"अच्छी थी, पगडंडी अपनी, सड़कों पर तो, जाम बहुत है !! फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो, सबके पास, काम बहुत है !! नहीं बूढ़ों की अब, हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है !! उजड़ गए, सब बाग बगीचे, दो गमलों में, शान बहुत है !! मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं, कहते हैं, जुकाम बहुत है!! पीते हैं, जब चाय, तब कहीं, कहते हैं, आराम बहुत है!! बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री, व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है!! झुके-झुके, स्कूली बच्चे, बस्तों में, सामान बहुत है !! नही बचे, कोई सम्बन्धी, अकड़, ऐंठ, अहसान बहुत है!! सुविधाओं का ढेर लगा है यार, पर इंसान परेशान बहुत है !!
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