कलियुग में सभी शास्त्रों का अध्ययन नहीं था संभव, इसीलिए तो हुई भागवत की रचना
कलियुगीन मनुष्य की शारीरिक व मानसिक क्षमताएं अन्य युगों के मानव से कहीं अधिक सीमित हैं। कठिन धार्मिक अनुष्ठान, तपश्चर्या, सुदीर्घ अध्यवसाय एवं मानसिक एकाग्रता नहीं रही सहज व स्वाभाविक इस काल के मनुष्य के लिए। उसे तो आवश्यकता थी एक सरल, सुपाठ्य, सुगम के ही साथ रसपूर्ण ग्रंथ की जो उसे सहज ही करा सके अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को हृदयंगम। इसीलिए तो देवर्षि नारद के साथ विमर्श कर वेदव्यास ने किया भागवत की रचना का निर्णय!