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25 Jan, 15:31


#Episode 83

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24 Jan, 17:22


मौत के उस रोज़ के बाद मेरा ईश्वर जब मुझसे कहेगा कि बताओ मेरी बनाई दुनियां में क्या अच्छा क्या बुरा लगा तुमको... तो मैं...

बताऊंगा कि....मैं फला, फला फला की संतान,

शुक्रगुजार हूं ...

उन तमाम रिश्तों का जो मैनें हासिल किए बिना किसी मेहनत के,
उन रिश्तों का जो मैनें बनाए अजनबियों से,
उन रिश्तों का जो टिके रहे अंत तक, चले गए बीच में, हंसाते रुलाते मगर याद बनाते,
उन सभी यादों का जो मेरी तिजोरी को मेरा कहलवानें की हकदार बनाती हैं,
कमाई हुई दौलत का और उस दौलत से खरीदी हुई ख़ुशी का,
सही-ग़लत फ़ैसलों का,
सही जगह काम आए सही मुकद्दर का,
हवा का, पानी का, खेत खलिहान, सुन्दर बागान का,
जानवर, पंछी, हिम गुच्छों का
निखरे हुए कोमल पुष्पों का,
उन्नत दिमाग़, दिखते न दिखते जीव-निर्जिवो का,
खाने के तमाम लज़ीज़ व्यंजनों का,
वगैरह वगैरह हज़ार और चीज़ का लेकिन सबसे ज़रूरी सबसे शानदार प्रेम के भाव का...


और बताऊंगा कि मैं नाखुश हूं...

भूख की तड़प से - भूख रोटी की, दौलत की, जिस्म की, शोहरत की, ईल्म की,
ग़लत लोगों के उत्थान से,
सड़ी सोच के अभिमान से,
लकीरों से बंट जाने से,
उजाले के घट जानें से,
धर्म से ख़ासकर, हां, उनके जानकारों से भी,
राजनीति के मद से,
मृत्यु के व्यापार से,
वगैरह वगैरह हज़ार और चीज़ से लेकिन,
सबसे नाखुश सबसे बदतर- सोचने समझने की ताक़त से..!!

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11 Jan, 15:40


क़ैदी जो बंद था वो भूल गया था,
उसे तो अब क़ैद में ही मज़ा आनें लगा था,

जब आज़ाद किया गया तो रोने लगा वो,
कहने लगा कि उसको ऐसी सज़ा न दो,

कोई तो जुर्म होगा जो कर दें अभी तुरंत,
बाहर नहीं जाना है हमको क्षमा करो,

ये देखते ही जेलर को गुस्सा बहुत आया,
दूर से ही गालियां बरसाते वहां आया,

बोला कि रोटी चुराने की इतनी ही सज़ा है,
बड़े आदमी थोड़ी हो की हमेशा का मज़ा है..!!

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07 Jan, 14:16


इंसान तो शायद बुरा माने,
कागज़ को नहीं बुरा लगता,
यादों में आग लगा नहीं सकते,
इसमें तो आसान होगा,

रोना है तो रो सकते हैं
लिखते लिखते हर्ज़ ही क्या,
नहीं कुरेदता है वो दुःख को
नहीं पूछता मर्ज है क्या,

नाम किसी का लिखना चाहें
आपकी मर्ज़ी लिख सकते हैं
बदनाम किसी को करना चाहें
आपकी हस्ती कर सकते हैं,

नंगा करना है नंगे को ?
कीजिए कीजिए बढ़िया है,
भूल की माफ़ी मांगनी है ?
मांग लीजिए बढ़िया है,

अच्छा करना है तो ठीक है,
बुरा वुरा हो तो भी ठीक,
कौन यहां है आपसास में,
जो कर देंगे वही है ठीक,

शस्त्र गिरे हैं उठ जाएंगे,
लड़ना आप शुरू करिए,
मुर्दा हैं तो जी जाएंगे,
लिखना आप शुरू करिए..!!

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07 Jan, 13:52


कितना ज़लील कितना गिरा
कितना बुरा उन्हें कह दूं,

हर एक बात से मुकर जाते हैं
कितना मरा उन्हें कह दूं.. (१)


रोज़ पहुंचते मंदिर-मस्जिद
रोज़ दुआ की लिस्ट बढ़ाते,

चाहिए उन्हें भी वैसा कोई
जैसा स्वयं नहीं बन जाते.. (२)


काबिलियत की सूई से वो
बांध रहे हैं खुली हवा को,

भ्रम है उनको ठीक होगा सब
एक दफा आ जाए धन तो..(३)

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06 Jan, 09:45


ठेकेदार समाज के....

कम पढ़े लिखे कम समझदार,
मारपीट करनें वाले हुडदंग करानें वाले,
रैलियों में कुर्सी लगानें वाले भीड़ बुलानें वाले,
सभा का मंत्री सचिव उपसचिव वगैरह,
बने हैं ठेकेदार समाज के....(१)

सबको सही ग़लत बतानें वाले ख़ुद ही न मानने वाले,
धरम जाति में कट्टरता जतानें वाले,
बदलाव को नकार देने वाले,
अपनें को ऊंच औरों को नीच जताने वाले,
बने हैं ठेकेदार समाज के....(२)

जो पुराना सब अच्छा नया बुरा बुरा है सब,
सही को सही ग़लत को ग़लत ना मानने वाले,
जो उनका नेता कह रहा वही आख़िरी सच कहने वाले,
रिश्तों को खिलवाड़ समझने वाले,
बनें हैं ठेकेदार समाज के....(३)

घर में महिला के बोलने की मनाही,
बाहर उत्थान चिल्लाने वाले,
अपना बच्चा पढ़े विदेश और देश शिक्षा महान कहने वाले,
लाशों पर बनी गद्दी पर बैठ हुक़ूमत करने वाले,
बनें हैं ठेकेदार समाज के....(४)

इश्क़ पता चलनें पर दोनों को क़त्ल करने वाले,
बेटी बेटे की नापसंदगी पर भी ब्याह करवाने वाले,
गैरों से शारीरिक संबंध रखने वाले,
प्रेम विवाह अपराध मानने वाले,
बनें हैं ठेकेदार समाज के....(५)

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05 Jan, 12:01


ज़मीन पर चुनाव

सफ़ेद कुर्ते में जा रहे थे डकैत दिन में
किया लपककर प्रणाम सब ने,

वहीं बगल में एक साधु को चोर कहकर
मारा बहुत लोगों जी भर के..(१)


निकल पड़े हैं आवारे गुंडे
गिरेंगे पैरों में आकर के सबके,

कहेंगे बदलाव होगा तभी जब
गिरोह को सत्ता में लाएंगे अबके..(२)


ग़रीबों को दारू मिलेगी विदेशी
मिलेगी निठल्लों को मुर्गी की दावत,

जो पढ़ के हैं बैठे मिलेगा भरोसा
की नौकर बनाएंगे रोटी की बाबत..(३)


दाढ़ी और धोती में कौन बड़ा है
बहस का यही होगा मुद्दा अकेला,

जो हम कह रहे हैं वही सत्य शाश्वत,
जो कुछ कहा तो होगा झमेला..(४)


सड़कों को नाला स्कूलों को अड्डा,
हर एक मोड़ पर नया ठेका खुलाएंगे,
चोरी छिनौती का पुण्य कहेंगे,
औरत को बाजार बेचा करेंगे,
पत्रकारों को बढ़िया पदवी दिलवाएंगे,
फोकट में सारी दुनियां घुमाएंगे,
सरकारी परीक्षा को महंगे में बेचेंगे,
छात्र कहेगा तो डंडा बरसाएंगे,
थाने कचहरी में व्यापार होगा,
अमीरी की क़िस्मत का व्यवहार होगा,
धड़ल्ले बिकेगा तमंचा और गांजा,
लेकिन फसल का ना बाज़ार होगा,
दूध दही फल पर टैक्स लगाएंगे,
फिल्मों को हां टैक्स फ्री कर दिखाएंगे,
शहीदों की शहादत पर सियासत करवाएंगे,
लेकिन व्यवस्था ना एक बढ़ाएंगे,
बड़े कर्ज़ों को माफ़ी का हक़ होगा,
चवन्नी अठन्नी में कुड़की कराएंगे,
दुश्मन को अपनें खेमें में घुसाएंगे,
बाक़ी जो होगा ख़रीद ले आएंगे,

कहना तो चाहते थे यही लेकिन साहेब,
इसके उलट बाण बौछार होगा

गांव को अपनें अमरीका बनाएंगे,
भाषण यूं ऐसा धुंआधार होगा..(५)

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03 Jan, 14:57


बता रहा था कोई की खयाल कैसे होता है,
जैसे तुम सोचते हो वैसे तो नहीं होता है,

एक तरीका है एक मिजाज़ है और वो अनायास है,
कुछ भी कैसे भी कहना करना ठीक है लेकिन
ऐसे नहीं होता कि हुआ ना हुआ एक ही होता है,

कुछ नज़ाकत हो कुछ शर्म की बूंद हो,
कुछ हया में गुफ्तगू रहे, कुछ हक़ीक़त के साथ कल्पना की धुंध हो,

प्रेम की बातचीत में आलिंगन का मिश्रण हो,
छुवन हो, संधि हो, एक दूसरे के बंदी हो,

अधरों पर आए बात मगर चुपचाप रहना,
आंखों में अश्क़ आनें से पहले ही अंदर रखना,
हाथ की हथेलियों में हाथ की हथेलियां हों,
या फिर ऐसा हो किसी की गोद और किसी का सर रखना,

बिजली तन में रहे मन में रहे और रहे सासों में,
सुकून तन में रहें मन में रहे और रहे सासों में,
मिलने का सुख तन में रहे मन में रहे और रहे सासों में,
वक़्त हो चला है इसका दुःख तन में रहे मन में रहे और रहे सासों में,

यही बता रहा था कोई की खयाल कैसे होता है,
जैसे तुम सोचते हो वैसे तो नहीं होता है..!!

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31 Dec, 17:46


कहीं एक रात की बात है,
वही मुलाक़ात की बात है,
मैं और मेरी तन्हाई बैठ के रोते हैं,
दिन में तड़प तड़प के सोते हैं,
रात तो सर्द है नींद कहां आएगी,
दिन में आसूं छुपाना है बिस्तर में छिप जाएगी,
बाहर निकले तो लोग सवाल पूछेंगे,
ना चाहते हुए ज़ख्म नोचेंगे,
भला यही है कि यहां से बेहतर हो जाएं,
ग़ैरों के लिए न सही अपनों की खातिर लड़ जाएं,
जिए ज़िंदगी ज़िंदगी की तरह,
मां बाप भाई बहन की लिए ही सही लेकिन,
कुछ कायदे का कर जाएं..!!

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20 Oct, 11:27


#Episode 82

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13 Oct, 15:10


#Episode 81

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11 Oct, 11:29


#Episode 80

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01 Oct, 09:54


#Episode 79

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29 Sep, 09:17


गलत की भीड़ में
सही तराशने निकली हूं...
मिल जाऊँ मुझको मैं ,,
किसी आईने में ...
इस सोच से सोच समझाने निकली हूं
रास्ते.,तरीके
सब गलत है मेरे
खाली नियत और सोच से
सब बताने निकली हूं
जानती हूं कि
0.0000000000000000001
Percent चांस भी नहीं सही मिलने का..
लेकिन फिर भी उसी भीड़ में
उस एक को ढूँढने निकली हूं...
चलो अगर कोई मिल भी जाये
तो. साबित कैसे करुँगी सच....
जिस गलत रास्तों सेमुलाकात मिलाकर निकली हूं..
कैसे कहूँगी
कि
मैं नहीं हूं वो ,,,
जो गलत तरीकों से गलत दोहराने निकली हूं

नहीं समझेगा कोई
सिवाए मुझे समझाने के
और आखिर में खुद वो ही समझा देगा
कि तुम
गलत रास्तों मेँ सही को पाने निकली हूं
आखिर में
रह जाएगा मेरा सच मुझमें ही ...,,,,
भूल जाती हूँ कि
मैं किताब खुली रख कर
कवर पसन्द करने वालों को पढ़ाने निकली हूं...
शायद सही भी है..
शुरुआत से शुरुआत करने वालों को
सीधी ,सरल भाषा में..सिखाने निकली हूं
शायद! गलत रास्ते थे मिलने के उससे,,,
शायद! अंधेरों में किरण हो उससे
लेकिन शायद वो समझेंगे
कि
मैं सूरज को पाने निकली हूं
शायद नहीं ढक पाऊँगी खुद को formalities की चादर में .,,,
मैं जैसी हूं ,जिस हाल में हूं
वैसे ही खुद को सुलझाने निकली हूं ..,,,,
शायद
अब वो सब्र नहीं पहले जैसा मुझमें
मैं सब्र से शुरुआत और अंत को लिखवाने निकली हूं
...,,,



आखिर में जानती हूं
कि
कोई सलाह देगा
कोई समझा देगा
पर मैं शायद कुछ बोल ही नहीं पाऊँगी
शब्द बहुत फीके है
जिनसे में अपने मन की सुनाने निकली हूं...
आखिर में फिर भी
Hope से गलत से रास्तों में
सही पाने निकली हूं   ।।।

                                            ✍️✍️✍️ Ritu

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21 Sep, 06:48


#Episode 78

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14 Sep, 10:25


मैं तमाम दिन ये सोचता रहा कि कोई आएगा कुछ कहेगा तो बेहतर हो जाएगा मेरा मन,

मैं सोचने लगूंगा कि आज का दिन अच्छा होगा और बना लूंगा कुछ काम की चीज़े जिसे देखकर रात को लगे कि आज कुछ किया,

मगर नहीं हुआ ऐसा,

खुद ही को ख़ुद से समझाना पड़ा और समझना पड़ा ख़ुद को कि एकांत है दुनियां,

हां ये अच्छा रहा कि कुछ लोग फिक्रमंद दिखे कुछ ने हौसला देने का सोचा,

ये दिन गुज़र गया काम तो नहीं हुआ कुछ मगर सोच बेहतर हुई,

काश ये एक दिन एक दिन का हो होता,

इस एक दिन के इंतज़ार में हफ़्ते महीने और सालों लग गए सिर्फ़ ये समझने में की कोई नहीं आएगा अपनें से ही करना है जो भी करना है,

ऐसा नहीं की लोग अपनें नहीं हैं, हैं,

पर वो भी तो लड रहे हैं अपनी लड़ाईयां,

आप भी लड़ रहे हैं मैं भी हम सब कर रहे हैं अदा अपना अपना किरदार,

शायद हम बच्चे हैं मन से मगर ये मानना होगा की बचपन अब नहीं रहा कि ज़रा से परेशान होते ही कोई आ जाएगा और दूर कर देगा वो परेशानी का कारण,

शायद अब बड़े होने की सज़ा मिल रही है मगर ये सज़ा नहीं समझ है जिसे समझकर आगे बढ़ना है और बढ़ते जाना है,

आप मैं और हम जैसे तमाम लोग जूझ रहे हैं अपनी अपनी समस्याओं से,

हमें ज़रूरत है एक दूसरे के साथ की बात की , अगर समय हो तो कहें अपनी बात, दोनों को अच्छा लगेगा।

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13 Sep, 12:10


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26 Aug, 17:24


मुझे नहीं मालूम,
नहीं मालूम दुनियां क्यों है, मैं कौन हूं और क्या है ये सब,

नहीं मालूम इश्क़ क्यों होता है, तबाही क्यों जरूरी है, शराबें क्यों सरेआम बिकती हैं,

नहीं मालूम क्यों अपनों से ज्यादा ज़ख्म कोई दे नहीं सकता, क्यों नहीं नहीं करते हां हो जाती हैं बातें,

क्यों इंसान इंसाफ अदालतों में न मिलने के बाद ख़ुदा पर टाल देता है, क्या ज़रूरी है वहां इंसाफ़ हो और अगर नहीं हुआ तो?

नहीं मालूम कि कोई सच में सरहदें बनीं थीं की सफेदपोशों ने बनाई थी कुर्सी की चाह में,

नहीं मालूम की जो सुना उसपर यकीन कैसे न करूं, जो देखा वो गलत कैसे निकला,

कुछ नही मालूम, कुछ भी नहीं मालूम,

मगर मालूम है कि हर साल नई सड़क टूट हो जाती है,
हर नई इमारत जल्दी ही गिरेगी, बारिश में टपकेगी,
मालूम है सरकारें ऐसी ही होती हैं,
मुझे मालूम है,
मुझे ही नहीं इत्तेफाकन सबको मालूम है कि चुनाव आते ही जाति, धर्म, संप्रदाय, सरहद, भाषा, रंग, मिट्टी, भूख, गरीबी, मुफ़्त दान, राशन, पेंशन, गद्दार, देशभक्ति, आज़ादी, स्त्री को सम्मान, किसान सुनाई देता ही है,

कुछ नया नहीं,
ये सबको मालूम है,
मुझे भी उसी तरह मालूम है,


इमारतें जो बनीं कई सदियों पहले वो हैं ठोस, दमदार,
बयां करती अपनी हुकूमत की मजबूती,
आज की नहीं है ना की शिलान्यास के साल ही गिर जाएं,

पुराने महल टिके हैं,
उनके नारे ज़िंदा हैं,
उनकी बड़ी बड़ी बातें ताज़ा हैं,
कहानियां अमर हैं,
इतिहास गहरा है,
जो नहीं है वो उनका सपना,
मुझे पता है,
आपको भी है,
सबको पता है,

पर कोई बात नहीं,
आदत हो गई है,
क्योंकि ऐसा तो होता ही है,
शायद होता आया है,
कोई बात नहीं,
भूल जाना आसान है,
मुझे पता है।

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18 Aug, 16:05


उसने एक एक हिसाब रखा है.,,
एक तरफ़ सूरज तो एक तरफ़ चाँद रखा है...,
ग़र ,,,,हो जाये दुख ज्यादा
तो उसने सुख भी बेहिसाब रखा है ...
संघर्ष है अगर ,,..तेरी लकीरों में आज ..,
तो एक दिन सक्सेस को भी तेरे लिए थाम रखा है....
रोना पड़े तो रो भी लेना..,,,
खुशी -खुशी
विश्वास रख उस पर उसने खुशियां को भी बुला रखा हैं ..
अकेले हो आज ...,,,अपने हर पल में
एक एक पत्ते की आवाज में ,,,
बस इस चीज को मत भूल
कि
किसी को तेरे साथ रखा है ...,,टूटना नहीँ....
उन मोतियों को बरकरार रख..,,,,
जिसने पिरोने के लिए धागे को भी बना रखा हैं ..
बस गिन ना तू ...खुद की लहरों और दूसरों के किनारों को .. ,,,,,,,
उस ऊपर वाले ने एक समुन्दर तेरे भी नाम रखा है ✍️RITU

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01 Aug, 18:22


मुझे वहम था कि मुझसे जियादा कौन चाहेगा तुमको,
मैं गया तुम्हारी गली में तो वहां खंभा भी तुम्हारे इंतजार में डूबा था,

वो रौशनी थी मगर कमज़ोर थी धुंधली बिल्कुल बेजान,
तुम चौखट से निकली ऐसा लगा जैसे चांद से बदल झट से हट गया,

नहीं वो बादल नहीं रौशनी थी जो लोगों के दिलों से निकल रही थी,
तुम्हारी एक झलक ऐसी थी जैसे जुगनू हो कोई अंधेरे में,

मैं चाहकर भी ढूंढ नहीं पाया एक भी ऐसा शख़्स,
जो मुझसे कम चाहता हो तुम्हें,

हां मगर तुमको क्या मालूम की कोई 'मैं' हूं भी,
हां मगर तुमने एक बार मेरी ओर देखा तो था,

तुम मुझे ना जानों तो बेहतर है, मैं नहीं काबिल तुम्हारे,
मगर मैं चाहूंगा तुम्हें, अपनें आप से ज़्यादा बिना तुम्हारे जानें...!!

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30 Jul, 18:33


ये अरबों का व्यापार है इसे बर्बाद करना चाहते हो तुम?
मोहब्बत होना और दिल टूटना खत्म करना चाहते हो तुम?

ये गुलदस्ते, ये नए कपड़े, ये लज़ीज़ खानें की चीज़े,
तमाम गुड्डे गुड़ियों और नुमाईश भरी महंगी उम्मीदें,

कहां किस दुनियां में हो इन्हें बेकार कहना चाहते हो तुम?
लौट जाओ पिछली सदी में गर ऐसा यकीन करना चाहते हो तुम...!!

मनाओ जश्न की हर रोज़ कोई नया त्योहार होगा ही,
ना मानकर क्या पिछड़ा कहलाया जाना चाहते हो तुम?

जाओ डूब जाओ राजनीति के दलदल में,
क्या ब्याह कर नीच प्रेम में नीच कहलाना चाहते हो तुम?

तोड़ देना चाहते हो जाति धर्मों के अंतर को महज एक रिश्ते से?
सियासतदानों के वोट का कारण छीन लेना चाहते हो तुम?

इतने स्वार्थी, इतनें पढ़े लिखे बन जाना चाहते हो तुम,
छोटे लोग होकर सरकार से सीधा सवाल करना चाहते हो तुम,

इस पाप के लिए तो मर जाना चाहिए तुमको,
इस अपराध के बाद भी दुनियां में सुकूं से रहना चाहते हो तुम?

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10 Jul, 18:48


एक सितारा टूट कर बिखर गया आज,
एक घर का लड़का पंखे से लटक गया आज,

वजह वही की इम्तेहान पास करना था,
लोग वही की इम्तेहान पास क्यों न हुआ,

घर वही है कि जहां लोग आ जा रहे हैं
कोई बुजदिल कोई नाकाम बता रहे हैं,
बैठे हैं खाट पर दो बूढ़े औरत मर्द,
बस सुन रहे हैं कि लोग क्या कह रहे हैं,

तमाम उम्र सोचनें में गुजरेगी की क्या सही था, क्या ग़लत हो गया,
क्या इतना जरूरी था कोचना कि बेहिसाब क्षत हो गया,

कौन लेगा इस क़त्ल का इल्ज़ाम अपने सर,
कौन अब बताएगा बच्चे के न जीतनें का डर,

कोई नहीं है जो शुरआत कर सके,
कह सके कि जाओ करना जो मन करे
इम्तेहान ही तो है देना गर इच्छा हो,
मन ना करे तो करना वो जो मन करे...!!

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20 Jun, 07:43


मैं सोच रहा हूं

शायद मैं सोच तो रहा था,
क्या अब नहीं हो सकता...?

पर अब वो पानें की इच्छा है भी और नहीं भी,

ख़ुद को भी जान पाने का नया चस्का है देखते हैं कब तक चलता है😀

ज्यादा तो नहीं टिकेगा मेरी खुशियों की तरह, या हो सकता है ये टिका रहे मेरे आत्मविश्वास की तरह।

हो तो सकता है।

पहले तो सबसे लडने को तैयार रहता था मैं, उसके लिए, वो चाहिए, वो चाहिए ही, ऐसा वाला दृश्य था। अब क्या हो गया?

लग रहा है मैं उसे जानने लग गया। शायद ज्यादा ही जानने लग गया। Philosophy में ऐसा कहते होंगे, मुझे तो नहीं पता, कि हद से ज्यादा जान जाना, आकर्षण कम करता होगा।

मुझे ऐसा लगता तो है पर हर मसअले के लिए नहीं, हर रिश्ते के लिए ये लागू कहां होता है।

किताबों को ही देख लें अगर तो ऐसा कई किताबों के साथ हुआ है की मैंने उन्हें कई बार पढ़ा, 5-6-7 और तड़प कम नहीं हुई।

हर दफा और बेहतर समझ में आई बात, कहानी और प्रखर हुई। पात्र बात करते नजर आए, आपस में नहीं, मुझसे।

बताते नजर आए अपनी वो भी कहानी जो किताब में शायद लेखक लिखना भूल गया हो, या वो जिसे मेरे अलावा कोई नहीं समझ सकता, लेखक भी नहीं।

असल जिंदगी के रिश्तों की एक खराबी है ये, की ज्यादा जान लेना समस्यात्क बन सकता है। पर वक्त की आदत है हर छोटे घाव भर देता है, ऐसा सुनने में आता है।

मेरे मम्मी पापा से भी कभी कभार बहस होती है, विचार अलग होते हैं, चिढ़ हो जाती है उस समय के छोटे हिस्से में, फिर ठीक हो जाता है सब। बिल्कुल पहले की तरह।

मैं नहीं मानता की रिश्ते में अगर गलतफहमी हो गई है तो वो रस्सी की गांठ को तरह हमेशा दिखाई या जनाई देगी। नहीं। कुछ ही वक्त बाद वो टूटे हिस्से आपस में मिलकर एक हो जाते हैं, पहले की तरह, या शायद पहले से ज्यादा मजबूत।

हो ही जाते होंगे, मैनें 10-15 बार प्रयास किया, शायद सफल रहा। हां, रहा तो।
शायद कुछ बार नहीं भी रहा, क्या फ़र्क पड़ता है, लेकिन कभी कभी चुभन, तड़प, पश्च्याताप नज़र आता है।

हां तो लगाव कुछ कम हो गया तो क्या, कुछ दिन बाद अपनें आप दिमाग़ ठिकाने आ जाता है, अपनी हालत, अपनी शक्ल, अपनी जिंदगी और अन्य रिश्ते देखकर।

लगाव कम हुआ होगा, होता है, होता रहेगा शायद उससे क्या। आगे जो होगा उम्मीद है अच्छा ही होगा... !!

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20 Jun, 04:13


हज़ार गम रहे साथ में,
कुछ कहा न गया,
कुछ सुना न गया,
बहुत देर लगी,
ख़ुद समझने समझाने में,
लेकिन,
चंद कतरा आंसू
और बहुत कुछ साफ हो गया,
जैसे,
काले बादलों के बाद आसमान,
गाड़ी गुजरने के बहुत देर बाद स्टेशन,
हंसने के बाद दिल,
मरने के बाद देह,
वगैरह वगैरह वगैरह...

मगर इतनी ताक़त आसुओं में,

यकीनन रोने में बहुत ताक़त चाहिए,
अकेले में,
सबके सामने,
बिना मुंह छिपाए,
बिना खराब दिखनें के डर के,

काश पहले रो लेता,
काश....
काश....


मगर.........

काश ये सब हुआ ही न होता...

काश... !!

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