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इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं:
इमामत व अज़ान व तअ़्लीमे फ़िक़्ह् व तअ़्लीमे क़ुरआन पर उजरत (मज़दूरी) लेने को अइम्मह ने ब-ज़रूरते ज़माना जाइज़ क़रार दिया है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज⁶³⁹]
एक और मक़ाम पर फ़रमाते हैं:
क़ुरआने अ़ज़ीम की तअ़्लीम, दीगर दीनी उ़लूम, अज़ान और इमामत पर उजरत (मज़दूरी) लेना जाइज़ है जैसा कि मुतअख़्ख़िरीन अइम्मह ने मौजूदह ज़माना में शआ़इरे दीन व ईमान की ह़िफ़ाज़त के पेशे नज़र फ़तवा दिया है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द¹⁹ पेज⁴⁹⁵]
नीज़ फ़रमाते हैं:
अब फ़तवा जवाज़े उजरते इमामत (इमामत की मज़दूरी के जाइज़) पर है और शक नहीं कि अजीर (उजरत पर काम करने वाला, मज़दूर) आ़मिले लि-नफ़्सिही है न कि आ़मिलुल्लाह तआ़ला ह़ालांकि उस की नमाज़ क़त़्अ़न स़ह़ीह़ है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द¹⁸ पेज⁵⁵⁸]
मज़ीद फ़रमाते हैं:
मुतक़द्दिमीन (पहले के उ़लमा) के नज़दीक जो उजरत (मज़दूरी) लेकर इमामत करने वाले के पीछे नमाज़ में कराहत थी इस बिना पर कि उनके नज़दीक इमामत पर उजरत (मज़दूरी) लेना नाजाइज़ था वोह भी ऐसी न थी जिस के बाइ़स तर्के जमाअ़त का ह़ुक्म दिया जाए, अब कि फ़तवा जवाज़े उजरत (मज़दूरी के जाइज़) पर है तो वोह कराहत भी न रही .... अब मुफ़्ता बिहि क़ौल येह है कि उजरत (मज़दूरी) लेना जाइज़ है वरना शआ़इरे इस्लामी के मुअ़्त़्त़ल होने का ख़ौफ़ है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज⁴²²]
ह़ुज़ूर स़दरुश् शरीअ़ह फ़रमाते हैं:
मुतक़द्दिमीन (पहले के उ़लमा) ने अज़ान पर उजरत (मज़दूरी) लेने को ह़राम बताया, मगर मुतअख़्ख़िरीन (बअ़्द के उ़लमा) ने जब लोगों में सुस्ती देखी, तो इजाज़त दी और अब इसी पर फ़तवा है, मगर अज़ान कहने पर अह़ादीस में जो सवाब इरशाद हुए, वोह उन्हीं के लिये हैं जो उजरत (मज़दूरी) नहीं लेते - [बहारे शरीअ़त, जिल्द¹, ह़िस़्स़ह³, पेज⁴⁷⁵]
इसी तअ़ल्लुक़ से ह़ुज़ूर फ़क़ीहे मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन अह़मद अमजदी علیہ الرحمہ से एक सुवाल और उस का जवाब:
सुवाल:
इमाम व मुअज़्ज़िन जो इमामत करने और अज़ान पढ़ने की तन्ख़्वाह लेते हैं और मुदर्रिसीन जो मज़हबी तअ़्लीम देने का पैसा लेते हैं, इन कामों पर इमाम व मुअज़्ज़िन और मुदर्रिस को सवाब मिलता है या नहीं ?
जवाब:
जब कि येह लोग इमामत, अज़ान और मुदर्रिसी रुपये के लिये करें तो अजीर (उजरत पर काम करने वाले, मज़दूर) हैं और अजीर आ़मिले लि-नफ़्सिही है आ़मिले लिल्लाह नहीं और जब अ़मल अल्लाह के लिये न हो तो सवाब की उम्मीद बेकार है - [फ़तावा बरकातियह, पेज²²³]
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