बनेंगे। निश्चय रहता है। अब बाप कहते हैं तुमको सर्वगुण सम्पन्न बनना है। कोई से क्रोध आदि नहीं करना है। देवताओं में 5 विकार होते नहीं। श्रीमत पर चलना चाहिए। श्रीमत पहले-पहले कहती है अपने को आत्मा समझो। तुम आत्मा परमधाम से यहाँ आई हो पार्ट बजाने, यह तुम्हारा शरीर विनाशी है। आत्मा तो अविनाशी है। तो तुम अपने को आत्मा समझो - मैं आत्मा परमधाम से यहाँ आई हूँ पार्ट बजाने। अभी यहाँ दु:खी होते हो तब कहते हो मुक्तिधाम में जावें। परन्तु तुमको पावन कौन बनाये? बुलाते भी एक को ही हैं, तो वह बाप आकर कहते हैं - मेरे मीठे-मीठे बच्चों अपने को आत्मा समझो, देह नहीं समझो। मैं आत्माओं को बैठ समझाता हूँ। आत्मायें ही बुलाती हैं - हे पतित-पावन आकर पावन बनाओ। भारत में ही पावन थे। अब फिर बुलाते हैं - पतित से पावन बनाकर सुखधाम में ले चलो। श्रीकृष्ण के साथ तुम्हारी प्रीत तो है। श्रीकृष्ण के लिए सबसे जास्ती व्रत नेम आदि कुमारियाँ, मातायें रखती हैं। निर्जल रहती हैं। कृष्णपुरी अर्थात् सतयुग में जायें। परन्तु ज्ञान नहीं है इसलिए बड़ा हठ आदि करते हैं। तुम भी इतना करते हो, कोई को सुनाने के लिए नहीं, खुद कृष्णपुरी में जाने के लिए। तुमको कोई रोकता नहीं है। वो लोग गवर्मेन्ट के आगे फास्ट आदि रखते हैं, हठ करते हैं - तंग करने के लिए। तुमको कोई के पास धरना मारकर नहीं बैठना है। न कोई ने तुमको सिखाया है।
श्रीकृष्ण तो है सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स। परन्तु यह कोई को भी पता नहीं पड़ता। श्रीकृष्ण को वह द्वापर में ले गये हैं। बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, भक्ति और ज्ञान दो चीज़ें अलग हैं। ज्ञान है दिन, भक्ति है रात। किसकी? ब्रह्मा की रात और दिन। परन्तु इनका अर्थ न समझते हैं गुरू, न उनके चेले। ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का राज़ बाप ने तुम बच्चों को समझाया है। ज्ञान दिन, भक्ति रात और उसके बाद है वैराग्य। वह जानते नहीं। ज्ञान, भक्ति, वैराग्य अक्षर एक्यूरेट है, परन्तु अर्थ नहीं जानते। अभी तुम बच्चे समझ गये हो, ज्ञान बाप देते हैं तो उससे दिन हो जाता है। भक्ति शुरू होती तो रात कहा जाता है क्योंकि धक्का खाना पड़ता है। ब्रह्मा की रात सो ब्राह्मणों की रात, फिर होता है दिन। ज्ञान से दिन, भक्ति से रात। रात में तुम बनवास में बैठे हो फिर दिन में तुम कितना धनवान बन जाते हो। *_अच्छा!_*
*_मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।_*
*_धारणा के लिए मुख्य सार:-_*
अपने दिल से पूछना है:-
1. बाप से इतना जो खुशी का खजाना मिलता है वह दिमाग में बैठता है?
2. बाबा हमें विश्व का मालिक बनाने आये हैं तो ऐसी चलन है? बातचीत करने का ढंग ऐसा है? कभी किसी की ग्लानि तो नहीं करते?
3) बाप से प्रतिज्ञा करने के बाद कोई अपवित्र कर्म तो नहीं होता है?
*_वरदान:-_* साक्षी स्थिति में स्थित हो परिस्थितियों के खेल को देखने वाले सन्तोषी आत्मा भव
कैसी भी हिलाने वाली परिस्थिति हो लेकिन साक्षी स्थिति में स्थित हो जाओ तो अनुभव करेंगे जैसे पपेट शो (कठपुतली का खेल) है। रीयल नहीं है। अपनी शान में रहते हुए खेल को देखो। संगमयुग का श्रेष्ठ शान है सन्तुष्टमणी बनना वा सन्तोषी होकर रहना। इस शान में रहने वाली आत्मा परेशान नहीं हो सकती। संगमयुग पर बाप-दादा की विशेष देन सन्तुष्टता है।
*_स्लोगन:-_* ऐसे खुशनुम: बनो जो मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई दे।