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12 Feb, 15:42


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12 Feb, 13:09


उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए

केदारनाथ सिंह

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11 Feb, 18:24


तुम मुझमें
असीम और
अनंत हो

"माधव"

~ आकांक्षा श्रीवास्तव ~

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09 Feb, 14:16


छोड़ रक्खा है शेर मैंने रूमानी पढ़ना
भला क्यूँ शायरों की झूठबयानी पढ़ना।

हाँ चलो ठीक है! सब लोग किताबें भी पढ़ो
पर किसी डबडबाई आँख का पानी पढ़ना।

जायसी की गढ़ी पद्मावती अपनी जगह पर
इक दफ़ा नागमती की भी कहानी पढ़ना।

शेर ही छोड़ गया, शेर का पहला मिसरा
मैंने भी छोड़ दिया मिसरा-ए-सानी पढ़ना।

महाबली तो सिर्फ लेके आये थे अंगूठी
जानकी जानती थीं प्रेम - निशानी पढ़ना।

Reader's Paradise.

03 Feb, 18:54


मैं तुम्हारे व्यक्तित्व के महानता
का आकलन तुम्हारे शब्दों से नहीं
तुम्हारे अहसास को महसूस होने से करुंगी।

~आकांक्षा श्रीवास्तव ~

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26 Jan, 06:50


आप सभी को 76वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! आइए, इस पावन दिन पर हम सब मिलकर अपने संविधान के आदर्शों को आत्मसात करें और एक सशक्त, समृद्ध एवं समतामूलक भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।

जय हिंद !🇮🇳🇮🇳

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25 Jan, 07:31


कुछ लोग अल्पभाषी होते हैं
वो अपने हृदय में बसे लोगों के
समक्ष नहीं प्रकट कर पाते हैं
अपने प्रेम को
नहीं प्रकट कर पाते हैं अपनी
भावनाओं को
परंतु वो लिख सकते हैं
प्रेम पर विस्तृत निबंध
काव्य की रचना कर सकते हैं
वो सूरदास की भातिं प्रेम पर दोहे
भी लिख सकते हैं
परंतु अपने प्रेम को प्रकट नहीं
कर पाते हैं।

~आकांक्षा श्रीवास्तव~

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24 Jan, 16:46


वो सब कुछ जो मेरे लिए खास था गँवा बैठा
फिर यूं भी नहीं के हसरत कभी मलाल हो ।

हसरत💌

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23 Jan, 17:37


सुकून सिर्फ उसी में हैं
जिस ने बैचेन कर रखा है ।।


हसरत💌

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22 Jan, 14:42


किसी के हाथ की रेखा में लिख तक़दीर आती है
किसी के पैर में पाज़ेब बन ज़ंजीर आती है

कि जब सोने को जाती हूँ नहीं होता है कुछ लेकिन
मैं जब बिस्तर से उठती हूँ तेरी तस्वीर आती है

नदी झरनों या फुटपाथों की अब मुझको नहीं यादें
मैं जब शमशीर छूती हूँ तेरी तासीर आती है

ये दुनिया भी अजब क़िस्सों के मानी चाहती है अब
किसी राँझा के हिस्से में किसी की हीर आती है

Reader's Paradise.

22 Jan, 05:32


मौन



प्रिय तुम !
कैसी हो ?
जानता हूं अपने चिरस्थायी मौन से ग्रसित हो ।
तुम्हारे और मेरे मध्य जो कुछ भी कहा गया, वह सब कुछ मौन में ही तो समाहित है । मौन अपने में कितना प्रगाढ़ है : बीतते वक्त के साथ सुदृढ़ होता, ठहराव को परिभाषित करता , यहां तक कि साधना की चेतना में विद्यमान , आत्मा की आत्मीयता की विषयवस्तु, शून्य की पराकाष्ठा और अंततः इन सब का सार 'मृत्यु ' वह भी तो मौन की उपमा ही है ।

हालांकि हमारे मध्य इस मौन का पूरा श्रेय मैं तुम्हें नहीं दूंगा , क्यों सिर्फ तुम्हारी साधना का महिमामंडन हो ?
इस मौन को इष्ट बनाने वाला तो मैं ही हूं । तुम शायद मेरे श्रेय देने वाली बात को व्यंग्य समझो ,किंतु सच कहता हूं तुम्हारी अनुपस्थिति में मैंने इस मौन को पूजनीय मान लिया है । संसार को थामने वाली धुरी होती है आशा, लेकिन प्रेम का पल्लवन सदैव निराशा में ही होता है ।
तुम ही कहो, तुम्हारे मौन की शिकायत लेकर में किस दर पर जाता,तो मैंने यूँ किया कि उसे पूजना शुरू कर दिया , निराशा में पूजे जाने वाले चरित्र आशा के साधक नहीं होते पर निराशा को पूजनीय बना देते हैं ।

मैं स्वीकार करता हूं के तुम से पूर्व भी निराशा मुझे प्रिय और पूजनीय दोनों ही थी : पर यह जरूरी तो नहीं के जो प्रिय और पूजनीय हो वह आप को राहत ही दे, आप को प्रेम प्रदान करे ; जैसे मेरी निराशा, तुम्हारा मौन !

मैं तुम्हारे मौन से उपजी विकलता को इसलिए भी समझ सकता हूं क्योंकि मेरी निराशा से उपजी विकलता मेरा परिचय रही है ।

तुम से पहले मेरा परिचय तुम्हारे मौन से ही हुआ था , उस मौन को भेद कर ही मैने तुम्हारी राहत हासिल की थी, तो फिर इस मौन से तो मैं यूं भी हारने से रहा , इसे ही तो जीता है , फिर भी यह हर बार इक नई चुनौती देता है : पर जानती ही व्यक्ति को अगर उस के हिस्से की कोशिशें मिल जाएं तो वह कभी नही हारता।
मुझे भलीभांति याद है शरद पूर्णिमा की वह रात , जब नदी के श्वेत जल में पिघलते हुए चंद्रमा की तरलता, उस की शीतलता और तुम्हारी हथेली की सौम्यता तीनों मिल कर उस क्षण को अमरत्व प्रदान कर रहे थे :


" क्या जल में चंद्रमा का बिंब उस के समीप होने का एहसास कराता है ? "
तुमने अपनी कोमल उंगलियों से मेरी हथेली पर चंद्रमा उकेरते हुए पूछा ।

अपनी हथेली पर रखे उस चंद्रमा को मैंने अंजुली में भर उस नदी में प्रवाहित कर दिया और तुम्हारी आँखों में तैरते एक नए सवाल को पढ़ा : और जवाब दिया

" सामीप्य एक एहसास है जिस के समीप होना आवश्यक नहीं, चंद्रमा के बिंब में चंद्रमा के होने का एहसास है, जैसे तुम्हारे मौन में मेरे शब्दों के बनते - बिगड़ते बिंब का एहसास है । "

तुम ने अंजलि भर जल अपने दोनों हाथों में लिया और चंद्रमा के बिंब को चूम कर मेरी अंजलि को भर दिया :

तब से लेकर अब तक मैने संजो कर रखा हैं चंद्रमा का बिंब , सामीप्य का एहसास और तुम्हारा मौन !

पर कब तक ?


हसरत 💌

Reader's Paradise.

18 Jan, 18:02


कुछ दोष तो हमारी समझ का भी रहा होगा
यू बेवजह इक रात आखिरी मुलाकात की गवाही नहीं देता।।

~सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

18 Jan, 17:54


बात अगर किसी एक बात की होती
तो हम उस बात को भूला देते
मगर वही बात अब हर एक बात में हो रही
तो कैसे अनदेखा करें और कैसे जाने दें?

~सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

10 Jan, 13:43


इक अरसा बीत गया उस ने खबर नहीं ली
हसरत तुम सुकून से अज़ीयत तक आ पहुंचे !


हसरत💌


अज़ीयत - Sufferings ( Generally Mental sufferings )

Reader's Paradise.

08 Jan, 18:58


थके बैठे हैं अब इस ज़िंदगी से हम
नहीं उठता बदन से बोझ सांसो का...😢

Reader's Paradise.

06 Jan, 17:51


फेन वाला दूध
●●●●●●●●●

दायां हाथ नब्बे डिग्री पर
बायां शून्य पर
कभी बायां नब्बे पर

विपरीत क्रम में जब दोनों
बराबर दूध फेंट रहे थे
इस फ़ेटन से पैदा होने वाला फेन और गंध
उस बच्ची के नसपुटों में
पैठ जमा रहा था

उस फेन से लबालब आधा लीटर वाले दूध वाले ग्लास के एवज़ में
उस भेड़िए ने बच्ची को इस तरह गोद में उठाया........

जांघ पर हाथ का स्पर्श और गाल पर अपनी दाढ़ी के नोकीले बाल छुआ कर चिरयाते हुए उस पुरुष ने किसी का बचपन सुइयों से सदियों के लिए टोच दिया था ।

लड़की ने दोनों हाथों से फेन से भरा काढ़ा हुआ दूध चुना.......

उसने टीवी में देखा था
दूध पीते ही बच्ची बड़ी हो जाती है : डॉक्टर , इंजीनियर बन जाती है

डर से उसकी देह कांप रही थी
सर्प से बचने पेड़ के बिल में चिड़िया दाना लेकर अपनी देह और टुचे हुए पंख संकुचित कर रही थी

दूध का धर्म था
दूध पिलाने वाला भी धर्मी था
किंतु फेन का कोई धर्म नहीं था
फेन भूख थी , फेन लालच था , फेन धर्म से पैदा किया अधर्म था ।
केवल कपट था , अनाचार था , अपराध था

भूखे को आँखे नहीं मिलनी चाहिए थी
वरन फेन से भरे दूध के ग्लास पर सौदा नहीं होता
दूध उड़ने की ताकत देता है
सब छलावा था
बच्ची का भ्रम था .....

Reader's Paradise.

04 Jan, 17:09


जिस से चाहा मरहम वो ज़ख्म दे गया हसरत

जो आया था मरहम बन के उसे ज़ख्म दे दिए ।।


हसरत💌

Reader's Paradise.

04 Jan, 03:52


तहस नहस कर दिया इन हवाओं ने सब कुछ,
वो शख्स बोला जिसने खिड़कियाँ खोली थी।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

03 Jan, 05:59


_कुछ कहती उसकी आंखें
कांपती होठों तक ही रुक गई
वो लफ्ज़ बेरंग स्याही सी
गालों को छूते ही मिट्टी में मिल गई।।_

-Suman Tiwary ❣️

Reader's Paradise.

02 Jan, 14:51


एक शाम..
उन बीती हुई शामों के नाम
जिनमें सपने देखे गए थे
आने वाली हसीन शामों के लिए

वादे किए गए थे ..
चाहे जितनी स्याह हो...
हर शाम में साथ होंगे हम तुम
और बांटेंगे चांदनी,ओस की बूंदें
चांद को ढकने वाले बादलों को भी...

ये कैसी शाम है आज..
जिस में दोपहर जैसी बेचैनी है
रात जैसा सन्नाटा है
तपन है, तेज धूप जैसी

क्या उन शामों से
इस शाम के बीच
कोई सुबह नहीं आयी?

क्या मुह दिखायेगी
ये शाम उन शामों को,

कैसे कहेगी कि
जो उम्मीदों की टोकरी तुमने
एक एक तिनका सजाई थी
वो खो गयी
धुंधलके और गोधूलि में

और इल्ज़ाम तय किया गया है
समय पर ,हालात पर
और बरी कर दिया गया है
फितरत और नियत को!!

Reader's Paradise.

28 Dec, 12:26


अब भी तुमको और मनाऊं
या फिर चुप हो जाऊं मैं
लहरों को बढ़ टक्कर दे दूँ
या तट पर सो जाऊं मैं
हे रूठे से जीवन ! बोलो
किस पथ तुमको पाऊं मैं

प्रीतिराग ही गाऊं अब या
वीतराग हो जाऊं मैं
हे रूठे से जीवन! बोलो
किस पथ तुमको पाऊं मैं ....

Reader's Paradise.

26 Dec, 17:02


You Lost Me


Someday!
Someday, you'll realise you lost me.
You lost me because you didn't find me,
You didn't find me enough !
Yeah enough :
Enough,to find why I was lost,
You didn't recognise,
Maybe you did but denied,
Shredded pieces calling out for peace,
When I was screaming out your name
You lost me calling it all ruckus.
You lost me in ruckus,
Maybe in the world of normalcy
Your normal !
Forasmuch scoffing my milieu
Maligning it with your due.
You lost me
Where ?
Where , you could have find me.



Hasrat💌

Reader's Paradise.

26 Dec, 10:18


इश्क उन्हें भी थी हमसे
हमें भी इश्क थी उनसे
हम बिछड़े शायद किस्मत थी हमारी
फर्क इतना ही रहा आज
हमारी बस होठ मुस्कुराती हैं
उनकी आँखें खिलखिलाती हैं ।।

~सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

25 Dec, 13:58


मेरे तसव्वुर के अफसाने में तेरा किरदार कुछ ऐसा है
दुनियां में जो कुछ भी हसीन है हसरत सब तेरे जैसा है ।

हसरत💌

तसव्वुर - Imagination
अफसाने - Stories

Reader's Paradise.

25 Dec, 12:59


नदियों का बहाव भी उसी ओर होता हैं
जहाँ कोई समुद्र बाहें फैलाए इंतजार करता हो।
रेगिस्तान की ओर नहीं मुङती नदियां....

Reader's Paradise.

24 Dec, 17:32


क्या तुम समझ पाओगे
मेरे निष्क्रिय मन को
व्याकुलता से भरे ह्रदय को!

मेरे निश्छल प्रेम को
अंदर चल रहे अंतर्द्वंद को!

मेरे अस्थिर चित्त को
परिपक्वता में परिवर्तित
होते चंचलता को!

मेरे बहिर्मुखी से अंतर्मुखी होने को
जाने ना देने से जाने देने की विकलता को!

क्या तुम समझ पाओगे
शब्दों से परे मेरे मौन को!

~आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

24 Dec, 06:56


फिर उन्हें तसल्ली थी के थके - हारे घर जाएंगे
आप बताइए हसरत अब आप किधर जाएंगे ।



हसरत💌

Reader's Paradise.

14 Dec, 14:09


कौन मरा है हसरत महज़ गोली , तलवारों से
कुछ तो अल्फ़ाज़ ने भी किया होगा घायल उसे ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

14 Dec, 03:18


अब मैंने ठाना है
कीमत कोई भी हो
तुझे हर हाल में पाना है
तू मेरा सपना ही नहीं
मेरा लक्ष्य और जूनून भी है

सफर कठिनाइयों से भरा है
मंजर भी अंजाना है
लाख मुश्किलें हो पर
तुझे तो पाना है

गलतियों से सीख रही हूँ मैं
तुम तक किस रास्ते से
मुझे जाना है
सफल होकर सारी दुनिया को दिखाना है

तुम्हें पाकर अपनों का
मान बढा़ना है
हिम्मत से ही विश्व विजय है
यह सबको बतलाना है।


~ आकांक्षा श्रीवास्तव~

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13 Dec, 04:39


बाबा!
मुझे उतनी दूर मत ब्याहना
जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर
घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें

मत ब्याहना उस देश में
जहाँ आदमी से ज़्यादा
ईश्वर बसते हों

जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ
वहाँ मत कर आना मेरा लगन

वहाँ तो कतई नहीं
जहाँ की सड़कों पर
मन से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटर-गाडियाँ
ऊँचे-ऊँचे मकान
और दुकानें हों बड़ी-बड़ी

उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता
जिस घर में बड़ा-सा खुला आँगन न हो
मुर्गे की बाँग पर जहाँ होती ना हो सुबह
और शाम पिछवाडे़ से जहाँ
पहाडी़ पर डूबता सूरज ना दिखे ।

मत चुनना ऐसा वर
जो पोचाई और हंडिया में
डूबा रहता हो अक्सर

काहिल निकम्मा हो
माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में
ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर

कोई थारी लोटा तो नहीं
कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी
अच्छा-ख़राब होने पर

जो बात-बात में
बात करे लाठी-डंडे की
निकाले तीर-धनुष कुल्हाडी़
जब चाहे चला जाए बंगाल, आसाम, कश्मीर
ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे
और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ
जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाया
फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने
जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ
किसी का बोझ नहीं उठाया

और तो और
जो हाथ लिखना नहीं जानता हो "ह" से हाथ
उसके हाथ में मत देना कभी मेरा हाथ

ब्याहना तो वहाँ ब्याहना
जहाँ सुबह जाकर
शाम को लौट सको पैदल

मैं कभी दुःख में रोऊँ इस घाट
तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप.....

महुआ का लट और
खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूँ सन्देश
तुम्हारी ख़ातिर
उधर से आते-जाते किसी के हाथ
भेज सकूँ कद्दू-कोहडा, खेखसा,
बरबट्टी ,
समय-समय पर गोगो के लिए भी

मेला हाट जाते-जाते
मिल सके कोई अपना जो
बता सके घर-गाँव का हाल-चाल
चितकबरी गैया के ब्याने की ख़बर
दे सके जो कोई उधर से गुजरते
ऐसी जगह में ब्याहना मुझे

उस देश ब्याहना
जहाँ ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों
बकरी और शेर
एक घाट पर पानी पीते हों जहाँ
वहीं ब्याहना मुझे!

उसी के संग ब्याहना जो
कबूतर के जोड़ और पंडुक
पक्षी की तरह
रहे हरदम साथ
घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर
रात सुख-दुःख बाँटने तक

चुनना वर ऐसा
जो बजाता हों बाँसुरी सुरीली
और ढोल-मांदर बजाने में हो पारंगत

बसंत के दिनों में ला सके जो रोज़
मेरे जूड़े की ख़ातिर पलाश के फूल

जिससे खाया नहीं जाए
मेरे भूखे रहने पर
उसी से ब्याहना मुझे।



- निर्मला पुतुल

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12 Dec, 17:14


इतना कितना गैर हूं के मेरी कोई ग़ैरत ही नहीं

मै बोलूं के ख़ामोश रहूं उन्हें कोई हैरत ही नहीं ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

12 Dec, 14:04


हम भी थे कभी किसी आराइश-ए-गुल के गुलाब
फिर हमें भी हसरत आखिर में इक कबर नसीब हुई ।


हसरत💌

आराइश-ए-गुल - Bouquet

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12 Dec, 12:36


ये चाँद ढूढने निकला है किसी को इतनी अंधेरी रात में
कोई तो होगा जो खो गया है सुबह के प्रकाश में!

~आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

12 Dec, 12:35


मैं किसी का सुखद प्रारंभ नहीं
परंतु सुखद अंत जरूर बनना चाहूंगी।

~आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

12 Dec, 06:42


नर्म नर्म हवाएं फिर भी सह लेते थे जून की,
दिसम्बर की सर्दी तो जला कर ही दम लेगी।

~ विशाल सैनी।

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12 Dec, 05:04


कहाँ रहते हो? दिखते ही नहीं?
हर कोई पूछता उससे,
हर किसी की भूली हुई कहानियों में,
अहम किरदार उस शख्स का रहा,
हमेशा।

~ विशाल सैनी।

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12 Dec, 02:58


अश्रुओं में भीगी रोटियाँ,
जीवन का स्वाद बताती हैं।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

12 Dec, 02:58


मैंने उसको,
जब जब देखा,
लोहा देखा।

लोहे जैसा,
तपते देखा,
गलते देखा,
ढलते देखा।

मैंने उसको,
गोली जैसा,
चलते देखा।


~ स्व० केदारनाथ अग्रवाल।

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11 Dec, 16:24


मेरी सरगर्मी से बड़ी तकलीफ़ हुई थी उन्हें
शायद मेरी बेदिली ही उन्हें राहत देगी हसरत ।

हसरत💌

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11 Dec, 16:24


ढूंढ लीजिए जमाने में कोई अपनी तासीर का
हसरत किस्सा ख़त्म हो चला हमारी ताबीर का ।

हसरत💌

ताबीर - ख्वाब की घटना

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11 Dec, 15:02


ठहरा हुआ इन्सान थाम देता है ज़िन्दगी,
ठहराव आने पर ज़िन्दगी को थामता है।

~ विशाल सैनी।

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18 Nov, 12:32


सुनो, एक दिसम्बर अभी और लगेगा मुझे,
तुम्हारी बहुत यादें जलानी है bonfire में।

~ विशाल सैनी।

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18 Nov, 12:24


जिसकी पहचान रही 'बेफ़िक्री' एक ज़माने तक,
वो जिम्मेदारियों में खुद ही को खोज नहीं पाया।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

17 Nov, 17:35


वो जो हमें धोखा देकर आगे निकले थे हमसे,
उन्हें अभी सदियाँ लगेंगी हम तक आते आते।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

17 Nov, 16:53


अब ना कीजियेगा शिकवा मेरी खामोशी का हसरत
जो आखिरी दफा पुकारा था वो आपका ही नाम था ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

17 Nov, 14:23


I find agony loveable, no matter if it's yours or mine ?
But you run away from it, no matter if it's yours or mine.



Hasrat💌

Reader's Paradise.

17 Nov, 14:23


हैरत नहीं कि उसे मेरे रूठने की भी परवाह नहीं
हैरत है के मैं उस से रूठ कर भी उस की परवाह करता हूं ।

हसरत 💌

Reader's Paradise.

17 Nov, 14:23


यूं तो मैने उस से चाहा नहीं कुछ ज्यादा
फिर जो थोड़ा बहुत चाहा वो भी ज्यादा था ।

हसरत💌

Reader's Paradise.

17 Nov, 14:23


मेरी फितरत से वो हर हद तक वाकिफ है
फिर भी हसरत वो बेहद अंजान सा रहता है ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

12 Nov, 12:23


अनचाही फासलों की वजह
अक्सर अनदेखे फैसले होते हैं।।

~सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

11 Nov, 18:02


दिल तो छलका दरिया है तिश्नग़ी नहीं जाने
तीरग़ी का ख़ालीपन रौशनी नहीं जाने

कौन पूछे उसका दर्द कितना बेतहाशा है
जिस ग़ुलाब की क़ीमत बाग़ ही नहीं जाने
--khushi;)

Reader's Paradise.

11 Nov, 07:19


ये टूटते हौसलों को
जगाता कौन है !

ये हर रोज नए सपने
बुन जाता कौन है!

यह उम्मीदों का पंख
बांध उड़ जाता कौन है !

ये शाम के अंधेरे में
रोशनी भर जाता कौन है!

ये विचलित हृदय को
स्थिरचित्त कर जाता कौन है!

ये निरश जीवन में
रस भर जाता कौन है!

ये मंजिल की चाह में
इतना लंबा सफर
तय कर जाता कौन है!

~ आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

09 Nov, 13:48


हर इक पल मौत को मनाया उस ने
हयात का मातम भी मनाया उस ने

ज़र्फ़ ने तो पहले ही ठुकरा दिया था
नाकामियों को फिर भी सताया उस ने

हर महफ़िल में रहा था शमा की तरह
पूछने पर तीरगी को घर बताया उस ने

थोड़ा सहम गए थे अब हादसे भी उस से
एहसान सांसों पर हर दफा जताया उस ने

क्या ही जलाएंगे वो खाक को हसरत
हर सांस को इस तरह खाक बताया उस ने ।।



हसरत💌


हयात - जीवन ( Life )
ज़र्फ़ - योग्यता( Competent)
शमा - दिया ( Lamp)
तीरगी - अंधेरा ( Darkness )
खाक - धूल ( Dust )

Reader's Paradise.

09 Nov, 05:07


गर्दिश में है जानी दुश्मन जिसने मेरे ज़ख्म देखे,
पूछता है कि इस मरे हुए को मारा कैसे जाये?

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

09 Nov, 04:07


किसे पड़ी है जीने की यहाँ?
हर कोई इश्क़ किये बैठा है।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

09 Nov, 03:51


फिर तुम्हारा होना मेरी हक़ीक़त हो चला,
फिर मेरी हक़ीक़त तुम्हें गुनाह लगने लगी।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

08 Nov, 20:19


करूँ बात दिल की ?? चलो छोड़ती हूँ
गली वो पुरानी, चलो छोड़ती हूँ

कोई ख़्वाब था, पल रहा था सुकूँ से
मगर एक दिन फिर..., चलो छोड़ती हूँ

बहुत गलतियां की हैं नादान दिल ने
गिनाऊँ, सुनोगे ?? चलो छोड़ती हूँ

तमन्नाएँ, सपनें, उम्मीदें, उड़ानें....
गुनाह और भी हैं, चलो छोड़ती हूँ!
--khushi;)

Reader's Paradise.

08 Nov, 19:16


इश्क की बस बात छिड़ी है
मुलाकात अभी बाकी है
रास्ते अभी तो शुरू ही हुए हैं
इस शहर की मोड़ अभी बाकी है
अभी तो बस चांद तारे टूटे हैं
जान देना भी अभी बाकी है
आंखें तनिक देर बंद हीं रखना
ख्वाब टूटे हैं, तुम्हारा भी टूटना अभी बाकी है।।

~सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

08 Nov, 18:57


तेरी हथेली पर रखी मेरी उंगलियों की पोर
कुरेदती हैं तेरे दिल तक जाने वाली नसों का रास्ता ।

हसरत💌

Reader's Paradise.

08 Nov, 18:57


उस की इनायत का भी एहतराम रखता हूं
अपने लब होले से उस के हाथ पर रखता हूं ।

हसरत💌

Reader's Paradise.

08 Nov, 17:13


तुम्हारा दिया प्रेम मेरा था, तो नफ़रत भी मेरी रहेगी,
गर रो दिया मैं तेरी याद में, दुनिया तमाशा ही कहेगी।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

08 Nov, 15:16


उम्र के उस दराज पर,
जब नजरों से ज्यादा तजुर्बे काम करने लगेंगे,
तब मेरे इस सवाल का जवाब तुम खुद से खुद को देना की....
उसके हर ख्याल में जब सिर्फ मैं ही हुआ करता था
और उसकी हर प्रार्थना मेरी खुशी, सलामती और तरक्की के लिए होती थी तो....
उसने कभी मुझे अपने हिस्सें में क्यों नहीं मांगा?

~ सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

07 Nov, 15:46


What if it was never about finding someone who makes your heart race or the one who brings butterflies to your stomach?
What if it's always been the one who calms the storms in your heart and mind;
the one who brings peace and harmony in your life?🙆🏻‍♀️🙆🏻‍♀️

--khushi;)

Reader's Paradise.

07 Nov, 03:00


वो दूर कहा मुझसे,
जब भी आईने में खुद को देखती हूं
आईना निखर जाता है
तब होता है वो पास मेरे।
सुबह की पहली किरण में
जब बिस्तर पर अपनी परछाई से
उसको महसूस करती हूं
तब होता है वो पास मेरे।
मंदिर की घंटी और छम छमाती मेरी पायल
एक ही धुन में जब उसका नाम पुकारती हैं
तब होता है वो पास मेरे।
कौन कहता है इश्क़ हक़ीक़त नहीं
मेरी कल्पनाओं में भी उसका मुस्कुराता चेहरा
दिल की धड़कन बढ़ा देता है
तब होता है वो पास मेरे।
तब होता है वो साथ मेरे।।

~ सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

06 Nov, 20:19


चादर की सिलवटों तक रहा तुम्हारा इश्क़,
मेरा प्रेम खुली बरसात था बंद कमरा नहीं।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

05 Nov, 18:30


जिन्दगी के कई तरीके हैं
एक जैसे नहीं सभी के हैं

राधिका के तो बस कन्हैया थे
द्वारकाधीश रुक्मणी के हैं !

Reader's Paradise.

05 Nov, 15:46


किसे पता ? क्या थी मजबूरी?
बेच रहा था।
आज एक मृग खुद कस्तूरी बेच रहा था।

जैसे कोई फूल स्वयं ही अपनी गंध हवा को बेचे
जैसे कोई पर्वत अपनी ऊंचाई का सौदागर हो,
जैसे कोई सूरज सिक्कों के बदले में धूप बिछाये
जैसे कोई सागर अपनी गहराई का सौदागर हो,
शायद कुछ,
था बहुत जरूरी,
बेच रहा था।

हो सकता है वह यायावर सारी दुनिया से डरता हो,
हो सकता है वह कस्तूरी ही उसकी खातिर खतरा हो
हो सकता है इसे बेचकर वह मृग मरना चाह रहा हो
हो सकता है इसे बचाने में ही सौ सौ बार मरा हो।
अपने सब सपने सिन्दूरी बेच रहा था।
बेच रहा था
आज एक मृग खुद कस्तूरी बेच रहा था!

Reader's Paradise.

05 Nov, 15:20


"काश मुझे समझते तुम" ये उस शख्स ने कहा हमें,
जिसके सिवा कभी कुछ समझ आया नहीं था हमें।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

05 Nov, 15:13


असमंजस में हैं कईं चहरे महफिल में अभी,
उनकी मौजूदगी भी गज़ब की आग लगाती है।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

05 Nov, 14:29


कुछ लोग बहते पानी की तरह होते हैं
एक बार जाने के बाद कभी वापस नहीं आते हैं।

~आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

03 Nov, 16:49


घर - वनवास


भाग १

कुछ आठ महीने बाद घर पहुँचा था रविन्द्र !
तड़के आया था तो आकर सीधा सो गया था, जब उठा तो घर में त्योहार के काम-काज में लगी हुई मां,इधर उधर हुए जा रही थी, पापा अखबार में व्यस्त थे और छोटा भाई अब भी सो रहा था।

जब वो सीढ़ियों से नीचे आ रहा था पड़ोस के घर में नजर डाली, मानों आँखें मुआयना कर रही हो की क्या क्या बदला है इतने दिनों में और यकीनन 15 सीढ़ियों का सफर काफी नहीं था उस बदलाव को पढ़ पाने के लिए उसे।
पर फिर भी उस की नजर जितना देख पाई वो एक खाली जगह उस की आंखों में भर गई, उस के जहन में वो स्थान आखिरी बार कब रिक्त था उसे याद नहीं, वो लगातार अपनी यादाश्त में कुछ खोज रहा था, पुरजोर कोशिश के बाद भी उसे वह स्थान आखिरी बार कब खाली मिला था इन 15 सीढ़ियों के सफर में दिन के इस पहर में उसे याद नहीं आया।

"मम्मी, यह पड़ोस वाली अम्मा कहां है? दिखी नहीं!"
इंसान परिवर्तन को अपनी आंखों से देखता है तो वह उसे जी रहा होता है लेकिन अगर उसे किसी परिवर्तन को आत्मसात करने के लिए कहा जाए तो वह उस में अपने पुराने निशान ढूंढता है।

"अम्मा तो अभी राखी पर चल बसी, उम्र हो गई थी उन की, देखने वाला भी कोई नहीं था।"
मां बड़े सहज ही बोल गई और रविन्द्र को भी शायद कोई खासा फर्क नहीं पड़ा, उस के एहसास अम्मा से बस राम -राम तक ही तो जुड़े थे, हाँ जो कुछ उसे थोड़ा बहुत तंग कर रहा था, वह खाली स्थान, जो उस की आंखों में चुभ रहा था।

'सुनिए जी'! मां ने आवाज लगाई,
'यह ऊपर से ओवन उतर देंगे, आज बाटि बना लेते हैं।'
पापा बड़ी सहजता से उठे और जाने लगे! रविन्द्र को एक धक्का सा लगा, उसे याद नहीं कि कब आखिरी बार दोनों भाइयों के होते हुए पापा को उठ कर जाना पड़ा हो, उन्होंने ओवन की बाटियों का कोई विरोध भी नहीं किया, कंडे की बाटी का कोई जिक्र नहीं किया।
रविन्द्र समझ नहीं पा रहा था कि यह उन की अनुपस्थिति ने उस के माता पिता को आत्मनिर्भर बना दिया है या लाचार :
अगले पल जब उसने पापा को किचन प्लेटफॉर्म पर चढ़ कर हाथ ऊपर कर के ओवन उतारते हुए देखा तो उस की सोच थम गई, वह भी थम गया :
उस की पूरी जवानी हताहत हो गई उस एक लम्हे में!

जब पापा ने हाथ ऊपर बढ़ाया तो उन की बाजूएं झूल चुकी है, चमड़ी हड्डियों पर तैर रही थी: निसंदेह यह एक दिन में नहीं हुआ होगा लेकिन अपने पिता के बूढ़े होने का एहसास उस की जवानी छीन रहा था उससे।
वह समझने की कोशिश कर रहा था कि जितने वक्त वह घर से दूर था तब क्या जिंदगी दोगुनी तेजी से चल रही थी ?

अपने बच्चों का साथ नहीं होने का एहसास उन्हें ज्यादा जल्दी वृद्ध बना रहा था?
बैसाखी से चलने वाले से अगर बैसाखी छीन ली जाए तो वह गिर पड़ता है और व्हीलचेयर पर आ जाता है या फिर कोई चमत्कार हो जाए तो अपने पैरों पर:
रविन्द्र के लिए शायद इतना मुश्किल नहीं था समझना कि पापा की उम्र पैरों पर खड़े होने वाली तो नहीं है !

Reader's Paradise.

02 Nov, 12:15


If anyone ask you about my identity behind my back through my words, write-ups or anything I ever said ( on live or maybe in person), how will you introduce me to them ?

Hasrat 💌

@harshbit

Reader's Paradise.

02 Nov, 10:38


ख्वाबों की गालियां अब सुनी पड़ी हैं
लगता है नींद ने आंखों से दुश्मनी मोल ली है।

- सुमन तिवारी

Reader's Paradise.

01 Nov, 04:50


वो ना जाने कितनी ख़लिश अपने सीने में लिए बैठा है
हसरत यही वजह है कि वो किसी को सीने से नहीं लगता ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

31 Oct, 22:03


रंग बिरंगी रोशनी,
चारों तरफ पटाखे की गूंज
मासूम उमंगे साथ लिए,
सपनों के दिए जला रही!
खुशियों की डोर में बंधे रिश्ते
मिठाई की खुश्बू सा महकते हैं
आंखों में सितारे लिए वो
नम मुस्कान सीने से लगा रही!
नई खुशी, नए संदेश जगाए
नई शुरुआत की आश लगा रही
प्यार के इस आलम में वो
चांद जमीं पर सजा रही!
बिन रुई बिन तेल
दिल के दीपक जला रही
सबकुछ खत्म करते रहे सब
वो अब भी उनको निभा रही!!

~ 🪔 सुमन तिवारी 🪔

Reader's Paradise.

29 Oct, 17:01


ना वक्त अपना रहा, ना ही ये आलम सही,
ना अब बात अपनी है, ना ही वो जज्बात रही।।

Reader's Paradise.

27 Oct, 21:15


जिसके लिए सीता सहे उपवास की पीड़ा
फिर न दे वो राम ही वनवास की पीड़ा
ऐसा न हो मिथ्या मुखर आरोप के गढ़ में
मौन अर्पण पाए फिर उपहास की पीड़ा

सर झुका पदचिह्न के अनुगत रही थी वो
जिस ओर राघव-धर्म था, अविचल चली थी वो
एक अबला भी सबल सी वाटिका में जब लड़ी
तब राम की रावण-विजय का धुर रही थी वो

जिसके लिए लाती रही वो गौरवों के क्षण
फिर न उससे ही मिले संत्रास की पीड़ा
ऐसा न हो मिथ्या मुखर आरोप के गढ़ में
मौन अर्पण पाए फिर उपहास की पीड़ा!
--Khushi:)

Reader's Paradise.

27 Oct, 20:56


अबकी नया गीत कोई लिखो तो,
गरीबों की आँखों की जलधार लिख दो
मुहब्बत वुहब्बत तो लिखते रहोगे,
किसी भूख का आज अंधियार लिख दो

दिल में ज़रा सी नमी घोल देना
बगल की कोई झोपड़ी खोल देना
लड़ती रही बारिशों से तभी तो
सो ना सकी रातभर, बोल देना

ढही उसकी माटी की दीवार लिख दो ,
तूफां से आखिर गई हार लिख दो
छूटी किसी की पतवार लिख दो,
उजड़ा हुआ एक संसार लिख दो

जगह प्रेम की आज फुटपाथ रखना..
कंगालियों का समां साथ रखना
कितने थकों का बना शामियाना
लिखना तो वो आसमाँ साथ रखना

तुम शब्द से ही प्रतीकार लिख दो,
निहत्थों के हाथों में तलवार लिख दो
कुछ ताकि चेतें ये सरकार अपने,
संघर्ष को सब हैं तैयार लिख दो!!

--Khushi:)

Reader's Paradise.

26 Oct, 13:44


जिस रख को यह हवा उड़ा ले जा रही थी
राख से पहले लाश थी
लाश से पहले हताश थी
हताश से पहले आस थी
आस से पहले सांस थी
सांस जो हवाओं को उड़ा ले जा रही थी !!


हसरत💌

Reader's Paradise.

26 Oct, 13:38


अब मिटाने को तेरे निशान भी नहीं मेरे पास,
मिटने को मेरा पूरा वजूद अब भी तैयार है ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

23 Oct, 21:06


भरोसे लूट जाते हैं किनारे टूट जाते हैं
हवा के बुलबुले पानी हिला दो फूट जाते हैं
नहीं मालूम किस हद तक सफ़र अनजान है मेरा
कभी युग साथ चलते हैं कभी पल छूट जाते हैं
--khushi;)

Reader's Paradise.

23 Oct, 20:58


कुछ घाव मिट गए से थे फिर से हरे हुए
टूटी दराज़ में दिखे कुछ ख़त छिपे हुए
जाने क्यों आज भी वही विश्वास तुम पे है
हाँ जानती हूँ फूल क्या खिलते गिरे हुए
आ जाओ एक बार उन ख़ुशबुओं से मिल लूँ
अरसा सा हो गया है मोहब्बत किये हुए
--khushi;)

Reader's Paradise.

22 Oct, 15:28


वो एक नंबर जो आपके कॉन्टैक्ट लिस्ट में है तो
मगर कभी डायल लिस्ट में नहीं आया
फिर भी हर रिंग पर आपका फोन को झटपट उठाना
की कही; गलती से ही कोई गलती न कर दिया हो।।

Reader's Paradise.

22 Oct, 15:22


सुकून सा शीतल मेरा प्रेम
गुम हो गया; जिंदगी की आपाधापी में

Reader's Paradise.

22 Oct, 13:11


हमदर्दी का दर्द पीते पीते
उसने शराब को ही हमदर्द बना लिया।

Reader's Paradise.

22 Oct, 13:02


वो सजती संवरती करवा मनाती
सितारों में खोए, एक चांद के लिए।

Reader's Paradise.

21 Oct, 15:29


जाते जाते बताना तुम,

जो मैं हूँ नहीं वो गलत है,
या जो मैं हूँ, वो गलत है?

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

21 Oct, 08:29


न ख़्वाब मुक़म्मल न नींदों की रज़ा क़ामिल
ग़र बेहूदगी तोहमत है इश्क़ पे तो फिर हकीकत क्या है
--khushi:)

Reader's Paradise.

21 Oct, 06:44


मंजिल तक पहुचने के लिए
पांव नहीं, ख़यालात बदलने
पड़ते हैं।

~आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

20 Oct, 14:33


https://t.me/hasrat596?livestream=ef2832aeb96c9952a7

Reader's Paradise.

20 Oct, 14:28


उम्मीद आखिरी विकल्प की कच्ची डोर है,
वो छूटने पर जो टूटे, कभी जुड़ता नहीं है।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

20 Oct, 14:21


वो मुसाफ़िर मंद सी इश्क़-ए-हवा में बह गया,
कभी जो आँधियों में आराम किया करता था।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

20 Oct, 08:39


प्रेम चरित्र का नहीं
प्रेम भावनाओं का विषय है!


~आकांक्षा श्रीवास्तव~

Reader's Paradise.

07 Oct, 15:30


फिर हम ने उसे जाने दिया हसरत
जो मजबूरी में हमारे साथ ठहरा था ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

06 Oct, 15:24


Check out the first comment.

Reader's Paradise.

06 Oct, 05:41


आँखें मीच ली हमने के इन्हें थोड़ी ठंडक मिले,
ये बेबस दिल ग्यारह महीने दिसंबर खोजता है।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

05 Oct, 16:45


फलक एक नज़र देखा और शिकार हो गये,
पर यार हम तो कभी शिकारी हुआ करते थे।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

05 Oct, 15:01


मैने खुदा को काफी करीब से देखा है
मैने मां की गोद में सिर रख के देखा है।


हसरत💌

Reader's Paradise.

05 Oct, 15:01


यह मेरे यकीन की मौत का मातम है हसरत
यकीनन मरा कुछ भी नही, जिंदा कुछ भी नही ।


हसरत💌

Reader's Paradise.

05 Oct, 10:43


कभी उसकी खुशियों में कोई कमी ना रहे ज़रा भी,
रकीब को चिट्ठी लिखी है उसकी पसंद नापसंद की।

~ विशाल सैनी।

Reader's Paradise.

03 Oct, 01:55


उफ़ान आया तो लहरों ने ढहा दिया उसका घर,
आदमी ठहरा आदमी, पानी पर दोष लगा दिया।
खिड़कियाँ खोल कर बैठा था आँधी तूफान में,
सब बिखर गया, उजड़ गया सिहर गया उसका,
आदमी ठहरा आदमी, हवा पर दोष लगा दिया।

~ विशाल सैनी।