प्रछन्न बौद्ध नवीन वेदान्तीओ को अधिकार किसने दिया की हम सनातनीओ के विषय में फतवा नीकाल सके? धर्माधर्म का निर्णय करना उनकी सत्ता नहीं है।
और स्वामी करपात्री के चेलो में जो असत्य भाषण की परंपरा है - वह इस पोस्ट में स्पष्ट दिखती है।
महर्षि दयानंद ने शब्दप्रमाण वेद को सर्वोच्च माना है। जिस वेद को केवल कर्मकांड तक सीमित कर दिया था, उसे धर्म के सर्वोच्च शिखर पर महर्षि दयानंद ने ही स्थापित किया है।
क्योंकि कलियुगी आचार्यो में वेदाध्यन की परंपरा नहीं रही है, इस लिए उनहें यह सत्य ज्ञात नहीं होगा।
शाखा अपौरुषेय नहीं है परंतु प्रवचनभेद से है - यह सत्य महर्षि जैमिनि ने मीमांसा दर्शन के सूत्र में लिखा है।
आख्या प्रवचनात् -१,१.३०
शाखाओ का निर्माण प्रवचन भेद से हुआ है। इस लिए वह वेद नहीं, वेद का व्याख्यान है। शायद मीमांसा को आप नास्तिक दर्शन मानते हो इस लिए पढी नहीं होगी।
सनातनधर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु महर्षि दयानंद की शरण में आईये और वेद के विषय में सारे भ्रम दूर करीये।
ओ३म्