*..भगवान् को भूल गये, गजब हो गया !..*
(१) *भगवान्के होकर भजन करें,*
(२) *भगवान्का ध्यान करते हुए भजन करें,*
(३) *गुप्तरीतिसे करें,*
(४) *निरन्तर करें,* क्योंकि बीचमें छूटनेसे भजन इतना बढ़िया नहीं होता। निरन्तर करनेसे एक शक्ति पैदा होती है। जैसे, बहिनें माताएँ रसोई बनाती हैं? तो रसोई बनावें तो दस-पंद्रह मिनट बनाकर छोड़ दें, फिर घंटाभर बादमें शुरू करें। फिर थोड़ी देर बनावें, फिर घंटाभर ठहरकर करने लगें। इस प्रकार करनेसे क्या रसोई बन जायगी ? दिन बीत जायगा, पर रसोई नहीं बनेगी। लगातार किया जाय तो चट बन जायगी। ऐसे ही भगवान्का भजन लगातार हो, निरन्तर हो, छूटे नहीं, रात-दिन, सुबह-शाम कभी भी छूटे नहीं।
नारदजी महाराज भक्ति-सूत्रमें लिखते हैं- *'तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति'* सब कुछ भगवान् के अर्पण कर दे, भगवान्को भूलते ही परम व्याकुल हो जाय। जैसे मछलीको जलसे बाहर कर दिया जाय तो वह तड़फड़ाने लगती है। इस तरहसे भगवान्की विस्मृतिमें हृदयमें व्याकुलता हो जाय। भगवान्को भूल गये, गजब हो गया ! उसकी विस्मृति न हो। लगातार उसकी स्मृति रहे और प्रार्थना करे - 'हे भगवान्! मैं भूलूँ नहीं, हे नाथ! मैं भूलूँ नहीं।' ऐसा कहता रहे और निरन्तर नाम जप करता रहे।
----परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
पुस्तक- *भगवन्नाम* पृष्ठ २९