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最終更新日 12.03.2025 02:43
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🌻अगर आपको लगता है आप अपने वर्तमान खराब हालातों के लिए खुद जिम्मेदार नहीं हैँ! बल्कि आपकी खराब स्थिति के लिए आपका ख़राब बचपन, आपके माता पिता, आपके खराब शिक्षक, दोस्त, आस पास के लोग या ख़राब हालात जिम्मेदार हैँ या आप खुद को बहुत बेचारा समझते हैँ, हालातों के आगे बेबस, जिस पर लोगो को तरस खाना चाहिए आपको लगता है कि आपके साथ हमेशा गलत होता है! तो सावधान आप गलत राह मे जा रहे हो! आप अगले कई साल मेहनत करके भी अपनी मंजिल नहीं पाने जा रहे हो! क्योंकि आत्म दया दुनिया मे सबसे ख़तरनाक चीज है अपनी असफलताओं की जिम्मेदारी लो, हालात कभी भी निष्पक्ष नहीं होते, कोई गरीब तो कोई अमीर पैदा होता है कोई कमजोर कोई ताकतवर!! अब आप सिर्फ अपने हालातों की जिम्मेदारी लेकर उन्हें बदलने की दिशा मे कार्य कर सकते हैँ! आप किसी और को अपने हालातों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैँ तो आप ये मानते हो कि आपका आपकी जिंदगी पर कोई नियंत्रण नहीं है! जब नियंत्रण ही नहीं तो बदलोगे क्या? इसलिए जिम्मेदार बनो अपनी जिंदगी की कमान खुद सम्हालो दोस्त अब बड़े हो जाओ!! 🙂
एक बार एक व्यक्ति ने महान Philosopher सुकरात से पूछा कि “सफलता का रहस्य क्या है?” – What is the secret of success?
सुकरात ने उस इंसान को कहा कि वह कल सुबह नदी के पास मिले, वही पर उसे अपने प्रश्न का जवाब मिलेगा।
जब दूसरे दिन सुबह वह व्यक्ति नदी के पास मिला तो सुकरात ने उसको नदी में उतरकर, नदी गहराई की गहराई मापने के लिए कहा।
वह व्यक्ति नदी में उतरकर आगे की तरफ जाने लगा| जैसे ही पानी उस व्यक्ति के नाक तक पहुंचा, पीछे से सुकरात ने आकर अचानक से उसका मुंह पानी में डुबो दिया। वह व्यक्ति बाहर निकलने के लिए झटपटाने लगा, कोशिश करने लगा लेकिन सुकरात थोड़े ज्यादा Strong थे। सुकरात ने उसे काफी देर तक पानी में डुबोए रखा।
कुछ समय बाद सुकरात ने उसे छोड़ दिया और उस व्यक्ति ने जल्दी से अपना मुंह पानी से बाहर निकालकर जल्दी जल्दी साँस ली।
सुकरात ने उस व्यक्ति से पूछा – “जब तुम पानी में थे तो तुम क्या चाहते थे?” व्यक्ति ने कहा – “जल्दी से बाहर निकलकर सांस लेना चाहता था।”
सुकरात ने कहा – “यही तुम्हारे प्रश्न का उतर है। जब तुम सफलता को उतनी ही तीव्र इच्छा से चाहोगे जितनी तीव्र इच्छा से तुम सांस लेना चाहते है, तो तुम्हे सफलता निश्चित रूप से मिल जाएगी।”
सुकरात ने उस इंसान को कहा कि वह कल सुबह नदी के पास मिले, वही पर उसे अपने प्रश्न का जवाब मिलेगा।
जब दूसरे दिन सुबह वह व्यक्ति नदी के पास मिला तो सुकरात ने उसको नदी में उतरकर, नदी गहराई की गहराई मापने के लिए कहा।
वह व्यक्ति नदी में उतरकर आगे की तरफ जाने लगा| जैसे ही पानी उस व्यक्ति के नाक तक पहुंचा, पीछे से सुकरात ने आकर अचानक से उसका मुंह पानी में डुबो दिया। वह व्यक्ति बाहर निकलने के लिए झटपटाने लगा, कोशिश करने लगा लेकिन सुकरात थोड़े ज्यादा Strong थे। सुकरात ने उसे काफी देर तक पानी में डुबोए रखा।
कुछ समय बाद सुकरात ने उसे छोड़ दिया और उस व्यक्ति ने जल्दी से अपना मुंह पानी से बाहर निकालकर जल्दी जल्दी साँस ली।
सुकरात ने उस व्यक्ति से पूछा – “जब तुम पानी में थे तो तुम क्या चाहते थे?” व्यक्ति ने कहा – “जल्दी से बाहर निकलकर सांस लेना चाहता था।”
सुकरात ने कहा – “यही तुम्हारे प्रश्न का उतर है। जब तुम सफलता को उतनी ही तीव्र इच्छा से चाहोगे जितनी तीव्र इच्छा से तुम सांस लेना चाहते है, तो तुम्हे सफलता निश्चित रूप से मिल जाएगी।”
🐛एक बार एक जंगल मे एक सांप रहता था बहुत मोटा, ताकतवर और जहरीला, आस पास मे उससे बेहतर और ताकतवर कोई और सांप नहीं था! एक बार जंगल मे एक लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी भूल गया! जिसके पास से जब सांप गुजरा तो उसके शरीर पर कुल्हाड़ी से बहुत छोटा सा घाव हो गया! सांप उसे देखकर गुस्से मे आ गया और उसने कुल्हाड़ी पर दांत गड़ा दिए जिससे उसके मुँह मे घाव बन गया, सांप यही नहीं रुका और गुस्से मे उसने अपने शरीर को कुल्हाड़ी मे लपेट लिया और गुस्से से उस पर वार करने लगा, थोड़ी देर तक लड़ते भीड़ते सांप तड़प कर मर गया! हम भी कितनी बार छोटी छोटी बातो मे उलझ जाते हैँ! किसी ने हमारा दिल दुःखाया और हम उस बात को पकड़ कर अपने आप को सजा देते रहे उस सांप की तरह लिपट कर उस समस्या या उस इंसान के कारण खुद को hurt करते रहते हैँ! कमाल है ना? कभी कभी कुछ चीजों को छोड़ना और आगे बढ़ना जीवन के लिए जरुरी हो जाता है! एक जगह पर ठहर कर समस्या मे उलझना अपने जीवन को बर्बाद करना है! 🦅
आजकल समय को पढ़ रहा हूं, Time is an Illusion ( समय भ्रम है ), से शुरू हुई यात्रा आइंस्टिन, बोल्ट्सज़मैंन, ब्रायन के भौतिकी के गूढ सिद्धांतों पर मनन चल रहा है! न्यूटन ने कहा कि समय सब के लिए एक ही है उसे आप अलग अलग नहीं मान सकते, आइंस्टिन उसे अलग अलग मानते हैँ! उसकी गति उसका रूप सबके लिए अलग अलग होता है! Time को स्पेस से जोड़ते हैँ! दार्शनिक और आध्यात्म समय को बहती नदी मानकर सूक्ष्म शरीर की व्याख्या करते हैँ! कभी सोचता हूं इस विशाल ब्रह्माण्ड मे हम हैँ ही क्या? हम कुछ भी तो नहीं जानते... पढ़ने की क्रिया जारी है कुछ रोचक मिले तो साँझा करता हूं आप से 🙂🙏🙏