है और जिसमे इसे नही खोना है बस उसी मे खो जाता है!

• सद्गुरु देव से एक अति विनम्र प्रार्थना है मेरी की हॆ नाथ इस मन को संसार मे मत खोने देना हॆ नाथ इस मन को सार मे लगा देना! मेरा मन खो जाये मेरे ईष्ट मे और पुरी तरह से खो जायें ईष्ट मे और सद्गुरु के चरणों मे, बस इतनी सी कृपा करना हॆ माँ की ये चंचल मन तुझमे खो जायें हॆ माँ!

• बस हमको भी यही माँगना की मन रूपी घोड़ा खो जाये " संसार " मे ताकि फिर दुखी न हो संसार मे!

प्रेरक कथाएँ

02 Nov, 06:13


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*शरीर में तेजी से खून बढ़ाने के घरेलु उपाय।*

शरीर में खून की कमी से बहुत बीमारियां लग सकती हैं। जिस वजह से इंसान कमजोर हो जाता है और उसका शरीर बीमारियों से लड़ नहीं पाता है। इसलिए महिलाओं और पुरूषों को शरीर में खून की मात्रा बढ़ाने के लिए इन उपायों को अपनाना चाहिए।
*तिल और शहद*
दो घंटे के लिए 2 चम्मच तिलों को पानी में भिगों लें और बाद में पानी से छानकर इसका पेस्ट बना लें। अब इसमें 1 चम्मच शहद मिलाएं और दिन में दो बार सेवन करें।

*काफी और चाय खतरनाक*
काफी और चाय का सेवन कम कर दें। एैसा इसलिए क्योंकि ये चीजें शरीर को आयरन लेने से रोकते हैं।

*ठंडा स्नान*
दो बार दिन में ठंडे पानी से नहाए और सुबह नहाने के बाद सूरज की रोशनी में बैठें।

*अंकुरित भोजन*
आप अपने भोजन में गेहूं, मोठ, मूंग और चने को अंकुरित करके उसमें नींबू मिलाकर सुबह का नाश्ता लें।

*आम*
पके आम के गुदे को मीठे दूध के साथ सेवन करें। एैसा करने से खून तेजी से बढ़ता है।

*मूंगफली और गुड़*
शरीर में खून की कमी को दूर करने के लिए मूंगफली के दानों को गुड़ के साथ चबा-चबा कर सेवन करें।

*सिंघाड़ा*
सिंघाड़ा शरीर में खून और ताकत दोनो को बढ़ाता है। कच्चे सिंघाड़े को खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर तेजी से बढ़ता है।

*मुनक्का, अनाज, किशमिश, दालें और गाजर*
मुनक्का, अनाज, किशमिश, दालें और गाजर का नियमित सेवन करें और रात को सोने से पहले दूध में खजूर डालकर उसको पीएं।

*फलो का सेवन*
अनार, अमरूद, पपीता, चीकू, सेब और नींबू आदि फलो का अधिक से अधिक सेवन करें।

*आंवले और जामुन का रस*
आंवले का रस और जामुन का रस बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।

*टमाटर का रस*
एक गिलास टमाटर का रस रोज पीने से भी खून की कमी दूर होती है। इसलिए टमाटर का सूप भी बनाकर आप ले सकते हो।

*हरी सब्जिया*
बथुआ, मटर, सरसों, पालक, हरा धनिया और पुदीना को अपने भोजन में जरूर शामिल करें।

*फालसा*
फालसे का शर्बत या फालसे का सेवन सुबह शाम करने से शरीर में खून की मात्रा जल्दी बढ़ती है।

*सेब का जूस*
सेब का जूस रोज पीएं।

*चुकंदर*
चुकंदर के एक गिलास रस में अपने स्वाद के अनुसार शहद मिलाकर इसे रोज पीएं। इस जूस में लौह तत्व ज्यादा होता है।

प्रेरक कथाएँ

02 Nov, 01:37


🌳🦚आज की कहानी🦚🌳

*प्रेरक कहानी: राजा भोज और सत्य*

एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए।

राजन ने उनसे पुछा- “महात्मन! आप कौन हैं?”

वृद्ध ने कहा- “राजन मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!”

राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए, बगीचे आदि भी बनवाए थे। राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था। वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए। वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ, सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए । राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।। फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया। सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ, वह खँडहर में बदल गया। वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ, कथा, पूजन, दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों, आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया।

सत्य ने कहा-“ राजन! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं, उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है, धर्म का निर्वहन नहीं।। सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं, उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है।”

इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए। राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया ,जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया।

💐💐शिक्षा💐💐

मित्रों , सच ही तो है , सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता। हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी गरीब बस्ती का दौरा कर लेते हैं , ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है , फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की।

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प्रेरक कथाएँ

30 Oct, 02:24


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*प्रेरक जानकारी: नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर की है अनोखी महिमा*

अगर आप कभी नेपाल घुमने जाते हैं तो आपको वहां जाकर इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं होगा कि आप एक अलग देश में हैं। कुछ भारत जैसी संस्कृति और संस्कारों को देखकर आप आश्चर्यचकित जरुर हो जायेंगे। आप अगर शिव भगवान के भक्त हैं तो आपको एक बार नेपाल स्थित भगवान शिव का पशुपतिनाथ मंदिर जरूर जाना चाहिए।

नेपाल में भगवान शिव का पशुपतिनाथ मंदिर विश्वभर में विख्यात है। इसका असाधारण महत्त्व भारत के अमरनाथ व केदारनाथ से किसी भी प्रकार कम नहीं है। पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है।

यह मंदिर भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित है। यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।

यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। इस अंतर्राष्ट्रीय तीर्थ के दर्शन के लिए भारत के ही नहीं, अपितु विदेशों के भी असंख्य यात्री और पर्यटक काठमांडू पहुंचते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का रूप धारण कर निद्रा में चले बैठे थे। जब देवताओं ने उन्हें खोजा और उन्हें वाराणसी वापस लाने का प्रयास किया तो उन्होंने नदी के दूसरे किनारे पर छलांग लगा दी। कहा जाता हैं इस दौरान उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था। इसके बाद भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहाँ प्रकट हुए थे।

पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख 'अघोर' मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को 'तत्पुरुष' कहते हैं। उत्तर मुख 'अर्धनारीश्वर' रूप है। पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है। ऊपरी भाग 'ईशान' मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख माना जाता है।

इतिहास को देखने पर ज्ञात होता है कि पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा करने के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया है। इसके पीछे यह तथ्य बताये जाते हैं कि भारतीय ब्राह्माण हिन्दू धर्मशास्त्रों और रीतियों में ज्यादा पारंगत होते हैं। बाद में 'माल्ला राजवंश' के एक राजा ने दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को ‘पशुपतिनाथ मंदिर’ का प्रधान पुरोहित नियुक्त किया। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे हैं।
मंदिर के निर्माण का कोई प्रमाणित इतिहास तो नहीं है किन्तु कुछ जगह पर यह जरुर लिखा गया है कि मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।

कुछ इतिहासकार पाशुपत सम्प्रदाय को इस मंदिर की स्थापना से जुड़ा मानते हैं। पशुपति काठमांडू घाटी के प्राचीन शासकों के अधिष्ठाता देवता रहे हैं। 605 ईस्वी में अमशुवर्मन ने भगवान के चरण छूकर अपने को अनुग्रहीत माना था। बाद में मध्य युग तक मंदिर की कई नकलों का निर्माण कर लिया गया। ऐसे मंदिरों में भक्तपुर (1480), ललितपुर (1566) और बनारस (19वीं शताब्दी के प्रारंभ में) शामिल हैं। मूल मंदिर कई बार नष्ट हुआ है। इसे वर्तमान स्वरूप नरेश भूपलेंद्र मल्ला ने 1697 में प्रदान किया।

मंदिर की आध्यात्मिक शक्ति की चर्चाआसपास में काफी प्रचलित है। भारत समेत कई देशों से लोग यहाँ आध्यात्मिक शांति की तलाश में आते हैं। अगर आप भी भगवान शिव के दर्शनों के अभिलाषी हैं तो यहाँ साफ़ और छल रहित दिल से आकर, आप शिव के दर्शन कर सकते हैं।
मंदिर की महिमा के बारे में आसपास के लोगों से आप काफी कहानियां भी सुन सकते हैं। मंदिर में अगर कोई घंटा-आधा घंटा ध्यान करता है तो वह जीव कई प्रकार की समस्याओं से मुक्त भी हो जाता है।

प्रेरक कथाएँ

29 Oct, 00:01


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*प्रेरक कहानी: पुरुषार्थ हो, लेकिन निस्वार्थ हो*

एक सन्त बड़े निस्पृह, सदाचारी एवं लोक सेवी थे । जीवन भर निस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई में लगे रहते। एक बार विचरण करते हुए देवताओं की टोली उनकी कुटिया के समीप से निकली । सन्त साधनारत थे, साधना से उठे । देखा, देवगण खड़े हैं । आदर सम्मान किया, आसन दिया ।

देवतागण बोले - "आपके लोकहितार्थ किए गए कार्यों को देखकर हमें प्रसन्नता हुई । आप जो चाहें वरदान माँग लें ।"

सन्त विस्मय से बोले - “सब तो है, मेरे पास । कोई इच्छा भी नहीं है, जिसे मांगा जाये ।“

देवगण एक स्वर में बोले - “आप को मांगना ही पड़ेगा, अन्यथा हमारा बड़ा अपमान होगा ।“

सन्त बड़े असमंजस में पड़े कि कोई तो इच्छा शेष नहीं है । मांगें भी तो क्या मांगें ? बड़े विनीत भाव से बोले - “आप सर्वज्ञ हैं, स्वयं समर्थ हैं । आप ही अपनी इच्छा से दे दें, मुझे स्वीकार होगा ।“

देवता बोले - “तुम दूसरों का कल्याण करो ।"

सन्त बोले - "क्षमा करें देव ! यह दुष्कर कार्य मुझसे न बन पड़ेगा ।“

देवता बोले - “इसमें दुष्कर क्या है ?"

सन्त बोले - “माफ करना, मैंने तो आज तक किसी को दूसरा समझा ही नहीं । सभी तो मेरे अपने हैं, फिर दूसरों का कल्याण कैसे बन पड़ेगा ?”

देवतागण एक-दूसरे को देखने लगे कि सन्तों के बारे में बहुत सुना था । आज वास्तविक सन्त के दर्शन भी हो गये । देवताओं ने सन्त की कठिनाई समझकर अपने वरदान में संशोधन किया । “अच्छा आप जहाँ से भी निकलेंगे और जिस पर भी आपकी परछाई पड़ेगी, उसका कल्याण होता चला जाएगा ।“

सन्त ने बड़े विनम्र भाव से प्रार्थना की - “हे देवगण ! यदि एक कृपा और कर दें तो बड़ा उपकार होगा । वो यह कि मेरी छाया से किसका कल्याण हुआ, कितनों का उद्धार हुआ, इसका भान मुझे न होने पाए, अन्यथा मेरा अहंकार मुझे ले डूबेगा ।“

देवतागण सन्त के विनम्र भाव सुनकर नतमस्तक हो गए । कल्याण सदा ऐसे ही सन्तों के द्वारा सम्भव है । अहंकारी इन्सान को चापलूस बहुत अधिक पसंद आते हैं । जो उसकी चापलूसी करके उसको दीमक की तरह खोखला करते रहते हैं ।

आलोचकों की सत्य बोलने वाली कड़वी वाणी उनके अहंकार को चोट पहुँचाती है । इसलिए आलोचक उन्हें शत्रु के समान दिखाई देते हैं । अहंकारी इन्सान से सच्चे मित्र एंव शुभचिंतक मानसिक तौर से दूर हो जाते हैं । क्योंकि अहंकारी को अपने वार्तालाप में किसी की मर्यादा भंग करने तथा उसे द्रवित करने वाले वचनों का ध्यान नहीं रहता ।

अहंकार को सदा मुँह की खानी पड़ती है । वह चाहे रावण का अहंकार हो या दुर्योधन का । अहंकार के उत्पन्न होने से विवेक नष्ट होता है एवं विवेकहीन व्यक्ति सम्मान पाने लायक नहीं होते । सम्मान पाने के लिए विवेक पूर्ण कार्यों की आवश्यकता होती है और जरुरी नहीं कि धन से सम्मान मिले, अधिकतर धन से धोखा ही मिलता है ।

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