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सत्यार्थ प्रकाश (Hindi)

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सत्यार्थ प्रकाश 🚩

02 Dec, 14:46


प्र. २११. ईश्वर के मुख्य कार्य कौन कौन से हैं ?

उत्तर : ईश्वर के मुख्य रुप से ५ कार्य हैं : (१) सृष्टि को बनाना,
(२) पालन करना,
(३) संहार करना,
(४) जीवों के कर्मों का फल देना,
(५) वेदों का ज्ञान देना ।

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01 Dec, 14:04


प्रश्न 125. परमेश्वर को ‘प्रिय’ क्यों कहा गया है ?

उत्तर— जो सब धर्मात्माओं, मुमुक्षुओं और शिष्टों को प्रसन्न करता और सब के द्वारा कामना के योग्य है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘प्रिय’ है ।

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01 Dec, 14:03


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30 Nov, 11:58


- ऋषि दयानंद जी

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29 Nov, 10:44


प्रश्न 124. परमेश्वर को ‘महादेव’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो महान् देवों का देव अर्थात विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘महादेव’ है ।

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25 Nov, 14:27


*जरा सोचिये हम किधर जा रहे हैं और कहाँ जाए्ंगे अभी * दोष अपना है विधर्मियों को कोसना छोड़ो क्योंकि हमने स्वयं धर्म को छोड़ा है।

*1.*  चोटी छोड़ी ,
*2.*  टोपी, पगडी छोड़ी ,
*3.*  यज्ञोपवीत छोड़ा ,( जनेऊ)
*4.*  कुर्ता छोड़ा ,धोती छोड़ी ,
*5.* नमस्ते छोड़ी ,
*6.* ओ३म् उचारण और  संध्या वंदन छोड़ा
*7.* यज्ञ हवन करना छोड़ा ,
*8.* धर्म शास्त्र वेद छोड़ा
*9.*बाल्मिक रामायण पाठ, गीता पाठ छोड़ा ,
*10.*महिलाओं, लडकियों ने साड़ी छोड़ी , बिछिया छोड़े , चूड़ी छोड़ी , दुपट्टा, चुनरी छोड़ी , मांग बिन्दी छोड़ी ।
पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (आया पालती है)
*11.*  वेद मंत्र छोड़े ,श्लोक छोडे, लोरी छोड़ी ।
*12.*  बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े ,
*13.* संस्कृत छोड़ी , हिन्दी छोड़ी ,
*14.* पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छुना छोड़े ,
*15.* घर परिवार छोड़े ( अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार)।
*16.* सात्विक भोजन छोड़ा ( मांस शराब अपनाई)

*अब कोई रीति या परंपरा बची है ?* ऊपर से नीचे तक गौर करो, तुम कहां से हिन्दू हो, भारतीय हो, सनातनी हो, ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो शुद्र हो

*कहीं पर भी उंगली रखकर बता दो अपनी परंपरा को मैनें ऐसे जीवित रखा हैं*
जिस तरह से हम धीरे धीरे बदल रहे हैं- *जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।*
डर तो लगेगा कि ईसाईयत फैल रहा है इस्लाम फैल रहा है सैकुलर वाद और नास्तिकता फैल रही है। भारत भारतीयता आर्यत्व तो नष्ट होगा ही। जो क़ौम अपने धर्म संसकृति शास्त्रों को जीवन में उतार कर रक्षा नही करती उनका नामो निशान मिटना अवश्य है।

*कहाँ लुप्त हो गये* - *गुरुकुल की शिक्षा*, ओ३म् ,*यज्ञ*, *शस्त्र-शास्त्र*, *नित्य धर्म स्थलो पर जाने का संस्कार ?*
*हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं।*

*अपने मूल-धर्म व संस्कारों को अपनाओ!!!*अपनी पहचान बनाओ!

🚩🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻🚩🙏🏻

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

21 Nov, 14:05


प्रश्न 123. परमेश्वर को ‘शंकर’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो कल्याण अर्थात् सुख का करने हारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शंकर’ है ।

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सत्यार्थ प्रकाश 🚩

20 Nov, 15:38


[[ परमेश्वर का आदेश कि नदी तालाब कूआं आदि के माध्यम से बहुत अन्न फल आदि को उत्पन्न करें ]]👇

नमः स्रुत्याय च०।।(यजु० १६-३७)

भावार्थः-मनुष्यों को चाहिये कि नदियों के मार्गों, बंबों, कूपों, जलप्राय देशों, बड़े और छोटे तालाबों के जल को चला जहां कहीं बांध कर और खेत आदि में छोड़ के पुष्कल अन्न, फल, वृक्ष, लता, गुल्म आदि को अच्छे प्रकार बढ़ावें॥३७॥

(महर्षिदयानंदकृत यजुर्वेदभाष्य)

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

19 Nov, 14:26


प्र. २०४. संसार को ईश्वर बनाता है या जीव बनाते हैं या अपने आप बन जाता है।

उत्तर : ईश्वर बनाता है। जीवों के पास इतना ज्ञान व सामर्थ्य नहीं है कि वे संसार को बना सकें। प्रकृति ज्ञानरहित तथा स्वयं क्रिया रहित होने से स्वयं संसार के रूप में नहीं आ सकती ।

@vaidic_gyan

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

18 Nov, 13:38


प्रश्न 122. परमेश्वर को ‘आप्त’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो सत्योपदेशक, सकलविद्यायुक्त, सब धर्मात्माओं को प्राप्त होता है और धर्मात्माओं से प्राप्त होने योग्य, छल, कपटादि से रहित है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘आप्त’ है ।

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सत्यार्थ प्रकाश 🚩

18 Nov, 01:01


जिंदगी में भूल कर

@vaidic_bhajan

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

16 Nov, 14:08


ओ३म्

जप में तीन काम :--
(१) मन्त्र उच्चारण ।
(२) मन्त्र का अर्थ ।
(३) ईश्वर समर्पण ।
मैं ईश्वर के सामने उपस्थित होकर यह उच्चारण व अर्थ भावना कर रहा हूं ऐसी भावना मन में बनाए रखें। यह ध्यान की रीति है । " धीमहि " का अर्थ है हम आपके ज्ञान, बल , आनंद , तेज को धारण कर रहे हैं । धारण करने का प्रयास कर रहे हैं ।
कोई नई चीज़ सीखने में कठिनाई तो होगी । वर्षों के अभ्यास से विधि आएगी। फिर क्रिया रूप में करता है तब सफलता मिलती है । आठ अंगों ( यम, नियम, आसन , प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि) का आचरण करने पर अशुद्धि का नाश होने पर आत्मा परमात्मा का ज्ञान होने तक निरंतर ज्ञान में वृद्धि होती है। साधक के अविद्या अधर्म का नाश होने पर समाधि प्राप्त होती है । यदि नहीं हो रही है तो समझना चाहिए कुछ कमी - दोष है । मन-वाणी - शरीर से योग अंगों का ठीक आचरण नहीं कर रहे हैं ।
जिससे विचार , मनन , संकल्प, विकल्प करते हैं वह मन है , मन से विविध प्रकार की तरंगे उठाती हैं उनको रोकना योग है । कई बार विपरीत समाचार सुनकर मन की तरंगों पर नियंत्रण न कर पाने से हृदय गति रुकने से कईयों की मृत्यु भी हो जाती है । उसी मन को समझ पूर्वक रोकने पर योगी बन जाता है , ईश्वर को प्राप्त कर लेता है ।
ईश्वर उपासना से जो ज्ञान विज्ञान मिलता है वह जीवन निर्माण में अद्भुत होता है । जो ऋषि दयानंद में ईश्वर की उपासना न होती तो सारे संसार का विरोध कैसे सहते ? एक ओर काशी के सैकड़ो विद्वान पंडित और काशी नरेश अपने हजारों अनुयायी लोगों सहित शास्त्रार्थ समर में ऋषि को पराजित करने पर उतारू , तो दूसरी ओर निर्द्वंद्व दयानंद अकेले । उनकी भाषा ऐसी की जैसे परमात्मा के सामने खड़े होकर बात कर रहे हों । ईश्वर उपासना की औपचारिकता निभाने के लिए प्रातः सांय केवल पन्द्रह मिनट मंत्र बोल लिए , इस प्रकार से कोई विशेष लाभ नहीं होता । जो व्यक्ति दिन भर ईश्वर की उपासना करता है , उससे संबंध जोड़े रखता है ,उसका सारा जीवन कार्य करते हुए ईश्वर के आनंद, ज्ञान , बल से परिपूर्ण रहता है ।
ईश्वर प्राप्ति की तीव्र इच्छा मन में इतनी अधिक होवे कि ईश्वर को छोड़कर अन्य कुछ भी न भावे (=अच्छा लगे ) । यदि ईश्वर प्राप्ति के संस्कार नहीं है तो बनाए जा सकते हैं । ईश्वर के तुल्य या ईश्वर से अधिक किसी पदार्थ को न मानें । इस प्रकार निरंतर अभ्यास करते हुए साधक को ईश्वर शीघ्र अपना कर अपना स्वरूप दिखा देता है।।
( ब्रह्म -विज्ञान )

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

15 Nov, 04:48


प्रश्न 121. परमेश्वर को ‘शेष’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो उत्पत्ति और प्रलय से शेष अर्थात् बच रहा है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘शेष’ है ।

@satyarth_prakash_prachar

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

12 Nov, 01:59


🙏

*कामनाओं को पूरा करने से वे बढ़ती जाती है जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि बढ़ती है:-*

*न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।*
*हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्द्धते।।*

*अर्थ:- यह निश्चय है कि जैसे अग्नि में इन्धन और घी डालने से बढ़ता जाता है वैसे ही कामों के उपभोग से काम शान्त कभी नहीं होता किन्तु बढ़ता ही जाता है। इसलिये मनुष्य को विषयासक्त कभी न होना चाहिए।*

*-(सत्यार्थप्रकाश दशमसमुल्लास)*

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

09 Nov, 02:42


हम प्रातः काल

@vaidic_bhajan

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

08 Nov, 15:25


प्रश्न 120 परमेश्वर को ‘काल’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो जगत् के सब पदार्थ और जीवों की संख्या करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘काल’ है ।

@satyarth_prakash_prachar

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

07 Nov, 07:29


https://youtu.be/7VDbxfgaNkQ?feature=shared

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

06 Nov, 16:20


🚩आध्यात्मिक प्रश्न हो या अन्य सभी के उत्तर मिल जाएंगे
ढोंग पाखंड अंधविश्वास सभी को जाने
सनातन धर्म को जाने

यह पुस्तक हर व्यक्ति के पास होनी चाहिए , जिसमें वेदों का सार हे सामवेद यजुर्वेद अथर्ववेद ‌ऋगवेद का सारांश है

बुहत महत्वपूर्ण पुस्तक है 📚

सत्यार्थ प्रकाश

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

06 Nov, 06:53


जिस शिक्षा प्रणाली से व्यवहार न आ पा रहा हो,जिस शिक्षा प्रणाली से देश के प्रति आस्था न जग पा रही हो,जो शिक्षा पद्धति धार्मिक नही बना पा रही,जो शिक्षा पद्धति अपनो का सम्मान करना नही सिखा रही वह शिक्षा  पद्धति किसी काम की नही है। वर्तमान में जो शिक्षा दी जा रही है उसका केवल और केवल एक उद्देश्य बना हुआ जो भी डिग्रियां ली जा रही हैं उनका केवल और केवल एक उद्देश्य है कि अधिक से अधिक धन कैसे कमाए जा सके, कौन सी डिग्री लेने से ज्यादा धन मिल सकता है, कौन से कॉलेज में डिग्री लेने से ज्यादा धन मिलेगा ,शिक्षा का उद्देश्य ये नहीं होना चाहिए।किन्तु ऋषि मुनियों के ग्रन्थ जैसे चरक,शुश्रुत,वाग्भट्ट,मनुस्मृति, न्याय दर्शन,सांख्य दर्शन,योग दर्शन,वेदान्त दर्शन,मीमांसा दर्शन,रामायण,महाभारत,उपनिषद, सत्यार्थ प्रकाश, व्यवहार भानु, चाणक्य नीति, शुक्र नीति, विदुर नीति ,और चारो वेद आदि ग्रन्थ को विधवत पढ़ने से ऊपर लिखे सभी उपरोक्त चीज़े प्राप्त हो जाती है।और ऋषियो के ग्रंथों के पढ़ने से 100 टका हमारे जीवन मे काम आता है। किंतु वर्तमान की शिक्षा का मात्र मुश्किल से 10 से 15 परसेन्ट हमारे जिंदगी में काम आता है बाकी सब बेकार जाता है।10-15 साल जिंदगी के हम लोग वर्तमान के शिक्षा पद्धति को जो दे रहे है वो कुछ काम नही आने वाला जिंदगी में।इसके बजाय यदि  केवल मात्र 5 साल प्राचीन आर्ष शास्त्रों को देकर देखिए आपका चेतन शुद्ध न हो गया तो कहना।

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

03 Nov, 07:17


प्रश्न 119. परमेश्वर को ‘विश्वम्भर’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो जगत् का धारण और पोषण करता है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘विश्वम्भर’ है ।

@satyarth_prakash_prachar

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

02 Nov, 06:02


सुरेश चव्हाणके जी सत्यार्थ प्रकाश पर

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

30 Oct, 16:20


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 7

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

29 Oct, 16:34


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 6

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

28 Oct, 11:31


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 5

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

27 Oct, 14:35


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 4

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

26 Oct, 16:29


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 3

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

25 Oct, 02:01


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 2

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

24 Oct, 05:52


ऋषि दयानंद जी का जीवन परिचय - 1

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

23 Oct, 12:14


https://t.me/Brahmacharyalife/6569

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

20 Oct, 14:37


दाता कहीं न आप सा

@vaidic_bhajan

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

15 Oct, 16:15


प्रश्न 118. परमेश्वर को ‘पुरुष’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो सब जगत् में पूर्ण हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘पुरुष’ है ।

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सत्यार्थ प्रकाश 🚩

14 Oct, 15:58


* ओ३म् *
प्रश्न:- जब इस जगत का प्रलय होता है तो किस प्रकार से होता है ?
उत्तर :- जिस प्रकार से सूक्ष्म पदार्थों से रचना स्थूल की होती है । उसी प्रकार से प्रलय भी जगत का होता है जिससे जो उत्पन्न होता है वह सूक्ष्म होके अपने कारण में मिलता है । जैसे कि पृथिवी के परमाणु और जलादिकों के परमाणु से यह स्थूल पृथिवी बनी है। इनका परमाणु का जब वियोग होता है तब स्थूल पृथिवी नष्ट हो जाती है। वैसे ही सब पदार्थों का प्रलय जानना । आकाश से पृथिवी पञ्च गुणी है । जब एक गुणीय घटेगी तब जलरुप हो जायेगी । जल और पृथिवी जब एक एक गुण घटेंगे, तब वे अग्नि रुप हो जावेंगे। जब वे तीनों एक एक गुने घटेंगे तब वायु रुप हो जायेंगे। जब वे भिन्न-भिन्न हो जायेगे, तब सब परमाणु रुप हो जायेंगे। परमाणु की जब सूक्ष्म अवस्था होगी , तब सब आकाश रुप हो जायेंगे और जब आकाश की भी सूक्ष्म अवस्था होगी, तब प्रकृति रूप हो जायेगा। जब प्रकृति लय होती है तब एक परमेश्वर और सब जगत का कारण जो परमेश्वर का सामर्थ्य और गुण परमेश्वर के अनन्त सत्य सामर्थ्य और गुण का रुप हो जायेंगे तब अनन्त सामर्थ्य वाला एक अद्वितीय परमेश्वर ही रहेगा और कोई नहीं । सो यह सब आकाशादिक जगत परमेश्वर के सामने कैसा है कि जैसा आकाश के सामने एक अणु भी नहीं । इससे किसी प्रकार का दोष उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय से परमेश्वर में नहीं आता। इससे सब सज्जन लोगों को ऐसा ही मानना उचित है ।
( महर्षि स्वामी देव दयानन्द सरस्वती )

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

11 Oct, 16:08


प्रश्न 117. परमेश्वर को ‘भगवान्’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त या भजने के योग्य है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘भगवान्’ है ।

@satyarth_prakash_prachar

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

10 Oct, 04:30


क्रम से वेद मंत्रों के उपदेश पढ़ने के लिए व्हाट्सएप चैनल से जुड़े :

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सत्यार्थ प्रकाश 🚩

07 Oct, 12:33


🙏 नमस्ते जी।

पुस्तक:ईश्वर पूजा का वैदिक स्वरूप

लेखक: पंडित राम चन्द्र देहलवी

ध्यान का लक्षण करते हुए महर्षि पतंजलि ने लिखा है--ध्यानम निर्विष्यम मन:।"
मन के निर्विषय अर्थात विषय व विकार रहित होने को ही ध्यान लगाना कहते है ,अर्थात ध्यान तभी होता है जब मन में कोई विषय और विकार न हो।रात को सोते समय यदि चिंताएं होती हैं तो नींद नहीं आती और चिंताएं दूर होते ही नींद आ जाती हैं।यह पता भी नहीं चलता कि नींद कब आ गई।इसी प्रकार ईश्वर में ध्यान भी तभी लगता है जब मन विषय हीन और विकार रहित हो जाए।ये मै नहीं कह रहा हूं।सांख्य दर्शन के रचयिता कपिल मुनि ने लिखा है ।यदि मन में विषय और विकार आ गए तो मनुष्य विषयो ,विकारों और वासनाओं के विचार और चक्रव्यूह में फस जाएगा । जैसे मनुष्य किसी सुंदर रूप को देखने के बाद कभी उसकी आंख के बारे में सोचता है,कभी नाक के बारे में,तो कभी बालों के बारे में।इस प्रकार विचारो की एक श्रृंखला चल पड़ती हैं, तो मन में मूर्ति का ध्यान करने से मन उसमे केंद्रित नहीं होता। उल्टा अस्थिर हो जाता है,ध्यान बहुत सी चीजों में बंट जाता है।इसलिए मूर्ति को सामने रखने से भगवान का ध्यान कभी नहीं हो सकता। मन को शांत पवित्र और निर्मल बना लेने से ही आपका मन ईश्वर में टिक सकता है और तभी ईश्वर में ध्यान लग सकता है , अन्यथा नहीं।
अपना मन भगवान के गुणों पर केन्द्रित करो ,बड़ी गहराई से विचार करो उन पर और फिर उनके जैसा अपने को बनाने का यत्न करो।उपयुक्त उदाहरणों से व स्पष्टी करणों से मैंने ईश्वर पूजा के वैदिक स्वरूप को प्रकट किया है जैसे
ईश्वर निर्विकार है ,
हम मनुष्यो को भी निर्विकार बनना चाहिए अर्थात विकार और विषय भावना से दूर रहना चाहिए।छल कपट का त्याग करना चाहिए।

जैसे ईश्वर किसी का पक्षपाती नहीं है ,
ठीक वैसे ही हमें पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी के साथ पक्ष पात नहीं करना चाहिए।अपितु सब के साथ न्याय पूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
जैसे ईश्वर सब पर दया करता है ,वैसे ही हम को भी सभी मनुष्यो और अन्य जीव जंतुओं पर दया करनी चाहिए। अकारण किसी पशुओं को अपने तुच्छ जीभ के स्वाद के लिए पीड़ा नहीं पहुचानी चाहिए और ना उनके प्राण लेने चाहिए।
जैसे ईश्वर सब पर करुणा दृष्टि रखता है ,हमे भी अपने से छोटे निर्बल दीन हीन जन की सेवा करनी चाहिए और उन पर करुणा दृष्टि रखनी चाहिए।
जैसे ईश्वर 'सच्चिदानन्दस्वरूप' है अर्थात् वह सदैव आनन्दमय रहता है, कभी क्रोधित नहीं होता।हमें भी हमेशा चिन्ता मुक्त आनन्द में रहने का प्रयास करना चाहिए।
(साभार)

सत्यार्थ प्रकाश 🚩

06 Oct, 12:30


प्रश्न 116. परमेश्वर को ‘यम’ क्यों कहा है ?

उत्तर— जो सब प्राणियों के कर्मफल देने की व्यवस्था करता और सब अन्यायों से पृथक् रहता है, इसलिए उस परमेश्वर को ‘यम’ कहा गया है ।

@satyarth_prakash_prachar

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