◾️ परिभाषा:
ब्लैक्स लॉ डिक्शनरी के अनुसार, "डॉक्ट्रिन ऑफ रिलेशन बैक" का अर्थ है, "ऐसा सिद्धांत जिसमें वर्तमान में किया गया कोई कार्य पहले के समय में किया गया कार्य माना जाता है।"
इसका तात्पर्य है कि वर्तमान में किए गए कार्य को पूर्व में किए गए कार्यों से जोड़ा जा सकता है।
👉 यह सिद्धांत विभिन्न कानूनों में भिन्न रूप से लागू होता है।
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उद्देश्य:
▪️ न्याय के समय अस्पष्टता को दूर करना:
यह सिद्धांत न्याय प्रदान करते समय किसी भी भ्रम या अस्पष्टता को दूर करने में सहायक होता है।
▪️ सीमाओं और प्रतिबंधों से बचाव:
यह किसी मामले में लागू होने वाली कानूनी सीमाओं और प्रतिबंधों को खत्म करने में मदद करता है।
▪️ गलतियों की संभावना को कम करना:
यह सिद्धांत कानूनी प्रक्रिया में होने वाली गलतियों की संभावना को कम करता है।
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विभिन्न कानूनों में अनुप्रयोग:
👉 सीपीसी (CPC) के तहत:
डॉक्ट्रिन ऑफ रिलेशन बैक को कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर की ऑर्डर VI रूल 17 के तहत निहित माना गया है। इसके अनुसार, यदि आवश्यक हो तो अदालत मुकदमे के मुद्दों को सुलझाने के लिए किसी पक्ष को उसके दावे (प्लीडिंग) में संशोधन करने की अनुमति दे सकती है।
👉 भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA):
इस सिद्धांत का अनुप्रयोग भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 196 में "पृष्ठस्वीकृति" (Ratification) की अवधारणा में देखा जा सकता है।
👉 सीमाएं अधिनियम, 1963:
लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 21 स्पष्ट रूप से बताती है कि पक्षकारों के प्रतिस्थापन या उनके जोड़ने पर "डॉक्ट्रिन ऑफ रिलेशन बैक" लागू होगा।