Rahat indori @rahatindori Channel on Telegram

Rahat indori

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Rahat Indori is an Indian poet and Bollywood lyricist.

Rahat Indori Telegram Channel (English)

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Rahat indori

13 Nov, 17:42


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Rahat indori

27 Apr, 07:30


ज़ुल्फ़ बन कर बिखर गया मौसम,
धूप को छांव कर गया मौसम..

मैंने पूछी थी ख़ैरियत तेरी,
मुस्करा कर गुज़र गया मौसम..

फिर वो चेहरा नज़र नहीं आया,
फिर नज़र से उतर गया मौसम..

तितलियाँ बन के उड़ गयीं रातें,
नींद को ख़्वाब कर गया मौसम..

फूल ही फूल थे निगाहों में,
दाग ही दाग भर गया मौसम...

तुम ना थे तो मुझे पता न चला,
किधर आया किधर गया मौसम...

आप के आने की ख़बर सुन कर,
जाते जाते ठहर गया मौसम...

- @rahatindori

Rahat indori

26 Apr, 07:30


प्यार का रिश्ता कितना गहरा लगता है,
हर चेहरा अब तेरा चेहरा लगता है...

तुमने हाथ रखा था मेरी आँखों पर,
उस दिन से हर ख़्वाब सुनहरा लगता है...

उस तक आसानी से पहुँचना मुश्किल है,
चाँद के दर पर रात का पहरा लगता है...

जबसे तुम परदेस गये हो बस्ती में,
चारों तरफ़ सेहरा ही सेहरा लगता है...

कच्चे घड़े के रिश्ते अब तो ख़त्म हुए,
दरिया भी कुछ ठहरा ठहरा लगता है...

मज़बूरी रोने भी नहीं देती मुझको,
दरियाओं पे आज भी पहरा लगता है...

-राहत इंदौरी

Rahat indori

25 Apr, 07:30


मुश्किल से हाँथों में ख़ज़ाना पड़ता है,
पहले कुछ दिन आना जाना पड़ता है...

ख़ुश रहना आसान नहीं है दुनिया में,
दुश्मन से भी हाथ मिलाना पड़ता है...

इश्क में सचमुच का नहीं तो वादों का,
ताजमहल सबको बनवाना पड़ता है...

यूँ ही नहीं रहता है उजाला बस्ती में,
चाँद बुझे तो घर भी जलाना पड़ता है...

तुम क्या जानो तन्हा कैसे जीते हैं,
दीवारों से सर टकराना पड़ता है...

तू भी फलों का दावेदार निकल आया,
बेटा पहले पेड़ लगाना पड़ता है...

मुश्किल फ़न है ग़ज़लों की रोटी खाना,
बहरों को भी शेर सुनाना पड़ता है...

- राहत इंदौरी

Rahat indori

24 Apr, 07:30


कई दिनों से अंधेरों का बोलबाला है
चराग़ ले के पुकारो, कहां उजाला है

ख़याल में भी तेरा अक्स देखने के बाद,
जो शख़्स होश गँवा दे, वो होश वाला है

जवाब देने के अन्दाज़ भी निराले हैं,
सलाम करने का अन्दाज़ भी निराला है

सुनहरी धूप है सदका तेरे तबस्तुम का,
ये चाँदनी तेरी परछाई का उजाला है

मैं तुझ को कुफ़्र से तशबीह दूँ कि इमाँ से,
पता नहीं कि तू मस्जिद है या शिवाला है

मज़ाक उड़ाते हैं पानी के बुलबुले उसका,
जिस आदमी ने समन्दर निचोड़ डाला है

है तेरे पैरों की आहट ज़मीन की गर्दिश,
ये आसमाँ तेरी अँगड़ाई का हवाला है

- राहत इंदौरी

Rahat indori

23 Apr, 07:30


जहाँ से गुज़रो धुआँ बिछा दो, जहाँ भी पहुँचो धमाल कर दो,
तुम्हे सियासत ने हक दिया है, हरी ज़मीनों को लाल कर दो

मोहब्बतों का हूँ मैं सवाली, मुझे भी एक दिन निहाल कर दो,
नज़र मिलायो, नज़र मिला कर, फ़कीर को मालामाल कर दो

अपील भी तुम, दलील भी तुम, गवाह भी तुम, वकील भी तुम,
जिसे भी चाहो हराम लिख दो, जिसे भी चाहो हलाल कर दो

है सादगी में अगर ये आलम, कि जैसे बिजली चमक रही है,
जो बन संवर के सड़क पे निकलो, तो शहर भर में धमाल कर दो

तुम्ही सनम हो, तुम्ही ख़ुदा हो, वफ़ा भी तुम हो, तुम ही जफ़ा हो,
सितम करो तो मिसाल कर दो, करम करो तो कमाल कर दो

तुम्हें किसी की कहां है परवाह, तुम्हारे वादे का क्या भरोसा,
जो पल की कह दो तो कल बना दो, जो कल की कह दो तो साल कर दो

अभी लगेगी नई नई सी, ये इक फज़ा है जो सुरमई सी,
जो ज़ुल्फ़ चेहरे से तुम हटा लो, तो सारा मंज़र गुलाल कर दो

- राहत इंदौरी

Rahat indori

22 Apr, 07:30


अगर नसीब करीब ए दर ए नबी हो जाये
मेरी हयात मेरी उम्र से बड़ी हो जाये

गुज़रता कैसे है एक एक पल मदीने में
अगर सुनाने पे आऊँ तो एक सदी हो जाये

दर ए हबीब से हर बार वापसी के वक़्त
दुआ ये माँगी के एक और हाज़री हो जाये

अंधेरे पाँव ना फैला सकें ज़माने में
दरुद पढ़िए के हर सिम्त रोशनी हो जाये

कबूतरों के मैं दाने समेट लाया था
इसी बहाने सितारों से दोस्ती हो जाये

मैं मीम हे लिखूँ फिर मीम लिखूँ दाल लिखूँ
ख़ुदा करे के यूँ ही खत्म ज़िन्दगी हो जाये

- राहत इंदौरी

Rahat indori

21 Apr, 13:00


मेरे पयम्बर का नाम है जो मेरी ज़ुबाँ पे चमक रहा है
गले से किरणें निकल रही हैं, लबों से ज़मज़म छलक रहा है

मैं रात के आखरी पहर में जब आपकी नात लिख रहा था
लगा के अल्फाज़ जी उठे हैं लगा के काग़ज़ धड़क रहा है

- राहत इंदौरी

Rahat indori

20 Apr, 13:00


अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी है ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे

ज़िन्दगी है तो नए ज़ख़्म भी लग जायेंगे
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे

आप से रोज़ मुलाकात की उम्मीद नहीं
अब कहाँ शहर में रहते हैं ठिकाने मेरे

- राहत इंदौरी

Rahat indori

19 Apr, 13:00


-राहत इंदौरी

Rahat indori

18 Apr, 13:00


दिल बुरी तरह से धड़कता रहा
वो बराबर मुझे ही तकता रहा

रोशनी सारी रात कम ना हुई
तारा पलकों पे इक चमकता रहा

छू गया जब कभी ख़याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा

कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में
और घर देर तक महकता रहा

उसके दिल में तो कोई मैल न था
मैं ख़ुदा जाने क्यूँ झिझकता रहा

मीर को पढ़ते पढ़ते सोया था
रात भर नींद में सिसकता रहा

-राहत इंदौरी

Rahat indori

17 Apr, 13:00


ज़ुल्फ़ बन कर बिखर गया मौसम,
धूप को छांव कर गया मौसम…

मैंने पूछी थी ख़ैरियत तेरी,
मुस्करा कर गुज़र गया मौसम…

-राहत इंदौरी

Rahat indori

16 Apr, 13:00


पुराने दाँव पर हर दिन नए आँसू लगाता है
वो अब भी इक फटे रूमाल पर ख़ुश्बू लगाता है

उसे कह दो कि ये ऊँचाइयाँ मुश्किल से मिलती हैं
वो सूरज के सफ़र में मोम के बाज़ू लगाता है

-राहत इंदौरी

Rahat indori

15 Apr, 13:00


हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो

न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो

- राहत इंदौरी

Rahat indori

13 Apr, 15:32


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Rahat indori

13 Apr, 13:00


हमसे पूछो के ग़ज़ल मांगती है कितना लहू
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है।
- राहत इंदौरी

Rahat indori

12 Apr, 13:00


रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

-राहत इंदौरी

Rahat indori

11 Apr, 13:00


झूठी बुलंदियों का धुंआ पार कर के आ
क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ

-राहत इंदौरी

Rahat indori

16 Feb, 13:00


आते जाते हैं कई रंग मेरे चेहरे पर,
लोग लेते हैं मजा ज़िक्र तुम्हारा कर के।

Rahat indori

15 Feb, 13:00


घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

-राहत इंदौरी

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