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आनन्द भाव प्रवाह

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आंनद भाव प्रवाह में आप सभी को भक्ति के सब रस से मिलवाने का हमारा प्रयास रहे गा।
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आनन्द भाव प्रवाह (Hindi)

आनन्द भाव प्रवाह एक टेलीग्राम चैनल है जो भक्ति के सब रस से भरपूर आनंद और सुख देने का मिशन लेकर आया है। चैनल 'आनंद भाव प्रवाह' में आपको भक्ति, ध्यान, और मन की शांति से जुड़ी जानकारी प्राप्त होगी। यहाँ आपको भक्ति गीत, मंत्र, ध्यान विचार, और आध्यात्मिक संदेश मिलेंगे जो आपको मानसिक और आध्यात्मिक विकास में मदद करेंगे। चैनल में अन्य सदस्यों से जुड़ने का एक विशेष माध्यम भी है जो आपको सामूहिक भक्ति अनुभव करने में मदद करेगा। इस चैनल में सभी उम्र के लोगों का स्वागत है जो अपने मन, शरीर, और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने की चाहत रखते हैं। तो अब ही जुड़ें 'आनंद भाव प्रवाह' चैनल के साथ और भक्ति के सब रस से लबालब जुड़ें।

आनन्द भाव प्रवाह

21 Nov, 03:23


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🙏🌹 जय श्री महाँकाल 🌹🙏
श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंगजी उज्जैन म, प्र, से आज के भस्म आरती श्रंगार दर्शन
🙏 २१ नवम्बर २०२४ ब्रहस्पतिवार 🙏
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आनन्द भाव प्रवाह

21 Nov, 01:31


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🌺 आज का सुविचार 🌺

हर काम मुश्किल
होता है,
आसान होने से
पहले

🙇‍♂ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂
🙏 सुप्रभात 🙏

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आनन्द भाव प्रवाह

19 Nov, 11:09


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🦋🦋जय श्री सीताराम जी 🦋🦋
🌻🌻💥💥💐💐💥💥🌻🌻

भगवान शिव ने नारद जी को बहुत समझाया। अच्छा आप विचार करो, भगवान शिव कहते हैं कि न कोई ज्ञानी न कोई मूढ़-- ज्ञानी मूढ़ न कोय।

शंभु दीन्ह उपदेश हित
नहिं नारदहि सुहान।
भरद्वाज कौतुक सुनहु
हरि इच्छा बलवान।।

नहीं समझे नारद जी। क्योंकि भगवान की इच्छा ऐसी ही है।

इस संसार की गतिविधियों पर नहिं अधिकार किसी का है।
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है।।
क्षण भर को भी नहीं छोड़ता सदा हमारे साथ में है।
काया की स्वांसा डोरी का तार उसी के हाथ में है।
हंसना रोना जीना मरना सब उसकी मर्जी का है।
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है।।
निर्धन धनी हो निर्धन ज्ञानी मूढ़ मूरख ज्ञानी।
सब कुछ अदल बदल देने में कोई नहीं उसकी सानी।
समझदार भी समझ सके न ऐसा अजब तरीका है।
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है।।
मिट्टी काली पीली हरे वन आसमान का रंग नीला।
सूर्य सुनहरा चन्द्रमा शीतल सब कुछ उसकी ही लीला।
सबके भीतर स्वयं छिप गया सृजनहार सृष्टी का है।
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है।।
राजेश्वर आनन्द अगर सुख चाहो तो मानो शिक्षा।
तजि अभिमान मिला दो उसकी इच्छा में अपनी इच्छा।
यही भक्ति का भाव है प्यारे सूत्र यही मुक्ती का है।
जिसको हम परमात्मा कहते यह सब खेल उसी का है।।

अब नारद जी को समझाया शंकर जी ने। संभु दीन्ह उपदेश हित -- अब यहाँ उत्तर क्या दिया गया, यह बड़ा अद्भुत है। भगवान शंकर जी ने समझाया और नारद जी को समझाया और आश्चर्य कि समझाने वाले त्रिभुवन गुरु और समझने वाले परम वैष्णव, परम ज्ञानी, और नहीं समझे।

अच्छा एक बात और है। जब हम किसी को समझाएँ और वह न समझे, तो हमको भी तो समझ लेना चाहिए। समझाने वालोंं के साथ सबसे बड़ी कठिनाई यही है, वह समझाते तो हैं पर समझते नहीं हैं। समझाए चले जाते हैं और कई बार तो अपने अभिमान से जोड़ लेते हैं उस बात को, कि हमारी बात क्यों नहीं समझ रहे हो, सही बात क्यों नहीं समझ रहे हो?

और एक घटना मानस में ऐसी भी घटी। लोमश जी भी कागभुशुण्डि जी को समझा ही तो रहे थे, और कागभुशुण्डि जी नहीं समझे। तो लोमश जी को क्रोध आ गया और श्राप दे दिया -- कौवा हो जाओ। लोमश जी समझा ही रहे हैं समझ नहीं रहे हैं और यह घटना क्यों घटी? क्योंकि भक्त ने समझ लिया--

कृपा सिंधु मुनि मति करि भोरी।
लीन्हीं प्रीति परीक्षा मोरी।।

भगवान ही यह खेल करा रहे हैं।•••• तो लोमश जी आपको श्राप दे रहे हैं, आपको बुरा-भला कह रहे हैं, उनके चरणों में आप प्रणाम करके आए? कागभुशुण्डि जी बोले -- लोमश जी का तो बहाना है, लीला तो भगवान की है। श्राप देने में भी वे देखते हैं कि भगवान की लीला है, इनके माध्यम से हो रही है। यह भक्त की समझ है और जब लोमश जी ने दुबारा बुलाया। तो कहा कि लोमश जी अब बदल गये। पहले बिगड़ रहे थे अब सुधर गये?

कागभुशुण्डि जी बोले -- न वह बिगड़े थे, न वह अब सुधरे हैं। ••••फिर? बोले -- यह जो परिवर्तन है, तो

मुनि मति पुनि फेरी भगवाना।

भगवान की इच्छा, जो समझ ले वही समझदार है और यहाँ शंकर जी समझ लेते हैं कि भगवान की यही इच्छा है। नारद जी को बहुत समझाया पर नारद जी नहीं समझे। याज्ञवल्क्य जी भरद्वाज जी से कहते हैं कि जानते हो क्यों नहीं समझे? •••क्यों। •• याज्ञवल्क्य जी बोले -- हम भी शंकर जी की शिष्य परम्परा में हैं। हम अच्छी तरह जानते हैं। ••• क्या?

संभु दीन्ह उपदेश हित
नहिं नारदहि सुहान।
भरद्वाज कौतुक सुनहु
हरि इच्छा बलवान।।

भगवान की इच्छा अत्यन्त शक्तिशाली है, तो कौन समझेगा? शंकर जी भी समझाएँ और नारद जी तक न समझें। क्यों नहीं? हरि इच्छा नहीं है। समझता कौन है?

सोइ जानहि जेहि देहु जनाई।
जानत तुम्हहि तुम्हहि होइ जाई।।

शंकर जी के समझाने से समझे ही नहीं नारद जी। अच्छा कभी-कभी तो बड़ी विचित्र बात होती है। ज्यादा समझाओ और उससे यह आशा रखो कि ये ठीक समझ रहे हैं। कई बार समझने वाले उल्टा ही समझते जाते हैं, उल्टा। कुछ समझाओ, कुछ समझें।

(स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज)
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आनन्द भाव प्रवाह

19 Nov, 11:09


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

19 Nov, 02:08


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🌺 आज का सुविचार 🌺

जहा बदलना
जरूरी हो जाता है,
वहां बदलना
सीखिए

🙇‍♂ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂
🙏 सुप्रभात 🙏

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आनन्द भाव प्रवाह

17 Nov, 05:00


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

16 Nov, 19:01


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हंसकर बोलीं प्यारी राधा💗 श्री बांके बिहारी से🦯
आया है इक भक्त👆 मांग रहा कुछ गिरधारी से🤲
बोले नटवर 👑 मैं इसको तो बिन मांगे सब दे दूं😊
ये नाम अगर ले संग तुम्हारा🙌 एक भी बारी से👆
जय जय श्री राधे जय श्री बांके बिहारी लाल जी🙏
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आनन्द भाव प्रवाह

15 Nov, 18:40


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

सभी उठ गए हैं,तो आप भी प्रभु राम का नाम लें

#जय_श्री_राम🚩🙏💥🌸🌺
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आनन्द भाव प्रवाह

13 Nov, 17:29


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

जय श्री राधे
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आनन्द भाव प्रवाह

13 Nov, 14:41


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

13 Nov, 01:33


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🌺 आज का सुविचार 🌺

"लगन" एक छोटा सा
शब्द है लेकिन जिसे
लग जाती है
उसका जीवन बदल देती है

🙇‍♂ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂
🙏 सुप्रभात 🙏

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आनन्द भाव प्रवाह

12 Nov, 17:40


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

#तुलसी_विवाह की पुरानी मान्यता के अनुसार, यह भगवान विष्णु और तुलसी देवी के विवाह का प्रसंग है। पुराणों और #हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, तुलसी को देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है, और उनका विवाह विष्णु के एक रूप, शालिग्राम (जो एक शिला है), के साथ होता है।

तुलसी विवाह का महत्व यह है कि इसके साथ ही हिंदू धर्म में विवाह के अवसर शुरू हो जाते हैं। #देवउठनी_एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपने चार महीने के निद्रा से जागते हैं, और इसी दिन तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी देवी का पूजन कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है और इससे घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
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आनन्द भाव प्रवाह

11 Nov, 18:44


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

11 Nov, 02:23


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

🌺 आज का सुविचार 🌺

अगर हम खुद की माने
और विश्वाश करे तो
हमारा हर
कदम सफलता है

🙇‍♂ जय श्री कृष्णा 🙇‍♂
🙏 सुप्रभात 🙏

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आनन्द भाव प्रवाह

09 Nov, 15:42


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है।

आंवला को वेद-पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है। आंवला का संबंध कनकधारा स्तोत्र से भी है।

आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा-

एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।

शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।

मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।
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आनन्द भाव प्रवाह

09 Nov, 15:42


अक्षय नवमी इस वर्ष 10 नवंबर को मनाई जाएगी

आँवला नवमी
गोपाष्टमी से अगले दिन ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आमला नौमी के नाम से मनाया जाता है. जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है. दीया व धूप जलाकर आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की जानी चाहिए. अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा दी जाती है. इस दिन भोजन में आँवले का सेवन जरुर करना चाहिए.

आँवला नवमी की कहानी

प्राचीन समय में एक आँवलिया राजा था वह रोज एक मन सोने के आँवले दान करता था और उसके बाद ही भोजन करता था. एक बार उसके बहू-बेटे सोचने लगे कि अगर यह रोज इसी तरह दान करता रहा तो एक दिन सारा धन समाप्त हो जाएगा. एक दिन उसके एक पुत्र ने राजा से कहा कि आप आँवले का दान बंद कर दें नहीं तो सारा धन खतम हो जाएगा. यह सुनकर राजा व रानी महल छोड़ एक उजाड़ स्थान पर आ गए और आँवला दान ना करने की स्थिति में उन दोनों ने भोजन नहीं किया. यह देख भगवान सोचने लगे कि यदि हमने इसका मान नहीं रखा तो संसार में कोई हमें कैसे मानेगा ! भगवान ने राजा को सपने में कहा कि तुम उठो और देखो कि तुम्हारी पहले जैसी रसोई हो गई है और आँवले का पेड़ भी लगा है, दान करके तुम भोजन कर लो.

राजा ने उठकर देखा तो पहले जैसा राजपाट हो गया है और सोने के आँवले का वृक्ष भी लगा है. यह देख राजा-रानी दोनो ने सवा मन सोने के आँवले तोड़े व उनका दान कर के फिर भोजन किया. दूसरी ओर राजा के बेटे व बहू से अन्नपूर्णा का बैर हो गया, यह देख आसपास के लोगों ने उनसे कहा कि पास ही जंगल में एक आँवलिया राजा है तुम उनके पास चले जाओ वह तुम्हारा कष्ट दूर कर देगें.

बहू-बेटे राजा के पास सहायता के लिए पहुंचे और रानी ने उन दोनों को पहचान लिया. रानी ने राजा से कहा कि इनसे हम काम लेगें लेकिन काम कम कराएंगे पर मजदूरी ज्यादा दे देगें. एक दिन रानी ने बहू से कहा कि मेरा सिर धो दे. बहू सिर धोने लगी और उसकी आँख से आँसू निकलकर रानी की पीठ पर गिर गया. रानी ने कहा कि मेरी पीठ पर आँसू क्यों गिरा? मुझे इसका कारण बताओ. बहू बोली कि मेरी सास की पीठ पर भी ऎसा ही मस्सा है जैसा आपकी पीठ पर है. वह रोज सवा मन सोने के आँवले का दान करते थे जिससे हमने सास-ससुर को घर से निकाल दिया.

बहू के आँसू देख रानी ने कहा कि हम ही तुम्हारे सास-ससुर हैं. भगवान ने हमारा सत्त रख लिया और हमें फिर से सब कुछ दे दिया जिसकी वजह से हम दान कर रहे हैं. हे भगवान ! जैसे आपने राजा-रानी की सुनी वैसे ही आप सभी की सुनना.

इसके बाद बिन्दायक जी की कहानी कहते हैं –

बिन्दायक जी की कहानी

एक बार एक छोटा लड़का किसी बात पर लड़कर घर से चला गया. कहने लगा कि आज मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर जाऊँगा. लड़का चलते-चलते उजाड़ जगह पर पहुंच गया तब बिन्दायक जी सोचने लगे कि इसने मेरे नाम से ही घर छोड़ा है. मुझे इसकी सहायता करनी होगी अन्यथा उजाड़ में शेर आदि इसे खा सकते हैं. बिन्दायक जी बूढ़े व्यक्ति के भेष में आकर बोले कि लड़के तू कहाँ से आया है और कहाँ जा रहा है? इस पर वह बोला कि मैं तो बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूँ. बिन्दायक जी ने कहा कि मैं ही बिन्दायक हूँ, बोल तू क्या माँगता है! लेकिन जो भी माँगना वह एक बार में ही माँग लेना.

बिन्दायक जी की बात सुनकर लड़का बोला कि मैं क्या माँगू! फिर बोला कि क्या माँगू बाप की कमाई, हाथी की सवारी, दाल-भात मुठ्ठी परासें, ढोकता मुठ्ठी भर कर डोल, स्त्री ऎसी कि जैसे फूल गुलाब का. बिन्दायक जी कहने लगे कि लड़के तूने सब कुछ माँग लिया. जो तूने कहा है सब वैसा ही हो जाएगा. घर वापिस आने पर उसने देखा कि छोटी सी बहू चौकी पर बैठी है और घर में बहुत धन हो गया है. लड़का माँ से बोला कि माँ देख कितना धन हो गया है, यह मैं बिन्दायक जी से माँग कर लाया हूँ. हे बिन्दायक जी महाराज जैसे आपने लड़के को धन दिया वैसे ही आप सभी की सुने.

आंवला नवमी का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है क्योंकि इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था, जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था।

आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए रखा जाता है व्रत इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके कर्तव्य के पथ पर पहला कदम रखा था।

इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है।

आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें।

आनन्द भाव प्रवाह

09 Nov, 15:42


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

09 Nov, 15:40


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

08 Nov, 18:22


हरे राम राम राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


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आनन्द भाव प्रवाह

08 Nov, 07:26


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