हिंदी कविताएं 🌼

@rashmirathiiii


हिंदी कविताएं (जिसमे समाया ये जगत का रहस्य)
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हिंदी कविताएं 🌼

21 Jan, 00:11


Next challenge coming soon on this, be ready.......

Price🤑 same as previous.

हिंदी कविताएं 🌼

21 Jan, 00:11


Underrated song❤️
Lines by:- Raghu nath
Sang by:- rupesh Kumar ram

हिंदी कविताएं 🌼

20 Jan, 23:51


Congratulations to all members who participated in song competition, here the top 3 winners 🎉🙌

⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️⭐️
1.ankush maurya 2000🤑 💰 + TG premium membership
2.niranjan mukharjee 1500 🤑 💰+ TG premium membership
3.jyoti rai 1000 🤑💰+ TG premium membership

हिंदी कविताएं 🌼

20 Jan, 23:46


Lines by:- कबीर दास जी
Composed and sang by:- कुमार गंधर्व

हिंदी कविताएं 🌼

20 Jan, 23:25


By Neelesh mishra one of the most popular lyricist in hindi music.
"Dheeme dheeme preet hai hoti"

हिंदी कविताएं 🌼

20 Jan, 23:01


नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को

प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो

- मैथिलीशरण गुप्त

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20 Jan, 22:45


षष्ठ सर्ग [रामधारी सिंह दिनकर]

"अब कहो, आज क्या होता है ?
किसका समाज यह रोता है ?
किसका गौरव, किसका सिंगार,
जल रहा पंक्ति के आर-पार ?
किसका वन-बाग़ उजड़ता है?
यह कौन मारता-मरता है ?

"फूटता द्रोह-दव का पावक,
हो जाता सकल समाज नरक,
सबका वैभव, सबका सुहाग,
जाती डकार यह कुटिल आग।
जब बन्धु विरोधी होते हैं,
सारे कुलवासी रोते हैं।

"इसलिए, पुत्र ! अब भी रूककर,
मन में सोचो, यह महासमर,
किस ओर तुम्हें ले जायेगा ?
फल अलभ कौन दे पायेगा ?
मानवता ही मिट जायेगी,
फिर विजय सिद्धि क्या लायेगी ?

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20 Jan, 21:24


रश्मिरथी पंचम सर्ग [रामधारी सिंह दिनकर]

दो में जिसका उर फटे, फटूँगी मैं ही,
जिसकी भी गर्दन कटे, कटूँगी मैं ही,
पार्थ को कर्ण, या पार्थ कर्ण को मारे,
बरसेंगें किस पर मुझे छोड़ अंगारे?

'भगवान! सुनेगा कथा कौन यह मेरी?
समझेगा जग में व्यथा कौन यह मेरी?
हे राम! निरावृत किये बिना व्रीडा को,
है कौन, हरेगा जो मेरी पीड़ा को?

गांधारी महिमामयी, भीष्म गुरुजन हैं,
धृतराष्ट्र खिन्न, जग से हो रहे विमन हैं ।
तब भी उनसे कहूँ, करेंगे क्या वे?
मेरी मणि मेरे हाथ धरेंगे क्या वे?

यदि कहूँ युधिष्ठिर से यह मलिन कहानी,
गल कर रह जाएगा वह भावुक ज्ञानी ।
तो चलूँ कर्ण से हीं मिलकर बात करूँ मैं
सामने उसी के अंतर खोल धरून मैं ।

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20 Jan, 21:14


रश्मिरथी चतुर्थ सर्ग [रामधारी सिंह दिनकर]

प्रेमयज्ञ अति कठिन कुण्ड में कौन वीर बलि देगा ?
तन, मन, धन, सर्वस्व हो कर अतुलनीय यश लेगा ?
हरि के सन्मुख भी न हार जिसकी निष्ठा ने मानी,
धन्य-धन्य राधेय ! बन्धुता के अद्भुत अभिमानी ।

पर जाने क्यों नियम एक अद्भुत जग में चलता है,
भोगी सुख भोगता, तपस्वी और अधिक जलता है ।
हरिआली है जहाँ, जलद भी उसी खण्ड के वासी,
मरु की भूमि मगर। रह जाती है प्यासी की प्यासी ।

और, वीर जो किसी प्रतिज्ञा पर आकर अड़ता है,
सचमुच, उसके लिए उसे सब-कुछ देना पड़ता है |
नहीं सदा भीषिका दौड़ती द्वार पाप का पाकर,
दु:ख भोगता कभी पुण्य को भी मनुष्य अपनाकर ।

पर, तब भी रेखा प्रकाश की जहाँ कहीं हँसती है,
वहाँ किसी प्रज्वलित वीर नर की आभा बसती है;
जिसने छोड़ी नहीं लीक विपदाओं से घबराकर ।
दी जग को रोशनी टेक पर अपनी जान गँवाकर ।

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20 Jan, 21:01


रश्मिरथी तृतीय सर्ग [रामधारी सिंह दिनकर]

वसुधा का नेता कौन हुआ?
भूखण्ड-विजेता कौन हुआ?
अतुलित यश क्रेता कौन हुआ?
नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ?
जिसने न कभी आराम किया,
विघ्नों में रहकर नाम किया।

जब विघ्न सामने आते हैं,
सोते से हमें जगाते हैं,
मन को मरोड़ते हैं पल-पल,
तन को झँझोरते हैं पल-पल।
सत्पथ की ओर लगाकर ही,
जाते हैं हमें जगाकर ही।

वाटिका और वन एक नहीं,
आराम और रण एक नहीं।
वर्षा, अंधड़, आतप अखंड,
पौरुष के हैं साधन प्रचण्ड।
वन में प्रसून तो खिलते हैं,
बागों में शाल न मिलते हैं।

कङ्करियाँ जिनकी सेज सुघर,
छाया देता केवल अम्बर,
विपदाएँ दूध पिलाती हैं,
लोरी आँधियाँ सुनाती हैं।
जो लाक्षा-गृह में जलते हैं,
वे ही शूरमा निकलते हैं।

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20 Jan, 20:57


रश्मिरथी दुतिया सर्ग [रामधारी सिंह दिनकर]

गुरु को लिए कर्ण चिन्तन में था जब मग्न, अचल बैठा,
तभी एक विषकीट कहीं से आसन के नीचे पैठा।
वज्रदंष्ट्र वह लगा कर्ण के उरु को कुतर-कुतर खाने,
और बनाकर छिद्र मांस में मन्द-मन्द भीतर जाने।

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20 Jan, 20:56


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20 Jan, 20:56


रश्मिरथी प्रथम सर्ग live listening.....😌
On voice chat.....join now🤩

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20 Jan, 20:56


Live stream started

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20 Jan, 20:55


रश्मिरथी प्रथम सर्ग [रामधारी सिंह दिनकर]

जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी,
उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‌भुत वीर।

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20 Jan, 20:55


अस्वीकरण [disclaimer]

ये पंक्तियां जिन भी कविताओं से ली गई हैं इनका अधिकार इनके संबंधित प्रकाशक के हैं।

हमारे पास इनके अधिकार नहीं है, हम कुछ पंक्तियां अपने पाठकों के साथ साझा करते है

जिससे हिंदी कविताओं में उनकी पढ़ने की इच्छाएं बढ़ती है और वो बोहोत कुछ सीख सकते हैं।

हिंदी कविताएं 🌼

20 Jan, 05:49


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