United Hindu Official✊🏻🚩 @united_hindu_official Channel on Telegram

United Hindu Official✊🏻🚩

@united_hindu_official


लक्ष्य 👉 (आर्यो)हिन्दुओ में एकजुटता एव जागरूकता बढ़ाना
धर्म 👉 सनातन
वर्ण 👉 कर्म आधारित

United Hindu Official (Hindi)

यदि आप हिन्दू धर्म के प्रति अपनी भावनाओं को साझा करना चाहते हैं तो 'United Hindu Official' आपके लिए एक आदर्श टेलीग्राम चैनल है। यह चैनल हिन्दू समाज के सदस्यों को एक साथ लाने और उन्हें जागरूक बनाने का मिशन ले कर चल रहा है। 'United Hindu Official' का उद्देश्य है आर्यों के बीच एकजुटता को बढ़ाना और हिन्दू समाज को उनके सनातन धर्म और कर्म आधारित जीवन सूत्रों की महत्वपूर्णता के प्रति जागरूक करना। इस चैनल में आपको धार्मिक ज्ञान, सनातन भारतीय सस्कृति, और विभिन्न धार्मिक विचारों का साझा करने का मौका मिलेगा। यहाँ पर आप अपने विचारों को बांट सकते हैं और दूसरों के साथ उन्हें साझा कर सकते हैं। 'United Hindu Official' चैनल आपके लिए एक सहायक हो सकता है अपने धार्मिक और आध्यात्मिक साधनों में और आपको हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की समझ में मदद कर सकता है। यदि आप एक ऐसे समुदाय का हिस्सा बनना चाहते हैं जो हिन्दू समाज के मूल्यों को महत्व देता है तो 'United Hindu Official' चैनल में शामिल हो जाएं और एक सक्रिय सदस्य बनें।

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Nov, 01:38


*आत्मबोध🕉️🦁*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा का आह्वान व विद्वान मनुष्य के राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का उपदेश*

*इन्द्रेहि मत्स्यन्धसो विश्वेभिः सोमपर्वभिः । महाꣳ अभिष्टिरोजसा॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 180)*

*मन्त्रार्थ―*
प्रथम—परमात्मा के पक्ष में। हे (इन्द्र) दुर्गुणों को विदीर्ण तथा सद्गुणों को प्रदान करनेवाले परमेश्वर ! आप (आ इहि) हमारे जीवन-यज्ञ में आइए, (अन्धसः) हमारे पुरुषार्थरूप अन्न से तथा (विश्वेभिः) सब (सोमपर्वभिः) भक्ति-समारोहों से (मत्सि) प्रसन्न होइए। आप (महान्) महान् और (ओजसा) बल से (अभिष्टिः) हमारे कामादि रिपुओं के प्रति आक्रमण करनेवाले हो।
द्वितीय—विद्वान् के पक्ष में। हे (इन्द्र) विद्यारूप ऐश्वर्य से युक्त विद्वन् ! आप (आ इहि) आइए, (अन्धसः) सात्त्विक अन्न से, तथा (विश्वेभिः) सब (सोमपर्वभिः) बल बढ़ानेवाली सोम आदि ओषधियों के खण्डों से (मत्सि) तृप्त होइए। आप (महान्) गुणों में महान्, तथा (ओजसा) विद्याबल से (अभिष्टिः) अभीष्ट प्राप्त करानेवाले और समाज के अविद्या, दुराचार आदि दुर्गुणों पर आक्रमण करनेवाले, बनिए।

*व्याख्या―*
जैसे पुरुषार्थ और भक्ति से प्रसन्न किया गया परमेश्वर मनुष्यों के काम, कोध्र, हिंसा, उपद्रव आदि सब शत्रुओं को क्षण भर में ही विनष्ट कर देता है, वैसे ही विद्वान् मनुष्य को चाहिए कि वह सात्त्विक एवं पुष्टिप्रद अन्न, ओषधि आदि से परिपुष्ट होकर राष्ट्र से अविद्या आदि दुर्गुणों का शीघ्र ही विनाश करे।

हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️

*व्हाट्सएप चैनल लिंक :*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14
*वैदिक दर्शन - लिंक:* https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Nov, 01:38


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १८०/३५० (180/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक २६ (09/26)*
*पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।*
*तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥*

*शब्दार्थ—*
(यः) जो कोई भक्त (मे) मेरे लिये (भक्त्या) भक्तिभावसे (पत्राम्) पत्र (पुष्पम्) पुष्प (फलम्) फल (तोयम्) जल आदि (प्रयच्छति) अर्पण करता है (प्रयतात्मनः) प्रेमी भक्तका (भक्त्युपहृतम्) भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (तत्) वह (अहम्) मैं (अश्नामि) खाता हूँ।

*अनुवाद—*
 जो कोई भक्त मेरे (परमात्मा के) लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं (परमात्मा) सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ।  

*अध्याय ०९ श्लोक २७ (9/27)*
*यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।*
*यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥*

*शब्दार्थ—*
(कौन्तेय) हे अर्जुन! तू (यत्) जो कर्म (करोषि) करता है (यत्) जो (अश्नासि) खाता है (यत्) जो (जुहोषि) हवन करता है (यत्) जो (ददासि) दान देता है और (यत्) जो (तपस्यसि) तप करता है (तत्) वह सब (मदर्पणम्) मतानुसार अर्थात् शास्त्रा विधि अनुसार मुझे अर्पण (कुरुष्व) कर।

*अनुवाद—*
हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे (परमात्मा के) अर्पण कर।

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Nov, 01:38


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार सत्पुरुषों को कैसा होना चाहिये?*

*अश्विभ्याम्प्रातःसवनमिन्द्रेणैन्द्रम्माध्यन्दिनम्। वैश्वदेवँ सरस्वत्या तृतीयमाप्तँ सवनम्॥*

*पद पाठ—*
अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। प्रातःसवनमिति प्रातःऽसवनम्। इन्द्रेण। ऐन्द्रम्। माध्यन्दिनम्। वैश्वदेवमिति वैश्वऽदेवम्। सरस्वत्या। तृतीयम्। आप्तम्। सवनम्॥

*(यजुर्वेद - अध्याय 19; मन्त्र 26)*

(ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः, देवता - यज्ञो देवता, छन्दः - अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः)

*मन्त्रार्थ—*
जिन मनुष्यों ने (अश्विभ्याम्) सूर्य्य-चन्द्रमा से प्रथम (प्रातःसवनम्) प्रातःकाल यज्ञक्रिया की प्रेरणा (इन्द्रेण) बिजुली से (ऐन्द्रम्) ऐश्वर्यकारक दूसरा (माध्यन्दिनम्) मध्याह्न में होने और (सवनम्) आरोग्यता करने वाला होमादि कर्म और (सरस्वत्या) सत्यवाणी से (वैश्वदेवम्) सम्पूर्ण विद्वानों के सत्काररूप (तृतीयम्) तीसरा सवन अर्थात् सायङ्काल की क्रिया को यथावत् (आप्तम्) प्राप्त किया है, वे जगत् के उपकारक हैं।

*व्याख्या—*
जो भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान इन तीनों कालों में सब मनुष्यादि प्राणियों का हित करते हैं, वे जगत् में सत्पुरुष होते हैं।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
*व्हाट्सएप चैनल लिंक :*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:* https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Nov, 01:38


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७९/३५० (179/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक २४ (09/24)*
*हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च।*
*न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्‍च्‍यवन्ति ते॥*

*शब्दार्थ—*
अहम्—मैं; हि—निश्चित रूप से; सर्व—समस्त; यज्ञानाम्—यज्ञों का; भोक्ता—भोग करने वाला; च—तथा; प्रभु:—स्वामी; एव—भी; च—तथा; न—नहीं; तु—लेकिन; माम्—मुझको; अभिजानन्ति—जानते हैं; तत्त्वेन—वास्तव में; अत:—अतएव; च्यवन्ति—नीचे गिरते हैं; ते—वे।

*अनुवाद—*
उनका पूजन करना अविधिपूर्वक कैसे है सो कहते हैं कि -, श्रौत और स्मार्त समस्त यज्ञोंका देवतारूपसे मैं(ईश्वर) ही भोक्ता हूँ और मैं(ईश्वर) ही स्वामी हूँ। मैं(ईश्वर) ही सब यज्ञोंका स्वामी हूँ। परंतु वे अज्ञानी इस प्रकार यथार्थ तत्त्वसे मुझे(ईश्वर को) नहीं जानते। अतः अविधिपूर्वक पूजन करके वे यज्ञ के वास्तविक फलसे गिर जाते हैं अर्थात् उनका पतन हो जाता है।      

*अध्याय ०९ श्लोक २५(9/25)*
*यान्ति देवव्रता देवान्पितॄन्यान्ति पितृव्रता:।*
*भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्॥*

*शब्दार्थ—*
(देवव्रताः) देवताओंको पूजनेवाले (देवान्) देवताओंको (यान्ति) प्राप्त होते हैं, (पितृृव्रताः) पितरोंको पूजनेवाले (पितृृन्) पितरोंको (यान्ति) प्राप्त होते हैं, (भूतेज्याः) भूतोंको पूजनेवाले (भूतानि) भूतोंको (यान्ति) प्राप्त होते हैं और (मद्याजिनः) इसी तरह मतानुसार अर्थात् शास्त्रानुकुल पूजन करने वाले मेरे भक्त (अपि) भी (माम्) मुझे (यान्ति) प्राप्त होते हैं।

*अनुवाद—*
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा(ईश्वर का) पूजन करने वाले भक्त मुझ(ईश्वर)को ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे(ईश्वर) भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता।

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Nov, 01:37


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार मनुष्य लोग किस प्रकार अपने कर्मों को सिद्ध करें?*

*ते नो रत्नानि धत्तन त्रिरा साप्तानि सुन्वते। एकमेकं सुशस्तिभिः॥*

*पद पाठ—*
ते। नः। रत्नानि। धत्तन। त्रिः। आ। साप्तानि। सुन्वते। एकम्ऽएकम्। सुशस्तिऽभिः॥

*(ऋग्वेद - मण्डल 1; सूक्त 20; मन्त्र 7)*

(ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः, देवता - ऋभवः, छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः)

*मन्त्रार्थ—*
जो विद्वान् (सुशस्तिभिः) अच्छी-अच्छी प्रशंसावाली क्रियाओं से (साप्तानि) जो सात संख्या के वर्ग अर्थात् ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यासियों के कर्म, यज्ञ का करना विद्वानों का सत्कार तथा उनसे मिलाप और दान अर्थात् सबके उपकार के लिये विद्या का देना है, इनसे (एकमेकम्) एक-एक कर्म करके (त्रिः) त्रिगुणित सुखों को (सुन्वते) प्राप्त करते हैं (ते) वे बुद्धिमान् लोग (नः) हमारे लिये (रत्नानि) विद्या और सुवर्णादि धनों को (धत्तन) अच्छी प्रकार धारण करें।

*व्याख्या—*
सब मनुष्यों को उचित है कि जो ब्रह्मचारी आदि चार आश्रमों के कर्म तथा यज्ञ के अनुष्ठान आदि तीन प्रकार के हैं, उनको मन, वाणी और शरीर से यथावत् करें। इस प्रकार मिलकर सात कर्म होते हैं, जो मनुष्य इनको किया करते हैं, उनके सङ्ग उपदेश और विद्या से रत्नों को प्राप्त होकर सुखी होते हैं, वे एक-एक कर्म को सिद्ध वा समाप्त करके दूसरे का आरम्भ करें, इस क्रम से शान्ति और पुरुषार्थ से सब कर्मों का सेवन करते रहें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
*व्हाट्सएप चैनल लिंक :*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:* https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Nov, 01:37


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७८/३५० (178/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक २२ (09/22)*
*अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।*
*तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥*

*शब्दार्थ—*
अनन्या:—जिसका कोई अन्य लक्ष्य न हो, अनन्य भाव से; चिन्तयन्त:—चिन्तन करते हुए; माम्—मुझको; ये—जो; जना:—व्यक्ति; पर्युपासते—ठीक से पूजते हैं; तेषाम्— उन; नित्य—सदा; अभियुक्तानाम्—भक्ति में लीन मनुष्यों की; योग—आवश्यकताएँ; क्षेमम्—सुरक्षा, आश्रय; वहामि—वहन करता हूँ; अहम्—मैं।

*अनुवाद—*
परंतु जो निष्कामी -- पूर्ण ज्ञानी हैं, जो संन्यासी अनन्यभावसे युक्त हुए अर्थात् परमेश्वर को आत्मरूपसे जानते हुए मेरा(ईश्वर का) निरन्तर चिन्तन करते हुए मेरी(ईश्वर की) श्रेष्ठ निष्काम उपासना करते हैं? निरन्तर मुझमें(ईश्वर में) ही स्थित उन परमार्थज्ञानियों का योगक्षेम मैं(ईश्वर) चलाता हूँ। अप्राप्त वस्तुकी प्राप्ति का नाम योग है और प्राप्त वस्तु की रक्षाका नाम क्षेम है? उनके ये दोनों काम मैं(ईश्वर) स्वयं किया करता हूँ। क्योंकि ज्ञानीको तो मैं(ईश्वर) अपना ही मानता हूँ और वे उपर्युक्त भक्त मेरे(ईश्वर के) प्रिय हैं।

*अध्याय ०९ श्लोक २३ (09/23)*
*येऽप्यन्यदेवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:।*
*तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्॥*

*शब्दार्थ—*
ये—जो; अपि—भी; अन्य—दूसरे; देवता—देवताओं के; भक्ता:—भक्तगण; यजन्ते—पूजते हैं; श्रद्धया अन्विता:—श्रद्धापूर्वक; ते—वे; अपि—भी; माम्— मुझको; एव—केवल; कौन्तेय—हे कुन्तीपुत्र; यजन्ति—पूजा करते हैं; अविधि पूर्वकम्—त्रुटिपूर्ण ढंग से।

*अनुवाद—*
हे कुन्तीपुत्र! जो लोग अन्य देवताओं के भक्त हैं और उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं, वास्तव में वे भी मेरी(ईश्वर की) ही पूजा करते हैं, परंतु अविधिपूर्वक ( करते हैं )। अविधि अज्ञान को करते हैं? सो वे अज्ञानपूर्वक मेरा(ईश्वर का) पूजन करते हैं।  
          
              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

17 Nov, 05:32


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में अभ्युदयार्थ परमात्मा से प्रार्थना*

*त्वं तृतं त्वंपर्येष्युत्सं सहस्रधारं विदथं स्वर्विदं तवेद्विष्णो बहुधावीर्याणि। त्वं नः पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपैः सुधायां मा धेहि परमेव्योमन्॥*

*(अथर्ववेद - काण्ड 17; सूक्त 1; मन्त्र 15)*

*मन्त्रार्थ—*
[हे परमेश्वर !] (त्वम्) तू (तृतम्=त्रितम्) तीनों [कालों] के बीच फैले हुए [जगत्] में, (त्वम्) तू (सहस्रधारम्) सहस्रों धाराओंवाले (उत्सम्) स्रोते, [अर्थात्] (स्वर्विदम्) सुख पहुँचानेवाले (विदथम्) विज्ञान समाज में (परि) सब ओर से (एषि)व्यापक है, (विष्णो) हे विष्णु ! [सर्वव्यापक परमेश्वर] (तव इत्) तेरे ही...

*व्याख्या—*
जो परमात्मा सर्वदा सब संसार में सर्वव्यापक रहकर विद्वानों की उन्नति करता है, हम सब उसी की उपासना से विद्वान् होकर उन्नति करें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
*व्हाट्सएप चैनल लिंक :*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:* https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

17 Nov, 05:32


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७७/३५० (177/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक २० (09/20)*
*त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।*
*ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्न‍‍न्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्॥*

*शब्दार्थ—*
त्रै-विद्या:—तीन वेदों के ज्ञाता; माम्—मुझको; सोम-पा:—सोम रसपान करने वाले; पूत—पवित्र; पापा:—पापों का; यज्ञै:—यज्ञों के साथ; इष्ट्वा—पूजा करके; स्व:- गतिम्—स्वर्ग की प्राप्ति के लिए; प्रार्थयन्ते—प्रार्थना करते हैं; ते—वे; पुण्यम्— पवित्र; आसाद्य—प्राप्त करके; सुर-इन्द्र—इन्द्र के; लोकम्—लोक को; अश्नन्ति— भोग करते हैं; दिव्यान्—दैवी; दिवि—स्वर्ग में; देव-भोगान्—देवताओं के आनन्द को।

*अनुवाद—*
जो वेदों का अध्ययन करते तथा सोमरस का पान करते हैं, वे स्वर्ग प्राप्ति की गवेषणा करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से मेरी पूजा करते हैं। वे पापकर्मों से शुद्ध होकर, इन्द्र के पवित्र स्वर्ग जाते हैं, जहाँ वे देवताओं का सा आनन्द भोगते हैं।

*अध्याय ०९ श्लोक २१ (09/21)*
*ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।*
*एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते॥*

*शब्दार्थ—*
ते—वे; तम्—उसको; भुक्त्वा—भोग करके; स्वर्ग-लोकम्—स्वर्ग को; विशालम्— विस्तृत; क्षीणे—समाप्त हो जाने पर; पुण्ये—पुण्यकर्मों के फल; मर्त्य-लोकम्— मृत्युलोक में; विशन्ति—नीचे गिरते हैं; एवम्—इस प्रकार; त्रयी—तीनों वेदों के; धर्मम्—सिद्धान्तों के; अनुप्रपन्ना:—पालन करने वाले; गत-आगतम्—मृत्यु तथा जन्म को; काम-कामा:—इन्द्रियसुख चाहने वाले; लभन्ते—प्राप्त करते हैं।

*अनुवाद—*
जिन्होंने तीनों वेदों के कर्मकाण्ड का अध्ययन किया हो और जो स्वर्गादि फल के प्रापक यज्ञयागादि के विधि-विधान भी जानते हों; ऐसे लोग यदि सकाम भावना से श्रद्धापूर्वक उन कर्मों का अनुष्ठान करते हैं, तो वे स्वर्ग लोक को प्राप्त हो कर वहाँ दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं। सकाम भावना से किये गये ये यज्ञकर्म अनित्य फल देने वाले होते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि स्वर्ग को प्राप्त जीव पुण्य समाप्त होने पर मृत्युलोक में प्रवेश करते हैं। ऐसे अविवेकी कामी लोगों के प्रति भगवान् की अरुचि उनके इन शब्दों में स्पष्ट होती है कि वेदोक्त कर्म का अनुष्ठान कर भोगों की कामना करने वाले बारम्बार (स्वर्ग को) जाते और (संसार को) आते हैं।

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

17 Nov, 05:32


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार, सर्वोत्तम पथप्रदर्शक/मित्र कौन है?*

*य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम्। इन्द्रः स नो युवा सखा॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 127)*

*मन्त्रार्थ—*
(यः-इन्द्रः) जो ऐश्वर्यवान् परमात्मा (सुनीती) सुनीति-शोभन नेतृत्व से—पथप्रदर्शकता से (परावतः) दूर गये—पथभ्रष्ट कुमार्ग से (यदुम्) मनुष्य को “यदवः मनुष्याः” [निघं॰ २.३] (तुर्वशम्-आनयत्) समीप—अपने समीप—सन्मार्ग में “तुर्वशः-अन्तिकनाम” [निघं॰ २.१६] ले आता है (सः-नः) वह हमारे (युवा सखा) सदा बलवान् बना रहने वाला मित्र है।

*व्याख्या—*
परमात्मा शोभन पथप्रदर्शकता से भटके हुए जन को सुपथ पर ले आता है वह मानव का सदा साथी मित्र है उस जैसा पथप्रदर्शक और मित्र कोई नहीं है।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

17 Nov, 05:32


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७६/३५० (176/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक १८ (09/18)*
*गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत्।*
*प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्॥*

*शब्दार्थ—*
गति:—लक्ष्य; भर्ता—पालक; प्रभु:—स्वामी; साक्षी—गवाह; निवास:—धाम; शरणम्—शरण; सु-हृत्—घनिष्ठ मित्र; प्रभव:—सृष्टि; प्रलय:—संहार; स्थानम्— भूमि, स्थिति; निधानम्—आश्रय, विश्राम स्थल; बीजम्—बीज, कारण; अव्ययम्— अविनाशी।

*अनुवाद—*
मैं(ईश्वर) ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अत्यन्त प्रिय मित्र हूँ। मैं(ईश्वर) सृष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज/आधारभूत कारण भी हूँ।

*अध्याय ०९ श्लोक १९ (09/19)*
*तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च।*
*अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्च‍ाहमर्जुन॥*

*शब्दार्थ—*
तपामि—ताप देता हूँ, गर्मी पहुँचाता हूँ; अहम्—मैं; वर्षम्—वर्षा; निगृह्णामि—रोके रहता हूँ; उत्सृजामि—भेजता हूँ; च—तथा; अमृतम्—अमरत्व; च— तथा; एव—निश्चय ही; मृत्यु:—मृत्यु; च—तथा; सत्—आत्मा; असत्—पदार्थ; च— तथा; अहम्—मैं; अर्जुन—हे अर्जुन।

*अनुवाद—*
हे अर्जुन! मैं(ईश्वर) ही ताप प्रदान करता हूँ और वर्षा को रोकता तथा लाता हूँ। मैं(ईश्वर) अमरत्व हूँ और साक्षात् मृत्यु भी हूँ। आत्मा तथा पदार्थ (सत् तथा असत्) दोनों मुझ (ईश्वर) में ही हैं।             

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:49


*🕉️महान आध्यात्मिक गुरु व समाज सुधारक, सिख पंथ के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।*

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:48


🕉️समस्त सनातनियों को कार्तिक पूर्णिमा एवं देव दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

🕉️कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है।

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:48


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार उत्तम अध्यापक/गुरु के लक्षण*

*अर्धऋचौरुक्थानाँ रूपम्पदैराप्नोति निविदः। प्रणवैः शस्त्राणाँरूपम्पयसा सोम आप्यते॥*

*पद पाठ—*
अर्द्धऽऋचैरित्यर्द्धऽऋचैः। उक्थानाम्। रूपम्। पदैः। आप्नोति। निविद इति निऽविदः। प्रणवैः। प्रनवैरिति प्रऽनवैः। शस्त्राणाम्। रूपम्। पयसा। सोमः। आप्यते।

*(यजुर्वेद - अध्याय 19; मन्त्र 25)*

(ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः, देवता - सोमो देवता, छन्दः - भुरिगनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः)

*मन्त्रार्थ —*
जो विद्वान् (अर्द्धऽऋचैः) ऋचाओं के अर्ध भागों से (उक्थानाम्) कथन करने योग्य वैदिक स्तोत्रों का (रूपम्) स्वरूप (पदैः) सुबन्त-तिडन्त पदों और (प्रणवैः) ओंकारों से (शस्त्राणाम्) शस्त्रों का (रूपम्) स्वरूप और (निविदः) जो निश्चय से प्राप्त होते हैं, उनको (आप्नोति) प्राप्त होता है वा जिस विद्वान् से (पयसा) जल के साथ (सोमः) सोम ओषधि का रस (आप्यते) प्राप्त होता है, सो वेद का जानने वाला कहाता है।

*व्याख्या—*
जो विद्वान् वेदस्थ पद-वाक्य-मन्त्र-विभागों के शब्द-अर्थ और सम्बन्धों का यथावद्विज्ञान करते हैं, वे वेद के तात्पर्य को जानने वाले इस संसार में अध्यापक/गुरु होते हैं।

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :* https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:48


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७५/३५० (175/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक १६ (09/16)*
*अहं क्रतुरहं यज्ञ: स्वधाहमहमौषधम्।*
*मन्‍त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्न‍िरहं हुतम्॥*

*शब्दार्थ—*
अहम्—मैं; क्रतु:—वैदिक अनुष्ठान, कर्मकाण्ड; अहम्—मैं; यज्ञ:—स्मार्त यज्ञ; स्वधा—तर्पण; अहम्—मैं; अहम्—मैं; औषधम्—जड़ीबूटी; मन्त्र:—दिव्य ध्वनि; अहम्—मैं; अहम्—मैं; एव—निश्चय ही; आज्यम्—घृत; अहम्—मैं; अग्नि:—अग्नि; अहम्—मैं; हुतम्—आहुति, भेंट ।.

*अनुवाद—*
क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषध मैं हूँ, मन्त्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं हूँ। जाननेयोग्य पवित्र, ओंकार, ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ। इस सम्पूर्ण जगत्का पिता, धाता, माता, पितामह, गति, भर्ता, प्रभु, साक्षी, निवास, आश्रय, सुहृद्, उत्पत्ति, प्रलय, स्थान, निधान तथा अविनाशी बीज भी मैं(ईश्वर) ही हूँ।

*अध्याय ०९ श्लोक १७ (09/17)*
*पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह:।*
*वेद्यं पवित्रम् ॐकार ऋक् साम यजुरेव च॥*

*शब्दार्थ—*
पिता—पिता; अहम्—मैं; अस्य—इस; जगत:—ब्रह्माण्ड का; माता—माता; धाता— आश्रयदाता; पितामह:—दादा; वेद्यम्—जानने योग्य; पवित्रम्—शुद्ध करने वाला; ॐ-कार—ॐ अक्षर; ऋक्—ऋग्वेद; साम—सामवेद; यजु:—यजुर्वेद; एव—निश्चय ही; च—तथा।

*अनुवाद—*
मैं(ईश्वर) इस ब्रह्माण्ड का पिता, माता, आश्रयदाता तथा पितामह हूँ। मैं(ईश्वर) ज्ञेय (जानने योग्य), शुद्धिकर्ता तथा ओंकार हूँ। मैं(ईश्वर) ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद भी हूँ।

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:48


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में पूर्वकर्मों के आधार पर पुनर्जन्म का विधान*

*अयं देवाय जन्मने स्तोमो विप्रेभिरासया। अकारि रत्नधातमः॥*

*पद पाठ—*
अयम्। देवाय। जन्मने। स्तोमः। विप्रेभिः। आसया। अकारि। रत्नऽधातमः॥

*(ऋग्वेद - मण्डल 1; सूक्त 20; मन्त्र 1)*

(ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः, देवता - ऋभवः, छन्दः - गायत्री, स्वरः - षड्जः)

*मन्त्रार्थ—*
(ऋभुभिः) प्रशस्त विद्वानों के द्वारा (आसया) मुखेन=मुख से, (देवाय) दिव्यगुणभोगयुक्ताय=जो दिव्य गुणों से भोग किये हुए हैं, उनके लिये, (जन्मने) वर्त्तमानदेहोपयोगाय पुनः शरीरधारणेन प्रादुर्भावाय वा=वर्त्तमान देह के उपयोग हो जाने पर पुनः शरीर धारण करने, यादृशः=जैसा, (रत्नधातमः) रत्नानि रमणीयानि सुखानि दधाति येन सोऽतिशयितः=रत्नों के द्वारा रममीय अतिशय सुखों को देने वाला, (अयम्) विद्याविचारेण प्रत्यक्षमनुष्ठीयमानः=विद्या के विचार से परमेश्वर को प्रत्यक्ष करने वाले (स्तोमः) स्तुतिसमूहः=स्तुतियों के समूह (अकारि) क्रियते=करते हैं, (स)=वह, (तादृशानि)=उस प्रकार से, (जन्मभोगकारी)=जन्म के भोग करने वाले (जायते)=होते हैं।

*व्याख्या—*
इस मन्त्र में पुनर्जन्म का विधान जानना चाहिये। मनुष्य जैसे कर्म किया करते हैं, वैसे ही जन्म और भोग उनको प्राप्त होते हैं।

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :* https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:48


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७४/३५० (174/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक १४ (09/14)*
*सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रता:।*
*नमस्यन्तश्च मां भक्त्य‍ा नित्ययुक्ता उपासते॥*

*शब्दार्थ—*
सततम्—निरन्तर; कीर्तयन्त:—कीर्तन करते हुए; माम्—मेरे विषय में; यतन्त:— प्रयास करते हुए; च—भी; दृढ-व्रता:—संकल्पपूर्वक; नमस्यन्त:—नमस्कार करते हुए; च—तथा; माम्—मुझको; भक्त्या—भक्ति में; नित्य-युक्ता:—सदैव रत रहकर; उपासते—पूजा करते हैं।

*अनुवाद—*
वे दृढ़व्रती भक्त अर्थात् जिनका निश्चय दृढ़स्थिरअचल है ऐसे वे भक्तजन सदानिरन्तर ब्रह्मस्वरूप मुझको कीर्तन करते हुए तथा इन्द्रियनिग्रह शम दम दया और अहिंसा आदि धर्मोंसे युक्त होकर प्रयत्न करते हुए एवं हृदयमें वास करनेवाले मुझ परमात्माको भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हुए और सदा मेरा चिन्तन करनेमें लगे रहकर। मेरी उपासना, सेवा करते रहते हैं।

*अध्याय ०९ श्लोक १५ (09/15)*
*ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते।*
*एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्॥*

*शब्दार्थ—*
ज्ञान-यज्ञेन—ज्ञान के अनुशीलन द्वारा; च—भी; अपि—निश्चय ही; अन्ये—अन्य लोग; यजन्त:—यज्ञ करते हुए; माम्—मुझको; उपासते—पूजते हैं; एकत्वेन—एकान्त भाव से; पृथक्त्वेन—द्वैतभाव से; बहुधा—अनेक प्रकार से; विश्वत:-मुखम्—विश्व रूप में।

*अनुवाद—*
ज्ञानीजन दूसरी उपासनाओंको छोड़कर भगवद्विषयक ज्ञानरूप यज्ञसे मेरा पूजन करते हुए उपसना किया करते हैं अर्थात् परमब्रह्म परमात्मा एक ही है? ऐसे एकत्वरूप परमार्थज्ञानसे पूजन करते हुए मेरी उपासना करते हैं। और कोई–कोई पृथक् भावसे अर्थात् आदित्य? चन्द्रमा आदिके भेदसे इस प्रकार समझकर उपासना करते हैं कि वही परमात्मा, सूर्य आदिके रूपमें स्थित हुए हैं। तथा कितने ही भक्त ऐसा समझकर कि वही सब ओर मुखवाले विश्वमूर्ति भगवान् अनेक रूपसे स्थित हो रहे हैं। उन विश्वरूप विराट् परमेश्वर की ही विविध प्रकारसे उपासना करते हैं।            

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:47


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : परस्पर मिलकर एक चित्त होकर रहने का उपदेश।*

*सहृदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि वः। अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जातमिवाघ्न्या॥*

*पद पाठ—*
सऽहृदयम् । साम्ऽमनस्यम् । अविऽद्वेषम् । कृणोमि । व: । अन्य: । अन्यम् । अभि । हर्यत । वत्सम् । जातम्ऽइव । अघ्न्या॥

*(अथर्ववेद - काण्ड 3; सूक्त 30; मन्त्र 1)*

(ऋषिः - अथर्वा, देवता - चन्द्रमाः, सांमनस्यम्, छन्दः - अनुष्टुप्, सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त)

*मन्त्रार्थ—*
मैं ईश्वर (वः) तुम सब को (सहृदयं) एक हदय वाला/ जैसे अपने लिये सुख चाहते हो ऐसे दूसरों के लिए भी समान हृदय रहो (सांमनस्यं) एक चित्त वाला/मन से सम्यक् प्रसन्नता और , (अविद्वषं) तथा परस्पर द्वेषभाव से रहित (कृणोमि) करता हूं । हे गृहस्थ के लोगो ! (जातं वत्सं अध्या इव) जिस प्रकार उत्पन्न हुए बछड़े के प्रति प्रेम से खिंचकर गाय दौड़ी हुई आती है उस प्रकार (अन्यः अन्यम् अभि हर्यत) एक दूसरे के पास, मिलने के लिये प्रेम से खिंचकर जाओ।

*व्याख्या—*
परमकृपालु परमात्मा हमें उपदेश देते हैं, कि हे मेरे प्यारे पुत्रो! तुम लोग आपस में एक-दूसरे के सहायक और आपस में प्रेम करनेवाले बनो, आपस में वैर विरोध आदि कभी मत करो, जैसे गौ अपने नवीन उत्पन्न हुए बछड़े से अत्यन्त प्रेम करती और उसकी सर्वथा रक्षा करती है, ऐसे आप लोग आपस में परम प्रेम करते हुए एक दूसरे की रक्षा करो/परस्पर मेल करो, कभी आपस में वैरविरोध आदि न किया करो, तभी आप लोगों का कल्याण होगा अन्यथा कभी नहीं। इसके लिए सब मनुष्य वेदानुगामी होकर सत्य ग्रहण करके एकमतता करें और स्वार्थ/अहंकार छोड़कर सच्चे प्रेम से एक दूसरे को सुधारें। यह उपदेश आप का कल्याण करनेवाला है इसको हमें कभी नहीं भूलना चाहिये।

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :* https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Nov, 05:47


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७३/३५० (173/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक १२ (09/12)*
*मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस:।*
*राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता:॥*

*शब्दार्थ—*
मोघ-आशा:—निष्फल आशा; मोघ-कर्माण:—निष्फल सकाम कर्म; मोघ-ज्ञाना:— विफल ज्ञान; विचेतस:—मोहग्रस्त; राक्षसीम्—राक्षसी; आसुरीम्—आसुरी; च— तथा; एव—निश्चय ही; प्रकृतिम्—स्वभाव को; मोहिनीम्—मोहने वाली; श्रिता:— शरण ग्रहण किये हुए।

*अनुवाद—*
क्योंकि वे मोघाशा(जिनकी आशाएँ-कामनाएँ व्यर्थ हों ऐसे व्यर्थ कामना करनेवाले) और मोघकर्मा -(व्यर्थ कर्म करनेवाले होते हैं) क्योंकि उनके द्वारा जो कुछ अग्निहोत्रादि कर्म किये जाते हैं वे सब अपने अन्तरात्मारूप परमात्मा का अनादर करने के कारण निष्फल हो जाते हैं। इसलिये वे मोघकर्मा होते हैं। इसके अतिरिक्त वे मोघज्ञानी (निष्फल ज्ञानवाले होते हैं? अर्थात् उनका ज्ञान भी निष्फल ही होता है।) और वे विचेता अर्थात् विवेकहीन भी होते हैं। तथा वे मोह उत्पन्न करनेवाली देहात्मवादिनी राक्षसी और आसुरी प्रकृतिका यानी राक्षसोंके और असुरोंके स्वभावका आश्रय करनेवाले हो जाते हैं। अभिप्राय यह कि तोड़ो? फोड़ो? पिओ? खाओ? दूसरोंका धन लूट लो इत्यादि वचन बोलनेवाले और बड़े क्रूरकर्मा हो जाते हैं।

*अध्याय ०९ श्लोक १३ (09/13)*
*महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता:।*
*भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्॥*

*शब्दार्थ—*
महा-आत्मान:—महापुरुष; तु—लेकिन; माम्—मुझको; पार्थ—हे पृथापुत्र; दैवीम्— दैवी; प्रकृतिम्—प्रकृति के; आश्रिता:—शरणागत; भजन्ति—सेवा करते हैं; अनन्य- मनस:—अविचलित मन से; ज्ञात्वा—जानकर; भूत—सृष्टि का; आदिम्—उद्गम; अव्ययम्—अविनाशी।

*अनुवाद—*
परन्तु जो श्रद्धायुक्त हैं और भगवद्भक्तिरूप मोक्षमार्गमें लगे हुए हैं वे, हे पार्थ शम? दम? दया? श्रद्धा आदि सद्गुणरूप देवों के स्वभावका अवलम्बन करनेवाले उदारचित्त महात्मा भक्तजन? मुझको(ईश्वरको) सब भूतोंका अर्थात् आकाशादि पञ्चभूतोंका और समस्त प्राणियोंका भी आदिकारण जानकर? एवं अविनाशी समझकर? अनन्य मनसे युक्त हुए भजते हैं अर्थात् मेरा(ईश्वर का) चिन्तन किया करते हैं।

              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Nov, 08:00


*आत्मबोध* 🕉️🚩
*कार्तिक शुक्ल एकादशी : तुलसी विवाह*

*_'हर घर के आँगन में तुलसी, तुलसी बड़ी महान है।_*
*_जिस घर में ये तुलसी रहती, वो घर स्वर्ग समान है।'_*

*तुलसी कौन थीं?*
तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म में एक कन्या थीं, जिनका नाम वृन्दा था। राक्षस कुल में जन्म होने पर भी वह बचपन से ही भगवान् विष्णु की भक्त थीं। वे बड़े ही प्रेम से भगवान् की सेवा व पूजा किया करती थीं; जब वह बड़ी हुईं, तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानवराज जलन्धर से हो गया। जलन्धर समुद्र से उत्पन्न हुआ था।

*वृन्दा का सङ्कल्प—*
वृन्दा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थीं। वह सदा अपने पति की सेवा किया करती थीं। एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ। जब जलन्धर युद्ध पर जाने लगे, तो वृन्दा ने कहा, "स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं। आप जब तक युद्ध में रहेंगे मैं पूजा में बैठ कर आपकी विजय हेतु अनुष्ठान करुँगी और जब तक आप वापिस नहीं आ जाते, मैं अपना सङ्कल्प नहीं छोड़ूँगी।" जलन्धर तो युद्ध में चला गया और वृन्दा व्रत का सङ्कल्प लेकर पूजा में बैठ गयीं। उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलन्धर को ना जीत सके।

*देवताओं द्वारा भगवान् विष्णु की प्रार्थना—*
सारे देवता जब हारने लगे, तो विष्णु जी के पास गये; सबने भगवान् से प्रार्थना की, तो भगवान् कहने लगे, "वृन्दा मेरी परम भक्ता है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता।" फिर देवता बोले, "भगवान् दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है। अब आप ही हमारी सहायता कर सकते हैं।"

*भगवान् विष्णु द्वारा देवताओं की सहायता व वृन्दा का शाप—*
भगवान् जलन्धर का ही रूप रख वृन्दा के महल में पँहुच गये। जैसे ही वृन्दा ने अपने पति को देखा, वे तुरन्त पूजा से उठ गईं और उनके चरणों को स्पर्श किया। जैसे ही उनका सङ्कल्प टूटा, युद्ध में देवताओं ने जलन्धर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया। उसका सिर वृन्दा के महल में गिरा। जब वृन्दा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है, तो वे सोचने लगीं फिर ये जो मेरे सामने खड़े हैं ये कौन हैं?
उन्होंने पूछा, "आप कौन हो, जिसका स्पर्श मैने किया?" तब भगवान् अपने रूप में आ गये, पर वे कुछ ना बोल सके। वृन्दा सारी बात समझ गईं, उन्होंने भगवान् को श्राप दे दिया कि आप पत्थर के हो जाओ और भगवान तुरन्त पत्थर के हो गये।

*वृन्दा का सती होना—*
सभी देवता हाहाकार करने लगे, लक्ष्मी जी रोने लगीं और सभी प्रार्थना करने लगे, तब वृन्दा जी ने भगवान् को पुनः वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयीं।

*वृन्दा से तुलसी बन शालिग्राम सङ्ग पूजन—*
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान् विष्णु ने कहा, "आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक स्वरूप इस पत्थर के रूप में रहेगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुँगा।" तब से सभी तुलसी जी की पूजा करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में कराया जाता है।

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Nov, 08:00


*आत्मबोध* 🕉️🚩
*कार्तिक शुक्ल एकादशी : देवोत्थान/ देवउठनी एकादशी*

देवोत्थान एकादशी अथवा देव प्रबोधनी एकादशी भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख पर्वों में से एक है। यह पर्व भगवान् विष्णु को समर्पित है। यह एकादशी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी को मनायी जाती है।
अषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान् विष्णु चार माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं और इसके पश्चात् वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। यही कारण है कि इस दिन को देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी वैष्णव सम्प्रदाय द्वारा बहुत धूम-धाम के साथ मनायी जाती है।

*पारण समय—*
देव प्रबोधिनी एकादशी के पर्व में पारण समय का अत्यन्त महत्व होता है; क्योंकि इस समय ही व्रती द्वारा अपना व्रत खोला जाता है। श्रद्धालुओं द्वारा व्रत खोलने के लिए यही समय सबसे उपयुक्त होता है।

*देवउत्थान एकादशी क्यों मनायी जाती है?*
यह एकादशी दीपावली के बाद आती है और इस दिन ऐसी मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान् विष्णु क्षीरसागर में अपने 4 माह के शयन के पश्चात् जागते हैं और उनके जागने पर ही सभी शुभ माङ्गलिक कार्य किये जाते हैं। इसके साथ ही इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। तुलसी विवाह के समय तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम का यह विवाह सामान्य विवाह की भाँति पूरे धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
तुलसी के वृक्ष को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए भगवान् विष्णु जब भी जागते हैं, तो इसलिए वह सबसे पहली प्रार्थना तुलसी की ही सुनते हैं। वास्तव में तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान् का आवाहन करना।

*देवोत्थान एकादशी कैसे मनाते हैं?*
हर त्योहार की भाँति ही देवोत्थान एकादशी मनाने की भी एक विशेष शैली होती है। देवोत्थान एकादशी के पर्व पर भगवान् विष्णु तथा माता तुलसी की पूजा की जाती है। इस दिन हमें भगवान् विष्णु की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए निम्न रुप से पूजा करनी चाहिए।
देवोत्थान एकादशी के दिन सर्वप्रथम हमें प्रातः उठकर व्रत का सङ्कल्प लेना चाहिए और भगवान् विष्णु का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद घर की साफ-सफाई करने पश्चात् स्नान करना चाहिए और अपने आँगन में भगवान् विष्णु के चरणों की आकृति बनानी चाहिए। एक ओखली में गेरु से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ने को उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढक देना चाहिए। सन्ध्या समय लोगों द्वारा लक्ष्मी और विष्णु पूजन का आयोजन किया जाता है। इस पूजा में गन्ना, चावल, सूखी मिर्च आदि का उपयोग किया जाता है और पूजा के पश्चात् इन चीजों को पण्डित को दान कर दिया जाता है। इस पूरे कार्य को तुलसी विवाह के नाम से जाना जाता है। इसके साथ देवोत्थान एकादशी के दिन रात में घरों के बाहर और पूजा स्थलों पर दीप जलाने चाहिए। रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्यों को भगवान् विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए। इसके उपरान्त भगवान् को शंख, घण्टा, घड़ियाल बजाते हुए उठाना चाहिए। भगवान् को उठाते हुए निम्न संस्कृत श्लोक का जाप करने से भगवान के विशेष कृपा की प्राप्ति होती है।
_*“उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।*_
_*त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥*_
_*उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।*_
_*हिरण्याक्ष प्राणघातिन् त्रैलोक्येमंगलम्कुरु॥”*_
यदि जो लोग संस्कृत उच्चारण करने में असमर्थ हैं। उन्हें उठो देवा, बैठो देवा कहकर भगवान् विष्णु को निद्रा से जगाने का प्रयास करना चाहिए। इस दिन यदि कोई व्यक्ति रातभर जागकर हरि नाम-संकीर्तन करता है, तो उससे भगवान् विष्णु अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।

*देवोत्थान एकादशी की कथा—*
इस पर्व को लेकर कई सारी ऐतिहासिक तथा पौराणिक कथायें प्रसिद्ध हैं। इसी तरह की एक कथा निम्नानुसार है–
एक बार भगवान् नरायण से लक्ष्मी जी ने कहा, "हे नाथ! आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्षों तक सोते ही रह जाते हैं और इस समय में आप समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए मेरा आप से निवेदन है कि आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा कर लिया करें। इससे मुझे भी कुछ विश्राम करने का थोड़ा समय मिल जायेगा।
भगवान् नारायण ने कहा, "देवी तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और विशेषकर तुमको बहुत कष्ट का सामना करना पड़ता है और तुम्हें विश्राम करने का जरा भी समय नहीं मिलता है। इसलिए तुम्हारे कहे अनुसार अब से मैं प्रतिवर्ष चार माह वर्षा ऋतु में शयन कर लिया करुँगा। उस समय तुम्हारा और अन्य देवगणों का अवकाश रहेगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलायेगी। इसके साथ ही मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए बहुत ही मङ्गलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Nov, 08:00


के उत्सव को आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे सङ्ग निवास करुँगा।

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Nov, 07:59


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा की ज्येष्ठता और श्रेष्ठता का वर्णन*

*वस्याꣳ इन्द्रासि मे पितुरुत भ्रातुरभुञ्जतः । माता च मे छदयथः समा वसो वसुत्वनाय राधसे॥*

*पद पाठ—*
वस्यान् । इन्द्र । असि । मे । पितुः । उत । भ्रातुः । अभुञ्जतः । अ । भुञ्जतः । माता । च । मे । छदयथः । समा । स । मा । वसो । वसुत्वनाय । राधसे।

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 292)*

(ऋषिः - मेधातिथि मेध्यातिथी काण्वौ, देवता - इन्द्रः, छन्दः - बृहती, स्वरः - मध्यमः, काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्)

*मन्त्रार्थ—*
(इन्द्र) ऐश्वर्यवन् परमात्मन् (मे) मेरे (अभुञ्जतः) न पालन करने वाले (पितुः) पिता से (उत) और (भ्रातुः) भ्राता से (वस्यान्-असि) अधिक बसाने वाला पालने वाला तू है (वसो) हे बसाने वाले परमात्मन्! (माता च समा ये छदयथः) माता और तू इष्ट देव परमात्मा समान भाव से मेरा संवरण करते हो—रक्षण करते हो—पालते हो (वसुत्वनाय राधसे) अत्यन्त बसाने वाले “वसु शब्दात् त्वनप्रत्ययोऽतिशयार्थश्छान्दसः” धन प्राप्ति के लिये हमें अपनी शरण में लेता है।

*व्याख्या—*
संसार में पिता और भ्राता सम्भव है पालन न कर सकें, परन्तु परमात्मन्! तू अत्यन्त बसाने वाला है—पालन करने वाला है, माता और परमात्मन्! तुम दोनों समान पालन करने वाले हो माता भी कभी पालन करना नहीं त्यागती, ऐसे परमात्मन्! तू भी पालन करना नहीं त्यागता। माता सांसारिक धन से या स्वशरीर गत दूध से पालन करती है परन्तु बसाने वाले परमात्मन्! तू तो अत्यन्त बसाने/पालने वाले आध्यात्मिक धन प्राप्ति के लिये हमें अपनी शरण देता है।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Nov, 07:59


*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १७२/३५० (172/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*नवम अध्याय : राजविद्याराजगुह्ययोग*

*अध्याय ०९ श्लोक १० (09/10)*
मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्।*
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते॥*

*शब्दार्थ—*
मया—मेरे(ईश्वर के) द्वारा; अध्यक्षेण—अध्यक्षता के कारण; प्रकृति:—प्रकृति; सूयते—प्रकट होती है; स—सहित; चर-अचरम्—जड़ तथा जंगम; हेतुना—कारण से; अनेन—इस; कौन्तेय—हे कुन्तीपुत्र; जगत्—दृश्य जगत; विपरिवर्तते—क्रियाशील है।

*अनुवाद—*
हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी(ईश्वर को) शक्तियों में से एक है और मेरी(ईश्वर की) अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं। इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है।

*अध्याय ०९ श्लोक ११ (09/11)*
*अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।*
*परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्॥*

*शब्दार्थ—*
अवजानन्ति—उपहास करते हैं; माम्—मुझको; मूढा:—मूर्ख व्यक्ति; मानुषीम्—मनुष्य रूप में; तनुम्—शरीर; आश्रितम्—मानते हुए; परम्—दिव्य; भावम्—स्वभाव को; अजानन्त:—न जानते हुए; मम—मेरा; भूत—प्रत्येक वस्तु का; महा-ईश्वरम्—परम स्वामी।

*अनुवाद—*
मूर्ख लोग मेरे सम्पूर्ण प्राणियों के महान् ईश्वररूप परमभाव को न जानते हुए मुझे मनुष्य शरीर के आश्रित मानकर अर्थात् साधारण मनुष्य मानकर मेरी अवज्ञा करते हैं।
              शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के टेलीग्राम चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

11 Nov, 05:43


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार कौन मोह शोक लोभ अविद्यादि दोषों से मुक्त होते हैं?*

*यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः। तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः॥*

*(यजुर्वेद - अध्याय 40, मन्त्र 7)*

*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यों! (यस्मिन्) जिस परमात्मा, ज्ञान, विज्ञान वा धर्म में (विजानतः) विशेषकर ध्यानदृष्टि से देखते हुए को (सर्वाणि) सब (भूतानि) प्राणीमात्र (आत्मा, एव) अपने तुल्य ही सुख-दुःखवाले (अभूत्) होते हैं, (तत्र) उस परमात्मा आदि में (एकत्वम्) अद्वितीय भाव को (अनुपश्यतः) अनुकूल योगाभ्यास से साक्षात् देखते हुए योगीजन को (कः) कौन (मोहः) मूढावस्था और (कः) कौन (शोकः) शोक वा क्लेश होता है अर्थात् कुछ भी नहीं।

*व्याख्या -*
जो विद्वान् संन्यासी लोग परमात्मा के सहचारी प्राणीमात्र को अपने आत्मा के तुल्य जानते हैं अर्थात् जैसे अपना हित चाहते वैसे ही अन्यों में भी वर्त्तते हैं, एक अद्वितीय परमेश्वर के शरण को प्राप्त होते हैं, उनको मोह, शोक और लोभादि दोष कदाचित् प्राप्त नहीं होते। और जो लोग अपने आत्मा को यथावत् जान कर परमात्मा को जानते हैं, वे भी सदा सुखी होते हैं।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

03 Nov, 07:15


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में मनुष्यों को ईश्वर का उपदेश*

*हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। यो सावादित्ये पुरुषः सो सावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म॥*

*(यजुर्वेद - अध्याय 40; मन्त्र 17)*

*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यों! जिस (हिरण्मयेन) ज्योतिःस्वरूप (पात्रेण) रक्षक मुझसे (सत्यस्य) अविनाशी यथार्थ कारण के (अपिहितम्) आच्छादित (मुखम्) मुख के तुल्य उत्तम अङ्ग का प्रकाश किया जाता (यः) जो (असौ) वह (आदित्ये) प्राण वा सूर्य्यमण्डल में (पुरुषः) पूर्ण परमात्मा है (सः) वह (असौ) परोक्षरूप (अहम्) मैं (खम्) आकाश के तुल्य व्यापक (ब्रह्म) सबसे गुण, कर्म और स्वरूप करके अधिक हूं (ओ३म्) सबका रक्षक जो मैं उसका ‘ओ३म्’ ऐसा नाम जानो।

*व्याख्या -*
सब मनुष्यों के प्रति ईश्वर उपदेश करता है कि हे मनुष्यो! जो मैं यहां हूं, वही अन्यत्र सूर्य्यादि लोक में, जो अन्यस्थान सूर्य्यादि लोक में हूं वही यहां हूं, सर्वत्र परिपूर्ण आकाश के तुल्य व्यापक मुझसे भिन्न कोई बड़ा नहीं, मैं ही सबसे बड़ा हूं। मेरे सुलक्षणों के युक्त पुत्र के तुल्य प्राणों से प्यारा मेरा निज नाम ‘ओ३म्’ यह है। जो मेरा प्रेम और सत्याचरण भाव से शरण लेता, उसकी अन्तर्यामीरूप से मैं अविद्या का विनाश, उसके आत्मा को प्रकाशित करके शुभ, गुण, कर्म, स्वभाववाला कर सत्यस्वरूप का आवरण स्थिर कर योग से हुए शुद्ध विज्ञान को दे और सब दुःखों से अलग करके मोक्षसुख को प्राप्त कराता हूं।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

03 Nov, 07:15


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १६३/३५०(163/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टमऽध्याय : अक्षरब्रह्मयोग*

*अध्याय ०८ श्लोक २० (08/20)*
*परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन:।*
*य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति॥*

*शब्दार्थ—*
पर:—परम; तस्मात्—उस; तु—लेकिन; भाव:—प्रकृति; अन्य:—दूसरी; अव्यक्त:— अव्यक्त; अव्यक्तात्—अव्यक्त से; सनातन:—शाश्वत; य: स:—वह जो; सर्वेषु— समस्त; भूतेषु—जीवों के; नश्यत्सु—नाश होने पर; न—कभी नहीं; विनश्यति—विनष्ट होती है।

*अनुवाद—*
इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यक्त प्रकृति है, जो शाश्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है। यह परा (श्रेष्ठ) और कभी नाश न होने वाली है। जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता।

*अध्याय ०८ श्लोक २१ (08/21)*
*अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां गतिम्।*
*यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥*

*शब्दार्थ—*
अव्यक्त:—अप्रकट; अक्षर:—अविनाशी; इति—इस प्रकार; उक्त:—कहा गया; तम्—उसको; आहु:—कहा जाता है; परमाम्—परम; गतिम्—गन्तव्य; यम्—जिसको; प्राप्य—प्राप्त करके; न—कभी नहीं; निवर्तन्ते—वापस आते हैं; तत्—वह; धाम—निवास; परमम्—परम; मम—मेरा।

*अनुवाद—*
जो वह अव्यक्त अक्षर ऐसे कहा गया है उसी अक्षर नामक अव्यक्तभावको परम -- श्रेष्ठ गति कहते हैं। जिस परम भावको प्राप्त होकर ( मनुष्य ) फिर संसारमें नहीं लौटते वह मेरा परम श्रेष्ठ धाम है।

            शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

02 Nov, 06:20


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : परमात्मा किन गुणों से युक्त है और कौन उसकी पूजा करते हैं?*

*त्वमित्सप्रथा अस्यग्ने त्रातरृतः कविः । त्वां विप्रासः समिधान दीदिव आ विवासन्ति वेधसः॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 42)*

*मन्त्रार्थ—*
हे (व्रातः) रक्षक (अग्ने) अग्रणी परमेश्वर ! (त्वम् इत्) आप निश्चय ही (सप्रथाः) परमयशस्वी एवं सर्वत्र विस्तीर्ण, (ऋतः) सत्यस्वरूप, और (कविः) वेदकाव्य के रचयिता एवं (मेधावियों) में अतिशय मेधावी (असि) हो। हे (समिधान) सम्यक् प्रकाशमान, (दीदिवः) प्रकाशक परमेश्वर ! (वेधसः) कर्मयोगी (विप्रासः) ज्ञानीजन (त्वाम्) आपकी (आ विवासन्ति) सर्वत्र पूजा करते हैं।

*व्याख्या -*
परमेश्वर सज्जनों का रक्षक, सत्य गुण-कर्म-स्वभाववाला, अतिशय मेधावी, वेदकाव्य का कवि, परम कीर्तिमान्, सर्वत्र व्यापक, ज्योतिष्मान् और प्रकाशकों का भी प्रकाशक है। उसके इन गुणों से युक्त होने के कारण कर्म-कुशल विद्वान् जन सदा ही उसकी पूजा करते हैं।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*व्हाट्सएप चैनल :*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

02 Nov, 06:20


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १६२/३५०(162/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टमऽध्याय : अक्षरब्रह्मयोग*

*अध्याय ०८ श्लोक १८ (08/18)*
*अव्यक्ताद्‍ व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे।*
*रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके॥*

*शब्दार्थ—*
अव्यक्तात्—अव्यक्त से; व्यक्तय:—जीव; सर्वा:—सारे; प्रभवन्ति—प्रकट होते हैं; अह:-आगमे—दिन होने पर; रात्रि-आगमे—रात्रि आने पर; प्रलीयन्ते—विनष्ट हो जाते हैं; तत्र—उसमें; एव—निश्चय ही; अव्यक्त—अप्रकट; संज्ञके—नामक, कहे जाने वाले।

*अनुवाद—*
ब्रह्मा के दिन के शुभारम्भ में सारे जीव अव्यक्त अवस्था से व्यक्त होते हैं और फिर जब रात्रि आती है तो वे पुन: अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं।

*अध्याय ०८ श्लोक १९ (08/19)*
*भूतग्राम: स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते।*
*रात्र्यागमेऽवश: पार्थ प्रभवत्यहरागमे॥*

*शब्दार्थ—*
भूत-ग्राम:—समस्त जीवों का समूह; स:—वही; एव—निश्चय ही; अयम्—यह; भूत्वा भूत्वा—बारम्बार जन्म लेकर; प्रलीयते—विनष्ट हो जाता है; रात्रि—रात्रि के; आगमे— आने पर; अवश:—स्वत:; पार्थ—हे पृथापुत्र; प्रभवति—प्रकट होता है; अह:—दिन; आगमे—आने पर।

*अनुवाद—*
हे अर्जुन! समस्त जीवों का समूह वैसे ही बारम्बार, ब्रह्मा के दिन आने पर(सृष्टि के सृजन काल में) जन्म लेकर ब्रह्मा की रात्रि होते ही (प्रलयकाल में) वे स्वतः नष्ट होते हैं। 
     
                  शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

01 Nov, 06:33


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : उपासना किया हुआ ईश्वर क्या देता है, इस विषय का उपदेश*

*यऽआत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषँयस्य देवाः । यस्य छायामृतँयस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥*

*पद पाठ—*
यः। आत्मदा। इत्यात्मऽदाः। बलदा इति बलऽदाः। यस्य। विश्वे। उपासत इत्युपऽआसते। प्रशिषमिति प्रऽशिषम्। यस्य। देवाः। यस्य। छाया। अमृतम्। यस्य। मृत्युः। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम॥

*(यजुर्वेद - अध्याय 25; मन्त्र 13)*

(ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः, देवता - परमात्मा देवता, छन्दः - निचृत त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः)

*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यो ! (यः) जो (आत्मदाः) आत्मा का दाता तथा (बलदाः) बल का दाता है और (यस्य) जिसके (प्रशिषम्) प्रशासन की (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (उपासते) उपासना करते हैं; एवं जिसके सान्निध्य से सब व्यवहार उत्पन्न होते हैं; (यस्य) जिसका (छाया)आश्रय (अमृतम्) अमृत है; और (यस्य) जिसकी आज्ञा का भंग करना (मृत्युः) मृत्यु है; (तस्मै) उस (कस्मै) सुखस्वरूप (देवाय) देव की हम लोग (हविषा) होम योग्य पदार्थ से (विधेम) सेवा करते हैं।

*व्याख्या—*
हे मनुष्यों ! जिस जगदीश्वर के प्रशासन में बनी हुई मर्यादा में सूर्य आदि लोक नियम से चलते हैं; जिस सूर्य के विना वर्षा और आयु का क्षय नहीं होता; वह सूर्य जिसने बनाया है, उसकी ही उपासना सब लोग मिल कर करें। उपासित ईश्वर क्या देता है—जो ईश्वर उपासना करने से आत्मज्ञान प्रदान करता है, शरीर और आत्मा के बल को बढ़ाता है। उसके प्रशासन की सब विद्वान् लोग उपासना करते हैं। सब व्यवहार उसी से उत्पन्न होते हैं। उसका आश्रय (उपासना) अमृत है। उसकी आज्ञा का भंग करना मृत्यु है । अतः उस सुख स्वरूप, सब के प्रकाशक परमात्मा की सकल उत्तम सामग्री से हम लोग उपासना करें।

हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️

व्हाट्सएप चैनल :
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

वैदिक दर्शन - लिंक:
https://instagram.com/vedicdarshan

हिन्दू एकता संघ - लिंक :
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

01 Nov, 06:33


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १६१/३५०(161/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टमऽध्याय : अक्षरब्रह्मयोग*

*अध्याय ०८ श्लोक १६ (08/16)*
*आब्रह्मभुवनाल्ल‍ोका: पुनरावर्तिनोऽर्जुन।*
*मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥*

*शब्दार्थ—*
आ-ब्रह्म-भुवनात्—ब्रह्मलोक तक; लोका:—सारे लोक; पुन:—फिर; आवर्तिन:— लौटने वाले; अर्जुन—हे अर्जुन; माम्—मुझको; उपेत्य—पाकर; तु—लेकिन; कौन्तेय—हे कुन्तीपुत्र; पुन: जन्म—पुनर्जन्म; न—कभी नहीं; विद्यते—होता है।

*अनुवाद—*
इस जगत् में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं, जहाँ जन्म तथा मरण का चक्कर लगा रहता है। किन्तु हे कुन्तीपुत्र! जो मुझको(ईश्वर के सान्निध्य को) प्राप्त कर लेता है, वह फिर कभी जन्म नहीं लेता।

*अध्याय ०८ श्लोक १७ (08/17)*
*सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदु:।*
*रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना:॥*

*शब्दार्थ—*
सहस्र—एक हजार; युग—युग; पर्यन्तम्—सहित; अह:—दिन; यत्—जो; ब्रह्मण:— ब्रह्मा का; विदु:—वे जानते हैं; रात्रिम्—रात्रि; युग—युग; सहस्र-अन्ताम्—इसी प्रकार एक हजार बाद समाप्त होने वाली; ते—वे; अह:-रात्र—दिन-रात; विद:— जानते हैं; जना:—लोग।

*अनुवाद—*
मानवीय गणना के अनुसार एक हजार युग मिलकर ब्रह्मा का एक दिन बनता है और इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात्रि भी होती है।      
     
                  शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

31 Oct, 13:13


*🪔 🪔*

🪔 *ईश्वर आपको एवं आपके पूरे परिवार को दीपावली के शुभ अवसर पर सुख,शांति,और स्वास्थ्य प्रदान करें।*

🪔 *यह दीपावली आपके लिए मंगलमय एवं कल्याणकारी हो एवं आपका स्नेह एवं सहयोग सदा बना रहे अखण्ड व अनंत शुभकामनाओं के साथ आप और आपके पूरे परिवार को 🕉️हिंदू एकता संघ🙏🏻 की तरफ से दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं। परमात्मा, हम सभी को ऐश्वर्य, सद्बुद्धि, भक्ति प्रदान करें। चारों वर्णों के हम सभी सनातनी अपने धर्मबंधुओं के प्रति सद्भाव, एकत्व बढ़ाते हुए निरादर, छुआछूत/ऊंच नीच के अधर्मी भावनाओं को त्याग कर सनातन धर्म की रक्षा और संवर्धन के लिए एकजुट हो पुरुषार्थपूर्वक प्रयत्न करें।*

*शुभ दीपावली*🪔🎇🧨*

United Hindu Official✊🏻🚩

24 Oct, 05:29


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में अतिनिद्रा के त्याग के लिये उपदेश।*

*तं त्वा स्वप्नतथा सं विद्म स नः स्वप्न दुःष्वप्न्यात्पाहि॥*

*(अथर्ववेद - काण्ड 16; सूक्त 5; मन्त्र 3)*

*मन्त्रार्थ—*
(स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (तम्) उस (त्वा) तुझको (तथा) वैसा ही (सम्) अच्छे प्रकार (विद्म) हमजानते हैं, (सः) सो तू (स्वप्न) हे स्वप्न ! [आलस्य] (नः) हमें (दुःष्वप्न्यात्)बुरी निद्रा में उठे कुविचार से (पाहि) बचा।

*व्याख्या—*
हे मनुष्यों ! कुपश्यआदि करने से गठिया आदि रोग होते हैं, गठिया आदि से आलस्य और उससे अनेकविपत्तियाँ मृत्यु आदि होती हैं। इसलिए सब लोग, दुःखों के कारण अतिनिद्रा आदि को खोजकर जीवन से निकालें और केवल परिश्रम की निवृत्ति के लिये ही उचित निद्रा का आश्रय लेकर सदा सचेत रहें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*व्हाट्सएप चैनल–*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:* https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

24 Oct, 05:29


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १५३/३५०(153/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक ३० (07:30)*
*साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदु:।*
*प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतस:॥*

*शब्दार्थ—*
(ये) जो साधक (माम्) मुझे (च) तथा (साधिभूताधिदैवम्) अधिभूत अधिदैवके सहित (च) और (साधियज्ञम्) अधियज्ञ के सहित (विदुः) सही जानते हैं (ते) वे (माम्) मुझे (विदुः) जानते हैं (प्रयाणकाले) अंत काल में (अपि) भी (युक्तचेतसः) युक्तचितवाले हैं अर्थात् मेरे द्वारा दिए जा रहे कष्ट को जानते हुए एक पूर्ण परमात्मा में मन को स्थाई रखते हैं।

*अनुवाद—*
जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव सहित तथा अधियज्ञ सहित (सबका आत्मरूप) मुझे(परमात्माको) अन्तकाल में भी जानते हैं, वे युक्तचित्तवाले पुरुष मुझे(परमात्माको) जानते हैं अर्थात प्राप्त हो जाते हैं।

*ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सुब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानविज्ञानयोगो नाम सप्तमोऽध्यायः॥*

*अथ अक्षरब्रह्मयोगो नाम अष्टमोऽध्याय:*

*अध्याय ०८ श्लोक ०१ (08/01)*
*अर्जुन उवाच*
*किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।*
*अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते॥*

*शब्दार्थ—*
(पुरुषोत्तम) हे पुरुषोत्तम! (तत्) वह (ब्रह्म) ब्रह्म (किम्) क्या है (अध्यात्मम्) अध्यात्म (किम्) क्या है? (कर्म) कर्म (किम्) क्या है? (अधिभूतम्) अधिभूत नामसे (किम्) क्या (प्रोक्तम्) कहा गया है (च) और (अधिदैवम्) अधिदैव (किम्) किसको (उच्यते) कहते हैं?

*अनुवाद—*
अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत नाम से क्या कहा गया है और अधिदैव किसको कहते हैं?

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

24 Oct, 05:28


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : परमात्मा से जीवन में उत्साह पाने हेतु वैदिक प्रार्थना*

*अग्ने युङ्क्ष्वा हि ये तवाश्वासो देव साधवः। अरं वहन्त्याशवः॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 25)*

*मन्त्रार्थ—*
हे (देव) कर्मोपदेशप्रदाता (अग्ने) जगन्नायक परमेश्वर ! ये जो (तव) आपके अर्थात् आप द्वारा रचित (साधवः) कार्यसाधक (आशवः) वेगवान् (अश्वासः) इन्द्रिय, प्राण, मन एवं बुद्धिरूप घोड़े (अरम्) पर्याप्त रूप से (वहन्ति) हमें निर्धारित लक्ष्य पर पहुँचाते हैं, उनको आप (हि) अवश्य (युङ्क्ष्व) कर्म में नियुक्त कीजिए।

*व्याख्या—*
हे परमात्मदेव ! किये हुए कर्मफल के भोगार्थ तथा नवीन कर्म के सम्पादनार्थ शरीररूप रथ तथा इन्द्रिय, प्राण, मन एवं बुद्धि रूप घोड़े आपने हमें दिए हैं। आलसी बनकर हम कभी निरुत्साही और अकर्मण्य हो जाते हैं। आप कृपा कर हमारे इन्द्रिय, प्राण आदि रूप घोड़ों को कर्म में तत्पर कीजिए, जिससे वैदिक कर्मयोग के मार्ग का आश्रय लेते हुए हम निरन्तर अग्रगामी होवें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
व्हाट्सएप —
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

इंस्टाग्राम — https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

24 Oct, 05:28


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १५२/३५०(152/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक २८ (07:28)*

*येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।*
*ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः॥*

*शब्दार्थ—*
येषाम् जिसका; तु–लेकिन; अन्त-गतम्-पूर्ण विनाशः पापम्-पाप; जनानाम्-जीवो का; पुण्य-पवित्र; कर्मणाम्-गतिविधियाँ; ते–वे; द्वन्द्व-द्विविधताएँ; मोह-मोह; निर्मुक्ताः-से मुक्त; भजन्ते-आराधना करना; माम्-मुझको; दृढ-व्रताः-दृढसंकल्प।

*अनुवाद—*
लेकिन पुण्य कर्मों में संलग्न रहने से जिन व्यक्तियों के पाप नष्ट हो जाते हैं, वे मोह के द्वन्द्वों से मुक्त हो जाते हैं। ऐसे लोग दृढ़ संकल्प के साथ मेरी पूजा करते हैं।

*अध्याय ०७ श्लोक २९ (07/29)*
*जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।*
*ते ब्रह्य तद्विदुः कृत्स्न्मध्यात्म कर्म चाखिलम्॥*

*शब्दार्थ—*
जरा-वृद्धावस्था; मरण-और मृत्यु से; मोक्षाय–मुक्ति के लिए; माम्-मुझको, मेरे; आश्रित्य–शरणागति में; यतन्ति-प्रयत्न करते हैं; ये-जो; ते-ऐसे व्यक्ति; ब्रह्म-ब्रह्म; तत्-उस; विदु-जान जाते हैं; कृत्स्नम्-सब कुछ; अध्यात्मम्-जीवात्मा; कर्म-कर्म; च-भी; अखिलम् सम्पूर्ण;

*अनुवाद—*
जो मेरी शरण ग्रहण करते हैं, वे बुढ़ापे और मृत्यु से छुटकारा पाने की चेष्टा करते हैं, वे ब्रह्म, अपनी आत्मा और समस्त कार्मिक गतिविधियों के क्षेत्र को जान जाते हैं।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

22 Oct, 03:13


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में सर्वशक्तिमान परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी की उपासना न करने का उपदेश*

*न यस्येन्द्रो वरुणो न मित्रो व्रतमर्यमा न मिनन्ति रुद्रः। नारातयस्तमिदं स्वस्ति हुवे देवं सवितारं नमोभिः॥*

*(ऋग्वेद - मण्डल 2; सूक्त 38; मन्त्र 9)*

*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यों ! (यस्य) जिस जगदीश्वर के (व्रतम्) नियम को (न) न (इन्द्रः) सूर्य्य और बिजली (न) न (वरुणः) जल (न) न (मित्रः) वायुः (न) न (अर्य्यमा) द्वितीय प्रकार का नियन्ता धारक वायु (न) न (रुद्रः) जीव (न) न (अरातयः) शत्रुजन (मिनन्ति) नष्ट करते हैं (तम्) उस (इदम्) इस (स्वस्ति) सुखरूप (सवितारम्) समस्त जगत् के उत्पन्न करनेवाले (देवम्) दाता परमात्मा को (नमोभिः) सत्कर्मों से जैसे मैं (हुवे) स्तुति करुँ वैसे तुम भी प्रशंसा करो।

*व्याख्या—*
इस संसार में कोई पदार्थ ईश्वर के तुल्य नहीं है तो अधिक कैसे हो और कोई भी इसके नियम का उल्लङ्घन नहीं कर सकता है, इस कारण सब मनुष्यों को उसी आनन्दस्वरूप, समस्त जगत के उत्पन्न करने वाले ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना और अपने सत्कर्मों से उपासना करना चाहिये।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

22 Oct, 03:12


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १५१/३५०(151/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक २६ (07:26)*
*वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।*
*भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन॥*

*शब्दार्थ—*
(अर्जुन) हे अर्जुन! (समतीतानि) पूर्वमें व्यतीत हुए (च) और (वर्तमानानि) वर्तमानमें स्थित (च) तथा (भविष्याणि) आगे होनेवाले (भूतानि) सब भूतोंको (अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ (तु) परंतु (माम्) मुझको (कश्चन) कोई (न) नहीं (वेद) जानता

*अनुवाद—*
हे अर्जुन! पूर्व में व्यतीत हुए और वर्तमान में स्थित तथा आगे होने वाले सब भूतों को मैं जानता हूँ, परन्तु मुझको कोई भी श्रद्धा-भक्तिरहित पुरुष नहीं जानता।

*अध्याय ०७ श्लोक २७ (07/27)*
*इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।*
*सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप॥*

*शब्दार्थ—*
(भारत) हे भरतवंशी (परन्तप) अर्जुन! (सर्गे) संसारमें (इच्छाद्वेषसमुत्थेन) इच्छा और द्वेषसे उत्पन्न (द्वन्द्वमोहेन) सुख-दुःखादि द्वन्द्वरूप मोहसे (सर्वभूतानि) सम्पूर्ण प्राणी (सम्मोहम्) अत्यन्त अज्ञानताको (यान्ति) प्राप्त हो रहे हैं।
केवल हिन्दी अनुवाद: हे भरतवंशी अर्जुन! संसारमें इच्छा और द्वेषसे उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वन्द्वरूप मोहसे सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञानताको प्राप्त हो रहे हैं।

*अनुवाद—*
हे भरतवंशी अर्जुन! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दुःखादि द्वंद्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञता को प्राप्त हो रहे हैं।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

22 Oct, 03:12


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : सेनापति/राजा के कर्तव्य का उपदेश।*

*इन्द्र चित्तानि मोहयन्नर्वाङाकूत्या चर। अग्नेर्वातस्य ध्राज्या तान्विषूचो वि नाशय॥*

*(अथर्ववेद - काण्ड 3; सूक्त 2; मन्त्र 3)*

*पद पाठ—*
इन्द्र । चित्तानि । मोहयन् । अर्वाङ् । आऽकूत्या । चर ।अग्ने: । वातस्य । ध्राज्या । तान् । विषूच: । वि । नाशय ॥

(ऋषिः - अथर्वा, देवता - इन्द्रः, छन्दः - अनुष्टुप्, सूक्तम् - शत्रु सेनासंमोहन सूक्त)

*मन्त्रार्थ—*
(इन्द्र) हे महाप्रतापी राजन् ! [शत्रुओं के] (चित्तानि) चित्त को (मोहयन्) व्याकुल करता हुआ (अर्वाङ्) हमारे सन्मुख (आकूत्या) उत्तम संकल्प से (चर) आ। (अग्नेः) अग्नि के और (वातस्य) पवन के (ध्राज्या) झोंके से (तान्) उन (विषूचः) विरुद्ध गतिवालों को (वि, नाशय) नाश कर डाल।

*व्याख्या—*
जैसे अग्नि और वायु मिलकर प्रचण्ड हो जाते हैं, इसी प्रकार राजा प्रचण्ड होकर दुष्टों को दण्ड देवे और सत्कर्मी पुरुषों का शिष्टाचार करे।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

22 Oct, 03:12


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १५०/३५०(150/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक २४ (7:24)*
*अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय:।*
*परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥*

*शब्दार्थ—*
(अबुद्धयः) बुद्धिहीन लोग (मम) मेरे (अनुत्तमम्) अश्रेष्ठ (अव्ययम्) अटल (परम्) परम (भावम्) भावको (अजानन्तः) न जानते हुए (अव्यक्तम्) छिपे हुए अर्थात् परोक्ष (माम्) मुझ कालको (व्यक्तिम्) मनुष्य की तरह आकार में (आपन्नम्) प्राप्त हुआ (मन्यन्ते) मानते हैं।

*अनुवाद—*
बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भाँति जन्मकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं।

*अध्याय ०७ श्लोक २५ (07/25)*
*नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।*
*मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥*

*शब्दार्थ—*
ना न तो अहम्-मैं; प्रकाश:-प्रकट; सर्वस्य–सब के लिये; योग-माया भगवान की परम अंतरंग शक्ति; समावृतः-आच्छादित; मूढः-मोहित, मूर्ख; अयम्-इन; न-नहीं; अभिजानाति–जानना; लोकः-लोग; माम्-मुझको; अजम्-अजन्मा को; अव्ययम्-अविनाशी।

*अनुवाद—*
मैं(ईश्वर) सभी के लिए प्रकट नहीं हूँ क्योंकि सब मेरी अंतरंग शक्ति 'योगमाया' द्वारा आच्छादित रहते हैं इसलिए मूर्ख और अज्ञानी लोग यह नहीं जानते कि मैं(ईश्वर) अजन्मा और अविनाशी हूँ।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Oct, 05:42


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार, सर्वोत्तम पथप्रदर्शक/मित्र कौन है?*

*य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम्। इन्द्रः स नो युवा सखा॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 127)*

*मन्त्रार्थ—*
(यः-इन्द्रः) जो ऐश्वर्यवान् परमात्मा (सुनीती) सुनीति-शोभन नेतृत्व से—पथप्रदर्शकता से (परावतः) दूर गये—पथभ्रष्ट कुमार्ग से (यदुम्) मनुष्य को “यदवः मनुष्याः” [निघं॰ २.३] (तुर्वशम्-आनयत्) समीप—अपने समीप—सन्मार्ग में “तुर्वशः-अन्तिकनाम” [निघं॰ २.१६] ले आता है (सः-नः) वह हमारे (युवा सखा) सदा बलवान् बना रहने वाला मित्र है।

*व्याख्या—*
परमात्मा शोभन पथप्रदर्शकता से भटके हुए जन को सुपथ पर ले आता है वह मानव का सदा साथी मित्र है उस जैसा पथप्रदर्शक और मित्र कोई नहीं है।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Oct, 05:42


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४९/३५०(149/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक २२ (07/22)* 
*स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।*
*लभते च तत: कामान्मयैव विहितान्हि तान्।।*

*शब्दार्थ—*
(सः) वह भक्त (तया) उस (श्रद्धया) श्रद्धा से (युक्तः) युक्त होकर (तस्य) उस देवताका (आराधनम्) पूजन (ईहते) करता है (च) और (हि) क्योंकि (ततः) उस देवतासे (मया) मेरे द्वारा (एव) ही (विहितान्) विधान किये हुए (तान्) उन (कामान्) इच्छित भोगोंको (लभते) प्राप्त करता है।

*अनुवाद—*
वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निःसंदेह प्राप्त करता है

*अध्याय ०७ श्लोक २३ (07/23)*
*अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।*
*देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि।।*

*शब्दार्थ—*
(तु) परंतु (तेषाम्) उन (अल्पमेधसाम्) अल्प बुद्धिवालोंका (तत्) वह (फलम्) फल (अन्तवत्) नाशवान् (भवति) होता है (देवयजः) देवताओंको पूजनेवाले (देवान्) देवताओंको (यान्ति) प्राप्त होते है। और (मद्भक्ताः) मतावलम्बी (अपि) भी (माम्) मुझको (यान्ति) प्राप्त होते हैं।

*अनुवाद—*
परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Oct, 05:41


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : मनुष्य को आयु के प्रथम भाग में शारीरिक व आत्मिक बल को विकसित करने का उपदेश*

*वातम्प्राणेनापानेन नसिकेऽउपयाममधरेणौष्ठेन सदुत्तरेण प्रकाशेनान्तरमनूकाशेन बाह्व्यन्निवेष्यम्मूर्ध्ना स्तनयित्नुन्निर्बाधेनाशनिम्मस्तिष्केण विद्युतङ्कनीनकाभ्याङ्कर्णाभ्याँ श्रोत्रँ श्रोत्राभ्याङ्कर्णा तेदनीमधरकण्ठेनापः शुष्ककण्ठेन चित्तम्मन्याभिरदितिँ शीर्ष्णानिरृतिन्निर्जर्जल्पेन शीर्ष्णा सङ्क्रोशैः प्राणान्रेष्माणँ स्तुपेन्॥*

*(यजुर्वेद - अध्याय 25; मन्त्र 2)*

(ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः, देवता - प्राणादयो देवताः, छन्दः - भुरिगतिसक्वर्यौ, स्वरः - पञ्चमः)

*पद पाठ—*
वातम्। प्राणेन। अपानेनेत्यपऽआनेन। नासिके इति नासिके। उपयाममित्युपऽयामम्। अधरेण। ओष्ठेन। सत्। उत्तरेणेत्युत्ऽतरेण। प्रकाशेनेति प्रऽकाशेन। अन्तरम्। अनूकाशेन। अनुकाशेनेत्यनुऽकाशेन। बाह्यम्। निवेष्यमिति निऽवेष्यम्। मूर्ध्ना। स्तनयित्नुम्। निर्बाधेनेति निःऽबाधेन। अशनिम्। मस्तिष्केण। विद्युतमिति विऽद्युतम्। कनीनकाभ्याम्। कर्णाभ्याम्। श्रोत्रम्। श्रोत्राभ्याम्। कर्णौ। तेदनीम्। अधरकण्ठेनेत्यधरऽकण्ठेन। अपः। शुष्ककण्ठेनेति शुष्कऽकण्ठेन। चित्तम्। मन्याभिः॥ अदितिम्। शीर्ष्णा। निर्ऋतिमिति निःऽऋतिम्। निर्जर्जल्पेनेति निःऽजर्जल्पेन। शीर्ष्णा। सङ्क्रोशैरिति सम्ऽक्रोशैः। प्राणान्। रेष्माणम्। स्तुपेन॥

*मन्त्रार्थ—*
हे जिज्ञासु ! मेरे उपदेश के ग्रहण से तू--(प्राणेन) प्राण एवं (अपानेन) अपान से (वातम्) वायु, (नासिके) नासिका के दो छिद्र तथा (उपयामम्) स्वीकृत नियम को; (अधरेण) मुख के नीचे (ओष्ठेन) ओष्ठ से एवं (उत्तरेण) ऊपर के (प्रकाशेन) प्रकाश से (सत्) श्रेष्ठ (अन्तरम्) अन्दर की वस्तु को; (अनूकाशेन) अनुकूल प्रकाश से (बाह्यम्) बाहर की वस्तु को, (मूर्ध्ना) मस्तक से (निवेष्यम्) निश्चय से प्राप्त करने योग्य ज्ञान को; (निर्बाधेन) नितान्त बाधा के कारण (स्तनयित्नुम्) शब्द की निमित्त (अशनिम्) व्यापक, घोष युक्त विद्युत् को, (मस्तिष्केण) शिर में स्थित मज्जा के तन्तु समूह से (विद्युत्) विशेष प्रकाशमान विद्युत् को; (कनीनकाभ्याम्) प्रदीप्त एवं कमनीय (कर्णाभ्याम्) सुनने के साधनों से (कर्णौ) कानों को; (श्रोत्राभ्याम्) सुनने के साधन कानों के गोलकों से (श्रोत्रम्) श्रवण-शक्ति को तथा (तेदनीम्) श्रवण-क्रिया को, (अधरकण्ठेन) नीचे के कण्ठ से (अपः) जलों को, (शुष्ककण्ठेन) शुष्क कण्ठ से (चित्तम्) विज्ञान की साधक अन्त:करण की वृत्ति को, (मन्याभिः) विज्ञान-क्रियाओं से (अदितिम्) अविनाशक प्रज्ञा= बुद्धि को, (शीर्ष्णा) शिर से (निर्ॠतिम्) भूमि को, (निर्जर्जल्पेन) नितान्त जर्जरीभूत (शीर्ष्णा) शिर से एवं (संक्रोश:) संक्रोश=उत्तम आह्वानों से (प्राणान्) प्राणों को प्राप्त कर। (स्तुपेन) हिंसा से (रेष्माणम्) हिंसक अविद्या आदि रोगों का (हिन्धि) विनाश कर।

*व्याख्या—*
सब मनुष्य प्रथम आयु में शरीर आदि साधनों से शरीर और आत्मा के बल को सिद्ध करें। अविद्या, कुशिक्षा और कुशील=कुस्वभाव आदि रोगों का विनाश करें। अध्यापक एवं उपदेशक लोगों के उपदेश को ग्रहण करके जिज्ञासु लोगप्राण-अपान से वायु, नासिका के दोनों छिद्रों एवं नियम को, नीचे के ओष्ठ और ऊपर के प्रकाश से अन्दर की वस्तु को, अनुकूल प्रकाश से बाहर की वस्तु को, मस्तक से निश्चय से प्राप्त करने योग्य ज्ञान को, नितान्त बाधक वस्तु से शब्द-निमित्त विद्युत् को, शिर के मज्जा-तन्तुओं से विशेष प्रकाशमान विद्युत् को, कनीनक=आंखों के प्रदीप्त एवं कमनीय तारकों एवं श्रवण-साधनों से कानों को, कानों के गोलकों से श्रवणशक्ति को, कण्ठ के अधोभाग से जलों को, शुष्क कण्ठ से विज्ञान की साधक अन्तःकरण की वृत्ति को, विज्ञान की क्रियाओं से प्रज्ञा=बुद्धि को, शिर से भूमि को, नितान्त जर्जरीभूत शिर एवं आह्वानों से प्राणों को प्राप्त करें। सब मनुष्य आयु के प्रथम भाग में शरीर आदि साधनों से शरीर और आत्मा के बल को सिद्ध करें । अविद्या, कुशिक्षा, कुशील आदि रोगों का सर्वथा हनन करें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Oct, 05:41


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४८/३५०(148/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक २० (07/20)* 
*कामैस्तैस्तैर्हतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः।*
*तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया॥*

*शब्दार्थ—*
कामैः-भौतिक कामनाओं द्वारा; तैः-तैः-विविध; हृत-ज्ञाना:-जिनका ज्ञान भ्रमित है; प्रपद्यन्ते–शरण लेते हैं; अन्य-अन्य; देवताः-स्वर्ग के देवताओं की; तम्-तम्-अपनी-अपनी; नियमम् नियम एवं विनियम; आस्थाय-पालन करना; प्रकृत्या स्वभाव से; नियता:-नियंत्रित; स्वया अपने आप।

*अनुवाद—*
वे मनुष्य जिनकी बुद्धि भौतिक कामनाओं द्वारा भ्रमित हो गयी है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं। अपनी-अपनी प्रवृत्ति के अनुसार वे देवताओं की पूजा करते हैं और इन देवताओं को संतुष्ट करने के लिए वे धार्मिक कर्मकाण्डों में संलग्न रहते हैं।

*अध्याय ०७ श्लोक २१ (07/21)*
*यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।*
*तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्॥*

*शब्दार्थ—*
यः-यः-जो,जो; याम्-याम्-जिस-जिस; तनुम् के रूप में; भक्तः-भक्त; श्रद्धया श्रद्धा के साथ; अर्चितुम्-पूजा करना; इच्छति–इच्छा; तस्य-तस्य-उसकी; अचलाम्-स्थिर; श्रद्धाम्-श्रद्धा; ताम्-उस; एव–निश्चय ही; विदधामि-प्रदान करना; अहम्–मैं।

*अनुवाद—*
भक्त श्रद्धा के साथ स्वर्ग के देवता के जिस रूप की पूजा करना चाहता है, मैं ऐसे भक्त की श्रद्धा को उसी रूप में स्थिर करता हूँ।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Oct, 05:41


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार मनुष्य किनका सत्कार करे?*

*प्र विश्वसामन्नत्रिवदर्चा पावकशोचिषे। यो अध्वरेष्वीड्यो होता मन्द्रतमो विशि॥*

*(ऋग्वेद - मण्डल 5; सूक्त 22; मन्त्र 1)*

*पद पाठ—*
प्र। विश्वऽसामन्। अत्रिऽवत्। अर्च। पावकऽशोचिषे। यः। अध्वरेषु। ईड्यः। होता। मन्द्रऽतमः। विशि॥

(ऋषिः - विश्वसामा आत्रेयः, देवता - अग्निः, छन्दः - विराडनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः)

*मन्त्रार्थ—*
हे (विश्वसामन्) सम्पूर्ण सामोंवाले (यः) जो (अध्वरेषु) यज्ञों में (ईड्यः) प्रशंसा करने योग्य (होता) दाता (विशि) प्रजा में (मन्द्रतमः) अतिशय आनन्द युक्त होवे उस (पावकशोचिषे) अग्नि के प्रकाश के सदृश प्रकाशवाले पुरुष के लिये (अत्रिवत्) व्यापक विद्यावाले के सदृश (प्र, अर्चा) सत्कार कीजिये।

*व्याख्या—*
मनुष्यों को चाहिये कि धार्मिक जनों का ही सत्कार करें, अन्य जनों का नहीं।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

20 Oct, 05:41


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४७/३५०(147/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक १८ (07/18)* 
*उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।*
*आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥*

*शब्दार्थ—*
उदारा:-महान; सर्वे सभी; एव–वास्तव में; एते-ये; ज्ञानी–वे जो ज्ञान में स्थित रहते हैं; तु–लेकिनः आत्मा-एव-मेरे समान ही; मे मेरे; मतम्-विचार; आस्थित:-स्थित; सः-वह; हि-निश्चय ही; युक्त-आत्मा भगवान में एकीकृत; माम्-मुझे एव–निश्चय ही; अनुत्तमाम्-सर्वोच्च गतिम्-लक्ष्य।

*अनुवाद—*
वास्तव में वे सब जो मुझ(ईश्वर)पर समर्पित हैं, निःसंदेह महान हैं। लेकिन जो ज्ञानी हैं और स्थिर मन वाले हैं और जिन्होंने अपनी बुद्धि मुझ(ईश्वर)में विलय कर दी है और जो केवल मुझे(ईश्वरको) ही परम लक्ष्य के रूप में देखते हैं, उन्हें मैं अपने समान ही मानता हूँ।

*अध्याय ०७ श्लोक १९ (07/19)*
*बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।*
*वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥*

*शब्दार्थ—*
बहूनाम्-अनेक; जन्मनाम्-जन्म; अन्ते-बाद में; ज्ञान-वान्–ज्ञान में स्थित मनुष्य; माम्-मुझको; प्रपद्यते शरणागति; वासुदेवः-वासुदेव के पुत्र, श्रीकृष्ण; सर्वम्-सब कुछ; इति–इस प्रकार; सः-ऐसा; महा-आत्मा-महान आत्मा; सु-दुर्लभः-विरले।

*अनुवाद—*
अनेक जन्मों की आध्यात्मिक साधना के पश्चात जिसे ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वह मुझे(ईश्वर को) सबका उद्गम जानकर मेरी(ईश्वर की) शरण ग्रहण करता है। ऐसी महान आत्मा वास्तव में अत्यन्त दुर्लभ होती है।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

17 Oct, 13:16


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : अथर्ववेद के शत्रुसम्मोहन सूक्त में राष्ट्र के शत्रुओं के विरुद्ध, राजा/शासक के कर्तव्य का वर्णन*

*अग्निर्नः शत्रून्प्रत्येतु विद्वान्प्रतिदहन्नभिशस्तिमरातिम्। स सेनां मोहयतु परेषां निर्हस्तांश्च कृणवज्जातवेदाः॥*

*(अथर्ववेद - काण्ड 3; सूक्त 1; मन्त्र 1)*

*पद पाठ—*
अग्नि: । न: । शत्रून् । प्रति । एतु । विद्वान् । प्रतिऽदहन् । अभिऽशस्तिम् । अरातिम् ।स: । सेनाम् । मोहयतु । परेषाम् । नि:ऽहस्तान् । च । कृणवत् । जातऽवेदा:॥

(ऋषिः - अथर्वा, देवता - अग्निः, छन्दः - त्रिष्टुप्, सूक्तम् - शत्रु सेनासंमोहन सूक्त)

*मन्त्रार्थ—*
(अग्निः) = सम्पूर्ण सेना का नेतृत्व करनेवाला [अग्रणी] (विद्वान्) = ज्ञानी-समझदार-युद्ध विद्याओं में कुशल राजा (न:) हमारे (शत्रून् प्रति एतु) = शत्रुओं के प्रति आक्रमण करनेवाला हो। राजा के लिए आवश्यक है कि वह अग्नि हो-सैन्य सञ्चालन में निपुण हो तथा समझदार हो। 'कहाँ आगे बढ़ना है, कहाँ पीछे हटना है'-इस सबको समझता हो। (अभिशस्तिम् अरातिम्) = विनाशक शत्रु को (प्रतिदहन्) = भस्म करता हुआ यह आगे बढ़े। (सः) = वह राजा (परेषां सेनाम्) = शत्रुओं की सेना को (मोहयतु) = मोहावस्था में प्राप्त करा दे, शत्रु-सैन्य की बुद्धि चकरा जाए, वे इसकी चाल को पूरा-पूरा समझ न सकें (च) = और यह (जातवेदा:) = शत्रु-सैन्य की प्रत्येक गतिविधि को समझनेवाला इसप्रकार अस्त्रों का प्रयोग करे कि उन्हे (निर्हस्तान् कृणवत्) = आयुधग्रहण में असमर्थ हाथोंवाला कर दे।

*व्याख्या—*
जो दुष्ट लोग, प्रजा में अपकीर्ति और अशान्ति फैलावे, विद्वान् अर्थात् नीतिनिपुण राजा राष्ट्र के ऐसे दुष्टों को कठोरता से दंडित करे, शत्रुओं पर आक्रमण करे, आग्नेयास्त्रों से उन्हें भस्म कर दे। मोहनास्त्र से शत्रु-सैन्य को मूढ़ बना दे, उनके हाथ शस्त्रग्रहण में समर्थ न रहें। जिससे वे दुष्ट लोग निर्बल होकर उपद्रव न मचा सकें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

17 Oct, 13:16


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४६/३५०(146/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक १६ (07/16)*
*चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।*
*आर्तो जिज्ञासुर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥*
*शब्दार्थ—*
चतुः-विधाः – चार प्रकार के ; भजन्ते – पूजन ; माम् – मुझे ; जनाः – लोग ; सु-कृतिनः – पवित्र लोग ; अर्जुन – अर्जुन ; आर्तः – दुःखी ; जिज्ञासुः – ज्ञान के साधक ; अर्थ-अर्थी – भौतिक लाभ के साधक ; ज्ञानी – ज्ञान में स्थित ; च – तथा ; भरत-ऋषभ – भरतों में श्रेष्ठ अर्जुन

*अनुवाद—*
हे भरतश्रेष्ठ! चार प्रकार के पवित्र लोग मेरी(ईश्वरकी) भक्ति में लगे रहते हैं - दुःखी, ज्ञान के जिज्ञासु, सांसारिक सम्पत्ति के चाहने वाले तथा जो ज्ञान में स्थित हैं।

*अध्याय ०७ श्लोक १७ (07/17)*
*तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।*
*प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय:॥*

*शब्दार्थ—*
तेषाम् – इनमें से ; ज्ञानी – जो ज्ञान में स्थित हैं ; नित्य-युक्तः – सदैव स्थिर रहने वाले ; एक – अनन्य रूप से ; भक्तिः – भक्ति ; विशिष्टते – सर्वोच्च ; प्रियः – अत्यंत प्रिय ; हि – निश्चय ही ; ज्ञानिनः – ज्ञानी पुरुष को ; अत्यर्थम् – अत्यंत ; अहम् – मैं ; सः – वह ; च – तथा ; मम – मुझे ; प्रियः – अत्यंत प्रिय

*अनुवाद—*
इनमें से मैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ, जो ज्ञानपूर्वक मेरी(ईश्वर की) पूजा करते हैं और मुझ(ईश्वर)में दृढ़ एवं अनन्य भक्ति रखते हैं। मैं उन्हें बहुत प्रिय हूँ और वे मुझे बहुत प्रिय हैं।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

16 Oct, 03:43


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदमन्त्र में मनुष्यों को मिलकर परमात्मा को वरण करने का उपदेश*

*सखायस्त्वा ववृमहे देवं मर्तास ऊतये। अपां नपातꣳ सुभगꣳ सुदꣳससꣳ सुप्रतूर्तिमनेहसम्॥*

*(सामवेद - मन्त्र संख्या : 62)*

*पद पाठ—*
सखायः । स । खायः । त्वा । ववृमहे । देवम् । मर्तासः । ऊतये । अपाम् । नपातम् । सुभगम् । सु । भगम् । सुदँऽससम् । सु । दँससम् । सुप्रतूर्तिम् । सु । प्रतूर्त्तिम् । अनेहसम् । अन् । एहसम् ॥

(ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः, देवता - अग्निः, छन्दः - बृहती, स्वरः - मध्यमः, काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्)

*मन्त्रार्थ—*
(मर्तासः) मरणधर्मा, (सखायः) समान ख्यातिवाले हम साथी लोग (देवम्) ज्योतिर्मय और ज्योति देनेवाले, (अपां नपातम्) व्याप्त प्रकृति का और जीवात्माओं का विनाश न करनेवाले, (सुभगम्) उत्तम ऐश्वर्यवाले, (सुदंससम्) शुभ कर्मोंवाले, (सुप्रतूर्तिम्) अत्यन्त शीघ्रता से कार्यों को करनेवाले, (अनेहसम्) हिंसा न किये जा सकने योग्य, निष्पाप, सज्जनों के प्रति क्रोध न करनेवाले (त्वा) तुझ परमेश्वररूप अग्नि को (ऊतये) आत्मरक्षा और प्रगति के लिए (ववृमहे) वरण करते हैं।

*व्याख्या—*
कल्याण की इच्छा करनेवाले मनुष्यों को चाहिए कि वे मिलकर परम तेजस्वी, तेजः-प्रदाता, प्रलयकाल में नश्वर पदार्थों के विनाशक, नित्य पदार्थों के अविनाशक, सर्वैश्वर्यवान्, शुभकर्मकर्ता, विचारे हुए कार्यों को शीघ्र पूर्ण करनेवाले, किसी से हिंसित या पराजित न होनेवाले, निष्पाप, सज्जनों पर क्रोध न करनेवाले, दुष्टों पर कुपित होनेवाले, जगद्व्यवस्थापक, सबके मङ्गलकारी परमेश्वर की श्रद्धा से उपासना करें।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

16 Oct, 03:43


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४५/३५०(145/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक १४ (07/14)*
*दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।*
*मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥*

*शब्दार्थ—*
दैवी—दिव्य; हि—निश्चय ही; एषा—यह; गुण-मयी—तीनों गुणों से युक्त; मम— मेरी; माया—शक्ति; दुरत्यया—पार कर पाना कठिन, दुस्तर; माम्—मुझे; एव— निश्चय ही; ये—जो; प्रपद्यन्ते—शरण ग्रहण करते हैं; मायाम् एताम्—इस माया के; तरन्ति—पार कर जाते हैं; ते—वे।

*अनुवाद—*
प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है। किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं।            

*अध्याय ०७ श्लोक १५ (07/15)*
*न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।*
*माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः॥*

*शब्दार्थ—*
न–नहीं; माम् मेरी; दुष्कृतिन:-बुरा करने वाले; मूढाः-अज्ञानी; प्रपद्यन्ते–शरण ग्रहण करते हैं; नर-अधमाः-अपनी निकृष्ट प्रवृति के अधीन आलसी लोग; मायया भगवान की प्राकृत शक्ति द्वारा; अपहृत- ज्ञानाः-भ्रमित बुद्धि वाले; आसुरम्-आसुरी; भावम्-प्रकृति वाले; आश्रिताः-शरणागति।

*अनुवाद—*
चार प्रकार के लोग मेरी(ईश्वर की) शरण ग्रहण नहीं करते-वे जो ज्ञान से वंचित हैं, वे जो अपनी निकृष्ट प्रवृति के कारण मुझे जानने में समर्थ होकर भी आलस्य के अधीन होकर मुझे जानने का प्रयास नहीं करते, वे जिनकी बुद्धि भ्रमित है और वे जो आसुरी प्रवृति के हैं।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Oct, 04:44


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में ईश्वरीय स्वरूप*

*स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरँ शुद्धमपापविद्धम् । कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूर्याथातथ्यतोर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः॥*

*(यजुर्वेद - अध्याय ४०, मन्त्र ८)*

*मन्त्रार्थ—*
हे मनुष्यो! जो ब्रह्म (शुक्रम्) शीघ्रकारी सर्वशक्तिमान् (अकायम्) स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीररहित (अव्रणम्) छिद्ररहित और नहीं छेद करने योग्य (अस्नाविरम्) नाड़ी आदि के साथ सम्बन्धरूप बन्धन से रहित (शुद्धम्) अविद्यादि दोषों से रहित होने से सदा पवित्र और (अपापविद्धम्) जो पापयुक्त, पापकारी और पाप में प्रीति करनेवाला कभी नहीं होता (परि, अगात्) सब ओर से व्याप्त जो (कविः) सर्वत्र (मनीषी) सब जीवों के मनों की वृत्तियों को जाननेवाला (परिभूः) दुष्ट पापियों का तिरस्कार करनेवाला और (स्वयम्भूः) अनादि स्वरूप जिसकी संयोग से उत्पत्ति, वियोग से विनाश, माता, पिता, गर्भवास, जन्म, वृद्धि और मरण नहीं होते, वह परमात्मा (शाश्वतीभ्यः) सनातन अनादिस्वरूप अपने-अपने स्वरूप से उत्पत्ति और विनाशरहित (समाभ्यः) प्रजाओं के लिये (याथातथ्यतः) यथार्थ भाव से (अर्थान्) वेद द्वारा सब पदार्थों को (व्यदधात्) विशेष कर बनाता है, (सः) वही परमेश्वर तुम लोगों को उपासना करने के योग्य है।

*व्याख्या—*
हे मनुष्यो! जो अनन्त शक्तियुक्त, अजन्मा, निरन्तर, सदा मुक्त, न्यायकारी, निर्मल, सर्वज्ञ, सबका साक्षी, नियन्ता, अनादिस्वरूप ब्रह्म कल्प के आरम्भ में जीवों को अपने कहे वेदों से शब्द, अर्थ और उनके सम्बन्ध को जनानेवाली विद्या का उपदेश न करे तो कोई विद्वान् न होवे और न धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फलों के भोगने को समर्थ हो, इसलिये इसी ब्रह्म की सदैव उपासना करो।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:*
https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

15 Oct, 04:44


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४४/३५०(144/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक १२ (07/12)*
*ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये।*
*मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि॥*

*शब्दार्थ—*
ये—जो; च—तथा; एव—निश्चय ही; सात्त्विका:—सतोगुणी; भावा:—भाव; राजसा:—रजोगुणी; तामसा:—तमोगुणी; च—भी; ये—जो; मत्त:—मुझसे; एव— निश्चय ही; इति—इस प्रकार; तान्—उनको; विद्धि—जानो; न—नहीं; तु—लेकिन; अहम्—मैं; तेषु—उनमें; ते—वे; मयि—मुझमें।

*अनुवाद—*
तुम जान लो कि मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं, चाहे वे सतोगुण हों, रजोगुण हों या तमोगुण हों। एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ, किन्तु हूँ स्वतन्त्र। मैं प्रकृति के गुणों के अधीन नहीं हूँ, अपितु वे मेरे अधीन हैं।           

*अध्याय ०७ श्लोक १३ (07/13)*
*त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभि: सर्वमिदं जगत्।*
*मोहितं नाभिजानाति मामेभ्य: परमव्ययम्॥*

*शब्दार्थ—*
त्रिभि:—तीन; गुण-मयै:—गुणों से युक्त; भावै:—भावों के द्वारा; एभि:—इन; सर्वम्—सम्पूर्ण; इदम्—यह; जगत्—ब्रह्माण्ड; मोहितम्—मोहग्रस्त; न अभिजानाति—नहीं जानता; माम्—मुझको; एभ्य:—इनसे; परम्—परम; अव्ययम्— अव्यय, सनातन।

*अनुवाद—*
तीन गुणों (सतो, रजो तथा तमो) के द्वारा मोहग्रस्त यह सारा संसार मुझ गुणातीत तथा अविनाशी (ईश्वर)को नहीं जानता।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

14 Oct, 03:08


*आत्मबोध🕉️🚩*

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा से हमारे अन्तःकरण में ज्ञान का प्रकाश कर शुद्ध करने की प्रार्थना*

*आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे। अर्कस्य योनिमासदम्॥*

*(ऋग्वेद - मण्डल 9; सूक्त 50; मन्त्र 4)*

*मन्त्रार्थ—*
(अर्कस्य योनिमासदम्) तेज की योनि को प्राप्त होने के लिये अर्थात् तेजस्वी बनने के लिये (मदिन्तम) हे आनन्द के बढ़ानेवाले ! (कवे) हे वेदरूप काव्य के रचनेवाले ! (धारया) अपनी ज्ञान की धारा से (पवित्रम् आपवस्व) मेरे अन्तःकरण को पवित्र करिये।

*व्याख्या—*
हे वेदरूप काव्य के रचनेवाले परमात्मा! हे आनन्द के बढ़ानेवाले परमात्मा! अपनी ज्ञान की धारा से तेजस्वी बनाने के लिये मेरे अन्तःकरण को पवित्र करिये। अर्थात् परमात्मा ही है जो अपने ज्ञानप्रदीप से उपासकों के हृदयरूपी मन्दिर को पवित्र बना प्रकाशित करता है।

हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए नए इंस्टाग्राम पेज @vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

वैदिक दर्शन - लिंक:
https://instagram.com/vedicdarshan

हिन्दू एकता संघ - लिंक :
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

14 Oct, 03:08


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४४/३५०(144/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक १० (07/10)*
*बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।*
*बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्॥*

*शब्दार्थ—*
बीजम्—बीज; माम्—मुझको; सर्व-भूतानाम्—समस्त जीवों का; विद्धि—जानने का प्रयास करो; पार्थ—हे पृथापुत्र; सनातनम्—आदि, शाश्वत; बुद्धि:—बुद्धि; बुद्धि- मताम्—बुद्धिमानों की; अस्मि—हूँ; तेज:—तेज; तेजस्विनाम्—तेजस्वियों का; अहम्—मैं।

*अनुवाद—*
हे पृथापुत्र! यह जान लो कि मैं ही(ईश्वर ही) समस्त जीवों का आदि बीज हूँ(हैं), बुद्धिमानों की बुद्धि तथा समस्त तेजस्वी पुरुषों का तेज हूँ(हैं)।

*अध्याय ०७ श्लोक ११ (07/11)*
*बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्।*
*धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ॥*

*शब्दार्थ—*
बलम्—शक्ति; बल-वताम्—बलवानों का; च—तथा; अहम्—मैं हूँ; काम— विषयभोग; राग—तथा आसक्ति से; विवर्जितम्—रहित; धर्म-अविरुद्ध:—जो धर्म के विरुद्ध नहीं है; भूतेषु—समस्त जीवों में; काम:—विषयी जीवन; अस्मि—हूँ; भरत- ऋषभ—हे भारतवंशियों में श्रेष्ठ!

*अनुवाद—*
मैं बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हूँ। हे भरतश्रेष्ठ (अर्जुन)! मैं वह काम हूँ, जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।

             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

14 Oct, 02:57


*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : परमात्मा की सुन्दर वैदिक प्रार्थना*

*दिशां प्रज्ञानां स्वरयन्तमर्चिषा सुपक्षमाशुं पतयन्तमर्णवे। स्तवाम सूर्यं भुवनस्य गोपां यो रश्मिभिर्दिश आभाति सर्वाः॥*

*(अथर्ववेद - काण्ड 13; सूक्त 2; मन्त्र 2)*

 *मन्त्रार्थ—*
हम (सूर्यं स्तवाम) = 'ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिः' सूर्यसमंज्योति ब्रह्म को स्तुत करते हैं, जो प्रभु (अर्चिषा) = अपनी ज्ञानदीसि से, प्रकाश की किरणों से (प्रज्ञानाम्) = [प्रज्ञापिनीनाम] जीव के मार्गों का ज्ञान देनेवाली (दिशाम्) = दिशाओं का-निर्देशों व संकेतों का (स्वरयन्तम्) = उपदेश कर रहे हैं (सुपक्षम्) = उत्तम परिग्रह व आश्रय देनेवाले हैं। (आशुम्) = संसार में सर्वत्र व्याप्त हैं। (अर्णवे पतयन्तम्) = संसार-समुद्र में ऐश्वर्यवाले हैं। जहाँ-जहाँ कुछ भी उत्तमता है वह सब उस प्रभु के कारण ही तो है। २. उन प्रभु का स्तवन करते हैं जो (भुवनस्य गोपाम्) = सारे ब्रह्माण्ड के रक्षक हैं, और (य:) = जो (रश्मिभिः) = अपनी प्रकाश की किरणों से (सर्वाः दिश: आभाति) = सब दिशाओं को आभासित कर रहे हैं।

*व्याख्या—*
हम परमात्मा का स्तवन करते हैं। प्रभु हमें जीवनमार्ग की दिशाओं का संकेत कर रहे हैं। सर्वत्र व्याप्त होते हुए वे हमारे उत्तम आश्रय-स्थान है। संसार में सर्वत्र उन्हीं का ऐश्वर्य दीप्त हो रहा है। वे प्रभु ही ब्रह्माण्ड के रक्षक हैं।

*हिन्दू एकता संघ द्वारा सनातन धर्म के मूल ग्रन्थ वेदों के कल्याणकारी मन्त्रों के प्रचार हेतु बनाए गए vedicdarshan से जुड़ें 👇🏻🕉️*
https://whatsapp.com/channel/0029Va8vPq784OmK5R33FV14

*वैदिक दर्शन - लिंक:* https://instagram.com/vedicdarshan

*हिन्दू एकता संघ - लिंक :*
https://instagram.com/hinduektasanghofficial

United Hindu Official✊🏻🚩

14 Oct, 02:57


*आत्मबोध🕉🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : १४३/३५०(143/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*सप्तमऽध्याय : ज्ञानविज्ञानयोग*

*अध्याय ०७ श्लोक ०८ (07/08)*
*रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो:।*
*प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु॥*

*शब्दार्थ—*
रस:—स्वाद; अहम्—मैं; अप्सु—जल में; कौन्तेय—हे कुन्तीपुत्र; प्रभा—प्रकाश; अस्मि—हूँ; शशि-सूर्ययो:—चन्द्रमा तथा सूर्य का; प्रणव:—ओंकार के अ, उ, म ये तीन अक्षर; सर्व—समस्त; वेदेषु—वेदों में; शब्द:—शब्द, ध्वनि; खे—आकाश में; पौरुषम्—शक्ति, सामर्थ्य; नृषु—मनुष्यों में।

*अनुवाद—*
हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ।

*अध्याय ०७ श्लोक ०९ (07/09)*
पुण्यो गन्ध: पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु॥

*शब्दार्थ—*
पुण्य:—मूल, आद्य; गन्ध:—सुगंध; पृथिव्याम्—पृथ्वी में; च—भी; तेज:—प्रकाश; च—भी; अस्मि—हूँ; विभावसौ—अग्नि में; जीवनम्—प्राण; सर्व—समस्त; भूतेषु— जीवों में; तप:—तपस्या; च—भी; अस्मि—हूँ; तपस्विषु—तपस्वियों में।

*अनुवाद—*
मैं(ईश्वर) पृथ्वी की आद्य सुगंध और अग्नि की ऊष्मा हूँ(हैं)। मैं(ईश्वर) समस्त जीवों का जीवन तथा तपस्वियों का तप हूँ(हैं)।
     
             शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से जुड़े हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

*🕉हिन्दू एकता संघ के चैनल से जुड़ने हेतु निम्न लिंक पर click करें👇🏻*
https://whatsapp.com/channel/0029VaABA9u8kyyUize9ll04

*टेलीग्राम चैनल👇🏻*
https://t.me/united_hindu_official

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Oct, 13:09


*विजय दशमी पर श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ कर श्रीराम से अपनी एवं परिवार की रक्षा की प्रार्थना करें*
🚩🕉️💐🌻🏵️

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Oct, 13:09


*आत्मबोध : आज का स्तोत्र🕉️🚩*

*अथ श्रीरामरक्षास्तोत्रम्*

*विनियोगम्*
*अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः श्रीसीतारामचन्द्रो देवता अनुष्टुप् छन्दः सीता शक्तिः श्रीमान् हनुमान् कीलकं श्रीरामचन्द्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः*

*ध्यानम्*
*ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं*
*पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्।* 
*वामाङ्कारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं*
*नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥*

*स्तोत्रम्*
*चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्।*
*एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्।।१।।*

*ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्।*
*जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्।।२।।*

*सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।*
*स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम्॥३।।*

*रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्।*
*शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४।।*

*कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती।*
*घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः॥५।।*

*जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः।*
*स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः॥६।।*

*करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।*
*मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः॥७।।*

*सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः।*
*ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत्॥८।।*

*जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः।*
*पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः॥९।।*

*एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।*
*स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्॥१०।।*

*पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः।*
*न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः॥११।।*

*रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन्।*
*नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति।।१२।।*

*जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्।*
*यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः॥१३।।*

*वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्।*
*अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्॥१४।।*

*आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः।*
*तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः॥१५।।*

*आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्।*
*अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान्स नः प्रभुः॥१६।।*

*तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ।*
*पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ॥१७।।*

*फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।*
*पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।।१८।।*

*शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्।*
*रक्षः कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ।।१९।।*

*आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा–*
*वक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिन्नौ।*
*रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा–*
*वग्रतः पथि सदैव गच्छताम्॥२०।।*

*संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा।*
*गच्छन्मनोरथान्नश्च रामः पातु सलक्ष्मणः॥२१।।*

*रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।*
*काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः॥२२।।*

*वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः।*
*जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः।।२३।।*

*इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः।*
*अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः॥२४।।*

*रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्।*
*स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः।।२५।।*

*रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं*
*काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्।*
*राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं*
*वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्॥२६।।*

*रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।*
*रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥२७।।*

*श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम*
*श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।*
*श्रीराम राम रणकर्कश राम राम*
*श्रीराम राम शरणं भव राम राम॥२८।।*

*श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये॥२९।।*

*माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः*
*स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।*
*सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-*
*-र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने॥३०।।*

*दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा।*
*पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्॥३१।।*

*लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।*
*कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥३२।।*

*मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।*
*वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥३३।।*

*कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।*
*आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्॥३४।।*

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।*
*लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥३५।।*

*भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्।*
*तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥३६।।*

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Oct, 13:09


*रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे*
*रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।*
*रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं*
*रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥३७।।*

*राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥३८।।*

*।।ॐ तत्सदिति श्रीबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।*

United Hindu Official✊🏻🚩

12 Oct, 10:30


*यदि कहें कि उन्होंने खर को मारा था तो यह ठीक नहीं है ; क्योकि खर अत्याचारी था । उसन स्वयं ही उन्हें मार डालने के लिये उन पर आक्रमण किया था । इसलिए श्रीराम ने रणभूमि में उसका वध किया ; क्योकि प्रत्येक प्राणी यथाशक्ति अपने प्राणों की रक्षा अवश्य करनी चाहिये । "*

*♦️यदि आपका पूर्वज शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी हो तो आप उसके गुण-गान करेंगे अथवा उस निंदा करेंगे?*
*स्पष्ट है उसकी निंदा करेंगे। बस हम यही तो कर रहे है। यही सदियों से दशहरे पर होता आया है। रावण का पुतला जलाने का भी यही सन्देश है कि पापी का सर्वदा नाश होना चाहिए।*
*एक ओर वात्सलय के सागर, सदाचारी, आज्ञाकारी, पत्नीव्रता, शूरवीर, मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम है।*
*दूसरी ओर शराबी, व्यभिचारी, भोग-विलासी, अपहरणकर्ता, कामी, चरित्रहीन, अत्याचारी रावण है।*
*किसकी जय होनी चाहिए। किसकी निंदा होनी चाहिए। इतना तो साधारण बुद्धि वाले भी समझ जाते है।*
*आप क्यों नहीं समझना चाहते? इसलिए यह घमासान बंद कीजिये और पक्षपात छोड़कर सत्य को स्वीकार कीजिये।*

3,201

subscribers

4,375

photos

1,577

videos