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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां (Hindi)

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

28 Dec, 02:54


सतर्क रहें
नहीं तो अगला नंबर आपका हो सकता हैं ।

आजकल ऐसे fraud होते हैं
और होने के बाद कुछ नही होता....
इसे मजाक में ना लें।।
अनजान कॉल , वीडियो कॉल,लिंक से सावधान रहें।।

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

27 Dec, 07:17


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! जीवन का आनंद !!
~~~~~

बहुत समय पहले की बात है जब सिकंदर अपने शक्ति के बल पर दुनिया भर में राज करने लगा था वह अपनी शक्ति पर इतना गुमान करने लगा था कि अब वह अमर होना चाहता था उसने पता लगाया कि कहीं ऐसा जल है जिसे पीने से व्यक्ति अमर हो सकता है।

देश-दुनिया में भटकने के बाद आखिरकार सिकंदर ने उस जगह को खोज लिया जहां पर उसे अमृत प्राप्त हो सकता था वह एक पुरानी गुफा थी जहां पर कोई आता जाता नहीं था।

देखने में वह बहुत डरावनी लग रही थी लेकिन सिकंदर ने एक जोर से सांस ली और गुफा में प्रवेश कर गया वहां पर उसने देखा कि गुफा के अंदर एक अमृत का झरना बह रहा है।

उसने जल पीने के लिए हाथ ही बढ़ाया था कि एक कौवे की आवाज आई। कौवा गुफा के अंदर ही बैठा था। कौवा जोर से बोला ठहर रुक जा यह भूल मत करना…

सिकंदर ने कौवे की तरफ देखा। वह बड़ी ही दयनीय अवस्था में था, पंख झड़ गए थे, पंजे गिर गए थे, वह अंधा भी हो गया था बस कंकाल मात्र ही शेष रह गया था।

सिकंदर ने कहा तू कौन होता है मुझे रोकने वाला…?

मैं पूरी दुनिया को जीत सकता हूं तो यह अमृत पीने से मुझे तू कैसे रोकता है! तब कौवे ने आंखों से आंसू टपकाते हुए बोला कि मैं भी अमृत की तलाश में ही इस गुफा में आया था और मैंने जल्दबाजी में अमृत पी लिया। अब मैं कभी मर नहीं सकता, पर अब मैं मरना चाहता हूं लेकिन मर नहीं सकता।

देख लो मेरी हालत। कौवे की बात सुनकर सिकंदर देर तक सोचता रहा सोचने के बाद फिर बिना अमृत पीए ही चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया।

सिकंदर समझ चुका था कि जीवन का आनंद उस समय तक ही रहता है जब तक हम उस आनंद को भोगने की स्थिति में होते हैं।

शिक्षा :-
जीवन में हमें हमेशा खुश रहना चाहिए। हमें कभी भी खुश रहने के लिए बड़ी सफलता या समय का इंतजार नहीं करना चाहिए, क्योंकि समय के साथ हम बूढ़े होते जाते हैं और फिर अपने जीवन का असली आनंद नहीं उठा पाते हैं।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

25 Dec, 02:24


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! लक्ष्य प्राप्ति की राह !!
~~~~~

एक किसान के घर एक दिन उसका कोई परिचित मिलने आया। उस समय वह घर पर नहीं था। उसकी पत्नी ने कहा- वह खेत पर गए हैं। मैं बच्चे को बुलाने के लिए भेजती हूं। तब तक आप इंतजार करें।

कुछ ही देर में किसान खेत से अपने घर आ पहुंचा। उसके साथ-साथ उसका पालतू कुत्ता भी आया। कुत्ता जोरों से हांफ रहा था। उसकी यह हालत देख, मिलने आए व्यक्ति ने किसान से पूछा... क्या तुम्हारा खेत बहुत दूर है ? किसान ने कहा- नहीं, पास ही है। लेकिन आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?

उस व्यक्ति ने कहा- मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम और तुम्हारा कुत्ता दोनों साथ-साथ आए... लेकिन तुम्हारे चेहरे पर रंच मात्र थकान नहीं जबकि कुत्ता बुरी तरह से हांफ रहा है।

किसान ने कहा- मैं और कुत्ता एक ही रास्ते से घर आए हैं। मेरा खेत भी कोई खास दूर नहीं है। मैं थका नहीं हूं। मेरा कुत्ता थक गया है। इसका कारण यह है कि मैं सीधे रास्ते से चलकर घर आया हूं, मगर कुत्ता अपनी आदत से मजबूर है।

वह आसपास दूसरे कुत्ते देखकर उनको भगाने के लिए उसके पीछे दौड़ता था और भौंकता हुआ वापस मेरे पास आ जाता था। फिर जैसे ही उसे और कोई कुत्ता नजर आता, वह उसके पीछे दौड़ने लगता। अपनी आदत के अनुसार उसका यह क्रम रास्ते भर जारी रहा। इसलिए वह थक गया है।

देखा जाए तो यही स्थिति आज के इंसान की भी है।

जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना यूं तो कठिन नहीं है, लेकिन राह में मिलने वाले कुत्ते, व्यक्ति को उसके जीवन की सीधी और सरल राह से भटका रहे हैं।

इंसान अपने लक्ष्य से भटक रहा है और यह भटकाव ही इंसान को थका रहा है। यह लक्ष्य प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। आपकी ऊर्जा को रास्ते में मिलने वाले कुत्ते बर्बाद करते हैं।

भौंकने दो इन कुत्तों को और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सीधे बढ़ते रहो.. फिर एक ना एक दिन मंजिल मिल ही जाएगी। लेकिन इनके चक्कर में पड़ोगे तो थक ही जाओगे। अब ये आपको सोचना है कि किसान की तरह सीधी राह चलना है या उसके कुत्ते की तरह।

शिक्षा:-
सफलता के लिए सही समय की नहीं, सही निर्णय की जरूरत होती है।

प्रेम दुर्लभ है उसे पकड़ कर रखें, क्रोध बहुत खराब है, उसे दबाकर रखें। भय बहुत भयानक है, उसका सामना करें, स्मृतियाँ बहुत सुखद है उन्हें संजोकर रखें।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

24 Dec, 04:56


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! अनसुनी बुराई !!
~~~~~

एक बार स्वामी विवेकानंद रेल से कही जा रहे थे। वह जिस डिब्बे में सफर कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज यात्री भी थे। उन अंग्रेजों को साधुओं से बहुत चिढ़ थी। वे साधुओं की भर-पेट निंदा कर रहे थे। साथ वाले साधु यात्री को भी गाली दे रहे थे। उनकी सोच थी कि चूँकि साधू अंग्रेजी नहीं जानते, इसलिए उन अंग्रेजों की बातों को नहीं समझ रहे होंगे। इसलिए उन अंग्रेजों ने आपसी बातचीत में साधुओं को कई बार भला-बुरा कहा। हालांकि उन दिनों की हकीकत भी थी कि अंग्रेजी जानने वाले साधु होते भी नहीं थे।

रास्ते में एक बड़ा स्टेशन आया। उस स्टेशन पर विवेकानंद के स्वागत में हजारों लोग उपस्थित थे, जिनमें विद्वान एवं अधिकारी भी थे। यहाँ उपस्थित लोगों को सम्बोधित करने के बाद अंग्रेजी में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर स्वामी जी अंग्रेजी में ही दे रहे थे। इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलते देखकर उन अंग्रेज यात्रियों को सांप सूंघ गया, जो रेल में उनकी बुराई कर रहे थे।अवसर मिलने पर वे विवेकानंद के पास आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा- आपने हम लोगों की बात सुनी। आपने बुरा माना होगा?

स्वामी जी ने सहज शालीनता से कहा- “मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी भी पर उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला।” स्वामी जी की यह जवाब सुनकर अंग्रेजों का सिर शर्म से झुक गया और उन्होंने चरणों में झुककर उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली।

शिक्षा:-
हमें सदैव अपने लक्ष्य पर फोकस करना चाहिए।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

22 Dec, 02:37


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! राजा की चिंता !!
~~

प्राचीन समय की बात है, एक राज्य में एक राजा राज करता था. उसका राज्य सुख वैभव से संपन्न था.
धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी।राजा और प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे.

एक वर्ष उस राज्य में भयंकर अकाल पड़ा. पानी की कमी से फ़सलें सूख गई. ऐसी स्थिति में किसान राजा को लगान नहीं दे पाए. लगान प्राप्त न होने के कारण राजस्व में कमी आ गई और राजकोष खाली होने लगा. यह देख राजा चिंता में पड़ गया. हर समय वह सोचता रहता कि राज्य का खर्च कैसे चलेगा?

अकाल का समय निकल गया. स्थिति सामान्य हो गई. किंतु राजा के मन में चिंता घर कर गई. हर समय उसके दिमाग में यही रहता कि राज्य में पुनः अकाल पड़ गया, तो क्या होगा? इसके अतिरिक्त भी अन्य चिंतायें उसे घेरने लगी. पड़ोसी राज्य का भय, मंत्रियों का षड़यंत्र जैसी कई चिंताओं ने उसकी भूख-प्यास और रातों की नींद छीन ली.

वह अपनी इस हालत से परेशान था किंतु जब भी वह राजमहल के माली को देखता, तो आश्चर्य में पड़ जाता. दिन भर मेहनत करने के बाद वह रूखी-सूखी रोटी भी छक्कर खाता और पेड़ के नीचे मज़े से सोता. कई बार राजा को उससे जलन होने लगती.

एक दिन उसके राजदरबार में एक सिद्ध साधु पधारे. राजा ने अपनी समस्या साधु को बताई और उसे दूर करने सुझाव मांगा.

साधु राजा की समस्या अच्छी तरह समझ गए थे. वे बोले, “राजन! तुम्हारी चिंता की जड़ राज-पाट है. अपना राज-पाट पुत्र को देकर चिंता मुक्त हो जाओ.”

इस पर राजा बोला, ”गुरुवर! मेरा पुत्र मात्र पांच वर्ष का है. वह अबोध बालक राज-पाट कैसे संभालेगा?”

“तो फिर ऐसा करो कि अपनी चिंता का भार तुम मुझे सौंप दो” साधु बोले.

राजा तैयार हो गया और उसने अपना राज-पाट साधु को सौंप दिया. इसके बाद साधु ने पूछा, “अब तुम क्या करोगे?”

राजा बोला, “सोचता हूँ कि अब कोई व्यवसाय कर लूं.”

“लेकिन उसके लिए धन की व्यवस्था कैसे करोगे? अब तो राज-पाट मेरा है। राजकोष के धन पर भी मेरा अधिकार है.”

“तो मैं कोई नौकरी कर लूंगा, राजा ने उत्तर दिया.

“ये ठीक है लेकिन यदि तुम्हें नौकरी ही करनी है, तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं. यहीं नौकरी कर लो. मैं तो साधु हूँ। मैं अपनी कुटिया में ही रहूंगा. राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से तुम ये राज-पाट संभालना.”

राजा ने साधु की बात मान ली और साधु की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा. साधु अपनी कुटिया में चले गए.

कुछ दिन बाद साधु पुनः राजमहल आये और राजा से भेंट कर पूछा, “कहो राजन! अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं और तुम्हारी नींद का क्या हाल है?”

“गुरुवर! अब तो मैं खूब खाता हूँ और गहरी नींद सोता हूँ. पहले भी मैं राजपाट का कार्य करता था, अब भी करता हूँ. फिर ये परिवर्तन कैसे? ये मेरी समझ के बाहर है.” राजा ने अपनी स्थिति बताते हुए प्रश्न भी पूछ लिया.

साधु मुस्कुराते हुए बोले, “राजन! पहले तुमने काम को बोझ बना लिया था और उस बोझ को हर समय अपने मानस-पटल पर ढोया करते थे. किंतु राजपाट मुझे सौंपने के उपरांत तुम समस्त कार्य अपना कर्तव्य समझकर करते हो. इसलिए चिंतामुक्त हो.

शिक्षा:-
मित्रों, जीवन में जो भी कार्य करें, अपना कर्त्तव्य समझकर करें न कि बोझ समझकर. यही चिंता से दूर रहने का एकमात्र उपाय है.

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

21 Dec, 09:30


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! पहले सोचें, घबराएं नहीं !!
~~

पुराने समय में एक व्यापारी ने किसी धनी साहूकार से पैसा उधार ब्याज पर लिया था लेकिन व्यापार में नुकसान हो जाने की वजह से वह साहूकार का पैसा लौटा नहीं पा रहा था।

व्यापारी की एक बेहद सुन्दर बेटी थी। साहूकार बड़ा कुटिल था। उसने सोचा कि व्यापारी पैसा तो वापस कर नहीं पा रहा है तो क्यों ना इसकी परिस्थिति का फायदा उठाया जाए! उसने व्यापारी को एक सुझाव दिया कि अगर वह अपनी बेटी की शादी उस साहूकार से कर दे तो वह व्यापारी का सारा कर्ज माफ़ कर देगा।

व्यापारी बेचारा मरता क्या ना करता, उसने अपनी बेटी को सारी बात बताई; समस्या बड़ी थी, साहूकार अधेड़ उम्र का कुरूप व्यक्ति था।

अब उस बेटी के आगे 2 ही रास्ते थे- पहला, या तो साहूकार से विवाह करने से इंकार कर दे और अपने पिता को कर्ज में दबा रहने दे। दूसरा, साहूकार से ख़ुशी से विवाह कर ले ताकि उसका पिता स्वतंत्रता से रह सके।

मित्रों, अक्सर हमारे जीवन में भी ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें यकीन होने लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा है और अब हम बुरी तरह फंस चुके हैं अख़बारों में सुनने में आता है कि लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं, लेकिन अपने दिमाग को पानी की तरह रखिये, एकदम निर्मल, शांत और चलायमान पानी को देखा है? पानी हर जगह से अपना रास्ता निकाल ही लेता है ठीक वैसे ही बन जाओ।

आगे देखिये लड़की ने क्या फैसला लिया- लड़की ने साहूकार के आगे एक शर्त रखी कि साहूकार एक थैला लाये और उसमें दो गोलियां डाले, एक सफ़ेद रंग की तथा दूसरी काले रंग की। इसके बाद लड़की उस थैले से आँख बंद करके कोई एक गोली निकालेगी।

गोली अगर काली निकली तो लड़की साहूकार से विवाह कर लेगी और उसके पिता का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा।

साथ ही, अगर गोली सफ़ेद निकली तो भी पिता कर कर्ज माफ़ किया जायेगा लेकिन लड़की साहूकार से विवाह नहीं करेगी।

साहूकार तुरंत बात मान गया और जल्द ही एक थैला लेकर आ गया। अब वह जब थैले में गोलियां डाल रहा था तो लड़की ने देखा कि साहूकार ने चालाकी से दोनों गोली काली ही थैली में डाल दीं है।

अब लड़की परेशान हो गयी कि अब वह करे तो क्या करे, साहूकार का भांडा फोड़ भी दे तो भी वह दूसरी किसी चाल में उनको जरूर फंसाएगा।

लड़की कुछ सोचकर आगे बढ़ी और उसने थैले से एक गोली निकाली और गोली बाहर निकालते ही, उसे हाथ से छिटका दी, जिससे गोली नाली में जा गिरी।

लड़की बोली- माफ़ करना, गोली मेरे हाथ से छिटक गयी लेकिन चिंता की कोई बात नहीं, थैले में अभी दूसरी गोली भी तो होगी उसे देख लेते हैं अगर गोली काली निकली तो मैंने सफ़ेद गोली उठायी होगी और थैले में गोली सफ़ेद निकली तो मैंने काली गोली उठाई होगी।

व्यापारी ने थैले में हाथ डाला तो देखा, काली गोली निकली।

व्यापारी बोला- अहा, बेटी थैले में काली गोली बची है इसका मतलब तुमने सफ़ेद गोली चुनी थी।

साहूकार बेचारा बोलता भी क्या? अगर बोलता तो चोरी पकड़ी जाती। इस प्रकार पिता का कर्ज भी माफ़ हो गया और बेटी ने अपनी रक्षा भी कर ली।

जब तक आप समस्याओं के समाधान के बारे में नहीं सोचेंगे तब तक आप समस्याओं में ही उलझे रहेंगे।

शिक्षा:-
अपने विचारों को खुलने दें, थोड़ा हटकर सोचें, यह सोचें कि हर समस्या का हल है तो मेरी समस्या का भी कोई ना कोई हल जरूर होगा। जब आप ऐसा सोचने लगेंगे तो यकीन मानिये आपको समस्याओं के हल भी मिलना शुरू हो जायेंगे।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

20 Dec, 14:30


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! अनुशासन के बिना विकास नहीं !!
~~~

प्राचीन समय में एक नगर था। वहां एक मठ था। उस मठ में एक वरिष्ठ भिक्षु रहते थे। उनके पास अनेकों सिद्धियां थीं, जिसके चलते उनका सम्मान होता था। सम्मान बहुत बड़ी चीज होती है ये वो जानते थे। इसलिए उनकी महत्वाकांक्षा और कुछ न थी।

एक दिन दोपहर के समय वह अपने शिष्यों के साथ ध्यान कर रहे थे। अन्य भिक्षु शिष्य भूखे थे। तब वरिष्ठ भिक्षु ने कहा, 'क्या तुम भूखे हो?' वह भिक्षु बोला, 'यदि हम भूखे भी हों तो क्या?' मठ के नियम के अनुसार दोपहर में भोजन नहीं कर सकते हैं।

वरिष्ठ भिक्षु बोले, 'तुम चिंता मत करो मेरे पास कुछ फल हैं।' उन्होंने वह फल शिष्य भिक्षु को दे दिए। उसी मठ में एक अन्य भिक्षु थे वह मठ के नियमों को लेकर जागरुक रहते थे। वह एक सिद्ध पुरुष थे। लेकिन ये बात उनके सिवाय और कोई नहीं जानता था।

अगले दिन उन्होंने घोषणा की कि जिसने भी भूख के कारण मठ का नियम तोड़ा है। उसे मठ से निष्काषित किया जाता है। तब उन वरिष्ठ भिक्षु ने अपना चोंगा उतारा और हमेशा के लिए उस मठ से चले गए।

शिक्षा:-
अनुशासन के बिना सच्ची प्रगति संभव नहीं है। वरिष्ठ भिक्षु ने ऐसा ही किया। दरअसल यह याद रखना हमेशा जरूर है कि जीवन में जो सफलता या शक्ति हासिल हुई है, वह कठोर अनुशासन के फलस्वरूप ही मिलती है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

15 Dec, 06:01


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! दुआओं का असर !!
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एक होटल में बहुत ज्यादा भीड़ रहती थी जिसका फायदा उठाकर एक आदमी रोजाना कचौरी खाकर बिना पैसे दिए ही चला जाता था। मैं रोज उस आदमी को देखता लेकिन होटल के मालिक को कभी नहीं बताया।

एक दिन सोचा चलो होटल के मालिक को बता ही देता हूं, जैसे ही मैंने उस होटल के मालिक को उस आदमी के बारे में बताया तो वो बोला कि आप पहले ग्राहक नहीं हो जिसने हमें ये बात बताई है; और भी बहुत से ग्राहक हमें यह बात बता चुके हैं।

मालिक की बात सुनकर मैंने पूछा कि आप उसे रोकते क्यों नहीं तो मलिक ने जवाब दिया कि एक बार हमने उस व्यक्ति का पीछा किया फिर हमें पता लगा कि वह एक भिखारी है और कचौरी खाने के बाद सीधा भगवान के मंदिर में जाता है।

जब हमने चुपके से भगवान के मंदिर में जाकर देखा तो वह व्यक्ति दुआ मांग रहा था कि हे भगवान! कल उस होटल में आज से भी ज्यादा भीड़ भेजना ताकि भीड़ में मैं कचौरी खाके निकल सकूं। फिर हमें एहसास हुआ की होटल हमारी मेहनत से नहीं उसकी दुआओं की बदौलत चलता है।

शिक्षा:-
दोस्तों, जीवन में कभी-कभी हम अपनी सफलता पर घमंड करने लगते हैं लेकिन हमें पता नहीं होता कि वह सफलता हमें किसकी दुआओं की बदौलत मिली है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

13 Dec, 01:43


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! आशा !!
~~~

एक राजा ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई। उसमें से एक यह जानता था कि राजा को अपने घोड़े से बहुत ज्यादा प्यार है।

उसने राजा से कहा कि यदि मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं एक साल में उसके घोड़े को उड़ना सीखा दूँगा। यह सुनकर राजा खुश हो गया कि वह दुनिया के इकलौते उड़ने वाले घोड़े की सवारी कर सकता है।

दूसरे कैदी ने अपने मित्र की ओर अविश्वास की नजर से देखा और बोला, तुम जानते हो कि कोई भी घोड़ा उड़ नहीं सकता! तुमने इस तरह पागलपन की बात सोची भी कैसे? तुम तो अपनी मौत को एक साल के लिए टाल रहे हो।

पहला कैदी बोला, ऐसी बात नहीं है। मैंने दरअसल खुद को स्वतंत्रता के चार मौके दिए हैं...

१. पहली बात राजा एक साल के भीतर मर सकता है!
२. दूसरी बात मैं मर सकता हूं !
३. तीसरी बात घोड़ा मर सकता है !
४. और चौथी बात… हो सकता है, मैं घोड़े को उड़ना सीखा दूं !!

शिक्षा:-
बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

05 Dec, 02:01


एक राजा की बेटी की शादी होनी थी। बेटी की यह शर्त थी कि जो भी 20 तक की गिनती सुनाएगा, वही राजकुमारी का पति बनेगा। गिनती ऐसी होनी चाहिए जिसमें सारा संसार समा जाए। जो यह गिनती नहीं सुना सकेगा, उसे 20 कोड़े खाने पड़ेंगे। यह शर्त केवल राजाओं के लिए ही थी।

अब एक तरफ राजकुमारी का वरण और दूसरी तरफ कोड़े! एक-एक करके राजा-महाराजा आए। राजा ने दावत का आयोजन भी किया। मिठाई और विभिन्न पकवान तैयार किए गए। पहले सभी दावत का आनंद लेते हैं, फिर सभा में राजकुमारी का स्वयंवर शुरू होता है।

एक से बढ़कर एक राजा-महाराजा आते हैं। सभी गिनती सुनाते हैं, जो उन्होंने पढ़ी हुई थी, लेकिन कोई भी ऐसी गिनती नहीं सुना पाया जिससे राजकुमारी संतुष्ट हो सके।

अब जो भी आता, कोड़े खाकर चला जाता। कुछ राजा तो आगे ही नहीं आए। उनका कहना था कि गिनती तो गिनती होती है, राजकुमारी पागल हो गई है। यह केवल हम सबको पिटवा कर मज़े लूट रही है।

यह सब नज़ारा देखकर एक हलवाई हंसने लगा। वह कहता है, "डूब मरो राजाओं, आप सबको 20 तक की गिनती नहीं आती!"

यह सुनकर सभी राजा उसे दंड देने के लिए कहने लगे। राजा ने उससे पूछा, "क्या तुम गिनती जानते हो? यदि जानते हो तो सुनाओ।"

हलवाई कहता है, "हे राजन, यदि मैंने गिनती सुनाई तो क्या राजकुमारी मुझसे शादी करेगी? क्योंकि मैं आपके बराबर नहीं हूँ, और यह स्वयंवर भी केवल राजाओं के लिए है। तो गिनती सुनाने से मुझे क्या फायदा?"

पास खड़ी राजकुमारी बोलती है, "ठीक है, यदि तुम गिनती सुना सको तो मैं तुमसे शादी करूँगी। और यदि नहीं सुना सके तो तुम्हें मृत्युदंड दिया जाएगा।"

सब देख रहे थे कि आज तो हलवाई की मौत तय है। हलवाई को गिनती बोलने के लिए कहा गया।

राजा की आज्ञा लेकर हलवाई ने गिनती शुरू की:

"एक भगवान,
दो पक्ष,
तीन लोक,
चार युग,
पांच पांडव,
छह शास्त्र,
सात वार,
आठ खंड,
नौ ग्रह,
दस दिशा,
ग्यारह रुद्र,
बारह महीने,
तेरह रत्न,
चौदह विद्या,
पन्द्रह तिथि,
सोलह श्राद्ध,
सत्रह वनस्पति,
अठारह पुराण,
उन्नीसवीं तुम और
बीसवां मैं…"

सब लोग हक्के-बक्के रह गए। राजकुमारी हलवाई से शादी कर लेती है! इस गिनती में संसार की सारी वस्तुएं मौजूद हैं। यहाँ शिक्षा से बड़ा तजुर्बा है। 🙏🏻🙏🏻

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

27 Nov, 02:04


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! कड़वा वचन !!
~~~~

सुंदर नगर में एक सेठ रहते थे। उनमें हर गुण था- नहीं था तो बस खुद को संयत में रख पाने का गुण। जरा-सी बात पर वे बिगड़ जाते थे। आसपास तक के लोग उनसे परेशान थे। खुद उनके घर वाले तक उनसे परेशान होकर बोलना छोड़ देते।

किंतु, यह सब कब तक चलता। वे पुन: उनसे बोलने लगते। इस प्रकार काफी समय बीत गया, लेकिन सेठ की आदत नहीं बदली। उनके स्वभाव में तनिक भी फर्क नहीं आया।

अंततः एक दिन उसके घरवाले एक साधु के पास गये और अपनी समस्या बताकर बोले- “महाराज ! हम उनसे अत्यधिक परेशान हो गये हैं, कृपया कोई उपाय बताइये।” तब, साधु ने कुछ सोचकर कहा- “सेठ जी ! को मेरे पास भेज देना।”

“ठीक है, महाराज” कहकर सेठ जी के घरवाले वापस लौट गये। घर जाकर उन्होंने सेठ जी को अलग-अलग उपायों के साथ उन्हें साधु महाराज के पास ले जाना चाहा। किंतु, सेठ जी साधु-महात्माओं पर विश्वास नहीं करते थे। अतः वे साधु के पास नहीं आये। तब एक दिन साधु महाराज स्वयं ही उनके घर पहुंच गये। वे अपने साथ एक गिलास में कोई द्रव्य लेकर गये थे।

साधु को देखकर सेठ जी की प्योरिया चढ़ गयी। परंतु घरवालों के कारण वे चुप रहे।

साधु महाराज सेठ जी से बोले- “सेठ जी ! मैं हिमालय पर्वत से आपके लिए यह पदार्थ लाया हूं, जरा पीकर देखिये।” पहले तो सेठ जी ने आनाकानी की, परंतु फिर घरवालों के आग्रह पर भी मान गये। उन्होंने द्रव्य का गिलास लेकर मुंह से लगाया और उसमें मौजूद द्रव्य को जीभ से चाटा।

ऐसा करते ही उन्होंने सड़ा-सा मुंह बनाकर गिलास होठों से दूर कर लिया और साधु से बोले- “यह तो अत्यधिक कड़वा है, क्या है यह ?”

“अरे आपकी जबान जानती है कि कड़वा क्या होता है” साधु महाराज ने कहा। “यह तो हर कोई जानता है” कहते समय सेठ ने रहस्यमई दृष्टि से साधु की ओर देखा।

“नहीं ऐसा नहीं है, अगर हर कोई जानता होता तो इस कड़वे पदार्थ से कहीं अधिक कड़वे शब्द अपने मुंह से नहीं निकालता। सेठ जी वह एक पल को रुके फिर बोले। सेठ जी याद रखिये जो आदमी कटु वचन बोलता है वह दूसरों को दुख पहुंचाने से पहले, अपनी जबान को गंदा करता है।”

सेठ समझ गये थे कि साधु ने जो कुछ कहा है उन्हें ही लक्षित करके कहा है। वह फौरन साधु के पैरों में गिर पड़े- “बोले साधु महाराज ! आपने मेरी आंखें खोल दी, अब मैं आगे से कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करूंगा।”

सेठ के मुंह से ऐसे वाक्य सुनकर उनके घरवाले प्रसन्नता से भर उठे। तभी सेठ जी ने साधु से पूछा- “किंतु, महाराज! यह पदार्थ जो आप हिमालय से लाये हो वास्तव में यह क्या है?”

साधु मुस्कुराकर बोले- “नीम के पत्तों का अर्क।” “क्या” सेठ जी के मुंह से निकला और फिर वे धीरे-से मुस्कुरा दिये।

शिक्षा:-
मित्रों! कड़वा वचन बोलने से बढ़कर इस संसार में और कड़वा कुछ नहीं। किसी द्रव्य के कड़वे होने से जीभ का स्वाद कुछ ही देर के लिए कड़वा होता है। परंतु कड़वे वचन से तो मन और आत्मा को चोट लगती है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

25 Nov, 07:27


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! सलाह !!
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एक व्यक्ति ने अगरबत्ती की दुकान खोली। नाना प्रकार की अगरबत्तियां थीं। उसने दुकान के बाहर एक साइन बोर्ड लगाया- "यहाँ सुगन्धित अगरबत्तियां मिलती हैं।"

दुकान चल निकली। एक दिन एक ग्राहक उसके दुकान पर आया और कहा- आपने जो बोर्ड लगा रखा है, उसके एक विरोधाभास है! भला अगरबत्ती सुगंधित नहीं होंगी तो क्या दुर्गन्धित होंगी?

उसकी बात को उचित मानते हुए विक्रेता ने बोर्ड से सुगंधित शब्द मिटा दिया। अब बोर्ड इस प्रकार था- "यहाँ अगरबत्तियां मिलती हैं।"

इसके कुछ दिनों के पश्चात किसी दूसरे सज्जन ने उससे कहा- आपके बोर्ड पर "यहाँ" क्यों लिखा है? दुकान जब यहीं है तब यहाँ लिखना निरर्थक है! इस बात को भी अंगीकार कर विक्रेता ने बोर्ड पर यहाँ शब्द मिटा दिया। अब बोर्ड था- अगरबत्तियां मिलती हैं।

पुनः उस व्यक्ति को एक रोचक परामर्श मिला- अगरबत्तियां मिलती हैं का क्या प्रयोजन? अगरबत्ती लिखना ही पर्याप्त है! अतः वह बोर्ड केवल एक शब्द के साथ रह गया- "अगरबत्ती"

विडम्बना देखिये! एक शिक्षक ग्राहक बन कर आये और अपना ज्ञान वमन किया- दुकान जब मात्र अगरबत्तियों की है तो इसका बोर्ड लगाने का क्या लाभ? लोग तो देखकर ही समझ जायेंगे कि मात्र अगरबत्तियों की दुकान है! इस प्रकार वह बोर्ड ही वहाँ से हट गया।

कालांतर में दुकान की बिक्री मंद पड़ने लगी और विक्रेता चिंतित रहने लगा। एक दिन उसका पुराना मित्र उसके पास आया। अनेक वर्षों के उपरांत वे मिल रहे थे। मित्र से इसकी चिंता ना छिप सकी और उसने इसका कारण पूछा तो व्यवसाय के गिरावट का पता चला।

मित्र ने सब कुछ ध्यान से देखा और कहा- तुम बिल्कुल ही मूर्ख हो! इतनी बड़ी दुकान खोल ली और बाहर एक बोर्ड नहीं लगा सकते थे- यहाँ सुगंधित अगरबत्तियां मिलती हैं!

शिक्षा:-
आपको जीवन में प्रत्येक पग पर सुझाव देने वाले मिलेंगे जो उस विषय के विशेषज्ञ नहीं हैं परंतु लगेगा कि सारा विज्ञान, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र इत्यादि उनमें अंतर्निहित है। आप ऐसे व्यक्तियों की सुनेंगे या अनुपालन करेंगे तो आपकी स्थिति भी उस विक्रेता की भाँति हो जायेगी। आप किसी भी विषय या निराकरण के लिये उससे सम्बन्धित विशेषज्ञों की सुने या अपने अन्त: चेतन की, क्योंकि आपको आपसे अधिक कोई नहीं जानता।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

24 Nov, 04:53


!! किसान की घड़ी !!
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एक दिन की बात है। एक किसान अपने खेत के पास स्थित अनाज की कोठी में काम कर रहा था। काम के समय उसकी घड़ी कहीं खो गई। वह घड़ी उसके पिता द्वारा उसे उपहार में दी गई थी। इस कारण उससे उसका भावनात्मक लगाव था। उसने वह घड़ी ढूंढने की बहुत कोशिश की। कोठी का हर कोना छान मारा लेकिन घड़ी नहीं मिली। हताश होकर वह कोठी से बाहर आ गया। वहाँ उसने देखा कि कुछ बच्चे खेल रहे हैं। उसने बच्चों को पास बुलाकर उन्हें अपने पिता की घड़ी खोजने का काम सौंपा।

घड़ी ढूंढ निकालने वाले को ईनाम देने की घोषणा भी की। ईनाम के लालच में बच्चे तुरंत मान गए। कोठी के अंदर जाकर बच्चे घड़ी की खोज में लग गए। इधर-उधर, यहाँ-वहाँ, हर जगह खोजने पर भी घड़ी नहीं मिल पाई। बच्चे थक गए और उन्होंने हार मान ली। किसान ने अब घड़ी मिलने की आस खो दी। बच्चों के जाने के बाद वह कोठी में उदास बैठा था। तभी एक बच्चा वापस आया और किसान से बोला कि वह एक बार फिर से घड़ी ढूंढने की कोशिश करना चाहता था। किसान ने हामी भर दी।

बच्चा कोठी के भीतर गया और कुछ ही देर में बाहर आ गया। उसके हाथ में किसान की घड़ी थी। जब किसान ने वह घड़ी देखी, तो बहुत ख़ुश हुआ। उसे आश्चर्य हुआ कि जिस घड़ी को ढूंढने में सब नाकामयाब रहे, उसे उस बच्चे ने कैसे ढूंढ निकाला? पूछने पर बच्चे ने बताया कि कोठी के भीतर जाकर वह चुपचाप एक जगह खड़ा हो गया और सुनने लगा। शांति में उसे घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ सुनाई पड़ी और उस आवाज़ की दिशा में खोजने पर उसे वह घड़ी मिल गई। किसान ने बच्चे को शाबासी दी और ईनाम देकर विदा किया।

शिक्षा:-
शांति हमारे मन और मस्तिष्क को एकाग्र करती है और यह एकाग्र मन:स्थिति जीवन की दिशा निर्धारित करने में सहायक है। इसलिए दिनभर में कुछ समय हमें अवश्य निकलना चाहिए, जब हम शांति से बैठकर मनन कर सकें। अन्यथा शोर-गुल भरी इस दुनिया में हम उलझ कर रह जायेंगे।

हम कभी न खुद को जान पायेंगे न अपने मन को। बस दुनिया की भेड़ चाल में चलते चले जायेंगे। जब आँख खुलेगी, तो बस पछतावा होगा कि जीवन की ये दिशा हमने कैसे निर्धारित कर ली? हम चाहते तो कुछ और थे जबकि वास्तव में हमने तो वही किया, जो दुनिया ने कहा। अपने मन की बात सुनने का तो हमने समय ही नहीं निकाला।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

22 Nov, 02:15


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! सबसे बड़ा गुण !!
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एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया पर बाद में मंत्री से कहा, ‘‘वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।’’ मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा।

एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया। वह बोला, ‘‘इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।’’ मंत्री यह सब देख रहा था। मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया।

इस पर मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। कोरे रंग-रूप को न देखकर गुण को देखें।’’ उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया।

सम्मान, प्रतिष्ठा, यश, श्रद्धा पाने का अधिकार चरित्र को मिलता है, चेहरे को नहीं। चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है न कि ऊंचे आसन पर बैठने से या पदवी से। जैसे ऊंचे महल के शिखर पर बैठ कर भी कौवा, कौवा ही रहता है; गरुड़ नहीं बन जाता। उसी तरह अमिट सौंदर्य निखरता है मन की पवित्रता से, क्योंकि सौंदर्य रंग-रूप, नाक-नक्श, चाल-ढाल, रहन-सहन, सोच-शैली की प्रस्तुति मात्र नहीं होता। यह व्यक्ति के मन, विचार, चिंतन और कर्म का आइना है। कई लोग बाहर से सुंदर दिखते हैं मगर भीतर से बहुत कुरूप होते हैं। जबकि ऐसे भी लोग हैं जो बाहर से सुंदर नहीं होते मगर उनके भीतर भावों की पवित्रता इतनी ज्यादा होती है कि उनका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है। सुंदर होने और दिखने में बहुत बड़ा अंतर है।

शिक्षा:-
आपका चरित्र ही आपका सबसे बड़ा गुण है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

16 Nov, 03:46


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! लालच बुरी बला है !!
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एक बार एक बुढ्ढा आदमी तीन गठरी उठा कर पहाड़ की चोटी की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में उसके पास से एक हष्ट - पुष्ट नौजवान निकाला। बुढ्ढे आदमी ने उसे आवाज लगाई कि बेटा क्या तुम मेरी एक गठरी अगली पहाड़ी तक उठा सकते हो ? मैं उसके बदले इसमें रखी हुई पांच तांबे के सिक्के तुमको दूंगा। लड़का इसके लिए सहमत हो गया।

निश्चित स्थान पर पहुँचने के बाद लड़का उस बुढ्ढे आदमी का इंतज़ार करने लगा और बुढ्ढे आदमी ने उसे पांच सिक्के दे दिए। बुढ्ढे आदमी ने अब उस नौजवान को एक और प्रस्ताव दिया कि अगर तुम अगली पहाड़ी तक मेरी एक और गठरी उठा लो तो मैं उसमें रखी चांदी के पांच सिक्के और पांच पहली गठरी में रखे तांबे के पांच सिक्के तुमको और दूंगा।

नौजवान ने सहर्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और पहाड़ी पर निर्धारित स्थान पर पहुँच कर इंतजार करने लगा। बुढ्ढे आदमी को पहुँचते-पहुँचते बहुत समय लग गया।

जैसे निश्चित हुआ था उस हिसाब से बुजुर्ग ने सिक्के नौजवान को दे दिये। आगे का रास्ता और भी कठिन था। बुजुर्ग व्यक्ति बोला कि आगे पहाड़ी और भी दुर्गम है। अगर तुम मेरी तीसरी सोने के मोहरों की गठरी भी उठा लो तो मैं तुमको उसके बदले पांच तांबे की मोहरे, पांच चांदी की मोहरे और पांच सोने की मोहरे दूंगा। नौजवान ने खुशी-खुशी हामी भर दी।

निर्धारित पहाड़ी पर पहुँचने से पहले नौजवान के मन में लालच आ गया कि क्यों ना मैं तीनों गठरी लेकर भाग जाऊँ। गठरियों का मालिक तो कितना बुजुर्ग है। वह आसानी से मेरे तक नहीं पहुंच पाएगा। अपने मन में आए लालच की वजह से उसने रास्ता बदल लिया।

कुछ आगे जाकर नौजवान के मन में सोने के सिक्के देखने की जिज्ञासा हुई। उसने जब गठरी खोली तो उसे देख कर दंग रह गया क्योंकि सारे सिक्के नकली थे।

उस गठरी में एक पत्र निकला। उसमें लिखा था कि जिस बुजुर्ग व्यक्ति की तुमने गठरी चोरी की है, वह वहाँ का राजा है।

राजा जी भेष बदल कर अपने कोषागार के लिए ईमानदार सैनिकों का चयन कर रहे हैं।

अगर तुम्हारे मन में लालच ना आता तो सैनिक के रूप में आज तुम्हारी भर्ती पक्की थी। जिसके बदले तुमको रहने को घर और अच्छा वेतन मिलता। लेकिन अब तुमको कारावास होगा क्योंकि तुम राजा जी का सामान चोरी करके भागे हो। यह मत सोचना कि तुम बच जाओगे क्योंकि सैनिक लगातार तुम पर नज़र रख रहे हैं।

अब नौजवान अपना माथा पकड़ कर बैठ गया। कुछ ही समय में राजा के सैनिकों ने आकर उसे पकड़ लिया।

उसके लालच के कारण उसका भविष्य जो उज्जवल हो सकता था, वह अंधकारमय हो चुका था। इसलिए कहते हैं लालच बुरी बला है..!!

शिक्षा:-
ज्यादा पाने की लालसा के कारण व्यक्ति लालच में आ जाता है और उसे जो बेहतरीन मिला होता है उसे भी वह खो देता है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

13 Nov, 03:04


♨️ आज की प्रेरणा प्रसंग ♨️

🌷 बुराई जड़ से ख़त्म करो 🌷

बुराई की ऊपरी कांट-छांट से वह नहीं मिटती,उसे तो  उसकी जड़ से मिटाना होता है। जब तक जड़ को नष्ट नहीं किया जाएगा तब तक कोई लाभ नहीं होगा।
किसी नगर में एक आदमी रहता था। उसके आँगन में एक पौधा उग आया। कुछ दिनों बाद वह बड़ा हो गया और उस पर फल लगने लगे। एक बार एक फल पककर नीचे गिर गया। उस फल को एक कुत्ते ने खा लिया। जैसे ही कुत्ते ने फल खाया, उसके प्राण निकल गए। आदमी ने सोचा--कोई बात होगी जिससे कुत्ता मर गया। पर उसने पेड़ के फल पर ध्यान नहीं दिया। कुछ समय बाद उधर से एक लड़का निकला। फल देखकर उसके मन में लालच आ गया और उसने किसी तरह फल तोड़कर खा लिया। फल को खाते ही लड़का मर गया। मरे हुए लड़के को देख आदमी की समझ में आ गया कि यह जहरीला पेड़ है। उसने कुल्हाड़ी ली और वृक्ष के सारे फल काटकर गिरा दिए। थोड़े दिन बाद पेड़ में फिर फल लग गए। लेकिन इस बार पहले से भी ज्यादा बड़े फल लगे थे। आदमी ने फिर कुल्हाड़ी से फल के साथ-साथ शाखाओं को भी काट दिया। परंतु कुछ दिन बाद पेड़ फिर फलों से लद गया। अब आदमी की समझ में कुछ नहीं आया। वह परेशान हो गया। तभी उसके पड़ोसी ने उसे देखा और उसकी परेशानी का कारण पूछा। आदमी ने सारी बातें बता दी। यह सब सुनकर पड़ोसी ने कहा --तुमने पेड़ के फल तोड़े,उसकी शाखाएं काटी , पर तुम्हारी समझ में नहीं आया कि जब तक पेड़ की जड़ रहेगी तब तक पेड़ रहेगा और उसमें फल आते रहेंगे। अगर तुम इससे छुटकारा चाहते हो तो इसकी जड़ काटो। तब आदमी की समझ में आया कि बुराई की ऊपरी कांट-छांट से वह नहीं मिटती,उसे तो उसकी जड़ से मिटाना चाहिए। उसने कुल्हाड़ी लेकर पेड़ की जड़ को काट दिया और हमेशा के लिए चिंता मुक्त हो गया।
इसी तरह बुराई की जड़ हमारे मन में होती है। जब तक जड़ को नष्ट नहीं किया जाएगा, मनुष्य को जहरीला बनाने वाले फल आते रहेंगे।


सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

10 Nov, 03:26


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! नया नज़रिया !!
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झारखंड के एक छोटे से कस्बे में एक बालक के मन में नई-नई बातों को जानने की जिज्ञासा थी। उस बालक के मोहल्ले में एक गुरुजी रहते थे। एक दिन बालक उनके पास गया और बोला, 'मैं कामयाब बनना चाहता हूं, कृपया बताएं कि कामयाबी का रास्ता क्या है?'

हंसते हुए गुरुजी बोले, 'बेटा, मैं तुम्हें कामयाबी का रास्ता बताऊंगा, पहले तुम मेरी गाय को सामने वाले खूंटे से बांध दो, कह कर उन्होंने गाय की रस्सी बालक को दे दी। वह गाय किसी के काबू में नहीं आती थी।

अतः जैसे ही बालक ने रस्सी थामी कि वह छलांग लगा, हाथ से छूट गई। फिर काफी मशक्कत के बाद बालक ने चतुराई से काम लेते हुए तेजी से भाग कर गाय को पैरों से पकड़ लिया। पैर पकड़े जाने पर गाय एक कदम भी नहीं भाग पाई और बालक उसे खूंटे से बांधने में कामयाब हुआ।

यह देख गुरुजी बोले, 'शाबाश, बेटे यही है कामयाबी का रास्ता। जड़ पकड़ने से पूरा पेड़ काबू में आ जाता है। अगर हम किसी समस्या की जड़ पकड़ लें, तो उसका हल आसानी से निकाल सकते हैं।

बालक ने इसी सूत्र को आत्मसात कर लिया और जीवन में आगे बढ़ता गया।

शिक्षा:-
हमें किसी भी समस्या का हल तब तक नहीं मिलता जब तक हम उसकी जड़ को नहीं पकड़ लेते। अत: हर समस्या का समाधान उसकी जड़ काबू में आने पर ही होता है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

07 Nov, 16:07


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! मुश्किल दौर !!
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एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती है और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी। अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया।

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे, लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतारा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था।

आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था।

जब छात्र ने, अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी।

अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली।

आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है।

शिक्षा:-
सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किलें आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं।

सदैव प्रसन्न रहिए - जो प्राप्त है पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

02 Nov, 01:43


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! व्यवस्था !!
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जंगल में शेर ने एक फैक्ट्री डाली... उसमें एकमात्र काम करने वाली चींटियाँ थी जो समय से आती जाती थीं और फैक्ट्री का सारा काम करती थी।

शेर का व्यसाय बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रहा था।

एक दिन शेर ने सोचा कि ये चींटियां इतना सुंदर काम कर रही है, अगर इसको किसी विशेषज्ञ के निगरानी में रख दूँ तो और बेहतर काम कर सकती है।

ये ख्याल मन में आते ही शेर ने एक मधुमक्खी को मैनेजर नियुक्त कर दिया।

मधुमक्खी को कार्य का बहुत अनुभव था और वह रिपोर्ट्स लिखने में भी बहुत होशियार थी।

मधुमक्खी ने शेर से कहा कि सबसे पहले हमें चींटियों का काम करने का समय सारणी बनाना होगा। फिर उसके काम का सारा रिकार्ड अच्छी तरह रखने के लिए मुझे एक अलग से सेक्रेटरी चाहिए होगा।

शेर ने खरगोश को सेक्रेटरी के रूप में नियुक्त कर दिया।

शेर को मधुमक्खी का कार्य पसंद आया। उसने कहा कि चींटियों के अब तक पूरे हुए सारे कार्यों की रिपोर्ट दो और जो प्रगति हुई है उसको एक सुंदर ग्राफ बनाकर निर्देशित करो।

मधुमक्खी ने कहा ठीक है, मगर मुझे इसके लिए कंप्यूटर, लेज़र प्रिंटर और प्रोजेक्टर चाहिए होगा। इस सबके लिए शेर ने एक कंप्यूटर डिपार्टमेंट बना दिया और बिल्ली को वहां का सर्वेसर्वा नियुक्त कर दिया।

अब चींटी अपना काम करने के बजाय सिर्फ कागज़ी रिपोर्ट बनाने में ध्यान देने लगी, जिससे उसका काम पिछड़ता गया और अंततः प्रोडक्शन कम हो गया।

शेर ने सोचा कि कंपनी में एक तकनीकी विशेषज्ञ रखा जाय जो मधुमक्खी की सलाहों पर अपनी राय दे सके। ऐसा सोंचकर उसने बंदर को तकनीकी विशेषज्ञ नियुक्त कर दिया।

अब चींटी को जो भी काम दिया जाता वह उसको पूरी सामर्थ्य से करने की कोशिश करती लेकिन अगर काम कभी पूरा नहीं होता तो वह विवश होकर उसको अपूर्ण छोड़कर घर चली जाती।

शेर को लगातार नुकसान होने लगा तो वह बहुत बेचैन हो उठा। कोई उपाय न देख मजबूरी में उसने उल्लू को नुकसान का कारण पता लगाने के लिए नियुक्त कर दिया।

तीन महीने बाद उल्लू ने शेर को अपनी विस्तृत व बेहद गोपनीय रिपोर्ट सौंप दी; जिसमें उसने बताया कि फैक्ट्री में काम करने वालों की संख्या ज्यादा है औऱ कंपनी के घाटे को कम करने के लिए कर्मचारियों को सस्पेंड, नोटिस, बर्खास्त करना होगा...

शिक्षा:-
अब आप गंभीरता से सोचिए; किसको सस्पेंड, नोटिस, बर्खास्त किया जाएगा..??

चींटियों को... क्योंकि वास्तव में वही एक मात्र वर्कर थी। "यही व्यवस्था इन्सान करता है।"

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है, उसके पास समस्त है।।

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

01 Nov, 07:46


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! किसान और नाग !!
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एक गरीब ब्राह्मण अपने खेत में बहुत मेहनत करता था। एक दिन वह थककर एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था। तभी उसे एक बिल के अंदर से एक नाग निकलता दिखाई दिया।

ब्राह्मण ने सोचा, “मुझे इस नाग की रोज पूजा करनी चाहिए। इसकी कृपा से शायद मेरे खेतों में अच्छी फसल होने लगे।”

उस शाम उसने उस नाग को दूध अर्पित किया और कहा, “खेतों के रक्षक, मैं आपको यह दूध अर्पित कर रहा हूं। कृपया आप मुझ पर अपनी कृपा रखें।”

अगली सुबह जब ब्राह्मण आया तो उसने दूध के कटोरे में एक सोने का सिक्का पाया। ब्राह्मण रोज नाग को दूध चढ़ाता था और नाग कटोरे में एक सोने का सिक्का छोड़ जाता।

जल्द ही वह ब्राह्मण अमीर हो गया। एक दिन ब्राह्मण को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। उसने अपने बेटे से नाग को दूध अर्पित करने को कहा।

लड़के ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। अगले दिन जब बेटा बिल के पास गया तो उसे सोने का सिक्का मिला।

लड़के ने सोचा, “इस बिल के अंदर जरूर बहुत सारे सोने के सिक्के होंगे। क्यों ना मैं नाग को मारकर सारे सोने के सिक्के निकाल लूं।”

उस शाम को उसने सांप को लाठी से मारने की कोशिश की। नाग को गुस्सा आ गया और उसने लड़के को डंस लिया। नाग के जहर से लड़का मर गया।

ब्राह्मण जब शहर से वापस आया तो उसे सारी घटना का पता चला। उसने नाग को कोई दोष नहीं दिया।

अगली शाम वह बिल के पास गया और उसने नाग को दूध अर्पित किया।

घायल नाग ने ब्राह्मण से क्रोधित होकर बोला, “तुम अपने बेटे की मौत के बारे में इतनी जल्दी भूल गए और सोने के सिक्के की लालच में फिर यहां आ गए। मैं अब तुम्हारा दोस्त नहीं रह सकता। तुम यहां हर रोज श्रद्धा से नहीं बल्कि लालच की वजह से आते थे।”

नाग ने ब्राह्मण को एक हीरा दिया और दोबारा वहां आने से मना कर दिया।

शिक्षा:-
मित्रों, मन के गहरे घाव कभी नहीं भरते..!!

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

28 Oct, 08:06


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! समय का सदुपयोग !!
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किसी गांव में एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत ही भला था लेकिन उसमें एक दुर्गुण था वह हर काम को टाला करता था। वह मानता था कि जो कुछ होता है भाग्य से होता है।

एक दिन एक साधु उसके पास आया। उस व्यक्ति ने साधु की बहुत सेवा की। उसकी सेवा से खुश होकर साधु ने पारस पत्थर देते हुए कहा- मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिय मैं तुम्हे यह पारस पत्थर दे रहा हूं। सात दिन बाद मै इसे तुम्हारे पास से ले जाऊंगा। इस बीच तुम जितना चाहो, उतना सोना बना लेना।

उस व्यक्ति को लोहा नहीं मिल रहा था। अपने घर में लोहा तलाश किया। थोड़ा सा लोहा मिला तो उसने उसी का सोना बनाकर बाजार में बेच दिया और कुछ सामान ले आया।

अगले दिन वह लोहा खरीदने के लिए बाजार गया, तो उस समय महंगा मिल रहा था यह देख कर वह व्यक्ति घर लौट आया।

तीन दिन बाद वह फिर बाजार गया तो उसे पता चला कि इस बार और भी महंगा हो गया है। इसलिए वह लोहा बिना खरीदे ही वापस लौट गया।

उसने सोचा-एक दिन तो जरुर लोहा सस्ता होगा। जब सस्ता हो जाएगा तभी खरीदेंगे। यह सोचकर उसने लोहा खरीदा ही नहीं।

आठवें दिन साधु पारस लेने के लिए उसके पास आ गए। व्यक्ति ने कहा- मेरा तो सारा समय ऐसे ही निकल गया। अभी तो मैं कुछ भी सोना नहीं बना पाया। आप कृपया इस पत्थर को कुछ दिन और मेरे पास रहने दीजिए। लेकिन साधु राजी नहीं हुए।

साधु ने कहा-तुम्हारे जैसा आदमी जीवन में कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक पता नहीं क्या-क्या कर चुका होता। जो आदमी समय का उपयोग करना नहीं जानता, वह हमेशा दु:खी रहता है। इतना कहते हुए साधु महाराज पत्थर लेकर चले गए।

शिक्षा:-
जो व्यक्ति काम को टालता रहता है, समय का सदुपयोग नहीं करता और केवल भाग्य भरोसे रहता है वह हमेशा दुःखी रहता है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

23 Oct, 05:08


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! परिश्रम रूपी धन !!
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सुन्दरपुर गांव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे। वे सभी आलसी और निक्कमे थे। जब किसान बुढ़ा हुआ तो उसे बेटों की चिंता सताने लगी।

एक बार किसान बहुत बीमार पड़ा। मृत्यु निकट देखकर उसने चार बेटों को अपने पास बुलाया। उसने उस चारों को कहा, “मैंने बहुत-सा धन अपने खेत में गाड रखा है। तुम लोग उसे निकाल लेना।” इतना कहते-कहते किसान के प्राण निकल गए।

पिता का क्रिया-क्रम करने के बाद चारों भाइयों ने खेत की खुदाई शुरू कर दी। उन्होंने खेत का चप्पा-चप्पा खोद डाला, पर उन्हें कही धन नहीं मिला। उन्होंने पिता को खूब कोसा। वर्षा ऋतु आने वाली थी। किसान के बेटों ने उस खेत में धान के बीज बो दिए। वर्षा का पानी पाकर पौधे खूब बढ़े। उन पर बड़ी-बड़ी बालें लगी। उस साल खेत में धान की बहुत अच्छी फसल हुई।

चारों भाई बहुत खुश हुए। अब पिता की बात का सही अर्थ उनकी समझ में आ गया। उन्होंने खेत की खुदाई करने में जो परिश्रम किया था, उसी से उन्हें अच्छी फसल के रूप में बहुत धन मिला था।

इस प्रकार श्रम का महत्व समझने पर चारों भाई मन लगाकर खेती करने लगे।

शिक्षा:-
परिश्रम ही सच्चा धन है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

22 Oct, 06:01


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! झूठ और सच !!
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किसी गाँव में मित्र शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक बार वह अपने यजमान से एक बकरा दान में पाकर अपने घर को जा रहा था। रास्ता लम्बा और सुनसान था। थोड़ी दूर आगे जाने पर रास्ते में उसे तीन ठग मिले। ब्राह्मण के कंधे पर बकरे को देखकर तीनों ने उसे हथियाने की योजना बना ली।

तीनों अलग-अलग हो गये। सबसे पहले एक ठग ने पंडित के पास से गुजरते हुए पंडित जी से कहा पंडित जी ये कंधे पर उठाकर क्या लेके जा रहे हो। यह क्या अनर्थ कर रहे हो ब्राह्मण होकर एक कुत्ते को अपने कंधों पर उठा रखा है आपने। पंडित ने झिड़कते हुए जवाब दिया, “कुछ भी अनाप शनाप बोल रहे हो अंधे हो गये हो क्या ये बकरा है तुम्हें दिखाई नहीं देता?” इस पर ठग ने बनावटी चेहरा बनाते हुए जवाब दिया कि मेरा क्या जाता है मेरा काम आपको बताना था आगे आपकी मर्ज़ी। अगर आपको कुत्ता ही अपने कंधों पर लेके जाना है तो मुझे क्या? अपना काम आप जानो, यह कहकर वह निकल गया।

थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। उसने ब्राह्मण से कहा, “पंडित जी क्या आप नहीं जानते उच्च कुल के लोगों को अपने कंधों पर कुता नहीं लादना चाहिए।” पंडित ने उसे भी झिड़का और आगे बढ़ गया।

इस पर थोड़ी दूर और आगे जाने के बाद पंडित से तीसरा ठग मिला और उसने पंडित से कुत्ते को पीठ पर लादे जाने का कारण पूछा तो पंडित के मन में आया कि हो न हो मेरी आंखें धोखा खा रही है। इतने लोग झूठ नहीं बोल सकते, लगता है कि ये कुत्ता ही है और उसने रास्ते में थोडा आगे जाकर बकरे को अपने कंधे से उतार दिया और घर को चला गया।

तीनों ठगों ने बकरे को मारकर खूब दावत उडाई।

शिक्षा:-
इसलिए कहा गया है बार-बार झूठ को भी मेजोरिटी में बोलने पर वह सच जैसा जान पड़ता है और लोग धोखे का शिकार हो जाते हैं।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

21 Oct, 07:57


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

🌷राजा का स्वप्न और शब्दों की शक्ति🌷

एक बार की बात है, एक राजा ने रात में एक विचित्र स्वप्न देखा। उसने देखा कि उसके सारे दाँत टूट गए हैं, बस सामने का एक बड़ा दाँत बचा हुआ है। सुबह होते ही राजा चिंतित हो उठा और अपने दरबार में जाकर स्वप्न का फल जानने की इच्छा जताई। राजा के मंत्रियों ने सुझाव दिया कि राज्य के स्वप्न विशेषज्ञों को बुलाया जाए और स्वप्न का फलादेश पूछा जाए। राज्यभर में घोषणा की गई कि जो भी राजा के स्वप्न का सही फल बताएगा, उसे उचित इनाम दिया जाएगा। कई विद्वान दरबार में आए, लेकिन कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर सका।
एक दिन काशी से विद्या प्राप्त एक विद्वान दरबार में आया और राजा से कहा, "महाराज, मैं आपके स्वप्न का सही फल बता सकता हूँ।"
राजा ने उत्सुकता से उसे अपना स्वप्न सुनाया। विद्वान ने गहरी सोच के बाद कहा, "महाराज, आपका स्वप्न बहुत अशुभ है। इसके फलस्वरूप आपके परिवार के सभी सदस्य आपके सामने ही मर जाएंगे और अंत में आपकी मृत्यु होगी।"
राजा यह सुनकर क्रोधित हो गया और विद्वान को तुरंत जेल में डालने का आदेश दिया।
अगले दिन एक साधारण व्यक्ति दरबार में आया और राजा से कहा, "महाराज, कृपया मुझे अपना स्वप्न बताइए, मैं उसका फल जानने की कोशिश करूंगा।"
राजा ने पुनः अपना स्वप्न सुनाया।
व्यक्ति ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा, "महाराज, यह स्वप्न बहुत शुभ है। इसका अर्थ है कि हम सभी प्रजा जन पर ईश्वर की विशेष कृपा है कि आप जैसे धर्मात्मा, पुण्यात्मा और प्रजापालक राजा को दीर्घायु (लंबी आयु) दी हैं। राजन आपके परिवार में आपकी आयु सबसे लंबी होगी। इस राज्य का यह सौभाग्य है कि आप कई वर्षो तक राज्य करेगें।"
राजा इस फलादेश को सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ और उस साधारण व्यक्ति को विशेष सम्मान के साथ बहुत सारा धन-दौलत इनाम में दिया।
यद्यपि दोनों ही व्यक्तियों ने स्वप्न का एक ही फलादेश दिया था, लेकिन पहले व्यक्ति को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया, जबकि दूसरे को सम्मानित किया गया। *क्यों?*
क्योंकि पहले व्यक्ति ने, भले ही वह विद्वान था, अपने शब्दों का चयन ठीक से नहीं किया और अपने उत्तर में कठोर और अशुभ शब्दों का प्रयोग किया।
वहीं दूसरा व्यक्ति, जो साधारण था, उसने अपने शब्दों का चयन बहुत सोच-समझकर किया और अपने उत्तर में सकारात्मक और सजीव भाषा का प्रयोग किया।

👉शिक्षा

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमारी बोलचाल,बातचीत और व्यवहार में शब्दों का विशेष महत्व होता है। सही और सम्मानजनक शब्दों के प्रयोग से हमारे संवाद में मिठास आती है,जिससे दुश्मनों के दिलों में भी प्यार जगाया जा सकता है। वहीं गलत और कठोर शब्दों का प्रयोग हमारे अपनों के दिलों में भी नफरत और दूरी पैदा कर सकता है। इसलिए हमेशा सोच-समझकर और सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करें।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

20 Oct, 02:03


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! संयम और साहस !!
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बहुत दिन पहले किसी गांव में एक नाई रहता था। वह बहुत आलसी था। सारा दिन वह आईने के सामने बैठा टूटे कंघे से बाल संवारते हुए गंवा देता। उसकी बूढ़ी मां उसके आलसीपन के लिए दिन-रात फटकारती थी, लेकिन उसके कानों पर जूं भी नहीं रेंगती थी। आखिरकार एक दिन मां ने गुस्से में उसकी पिटाई कर दी। जवान बेटे ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया और घर छोड़ कर चला गया। उसने कसम खाई कि जब तक कुछ धन जमा नहीं कर लेगा, वह घर नहीं लौटेगा। चलते-चलते वह जंगल पहुंचा। उसे कोई काम तो आता नहीं था इसलिए अब वो भगवान को मनाने बैठ गया। अभी वह प्रार्थना के लिए बैठता, उससे पहले ही उसका एक ब्रम्हराक्षस से सामना हो गया। ब्रम्हराक्षस नाई को देखकर खुश हुआ और खुशी मनाने के लिए लिए नाचने लगा। यह देख नाई के होश उड़ गए, पर अपने डर को जाहिर नहीं होने दिया। उसने साहस बटोरा और राक्षस के साथ नाचने लगा।

कुछ देर बाद उसने राक्षस से पूछा- तुम क्यों नाच रहे हो? तुम्हें किस बात की खुशी है? राक्षस हंसते हुए बोला, मैं तुम्हारे सवाल का इंताज़ार कर रहा था। तुम तो निरे उल्लू हो। तुम समझ नहीं पाओगे। मैं इसलिए नाच रहा हूं कि मुझे तुम्हारा नरम-नरम मांस खाने को मिलेगा। वैसे, तुम क्यों नाच रहे हो? नाई ने ठहाका लगाते हुए कहा, मेरे पास इससे भी बढ़िया कारण है। हमारा राजकुमार सख्त बीमार है। चिकित्सकों ने उसे एक सौ एक ब्रम्हराक्षसों के हृदय का रक्त पीने का उपचार बताया है। महाराज ने मुनादी करवाई है जो कोई यह दवा लाकर देगा, उसे वे अपना आधा राज्य देंगे और राजकुमारी का विवाह भी उससे कर देंगे। मैंने सौ ब्रम्हराक्षस तो पकड़ लिए हैं। अब तुम भी मेरी गिरफ्त में हो। यह कहते हुए उसने जेब से छोटा आईना उसकी आंखों के सामने किया। आतंकित राक्षस ने आईने में अपनी शक्ल देखी। चांदनी रात में उसे अपना प्रतिबिम्ब साफ नज़र आया। उसे लगा कि वह वाकई उसकी मुट्ठी में है। थर-थर कांपते हुए उसने नाई से विनती की कि उसे छोड़ दे, पर नाई राज़ी नहीं हुआ। तब राक्षस ने उसे सात रियासतों के खज़ाने के बराबर धन देने का लालच दिया। पर इस भेंट में नाई ने दिलचस्पी न लेने का नाटक करते हुए कहा- पर जिस धन का तुम वादा कर रहे हो, वह है कहां और इतनी रात में उस धन को और मुझे घर कौन पहुंचाएगा?

राक्षस ने कहा, खज़ाना तुम्हारे पीछे वाले पेड़ के नीचे गड़ा है। पहले तुम इसे अपनी आंखों से देख लो, फिर मैं तुम्हें और इस खज़ाने को पलक झपकाते ही तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। राक्षसों की शक्तियां तुमसे क्या छुपी है, कहने के साथ ही उसने पेड़ को जड़ समेत उखाड़ दिया और हीरे-मोतियों से भरे सोने के सात कलश बाहर निकाले। खज़ाने की चमक से नाई की आंखें चौंधिया गईं, पर अपनी भावनाओं को छुपाते हुए उसने रौब से उसे आदेश कि वह उसे और खज़ाने को उसके घर पहुंचा दे। राक्षस ने आदेश का पालन किया। राक्षस ने अपनी मुक्ति की याचना की, पर नाई उसकी सेवाओं से हाथ नहीं धोना चाहता था। इसलिए अगला काम फसल काटने का दे दिया। बेचारे राक्षस को यकीन था कि वह नाई के शिकंजे में है। सो उसे फसल तो काटनी ही पड़ेगी।

वह फसल काट ही रहा था कि वहां से दूसरा ब्रम्हराक्षस गुजरा। अपने दोस्त को इस हालत में देख वह पूछ बैठा। ब्रम्हराक्षस ने उसे आपबीती बताई और कहा कि, इसके अलावा कोई चारा नहीं है। दूसरे ने हंसते हुए कहा, पागल हो गए हो? राक्षस आदमी से कहीं शक्तिशाली और श्रेष्ठ होते हैं। तुम उस आदमी का घर मुझे दिखा सकते हो? हाँ, दिखा दूंगा, पर दूर से। धान की कटाई पूरी किए बिना उसके पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं है। यह कहकर उसने उसे नाई का घर दूर से दिखा दिया।

वहीं अपनी कामयाबी के लिए नाई ने भोज का आयोजन किया। और एक बड़ी मछली भी लेकर आया। लेकिन एक बिल्ली टूटी खिड़की से रसोई में आकर ज्यादा मछली खा गई। गुस्से में नाई की बीवी बिल्ली को मारने के लिए झपटी, पर बिल्ली भाग गई। उसने सोचा, बिल्ली इसी रास्ते से वापस आएगी। सो वह मछली काटने की छुरी थामे खिड़की के पास खड़ी हो गई। उधर दूसरा राक्षस दबे पांव नाई के घर की ओर बढ़ा। उसी टूटी हुई खिड़की से वह घुसा। बिल्ली की ताक में खड़ी नाइन ने तेज़ी से चाकू का वार किया। निशाना सही नहीं बैठा, पर राक्षस की लम्बी नाक आगे से कट गई। दर्द से कराहते हुए वह भाग खड़ा हुआ। और शर्म के मारे अपने दोस्त के पास वो गया भी नहीं।

पहले राक्षस ने धीरज के साथ पूरी फसल काटी और अपनी मुक्ति के लिए नाई के पास गया। धूर्त नाई ने इस बार उल्टा शीशा दिखाया। राक्षस ने बड़े गौर से देखा। उसमें अपनी छवि न पाकर उसने राहत की सांस ली और नाचता-गुनगुनाता चला गया।

शिक्षा:-
धैर्य और संयम से बड़ी मुसीबतें भी टल जाती हैं। साहस से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है..!!

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

20 Oct, 02:03


सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

19 Oct, 09:15


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! सोच बदलो, जिंदगी बदल जायेगी !!
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एक गाँव में सूखा पड़ने की वजह से गाँव के सभी लोग बहुत परेशान थे, बच्चे भूखे-प्यासे मर रहे थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाय। उसी गाँव में एक विद्वान महात्मा रहते थे। गाँव वालों ने निर्णय लिया उनके पास जाकर इस समस्या का समाधान माँगने के लिये, सब लोग महात्मा के पास गये और उन्हें अपनी सारी परेशानी विस्तार से बतायी, महात्मा ने कहा कि आप सब मुझे एक हफ्ते का समय दीजिये मैं आपको कुछ समाधान ढूँढ कर बताता हूँ।

गाँव वालों ने कहा ठीक है और महात्मा के पास से चले गये। एक हफ्ते बीत गये लेकिन साधू महात्मा कोई भी हल ढूँढ न सके और उन्होंने गाँव वालों से कहा कि अब तो आप सबकी मदद केवल ऊपर बैठा वो भगवान ही कर सकता है। अब सब भगवान की पूजा करने लगे भगवान को खुश करने के लिये, और भगवान ने उन सबकी सुन ली और उन्होंने गाँव में अपना एक दूत भेजा। गाँव में पहुँचकर दूत ने सभी गाँव वालों से कहा कि “आज रात को अगर तुम सब एक-एक लोटा दूध गाँव के पास वाले उस कुएँ में बिना देखे डालोगे तो कल से तुम्हारे गाँव में घनघोर बारिश होगी और तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जायेगी।” इतना कहकर वो दूत वहां से चला गया।

गाँव वाले बहुत खुश हुए और सब लोग उस कुएं में दूध डालने के लिये तैयार हो गये लेकिन उसी गाँव में एक कंजूस इंसान रहता था, उसने सोचा कि सब लोग तो दूध डालेंगे ही... अगर मैं दूध की जगह एक लोटा पानी डाल देता हूँ तो किसको पता चलने वाला है। रात को कुएं में दूध डालने के बाद सारे गाँव वाले सुबह उठकर बारिश के होने का इंतजार करने लगे, लेकिन मौसम वैसा का वैसा ही दिख रहा था और बारिश के होने की थोड़ी भी संभावना नहीं दिख रही थी।

देर तक बारिश का इंतजार करने के बाद सब लोग उस कुएं के पास गये और जब उस कुएं में देखा तो कुआं पानी से भरा हुआ था और उस कुएं में दूध का एक बूंद भी नहीं था। सब लोग एक दूसरे की तरफ देखने लगे और समझ गये कि बारिश अभी तक क्यों नहीं हुई। और वो इसलिये क्योंकि उस कंजूस व्यक्ति की तरह सारे गाँव वालों ने भी यही सोचा था कि सब लोग तो दूध डालेंगे ही, मेरे एक लोटा पानी डाल देने से क्या फर्क पड़ने वाला है। और इसी चक्कर में किसी ने भी कुएं में दूध का एक बूँद भी नहीं डाला और कुएं को पानी से भर दिया।

शिक्षा:-
इसी तरह की गलती आज कल हम अपने real life में भी करते रहते हैं, हम सब सोचते हैं कि हमारे एक के कुछ करने से क्या होने वाला है लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि “बूंद-बूंद से सागर बनता है।”

अगर आप अपने देश, समाज, घर में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो खुद को बदलिये और बेहतर बनाइए, बाकी सब अपने आप हो जायेगा।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

15 Oct, 02:43


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! जो चाहोगे सो पाओगे !!
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एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था, “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे। एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।” और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया।

उसने साधु से पूछा- “महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैं चाहता हूँ?”

साधु उसकी बात को सुनकर बोला- “हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहता है मैं उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हें मेरी बात माननी होगी। लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हें आखिर चाहिये क्या?”

युवक बोला- “मेरी एक ही ख्वाहिश है मैं हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ।”

साधू बोला, “कोई बात नहीं, मैं तुम्हें एक हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे!”

और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा, “पुत्र, मैं तुम्हें दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं, लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो।”

युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसका दूसरी हथेली, पकड़ते हुए बोला, “पुत्र, इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है, लोग इसे 'धैर्य' कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलें तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना, याद रखन जिसके पास यह मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है।”

युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा। और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है।

शिक्षा:-
मित्रों, ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

07 Oct, 09:01


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! लोहे का तराजू !!
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एक बार एक व्यापारी को व्यापार के सिलसिले में परदेस जाना था और उसके लिए पैसों की जरूरत थी। वह एक साहूकार के पास गया और उससे पैसे उधार लिए। व्यापारी ने अपनी लोहे की तराजू साहूकार के पास गिरवी रखवा दी।

अपनी यात्रा से वापस आने के बाद, व्यापारी साहूकार के घर गया। उसने उसके पैसे वापस किए और उससे अपनी तराजू मांगा। लालची साहूकार बोला, “मेरी दुकान में बहुत सारे चूहे हैं। चूहों ने तुम्हारी तराजू कुतर दिया।”

व्यापारी को पता था कि साहूकार झूठ बोल रहा है पर उसने साहूकार से कोई बहस नहीं किया। उसने कहा, “कोई बात नहीं। मैं तुम्हारे लिए रेशम के कुछ कपड़े की थान लाया हूं। क्या तुम अपने बेटे को मेरे साथ भेज दोगे? वह कपड़ों के थान को लेकर वापस आ जाएगा।” सौदागर की आंखें चमक उठी और उसने अपने बेटे को व्यापारी के साथ भेज दिया।

व्यापारी साहूकार के बेटे को एक गुफा में ले गया और बोला, “मैंने अपना सामान इस गुफा में रखा हुआ है। अंदर जाकर दो थान निकाल लो।” जैसे ही लड़का अंदर गया, व्यापारी ने गुफा का दरवाजा बंद कर दिया। व्यापारी अकेला साहूकार के पास गया। परेशान साहूकार ने पूछा, “मेरा बेटा कहां है?”

व्यापारी ने कहा, “मुझे माफ करना। एक चील तुम्हारे बेटे को अपने पंजे में दबाकर उड़ गया।”

साहूकार गुस्से में बोला, “ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तुम्हारी शिकायत गांव के बड़े बुजुर्ग से करूंगा।”

जब बुजुर्गों ने व्यापारी से लड़के को वापस करने को कहा तो व्यापारी बोला, “जब लोहे के तराजू को चूहा खा सकता है, तो लड़के को चील कैसे नहीं उठा सकता?”

उन लोगों ने व्यापारी से पूरा मामला बताने को कहा। व्यापारी की बात सुनकर बुजुर्गों ने साहूकार को तराजू वापस देने को कहा।

शिक्षा:-
मित्रों, जैसा बीज बोओगे, वैसी फसल काटोगे।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

06 Oct, 07:04


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! चुहिया का स्वयंवर !!
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गंगा नदी के तट पर कुछ तपस्वियों का आश्रम था जहाँ याज्ञवल्क्य नाम के ऋषि रहते थे. एक दिन वो नदी के किनारे आचमन कर रहे थे. उसी वक़्त आकाश में एक बाज अपने पंजे में एक चुहिया को दबाये जा रहा था जो उसकी पकड़ से छूटकर ऋषि की पानी से भरी हथेली में आ गिरी. ऋषि ने उसे एक पीपल के पत्ते पर रखा और दोबारा नदी में स्नान किया. चुहिया अभी मरी नहीं थी इसलिए ऋषि ने अपने तप से उसे एक कन्या बना दिया और आश्रम में ले आये. अपनी पत्नी से कहा इसे अपनी बेटी ही समझकर पालना. दोनों निसंतान थे इसलिए उनकी पत्‍नी ने कन्या का पालन बड़े प्रेम से किया. कन्या उनके आश्रम में पलते हुए बारह साल की हो गयी तो उनकी पत्‍नी ने ऋषि से उसके विवाह के लिए कहा.

ऋषि ने कहा में अभी सूर्य को बुलाता हूँ. यदि यह हाँ कहे तो उसके साथ इसका विवाह कर देंगे ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह अग्नि जैसा गरम है. कोई इससे अच्छा वर बुलाइये.”

तब सूर्य ने कहा बादल मुझ से अच्छे हैं, जो मुझे ढक लेते हैं. बादलों को बुलाकर ऋषि ने कन्या से पूछा तो उसने कहा “यह बहुत काले हैं कोई और वर ढूँढिए.”

फिर बादलों ने कहा “वायु हमसे भी वेगवती है जो हमें उड़ाकर ले जाती है."

तब ऋषि ने वायु को बुलाया और कन्या की राय माँगी तो उसने कहा “पिताजी यह तो बड़ी चंचल है. किसी और वर को बुलाइए."

इस पर वायु बोली “पर्वत मुझसे अच्छा है, जो तेज़ हवाओं में भी स्थिर रहता है.”

अब ऋषि ने पर्वत को बुलाया और कन्या से पूछा. कन्या ने उत्तर दिया “पिताजी, ये बड़ा कठोर और गंभीर है, कोई और अच्छा वर ढूँढिए न.”

इस पर पर्वत ने कहा “चूहा मुझसे अच्छा है, जो मुझमें छेद कर अपना बिल बना लेता है.”

ऋषि ने तब चूहे को बुलाया और बेटी से कहा “पुत्री यह मूषकराज क्या तुम्हें स्वीकार हैं?”

कन्या ने चूहे को देखा और देखते ही वो उसे बेहद पसंद आ गया. उस पर मोहित होते हुए वो बोली “आप मुझे चुहिया बनाकर इन मूषकराज को सौंप दीजिये.”

ऋषि ने तथास्तु कह कर उसे फिर चुहिया बना दिया और मूषकराज से उसका स्वयंवर करा दिया.

शिक्षा:-
जन्म से जिसका जैसा स्वभाव होता है वह कभी नहीं बदल सकता.

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

06 Oct, 07:03


It's True
एक बार अवश्य सुनें केवल सुने नहीं कम से कम 10 लोगों को भेजें भी

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

05 Oct, 05:01


Telegram - हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

अच्छाई पलट-पलट कर आती रहती है...

ब्रिटेन के स्कॉटलैंड में फ्लेमिंग नाम का एक गरीब किसान था। एक दिन वह अपने खेत पर काम कर रहा था। अचानक पास में से किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी । किसान ने अपना साजो सामान व औजार फेंका और तेजी से आवाज की तरफ लपका।

आवाज की दिशा में जाने पर उसने देखा कि एक बच्चा दलदल में डूब रहा था । वह बालक कमर तक कीचड़ में फंसा हुआ बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा था। वह डर के मारे बुरी तरह कांप पर रहा था और चिल्ला रहा था।

किसान ने आनन-फानन में लंबी टहनी ढूंढी। अपनी जान पर खेलकर उस टहनी के सहारे बच्चे को बाहर निकाला।अगले दिन उस किसान की छोटी सी झोपड़ी के सामने एक शानदार गाड़ी आकर खड़ी हुई।उसमें से कीमती वस्त्र पहने हुए एक सज्जन उतरे

उन्होंने किसान को अपना परिचय देते हुए कहा- " मैं उस बालक का पिता हूं और मेरा नाम राँडॉल्फ चर्चिल है।"

फिर उस अमीर राँडाल्फ चर्चिल ने कहा कि वह इस एहसान का बदला चुकाने आए हैं ।

फ्लेमिंग नामक उस किसान ने उन सज्जन के ऑफर को ठुकरा दिया ।
उसने कहा, "मैंने जो कुछ किया उसके बदले में कोई पैसा नहीं लूंगा।
किसी को बचाना मेरा कर्तव्य है, मानवता है , इंसानियत है और उस मानवता इंसानियत का कोई मोल नहीं होता ।"

इसी बीच फ्लेमिंग का बेटा झोपड़ी के दरवाजे पर आया।
उस अमीर सज्जन की नजर अचानक उस पर गई तो उसे एक विचार सूझा ।
उसने पूछा - "क्या यह आपका बेटा है ?"

किसान ने गर्व से कहा- "हां !"

उस व्यक्ति ने अब नए सिरे से बात शुरू करते हुए किसान से कहा- "ठीक है अगर आपको मेरी कीमत मंजूर नहीं है तो ऐसा करते हैं कि आपके बेटे की शिक्षा का भार मैं अपने ऊपर लेता हूं । मैं उसे उसी स्तर की शिक्षा दिलवाने की व्यवस्था करूंगा जो अपने बेटे को दिलवा रहा हूं।फिर आपका बेटा आगे चलकर एक ऐसा इंसान बनेगा , जिस पर हम दोनों गर्व महसूस करेंगे।"

किसान ने सोचा "मैं तो अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिला पाऊंगा नहीं और ना ही सारी सुविधाएं जुटा पाऊंगा, जिससे कि यह बड़ा आदमी बन सके ।अतः इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता हूँ।"

बच्चे के भविष्य की खातिर फ्लेमिंग तैयार हो गया ।अब फ्लेमिंग के बेटे को सर्वश्रेष्ठ स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।
आगे बढ़ते हुए उसने लंदन के प्रतिष्ठित सेंट मेरीज मेडिकल स्कूल से स्नातक डिग्री हासिल की।
फिर किसान का यही बेटा पूरी दुनिया में "पेनिसिलिन" का आविष्कारक महान वैज्ञानिक सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग के नाम से विख्यात हुआ।

यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती! कुछ वर्षों बाद, उस अमीर के बेटे को निमोनिया हो गया ।
और उसकी जान पेनिसिलीन के इंजेक्शन से ही बची।
उस अमीर राँडाल्फ चर्चिल के बेटे का नाम था- विंस्टन चर्चिल , जो दो बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे !
हैं न आश्चर्यजनक संजोग।

इसलिए ही कहते हैं कि व्यक्ति को हमेशा अच्छे काम करते रहना चाहिए । क्योंकि आपका किया हुआ काम आखिरकार लौटकर आपके ही पास आता है ! यानी अच्छाई पलट - पलट कर आती रहती है!यकीन मानिए मानवता की दिशा में उठाया गया प्रत्येक कदम आपकी स्वयं की चिंताओं को कम करने में मील का पत्थर साबित होगा ।

कुँए में उतरने के बाद
बाल्टी झुकती है,
लेकिन झुकने के बाद,
भर कर ही बाहर निकलती है।

यहीं जिन्दगी जीने का सार हैं।

जीवन भी कुछ ऐसा ही है,
जो झुकता है वो अवश्य,
कुछ न कुछ लेकर ही उठता है lll

हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

05 Oct, 04:59


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! हंस और दुष्टों की संगति !!
~~~~~

पुराने समय की बात है। एक राज्य में एक राजा था। किसी कारण से वह अन्य गाँव में जाना चाहता था। एक दिन वह धनुष-बाण सहित पैदल ही चल पड़ा। चलते-चलते राजा थक गया। अत: वह बीच रास्ते में ही एक विशाल पेड़ के नीचे बैठ गया। राजा अपने धनुष-बाण बगल में रखकर, चद्दर ओढ़कर सो गया। थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद लग गई। उसी पेड़ की खाली डाली पर एक कौआ बैठा था। उसने नीचे सोए हुए राजा पर बीट कर दी। बीट से राजा की चादर गंदी हो गई थी। राजा खर्राटे ले रहा था।

उसे पता नहीं चला कि उसकी चादर खराब हो गई है। कुछ समय के पश्चात कौआ वहाँ से उड़कर चला गया और थोड़ी ही देर में एक हंस उड़ता हुआ आया। हंस उसी डाली पर और उसी जगह पर बैठा, जहाँ पहले वह कौआ बैठा हुआ था। अब अचानक राजा की नींद खुली। उठते ही जब उसने अपनी चादर देखी तो वह बीट से गंदी हो चुकी थी। राजा स्वभाव से बड़ा क्रोधी था। उसकी नजर ऊपर वाली डाली पर गई, जहाँ हंस बैठा हुआ था। राजा ने समझा कि यह सब इसी हंस की ओछी हरकत है। इसी ने मेरी चादर गंदी की है।

क्रोधी राजा ने आव देखा न ताव, ऊपर बैठे हंस को अपना तीखा बाण चलाकर, उसे घायल कर दिया। हंस बेचारा घायल होकर नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा। वह तड़पते हुए राजा से कहने लगा-
'अहं काको हतो राजन्!
हंसाऽहंनिर्मला जल:।
दुष्ट स्थान प्रभावेन,
जातो जन्म निरर्थक।।'

अर्थात् हे राजन्! मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया, तुमने मुझे अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया है? मैं तो निर्मल जल में रहने वाला प्राणी हूँ? ईश्वर की कैसी लीला है। सिर्फ एक बार कौए जैसे दुष्ट प्राणी की जगह पर बैठने मात्र से ही व्यर्थ में मेरे प्राण चले जा रहे हैं, फिर दुष्टों के साथ सदा रहने वालों का क्या हाल होता होगा? हंस ने प्राण छोड़ने से पूर्व कहा - 'हे राजन्! दुष्टों की संगति नहीं करना। क्योंकि उनकी संगति का फल भी ऐसा ही होता है।' राजा को अपने किए अपराध का बोध हो गया। वह अब पश्चाताप करने लगा।

शिक्षा:-
उपर्युक्त प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि 'हमें दुष्टों की संगति में रहने से बचना चाहिये', क्योंकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों की संगति का फल भी उनके जैसा ही होता हैं। साथ ही, हमें किसी भी काम को करने से पहले अच्छे से सोच-समझ लेना चाहिए। बिना सोचे-विचारे कुछ भी काम नहीं करना चाहिए..!!

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

01 Oct, 11:47


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! शेर और व्यक्ति !!
~~~

एक गाँव था, उस गाँव के रास्ते में बहुत घना जंगल था. जंगल घना होने के कारण तरह तरह के पशु-पक्षी जंगल में रहते थे. एक शेर भी रहता था. शेर कभी-कभी गाँव में घुसकर काफी तहलका मचाता था. इसी वजह से गाँव वाले जंगल के रास्ते में एक पिंजड़ा रख दिए थे. रात हुई सभी अपने-अपने घरों के अन्दर हो गये. गाँव शांत हो गयी. तभी शेर उसी रास्ते से गाँव की ओर जा रहा था. रास्ते में लगा पिंजड़ा में उसका पैर फंसा और भारी शरीर होने के कारण शेर पिंजड़े में बंद हो गया. अब वह उस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका था. काफी कोशिश करने के बावजूद भी वह वहाँ से नहीं निकल पाया. पूरी रात शेर पिंजड़े में ही कैद रहा.

सुबह हुई कुछ समय बाद उसी रास्ते से गाँव में एक व्यक्ति जा रहा था. तभी शेर बोला - "ओ भाई! ओ भाई!" वह व्यक्ति शेर को पिंजड़े में देखकर डर गया. शेर को काफी तेज़ की भूख लगी थी.

शेर ने उस व्यक्ति से कहा - "मेरी सहायता करो. मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी है. कृपया कुछ पानी पिला दो."

व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो, अगर मुझे ही अपना शिकार बना लिए तो!" शेर बोला - "नही भाई! मैं ऐसा नहीं करूंगा."

शेर की लाचारी देखकर उस व्यक्ति को शेर पर दया आ गयी और वह बगल के तालाब से पानी ले आया और शेर को पानी पिलाया. शेर पानी पी लिया उसके बाद फिर से उस व्यक्ति को बोला - "प्यास तो बुझ गयी अब पूरी रात से भूखा हूँ कुछ खाने को दे दो न." उस व्यक्ति ने शेर के भोजन की व्यवस्था में जुट गया और कहीं कहीं से उसका भोजन ले आया. शेर भोजन भी किया.

शेर ने फिर से आवाज लगायी - "ओ भले इन्सान! मैं इस पिंजड़े में बुरी तरह से फंस चुका हूँ. कृपा करके इस पिंजड़े से मुझे आजाद करा दो." वह व्यक्ति बोला - "नहीं! नहीं! मैं तुम्हारी और सहायता नहीं कर सकता. तुम एक मांसाहारी जीव हो. पिंजड़े के बाहर आते ही तु अपनी रूप में आ जाएगा.

शेर बोला - "मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. तुम्हारे परिवार को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा."

वह व्यक्ति उसकी बात मान कर पिंजड़ा का दरवाजा खोल दिया और शेर बाहर आ गया. शेर बहार आते ही पहले चैन की साँस ली और बोला मेरी अभी तक भूख मिटी नहीं है और भोजन भी सामने है. सो भोजन तलाशने का भी जरुरत नही है. अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ.

इतना सुन वह व्यक्ति डर से काँपने लगा और बोला - "तुम बेईमानी नहीं कर सकते. तुमने पहले ही बोला था की मैं तुम्हें नहीं खाऊंगा और तुम्हारे परिवार को भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा, तो अब ऐसा क्यों कर रहे हो."

शेर बोला - मैं प्राणी ही उसी तरह का हूँ. मुझे बहुत जोर से भूख लगी है तो अब कुछ नहीं. संयोग से ये सब घटना पास के एक पेड़ पर बैठे बन्दर देख रहा था. शेर और उस व्यक्ति में बहस चल ही रही थी तभी बीच में से बन्दर बोल पड़ा - "क्या बात है! क्या बहस हो रही है? उस व्यक्ति ने बन्दर को सारी बात बताई। बन्दर बोला - अच्छा! तो ये बात है. वैसे मुझे एक बात समझ नहीं आई इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजड़े में कैसे आ सकता है? नहीं ! नहीं ! ये हो ही नहीं सकता!"

शेर को अपनी बेइज्जती होते देख रहा नहीं गया और शेर बोला - "ये पंडित ठीक कह रहा है, मैं इस पिंजड़े में पूरी रात कैद था." बन्दर बोला - "मैं कैसे यकीन करूं?"

शेर बोला - "मैं अभी दिखा देता हूँ, इस पिंजड़े में फिर से जा कर." और इतना कह शेर फिर से उस पिंजड़े में चला जाता है और पिंजड़ा का दरवाजा बंद हो जाता है और उसके बाद शेर बोला - "देखो मैं इसी तरह पिंजड़े में था."

बन्दर उस व्यक्ति से बोला - "अब देख क्या रहे हो तुरंत अपनी जान बचा कर भाग लो!" और पंडित वहाँ से भाग जाता है. शेर फिर से पिंजड़े में कैद हो जाता है.

शिक्षा:-
दोस्तों! कभी भी किसी की मदद करें तो सोच समझ कर करें. विश्वास उसी पर करें जो सचमुच में विश्वास करने लायक हो. बहुत से लोग सच बोलने का दिखावा करते हैं और सामने वाला व्यक्ति उन पर पहली बार भरोसा कर लेते हैं. ऐसे दुष्ट लोगों से दूर रहने में ही भलाई है.
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

30 Sep, 09:07


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! बुझी मोमबत्ती !!
~~~

एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी। दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए, वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए, पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी।

परिवार पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते… बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया।

आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते, उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता… मिनी..!!

एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया।

उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हुए हैं और हाथ में मोमबत्ती ले कर चल रही हैं। तभी उन्हें मिनी भी दिखाई दी।

उसे देखते ही पिता बोले, “मिनी, मेरी प्यारी बच्ची, सभी परियों की मोमबत्तियां जल रही हैं, पर तुम्हारी बुझी क्यों हैं, तुम इसे जला क्यों नहीं लेती?”

मिनी बोली, “पापा, मैं तो बार-बार मोमबत्ती जलाती हूँ, पर आप इतना रोते हो कि आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है…”

ये सुनते ही पिता की नींद टूट गयी। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया वे समझ गए की उनके इस तरह दुखी रहने से उनकी बेटी भी खुश नहीं रह सकती और वह पुनः सामान्य जीवन की तरफ बढ़ने लगे।

शिक्षा:-
मित्रों, किसी करीबी के जाने का ग़म शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता। पर कहीं ना कहीं हमें अपने आप को मजबूत करना होता है और अपनी जिम्मेदारियों को निभाना होता है। और शायद ऐसा करना ही मरने वाले की आत्मा को शांति देता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जो हमसे प्रेम करते हैं वे हमे खुश ही देखना चाहते हैं, अपने जाने के बाद भी..!!

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

29 Sep, 09:57


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! नया नज़रिया !!
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एक बालक अब्दुल के मन में नई-नई बातों को जानने की जिज्ञासा थी। उस बालक के मोहल्ले में एक मौलवी रहते थे। एक दिन अब्दुल उनके पास गया और बोला, 'मैं कामयाब बनना चाहता हूं, कृपया बताएं कि कामयाबी का रास्ता क्या है?'

हंसते हुए मौलवी साहब बोले, 'बेटा, मैं तुम्हें कामयाबी का रास्ता बताऊंगा, पहले तुम मेरी बकरी को सामने वाले खूंटे से बांध दो, कह कर उन्होंने बकरी की रस्सी बालक को दे दी। वह बकरी किसी के काबू में नहीं आती थी।

अतः जैसे ही बालक ने रस्सी थामी कि वह छलांग लगा, हाथ से छूट गई। फिर काफी मशक्कत के बाद बालक अब्दुल ने चतुराई से काम लेते हुए तेजी से भाग कर बकरी को पैरों से पकड़ लिया। पैर पकड़े जाने पर बकरी एक कदम भी नहीं भाग पाई और अब्दुल उसे खूंटे से बांधने में कामयाब हुआ।

यह देख मौलवी साहब बोले, 'शाबाश, यही है कामयाबी का रास्ता। जड़ पकड़ने से पूरा पेड़ काबू में आ जाता है। अगर हम किसी समस्या की जड़ पकड़ लें, तो उसका हल आसानी से निकाल सकते हैं।

बालक ने इसी सूत्र को आत्मसात कर लिया और जीवन में आगे बढ़ता गया। बड़े होकर यही बालक अब्दुल गफ्फार खां के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जिन्हें सीमांत गांधी के नाम से भी जाना जाता है।

शिक्षा:-
हमें किसी भी समस्या का हल तब तक नहीं मिलता जब तक हम उसकी जड़ को नहीं पकड़ लेते। अत: हर समस्या का समाधान उसकी जड़ काबू में आने पर ही होता है।

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

28 Sep, 10:32


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

            !! खुश रहने का रहस्य !!
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बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक महात्मा रहते थे। आसपास के गाँवों के लोग अपनी समस्याओं और परेशानियों के समाधान के लिए महात्मा के पास जाते थे। और संत उनकी समस्याओं, परेशानियों को दूर करके उनका मार्गदर्शन करते थे। एक दिन एक व्यक्ति ने महात्मा से पूछा – गुरुवर, संसार में खुश रहने का रहस्य क्या है ?

महात्मा ने उससे कहा कि तुम मेरे साथ जंगल में चलो, मैं तुम्हें खुश रहने का रहस्य बताता हूँ। उसके बाद महात्मा और वह व्यक्ति जंगल की तरफ चल दिए। रास्ते में चलते हुए महात्मा ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और उस व्यक्ति को देते हुए कहा कि इसे पकड़ो और चलो। उस व्यक्ति ने वह पत्थर लिया और वह महात्मा के साथ साथ चलने लगा।

कुछ देर बाद उस व्यक्ति के हाथ में दर्द होने लगा लेकिन वह चुप रहा और चलता रहा। जब चलते चलते बहुत समय बीत गया और उस व्यक्ति से दर्द सहा नहीं गया तो उसने महात्मा से कहा कि उसे बहुत दर्द हो रहा है। महात्मा ने कहा कि इस पत्थर को नीचे रख दो। पत्थर को नीचे रखते ही उस व्यक्ति को बड़ी राहत मिली।

तब महात्मा ने उससे पूछा – जब तुमने पत्थर को अपने हाथ में उठा रखा था तब तुम्हें कैसा लग रहा था। उस व्यक्ति ने कहा – शुरू में दर्द कम था तो मेरा ध्यान आप पर ज्यादा था, पत्थर पर कम था। लेकिन जैसे जैसे दर्द बढ़ता गया मेरा ध्यान आप पर से कम होने लगा और पत्थर पर ज्यादा होने लगा और एक समय मेरा पूरा ध्यान पत्थर पर आ गया और मैं इससे अलग कुछ नहीं सोच पा रहा था।

तब महात्मा ने उससे दोबारा पूछा – जब तुमने पत्थर को नीचे रखा तब तुम्हें कैसा महसूस हुआ।

इस पर उस व्यक्ति ने कहा – पत्थर नीचे रखते ही मुझे बहुत राहत महसूस हुई और ख़ुशी भी महसूस हुई।

तब महात्मा ने कहा कि यही है खुश रहने का रहस्य! इस पर वह व्यक्ति बोला – गुरुवर, मैं कुछ समझा नहीं।

तब महात्मा ने उसे समझाते हुए कहा – जिस तरह इस पत्थर को थोड़ी देर हाथ में उठाने पर थोड़ा सा दर्द होता है, थोड़ी और ज्यादा देर उठाने पर थोड़ा और ज्यादा दर्द होता है और अगर हम इसे बहुत देर तक उठाये रखेंगे तो दर्द भी बढ़ता जायेगा। उसी तरह हम दुखों के बोझ को जितने ज्यादा समय तक उठाये रखेंगे हम उतने ही दुखी और निराश रहेंगे। यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों के बोझ को थोड़ी सी देर उठाये रखते हैं या उसे ज़िंदगी भर उठाये रहते हैं।

इसलिए अगर तुम खुश रहना चाहते हो तो अपने दुःख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और अगर संभव हो तो उसे उठाओ ही नहीं।


शिक्षा:-
यदि हमने अपने दुःख रुपी पत्थर को उठा रखा है तो शुरू शुरू में हमारा ध्यान अपने लक्ष्यों पर ज्यादा तथा दुखों पर कम होगा। लेकिन अगर हमने अपने दुःख रुपी पत्थर को लम्बे समय से उठा रखा है तो हमारा ध्यान अपने लक्ष्यों से हटकर हमारे दुखों पर आ जायेगा। और तब हम अपने दुखों के अलावा कुछ नहीं सोच पाएंगे और अपने दुखों में ही डूबकर परेशान होते रहेंगे और कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे।

इसलिए अगर आपने भी कोई दुःख रुपी पत्थर उठा रखा है तो उसे जल्दी से जल्दी नीचे रखिये मतलब अपने दुखों को, तनाव को अपने दिलों दिमाग से निकाल फेंकिए और खुश रहिए तथा लक्ष्य को प्राप्त कीजिये..!!

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

26 Sep, 05:04


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! समस्या !!
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एक राजा ने बहुत ही सुंदर ''महल'' बनावाया और महल के मुख्य द्वार पर एक ''गणित का सूत्र'' लिखवाया... और एक घोषणा की कि, इस सूत्र से यह 'द्वार खुल जाएगा, और जो भी इस ''सूत्र'' को ''हल'' कर के ''द्वार'' खोलेगा, मैं उसे अपना उत्तराधीकारी घोषित कर दूंगा।

राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये, और 'सूत्र देखकर लौट गए, किसी को कुछ समझ नहीं आया।

आख़री दिन आ चुका था। उस दिन 3 लोग आये, और कहने लगे, हम इस सूत्र को हल कर देंगे ?

उसमें 2 तो दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रों की पुस्तकों सहित आये थे।

लेकिन एक व्यक्ति जो ''साधक'' की तरह नजर आ रहा था, सीधा साधा कुछ भी साथ नहीं लाया था। उसने कहा, मैं यहां बैठा हूँ। पहले इन्हें मौक़ा दिया जाए।

दोनों गहराई से सूत्र हल करने में लग गए। लेकिन द्वार नहीं खोल पाये और अपनी हार मान ली।

अंत में उस साधक को बुलाया गया। और कहा कि, आप सूत्र हल करिये समय शुरू हो चुका है।

साधक ने आँख खोली और सहज मुस्कान के साथ 'द्वार' की ओर गया।

साधक ने धीरे से द्वार को धकेला, और यह क्या ? द्वार खुल गया।

राजा ने साधक से पूछा... आप ने ऐसा क्या किया ?

साधक ने बताया जब में 'ध्यान' में बैठा, तो सबसे पहले अंतर्मन से आवाज आई, कि पहले ये जाँच तो कर ले कि, सूत्र है भी या नहीं।

इसके बाद इसे हल ''करने की सोचना'' और मैंने वही किया।


शिक्षा:-
मित्रों, कई बार जिंदगी में कोई ''समस्या'' होती ही नहीं और हम ''विचारों'' में उसे बड़ा बना लेते हैं। हर समस्या का उचित इलाज आपकी ''आत्मा'' की आवाज है।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

24 Sep, 06:36


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! वास्तविक मूल्य !!
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बहुत समय पहले की बात है। किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। उसके दो बेटे थे। बूढ़ा वस्तुओं के उपयोग के मामले में कंजूस था और उन्हें बचा-बचा कर उपयोग किया करता था।

उसके पास एक पुराना चांदी का पात्र था। वह उसकी सबसे मूल्यवान वस्तु थी। उसने उसे संभालकर संदूक में बंद कर रखता था। उसने सोच रखा था कि सही अवसर आने पर ही उसका उपयोग करेगा।

एक दिन उसके यहाँ एक संत आये। जब उन्हें भोजन परोसा जाने लगा, तो एक क्षण को बूढ़े व्यक्ति के मन में विचार आया कि क्यों न संत को चांदी के पात्र में भोजन परोसूं? किंतु अगले ही क्षण उसने सोचा कि मेरा चांदी का पात्र बहुत कीमती है। गाँव-गाँव भटकने वाले इस संत के लिए उसे क्या निकालना? जब कोई राजसी व्यक्ति मेरे घर पधारेगा, तब यह पात्र निकालूंगा। यह सोचकर उसने पात्र नहीं निकाला।

कुछ दिनों बाद उसके घर राजा का मंत्री भोजन करने आया। उस समय भी बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि चांदी का पात्र निकाल लूं। किंतु फिर उसे लगा कि ये तो राजा का मंत्री है। जब राजा स्वयं मेरे घर भोजन करने पधारेंगे, तब अपना कीमती पात्र निकालूंगा।

कुछ दिनों के बाद स्वयं राजा उसके घर भोजन के लिए पधारे। राजा उसी समय पड़ोसी राज्य से युद्ध हार गए थे और उनके राज्य के कुछ हिस्से पर पड़ोसी राजा ने कब्जा कर लिया था। भोजन परोसते समय बूढ़े व्यक्ति ने सोचा कि अभी-अभी हुई पराजय से राजा का गौरव कम हो गया है। मेरे पात्र में किसी गौरवशाली व्यक्ति को ही भोजन करना चाहिए। इसलिए उसने चांदी का पात्र नहीं निकाला।

इस तरह उसका पात्र बिना उपयोग के पड़ा रहा। एक दिन बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई।

उसकी मृत्यु के बाद उसके बेटे ने उसका संदूक खोला। उसमें उसे काला पड़ चुका चांदी का पात्र मिला। उसने वह पात्र अपनी पत्नी को दिखाया और पूछा, “इसका क्या करें?”

पत्नी ने काले पड़ चुके पात्र को देखा और मुँह बनाते हुए बोली, “अरे इसका क्या करना है। कितना गंदा पात्र है। इसे कुत्ते को भोजन देने के लिए निकाल लो।”

उस दिन के बाद से घर का पालतू कुत्ता उस चांदी के पात्र में भोजन करने लगा। जिस पात्र को बूढ़े व्यक्ति ने जीवन भर किसी विशेष व्यक्ति के लिए संभालकर रखा, अंततः उसकी ये गत हुई।

शिक्षा:-
मित्रों, किसी वस्तु का मूल्य तभी है, जब वह उपयोग में लाई जा सके। बिना उपयोग के बेकार पड़ी कीमती वस्तुओं का भी कोई मूल्य नहीं। इसलिए यदि आपके पास कोई वस्तु है, तो यथा समय उसका उपयोग कर लें।

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हिंदी प्रेरक प्रसंग व कहानियां

23 Sep, 04:09


♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️

!! तीन मूर्तियाँ !!
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एक राजा था जिसे शिल्प कला अत्यंत प्रिय थी। वह मूर्तियों की खोज में देश-प्रदेश जाया करता था। इस प्रकार राजा ने कई मूर्तियाँ अपने राज महल में लाकर रखी हुई थी और स्वयं उनकी देख रेख करवाते। सभी मूर्तियों में उन्हें तीन मूर्तियाँ जान से भी ज्यादा प्यारी थी। सभी को पता था कि राजा को उनसे अत्यंत लगाव है।

एक दिन जब एक सेवक इन मूर्तियों की सफाई कर रहा था तब गलती से उसके हाथों से उनमें से एक मूर्ति टूट गई। जब राजा को यह बात पता चली तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने उस सेवक को तुरन्त मृत्युदंड दे दिया। सजा सुनने के बाद सेवक ने तुरन्त अन्य दो मूर्तियों को भी तोड़ दिया। यह देख कर सभी को आश्चर्य हुआ। राजा ने उस सेवक से इसका कारण पूछा, तब उस सेवक ने कहा - "महाराज! क्षमा कीजियेगा, यह मूर्तियाँ मिट्टी की बनी हैं, अत्यंत नाजुक हैं। अमरता का वरदान लेकर तो आई नहीं हैं। आज नहीं तो कल टूट ही जाती अगर मेरे जैसे किसी प्राणी से टूट जाती तो उसे अकारण ही मृत्युदंड का भागी बनना पड़ता। मुझे तो मृत्यु दंड मिल ही चुका हैं इसलिए मैंने ही अन्य दो मूर्तियों को तोड़कर उन दो व्यक्तियों की जान बचा ली।

यह सुनकर राजा की आँखें खुली की खुली रह गई उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सेवक को सजा से मुक्त कर दिया। सेवक ने उन्हें साँसों का मूल्य सिखाया, साथ ही सिखाया की न्यायाधीश के आसन पर बैठकर अपने निजी प्रेम के चलते छोटे से अपराध के लिए मृत्युदंड देना उस आसन का अपमान हैं। एक उच्च आसन पर बैठकर हमेशा उसका आदर करना चाहिये। राजा हो या कोई भी अगर उसे न्याय करने के लिए चुना गया हैं तो उसे न्याय के महत्व को समझना चाहिये। मूर्ति से राजा को प्रेम था लेकिन उसके लिए सेवक को मृत्युदंड देना न्याय के विरुद्ध था। न्याय की कुर्सी पर बैठकर किसी को भी अपनी भावनाओं से दूर हट कर फैसला देना चाहिये।

राजा को समझ आ गया कि मुझसे कई गुना अच्छा तो वो यह सेवक था जिसने मृत्यु के इतना समीप होते हुए भी परहित का सोचा! राजा ने सेवक से पूछा कि अकारण मृत्यु को सामने पाकर भी तुमने ईश्वर को नही कोसा, तुम निडर रहे, इस संयम, समस्वस्भाव तथा दूरदृष्टि के गुणों के वहन की युक्ति क्या है? सेवक ने बताया कि आपके यहाँ काम करने से पहले मैं एक अमीर सेठ के यहां नौकर था। मेरा सेठ मुझसे तो बहुत खुश था लेकिन जब भी कोई कटु अनुभव होता तो वह ईश्वर को बहुत गालियाँ देता था।

एक दिन सेठ ककड़ी खा रहा था । संयोग से वह ककड़ी कड़वी थी। सेठ ने वह ककड़ी मुझे दे दी। मैंने उसे बड़े चाव से खाया जैसे वह बहुत स्वादिष्ट हो। सेठ ने पूछा – “ककड़ी तो बहुत कड़वी थी। भला तुम ऐसे कैसे खा गये ?” तो मैने कहा – “सेठ जी आप मेरे मालिक है। रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते है। अगर एक दिन कुछ कड़वा भी दे दिए तो उसे स्वीकार करने में क्या हर्ज है?" राजा जी इसी प्रकार अगर ईश्वर ने इतनी सुख–सम्पदाएँ दी है, और कभी कोई कटु अनुदान दे भी दे तो उसकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं। जन्म, जीवनयापन तथा मृत्यु सब उसी की देन है।

शिक्षा:-
असल में यदि हम समझ सके तो जीवन में जो कुछ भी होता है, सब ईश्वर की दया ही है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता है! यदि सुख दु:ख को ईश्वर का प्रसाद समझकर संयम से ग्रहण करें तथा हर समय परहित का चिंतन करें।

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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