तब तक राजकुमार की नींद भी खुल गई। उसने पूछा, “तुम कौन हो, और यहां क्या करने आई हो ?" गेर्डा ने रोते-रोते अपना सारा किस्सा कह सुनाया । उसने यह भी बताया कि किस तरह इस महल के पालतू कौवे और कौवी ने उसकी मदद की। राजकुमार और राजकुमारी को उसकी कहानी सुनकर बड़ा दुःख हुआ। लेकिन कौवों के इस जोड़े पर वे दोनों बहुत प्रसन्न थे । राजकुमार ने अपने पालतू कौवों की बड़ी तारीफ़ की, क्योंकि उन्होंने एक ग़रीब लड़की की मंदद की थी। राजकुमारी ने उससे पूछा, "अच्छा बताओ, तुम लोग महल से आज़ाद होना चाहते हो या अपने इस काम के बदले में तुम्हें दरबारी कौवा बना दिया जाए, महल के रसोईघर में जो कुछ बच जाएगा वह तुम्हारा होगा ।"
कौवे और कौवी ने सिर झुकाकर उन्हें सलाम किया और दरबारी कौवा बनना स्वीकार कर लिया । राजकुमारी हुक्म से गेर्डा को खाना खिलाया गया और फिर आराम से सुला दिया गया। दूसरे दिन गेर्डा को खूब 'अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिले और उससे कहा गया कि तुम महल में ही कुछ दिन मेहमान बनकर रहो। लेकिन गेर्डा राजी नहीं हुई। उसने सिर्फ एक जोड़े जूते और एक छोटी घोड़ा गाड़ी मांग ली, तांकि उसमें बैठकर वह किटी को खोजने जा सके।
फौरन उसके लिए एक नई गाड़ी का इन्तज़ाम किया गया। असली सोने की बनी हुई गाड़ी थी यह । उसमें एक कोचवान और चार नौकर भी थे। राजकुमारी ने खुद सहारा देकर गेर्डा को गाड़ी में बिठाया और सम्मानसहित विदा किया ।
गाड़ी एक घने और अंधेरे जंगल में से होकर आगे बढ़ने लगी। अंधेरे में वह काफी चमक रही थी । उस जंगल में कुछ डाकू रहते थे। जब उनकी नज़र गाड़ी पर पड़ी, तब वे अपने को नहीं रोक सके ! उन्होंने आपस में तय किया कि इसे लूटना चाहिए। गाड़ी सोने की मालूम होती है ।
डाकुओं ने आगे बढ़कर अचानक गेर्डा की गाड़ी को घेर लिया। उन्होंने कोचवान और नौकरों को मार डाला और गेर्डा को गाड़ी के बाहर खींच लिया। तब तक एक बूढ़ी लुटेरिन भी वहां आ पहुंची। उसका आदमी लुटेरों का सरदार था । गेर्डा को देखकर वह बोली, "वाह, कैसी मोटी ताजी लड़की है ! इसे मुझे पकड़ा दो। यह खाने में बड़ी जायकेदार लगेगी।” वह बुढ़िया बड़ी डरावनी थी । देखते-देखते उसने एक चमचमाती छुरी निकाल ली। वह उसे मारने ही जा रही थी कि इतने में उसकी लड़की आ पहुंची और उससे लिपट गई। वह अपनी मां से कहने लगी, “मां, इसे मुझे दे दो। मैं इसके साथ खेलूंगी । यह मेरे साथ रहेगी ।" यह कहकर उस लड़की ने बात-बात में अपनी मां के कान काट लिए। असल में वह अपनी मां की बड़ी दुलारी बेटी थी और किसी को कुछ नहीं समझती थी ।
लुटेरे की लड़की गेर्डा के साथ उसकी गाड़ी में आ बैठी और गाड़ी को हांकते हुए और भी घने जंगल में ले गई । वह गेर्डा के बराबर ऊंची थी। लेकिन उससे ज्यादा तगड़ी थी। उसने प्यार से गेर्डा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "डरो मत, जब तक मैं तुम्हें चाहती हूं मेरी मां तुम्हें नहीं मारेगी। क्या तुम राजकुमारी हो ?"
“नहीं !" गेर्डा बोली और फिर उसने अपना सारा किस्सा उसे भी बता दिया। वह लड़की उसकी बातें सुनती रही और गेर्डा के आंसू पोंछती रही। लुटेरों के महल में जाकर गाड़ी रुक गई। महल के लगभग सभी कमरों की छतें धुएं से काली हो रही थीं। एक कमरे में एक बड़ी भारी देगची में कोई चीज़ पक रही थी। आग पर खरगोश और हिरन भूने जा रहे थे। दोनों ने डटकर भर पेट खाना खाया, फिर दोनों एक कमरे में आराम से लेट गईं। उस कमरे में छत में लगे हुए बांसों पर बहुत-से कबूतर ऊंघ रहे थे । उस लड़की ने बताया कि ये सब उसके पालतू कबूतर हैं। उसने एक बड़ा भारी हिरन भी पाल रखा था, जो हमेशा एक बड़ी ज़ंजीर से बंधा रहता था। थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद वह लड़की सो गई। लेकिन गेर्डा को नींद नहीं आ रही थी ।
इतने में दो जंगली कबूतर बोले, “गुटर गूं. गुटर गूं ! हमने तुम्हारे किटी को देखा है, वह बर्फ़ की रानी के रथ साथ अपनी स्लेज बांधकर भागा चला जा रहा था।"