ईश्वर ही सृष्टिकर्ता है :-
देखो ! शरीर में किस प्रकार की ज्ञान पूर्वक सृष्टि रची है कि जिसको विद्वान लोग देखकर आश्चर्य मानते हैं। भीतर हाड़ो का जोड़ ,नाड़ियों का बंधन, मांस का लेपन, चमड़ी का ढक्कन, प्लीहा, यकृत, फेफड़ा, पंखा, कला का स्थापन, जीव का संयोजन, शिरोरूप मूल रचन, लोम नख आदि का स्थापन, आंख की अतीव सूक्ष्म शिरा का तारवत् ग्रंथन, इन्द्रियों के मार्गों का प्रकाशन , जीव के जागृत, स्वप्न, सुषुप्त अवस्था के भोगने के लिए स्थान विशेषों का निर्माण, सब धातु का विभाग करण, कला ,कौशल स्थापन आदि अद्भुत सृष्टि को बिना परमेश्वर के कौन कर सकता है ? इसके बिना नाना प्रकार के रत्न, धातु से जड़ित भूमि, विविध प्रकार के वटवृक्ष आदि के बीजों में अति सूक्ष्म रचना, असंख्य हरित, श्वेत, पीत, कृष्ण, चित्र मध्यरूपों से युक्त पत्र, पुष्प, फल, मूल निर्माण, मिष्ट ,क्षार, कटुक ,कषाय,तिक्त, अम्लादि विविध रस, सुगंधादि युक्त पत्र, पुष्प, फल ,अन्न, कंद , मूल आदि रचन, अनेकानेक क्रोड़ों भूगोल , सूर्य चंद्र आदि लोक निर्माण ,धारण, भ्रामण , नियमों में रखना आदि परमेश्वर के बिना कोई भी नहीं कर सकता।।
( महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी )