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UPSC FOR HINDI MEDIUM BY GOURAV

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Last Updated 06.03.2025 20:40

UPSC Preparation for Hindi Medium Students

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा भारत में सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक है। हर वर्ष लाखों छात्र इस परीक्षा में भाग लेते हैं, जिसमें उन्हें अपने ज्ञान, सोचने की क्षमता और समस्या समाधान कौशल के आधार पर परखा जाता है। हालांकि, यह परीक्षा केवल अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि हिंदी में भी दी जा सकती है। हिंदी माध्यम के छात्र अक्सर इस परीक्षा की तैयारी के लिए सही संसाधनों और मार्गदर्शन की तलाश में रहते हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि कैसे हिंदी माध्यम के छात्र UPSC परीक्षा में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, हम कुछ महत्वपूर्ण सवालों का उत्तर देंगे, जो छात्रों के लिए मददगार साबित होंगे। इससे उन्हें अपनी तैयारी में दिशा-निर्देशन मिलेगा और परीक्षा के प्रति उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।

UPSC परीक्षा क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

UPSC परीक्षा भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS), और अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए चयन प्रक्रिया का एक हिस्सा है। यह परीक्षा न केवल ज्ञान के आधार पर उम्मीदवारों का मूल्यांकन करती है, बल्कि उनके विश्लेषणात्मक कौशल, निर्णय लेने की क्षमता और आपातकालीन परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता का भी परीक्षण करती है। इस परीक्षा के माध्यम से, सफल उम्मीदवार सरकार के विभिन्न विभागों में बड़े पदों पर नियुक्त होते हैं, जिससे वे अपने देश की सेवा कर सकते हैं।

UPSC परीक्षा को पार करना न केवल एक चुनौती है, बल्कि यह समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर भी है। यह परीक्षा युवाओं को उच्च नीतिगत निर्णय लेने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती है, जिससे वे स्वयं को और अपने देश को गर्वित महसूस कराते हैं।

हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए UPSC की तैयारी कैसे करें?

हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए UPSC की तैयारी करने के लिए सबसे पहले उचित अध्ययन सामग्री ढूंढना बहुत आवश्यक है। छात्रों को हिंदी में उपलब्ध पुस्तकों, पत्रिकाओं और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर हिंदी में महत्वपूर्ण विषयों के वीडियो और ट्यूटोरियल भी सहायक हो सकते हैं। यह सामग्री छात्रों को गहन समझ प्रदान कर सकती है।

इसके अलावा, नियमित रूप से मॉक टेस्ट और पिछले वर्ष के प्रश्न पत्रों का अभ्यास करना भी बहुत जरूरी है। इससे छात्रों को परीक्षा के प्रारूप और कठिनाई स्तर के बारे में जानकारी मिलेगी, जिससे वे परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे। इस संबंध में, 'UPSC FOR HINDI MEDIUM' जैसे यूट्यूब चैनल विद्यार्थियों के लिए विशेष मददगार हो सकते हैं।

क्या हिंदी में अध्ययन करना एक बाधा है?

कुछ लोग मानते हैं कि हिंदी माध्यम में अध्ययन करना एक बाधा हो सकता है, खासकर जब प्रश्न पत्रों और अध्ययन सामग्री का अधिकांश हिस्सा अंग्रेजी में होता है। हालांकि, यह पूरी तरह से सही नहीं है। यदि छात्र सही दृष्टिकोण और संसाधनों का उपयोग करते हैं, तो वे हिंदी में भी प्रभावी ढंग से अध्ययन कर सकते हैं।

यही नहीं, कई छात्र जो हिंदी में अध्ययन करते हैं, वे अपनी मातृभाषा में सामग्री समझने में अधिक सक्षम होते हैं। इससे न केवल उनकी समझ बढ़ती है बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इसलिए, अभिभावकों और विद्यार्थियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे हिंदी में भी उच्च गुणवत्ता के अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराएं।

UPSC के लिए समय प्रबंधन कैसे करें?

UPSC परीक्षा की तैयारी में समय प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कौशल है। एक विशेष अध्ययन योजना बनाना अनिवार्य है, जिसमें हर विषय के लिए समर्पित समय और महत्वपूर्ण टॉपिक्स शामिल हों। छात्रों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे हर विषय को समय के साथ कवर करें और जरूरत पड़ने पर अपनी योजना में बदलाव करें।

इसके अलावा, छात्रों को अपने कमजोर क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए और उन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इससे उन्हें परीक्षा के लिए बेहतर तरीके से तैयार होने में मदद मिलेगी। समय प्रबंधन के लिए एक और सुझाव यह है कि वे छोटे-छोटे ब्रेक लें ताकि उनकी मानसिक स्थिति सही बनी रहे।

क्या UPSC में सफलता के लिए विशेष रणनीति की आवश्यकता है?

UPSC में सफलता पाने के लिए एक विशेष रणनीति की आवश्यकता होती है। छात्रों को अपने अध्ययन की शुरुआत समाचार पत्रों को पढ़ने से करनी चाहिए, ताकि वे वर्तमान घटनाओं से अपडेट रहें। इसके बाद, उन्हें विभिन्न विषयों के प्राथमिक और माध्यमिक स्रोतों से जानकारी एकत्र करनी चाहिए।

सभी विषयों का समग्र अध्ययन करना और उन्हें एकीकृत करना सबसे महत्वपूर्ण है। छात्रों को समय-समय पर अपने अध्ययन के परिणामों का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि वे यह देख सकें कि वे कहाँ बेहतर कर सकते हैं। इसके लिए मॉक टेस्ट और ग्रुप अध्ययन बहुत सहायक होते हैं।

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UPSC FOR HINDI MEDIUM BY GOURAV Latest Posts

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▢ [राष्ट्रपति शासन लगाने की प्रक्रिया] 
⬇️ 
▢ कारण : 
- राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल होना। 
- विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाना। 
- चुनाव न हो पाना (युद्ध, आपदा आदि)। 
⬇️ 
▢ राज्यपाल की रिपोर्ट: 
- राज्यपाल केंद्र को स्थिति की रिपोर्ट भेजते हैं। 
⬇️ 
▢ केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश: 
- प्रधानमंत्री और कैबिनेट राष्ट्रपति को अनुच्छेद 356 लागू करने का सुझाव देते हैं। 
⬇️ 
▢ राष्ट्रपति की घोषणा: 
- राष्ट्रपति शासन लागू होता है। 
- राज्य सरकार भंग, विधानसभा निलंबित/भंग। 
⬇️ 
▢ संसदीय अनुमोदन: 
- 2 महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों से मंजूरी जरूरी। 
  - लोकसभा और राज्यसभा में साधारण बहुमत से पास होना चाहिए। 
⬇️ 
▢ अवधि और विस्तार: 
- पहले 6 महीने: बिना संसदीय मंजूरी के। 
- 6 महीने के बाद: हर 6 महीने पर संसद की मंजूरी जरूरी (अधिकतम 3 वर्ष तक)। 
⬇️ 
▢ न्यायिक समीक्षा: 
- सुप्रीम कोर्ट फैसले को चुनौती दे सकता है (जैसे 1994 का बोम्मई केस)। 
⬇️ 
▢ परिणाम: 
1. राज्य का प्रशासन राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार चलाती है। 
2. विधानसभा भंग होने पर 6 महीने के भीतर चुनाव अनिवार्य। 

### महत्वपूर्ण नोट्स: 
- 44वाँ संशोधन (1978): 1 साल से ज्यादा विस्तार के लिए संसद के दोनों सदनों का बहुमत जरूरी। 

- सरकारिया आयोग: "राजनीतिक दुरुपयोग" रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश। 

- उदाहरण: 
  - जम्मू-कश्मीर (1990–1996): 6 साल 264 दिन तक राष्ट्रपति शासन। 
  - उत्तराखंड (2016): 3 महीने के लिए लागू। 

### फ्लोचार्ट का सारांश: 

ट्रिगर → राज्यपाल की रिपोर्ट → केंद्र की सिफारिश → राष्ट्रपति की घोषणा → संसदीय मंजूरी → न्यायिक समीक्षा → प्रभाव

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13 Feb, 19:57
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भारतीय स्वतंत्रता से पहले भारत में जनजातीय विद्रोह

नीचे भारत में जनजातीय और किसान विद्रोहों का एक कालानुक्रमिक विवरण दिया गया है, जो 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले हुए थे। इस सूची में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में हुए प्रमुख जनजातीय विद्रोह शामिल हैं।

18वीं सदी
1766-71 - चुआर विद्रोह जिसका नेतृत्व जगन्नाथ सिंह ने किया, यह भारत में पहला जनजातीय विद्रोह था।
1770-1787 - चकमा विद्रोह (चित्तागोंग हिल ट्रैक्ट्स में)।
1771-1809 - चुआर विद्रोह (जंगल महल क्षेत्र में भूमिज जनजाति द्वारा)।
1774-1779 - हलबा डोंगर विद्रोह (बस्तर राज्य में हल्बा जनजाति द्वारा, ब्रिटिश सेना और मराठों के खिलाफ)।
1778 - छोटा नागपुर में पहाड़िया सरदारों का विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ।
1784-1785 - महादेव कोली जनजाति (महाराष्ट्र) और संताल नेता तिलका मांझी का विद्रोह।
1789 - छोटानागपुर के टामर जनजाति का विद्रोह ब्रिटिशों के खिलाफ।
1794-1795 - टामर जनजाति ने फिर से विद्रोह किया।
1798 - छोटानागपुर में पंचेत एस्टेट की बिक्री के खिलाफ आदिवासी विद्रोह।
1798-1799 - दुर्जन सिंह के नेतृत्व में चुआर विद्रोह।

19वीं सदी
1812 - कुरीचियार और कुरुम्बार जनजातियों का विद्रोह (वायनाड में)।
1825 - सिंघपो जनजाति ने असम में सादिया स्थित ब्रिटिश गोदाम को आग लगा दी।
1828 - सिंघपो प्रमुख ने 3000 योद्धाओं के साथ सादिया पर हमला किया
1831-1832 - कोल विद्रोह (कोल जनजाति - हो, उरांव, भूमिज और मुंडा) छोटा नागपुर में।
1832-1833 - भूमिज विद्रोह (बीरभूम में, गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में)।
1843 - सिंघपो नेता निरंग फिदु ने ब्रिटिश गैरीसन पर हमला किया और कई सैनिकों को मार डाला।
1849 - कादमा सिंघपो ने असम में ब्रिटिश गांवों पर हमला किया और पकड़ा गया।
1850 - खोंड जनजाति का विद्रोह (ओडिशा के ब्रिटिश अधीन राज्यों में, प्रमुख बिसोई के नेतृत्व में)।
1855-1856 - संताल विद्रोह (राजमहल पहाड़ियों में सिदो और कान्हू के नेतृत्व में)।
1857 - चेरो और खरवार का विद्रोह (1857 के विद्रोह का हिस्सा, छोटा नागपुर में)।
1857-1858 - भील विद्रोह (विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ियों में, भगोजी नाइक और काजर सिंह के नेतृत्व में)।
1859 - अंडमान द्वीप समूह के आदिवासियों ने ब्रिटिशों के खिलाफ एबर्डीन की लड़ाई लड़ी।
1860 - मिजो जनजाति ने त्रिपुरा राज्य पर हमला किया और 186 ब्रिटिशों को मारा
1860-1862 - सिंतेंग विद्रोह (जयंतिया पहाड़ियों, पूर्वी बंगाल और असम में)।
1861 - जुआंग जनजाति ने ओडिशा में विद्रोह किया।
1862 - कोया जनजाति ने गोदावरी जिले में ब्रिटिश कर-संग्रहकर्ताओं के खिलाफ विद्रोह किया।
1869-1870 - संथाल विद्रोह (धनबाद में, स्थानीय राजा के खिलाफ)।
1879 - असम में नागा जनजाति का विद्रोह
1879 - कोया विद्रोह (विशाखापत्तनम हिल एजेंसी में, तममंदोरा के नेतृत्व में)।
1883 - सेंटिनली जनजाति (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) ने ब्रिटिशों पर हमला किया।
1889 - मुंडा जनजाति का विद्रोह (छोटा नागपुर में)।
1891 - एंग्लो-मणिपुरी युद्ध (ब्रिटिशों ने मणिपुर पर कब्जा कर लिया)।
1892 - लुशाई जनजाति का विद्रोह
1899-1900 - बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा जनजाति का विद्रोह

20वीं सदी
1910 - बस्तर विद्रोह (बस्तर राज्य, ब्रिटिश केंद्रीय प्रांतों में)।
1913-1914 - ताना भगत आंदोलन (बिहार में)।
1913 - अरावली पहाड़ियों में भिल जनजाति का विद्रोह
1917-1919 - कुकी विद्रोह (मणिपुर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ, प्रमुख हाओसा के नेतृत्व में)।
1920-1921 - ताना भगत आंदोलन दोबारा शुरू हुआ
1922 - कोया विद्रोह (गोलकोंडा एजेंसी, ब्रिटिशों के खिलाफ, अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में)।
1932 - नागा विद्रोह (14 वर्षीय रानी गैदिनल्यू के नेतृत्व में, मणिपुर में)।
1941 - गोंड और कोलम जनजातियों का विद्रोह (हैदराबाद राज्य में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ)।
1942 - लक्ष्मण नाइक के नेतृत्व में कोरापुट (जयपुर राज्य) में आदिवासी विद्रोह
1942-1945 - अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आदिवासियों ने द्वीपों पर जापानी कब्जे के खिलाफ विद्रोह किया (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान)।


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10 Feb, 08:44
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मुगलकालीन सिक्के

मुहर – यह मुगल काल का सर्वाधिक प्रचलित सोने का सिक्का था।

शंसब – अकबर द्वारा चलाया गया सबसे बड़ा सोने का सिक्का था। यह 101 तोले का था।

इलाही – यह सोने का गोल आकार का सिक्का था।

रहस – यह गोल एवं चौकोर दोनों तरह का सोने का सिक्का था। यह साढ़े पाँच तोले का था।

अस्माह – 25 तोले के सोने का सिक्का।

बिनसात – 20 तोले के सोने का सिक्का।

रुपया – चांदी का सिक्का।

जलाली – चांदी का सिक्का।

दरब, चरन, चंदन, दह, कल व शुकी सभी चांदी के सिक्के थे।

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था का आधार चांदी का रुपया था।

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08 Feb, 15:58
804
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#impforupscpre2025


IR PT365 (2024) short notes full pdf

Share and save कर लीजिएगा कुछ टाइम बाद इसे हटा दिया जाएगा धन्यवाद


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08 Feb, 07:50
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