ये ही नेतृत्व क्षमता का अंतर भी है। बीजेपी के पास अब बहुमत नहीं है इसलिए उसे हर प्रस्ताव JPC भेजना पड़ रहा है। बीजेपी यदि चाहे तों नायडू नीतीश पर दबाव बनाकर जो चाहे करा ले, एक समय तक रबड़ अच्छे से खींच जाएगा उसके बाद?
NDA मे सिर्फ बीजेपी शिवसेना और पवन कल्याण की जनसेना ही है जिसे आप दक्षिणपंथी पार्टी कह सकते है शेष सभी वाम और सेक्युलर दल है। इसलिए NDA राइट विंग नहीं बल्कि एक सेंटर राइट गठबंधन है।
सहयोगी दलों के पास मंत्रालय ख़ास ना हो मगर बीजेपी ऑफिस की सीधी एक्सेस है, जिसे जो चाहिए मिल जाता है। हम सिर्फ नायडू नीतीश की भी बात करें तों सोचिये अगर ये इंडी मे चले गए तों संख्या के हिसाब से इनकी रैंक पांचवे या छठे नंबर पर होंगी।
मंत्रालय तब भी खास नहीं होंगे, जो मिलेंगे वो भी अहसान लगेंगे जबकि NDA मे ये विशेष दल है इसलिए बीजेपी के साथ शांति से बैठे है।
ऐसे मे यदि बीजेपी इनसे जबरदस्ती करें भी तों ये तैयार हो जायेंगे लेकिन समस्या उसके बाद शुरू होंगी। नायडू नीतीश की समस्या नहीं है, समस्या उनके सांसदों की है जिन्हे तुष्टिकरण और धर्मनिरपेक्षता का काँटा लगा हुआ है।
महाराष्ट्र मे सारी बगावत एकनाथ शिंदे ने नहीं की थी, उन पर शिवसेना के विधायको का दबाव था क्योंकि विधायक उद्धव ठाकरे से मुक्ति चाहते थे, अगले चुनाव मे वोट विधायक को माँगने थे शिंदे या ठाकरे को नहीं।
इसलिए नेता एक बार समझौता कर सकता है लेकिन उसके विधायक या सांसद के पास सीमित दायरा होता है उसे किसी विधेयक पर वोट देते समय एक नहीं हजार बार सोचना पड़ता है। इसलिए दोष यहाँ भी नायडू नीतीश का नहीं अपितु परिस्थिति का है।
दूसरा पहलू ये है कि इंडी गठबंधन कई बार बंटा हुआ दिखा जबकि NDA मे एक दरार भी सामने नहीं आयी। यदि कोई क़ानून लाया गया और 293 मे से कुछ वोट भी यहाँ वहाँ हो गए तों स्टॉक मार्केट तक पर उसका असर होगा।
विदेशी मीडिया और राजदूत आँखे फाड़कर संसद की तरफ देख रहे होंगे कितने ही आतंकवादियों की प्लानिंग उस एक क्षण का इंतजार कर रही होंगी। ये सब बहुत सूक्ष्म बाते है लेकिन इनका असर ज़ब तक दिखता है तब तक कई देशो को देर हो चुकी होती है।
जब बहुमत था तब 135 के आसपास कानून बीजेपी ने बड़ी बेरहमी से पास किये थे, दुनिया एक तरफ खड़ी रही लेकिन हम नहीं झुके। भारत मे किसी सरकार ने इतने बिल पास नहीं किये जितने बीजेपी ने उस समय किये।
आज नंबर हमारे साथ नहीं है ना ही परिस्थिति हमारे साथ है इसलिए हम आज बेबस है लेकिन परिस्थितिया तों फिर बदलेगी तब वापस पास हो जाएंगे।
बहुत लोगो को तों 8 महीने से सरकार गिरने का ही डर है। सरकार से समर्थन दो मे से सिर्फ एक व्यक्ति ही ले सकता है जो आप सब जानते है। नायडू पर भरोसा रखिये उसकी राजनीति एंटी कांग्रेस नेतृत्व की है एक बार हाथ मिला चुका और मिटते मिटते बचा है।
यदि कही कोई छोटा मोटा दल चला भी गया तों इंडी के ही छोटे दल बीजेपी से हाथ मिलाएंगे मगर इंडी के साथ खुद नहीं जाएंगे क्योंकि वहाँ उनकी रैंक कम होती जायेगी। इसलिए अंको का एक गणित बीजेपी के विरुद्ध है तों दूसरा जबरदस्त पक्ष मे भी है।
✍️परख सक्सेना✍️
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