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मैने ये चैनल लोगो को सामाजिक जानकारी और लोगो को दैनिक जीवन मे हो रही कानूनी परेशानियों का समाधान करने के लिए बनाया है!

Kanooni Salah - भारतीय कानून हिंदी में (Hindi)

भारतीय कानून हिंदी में कानूनी सलाह चैनल एक महत्वपूर्ण स्थान है जो लोगों को सामाजिक जानकारी और दैनिक जीवन में हो रही कानूनी परेशानियों का समाधान प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया है। यहाँ लोग मिलकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं और कानूनी मुद्दों पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। कानूनी सलाह चैनल पर आपको मिलेगा कानून संबंधी जानकारी, कानूनी अधिकार, नौकरी से जुड़े कानूनी मुद्दे, व्यवसाय से संबंधित कानूनी सलाह और भारतीय कानूनी प्रक्रियाएं। इस चैनल में कानून के विषय में विशेषज्ञों द्वारा दिए गए परामर्श आपकी समस्याओं का समाधान करने में मदद करेंगे। यहाँ आप अपने अधिकारों को समझने और उन्हें बचाने के लिए जरूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप अपनी कानूनी समस्याओं का समाधान खोज रहे हैं या अपने कानूनी अधिकारों को समझना चाहते हैं, तो 'कानूनी सलाह' चैनल आपके लिए सहायक हो सकता है। यह एक मार्गदर्शिका के रूप में काम करता है जो आपको अधिक जानकारी और समझदारी प्रदान करने के लिए उपयोगी हो सकता है।

Kanooni salah

25 Jan, 13:36


https://youtu.be/7Sp5YpRf9qw?si=9dSbIjtMWZE1-GGX

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25 Jan, 13:36


व्यापार चिन्ह का अधिकार :-

* व्यापार चिन्ह एक ऐसा नाम, हस्ताक्षर, सुभिन्न चिन्ह, तस्वीर या लेबल है, जो किसी माल के साथ संलग्न होने पर उसे दूसरे माल से अलग किया जाता है। इस प्रकार व्यापार चिन्ह माल के गुणों, विनिर्माण तथा उसके स्वामित्व को दर्शाता है। व्यापार चिन्ह मात्र उन्हीं वस्तुओं के लिए किया जाता है, जिन्हें बाजार में बेचा जाता है।

* व्यापार चिन्ह उन व्यक्तियों का सिविल अधिकार हो, जिन्होंने बाजार में उस वस्तु के संबंध में ख्याति प्राप्त कर ली है। यह अधिकार उन व्यक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है , जो उसी तरह के माल का विनिर्माण कर बाजार में बेचते हैं।

* व्यापार चिन्ह के अधिकार की सीमा उसी देश तक रहती है, जिस देश के कानून के तहत इस अधिकार को प्राप्त किया गया है। इसलिए संभव है कि एक व्यापार चिन्ह एक देश में किसी व्यक्ति को दिया गया हो, जबकि अन्य देश में वहीं व्यापार चिन्ह किसी अन्य व्यक्ति को दे दें। फिर भी देशों के बीच इस संबंध में समझौते हो सकते हैं।

* व्यापार चिन्हं वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, जो माल के विनिर्माण से किसी संबंध को दर्शित कर उसकी उत्पत्ति को प्रदर्शित करता है।

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25 Jan, 13:35


भारतीय दंड संहिता की धारा 172 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 172 के अंतर्गत जो भी किसी भी सरकारी नौकर से सम्मन, नोटिस या आदेश जारी करने के लिए किसी भी सरकारी नौकर से सम्मन, नोटिस या आदेश के साथ सेवा करने से बचने के लिए अवरुद्ध होता है, को उस अवधि के लिए साधारण कारावास से दंडित किया जा सकता है एक महीने या ठीक से जो पांच सौ रुपए तक हो सकता है, या दोनों के साथ; या, अगर सम्मन या नोटिस या ऑर्डर व्यक्ति या एजेंट द्वारा या किसी न्यायालय में न्यायालय में पेश करने के लिए होता है, तो ऐसी अवधि के लिए साधारण कारावास के साथ जो कि छह महीने तक के लिए होगा।

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25 Jan, 13:35


व्यापार चिन्ह अधिकार का उल्लंघन होने पर कानून :-

* व्यापार चिन्ह एक ऐसा नाम, हस्ताक्षर, सुभिन्न चिन्ह, तस्वीर या लेबल है, जो किसी माल के साथ संलग्न होने पर उसे दूसरे माल से अलग किया जाता है। इस प्रकार व्यापार चिन्ह माल के गुणों, विनिर्माण तथा उसके स्वामित्व को दर्शाता है। व्यापार चिन्ह मात्र उन्हीं वस्तुओं के लिए किया जाता है, जिन्हें बाजार में बेचा जाता है।

* उसी प्रकार के माल पर उस व्यापार चिन्ह का अनाधिकृत प्रयोग या उसकी नकल करना। इस प्रकार के कार्य को धोखाधड़ी का अपराध माना गया है, जिसके लिए दंड की व्यवस्था है।

* व्यापार चिन्ह हमेशा नया व ऐसा होना चाहिए, जिससे बाजार में भ्रम या प्रवंचना न हो।

* व्यापार चिन्ह के पंजीकरण की मान्यता 10 वर्ष के लिए होती है, लेकिन 10 वर्ष पश्चात दोबारा 10 वर्ष के लिए व्यापार चिन्ह का नवीनीकरण करवाया जा सकता है।

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25 Jan, 13:35


दिग्विजय सिंह के खिलाफ फर्जी नियुक्ति में वारंट :-

* प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह फर्जी नियुक्ति के मामले में फंस गए हैं। दिग्विजय सिंह के खिलाफ मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय में 1993 से 2003 के बीच फर्जी नियुक्ति के मामले में भोपाल की जिला अदालत ने वारंट जारी किया है। हालांकि इस फैसले के दौरान दिग्विजय सिंह अदालत में मौजूद नहीं थे। वह शनिवार की सुबह ग्यारह बजे कोर्ट पहुंचेंगे।

* आपको बता दें कि जहांगीराबाद पुलिस ने शुक्रवार को दिग्विजय सिंह समेत आठ आरोपियों के खिलाफ चालान जिला कोर्ट में लोकायुक्त के स्पेशल जज काशीनाथ सिंह की अदालत में पेश किया था। गौरतलब है कि विधानसभा सचिवालय में फर्जी नियुक्ति के मामले में पिछले साल मामला दर्ज किया गया था। जिसमें आरोप है कि दिग्विजय सिंह ने 1993 से 2003 में मुख्यमंत्री पद पर रहने के दौरान अपने नजदीकियों को नियमों को ताक पर रखकर नियुक्त किया था।

* इतना ही नहीं नियमों के खिलाफ जाकर प्रमोशन भी दिया था। इसी मामले में पुलिस ने 27 फरवरी, 2015 को एफआईआर दर्ज कर दिग्विजय सिंह समेत 19 लोगों को मामले में आरोपी बनाया था। जिनमें से दिग्विजय सिंह, अशोक चतुर्वेदी, ऐके त्यागी, रमाशंकर मिश्रा, सुषमा द्विवेदी, कुलदीप पांडे, केके कौशल के खिलाफ पुलिस ने अदालत में चालान पेश किया था।

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25 Jan, 13:35


भारतीय दंड संहिता की धारा 415 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 415 के अंतर्गत जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को धोखा देकर धोखाधड़ी या बेईमानी से किसी भी व्यक्ति को किसी भी संपत्ति को देने के लिए धोखा दे, या किसी भी व्यक्ति को किसी भी संपत्ति को बनाए रखने के लिए, या जानबूझकर उस व्यक्ति को प्रेरित करता है जो वह करने के लिए धोखा, ऐसा नहीं होता है या नहीं, अगर वह इतना धोखा नहीं होता, और जो शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति में उस व्यक्ति को नुकसान या हानि का कारण बनने की संभावना है या जो "धोखा" कहा जाता है।

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25 Jan, 13:35


ट्राइब्यूनल की प्रक्रिया :-

* दावा ट्राइब्यूनल को मोटर दुर्घटना से संबंधित केसों पर एकमात्र क्षेत्राधिकार प्राप्त है।

* ट्राइब्यूनल निर्णय सुनाते समय यह स्पष्ट करती है कि मुआवजे की राशि कितनी होगी तथा किन लोगों के द्वारा उसका भुगतान किया जायेगा।

* ट्राइब्यूनल का क्षेत्राधिकार- जहां दुर्घटना हुई हो। जहां दावेदार रहते हों। जहां बचाव पक्ष रहते हों।

* ट्राइब्यूनल को दीवानी अदालत की शक्तियां प्राप्त होती हैं।

* ट्राइब्यूनल मुआवजे की राशि पर ब्याज भी लगा सकती है। यह ब्याज दावे की तिथि से लेकर राशि के भुगतान तक के लिए लगाया जा सकता है ।

* यदि कोई व्यक्ति ट्राइब्यूनल द्वारा निर्धारित मुआवजे की राशि से संतुष्ट नहीं है तो वह ट्रायब्यूनल के निर्णय की तिथि से 90 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है,

* यदि अपील 90 दिन के बाद की जाती है , उसे बिलंब के संतोषजनक कारण ट्रायब्यूनल को बताने होंगे।

* यदि राशि 2,000 रुपए से कम की है तो उच्च न्यायालय अपील को दाखिल नहीं करेगा।

* मुआवजे की राशि के लिए ट्राइब्यूनल से एक प्रमाणपत्र लेना होता है जो जिला कलेक्टर को संबोधित करता है । इस प्रमाणपत्र में मुआवजे की राशि अंकित होती है। कलेक्टर मुआवजे की राशि को ठीक उसी तरह इकट्ठा करने का अधिकार रखता है जिस तरह वह जमीन का राजस्व वसूलता है तथा दावेदार को उसके मुआवजे का भुगतान करता है।

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24 Jan, 16:23


https://youtu.be/5-sXECS1YoQ?si=-TDcjAnPiM_cN77a

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23 Jan, 17:00


https://youtu.be/y0ybVvUPNFc?si=S-cRM60kNMX9oraE

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23 Jan, 16:59


अपील का अधिकार :-

* अगर आवेदक को तय समयसीमा में सूचना मुहैया नहीं कराई जाती या वह दी गई सूचना से संतुष्ट नहीं होता है तो वह प्रथम अपीलीय अधिकारी के सामने अपील कर सकता है। पीआईओ की तरह प्रथम अपीलीय अधिकारी भी उसी विभाग में बैठता है, जिससे संबंधित जानकारी आपको चाहिए।

* प्रथम अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी। अपनी ऐप्लिकेशन के साथ जन सूचना अधिकारी के जवाब और अपनी पहली ऐप्लिकेशन के साथ-साथ ऐप्लिकेशन से जुड़े दूसरे दस्तावेज अटैच करना जरूरी है।

* ऐसी अपील सूचना उपलब्ध कराए जाने की समयसीमा के खत्म होने या जन सूचना अधिकारी का जवाब मिलने की तारीख से 30 दिन के अंदर की जा सकती है।

* अपीलीय अधिकारी को अपील मिलने के 30 दिन के अंदर या खास मामलों में 45 दिन के अंदर अपील का निपटान करना जरूरी है।

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23 Jan, 16:59


भारतीय दंड संहिता की धारा 244 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 244 के तहत कोर्ट के आदेश के बाद अभियुक्त को पुलिस द्वारा या warrant द्वारा न्यायालय में पेश किया जाता क्योंकि अभियुक्त के खिलाफ लिखित शिकायत पुलिस को या फिर न्यायालय को मिली होती और क्रॉस एग्जामिनेशन (अभियक्त व अभियोजन पक्ष) किया जाता है अभियुक्त व अभियोजन पक्ष पूछा जाता है की इस तरह के कंप्लेंट आपके खिलाफ आई है क्या आपने ये अपराध (अभियोग) किया है, यदि नही तो आपके पास कोई सबूत है यदि है तो उसको सम्मन भेजकर बुलाया जा सकता है।

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23 Jan, 16:59


कॉरपोरल पनिशनमेंट कानून :-

* ऑल इंडिया पैरंट्स असोसिएशन के अध्यक्ष व जाने-माने वकील अशोक अग्रवाल बताते हैं कि एनसीपीसीआर ने कॉरपोरल पनिशनमेंट को रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाए थे। केंद्र सरकार ने तमाम स्कूलों को उसे लागू करने के लिए सर्कुलर जारी किया हुआ है। इसके तहत बच्चों के साथ की जाने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को कॉरपोरल पनिशमेंट माना गया है। अगर बच्चों का शारीरिक तौर पर किसी भी तरह से शोषण किया जाता है तो वह कॉरपोरल पनिशनमेंट है। अगर उन्हें पीटा जाता है या कुछ ऐसा किया जाता है कि वे असहज महसूस करें या किसी भी तरह से शारीरिक नुकसान पहुंचाया जाता है मसलन चाटा मारना, कान ऐंठना आदि तो यह सब कॉरपोरल पनिशमेंट के दायरे में होगा। बच्चे को किसी खास पोजिशन में खड़ा रखना, बेंच पर खड़ा करना, मुर्गा बनाना, कान पकड़कर खड़ा रखना, गलत तरीके से पुकारना भी इसी दायरे में है। बच्चे को किसी भी तरह से शारीरिक या मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचता है तो वह कॉरपोरल पनिशनमेंट माना जाएगा।

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23 Jan, 16:59


स्वतंत्रता का अधिकार :-

* वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति- स्वातंत्र्य का अधिकार

* शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का अधिकार

* संगम या संघ बनाने का अधिकार

* भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार

* भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का अधिकार

* कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार।

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23 Jan, 16:59


भारतीय दंड संहिता की धारा 210 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 210 के अंतर्गत जो भी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी कारण के लिए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ डिक्री या आदेश प्राप्त नहीं करता है, या उसके मुकाबले अधिक से अधिक राशि के लिए या संपत्ति के किसी भी संपत्ति या हित के लिए जो वह हकदार नहीं है, या धोखाधड़ी के खिलाफ निष्पादित करने के लिए एक डिक्री या आदेश का कारण बनता है उसके बाद किसी भी व्यक्ति को संतुष्ट या संतुष्ट किया गया है, जिसके बारे में यह संतुष्ट हो गया है, या धोखाधड़ी से ग्रस्त है या उसके नाम पर किए जाने वाले किसी भी तरह की कार्यवाही को या तो उस अवधि के कारावास से दंडित किया जाएगा, जो कि दो साल से अधिक हो सकता है।

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23 Jan, 16:59


फर्जी डॉक्टरों के विरुद्ध कानून :-

* फर्जी डॉक्टर दवाखाने संचालित कर मरीजों को लूट रहे है। इन फर्जी डॉक्टरों पर शिकंजा कसने के लिए मुख्यमंत्री के आदेश पर बीएमओ ने डॉक्टरों पर एफआईआर दर्ज करने पुलिस को आवेदन दे दिया है, यदि शिकायत सही पाई जाती है तो इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी। पूरे ब्लॉक में फर्जी और झोलाछाप डॉक्टरों का जाल इस तरह बिछा है कि कोई भी मरीज इनके चंगुल से नहीं बच सकता है।

* आयुर्विज्ञान परिषद अघिनियम 1987 के प्रावधानों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जिसका नाम राज्य चिकित्सक रजिस्टर में अंकित नहीं है, रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के रूप में व्यवसाय करेगा तो उसे तीन साल के कारावास एवं पांच हजार के जुर्माने से दंडित किया जाएगा, लेकिन भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अघिनियम 1956 के विशेषाघिकार का हकदार होने पर दंड का भागीदार नहीं होगा।

* एक समिति गठित कर डॉक्टरों की डिग्रियों की जांच की जाएगी। फर्जी डाक्टरों के खिलाफ सीधे एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी।

* अंगुलियों पर गिने जाने वाले एमबीबीएस डॉक्टरों के दवाखानों तक केवल दस प्रतिशत मरीज ही पहुंच पाते हैं, बचे हुए मरीजों का इलाज इन फर्जी डॉक्टरों द्वारा कर दिया जाता हैं। आश्चर्य की बात तो यह हैं कि किराए के कमरे में चल रहे इन दवाखानों में डॉक्टर हर मर्ज का इलाज कर रहे हैं।

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23 Jan, 14:06


https://youtu.be/um6P27cYL9E?si=Ou-u6PvcHp-oDlMh

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22 Jan, 14:42


https://youtu.be/cHQSAwlguXk?si=hpvyzffMtqPR1ZrY

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22 Jan, 14:42


ऑनलाइन शॉपिंग वेबासाइट ने ग्राहक को लगाया चूना :-

* ब्रांडेड कंपनियों के समानों के आकर्षक ऑफर का झांसा देकर ठगी करने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहा हैं। ताजा मामले में ग्वालियर निवासी अमित गांधी ने ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट बुक मॉय ऑफर से रेबेन का सनग्लास मंगवाया था। पार्सल खोलने पर जब अमित को शक हुआ तो उसने स्थानीय शोरुम पर दिखाया जहां पर पता चला कि सनग्लास नकली है और जिसकी कीमत 999 रुपए नहीं बल्कि 100 रुपए है। इसी तरह सिटी सेंटर निवासी रवि ने भी बुक माई ऑफर कंपनी से एक पेन ड्राइव बुक की थी। रवि ने जब डिलिवरी के बाद पेन ड्राइव का इस्तेमाल को वह खराब निकली। हालांकि रवि ने मामले की शिकायत कंपनी के कस्टमर केयर पर की, लेकिन कंपनी न तो पेन ड्राइव को ही बदला और न ही पैसे ही वापस किए।

* गौरतलब है कि वर्तमान में देश में 100 से अधिक ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स कम कीमत पर ब्रांडेड सामान देने के नाम पर लोगों को घटिया सामान बेच रही हैं। ये कंपनियां खासकर त्यौहारों के मौकों पर 50 से 80 परसेंट तक छूट का लालच देकर लोगों को अपना शिकार बनाती हैं। वहीं जब ठगी का शिकार ग्राहक वेबसाइट की कस्टमर केयर सेवा के नंबरों पर संपर्क करता है तो उन्हें कोई रिस्पांस नहीं दिया जाता है। वहीं साइबर सेल के अधिकारी भी इन कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बजाय मामले से पल्ला झाड़ने में लगे रहते हैं।

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22 Jan, 14:41


भारतीय दंड संहिता की धारा 358 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 358 के अंतर्गत उस व्यक्ति द्वारा दिए गए गंभीर और अचानक उत्तेजना के किसी भी व्यक्ति पर आपराधिक बल या आपराधिक बल का इस्तेमाल करने पर, एक अवधि के लिए साधारण कारावास से सजा हो सकती है, जो एक महीने तक हो सकती है, या जुर्माना जो दो सौ रुपए तक हो सकता है, या दोनों के साथ दंडित किया जाएगा।

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22 Jan, 14:41


भारतीय साक्ष्य अधिनियम कानून :-

* भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) मूल रूप से 1872 में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया था। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 11 अध्याय और १६७ धाराएँ हैं। यह तीन भागों में विभक्त है। इस अधिनियम ने बनने के बाद से 125 से अधिक वर्षों की अवधि के दौरान समय-समय पर कुछ संशोधन को छोड़कर अपने मूल रूप को बरकरार रखा है। यह अदालत की सभी न्यायिक कार्यवाहियों पर लागू होता है (कोर्ट मार्शल सहित)। हालांकि, यह शपथ-पत्र और मध्‍यस्‍थता पर लागू नहीं होता।

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22 Jan, 14:41


जेटली-मुलायम मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट निलंबित :-

* लखनऊ(उत्तर प्रदेश) महोबा के न्यायिक मजिस्ट्रेट अंकित गोयल को समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मुकदमा करना मंहगा पड़ गया है। मुकदमे की इस कार्रवाई से नाराज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें निलंबित कर दिया है। और साथ ही उनके खिलाफ गंभीर अनियमितताओं की शिकायतों की विभागीय जांच के आदेश भी दे दिए हैं। हाईकोर्ट महानिबंधक ने इस कार्रवाई की पुष्टि कर दी है।

* आपको बता दें कि कुछ समय पहले महोबा की कुलपहाड़ अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट अंकित गोयल ने न्यायाधीश की नियुक्ति मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर टिप्पणी को आधार बनाकर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ मुकदमा दर्ज करना का आदेश दिया था। इस मुकदमे के खिलाफ अरुण जेटली ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने अरुण जेटली के खिलाफ कायम मुकदमे को रद्द कर दिया था और न्यायिक मजिस्ट्रेट अंकित गोयल के खिलाफ कार्रवाई की संतुति की थी।

* वहीं न्यायिक मजिस्ट्रेट अंकित गोयल ने समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के बयान ’एक महिला से पांच लोग दुष्कर्म नहीं कर सकते’ को आधार बनाकर, मामले पर स्वयं संज्ञान लेकर मुकदमा दर्ज कर लिया लिया था। इतना ही नहीं उनसे मकान खाली कराने के लिए मकान मालिक को धमकी देने के आरोप में सपा युवजन सभा के जिला अध्यक्ष भागीरथ यादव और मुलायम सिंह के खिलाफ आवमानना का मुकदमा दर्ज करा दिया था। हालांकि बाद में दायर की गयी पुनरीक्षण याचिका में जिला जज ने मुलायम सिंह पर दर्ज मूल मामले को न्यायिक मजिस्ट्रेट जूनियर डिवीजन के न्यायिक क्षेत्र से परे होने का हवाला देकर खत्म कर दिया था, जबकि अवमानना मामले में अभी पुनरीक्षण याचिका विचाराधीन है।

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22 Jan, 14:41


भारतीय दंड संहिता की धारा 423 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 423 के अंतर्गत जो कोई भी बेईमानी या धोखाधड़ी से संकेत करता है, निष्पादित करता है या किसी भी काम या वाहिनी के लिए एक पार्टी बन जाता है जो किसी भी संपत्ति के हस्तांतरण या किसी भी शुल्क के अधीन या उसमें कोई ब्याज के अधीन है, और जिसमें ऐसे हस्तांतरण या प्रभार के लिए विचार से संबंधित किसी भी झूठे बयान शामिल हैं, या उस व्यक्ति या व्यक्ति से संबंधित, जिसका उपयोग या इसका लाभ वास्तव में संचालित करने के उद्देश्य से है, को किसी भी अवधि के दो साल के लिए या जुर्माना, या दोनों के साथ, या दोनों के लिए कारावास के साथ दंडित किया जाएगा।

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22 Jan, 14:41


न्यायपालिका की विशेषताएँ :-

* स्वतंत्र न्यायपालिका :- भारत एक प्रजातंत्रात्मक देश है. प्रजातंत्रात्मक देश में स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है. भारत की न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के प्रभाव से पूर्णतया स्वतंत्र है. यह जरुर है कि न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा की जाती है पर एक बार निर्वाचित होने के बाद न्यायाधीश बिना महाभियोग लगाए अपने पद से हटाये नहीं जा सकते. उनके कार्यकाल में उनका वेतन भी कम नहीं किया जा सकता और इस प्रकार वे व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के प्रभाव से पूर्णतया मुक्त रहते हैं

* संगठित न्यायपालिका :- भारत की न्यायपालिका अत्यंत सुगठित है. ऊपर से लेकर नीचे तक के न्यायलाय एक दूसरे से पूर्णतया सम्बंधित हैं. अमेरिका में न्यायपालिका के दो पृथक अंग हैं अर्थात् वहाँ न्यायालयों की दोहरी व्यवस्था के दर्शन होते हैं. अमेरिका में संघीय कानून लागू करने के लिए संघीय न्यायालय होते हैं और राज्यों के कानूनों को लागू करने के लिए राज्यों के अलग न्यायालय होते हैं और उसके नीचे अन्य प्रादेशिक एवं जिला न्यायलाय भी होते हैं. संघीय न्यायालयों में चोटी पर एक सर्वोच्च न्यायालय होता है और उसके नीचे अन्य प्रादेशिक एवं जिला न्यायालय भी होते हैं.

* दो प्रकार के न्यायालय :- भारतीय न्याय-व्यवस्था की एक अन्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्न प्रकार के न्यायालयों के अलग-अलग दर्शन नहीं होते. यहाँ प्रमुख रूप से दो प्रकार के न्यायालय हैं – दीवानी और फौजदारी इसके अतिरिक्त भूमि-कर से सम्बंधित मामलों के लिए रेवेन्यू कोर्ट्स की व्यवस्था अवश्य ही अलग की गई है. पर कुछ अन्य देशों की तरह भारत में विशिष्ट न्यायालयों; जैसे सैनिक, तलाक, वसीयत से सम्बंधित न्यायालयों आदि का अभाव है.

* न्यायपालिका की सर्वोच्चता :- भारत में व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी का अपना अलग-अलग महत्त्व है परन्तु कुछ क्षेत्रों में न्यायपालिका अन्य दो की अपेक्षा विशिष्ट महत्त्व रखता है. भारत में संविधान को ही सर्वोपरि माना गया है. संविधान के उल्लंघन का अधिकार किसी को भी नहीं है. यहाँ की न्यायपालिका ही संविधान की संरक्षक है. न्यायालय व्यवस्थापिका द्वारा पारित किए गए किसी भी क़ानून को संविधान विरोधी कहकर अवैध कर सकते हैं. इस प्रकार व्यवस्थापिका और कार्यपालिका न्यायपालिका की इच्छा के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं कर सकती

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21 Jan, 17:27


https://youtu.be/tJxJLlLb_lg?si=cwEp8G9IHk-cDXeZ

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21 Jan, 17:27


प्ली बार्गेनिंग में व्यक्ति के अधिकार :-

* कोई भी आरोपी ( जिसकी उम्र 18 साल या उससे ज्यादा है ) प्ली बार्गेनिंग के लिए अर्जी दाखिल कर सकता है।

* मामले में आरोपी के खिलाफ दर्ज केस में अधिकतम सजा का प्रावधान 7 साल कैद से कम हो।

* अपराध महिला या 14 साल से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ न हो।

* आरोपी द्वारा किया गया अपराध देश की इकनॉमी और सामाजिक ढांचे को प्रभावित न करता हो।

* आरोपी के खिलाफ जिस अदालत में मुकदमा लंबित है, वह उसी अदालत में प्ली बार्गेनिंग के लिए आवेदन कर सकता है।

* किसी दूसरे मामले में अदालत पहले से दोषी करार आरोपी प्ली बार्गेनिंग के लिए अर्जी नहीं दे सकता है।

* इस अर्जी को देखने के बाद संबंधित मैजिस्ट्रेट आरोपी के मामले और केस फाइल को चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट को रेफर कर देते हैं और फिर चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट मामले के निपटारे के लिए उसे प्ली बार्गेनिंग जज के सामने भेजता है।

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21 Jan, 17:27


भारतीय दंड संहिता की धारा 332 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 332 के अंतर्गत जो भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को अपने कर्मचारी के रूप में अपने कर्तव्य के निर्वहन में स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाता है या उस व्यक्ति या किसी अन्य सरकारी कर्मचारी को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकता है या ऐसे सरकारी कर्मचारी के रूप में, या कुछ के परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्ति के सेवक के रूप में अपने कर्तव्य के कानूनी निर्वहन में उस व्यक्ति द्वारा किया या करने का प्रयास किया जाएगा, या तो तीन साल तक हो सकता है, या दंड के साथ, या दोनों के साथ किसी भी अवधि के लिए कारावास के साथ दंडित किया जाएगा ।

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21 Jan, 17:27


भारतीय सामान्य कानून :-

* भारतीय संविधान का अनुच्छेद 372 कॉमन लॉ पर आधारित है। इस कानून के अंतर्गत किसी भी कार्य के विरुद्ध जो किसी संपत्ति या व्यक्ति की हानि का कारण बना हो, प्रभावित पक्ष क्षतिपूर्ति या निषेधाज्ञा या दोनों का दावा कर सकता है।

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21 Jan, 17:27


नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध बनाने पर फैसला :-

* सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए कहा कि 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना रेप हो सकता है, अगर नाबालिग पत्नी इसकी शिकायत एक साल में करती है तो। कोर्ट ने कहा कि शारीरिक संबंधों के लिए उम्र 18 साल से कम करना असंवैधानिक है। कोर्ट ने आई.पी.सी की धारा 375 के अपवाद को अंसवैधानिक करार दिया। अगर पति 15 से 18 साल की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो रेप माना जाए। कोर्ट ने कहा ऐसे मामले में एक साल के भीतर अगर महिला शिकायत करने पर रेप का मामला दर्ज हो सकता है।

* इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की तमाम दलीलों को ठुकराया। कोर्ट ने कहा कि महज इसलिए कि बाल विवाह की कुरीती सदियों से चली आ रही है इसे कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सकता। ये गैरकानूनी है और अपराध है। कोर्ट ने कहा कि संसद ने ही कानून बनाया कि 18 से कम उम्र की बच्ची न तो कानूनन शादी कर सकती है न ही सेक्स के लिए सहमति दे सकती है। कोर्ट ने कहा, संसद ने ही कानून के जरिये बाल विवाह को अपराध बनाया। कोर्ट ने किया सवाल, उसी बच्ची का बाल विवाह हो जाए और पति जबरन सेक्स करे तो वो अपराध नहीं? ये बिलकुल बेतुका और असंवैधानिक है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि 18 साल से कम की उम्र में शादी बच्ची के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। कोर्ट ने कहा, संविधान के अनुछेद 14 के तहत बराबरी के हक और अनुछेद 21 के तहत जीने के अधिकार का भी हनन करता है। कोर्ट ने कहा, ये पॉस्को कानून के भी खिलाफ है। कोर्ट ने फैसला दिया कि आईपीसी की धारा 375 का वो प्रावधान असंवैधानिक है जिसके तहत पति को छूट है कि अगर वो 15-18 साल की पत्नी के तहत शारीरिक संबंध बनाएगा तो वो रेप नहीं।

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20 Jan, 06:54


https://youtu.be/B9rjU7Umh78?si=-8JW3J6uf2ER9589

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20 Jan, 06:54


स्वतन्त्रता का अधिकार :-

* विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता :- भारत के सभी नागरिकों के विचार करने, भाषण देने और अपने तथा अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतन्त्रता प्राप्त है। प्रेस भी विचारों के प्रचार का एक साधन होने के कारण इसी में प्रेस की स्वतन्त्रता भी शामिल है।

* अस्त्र-शस्त्र रहित तथा शान्तिपूर्वक सम्मेलन की स्वतन्त्रता :- व्यक्तियों के द्वारा अपने विचारों के प्रचार के लिए शान्तिपूर्वक और बिना किन्हीं शस्त्रों के सभा या सम्मेलन किया जा सकता है तथा उनके द्वारा जुलूस या प्रदर्शन का आयोजन भी किया जा सकता है। यह स्वतन्त्रता भी असीमित नहीं है और राज्य के द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में इस स्वतन्त्रता को सीमित किया जा सकता है।

* समुदाय और संघ के निर्माण की स्वतन्त्रता :- संविधान के द्वारा सभी नागरिकों को समुदायों और संघ के निर्माण की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है, परन्तु यह स्वतन्त्रता भी उन प्रतिबन्धों के अधीन है, जिन्हें राज्य साधारण जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए लगा सकता है। इस स्वतन्त्रता की आउत्र में व्यक्ति ऐसे समुदायों का निर्माण नहीं कर सकता जो षडयन्त्र करें अथवा शान्ति और व्यवस्था को भंग करें।

* भारत राज्य क्षेत्र में अबाध भ्रमण की स्वतन्त्रता :- भारत के सभी नागरिक बिना किसी प्रतिबन्ध या विशेष अधिकार-पत्र के सम्पूर्ण भारत के क्षेत्र में घूम सकते हैं। इस अधिकार पर राज्य सामान्य जनता के हित और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के हित में उचित प्रतिबनध लगा सकता है।

* भारत राज्य क्षेत्र में अबाध निवास की स्वतन्त्रता :- भारत के सभी नागरिक अपनी इच्छानुसार स्थाई या अस्थाई रूप में किसी भी स्थान पर बस सकते हैं। किन्तु राज्य के द्वारा सामान्य जनता के हित और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के हित में इन पर उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

* वृत्ति, उपजीविका या कारोबार की स्वतन्त्रता :- संविधान ने सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतन्त्रता प्रदान की है, किन्तु राज्य जनता के हित में इन स्वतन्त्रताओं पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है। राज्य किन्हीं व्यवसायों को करने के लिए आवश्यक योग्यताएं निर्धारित कर सकता है अथवा किसी कारोबार या उद्योग को पूर्ण अथवा आंशिक रूप से स्वयं अपने हाथ में ले सकता है।

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20 Jan, 06:54


भारतीय दंड संहिता की धारा 497 :-

* उस औरत का पति भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत उस व्यक्ति पर केस कर सकता है जो उसकी पत्नी को भगाकर ले जाता है, और इसके लिए 5 वर्ष की सज़ा या जुर्माना या सजा और जुर्माना दोनों होगा.

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20 Jan, 06:54


पीडब्ल्यूडी अधिनियम कानून :-

* किसी भी व्यक्ति को विकलांगता के किसी भी प्रकार के रूप में एक चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा चालीस प्रतिशत से कम प्रमाणित नहीं होनी चाहिए|

* पीडब्ल्यूडी अधिनियम के अनुसार विकलांगता, 1995 इस प्रकार है :

* अंधापन :- अंधापन एक स्थिति है जहाँ एक व्यक्ति को निम्नलिखित शर्तों से ग्रस्त करने के लिए संदर्भित करता है, जैसे :- दृष्टि की कुल अभाव, या दृश्य तीक्ष्णता 6 / 60 या 20/200 से अधिक नहीं होनी चाहिए (नेत्र चार्ट) लेंस सही करने के साथ बेहतर आंखों में, या दृष्टि कोण 20 डिग्री हो सकता है या इसे कम से होनी चाहिए|

* कुष्ठ रोग :- सनसनी से हाथ या पैर में नुकसान. साथ ही अनुभूति की आंखों में और हानि के रूप में केवल पेशियों का पक्षाघात लेकिन कोई प्रकट विकृति के साथ नही| प्रकट विकृति और केवल पेशियों का पक्षाघात लेकिन उनके हाथ और पैर में पर्याप्त गतिशीलता कर सक्षम करने के लिए और उन्हें सामान्य आर्थिक गतिविधियों में संलग्न करने के लिए | चरम शारीरिक और साथ ही उन्नत उम्र विकृति है जो उसे किसी भी लाभदायक व्यवसाय शुरू करने से रोकता है|

* हानि सुनवाई :- हानि सुनवाई का मतलब साठ दीछीबेल या आवृत्तियों के संवादी रेंज और अधिक बेहतर कान में| Decibel लोकोमोटर विकलांगता लोकोमोटर विकलांगता का मतलब हड्डियों, जोड़ों या मांसपेशियों की विकलांगता पर्याप्त प्रतिबंध के प्रमुख साधन अंग का पर्याप्त प्रतिबंध या मस्तिष्क पक्षाघात के किसी भी रूप करने के लिए अग्रणी|

* मानसिक मंदता :- मानसिक मंदता का मतलब एक व्यक्ति के मन को गिरफ्तार या अधूरे विकास की एक शर्त है, जो विशेष रूप से बुद्धि के उप सामान्य की विशेषता है| मानसिक बीमारी का मतलब मानसिक विकार है; अन्य मानसिक मंदता के|

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20 Jan, 06:54


जजों के नाम पर घूस लेने का मामला :-

* मेडिकल कॉलेज को राहत के लिए जजों के नाम पर घूस लेने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने SIT जांच की मांग वाली याचिका को खारिज किया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने NGO कैम्पेन फॉर जुडिशल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (सीजेएआर) की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एनजीओ ने यह याचिका लखनऊ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश को को लेकर हुए घोटाले में आपराधिक सांठगांठ और सुप्रीम कोर्ट के एक सिटिंग जज को गैरकानूनी तरीके से संतुष्ट करने के आरोपों की जांच की मांग के लिए दायर किया है। पिछले 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की वकील कामिनी जायसवाल की इसी तरह की एक याचिका को खारिज कर दिया था।

* वकील प्रशांत भूषण ने सीजेएआर की पैरवी करते हुए कहा था कि 14 नवंबर के फैसले में एसआईटी के गठन की गंभीर जरूरत पर कोर्ट ने विचार नहीं किया। वर्तमान याचिका इस विनती से दायर की गई है कि कोर्ट एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में एसआईटी गठित करे ताकि कथित आपराधिक सांठगांठ और घूस देने की आरोप की जांच की जा सके और सीबीआई कोर्ट को निर्देश दे कि वह अब तक जांच के दौरान हुई सारी रिकवरी एसआईटी को सौंप दे। भूषण ने कहा कि 19 सितम्बर का एफआईआर जो कि उड़ीसा हाई कोर्ट के जज आईएम कुद्दुसी के खिलाफ दायर की गई थी उसमें पांच निजी व्यक्ति और सात अज्ञात सरकारी अधिकारियों के भी नाम हैं।

* इससे पहले जो याचिका दायर की गई थी उसका आधार यही था पर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 14 नवंबर के अपने फैसले में ध्यान नहीं दिया। भूषण की दलील के बाद बेंच ने कहा, अगर आप 14 नवंबर के फैसले के पैराग्राफ 7 और 8 को देखें तो आपको पता लग जाएगा कि एफआईआर की बातों पर गौर किया गया है। पैराग्राफ 22 में हमने कहा है कि एफआईआर में सुप्रीम कोर्ट के किसी वर्तमान जज का नाम नहीं है और हमें इस पर संदेश जाहिर किया कि कैसे याचिकाकर्ता ने यह समझ लिया कि यह न्यायपालिका के सर्वोच्च अधिकारी के खिलाफ हो सकता है।

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20 Jan, 06:53


भारतीय दंड संहिता की धारा 483 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 483 के अंतर्गत जो भी किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त किसी संपत्ति के निशान का मुकाबला करता है, उसे दो साल तक या जुर्माना के साथ या दोनों के लिए किसी भी विवरण के कारावास से दंडित किया जाएगा।

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20 Jan, 06:53


संघ लोक सेवा आयोग के गठन पर कानून :-

* अनुच्छेद 315 के द्वारा संघ में संघीय सेवा आयोग की स्थापना की गई है। इसमें एक अध्यक्ष और सात अन्य सदस्य होते हैं। अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल, पदभार ग्रहण करने की तिथि से छह साल तक अथवा 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक होता है। इसमें कम-से-कम आधे सदस्य (वर्किंग और रिटायर्ड) ऐसे अवश्य हो जो कम-से-कम 10 वर्षों तक सरकारी सेवा का अनुभव प्राप्त कर चुके हैं।

* आयोग का कोई भी सदस्य उसी पर दुबारा नियुक्त नहीं किया जा सकता। संघ लोक सेवा आयोग (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) का अध्यक्ष संघ या राज्यों में अन्य किसी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है। आयोग के सदस्यों का वेतन राष्ट्रपति द्वारा विनियमित होता है। आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के उपरान्त उनकी सेवा की शर्तों को उनके हित के विरुद्ध बदला नहीं जा सकता। इस समय अध्यक्ष का वेतन (7वा पे कमीशन के बाद) 2।5 लाख और सदस्यों का वेतन 2।25 लाख है, जो भारत सरकार की संचित निधि (कंसोलिडेटेड फण्ड) से दिया जाता है।

* आयोग के सदस्यों की उनके दुराचार के लिए राष्ट्रपति आवेश द्वारा हटाया भी जा सकता है। यदि राष्ट्रपति को किसी भी सदस्य के खिलाफ दुराचार की रिपोर्ट मिले तो वह विषय न्यायालय के पास विचारार्थ प्रस्तुत होगा। न्यायालय की सम्मति मिलने पर उस सदस्य को पदच्युत किया जायेगा।

* निम्नलिखित कारणों के उपस्थित होने पर राष्ट्रपति आयोग के किसी भी सदस्य को हटा सकता है।

* यदि वह व्यक्ति दिवालिया सिद्ध हो। यदि अपने कार्यकाल में वह कोई दूसरा पद स्वीकार कर ले। शारीरिक अस्वस्थता के कारण कार्य करने के लिए अक्षम हो गया हो। यदि भारत या राज्य-सरकार के साथ करार किये गये किसी कॉन्ट्रैक्ट के साथ उसका सम्बन्ध हो या उससे कोई लाभ प्राप्त हो रहा हो।

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19 Jan, 10:42


https://youtu.be/UruieLxwlz0?si=VOLAmOdLci4cVZ_l

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18 Jan, 09:06


https://youtu.be/PAON64BsdjY?si=GJW1ib1SxxUgTg6N

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18 Jan, 09:06


चुनाव प्रचार में गड़बड़ी की शिकायत का अधिकार :-

* पीठासीन अधिकारी या निर्वाचन अधिकारी या जिला चु्नाव अधिकारी या मुख्य चुनाव अधिकारी या फिर निर्वाचन आयोग से शिकायत कर सकते हैं ।

* न्यायिक मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं।

* लोकपाल नियुक्त हो तो उससे शिकायत कर सकते हैं।

* हर हिंसक घटना की थाने में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं ।

* मतदान करवा रहा सरकारी कर्मचारी अगर अपने राजनैतिक झुकाव की वजह से अपना दायित्व ठीक से नहीं निभाता है तो आप पुलिस अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट से उसकी शिकायत कर सकते हैं।

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18 Jan, 09:06


भारतीय दंड संहिता की धारा 500 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।

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18 Jan, 09:05


भारतीय मुद्रा अपमान अधिनियम कानून :-

* 5,10 या किसी भी मुद्रा का सिक्का लेने से कोई भी बैंक या व्यापारी इनकार नहीं कर सकता। अगर कोई बैंक या व्यापारी मना करता है, तो उसके खिलाफ कोई भी व्यक्ति पुलिस थाने में भारतीय मुद्रा अपमान अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करवा सकता है। अपर्याप्त स्टाफ व ज्यादा काम के बोझ तले दबे सरकारी व निजी बैंक सिक्के जमा करने से ही उपभोक्ता को टरका रहे हैं। गंभीर समस्या के बावजूद न तो चेस्ट बैंक शाखा अधिकारी व लीड बैंक अधिकारियों को नियमों की जानकारी है और न ही जिला प्रशासन गंभीर है। इसका खमियाजा आमजन व व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है।

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18 Jan, 09:05


गैर-जमानती अपराध में अग्रिम जमानत का अधिकार :-

* अगर किसी व्यक्ति को यह विश्वास है कि उसे किसी गैर-जमानती अपराध के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह इस धारा के अधीन निर्देश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है। यदि न्यायालय ठीक समझे तो ऐसी गिरफ्तारी की स्थति में उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है ।

* वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले प्रति प्रश्नों का उत्तर देने के लिए जब भी जरुरत होगी, वह उपलब्ध होगा।

* वह उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालाय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट ना करने के लिए मनाने के लिए, प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रुप से उसे कोई उत्प्रेरणा, मकी या वचन नहीं देगा।

* वह व्यक्ति ऩ्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोड़ेगा ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने में पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है, तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जायेगा। यदि ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारंट जारी किया जाना चाहिए तो वह उपधारा (क) के अधीन न्यायालय के निर्देश के अनुरुप जमानती वारंट जारी करेगा। अदालत मुकदमों के विभिन्न पहलुओं को देखते हुए शर्तों या बिना शर्त के अग्रिम जमानत मंजूर या नामंजूर कर सकती है।

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18 Jan, 09:05


भारतीय दंड संहिता की धारा 377 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत जो कोई व्यक्ति अप्राकृतिक कृत्य अपराध करता है तो यह गैरकानूनी माना जायेगा और यह अपराध की श्रेणी में आएगा जिसके लिए 5 वर्ष की सजा या जुर्माना या फिर दोनों से दण्डित करने का प्रावधान हैं। यह अपराध गैर जमानती भी होता है ।

Kanooni salah

18 Jan, 09:05


राइट टु एजुकेशन एक्ट कानून :-

* राइट टु एजुकेशन एक्ट में भी कॉरपोरल पनिशमेंट का जिक्र है। राइट टु एजुकेशन एक्ट-17 में प्रावधान है कि अगर कोई टीचर किसी स्टूडेंट को मानसिक या शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। हालांकि आरटीई में इसे गंभीर नहीं माना गया है। अशोक अग्रवाल बताते हैं कि अगर कानून में संशोधन कर आरटीई में इसे गंभीर मिसकंडक्ट करार दिया जाएगा तो इसके लिए दोषी टीचर की नौकरी भी जा सकती है। फिलहाल आरटीई के तहत इस मामले में सर्विस रूल्स के तहत ही कार्रवाई का प्रावधान है।

Kanooni salah

16 Jan, 12:35


https://youtu.be/ERlnbOsXGnc?si=KBChj7W5orCxaYqv

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16 Jan, 12:35


अदालत का समय बर्बाद करने पर फैसला :-

* अब जनहित के नाम पर फालतू याचिका दाखिल करने पर कड़ा फैसला आ सकता है। फालतू की याचिकाएं दायर करने और कोर्ट का बहुमूल्य समय खराब वाले राजस्थान के एक ट्रस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने 25 लाख रुपये का जुर्माना किया है और सुप्रीम कोर्ट में ट्रस्ट पर आजीवन जनहित याचिका दाखिल करने पर रोक लगा दी है। इस ट्रस्ट ने पिछले 10 साल में जनहित के नाम पर देश की अलग-अलग अदालतों में 64 याचिकाएं दायर की थी।

* चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने सुराज इंडिया ट्रस्ट पर न केवल 25 लाख रुपये का जुर्माना किया है बल्कि भविष्य में ट्रस्ट और ट्रस्ट के चेयरमैन राजीव दहिया को जनहित याचिका दायर करने पर पाबंदी लगा दी है। इतना ही नहीं पीठ ने चेयरमैन को अपने बदले किसी और नाम से भी याचिका दायर करने पर रोक लगा दी है।

* न्यायालय ने कहा, ""इस चलन (अदालत का समय बर्बाद करने) को हमेशा के लिए रोकने हेतु, यह निर्देश दिया जाता है कि सुराज इंडिया ट्रस्ट अब इस देश की किसी भी अदालत में जनहित में कोई याचिका दायर नहीं करेगा।"" उसने कहा, ""राजीव दहिया के जनहित में याचिका दायर करने पर रोक लगायी जाती है। सुराज इंडिया ट्रस्ट और राजीव दहिया द्वारा अदालत का समय बर्बाद करने के एवज में, हमें 25 लाख रुपये का उदाहरणीय जुर्माना लगाना उचित लगता है ताकि ऐसे लोग इस प्रकार की याचिका दायर करने से बचें।""













अदालत का समय बर्बाद करने पर फैसला :-

* अब जनहित के नाम पर फालतू याचिका दाखिल करने पर कड़ा फैसला आ सकता है। फालतू की याचिकाएं दायर करने और कोर्ट का बहुमूल्य समय खराब वाले राजस्थान के एक ट्रस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने 25 लाख रुपये का जुर्माना किया है और सुप्रीम कोर्ट में ट्रस्ट पर आजीवन जनहित याचिका दाखिल करने पर रोक लगा दी है। इस ट्रस्ट ने पिछले 10 साल में जनहित के नाम पर देश की अलग-अलग अदालतों में 64 याचिकाएं दायर की थी।

* चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने सुराज इंडिया ट्रस्ट पर न केवल 25 लाख रुपये का जुर्माना किया है बल्कि भविष्य में ट्रस्ट और ट्रस्ट के चेयरमैन राजीव दहिया को जनहित याचिका दायर करने पर पाबंदी लगा दी है। इतना ही नहीं पीठ ने चेयरमैन को अपने बदले किसी और नाम से भी याचिका दायर करने पर रोक लगा दी है।

* न्यायालय ने कहा, ""इस चलन (अदालत का समय बर्बाद करने) को हमेशा के लिए रोकने हेतु, यह निर्देश दिया जाता है कि सुराज इंडिया ट्रस्ट अब इस देश की किसी भी अदालत में जनहित में कोई याचिका दायर नहीं करेगा।"" उसने कहा, ""राजीव दहिया के जनहित में याचिका दायर करने पर रोक लगायी जाती है। सुराज इंडिया ट्रस्ट और राजीव दहिया द्वारा अदालत का समय बर्बाद करने के एवज में, हमें 25 लाख रुपये का उदाहरणीय जुर्माना लगाना उचित लगता है ताकि ऐसे लोग इस प्रकार की याचिका दायर करने से बचें।""

Kanooni salah

16 Jan, 12:34


भारतीय दंड संहिता की धारा 133 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 133 के अंतर्गत जो भी अधिकारी, सैनिक, नाविक या एयरमैन द्वारा भारत सरकार के सेना, नौसेना या वायु सेना में हमला करता है, किसी भी वरिष्ठ अधिकारी को अपने कार्यालय के निष्पादन में शामिल होने पर, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दंडित किया जाएगा अवधि जो कि तीन साल तक हो सकती है, और वह भी जुर्माना के लिए उत्तरदायी होगी।

Kanooni salah

16 Jan, 12:34


हिन्दू विवाह अधिनियम कानून :-

* हिन्दू विवाह अधिनियम भारत की संसद द्वारा सन् 1955 में पारित एक कानून है।

* अब हर हिंदू स्त्रीपुरुष दूसरे हिंदू स्त्रीपुरुष से विवाह कर सकता है, चाहे वह किसी जाति का हो।

* एकविवाह तय किया गया है। द्विविवाह अमान्य एवं दंडनीय भी है।

* न्यायिक पृथक्करण, विवाह-संबंध-विच्छेद तथा विवाहशून्यता की डिक्री की घोषणा की व्यवस्था की गई है।

* प्रवृत्तिहीन तथा विवर्ज्य विवाह के बाद और डिक्री पास होने के बीच उत्पन्न संतान को वैध घोषित कर दिया गया है। परंतु इसके लिए डिक्री का पास होना आवश्यक है।

* न्यायालयों पर यह वैधानिक कर्तव्य नियत किया गया है कि हर वैवाहिक झगड़े में समाधान कराने का प्रथम प्रयास करें।

* बाद के बीच या संबंधविच्छेद पर निर्वाहव्यय एवं निर्वाह भत्ता की व्यवस्था की गई है।

* न्यायालयों को इस बात का अधिकार दे दिया गया है कि अवयस्क बच्चों की देख रेख एवं भरण पोषण की व्यवस्था करे। विधिवेत्ताओं का यह विचार है कि हिंदू विवाह के सिद्धांत एवं प्रथा में परिवर्तन करने की जो आवश्यकता उपस्थित हुई थी उसका कारण संभवत: यह है कि हिंदू समाज अब पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति से अधिक प्रभावित हुआ है।

Kanooni salah

16 Jan, 12:34


भारतीय दंड संहिता की धारा 207 :-

* भारतीय दंड संहिता की धारा 207 के अंतर्गत जो कोई भी धोखाधड़ी स्वीकार करता है, कोई संपत्ति प्राप्त करता है या इसमें कोई दिलचस्पी लेता है, यह जानकर कि उसे ऐसी संपत्ति या हित के लिए कोई सही या सही दावा नहीं है, या किसी भी संपत्ति के किसी भी अधिकार या किसी रुचि में कोई छद्म छूता है, जिससे उस संपत्ति को रोकने के लिए या उसमें ब्याज को जब्ती या एक संतोष के रूप में लिया जा रहा है, जिसे सजा सुनाई गई है, या जिसे वह न्याय न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा या निष्पादन में लिया जा रहा है एक डिक्री या आदेश की, जो कि बनाया गया है, या जिसे वह एक कोर्ट ऑफ जस्टिस द्वारा सिविल सूट में बनाया जाने की संभावना के बारे में जानता है, उसे दो साल तक की अवधि के लिए या किसी के विवरण के कारावास से दंडित किया जाएगा।

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