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आर्ष पुस्तकालय
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Последнее обновление 01.03.2025 07:49

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https://youtube.com/shorts/xr7xqJV10E8?si=fdE5Tl4WySiGK9Nt

ॐ बीजेपी नमः
हर हर मोदी घर घर मोदी
वोट दे बीजेपी को और टेक्स बचाए 😁🙏

कुंभ पहले आया या वेद? कुंभ
वेद पहले आया या भगवान? भगवान.

ये सब भी आपको बताना पड़ेगा क्या लोगों को? कैसे हिन्दू है हम? कैसे लोग है हम?

चलो कुंभ की ओर. जैसे १८५७ से पहले महर्षि गए थे वैसे ही 😅

वेद में है कुंभ. आईये चले कुंभ में नहाने.
फ्लाइट की टिकट भेजें कोई. 😄😎

book :- the christ conspiracy the greatest story ever told,
revised edition.

pages :- 600,

language :- english,

author :- acharya s (d.m. murdock),

publisher :- stellar house publishing.

publishing year :- 2020 (revised version). original 1999.

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do you even know why i have to write this? (I'm forcing and trying really really really really hard to stop myself from writing this) but i have to because of the idiocy of the new thing called "spiritual atheism".

and why I'm writing in english? because everything does not need to be in hindi. everytime I don't have to write in hindi. I'm not trying to be a stereotype anymore. since many can't understand hindi they should get the information in english and the english i write is basic so anyone can basically understand what I'm trying to say without translating it. why don't you try when you can? also I don't know what to write of them idiots in hindi. people will think I'm back to my oldself. (which is never going to happen though, cause i also learn from my mistake, trust can make you change your whole life)

edit :- also this is super idiotic to even say it out loud. if you believe in soul then you are already believing in god. so there's no thing as spiritual atheism if you ask me. only half baked people will believe this. half knowledge is always dangerous. but don't worry atleast they are having half knowledge. atheist on the other hand just have copy paste knowledge mostly. and all they do is just make pre assumptions and they're biased already.

after long time once again getting dragged into theism and atheism.
I'm never going to be a true atheist. i will never be an agnostic also.
cause I can't deny god.

the answer is simple, if i close my eyes it doe not mean that the sun does not exist. same is with god. if you don't want to feel him or know him just because of your ignorance and ego, no one can help you in that.

but I'm enjoying this. because it's teaching me alot. especially more arguments from atheist side. maybe one day I'll do reply some of them who knows? but atheist do ask good questions. (not that I'm impressed or anything by it, but i give them full marks for trying) (also if you won't see from the otherside how you're going to reply them? and make your point valid and true with fact?) so let them come at you. rationalists are more but it doesn't mean that we theist (or monotheists i should say) need to give them a proper fight. tough battles always start and ends from mind. so be good at it. or be good at it. adios.

https://x.com/DeepikaBhardwaj/status/1890285226422865985?t=CAHoeWhEgqd11_Ezwn-WlA&s=19

परिवार बनाने और उसके बाद उसको बचाने के लिए जो भी संभव हो करना चाहिए.

भावार्थ :- इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। कोई विद्वान् मनुष्य परमेश्वर को प्राप्त होके और बिजुलीरूप अग्नि जान के उससे उपकार लेने को समर्थ होता है, जैसे उत्तम पुष्टि, पृथिवी का राज्य, मेघ की वृष्टि, उत्तम जल, उत्तम घोड़े और समुद्र बहुत सुखों को प्राप्त कराते हैं, वैसे ही परमेश्वर और बिजुली भी सब आनन्दों को प्राप्त कराते हैं, परन्तु इन दोनों का जाननेवाला विद्वान् मनुष्य दुर्लभ है ॥ ३ ॥ महर्षि दयानन्द जी महाराज.

ભાવાર્થ : કોઈ વિદ્વાન દુર્લભ મનુષ્ય જ પરમેશ્વરની પ્રાપ્તિ અને વિદ્યુત્ નું વિશેષ જ્ઞાન તથા ઉપયોગ કરી શકે છે. જેમ સર્વોત્તમ પુષ્ટિ, પૃથ્વીનું રાજ્ય, મેઘથી વૃષ્ટિ, ઉત્તમ જળ, શ્રેષ્ઠ ઘોડો અને સમુદ્ર (એ) બહુ જ સુખ આપે છે, તેમ જ પરમેશ્વર અને વિદ્યુત્ સમસ્ત આનંદોને પ્રાપ્ત કરાવે છે. પરંતુ એ બન્નેને જાણનાર મહાવિદ્વાન મનુષ્ય દુર્લભ હોય છે. दयाल मुनि जी

भावार्थ - प्रभु का वरण विरला ही व्यक्ति करता है । हरीशरण जी.

भावार्थ :- ज्ञान करने योग्य परमेश्वर और अग्नि तथा राजा वा सभाध्यक्ष (पुष्टिः न रण्वा) शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा के सुख को बढ़ानेवाली पुष्टि के समान अग्नि, विद्युत्, राजा और परमेश्वर तीनों में से प्रत्येक सुख देने वाला है । वह (क्षितिः न पृथ्वी) भूमि के समान सबको अपने में आश्रय देने वाला है । (गिरिः न भुज्म) पर्वत के समान सबको पालन करने वाला है । ( अज्मन् अत्यः न ) वेग में, शत्रुओं के उखाड़ फेंकने में अश्व के समान (सर्गप्रतक्तः) छूटते ही शत्रु के पास पहुंचने और पहुंचाने वाला -(सर्ग-प्रतक्तः ) जल को अपने भीतर दबाव से रखने वाला (क्षोदः ) जल समूह जिस प्रकार (सिन्धुः ) वेग से बहता है, वह रोके नहीं रुकता इसी प्रकार ईश्वर भी (सर्ग-प्रतक्तः) सृष्टि द्वारा जाना जाकर (सिन्धुः न) अगाध सागर के समान सर्जनशक्ति का अक्षय भण्डार है । अग्नि भी जल के समान संसार में अपरिमित है। राजा भी (सर्ग-प्रतक्तः) वेग से आक्रमण करने पर अदम्य वेग से शत्रु पर टूटता और बड़ा पीड़ाजनक, (सिन्धुः न) उमड़ते समुद्र के समान भयंकर है। (ईं) इन सबको (कः) कौन (वराते) वारण कर सकता है। उस प्रभु को कौन पूर्णतया जान सकता है । जयदेव शर्मा जी.

अंग्रेजी भाष्य सम्मिलित नहीं है. द्विपदा चतुष्पदा के कारण.

ऋ. १.६५.३ / द्विपदा चतुष्पदा १.६५.५

https://www.youtube.com/live/SrVe_1zcs0w?si=B2v3g47ulpf7dZ1l

नमस्ते सभी को,
मेरा पोस्ट न डालने का एक मुख्य कारण भी है.

१८५७ और महर्षि दयानन्द जी महाराज के हत्यारे.

जो लोग ऊपर का यह गाने का वीडियो और १८५७ फिल्म का समर्थन और प्रचार कर रहे हैं, वो आर्य समाजी है क्या?

या महर्षि दयानन्द जी महाराज एवं आर्य समाज के हत्यारे?

महर्षि दयानन्द जी महाराज के जीवित रहते हुए जब गोपाल हरि राव ने दयानंद दिग्विजयार्क लिखा था. उसमें कुछ गलत बातें थी. जिसके ज्ञात होते ही महर्षि दयानन्द जी महाराज ने एक पत्र में उन्हें लिखा था के "जब आपको मेरा इतिहास ठीक ठीक विदित नहीं, तो उसके लिखने में कभी साहस मत करो".

जब महर्षि दयानन्द जी ने स्वयं अपने १८५७ के समय के विषय में कुछ भी नहीं कहा, तो दूसरे लोगों को इतना क्यों उछलना है? जिनको महर्षि दयानन्द जी महाराज के इतिहास के साथ खेलना है और महर्षि दयानन्द जी महाराज पर ही विश्वास नहीं है वो लोग कैसे आर्य समाजी हो सकते हैं?

यदि मैं १८५७ वाले गपोड़ का खंडन करता हूं तो लोग मेरा समर्थन करने की जगह मेरा विरोध करते हैं कुछ भी लिखकर. और कहते हैं भाषा की शालीनता होनी चाहिए, विन्रम होना चाहिए. आप लोग का बस चले तो आप तो हमें लिखने भी न दो. महर्षि के इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना अर्थात उनकी हत्या करने के समान कार्य ही हुआ. और यह कैसे आर्य समाजी है जिनको महर्षि दयानन्द जी महाराज का ही इतिहास नहीं पता? आर्य समाजी स्वाध्याय नहीं करने पर आर्य समाजी कहलाने के योग्य कैसे है?

और मैं यदि खंडन करूं इन सब गलत बातों का तो कुछ लोग यह कहते हैं के आप प्रमाणपत्र मत बाटों.

तो क्या अब मैं महर्षि दयानन्द जी महाराज के इतिहास के साथ लोगों को खेलने दूं?

मेरे पास पैसा नहीं है और मुझे पैसों का कोई घमंड नहीं है और मैंने जब भी लोगों को कुछ सिखाया है तो अच्छा ही सिखाने का प्रयास किया है. यदि फिर भी किसी को मेरा विरोध करना है तो वो मेरा नहीं सत्य का विरोध कर रहा है.

जो घटना हुई ही नहीं उसका निर्माण करके महर्षि दयानन्द जी महाराज को झूठा सिद्ध किया जा रहा है. और यह सब कार्य आर्य समाज के पतन की और ही अग्रसर है.

मैं आज कुछ अच्छा लिखने वाला था महर्षि दयानन्द जी महाराज के ऊपर. पर १८५७ वाले लोगों ने सब बेड़ा गर्क कर दिया.

मेरे लिए तो मेरे गुरु महर्षि दयानन्द जी महाराज थे है और रहेंगे. गुरुजी को अनंत कोटि प्रणाम और अनंत कोटि कोटि धन्यवाद् आर्यावर्त की भूमि पर वेदों को पुनःस्थापित करने के इस अनंत कार्य को करने के लिए. 🙏

ईश्वर की अनंत कृपा थी है और रहेगी.
जय आर्यावर्त🙏