इग्नोर'✍️
शब्द कोई भी बड़ा या छोटा नही होता लेकिन शब्दो के मायने छोटे बड़े होते हैं, कभी-कभी बड़े शब्द या बड़ी चीजे जो नहीं कर पाती वो छोटी-छोटी चीजें कर देती हैं !
आप इग्नोर लिख कर देखो गूगल पर दुनिया भर की चीजे आ जायेंगी...!जैसे...!
इग्नोर का अर्थ क्या होता है, इग्नोर करना किसे कहते हैं, कोई इग्नोर करें तो क्या करना चाहिए..? किसी को इग्नोर कैसे करें, कोई इग्नोर करे तो हम कैसे रिएक्ट करें, वगैरा-वगैरा......!
पर कभी ये नही आता इग्नोर हुआ व्यक्ति कैसा फील करता है, या जब वो इग्नोर होता है तो उसे कैसा लगता है। और ये भी नही आता..!
जो इग्नोर कर रहा है उसकी मनःस्थिति कैसी होती है उस समय जब वो किसी इंसान को इग्नोर करता है !
तो सोचा आज इसी पर कुछ लिखूं, जो समझ आया उतना लिखने की कोशिश करूं !
कभी सोचा है आपने उस व्यक्ति के बारे में जो इग्नोर हो रहा है या जिसे इग्नोर किया जा रहा है...?
जरूर सोचा होगा लेकिन जब भी इग्नोर हुए होंगे या जब इग्नोर किया होगा, उसी वक्त सोचा होगा वो भी खुद के बारे में..!
कहते है अगर कोई आपको नज़र अंदाज़ (इग्नोर) करें तो समझ लीजिए उसकी पूरी नजर आप पर ही है !
ठीक है समझ लिया पर ये नज़र रखने के चक्कर में जो दूसरे का हश्र होता है उसका क्या..!
इग्नोर हुआ व्यक्ति जो उस वक्त महसूस करता उसका क्या... अक्सर होता ऐसा है की जब भी कोई किसी को नज़र-अंदाज़ कर रहा होता है तो सामने वाले को पता ही नही होता आखिर हुआ क्या है..!
ये बेरुखी क्यों,
ये नाराजगी क्यों,
ये उदासी क्यों,
ये शांति क्यों,
वो भी मेरे साथ.. मैंने ऐसा भी क्या कर दिया जो ये इंसान मुझे बिल्कुल भूल गया
या भूल गई।
पर
पर
खुद को रोकता हूं मैं ये नहीं बोल रहा की जो इग्नोर हो रहा है वो सही है, और जो कर रहा वो गलत नहीं वो भी गलत है..!
क्योंकि मैंने ऊपर ये भी लिखा की जो कर रहा है, उसकी मनःस्थिति कैसी रही होगी जो उसने ऐसा किया,
अगर रिश्ता बराबर होता है तो तड़प भी बराबर होती है ना, कुछ तो हुआ ही होगा जो कोई इग्नोर हुआ और कोई किया गया।
पर मेरे लिखने का मतलब बस इतना है..!
इग्नोर करो ठीक है पर हो सके तो सामने वाले को चीजे पता होनी चाहिए, अगर रिश्ता है तो क्लेरिटी बहुत जरूरी है, अगर दोस्त मानते हो या कुछ भी मानते हो तो कुछ भी कहने में हिचक कैसी..?
अगर आपको कुछ किसी के बारे में नहीं पसंद तो आप साफ-साफ बोलो.. मुझे ये चीज आपकी नहीं पसंद, उसे कॉम्प्लिकेटेड क्यों बनाना है ये रिश्ता आपका है।
चलो मान लो लगाओ बढ़ा, दो लोग बहुत करीबी रिश्ता जीने लगे, तो इग्नोर करने लगोगे, क्या आपको पहले से उस इंसान का व्यक्तित्व नही पता था, क्या आपको नहीं पता था उसकी आदतों के बारे में..?
क्यों खुद को हर्ट करना और दूसरे को भी...,
कुछ लोग कहेंगे ठीक है इन सब चीजों का होना अच्छा है जरूरी भी है। मान लेते हैं इससे प्यार बढ़ता है, कोई कहेगा फर्क भी उसी से पड़ता जो बहुत करीब होता, इग्नोर भी उसे किया जाता जिसके होने न होने से फर्क पड़ता !
लेकिन मेरी मानो तो प्यार में कोई फ़ार्मूला नही लगता, रिश्ता चलाने के लिए हमे बस अंडरस्टैंडिंग की जरूरत होती है अगर एक रूठा है तो दूसरा माना ले, कभी एक गर्म है तो दूसरे को नर्म हो जाना चाहिए !
पता है हममें बस रिश्ता जीने की और बचाने की चाह होनी चाहिए, फिर ना कोई आपका रिश्ता तोड़ सकता न ही उसे हिला सकता है !
फर्क नही पड़ता,
फर्क नही पड़ता,
चलो दिखाते हैं दूसरे इंसान को हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, उसको लगेगा इसको बहुत खुशी है !
लेकिन ऐसा करना क्यों हैं, क्यों दिखाना किसी को जिसे जाना होगा वो जायेगा उसे कोई रोक ही नही सकता
पर हां लोग उदास नही दिखते तो सामने वाले को लगता कहाँ वो उदास है कभी- कभी इसलिए भी चीजे होती क्योंकि सामने वाले को उसे उदास देखना है ! जरूरी है कि जब हम दिखाएं तभी सामने वाले को लगे हम दुखी हैं, खुद के लिए अपने साथ वालों को भी क्यों दुखी करना यार..!
हमारा दुख हमारी तकलीफ हमारे काटने से ही कटती है किसी दूसरे के काटने से नहीं, पर जब हमारी वजह से कोई हँसता है तो दुआएं जरूर मिलती हैं
ध्यान देने योग्य बात पता है कौन सी है..
प्यार और ज्ञान दो ऐसी चीज हैं जो बांटने से बढ़ती है, तो बांटो न प्यार बिना किसी स्वार्थ के आप देखना और लिख कर रख लो एक दिन इतना आयेगा रख नही पाओगे...!
पता है कपड़ा हो या घाव सिलने के लिए सुई काम आती तलवार नही इसलिए इग्नोर करने या होने की नौबत ही न आने दो !
~Ahmad
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