चोटी हैं ना। तुम हो सबसे ऊंच। तुम्हारी महिमा है - सरस्वती, जगत अम्बा, उनसे क्या मिलता है? सृष्टि की बादशाही। वहाँ तुम धनवान बनते हो, विश्व का राज्य मिलता है। फिर गरीब बनते हो, भक्ति मार्ग शुरू होता है। फिर लक्ष्मी को याद करते हैं। हर वर्ष लक्ष्मी की पूजा भी होती है। लक्ष्मी को हर वर्ष बुलाते हैं, जगत अम्बा को कोई हर वर्ष नहीं बुलाते हैं। जगदम्बा की तो सदैव पूजा होती ही है, जब चाहें तब अम्बा के मन्दिर में जायें। यहाँ भी जब चाहो, जगत अम्बा से मिल सकते हो। तुम भी जगत अम्बा हो ना। सबको विश्व का मालिक बनने का रास्ता बताने वाले हो। जगत अम्बा के पास सब कुछ जाकर माँगते हैं। लक्ष्मी से सिर्फ धन माँगते हैं। उनके आगे तो सब कामनायें रखेंगे, तो सबसे ऊंच मर्तबा तुम्हारा अभी है, जबकि बाप के आकर बच्चे बने हो। बाप वर्सा देते हैं।
अभी तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय, फिर होंगे दैवी सम्प्रदाय। इस समय सब मनोकामनायें भविष्य के लिए पूरी होती हैं। कामना तो मनुष्य को रहती है ना। तुम्हारी सब कामनायें पूरी होती हैं। यह तो है आसुरी दुनिया। बच्चे देखो कितने पैदा करते हैं। तुम बच्चों को तो साक्षात्कार कराया जाता है, सतयुग में कैसे श्रीकृष्ण का जन्म होता है? वहाँ तो सब कायदेसिर होता है, दु:ख का नाम नहीं रहता। उनको कहा ही जाता है सुखधाम। तुमने अनेक बार सुख में पास किया है, अनेक बार हार खाई है और जीत भी पाई है। अभी स्मृति आई है कि हमको बाबा पढ़ाते हैं। स्कूल में नॉलेज पढ़ते हैं। साथ-साथ मैनर्स भी सीखते हैं ना। वहाँ कोई इन लक्ष्मी-नारायण जैसे मैनर्स नहीं सीखते हैं। अभी तुम दैवी गुण धारण करते हो। महिमा भी उनकी ही गाते हैं - सर्वगुण सम्पन्न....... तो अभी तुमको ऐसा बनना है। तुम बच्चों को अपनी इस लाइफ से कभी तंग नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह हीरे जैसा जन्म गाया हुआ है। इनकी सम्भाल भी करनी होती है। तन्दुरूस्त होंगे तो नॉलेज सुनते रहेंगे। बीमारी में भी सुन सकते हैं। बाप को याद कर सकते हैं। यहाँ जितना दिन जियेंगे सुखी रहेंगे। कमाई होती रहेगी, हिसाब-किताब चुक्तू होता रहेगा। बच्चे कहते हैं - बाबा सतयुग कब आयेगा? यह बहुत गन्दी दुनिया है। बाप कहते हैं - अरे, पहले कर्मातीत अवस्था तो बनाओ। जितना हो सके पुरूषार्थ करते रहो। बच्चों को सिखलाना चाहिए कि शिवबाबा को याद करो, यह है अव्यभिचारी याद। एक शिव की भक्ति करना, वह है अव्यभिचारी भक्ति, सतोप्रधान भक्ति। फिर देवी-देवताओं को याद करना, वह है सतो भक्ति। बाप कहते हैं उठते-बैठते मुझ बाप को याद करो। बच्चे ही बुलाते हैं - हे पतित-पावन, हे लिबरेटर, हे गाइड....... यह आत्मा ने कहा ना।
बच्चे याद करते हैं, बाप अभी स्मृति दिलाते हैं, तुम याद करते आये हो - हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ, आकर दु:ख से छुड़ाओ, लिबरेट करो, शान्तिधाम में ले जाओ। बाप कहते हैं तुमको शान्तिधाम में ले जाऊंगा, फिर सुखधाम में तुमको साथ नहीं देता हूँ। साथ अभी ही देता हूँ। सभी आत्माओं को घर ले जाता हूँ। मेरा अभी पढ़ाने का साथ है और फिर वापिस घर ले जाने का साथ है। बस, मैं अपना परिचय तुम बच्चों को अच्छी रीति बैठ सुनाता हूँ। जैसे-जैसे जो पुरूषार्थ करेंगे उस अनुसार फिर वहाँ प्रालब्ध पायेंगे। समझ तो बाप बहुत देते हैं। जितना हो सके मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और उड़ने के पंख मिल जायेंगे। आत्मा को कोई ऐसे पंख नहीं हैं। आत्मा तो एक छोटी बिन्दी है। किसको यह पता नहीं है कि आत्मा में कैसे 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। न आत्मा का किसको परिचय है, न परमात्मा का परिचय है। तब बाप कहते हैं - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोई भी जान नहीं सकता है। मेरे द्वारा ही मुझे और मेरी रचना को जान सकते हैं। मैं ही आकर तुम बच्चों को अपना परिचय देता हूँ। आत्मा क्या है, वह भी समझाता हूँ। इनको सोल रियलाइज़ेशन कहा जाता है। आत्मा भृकुटी के बीच में रहती है। कहते भी हैं भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा....... परन्तु आत्मा क्या चीज़ है, यह बिल्कुल कोई नहीं जानते हैं। जब कोई कहते हैं कि आत्मा का साक्षात्कार हो तो उन्हें समझाओ कि तुम तो कहते हो भृकुटी के बीच स्टार है, स्टार को क्या देखेंगे? टीका भी स्टार का ही देते हैं। चन्द्रमा में भी स्टार दिखाते हैं। वास्तव में आत्मा है स्टार। अभी बाप ने समझाया है तुम ज्ञान स्टार्स हो, बाकी वह सूर्य, चांद, सितारे तो माण्डवे को रोशनी देने वाले हैं। वह कोई देवतायें नहीं हैं। भक्ति मार्ग में सूर्य को भी पानी देते हैं। भक्ति मार्ग में यह बाबा भी सब करते थे। सूर्य देवताए नम:, चन्द्रमा देवताए नम: कहकर पानी देते थे। यह सब है भक्ति मार्ग। इसने तो बहुत भक्ति की हुई है। नम्बरवन पूज्य तो फिर नम्बरवन पुजारी बने हैं। नम्बर तो गिनेंगे ना। रूद्र माला के भी नम्बर तो हैं ना। भक्ति भी सबसे जास्ती इसने की है। अब बाप कहते हैं छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। अभी मैं सबको ले जाऊंगा फिर