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Hindi Motivational Stories (Hindi)

आपका स्वागत है हिंदी मोटिवेशनल स्टोरीज चैनल में! यहाँ आपको हर रोज़ उत्साही और प्रेरणादायक कहानियाँ मिलेंगी, जो आपकी जिंदगी में नई ऊर्जा और मोटिवेशन भरेगी। चैनल में हर दिन एक नयी कहानी शेयर की जाती है, जो आपको नए सोचने पर मजबूर करेगी और आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।nnइस चैनल में आपको विभिन्न विषयों पर कहानियाँ सुनने को मिलेगी, जैसे कि सफलता, उत्साह, संघर्ष, और असफलता से सिख। हर कहानी में छुपी एक सीख होती है जो आपको जीवन में सफलता की ओर ले जाती है।nnइस चैनल के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप हर दिन नयी प्रेरणादायक कहानी सुनकर अपने जीवन को बदले और सपनों की ओर अग्रसर हों। यह चैनल उन लोगों के लिए है जो अपने आप को और अधिक मजबूत बनाना चाहते हैं और उनके जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह लाना चाहते हैं।nnहाँलांकि, हम यहाँ केवल कहानियों के माध्यम से आपको प्रेरित करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आपको इन कहानियों से कुछ न न कुछ सिखने को जरूर मिलेगा। आपकी जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए, बस हमारे साथ जुड़ जाएं और रोज़ कहानियाँ सुने।

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06 Jan, 03:10


*!! अनुशासन के बिना विकास नहीं !!*
~~~

प्राचीन समय में एक नगर था। वहां एक मठ था। उस मठ में एक वरिष्ठ भिक्षु रहते थे। उनके पास अनेकों सिद्धियां थीं, जिसके चलते उनका सम्मान होता था। सम्मान बहुत बड़ी चीज होती है ये वो जानते थे। इसलिए उनकी महत्वाकांक्षा और कुछ न थी।

एक दिन दोपहर के समय वह अपने शिष्यों के साथ ध्यान कर रहे थे। अन्य भिक्षु शिष्य भूखे थे। तब वरिष्ठ भिक्षु ने कहा, 'क्या तुम भूखे हो?' वह भिक्षु बोला, 'यदि हम भूखे भी हों तो क्या?' मठ के नियम के अनुसार दोपहर में भोजन नहीं कर सकते हैं।

वरिष्ठ भिक्षु बोले, 'तुम चिंता मत करो मेरे पास कुछ फल हैं।' उन्होंने वह फल शिष्य भिक्षु को दे दिए। उसी मठ में एक अन्य भिक्षु थे वह मठ के नियमों को लेकर जागरुक रहते थे। वह एक सिद्ध पुरुष थे। लेकिन ये बात उनके सिवाय और कोई नहीं जानता था।

अगले दिन उन्होंने घोषणा की कि जिसने भी भूख के कारण मठ का नियम तोड़ा है। उसे मठ से निष्काषित किया जाता है। तब उन वरिष्ठ भिक्षु ने अपना चोंगा उतारा और हमेशा के लिए उस मठ से चले गए।

*शिक्षा:-*
अनुशासन के बिना सच्ची प्रगति संभव नहीं है। वरिष्ठ भिक्षु ने ऐसा ही किया। दरअसल यह याद रखना हमेशा जरूर है कि जीवन में जो सफलता या शक्ति हासिल हुई है, वह कठोर अनुशासन के फलस्वरूप ही मिलती है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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05 Jan, 03:51


संघर्ष की राह से सफलता तक
एक छोटे से गांव में अजय नाम का एक युवा रहता था। वह बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। उसके पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन उसके मन में कुछ बड़ा करने का सपना था।
अजय के गांव में बिजली की समस्या थी। लोग अंधेरे में रहते और किसी को भी इस समस्या का समाधान नहीं सूझता। अजय ने निश्चय किया कि वह गांव में बिजली लाने के लिए कुछ करेगा।
संघर्ष की शुरुआत
अजय के पास कोई संसाधन नहीं थे। उसने स्थानीय पुस्तकालय से किताबें उधार लीं और पढ़ाई शुरू कर दी। वह दिन में खेतों में काम करता और रात में पढ़ाई करता। कई बार उसे भूखे पेट सोना पड़ता, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
पहला कदम
एक दिन उसने गांव के बड़े तालाब पर एक छोटा सा पवन चक्की बनाने का विचार किया। उसने आसपास के गांवों से पुराने लोहा और लकड़ी इकट्ठा की। लोग उसे पागल समझते और उसका मजाक उड़ाते, लेकिन अजय ने किसी की बात की परवाह नहीं की।
सफलता की ओर
लगातार मेहनत और कई असफलताओं के बाद, आखिरकार अजय ने एक छोटी पवन चक्की तैयार कर ली। यह चक्की हवा की ऊर्जा से बिजली उत्पन्न करती थी। धीरे-धीरे उसने पूरे गांव में बिजली का वितरण करना शुरू कर दिया।
गांव का बदलाव
अजय की मेहनत से पूरा गांव रोशन हो गया। अब बच्चों को पढ़ने के लिए अंधेरे में संघर्ष नहीं करना पड़ता था। किसानों के पास अपने काम के लिए बिजली थी। गांव के लोग, जो कभी उसका मजाक उड़ाते थे, अब उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते।
शिक्षा:
अजय की कहानी हमें यह सिखाती है कि मेहनत, धैर्य, और दृढ़ संकल्प से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान किया जा सकता है। चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, अगर आपके इरादे मजबूत हैं, तो सफलता जरूर मिलेगी।
निष्कर्ष:
"हर सपना पूरा हो सकता है, बस उसे पूरा करने का हौसला होना चाहिए।"

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04 Jan, 01:38


बहादुर लड़की की कहानी
एक छोटे से गांव में राधा नाम की एक लड़की रहती थी। वह बचपन से ही बहुत समझदार और साहसी थी। गांव के लोग उसे प्यार करते थे, लेकिन कुछ लोग यह मानते थे कि लड़कियां कमजोर होती हैं और उन्हें घर के काम तक सीमित रहना चाहिए। राधा ने हमेशा इस सोच को चुनौती दी।
एक दिन गांव के पास के जंगल में एक बड़ा शेर आ गया। शेर ने गांव के मवेशियों पर हमला करना शुरू कर दिया। गांव वाले बहुत डर गए और किसी को समझ नहीं आ रहा था कि शेर से कैसे निपटा जाए।
राधा ने गांव वालों से कहा, "हमें डरने की बजाय इस समस्या का सामना करना चाहिए। मैं शेर को भगाने का तरीका सोचूंगी।" गांव वाले उसकी बात सुनकर चौंक गए। उन्होंने उसे मना किया, लेकिन राधा ने ठान लिया।
उसने अपनी मां से पुरानी चादर मांगी और उसे शेर जैसी आकृति में काटकर पहन लिया। फिर उसने जंगल में जाकर आग जलाकर आवाजें निकालनी शुरू कीं, जिससे शेर को लगे कि कोई और बड़ा जानवर वहां है।
शेर ने आवाजें सुनीं और डरकर जंगल के अंदर भाग गया। राधा की बहादुरी और चतुराई से गांव वाले सुरक्षित हो गए।
गांव वालों ने राधा की तारीफ की और समझा कि लड़कियां न केवल घर की जिम्मेदारी निभा सकती हैं, बल्कि मुश्किल हालात में भी मजबूत होकर खड़ी हो सकती हैं।
शिक्षा:
हिम्मत और चतुराई किसी की पहचान नहीं देखती। चाहे लड़का हो या लड़की, हर किसी में दुनिया को बदलने की ताकत होती है।

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04 Jan, 01:35


सच्ची मेहनत का फल
एक छोटे से गांव में रमेश नाम का एक गरीब किसान रहता था। उसके पास सिर्फ एक छोटा सा खेत था, जिसमें वह मेहनत करता था, लेकिन फसल बहुत कम होती थी। उसकी गरीबी के कारण लोग उसका मजाक उड़ाते थे।
एक दिन, उसने अपने दादा से सुना कि पास के जंगल में एक जादुई कुआं है। यह कुआं केवल उन लोगों की मदद करता है, जो सच्ची मेहनत और ईमानदारी से काम करते हैं। रमेश ने सोचा कि उसे इस कुएं को ढूंढना चाहिए।
वह जंगल में गया और कई दिनों तक खोजने के बाद उसे वह कुआं मिला। कुएं के पास एक पत्थर पर लिखा था, "अपनी मेहनत का प्रमाण दो, तब ही तुम्हें इसका फल मिलेगा।"
रमेश ने सोचा कि उसे क्या करना चाहिए। उसने वहीं खेत बनाया और हर दिन उसमें मेहनत से काम किया। सूरज की गर्मी, ठंडी रातें और भूख, उसने सब सहा।
एक दिन, जब उसने खेत में एक पौधा उगते देखा, तो कुएं से आवाज आई, "तुमने अपनी मेहनत से साबित कर दिया कि तुम इसके हकदार हो। अब यह खेत तुम्हें भरपूर फसल देगा।"
आगे से, रमेश के खेत में इतनी फसल होती थी कि वह न केवल अपने परिवार को पाल सका, बल्कि पूरे गांव की मदद भी करता था। जो लोग उसका मजाक उड़ाते थे, वे अब उसकी इज्जत करते थे।
शिक्षा:
सच्ची मेहनत और ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है। मुश्किलें चाहे कितनी भी हों, अगर हम डटे रहें, तो सफलता जरूर मिलती है।

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04 Jan, 01:35


Suprabhat❤️

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17 Dec, 10:36


*!! टीनू और चिड़िया के घोंसले !!*
~~~~~~

एक समय की बात है, टीनू नाम की लड़की थी जो स्कूल में दिए गए कार्यों में बड़ी रुचि रखती थी। इस साल टीनू के स्कूल में गर्मी की छुट्टियां पड़ने से पहले उसकी टीचर ने सभी को विभिन्न पक्षियों के चित्र दिखाकर चिड़िया पर निबंध लिखने के लिए कहा था। सभी बच्चों को स्कूल खुलते ही निबंध टीचर को दिखाना था।

पक्षियों की रंग-बिरंगी किताब टीनू को बहुत पसंद थी। जब टीचर ने बताया कि उन पर निबंध लिखना है और सबसे अच्छा लिखने वाले को इनाम में वह किताब मिलेगी, तो टीनू खुश हो गई। टीचर ने सभी पक्षियों से जुड़ी कुछ कहानियाँ भी बच्चों को सुनाई। उसके बाद स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ गईं।

यूँ तो टीनू हर साल अपनी गर्मी की छुट्टियाँ बिताने के लिए कहीं-न-कही जाती थी। लेकिन इस साल की छुट्टियों में टीनू रोज़ पास के ही बगीचे में जाकर पक्षियों और उनके घोंसले देखने लगी। उस बगीचे में गोरैया, दर्जिन, लवा जैसे बहुत-से पक्षी आते थे। टीनू बगीचे में आने वाली हर चिड़िया को पहचानने की कोशिश करती और उन्हें ग़ौर से देखती रहती।

टीनू देखती थी कि हर चिड़िया एक-एक घास, पत्ती, पंख, आदि को जोड़कर कैसे अपना घोंसला बना रही है। उसके मन में होता था कि चिड़िया को घोंसला बनाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। टीनू चाहती थी कि वो किसी तरह से उन पक्षियों की मदद करें।

एक दिन टीनू ने देखा कि पास के बगीचे में बदमाश लड़कों ने लवा चिड़ियों का घोंसला तोड़ दिया है। टीनू को यह देखकर बहुत दुख हुआ। उसने सोचा कि क्यों न मैं इनके लिए खुद एक-दो घोंसले बना दूँ। शायद ये इसका इस्तेमाल कर लेंगीं।

टीनू को लगा कि वो कुछ ही देर में घोंसला बनाकर तैयार कर देगी। लेकिन टीनू पूरा दिन तिनकों और दूसरी चीज़ों से चिड़िया का घोंसला बुनती रही। बड़ी मुश्किल से जब घोंसला तैयार हुआ, तो घोंसले को पेड़ पर टिकाने के लिए कुछ मिला नहीं।

टीनू की माँ यह सब देख रही थी। तभी टीनू ने माँ को बताया, “देखिए न, मैंने चिड़िया के लिए एक घोंसला बनाया है। मगर यह उतना सुंदर नहीं है, जितना चिड़िया बनाती हैं। मैंने सोचा था आसानी से एक सुंदर घोंसला बन जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह घोंसला अंदर से काफी कठोर बन गया है। क्या आप इसे मुलायम बना देंगी?”

किसी तरह से टीनू की माँ ने उस घोंसले को थोड़ा ठीक किया। उसके बाद टीनू ने उस घोंसले को धागे की मदद से पेड़ पर टिका दिया।

अब बगीचे में बैठकर टीनू लवा पक्षी के आने का इंतज़ार करने लगी। वो पक्षी बगीचे में आए तो, लेकिन टीनू द्वारा बनाया गया घोंसला उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया। टीनू के साथ उसकी माँ भी बगीचे में आई थी, उसने टीनू को उदास देखकर कहा, “तुम परेशान मत होना, अभी चिड़िया घोंसले पर आ जाएगी।”

तभी एक लवा पक्षी ने आकर टीनू द्वारा बनाए गए घोंसले को तोड़ दिया। अब टीनू ने मुँह लटका लिया। तब उसे उसकी माँ ने समझाया कि तुम्हें दुःखी नहीं होना चाहिए। देखो, तुम्हारे द्वारा इस्तेमाल की गई चीजों से ही लवा पक्षी अपने लिए घोंसला बना रहे हैं। हो सकता है कि इन्हें दूसरों का बनाया हुआ घोंसला पसंद नहीं आता हो। दुःखी मन से टीनू ने कहा, “माँ मैं अपने स्कूल के निबंध में यह सब कुछ लिखूंगी।”

कुछ देर बाद टीनू ने कहा, “माँ आपने देखा कि लवा पक्षी अपना घर झाड़ियों में बना रहे हैं।” जवाब में टीनू की माँ बोली, “हाँ बेटा, मैंने सुना था कि लवा पक्षी अपना घोंसला किसी के घर के रोशनदान या पेड़ पर ही बनाते हैं। आज यह नई बात पता चली है।”

कुछ और दिनों बाद टीनू ने लवा पक्षियों के बारे में एक और बात जानी कि वो सीधे उड़कर अपने घोंसले में नहीं जाते। घोंसले से कुछ दूर ठहरकर इधर-उधर कूदते हुए वो अपने घोंसले तक पहुँचते हैं, ताकि किसी को उनके घोंसले का पता न चले।

थोड़े ही दिनों में स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म हो गईं। टीनू ने स्कूल जाकर लवा पक्षी के बारे में लिखा और निबंध प्रतियोगिता जीत ली। ईनाम में मनपसंद चिड़ियों वाली किताब मिलने पर टीनू खुश हो गई।

प्रतियोगिता जीतने के बाद भी टीनू रोज़ चिड़ियों की चहचहाहट सुनने के लिए उस बगीचे में जाकर घंटों बैठती है। मानो उसकी चिड़ियों के साथ दोस्ती हो गई हो।

*शिक्षा:-*
उपर्युक्त प्रसंग से यह सीख मिलती है कि छोटी-छोटी बात पर मन दुःखी नहीं करना चाहिए। साथ ही आसपास की चीज़ों पर ग़ौर करने से हमें काफ़ी कुछ नया जानने को मिलता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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27 Nov, 14:48


*!! कड़वा वचन !!*
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सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना छोड़ देते।

किंतु, यह सब कब तक चलता। वे पुन: उनसे बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया, लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव में तनिक भी फर्क नहीं आया।

अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले- “महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।” तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा- “सेठ जी ! को मेरे पास भेज देना।”

“ठीक है, महाराज” कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज के पास ले जाना चाहा। किंतु, सेठ जी साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे।

साधु को देखकर सेठ जी की प्योरिया चढ़ गयी। परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे।

साधु महाराज सेठ जी से बोले- “सेठ जी ! मैं हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया हूं, जरा पीकर देखिये।” पहले तो सेठ जी ने आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर भी मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से चाटा।

ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से बोले- “यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है यह ?”

“अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या होता है” साधु महाराज ने कहा। “यह तो हर कोई जानता है” कहते समय सेठ ने रहस्यमई दृष्टि से साधु की ओर देखा।

“नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोई जानता होता तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द अपने मुंह से नहीं निकालता। सेठ जी वह एक पल को रुके फिर बोले। सेठ जी याद रखिये जो आदमी कटु वचन बोलता है वह दूसरों को दुख पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता है।”

सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है उन्हें ही लक्षित करके कहा है। वह फौरन साधु के पैरों में गिर पड़े- “बोले साधु महाराज ! आपने मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।”

सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने साधु से पूछा- “किंतु, महाराज! यह पदार्थ जो आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या है?”

साधु मुस्कुराकर बोले- “नीम के पत्तों का अर्क।” “क्या” सेठ जी के मुंह से निकला और फिर वे धीरे-से मुस्कुरा दिये।

*शिक्षा:-*
मित्रों! कड़वा वचन बोलने से बढ़कर इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। किसी द्रव्य के कड़वे होने से जीभ का स्वाद कुछ ही देर के लिए कड़वा होता है। परंतु कड़वे वचन से तो मन और आत्मा को चोट लगती है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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26 Nov, 12:19


Aap apna opinion diya karo... Like and dislike

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26 Nov, 12:19


Ab roj ek story post...

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26 Nov, 12:18


Kuch dino se story post nhi ho pa ri

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26 Nov, 12:18


Sorry

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26 Nov, 12:18


*!! एक छोटी सी अच्छी आदत !!*
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पुराने समय में दो दोस्त थे। बचपन में दोनों साथ पढ़ते और खेलते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों दोस्त अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए। एक दोस्त ने खूब मेहनत की और बहुत पैसा कमा लिया। जबकि दूसरा दोस्त बहुत आलसी था। वह कुछ भी काम नहीं करता था। उसका जीवन ऐसे ही गरीबी में कट रहा था। एक दिन अमीर व्यक्ति अपने बचपन के दोस्त से मिलने गया। अमीर व्यक्ति ने देखा की उसके दोस्त की हालत बहुत खराब है, उसका घर भी बहुत गंदा था।

गरीब दोस्त ने बैठने के लिए जो कुर्सी दी, उस पर धूल थी। अमीर व्यक्ति ने कहा कि तुम अपना घर इतना गंदा क्यों रखते हो? गरीब ने जवाब दिया कि घर साफ करने से कोई लाभ नहीं है, कुछ दिनों में ये फिर से गंदा हो जाता है। अमीर ने उसे बहुत समझाया कि घर को साफ रखना चाहिए, लेकिन वह नहीं माना। जाते समय अमीर व्यक्ति ने गरीब दोस्त को एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता उपहार में दिया। गरीब ने वह गुलदस्ता अलमारी के ऊपर रख दिया। इसके बाद जब भी कोई व्यक्ति उस गरीब के घर आता तो उसे सुंदर गुलदस्ता दिखता, वे कहते कि गुलदस्ता तो बहुत सुंदर है, लेकिन घर इतना गंदा है।

बार-बार एक ही बात सुनकर गरीब ने सोचा कि ये अलमारी साफ कर देता हूं, उसने अलमारी साफ कर दी। अब उसके घर आने वाले लोगों ने कहा कि गुलदस्ता बहुत सुंदर, अलमारी भी साफ है, लेकिन पूरा घर गंदा है। ये बातें सुनकर गरीब व्यक्ति ने अलमारी के साथ वाली दीवार साफ कर दी। अब जो भी लोग उसके घर आते सभी उसी कोने में बैठना पसंद करते थे, क्योंकि वहां साफ-सफाई थी। गरीब व्यक्ति ने एक दिन गुस्से में पूरा घर साफ कर दिया और दीवारों की पुताई भी करवा दी। धीरे-धीरे उसकी सोच बदलने लगी और उसने काम करना शुरू कर दिया।

*शिक्षा:-*
हमारी एक छोटी सी अच्छी आदत हमारी सोच बदल सकती है, जिससे हमारा जीवन बदल सकता है। अच्छी आदतों से बड़ी-बड़ी बाधाएं भी दूर की जा सकती हैं।

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19 Nov, 05:25


*!! नेक कर्म !!*
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एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया.

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए.

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा.

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब में फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा.

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया और आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नहीं कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में ले जाकर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

*शिक्षा*
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए.

अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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28 Oct, 10:17


*🌷!! सच्चा न्याय !!🌷*

एक बार एक राजा शिकार खेलने गया। उसका तीर लगने से जंगलवासियों में से किसी का बच्चा मर गया। बच्चे की माँ विधवा थी और यह बच्चा उसका एकमात्र सहारा था। विधवा न्यायधीश के पास पहुंची। रोती-पीटती विधवा न्यायधीश के पास पहुंची और उससे फरियाद की। जब न्यायधीश को पता चला कि बालक राजा के तीर से मरा है, तो उनको समझ में नहीं आया कि वह इंसाफ कैसे करें। अगर उसने विधवा के हक में फैसला दिया तो राजा को सजा सुनानी होगी। यदि विधवा के साथ अन्याय किया, तो ईश्वर को क्या जवाब देगा।
काफी सोच विचार कर वह फरियाद सुनने को राजी हुआ। उसने विधवा को दूसरे दिन अदालत में बुलवाया। विधवा की फरियाद सुनने के पश्चात राजा को भी अदालत में बुलवाना आवश्यक था। वह राजा के पास यह सूचना किसी दूत से भेज सकता था। उसने अपने एक सहायक को राजा के पास भेजा की वह अदालत में हाजिर हो।
सहायक किसी प्रकार हिम्मत करके न्यायधीश का संदेश राजा को सुनाने पहुंचा। वह हाथ जोड़कर राजा के समक्ष उपस्थित हुआ तथा न्यायधीश का संदेश सुनाया। राजा ने कहा कि वह दूसरे दिन अदालत में अवश्य हाजिर होगा।
दूसरे दिन सुबह राजा न्यायधीश की अदालत में हाजिर हुआ। वह जाते समय कुछ सोचकर अपने वस्त्रों के नीचे तलवार छिपाकर ले गया।
न्यायधीश की अदालत भीड़ से खचा-खच भरी हुई थी। इस फैसले को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आये थे। राजा अदालत में आया तो प्रत्येक व्यक्ति उसके सम्मान में खड़ा हो गया। लेकिन न्यायधीश अपने स्थान पर बैठा रहा वह खड़ा नहीं हुआ। उसने विधवा को आवाज लगायी तो वह अंदर आयी। न्यायधीश ने उससे फरियाद करने को कहा। विधवा ने सबके सामने अपने बेटे के मरने की कहानी कह सुनायी।
अब न्यायधीश ने राजा से कहा- “महाराज! इस विधवा का बेटा आपके तीर से मारा गया है। आप पर उसको मारने का आरोप है। इस विधवा की यह हानि किसी भी स्थिति में पूरी नहीं हो सकती। मैं आदेश देता हूं कि किसी भी हालत में इसका नुकसान पूरा करें।
राजा ने उस विधवा से क्षमा मांगी और कहा- “मैं तुम्हारे इस नुकसान को पूरा नहीं कर सकता; किंतु इसकी भरपाई के लिए मैं पूरी उम्र तुम्हारा सारा खर्च उठाने तथा तुम्हारी सेवा करने का वचन देता हूं, जिसे तुम्हारी जिंदगी सुख-चैन से कट सके।”
विधवा राजी हो गयी। न्यायधीश अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ तथा उसने अपनी जगह राजा के लिए खाली कर दी।
राजा बोला- “न्यायधीश जी! अगर आप ने फैसला करने में मेरा सम्मान नहीं किया होता तो मैं तलवार से आपकी गर्दन काट देता। कहकर उसने अपने वस्त्रों में छिपी तलवार बाहर निकालकर सब को दिखाई।”
न्यायाधीश सिर झुकाकर बोला- “महाराज! अगर आप ने मेरा आदेश मानने में जरा भी टाल-मटोल की होती तो मैं हंटर से आप की खाल उधड़वा देता।” इतना कहकर उसने भी अपने वस्त्रों के अंदर से एक चमड़े का हंटर निकालकर सामने रख दिया।
राजा न्यायधीश की बात से बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने उसे अपनी बाहों में भर लिया।


*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
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28 Oct, 01:13


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06 Oct, 05:05


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06 Oct, 05:04


गंगा नदी के तट पर कुछ तपस्वियों का आश्रम था जहाँ याज्ञवल्क्य नाम के ऋषि रहते थे. एक दिन वो नदी के किनारे आचमन कर रहे थे. उसी वक़्त आकाश में एक बाज अपने पंजे में एक चुहिया को दबाये जा रहा था जो उसकी पकड़ से छूटकर ऋषि की पानी से भरी हथेली में आ गिरी. ऋषि ने उसे एक पीपल के पत्ते पर रखा और दोबारा नदी में स्नान किया. चुहिया अभी मरी नहीं थी इसलिए ऋषि ने अपने तप से उसे एक कन्या बना दिया और आश्रम में ले आये. अपनी पत्नी से कहा इसे अपनी बेटी ही समझकर पालना. दोनों निसंतान थे इसलिए उनकी पत्‍नी ने कन्या का पालन बड़े प्रेम से किया. कन्या उनके आश्रम में पलते हुए बारह साल की हो गयी तो उनकी पत्‍नी ने ऋषि से उसके विवाह के लिए कहा.

ऋषि ने कहा में अभी सूर्य को बुलाता हूँ. यदि यह हाँ कहे तो उसके साथ इसका विवाह कर देंगे ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह अग्नि जैसा गरम है. कोई इससे अच्छा वर बुलाइये.”

तब सूर्य ने कहा बादल मुझ से अच्छे हैं, जो मुझे ढक लेते हैं. बादलों को बुलाकर ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह बहुत काले हैं कोई और वर ढूँढिए.”

फिर बादलों ने कहा “वायु हमसे भी वेगवती है जो हमें उड़ाकर ले जाती है."

तब ऋषि ने वायु को बुलाया और कन्या की राय माँगी तो उसने कहा “पिताजी यह तो बड़ी चंचल है. किसी और वर को बुलाइए."

इस पर वायु बोली “पर्वत मुझसे अच्छा है, जो तेज़ हवाओं में भी स्थिर रहता है.”

अब ऋषि ने पर्वत को बुलाया और कन्या से पूछा. कन्या ने उत्तर दिया “पिताजी, ये बड़ा कठोर और गंभीर है, कोई और अच्छा वर ढूँढिए न.”

इस पर पर्वत ने कहा “चूहा मुझसे अच्छा है, जो मुझमें छेद कर अपना बिल बना लेता है.”

ऋषि ने तब चूहे को बुलाया और बेटी से कहा “पुत्री यह मूषकराज क्या तुम्हें स्वीकार हैं?”

कन्या ने चूहे को देखा और देखते ही वो उसे बेहद पसंद आ गया. उस पर मोहित होते हुए वो बोली “आप मुझे चुहिया बनाकर इन मूषकराज को सौंप दीजिये.”

ऋषि ने तथास्तु कह कर उसे फिर चुहिया बना दिया और मूषकराज से उसका स्वयंवर करा दिया.

*शिक्षा:-*
जन्म से जिसका जैसा स्वभाव होता है वह कभी नहीं बदल सकता.

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02 Oct, 09:15


एक गाँव था, उस गाँव के रास्ते में बहुत घना जंगल था. जंगल घना होने के कारण तरह तरह के पशु-पक्षी जंगल में रहते थे. एक शेर भी रहता था. शेर कभी-कभी गाँव में घुसकर काफी तहलका मचाता था. इसी वजह से गाँव वाले जंगल के रास्ते में एक पिंजड़ा रख दिए थे. रात हुई सभी अपने-अपने घरों के अन्दर हो गये. गाँव शांत हो गयी. तभी शेर उसी रास्ते से गाँव की ओर जा रहा था. रास्ते में लगा पिंजड़ा में उसका पैर फंसा और भारी शरीर होने के कारण शेर पिंजड़े में बंद हो गया. अब वह उस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका था. काफी कोशिश करने के बावजूद भी वह वहाँ से नहीं निकल पाया. पूरी रात शेर पिंजड़े में ही कैद रहा.

सुबह हुई कुछ समय बाद उसी रास्ते से गाँव में एक व्यक्ति जा रहा था. तभी शेर बोला - "ओ भाई! ओ भाई!" वह व्यक्ति शेर को पिंजड़े में देखकर डर गया. शेर को काफी तेज़ की भूख लगी थी.

शेर ने उस व्यक्ति से कहा - "मेरी सहायता करो. मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है. कृपया कुछ पानी पिला दो."

व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो, अगर मुझे ही अपना शिकार बना लिए तो!" शेर बोला - "नही भाई! मैं ऐसा नहीं करूंगा."

शेर की लाचारी देखकर उस व्यक्ति को शेर पर दया आ गयी और वह बगल के तालाब से पानी ले आया और शेर को पानी पिलाया. शेर पानी पी लिया उसके बाद फिर से उस व्यक्ति को बोला - "प्यास तो बुझ गयी अब पूरी रात से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो न." उस व्यक्ति ने शेर के भोजन की व्यवस्था में जुट गया और कहीं कहीं से उसका भोजन ले आया. शेर भोजन भी किया.

शेर ने फिर से आवाज लगायी - "ओ भले इन्सान! मैं इस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका हूँ. कृपा करके इस पिंजड़े से मुझे आजाद करा दो." वह व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी और सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो. पिंजड़े के बाहर आते ही तु अपनी रूप में आ जाएगा.

शेर बोला - "मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा."

वह व्यक्ति उसकी बात मान कर पिंजड़ा का दरवाजा खोल दिया और शेर बाहर आ गया. शेर बहार आते ही पहले चैन की साँस ली और बोला मेरी अभी तक भूख मिटी नहीं है और भोजन भी सामने है. सो भोजन तलाशने का भी जरुरत नही है. अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ.

इतना सुन वह व्यक्ति डर से काँपने लगा और बोला - "तुम बेईमानी नहीं कर सकते. तुमने पहले ही बोला था की मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा और तुम्हारे परिवार कोb भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो."

शेर बोला - मैं प्राणी ही उसी तरह का हूँ. मुझे बहुत जोर से भूख लगी है तो अब कुछ नहीं. संयोग से ये सब घटना पास के एक पेड़ पर बैठे बन्दर देख रहा था. शेर और उस व्यक्ति में बहस चल ही रही थी तभी बीच में से बन्दर बोल पड़ा - "क्या बात है! क्या बहस हो रही है? उस व्यक्ति ने बन्दर को सारी बात बताई। बन्दर बोला - अच्छा! तो ये बात है. वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजड़े में कैसे आ सकता है? नहीं ! नहीं ! ये हो ही नहीं सकता!"

शेर को अपनी बेइज्जती होते देख रहा नहीं गया और शेर बोला - "ये पंडित ठीक कह रहा है, मैं इस पिंजड़े में पूरी रात कैद था." बन्दर बोला - "मैं कैसे यकीन करूं?"

शेर बोला - "मैं अभी दिखा देता हूँ, इस पिंजड़े में फिर से जा कर." और इतना कह शेर फिर से उस पिंजड़े में चला जाता है और पिंजड़ा का दरवाजा बंद हो जाता है और उसके बाद शेर बोला - "देखो मैं इसी तरह पिंजड़े में था."

बन्दर उस व्यक्ति से बोला - "अब देख क्या रहे हो तुरंत अपनी जान बचा कर भाग लो!" और पंडित वहाँ से भाग जाता है. शेर फिर से पिंजड़े में कैद हो जाता है.

*शिक्षा:-*
दोस्तों! कभी भी किसी की मदद करें तो सोच समझ कर करें. विश्वास उसी पर करें जो सचमुच में विश्वास करने लायक हो. बहुत से लोग सच बोलने का दिखावा करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन पर पहली बार भरोसा कर लेते हैं. ऐसे दुष्ट लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.

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25 Sep, 09:10


*!! वास्तविक मूल्य !!*
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बहुत समय पहले की बात है। किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। उसके दो बेटे थे। बूढ़ा वस्तुओं के उपयोग के मामले में कंजूस था और उन्हें बचा-बचा कर उपयोग किया करता था।

उसके पास एक पुराना चांदी का पात्र था। वह उसकी सबसे मूल्यवान वस्तु थी। उसने उसे संभालकर संदूक में बंद कर रखता था। उसने सोच रखा था कि सही अवसर आने पर ही उसका उपयोग करेगा।

एक दिन उसके यहाँ एक संत आये। जब उन्हें भोजन परोसा जाने लगा, तो एक क्षण को बूढ़े व्यक्ति के मन में विचार आया कि क्यों न संत को चांदी के पात्र में भोजन परोसूं? किंतु अगले ही क्षण उसने सोचा कि मेरा चांदी का पात्र बहुत कीमती है। गाँव-गाँव भटकने वाले इस संत के लिए उसे क्या निकालना? जब कोई राजसी व्यक्ति मेरे घर पधारेगा, तब यह पात्र निकालूंगा। यह सोचकर उसने पात्र नहीं निकाला।

कुछ दिनों बाद उसके घर राजा का मंत्री भोजन करने आया। उस समय भी बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि चांदी का पात्र निकाल लूं। किंतु फिर उसे लगा कि ये तो राजा का मंत्री है। जब राजा स्वयं मेरे घर भोजन करने पधारेंगे, तब अपना कीमती पात्र निकालूंगा।

कुछ दिनों के बाद स्वयं राजा उसके घर भोजन के लिए पधारे। राजा उसी समय पड़ोसी राज्य से युद्ध हार गए थे और उनके राज्य के कुछ हिस्से पर पड़ोसी राजा ने कब्जा कर लिया था। भोजन परोसते समय बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि अभी-अभी हुई पराजय से राजा का गौरव कम हो गया है। मेरे पात्र में किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन करना चाहिए। इसलिए उसने चांदी का पात्र नहीं निकाला।

इस तरह उसका पात्र बिना उपयोग के पड़ा रहा। एक दिन बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई।

उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे ने उसका संदूक खोला। उसमें उसे काला पड़ चुका चांदी का पात्र मिला। उसने वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया और पूछा, “इसका क्या करें?”

पत्नी ने काले पड़ चुके पात्र को देखा और मुँह बनाते हुए बोली, “अरे इसका क्या करना है। कितना गंदा पात्र है। इसे कुत्ते को भोजन देने के लिए निकाल लो।”

उस दिन के बाद से घर का पालतू कुत्ता उस चांदी के पात्र में भोजन करने लगा। जिस पात्र को बूढ़े व्यक्ति ने जीवन भर किसी विशेष व्यक्ति के लिए संभालकर रखा, अंततः उसकी ये गत हुई।

*शिक्षा:-*
मित्रों, किसी वस्तु का मूल्य तभी है, जब वह उपयोग में लाई जा सके। बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती वस्तुओं का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए यदि आपके पास कोई वस्तु है, तो यथा समय उसका उपयोग कर लें।

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25 Sep, 08:14


*आज का सुविचार*
मनुष्य को कभी भी अवसरों की कमी का रोना नहीं रोना चाहिए, हर पल आपके लिए अवसर लेकर आता है. आपकी क्षमता और प्रतिभा पर निर्भर करता है कि आप इस पल को कैसे जीते हैं.

अच्छे विचारों को हमेशा साकार करना चाहिए, जबकि बुरे विचारों को तिलांजलि देनी चाहिए.

खुशी के लिए काम करेंगे तो खुशी नहीं मिलेगी, लेकिन खुश होकर काम करेंगे तो खुशी के साथ ही सफलता भी मिलेगी.

जो सदैव दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता है, वो जीवन में कभी उदास और परेशान नहीं रहते हैं.

वाणी की मधुरता और स्वभाव की विनम्रता सफलता की सबसे मज़बूत निशानी है.

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21 Sep, 03:16


2012 में, 30 वर्षीय मारिया पेंटाज़ोपोलोस अपनी शादी की पोशाक में एक फ़ोटोग्राफ़ी सत्र के दौरान मॉन्ट्रियल के पास ओउरेउ नदी में बह जाने के बाद डूब गईं।

हालाँकि वह सिर्फ़ 6-12 इंच पानी में खड़ी थीं, लेकिन उनका गाउन पानी से भर गया और बहुत भारी हो गया, जिससे वह गहरे पानी में चली गईं, जहाँ वह दुखद रूप से डूब गईं।
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21 Sep, 02:43


Aaj ki story bahut achchi hai....kripya sabhi pade❤️

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21 Sep, 02:43


दुनिया का हर आदमी मृत्यु की कतार में खड़ा है,इसलिए हर पल जागृत रहना।

चूँकि जीवन एक यात्रा है जिसकी समाप्ति मौत है।जैसे पंछी पिंजरे को छोड़कर उड़ जाता है ऐसे ही आत्मा का शरीर के पिंजरे को छोड़कर उड़ जाने का नाम मृत्यु है।आत्मा को यह देह रूप पिंजरा छोड़ना पड़े उससे पूर्व इन तीन तथ्यों का चिन्तन बार-बार कर लेना ...।

पहला तथ्य यह है,मेरे जीवन में कभी भी रोगों का आक्रमण हो सकता है और मैं इसे टाल नहीं सकता।चाहे कितने ही कुशल डॉक्टर, वैद्य या चिकित्सक मिल जाए... वे भी मुझे बीमारी से नहीं बचा सकते।

दूसरा तथ्य यह है,समय की धारा में बहते हुए मेरी यह सुड़ौल काया जीर्ण-शीर्ण होगी और एक दिन जब बुढ़ापा आयेगा तब आवाज कंपकंपायेगी ... कदम लड़खड़ायेंगे... हाथ-पैर थरथरायेंगे और आँखें निस्तेज हो जायेगी जिसे मैं टाल नहीं सकता।

तीसरा चिन्तन यह है,किसी भी पल जीवन से चलाचली होगी और उसे मैं टाल नहीं सकता। कहा भी है-

न गाती है न गुनगुनाती है,
न चिल्लाती है न रोती है।
मौत जब लेने आ जाती है,
चुपके से लेकर चली जाती है।

मौत आग की भाँति है। जैसे मिट्टी में पड़े हुए सोने को जला डालने की ताकत आग में नहीं है परन्तु वह कचरे को जलाकर राख कर देती है। यही हाल मौत का है... उसमें आत्मा के एक भी आत्म प्रदेश को समाप्त कर डालने की क्षमता नहीं है पर शरीर के एक भी अंग को वह सलामत नहीं रहने देती।

प्रतिदिन का ऐसा चिन्तन अभिमान पर चोट करता है तथा आसक्ति से विरक्त रखकर धर्माचरण की ओर गतिशील रखता है। इस लिए धर्म करने की कोई उमर नही होती जब जागे सवेरा समझो 🙏🏻🙏🏻 इस भाग दौड वाली ज़िन्दगी मे टाईम
तो निकालने से निकल जाता है परन्तु जो लौग धर्म नही करते नास्तिक है वह जरूर कहते है अभी धर्म करने की उम्र
थोडी है व्यापार और गृहस्थी पर ध्यान देवे धर्म करने के लिए उम्र पडी है यह सुन कर हमारा विचलित मन को उसकी बात ठीक महसुस होती है और धर्म से और अरिहंत से जुडना रह जाता है और हम.पैसे,मान सम्मान,ऐश्वर्य,सुख सुविधा को ही भगवान मान लेते है और जीवन के अन्तिम समय तक मोह माया के बन्धन मे जकडे रहते है 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जब की यह तो भ्रम जाल है करोडो की सम्पति आँख बन्द
करते ही पराई हो जाती है पैसा तो साथ गया नही परन्तु पैसा कमाने मे जो छल कपट नकली झूठा दगा किया है उस पाप की गठरी तो तुम्हारे साथ जायेगी और कितने भवो तक चुकाते रहने के बाद भी मुक्ति असम्भव है
हे जीव अरिहंत भक्ति मे अभी लग जा आज से लग जा जीवन का अन्तिम दिन का पता नही रोज ही जीवन का अन्तिम दिन समझो और संसार छोड कर जाने से पहले पुण्य की गठरी तो भारी कर लो..!!

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19 Sep, 05:53


2002 में, सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित ब्रिटिश कलाकार रिचर्ड सुमनर ने वेल्स के डेनबिशायर में क्लोकेनॉग फ़ॉरेस्ट के एक सुदूर क्षेत्र में प्रवेश किया। उसने खुद को एक पेड़ से हथकड़ी लगा ली और चाबियाँ पहुँच से दूर फेंक दीं। उसका कंकाल तीन साल बाद मिला, जिससे संकेत मिलते हैं कि उसे अपने फैसले पर पछतावा हो सकता है।
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19 Sep, 05:53


बहुत समय पहले की बात है। किसी गाँव में एक किसान रहता था। वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था। इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था।

उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था और दूसरा एक दम सही था। इस वजह से रोज़ घर पहुँचते-पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था। ऐसा दो सालों से चल रहा था।

सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। वहीं दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है। फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने किसान से कहा- “मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”

“क्यों, किसान ने पूछा तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?

“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ। मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है, फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा।

किसान को घड़े की बात सुनकर थोड़ा दुःख हुआ और वह बोला- “कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो।”

घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया, ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई। पर घर पहुँचते-पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा।

किसान बोला- शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था और मैंने उसका लाभ उठाया। मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे, तुम रोज़ थोडा़-थोडा़ कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ। तुम्हीं सोचो अगर तुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता?”

*शिक्षा:-*
दोस्तों, हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा।

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17 Sep, 11:31


Neet 2017- All India Rank 1 लाकर भी Suicide !!
लाइफ की परिस्थितियों को बदलने के लिए जिसको हासिल करना चाहते थे उसे पाकर भी अहसास हुआ सब पीछे छूट गया घर, परिवार, रिश्ते, अपने, समय, उम्र, खुशियां सब कुछ ।
मोटिवेशन के नाम पर सिर्फ डर का माहौल बना दिया ये नही लगे तो ऐसा होगा, लोग क्या कहेंगे, क्या इज्जत रहेगी, समाज के ताने, इतना दबाव की भूल से गये हैं क्या हम सच मे ये करना चाहते थे या बस ओरो को दिखाने के लिए सब कुछ खो रहे हैं । कुछ समय अपने लिये अपनो के लिए भी निकालो 👍🏻
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16 Sep, 15:41


एक बार एक पिता और उसका पुत्र जलमार्ग से कहीं यात्रा कर रहे थे और तभी अचानक दोनों रास्ता भटक गये। फिर उनकी नौका भी उन्हें ऐसी जगह ले गई, जहाँ दो टापू आस-पास थे और फिर वहाँ पहुंच कर उनकी नौका टूट गई।

पिता ने पुत्र से कहा, "अब लगता है, हम दोनों का अंतिम समय आ गया है, दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है।"

अचानक पिता को एक उपाय सूझा, अपने पुत्र से कहा कि, "वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है, तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें।"

उन्होंने दोनों टापू आपस में बाँट लिए। एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग टापू पर ईश्वर की प्रार्थना करने लगे।

पुत्र ने ईश्वर से कहा, ''हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें।''

ईश्वर द्वारा प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये। उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया।

फिर उसने प्रार्थना कि, "एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ।"

तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी।

अब उसने सोचा कि मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, तो क्यों न मैं ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँग लूँ ? उसने ऐसा ही किया।

उसने प्रार्थना कि, एक नई नाव आ जाए जिसमें सवार होकर मैं यहाँ से बाहर निकल सकूँ।

तत्काल नाव प्रकट हुई और पुत्र उसमें सवार होकर बाहर निकलने लगा।

तभी एक आकाशवाणी हुई, बेटा तुम अकेले जा रहे हो? अपने पिता को साथ नहीं लोगे ?

पुत्र ने कहा, उनको छोड़ो, प्रार्थना तो उन्होंने भी की, लेकिन आपने उनकी एक भी नहीं सुनी। शायद उनका मन पवित्र नहीं है, तो उन्हें इसका फल भोगने दो ना ?

आकाशवाणी ने कहा, 'क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे पिता ने क्या प्रार्थना की ?

पुत्र बोला, नहीं।

आकाशवाणी बोली तो सुनो, तुम्हारे पिता ने एक ही प्रार्थना की... "हे भगवन! मेरा पुत्र आपसे जो भी माँगे, उसे दे देना क्योंकि मैं उसे दुःख में हरगिज़ नहीं देख सकता औऱ अगर मरने की बारी आए तो मेरी मौत पहले हो" और जो कुछ तुम्हें मिल रहा है उन्हीं की प्रार्थना का परिणाम है।

पुत्र बहुत शर्मिंदा हो गया।

*शिक्षा:-*
सज्जनों! हमें जो भी सुख, प्रसिद्धि, मान, यश, धन, संपत्ति और सुविधाएं मिल रही है उसके पीछे किसी अपने की प्रार्थना और शक्ति जरूर होती है लेकिन हम नादान रहकर अपने अभिमान वश इस सबको अपनी उपलब्धि मानने की भूल करते रहते हैं और जब ज्ञान होता है तो असलियत का पता लगने पर सिर्फ़ पछताना पड़ता है। हम चाह कर भी अपने माता-पिता का ऋण नहीं चुका सकते हैं। एक पिता ही ऐसा होता है जो अपने पुत्र को ऊच्चाईयों पर पहुँचाना चाहता है। पर पुत्र मां बाप को बोझ समझते हैं। इसलिए आप हमेशा जरुरतमंदों की सहायता करते रहिये।

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15 Sep, 02:03


1. ऑस्ट्रेलिया में पकड़े गए इस मवेशी खाने वाले मगरमच्छ का पूर्ण आकार।
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15 Sep, 02:02


एक ब्राह्मण व्यक्ति सुबह उठकर मंदिर की ओर जा रहा था। वहां उसे रास्ते में ₹1 का सिक्का मिलता है। वह ब्राह्मण के मन में विचार आता है कि यह ₹1 रुपया में किसी दरिद्र को दे देता हूं।

वह पूरे नगर में ढूंढता है, उसे कोई दरिद्र और भिखारी नहीं मिलता है। हर रोज की तरह सुबह ब्राह्मण मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वहां उसे एक राजा दिखाई देता है वह बहुत बड़ी सेना लेकर दूसरे नगर में जाता रहता है।

राजा जैसे ब्राह्मण व्यक्ति को देखता है उसे प्रमाण करता है और कहता है कि महात्मा मैं युद्ध करने जा रहा हूं, आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं दूसरे नगर के राज्यों को भी जीत सकूं।

यह सुनते ही ब्राह्मण व्यक्ति ₹1 का सिक्का राजा के हाथ में थमा देता है। राजा आश्चर्यचकित हो जाता है और पूछता है कि आपने यह ₹1 का सिक्का मेरे हाथ में क्यों थमाया ? ब्राह्मण व्यक्ति उत्तर देते हुए कहते हैं कि, मैं कई दिनों से कोई दरिद्र व्यक्ति ढूंढ रहा हूं जिसे ₹1 रुपया दे सकूं।

पूरे नगर में ऐसा कोई दरिद्र और भिखारी व्यक्ति नहीं मिला जिसे मैं एक रुपये दे सकता हूं। सिर्फ और सिर्फ आप ही मुझे ऐसे दरिद्र व्यक्ति मिले जिनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है जिसकी अपेक्षा हमेशा अधिक से अधिक पाने की रहती है। इसलिए मैं यह ₹1 का सिक्का आपको देना चाहता हूं क्योंकि जो दरिद्र व्यक्ति की तलाश में था वह साक्षत मेरे सामने खड़ा है। यह सुनकर राजा का मस्तिष्क शर्म से झुक जाता है और वह अपनी सेना को वापस जाने का आदेश देता है।

*शिक्षा:-*
इंसान को कुछ पाने की जिद्द होनी चाहिए वह बहुत अच्छी बात है। पर आज कल व्यक्ति की इतनी तीव्र इच्छा होने के कारण मन में विचार आता है... तेरे जेब का पैसा मेरे जेब में कैसे आए, ऐसे स्वार्थी सोच में रहता है.. यह बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है।फलस्वरूप, उसे सब कुछ मिलने के बाद भी वह दुःखी रहता है क्योंकि उसकी इच्छा कभी खत्म नहीं होती..!!

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14 Sep, 03:56


मिस स्विटजरलैंड की पूर्व फाइनलिस्ट क्रिस्टीना जोक्सिमोविच की गला घोंटकर हत्या कर दी गई और उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए, फिर उसके शव को ब्लेंडर में डालकर “प्यूरी” कर दिया गया। मॉडल के पति, जो उनकी दो बेटियों का पिता है, ने मार्च में आत्मरक्षा का दावा करते हुए उसकी हत्या करने
की बात स्वीकार की। उसके शव को आरा, चाकू और बगीचे की कैंची से टुकड़े-टुकड़े किया गया था, और कुछ हिस्सों को रासायनिक घोल में घोल दिया गया था।
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14 Sep, 03:47


Hindi Motivational stories pinned «एक बार स्वामी विवेकानंद को बंदरों का सामना करना पड़ा था। वह इस आप बीती को कई अवसरों पर बड़े चाव के साथ सुनाया करते थे। इस अनुभव का लाभ उठाने की बात भी करते थे। उन दिनों स्वामी जी काशी में थे, वह एक तंग गली में गुजर रहे थे। सामने बंदरों का झुंड आ गया। उनसे…»

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14 Sep, 03:46


एक बार स्वामी विवेकानंद को बंदरों का सामना करना पड़ा था। वह इस आप बीती को कई अवसरों पर बड़े चाव के साथ सुनाया करते थे। इस अनुभव का लाभ उठाने की बात भी करते थे।

उन दिनों स्वामी जी काशी में थे, वह एक तंग गली में गुजर रहे थे। सामने बंदरों का झुंड आ गया। उनसे बचने के लिए स्वामी जी पीछे को भागे। परंतु वे उनके आक्रमण को रोक नहीं पाए। बंदरों ने उनके कपडे तो फाड़े ही शरीर पर बहुत-सी खरोंचें भी आ गईं। दो-तीन जगह दांत भी लगे। शोर सुनकर पास के घर से एक व्यक्ति ने उन्हें खिड़की से देखा तुरंत कहा- “स्वामी जी! रुक जाओ, भागो मत। घूंसा तानकर उनकी तरफ बढ़ो। “स्वामी जी के पांव रुके। घूंसा तानते हुए उन्हें ललकारने लगे। बंदर भी डर गए और इधर-उधर भाग खड़े हुए। स्वामीजी गली को बड़े आराम से पार कर गए।

इस घटना को सुनाते हुए स्वामी जी अपने मित्रों तथा शिष्यों को कहा करते- “मित्रो! हमें चाहिए कि विपरीत हालात में डटे रहें, भागें नहीं। घूंसा तानें। सीधे हो जाएं। आगे बढ़ें। पीछे नहीं हटें। कामयाबी हमारे कदमों में होगी।” वास्तव में समस्या पलायन से नहीं सामना करने से खत्म होती है। भागने वालों का समस्या बंदर की भाँति पीछा करती है।

*शिक्षा:-*
यह प्रेरक प्रसंग हमें सिखाता है कि हमें असफलताओं से विचलित और निराश नहीं होना चाहिये। दृढ़ निश्चय और हिम्मत से सफलता अवश्य मिलती है।

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12 Sep, 03:57


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12 Sep, 03:57


एक राजा जिसका बहुत बडा राज्य था। कोई कमी नहीं थी जो भी हुक्म करते वही हो जाता था। लेकिन राजा में एक आदत थी कि वह जो भी कोई थोड़ी सी गलती करता उसे तुरंत दस बडे खुंखार कुत्तों के सामने डालकर उसे कुत्तों से नुचवाता। राजा बडे गुस्से वाला था।

राजा की इस आदत से सभी परेशान थे। राजा का मंत्री भी राजा की इस आदत की आलोचना करता था। एक दिन उसी मंत्री से कोई गलती हो गयी। राजा को गलती का पता चला तो राजा ने तुरंत हुक्म दिया कि जाओ मंत्री को कुत्तों के सामने ले जाओ।

मंत्री ने राजा से गलती मानी, माफी मांगी लेकिन राजा ने कुछ नहीं सुना और कहा कि जो कह दिया सो कह दिया और सिपाहियों से कहा ले जाओ कुत्तों के बाडे में। मंत्री ने कहा ठीक है राजा जी लेकिन मेरी आखिरी इच्छा तो मान लो। राजा ने कहा ठीक है बताओ अपनी आखिरी इच्छा। मंत्री ने कहा मुझे दस दिन की महौलत दे दीजिए बस। राजा ने कहा ठीक है दस दिन की महौलत दे देते हैं।

लेकिन ग्यारहवें दिन सजा जरूर मिलेगी। मंत्री दस दिन तक राजा के पास नहीं आया। और ग्यारहवें दिन राजा के सामने पेश हो गया। राजा ने मंत्री को देखा और सिपाहियों से कहा जो सजा रखी थी मंत्री के लिए उसे पूरी की जाए। सिपाही मंत्री को कुत्तों के बाडे में लेकर गये, कुत्तों को भी खोल दिया गया। लेकिन कुत्ते मंत्री पर प्रहार करने के बजाय मंत्री से प्यार से पेश आ रहे थे।

यह देखकर राजा चौंक गया कि जिन कुत्तों को प्रहार करने के लिए ट्रेन किया गया है वे इतने प्यार से पेश आ रहे हैं। राजा ने मंत्री से कहा कि ये चमत्कार कैसे हो गया! इन कुत्तों को क्या हो गया है। मंत्री ने जवाब दिया कि इन दस दिनों में मैंने इन कुत्तों की बहुत सेवा की है। इन्हें खाना खिलाया, नहलाया अब ये कुत्ते जान चुके हैं कि मैं इनके लिए कुछ अच्छा करता हूँ ना कि बुरा। ये मुझ पर प्रहार नहीं करेंगे। मैंने आपकी इतने दिनों से सेवा की है, फिर भी आप मेरी एक गलती को माफ नहीं कर सके। आपसे ज्यादा अच्छे तो ये कुत्ते हैं जो अच्छा और बुरे को पहचानते हैं। राजा यह सब देखकर बड़ा शर्मिन्दा हुआ।

*शिक्षा:-*
हमें हमेशा सोच समझ कर फैसले लेने चाहिए।किसी की एक गलती को लेकर ही उसे जिन्दगी भर के लिए सजा नहीं देनी चाहिये बल्कि उसे माफ करने की हिम्मत रखनी चाहिए..!!

Hindi Motivational stories

10 Sep, 12:50


सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना छोड़ देते।

किंतु, यह सब कब तक चलता। वे पुन: उनसे बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया, लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव में तनिक भी फर्क नहीं आया।

अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले- “महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।” तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा- “सेठ जी ! को मेरे पास भेज देना।”

“ठीक है, महाराज” कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज के पास ले जाना चाहा। किंतु, सेठ जी साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे।

साधु को देखकर सेठ जी की प्योरिया चढ़ गयी। परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे।

साधु महाराज सेठ जी से बोले- “सेठ जी ! मैं हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया हूं, जरा पीकर देखिये।” पहले तो सेठ जी ने आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर भी मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से चाटा।

ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से बोले- “यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है यह ?”

“अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या होता है” साधु महाराज ने कहा। “यह तो हर कोई जानता है” कहते समय सेठ ने रहस्यमई दृष्टि से साधु की ओर देखा।

“नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोईn जानता होता तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द अपने मुंह से नहीं निकालता। सेठ जी वह एक पल को रुके फिर बोले। सेठ जी याद रखिये जो आदमी कटु वचन बोलता है वह दूसरों को दुख पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता है।”

सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है उन्हें ही लक्षित करके कहा है। वह फौरन साधु के पैरों में गिर पड़े- “बोले साधु महाराज ! आपने मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।”

सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने साधु से पूछा- “किंतु, महाराज! यह पदार्थ जो आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या है?”

साधु मुस्कुराकर बोले- “नीम के पत्तों का अर्क।” “क्या” सेठ जी के मुंह से निकला और फिर वे धीरे-से मुस्कुरा दिये।

*शिक्षा:-*
मित्रों! कड़वा वचन बोलने से बढ़कर इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। किसी द्रव्य के कड़वे होने से जीभ का स्वाद कुछ ही देर के लिए कड़वा होता है। परंतु कड़वे वचन से तो मन और आत्मा को चोट लगती है..!

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