गुजरात मे केशुभाई पटेल, मध्यप्रदेश मे उमा भारती, उत्तरप्रदेश मे कल्याण सिंह और कर्नाटक मे येदियुरप्पा इन चारो ने बगावत करके अलग पार्टी बनाई थी। चारो का ये मानना था कि उनके राज्य मे उन्होंने ही बीजेपी को चमकाया है।
लेकिन ज़ब खुद के नाम पर चुनाव लड़े तों वर्चस्व तों दूर अस्तित्व की लड़ाई भी हार गए। अपनी अपनी पार्टियां बीजेपी मे मिला लीं और राजनीति के गलियारों मे कही खो गए।
इसका कारण ये था कि बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक उसकी विचारधारा है। हर चुनाव मे नए वोटर जुड़ जाते है लेकिन बीजेपी का वोट प्रतिशत लड़खड़ाता नहीं है, बीजेपी झारखंड मे हारी मगर वोट प्रतिशत JMM से 10% ज्यादा रहा।
ये वो लड़ाई है जो बीजेपी वर्तमान मे हारती है मगर भविष्य मे जीत जाती है। उत्तरप्रदेश मे 2012 तक वोट प्रतिशत 15 था और अगले ही चुनाव मे 39% पहुँच गया, आज योगीजी उत्तरप्रदेश के सबसे लम्बे टिकाऊ मुख्यमंत्री बन गए।
जैसे जैसे साक्षरता दर बढ़ रही है बीजेपी का वोट बढ़ रहा है क्योंकि उसकी विचारधारा समय के अनुरूप ढलती है। जब मंदिर आंदोलनों का समय था तब राम मंदिर उसका मुद्दा था आज समय बदल गया है, सरकार मे है विदेशी निवेशकों को खुश रखना है युवा वोटबैंक है इसलिए अब विचारधारा उस अनुरूप है।
इसके विपरीत कांग्रेस व्यक्ति आधारित पार्टी है, हर कार्यकर्ता का उद्देश्य है कि राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाना है। क्यों बनाना है ये उन्हें भी नहीं पता, राहुल गाँधी किसी भी भाषण मे विकास के मुद्दों पर बात नहीं करता फिर भी जनता का एक वर्ग है जो उसे वोट दे देता है।
लेकिन बहुत जगह ये वोट वहाँ के लोकल नेताओं की वजह से मिलता है, अशोक चव्हाण की वज़ह से मराठवाडा कांग्रेस का गढ़ था, ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से गुना शिवपुरी कांग्रेस का गढ़ थे। ये सब आज बीजेपी के गढ़ बन गए क्योंकि दोनों नेता बीजेपी मे आ गए।
ये वो गैप है जो कांग्रेस समझ नहीं पा रही है और बीजेपी के लिये मजबूत बिंदु है। लेकिन एक खतरा बीजेपी पर भी है, बीजेपी का एक बड़ा वोट बैंक कट्टरपंथी हिन्दुओ का है इनमे से कितने तों ऐसे भी है जो इतने हार्ड लाइन पर चले गए कि एक बार को नोटा पर स्विंग भी कर सकते है।
विपक्ष मे रहकर हिंदुत्व के मुद्दे उठाना एक बात है सरकार मे रहकर उठाना अलग बात है।
फिलहाल हिंदुत्व की पिच पर बीजेपी अकेली खड़ी है इसलिए उसे डर भी नहीं है। ये एक बड़ा कारण है कि मोहन भागवत मंदिर की राजनीति के विरोध मे है।
उन्हें पता है बीजेपी को खड़ा करने मे मंदिर का बड़ा योगदान है, यही मंदिर कोई अन्य पार्टी भी खड़ी कर सकता है। मोहन भागवत को ये भी पता है कि बीजेपी जितनी मनमानी कर ले लेकिन फिसलने के बाद संघ की शरण मे जायेगी और वे नहीं चाहेंगे बीजेपी उस हाल मे पहुँचे जिस हाल मे उन्हें मिली थी।
दूसरी ओर बीजेपी को इसी स्विंग वोटर की वज़ह से थोड़ा खुद को बदलना होगा। मंदिर बनाकर भी उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र मे निराशा मिली थी, सोचो यदि मध्यप्रदेश, गुजरात और उड़ीसा ने भी साथ छोड़ दिया होता तों आज स्थिति क्या होती? तेलंगाना और आंध्र की 11 सीटों को भी आप नजरंदाज नहीं कर सकते।
भगवान ना करें मगर वो दिन भी आएगा ज़ब मध्यप्रदेश मे 29 मे से 22 सीटें मिलेगी, गुजरात 21 सीटें देगा। उस समय विकल्प की आवश्यकता होंगी, 2029 मे वो युवा वोट करेगा जिसने 26/11 नहीं देखा होगा, घोटाले नहीं देखे होंगे।
इसलिए अब मंदिर राजनीति से ज्यादा सामाजिक मुद्दा बने वही बीजेपी के हित मे है क्योंकि मंदिर बनाकर भी प्रश्न यही पूछा जाएगा कि आपने हिन्दुओ के लिये क्या किया? अगले 10 वर्षो मे कई कट्टर पंथी स्विंग करेंगे उनका बैकअप अन्य वर्गो मे बनाना पड़ेगा।
हालांकि इसका मतलब ये नहीं कि विचारधारा शिफ्ट की जाए, समाज मुद्दे उठाये और बीजेपी राजनीतिक समीकरण बैठाये तों सरकारे 2029 तों क्या 2049 तक भी सुचारु रूप से चलती रहेगी।
✍️परख सक्सेना✍️
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