*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा का आह्वान व विद्वान मनुष्य के राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का उपदेश*
*इन्द्रेहि मत्स्यन्धसो विश्वेभिः सोमपर्वभिः । महाꣳ अभिष्टिरोजसा॥*
*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 180)*
*मन्त्रार्थ―*
प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। हे (इन्द्र) दुर्गुणों को विदीर्ण तथा सद्गुणों को प्रदान करनेवाले परमेश्वर ! आप (आ इहि) हमारे जीवन-यज्ञ में आइए, (अन्धसः) हमारे पुरुषार्थरूप अन्न से तथा (विश्वेभिः) सब (सोमपर्वभिः) भक्ति-समारोहों से (मत्सि) प्रसन्न होइए। आप (महान्) महान् और (ओजसा) बल से (अभिष्टिः) हमारे कामादि रिपुओं के प्रति आक्रमण करनेवाले हो।
द्वितीय—विद्वान् के पक्ष में। हे (इन्द्र) विद्यारूप ऐश्वर्य से युक्त विद्वन् ! आप (आ इहि) आइए, (अन्धसः) सात्त्विक अन्न से, तथा (विश्वेभिः) सब (सोमपर्वभिः) बल बढ़ानेवाली सोम आदि ओषधियों के खण्डों से (मत्सि) तृप्त होइए। आप (महान्) गुणों में महान्, तथा (ओजसा) विद्याबल से (अभिष्टिः) अभीष्ट प्राप्त करानेवाले और समाज के अविद्या, दुराचार आदि दुर्गुणों पर आक्रमण करनेवाले, बनिए।
*व्याख्या―*
जैसे पुरुषार्थ और भक्ति से प्रसन्न किया गया परमेश्वर मनुष्यों के काम, कोध्र, हिंसा, उपद्रव आदि सब शत्रुओं को क्षण भर में ही विनष्ट कर देता है, वैसे ही विद्वान् मनुष्य को चाहिए कि वह सात्त्विक एवं पुष्टिप्रद अन्न, ओषधि आदि से परिपुष्ट होकर राष्ट्र से अविद्या आदि दुर्गुणों का शीघ्र ही विनाश करे।
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