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Last Updated 01.03.2025 14:33

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प्र. २३८. ईश्वर न्यायकारी है तो संसार में किसी को अंधा, लूला, लंगड़ा, कुख्य, निर्धन, निर्बल, निर्बुद्धि क्यों बनाता है ? और किसी को सुन्दर, पूर्णांग, धनवान, बलवान, विद्वान् क्यों बनाता है ?

उत्तर : ईश्वर अपनी इच्छा से किसी को अच्छा या बुरा फल नहीं देता किन्तु जीवों के कर्मों के अनुरूप फल देता है ।

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प्र. २३७. ईश्वर सर्वज्ञ है, सर्वशक्तिमान् है तथा जीवों का हितैषी है तो फिर वह पापियों को (बुरे व्यक्तियों को) पाप करने से रोकता क्यों नहीं है ?

उत्तर : जीव कर्म करने में स्वतन्त्र है इसलिए ईश्वर उसे पाप करने से हाथ पकड़कर तो नहीं रोकता किन्तु मन में भय, शंका, लज्जा आदि उत्पन्न करके संकेत अवश्य करता है यह उसका रोकना कहा जा सकता है। यह इसकी सीमा है।

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शांति कीजिये प्रभु त्रिभुवन में

@vaidic_bhajan

प्र. २३६. संसार को बनाने, उसे चलाने से ईश्वर को क्या लाभ होता है ? यदि कोई लाभ नहीं होता है तो फिर क्यों बनाता है, चलाता है ?

उत्तर : ईश्वर को संसार को बनाने व चलाने से स्वयं को कोई लाभ नहीं होता फिर भी ईश्वर परोपकारी है, जीवों को सुख प्रदान करने के लिए संसार बनाता है, चलाता है।

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प्र. २३४. किसी व्यक्ति का जीवन बिना ईश्वर को माने बिना उसकी उपासना किए अच्छी प्रकार से चल रहा है तो फिर ईश्वर को मानने व उसकी उपासना करने की आवश्यकता, अपेक्षा ही क्या है ?

उत्तर : ईश्वर की उपासना करने से विशेष ज्ञान, बल, आनन्द, शान्ति आदि गुणों की प्राप्ति होती है। इसलिए ईश्वर की उपासना अवश्य करनी चाहिये ।

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प्र. २३३. ईश्वर जीव को पाप करने की प्रेरणा देता है या नहीं ?

उत्तर : नहीं, वह पवित्र है अतः न स्वयं पाप करता है न ही पाप करने की प्रेरणा देता है।

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वैदिक गर्भविज्ञान व संस्कार -

गर्भ संस्कार यानी उत्तम मनुष्य का निर्माण किसी भी प्राणी या मनुष्य के जन्म स्थान का और उसकी ऊर्जा का गहरा प्रभाव मनुष्य पर पड़ता हैआज जहां पर मनुष्य जन्म लेता है वही स्थान सबसे ज्यादा भ्रष्ट है। हॉस्पिटल, पूरी तरह से यंत्र बन गया है। वहां पर मानवता, मूल्य या सज्जनताका कोई भी मूल नहीं रह गया है।
आप परीक्षा करें। यदि किसी के पास पैसा नहीं है तो, बालक के जन्म में तकलीफ होगी। मनुष्यता एवं मनुष्य से भी ज्यादा पैसों की कीमत बढ़ गई है।
बहुत लोगोंको स्वदेशी संस्थानवालों को, यह दु:ख है कि, डॉलर के सामने पैसे की कीमत लगातार घट रही है। यह अवश्य दुख की बात हो सकती है किंतु, सबसे बड़ी दु:ख की बात है कि पैसों के सामने मनुष्य की कीमत लगातार घट रही है।
आज गर्भ विज्ञान एवं गर्भ संस्कार की सबसे ज्यादा आवश्यकता है, क्योंकि मनुष्य अभी पशु से भी अधिक निकृष्टता की कगार पर पहुंच गयाहै।
आज संसार मे मे दुष्टों और मूर्खों की संख्या बहुत अधिक होने का भी कारण इस गर्भ संस्कार की अज्ञानता ही है। बिना गर्भ संस्कार से ऐसी ही संताने जन्म लेती है संसार मे ।
अब वह राक्षस बनने में अग्रसर है। अब तक केवल माता-पिता को भूल कर, उसको छोड़ देता था। यह पाशविक वृत्ति थी। किंतु अब वह माता-पिता को अपमानित, दुखी एवं पीड़ित करने का शुरू कर रहा है। वह पशु से राक्षस की ओर जा रहा है।
उसको पाशविकता से मनुष्यता की ओर, लाने का प्रथम चरण गर्भ विज्ञान एवं गर्भ संस्कार है। यह जितना जल्दी हम समझेंगे उतना जल्दी हमारा कल्याण होगा।
संस्कृति आर्य गुरुकुलम् अपने अनेकविध कार्यों में गर्भ संस्कार को प्रधानता देता है। उसका एकमात्र कारण है-
मनुष्य के निर्माण के बिना का सभी कुछ निर्माण, निर्वाण मात्र है। वह १ के बिना का ० है, उसकी कुछभी कीमत नहीं है। पूर्ण जगत आज ० के सर्जन में लगा है। वे जो कर रहे हैं, उसकी कीमत बढ़ाने का कार्य में कर रहा हैं, क्योंकि मैं १ का सर्जन कर रहा हूं।
यह १ का सर्जन अर्थात गर्भ विज्ञान, गर्भ संस्कार और अध्यात्म। १ के सर्जन से ही सारे ० की कीमत है। गर्भ विज्ञान पुस्तक में पूरा विवरण दिया गया है, पूज्य गुरुजी विश्वनाथ जी के पूरे जीवन के अनुभव का सार इस पुस्तक में दिया गया है।

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प्र. २३२. भगवान राम, कृष्ण, शिव आदि ईश्वर की भक्ति करते थे या नहीं ?

उत्तर : हाँ, भगवान राम, कृष्ण, शिव आदि भी ईश्वर की भक्ति करते थे ।

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प्र. २३१. क्या ईश्वर शरीर धारण करता या रोगी, बूढ़ा होता है ?

उत्तर : नहीं, ईश्वर कभी शरीर धारण नहीं करता है। न तो रोगी या बूढ़ा होता है वह तो बिना शरीर के ही अपने सब कार्य अपने सामर्थ्य से कर सकता है ।

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प्र. २३०. ईश्वर का दर्शन कौन करते हैं ?

उत्तर : वेद आदि शास्त्रों के विद्वान, धर्मात्मा व योगी मनुष्य ही ईश्वर का साक्षात्कार कर सकते हैं ।

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