'कौन बनेगा करोड़पति', यह एक ऐसा शो है जिसे देश में लगभग सभी बड़ी रुचि और आनंद से देखते हैं। इस शो में बुद्धिमत्ता और मनोरंजन का मिश्रण है जिससे ज्ञान तो बढ़ता ही है और जब भी दर्शक के सोचे हुए उत्तर सही होते हैं तो उसे भी ख़ुशी होती है। कुछ समय पूर्व एक एपिसोड में एक प्रतिभागी आए जिनका नाम था- डॉ. नीरज सक्सेना। वह 'फास्टेस्ट फिंगर' राउंड में सबसे तेज़ उत्तर देने वाले प्रतिभागी थे। वह बिना नाचे, रोए, चिल्लाए या हाथ उठाए मंच पर आए और अमिताभ बच्चन जी को बिना गले लगाए, बहुत ही शांति और शालीनता से हॉटसीट पर आकर बैठ गए। डॉ. नीरज एक पीएच.डी वैज्ञानिक हैं जो कोलकाता में एक विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। उनका व्यक्तित्व बेहद सौम्य,सरल और सुखद है। वह डॉ. ए.पी.जे. कलाम के साथ काम करके खुद को भाग्यशाली मानते हैं। उन्होंने बताया कि प्रारंभ से वह भी केवल स्वयं के हितों तक ही सीमित थे किंतु डॉ. कलाम के सानिध्य में वह दूसरों और देश के बारे में भी सोचने लगे।
फिर खेल प्रारंभ हुआ। डॉ. नीरज खेलने लगे। उन्होंने एक बार ऑडियंस पोल का इस्तेमाल किया, लेकिन चूंकि उनके पास "डबल डिप" लाइफलाइन थी, इसलिए उन्हें इसे दोबारा प्रयोग करने का अवसर मिला। उन्होंने सभी सवालों का आसानी से उत्तर दिया। उनकी बुद्धिमत्ता अत्यंत ही प्रभावशाली थी। उन्होंने ₹3,20,000, और इतनी ही बोनस राशि जीती, और फिर ब्रेक हो गया।
ब्रेक के बाद, अमिताभ बच्चन ने घोषणा की, "आइए आगे बढ़ें, डॉ. साहब। यहां ग्यारहवां प्रश्न आता है..." तभी... डॉ. नीरज ने कहा, "सर, मैं छोड़ना चाहूंगा।" अमिताभ हैरान रह गए. कोई इतना अच्छा खेल रहा है, जबकि अभी भी तीन लाइफलाइन बाकी हैं, और एक करोड़ (₹1,00,00,000) जीतने का अच्छा अवसर है तो क्या फिर भी वह खेल छोड़ सकता है? उन्होंने पूछा-
"ये आप क्या कह रहे हैं? ऐसा पहले कभी नहीं हुआ... ?"
डॉ. नीरज ने शांति से जवाब दिया -
"अन्य खिलाड़ी प्रतीक्षा कर रहे हैं, और वे मुझसे छोटे हैं। उन्हें भी मौका मिलना चाहिए। मैं पहले ही बहुत सारा पैसा जीत चुका हूं। मुझे लगता है कि मेरे पास जो है वह पर्याप्त है। मुझे इससे अधिक की इच्छा नहीं है।"
अमिताभ बच्चन स्तब्ध रह गए और कुछ पल के लिए सब तरफ सन्नाटा छा गया। फिर संपूर्ण ऑडियंस ने खड़े होकर देर तक तालियाँ बजाईं।
अमिताभ बच्चन ने इस संदर्भ में कहा कि - "हमने आज बहुत कुछ सीखा है। मैने आज ऐसे व्यक्ति को देखा है जो अत्यंत दुर्लभ है। सच कहूँ तो यह पहली बार है कि मैंने किसी को अपने सामने ऐसा करते हुए देखा है, जो दूसरों को मौका मिलने के बारे में सोचता है और जो उनके पास है उसे पर्याप्त से अधिक मानता है।"
बात सही भी है, वास्तव में ऐसे लोग अपवाद है। आज लोग सिर्फ पैसे के पीछे भाग रहे हैं। वे कितना भी कमा लें, संतुष्टि नहीं होती और लालच कभी खत्म नहीं होता। वे पैसे के पीछे भागते हुए परिवार, नींद, खुशी, प्यार और दोस्ती को खो रहे हैं। ऐसे समय में डॉ. नीरज सक्सेना जैसे लोग एक मिसाल बनकर आते हैं। क्योंकि आज के इस युग में संतुष्ट और नि:स्वार्थ लोग मिलना मुश्किल है।
उनके खेल छोड़ने के पश्चात एक लड़की हॉट सीट पर बैठी और उसने अपनी कहानी साझा की: "मेरे पिता ने हमें, मेरी माँ सहित, केवल इसलिए बाहर निकाल दिया क्योंकि हम तीन बेटियाँ हैं। अब, हम एक अनाथालय में रहते हैं..."
मैंने सोचा, अगर डॉ. नीरज ने स्वेच्छा से स्वयं शो न छोड़ा होता तो किसी और को अवसर नहीं मिलता। उनके त्याग के कारण इस गरीब लड़की को कुछ पैसे कमाने का अवसर मिला। आज के दौर में तो लोग विरासत में मिली संपत्ति में से भी किसी को यहां तक कि अपने ही सगे भाई-बहनों तक को भी कुछ देने के लिए तैयार नहीं हैं। अति लालच में अपनों के साथ ही घोर अन्याय करते हैं। इन्हीं कारणों से समाज में कितने झगड़े, यहां तक कि हत्याएं भी होती हैं। आज चहुं ओर स्वार्थ का ही साम्राज्य है। मानव मन में बस लालच ही व्याप्त है।
दूसरों के और देश के बारे में सोचने वाले डॉ. नीरज सक्सेना जैसे मानव में सच्ची आध्यात्मिकता एवं ज्ञान का वास है। इस महान व्यक्ति को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। ऐसे अद्वितीय व्यक्ति को कोटि-कोटि नमन है।
*डॉ. नीरज ये सिखाते हैं कि जब आपकी जरूरतें पूरी हो जाएं तो आपको रुक जाना चाहिए और दूसरों को अवसर देना चाहिए। स्वार्थ को त्याग दें तो हर कोई खुश रहेगा। यही वह सबक है जो आज हर किसी को सीखने की आवश्यकता है। हमेशा ऐसे व्यक्तियों का सम्मान करना जरूरी है जो समाज की भलाई के लिए स्वयं के लाभ का भी त्याग कर दें। डॉ. नीरज के बारे में लिखने का भी यही उद्देश्य है।*
धन्यवाद🙏🙏🌹🌹
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