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19 Oct, 04:35


गेर्डा मन में घबरा रही थी। एक जीना पार करके वे लोग ऊपर पहुंचे। वहां एक दीया जल रहा था । कौवी के कहने पर गेर्डा ने दीया उठा लिया और आगे-आगे चलने लगी। थोड़ी देर में वे सोने वाले कमरे में पहुंच गए। वह कमरा बड़ा सुन्दर था। देखने में उसकी छत और बीच में लगा हुआ खम्भा ताड़ के पेड़ की तरह लगता था, जिसमें तरह-तरह के हीरे-मोती लगे हुए थे। कमरे में लिली के फूल की शक्ल के दो पलंग लगे थे। एक राजकुमारी के लिए था और दूसरा राजकुमार के लिए। गेर्डा पलंग पर किटी को ढूंढने लगी। उस पर एक लड़का सो रहा था । उसने उसे आवाज़ दी और दीये से उसके चेहरे पर प्रकाश किया। राजकुमार की नींद खुली नहीं थी । गेर्डा को यह देखकर बड़ा अफसोस हुआ कि वह किटी नहीं था ।
तब तक राजकुमार की नींद भी खुल गई। उसने पूछा, “तुम कौन हो, और यहां क्या करने आई हो ?" गेर्डा ने रोते-रोते अपना सारा किस्सा कह सुनाया । उसने यह भी बताया कि किस तरह इस महल के पालतू कौवे और कौवी ने उसकी मदद की। राजकुमार और राजकुमारी को उसकी कहानी सुनकर बड़ा दुःख हुआ। लेकिन कौवों के इस जोड़े पर वे दोनों बहुत प्रसन्न थे । राजकुमार ने अपने पालतू कौवों की बड़ी तारीफ़ की, क्योंकि उन्होंने एक ग़रीब लड़की की मंदद की थी। राजकुमारी ने उससे पूछा, "अच्छा बताओ, तुम लोग महल से आज़ाद होना चाहते हो या अपने इस काम के बदले में तुम्हें दरबारी कौवा बना दिया जाए, महल के रसोईघर में जो कुछ बच जाएगा वह तुम्हारा होगा ।"
कौवे और कौवी ने सिर झुकाकर उन्हें सलाम किया और दरबारी कौवा बनना स्वीकार कर लिया । राजकुमारी हुक्म से गेर्डा को खाना खिलाया गया और फिर आराम से सुला दिया गया। दूसरे दिन गेर्डा को खूब 'अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिले और उससे कहा गया कि तुम महल में ही कुछ दिन मेहमान बनकर रहो। लेकिन गेर्डा राजी नहीं हुई। उसने सिर्फ एक जोड़े जूते और एक छोटी घोड़ा गाड़ी मांग ली, तांकि उसमें बैठकर वह किटी को खोजने जा सके।
फौरन उसके लिए एक नई गाड़ी का इन्तज़ाम किया गया। असली सोने की बनी हुई गाड़ी थी यह । उसमें एक कोचवान और चार नौकर भी थे। राजकुमारी ने खुद सहारा देकर गेर्डा को गाड़ी में बिठाया और सम्मानसहित विदा किया ।
गाड़ी एक घने और अंधेरे जंगल में से होकर आगे बढ़ने लगी। अंधेरे में वह काफी चमक रही थी । उस जंगल में कुछ डाकू रहते थे। जब उनकी नज़र गाड़ी पर पड़ी, तब वे अपने को नहीं रोक सके ! उन्होंने आपस में तय किया कि इसे लूटना चाहिए। गाड़ी सोने की मालूम होती है ।
डाकुओं ने आगे बढ़कर अचानक गेर्डा की गाड़ी को घेर लिया। उन्होंने कोचवान और नौकरों को मार डाला और गेर्डा को गाड़ी के बाहर खींच लिया। तब तक एक बूढ़ी लुटेरिन भी वहां आ पहुंची। उसका आदमी लुटेरों का सरदार था । गेर्डा को देखकर वह बोली, "वाह, कैसी मोटी ताजी लड़की है ! इसे मुझे पकड़ा दो। यह खाने में बड़ी जायकेदार लगेगी।” वह बुढ़िया बड़ी डरावनी थी । देखते-देखते उसने एक चमचमाती छुरी निकाल ली। वह उसे मारने ही जा रही थी कि इतने में उसकी लड़की आ पहुंची और उससे लिपट गई। वह अपनी मां से कहने लगी, “मां, इसे मुझे दे दो। मैं इसके साथ खेलूंगी । यह मेरे साथ रहेगी ।" यह कहकर उस लड़की ने बात-बात में अपनी मां के कान काट लिए। असल में वह अपनी मां की बड़ी दुलारी बेटी थी और किसी को कुछ नहीं समझती थी ।
लुटेरे की लड़की गेर्डा के साथ उसकी गाड़ी में आ बैठी और गाड़ी को हांकते हुए और भी घने जंगल में ले गई । वह गेर्डा के बराबर ऊंची थी। लेकिन उससे ज्यादा तगड़ी थी। उसने प्यार से गेर्डा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "डरो मत, जब तक मैं तुम्हें चाहती हूं मेरी मां तुम्हें नहीं मारेगी। क्या तुम राजकुमारी हो ?"
“नहीं !" गेर्डा बोली और फिर उसने अपना सारा किस्सा उसे भी बता दिया। वह लड़की उसकी बातें सुनती रही और गेर्डा के आंसू पोंछती रही। लुटेरों के महल में जाकर गाड़ी रुक गई। महल के लगभग सभी कमरों की छतें धुएं से काली हो रही थीं। एक कमरे में एक बड़ी भारी देगची में कोई चीज़ पक रही थी। आग पर खरगोश और हिरन भूने जा रहे थे। दोनों ने डटकर भर पेट खाना खाया, फिर दोनों एक कमरे में आराम से लेट गईं। उस कमरे में छत में लगे हुए बांसों पर बहुत-से कबूतर ऊंघ रहे थे । उस लड़की ने बताया कि ये सब उसके पालतू कबूतर हैं। उसने एक बड़ा भारी हिरन भी पाल रखा था, जो हमेशा एक बड़ी ज़ंजीर से बंधा रहता था। थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद वह लड़की सो गई। लेकिन गेर्डा को नींद नहीं आ रही थी ।
इतने में दो जंगली कबूतर बोले, “गुटर गूं. गुटर गूं ! हमने तुम्हारे किटी को देखा है, वह बर्फ़ की रानी के रथ साथ अपनी स्लेज बांधकर भागा चला जा रहा था।"

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19 Oct, 04:35


"यह क्या कह रहे हो तुम लोग ? जरा मुझे भी बताओ कि बर्फ़ की रानी कहां रहती है ? क्या तुम लोग कुछ जानते हो ? " गेर्डा ने कबूतरों से पूछा ।
"हमें यह तो नहीं पता कि वह कहां रहती है । हो सकता है, बर्फ़ के देश में रहती हो। यह रेण्डियर (बर्फीले प्रदेश का हिरन ) तुम्हें उसके बारे में बहुत कुछ बताएगा ।"
इतने में रेण्डियर अपने पिंजरे से बोला, "वहां चारों तरफ हमेशा बर्फ ही बर्फ़ रहती है। वहां सब आज़ादी से रहते हैं। बर्फ़ की रानी गर्मी के दिनों में बर्फ़ के मैदान में आ जाती है। लेकिन उसका किला उत्तरी ध्रुव पर है ।"
सुबह उठकर गेर्डा ने उस लड़की को कबूतर और रेण्डियर की बातें बता दीं और उससे मदद मांगी। लुटेरे की लड़की राज़ी हो गई। दोपहर में जब सब लोग खा-पीकर सो गए, तब उस लड़की ने गेर्डा को रेण्डियर से अपने साथ उत्तर के बर्फीले देश 'लैपलैण्ड' पहुंचा आने को कहा ।
रेण्डियर फौरन राज़ी हो गया । लुटेरे की लड़की ने गेर्डा को रेण्डियर की पीठ पर बांध दिया और अपनी मां के बड़े-बड़े दस्ताने हाथों में पहना दिए, ताकि बर्फीले देश में उसे ज्यादा ठंड न लगे । गेर्डा की आंखों में आंसू आ गए क्योंकि उसने यह कभी नहीं सोचा था कि लुटेरों के बीच भी उसे अपना कोई मित्र मिल जाएगा ।
उसे आंसू बहाते देखकर लुटेरे की लड़की बोली, “तुम इस तरह रोती क्यों हो? तुम्हें तो और खुश होना चाहिए । लो, ये रोटी के कुछ टुकड़े हैं और कुछ भुना हुआ गोश्त है । अपने पास रख लो, रास्ते में भूख लगने पर खा लेना ।"
फिर उसने रेण्डियर की पीठ ठोककर कहा, "देखो, इस लड़की को कहीं गिराना मत, बहुत संभालकर ले जाना !”
रेण्डियर गेर्डा को अपनी पीठ पर बिठाए हुए फौरन चौकड़ी भरकर भाग खड़ा हुआ । रास्ते में एक जगह रुककर दोनों ने खाना खाया। रेण्डियर फिर से दौड़ने लगा । अन्त में वे दोनों उत्तरी ध्रुव के पास के बर्फ़ीले देश लैपलैण्ड में जा पहुंचे । रेण्डियर एक छोटी-सी झोंपड़ी के पास रुका। यह झोंपड़ी बर्फ का एक अजीब सा मकान था, जिसके अन्दर एक स्त्री बैठी हुई आग में मछली भून रही थी । अन्दर जाकर रेण्डियर ने पहले तो गेर्डा का किस्सा कह सुनाया और फिर अपनी रामकहानी सुनाई। गेर्डा को इतना जाड़ा लग रहा था कि वह एक कोने में दुबककर बैठ गई ।
गेर्डा का किस्सा सुनकर वह स्त्री बोली, "बेटी, अभी तुम्हें बहुत दूर जाना है। यहां से सौ मील दूर फिनलैंड नामक एक देश पड़ता है। आजकल बर्फ़ की रानी ने वहीं पर डेरा डाल रखा । उसके खेमे में रोज़ रात को नीले रंग की बत्तियां जलती हैं। लो, एक मछली के सूखे हुए टुकड़े पर मैं तुम्हें एक चिट्ठी लिख देती हूं क्योंकि मेरे पास कोई काग़ज़ नहीं है । यह चिट्ठी तुम रास्ते में रहने वाली फिनलैंड की एक स्त्री को दे देना । वह तुम्हें आगे का रास्ता बता देगी ।" उसने गेर्डा को खाना खिलाया । गेर्डा ने कुछ तक आग तापी और फिर वह उसकी चिट्ठी लेकर रेण्डियर की पीठ पर सवार हो गई। रेण्डियर दौड़ने लगा ।
रेण्डियर रात-भर दौड़ता रहा और फिनलैंड जा पहुंचा। वह उस स्त्री की झोंपड़ी जानता था, जिसके नाम गर्दा एक चिट्ठी लेकर जा रही थी । उसने वहां जाकर आवाज़ लगाई और फिर घुटनों के बल रेंगते हुए दोनों उसकी झोंपड़ी में घुस गए। अन्दर आग जल रही थी । गेर्डा आग तापने बैठ गई । उस स्त्री ने सूखी मछली पर लिखी हुई चिट्ठी- दो-तीन बार पढ़ी और फिर मछली को खाने के लिए संभालकर रख लिया। फिर उसने रेण्डियर से कहा, " इस लड़की का भाई किटी अभी तक बर्फ़ की रानी के साथ ही रहता है । उसे यहां की चीजें इतनी अच्छी लगती हैं कि वह और सब कुछ भूल गया है। अब वह यहां से जाना नहीं चाहता। लेकिन असली बात तो यह है कि उस जादुई आईने के कुछ टुकड़े उसकी आंखों और उसके दिल में घुसे हुए हैं, जिससे वह हर खराब चीज़ को अच्छी समझने लगा है और बर्फ़ की रानी के असर में रहता है । जब तक वे टुकड़े नहीं निकलते, तब तक वह एक अच्छे लड़के की तरह नहीं सोच सकता और बर्फ़ की रानी उसे बराबर अपने असर में रखेगी।”
यह सुनकर रेण्डियर बोला, "तो तुम इस नन्हीं बच्ची पर दया करके इसे कोई चीज़ क्यों नहीं दे देतीं, जिसे यह इस मुसीबत में काम ला सके और बर्फ़ की रानी के असर से किटी को छुड़ा सके।"
वह स्त्री कहने लगी, "नहीं, इस लड़की के पास खुद एक बहुत बड़ी शक्ति है। इसी शक्ति के बल पर यह बर्फ की रानी के महल में पहुंच सकती है और किटी की आंखों और उसके दिल को जादुई आईने के असर से बचा सकती है । इसके पास जो शक्ति है वह है, इसका पवित्र और प्रेम-भरा हृदय । उसी के बल पर इसे जीत मिल सकती है। यहां से दो मील पर बर्फ़ की रानी का बगीचा है । तुम वहीं एक झाड़ी के पास इसे छोड़कर फौरन लौट आना ।" यह कहकर उसने गेर्डा को रेण्डियर की पीठ पर बिठा दिया और रेडियर तेज़ी से दौड़ने लगा ।

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19 Oct, 04:35


थोड़ी देर में वह बर्फ़ की रानी के बगीचे के पास आ पहुंचा। वहां उसने गेर्डा को उतार दिया और उसे चूम लिया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। गेर्डा की आंखें भी भीग आईं। इतने अच्छे रेण्डियर से अलग होते हुए उसे बड़ा दुःख हो रहा था । फिर रेण्डियर वहां से फौरन लौट आया ।
अब गेर्डा उस सुनसान बर्फीली जगह में अकेली रह गई। गेर्डा नंगे पैर ही बर्फ़ पर दौड़ने लगी । उसने देखा कि बर्फ़ के कुछ टुकड़े उसका पीछा कर रहे थे। धीरे-धीरे उनका आकार बदल गया। असल में वे बर्फ़ की रानी के सिपाही थे और वे देखने में बड़े अजीब-से लगते थे । गेर्डा ने डरकर अपनी प्रार्थना दोहरानी शुरू की। थोड़ी ही देर में वहां बहुत-से फ़रिश्ते आ पहुंचे। उन्होंने बर्फ के सिपाहियों को मार भगाया। यही नहीं, उन्होंने गेर्डा के पैरों और हाथों को भी छू लिया, जिससे अब उसे जाड़ा बिलकुल नहीं लग छू सकता था। अब वह शान के साथ बर्फ़ की रानी के महल घुस गई।
उस महल की दीवारें बर्फ़ की बनी हुई थीं । खिड़कियों के शीशे भी पतले बर्फ़ के बने हुए थे। उस महल में सैकड़ों कमरे थे । वे सब उत्तरी प्रकाश से जगमग थे। सबसे बड़े कमरे के बीच में एक बहुत बड़ी झील थी, जिसका पानी अक्सर जमा रहता था। बर्फ़ की रानी जब यहां रहती थी, तो उसी झील के बीच बैठा करती थी ।
वहां नन्हा किटी मारे ठंड के नीला पड़ गया था। फिर भी उसे जाड़ा नहीं लगता था, क्योंकि बर्फ़ की रानी ने उसका शरीर छूकर उसे जाड़ा सहने लायक बना दिया था ।
बर्फ़ की रानी कुछ दिनों तक यहां रहती थी और कुछ दिन गर्म देशों की यात्रा के लिए जाती थी। वह जहां जाती थी, वहां जाड़ा आ जाता था। लोग ठंड से ठिठुरने लगते थे और पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ जम जाती थी। बर्फ़ की रानी आजकल वहां नहीं थी ।
गेर्डा ने जब महल में घुसने की कोशिश की, तो दरवाज़े पर तैनात बहुत ठंडी हवाओं ने उसका रास्ता रोकने की कोशिश की, लेकिन गेर्डा ने जैसे ही अपनी प्रार्थना याद करनी शुरू की कि उसका रास्ता आसान हो गया। अंदर जाने पर उसने देखा कि किटी एक जगह बैठा बर्फ़ के टुकड़े से खेल रहा था । गेर्डा उसे फौरन पहचान गई और उसके गले में हाथ डालकर बोली, “किटी ! किटी !! आखिर मैंने तुम्हें खोज ही लिया !”
लेकिन वह चुपचाप पत्थर बना बैठा रहा । यह देखकर गेर्डा को रोना आ गया। उसके आंसू किटी पर टपकने लगे। उसके इन आंसुओं से किटी का सारा जादू उतर गया। उसकी आंखों से, उसके दिल से जादुई आईने के टुकड़े धुल गए। अब उसने गेर्डा को पहचान लिया । दोनों एक-दूसरे से मिलकर बेहद खुश हुए।
उन्हें खुश देखकर बर्फ के टुकड़े भी खुशी से नाचने लगे । गेर्डा के छूने से अब किटी पर जादू का ज़रा भी असर नहीं रहा। उसे अब ठंड भी लगने लगी। दोनों ने वहां से भाग चलने का निश्चय किया। गेर्डा उसे महल के बाहर ले आई और उस झाड़ी के पास गई, जहां पिछली बार रेण्डियर ने उसे छोड़ा था ।
उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह रेण्डियर वहां तैयार खड़ा था। यही नहीं, वह अपने साथ एक छोटा रेण्डियर और ले आया। दोनों एक-एक की पीठ पर सवार हो गए। थोड़ी ही देर में रेण्डियर उन्हें फिनलैंडवाली स्त्री के घर ले आए। वहां उन्होंने खाना खाया। इसके बाद वे लैपलैंडवाली स्त्री के यहां पहुंचे। उसने उन्हें नये कपड़े दिए और एक स्लेज गाड़ी दी ।
लैपलैंड की सीमा के पार जहां से बर्फ़ीला प्रदेश खत्म हो जाता था, वहां पहुंचकर उस स्त्री ने उनसे विदा ली । दोनों रेण्डियर भी उसी के साथ लौट गए। अब दोनों पैदल ही चलने लगे। कुछ दूर चलने पर अचानक एक जगह झाड़ी के पीछे से एक बहुत बढ़िया घोड़ा निकल आया । गेर्डा उसे पहचान गई । यह उन्हीं घोड़ों में से एक था, जो उसके सोने के रथ में जुते थे। इस घोड़े पर वही लुटेरों की लड़की बैठी थी। वह घर से ऊब गई थी और यात्रा पर निकली थी। वह गेर्डा से मिलकर बड़ी खुश हुई। उसने बताया कि वह राजकुमार अपनी राजकुमारी को लेकर दूर देश में चला गया और वह कौवा मर गया, जिसने गेर्डा की मदद की थी। फिर गेर्डा और किटी ने अपनी-अपनी कहानी सुनाई। वह लड़की बोली, "अच्छा, अब मैं चलूं । अगर कभी मैं तुम्हारे घर की तरफ आऊंगी, तो तुम लोगों से भी मिलूंगी।" यह कहकर वह घोड़ा दौड़ाती हुई आगे बढ़ गई ।
गेर्डा और किटी आगे चले । चलते-चलते वे लोग आगे एक बड़े शहर में पहुंचे। कुछ सड़कों को पारकर आगे जाने पर फौरन उन्होंने पहचान लिया कि यह तो उनका अपना शहर है। गेर्डा अपनी दादी का मंकान पहचान गई। दोनों अन्दर चले गए। वही कमरा, वही सब कुछ । घड़ी उसी तरह टिक् टिक् कर रही थी । किसी चीज़ में कोई फर्क नहीं आया था। फ़र्क था तो सिर्फ उन्हीं दोनों में। वे अब काफी बड़े हो गए थे। खिड़कियों में अब भी गुलाब के फूल खिले हुए थे । दोनों घर लौटकर कितने खुश थे !

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19 Oct, 04:35




बर्फ की रानी

एक जादूगर था। वह बहुत दुष्ट था। बिल्कुल राक्षस ही समझो। दूसरों को तंग करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। उसने एक ऐसा जादुई आईना तैयार किया, जिसमें हर अच्छी और सुन्दर चीज भद्दी और बदसूरत दिखाई देती थी। आमतौर से तो उसमें अच्छी चीजें दिखाई ही नहीं देती थीं। खराब और बदसूरत चीज़ें उसमें खूब अच्छी मालूम पड़ती थीं।
इस जादुई आइने में अगर कोई सुन्दर आदमी देखता तो उसकी शक्ल बिल्कुल बिगड़ जाती थी। कभी सिर गायब, तो कभी पेट गायब। हाथ पैर इस तरह मुड़े हुए और टूटे हुए-से लगते थे कि कोई उसको पहचान नहीं सकता था। जादूगर यह देखकर दुष्टतापूर्वक हंसता था और मन ही मन बड़ा खुश होता था।
जादूगर ने अपने बहुत-से चेले पाल रखे थे। वे भी एक से एक बढ़कर दुष्ट थे। वे उस जादुई आईने को लेकर घूमते थे और लोगों को उनकी बदली हुई शक्लें दिखाकर चिढ़ाया करते थे।
एक बार उसके शिष्यों को एक नयी चाल सूझी। उन्होंने सोचा कि देवतागण और स्वर्ग की अप्सराएं वगैरह अपने को बहुत सुन्दर मानती हैं। चलो उन्हें भी उनकी असली शक्ल इस आइने में दिखाई जाए। यह सोचकर वे जादू के बल से आईना उठाकर आसमान में उड़ने लगे। वे उढ़ते चले गए। यहां तक कि इतनी ऊंचाई पर जा पहुँचे कि उनके हाथ से वह जादुई आईना छूट गया और ज़मीन पर जा गिरा। गिरते ही उसके इतने चोटे-छोटे टुकड़े हो गए कि वे हवा में उड़ने लगे। संसार के लिए यह और भी बुरी बात हुई। उस शैतान आईने के ज़र्रे कुछ लोगों की आँखों में पड़े और वे हर अच्छी चीज को बुरी समझने लगे। उस शैतान आईने के टुकड़े कुछ लोगों के दिल में भी जा बैठे।। यह और भी बुरा हुआ। लोगों के दिलों से दया, ममता प्रेम, स्नेह—सब कुछ उड़ गया और वे पत्थर दिल हो गए, बिलकुल बर्फ़ जैसे ठंडे और कड़े। उस शीशे के कुछ बड़े टुकड़े इकट्ठा करके लोगों ने इनके चश्मे बना लिए और उन्हें अपनी आंखों पर लगाकर वे अपने पड़ोसियों और मिलने-जुलने वालों, सबको बुरा समझने लगे।
जादूगर यह देखकर खूब प्रसन्न हुआ और खिल-खिलाकर हंसता रहा। अब भी उस शैतान आईने के टुकड़े हवा में तैर रहे हैं। इनका क्या असर होता है। इसे हम आगे की कहानी में पढ़ेंगे।
एक बड़ा शहर था, जहाँ बहुत से लोग रहते थे। वह इतना घना बसा हुआ था और लोगों के पास इतने छोटे-छोटे मकान थे कि वे एक बगीचा तक नहीं लगा सकते थे। ऐसी ही घनी बस्ती में दो छोटे बच्चे रहते थे। एक लड़का और एक लड़की। दोनों भाई-बहन नहीं थे, लेकिन दोनों में भाई-बहन जैसा ही प्यार था। उनके घर इतने पास-पास थे कि वे अपने घर की खिड़की पार करके दूसरे की खिड़की में जा सकते थे। खिड़की के पास लकड़ी के बड़े-बड़े डिब्बों में उनके घर के लोगों ने कुछ पौधे लगा रखे थे, जिनमें गुलाब भी थे।
जाड़े के दिनों में दोनों का मिलना-जुलना बन्द हो जाता था, क्योंकि इतनी बर्फ़ गिरती थी कि खिड़कियों के शीशों पर भी बर्फ़ की मोटी तह जम जाती थी। वे एक-दूसरे को देख भी नहीं पाते थे। ऐसे मौके पर वे किसी सिक्के को अंगीठी पर ख़ूब गर्म करते थे और फिर उसे खिड़की के शीशे पर चिपका देते थे। इससे गर्मी पाकर उतनी जगह की बर्फ़ गल जाती थी और एक छोटा-सा छेद बन जाता था। उसी छेद से दोनों एक-दूसरे को देखते थे। लड़के का नाम था किटी और लड़की का नाम था गेर्डा।
कभी-कभी लड़के की दादी दोनों को कहानियां, खासकर बर्फ़ की रानी की कहानियां सुनाती थी।
एक दिन शाम को बाहर बर्फ़ गिर रहा थी। लड़का अपने कमरे में ही था। उसने एक छेद से झांककर बाहर देखा। बाहर पौधों के डिब्बों में बर्फ़ गिर रही थी। अचानक बर्फ़ के एक गोले पर उसकी नज़र जम गई। उसने देखा कि बर्फ़ का वह गोला बढ़ते-बढ़ते रूई के एक ढेर की तरह हो गया। यही नहीं, थोड़ी देर में लगा कि वहां सफेद वस्त्र पहने एक रानी बैठी है। जिसने तारों का मुकुट पहन रखा है। लड़का उसे देखता ही रह गया। क्या यही बर्फ़ की रानी है ? अचानक रानी ने उसको अपनी ओर आने का इशारा किया। लड़का डर गया और खिड़की से नीचे उतर आया। अचानक उसने देखा कि एक बड़ी-सी सफेद चिड़िया उसकी खिड़की के पास से उड़ गई है और बर्फ़ की रानी गयाब हो गई।
इसके कई दिन बाद की बात है। लड़का गेर्डा के पास बैठा था। दोनों एक किताब के पन्ने उलट रहे थे, जिसमें चिड़ियों और जंगली जानवरों के चित्र थे। तभी जैसे ही गिरजे की घंटी ने बारह बजाए लड़का कहने लगा, ‘‘लगता है मेरी आंखों में कुछ गिर गया है और मेरे सीने में दर्द हो रहा है।’’ गेर्डा ने उसकी आंखें देखीं, लेकिन उसे कुछ नहीं दिखाई दिया। असल में उसकी आंखों में उसी शैतान आइने का कोई बारीक टुकड़ा आ गिरा था। थोड़ी ही देर में वह गेर्डा से झगड़ने लगा और बोला, ‘‘तुम इस तरह रोती क्यों हो ? और तुम्हारा चेहरा कितना भद्दा मालूम पड़ता है —छिः !’’ असल में गेर्डा हंस रही थी, लेकिन लड़के को उलटा ही दिखाई देता था।

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19 Oct, 04:35


वह फिर बोला, ‘‘ये गुलाब के पौधे कितने भद्दे हैं ? और यह डिब्बा भी सड़ गया है। उसने डिब्बे को ठोकर मार दी और फूल नोच डाले। लड़की चिल्लाई, ‘‘अरे तुम यह क्या कर रहे हो।’’ लेकिन वह नहीं माना और उसे धक्का देकर भाग गया। उस शैतान आईने के टुकड़े से अब वह बहुत शरारती और झगड़ालू हो गया था।
वह दादी को मुंह चिढ़ाता, किताबें फाड़ डालता था और पड़ोसियों को तंग करता था। वह गेर्डा को भी बहुत-बहुत रुलाया करता था, क्योंकि उसके दिल में भी शैतानी आईने के टुकड़े चले गए थे।
जाड़े के दिनों में एक दिन वह गरम कपड़े पहनकर और हाथों में दस्ताने पहनकर मुहल्ले के शरारती लड़कों के साथ खेलने निकल गया। वे लोग बर्फ़ पर फिसलने का खेल खेल रहे थे। उधर से जब लोगों की गाड़ियाँ गुजरती थीं तो लड़के अपनी फिसलने वाली स्लेजों को उनके पीछे बांध देते थे और दूर तक फिसलते चले जाते थे।
किटी ने भी एक गाड़ी के पीछे अपनी स्लेज बांध दी और फिसलना शुरू कर दिया। उस गाड़ी में एक आदमी सफेद लबादा ओढ़े और मोटी सफेद टोपी लगाए बैठा था। वह आदमी बार-बार मुड़कर किटी को अपने पीछे आने का इशारा करता था और किटी उसके पीछे-पीछे फिसलता जा रहा था। गाड़ी शहर की सड़कों को पार करती हुई थोड़ी देर में शहर के बाहर आ गई। किटी कुछ घबराया। उसने अपनी स्लेज को गाड़ी से छुड़ाने की कोशिश की। लोकिन उसकी कोशिश बेकार गई। किटी ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली और अगर निकलती भी तो वहां सुनता कौन !
बर्फ़ तेज़ी से गिर रही थी। इतने में किटी ने देखा कि गाड़ीवान की टोपी और लबादा ग़ायब हो गया और गाड़ीवान की जगह सफेद वस्त्र पहने एक सुंदर देवी आ बैठी। किटी ने फौरन पहचान लिया, यह बर्फ़ की रानी थी !
बर्फ़ की रानी ने किटी को अपनी गाड़ी में बिठा लिया और उसे अपनी सफ़ेद चद्दर से ढककर बोली, ‘‘तुम्हें बहुत जाड़ा लग रहा है न !’’ लेकिन उसकी चद्दर में तो और भी ठंडक थी। बर्फ़ की रानी ने जब प्यार से उसका माथा चूमा तो उसे लगा जैसे उसका माता बर्फ़ से छू गया हो।
वह आसमान में उड़ने लगी। किटी ने सुना, बादल रानी के स्वागत में कोई गीत गा रहे थे। अब वे लोग बादलों के भी ऊपर उड़े जा रहे थे। बर्फ़ की रानी उसे बादलों के देश में ले आई थी।
उधर गेर्डा उसकी याद में बड़ी दुःखी थी। लड़कों से उसे मालूम हुआ कि किसी गाड़ी के साथ किटी स्लेज में घिसटता हुआ न मालूम कहां चला गया। लड़कों की आंखों में आंसू आ गए और गेर्डा तो फूट-फूट कर रोने लगी। कुछ दिनों बाद जाड़ा खत्म हो गया। बसन्त ऋतु आई। जब बसन्त ऋतु की सुहावनी धूप गेर्डा की खिड़की में आई, तो उसे अपने साथी की बड़ी याद आई। एक दिन वह अपने लाल जूते पहनकर नदी किनारे जा पहुंची और नदी से पूछने लगी, ‘‘क्या तुम मेरे भाई को बहा ले गई हो ? मैं तुम्हें अपने ये नये नये जूते दूंगी, तुम मेरा भाई ला दो !’’
इसके जवाब में नदी की लहरें अजीब तरह से हिलने लगीं। गेर्डा ने अपने जूते पानी में फेंक दिए। लेकिन लहरे जूतों को बहाकर फिर से नदी किनारे छोड़ गईं। गेर्डा को लगा कि शायद उसने जूते ज्यादा दूर नहीं फेंके, इसलिए ये वापस लौट आए हैं। उसने देखा कि पास ही सरपत की झाड़ी के पास एक नाव खड़ी थी। वह नाव पर चढ़ गई और वहां से उसने जोर लगाकर जूते पानी में फेंक दिए। लेकिन ऐसा करते समय नाव को एक झटका लगा और उसकी रस्सी खुल गई और नाव नदी में बहने लगी। गेर्डा बड़ी घबराई। लेकिन नाव को रोकने का कोई चारा ही नहीं था। वह बड़ी तेज़ी से बही जा रही थी। गेर्डा डरकर चिल्लाने लगी। लेकिन किसी ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी। नाव बहती रही। गेर्डा ने सोचा कि शायद यह नाव उसे किटी के पास ले जायेगी। नाव बहती-बहती ऐसी जगह जा पहुँची, जहां नदी-किनारे एक छोटी-सी झोंपड़ी बनी थी, जिसकी एक खिड़की नीली थी और दूसरी लाल। झोंपड़ी के दरवाजे पर लकड़ी के दो सिपाही खड़े थे। जैसे ही गेर्डा की नाव झोंपड़ी के पास पहुंची, सिपाहियों ने उसे सलाम किया। गेर्डा ने सोचा शायद ये जिन्दा हैं। वह मदद के लिए उन्हें पुकारने लगी। लेकिन सिपाही चुपचाप खड़े रहे। उसकी आवाज़ सुनकर झोंपड़ी में से एक बुढ़िया निकली। वह एक लाठी के सहारे चल रही थी। उसने अपनी लाठी से नाव को किनारे की ओर खींचते हुए कहा, ‘‘हाय, बेचारी लड़की ! तुम कितनी दूर पानी में बह आई !’’ फिर उसने गेर्डा को उठाकर किनारे उतार लिया। गेर्डा किनारे पर पहुंचकर बहुत खुश हुई। लेकिन साथ ही इस विचित्र बुढ़िया को देखकर उसे डर लग रहा था।
बुढ़िया के पूछने पर गेर्डा ने सारा किस्सा कह सुनाया और फिर पूछा, ‘‘क्या तुमने मेरे भाई किटी को देखा है ?’’

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19 Oct, 04:35


बुढ़िया बोला, ‘‘नहीं, मैंने उसे नहीं देखा। लेकिन अगर वह नदी में बह रहा है, तो जरूर यहां आ पहुंचेगा।
तुम घबराओ मत। तब तक तुम यहीं रहो और आराम से यहां के फूल सूघों। यहां आसपास बड़ा अच्छा बगीचा है, जिसमें ऐसे फूल लगते हैं जैसे तुमने कभी नहीं देखे होंगे।’’
फिर बुढ़िया उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी झोंपड़ी में ले गई। अन्दर जाकर उसने दरवाजा बन्द कर लिया। असल में यह बुढ़िया एक जादूगरनी थी। लेकि यह दुष्ट नहीं थी। गेर्डा के बाल संवारते-संवारते वह उस पर जादू कर रही थी। वह उसे अपने पास ही रखना चाहती थी।
धीरे-धीरे गेर्डा किटी को भूलने लगी।
फिर बुढ़िया उसे अपना बगीचा दिखाने ले गई। उस बाग में तरह-तरह के फूल खिले हुए थे। वह दिन-भर उनके बीच खेलती रही। शाम को जब वह थक गई, तब उसके सोने के लिए एक छोटा-सा और खूब मुलायम बिस्तर लगाया गया। गेर्डा जैसे ही उस पर लेटी कि उसे गहरी नींद आ गई और वह मीठे सपने देखने लगी। इस तरह धीरे-धीरे उसके दिन बीतने लगे। वह उस बाग के हर फूल को जानती थी। लेकिन उसे लगता था। कि कोई एक फूल इसमें से गायब है। वह कौन-सा फूल है, यह उसे याद नहीं आता था। एक दिन उस बुढ़िया के हैट पर उसकी नजर गई और उसे फौरन याद आया कि इस बाग में गुलाब के फूल नहीं है। इसलिए यह इतना सूना-सूना-सा लगता है। असल में बात यही थी कि उस बुढ़िया ने जादू के ज़ोर से बाग के सारे गुलाब के पौधों को गायब कर दिया था। उसे डर था कि अगर गेर्डा गुलाब देखेगी तो उसे किटी की याद आ जाएगी। लेकिन वह अपने हैट पर बने हुए गुलाब के चित्र को मिटाना भूल गई थी।
‘‘यह क्या, इस बाग में गुलाब का एक भी फूल नहीं है ?’’ गेर्डा बोली। उसे अपने गुलाब इतने याद आए कि वह बगीचे में बैठकर रोने लगी। उसके आंसू टपक रहे थे। वहं पहले गुलाब का एक सुन्दर –सा पौधा लगा था,
जिसे बुढ़िया ने अपने जादू के जोर से गायब कर दिया था। गेर्डा के गरम-गरम आंसू जब उस जगह टपके तो वहां फिर से गुलाब का पौधा निकल आया। उस पर बहुत ही सुंदर फूल खिले थे। गेर्डा ने गुलाब के फूल को चूम लिया। उसे पिछली सारी बातें याद हो आयीं। उसने गुलाब के फूल से पूछा, ‘‘क्यों, क्या किटी मर गया ?’’
गुलाब के फूल बोले, ‘‘नहीं, अभी वह मरा नहीं है। हम तो अब तक जमीन में ही थे, जहां मरे हुए लोग रहते हैं। वहां हमें किटी नहीं मिला ?’’
लेकिन जब गेर्डा ने उनसे किटी का पता पूछा, तो उनमें से कोई उसका पता नहीं बता सका।
गेर्डा उस बाग में बेचैन होकर इधर-उधर भटकने लगी। इतने में एक कौवा कांव-कांव करता हुआ आया और गेर्डा के सामने आ बैठा। गेर्डा ने उससे किटी के बारे में पूछा तो वह बड़ी देर तक चुप रहा और गर्दन हिलाता रहा। फिर अचानक बोला, ‘‘ओह, हाँ , याद आया। शायद वह किटी ही था लेकिन अब वह राजकुमारी के पास रहता है। वह ज़रूर तुम्हें भूल गया होगा। इस देश में एक राजकुमारी रहती है। वह बड़ी चालाक है। वह दुनिया-भर के अखबार पढ़ती है, और सारी खबरें उसे मालूम रहती हैं। एक दिन उसने सोचा कि अब मुझे शादी करनी चाहिए। वह अपने लिए ऐसा लड़का खोजने लगी, जो बहुत बुद्धिमान हो, जिसे अच्छी तरह बात करना आता हो।’’
‘‘ठीक है, लेकिन क्या मेरा किटी तुम्हें वहां दिखाई दिया ?’’
कौवा बोला, ठहरो बता रहा हूँ। हां तो, वहां एक दिन एक लड़का आया। वह देखने में बड़ा सुंदर था, बिलकुल तुम्हारी तरह वह सीधा अन्दर घुस गया। हालांकि वह फटे और गन्दे कपड़े पहने था। लेकिन कोई उसे रोक नहीं सका। वह सीधा राजकुमारी के पास जा पहुंचा। उसने राजकुमारी से कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मन जीतने नहीं आया हूँ, बल्कि तुम्हारी बुद्धिमानी की बातें सुनने आया हूं।’’
‘‘हां हां, वह मेरा किटी ही होगा। वह बड़ा बहादुर है। क्या तुम मुझे राजकुमरी के महल में ले जा सकते हो !’’
कौवा बोला यह इतना आसान काम नहीं है। पहले मैं अपनी कौवी से इसके बारे में बात कर लूं, क्योंकि तुम्हारी जैसी छोटी बच्ची को महल में ले जाने की इजाजत पाना बड़ा मुश्किल है। अच्छा, तुम यहीं बैठो। मैं ज़रा अपनी कौवी से बात कर आऊँ।’’ यह कहकर कौवा उड़ गया।
थोड़ी देर बाद फिर कांव-कांव करता हुआ वह लौट आया और बोला, ‘‘मेरी कौवी ने तुमको सलाम भेजा है, और लो यह रोटी का टुकड़ा भी दिया है। इसे खा लो, तुम्हें भूख लगी होगी। तुम रोओ मत। मेरी कौवी तुम्हें पिछवाड़े के दरवाजे से महल में पहुंचा देगी। आओ, चलो मेरे साथ।’’
रोटी खाकर गेर्डा कौवे के साथ चल पड़ी। वह जल्दी-जल्दी चल रही थी, क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह बुढ़िया पीछे-पीछे न आती हो । थोड़ी देर में वह कौवा उसे एक बहुत बड़े बगीचे में ले गया। वह राजकुमारी के महल का बगीचा था। रास्ते में कौवी भी साथ हो ली । वह रास्ता बताते हुए उसे महल में ले गई।

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19 Oct, 04:28




मस्तक पर चक्र : पंचतंत्र की कहानी
Mastak Par Chakra : Panchtantra


एक नगर में चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे । चारों में गहरी मैत्री थी । चारों ही निर्धन थे । निर्धनता को दूर करने के लिए चारों चिन्तित थे । उन्होंने अनुभव कर लिया था कि अपने बन्धु-बान्धवों में धनहीन जीवन व्यतीत करने की अपेक्षा शेर-हाथियों से भरे कंटीले जङगल में रहना अच्छा़ है । निर्धन व्यक्ति को सब अनादर की दृष्टि से देखते हैं, बन्धु-बान्धव भी उस से किनारा कर लेते हैं, अपने ही पुत्र-पौत्र भी उस से मुख मोड़ लेते हैं, पत्‍नी भी उससे विरक्त हो जाती है । मनुष्यलोक में धन्के बिना न यश संभव है, न सुख । धन हो तो कायर भी वीर हो जाता है, कुरुप भी सुरुप कहलाता है, और मूर्ख भी पंडित बन जाता है ।

यह सोचकर उन्होंने धन कमाने के लिये किसी दूसरे देश को जाने का निश्चय किया । अपने बन्धु-बान्धवों को छो़ड़ा, अपनी जन्म-भूमि से विदा ली और विदेश-यात्रा के लिये चल पड़े ।

चलते-चलते क्षिप्रा नदी के तट पर पहुँचे । वहाँ नदी के शीतल जल में स्नान करने के बाद महाकाल को प्रणाम किया । थोड़ी दूर आगे जाने पर उन्हें एक जटाजूटधारी योगी दिखाई दिये । इन योगिराज का नाम भैरवानन्द था । योगिराज इन चारों नौजवान ब्राह्मणपुत्रों को अपने आश्रम में ले गए और उनसे प्रवास का प्रयोजन पूछा़ । चारों ने कहा- "हम अर्थ-सिद्धि के लिये यात्री बने हैं । धनोपार्जन ही हमारा लक्ष्य है । अब या तो धन कमा कर ही लौटेंगे या मृत्यु का स्वागत करेंगे । इस धनहीन जीवन से मृत्यु अच्छी है ।"

योगिराज ने उनके निश्चय की परीक्षा के लिये जब यह कहा कि धनवान बनना तो दैव के अधीन है, तब उन्होंने उत्तर दिया- - "यह सच है कि भाग्य ही पुरुष को धनी बनाता है, किन्तु साहसिक पुरुष भी अवसर का लाभ उठा कर अपने भाग्य को बदल लेते हैं । पुरुष का पौरुष कभी-कभी दैव से भी अधिक बलवान हो जाता है । इसलिए आप हमें भाग्य का नाम लेकर निरुत्साहित न करें । हमने अब धनोपार्जन का प्रण पूरा करके ही लौटने का निश्चय किया है । आप अनेक सिद्धियों को जानते हैं । आप चाहें तो हमें सहायता दे सकते हैं, हमारा पथ-प्रदर्शन कर सकते हैं । योगी होने के कारण आपके पास महती शक्तियाँ हैं । हमारा निश्चय भी महान् है। महान् ही महान् की सहायता कर सकता है ।"

भैरवानन्द को उनकी दृढ़ता देखकर प्रसन्नता हुई । प्रसन्न होकर धन कमाने का एक रास्ता बतलाते हुए उन्होंने कहा - "तुम हाथों में दीपक लेकर हिमालय पर्वत की ओर जाओ । वहाँ जाते-जाते जब तुम्हारे हाथ का दीपक नीचे गिर पड़े तो ठहर जाओ । जिस स्थान पर दीपक गिरे उसे खोदो । वहीं तुम्हें धन मिलेगा । धन लेकर वापिस चले आओ ।"

चारों युवक हाथों में दीपक लेकर चल पड़े । कुछ दूर जाने के बाद उन में से एक के हाथ का दीपक भूमि पर गिर पड़ा । उस भूमि को खोदने पर उन्हें ताम्रमयी भूमि मिली । वह तांबे की खान थी । उसने कहा- -"यहाँ जितना चाहो, ताँबा ले लो ।" अन्य युवक बोले - "मूर्ख ! ताँबे से दरिद्रता दूर नहीं होगी । हम आगे बढ़ेंगे । आगे इस से अधिक मूल्य की वस्तु मिलेगी ।"

उसने कहा- "तुम आगे जाओ, मैं तो यहीं रहूँगा ।" यह कहकर उसने यथेष्ट ताँबा लिया और घर लौट आया ।

शेष तीनों मित्र आगे बढ़े । कुछ़ दूर आगे जाने के बाद उन में से एक के हाथ का दीपक जमीन पर गिर पड़ा । उसने जमीन खोदी तो चाँदी की खान पाई । प्रसन्न होकर वह बोला- "यहाँ जितनी चाहो चाँदी ले लो, आगे मत जाओ ।" शेष दो मित्र बोले- "पीछे़ ताँबे की खान मिली थी, यहाँ चाँदी की खान मिली है; निश्चय ही आगे सोने की खान मिलेगी । इसलिये हम तो आगे ही बढ़ेंगे ।" यह कहकर दोनों मित्र आगे बढ़ गये ।

उन दो में से एक के हाथ से फिर दीपक गिर गया । खोदने पर उसे सोने की खान मिल गई । उसने कहा- "यहाँ जितना चाहो सोना ले लो । हमारी दरिद्रता का अन्त हो जायगा । सोने से उत्तम कौन-सी चीज है । आओ, सोने की खान से यथेष्ट सोना खोद लें और घर ले चलें ।" उसके मित्र ने उत्तर दिया- "मूर्ख ! पहिले ताँबा मिला था, फिर चाँदी मिली, अब सोना मिला है; निश्चय ही आगे रत्‍नों की खान होगी । सोने की खान छो़ड़ दे और आगे चल ।" किन्तु, वह न माना । उसने कहा- "मैं तो सोना लेकर ही घर चला जाऊँगा, तूने आगे जाना है तो जा ।"

अब वह चौथा युवक एकाकी आगे बढ़ा । रास्ता बड़ा विकट था । काँटों से उसका पैर छ़लनी हो गया । बर्फी़ले रास्तों पर चलते-चलते शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया, किन्तु वह आगे ही आगे बढ़ता गया ।

बहुत दूर जाने के बाद उसे एक मनुष्य मिला, जिसका सारा शरीर खून से लथपथ था, और जिसके मस्तक पर चक्र घूम रहा था । उसके पास जाकर चौथा युवक बोला- "तुम कौन हो ? तुम्हारे मस्तक पर चक्र क्यों घूम रहा है ? यहाँ कहीं जलाशय है तो बतलाओ, मुझे प्यास लगी है ।"

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19 Oct, 04:28


यह कहते ही उसके मस्तक का चक्र उतर कर ब्राह्मणयुवक के मस्तक पर लग गया । युवक के आश्चर्य की सीमा न रही । उसने कष्ट से कराहते हुए पूछा- "यह क्या हुआ ? यह चक्र तुम्हारे मस्तक से छूटकर मेरे मस्तक पर क्यों लग गया ?"

अजनबी मनुष्य ने उत्तर दिया- "मेरे मस्तक पर भी यह इसी तरह अचानक लग गया था । अब यह तुम्हारे मस्तक से तभी उतरेगा जब कोई व्यक्ति धन के लोभ में घूमता हुआ यहाँ तक पहुँचेगा और तुम से बात करेगा ।" युवक ने पूछा- "यह कब होगा ?"

अजनबी- -"अब कौन राजा राज्य कर रहा है ?"

युवक- "वीणा वत्सराज ।"

अजनबी- "मुझे काल का ज्ञान नहीं । मैं राजा राम के राज्य में दरिद्र हुआ था, और सिद्धि का दीपक लेकर यहाँ तक पहुँचा था । मैंने भी एक और मनुष्य से यही प्रश्‍न किये थे, जो तुम ने मुझ से किये हैं ।"

युवक - "किन्तु, इतने समय में तुम्हें भोजन व जल कैसे मिलता रहा ?"

अजनबी - "यह चक्र धन के अति लोभी पुरुषों के लिये बना है । इस चक्र के मस्तक पर लगने के बाद मनुष्य को भूख, प्यास, नींद, जरा, मरण आदि नहीं सताते । केवल चक्र घूमने का कष्ट ही सताता रहता है । वह व्यक्ति अनन्त काल तक कष्ट भोगता है ।"

यह कहकर वह चला गया । और वह अति लोभी ब्राह्मण युवक कष्ट भोगने के लिए वहीं रह गया ।

सीख : लालच बुरी बला है ।

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28 Sep, 18:20


"मैं किसी के भी बालों को सोने की तरह चमकदार बना सकती हूँ " उसने जवाब दिया।
"फिर मेरे साथ आओ," नौकरानी ने कहा। हर दिन, लड़की ने राजकुमारी के बालों को तब तक ब्रश किया जब तक वे सूरज की किरणों की तरह चमकने नहीं लगे।
एक दिन, लड़की ने हिम्मत बटोरी और राजकुमारी से पूछा कि क्‍या वो उसके बालों की एक लट ले सकती थी। राजकुमारी ने पहले तो मना किया लेकिन जब लड़की ने बहुत भीख मांगी तब उसने उसे दे दिया।
"तुम मेरे बालों की एक लड़ी ले सकती हो," राजकुमारी ने कहा, "पर तुम्हें मुझे खुश करने के लिए एक सुंदर राजकुमार ढूंढ़ना होगा।"
लड़की सहमत हो गई। फिर उसने बालों की एक लड़ी काटी और उसे एक कोट में बुना जो रेशम की तरह चमकने लगा। फिर वो उसे गरीब शेर वाले आदमी के पास लेकर गई, जिसने उसे राक्षस को खोजने का रास्ता बताया।
जब राक्षस ने लड़की को पहाड़ पर चढ़ते हुए सुना, तो वो एक हाथ में अपनी तलवार और दूसरे हाथ में एक गदा लेकर भागा हुआ आया।
"रुको! मैं तुम्हारे लिए एक कोट लाई हूँ! " लड़की ने कहा। लेकिन कोट बहुत छोटा था और राक्षस ने उसे नीचे फेंक दिया। "मुझे माफ़ करें। मैं फिर से कोशिश करूँगी," उसने वादा किया।
अगली सुबह, लड़की ने राजकुमारी से बड़ी आरज़ू-मिन्‍नत करके उसके बालों की एक और लड़ी ली। फिर लड़की ने एक बड़ा कोट बनाया और दुबारा पहाड़ पर लौटी। इस बार राक्षस को कोट फिट आया, और उसने लड़की को इनाम देने की पेशकश की।
"कृपया उस शेर वाले आदमी पर से जादू-टोना हटाओ," उसने भीख मांगी।
राक्षस ने उत्तर दिया, "उसके लिए तुम्हें शेर को मारना होगा। फिर उसे जलाकर उसकी राख पानी में फैंकनी होगी। तब तुम्हें राजकुमार मिलेगा।"
आदमी को यह सब बताते समय लड़की रोने लगी।
"जैसा उसने कहा है तुम वैसा ही करो। मुझ पर भरोसा रखो," आदमी ने कहा।
अगली सुबह लड़की ने शेर को मार डाला। जब उसने पानी में राख डाली तब पानी में से एक सुंदर युवा राजकुमार बाहर आया।
"बहुत धन्यवाद, तुमने मुझे बचा लिया है। अब मैं तुम से अपनी पत्नी बनने के लिए कह सकता हूं।"
युवा लड़की ने उसे आंसू भरी आँखों से देखा। "लेकिन मैंने राजकुमारी से वादा किया है कि मैं उसे खुश करने के लिए एक राजकुमार खोजूंगी।"
राजकुमार ने जवाब दिया, "डरने की कोई बात नहीं है। तुम देखो, मैं राजा का बेटा हूं। वो राजकुमारी मेरी बहन है। चलो, अब हम महल में चलें। अपने भाई से मिलकर राजकुमारी बहुत खुशी हुई।"
राजा, रानी और राजकुमारी सभी राजकुमार की वापसी से बेहद खुश हुए। राजा ने युवा लड़की के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए शादी के लिए सहमति दी। और फिर पूरे शहर ने जश्न मनाया!

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28 Sep, 18:20




घायल शेर : स्पेनी लोक-कथा
Ghayal Sher: Spanish Folk Tale in Hindi
एक गरीब युवा लड़की काम के लिए भीख मांगती हुई इधर- उधर भटक रही थी। एक दिन वो एक किसान के घर पहुंची, जहाँ उसकी किस्मत बदली।
"मुझे एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो मेरी गायों को पाल सके। मैं तुम्हें एक मौका ज़रूर दूंगा," किसान ने कहा।
लड़की ने अपनी काबलियत साबित की। फिर एक दिन उसे घास के मैदान के पास एक कराह सुनाई दी। लड़की ने गायों को चरने के लिए छोड़ दिया। फिर उसने एक शेर को जमीन पर लेटा हुआ पाया।
"अरे बाप रे!" लड़की बड़बड़ाई। "तुम्हारे पैर में एक कांटा चुभा है। ज़रा चुप बैठो। मैं उसे बाहर निकाल दूंगी।"
लड़की ने कांटा निकल दिया। उसके बाद शेर ने अपनी बड़ी खुरदरी जीभ से लड़की का हाथ चाटा। लड़की ने अपने रूमाल से शेर के पंजे पर पट्टी बांधी।
लड़की घास के मैदान में लौटकर आई। पर गायें वहां से गायब थीं। घंटों खोजने के बाद भी वे उसे नहीं मिलीं। फिर उसने किसान को जाकर सच्चाई बताई।
"तुम गायों का पूरा झुंड कैसे खो सकती हो?" किसान लड़की पर गरजा। "मैं तुम्हें नौकरी से निकाल दूंगा।"
"क्या मैं कुछ और काम कर सकती हूँ ? " लड़की ने भीख माँगी।
"मैं तुम्हें गधों की देखभाल करने के लिए एक साल का समय दूंगा। फिर बाद में देखूँगा कि क्या तुम भरोसेमंद हो या नहीं।"
युवा लड़की अब हर दिन गधों को चराने ले जाती थी। एक साल के बाद, उसे वही शेर मिला पर इस बार उसके चेहरे पर गहरे घाव थे। लड़की ने शेर का चेहरा साफ किया, घाव पर जड़ी- बूटियों का मल्हम लगाया और अपने रूमाल से उसे पट्टी बांधी। एक बार फिर से धन्यवाद देने के लिए शेर ने लड़की का हाथ चाटा।
पर इस बार भी पहले की तरह ही, गधों का झुंड कहीं गुम हो गया। लड़की दुबारा फिर से किसान के क्रोध का सामना करने के लिए लौटी।
उसने उसे डांटा, लेकिन वह जानता था कि लड़की ने पूरे एक साल उसे अच्छी सेवा दी थी। "मैं तुम्हें एक आखिरी मौका दूंगा। तुम्हें सूअरों को चराने के लिए बाहर ले जाना होगा। अगर तुम उन्‍हें मोटा कर पाओगी तब तुम रह सकोगी।"
एक और साल बीत गया, और सूअर मोटे हो गए। लेकिन तभी लड़की को वही परिचित आवाज सुनाई दी। उसने अपने दोस्त शेर को गंभीर रूप से घायल पाया। उसने प्रत्येक घाव को धोया, जड़ी-बूटियों को इकट्ठा किया, और फिर अपनी स्कर्ट को फाड़कर पट्टियां बांधी। इस बार शेर बोला, "क्या तुम आराम करने तक मेरे साथ नहीं बैठोगी ?"
"मैं माफ़ी चाहती हूँ, लेकिन मुझे जाना होगा और किसान के सूअरों को देखना होगा," उसने कहा।
वो सुअरों को खोजने के लिए दौड़ी, लेकिन उसे ऐसा लगा जैसे पृथ्वी उन्हें निगल गई हो। घंटों खोजने के बाद वो एक पेड़ पर चढ़ गई। पर उसे सुअर नहीं दिखे, लेकिन उसे कुछ चौंकाने वाला ज़रूर दिखा। ढीले-ढाले कपड़े पहना एक आदमी रास्ते पर चल रहा था, फिर उसने एक चट्टान हटाई और और फिर उसमें गायब हो गया।
"वह कौन था?" लड़की को आश्चर्य हुआ। "अब मुझ में किसान के क्रोध का सामना करने के लिए घर जाने की हिम्मत नहीं है, इसलिए मैं बस यहीं इंतजार करूंगी और देखूंगी।"
वो सूरज उगने तक पेड़ पर ही बैठी रही। अचानक, चट्टान खिसकी ओर वही शेर उसे रास्ते पर चलता हुआ दिखा।
"शेर!" लड़की फुसफुसाई। "वो आदमी कहाँ गया?"
लड़की पेड़ से नीचे उतरी, उसने चट्टान को एक तरफ धकेला, और फिर एक बड़े कमरे में पहुंची। उसने अंदर झांका। उसे वहां बढ़िया खाना दिखा जिसे उसने पेट भर कर खाया। फिर खाना खाने के बाद उसने कमरे की सफाई की और झाड़ू लगाई।
उस शाम, वो पेड़ से तब तक देखती रही जब तक कि वो आदमी वापस नहीं आया। अगली सुबह, दुबारा फिर शेर बाहर निकला। फिर से, वो छिपे हुए कमरे में गई, उसने खाना खाया और सफाई की। इसी तरह कई दिन बीतने के बाद, लड़की ने रास्ते में आदमी की प्रतीक्षा की।
"मुझे लगा कि वो आप ही होंगी जो मेरे कमरे की सफाई कर रही थीं," आदमी ने कहा।
"आप मुझे कैसे जानते हैं? और आप सुबह को शेर के रूप में अपना कमरा क्‍यों छोड़ते हैं और फिर शाम को एक आदमी के रूप में लौटते हैं?" उसने पूछा।
"एक राक्षस इस बात से नाराज था कि मैं एक राजकुमार था जिसे लोग बहुत प्यार करते थे। दिन में मैं शेर बन जाता हूं जिसकी आपने कई बार मदद की," उस आदमी ने समझाया। "उस राक्षस ने बदला लेने के लिए ही आपके जानवरों को चुराया। उसके जादू टोने को तोड़ने के लिए उसे राजकुमारी के बालों से बना एक कोट देना होगा।"
"ठीक है, मैं शहर जाऊंगी और आज शहर में काम खोजूंगी मुझे राजकुमारी के बालों की एक लट ज़रूर मिल जाएगी ," लड़की ने वादा किया ।
अगले दिन उसने अपने बालों को सावधानी से बनाया और फिर महल के पास जाकर चिल्लाई , "क्या कोई मुझे काम पर रखेगा?" राजकुमारी की एक दासी ने उसे सुना। "तुम क्या काम कर सकती हो?" उसने पूछा।

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28 Sep, 18:17


The Princess and the Pea (Danish story) by Hans Christian Andersen

राजकुमारी और मटर का दाना ( डैनिश कहानी)
Hans Christian Andersen


Once upon a time there was a prince who wanted to get married. He needed a princess. His fairies had brought him up with great love. Therefore, it was his pledge and insistence that his future wife should also be a true princess for him.



But there was no princess in his kingdom who could truly become a princess for him. So the prince started roaming around the world in search of his wife. Every princess we met had some flaw or the other. Some had a high nose, some were short and some had a flaw in their gait. So there was something wrong in someone's voice. Despite so much searching, there is no such thing. He returned to his kingdom disappointed as he did not find a princess whom he could make his wife. He thought that maybe there is no happiness of his wife in his life.

One day when he returned to his palace, it started raining heavily. Dark clouds appeared in the sky. And the sound of thundering lightning shook the walls of the palace. Everyone gathered near the palace, lit a fire and started watching the havoc of nature. Just then the sound of someone knocking on the gate was heard at the main gate of the palace.



When the prince's father i.e. the Maharaj opened the door. So a very beautiful princess was standing outside. Her long golden thick hair was getting wet in the rain. And water was dripping from her silk shoes. She said she is a princess. He said that he was returning to his state from a nearby state. Seeing her in such a condition, the king could not believe that she was a princess.



The king wondered whether she was telling the truth. The king brought him inside. And the queen said after being introduced to everyone. It is difficult to believe in your condition. I have never seen such a disheveled princess.



The clever queen saw something black in the lentils because she had to protect the palace. The queen devised a trick to find out the truth. He took a dry pea from home. And placed it in the middle of his bed inside the guest room. And then placed the softest mattresses on top of that pea.



No one would have seen such attractive soft mattresses. The princess's preferences could be gauged from these mattresses. The first mattress is dark soft color. The second one is purple. Which was made of good threads. Third white colored strap mattress. Spring mattresses. Zari mattresses are very good and soft mattresses. And mattresses made of gold threads.



On which there were beautiful pictures. The designs were made. After placing all these soft mattresses on the pea, the princess was made to sleep on it. The Queen said after the unnecessary effort of placing so many mattresses on top of the peas. -Now let's check whether she is a princess or not.



After sleeping on so many mattresses, when the princess came to have breakfast in the morning. So she was feeling unwell. The queen asked the princess whether she slept well. So the princess replied. No, I could not sleep, something was pricking me on the bed. Which was harder than stone, I think. It was just an iron ball for putting in caps. Which has left scars all over my body. All the family members started laughing.



Because that princess was a real princess. And this was known to everyone. Because only a princess could have such soft and tender skin. And then the prince married the princess. And then the pea was taken out of the bed and placed in the state museum. Where that pea is still safe.



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08 Sep, 18:00



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हिंदी कहानी
चिड़ियों की परी : चीनी लोक-कथा
Chidiyon Ki Pari : Chinese Folktale
कहते हैं कि चीन के उत्तर में चिड़ियों की एक अजीब-सी परी रहती थी । उसे मनुष्य की भाषा समझने का और मनुष्य की भाषा बोलने का अलौकिक वरदान प्राप्त था ।

बहुत-से राजा-महाराजाओं ने चिड़ियों की उस परी को पकड़ने का प्रयास किया था, पर वह किसी के हाथ नहीं लगी थी। यहां तक कि बड़े-बड़े राजकुमारों से लेकर छोटे-छोटे मंत्री गणों तक ने समय-समय पर अपना-अपना भाग्य आजमाया था । उन्होंने देश-विदेश के एक-से-एक अनुभवी बहेलियों को उधर भेजा, अथवा वे स्वयं उसे पकड़ने गए थे, पर इस प्रयत्न में किसी को सफलता नहीं मिली थी। वह चिड़िया हमेशा एक विशाल चीड़ के पेड़ की घनी पत्तियों में बैठी रहती थी और बड़े मधुर स्वर में गीत गाती रहती थी ।

उसे पकड़ने के अभियान में कई वर्षों तक लोग उधर आते- जाते रहते थे, जिससे उस घने जंगल में एक पगडंडी-सी बन गई। थी जिससे होकर कोई भी उस चिड़िया के निवासस्थान तक पहुंच सकता था ।

जब इस विचित्र चिड़िया की प्रसिद्धि एकतर खान बादशाह के कानों में पहुंची, तो उसने हिम्मत बांधते हुए कहा, "वह चिड़िया बड़ी होशियार मालूम होती है । वह लोगों की पकड़ से आज तक बची हुई है, परन्तु मेरे हाथ से वह कैसे निकलेगी। मैं किसी-न-किसी तरह से उसे अवश्य पकड़ंगा ।" इतना कह कर वह उसकी खोज में निकल पड़ा ।

एकतर खान चलते-चलते उस घने जंगल में पहुंच गया । उसने घनी पत्तियों वाले उस विशाल चीड़ के पेड़ को भी खोज लिया । उस विचित्र चिड़िया ने एकतर खान को पास आते हुए देखा, परन्तु वह उससे न डरी और न वहां से भागी ही । वह अपनी जगह पर चैन से बैठी- बैठी मधुर गीत सुनाती रही । एकतर खान उसकी तान सुनकर हर्ष और आश्चर्य में डूब गया, फिर उसने बड़ी आसानी से उसे पकड़ लिया। उसे पिंजड़े में लेकर खुशी-खुशी वह घर की ओर चल दिया ।

उस पहाड़ी के ऊबड़-खाबड़ रास्ते से वह चला जा रहा था । रास्ते में चिड़िया ने एकतर खान से कहा - " बड़ी आसानी से आपने मुझे पकड़ लिया है, किन्तु मुझे यह वरदान प्राप्त है कि जो भी मुझे लिए जा रहा हो, उसे रास्ते भर मेरे साथ बातें करते जाना चाहिए और किसी भी हालत में आह नहीं भरनी चाहिए, क्योंकि उसके चुप होते ही अथवा आह भरते ही मैं उड़ जाऊंगी। इसलिए हम में से किसी को हर वक्त कुछ न कुछ बोलते ही रहना चाहिए ।"

एकतर खान ने कुछ सोच कर उत्तर दिया- "तब तो ठीक ही है । तुम्हीं कुछ कहो न । बातें करते हुए रास्ता जल्दी ही कट जायेगा ।"

चिड़िया बोली, "मैं तुम्हें एक कथा सुनाती हूं । एक शिकारी ने एक कुत्ते को पाल रखा था। एक दिन दोनों शिकार करने निकले । जंगल के बीच रास्ते में उन्होंने एक टूटी हुई बैलगाड़ी देखी, जिसमें सोना-चांदी भरा पड़ा था । उसका स्वामी बगल में बैठा था । परिचय हो जाने के बाद गाड़ीवान ने शिकारी से आग्रह किया :

'मुझे गांव जाकर किसी कारीगर को ढूंढ़ लाना है जो मेरी गाड़ी के पहिये की मरम्मत कर सके। क्या तब तक आप और आपका कुत्ता मेरी गाड़ी की रखवाली कर सकते हैं ?”

'बेशक, बड़ी खुशी के साथ ।' शिकारी ने जवाब दिया । गाड़ीवान बहुत प्रसन्न हुआ और वह पहाड़ी रास्ते से गांव की ओर चला गया ।

दिन ढल गया, सांझ होने लगी, पर गाड़ीवान का कोई पता नहीं था । शिकारी सोच में पड़ गया, मेरी बूढ़ी मां की आंखें कमजोर हो गई हैं। वह सवेरे से कुछ खा पाई होगी या नहीं । फिर उसने अपने कुत्ते से कहा- 'तू यहीं ठहर और चारों ओर देख । जब तक गाड़ीवान नहीं लौटे, यहां से कहीं जाना नहीं । मैं भोजन बनाने के लिए घर जा रहा हूं ।'

आदेश देकर वह घर चला गया। कुत्ते ने अपने स्वामी की आज्ञा का पालन जी-जान से किया। वह गाड़ी के चारों ओर चक्कर काटता रहा और बैल को दूर जाने से रोकता रहा ।

उधर गाड़ीवान ने कई ग्रामों की खाक छान मारी, तब कहीं जाकर, करीब बारह बजे रात्रि में, उसे एक कारीगर मिला जो गाड़ी को बना सकता था। जब वह लौटा तो उसने देखा कि शिकारी तो चला गया है, परन्तु उसका कुत्ता उसकी जगह पर गाड़ी की रखवाली कर रहा है। इससे वह बहुत प्रसन्न हुआ । गाड़ीवान ने कुत्ते को कुछ चांदी की छड़ें देकर उसे घर भेज दिया ।

वह स्वामिभक्त कुत्ता चांदी की छड़ों को लेकर जब घर पहुंचा और अपने स्वामी के चरणों में रख दिया, तब उसे देखकर शिकारी क्रोध में आकर उससे बोला - " मैंने तुझे गाड़ी की रखवाली के लिए छोड़ा था, उलटे तूने उसकी चांदी की छड़ों को चुराया है।' इतना कहकर शिकारी ने डंडा लिया और कुत्ते को इतना मारा कि वह मर गया ।

एकतर खान से रहा न गया । उसने आह भरते हुए कहा, " कितना बड़ा बेवकूफ था वह शिकारी ! उसने ऐसे भक्त कुत्ते की जान ले ली।"

"अच्छा! तो तुम ने आह भर दी !" इतना कहकर चिड़ियों की परी उड़ गई ।

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08 Sep, 18:00


"भला मैं इस प्रण को कैसे भूल सकता हूं।" एकतर खान ने अपने आप को दोषी ठहराया। वह जंगल की ओर जाने वाली पगडंडी पर मुड़ पड़ा। दूसरी बार भी उसी पुराने चीड़ के पेड़ पर से उसने चिड़िया को पकड़ा। लौटते समय रास्ते में चिड़िया ने एक अन्य कहानी सुनानी आरम्भ की।

"बहुत दिन हुए, एक गांव में एक औरत रहती थी । उसने एक बिल्ली पाल रखी थी। एक दिन वह कुएं से पानी लाने गई । उसका नन्हा सा बच्चा पालकी में सो रहा था । औरत ने बिल्ली को बालक की रखवाली का भार सौंपा और कुएं की ओर चली गई । बिल्ली पालकी के अगल-बगल में घूम-घूम कर मक्खियों और मच्छरों को बार-बार भगाती रही। ऐसे ही कुछ समय बीत गया, फिर एकाएक दरवाजे के पीछे से एक बड़ा-सा चूहा निकल कर बच्चे को काटने के लिए लपका। बिल्ली गुर्राती हुई उसे पकड़ने लगी । जब तक वह उसके पीछे भाग रही थी तब तक एक दूसरा चूहा बिल से निकला और सोते हुए बालक के कान को काट खाया । उसकी पीड़ा से बालक जोर से चिल्लाया । बिल्ली पीछे की ओर दौड़ी और देखते-देखते दूसरे चूहे को दरवाजे के पीछे दबोच दिया। इसके बाद, वह बालक के सिरहाने बैठ कर, उसके लहूलुहान कान को जीभ से चाट-चाट कर उसके दर्द को कम करने की कोशिश करने लगी । इतने में औरत पानी लेकर लौटी। उसने बिल्ली को बालक का कान चाटते हुए देखा । तब वह बहुत गुस्से में आ गई। वह बोली, 'मैंने इस बिल्ली को बालक की रखवाली के लिए छोड़ा था, परन्तु इस दुष्ट ने तो उलटे इसके कान ही को काट खाया है !' यह कहते- कहते वह बिल्ली पर टूट पड़ी और उसे मार-मार कर उसका काम तमाम कर दिया । किन्तु थोड़ी देर बाद जब उसकी नजर दरवाजे के पीछे मरे हुए चूहे पर पड़ी, जिसके मुंह में बालक के कान का टुकड़ा पड़ा था, तो वह पश्चात्ताप करती हुई बोली- 'मैंने इस आज्ञाकारी बिल्ली को मार कर बड़ी भारी गलती की है ।'

यह सुनते ही एकतर खान पुनः आह भरते हुए चिल्लाया, "यह तो बहुत बुरा हुआ ! इस बार भी वह अजीब चिड़िया अपने पंखों को फड़फड़ाती हुई पुनः उत्तर दिशा की ओर उड़ गई ।

इस प्रकार एकतर खान को तीसरी बार भी उत्तर की ओर जाना पड़ा । उसने चिड़िया को उसी चीड़ के पेड़ पर से पकड़ा। उसे लेकर वह उसी जानी-पहचानी पहाड़ी की टेढ़ी-मेढ़ी पग-डंडी से घर की ओर चला जा रहा था। इस बार भी चिड़ियों की परी ने उसे एक मनोरंजक कहानी सुनानी आरंभ की।

"एक बार एक भीषण सुखार पड़ी। वर्षा न बरसने से घास-पात तो सूखा ही साथ-साथ नदी-नाले भी सूख गये और जगह-जगह पर जमीन में दरारें हो गयीं । भूख-प्यास से बचने के लिए अरावी नाम के एक आदमी ने अपना घर छोड़ दिया । झुलसने वाली धूप में बहुत दूर निकल गया । प्यास से उसका कंठ सूखने लगा, पर पानी कहीं दिखाई नहीं दिया। इस हालत में वह कुछ और आगे गया कि प्यास के मारे वह बेहोशी की हालत में आ गया। पास में एक चट्टान थी। वह उसी के नीचे लुढ़क कर मौत का इन्तजार करने लगा । एकाएक टप टप टप- टप की ध्वनि उसके कानों में आयी । उसने उधर देखा, तो खुशी से उछल पड़ा। उससे कुछ ही दूर पर चट्टान के दर्रे से पानी की बूंदें टपक रही थी । वह तुरन्त अपने कठोते में पानी की बूंदों को एकत्र करने लगा। जब उसके काठ का बर्तन पानी से भर गया तब उसने उसे मुंह से लगाया ही था कि एक कौवा उड़ता हुआ आया और अपने डैनों से कठोते को झटका देकर सारे-का- सारा पानी उड़ेल दिया। अब तो अरावी क्रोध से लाल हो गया । उसने कहा, 'दुष्ट कौवा, तुमने स्वर्ग का दिया हुआ मेरा पानी उडेल दिया ।' फिर उसने एक पत्थर उठाया और एक ही निशाने में कौवे को जान से मार दिया। कौवा कुछ ही दूर जाकर झाड़ियों में गिरा । लेकिन कौवा जहां गिर कर भरा था, उससे कुछ ही दूर पर एक बड़ी चट्टान की जड़ से पानी का एक सोता बह रहा था । प्यासे अरावी ने उस सोते का पानी जी भर कर पिया । परन्तु वहां से जाने से पहले वह अपनी गठरी लेने के लिए पुन: उस स्थान पर आया, जहां वह बेहोशी की हालत में पड़ा था। अब उसकी प्यास बुझ चुकी थी इसलिए उसका मन शांत गया था । गठरी उठाते-उठाते उसकी नजर एकाएक उस चट्टान के ऊपर उस दरार पर पड़ी, जहां से पानी की बूंदें टपक रही थीं। ऊपर उसने जो दृश्य देखा, उसे देखता ही रह गया । चट्टान के ऊपर एक जहरीला सांप सो रहा था और उसके मुंह से विष की एक-एक बूंद टपक रही थी। उसने आह भरते हुए कहा, 'ओह ! मैंने करीब-करीब विष पी ही लिया होता । परन्तु उस बेचारे ने मेरी जान बचा ली। उसका बड़ा आभार मानता हूं।' इतना कहते-कहते उसकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगी ।" "बेचारा कौवा ! अपनी जान देकर उसने दूसरे को जीवनदान दिया था।" एकतर खान ने आह भरते हुए चिड़ियों की परी से कहा । "आपने फिर आह भर दी ! अच्छा, अब मैं चली ।” इतना कहकर वह विचित्र चिड़िया तीसरी बार उत्तर की ओर उड़ गई ।

"मैं हारा ! सचमुच इस अजीब-सी चिड़ियों की परी को पकड़कर बंदी बनाना आसान काम नहीं है ।" यह कहते हुए एकतर खान खाली हाथ अपने महल को लौट पड़ा ।

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07 Sep, 18:25


एक रात मैं अनमना सा एक बदनाम अड्डे पर बैठा था कि मेरा ध्यान एक काली चीज़ की ओर आकर्षित हुआ जो उस जगह के प्रमुख फर्नीचर रम या जिन के बड़े पीपे के ऊपर बैठा था। मैं कुछ पल टकटकी लगाकर देखता रहा और मुझे इस बात का अचरज हुआ कि उसे देखते ही मैं उसकी तरफ बढ़ा, मैंने उसे अपने हाथ से छुआ। वह एक काला बिल्ला था-बहुत बड़ा-उतना ही बड़ा जितना प्लूटो था। सिवाय एक चीज़ के वह हर तरह उससे मिलता था। प्लूटो के पूरे शरीर पर एक भी सफेद बाल नहीं था जबकि इसके बहुत बड़ा प्रायः पूरी छाती को ढकता एक सफेद धब्बा था।
मेरे छूते ही वह फौरन उठा, जोर से गुर्राने लगा। मेरे हाथ के साथ अपने को रगड़ने लगा, ऐसा लगा कि मेरे ध्यान देने से वह खुश था। यही वह जानवर था जिसकी मुझे तलाश थी। मैंने वहाँ के मालिक से उसे खरीदना चाहा; पर वह उसका नहीं था न ही वह उसके बारे में कुछ जानता था-उसने उसे पहले देखा भी नहीं था।
मैं उसे सहलाता रहा, और जब घर जाने को तैयार हुआ तो वह साथ चलने को तैयार था। मैंने उसे चलने दिया। बीच-बीच में मैं झुककर उसे थपथपा देता था। घर पहुँचते ही उसने घर को अपना लिया। पत्नी से भी फौरन दोस्ती हो गई।
जहाँ तक मेरा सवाल था, जल्दी ही मुझमें उसके प्रति नफरत जाग उठी। मैं जो उम्मीद कर रहा था, यह उससे बिल्कुल उल्टा था; पर-मैं नहीं जानता कि ऐसा कैसे और क्यों था-मेरे प्रति उसका प्यार मुझमें और ज्यादा खीझ और गुस्सा भर रहा था। धीरे-धीरे यह खीझ और गुस्सा नफरत की कड़वाहट में बदल गया। अपनी पहले की गई क्रूरता की याद और एक तरह की शर्म मुझे उसे शारीरिक कष्ट पहुँचाने से रोक रही थी, अतः मैं उसकी उपेक्षा करता था। कुछ हफ्तों तक न मैंने न उसे मारा, न उसके प्रति कोई हिंसा की, पर धीरे-धीरे-मुझे उससे इतनी नफरत हो गई कि मैं बता नहीं सकता, मैं उसकी घिनौनी उपस्थिति से ऐसे भागने लगा जैसे लोग प्लेग की हवा से भागते हैं।
उसे घर लाने के बाद वाली सुबह से मेरी उस जानवर के प्रति नफरत बढ़ गई। निस्सन्देह इसका कारण यह जानकारी थी कि उसकी भी प्लूटो की तरह एक आँख नहीं थी। इस कमी की वजह से मेरी पत्नी को उससे बहुत प्यार हो गया था क्योंकि उसमें जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूँ काफी मानवीयता थी जो कभी मेरी विशेषता हुआ करती थी और जिसके कारण मेरी खुशियाँ बहुत सारी और पवित्र हुआ करती थीं।
ऐसा लगता था कि इस बिल्ले के प्रति मेरी नफरत जितनी बढ़ रही थी, उतना ही बिल्ले का मेरे प्रति प्यार बढ़ रहा था। पाठकों को समझाना मुश्किल है कि वह किस ज़िद से मेरे कदमों का पीछा करता था। जब भी मैं बैठता था वह मेरी कुर्सी के नीचे बैठ जाता था या फिर मेरे घुटनों पर चढ़कर अपने घृण्य प्यार से मुझे भर देता। अगर मैं चलने के लिए खड़ा होता तो वह मेरे पैरों के बीच में आकर मुझे प्रायः गिरा देता था या मेरे कपड़ों में अपने तेज़ लम्बे पंजे नाखून गड़ाकर मेरी छाती तक चढ़ जाता था। ऐसे समय मेरा मन करता था कि एक हाथ मारकर उसे खत्म कर दूँ। पर पहले पाप की याद से और एक बार मान ही लूँ-उस जानवर से डर के कारण मैं अपने को ऐसा करने से रोकता था।
यह डर शारीरिक अनिष्ट का डर नहीं था-पर मैं किसी और तरह इसे बता भी नहीं सकता। मुझे मानने में शर्म आती है-हाँ इस अपराधियों की कोठरी में भी मुझे मानने में शर्म आती है कि उस जानवर ने मेरे अन्दर जो डर और खौफ पैदा किया था वह सिर्फ एक झूठी कल्पना से इतना बढ़ गया था। मेरी पत्नी ने कई बार मेरा ध्यान उस बिल्ले के सफेद बालों वाले हिस्से की ओर खींचा। मैं उसकी बात पहले कर चुका हूँ कि जिस जानवर को मैंने मारा था उसमें और इसमें सिर्फ इतना ही फर्क दिखता था। पाठक को याद होगा कि पहले यह निशान बड़ा होते हुए किसी निश्चित आकार का नहीं था; पर धीरे-धीरे अनजाने ही वह एक स्पष्ट आकार लेता जा रहा था। बहुत समय से मेरा विवेक उसे कल्पना मानकर ठुकरा रहा था। वह एक ऐसा आकार ले रहा था कि जिसका नाम लेने से भी मैं काँप उठता हूँ। शायद इसीलिए मैं उससे डरने के साथ-साथ इतनी नफरत करता था कि अगर हिम्मत होती तो उस राक्षस से छुटकारा पा लेता-अब मैं कह सकता हूँ कि वह भयानक आकार, एक भद्दी छाया-फाँसी के फन्दे की थी! डर और पाप-दुःख और मृत्यु का भयानक हथियार थी!
अब मैं इन्सान के साधारण दुःख से परे, दुर्भाग्य से भर उठा था। एक क्रूर जानवर, जिसके साथी को मैंने नफरत से भरकर मार दिया था-वह मेरे लिए, उस आदमी के लिए जिसे भगवान के समकक्ष माना जाता है-असह्य दुःख जुटा रहा था! अफसोस! अब मेरे पास आराम का वरदान नहीं था! दिन में वह जानवर पल भर को भी मुझे अकेला नहीं छोड़ता था; और रात में मैं हर घण्टे में अनजाने डर से चौंककर उठ जाता था, उसकी गरम साँसें अपने चेहरे पर महसूस करता था। और उसका भारी वजन हर समय मेरी दिल पर वज़न डालता था। मुझमें उस साक्षात् बुरे स्वप्न को हटाने की ताकत नहीं थी।

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07 Sep, 18:25


ऐसी मानसिक यंत्रणा के दबाव के कारण, मुझमें जो थोड़ी बहुत अच्छाई बची थी, वह भी खत्म हो गई। बुरे से बुरे भयानक विचार मेरे एकमात्र साथी हो गए। मेरे स्वभाव में जो गुस्सा था वह बढ़कर सब चीज़ों और इन्सानों के प्रति नफरत में बदल गया। बहुत बार मैं अचानक गुस्से से बेकाबू हो जाता था पर मेरी पत्नी बिना शिकायत किए बिल्कुल स्वाभाविक ढंग से धैर्यपूर्वक सब सहती थी।
गरीबी से मजबूर होकर हम एक पुराने मकान में रह रहे थे। एक दिन घर के किसी काम से मेरी पत्नी मेरे साथ तहखाने में गई। सीढ़ियाँ बहुत सीधी थीं। बिल्ला मेरे पीछे से आया उसकी वजह से मैं सिर के भार गिरने वाला हो गया। मैं गुस्से से पागल हो उठा, और उस डर को भूल गया जिसकी वजह से मैंने अब तक उसे मारा नहीं था। मैंने एक कुल्हाड़ी उठाकर उस जानवर को निशाना बनाकर फेंकनी चाही। अगर वह निशाने पर गिरती तो वह निश्चित रूप से मर जाता, पर मेरी पत्नी ने अपने हाथ से मुझे बीच में ही रोक लिया। इस बाधा से मुझमें राक्षसी गुस्सा भर गया, मैंने उसकी पकड़ से अपना हाथ छुड़ाया और कुल्हाड़ी पत्नी के सिर पर दे मारी। वह बिना आवाज़ किए वहीं ढेर हो गई।
यह भयानक कत्ल करने के बाद मैं योजना बनाकर उसकी देह छिपाने के काम में लग गया। मैं जानता था कि दिन हो या रात, पड़ोसियों की नज़र में पड़े बगैर शरीर को घर से ले जाना सम्भव नहीं था। मेरे दिमाग में बहुत ख्याल आये।
एक बार यह भी सोचा कि शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके आग में डाल दूँ, तो दूसरी बार तहखाने की ज़मीन खोद कर दफनाने का विचार आया। फिर सोचा, आंगन मे बने कुँए में फेंक दूं-या किसी बक्से में बन्द करके मजदूर से उठवा दूँ। अन्त में मुझे एक सबसे अच्छा तरीका सूझा। मैंने तय किया कि तहखाने की दीवार मे चिन दूँ-जैसे मध्यकाल में संन्यासी अपने शिकार को दीवार में चिन देते थे।
इस काम के लिए तहखाने की दीवार ठीक थी। इसकी दीवारों पर हाल ही में पलस्तर किया गया था। सीलन की वजह से वह अभी पूरी तरह जम नहीं पाया था। इसके अलावा एक दीवार पर नकली चिमनी के कारण आगे को उभार था जो तहखाने की बाकी दीवारों से मिलाने के लिए किया गया था। मुझे इस बारे में कोई शक नहीं था कि वहाँ की ईंटें हटाना मुश्किल नहीं होगा। तय था कि लाश रखकर फिर से पहले जैसी चिनाई करने पर किसी को शक नहीं हो सकता था।
इस दृष्टि से मैंने धोखा नहीं खाया। एक कुदाल की मदद से आसानी से ईंट हटाई, फिर अन्दर की दीवार के सहारे लाश रखी, उसे खड़ा किया और बिना किसी कठिनाई के फिर से पहले जैसी दीवार चिन दी। पूरी सावधानी के साथ मसाला तैयार किया और पुराने पलस्तर से मिलता जुलता पलस्तर नई चिनाई पर भी कर दिया। काम खत्म करने पर मैं सन्तुष्ट था कि सब ठीक से हो गया। दीवार में कोई फर्क नहीं था। मैंने बड़े ध्यान से ज़मीन पर से सारा कूड़ा उठाया, सब तरफ एक विजेता की सी नजर डाली और अपने आप से कहा, "मेरी मेहनत बेकार नहीं गई।"
मेरा अगला काम उस जानवर को ढूँढ़ना था जिसके कारण यह कुकर्म हुआ, क्योकि मैंने तय कर लिया था कि उसे जान से मार दूंगा। अगर वह तभी मुझे मिल जाता तो उसकी यही किस्मत होती, पर लगा कि वह धूर्त जानवर मेरे पिछले गुस्से में की गई हिंसा से डर गया था, वह मेरी वर्तमान मनःस्थिति में मेरे सामने आना नही चाहता था। उस घृण्य जानवर के न होने से मेरे दिल में जो तसल्ली और खुशी थी उसकी कल्पना या वर्णन असम्भव था। वह रात को भी नहीं लौटा। उसके इस घर में आने के बाद से यह पहली रात थी जब मैं शान्ति से गहरी नींद सोया, हाँ मन पर हत्या का बोझ अवश्य था।
दूसरा और तीसरा दिन भी बीत गया। मुझे सतानेवाला नहीं आया। मैं फिर एक बार आज़ाद इन्सान की तरह साँस लेने लगा। वह शैतान डरकर हमेशा के लिए | भाग गया था। पर मुझे अपने कुकर्म की ग्लानि तंग कर रही थी। मैंने उस बिल्ले के बारे में कुछ खोज की, पर कुछ पता नहीं चला। अब मुझे भविष्य की खुशी सुरक्षित लग रही थी।
हत्या के चौथे दिन, बिना किसी आशंका के एक पुलिस दल आ गया। उन्होने बड़ी गहराई से घर में खोजबीन की। मैं लाश को छिपाने वाली जगह के बारे में पूरी तरह निश्चिंत होने के कारण बिल्कुल परेशान नहीं था। अफसरों ने खोज के समय मुझे अपने साथ रहने को कहा। उन्होंने कोई कोना बिना देखे नहीं छोड़ा। आखिर वे तीसरी या चौथी बार तहखाने में गए। मैं बिल्कुल नहीं घबराया, मेरा दिल सहज रूप से धड़कता रहा, जैसे मैं बिल्कुल निर्दोष और भोला था। मैं तहखाने के एक सिरे से दूसरे तक गया। मैंने बाँहें छाती पर मोड़ रखी थीं, और सहज ढंग से टहल रहा था। पुलिस वाले पूरी तरह सन्तुष्ट होकर लौटने को तैयार हुए। मेरे दिल की खुशी समा नहीं रही थी। मैं जीत का एक शब्द कहने को बेचैन था और साथ ही उन्हें अपने निर्दोष होने की पूरी तसल्ली करवा देना चाहता था।

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07 Sep, 18:25


पुलिसदल सीढ़ी पर चढ़ने लगा। आखिर मैंने कह ही दिया, “आप लोगों का शक दूर होने से मैं बहुत खुश हूँ। मैं आप सबके स्वास्थ्य की कामना करता हूँ। देखिए, यह-यह घर कितना अच्छा बना है। (मैं सहज दिखने के चक्कर में क्या कहूँ समझ नही पा रहा था) ये दीवारें-आप जा रहे हैं? ये दीवारें बड़ी मज़बूत बनी हैं' और अपनी बहादुरी दिखाते हुए मैंने अपने हाथ की छड़ी दीवार के उस हिस्से पर जोर जोर से मारी जिसके पीछे मेरे दिल की रानी, मेरी पत्नी की लाश थी।
पर भगवान् मुझे अत्याचारी के जहरीले दाँत से बचाए-मेरे वार की आवाज अभी शान्त भी नहीं हुई थी कि उस कब्र से आवाज़ आई-एक चीख, पहले दबी ओर टूटी सी जैसे कोई बच्चा सिसक रहा हो, और फिर ऊँची लम्बी चीख होती गई, पूरी तरह असाधरण और अमानवीय-एक गुर्राहट-एक ऐसी चीख जिसमें डर और जीत का भाव था, जो नरक से आ रही थी, और किसी अभिशप्त, दर्द से भरे गले से निकल रही थी।
मेरे विचारों के बारे में बात करना बेवकूफी है। मैं लड़खड़ाता हुआ, बेहोशी की-सी हालत में दूसरी तरफ की दीवार से लगकर खड़ा हो गया। पूरा पुलिस दल पलभर के लिए डर और ताज्जुब से पत्थर जैसा हो गया। दूसरे ही पल दर्जन भर मजबूत हाथ दीवार पर काम में लग गए। दीवार गिरा दी गई। देखने वालों के सामने बुरी तरह सड़ी, खून जमी लाश सीधी खड़ी थी। लाल मुँह लिए, आग से भरी एक आँख वाला वह जानवर उसके सिर पर बैठा था। उसी ने चालाकी से मुझे हत्या करने को उकसाया और उसी की आवाज़ ने मुझे जल्लाद तक पहुंचाया। मैंने अनजाने मे उस राक्षस को दीवार में चिन दिया था।

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07 Sep, 18:25


सुबह के साथ विवेक लौटा-रात की दुष्टता और गुस्से का आवेश सोकर हट चुका था-मुझे अपने किए पाप का डर और अफसोस था, लेकिन वह भावना कमज़ोर और सन्देहपूर्ण थी। मेरी आत्मा उससे अछूती रही। जल्दी ही मैं फिर वैसी ही हरकतें करने लगा। शराब ने उस कुकर्म की याद भी भुला दी।
इस बीच बिल्ला धीरे धीरे ठीक होता गया। यह सच है कि खोई हुई आँख का गड्डा एक डरावना दृश्य था, पर ऐसा नहीं लगता था कि अब उसे कोई दर्द महसूस होता होगा। वह पहले की तरह घर में घूमता था। पर जैसा कि स्वाभाविक था, वह मुझे देखते ही बहुत डरकर भागता था। मुझमें पुरानी भावनाएँ इतनी बची थीं कि पहले पहल अपने से प्यार करने वाले जानवर की साफ दिखती नापसन्दगी मुझे दुखी करती थी। पर धीरे-धीरे इसकी जगह चिढ़ ने ले ली। और फिर जैसे इस हार की वजह से मुझमें एक दुष्ट आत्मा आ गई। दर्शन इस बात को नहीं मानता पर मैं अपनी आत्मा के अस्तित्व की तरह इस बारे में भी विश्वास करता हूँ कि हर इन्सान के हृदय में दुष्टता की भावना होती है। वह एक ऐसी मूल भावना है जो मनुष्य के चरित्र को बनाती है। कितनी बार ऐसा नहीं होता कि एक व्यक्ति यह जानते हुए भी कि उसे वैसा नहीं करना चाहिए सैकड़ों बार एक घृण्य या बेवकूफी भरा काम करता है। क्या हम जानते हुए भी बार-बार कानून नहीं तोड़ते? मेरे विचार से मुझमें यह दुष्टता मेरी आखिरी हार के कारण आई। हरेक की आत्मा में बुरा काम करने की अथाह भावना होती है-वह गलत काम सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि गलत काम करना है-वह अपने स्वभाव से उल्टा काम करता है-उसी भावना ने मुझे उकसाया और मैं उस निर्दोष को चोट पहुँचाता रहा। एक दिन मैंने नृशंसता के साथ उसके गले में फंदा डालकर पेड़ की डाल से लटका दिया-मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे, मेरे दिल में बहुत अफसोस था-मैंने उसे टाँगा क्योंकि मैं जानता था कि वह मुझे प्यार करता था, क्योंकि मैं जानता था कि उसने मुझे ऐसा काम करने का कोई कारण नहीं दिया। उसे लटका दिया हालाँकि में जानता था कि ऐसा करके मैं पाप कर रहा हूँ-एक ऐसा भयानक पाप जो मेरी अमर आत्मा को परम दयालु ईश्वर और भयानक ईश्वर की अमर कृपा की पहुंच से दूर एक जोखिम में डाल देगा।
जिस रात मैंने यह क्रूर काम किया, उस रात ‘आग आग' की आवाज़ से नींद से जागा। मेरे बिस्तर के पर्दे लपटों में थे। पूरा घर जल रहा था। बड़ी मुश्किल से मैं अपनी पत्नी और नौकर के साथ उस अग्नि-दाह से बच पाया। सब कुछ नष्ट हो गया। मेरी सारी भौतिक सम्पत्ति ख़त्म हो गई थी। उसके बाद मैं निराशा में डूब गया। मैं उस क्रूरता ओर दुर्घटना के बीच कारण और परिणाम के क्रम को ढूँढ़ने की कमज़ोरी से ऊपर हूँ। पर मैं तथ्यों की श्रृंखला का विस्तार दे रहा हूँ। और एक भी कड़ी को अधूरा छोड़ने की इच्छा नहीं रखता। एक दीवार को छोड़कर सब दीवारें गिर गई थीं। ऐसा उस कमरे की दीवार के साथ हुआ जो बहुत मोटी भी नहीं थी और घर के बीच वाली थी। मेरे पलंग का सिरहाना उस दीवार की तरफ था। यहाँ का पलस्तर आग से काफी बच गया था-मेरा ख्याल. था कि ऐसा इसलिए हुआ होगा क्योंकि वह नई बनी थी। इस दीवार के पास बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई थी। बहुत से लोग एक हिस्से को बड़ी बारीकी और बेचैनी से देख रहे थे। “ताज्जुब है!" "सिर्फ यह!" ऐसे शब्द मेरी उत्सुकता को तीव्र कर रहे थे। जब मैं वहाँ गया तो देखा। सफेद दीवार पर एक बिल्ली का सा आकार खुदा था, वह काफी हद तक सही लग रहा था। उसकी गरदन के चारों तरफ रस्सी थी।
जब मैंने वह आकार देखा-क्योंकि इससे कम वह कुछ नहीं था-मेरा अचरज और डर बहुत अधिक था। पर बाद में एक विचार ने मेरी मदद की। मुझे याद आया कि मैंने वह बिल्ला घर के पास वाले बगीचे में लटकाया था। आग दीखने पर इस बगीचे में भीड़ भर गई थी। शायद किसी ने मुझे नींद से जगाने के लिए उस बिल्ले को पेड़ से उतार कर खिड़की से मेरे कमरे में फेंक दिया होगा। मेरी क्रूरता का शिकार बिल्ला उस नए लगे पलस्तर से चिपक गया होगा; मुझे जो आकार दिखाई दे रहा था वह शायद पलस्तर के चूने और आग तथा बिल्ले के शव से निकले एमोनिया के कारण होगा।
विवेक से मैंने यह सोच लिया, पर मेरी अन्तरात्मा ने इसे स्वीकार नहीं किया। मैंने जिन चौंका देने वाले तथ्यों का अभी ब्यौरा दिया है उन्होंने मेरी कल्पना पर गहरा असर डाला। महीनों तक मैं बिल्ले की कल्पना से छूट नहीं पाया; और इन दिनों मेरे मन में एक भाव आया जो अफसोस का लगते हुए भी नहीं था। मुझे उस जानवर को खोने का दुःख भी हुआ था। और मैं अपने आस पास, जिन घटिया जगहों पर जाने लगा था वहाँ उसी जाति का दूसरा जानवर ढूँढ़ता था जो दिखने में वैसा ही हो ताकि उसकी जगह ले सके।

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07 Sep, 18:25


काली बिल्ली/बिल्ला (कहानी) : एडगर एलन पो
The Black Cat (English Story in Hindi) : Edgar Allan Poe
मैं जो कहानी लिखने जा रहा हूँ वह भयानक होने के साथ ही भद्दी भी है। मैं उस पर विश्वास किए जाने की न उम्मीद करता हूँ, न विनती। मेरी अपनी आँखों ने जिसे देखकर अस्वीकार किया उस पर किसी और के विश्वास की उम्मीद करने का पागलपन मैं नहीं करूँगा। पर मैं पागल नहीं हूँ और न ही सपने देखता हूँ। कल मैं मरूँगा और आज अपनी आत्मा का बोझ उतारना चाहता हूँ। मैं सीधे-सादे, थोड़े से शब्दों में बिना अपनी तरफ से कुछ जोड़े सारी घटनाओं को दुनिया के सामने रखना चाहता हूँ। उन घटनाओं के फलस्वरूप मैं डरा-सताया गया और बरबाद हो गया। फिर भी मैं उनकी व्याख्या नहीं करूँगा मेरे लिए वे डरावनी हैं-पर और बहुत से लोगों को वे भयानक कम और अनोखी ज्यादा लगेंगी। अब शायद कुछ बुद्धिमान लोग इसे मेरा मामूली भ्रम कहें, कुछ दूसरे बौद्धिक जो अधिक शान्त और बुद्धिवादी हैं और मुझसे कम उत्तेजित होते हैं, उन परिस्थितियों को जिनका मैं वर्णन कर रहा हूँ, उन्हें कारण और परिणाम के सहज क्रम से ज्यादा कुछ नहीं मानेंगे।
बचपन से मुझे सीधा और संवेदनशील माना जाता था, यहाँ तक कि मेरी कोमलता के लिए मेरे साथी मेरा मज़ाक उड़ाते थे। मुझे जानवरों से ख़ास प्यार था और मेरे माता-पिता ने मेरी खशी के लिए बहुत तरह के पालतू जानवर ला दिए थे। मैं अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त उन्हीं के साथ बिताया करता था। उन्हें खिलाने और पुचकारने में बहुत खुश होता था। मेरी उम्र के साथ-साथ मेरे चरित्र की यह विचित्रता बढ़ती गई और पूरी तरह वयस्क होने पर यही मेरी खुशी का मुख्य आधार बन गयी। जिन लोगों को ईमानदार और होशियार कुत्ते से बेहद प्यार है उन्हें मुझे यह नहीं बताना पड़ेगा कि इस प्यार से कितना तीव्र सन्तोष मिलता है। इस जानवर के निस्वार्थ और आत्मबलिदानपूर्ण प्रेम में कुछ ऐसा होता है जो सीधा हृदय को छूता है और बहुत बार इन्सान की तुच्छ दोस्ती और कमज़ोर वफादारी का इम्तहान लेता है।
मैंने जल्दी शादी कर ली थी और खुश था कि मुझे ऐसी पत्नी मिली थी, जिससे मेरा स्वभाव उल्टा नहीं था। मेरा घरेलू जानवरों के प्रति प्रेम जानने के कारण वह घर में रखने लायक जानवर लाने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। हमारे यहाँ चिड़ियाँ, एक अच्छा कुत्ता, लाल मछली, खरगोश, एक छोटा बन्दर और एक बिल्ला था।
बिल्ला बिल्कुल काला, काफी बड़ा और सुन्दर था। वह आश्चर्यजनक रूप से चतुर था। मेरी पत्नी में अन्धविश्वास ज़रा भी नहीं था पर उसकी बुद्धिमानी की बात करते समय वह बहुत बार पुरानी मान्यता की ओर इशारा करती थी जिसके अनुसार काली बिल्ली बदले वेश वाली चुडैल मानी जाती थी। वह इस बात को गम्भीरता से लेती हो ऐसा नहीं था और मैं अभी इसकी ओर इशारा किसी खास वजह से नहीं करके इसलिए कर रहा हूँ कि इसे याद रखना है।
मेरा प्रिय पालतू और खेल का साथी प्लूटो जहाँ मैं जाऊँ, मेरे पीछे-पीछे जाता था। मैं मुश्किल से उसे अपने पीछे सड़कों पर आने से रोकता था।
हमारी ऐसी दोस्ती बहुत साल तक चली। पर धीरे-धीरे उग्रता के कारण मेरा स्वभाव बहुत बदलता चला गया (मुझे मानने में भी शरम आ रही है) हर दिन मैं ज्यादा चिड़चिड़ा, गुस्सैल और दूसरों की भावनाओं की तरफ से लापरवाह होता गया। मैं पत्नी से अनियंत्रित भाषा में बोलने लगा था। बाद में तो उस पर हाथ भी छोड़ने लगा था। मेरे पालतू जानवरों को भी मेरे स्वभाव के इस बदलाव को झेलना पड़ता था। मैं केवल उनकी उपेक्षा ही नहीं उनके साथ बुरा व्यवहार भी करने लगा था। फिर भी प्लूटो के प्रति अब भी मेरे मन में इतना प्यार था कि मैं उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं करता था, जबकि खरगोश, बन्दर या कुत्ते में से कोई गलती से या प्यार से मेरे रास्ते में आ जाए तो भी मैं उन्हें बहुत तंग करता था। मेरी बीमारी बढ़ती गई-क्योंकि शराब से बढ़कर क्या बीमारी हो सकती है? और अब प्लूटो को भी-जो अब बूढ़ा और चिड़चिड़ा होता जा रहा था-मेरी बददिमागी के असर को झेलना पड़ता था।
एक रात, शहर के एक अड्डे से नशे में चूर लौटने पर, मुझे लगा प्लूटो मेरे सामने नहीं आ रहा, मैंने उसे पकड़ा, मेरी हिंसा से डरकर उसने मेरे हाथ पर हल्का-सा दाँत गड़ा दिया। मुझ पर फौरन एक वहशी गुस्सा हावी हो गया। मैं अपने को पहचान नहीं पा रहा था। ऐसा लगा कि उस वक्त मेरी आत्मा शरीर छोड़कर उड़ गई थी; दुष्ट दुर्बुद्धि मेरे शरीर की एक-एक नस को अपने फंदे में बाँध रही थी। मैंने अपनी जैकेट की जेब से एक छोटा चाकू निकाला, बेचारे जानवर को गले से पकड़ा और जानबूझकर उसकी एक आँख बाहर निकाल ली! इस निष्ठुरता के बारे में लिखते हुए भी शर्मिन्दा हूँ, काँप उठता हूँ।

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07 Sep, 08:48


जब शेर जी उठा/मूर्ख वैज्ञानिक : पंचतंत्र की कहानी
Jab Sher Ji Utha : Panchtantra
एक नगर में चार मित्र रहते थे । उनमें से तीन बड़े वैज्ञानिक थे, किन्तु बुद्धिरहित थे; चौथा वैज्ञानिक नहीं था, किन्तु बुद्धिमान् था । चारों ने सोचा कि विद्या का लाभ तभी हो सकता है, यदि वे विदेशों में जाकर धन संग्रह करें । इसी विचार से वे विदेशयात्रा को चल पड़े ।

कुछ़ दूर जाकर उनमें से सब से बड़े ने कहा-"हम चारों विद्वानों में एक विद्या-शून्य है, वह केवल बुद्धिमान् है । धनोपार्जन के लिये और धनिकों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिये विद्या आवश्यक है । विद्या के चमत्कार से ही हम उन्हें प्रभावित कर सकते हैं । अतः हम अपने धन का कोई भी भाग इस विद्याहीन को नहीं देंगे । वह चाहे तो घर वापिस चला जाये ।"

दूसरे ने इस बात का समर्थन किया । किन्तु, तीसरे ने कहा- "यह बात उचित नहीं है । बचपन से ही हम एक दूसरे के सुख-दुःख के सहभागी रहे हैं । हम जो भी धन कमायेंगे, उसमें इसका हिस्सा रहेगा । अपने-पराये की गणना छो़टे दिल वालों का काम है । उदार-चरित व्यक्तियों के लिये सारा संसार ही अपना कुटुम्ब होता है । हमें उदारता दिखलानी चाहिये ।"

उसकी बात मानकर चारों आगे चल पडे़ । थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला । उसके अंग-प्रत्यंग बिखरे हुए थे । तीनों विद्याभिमानी युवकों ने कहा, "आओ, हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें । विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं ।" यह कह कर तीनों उसकी हड्डियां बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गये । एक ने अस्थिसंचय किया, दूसरे ने चर्म, मांस, रुधिर संयुक्त किया, तीसरे ने प्राणों के संचार की प्रक्रिया शुरु की । इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किन्तु बुद्धिमान् मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा - "जरा ठहरो । तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो । वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खाजायेगा ।"

वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया । तब वह बुद्धिमान् बोला - "यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखलाना ही है तो दिखलाओ । लेकिन एक क्षण ठहर जाओ, मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊँ ।" यह कहकर वह वृक्ष पर चढ़ गया ।

इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया । जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया । तीनों मारे गये ।

अतः शास्त्रों में कुशल होना ही पर्याप्त नहीं है । लोक-व्यवहार को समझने और लोकाचार के अनुकूल काम करने की बुद्धि भी होनी चाहिये । अन्यथा लोकाचार-हीन विद्वान् भी मूर्ख-पंडितों की तरह उपहास के पात्र बनते हैं ।

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07 Sep, 08:47


चिड़िया और बन्दर : पंचतंत्र की कहानी
Chidiya Aur Bandar : Panchtantra
एक जंगल में एक पेड़ पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन चार बंदरो ने उसी पेड़ के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला “कहीं से आग तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती हैं।”
दूसरे बंदर ने सुझाया “देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पड़ी हैं। इन्हें इकट्ठा कर हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।”
बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उड़ते एक जुगनू पर पड़ी और वह उछल पड़ा। उधर ही दौड़ता हुआ चिल्लाने लगा “देखो, हवा में चिंगारी उड़ रही हैं। इसे पकड़कर ढेर के नीचे रखकर फूंक मारने से आग सुलग जाएगी।”
“हां हां!” कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौड़ने लगे। पेड़ पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थे। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली ” बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू हैं।”
एक बंदर क्रोध से गौरैया की देखकर गुर्राया “मूर्ख चिड़िया, चुपचाप घोंसले में दुबकी रह।हमें सिखाने चली है।”
इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने।
गौरैया ने सलाह दी “भाइयो! आप लोग गलती कर रहे हैं। जुगनू से आग नहीं सुलगेगी। दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग सुलगाइए।”

बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी “भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकड़ियों को आपस में रगड़कर देखिए।”
सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढ़ा और उसने गौरैया पकड़कर जोर से पेड़ के तने पर मारा। गौरैया फड़फड़ाती हुई नीचे गिरी और मर गई।

सीख : १. बिना मांगे किसी को भी सलाह नहीं देनी चाहिए, खासकर मूर्ख व्यक्ति को तो बिलकुल भी नहीं।
२. मूर्खों को सीख या सलाह देने का कोई लाभ नहीं होता। उल्टे सीख देने वाले को ही पछताना पड़ता हैं।