इसे किलों का रत्न, पूर्व का “जिब्राल्टर” कहा जाता है।
इसका निर्माण कछवाहा वंशी राजा सूरजसेन ने सन 525 ई० में करवाया था।
ग्वालियर किले के प्रमुख द्वार हैं:
आगलगीरी/आलमगीरी
हिंडोला
गूजरीमहल
चतुर्भुज मंदिर दरवाजा
हाथी बाड़ा दरवाजा
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ग्वालियर के किले में निम्न इमारतें महत्वपूर्ण हैं:
मान मंदिर
गूजरीमहल
तेली का मंदिर
हाथी की विशाल प्रतिमा (तोमर नरेश मानसिंह द्वारा)
तेली का मंदिर उत्तर भारत में एकमात्र द्रविड़ शैली से निर्मित मंदिर है।
सास बहु(शहस्त्र बाहु) का मंदिर: 11वीं सदी में राजा महिपाल द्वारा निर्मित। इसमें भगवान् सहस्त्रबाहु (विष्णु) की मूर्ति है।
इस किले की तलहटी में 15वीं शताब्दी के राजा डोंगर सिंह द्वारा बनवाये जैन मंदिर हैं। जिसमे सर्वाधिक ऊंची प्रतिमा जैन तीर्थकर आदिनाथ की है।
इसी किले में मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा गुरुद्वारा “दाता बंदी छोड़” है।
ग्वालियर का पुराण नाम गोपांचल है।
ग्वालियर के किले का निर्माण गालब ऋषि के सम्मान में करवाया गया था।
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