🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज का पञ्चाङ्ग 🚩
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२६
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८१
⛅ 🚩तिथि - सप्तमी रात्रि 01:18 अक्टूबर 24 तक तत्पश्चात अष्टमी
👇 समिति से जुड़कर हिंदुत्व जागरण में हमारा सहयोग करने हेतु लिंक पर क्लिक करें, जानकारी भर फॉर्म सबमिट करें
https://www.prashasaksamiti.com/p/volunteer-form.html
⛅ दिनांक - 23 अक्टूबर 2024
⛅ दिन - बुधवार
⛅ विक्रम संवत् - 2081
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - शरद
⛅ मास - कार्तिक
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - पुनर्वसु प्रातः 06:15 अक्टूबर 24 तक तत्पश्चात पुष्य
⛅ योग - शिव प्रातः 06:39 तक, तत्पश्चात सिद्ध
⛅ राहु काल - दोपहर 12:24 से दोपहर 01:50 तक
⛅ सूर्योदय - 06:40
⛅ सूर्यास्त - 06:07
⛅ दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:00 से 05:50 तक
⛅ अभिजीत मुहूर्त - कोई नही
⛅ निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:59 अक्टूबर 23 से रात्रि 12:49 अक्टूबर 24 तक
⛅ विशेष - सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है व शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🔹 रोग का रहस्य और निरोगता का मूल 🔹
🔸 रोग शरीर की वास्तविकता समझाने के लिए आता हैं।
🔸 रोग पर वही विजय प्राप्त कर सकता है जो शरीर से असंगता का अनुभव कर लेता हैं।
🔸प्राप्त का अनादर और अप्राप्त का चिंतन, अप्राप्त की रुचि और प्राप्त से अरुचि - यही मानसिक रोग हैं।
🔸 वास्तव में तो जीवन की आशा ही परम रोग और आशारहितता ही आरोग्यता हैं। देहभाव का त्याग ही सच्ची औषधि हैं।
🔸 रोग प्राकृतिक तप हैं। उससे डरो मत। भोग की रुचि का नाश तथा देहाभिमान गलाने के लिए रोग आता हैं। इस दृष्टि से रोग बड़ी आवश्यक वस्तु हैं।
🔸 रोग का वास्तविक मूल तो किसी-न किसी प्रकार का राग ही है। रागरहित करने के लिए ही रोग के स्वरूप में अपने प्यारे प्रभु प्रीतम का ही मिलन होता हैं। हम प्रमादवश उन्हें पहचान नहीं पाते और रोग से भयभीत होकर छुटकारा पाने के लिए आतुर तथा व्याकुल हो जाते हैं, जो वास्तव में देहाभिमान का परिचय है, और कुछ नहीं।
🔸 भोजन की रुचि ने सभीको रोगी बनाया हैं। यद्यपि भोजन परिवर्तनशील जीवन का मुख्य अंग है परंतु उसकी रुचि अनेक रोग भी उत्पन्न करती हैं।
असंगता सुरक्षित बनी रहे और भूख तथा भोजन का मिलन सहजभाव से होता रहे तो बड़ी ही सुगमतापूर्वक बहुत-से रोग मिट जाते हैं। रोग राग का परिणाम है, और कुछ नहीं; चाहे वर्तमान राग हो या पूर्वकृत्।
🔸 देहजनित सुख की दासता का अंत करने के लिए रोग के रूप में तुम्हारे ही प्रीतम आये हैं। उनसे डरो मत अपितु उनका आदरपूर्वक स्वागत करो और विधिवत् उनकी पूजा करो। भोग के राग का अंत कर रोग अपने-आप चला जायेगा।
🔸 स्वरूप से तुम किसी भी काल में रोगी नहीं हो। केवल देह की तद्रूपता से ही तुम्हें अपने में रोग प्रतीत होता हैं।
🔸रोगावस्था में शांत तथा प्रसन्न रहना अनिवार्य है। चित्त में प्रसन्नता तथा हृदय में निर्भयता रहने से प्राणशक्ति सबल हो जाती हैं। प्राणशक्ति सबल होने पर प्रत्येक रोग स्वतः नष्ट हो जाता हैं।
🔸 भोग का त्याग कराने के लिए रोग आता हैं।इस दृष्टि से रोग भोग की अपेक्षा अधिक महत्त्व की वस्तु है ।- 📖 ऋषि प्रसाद : अक्टूबर 2022
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
🚨 Telegram बैन हो सकता है भारत में। इसलिए आप सभी प्रशासक समिति के WhatsApp चैनल से अवश्य जुड़ें👇
https://whatsapp.com/channel/0029Va9dBNq6WaKetQIhG52z
🚨 प्रशासक समिति से जुड़िये और मित्रों को भी जोड़ें ⤵️
https://t.me/PrashasakSamitiOfficial
https://t.me/+j9dblZ8zUIQ2Nzll
जय श्री राम
🚩 हिन्दू राष्ट्र भारत 🚩