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श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रस्तु वै स्मृतिः ।
ते सव्वमीमांस्येताभ्यां धर्मो हि निर्वभौ ॥ ( मनु २ / १०)

श्रीवैदिक स्मार्त्त (Hindi)

श्रीवैदिक स्मार्त्त एक टेलीग्राम चैनल है जो वैदिक धर्म और संस्कृति को प्रमोट करता है। इस चैनल में वेदों, संस्कृति, धर्मशास्त्र और पूर्वीकृत साहित्य से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और उनका विश्लेषण साझा किया जाता है। चैनल के मंच पर वैदिक ज्ञान की खोज करने और समझने के लिए एक सार्थक समुदाय जुटा है।nnयदि आप भारतीय संस्कृति और वैदिक धर्म के प्रेमी हैं, तो यह चैनल आपके लिए एक सूचना स्रोत बन सकता है। यहाँ दिए गए मनु के उक्त विचार के माध्यम से चैनल का मुख्य संदेश है कि धर्म और नैतिकता केवल वेदों और स्मृतियों के अध्ययन से ही उत्पन्न होते हैं।nnज्ञान की लहरें साझा करने और संगीत मंच के रूप में व्यापक समुदायिक बातचीत के लिए, श्रीवैदिक स्मार्त्त चैनल आपके साथ है। यहाँ आइए, वैदिक संस्कृति के अनमोल गहने को खोजें और एक साथ समृद्ध अनुभव का आनंद लें।

श्री-वैदिक-स्मार्त्त-कोशः🌼

10 Jan, 06:49


अद्वैतवेदान्तप्रकरणविषये चर्चा भविष्यति :

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09 Jan, 15:22


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09 Jan, 11:23


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श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

29 Dec, 12:14


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श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

27 Dec, 07:02


जैमिनीयमीमांसायामीश्वरः🪷🙌

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श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

19 Dec, 08:25


जो परंपरा प्राप्त रीति से अद्वैत का ज्ञान प्राप्त नहीं किए हैं जो अद्वैत अमृत रस का पान कर रहे हैं परंपरा से हटकर उन लोगों के लिए अमृत ना होकर विष के समान हो जाता है
इसलिए अद्वैत अमृत रस का पान करना है , तो जिज्ञासु होकर परंपरा प्राप्त सतगुरु के शरणागत होकर ही अद्वैत अमृत रस का पान करना चाहिए

श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

19 Dec, 03:32


अद्वैत-दर्शन राग-द्वेषको सर्वथा मिटाने और जीवन्मुक्तिका विलक्षण सुख देने वाला सम्यक सिद्धान्त है जिसका किसी से विरोध नहीं है।

'एनीबेसेण्ट' कहती थीं- 'ईसाई-धर्मका जो सार है और हिन्दू धर्मका जो सार है, वह बिलकुल एक ही है, इसलिए थियोसॉफिकल सोसायटीमें आ जाओ। उसने ईसाई धर्मका और हिन्दूधर्मका समन्वय कर दिया। लेकिन कहीं वैदिक पंडितोंने माना कि ईसाई धर्मके साथ हमारा समन्वय है ? क्या ईसाइयोंने माना कि हिन्दूधर्मके साथ हमारा समन्वय है-कि आओ, हमलोग होम करेंगे, देवताओं की पूजा करेंगे, यज्ञोपवीत पहनेंगे ! क्या हिन्दू मानने लग जायेंगे कि हम बपतिस्मा करायेंगे ? असलमें जो द्वैतवादी लोग हैं, उनमें परस्पर मेल होना, समन्वय होना बड़ा कठिन है, असम्भव है।

समन्वय कौन करता है ? समन्वय हम अद्वैती करते हैं। एक दिन दो जने परस्पर विवाद कर रहे थे। एक ने कहा--सामने जो है वह माला है । दूसरेने कहा-माला नहीं है, साँप है । दोनोंमें शर्त लग गयी। तीसरा आदमी सामने खड़ा हँस रहा था। पूछा-'अरे भाई, तुम हँस क्यों रहे हो ?' वह बोला-'हम तो जानते हैं कि 'न साँप है न माला है। वहां तो रस्सी है। तुम उसमें कल्पना कर रहे हो कि सांप है और तुम उसीमें कल्पना कर रहे हो कि माला है । वह न माला है न साँप है । वह तो रस्सी है।' जिसका रस्सीका ज्ञान है, उसको न मालापर शर्त लगानी है न सांपपर शर्त लगानी है । क्यों ? क्योंकि दोनोंका दर्शन मिथ्या है । 'तैरयं न विरुध्यन्ते'--माला कहनेवाला भी रस्सीका विरोध नहीं करता और साँप कहनेवाला भी रस्सीका विरोध नहीं करता; क्योंकि वे दोनों बेचारे तो रस्सीको जानते ही नहीं। वे तो अपनी-अपनी जानकारीको लेकर उड़ रहे हैं । अद्वैतका विरोध कोई नहीं करता। एक-दूसरेका विरोध तो करते हैं । रस्सी तो सांपमें भी है और मालामें भी है। रज्जुमें कल्पित सर्प और मालाका परस्पर विरोध भले ही हो, परन्तु रज्जुसे उनका कोई विरोध नहीं है, क्योंकि दोनोंका अधिष्ठान एक ही रज्जु है। और असल में तो सर्प और मालाका भी विरोध वास्तविक नहीं हो सकता, क्योंकि दोनों असत् हैं, दोनों भ्रान्तियाँ हैं।

जो सब नामों में सब रूपोंमें अनुगत है और सबसे व्यावृत्त, अलग है, जिसमें नामरूप केवल उपासनाकी दृष्टिसे कल्पित है, वह जो तत्त्व है, उसमें तो किसीका
विरोध ही नहीं है। अगर कोई अविरोधी सिद्धान्त है यह वेदान्त-सिद्धान्त ही है।

स्वसिद्धान्तव्यवस्थासु द्वतिनो निश्चिता दृढम् ।
परस्परं विरुद्धयन्ते तैरयं न विरुद्धयते ॥
-- माण्डूक्यकारिका-अद्वैत प्रकरण- १७।

-'द्वैतवादी अपने-अपने सिद्धान्तोंकी व्यवस्थामें दृढ़ आग्रही हैं । अतः वे आपसमें विरोध रखते हैं; परन्तु यह अद्वैत दर्शन उनका विरोध नहीं करता।'

कहते हैं कि 'द्वैतदर्शन मिथ्यादर्शन है' क्यों ? क्योंकि आपसमें राग-द्वेष करते हैं। राग, द्वेष, मद, मोह-ये दोष जिससे मिटे, वह सच्चा दर्शन और जिससे हृदयमें ये दोष बढ़ें, वह असत्य-दर्शन । माने, हमारी नजर इतनी गहराईमें पहुंचनी चाहिए कि जहाँसे हम शुद्ध वस्तुको लेकर निकलें और हृदय शुद्ध हो जाय । इसलिए मनुष्यको उस बातसे बचना चाहिए जिससे अपने हृदयमें राग-द्वेष आता हो।

द्वैतदर्शन राग-द्वेषदोषास्पद है। उसमें मद है, मान है। इसलिए वह परमेश्वर नहीं है। मद और मानमें सच्चा ज्ञान प्रकट नहीं होता। नशेमें ज्ञान कलुषित होता है। द्वैतीलोग क्या करते हैं ? एकने कहा कि नर्मदा नदी में से जो पाषाण निकलता है, वह ईश्वर है। दूसरेने कहा कि-'गण्डकी नदी में से जो पाषाण निकलता है, सो ईश्वर है।' गण्डकी, नर्मदा दोनों तो बह रही हैं। दोनों में से शालग्राम और लिंग निकलते जा रहे हैं । मनुष्य इन दोनोंको लेकर आपस में लड़ाई कर रहे हैं कि यह ईश्वर कि यह ईश्वर !

जो मूलतत्त्व है ईश्वर, वह शालि-ग्राममें भी है और नर्मदाशंकर में भी है। ईश्वर परमाणुमें भी है और ईश्वर प्रकृतिमें भी है। जो ईश्वरको देखता है, उसके लिए शालिग्राममें और नर्मदा-शंकरमें विरोध कहाँ है ? जो ईश्वर को देखता है, उसके लिए परमाणुमें और प्रकृति में विरोध कहाँ है ।

जो सब साधुओं की पूजा करता है, वैष्णवकी, उदासीनकी, संन्यासीकी, शैवकी, शाक्तकी, वह साधुत्वकी पूजा करता है । उसमें व्यक्तिकी पूजा कहाँ है ? साधुत्व तो वैष्णव, शैव, शाक्त, उदासी सबमें अनुगत है, एक है। उदासी कहे कि 'संन्यासीको मत मानो' और संन्यासी कहे कि 'उदासीको मत मानो' ? संन्यासी-उदासी कहे कि 'वैष्णवको मत मानो', वैष्णव कहे, 'उदासी-संन्यासीको मत मानो।' ये आपस में लड़ते हैं । लेकिन जो साधुमात्रका प्रेमी है, उसके लिए तो कपड़ा क्या लाल और क्या गेरुआ ! चन्दन खड़ा तो क्या और पड़ा हुआ तो क्या ?

श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

18 Dec, 15:49


गुरुदेव भगवान ने कहा था की जीवन में किसी भी प्रकार का साधना ना हो और ज्ञान अर्जित किया जा रहा है किया जा रहा है तो सभी ज्ञान व्यर्थ है समझना चाहिए। वही ज्ञान एक दिन आपको नास्तिकता के और आकर्षित करेगा । साधना के द्वारा ही ज्ञान का शुद्ध अर्थ का बोध हो सकता है , आप में आप पशु में कोई अंतर नहीं रहेगा।
देख लीजिए अधिकतर यूट्यूब पर ज्ञानी बनने वाले व्यक्ति साधना हीन हैं नास्तिकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। ईश्वर से भी विश्वास उठ जा रहा है इस लिए ज्ञान आपके लिए तब तक उपयोगी है जब तक आपके जीवन में साधना है ।

नारायण 🪷

श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

17 Dec, 16:52


कुम्भपर्व-महोत्सव प्रयागराज २०२५

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21 Nov, 17:42


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श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

18 Nov, 18:41


🔥 शिवलिङ्गोद्भव महामहोत्सव 🔥

यत्पुनः स्तम्भरूपेण स्वाविरासमहं पुरा।
स कालो मार्गशीर्षे तु स्यादार्द्राऋक्षमर्भकौ॥
आर्द्रायां मार्गशीर्षे तु यः पश्येन्मामुमासखम्।
मद्वेरमपि वा लिङ्गं स गुहादपि मे प्रियः॥
अलं दर्शनमात्रेण फल तस्मिन् दिने शुभे।
अभ्यर्चनं चेधिकं फलं वाचामगोचरम्॥

(श्रीशिवमहापुराण, विद्येश्वरसंहिता, अध्याय ९, श्लोक १४-१६)

हे वत्सो ! पहले मैं जब ज्योतिर्मय ज्वालामालासहस्राढ्य स्तम्भाकार शिवलिङ्गरूपसे प्रकट हुआ था, उस समय मार्गशीर्षमासमें आर्द्रा नक्षत्र था। अतः जो पुरुष मार्गशीर्षमासमें आर्द्रा नक्षत्र होनेपर मुझ उमापतिका दर्शन करता है अथवा मेरी मूर्ति या लिङ्गकी ही झाँकीका दर्शन करता है, वह मेरे लिये कार्तिकेयसे भी अधिक प्रिय है। उस शुभ दिन मेरे दर्शनमात्रसे पूरा फल प्राप्त होता है। यदि [दर्शनके साथ-साथ] मेरा पूजन भी किया जाय तो उसका अधिक फल प्राप्त होता है, जिसका वाणीद्वारा वर्णन नहीं हो सकता॥१५-१७॥

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यह नक्षत्र — मंगलवार (19-11-2024) को है।
मङ्गलवार को सम्पूर्ण दिवस।

विशेष- रुद्राभिषेक, शिवलिङ्गार्चन, पार्थिवेश्वरपूजन, शिवलिङ्ग दर्शन आदि करें।

श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

12 Nov, 09:18


जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥

(श्रीमद्भागवतमहापुराण ०१।०१।०१)
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-
र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः॥

(श्रीमद्भागवतमहापुराण १२।१३।०१)

श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

11 Nov, 13:39


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श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

11 Nov, 11:24


बौद्धप्रस्थानमें "
न सन् नासन् न सदसन्न चाप्यनुभयात्मकम्" -

यह चार कोटियोंमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है, 'न भावो नाप्यभावः", "न नित्यो नाप्यनित्यः", "नोच्छेदो नापि शाश्वतः।" यह दो कोटियोंमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है, "अद्वय" यह एक कोटिमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है। परन्तु "नित्यो ध्रुवः शिवः " की उक्तिसे विधिमुखसे वस्तुका प्रतिपादन है। "जो अनित्य नहीं, वह नित्य है। जो अध्रुव नहीं, वह ध्रुव है। जो अशिव नहीं, वह शिव है।" की दृष्टिसे यह एक कोटिमें विधिमुखसे आत्मवस्तुका प्रतिपादन है। नित्यको केवल अनित्यका, ध्रुवको केवल अध्रुवका तथा शिवको केवल अशिवका प्रतिषेध मानें तो प्रतिपाद्यशून्य अभावात्मक असत् ही सिद्ध होगा। ऐसी स्थितिमें उसे चतुष्कोटि - विनिर्मुक्त कहना वाग्विलासमात्र सिद्ध होगा। बन्ध्या - पुत्र, शश - शृङ्ग, आकाश - कुसुममें बन्ध्या और पुत्र, शश तथा शृङ्ग, आकाश और कुसुम - दोनों शब्द भाववाचक हैं। तथापि बन्ध्यापुत्रादि अलीक पदार्थ हैं। विवाहिता बन्ध्यामें देहगत प्रतिबन्धकताके कारण सन्तानहीनता होती है। नरमें चतुष्पाद, पुच्छ, पक्ष तथा शृङ्ग चारोंसे विहीनता पुरुषार्थ चतुष्टयसाधकता है। वानरमें चतुष्पाद - पक्ष - शृङ्गः - विहीनता धर्म, अर्थ, काम साधकता है। कपोतादिमें द्विपाद, पुच्छ और पक्षसम्पन्नता अर्थ, कामसाधकता तथा नभचरता है। गवादिमें चतुष्पाद, पुच्छ तथा शृङ्गः - संम्पन्नता अर्थ, कामसाधकता तथा भूचरता है। आर्द्रपृथ्वीमें पुष्पकी उपादानता तथा जलकी निमित्तता सिद्ध है। पङ्किल जलमें तापापनोदक और सुगन्धित पुष्पकी प्रचुर निमित्तता सिद्ध है। तद्वत् पुष्पाभिव्यक्तिमें भूमि तथा बीजनिष्ठ उष्णता, प्राणदा तथा अवकाशप्रदता भी सन्निहित है, तथापि पुष्पकी भूमिकुसुम, जलकुसुम (जलज) ही संज्ञा है, न कि तेजः कुसुम, वायुकुसुम या आकाशकुसुम। इसका कारण पृथ्वी तथा जलकी प्रधानता या मुख्यता है।


वैदिकप्रस्थानमें "
नान्तः प्रज्ञं न बहिष्प्रज्ञं नोभयतः प्रज्ञं न प्रज्ञानधनं न प्रज्ञं नाप्रज्ञम्। अदृष्टमवहार्यमग्राह्यमलक्षणमचिन्त्य- मव्यपदेश्यमेकात्मप्रत्ययसारं प्रपञ्चोपशमं शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः " (माण्डूक्योपनिषत् ७) में "नान्तः प्रज्ञ "
आदि निषेध मुखसे आत्माका प्रतिपादन है। "शान्तं शिवम्" • यह विधिमुखसे आत्माका प्रतिपादन है।

"न सती, न असती, न सदसती" (सर्वसारोपनिषत् ४) के अनुसार माया न सती है, न असती, न उभयरूपा सदसती ही। परन्तु "ॐ तदाहुः किं तदासीत्तस्मै स होवाच न सन्नासन्न सदसदिति तस्मात्तमः सञ्जायते।" (सुबालोपनिषत् १), "...तमः परे देव एकीभवति परस्तान्न सन्नासन्नासदसदित्ये- तन्निर्वाणानुशासनमिति वेदानुशासनम् "
से तमस् का लयस्थान और उद्धवस्थान परदेवस्वरूप ब्रह्म भी सत्, असत् तथा सदसत् से विलक्षण सिद्ध होता है। "
सविलासमूलाविद्या सर्वकार्योपाधिसमन्विता सदसद्विलक्षणानिर्वाच्या " (त्रिपाद्विभूतिमहानारायणोपनिषत् ३)
के अनुसार मूलाविद्यारूपा माया सत्, असत् से विलक्षणा अनिर्वाच्या है। वेदान्ती मायाको सदसद्विलक्षणा अनिर्वाच्या मानते हैं।

नासदूपा न सदूपा माया नैवोभयात्मिका।
अनिर्वाच्या ततो ज्ञेया मिथ्याभूता सनातनी।। (बृहन्नारदीय)

"माया न असत् है, न सत् ही, न उभयात्मिका ही, वह मिथ्या और सनातनी है। अतः अनिर्वाच्या ही समझने योग्य है।।"


यह लेख बौद्ध सिद्धांत और वेदांत से लिया गया है 🌼

#श्रीवैदिक स्मार्त्त

श्रीवैदिक स्मार्त्त

08 Nov, 05:19


कुछ विलक्षण मस्तिष्क के बुद्धिजीवी मूर्खों को यह नहीं पता की सारे स्मृतियां के प्रमाणों से प्रबल मनुस्मृति के वचन होते हैं।
मनुस्मृति के वचनों को वेदों ने स्पष्ट स्वीकार करते हुए कहां है यजुर्वेद में, तैत्तरीय संहिता यद्वै किञ्ज्ञ मनुरवदत् तद् भेषजम् (कृष्ण यजुर्वेद/तैत्तरीय संहिता/2/2/10/2) मनु ने जो कुछ कहा है वह औषधि 23/16/17 है।

मनुस्मृति भी वेदों द्वारा ही स्वीकृत है। वेद कहते हैं; मनु जो कहे वही औषधि है-
यद्वै किञ्ज्ञ मनुरवदत् तद् भेषजम्(कृष्ण यजुर्वेद/तैत्तरीय संहिता/2/2/10/2)
सामवेद में भी यही कहा गया है, पचविंश ब्राह्मण: मनुः यत् किज्ञावदत् तत् भैषज्यायै (तंड्यब्रह्मण 23/16/17)

वेदार्थोपनिबद्धत्वात .... दुश्यते || (बृह. स्मृति संस्कार्खंड 13-१४)

अर्थात – वेदार्थों के अनुसार रचित होने के कारण सब स्मृतियों में मनुस्मृति ही सबसे प्रधान एवं प्रशंसनीय है ! जो मनु स्मृति के अर्थ के विपरीत है, वह प्रशंसा के योग्य अथवा ग्राहय नहीं है ! तर्कशास्त्र, व्याकरण आदि शास्त्रों की शोभा तभी तक है जब तक धर्म, अर्थ, मोक्ष का उपदेश देने वाला मनु नहीं होता अर्थात मनु के उपदेशों के समक्ष सभी शास्त्र निस्तेज, प्रभावहीन प्रतीत होते है

श्रुतिप्रमाणको धर्मः हारीत, कुल्लूक, मनु० २, १ की टीका। श्रुतिस्मृतिविहितो धर्मः - श्रुति और स्मृति द्वारा विहित आचरण धर्म है। वसिष्ठधर्मसूत्र १. ४. ६ । इन कतिपय परिभाषाओं से यही ज्ञात होता है कि धर्म का मूल है वेद और स्मृति, और इनको प्रमाण मानकर विहित नियम या आचार ही धर्म हैं।


वेद धर्म का मूल है- "वेदो धर्ममूलम् । तद्विदा" च स्मृतिशीले। आपस्तम्वधर्मसूत्र- "धर्मसमयः प्रमाणं वेदाश्च" १. १. १. २। धर्म को जानने वाले वेद का मर्म समझने वाले व्यक्तियों का मत ही वेद का प्रमाण है।

अस्मिन् धर्मोsखिलेनोक्तः -मनु० ०१।१०७ मनु स्मृति में सभी धर्म कह दिये गये हैं और जो कुटुम्ब,कुल,ग्राम, राष्ट्र , साधारण, वर्ण, आश्रम, अन्तराल, निमित्तादि धर्म कहे , क्या केवल उतना ही धर्म होगा ? तो मनु ने ही कहा कि मनु के अविरुद्ध स्मृत्ति भी स्मार्त्त आचार को प्रमाणित करेगी । लेकिन स्मृतियों में तो इतिहास के ग्रन्थ भी आयेंगे , पुराण भी आयेंगे , तन्त्र भी आने लगेंगे , क्या सभी आचार प्रमाण होंगे ?

क्योंकि पुराण, मनुस्मृति , वेदांग और वेद -- ये चार ( पुराणं मानवो धर्मः साङ्गो वेदश्चिकित्सितम्) मनु अथवा श्रीकुमारिल भट्ट के तन्त्रवार्तिक के वचनाधार पर ईश्वराज्ञा से ही सिद्ध कोटि के धर्म कहे जाने से हेतु से हन्तव्य (तर्क से खण्डनीय) नहीं होते ,

मनु स्मृति के विरुद्ध कोई भी स्मृति- वचन प्रशंसनीय नही होता , वह चाहे किसी भी स्मृति ने क्यों न कहा हो । तन्त्रवचन से प्रबल प्रमाण पुराणवचन होता है, पुराणवचन से प्रबल स्मृतिवचन और स्मृतिवचन से प्रबल श्रुतिवचन - यह व्यवस्था शास्त्र में प्रतिपादित है । और क्योंकि मनु ने देश, जाति, कुल धर्मों के साथ साथ पाखण्ड धर्म भी बता ही दिये हैं -

देशधर्माञ्जातिधर्मान् कुलधर्मांश्च शाश्वतान् । पाषण्डगणधर्मांश्च शास्त्रेsस्मिन्नुक्तवान्मनुः ।। मनु० ०१।११८,

उसी से सभी आचारों की समीक्षा की जाती है । इसलिये सब प्रकार के आचारों के उपर सर्वश्रेष्ठता तो श्रौत -स्मार्त्ताचार की ही रहने वाली है , तभी तो मनु ने यही कहा कि -

आचारः परमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त्त एव च - मनु० ०१।१०८

अर्थात् वेद में बताया हुआ वेदाचार और स्मृति में बताया हुआ स्मार्त्ताचार यही 'परम धर्म' है ।

परम धर्म का यही मतलब है कि इस वेदाचार और स्मार्त्ताचार के सम्मुख कोई भी धर्म प्रधान नहीं है ,
इसलिये मनु के सिद्धान्त के विरुद्ध कोई भी स्मृति सम्मान को प्राप्त नहीं होती । मनु के शासन में ही हमारे आर्यावर्त्तदेश भारत में धर्म प्रतिष्ठित है श्रुतिस्मृतिविहितो धर्मः ।

#श्रीवैदिकस्मार्त्त

श्रीवैदिक स्मार्त्त

08 Nov, 05:18


निरूपण 👇

श्रीवैदिक स्मार्त्त

07 Nov, 12:49


छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं मंगलमय 🌼

श्रीवैदिक स्मार्त्त

05 Nov, 08:52


@dharmanushasanam join🌼🔱

श्रीवैदिक स्मार्त्त

04 Nov, 13:06


@dharmanushasanam join 🌼

श्रीवैदिक स्मार्त्त

02 Nov, 07:28


🌸 सभी सनातनधर्मावलम्बी धर्मप्रेमीसज्जनों!!
आज आप सभी उपर्युक्तविधिसे सवत्स भगवती वेदलक्षणा गोमाता का पूजन सम्पन्न करें।

🍃 पूजनके अनन्तर भारतवर्षके समस्त धर्मानुरागी बन्धुओं के परस्पर उत्साहवर्धन हेतु अपने द्वारा पूजित वेदलक्षणा गोमाता का चित्र भी कमेन्ट रूप में अवश्य ही प्रेषित करें!! @Dharmveer_Dal

गोमाताकी जय हो! गोहत्या बन्द हो!!

श्रीवैदिक स्मार्त्त

02 Nov, 07:20


अतिसंक्षिप्तगोपूजनम्

(पूजनकर्त्ता कृतनित्यक्रियः सर्वपूजनसाधारर्णी व्यवस्थां सम्पाद्य संकल्पपूर्वकं यथोपचारैः सवत्सां गां पूजयेत्।)

संकल्पः-
अद्येत्यादि देशकालौ संकीर्त्य अमुकोऽहं सवत्सगोपूजनं करिष्ये। (अमुक के स्थान पर अपना-अपना नाम लें)

ध्यानम्-
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत्स्थावरजंगमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥
औं सवत्सगव्यै नमः ध्यानं समर्पयामि।


आवाहनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः आवाहनं समर्पयामि।

आसनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः आसनं समर्पयामि।

जलम्-
औं सवत्सगव्यै नमः पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि।

चन्दनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः इदमनुलेपनं समर्पयामि।

अक्षताः-
औं सवत्सगव्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि।

पुष्पम्-
औं सवत्सगव्यै नमः पुष्यं पुष्पमाल्यं च समर्पयामि।

धूपः-
औं सवत्सगव्यै नमः धूपमाघ्घ्रापयामि।

दीपः-
औं सवत्सगव्यै नमः दीपं दर्शयामि।

नैवेद्यम्
औं सवत्सगव्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि।

आचमनम्-
औं सवत्सगव्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि।

दक्षिणादव्यम्-
औं सवत्सगव्यै नमः दक्षिणाद्रव्यं समर्पयामि।

पुष्पांजलिः-
औं सवत्सगव्यै नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।

प्रदक्षिणा-
औं सवत्सगव्यै नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि।

नमस्कारः-
गावो ममाग्रतः सन्तु गावो मे सन्तु पृष्ठतः।
गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
औं सवत्सगव्यै नमः नमस्कारं निवेदयामि।

(इससे भी कम समय में पूजन के लिये गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से पंचोपचार पूजन कर ले।)

अनेन यथालब्धोपचारपूजनेन गोमाता प्रीयतां न मम।

श्रीवैदिक स्मार्त्त

02 Nov, 05:32


समस्त गोभक्त सनातनधर्मावलम्बियों को
गोनवरात्र महोत्सव की मङ्गलमय शुभकामनाएँ।


भगवती गोमाता सबका मङ्गल करें। 🌺

श्रीवैदिक स्मार्त्त

30 Oct, 16:07


@Vedic_Smarta join 🌼🌺

श्रीवैदिक स्मार्त्त

30 Oct, 14:09


भारत के लगभग समस्त प्रान्तोंमें दीपावली कल गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही मनाई जाएगी।

आर्षपक्ष में शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों द्वारा यही निर्णीत है। सूर्यसिद्धान्तीय गणितपद्धति का अनुगमन करने वाले काशी के हृषीकेश पञ्चाङ्ग, विश्व पञ्चाङ्ग; बिहार के विद्यापति पञ्चाङ्ग और विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग; राजस्थान के श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग; महाराष्ट्र के देशपाण्डे पञ्चाङ्ग; दक्षिण भारत के शृङ्गेरीपीठसे प्रकाशित पञ्चाङ्ग, मध्वमठ से प्रकाशित पञ्चाङ्ग; श्रीकाशीविद्वत्परिषद्; अखिलभारतीयविद्वत्परिषद्; केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालय इत्यादि सभी ने एक स्वरमें कल- गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही दीपावली एवं प्रदोषकालमें लक्ष्मीपूजन का निर्णय किया है।

स्मरण रहे, शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों के अतिरिक्त, दो बहुश्रुत दृग्गणितीय पद्धति का अनुगमन करने वाले पञ्चाङ्ग १) जगन्नाथ पञ्चाङ्ग एवं २) सम्पूर्णानन्दसंस्कृतविश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित उत्तरप्रदेशशासनद्वारा संरक्षित श्रीबापूदेशास्त्रीद्वारा प्रवर्तित पञ्चाङ्ग में भी दीपावली कल गुरुवार ३१/१०/२०२४ को ही लिखी है।

आर्ष सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष श्रीवेदव्यास, श्रीविद्यारण्यस्वामि आदि पूर्वाचार्यों द्वारा मान्य है। धर्मसम्राट् स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज, पुरीपीठ के १४४वें पीठाधीश्वर पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज, वर्तमान शृङ्गेरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीभारतीतीर्थ जी महाराज एवं शृङ्गेरीपीठकी विद्वत् मण्डली एवं वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज एवं उनकी सच्छिष्यमण्डली द्वारा सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष ही मान्य है।

सुतरां- शास्त्रीयपक्ष के अनुसार दीपावली कल (गुरुवार तदनुसार ३१/१०/२०२४ को) ही है।

श्रीवैदिक स्मार्त्त

30 Oct, 03:01


किसे जानें और किसे नहीं, जिसे जानें उसे कैसे जानें इत्यादि पर विमर्श करनेसे पूर्व वस्तुतः ज्ञेय तत्व क्या है यह जानना आवश्यक है।

"ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्॥"
(श्रीमद्भगवद्गीता १३।१८)
"वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो"
(श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५)
"मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥"

(श्रीमद्भगवद्गीता ७।७)
"वासुदेवः सर्वमिति"
(श्रीमद्भगवद्गीता ७।१९)

ज्ञानस्वरूप ज्ञानगम्य और ज्ञेय एकमात्र देशकाल एवं वस्तुकृत परिच्छेदविनिर्मुक्त सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्मात्मतत्व और उसका एकत्व ही है। श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासादि सकल सच्छास्त्रोंमें उस एक के विज्ञानसे ही सर्वविज्ञान और उस एक के ही विज्ञानसे मुक्ति भी कही गई है। भगवान् श्रीकृष्ण का यह स्पष्ट उद्घोष है- "वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो" (श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५) अर्थात्, "समस्त वेदोंद्वारा मैं (परमात्मा) ही जाननेयोग्य हूँ।" "एव" का प्रयोग करके अन्य किसी तत्वके ज्ञेयत्वका स्पष्ट निषेध कर दिया गया है।

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीतामें कहा है-
"ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वाऽमृतमश्नुते।
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते॥"

(श्रीमद्भगवद्गीता १३।१३)
अर्थात्, उस ज्ञेय परामात्मतत्व को यथावद्रूपसे कहूँगा जिसे जानकर अमृतत्व प्राप्त हो जाता है।

आगे "ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं" (गीता १३।१८) कहकर संविद्रूप सदानन्द ब्रह्मात्म तत्व को ही ज्ञेय और ज्ञानगम्य कहा है। पुनश्च, "वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो" (श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५) कहकर वेदों का वेद्य तत्व मैं (परब्रह्म परमात्मा) ही हूँ इसका निरूपण किया है।

अतः यह स्पष्ट है कि ब्रह्मात्मतत्व ही वह वेदोंका अपूर्वप्रतिपाद्य एकमात्र ज्ञेय तत्व है।

श्रीवैदिक स्मार्त्त

29 Oct, 03:45


द्रव्यज्ञानक्रियात्मिका त्रिगुणमयी प्रकृति भगवान् की शक्ति

श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य
श्रीपुरुषोत्तमपुरीक्षेत्रस्थ-श्रीगोवर्द्धनमठ-उड्ड्याणपीठाधीश्वर
स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज

श्रीवैदिक स्मार्त्त

29 Oct, 03:41


https://youtu.be/Y3zJDbr-VPY

श्रीवैदिक स्मार्त्त

26 Oct, 03:48


मायाको बाधयोग्य अनादिसान्त मानने के कारण भगवत्पाद श्रीशिवावतारशङ्कराचार्यमहाभाग वस्तुतः 'मायावादके उच्छेदक' थे।

अतः उनके सिद्धान्तको मायावाद और उन्हें मायावादी कहना शिवापराध है, शिवनिन्दातुल्य महापाप है।

श्रीवैदिक स्मार्त्त

26 Oct, 02:24


क्या भगवत्पाद श्रीशिवावतारशङ्कराचार्यमहाभाग
का सिद्धान्त 'मायावाद' है?


श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य
श्रीपुरुषोत्तमपुरीक्षेत्रस्थ-श्रीगोवर्द्धनमठ-उड्ड्याणपीठाधीश्वर
स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज

श्रीवैदिक स्मार्त्त

26 Oct, 02:16


ब्रह्मचर्य —रक्षाके उपाय और फल,
स्वामी श्रीअखण्डानन्दसरस्वतीजी महाराज

श्रीवैदिक स्मार्त्त

23 Oct, 14:30


श्रीशङ्कराचार्यो विजयतेतराम्! 🚩

श्रीवैदिक स्मार्त्त

23 Oct, 04:38


https://t.me/Vedic_Smarta

श्रीवैदिक स्मार्त्त

20 Oct, 06:50


https://www.youtube.com/live/cThOohN6oTs?si=Y0ntVU3L4HuLzT_7

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श्रीवैदिक स्मार्त्त

01 Oct, 09:48


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