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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

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सुन्नी स़ह़ीह़ुल अ़क़ीदह आ़लिमे दीन
की लिखी हुई बे शुमार मौज़ूआ़त पर
इस्लामी किताबें 📚 हिंदी, ગુજરાતી
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त़ालिबे दुआ़ :
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚 (Hindi)

अगर आप एक सच्चे इस्लामी विद्वान बनना चाहते हैं और अपनी धार्मिक ज्ञान को बढ़ाना चाहते हैं, तो 'फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚' नामक टेलीग्राम चैनल आपके लिए सबसे अच्छा साथी हो सकता है। यह चैनल 'ahlesunnat_hindibooks' के नाम से जाना जाता है और इसमें सुन्नी स़ह़ीह़ुल अ़क़ीदह आ़लिमे दीन की लिखी हुई बे शुमार मौज़ूआ़त पर इस्लामी किताबें हिंदी, ગુજરાતી, English और Roman Urdu में उपलब्ध हैं। इस चैनल में तालीबे दुआ़ भी शामिल हैं, जिन्हें आप अपने सवालों के जवाब और धार्मिक समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। चैनल के माध्यम से आप न केवल अपने आत्मिक विकास में मदद पा सकते हैं, बल्कि इस्लाम के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को धार्मिक संस्कृति से भर सकते हैं। तो आज ही 'फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚' में जुड़ें और अपनी आत्मा के साथ एक साथ प्रगटि करें।

फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

24 Nov, 04:35


अज़ान पढ़ने, नमाज़ पढ़ाने और इस्लामी तअ़्लीम देने पर उजरत (यअ़्नी मज़दूरी, तन्ख़्वाह, सैलरी) लेने और सवाब का मसअलह:

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इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं:
इमामत व अज़ान व तअ़्लीमे फ़िक़्ह् व तअ़्लीमे क़ुरआन पर उजरत (मज़दूरी) लेने को अइम्मह ने ब-ज़रूरते ज़माना जाइज़ क़रार दिया है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज⁶³⁹]

एक और मक़ाम पर फ़रमाते हैं:
क़ुरआने अ़ज़ीम की तअ़्लीम, दीगर दीनी उ़लूम, अज़ान और इमामत पर उजरत (मज़दूरी) लेना जाइज़ है जैसा कि मुतअख़्ख़िरीन अइम्मह ने मौजूदह ज़माना में शआ़इरे दीन व ईमान की ह़िफ़ाज़त के पेशे नज़र फ़तवा दिया है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द¹⁹ पेज⁴⁹⁵]

नीज़ फ़रमाते हैं:
अब फ़तवा जवाज़े उजरते इमामत (इमामत की मज़दूरी के जाइज़) पर है और शक नहीं कि अजीर (उजरत पर काम करने वाला, मज़दूर) आ़मिले लि-नफ़्सिही है न कि आ़मिलुल्लाह तआ़ला ह़ालांकि उस की नमाज़ क़त़्अ़न स़ह़ीह़ है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द¹⁸ पेज⁵⁵⁸]

मज़ीद फ़रमाते हैं:
मुतक़द्दिमीन (पहले के उ़लमा) के नज़दीक जो उजरत (मज़दूरी) लेकर इमामत करने वाले के पीछे नमाज़ में कराहत थी इस बिना पर कि उनके नज़दीक इमामत पर उजरत (मज़दूरी) लेना नाजाइज़ था वोह भी ऐसी न थी जिस के बाइ़स तर्के जमाअ़त का ह़ुक्म दिया जाए, अब कि फ़तवा जवाज़े उजरत (मज़दूरी के जाइज़) पर है तो वोह कराहत भी न रही .... अब मुफ़्ता बिहि क़ौल येह है कि उजरत (मज़दूरी) लेना जाइज़ है वरना शआ़इरे इस्लामी के मुअ़्त़्त़ल होने का ख़ौफ़ है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज⁴²²]

ह़ुज़ूर स़दरुश् शरीअ़ह फ़रमाते हैं:
मुतक़द्दिमीन (पहले के उ़लमा) ने अज़ान पर उजरत (मज़दूरी) लेने को ह़राम बताया, मगर मुतअख़्ख़िरीन (बअ़्द के उ़लमा) ने जब लोगों में सुस्ती देखी, तो इजाज़त दी और अब इसी पर फ़तवा है, मगर अज़ान कहने पर अह़ादीस में जो सवाब इरशाद हुए, वोह उन्हीं के लिये हैं जो उजरत (मज़दूरी) नहीं लेते - [बहारे शरीअ़त, जिल्द¹, ह़िस़्स़ह³, पेज⁴⁷⁵]

इसी तअ़ल्लुक़ से ह़ुज़ूर फ़क़ीहे मिल्लत मुफ़्ती जलालुद्दीन अह़मद अमजदी علیہ الرحمہ से एक सुवाल और उस का जवाब:

सुवाल:
इमाम व मुअज़्ज़िन जो इमामत करने और अज़ान पढ़ने की तन्ख़्वाह लेते हैं और मुदर्रिसीन जो मज़हबी तअ़्लीम देने का पैसा लेते हैं, इन कामों पर इमाम व मुअज़्ज़िन और मुदर्रिस को सवाब मिलता है या नहीं ?

जवाब:
जब कि येह लोग इमामत, अज़ान और मुदर्रिसी रुपये के लिये करें तो अजीर (उजरत पर काम करने वाले, मज़दूर) हैं और अजीर आ़मिले लि-नफ़्सिही है आ़मिले लिल्लाह नहीं और जब अ़मल अल्लाह के लिये न हो तो सवाब की उम्मीद बेकार है - [फ़तावा बरकातियह, पेज²²³]
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

21 Nov, 10:41


Azaan Parhne, Namaaz Parhãne Aur islaamî Ta'aleem Dene Par Ujrat (Ya'anî Mazdoorî, Tan'khwaah, Salary) Lene Aur Sawaab Ka Mas-alah:

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imãme Ahle Sunnat Farmãte Hain:
imaamat Wa Azaan Wa Ta'aleeme Fiqh Wa Ta'aleeme Qur-aan Par Ujrat (Mazdoorî) Lene Ko Ayimmah Ne Ba-Zaroorate Zamaanah Jaayiz Qaraar Diyã Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶, Page⁶³⁹]

Ek Aur Maqãm Par Farmãte Hain:
Qur-aane 'Azeem Kî Ta'aleem, Deegar Deenî 'Uloom, Azaan Aur imaamat Par Ujrat (Mazdoorî) Lenã Jaayiz Hai Jaisã Ki Muta-a'kh'khireen Ayimmah Ne Maujoodah Zamaanah Men Sha-'aayire Deen Wa Eemãn Kî 'Hifaazat Ke Peshe Nazar Fatwã Diyã Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild¹⁹, Page⁴⁹⁵]

Neez Farmaate Hain:
Ab Fatwã Jawaaze Ujrate imaamat (imaamat Kî Mazdoorî Ke Jaayiz) Par Hai Aur Shak Nahîn Ki Ajeer (Ujrat Par Kaam Karne Waalã, Mazdoor) 'Aamile Li-Nafsihî Hai Na Ki 'Aamilullãhi Ta-'aalã 'Haalãnki Us Kî Namaaz Qa't-'an 'Sa'hee'h Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild¹⁸, Page⁵⁵⁸]

Mazeed Farmãte Hain:
Mutaqaddimeen (Pahle Ke 'Ulamã) Ke Nazdeek Jo Ujrat (Mazdoorî) Lekar imaamat Karne Waale Ke Peechhe Namaaz Men Karaahat Thî is Binã Par Ki Unke Nazdeek imaamat Par Ujrat (Mazdoorî) Lenã Naajãyiz Thã Woh Bhî Aysî Na Thî Jis Ke Baa'yis Tarke Jamaa-'at Kã 'Hukm Diyã Jaaye, Ab Ki Fatwã Jawaaze Ujrat (Mazdoorî Ke Jaayiz) Par Hai To Woh Karaahat Bhî Na Rahî .... Ab Muftaa Bihi Qaul Yeh Hai Ki Ujrat (Mazdoorî) Lenã Jaayiz Hai Warnah Sha-'aayire islaamî Ke Mu-'a't'tal Hone Kã 'Khauf Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶, Page⁴²²]

'Huzoor 'Sadrush Sharee'ah Farmãte Hain: Mutaqaddimeen (Pahle Ke 'Ulamã) Ne Azaan Par Ujrat (Mazdoorî) Lene Ko 'Haraam Batãyã, Magar Muta-a'kh'khireen (Ba'ad Ke 'Ulamã) Ne Jab Logon Men Sustî Dekhî, To ijaazat Dî Aur Ab isî Par Fatwã Hai, Magar Azaan Kahne Par A'haadees Men Jo Sawaab irshaad Huye, Woh Unhîn Ke Liye Hain Jo Ujrat (Mazdoorî) Nahîn Lete. [Bahaare Sharee'at, Jild¹ Part³ Page⁴⁷⁵]

isî Ta-'alluq Se 'Huzoor Faqeehe Millat, Muftî Jalãluddîn A'hmad Amjadî علیہ الرحمہ Se Ek Suwaal Aur Us Kã Jawaab:

Suwaal:
imaam Wa Mu-azzin Jo imaamat Karne Aur Azaan Parhne Kî Tan'khwaah Lete Hain Aur Mudarriseen Jo Mazhabî Ta'aleem Dene Kã Paisã Lete Hain, in Kaamon Par imaam Wa Mu-azzin Aur Mudarris Ko Sawaab Miltã Hai Yã Nahîn ?

Jawaab:
Jab Ki Yeh Log imaamat, Azaan Aur Mudarrisî Rupaye Ke Liye Karen To Ajeer (Ujrat Par Kaam Karne Waale, Mazdoor) Hain Aur Ajeer 'Aamile Li-Nafsihî Hai 'Aamile Lillaah Nahîn Aur Jab 'Amal Allaah Ke Liye Na Ho To Sawaab Kî Ummeed Bekaar Hai. [Fataawã Barkãtiyah, Page²²³]
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

21 Nov, 09:17


ह़म्द व नअ़्त और तक़रीर की आमदनी

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इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं:
इस में तीन स़ूरतें हैं: ❶ अगर वअ़्ज़ (बयान, तक़रीर) कहने और ह़म्द व नअ़्त पढ़ने से मक़स़ूद यही है कि लोगों से कुछ माल ह़ास़िल करें तो बेशक इस आयते करीमह के तह़त में दाख़िल हैं और ह़ुक्म “وَلَا تَشْتَرُوۡا بِاٰیٰتِیۡ ثَمَنًا قَلِیۡلًا” (मेरी आयतों के बदले थोड़े दाम न वस़ूल करो - सूरतुल बक़रह, आयत⁴¹) के मुख़ालिफ़ -

वोह आमदनी उन के ह़क़ में ख़बीस (नापाक) है ख़ुस़ूस़न जब्कि ऐसे ह़ाजत मन्द न हों जिन को सुवाल (मांगने) की इजाज़त है कि अब तो बे ज़रूरत सुवाल (मांगना) दूसरा ह़राम होगा और वोह आमदनी ख़बीस तर व ह़राम मिस्ले ग़स़ब (नाजाइज़ क़ब्ज़े की त़रह़) है, फ़तावा आ़लमगीरी में है: साइल (मांगने वाले ने) कद्दो काविश (कोशिश, भाग दौड़) से जो कुछ जमअ़् किया वोह नापाक है।

❷ दूसरे येह कि वअ़्ज़, ह़म्द व नअ़्त से उनका मक़स़ूद मह़ज़ अल्लाह है और मुसलमान बत़ौरे ख़ुद उनकी ख़िदमत करें तो येह जाइज़ है और वोह माल ह़लाल,

❸ तीसरे येह कि वअ़्ज़ से मक़स़ूद तो अल्लाह ही हो मगर बे ह़ाजत मन्द और आ़दतन मअ़्लूम है कि लोग ख़िदमत करेंगे इस ख़िदमत की त़मअ़् (लालच, ख़्वाहिश) भी साथ लगी हुई है तो अगरचे येह स़ूरत दोवम के मिस्ल (दूसरी स़ूरत की त़रह़) मह़मूद (क़ाबिले तअ़्रीफ़) नहीं मगर स़ूरे ऊला (पहली स़ूरत) की त़रह़ मज़मूम (बुरी) भी नहीं

जिसे दुर्रे मुख़्तार में फ़रमाया:
माल जमअ़् करने के लिए वअ़्ज़ (बयान, तक़रीर) कहना यहूद व नस़ारा (यहूदियों और ई़साइयों) की गुमराहियों में से है।

येह तीसरी स़ूरत बैन बैन (दरमियानी, बीच में) है और दोवम (दूसरी) से ब-निस्बत ऊला (पहली) के क़रीब तर है।

जिस त़रह़ ह़ज को जाए और तिजारत का कुछ माल भी साथ ले जाए जिसे ”لَیۡسَ عَلَیۡکُمْ جُنَاحٌ اَنۡ تَبْتَغُوۡا فَضْلًا مِّنۡ رَّبِّکُمْؕ“ (तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि तुम अपने परवर दिगार का फ़ज़्ल यअ़्नी रिज़्क़े ह़लाल तलाश करो) फ़रमाया। लिहाज़ा फ़तवा इस के जवाज़ (जाइज़) पर है।

[फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द²³ पेज³⁸¹,³⁸²]
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

20 Nov, 07:42


'ᴴᵃᵐᵈ ᵒ ᴺᵃ'ᵃᵗ ᴬᵘʳ ᵀᵃqʳᵉᵉʳ ᴷî ᴬᵃᵐᵃᵈᵃⁿî

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imãme Ahle Sunnat Farmãte Hain:
is Men Teen 'Sooraten Hain: ❶ Agar Wa'az (Bayãn, Taqreer) Kahne Aur 'Hamd Wa Na'at Parhne Se Maq'sood Yahî Hai Ki Logon Se Kuchh Maal 'Haa'sil Karen To Beshak is Aayate Kareemah Ke Ta'hat Men Daa'khil Hain Aur 'Hukm “وَلَا تَشْتَرُوۡا بِاٰیٰتِیۡ ثَمَنًا قَلِیۡلًا” (Merî Aayaton Ke Badle Thore Daam Na Wa'sool Karo. Sooratul Baqarah, Aayat⁴¹) Ke Mu'khaalif,

Woh Aamadnî Un Ke 'Haq Men 'Khabees (Naapãk) Hai 'Khu'soo'san Jabki Ayse 'Haajat Mand Na Hon Jin Ko Suwaal (Maangne) Kî ijaazat Hai Ki Ab To Be Zaroorat Suwaal (Maangnã) Doosrã 'Haraam Hogã Aur Woh Aamadnî 'Khabees Tar Wa 'Haraam Misle 'Gha'sab (Naajãiz Qabze Kî 'Tara'h) Hai,

Fatãwã 'Aalam Geerî Men Hai: Saayil (Mãngne Wãle Ne) Kadd o Kaawish (Koshish, Bhaag Daur) Se Jo Kuchh Jama'a Kiyã Woh Naapãk Hai.

❷ Doosre Yeh Ki Wa'az, 'Hamd Wa Na'at Se Unkã Maq'sood Ma'hz ('Sirf) Allaah Hai Aur Musalmãn Ba-'Taure 'Khud Unkî 'Khidmat Karen To Yeh Jaayiz Hai Aur Woh Maal 'Halaal,

❸ Teesre Yeh Ki Wa'az Se Maq'sood To Allaah Hî Ho Magar Be 'Haajat Mand Aur 'Aadatan Ma'aloom Hai Ki Log 'Khidmat Karenge is 'Khidmat Kî 'Tama'a (Laalach, 'Khwãhish) Bhî Saath Lagî Huyî Hai To Agarche Yeh 'Soorat Dowam Ke Misl (Doosrî 'Soorat Kî 'Tara'h) Ma'hmood (Qaabile Ta'areef) Nahîn Magar 'Soore Uulã (Pahlî 'Soorat) Kî 'Tara'h Mazmoom (Burî) Bhî Nahîn,

Jise Durre Mu'khtãr Men Farmãyã:
Maal Jama'a Karne Ke Liye Wa'az (Bayaan, Taqreer) Kahnã Yahood Wa Na'saarã (Yahoodiyon Aur 'Eesãyiyon) Kî Gumrãhiyon Se Hai.

Yeh Teesrî 'Soorat Bain Bain (Darmiyãnî, Beech Men) Hai Aur Dowam (Doosrî) Se Ba-Nisbat Uulaa (Pahlî) Ke Qareeb Tar Hai.

Jis 'Tara'h 'Haj Ko Jaaye Aur Tijaarat Kã Kuchh Maal Bhî Saath Le Jaaye Jise ”لَیۡسَ عَلَیۡکُمْ جُنَاحٌ اَنۡ تَبْتَغُوۡا فَضْلًا مِّنۡ رَّبِّکُمْؕ“ (Tum Par Kuchh Gunaah Nahîn Ki Tum Apne Parwar Digaar Kã Fazl Ya'anî Rizqe 'Halaal Talaash Karo - Sooratul Baqarah, Aayat¹⁹⁸ Men) Farmaayã. Lihaazã Fatwã is Ke Jawaaz (Jaayiz) Par Hai.

[Fatãwã Razviyyah, Jild²³ Page³⁸¹,³⁸²]
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

15 Nov, 11:50


दरों, सुतूनों (खंभे Pillars) के बीच और मेह़राब में खड़े होकर इमाम व मुक़तदी और मुनफ़रिद को नमाज़ पढ़ने और पढ़ाने का मसअलह:

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मुक़तदी के लिए शरई़ ह़ुक्म:

मुजद्दिदे दीनो मिल्लत फ़रमाते हैं:
बे ज़रूरत मुक़तदियों का दर में स़फ़ क़ाइम करना येह सख़्त मकरूह कि बाइ़से क़त़्ए़ स़फ़ है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज¹³¹]

मज़ीद इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं:
उ़मदतुल क़ारी शरह़े स़ह़ीह़ बुख़ारी में सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह बिन मस्ऊ़द رضی الله عنہ से है कि उन्होंने फ़रमाया: सुतूनों (Pillars) के बीच में स़फ़ न बांधो और स़फ़ें पूरी करो - और इस की वजह क़त़्ए़ स़फ़ है अगर तीनों दरों में लोग खड़े हुए तो एक स़फ़ के तीन टुकड़े हुए और येह नाजाइज़ है .... और दरों में मुक़तदियों के खड़े होने को क़त़्ए़ स़फ़ न समझना मह़ज़ ख़त़ा है - उ़लमाए किराम ने तस़रीह़ फ़रमाई कि इस में क़त़्ए़ स़फ़ है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज¹³⁴]

बहारे शरीअ़त में है:
ह़ज़रते अनस رضی الله عنہ फ़रमाते हैं: हम रसूलुल्लाह ﷺ के ज़माना में दरों में खड़े होने से बचते थे (तिरमिज़ी) - दूसरी रिवायत में है: हम धक्का देकर हटाए जाते (अबू दाउद) - [बहारे शरीअ़त, जिल्द¹ ह़िस़्स़ह³ पेज⁶²¹ ह़दीस²⁸]
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इमाम के लिए शरई़ ह़ुक्म:

इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं:
मेह़राबें वही हैं जो वस्त़ (बीच) में क़यामे इमाम की अ़लामत के लिए बनाई जाती हैं बाक़ी जो फ़रजे दो सुतूनों के दरमियान होते हैं दर हैं और इमाम को बिला ज़रूरते तंगिए मस्जिद, हर मेह़राब व दर में खड़ा होना मकरूह है - तन्वीरुल अब्स़ार में है: इमाम का मेह़राब में खड़ा होना मुत़लक़न मकरूह है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज³⁸³]

इमाम का मेह़राब में खड़ा होना मकरूह है, अगर क़दम बाहर हों और सजदह मेह़राब में हो तो येह मकरूह नहीं क्योंकि एअ़्तिबार क़दमों का है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज¹³⁴]

ह़ुज़ूर स़दरुश् शरीअ़ह फ़रमाते हैं:
इमाम को सुतूनों के दरमियान खड़ा होना मकरूह है - [बहारे शरीअ़त, जिल्द¹ ह़िस़्स़ह³ पेज⁵⁸⁶ मस्अलह²⁰] - इमाम को तन्हा (अकेले) मेह़राब में खड़ा होना मकरूह है - इमाम को दरों में खड़ा होना भी मकरूह है - [बहारे शरीअ़त, जिल्द¹ ह़िस़्स़ह³ पेज⁶³⁵ मस्अलह⁶⁶,⁶⁷]
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मुनफ़रिद के लिए शरई़ ह़ुक्म:

मुनफ़रिद यअ़्नी अकेले नमाज़ पढ़ने वाले के बारे में इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं: रहा अकेला, उस के लिए ज़रूरत, बे-ज़रूरत मेह़राब में, दर में मस्जिद के किसी ह़िस़्स़ह में खड़ा होना अस़्लन कराहत नहीं रखता - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज¹³¹]
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ब-वजहे मजबूरी शरई़ ह़ुक्म:

इमामे अहले सुन्नत फ़रमाते हैं:
हाँ अगर कसरते जमाअ़त के बाइ़स जगह में तंगी हो इस लिए मुक़तदी दर में और इमाम मेह़राब में खड़े हों तो कराहत नहीं - यूँही अगर मेंह के बाइ़स (बारिश की वजह से) पिछली स़फ़ के लोग दरों में खड़े हों तो येह ज़रूरत है, सख़्त ज़रूरत ममनूआ़त को मुबाह़ कर देती है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁶ पेज¹³¹]

ह़ुज़ूर स़दरुश् शरीअ़ह फ़रमाते हैं:
दरों में खड़े न हों कि मकरूह है हाँ अगर मुस़ल्लियों (नमाज़ियों) की कसरत है कि मस्जिद भर गई और आदमी बाक़ी हैं तो दरों में खड़े हों कि येह खड़ा होना ब-ज़रूरत है और मवाज़ेए़ ज़रूरत मुस्तस्ना हैं - दर ख़ारिजे मस्जिद नहीं है, इस में खड़ा होना इस लिए मकरूह व ममनूअ़् है कि स़फ़ क़त़अ़् होती है और येह ममनूअ़् है - [फ़तावा अमजदियह, जिल्द¹ पेज¹⁷⁴]
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

15 Nov, 10:35


Daron, Sutoonon (Pillars खंभे) Ke Beech Aur Me'hraab Men Khare Hokar imaam Wa Muqtadî Aur Munfarid Ko Namãz Parhne Aur Parhãne Kã Mas-alah:

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Muqtadî Ke Liye Shar'yî 'Hukm:

Mujaddide Deen o Millat Farmãte Hain: Be Zaroorat Muqtadiyon Kã Dar Men 'Saf Qaayim Karnã Yeh Sa'kht Makrooh Ki Baa'yise Qa't'ye 'Saf Hai - [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶ Page¹³¹]

Mazeed imaame Ahle Sunnat Farmãte Hain: 'Umdatul Qaarî Shar'he 'Sa'hee'h Bu'khãrî Men Sayyidunã 'Abdullãh Bin Mas'wood رضی الله عنہ Se Hai Ki Unhon-Ne Farmaayã: Sutoonon (Pillars) Ke Beech Men 'Saf Na Baandho Aur 'Safen Poorî Karo. Aur is Kî Wajah Qa't'ye 'Saf Hai Agar Teenon Daron Men Log Khare Huye To Ek 'Saf Ke Teen Tukre Huye Aur Yeh Naajãyiz Hai. .... Aur Daron Men Muqtadiyon Ke Khare Hone Ko Qa't'ye 'Saf Na Samajhnã Ma'haz 'Kha'taa Hai. 'Ulamaaye Kiraam Ne Ta'sree'h Farmaayî Ki is Men Qa't'ye 'Saf Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶ Page¹³⁴]

Bahaare Sharee'at Men Hai:
'Hazrate Anas رضی الله عنہ Farmãte Hain: Ham Rasoolullãh ﷺ Ke Zamãnah Men Daron Men Khare Hone Se Bachte The (Tirmizî). Doosrî Riwãyat Men Hai: Ham Dhakkã Dekar Hatãye Jaate (Abû Daaud). [Bahãre Sharee'at, Jild¹ Part³ Page⁶²¹ Mas-alah²⁸]
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imaam Ke Liye Shar'yî 'Hukm:

imaame Ahle Sunnat Farmãte Hain: Me'hrãben Wahî Hain Jo Wast (Beech) Men Qayãme imaam Kî 'Alaamat Ke Liye Banãyî Jaatî Hain Baaqî Jo Farje Do Sutoonon Ke Darmiyãn Hote Hain DAR Hai. Aur imãm Ko Bilã Zaroorate Tangi e Masjid, Har Me'hraab Wa DAR Men Kharã Honã Makrooh Hai. Tanveerul Ab'saar Men Hai: imãm Kã Me'hrãb Men Kharã Honã Mu'tlaqan Makrooh Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶ Page³⁸³]

imãm Kã Me'hrãb Men Kharã Honã Makrooh Hai, Agar Qadam Baahar Hon Aur Sajdah Me'hraab Men Ho To Yeh Makrooh Nahîn Kyonki E'atibãr Qadmon Kã Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶ Page¹³⁴]

'Huzoor 'Sadrush Sharee'ah Farmãte Hain: imaam Ko Sutoonon Ke Darmiyãn Kharã Honã Makrooh Hai. [Bahãre Sharee'at, Jild¹ Part³ Page⁵⁸⁶ Mas-alah²⁰] - imãm Ko Tanhã (Akele) Me'hrãb Men Kharã Honã Makrooh Hai. imãm Ko Daron Men Kharã Honã Bhî Makrooh Hai. [Bahãre Sharee'at, Jild¹ Part³ Page⁶³⁵ Mas-alah⁶⁶,⁶⁷]
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Munfarid Ke Liye Shar'yî 'Hukm:

Munfarid Ya'anî Akele Namãz Parhne Wãle Ke Baare Men imãme Ahle Sunnat Farmãte Hain: Rahã Akelã, Us Ke Liye Zaroorat, Be-Zaroorat Me'hrãb Men, DAR Men Masjid Ke Kisî 'Hi's'sah Men Kharã Honã A'slan Karãhat Nahîn Rakhtã. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶ Page¹³¹]
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Ba-Wajhe Majboorî Shar'yî 'Hukm:

imãme Ahle Sunnat Farmãte Hain: Haan Agar Kasrate Jamã'at Ke Bã'yis Jagah Men Tangî Ho is Liye Muqtadî DAR Men Aur imãm Me'hrãb Men Khare Hon To Karãhat Nahîn. Yoon-hî Agar Menh Ke Baa'yis (Baarish Kî Wajah Se) Pichhlî 'Saf Ke Log DARON Men Khare Hon To Yeh Zaroorat Hai, Sa'kht Zaroorat Mamnoo'aat Ko Mubaa'h Kar Detî Hai. [Fatãwã Razviyyah, Jild⁶ Page¹³¹]

'Huzoor 'Sadrush Sharee'ah Farmãte Hain: Daron Men Khare Na Hon Ki Makrooh Hai, Haan Agar Mu'salliyon (Namãziyon) Kî Kasrat Hai Ki Masjid Bhar Gayî Aur Aadmî Baaqî Hain To Daron Men Khare Hon Ki Yeh Kharã Honã Ba-Zaroorat Hai Aur Mawãze'ye Zaroorat Mustasnã Hain. DAR 'Khaarije Masjid Nahîn Hai, is Men Kharã Honã is Liye Makrooh Wa Mamnoo'a Hai Ki 'Saf Qa'ta'a Hotî Hai Aur Yeh Mamnoo'a Hai. [Fatãwã Amjadiyah, Jild¹ Page¹⁷⁴]
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

05 Nov, 03:05


اسلامی سال کا پانچواں اور چھٹا مہینہ
جمادی الاولی اور جمادی الاخری
لغت کے اعتبار سے ان دونوں مہینوں کے درست نام اور تلفظ یہ ہیں: جُمَادَی الاٗوۡلٰی اور جُمَادَی الاُخۡرٰی یا جُمَادَی الاٰخِرَہۡ ـ
इस्लामी साल का पाँचवां और छठा महीना
जुमादल ऊला और जुमादल उख़रा
लुग़त के एअ़्तिबार से इन दोनों महीनों के दुरुस्त नाम और तलफ़्फ़ुज़ येह हैं: जुमादल ऊला और जुमादल उख़रा या जुमादल आख़िरह ـ
مشہور نحوی امام فَراء کہتے ہیں: کُلُّ الشُّہُوۡرِ مُذَکِّرَۃٌ اِلَّا جُمَادَیَیۡنۡ یعنی تمام مہینوں کے نام مذکر ہیں سوائے دو جمادی مہینوں (یعنی جُمَادَی الاٗوۡلٰی اور جُمَادَی الاُخۡرٰی یا جُمَادَی الاٰخِرَہۡ) کے ان دونوں کے نام مؤنث ہیں ـ [الشماریخ فی علم التاریخ، ص:۱۳]
मशहूर नह़वी इमाम फ़रा कहते हैं: کُلُّ الشُّہُوۡرِ مُذَکِّرَۃٌ اِلَّا جُمَادَیَیۡنۡ यअ़्नी तमाम महीनों के नाम मुज़क्कर (Male) हैं सिवाए दो जुमादी महीनों (या'नी जुमादल ऊला और जुमादल उख़रा या जुमादल आख़िरह) के, इन दोनों के नाम मुअन्नस (Female) हैं।
[الشماریخ فی علم التاریخ، ص:۱۳]
@Muhammad_Jamaluddin_Khan

फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

04 Nov, 07:07


इमामुल औलिया, सरकारे ग़ौसुल अअ़्ज़म
की शान व अ़ज़मत से मुतअ़ल्लिक़ ... ↷
امام الاولیاء، سرکار غوث الاعظم رضی الله
تعالٰی عنہ کی شان و عظمت سے متعلق ↶
imaamul Auliyaa, Sarkãre 'Ghausul A'azam رضی الله تعالٰی عنہ Kî Shaan o 'Azmat Se Muta'alliq
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ग़ौसुल अअ़्ज़म इमामुल औलिया (वलियों
के इमाम) हैं, लेकिन कब से कब तक ?
غوث الاعظم  امام الاولیاء (ولیوں
کے اِمام) ہیں لیکن کب سے کب تک؟
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फ़ातिह़ा का त़रीक़ा, दुरूदे ग़ौसिया, एक रुबाई़
فاتحہ کا طریقہ | درود غوثیہ | ایک رُباعی
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غوث الاعظم یا دوسرے بزرگوں کے
نام کے چراغ جلانا کیسا ہے ؟    ↶
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ग़ौसुल अअ़्ज़म या दूसरे बुज़ुर्गों
के नाम के चराग़ जलाना कैसा है?
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غوث الاعظم کی ظاہر و باطن پر نظر
ہمارا ظاہر و باطن ہے ان کے آگے آئینہ
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ग़ौसुल अअ़्ज़म की ज़ाहिरो बात़िन पर नज़र
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'Ghausul A'azam Kî Zaahir o Baa'tin Par Nazar
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جو اپنے کو کہے میرا مریدوں میں وہ داخل ہے
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जो अपने को कहे मेरा मुरीदों में वोह दाख़िल है
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Jo Apne Ko Kahe Merã Mureedon Men Woh Daa'khil Hai
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ग़ौस पाक अफ़ज़ल हैं या स़ह़ाबा ?
غوث پاک افضل ہیں یا صحابہ ؟
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ग़ौस पाक अफ़ज़ल हैं या ज़िन्दह शाह मदार ?
غوث پاک افضل ہیں یا زِندہ شاہ مدار ؟
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वलियों में ग़ौसुल अअ़्ज़म के जैसा कोई नहीं
ولیوں میں غوث الاعظم کے جیسا کوئی نہیں
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قادری سِلسِلے میں مرید ہونا ضروری ہے؟
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क़ादिरी सिल्सिले में मुरीद होना ज़रूरी है?
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پیری مریدی کا بیان | پیر کے شرائط
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पीरी मुरीदी का बयान / पीर के शराइत़
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ग़ौसुल अअ़्ज़म की जानिब मन्सूब कुछ
वाक़िआ़त पर अकाबिर उ़ल्मा के इरशादात
غوث الاعظم کی جانب منسوب کُچھ
واقعات پر اکابر علماء کے ارشادات ↶
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پہلی قِسط पहली क़िस्त़ Pahlî Qist

फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

27 Oct, 13:30


सरकारे ग़ौसुल अअ़्ज़म رضی الله عنہ या दूसरे बुज़ुर्गों علیہم الرحمہ के नाम के चराग़ जलाना कैसा है ?

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ह़ज़रत मौलाना सय्यिद कामरान मदनी स़ाह़ब से येह मस्अलह पूछा गया कि जुमेअ़्रात को जो घर में चराग़ जलाया जाता है कोई एक जलाता, कोई दस, कोई बारह मुख़्तलिफ़ तअ़्दाद (अलग अलग गिन्ती) में ग़ौस पाक के नाम का, दाता स़ाह़ब के नाम और दीगर बुज़ुर्गों के नाम का, शरई़ लिह़ाज़ से इस का क्या ह़ुक्म है, जाइज़ है या नाजाइज़ ? रहनुमाई फ़रमा दें!

अल्-जवाब: मुरव्वज अन्दाज़ में जो घर के एक कोने में चराग़ जलाए जाते हैं, उन से मक़स़ूद रौशनी नहीं होती, इस अन्दाज़ से घरों में बुज़ुर्गों के नाम पर चराग़ जलाना नाजाइज़ व इसराफ़ है। लिहाज़ा चराग़ न जलाएं, बल्कि बुज़ुर्गों के ईस़ाले सवाब के लिए नवाफ़िल या स़दक़ा वग़ैरह का एहतिमाम किया जाए, ताकि आप को भी सवाब मिले। والله اعلم ﷻ و رسوله اعلم ﷺ [सय्यिद कामरान अ़त़्त़ारी मदनी]
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ह़ज़रत मौलाना तत़हीर अह़मद रज़वी बरेलवी स़ाह़ब क़िब्ला तह़रीर फ़रमाते हैं: आज कल इस का काफ़ी रिवाज हो गया, किसी बुज़ुर्ग के नाम का चिराग़ जला कर उस के सामने बैठते हैं, येह ग़लत़ है। हाँ अगर इस चिराग़ जलाने का कोई मक़स़द हो, इस से किसी राहगीर वग़ैरा को फ़ाइदह पहुँचे, या दीनी तअ़्लीम ह़ास़िल करने पढ़ने पढ़ाने वालों को राह़त मिले, या किसी जगह ज़िक्र व शुक्र, इ़बादत व तिलावत करने वालों को इस से नफ़अ़् पहुँचे तो ऐसी रौशनियाँ करना बिला-शुबा जाइज़ बल्कि कारे सवाब (सवाब का काम) है। और जब इस में सवाब है तो उस से किसी बुज़ुर्ग की रूह़े पाक को सवाब पहुँचाने की नियत भी की जा सकती है। (नोट:) अअ़्माल और वज़ाइफ़ की किताबों में जो आसेब वग़ैरा के इ़लाज के लिए छोटा चिराग़ और बड़ा चिराग़ रौशन करने के लिए लिखा है वोह अलग चीज़ है वोह किसी बुज़ुर्ग के नाम से नहीं रौशन किया जाता।

ख़ुलास़ा येह है कि येह जो ह़ुज़ूर ग़ौसे पाक वग़ैरह किसी बुज़ुर्ग के नाम के चिराग़ जला कर उस के सामने बैठने का मअ़्मूल है येह बे सनद, बे सुबूत, बे मक़स़द और बे अस़ल है।
ह़दीसे पाक में है ह़ुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया:
من احدث فی امرنا ھٰذا ما لیس منه فھو رد ـ
जो हमारे दीन में कोई ऐसी बात निकाले जिस की उस में अस़ल न हो तो वोह मरदूद है। (इब्ने माजह 3 / ह़दीस:17) ـ [ग़लत़ फ़हमियाँ और उनकी इस़्लाह़, पेज¹⁹⁶-¹⁹⁷]
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फ़तावा रज़विय्यह शरीफ़ में है: क़ब्रों की त़रफ़ शम्एं ले जाना बिदअ़त और माल ज़ाएअ़् करना है, येह सब उस स़ूरत में है कि बिल्कुल फ़ाइदह से ख़ाली हो, और अगर शम्एं रौशन करने में फ़ाइदह हो कि मौज़ए़ क़ुबूर में मस्जिद है या क़ुबूर सरे राह हैं या वहाँ कोई शख़्स़ बैठा है या मज़ार किसी वलिय्युल्लाह या मुह़क़्क़िक़ीन उ़ल्मा में से किसी आ़लिम का है वहाँ शम्एं रौशन करें उनकी रूह़े मुबारक की तअ़्ज़ीम के लिए जो अपने बदन की ख़ाक पर ऐसी तजल्ली डाल रही है जैसे आफ़ताब ज़मीन पर, ताकि उस रौशनी करने से लोग जानें कि येह वली का मज़ारे पाक है ताकि उस से तबर्रुक करें और वहाँ अल्लाह से दुआ़ मांगें कि उनकी दुआ़ क़ुबूल हो तो येह अम्र जाइज़ है इस से अस़्लन मुमानअ़त नहीं, और अअ़्माल का मदार निय्यतों पर है। [फ़तावा रज़विय्यह शरीफ़, जिल्द⁹, पेज⁴⁹¹]
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फ़तावा रज़विय्यह शरीफ़ ही में है: अब जिस त़रह़ यहाँ जुह्हाल (यअ़्नी जाहिलों) में रिवाज है कि मुर्दह की जहाँ कुछ ज़मीन खोद कर नहलाते हैं जिसे अ़वाम लह़द कहते हैं, चालीस रात चराग़ जलाते और येह ख़याल करते हैं कि चालीस शब (यअ़्नी 40 रात) रूह़ लह़द पर आती है अंधेरा देख कर पलट जाती है, यूँही अगर वहाँ जुह्हाल (यअ़्नी जाहिलों) में रिवाज हो कि मौत से चन्द रात तक घरों से शम्एं जला कर क़ब्रों के सिरहाने रख आते हों और येह ख़याल करते हों कि नए घर में बे रौशनी के घबराएगा। तो इस के बिदअ़त होने में क्या शुबा है। [फ़तावा रज़विय्यह शरीफ़, जिल्द⁹, पेज⁵⁰³]
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मुफ़्ती ख़ुशनूद आ़लम अह़सनी रज़वी
https://www.youtube.com/watch?v=LofLJUfB5p4
ह़ज़रत सय्यिद सिकन्दर वारिसी स़ाह़ब
https://youtu.be/8mvXtAlP3vI?si=uXCiI1bHIgyx_srg
मौलाना इलयास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी
https://youtu.be/DZ0tqfORyhc?si=0vLiaO_0MiKc4Yg2
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حوالے 📚 ह़वाले 📚 Hawaale ↶
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

23 Oct, 04:30


इमामुल औलिया, सरकारे ग़ौसुल अअ़्ज़म رضی الله تعالٰی عنہ की जानिब मन्सूब कुछ वाक़िआ़त से मुतअ़ल्लिक़ अकाबिर उ़ल्माए अहले सुन्नत के इरशादात:
امام الاولیاء، سرکار غوث الاعظم رضی الله تبارک و تعالٰی عنہ کی جانب منسوب کُچھ واقعات سے متعلق اکابِر علمائے اہلسنت کے ارشادات:
imaamul Auliyaa, Sarkãre 'Ghausul A'azam رضی الله تعالٰی عنہ Kî Jãnib Mansoob Kuchh Waaqi'aat Se Muta'alliq Akaabir 'Ulamaaye Ahle Sunnat Ke irshãdãt:
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حضور غوث پاک کا خواب ↶
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ह़ुज़ूर ग़ौस पाक का ख़्वाब ↷
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Huzoor Ghaus Pak Ka Khwab ↷
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جا تجھے سات بیٹے ہونگے ↶
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जा तुझे सात बेटे होंगे ↷
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Ja Tujhe Saat Bete Honge ↷
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تفریح الخاطر میں ایک جھوٹی روایت
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तफ़रीह़ुल ख़ात़िर में एक झूटी रिवायत
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Tafreehul Khatir Men Ek Jhooti Riwayat
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غوث اعظم کھیل کھیل میں بچے زندہ کرتے تھے؟
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ग़ौसे आ़ज़म खेल खेल में बच्चे ज़िन्दह करते थे
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Kya Ghause Aazam Khel Khel Men Bachche Zindah Karte The ?
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غوث پاک نے کہا میں الله ایک روایت
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ग़ौस पाक ने कहा मैं अल्लाह एक रिवायत
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Ghaus Pak Ne Kaha Main Allah ?
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حضور غوث پاک اور دھوبی کا جھوٹا واقعہ
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ह़ुज़ूर ग़ौस पाक और धोबी का झूटा वाक़िआ़
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Ghaus Pak Aur Dhobi Ka Jhoota Waqia
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غوث پاک اور حضرت اویس قرنی ایک واقعہ
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ग़ौस पाक और ह़ज़रत उवैस क़रनी एक वाक़िआ़
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Ghaus Pak Aur Uwais Qarni Ek Waqiah
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حضور غوث پاک اور غریب نواز کی ملاقات
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ह़ुज़ूर ग़ौस पाक और ग़रीब नवाज़ की मुलाक़ात
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Ghaus Pak Aur Ghareeb Nawaz Ki Mulaqat
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بارہ سال پہلے ڈوبی ہوئی بارات ↶
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बारह साल पहले डूबी हुई बारात ↷
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12 Saal Pahle Doobi Huyi Barat
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غوث پاک اور 72 غیب کی باتیں ↶
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ग़ौस पाक और 72 ग़ैब की बातें ↷
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Ghaus Pak Aur 72 Ghaib Ki Baten
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غوث اعظم اور حق گوئی ↶
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ग़ौसे अअ़्ज़म और ह़क़ गोई ↷
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Ghause Aazam Aur Haq Goyi ↷
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غوث پاک کا بے وضو نام لینا ↶
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ग़ौस पाक का बे वज़ू नाम लेना ↷
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Ghaus Pak Ka Be Wazu Naam Lena
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فرمانِ غوث الاعظم میرا مرید جنت میں↶
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फ़रमाने ग़ौसुल अअ़्ज़म मेरा मुरीद जन्नत में ↷
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Mera Mureed Jannat Men ↷
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

08 Oct, 05:42


اعلٰی حضرت قدس سرہ کی کتابوں کا مطالعہ کیجئے کہ حقیقی علم ان کتابوں سے آپ کو حاصل ہوگا .....
अअ़्ला ह़ज़रत قدس سرہ की किताबों का मुत़ालअ़ह कीजिए कि ह़क़ीक़ी इ़ल्म उन किताबों से आप को ह़ास़िल होगा .....
اعلیٰ حضرت کے رسائل کے مطالعے کے بغیر کوئی شخص کما حقہ عالم نہیں ہو سکتا ـ
अअ़्ला ह़ज़रत के रसाइल के मुत़ालअ़े के बग़ैर कोई शख़्स़ कमा ह़क़्क़हू आ़लिम नहीं हो सकता।
علامہ محمد احمد مصباحی
अ़ल्लामा मुह़म्मद अह़मद मिस़्बाह़ी
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

08 Oct, 05:42


خیر الاذکیاء، استاذ العلماء، صدر العلماء، حضرت علامہ محمد احمد مصباحی صاحب (ناظم تعلیمات الجامعۃ الاشرفیہ مبارک پور) فرماتے ہیں:
ख़ैरुल अज़किया, उस्ताज़ुल उ़ल्मा, स़दरुल उ़ल्मा, ह़ज़रत अ़ल्लामा मुह़म्मद अह़मद मिस़्बाह़ी स़ाह़ब (नाज़िमे तअ़्लीमाते अलजामिअ़तुल अशरफ़िया मुबारक पुर) फ़रमाते हैं:
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https://aapkaqalam.com/muqarrir-ke-liye-kitni-sharten-hain/
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اعلٰی حضرت قدس سرہ کی کتابوں کا مطالعہ کیجئے کہ حقیقی علم ان کتابوں سے آپ کو حاصل ہوگا اور ساتھ ساتھ طرز تحقیق، طرز بیان، طرز گفتگو بھی معلوم ہوگا، جو چیزیں آپ کو بہت سی کتابوں میں کہیں نہیں ملیں‌گی وہ آپ کو اعلٰی حضرت کے رسائل میں ملیں‌گی ـ
अअ़्ला ह़ज़रत قدس سرہ की किताबों का मुत़ालअ़ह कीजिए कि ह़क़ीक़ी इ़ल्म उन किताबों से आप को ह़ास़िल होगा और साथ साथ त़र्ज़े तह़क़ीक़, त़र्ज़े बयान, त़र्ज़े गुफ़तगू भी मअ़्लूम होगा, जो चीज़ें आप को बहुत सी किताबों में कहीं नहीं मिलेंगी वोह आपको अअ़्ला ह़ज़रत के रसाइल में मिलेंगी।
اور میں نے بارہا یہ سیمیناروں میں، مجمعوں میں کہا ہے اور نِجی مجلسوں میں بھی کہ بر صغیر کے ماحول میں اعلیٰ حضرت کے رسائل کے مطالعے کے بغیر کوئی شخص کما حقہ عالم نہیں ہو سکتا ـ
और मैं ने बारहा येह सेमिनारों में, मजमओ़ं में कहा है और निजी मजलिसों में में भी कि बर्रे स़ग़ीर के माह़ौल में अअ़्ला ह़ज़रत के रसाइल के मुत़ालअ़े के बग़ैर कोई शख़्स़ कमा ह़क़्क़हू आ़लिम नहीं हो सकता।
یہاں ہم نصاب کی تکمیل کرنے والے کو سند جاری کر دیتے ہیں عالم فاضل اس کو بتا دیتے ہیں، لیکن جس قدر وہ اعلٰی حضرت کی کتابوں سے دور ہوگا، اسی قدر اس کے اندر سطحیت زیادہ ہوگی اور جس قدر وہ کتب اعلٰی حضرت کو گہرائی اور گیرائی سے دیکھےگا اسی قدر اس کے اندر ژرف نگاہی اور تعمق پیدا ہوگا اور اسی قدر اس کے علم میں جِلا آئےگی ۔
यहाँ हम निस़ाब की तकमील करने वाले को सनद जारी कर देते हैं आ़लिम फ़ाज़िल उस को बता देते हैं, लेकिन जिस क़दर वोह अअ़्ला ह़ज़रत की किताबों से दूर होगा, उसी क़दर उस के अन्दर सत़ह़िय्यत ज़्यादह होगी और जिस क़दर वोह कुतुबे अअ़्ला ह़ज़रत को गहराई और गीराई से देखेगा उसी क़दर उस के अन्दर ज़र्फ़ निगाही और तअ़म्मुक़ पैदा होगा और उसी क़दर उस के इ़ल्म में जिला आएगी।
آپ خود اس کا مطالعہ کرکے تجربہ کر سکتے ہیں اور اس کا مطالعہ کرنا اور تجربہ کرنا ضروری بھی ہے ـ
आप ख़ुद इसका मुत़ालअ़ह करके तजरिबह कर सकते हैं और इस का मुत़ालअ़ह करना और तजरिबह करना ज़रूरी भी है।
دو طرح کے انسان ہوتے ہیں، ایک تو کم علم ہوتے ہیں، ان کے لیے ضروری ہے کہ وہ اپنے علم کو روشنی بخشنے کے لیے اعلیٰ حضرت کے رسائل کا مطالعہ کریں،
दो त़रह़ के इन्सान होते हैं, एक तो कम इ़ल्म होते हैं, उन के लिए ज़रुरी है कि वोह अपने इ़ल्म को रौशनी बख़्शने के लिए अअ़्ला ह़ज़रत के रसाइल का मुत़ालअ़ह करें,
اور کچھ وہ ہوتے ہیں جنہوں‌نے درس نظامی کا کورس مکمل کر لیا اور ہر درجہ میں فرسٹ نمبر حاصل کیا تو سمجھ لیا کہ ہم بہت بڑے علامہ، فہامہ ہو گئے، وہ اعلٰی حضرت کی کتابوں کا مطالعہ کریں‌گے تو معلوم ہوگا کہ طفلِ مکتب بھی نہیں ہیں جب ان کی تصانیف اور تحقیقات کو دیکھیں گے تو اندازہ ہوگا کہ کس جبل شامخ اور کس بلند پہاڑ کے سامنے ہم ہیں ـ
और कुछ वोह होते हैं जिन्होंने दर्से निज़ामी का कोर्स मुकम्मल कर लिया और हर दर्जा में फ़र्स्ट नम्बर ह़ास़िल किया तो समझ लिया कि हम बहुत बड़े अ़ल्लामह, फ़ह्हामाह हो गए, वोह अअ़्ला ह़ज़रत की किताबों का मुत़ालअ़ह करेंगे तो मअ़्लूम होगा कि त़िफ़्ले मकतब भी नहीं हैं जब की तस़ानीफ़ और तह़क़ीक़ात को देखेंगे तो अन्दाज़ह होगा कि किस जबले शामिख़ और किस बलंद पहाड़ के सामने हम हैं।
کہتے ہیں‌: جب تک اونٹ نے پہاڑ نہیں دیکھا ہے تب تک وہ سمجھتا ہے کہ اس سے بڑا کوئی نہیں ہے اور جب پہاڑ کے سامنے آتا ہے تب اس کو اپنی بِساط معلوم ہوتی ہے تو اپنی بساط اور حقیقت معلوم کرنے کے لیے بھی ہم اس جبل شامخ کی کتابوں کا مطالعہ کریں، اس سے استفادہ بھی کریں اور ساتھ ساتھ اپنی اوقات بھی معلوم کریں کہ اتنی عمر صرف کرنے کے بعد ہم کہاں تک پہنچے ۔
कहते हैं: जब तक ऊँट ने पहाड़ नहीं देखा है तब तक वोह समझता है कि उस से बड़ा कोई नहीं है और जब पहाड़ के सामने आता है तब उस को अपनी बिसात़ मअ़्लूम होती है, तो अपनी ह़क़ीक़त मअ़्लूम करने के लिए भी हम उस जबले शामिख़ की किताबों का मुत़ालअ़ह करें, उस से इस्तिफ़ादह भी करें और साथ साथ अपनी औक़ात भी मअ़्लूम करें कि इतनी उ़म्र स़र्फ़ करने के बअ़्द हम कहाँ तक पहुँचे।
[ نوائے دل صفحہ 244،243 ]
از علامہ محمد احمد مصباحی
مرتب: جنید احمد مصباحی
[ किताब: निवाए दिल, पेज 243,244 ]
अज़: अ़ल्लामा मुह़म्मद अह़मद मिस़्बाह़ी
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

07 Oct, 04:40


عالم کی تعریف کیا ہے ؟
از قلم: گلزار علی مصباحی
आ़लिम की तअ़्रीफ़ क्या है ?
✍️ गुलज़ार अ़ली मिस़्बाह़ी
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

07 Oct, 04:38


عالم کی تعریف کیا ہے ؟
از قلم: گلزار علی مصباحی
आ़लिम की तअ़्रीफ़ क्या है ?
✍️ गुलज़ार अ़ली मिस़्बाह़ी
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بہت سے لوگ یہ سمجھتے ہیں کہ صرف کسی مدرسہ سے عالم یا فاضل کی ڈگری حاصل کرنے سے آدمی عالم اور فاضل بن جاتا ہے، یہ ایک بڑی غلط فہمی ہے ۔ بلکہ در حقیقت عالم وہ ہے جو مکمل طور پر عقائد سے واقف ہو اور اپنی ضروریات کے مسائل کسی کے سہارے لئے بغیر از خود کتاب سے نکالنے کی صلاحیت رکھتا ہو ۔
बहुत से लोग येह समझते हैं कि स़िर्फ़ किसी मदरसा से आ़लिम या फ़ाज़िल की डिग्री ह़ास़िल करने से आदमी आ़लिम और फ़ाज़िल बन जाता है, येह एक बड़ी ग़लत़ फ़हमी है। बल्कि दर ह़क़ीक़त आ़लिम वोह है जो मुकम्मल त़ौर पर अ़क़ाइद से वाक़िफ़ हो और अपनी ज़रूरियात के मसाइल किसी के सहारे लिए बिग़ैर अज़ ख़ुद किताब से निकालने की स़लाह़ियत रखता हो।
مجدد اسلام، اعلی حضرت، امام اہلسنت الشاہ امام احمد رضا بریلوی رضی اللہ عنہ عالِم کی تعریف یوں فرماتے ہیں: عالم کی تعریف یہ ہے کہ عقائد سے پورے طور پر آگاہ ہو اور اپنی ضروریات کو کتاب سے نکال سکے بغیر کسی کے مدد کے ـ [احکامِ شریعت، ص²⁵⁵، ناشر: شبیر برادرز لاہور پاک]
मुजद्दिदे इस्लाम, अअ़्ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान मुह़द्दिसे बरेलवी رضی الله عنہ आ़लिम की तअ़्रीफ़ यूँ फ़रमाते हैं: आ़लिम की तअ़्रीफ़ येह है कि अ़क़ाइद से पूरे त़ौर पर आगाह हो और अपनी ज़रूरियात को किताब से निकाल सके बिग़ैर किसी के मदद के। [अह़कामे शरीअ़त, पेज²⁵⁵, प्रकाशक: शब्बीर बरादर्ज़ लाहौर पाक]
اس سے یہ معلوم ہوا کہ عالِم ہونے کے لئے درس نظامی، عالم یا فاضل کورس کرنے سے ہی کوئی عالم نہیں ہو جاتا، بلکہ اس کے لئے مستقل صلاحیت کی ضرورت ہوتی ہے ۔
इस से येह मअ़्लूम हुआ कि आ़लिम होने के लिए दर्से निज़ामी, आ़लिम या फ़ाज़िल कोर्स करने से ही कोई आ़लिम नहीं हो जाता, बल्कि इस के लिए मुस्तक़िल स़लाह़ियत की ज़रूरत होती है।
اعلی حضرت ایک جگہ اور فرماتے ہیں:
سند کوئی چیز نہیں، بہتیرے سند یافتہ محض بے بہرہ ہوتے ہیں اور جنہوں نے سند نہ لی اُن کی شاگردی کی لیاقت بھی ان سند یافتوں میں نہیں ہوتی، عِلم ہونا چاہئے - [فتاوٰی رضویہ شریف، جِلد²³، صفحہ⁶⁸⁴]
अअ़्ला ह़ज़रत एक जगह और फ़रमाते हैं:
सनद कोई चीज़ नहीं, बहुतेरे सनद याफ़्ता मह़ज़ बे बहरह होते हैं और जिन्होंने सनद न ली उन की शागिरदी की लियाक़त भी उन सनद याफ़्तों में नहीं होती, इ़ल्म होना चाहिए। - [फ़तावा रज़विया, जिल्द²³, पेज⁶⁸⁴]
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اللہ تعالیٰ ہم سب کو کثرتِ مطالعہ کی توفیق عطا فرمائے، آمین بجاہ النبی الامین الکریم صلی اللہ علیہ وسلم ـ
अल्लाह तआ़ला हम सब को कसरते मुत़ालअ़ह की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए, आमीन
از قلم: گلزار علی مصباحی
پتہ: راۓ گنج، اتر دیناج پور، بنگال
١٠ شوال المکرم ١٤٤٢ھ ,٢٣ مئی ٢٠٢١
अज़ क़लम: गुलज़ार अ़ली मिस़्बाह़ी
पता: राय गंज, उत्तर दीनाज पुर, बंगाल
तारीख़: ¹⁰ शव्वालुल मुकर्रम ¹⁴⁴² हिज्री
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फ़ैज़ाने मस्लके आ़ला ह़ज़रत 📚

05 Oct, 04:31


غیر عالِم اگر اپنی طرف سے کچھ نہ کہے بلکہ عالِم کی تصنیف پڑھ کر سنائے تو اِس میں حَرَج نہیں جبکہ وہ جاہل فاسق مثلًا داڑھی منڈا وغیرہ نہ ہو - [ فتاوٰی رضویہ شریف، جِلد²³، صفحہ⁴¹⁰ ]
ग़ैर आ़लिम अगर अपनी त़रफ़ से कुछ न कहे बल्कि आ़लिम की तस़्नीफ़ पढ़ कर सुनाए तो इस में ह़रज नहीं जब्कि वोह जाहिल फ़ासिक़ मसलन दाढ़ी मुंडा वग़ैरह न हो। [ फ़तावा रज़विया, जिल्द²³ पेज⁴¹⁰ ]

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