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Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

@munshi_premchand


Munshi Premchand, was an Indian writer famous for his modern Hindustani literature. He is one of the most celebrated writers of the Indian subcontinent.

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Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद) (Hindi)

मुंशी प्रेमचंद, एक भारतीय लेखक थे जो अपने आधुनिक हिन्दुस्तानी साहित्य के लिए प्रसिद्ध थे। वे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। उनकी कहानियों और उपन्यासों में भारतीय समाज की समस्याओं और लोकजीवन की गहराईयों का विवरण है।

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Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

20 Oct, 07:00


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Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

12 Oct, 07:24


How to run these SACMS that are only possible in India
https://youtube.com/watch?v=ViGDhQhZ4XY

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

01 Sep, 08:12


BHU गैंगरेप के आरोपी जमानत पर बाहर आये हैं.

केक काटकर स्वागत किया गया.

उनके यहाँ कल्चर है.

और आप..! आप अपनी बेटी बचाइए!

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

15 Aug, 12:29


देश में असली आज़ादी का मजा तो सिर्फ बलात्कारी , भ्रष्टाचारी , पेपर लीक माफिया , भूमाफिया , खनन माफिया , अधिकारी और नेता मार रहें हैं, जनता तो भेड़ की तरह है , उसको केवल एहसास दिलाया गया है कि तुम आजाद हो , हर साल टैक्स के रूप में उसकी ऊन निकाल ली जाती है । फिर भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जाता है , भारत देश की जनता 1947 से पहले भी भगवान और भाग्य के भरोसे थी और 1947 के बाद भी । 1947 के बाद बस इतना हुआ कि गोरे अंग्रेज चले गए और भूरे अंग्रेजों ने उनकी जगह ले ली। #IndependenceDay2024

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

18 Feb, 11:41


इंतज़ार मत करो
जो कहना हो कह डालो
क्योंकि हो सकता है
फिर कहने का कोई
अर्थ न रह जाए

केदारनाथ सिंह

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

01 Jan, 06:00


“हरदौल भी बुंदेला था और बुंदेला अपने शत्रु के साथ किसी प्रकार की मुँहदेखी नहीं करते, मारना-मरना उसके जीवन का एक अच्छा दिलबहलाव है। उन्हें सदा इसकी लालसा रही है कि कोई हमें चुनौती दे, कोई हमें छेड़े। उन्हें सदा खून की प्यास रहती है और वह प्यास कभी नहीं बुझती।”

- मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

31 Dec, 05:31


“तुम हिन्दुस्तानी हो, अंगरेज नहीं हो सकते। मैं अंगरेज हूँ और हिन्दुस्तानी नहीं हो सकती; इसलिए हम में से किसी को यह अधिकार नहीं हैं कि वह दूसरे को अपनी मर्जी का गुलाम बनाने की चेष्ठा करे।”

- मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

31 Dec, 05:26


पैदा कम हो रहा है क्योंकि लोग
गुलाम हैं
केवल बात करनेवालों की नौकरियाँ
खेत खोदनेवालों की नौकरियों पर निर्भर हैं
अब उनकी तनख्वाहें निकल नहीं रही हैं
अनाज का इस्तेमाल तुम चाहते हो
खाने के लिए

तुम चाहते हो गाढ़े वक़्त में सहारे के लिए
तुम चाहते हो दबा कर
उसी से दूसरों का धन खींचने के लिए

तुम चाहते हो दूसरों का धन
खींचने का साधन बनाए जाने के लिए
ताकि उस धन से
तुम्हारे राजनैतिक कार्यकर्ताओं की
तनख्वाहें दी जा सकें।

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

27 Oct, 16:57


“दाता के द्वार पर सभी भिक्षुक जाते हैं। अपना-अपना भाग्य हैं, किसी को एक चुटकी मिलती हैं, किसी को पूरा थाल। कोई क्यो किसी से जले?”

- मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

23 Oct, 17:03


“ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जिस पर युवती अपनी मोहिनी न डाल सके।”

- मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

16 Oct, 18:05


“सादगी ही उसका आभूषण और पवित्रता ही उसका शृंगार थी, पर इस कंगन पर वह लोट-पोट हो गई।”

- मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

04 Oct, 09:45


आग में झुंक जाना, तलवार के सामने खड़े हो जाना, इसकी अपेक्षा कहीं सहज है। लाज की रक्षा ही के लिए बड़े-बडे राज्य मिट गए हैं, रक्त की नदियां बह गई हैं, प्राणों की होली खेल डाली गई है।”

- मुंशी प्रेमचंद

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

04 Oct, 09:44


प्रेम में उतना डूबो जितना डूबती है पानी में नाव की तली, ऐसे कि पानी में बनता रहे रास्ता और चलता रहे जीवन।

— लवली गोस्वामी

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

30 Sep, 05:14


"छोड़ो ये बात इतने ज़ख़्म कहाँ से मिले
ऐ ज़िन्दगी बस इतना बता कितना सफ़र बाक़ी है...।"

Munshi Premchand (मुंशी प्रेमचंद)

28 Sep, 20:27


गाली / सुशीला टाकभौरे [ पूरी कविता 👇 ]

वफा के नाम पर
अपने आप को
एक कुत्ता
कहा जा सकता है
मगर
कुतिया नहीं
कुतिया शब्द सुनकर ही लगता है
यह एक गाली है
क्या इसलिए कि वह स्त्री है
उसका चरित्र
उसकी वफा
कई बटखरों में तौली जाती है

कुत्ता और कुतिया एक-दूसरे के पूरक हैं
चरित्र के नाम
कुत्ता वफादार
और
‘कुतिया’ गाली क्यों बन जाती है

पुरुष-प्रधान समाज में
समर्पण हो या
विद्रोह
दुर्गुण का दोष स्त्री पर ही
मढ़ा जाता है
पुरुष के दुर्गुणों पर
मनु-नाम की चादर
ओढ़ा दी जाती है!

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