Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) (@bhagwat_geetakrishn) Kanalının Son Gönderileri

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) Telegram Gönderileri

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)
Hindu Devotional Channel
8,211 Abone
1,430 Fotoğraf
94 Video
Son Güncelleme 06.03.2025 12:50

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) tarafından Telegram'da paylaşılan en son içerikler

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

04 Mar, 03:18

964

If there exists no possibility of failure, then victory is meaningless.

यदि हार की कोई सम्भावना ना हो तो जीत का कोई अर्थ नहीं है।
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Mar, 15:47

1,119

कौन हैं सनातनी..

जिसने पत्थर मे भी ईश्वर को प्रकट कर लिया कौन है वो ?

जिसने कुत्ते मे भी ईश्वर का दर्शन कर लिया, कौन है वो ?, जो अपनी श्रद्धा और शक्ति मे इतना विश्वास रखता है की, पत्थर पर भी सिंदूर लागा दे तो हनुमंत लाल बनकर प्रकट हो जाते हैं, कौन हैं वो ?? कौन हैं वो जो चरचार सृष्टि के प्रति भावो से भरा हैं ? कौन हैं वो जो शत्रुता, ईर्ष्या द्वेष के भावो से भरे होने पर भी सौहार्द, मित्रता और प्रेम का हाथ बढ़ाता हैं।

वो हैं

सनातन धर्म मे रचे बसें सनातन धर्म को आत्मसात करने वाले सनातनी, जो चरचार मे ईश्वर का दर्शन करता हैं। जो वसुधैव कुटुंबकम की परिभाषा को भली भांती से जानता और जीता हैं।

सीताराम
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

03 Mar, 06:07

1,126

बारिश की बूदें भले ही छोटी हो लेकिन उनका लगातार बरसना बडी़-बडी़ नदियों का बहाव बन जाता है। ऐसे ही हमारे छोटे-छोटे प्रयास यदि लगातार हो तो निश्चित ही जीवन में बडा़ परिवर्तन लाने में सक्षम रहते है।
आज से हम लगातार प्रयास करते रहें…

Raindrops may be small in size, but with incessant pouring, they become big rivers. Likewise if our little efforts are continuous, then they are capable of bringing about big changes!
TODAY ONWARDS LET'S keep on making efforts consistently.
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Mar, 15:36

1,230

पिता की नियत और निर्णय..

अंगद के पिता मरते मरते अंगद को उन्हीं के हाथों सौंप दिया जिसके हाथ से अंगद के पिता की मृत्यु हुई। यानी राम के हाथों मे, और अंगद अपने पिता से बिना कुछ सवाल किये राम को समर्पित हो गये। अंगद ने यहां पर बहुत बड़ा संदेश छोड़ा आने वाली पीढ़ी के लिए.. आज के बच्चे अपने माता पिता से अधिक पढ़े लिखखें हैं, ज्यादा एक्सपर्ट हैं, उनके पास ज्यादा एक्सपोजर हैं। यानी आप जैसी बुद्धि आपके माँ बॉप के पास नहीं हैं, पर एक बात हमेशा याद रखना की जब आपके माँ बाप कोई निर्णय लें तो, उस निर्णय को मत देखना, बल्कि उस निर्णय के पीछे की नियत को देखना, क्योंकि इस दुनियां मे जितनी साफ़ नियत माँ बॉप की बनाई हैं बिधाता ने, अपने बच्चों के लिए। इतनी अच्छी और साफ़ नियत किसी की नहीं बनाई.. निर्णय तो गलत सही हो भी सकता हैं पर नियत नहीं.

इसलिए अंगद ने अपने पिता की नियत को देखी, निर्णय को नहीं। अगर निर्णय देखते तो बगावत करते कि जिसने आपको मृत्यु के हाथों सौप दिया आप उसी के हाथों मे मुझे सौप रहें हो। अर्थात कहने का तात्पर्य है कि समय रहते हुए अपने बच्चों से जुड़िए उनसे इमोशनल टच बनाए रखिए, उन्हें प्रैक्टिकल न बनने दे... नहीं तो आने वाली हर पीढ़ी पत्थर बनती जाएगी और संस्कृति संस्कार का नामोनिशान मिट जाएगा।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

http://wa.me/+919768011645
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Mar, 14:27

977

श्रीमदभगवदगीता

पहला अध्याय - श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद

(योद्धाओं द्वारा शंख-ध्वनि)

तब कुरुवंश के वयोवृद्ध परम-प्रतापी पितामह भीष्म ने दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए सिंह-गर्जना के समान उच्च स्वर से शंख बजाया।

तत्पश्चात् अनेक शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग और सींग आदि बाजे अचानक एक साथ बज उठे, उनका वह शब्द बड़ा भयंकर था।

तत्पश्चात् दूसरी ओर से सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ पर आसीन योगेश्वर श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाए।

हृदय के सर्वस्व ज्ञाता श्रीकृष्ण ने "पाञ्चजन्य" नामक, अर्जुन ने "देवदत्त" नामक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने "पौण्ड्र" नामक महाशंख बजाया।

हे राजन! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने "अनन्तविजय" नामक और नकुल तथा सहदेव ने "सुघोष" और "मणिपुष्पक" नामक शंख बजाए।

श्रेष्ठ धनुष वाले काशीराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और कभी न हारने वाला सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजा वाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु आदि सभी ने अलग-अलग शंख बजाए

उस भयंकर ध्वनि ने आकाश और पृथ्वी को गुंजायमान करते हुए धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय में शोक उत्पन्न कर दिया।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506

http://wa.me/+919768011645
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Mar, 14:23

1,007

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय २ - सांख्य योग

यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम् ।
सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम् ॥32॥

भावार्थ
हे पार्थ! वे क्षत्रिय भाग्यशाली होते हैं जिन्हें बिना इच्छा किए धर्म की रक्षा हेतु युद्ध के ऐसे अवसर प्राप्त होते हैं जिसके कारण उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।

व्याख्या
संसार में समाज की रक्षा हेतु सदैव क्षत्रिय वर्ण का होना अनिवार्य होता है। क्षत्रिय वर्ण के धर्म के अनुसार योद्धा का यह धर्म होता है कि वह आवश्यकता पड़ने पर समाज की रक्षा हेतु निडरतापूर्वक अपने प्राणों का बलिदान करने से पीछे न हटे। वैदिककाल में समाज के अन्य लोगों को पशुहत्या की मनाही थी किन्तु क्षत्रियों को वन में जाकर युद्ध कौशल के अभ्यास हेतु पशुओं का वध करने की अनुमति दी जाती थी। क्षत्रिय धर्म का पालन करने वाले योद्धाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे धर्म की रक्षा के अवसर का अति उत्साह से स्वागत करें क्योंकि अपने धर्म का पालन करने पर उन्हें इस जीवन और परलोक में भी यश मिलेगा। किसी मनुष्य के द्वारा अपनी वृत्ति के अनुसार कुशलतापूर्वक निर्वहन किया गया कर्त्तव्य आध्यात्मिक कर्म नहीं है और इसके परिणामस्वरूप भगवद्प्राप्ति नहीं होती। यह केवल निश्चित भौतिक प्रतिफल सहित एक पुण्य कर्म है। अपने दिव्य उपदेशों के पश्चात् अब श्रीकृष्ण अपने लौकिक उपदेशों की व्याख्या आरम्भ करते हुए कहते हैं कि यदि अर्जुन की दिव्य आंतरिक आध्यात्मिक उपदेशों में कोई रुचि नहीं है और वह शारीरिक स्तर पर टिका रहना चाहता है तब भी एक योद्धा के रूप में धर्म की रक्षा करना उसका सामाजिक दायित्व है।

जैसा कि हम यह सोच सकते हैं कि भगवद्गीता कर्म करने का उपदेश देती है न कि अकर्मण्य रहने का। जब लोग आध्यात्मिक प्रवचन सुनते हैं तब वे प्रायः प्रश्न करते हैं-"क्या आप मुझे अपने कर्म का त्याग करने के लिए कह रहे हैं?" यद्यपि भगवान श्रीकृष्ण प्रत्येक श्लोक में अर्जुन को कर्म का उपदेश दे रहे हैं किन्तु अर्जुन अपने कर्त्तव्य पालन से विमुख होना चाहता है फिर भी श्रीकृष्ण बार-बार उसे कर्त्तव्य पालन के लिए मनाना चाहते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन की चेतना मे आंतरिक परिवर्तन देखना चाहते हैं न कि बाह्य दृष्टि से कर्तव्यों का परित्याग करना। अब श्रीकृष्ण आगे अर्जुन को कर्त्तव्य से विमुख होने के परिणामों से अवगत कराते हैं।

@bhagwat_geetakrishn

@Sudhir_Mishra0506
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Mar, 09:06

1,020

धरती पर रहता इंसान दौलत गिनता है,
कल कितनी थी और आज कितनी बढ़ गई।

ऊपर बैठा ईश्वर हंसता है
और इंसान कि सांसें गिनता है,
कल कितनी थी और आज
कितनी कम हो गई।
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

02 Mar, 06:18

1,279

लोग बुराई करे
और आप दुःखी हो जाओ
लोग तारीफ करे
और आप सुखी हो जाओ
मतलब
आपके सुख दुःख
का स्विच लोगो के हाथ में है ??
कोशिश करें ये
स्विच आपके हाथ में हो।
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Mar, 08:10

1,376

97% लोग ज़िन्दगी में जल्दी हार मान लेते हैं
औऱ ये उसी 3% लोगों के लिए काम करते हैं,
जो ज़िन्दगी में कभी भी हार नहीं मानते हैं l
Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

01 Mar, 08:09

1,385

अच्छे चरित्र का व्यक्ति
कई धनवान लोगों से
अधिक अमीर होता है ।