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Gautama Buddha ( गौतम बुद्ध)

Gautama Buddha ( गौतम बुद्ध)
This channel is only meant for achieving peace. If you like then join official group free join and share it to others.- दर्द तो निश्चित है, कष्ट वैकल्पिक है।
- वह हमारा खुद का ही दिमाग होता है, हमारे दुश्मन का नहीं होता- जो हमें गलत रास्तों पर ले जाता है।
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最后更新于 07.03.2025 02:28

The Teachings of Gautama Buddha: A Path to Inner Peace

गौतम बुद्ध, जिन्हें सिद्धार्थ गौतम के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी, नेपाल में हुआ था। उन्होंने एक राजकुमार के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की, किंतु जल्दी ही उन्होंने सांसारिक धन और विलासिता का त्याग कर दिया और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े। बुद्ध की शिक्षाएँ, जिन्हें 'धर्म' कहा जाता है, ने मानवता को एक गहरी और विचारशीलता की ओर मार्गदर्शन किया। उनका संदेश शांति, सहिष्णुता और अनुकंपा का है, जो आज भी विश्वभर में लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है। उनका जीवन और उनके उपदेश हमें बताते हैं कि कैसे कष्ट हमारे जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा है, किंतु हम उसे कैसे सहन कर सकते हैं। "दर्द तो निश्चित है, कष्ट वैकल्पिक है" जैसे विचार हमें यह सिखाते हैं कि हम अपनी सोच और दृष्टिकोण को बदलकर अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ क्या हैं?

गौतम बुद्ध की मुख्य शिक्षाएँ चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग के चार सिद्धांतों पर आधारित हैं। चार आर्य सत्य इस प्रकार हैं: 1) दुःख का अस्तित्व है, 2) दुःख का कारण है, 3) दुःख का अंत संभव है और 4) दुःख का अंत करने का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है। अष्टांगिक मार्ग में सही दृष्टि, सही संकल्प, सही वाणी, सही क्रिया, सही जीवनयापन, सही प्रयास, सही स्मृति और सही समाधि शामिल हैं। ये सिद्धांत व्यक्ति को अपने जीवन में संतोष और शांति प्राप्त करने में मदद करते हैं।

बुद्ध की शिक्षाएँ केवल एक धार्मिक धारणा नहीं हैं, बल्कि यह एक जीवन शैली का प्रतीक हैं। यह हमें सिखाती हैं कि कैसे अपने विचारों और कार्यों के प्रति जागरूक रहे, अपने अंदर के शत्रु को पहचानें और अपने मन की शांति प्राप्त करें। ध्यान और अनुकंपा जैसे अभ्यास इस मार्ग का हिस्सा हैं, जो हमें अपने भीतर की शांति को खोजने में मदद करते हैं।

गौतम बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाएं क्या थीं?

गौतम बुद्ध का जीवन एक अद्वितीय यात्रा है। उनके जन्म के बाद, उनके पिता ने उन्हें एक शानदार जीवन देने का प्रयास किया, लेकिन सिद्धार्थ को दुनिया के दुःख और कष्ट का सामना करना पड़ा। जब उन्होंने एक बूढ़े व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, एक मृत व्यक्ति और एक साधु को देखा, तो उन्होंने यह समझा कि दुनिया में दुःख है। इसका सामना करने के लिए, उन्होंने 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और ध्यान और साधना की खोज में निकले। अंततः वे बोधि वृक्ष के नीचे आत्मज्ञान प्राप्त कर अपने आप को बुद्ध के रूप में स्थापित किया।

बुद्ध के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक था जब उन्होंने बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया और अंततः ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद, उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ अपने ज्ञान को साझा किया और सच्चाई की खोज में उन्हें मार्गदर्शन किया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में कुशीनगर में निधन लिया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। यह घटनाएँ उनके जीवन की गहराई और उनके उपदेशों के प्रभाव को दर्शाती हैं।

गौतम बुद्ध का ध्यान (Meditation) का महत्व क्या है?

गौतम बुद्ध ने ध्यान को आत्मज्ञान और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए एक आवश्यक साधन माना। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं को समझ सकता है, और अपने भीतर की शांति को खोज सकता है। बुद्ध के अनुसार, ध्यान से मन को शांति मिलती है और व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को समझ पाता है। यह चित्त की शांति के लिए एक महत्वपूर्ण अभ्यास है।

ध्यान न केवल मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। शोध बताते हैं कि नियमित ध्यान करने से तनाव, चिंता और अवसाद में कमी आती है। इसके अलावा, यह एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को भी बढ़ाता है, जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाने में मदद करता है।

गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ आज के समाज में कैसे प्रासंगिक हैं?

गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ आज के समाज में अत्यंत प्रासंगिक हैं क्योंकि वे हमें सोचने और अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदार बनने का मार्ग दिखाती हैं। आज जब लोग तनाव और अवसाद का सामना कर रहे हैं, बुद्ध के उपदेश हमें सिखाते हैं कि कैसे हम अपने जीवन को सकारात्मक रूप से बदल सकते हैं। उनका संदेश सहिष्णुता और प्रेम का है, जो आज के विभाजित समाज में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

आधुनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करते समय, बुद्ध की शिक्षाएँ हमें व्यावहारिक समाधान प्रदान करती हैं। उनके विचारों को अपनाकर हम अपने मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं और समाज में सहयोग की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि कैसे अपने भीतर की शांति प्राप्त करें और दूसरों के साथ मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण करें।

बुद्ध धर्म का महत्व क्या है?

बुद्ध धर्म, जिसे बौद्ध धर्म के नाम से भी जाना जाता है, एक धार्मिक और दार्शनिक परंपरा है जो गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित है। यह दुनिया भर में लगभग 520 मिलियन अनुयायियों के साथ चौथा सबसे बड़ा धर्म है। इसका उद्देश्य मानवता को दुःख से मुक्त करना, आंतरिक शांति और संतोष प्राप्त करना और सही मार्ग पर चलना है। बौद्ध धर्म के अनुयायी ध्यान, नैतिकता और ज्ञान के विकास पर जोर देते हैं।

बुद्ध धर्म की शिक्षाएँ केवल धार्मिक प्रथाओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह व्यक्तिगत विकास और समाज के कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। बौद्ध धर्म ने विभिन्न संस्कृतियों और देशों में भू-राजनीतिक और सामाजिक बदलाव लाने में भूमिका निभाई है। इसके दर्शन और नैतिक शिक्षाएँ आज भी वैश्विक स्तर पर लोगों को प्रेरित करती हैं।

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गौतम बुद्ध (Gautama Buddha) चैनल एक ऐसा स्थान है जो केवल शांति की प्राप्ति के लिए है। यदि आप भी शांति की खोज में हैं तो इस चैनल 'gautamabudha' में शामिल हों। यह एक आधिकारिक समूह है जिसमें आप मुफ्त शामिल हो सकते हैं और इसे दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं। इस चैनल का उद्देश्य दर्द की स्थिति को समझना है। कष्ट वैकल्पिक है, और लोगों को गलत राह पर ले जा सकता है। इसलिए, गौतम बुद्ध के उपदेशों को सुनकर और उनके मार्गदर्शन में चलकर आप अपने मन की शांति पा सकते हैं। यह चैनल आपको मानसिक और आध्यात्मिक समृद्धि के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे अब ही जॉइन करें और अपने अंदर की शांति की खोज में शामिल हों।

Gautama Buddha ( गौतम बुद्ध) 最新帖子

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BUDHA PURNIMA 2022

22 May, 02:33
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One who has thus
gone

Thus Come One

22 Jul, 16:21
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🔰 स्वास्थ्य से संबंधित कुछ विशेष जानकारियां

1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।
2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं
3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है
4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।
5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।
6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।
7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।
8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।
9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है।
10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।
11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।
12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।
13- दूध(चाय) के साथ नमक (नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।
14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।
15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।
16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिष्क हो हानि पहुँचती है।
17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।
18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।
19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।
20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।
21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।
22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।
23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।
24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।
25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।
26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।
27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,
सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औषधियां हैं।
28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।
29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।
30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।
31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएंआदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।
32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।
33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।
34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।
35- भोजन पकने के 48 मिनट के
अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोषकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।।
36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोषकता 100%, कांसे के बर्तन में 97%, पीतल के बर्तन में 93%, अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।
37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।
38- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, ब्रेड , समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।
39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेष्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।
40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।
41- सरसों, तिल,मूंगफली , सुरजमुखी या नारियल का कच्ची घानी का तेल और देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और
वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।
42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।
43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।
44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है। हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।
45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।
46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।
47-बर्तन मिटटी के ही प्रयोग करने चाहिए।
48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे।
(आँखों के रोग में दातून नहीं करना चाहिए)
49- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़ें और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।
50- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद

11 Jan, 15:14
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गौतम बुद्ध के साथ ही महावीर स्वामी ने, जो बिहार के ही एक राजपुत्र थे, जैन धर्म का प्रचार आरंभ किया था। वे तपस्या और त्याग की दृष्टि से बुद्ध से भी अधिक बढे़- चढे़ थे, उनका सिद्धांत भी दार्शनिक दृष्टि से बहुत उच्चकोटि का था, पर फिर भी उनको अधिक सफलता नहीं मिल सकी और आज भी बौद्धों की तुलना जैनियों की संख्या नगण्य ही है। कारण यहीं था कि बडे़ तपस्वी और त्यागी होने पर भी महावीर स्वामी बुद्ध के समान व्यावहारिक नहीं थे और उनकी तरह समयानुकूल परिवर्तन करके अपने कार्य को निरंतर अग्रसर न कर सके। बुद्ध की व्यावहारिक और समन्वय कर सकने वाली बुद्धि सभी धर्म प्रचारकों के लिए अनुकरणीय है। यदि वे कट्टरता के बजाय उदारता, समझौता, समन्वय की भावना से काम लें तो निस्संदेह अपना और दूसरों का कहीं अधिक हित साधन कर सकेंगे।

29 Aug, 17:29
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