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Lucknow Cinephiles (English)

Lucknow Cinephiles is a Telegram channel dedicated to all the movie buffs in the city of Lucknow. If you are passionate about cinema and love discussing films with like-minded individuals, then this is the perfect channel for you. From classic movies to the latest blockbusters, Lucknow Cinephiles covers it all. Who is it? Lucknow Cinephiles is a community of film enthusiasts based in Lucknow, India. The channel brings together people who share a common love for movies and provides a platform for them to connect and engage with each other. What is it? Lucknow Cinephiles is a Telegram channel where members can discuss their favorite films, share recommendations, and participate in various movie-related activities. Whether you are a casual moviegoer or a hardcore cinephile, you will find something of interest in this channel. Join Lucknow Cinephiles today and become a part of this vibrant community of film lovers in Lucknow. Share your thoughts on the latest releases, discover hidden gems, and connect with fellow cinephiles who share your passion for cinema. Let's celebrate the magic of movies together on Lucknow Cinephiles!

Lucknow Cinephiles

02 Nov, 14:02


मृणाल सेन की फ़िल्म ‘कोरस’।
1974 में आयी यह फ़िल्म आज बेहद प्रासंगिक और बेहद दिलचस्प है।
यह दिग्गज फ़िल्मकार मृणाल सेन की शायद सबसे प्रायोगिक फ़िल्म है। तकनीक, कैमरे और शिल्प के साथ किये गये सेन के कई प्रयोग अपने समय से बहुत आगे के थे।
कहानी बस इतनी है कि एक कंपनी 100 पदों के लिए विज्ञापन देती है और आवेदन करने वाले होते हैं 30,000। बेरोज़गारी से सभी बुरी तरह परेशान हैं और वहाँ बलवा हो जाता है। हर कोई मौक़े की तलाश में है। बेरोज़गारों को नौकरी की सख़्त ज़रूरत है, एक फ़ोटोग्राफ़र है जिसे स्कूप की तलाश है, दुकानदार और साहूकार लोगों को चूस रहे हैं, पुलिस निकम्मी बनी हुई है, नियोक्ता नये पद निकाल रहे हैं जबकि छह महीने से वेतन बढ़ाने की माँग पर जारी हड़ताल से मज़दूर लगभग कंगाल हो गये हैं। एक छोटी-सी कम्पनी के इर्दगिर्द बुनी यह कहानी पूरे समाज की तस्वीर पेश करती है। आख़िरकार, मज़दूर, बेरोज़गार और किसान सभी इस शोषण और धोखाधड़ी के ख़िलाफ़ एकजुट हो जाते हैं।
लेकिन इसे कहने का अन्दाज़ बहुत निराला है और देश-समाज के हालात पर चुटीली टिप्पणियाँ इसकी ख़ासियत हैं।
इसकी शुरुआत एक परिकथा की तरह होती है। एक सूत्रधार स्क्रीन पर आकर गाता है।
“धरती पर अवतरित हुए नए भगवान की जय हो!
अभाव और ग़रीबी से चिन्तित देवताओं का राजा सौ नौकरियों की व्यवस्था करता है। लेकिन उनके लिए हज़ारों कतार में लग जाते हैं। बहुत सारे लोग, बहुत सारे चेहरे, बहुत सारी समस्याएँ! भीड़ का मोहभंग हो जाता है और व्यापक असन्तोष लोगों को इकट्ठा करने लगता है क्योंकि यह बात फैल जाती है कि यह भी एक और धोखा ही है।

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02 Nov, 14:02


Chorus - Hindi & English Subtitles

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02 Nov, 12:06


Chorus - Mrinal Sen

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12 Oct, 15:30


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इस्माइल (28 मिनट)
निर्देशक : नोरा अल-शरीफ़

1949 में एक शरणार्थी शिविर में रहने वाला एक युवा फिलिस्तीनी आसन्न मौत से बचने के लिए संघर्ष करता है, जब वह और उसका छोटा भाई लापरवाही से एक बारूदी सुरंग में प्रवेश कर जाते हैं।
फ़िलिस्तीनी चित्रकार इस्माइल शमौत के जीवन के एक दिन से प्रेरित, यह फ़िल्म एक ऐसे युवक की दिलचस्प कहानी बताती है जो 1948 में इज़रायली सेना द्वारा बेदखल करके शरणार्थी शिविर में भेजे जाने के बाद अपने माता-पिता के गुज़ारे के लिए संघर्ष कर रहा था। दयनीय जीवन और कष्टदायक परिस्थितियों के बावजूद वह रोम जाकर पेंटिंग सीखने के अपने सपने को छोड़ता नहीं है। एक दिन अपने छोटे भाई के साथ रेलवे स्टेशन पर पेस्ट्री बेचकर लौटते समय वे अनजाने में एक ऐसे इलाक़े में दाख़िल हो जाते हैं जहाँ इज़रायली सेना ने बारूदी सुरंगें बिछा रखी हैं। मौत का सामना करते हुए और खुद को और अपने भाई को बचाने के लिए संघर्ष करते हुए हम इस्माइल की जिजीविषा और हौसले से रूबरू होते हैं।

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Oceans of Injustice (अन्याय के महासागर), (11 मिनट 15 सेकेंड)
फ़राह नबलुसी की यह बेहद काव्यमय लघु फ़िल्म आज़ादी, इंसाफ़ और बराबरी के लिए फ़िलिस्तीनी अवाम के संघर्ष के बारे में लोगों को जागरूक करती है।

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हमारा सुझाव है कि आप फ़िल्म और सबटाइटल्स कंप्यूटर या लैपटॉप पर डाउनलोड करके इसे देखें। फ़िल्म और सबटाइटल्स की फ़ाइलें एक फ़ोल्डर में डाउनलोड करने के बाद VLC Media Payer या ऐसे ही किसी अन्य प्रोग्राम के ज़रिए इसे देखा जा सकता है। VLC में आप इसके सबटाइटल्स का फ़ॉण्ट भी सुविधानुसार बड़ा कर सकते हैं और इसका रंग भी बदल सकते हैं या पढ़ने में आसानी के लिए सबटाइटल्स के पीछे बैकग्राउण्ड भी लगा सकते हैं। इसके लिए VLC के Tools मेनू में जाकर Preferences और फिर Subtitles/OSD पर क्लिक करें और सुविधानुसार चयन करें।

Lucknow Cinephiles

12 Oct, 15:30


फ़िलिस्तीन की दो फ़ीचर फ़िल्में और पाँच छोटी फ़िल्में हमने आज लखनऊ सिनेफ़ाइल्स के टेलीग्राम चैनल पर अपलोड की हैं। इनका संक्षिप्त परिचय हम नीचे दे रहे हैं।
इनके अलावा फ़िलिस्तीन पर दो चर्चित डॉक्युमेंट्री फ़िल्में हम पहले ही शेयर कर चुके हैं -

हर्नान ज़िन की फ़िल्म - ‘बॉर्न इन ग़ाज़ा’ और
एबी मार्टिन की फ़िल्म ‘ग़ाज़ा फ़ाइट्स फ़ॉर फ़्रीडम’

आज की फ़िल्में
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200 मीटर्स (1 घण्टा 35 मिनट)
निर्देशक : अमीन नायफ़ेह
(हिन्दी व अंग्रेज़ी सबटाइटल्स)

यह फ़िल्म उन लाखों फ़िलिस्तीनी लोगों की ज़िन्दगी हमारे सामने लाती है जिन्हें इज़रायल की ‘segregation wall’ की वजह से रोज़ परेशानियों से गुज़रना होता है। बेहतर स्कूलों और नौकरी के अवसरों के लिए अनगिनत लोग अलग-अलग रहने के लिए मजबूर हैं। जिन जगहों पर वे पीढ़ियों से रह रहे हैं, वहीं आने-जाने के लिए उन्हें “परमिट,” “इज़राइली आईडी” और अन्तहीन चेकपॉइंट और रोड बैरियर से गुज़रना पड़ता है और अक्सर “अवैध” तरीक़ों का सहारा लेना पड़ता है। कभी उन्हें परमिट नहीं मिलता तो कभी बायोमीट्रिक काम नहीं करता।
यह इज़रायल के क़ब्ज़े में फ़िलिस्तीन के आम लोगों की ज़िन्दगी में रोज़ आने वाली दुश्वारियों और छोटी-छोटी ख़ुशियों के लिए उनके संघर्ष को दिखाती है। बिना लाउड हुए यह फ़िल्म यह अहसास करा जाती है कि आम फ़िलिस्तीनी हर दिन किस यंत्रणा और अपमान से गुज़रते हैं। फ़िल्म एक परिवार और कुछ आम लोगों की ज़िन्दगी के चन्द दिनों में होने वाले अनुभवों पर है और दमन या हिंसा के दृश्य इसमें कहीं नहीं हैं, लेकिन इसे देखते हुए हम उस पृष्ठभूमि को नहीं भूल पाते जहाँ इज़रायल का नृशंस क़ब्ज़ा है और उसे बनाये रखने के लिए निरन्तर हमले होते रहते हैं।

इसमें अंग्रेज़ी सबटाइटल्स वीडियो में एंबेडेड हैं। इसलिए हिन्दी सबटाइटल्स चलाने पर VLC मीडिया प्लेयर के Tools मेन्यू में जाकर सबटाइटल्स में फ़ॉण्ट साइज़ Large कर लें, कलर येलो कर लें और बैकग्राउण्ड ऑन कर लें।

इसमें सबटाइटल्स थोड़े आगे-पीछे हैं। VLC मीडिया प्लेयर में आप वीडियो चलने के दौरान कीबोर्ड शॉर्टकट G या H से इसे ठीक कर सकते हैं: अगर सबटाइटल्स डायलॉग से पीछे हों तो G बटन को कुछ बार दबाकर इसे एडजस्ट करें और अगर सबटाइटल्स डायलॉग से आगे हों तो H बटन को कुछ बार दबाकर इसे एडजस्ट करें। (इस सुविधा के लिए हमें खेद है, सारे टाइमकोड ठीक करने में बहुत समय लगता इसलिए फ़िलहाल इसे ऐसे ही शेयर कर रहे हैं।)

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फ़रहा (1 घण्टा 30 मिनट)
निर्देशक : दारिन जे. सलाम
(हिन्दी व अंग्रेज़ी सबटाइटल्स)

अंतरराष्ट्रीय सहयोग से बनी यह फ़िल्म 1948 के नक़बा (आपदा) का ऐतिहासिक विवरण पेश करती है, जब इज़रायली सैनिकों और ज़ायनिस्टों के हथियारबन्द गिरोहों में सैकड़ों फ़िलिस्तीनी गाँवों पर हमले करके लाखों लोगों को उनके घरों से बेदखल कर दिया था। यह नक़बा के दौरान एक फ़िलिस्तीनी लड़की के वयस्क होने के अनुभव के बारे में है। फ़िल्म की निर्देशक दारिन जे. सलाम ने इसे एक सच्ची कहानी के आधार पर लिखा है, जो उन्होंने बचपन में रादिया नाम की लड़की के बारे में सुनी थी। रादिया की आँखों से हम देखते हैं कि कैसे एक क्रूर और अमानवीय क़ब्ज़ा शुरू हुआ जो आज भी जारी है।
इसका प्रीमियर 14 सितंबर 2021 को टोरंटो फ़िल्म फ़ेस्टिवल में हुआ था। इसके प्रसारण से इज़रायल इतना बौखलाया कि नेटफ़्लिक्स पर दबाव डालकर इसे हटवा दिया गया।

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होम स्वीट होम (3 मिनट 15 सेकंड)
निर्देशक : उमर रम्माल

बिना कुछ बोले यह फ़िल्म इज़रायली सेटलर्स द्वारा फ़िलिस्तीनी घरों पर क़ब्ज़े की सच्चाई को बेहद मार्मिक ढंग से दिखाती है।
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द प्रेज़ेंट (24 मिनट)
निर्देशक : सारा नबलुसी

‘अल हादिया’ (शाब्दिक अर्थ 'उपहार') - फ़राह नबलुसी की आधे घण्टे की यह फ़िल्म इज़रायल के क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में एक फ़िलिस्तीनी पिता और उसकी बेटी के एक दिन के बारे में है जो अपनी पत्नी के लिए शादी की सालगिरह पर तोहफ़ा ख़रीदने निकलता है। फ़िल्म अपने ही देश में क़दम-क़दम पर चेकपॉइंट से गुज़रने और अपमान का सामना करने के फ़िलिस्तीनियों के रोज़ के अनुभव को बहुत प्रभावशाली ढंग से पेश करती है। गत वर्ष इसे ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था और इसने सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म के लिए ब्रिटिश अकादेमी (BAFTA) पुरस्कार जीता है।

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उबैदा (7 मिनट 20 सेकेंड)
निर्देशक : मैथ्यू कैसल

यह लघु फिल्म इज़रायली सेना द्वारा गिरफ़्तार किये गये एक फ़िलिस्तीनी बच्चे के अनुभवों की पड़ताल करती है। हर साल, लगभग 700 फ़िलिस्तीनी बच्चे इज़रायली सेना द्वारा गिरफ़्तार किये जाते हैं और उन्हें ऐसे हालात में रखा जाता है जहाँ दुर्व्यवहार व्यापक और संस्थागत है। इन युवा क़ैदियों के लिए, काग़ज़ पर भी बहुत कम अधिकारों की गारण्टी है। रिहा होने के बाद भी हिरासत का अनुभव इन बाल-क़ैदियों की ज़िन्दगी को प्रभावित करता रहता है।

Lucknow Cinephiles

12 Oct, 15:28


Oceans of Injustice

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12 Oct, 15:28


Obaida

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12 Oct, 15:27


Home Sweet Home

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12 Oct, 15:27


Ismail

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25 Sep, 04:12


यह फ़िल्म अमेरिका में मेहनतकश स्त्रियों की ओर से यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लम्बी क़ानूनी और सामाजिक लड़ाई के प्रसिद्ध मामले पर आधारित है। फ़िल्म की मुख्य किरदार जोसी एम्स एक वास्तविक स्त्री मज़दूर लोइस जेन्सन पर आधारित है, जिसने 1975 में खदानों में काम करना शुरू किया था और वर्षों तक यौन उत्पीड़न सहने के बाद सभी स्त्री कामगारों की ओर से क़ानूनी लड़ाई शुरू की। दस साल के संघर्ष के बाद उन्हें सफलता मिली और अमेरिका में यौन उत्पीड़न क़ानून में बड़े बदलाव करने पड़े।
निकी कारो द्वारा निर्देशित ‘नॉर्थ कंट्री’ 2005 में आयी थी जिसमें कई ऑस्कर जीत चुकीं शार्लीज़ थेरॉन, फ्रांसिस मैकडॉरमंड और सिस्सी स्पासेक के अलावा शॉन बीन, रिचर्ड जेन्किंस, मिशेल मोनाहन, जेर्मी रेनर और वुडी हैरेलसन जैसे मँजे हुए अभिनेता हैं। फ़िल्म की पटकथा क्लारा बिंघम और लॉरा लीडी गैंसलर की किताब ‘क्लास एक्शन: द स्टोरी ऑफ़ लोइस जेन्सन एंड द लैंडमार्क केस दैट चेंज्ड सेक्शुअल हैरेसमेंट लॉ’ पर आधारित है।
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हमारा सुझाव है कि आप फ़िल्म और सबटाइटल्स कंप्यूटर या लैपटॉप पर डाउनलोड करके इसे देखें। फ़िल्म और सबटाइटल्स की फ़ाइलें एक फ़ोल्डर में डाउनलोड करने के बाद VLC Media Payer या ऐसे ही किसी अन्य प्रोग्राम के ज़रिए इसे देखा जा सकता है। VLC में आप इसके सबटाइटल्स का फ़ॉण्ट भी सुविधानुसार बड़ा कर सकते और इसका रंग भी बदल सकते हैं या पढ़ने में आसानी के लिए सबटाइटल्स के पीछे बैकग्राउण्ड भी लगा सकते हैं। इसके लिए VLC के Tools मेनू में जाकर Preferences और फिर Subtitles/OSD पर क्लिक करें और सुविधानुसार चयन करें।