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Ranchi City (English)

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Who is it?
Ranchi City is a channel created for anyone interested in Ranchi, the capital of Jharkhand state in India. Whether you are a student, a working professional, a tourist, or simply a curious soul wanting to know more about this city, Ranchi City welcomes you with open arms

What is it?
Ranchi City is your go-to source for all things Ranchi. Stay updated on the latest happenings in the city, discover hidden gems, and connect with like-minded individuals who share your love for Ranchi. Whether you are looking for recommendations on the best places to eat, shop, or explore, Ranchi City has got you covered. Join us on this exciting journey to uncover the many wonders of Ranchi

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Ranchi Life

26 Sep, 02:27


*डंडई थाना के पुलिस लॉकअप में ग्रामीण के मौत के बाद हंगामा, आक्रोशत भीड़ ने किया तोड़ फोड़ और पथराव*
गढ़वा जिले के डंडई थाना में पुलिस लॉकअप में एक ग्रामीण के मौत के बाद आक्रोशित लोगों ने जमकर हंगामा किया। इस दौरान आक्रोशत भीड़ के द्वारा थाना का घेराव…
https://aapkikhabar.co.in/dandee-thana-ke-police-lॉkap-men-grameen-ke-maut-ke-bad-hangama-aakrosht-bheed-ne-kiya-tod-phod-aur-pthrav/

Ranchi Life

09 Sep, 22:30


https://news.abplive.com/cities/ranchi-teen-girl-trafficked-raped-by-truck-driver-abandoned-in-lucknow-2-arrested-police-say-uttar-pradesh-jharkhand-1716157

Ranchi Life

17 Jun, 00:57


रांची की पहचान हिल स्टेशन के तौर पर थी. और मैं इसी रूप में हमेशा के लिए रचना-बसना चाहती थी. लेकिन बेतरतीब विस्तार और बिना रोडमैप के विकास, खुल्लमखुल्ला मनमानी के सामने मैं निरुत्तर, बेबस हूं. आगे किस हाल में रहूं, नहीं जानती. तब आप किस हाल में रहेंगे, कभी इसकी चिंता कीजिएगा. बातें और कसक बहुत हैं. झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद राजधानी बनने का गुमान भी वक्त के साथ मेरी रूह से निकला जाता है. असाह्य पीड़ा होती है. किन दिनों पर नाज़ करूं और किन दिनों पर नखरे?

— नीरज सिन्हा

Ranchi Life

17 Jun, 00:57


मैं रांची, मुझे भी कुछ कहना है..

उफ़ ये गर्मी..हि‌ल स्टेशन रांची अब हिट स्टेशन हो गई. इतनी बेरहमी, रांची तुम्हारी ये पहचान नहीं थी..गर्म हवाओं के थपेड़ों ने इस जेठ झुलसा कर रख दिया.. अरे रांची, मत पूछिए यहां की गर्मी, जीना मुहाल है, अब बिल्कुल बदल गई..

हां मैं रांची हूं. खामोशी से सब सुनती और देखती हुई. आपके इल्ज़ाम तमाम हैं पर मुझे मंजूर नहीं. छाती पर हाथ रखकर खुद से पूछिए, रांची को उस लायक छोड़ा है आपने? सारी पुरानी पहचान, तासीर, आबोहवा हमें बखूबी याद है, पर चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती. हमें पता है "आपकी कातर निगाहें रह- रहकर आसमां ताकती हैं. एक सुंदर बारिश के इंतजार में. बेसब्री से उंगली पर दिन गिन रहे मानसून के इंतजार में."

मेरे भी सवाल, शिकायत हैं..

मैं भी चाहती हूं 'रांची' का विस्तार हो. बड़े और आधुनिक शहरों में शुमार हो. सौंदर्यीकरण के पंख लगे. मुकम्मल नागरिक सुविधाएं उपलब्ध हों. देश- दुनिया के लोग जानें कि रांची पहले से बहुत बदल गई. लेकिन मौसम को लेकर अपनी पुरानी पहचान समेटे हुई. ऐसा विस्तार और विकास किन काम के, जब नदियां, तालाब, डैम, जंगल-पहाड़ सब अपने वजूद खोते चले जाएं. सालों पुराने पेड़ साल दर साल कटते जाएं. मेरी नई पहचान अब यही तो है: "सड़कों पर रेंगती महंगी और लग्ज़री गाडियों का रेला, चिल्ल पों, बाजारों में भीड़, फैशन, फोकस और स्टाइल है. मॉल, रेस्टोरेंट, मार्केटिंग कंपलेक्स, रिसोर्ट, हुक्का बार की बहार है, दौलत जो बेशुमार है."

कंक्रीट का जाल..

सच है न कि अधिकतर खेत 10-12 मंजिला अपार्टमेंट में तब्दील हैं. डैम सिकुड़ते चले गए और अधिकतर तालाबों के नामोनिशान मिट गए. डैमों के कैचमेंट एरिया में मकान हैं. सड़कों के चौड़ीकरण को लेकर हमने सैकड़ों पेड़ों को कटते देखा है. नदियां तिल-तिल मर रही हैं. मुझे पता है, "शहर और निकटवर्ती अंचलों में तिल- तिल कर मरतीं नदियां जमीन दलालों, ठेकेदारों व सरकारी मुलाजिमों की जान हैं."

देखते ही देखते..

शहर में बिल्डर- व्यापारी को दस कट्ठे से लेकर चार- पांच एकड़ और गांवों- कस्बों से निकलते लोग, रोजी- रोजगार वालों को फकत तीन डिसमील जमीन की दरकार है. देखते देखते ही देखते बस जाती हैं कालोनियां और मोहल्ले. गली- कूचे में भी खड़े हो जाते हैं दस तल्ले अपार्टमेंट. फिर पानी के लिए अंधाधुध बोरिंग. नालियों का ओर-छोर नहीं. सुना है कि सैकड़ों बोरिंग फेल हो गए. पानी पाताल में जा पहुंचा है. पुरानी हरियाली और पुराने रास्ते गुम होते जा रहे. आसपास के गांव भी शहरीकरण की रफ्तार में शामिल होने की होड़ में रौनक खोते जा रहे. पर्यावरण और जल संरक्षण के बारे में संवेदनशील होने के लिए किसी ने सोचा ही नहीं. सब इसी दौड़ में कि पैसे से साधन और सुविधाएं हासिल की जा सकती हैं. हां की जा सकती हैं, पर वो पुरानी तासीर और ठंडी हवाएं नहीं.

सवाल और भी हैं..

क्यों करोड़ों-अरबों खर्च के बाद भी मेरी सूरत नहीं बदलती? आपके जवाब यही होंगे: दीर्घकालीन विजन नहीं, रोडमैप नहीं. जिसे जहां मौका मिला हाथ धोते रहे. और अपना लाभ साधते रहे. सबसे ज्यादा गैर जवाबदेह सिस्टम ने. बेशक बेतरतीब शहरीकरण और विकास की होड़ में रांची सरपट दौड़ रही. लेकिन इसकी तासीर बचाने, भविष्य के खतरे टालने की कहीं किसी छोर पर बेचैनी नहीं दिखती. यह सच है पद, पैसे, पावर वालों को बहुत फर्क नहीं पड़ता, लेकिन शर्तिया कहती हूं, शयन कक्ष से संडास तक वे डेढ़- दो टन का एसी ठोंकवाते रहें, पत्तों से छनकर निकलती ठंडी हवाएं मयस्सर नहीं होंगी.

जिन्होंने रांची को जिया है..

एक बात कहूं, जिन्होंने रांची को जिया है, उनसे हमारी तासीर और तारीफ पूछिए. वैशाख-जेठ के महीने में भी दोपहर बाद अक्सर बारिश से मौसम सुहाना होता था. पेड़ों पर खिलखिलाते फूल-पत्ते, लचकती शाखें और उनसे छन कर निकलती हवाएं रूह को सुकून देतीं. कोयल की कूक, कुल्फी वाले की घंटी.. और भी बहुत कुछ. भीड़ व चिल्लपों से दूर शाम चुरा लेने को जी करता. चौक-चौराहों पर बतकही.. हंसी ठिठोली..कभी पूछ लीजिए पुराने वाशिंदे और बुजुर्गों से. शहर के सिनेमाघरों संध्या, रतन में नाइट शो के लिए लोगबाग पैदल रस्ते नाप लेते थे. रात सिरहाने चादर रखना ही पड़ता . उधर रांची के निकटवर्ती अंचलों की बात और भी अहलदा.. साधन- सुविधा कम, पर नेचर को भर अंकवारे समेटे हुए. सड़कों के दोनों ओर सिंदुरिया, बिजुआ, खटमिठुआ आम, जामुन, महुआ, पीपल, बरगद के पेड़ों का मिलन.. फूलों की खुशबू.. सच कहती हूं वे तमाम बातें याद भर करने भर से छाती बैठी चली जाती है.

आगे किस हाल में रहूं..