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Abhijeet Srivastava
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Última Actualización 01.03.2025 10:02

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अबकी नारद घूमते-घूमते कैलाश पहुँचे तो वातावरण हर बार की भांति परमशान्त नहीं था, परमानन्द से ओतप्रोत प्रतीत नहीं हो रहा था। यद्यपि खिलंदड़े भूतों और गणों के कारण लंबे समय तक परमशान्ति तो कभी रही भी नहीं, पर उल्लास का भाव सदैव रहता था। नारद की प्रवृत्ति चीजों को, परिस्थितियों को बड़े ध्यान से देखने की, उन्हें समझने की रही है। वे तनिक चिंतित हुए और तीव्रता से महादेव के पास पहुंचें।

वहां देखा तो शिव जी एक शिला पर एक पैर मोड़े, एक पैर लटकाए, मुड़े हुए पैर पर कोहनी रखे, हथेली पर अपनी ठुड्डी टिकाएं बैठे हुए हैं। जटाएं एक ओर झुकी हुई, जटाओं पर टिका चंद्रमा भी असंतुलित। वासुकी ने जैसे-तैसे स्वयं को उनके गले में स्थिर रखा था।

देवर्षि ने शिव का अभिवादन किया, 'नारायण, नारायण', और अचंभित रह गए। प्रथम अवसर ही था यह, जब शिव ने नारायण का उच्चारण सुनकर भी अपने बन्द नेत्र न खोले हों, या यदि नेत्र पहले से खुले हों तो उनके अधरों पर मुस्कान न खिली हो। देवर्षि अबकी तनिक ऊंचे स्वर में बोले, पर परिणाम पुनः वही। शिव वैसे ही चिंतित मुद्रा में स्थिर, अविचलित।

स्वयं वासुकी भी शिव की नासिकाओं से निकलती उष्ण श्वास से जैसे प्रताड़ित हो रहे हो, गले से सरक कर देवर्षि के पास आ गए और देवरूप धारण कर, प्रणाम करते हुए बोले, "कैलाश पर आपका स्वागत है देवर्षि, पधारें, विराजें।"

"मेरे पैर तो रथ के पहिये हैं मित्र, मुझे खड़े ही रहने दें। आप तो यह बताएं कि कैलाश को क्या हुआ है? महादेव इस भाँति चिंतित अवस्था में क्यों दिख रहे हैं? और आप क्यों आ गए, आचार्य नन्दी कहाँ हैं?"

वासुकी के चेहरे पर मुस्कान आ गई, "आपके नारायण की कृपा है सब। वे तो भूलोक में लीलाएं कर रहे हैं, इधर अन्य सारे लोक खाली हो रहे हैं। सबको ही ब्रज जाना है। नन्दी भी वहीं गए हैं। और हमारे महादेव को यह चिंता खाये जा रही है कि पिछली बार भले ही अंशावतार लिया था, भले ही वानर बने थे, पर प्रभु के साथ तो थे, उनके किसी काम तो आये थे। इस बार, जबकि प्रभु अन्य अवतारों की अपेक्षा पूर्णावतार में अवतरित हुए हैं, कितने कल्पों के ऋषियों-मुनियों तक ने, साधारण देवों, गन्धर्वों तक ने गोप और गोपियों के रूप में जन्म लिया है, मात्र विष्णुवल्लभ के लिए कोई स्थान, कोई सेवा निश्चित नहीं की? अबकी तमाम मधुरम लीलाएं होने जा रही हैं, और महेश्वर उन लीलाओं में प्रत्यक्ष भागीदार नहीं होंगे, कदाचित यही चिंता है इन्हें।"

नारद ने सुना और खिलखिला उठे। नीलकंठ के निकट जाकर, तनिक ऊंचे स्वर में बोले, "कृष्ण ने आपको स्मरण किया है देवाधिदेव!"

जैसे ग्रीष्म ऋतु में प्यासी भूमि पर वर्षा की बूंदें गिरी हों, सर्वज्ञ शिव प्रफुल्लित होकर बोले, "क्या, क्या कहा उन्होंने?"

"वे तो अभी शिशु ही हैं महादेव, वे क्या कहेंगे। पर नारायण ने कहा कि जाकर मृत्युंजय से कहो कि कृष्ण के प्राण संकट में हैं। बचाइए उसे।"

"हाँ, तो बोलिये न। क्या करना होगा मुझे?"

"एक स्त्री कृष्ण को दुग्धपान के बहाने विष पिलाने जा रही है। कृष्ण तो शिशु हैं, उनके लिए तो दूध ही पीना उचित है। नारायण ने कहा है कि महादेव को विष पीने का अभ्यास है। अवसर आने पर वे कृष्ण के अधरों पर विराजमान हो जाएं और स्वयं विष पी जाएं, और कृष्ण दूध पी लेंगे।"

महादेव ठठाकर हँसे और बोले, "मुझे विष का अभ्यास है इसलिए मैं विष पी लूँ! सही है, क्षीरसागर में, दूध के समुद्र में रहने वाले नारायण को दूध प्रिय है तो वे दूध पियेंगे? ठीक है। ऐसा ही होगा।"

समय आया, पूतना आई, और मारी गई।

नारद पुनः कैलाश आये। अबकी शिव ने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया और बोले, "कहिए देवर्षि, अभी और कितना विष पीना है मुझे? वैसे कितने आश्चर्य की बात है न, क्षीरसागर में रहने वाले का भक्त दूसरों को विषपान का निमंत्रण देता है।"

नारद हाथ जोड़कर बोले, "आपका पिछला कटाक्ष नारायण भूले नहीं है प्रभु। मैं जो कहने वाला हूँ, यह उनके ही शब्द हैं महादेव। उन्होंने कहा, 'लगता है महादेव विष पी-पीकर थक गए हैं, और अब वे दूध के आकांक्षी हैं। इस कल्प में, और आने वाले सभी कल्पों में मेरे भक्त उनकी इस लालसा को पूरा करेंगे। जो भी व्यक्ति अपने जीवन में मात्र एक बार भी दूध की कुछ बूंदें भी शिव को अर्पित करेगा, वह मेरे हृदय में वास करेगा।'"
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ॐ विष्णवे नम:
ॐ नमो नीलकण्ठाय
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अजीत
26 फरवरी 25 (महाशिवरात्रि 2025)

राजाधिराज कालाधिराज महाकाल की महाशिवरात्रि 🚩

आप सभी को भगवान भोलेनाथ को समर्पित पावन-पर्व महाशिवरात्रि की असीम शुभकामनाएं।

यह दिव्य अवसर आप सभी के लिए सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए, यही कामना है। हर-हर महादेव!

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