Darshnik Vichar @darshnikvichar Channel on Telegram

Darshnik Vichar

@darshnikvichar


विद्रोह ही अध्यात्म की आधारशिला है ।

💬 @Acharyaprashant

https://twitter.com/aach_prashant

Darshnik Vichar (Hindi)

दर्शनिक विचार - आध्यात्मिक ज्ञान के सफर में आपका स्वागत है! यह चैनल आपको मानवता और जीवन के सवालों पर गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करेगा। यहाँ प्रमुख आध्यात्मिक विचारक @Acharyaprashant की सामग्री साझा की जाती है जो आपको एक नयी दृष्टि देगा। आध्यात्मिक ज्ञान का अनमोल भंडार इस चैनल पर आपका इन्तजार कर रहा है। इस अद्वितीय साहसिक यात्रा में हमारे साथ जुड़ें और भव्य जीवन की खोज में नयी ऊंचाइयों को छूने का मौका पाएं। टेलीग्राम पर हमारे साथ जुड़ें और आध्यात्मिक ज्ञान के साथ एक साथ चलें। जीवन के महत्वपूर्ण सवालों का उत्तर पाने के लिए @darshnikvichar चैनल अब उपलब्ध है।

Darshnik Vichar

13 Dec, 15:22


मैंने कहा था कि पुष्पा फिल्म से हमें देश के विकास के लिए कौन सी शिक्षा मिलेगी ? तो किसी ने कहा था कि हर चीज से शिक्षा नहीं मिलती है हम हर चीज शिक्षा लेने के लिए नहीं देखते हैं कुछ चीजें मनोरंजन के लिए देखते हैं परन्तु यह सच नहीं है । हम मनोरंजन के लिए भी यदि देखें तब भी हम वह मनोरंजक चीज आपके मन में प्रवेश कर जाती है और आपको पता भी नहीं चलता है।

अभी हाल ही ग्वालियर में पुष्पा फिल्म देखने के लिए कोई व्यक्ति गया था तो उसमें बताते हैं कि ऐसा दृश्य है जिसमें पुष्पा अपने मुंह से किसी का कान खा जाता है यह देखकर वह लड़का थिएटर से निकला और निकलने के बाद किसी से झगड़ गया और झगड़े में उसने सामने वाले व्यक्ति का कान खा लिया क्योंकि उसके अंदर पुष्पा काम कर रहा था ।

धूम फिल्म देखकर क‌ई लोगों ने वैसे ही चोरी की थी बाद में पकड़े गए, केजीएफ के बाद सोना तस्करी करते हुए लड़के पकड़े ग‌ए।

युवाओं के हाथों फिल्मी स्टाइल में बहुत मर्डर होते हैं उस युवक को पता भी नहीं होता है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है वास्तव में उसका मस्तिष्क थियेटर से सीखकर आया था जो आज क्रियान्वित हुआ है।

पहले आप नग्नता का विरोध करते हैं लेकिन फिल्म देखते देखते ऐसे हो जाते हैं कि आप नग्नता का कब समर्थन करने लगते हैं आपको पता ही नहीं चलता ?

आज हमारे युवा वर्ग के लिए प्यार प्यार का रोग महामारी बन गया है यह सब कहां से सीखा है? बाॅलीवुड से ही न ? वेबसीरीज से ही न ?

ध्यान रहे आप जो भी सोचते हैं देखते हैं सुनते हैं वह अच्छा हो या बुरा उसका आपके मन पर प्रभाव हुए बिना नहीं रहता है। आपके अनुभव में आने वाली प्रत्येक क्रिया का का आपके अवचेतन मन पर प्रभाव होता है। और आपको पता भी नहीं चलता कि कि आपके द्वारा किए गए निर्णय आपके नहीं है वस्तुत: उसके पीछे मनोरंजन के लिए देखे गए दृश्य, संगीत और विचार होते हैं।

आप जाते हैं मनोरंजन के लिए और आप उसी मनोरंजन के शिकार कब हो जाते हैं आपको पता नहीं चलता ।

Darshnik Vichar

13 Dec, 08:08


https://youtu.be/CjFr9-zPbf8

Darshnik Vichar

01 Dec, 05:00


"स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित" स्वर्गीय पढ़कर मुझे ऐसा झटका शायद ही आज तक किसी की मृत्यु का लगा होगा। मैं सोच रहा हूं इतनी जवानी में कोई कैसे मर सकता है क्या इनसे किसी को खतरा था किसी ने कहीं मरवा तो नहीं दिया यह सब मेरे विचार चल रहे हैं ।कड़ाके की ठंड में मेरा पसीना बहने लगा हृदयगति बढ़ गई मुझे लगा कि मेरा सपना पूरा होने से पहले ही टूट गया फिर मैं उनकी मृत्यु का कारण जानने के लिए नीचे तेजी से स्क्रॉल कर रहा हूं।

और फिर देखा रामदेव ही उनकी मृत्यु का कारण उस लेख में दिख रहे हैं मेरा तो दिमाग सुन्न हो गया कि यह सब कैसे हो सकता है उस समय रामदेव के प्रति मेरी श्रद्धा ऐसे ही गिरी जैसे इस्राइल की मिसाइल से गाजा की इमारतें भरभराकर गिरती हैं। मैं रोता रहा और रोते रोते कब नींद आई याद नहीं...।

फिर मुझे सुबह उसी पृष्ठ पर राजीव दीक्षित जी के ऑडियो मिलते हैं मैं उनको डाउनलोड करके सुनना लगा और मुझे उनका नशा होता गया । इंटरनेट की स्पीड २जी में आती थी मैं जब तक भैंस का चारा काटता था तब तक नीम के पेड़ पर मोबाइल किसी टहनी के सहारे रख देता था एक दो घंटे में एक ऑडियो डाउनलोड हो पाता था जिसे मैं रात को सुन लेता था दूसरे दिन फिर यही करता था और उस समय उनके MP3 में मात्र १५५ व्याख्यान ही उपलब्ध हुआ करते थे।

मैं धीरे-धीरे उनको सुनता जा रहा हूं और देश की परिस्थितियों को समझ रहा हूं और तनाव बढ़ता जा रहा है। रातों की नींद दिन का चैन खोता जा रहा है दिन भर इयर फोन लगाकर उन्हीं को सुनता रहता हूं। खेलना कूदना दोस्तों के साथ मिलना घरवालों से बात करना सब बंद हो गया है इंटरनेट की कमी होने के कारण बड़े भाई को दिल्ली फोन करके उनसे कई सारे ऑडियो डाउनलोड करके लाने को कहा फिर वह डाउनलोड करके ले आए तो सारा डाटा अपने मोबाइल में ट्रांसफर करके पूरे के पूरे व्याख्यान मेरे मोबाइल में आ गए। मुझे लग रहा है कि मेरा खजाना आज मेरे क़ब्ज़े में आ चुका है।

सर्दियों का समय है और मैंने पीठ पर कीटनाशक छिड़काव की मशीन टांगी हुई है स्प्रे पाइप हाथ में ले रखा है गेहूं में छिड़काव कर रहा हूं जेब में मोबाइल और कान में ईयरफोन है उस दिन का व्याख्यान गुरुकुलों के स्वर्णिम युग के विषय में हैं जिसका शीर्षक है " आजादी के बाद भी चल रहा है लार्ड मैकाॅले का एज्युकेशन सिस्टम" जिसका समय १७२ मिनट है ।

मेरा शरीर गेहूं पर खरपतवार नाशक का छिड़काव कर रहा है। और साथ ही राजीव भाई मेरे मन पर अपने विचारों का छिड़काव कर रहे हैं। अंततः छिड़काव पूरा हुआ, खेत के खरपतवार का मैंने काम तमाम किया और साथ ही राजीव भाई ने मेरे अंदर के खरपतवार का काम तमाम कर दिया, मेरे सभी संदेह मिट ग‌ए वह व्याख्यान मेरे लिए "जीवन परिवर्तक" सिद्ध हुआ। अंतत: निश्चित हो गया कि अब गुरुकुल जाना ही है चाहे जो भी हो।

मैंने व्याख्यान समाप्त होते ही गुरुकुल में प्रवेश हेतु भारत स्वाभिमान के कार्यालय में पतंजलि योगपीठ हरिद्वार फोन किया कुछ बात होने के बाद उन्होंने कहा कि क्षमा कीजिए हम आपको प्रवेश नहीं दे सकते क्योंकि आप गृहस्थ हैं। हमारे यहां ब्रह्मचारियों को ही प्रवेश दिया जाता है।

मैं बहुत निराश हो गया अब मेरे पास मेरी जानकारी में कोई दूसरा गुरुकुल भी नहीं है मेरे गांव में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो किसी भी गुरुकुल के विषय में कुछ भी जानता हो। अब मैं एक गुरुकुल की खोज में भटक रहा था पर मुझे कहीं से कोई संपर्क नहीं मिला। अभी तक मुझे यह बिल्कुल पता नहीं है कि बाबा रामदेव के अतिरिक्त भी देश में गुरुकुल चलते हैं।

मैं राजीव भाई को ही सुनता रहा सुन सुन करके मुझे उनके सारे व्याख्यान याद हो गए जिसमें वह सारे आंकड़े बोलते हैं अंग्रेजों के नाम लेते हैं भारतीय राजनेताओं के नाम लेते हैं लगभग मुझे उनके सारे व्याख्यान याद हो गए थे। रात को भी मैं सोता नहीं था इसीलिए मैं रात को भी वही सुनता रहता था तनाव का शिकार होता जा रहा था शरीर बहुत कमजोर हो गया खाना खाते ही उल्टियां आती थीं, चक्कर आते थे । बीपी बढ़ता रहता था लगता था कि अब हृदयाघात होगा।

अभी तक मेरे अंदर क्या चल रहा है यह घर वालों को पता ही नहीं है।
मां कहती है कि इतना कमजोर हो रहा है शरीर काला पड़ गया है खाते ही उल्टियां हो रही है क्या चक्कर है ? डॉक्टर को दिखाओ लेकिन मुझे पता था कि मेरे रोग की चिकित्सा किसी भी डॉक्टर के पास नहीं है इसीलिए मैंने किसी भी चिकित्सक को कोई संपर्क नहीं किया। मां कहती थी कि आखिर तेरी समस्या क्या है ऐसी स्थिति क्यों हो रही है तेरी ?

अब मैं मां को कैसे समझाऊं कि क्या समस्या है ? कैसे बताऊं कि देश लुट रहा है और मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं। शायद इस पर वो हंसती या आप भी हंसोंगे कि ऐसा किसके साथ होता है भाई ? परन्तु यह मेरे साथ हुआ था और मैंने किसी को कुछ नहीं बताया आज तक कि मैं अंदर में मर रहा हूं ।

Darshnik Vichar

01 Dec, 05:00


३० नवंबर की वह रात...#राजीव_दीक्षित जी और मैं 🚩

गांव में आर्य समाज का कार्यक्रम हो रहा है समय है फरवरी २०११ , जो भी वक्ता मंच पर आ रहा है वह चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है सत्यार्थ प्रकाश पढ़ो सत्यार्थ प्रकाश पढ़ो तो मैं सोच रहा हूं कि इतनी पुस्तक पढी हैं है तो चलो इनके कहने से एक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ लेते हैं इसमें ऐसा है क्या जो इतना जोर दे रहे हैं इसके लिए। फिर मैं अपने गांव के किसी व्यक्ति से सत्यार्थ प्रकाश लेता हूं और उसे पढ़ रहा हूं। पूरा पढ़ने के पश्चात् राष्ट्र और धर्म क्या है मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है मैं फिर अपनों से टेढ़ी मेढी बात करने लगा हूं (घर वालों के अनुसार) जो कि सीधी हैं। मैं हर बात का अलग ढंग से जवाब देता हूं मेरी मां कहती है कि यह जो लाल पुस्तक (सत्यार्थ प्रकाश) है इसे पढ़ने के बाद ही इसके दिमाग में कुछ हुआ है।

यह सब चलता रहता है पड़ोसी की टीवी में एक दिन स्वामी रामदेव को देखता हूं और पाता हूं कि यह बाबाजी तो देश धर्म की बातें सत्यार्थ प्रकाश में से ही कर रहे हैं इसलिए मैं उनसे प्राभावित होकर प्रतिदिन उनको सुनता हूं और साथ ही योगासन प्राणायाम करना सीख गया हूं भजन भी चिल्ला चिल्लाकर गाने लगा हूं।

"भगवान आर्यों को ऐसी लगन लगा दे"
"आज जरूर भारत मां को ऐसे वीर जवानों की"

मां मुस्कुराते हुए कहती हैं कि प्रशान्त पागल हो गया है दिन भर आर्यों के गीत गाता है । भारत में स्वामी रामदेव स्वदेशी, एवं योग की क्रान्ति कर रहे हैं, यह स्वामी रामदेव का २०१२ का स्वर्णिम काल चल रहा है।

३० नवम्बर की रात्रि ८ बजे मैंने देखा कि स्वामी रामदेव के साथ मंच पर एक व्यक्ति पायजामा कुर्ता पहने हुए भाषण दे रहा है विषय है "भारत की दुनिया को देन" यह देख कर सबसे पहले यही लगा कि आज तो बाबा जी किसी नेता को पकड़ कर ले आए लेकिन मैं जब उनको यह कहते हुए सुना कि भारत का व्यापार पूरी दुनिया में सबसे अधिक था भारत के शिक्षा व्यवस्था ऐसी थी भारत की चिकित्सा व्यवस्था ऐसी थी भारत इतना उन्नत था भारत की संस्कृति ऐसी थी सभ्यता ऐसी थी ऐसी ऐसी बातें जब मैंने सुनी तो मुझे लगा कि यह व्यक्ति कोई नेता तो हो नहीं सकता क्योंकि नेता तो ऐसी बात करते हैं कि हमने इतने श्मशान इतनी सड़कें बनवाई हमने इतने अस्पताल बनवाए देश के इतिहास, व्यापार, चिकित्सा, स्वदेशी, आयुर्वेद संस्कृति की इतनी प्रमाण के साथ कोई व्यक्ति बात कर रहा है यह कोई भी हो परन्तु नेता तो हो नहीं सकता लेकिन यह कौन है मुझे नहीं पता मैंने उनके हाथों में कई सारे दस्तावेज देखे जिसे देखकर वे बात कर रहे थे मेरा बहुत जोर से मन किया कि इसे मुझे अपने जीवन में इस व्यक्ति से एक बार जरूर मिलना है और इनसे यह दस्तावेज लेकर यही बातें पूरे भारत में पहुंचानी हैं।

परन्तु मुझे अभी तक इनका नाम नहीं पता है तो मुझे लगा कि पता नहीं ये व्यक्ति कब आता है चैनल पर रोज ध्यान देना पड़ेगा इसे तो सुनना पड़ेगा तो सोचा स्वयं की टीवी खरीदकर लाता हूं इसलिए घर पर ही सुनेंगे क्योंकि दूसरे लोग चैनल बदल देते हैं कभी कोई सीरियल देखते हैं या कभी मूवी और इतने में मेरा दम निकल जाता है लगता है कि बहुत कुछ छूट रहा है।

पिताजी ने उसी समय कर्जा मुक्ति के लिए अपना पैतृक खेता बेचा था इसी रकम में से मैं १०००० रुपए लिए (पिताजी से पहली और अंतिम बार कुछ मांगा था अपने लिए) और घर में टीवी लेकर आया उसी समय महाभारत भी आता था तो एक भी एपिसोड बिना छोड़े वह भी मैं प्रतिदिन देखता था।

मैं व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रहा हूं कि वह पायजामा कुर्ता वाला व्यक्ति अब दोबारा टीवी पर कब आएगा और मुझे कैसे पता चलेगा कि वह कहां रहता है मैं उसे कैसे मिल सकता हूं मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न है ?

एक दिन बाजार की गली से गुजरते हुए एक पतंजलि स्टोर पर मेरा ध्यान जाता है और उसी दुकान में रखे काउंटर पर एक फ्लेक्स बैनर लटका हुआ होता है जिस पर उस पजामा कुर्ते वाले व्यक्ति का फोटो दिखाई देता है और उसके नीचे उसका नाम लिखा होता है राजीव दीक्षित (भारत स्वाभिमान)

मुझे उनका नाम मिल जाता है, अब यह राजीव दीक्षित कौन है इसके विषय में जानने के लिए मेरे पास बस एक ही साधन है वह है मेरा माइक्रोमैक्स का कीपैड मोबाइल जिसमें मैंने शायद ही पहले कभी इंटरनेट का उपयोग किया था।

२जी इंटरनेट पर मैंने गूगल से पूछा कि राजीव दीक्षित कौन है। रात्रि का समय है भयंकर ठंड है मैं रजाई में लेटा हुआ हूं, बफरिंग हो रही है धीरे-धीरे धुंधले अक्षर स्पष्ट हो रहे हैं और मेरे मन में कल्पना चल रही है कि आज मेरा हीरो मुझे मिल गया और अब मैं अपने हीरो से मिल पाऊंगा और तभी पूरा पृष्ठ खुलता है गूगल मेरे प्रश्न का उत्तर देता है उसमें राजीव भाई के चित्र के नीचे नाम आता है जिसमें लिखा है

Darshnik Vichar

01 Dec, 05:00


अभी यह स्थिति बन गई है कि जब भी किसी नेता को देख रहा हूं तो उसमें लार्ड डलहौजी, ए च व्हीलर, नील दिख रहा है। किसी के हाथ में कोल्ड ड्रिंक देख रहा हूं कोलगेट देख रहा हूं तो मुझे लग रहा है कि देश की सबसे बड़ी बर्बादी का कारण यही लोग हैं। यह सब दिन भर चलता है। लोगों को समझाता हूं पर कोई मानता नहीं है।

मुझे लगने लगा कि अब गुरुकुल जाने से रहा और यहां मैं ऐसे जीने से रहा और मुझे लगता है कि मैं अब देश के लिए कुछ कर भी नहीं पाऊंगा इसलिए अपनी जीवन लीला को समाप्त कर देते हैं। नींद आती ही नहीं है मैं परेशान हो गया स्वयं से, इसलिए क‌ई बार रात को उठकर सोचता हूं चलते हैं किसी ट्रेन के सामने और सब समाप्त कर देते हैं। परन्तु घर में पूरे परिवार को सोता हुआ देखता हूं उनको लेकर विचार करता हूं तो मोहपाश से बंध जाता हूं इसलिए आत्मह*** का विचार त्याग देता हूं सोचता हूं कि कल देखेंगे, आज और देखते हैं शायद नींद आ जाए या कुछ मार्ग दिख जाए। अब मेरे पास दो ही विकल्प हैं या तो राष्ट्रसेवा या फिर सब कुछ समाप्त इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है आंखों के सामने...

ऐसे ऐसे समय बीतता जा रहा है एक दिन किसी ने बताया कि वृन्दावन में एक गुरुकुल है पर वो कैसा है क्या है उसका संपर्क सूत्र क्या है वहां क्या पढ़ाते हैं किसे पढ़ाते हैं यह मुझे कोई जानकारी नहीं है पर एक गुरुकुल है वृंदावन में इतना पता है। तो मैंने कहा ठीक है फिर वहीं जाकर देखता हूं।

पिताजी से गुरुकुल के विषय में कहने को साहस नहीं हो रहा है मां को ही पूछ लिया कि मैं दो वर्ष के लिए गुरुकुल जाना चाहता हूं कृपया मुझे अनुमति दीजिए।

मां ने फटकार लगाई कि अपनी पत्नी बच्चे को संभाल और यहीं कुछ कर, अब तेरे गुरुकुल जाने का समय नहीं है। मैंने उनसे रोकर बहुत विनती की क्योंकि मुझे कैसे भी करके स्वयं को बचाना है यदि गुरुकुल नहीं गया तो न चाहते हुए श्मशान जाना पड़ेगा यह स्थिति थी।

मां ने कहा कि ठीक है दो वर्ष में लौट आना मुझे स्वीकार है पर अपने पिताजी से पूछ लेना एक बार... पिताजी का उत्तर मुझे पता था कि वो कभी नहीं जाने देंगे ऊपर से भड़केंगे वह अलग है।

मैंने तय कर लिया कि चलो चलते हैं मां का आशीर्वाद ही बहुत है। लेकिन कब जाऊं कब जाऊं यह चल रहा है। एक दिन सुबह सुबह चंद्रमोहन शर्मा की आवाज में भजन चल रहा है "फिर मत कहना कुछ कर न सके" इन शब्दों ने मेरे अंदर प्राण भर दिए मैंने घर जाकर बैग धोकर सुखाने रख दिया अगले दिन जाने के लिए।

अगले दिन पिताजी घर से बाहर ग‌ए हैं यही अवसर है भागने का मैंने अवसर का लाभ उठाया और मैं घर से निकल लिया रास्ते मैं पिताजी दिख ग‌ए मैंने उनसे किनारा काट लिया बैग से मुंह छिपाकर निकल गया , उनको घर जाकर पता लगा होगा तब तक मेरी ट्रेन अपने गंतव्य पर निकल चुकी थी‌।

जब गुरुकुल में रहने लगा तो मुझे जीवनीय आशा की किरण दिखी कि हाँ! मैं अब कुछ कर सकता हूं। मेरा तनाव एक सप्ताह में दूर हो गया नींद भी आने लगी सब ठीक-ठाक हो गया अब न‌ए जीवन की नई समस्या थीं। उस पर पहले ही लिखा था मैंने "वीर सावरकर और मैं" नीचे टिप्पणी में लिंक दे रहा हूं आप देख सकते हैं।

इतना लम्बा इसलिए नहीं लिखा है कि आप जानें कि मैं कौन हूं। मुझे जानना कोई महत्वपूर्ण विषय नहीं है किसी के लिए, यह इसलिए लिखा है कि आप यह जानें कि एक भारतीय युवक के लिए श्री राजीव दीक्षित जी कितने महत्वपूर्ण हैं उनका समाज पर‌ क्या प्रभाव है । उनका इस अंधे समाज पर के लिए क्या योगदान हैं।

मेरे जीवन को एक नई दिशा देने का मुख्य श्रेय किसी को जाता है तो वह मेरे गुरु राजीव भाई हैं। जिनमें मैं २१ वीं सदी के एक क्रान्तिकारी के दर्शन करता हूं।
जब भी वे बोलते हैं तो मुझे ऐसा लगता है कि चंद्रशेखर आजाद के ही प्रतिनिधि ही मुझे जगा रहे हैं।

वो ३० नवम्बर की रात जब मुझे राजीव भाई के दर्शन टीवी पर पहली बार हुए उसे मैं कभी नहीं भुला सकता, कोई आया जो मुझे अंदर तक हिलाकर रख गया और मेरे जैसे अन्य हजारों लाखों युवाओं को । आज ३० नवम्बर है आज उनकी बहुत याद आई तो बस लिख दिया...

यह सब किसी को भी नहीं पता मेरे घर भी नहीं, आज १३ वर्षों के बाद पहली लिख रहा हूं।

हालांकि दर्शन पढ़ने के बाद और बीतते समय के साथ जीवन में अभी बहुत कुछ बदल चुका है। वह २०१२ का दौर था आज २०२४ का दौर है।

आपने धैर्यपूर्वक यहां तक पढ़ा उसके लिए धन्यवाद।
राजीव भाई अमर रहें..हमारे हृदय में 🙏

Darshnik Vichar

27 Nov, 16:50


तथाकथित बुद्धिजीवियों से मेरा प्रश्न...

मैं मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में रहता हूं मेरी सनातन धर्म में अटूट श्रद्धा है मेरा कर्म भी धर्मानुसार है मैं दर्शन का विद्यार्थी हूं इसलिए वास्तविक धर्म को मानता हूं राजनीतिक धर्म को नहीं। मेरी दृष्टि में सभी मनुष्य हैं हिन्दू मुस्लिम जैसा कुछ भी नहीं है मैं जानता हूं यह सब संप्रदाय या मज़हब हैं इनका धर्म से कोई संबंध नहीं है न मैं हिंदुओं की किसी गलत मान्यता का समर्थन करता हूं ना मैं मुसलमानों की किसी गलत मान्यता का समर्थन करता हूं और मेरा इसी कारण न किसी हिंदू से कोई संबंध है ना किसी मुस्लिम से कोई संबंध है।

मैं अपना व्यक्तिगत जीवन अपने आश्रम में व्यतीत करता हूं गौ सेवा करता हूं नित्य यज्ञ हवन सत्संग भजन करता हूं वेद पाठ करता हूं। अपने जीवन में व्यस्त हूं मुझे किसी हिन्दू राष्ट्र या इस्लामिक राष्ट्र से कोई प्रयोजन नहीं है।

और यह सब करते हुए मैं हिन्दुओं के समुदाय के लिए उनके जैसा हिन्दू ही हूं जो हवन पूजा पाठ करता है राम श्याम की बात करता है इसलिए हिन्दू मुझे अपना शत्रु नहीं मानते इसलिए मुझे भी उनसे मेरे धार्मिक होने के कारण उनसे कोई खतरा नहीं है।

परन्तु मुस्लिम समुदाय के लिए हिन्दू समुदाय काफिर है इसलिए वह हिन्दुओं को अपना शत्रु मानता है और किसी दिन उनका मस्तिष्क घृणा का शिकार होकर हिन्दुओं पर आक्रमण कर देता है एक पागल भीड़ में सैकड़ों लोग हथियार लेकर हिन्दुओं को काफिर कहकर मारना चाहते हैं और वे पूरी शक्ति से वार कर रहे हैं कोई किसी की नहीं सुन रहा है चारो ओर चीखें हैं चीत्कार हैं।

ऐसे में उस उन्मादी भीड़ को मेरी यज्ञशाला पर भगवा ध्वज लहराता हुआ दिखता है और मैं उसमें बैठ करके यज्ञ कर रहा हूं। उस समय तक मुझे उस दंगे से भी कोई लेना-देना नहीं है। मैं अपनी भक्ति में लीन हूं । परन्तु वह भीड़ भगवा देखकर भड़क जाती है और मेरे आश्रम की ओर टूट पड़ती है उनको मेरी गाय दिखती है जिसे देखकर उनका खून खौल उठता है इसलिए वे उसे काट देना चाहते हैं वेदों को देखकर जला देना चाहते हैं उन्हें पता है मैं अल्लाह को नहीं मानता मुहम्मद को पैगम्बर नहीं मानता मेरा संस्कार सनातन का है जो कुछ पारंपरिक हिन्दुओं से मेल खाता है इसलिए वह भीड़ मुझे हिन्दू समझकर मेरे रक्त की प्यासी हो जाती है और मुझ पर तलवार उठा लेती है चारों ओर से आवाज आ रही है मारो मारो और मेरी कोई सुन ही नहीं रहा है।

मुझे बुद्धिजीवी जबाव दें ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए

क्या मैं गर्दन पर आती हुई तलवार के मालिक को उसी क्षण दर्शन उपनिषद् के सूत्र सुनाऊं कि सब आत्मा ही है हिन्दू मुस्लिम जैसा कुछ नहीं है।

यह हिंसा है, यह धर्म नहीं है,

वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करो हम सब एक ही परिवार के हैं ।

मैंने तो आज तक मुस्लिमों या इस्लाम के विरोध में कुछ नहीं लिखा ।

मैं आपको भी उतना ही प्रेम करता हूं जितना कि हिन्दुओं को।

या उनको यह गीत सुनाऊं कि तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा तू इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।

मेरे लिए अरब और भारत सब एक हैं।

क्या इन सब बातों को वह उन्मादी भीड़ सुन पाएगी ।

क्या उन्होंने इतने ऊंचे भाव को कभी अनुभव भी किया है अपने जीवन में जो मेरे उसे उस भाव को समझ पाएं ?

क्या वे मुझे छोड़ देंगे जबकि मेरे कृत्य को देखकर सामान्य हिन्दू से अधिक नफ़रत है उनको मुझसे है क्योंकि मेरे आश्रम और मेरे शरीर पर सनातन धर्म के प्रतीक हैं जनेऊ शिखा तिलक आदि देखकर उनको लग रहा है कि मैं कट्टर हिन्दू हूं।

क्या उनमें से कोई भी बुद्धिमान मुस्लिम उस भीड़ को यह समझाने की कोशिश करेगा कि यह किसी संप्रदाय या मजहब से नहीं है इनको छोड़ दीजिए।

तो क्या ऐसी स्थिति में मुझे सर झुका के कट जाना चाहिए ? क्योंकि मैं धार्मिक उन्माद नहीं चाहता यदि शस्त्र उठाऊंगा तो बीजेपी का भड़काया हुआ माना जाऊंगा। संघी माना जाऊंगा नफरती माना जाऊंगा।

क्या मुझे शस्त्र से उस हिन्दू समुदाय का साथ देना चाहिए जो अकारण मारा जा रहा है। और जबकि वह समुदाय मुझे भी अपना ही मानता है मुझे कोई क्षति भी नहीं पहुंचाना चाहता है क्योंकि हमारे धर्म ग्रंथ एक हैं महापुरुष एक हैं बस दार्शनिक सिद्धान्तों पर वैचारिक तल पर भेद है।

तो मुझे क्या करना चाहिए, जो सेक्युलर बुद्धिजीवी सुझाव दें उनसे पूछता हूं कि आप क्या करेंगे जब आप पर कोई अकारण आक्रमण करेगा ?

आप शस्त्र उठाएंगे या चुपचाप कट जाएंगे ?

वे लोग भी सुझाव दें जो यह कहते हैं कि आप मुसलमानों से नफ़रत क्यों करते हो ।
जबकि सत्यता यह है कि मैं किसी से नफ़रत नहीं करता लेकिन मैं काफिर की श्रेणी में खड़ा हूं इसलिए ही बाजिव ए क*** हूं।

~ आचार्य प्रशान्त शर्मा

https://www.facebook.com/share/p/19kbLKJdTA/?mibextid=oFDknk

Darshnik Vichar

26 Nov, 01:45


आजकल लोग स्क्रीन इतना स्क्राॅल कर रहे हैं कि वे एक ही दिन में क्या क्या पढ़ कर खिसका दिए उन्हें याद ही नहीं रहता उस पर वे चिंतन मनन नहीं कर पाते लाइक कमेंट करके छुट्टी, जबकि कोई भी विचार लाइक कमेंट के लिए नहीं चिंतन मनन और आचरण के लिए होता है।

और मैंने जहाँ तक अनुभव किया है वहाँ तक यही पाया है कि यूट्यूब का ज्ञान चिरस्थाई नहीं होता पुस्तक की अपेक्षा, और वीडियो में भी एकाग्रता नहीं बनती है क्योंकि एक ओर वीडियो चलता रहता है दूसरी ओर अन्य कार्य चलते रहते हैं इसलिए वहाँ भी इतना लाभ नहीं हो पाता जितना कि एक पुस्तक से होता है क्योंकि पुस्तक पढ़ते समय व्यक्ति एक ही कार्य कर रहा होता है या तो वह पढ़ रहा होता है या फिर नहीं पढ़ रहा होता है यदि वह पढ़ रहा होता है तब वह साथ ही साथ उस पर विचार भी कर रहा होता है यदि उसकी समझ में नहीं आता तो वहीं उसी पंक्ति पर रुककर उस बात पर विचार करता है इसलिए बात समझ में भी आ जाती है।

इसीलिए मैंने इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए अभी एक पुस्तक के रूप में
लेखन कार्य प्रारंभ किया है जो की पूर्णत: दर्शन, philosophy और मनोविज्ञान पर आधारित होगी। जो कि जीवन को एक नई दिशा प्रदान करने में सहायक होगी।

कब तक वह प्रकाश में आएगी यह कहा नहीं जा सकता यह परिस्थितियों पर निर्भर है 🙏

Darshnik Vichar

22 Nov, 11:27


हिन्दू बंटेगा देश बंटेगा...

धीरेन्द्र शास्त्री जी द्वारा पदयात्रा के माध्यम से जातिवाद को मिटाने का प्रयास सराहनीय है इसका विरोध कुछ धर्म के ठेकेदारों द्वारा आरम्भ भी हो गया है और आगे भी होगा और यह पहली बार नहीं है पहले भी घर-वापसी कराने के लिए स्वामी श्रद्धानंद जी ने बहुत गालियां खाईं थी सावरकर जी को बहुत कुछ झेलना पड़ा था दलितों को मंदिरों में प्रवेश कराने के लिए।

ऐसे जागरण के प्रयास कुछ जातिवीरों की छाती में भाले की तरह चुभते हैं स्वयं को उत्तम नस्ल का हिन्दू मानने वाले कुछ लोगों के कुकृत्यों के परिणामस्वरूप ही आज समाजिक भेद-भाव इतना बढ गया है कि जातिगत रोग हर जाति के लोगों के रोम रोम में समाहित हो गया है इसे ध्वस्त करना जागरूक मनुष्य का उत्तरदायित्व है जिसका निर्वहन हम सभी को करना आवश्यक है।

शास्त्रों की आड़ में अपने अहंकार को पोषण देने का कुत्सित प्रयास अब निरर्थक होना चाहिए।

जिस प्रकार कानून का , टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग उसी क्षेत्र में शीर्षस्थ लोगों के द्वारा जनता को शोषित करने के लिए किया जाता है उसी प्रकार शास्त्रों का दुरुपयोग शीर्षस्थ विद्वानों के द्वारा कुछ सदियों से किया जाता रहा है जिसकी इति श्री करने का अभी ठीक समय है हिन्दुओं के लिए...

Darshnik Vichar

13 Nov, 16:47


परम्परा से हमें ग्रंथ में वर्णित मात्र शब्द प्राप्त होते हैं; ज्ञान नहीं ! उनमें छिपा सत्य तो हमें स्वयं खोजना पड़ता है।

Darshnik Vichar

11 Nov, 08:03


आचार्य कश्यप जी रोजड गुरुकुल से online कक्षा लेंगे । जो भी माता पिता अपने बच्चों को घर बैठे धार्मिक शिक्षा दिलाना चाहते हैं वे प्रवेश ले सकते हैं

Darshnik Vichar

11 Nov, 08:00


योग्यता + नियम + सूचनाएँ

- आयु 13 वर्ष से न्यून हो ।
- यदि भविष्य में गुरुकुल में पढ़ने/पढ़ाने की इच्छा है ।
- आप नियमित कक्षाओं में उपस्थित होने के लिए सज्ज है । महीनें की सामूहिक से अतिरिक्त केवल पाँच अवकाश मान्य होंगे ।
- प्रतिदिन का ऑनलाइन मिलने वाला गृहकार्य करेंगे। प्रतिदिन 10 से 15 मिनिट का गृहकार्य रहेगा । प्रति गृहकार्य ₹20 शुल्क रहेगा ।
- आप 45 मिनिट की इस कक्षा में नियमित उपस्थित होंगे ।
- प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होकर ही प्रवेश की अनुमति रहेगी ।
- रविवार को अवकाश रहेगा । परिस्थिति विशेष में आप अनुमति पूर्वक ही अवकाश लेंगे।
- अधिकतम 10 से 12 बच्चों को ही अनुमति रहेगी। पूर्व आवेदन स्वीकृत रहेंगे।
- आवेदन शुल्क - 50
- प्रवेश परीक्षा शुल्क - ₹200
- प्रतिविद्यार्थी मासिक शुल्क -2000
- कक्षा का समय सायं - 07:30 से 08:15
- सूचना प्रसारण का माध्यम व्हॉट्सएप रहेगा।
- कक्षा की अवधि परिस्थिति के अनुकूल रहेगी।
- वस्त्रों की बैठने की सभ्यता रहेगी।
- ये नियम अभिभावक के साथ बालक/बालिका भी जान रहे हैं।
- स्मृति शक्ति तीव्र होना आवश्यक है।


अभिभावकों के लिए अनिवार्य - आप अपने बालक/बालिका का एक ई गुरुकुल में प्रवेश करा रहे हैं तो वह उस एक घंटे वह गुरुकुल अधीन रहेगा । उस समय अन्य सभी आवश्यक/अनावश्यक कार्य गौण रहेंगे या नहीं रहेंगे।


यदि सभी वस्तुओं में आपकी अनुकूलता रहती है तो आप vedicprerna.com पर जाकर आवेदन करें।

Darshnik Vichar

05 Nov, 06:34


शास्त्रों में देखने पर पाएंगे कि आत्मा अमर है, शरीर मर जाता है।
परन्तु समाज में देखेंगे तो पाएंगे कि आत्मा मर चुकी है शरीर जिंदा हैं।

विरले लोग ही आत्मवान होते हैं; शेष सब शरीर मिट्टी के लोथड़े मात्र होते हैं।

Darshnik Vichar

02 Nov, 12:13


https://youtu.be/sLrriyC7Vas

Darshnik Vichar

21 Oct, 10:33


मैंने जेल से भागने के अनेक प्रयत्न किये, किन्तु बाहर से कोई सहायता न मिल सकी। यह तो हृदय पर आघात लगता है कि जिस देश में मैंने इतना बड़ा क्रान्तिकारी आन्दोलन तथा षड्यन्त्रकारी दल खड़ा किया था, वहाँ से मुझे प्राण-रक्षा के लिये एक रिवाल्वर तक न मिल सका। एक नवयुवक भी सहायता को न आ सका अन्त में फाँसी पा रहा हूँ। फाँसी पाने का मुझे कोई भी शौक नहीं; क्योंकि मैं एक नतीजे पर पहुँचा हूँ कि परमात्मा को यही मंजूर था। मगर मैं नवयुवकों से फिर भी नम्र निवेदन करता हूँ कि जब तक भारतवासियों की अधिक संख्या सुशिक्षित न हो जाये, जब तक उन्हें कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का ज्ञान न हो जाये, तब तक वे भूल कर भी किसी प्रकार के क्रान्तिकारी षड्यन्त्रो में भाग न लें।

यदि देशसेवा की इच्छा हो, तो खुले आन्दोलनों द्वारा यथाशक्ति कार्य करें, अन्यथा उनका बलिदान उपयोगी न होगा। दूसरे प्रकार सै इससे अधिक देशसेवा हो सकती है, जो ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगी। परिस्थिति अनुकूल न होने से ऐसे आन्दोलनों में परिश्रम प्रायः व्यर्थ जाता है। जिनकी भलाई के लिये करो, वही बुरे-बुरे नाम धरते हैं और अन्त में मन ही मन कुढ़-कुढ़कर प्राण त्यागने पड़ते हैं।

देशवासियों से यही अन्तिम विनय है कि जो कुछ करें, सब मिलकर करें और सब देश की भलाई के लिये करें। इन्हीं से सबका भला होगा:-

मरते 'बिस्मिल', 'रोशन', 'लहरी', 'अशफाक' अत्याचार से।
होंगे पैदा सैकड़ों इनके रुधिर की धार से ॥

~ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल

Darshnik Vichar

21 Oct, 04:39


विशिष्ट सूचना....

हमारे कुछ श्रोताओं की बहुत दिनों से प्रार्थना थी कि आप हमें online हमारे दर्शन आदि ग्रंथों को विस्तृत रूप से पढ़ाएं कोई कक्षाएं लें, तो समयाभाव के कारण वह संभव नहीं हो पाया।

परन्तु अभी उपनिषद् ,श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण एवं महाभारत जैसे अन्य धर्म ग्रंथों को सम्पूर्ण रूपेण अंतर्जाल के माध्यम से अध्यापन कराने की योजना है जिससे आप स्वयं घर बैठकर ही ग्रंथों को जान सकें और नारकीय जीवन से निजात पाकर आध्यात्मिक यात्रा पर चल सकें, उसके लिए कुछ संसाधनों में व्यवस्था परिवर्तन की अत्यावश्यकता है। यदि आप चाहते हैं कि यह विचार साकार हो आप हमसे प्रत्यक्ष रूप से भी मिलकर धर्म अध्यात्म जैसे विषयों पर संवाद कर सकें तो कृपया अधिक से अधिक सहयोग करें एवं करवाने का प्रयास करें ।

✉️ [email protected]

~ आचार्य प्रशान्त शर्मा 🙏

Darshnik Vichar

16 Oct, 03:43


अष्टाशीतिसहस्राणि मुनीनामूर्ध्वरेतसाम्
स्मृतं तेषां तु यत्स्थानं तदेव गुरुवासिनम्।।

अठ्ठासी हजार ऊर्ध्वरेता मुनि हैं उनका जो स्थान बताया गया है वही गुरुकुलवास ब्रह्मचारियों का स्थान है।

~ विष्णु पुराण

Darshnik Vichar

10 Oct, 14:12


https://youtu.be/em7g1aHfqPs?si=hiYykd6dpmmu8A3-

Darshnik Vichar

04 Oct, 11:35


https://youtu.be/0Or-4AZmO2k?si=rKsur0hm699NmsDK

Darshnik Vichar

04 Oct, 09:10


श्रीमद्दयानंद कन्या गुरुकुल चोटीपुरा अमरोहा 🚩

Darshnik Vichar

28 Sep, 05:24


जानने का अर्थ है, वैसा ही हो जाना।

Darshnik Vichar

27 Sep, 09:42


साधना पथ पर बढ़ें हम,
बन्धनों से प्रीति कैसी।

शलभ बन जलने चले हैं
अस्तित्व निज खोने चले हैं,
दीप सम जलना हमें है
दाह से फिर भीति कैसी ।

सिन्धु से मिलने चले हैं
सर्वस्व निज देने चले हैं,
अटल से मिलना हमें है
शून्यतट पर दृष्टि कैसी।

बीज सम मिटने चले चले हैं
वृक्ष सम उगना हमे हैं,
धर्म ध्वज के स्तम्भ बनना
देह में अनुरक्ति कैसी ।

दीप बन जलना हमें है
विश्व तम हरना हमें है,
ध्येय तिल तिल जलन का है
कालिमा से भीति कैसी।

आधार ही बनना हमें है
नींव में रहना हमें हैं,
ध्येय जब यह बन चुका है
कीर्ति में आसक्ति कैसी।

साधना पथ पर बढ़ें हम,
बन्धनों से प्रीति कैसी।

~ साधक

Darshnik Vichar

22 Sep, 10:16


लोकमान्यता अनल सम कर तप कानन दाहु।

लोक में प्रतिष्ठा (सम्मान) अग्नि के समान है,
जो तप रूपी वन को भस्म कर डालती है।

Darshnik Vichar

21 Sep, 14:25


https://youtu.be/DyXJq784AiE?si=XJWr1vhpvUQDeWHI पूरा वीडियो चैनल पर देखें 🙏

Darshnik Vichar

08 Sep, 09:02


https://youtu.be/e878BwIoxVM?si=lZ-3bV1pSROLvHJm

Darshnik Vichar

06 Sep, 16:09


https://youtu.be/YbRXgFtIAOg?si=OvMsyB1s1FMGSiQR

Darshnik Vichar

05 Sep, 01:48


https://youtu.be/vuE2K918TDU

2,259

subscribers

389

photos

150

videos